hotaks444
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[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अनोखा सफर[/font]
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चेहरे पे पड़ते लहरो के थपेड़े ने मेरी आंखे खोली तो मैंने खुद को रेत पे पड़ा हुआ पाया। चारो तरफ नज़रे दौड़ाई तो लगा जैसे मैं किसी छोटे से द्वीप पर हु। मैं जहाँ पे खड़ा था रेत थी जो की थोड़ी दूर पे घने जंगलों में जाके ख़त्म हो रही थी। मैंने खुद पे नज़र दौड़ाई तो मेरे कपडे पानी में भीगे हुए थे मेरे सारा सामान गायब था और प्यास के मारे मेरा बुरा हाल हुआ जा रहा था। प्यास से तड़पते हुए मैंने सोचा की सामने के जंगलों में पानी की तलाश में जाया जाये ।
सामने कदम बढ़ाते हुए मैं सोचने लगा की मैं यहाँ पर कैसे पंहुचा । दिमाग पर बहुत जोर देने पे आखरी बात जो मुझे याद आया वो ये था कि मैं अपनी रेजिमेंट के कुछ जवानों के साथ अंडमान निकोबार द्वीप के पास एक खुफिया मिशन पे था जब हमारी बोट तूफ़ान में फस गयी। तेज बारिश के कारण हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था कि अचानक हमारी नाव पलट गयी । बहुत देर तक तूफ़ान में खुद को डूबने से बचाने की कोशिश करना ही आखरी चीज़ थी जो मुझे याद थी।
प्यास थी जो ख़तम होने का नाम नहीं ले रही थी अब तो थकान के कारण ऐसा लग रहा था कि अब आगे बढ़ना मुमकिन नहीं है पर शायद आर्मी की कड़ी ट्रेनिंग का ही नतीजा था कि मैं बढ़ा चला जा रहा था । तभी अचानक मुझे सामने छोटी सी झील दिखाई दी प्यासे को और क्या चाहिए था मैं भी झील की तरफ लपक पड़ा । झील का पानी काफी साफ़ था और आस पास के पेड़ो से पक्षिओं की आवाज आ रही थी । मैंने भी पहले जी भर के पानी पिया फिर बदन और बाल में चिपकी रेत धुलने के लिए कपडे उतार कर झील में नहाने उतर गया। जी भर नाहने के बाद मैं झील से निकल किनारे पर सुस्ताने के लिए लेट गया।
नींद की झपकी लेते हुए मेरी आँख किसी की आवाज से खुली सामने देखा तो आदिवासी मेरे ऊपर भाला ताने खड़े थे। उनकी भाषा अंडमान के सामान्यतः
आदिवासियों से अलग थी जो की संस्कृत का टूटा फूटा स्वरुप लग रही थी चूँकि मैं भारत के उत्तरी भाग के ब्राह्मण परिवार से था तो बचपन से ही संस्कृत पढ़ी थी तो उनकी भाषा थोड़ा समझ में आ रही थी वो जानना चाहते थे की मैं किस समूह से हु। मैंने भी उनका जवाब नहीं दिया बस हाँथ ऊपर उठा के खड़ा हो गया। थोड़ी देर तक वो मुझसे चिल्लाते हुए यही पूछते रहे फिर आपस में कुछ सलाह की और मुझे धकेलते हुए आगे बढ़ने को कहा। मैं भी हो लिया उनके साथ । दोनों काफी हुष्ट पुष्ट थे दोनों ने कानो और नाक में हड्डियों का श्रृंगार किया हुआ था बाल काफी बड़े थे जो की सर के ऊपर बंधे हुए थे शरीर पर टैटू या की गुदना कहु गूदे हुए थे शारीर का सिर्फ पेट के नीचे के हिस्सा ही किसी जानवर के चमड़े से ढंका था । काफी देर तक उनके साथ चलते हुए एक छोटे से कबीले में दाखिल हुए वहां पर उन दोनों की तरह ही दिखने वाले और काबिले वाले दिखाई दिए कबीले की महिलाओं का पहनावा भी पुरुषो जैसा ही था बस उनके शरीर पर कोई टैटू नहीं थे। कुछ देर में ही मेरे चारो ओर काबिले वालो का झुण्ड इकठ्ठा हो गया वो आपस में ही खुसुर पुसुर करने लगे । कुछ देर बाद उन्होंने मुझे एक लकड़ी के पिजरे में बंदकर दिया।[/font]
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चेहरे पे पड़ते लहरो के थपेड़े ने मेरी आंखे खोली तो मैंने खुद को रेत पे पड़ा हुआ पाया। चारो तरफ नज़रे दौड़ाई तो लगा जैसे मैं किसी छोटे से द्वीप पर हु। मैं जहाँ पे खड़ा था रेत थी जो की थोड़ी दूर पे घने जंगलों में जाके ख़त्म हो रही थी। मैंने खुद पे नज़र दौड़ाई तो मेरे कपडे पानी में भीगे हुए थे मेरे सारा सामान गायब था और प्यास के मारे मेरा बुरा हाल हुआ जा रहा था। प्यास से तड़पते हुए मैंने सोचा की सामने के जंगलों में पानी की तलाश में जाया जाये ।
सामने कदम बढ़ाते हुए मैं सोचने लगा की मैं यहाँ पर कैसे पंहुचा । दिमाग पर बहुत जोर देने पे आखरी बात जो मुझे याद आया वो ये था कि मैं अपनी रेजिमेंट के कुछ जवानों के साथ अंडमान निकोबार द्वीप के पास एक खुफिया मिशन पे था जब हमारी बोट तूफ़ान में फस गयी। तेज बारिश के कारण हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था कि अचानक हमारी नाव पलट गयी । बहुत देर तक तूफ़ान में खुद को डूबने से बचाने की कोशिश करना ही आखरी चीज़ थी जो मुझे याद थी।
प्यास थी जो ख़तम होने का नाम नहीं ले रही थी अब तो थकान के कारण ऐसा लग रहा था कि अब आगे बढ़ना मुमकिन नहीं है पर शायद आर्मी की कड़ी ट्रेनिंग का ही नतीजा था कि मैं बढ़ा चला जा रहा था । तभी अचानक मुझे सामने छोटी सी झील दिखाई दी प्यासे को और क्या चाहिए था मैं भी झील की तरफ लपक पड़ा । झील का पानी काफी साफ़ था और आस पास के पेड़ो से पक्षिओं की आवाज आ रही थी । मैंने भी पहले जी भर के पानी पिया फिर बदन और बाल में चिपकी रेत धुलने के लिए कपडे उतार कर झील में नहाने उतर गया। जी भर नाहने के बाद मैं झील से निकल किनारे पर सुस्ताने के लिए लेट गया।
नींद की झपकी लेते हुए मेरी आँख किसी की आवाज से खुली सामने देखा तो आदिवासी मेरे ऊपर भाला ताने खड़े थे। उनकी भाषा अंडमान के सामान्यतः
आदिवासियों से अलग थी जो की संस्कृत का टूटा फूटा स्वरुप लग रही थी चूँकि मैं भारत के उत्तरी भाग के ब्राह्मण परिवार से था तो बचपन से ही संस्कृत पढ़ी थी तो उनकी भाषा थोड़ा समझ में आ रही थी वो जानना चाहते थे की मैं किस समूह से हु। मैंने भी उनका जवाब नहीं दिया बस हाँथ ऊपर उठा के खड़ा हो गया। थोड़ी देर तक वो मुझसे चिल्लाते हुए यही पूछते रहे फिर आपस में कुछ सलाह की और मुझे धकेलते हुए आगे बढ़ने को कहा। मैं भी हो लिया उनके साथ । दोनों काफी हुष्ट पुष्ट थे दोनों ने कानो और नाक में हड्डियों का श्रृंगार किया हुआ था बाल काफी बड़े थे जो की सर के ऊपर बंधे हुए थे शरीर पर टैटू या की गुदना कहु गूदे हुए थे शारीर का सिर्फ पेट के नीचे के हिस्सा ही किसी जानवर के चमड़े से ढंका था । काफी देर तक उनके साथ चलते हुए एक छोटे से कबीले में दाखिल हुए वहां पर उन दोनों की तरह ही दिखने वाले और काबिले वाले दिखाई दिए कबीले की महिलाओं का पहनावा भी पुरुषो जैसा ही था बस उनके शरीर पर कोई टैटू नहीं थे। कुछ देर में ही मेरे चारो ओर काबिले वालो का झुण्ड इकठ्ठा हो गया वो आपस में ही खुसुर पुसुर करने लगे । कुछ देर बाद उन्होंने मुझे एक लकड़ी के पिजरे में बंदकर दिया।[/font]