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- Dec 5, 2013
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काँच की हवेली "kaanch ki haveli"
लेखक-प्रेम प्यासा
अंधकार अपना डेरा जमा चुका था. रात अपनी मन्थर गति से बीती जा रही थी. चारो और सन्नाटा पसरा हुआ था. हां कभी कभी सियारो के रोने और कुत्तो के भोकने की आवाज़ों से वातावरण में बिसरा सन्नाटा क्षण भर के लिए भंग हुआ जाता था.
इस वक़्त रात के 10 बजे थे. रायपुर के निवासी अपने अपने घरों में कुछ तो चादर ताने सो चुके थे कुच्छ सोने का प्रयत्न कर रहे थे. शर्मीली अपने घर के आँगन की चारपाई पर अपने पति सरजू के साथ लेटी हुई थी. उसकी आँखों से नींद गायब थी. वह एक और करवट लिए हुए थी. उसकी नज़रें उसके घर से थोड़े से फ़ासले पर स्थित उस भव्या काँच की हवेली पर टिकी हुई थी जिसे ठाकुर जगत सिंग ने अपनी धर्मपत्नी राधा देवी के मूह दिखाई के तौर पर बनवाया था. ठीक उसी तरह जैसे शाहजहाँ ने मुमताज़ के लिए ताजमहल बनवाया था. यहाँ फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि ठाकुर साहब ने ये काँच की हवेली अपनी पत्नी के जीवंत काल ही में बनवाई थी.
ठाकुर साहब राधा देवी से बहुत प्रेम करते थे. शादी की मूह दिखाई के दिन ही ठाकुर साहब ने राधा देवी को ये वचन दिया था कि वे उनके लिए एक ऐसी हवेली का निर्माण करेंगे जिसे लोग युगों युगों तक याद रखेंगे. और उन्होने ठीक ही कहा था. शादी के साल डेढ़ साल के भीतर ही ठाकुर साहब ने अपना वादा पूरा किया. और ये हवेली बतौर मूह दिखाई राधा देवी को भेंट की. जब ये हवेली बनकर तैयार हुई तो देखने वालों की आँखें चौंधिया गयी. जिसकी भी नज़र हवेली पर पड़ी राधा देवी की किस्मत पर रश्क़ कर उठा.
शर्मीली रोज़ ही हवेली को देखती और ठाकुर के दिल में राधा देवी के लिए बसे उस प्यार का अनुमान लगाती. अभी भी उसकी नज़रें हवेली पर ही टिकी हुई थी. स्याह रात में भी यह हवेली अपनी चमक बिखेरने में कामयाब थी. उसकी बाहरी रोशनी से हवेली की दीवारे झिलमिला रही थी. तथा हवेली के अंदर से छन कर निकलती रोशनी हवेली को इंद्रधनुषी रंग प्रदान कर रही थी.
शर्मीली ने पलट कर अपने पति सरजू को देखा जो एक और मूह किए लेटा हुआ था. उसने धीरे से सरजू को पुकारा. - "आप सो गये क्या?"
सरजू अभी हल्की नींद में था शर्मीली की आवाज़ से वह कुन्मुनाया. "क्या है?"
"एक बात पुच्छू तुमसे सच सच बताओगे?" शर्मीली ने प्रेमभव से अपने पति की ओर देखते हुए बोली. उसके दिल में इस वक़्त प्रेम का सागर हिलोरे मार रहा था.
लेकिन सरजू को उसके भाव से क्या लेना देना था. दिन भर का थका हारा अपनी नींद सोने का प्रयत्न कर रहा था. वह अंजान होकर बोला - "तुमसे झूठ बोलकर भी मेरा कौन सा भला हो जाएगा. सच ही बोलूँगा."
"तुम सीधे सीधे बात क्यों नही करते?" शर्मीली तुनक कर बोली. उसे इस वक़्त पति के मूह से ऐसे बोल की आशा ना थी.
"तो तुम सीधे सीधे पुछ क्यों ना लेती, जो पुच्छना चाहती हो? पुछो."
शर्मीली इस वक़्त झगड़े के मूड में नही थी. वह शांत स्वर में बोली - "मेरे मरने के बाद क्या तुम भी मेरी याद में कुच्छ बनवाओगे?" शर्मीली के ये शब्द प्रेम रस में डूबे हुए थे. उन शब्दो में लाखों अरमान छुपे हुए थे.
"हां....!" सरजू ने धीरे से कहा.
पति के मूह से हां सुनकर श्रमिली का दिल झूम उठा. मन प्रेम पखेरू बनकर उड़ने लगा. आज उसे इस हां में जितनी खुशी मिली थी कि उसका अनुमान लगाना मुश्किल था. आज सरजू अगर इस हां के बदले उसके प्राण भी माँग लेता तो वह खुशी खुशी अपने पति के लिए प्राण त्याग देती. वह सरजू से कसकर चिपट गयी और बोली - "क्या बनवाओगे?"
"मालिक से कुच्छ रुपये क़र्ज़ में लेकर तुम्हारे लिए बढ़िया सी कब्र बनवाउँगा. फिर जो पैसे बचेंगे उन पैसों से पूरे गाओं में मिठाइयाँ बाटुंगा."
शर्मीली का दिल भर आया. आँखों से आँसू बह निकले. अपने पति के दिल में अपने लिए ऐसे विचार जानकार उसकी आत्मा सिसक उठी. वह सिसकते हुए बोली - "क्या पंद्रह साल तुम्हारे साथ रहने का यही इनाम है मेरा. मैं समझती थी कि तुम मुझे अपनी अर्धांगिनी समझते हो...प्रेम करते हो मुझसे. आज पता चला तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितना प्रेम है."
शर्मीली की बेमतलब की बातों से सरजू की नींद गायब हो चुकी थी. वह झल्लाकर बोला. - "ना तो मैं मालिक जैसा राईस हूँ और ना ही तुम मालकिन जैसी सुंदर हो. फिर क्यों मेरा मगज़ खा रही हो? "
सरजू की झिड़की से शर्मीली का दिल टूट गया. लेकिन वो अभी कुच्छ कहती उससे पहले ही रूह को कंपा देने वाली एक भयंकर नारी चीख रात के सन्नाटे में गूँज उठी. यह चीख हवेली से आई थी. शर्मीली के साथ साथ सरजू भी चिहुनक कर चारपाई से उठ बैठा.
"मालकिन...!" सरजू बड़बड़ाया और चारपाई से उतरा - "लगता है मालकिन को फिर से दौरा पड़ा है. मैं हवेली जा रहा हूँ." वह तेज़ी से अपनी धोती कसता हुआ बोला. फिर कुर्ता उठाया और हवेली के रास्ते भागता चला गया.
शर्मीली अभी भी जड़वत खड़ी हवेली की और ताक रही थी. उसकी दिल की धड़कने चढ़ि हुई थी. उसका शरीर भय से हौले हौले काँप रहा था. तभी फिर से वही दिल चीर देने वाली चीख उसके कानो से टकराई.
शर्मीली काँपते हुए चारपाई पर लेट गयी. हवेली से निकली चीख ने उसके अपने सारे दुख भुला दिए थे. अब उनकी जगह राधा देवी के दुख ने घर कर लिया था. वह राधा देवी के बारे में सोचने लगी.
राधा देवी - कैसा अज़ीब संयोग था. ठाकुर साहब ने राधा देवी की मूह दिखाई के लिए जिस हवेली का निर्माण करवाया उस हवेली का सुख उन्हे ना मिल सका. बेचारी जिस दिन इस हवेली में आई उसी रात ना जाने कौन सा हाद्सा पेश आया कि राधा देवी अपनी मानसिक संतुलन खो बैठी. तब से लेकर आज पूरे 20 बरस तक वो एक कमरे में बंद हैं. और इसी प्रकार के दौरे आते रहते हैं. उनके इस प्रकार के दौरे के बारे में सभी जानते हैं पर उनके साथ क्या हुआ? उस रात हवेली में कौन सी घटना घटी कि उन्हे पागल हो जाना पड़ा ये कोई नही जानता. ये एक रहस्य बना हुआ है.
लेखक-प्रेम प्यासा
अंधकार अपना डेरा जमा चुका था. रात अपनी मन्थर गति से बीती जा रही थी. चारो और सन्नाटा पसरा हुआ था. हां कभी कभी सियारो के रोने और कुत्तो के भोकने की आवाज़ों से वातावरण में बिसरा सन्नाटा क्षण भर के लिए भंग हुआ जाता था.
इस वक़्त रात के 10 बजे थे. रायपुर के निवासी अपने अपने घरों में कुछ तो चादर ताने सो चुके थे कुच्छ सोने का प्रयत्न कर रहे थे. शर्मीली अपने घर के आँगन की चारपाई पर अपने पति सरजू के साथ लेटी हुई थी. उसकी आँखों से नींद गायब थी. वह एक और करवट लिए हुए थी. उसकी नज़रें उसके घर से थोड़े से फ़ासले पर स्थित उस भव्या काँच की हवेली पर टिकी हुई थी जिसे ठाकुर जगत सिंग ने अपनी धर्मपत्नी राधा देवी के मूह दिखाई के तौर पर बनवाया था. ठीक उसी तरह जैसे शाहजहाँ ने मुमताज़ के लिए ताजमहल बनवाया था. यहाँ फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि ठाकुर साहब ने ये काँच की हवेली अपनी पत्नी के जीवंत काल ही में बनवाई थी.
ठाकुर साहब राधा देवी से बहुत प्रेम करते थे. शादी की मूह दिखाई के दिन ही ठाकुर साहब ने राधा देवी को ये वचन दिया था कि वे उनके लिए एक ऐसी हवेली का निर्माण करेंगे जिसे लोग युगों युगों तक याद रखेंगे. और उन्होने ठीक ही कहा था. शादी के साल डेढ़ साल के भीतर ही ठाकुर साहब ने अपना वादा पूरा किया. और ये हवेली बतौर मूह दिखाई राधा देवी को भेंट की. जब ये हवेली बनकर तैयार हुई तो देखने वालों की आँखें चौंधिया गयी. जिसकी भी नज़र हवेली पर पड़ी राधा देवी की किस्मत पर रश्क़ कर उठा.
शर्मीली रोज़ ही हवेली को देखती और ठाकुर के दिल में राधा देवी के लिए बसे उस प्यार का अनुमान लगाती. अभी भी उसकी नज़रें हवेली पर ही टिकी हुई थी. स्याह रात में भी यह हवेली अपनी चमक बिखेरने में कामयाब थी. उसकी बाहरी रोशनी से हवेली की दीवारे झिलमिला रही थी. तथा हवेली के अंदर से छन कर निकलती रोशनी हवेली को इंद्रधनुषी रंग प्रदान कर रही थी.
शर्मीली ने पलट कर अपने पति सरजू को देखा जो एक और मूह किए लेटा हुआ था. उसने धीरे से सरजू को पुकारा. - "आप सो गये क्या?"
सरजू अभी हल्की नींद में था शर्मीली की आवाज़ से वह कुन्मुनाया. "क्या है?"
"एक बात पुच्छू तुमसे सच सच बताओगे?" शर्मीली ने प्रेमभव से अपने पति की ओर देखते हुए बोली. उसके दिल में इस वक़्त प्रेम का सागर हिलोरे मार रहा था.
लेकिन सरजू को उसके भाव से क्या लेना देना था. दिन भर का थका हारा अपनी नींद सोने का प्रयत्न कर रहा था. वह अंजान होकर बोला - "तुमसे झूठ बोलकर भी मेरा कौन सा भला हो जाएगा. सच ही बोलूँगा."
"तुम सीधे सीधे बात क्यों नही करते?" शर्मीली तुनक कर बोली. उसे इस वक़्त पति के मूह से ऐसे बोल की आशा ना थी.
"तो तुम सीधे सीधे पुछ क्यों ना लेती, जो पुच्छना चाहती हो? पुछो."
शर्मीली इस वक़्त झगड़े के मूड में नही थी. वह शांत स्वर में बोली - "मेरे मरने के बाद क्या तुम भी मेरी याद में कुच्छ बनवाओगे?" शर्मीली के ये शब्द प्रेम रस में डूबे हुए थे. उन शब्दो में लाखों अरमान छुपे हुए थे.
"हां....!" सरजू ने धीरे से कहा.
पति के मूह से हां सुनकर श्रमिली का दिल झूम उठा. मन प्रेम पखेरू बनकर उड़ने लगा. आज उसे इस हां में जितनी खुशी मिली थी कि उसका अनुमान लगाना मुश्किल था. आज सरजू अगर इस हां के बदले उसके प्राण भी माँग लेता तो वह खुशी खुशी अपने पति के लिए प्राण त्याग देती. वह सरजू से कसकर चिपट गयी और बोली - "क्या बनवाओगे?"
"मालिक से कुच्छ रुपये क़र्ज़ में लेकर तुम्हारे लिए बढ़िया सी कब्र बनवाउँगा. फिर जो पैसे बचेंगे उन पैसों से पूरे गाओं में मिठाइयाँ बाटुंगा."
शर्मीली का दिल भर आया. आँखों से आँसू बह निकले. अपने पति के दिल में अपने लिए ऐसे विचार जानकार उसकी आत्मा सिसक उठी. वह सिसकते हुए बोली - "क्या पंद्रह साल तुम्हारे साथ रहने का यही इनाम है मेरा. मैं समझती थी कि तुम मुझे अपनी अर्धांगिनी समझते हो...प्रेम करते हो मुझसे. आज पता चला तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितना प्रेम है."
शर्मीली की बेमतलब की बातों से सरजू की नींद गायब हो चुकी थी. वह झल्लाकर बोला. - "ना तो मैं मालिक जैसा राईस हूँ और ना ही तुम मालकिन जैसी सुंदर हो. फिर क्यों मेरा मगज़ खा रही हो? "
सरजू की झिड़की से शर्मीली का दिल टूट गया. लेकिन वो अभी कुच्छ कहती उससे पहले ही रूह को कंपा देने वाली एक भयंकर नारी चीख रात के सन्नाटे में गूँज उठी. यह चीख हवेली से आई थी. शर्मीली के साथ साथ सरजू भी चिहुनक कर चारपाई से उठ बैठा.
"मालकिन...!" सरजू बड़बड़ाया और चारपाई से उतरा - "लगता है मालकिन को फिर से दौरा पड़ा है. मैं हवेली जा रहा हूँ." वह तेज़ी से अपनी धोती कसता हुआ बोला. फिर कुर्ता उठाया और हवेली के रास्ते भागता चला गया.
शर्मीली अभी भी जड़वत खड़ी हवेली की और ताक रही थी. उसकी दिल की धड़कने चढ़ि हुई थी. उसका शरीर भय से हौले हौले काँप रहा था. तभी फिर से वही दिल चीर देने वाली चीख उसके कानो से टकराई.
शर्मीली काँपते हुए चारपाई पर लेट गयी. हवेली से निकली चीख ने उसके अपने सारे दुख भुला दिए थे. अब उनकी जगह राधा देवी के दुख ने घर कर लिया था. वह राधा देवी के बारे में सोचने लगी.
राधा देवी - कैसा अज़ीब संयोग था. ठाकुर साहब ने राधा देवी की मूह दिखाई के लिए जिस हवेली का निर्माण करवाया उस हवेली का सुख उन्हे ना मिल सका. बेचारी जिस दिन इस हवेली में आई उसी रात ना जाने कौन सा हाद्सा पेश आया कि राधा देवी अपनी मानसिक संतुलन खो बैठी. तब से लेकर आज पूरे 20 बरस तक वो एक कमरे में बंद हैं. और इसी प्रकार के दौरे आते रहते हैं. उनके इस प्रकार के दौरे के बारे में सभी जानते हैं पर उनके साथ क्या हुआ? उस रात हवेली में कौन सी घटना घटी कि उन्हे पागल हो जाना पड़ा ये कोई नही जानता. ये एक रहस्य बना हुआ है.