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अचानक किसी की आवाज़ से वह चौंका. रवि आवाज़ की दिशा में पलटा. सामने एक बच्चा हैरानी से उसे देख रहा था. वो बच्चा ही सही पर इस तरह अपनी चोरी पकड़े जाने पर एक पल के लिए रवि काँप सा गया. फिर खुद को संभालते हुए बच्चे से बोला - "क्या नाम है तुम्हारा?"
"चिंटू" बच्चे ने उँची आवाज़ में बोला - "और तुम्हारा क्या नाम है?"
उसकी तेज आवाज़ से रवि बोखलाया. उसने झट से अपना पर्स निकाला और उसमे से 10 का नोट निकालकर चिंटू को पकड़ा दिया. नोट हाथ में आते ही चिंटू हंसा.
"क्या तुम मुझसे और पैसे लेना चाहते हो?" रवि ने घुटनो के बल बैठते हुए कहा.
"हां...!" बच्चे ने सहमति में सर हिलाया.
"तो फिर मैं तुमसे जो कुच्छ भी पुछुन्गा, क्या तुम मुझे सच सच बताओगे?" उसने वापस अपना पर्स निकालते हुए बच्चे से कहा.
चिंटू ने रवि का पर्स देखा और फिर अपने होठों पर जीभ घुमाई. - "हां."
"ठीक है तो फिर उस लड़की को देखो जो पीले रंग की पेटिकोट पहनी हुई है." रवि ने अपनी उंगली का इशारा कंचन की और किया - "क्या तुम उसे जानते हो?"
"हां." बच्चे ने गर्दन हिलाई.
"क्या नाम है उसका?" रवि ने पुछा.
"पहले पैसे दो. फिर बताउन्गा." बच्चा शातिर था. रवि ने 10 का नोट उसकी और बढ़ाया.
"वो मेरी कंचन दीदी है." बच्चा 10 का नोट अपनी जेब में रखता हुआ बोला.
"तुम्हारी कंचन दीदी?" रवि उसके शब्दों को दोहराया.
"हां. लेकिन तुम उनका नाम क्यों पुच्छ रहे थे?" बच्चे ने उल्टा प्रश्न किया.
"बस ऐसे ही, मॅन में आया तो पुच्छ लिया. जैसे तुमने पुछा."
चिंटू ने अजीब सी नज़रों से उसे देखा.
"अच्छा चिंटू, अब एक काम और करोगे?"
"पैसे मिलेंगे?" चिंटू ने वापस अपने होठों पर जीभ घुमाई.
रवि ने वापस 10 का नोट उसे थमाया. - "तुम अपनी दीदी के कपड़े मुझे लाकर दे सकते हो?"
"दीदी के कपड़े, नही.....दीदी मारेगी." चिंटू डरते हुए बोला.
"तो फिर मेरे सारे पैसे वापस करो." रवि ने अपनी आँखें दिखाई.
चिंटू कुच्छ देर अपनी मुट्ठी में बँधे नोट को देखता रहा और सोचता रहा. फिर बोला - "तुम दीदी के कपड़ों का क्या करोगे?"
"कुच्छ नही....बस हाथ में लेकर देखना चाहता हूँ कि तुम्हारी दीदी के कपड़े कैसे हैं."
चिंटू कुच्छ देर खड़ा रहा. उसके मन में एक तरफ रुपयों का लालच था तो दूसरी तरफ दीदी की डाँट का ख्याल. आख़िरकार उसने रुपयों को जेब में रखा और कपड़ों की तरफ बढ़ा. दूसरे मिनिट में वो कंचन के कपड़े लेकर वापस आया. रवि ने उसके हाथ से कपड़े लिए और बोला - "चिंटू महाराज, अब अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी दीदी तुम्हारी पिटाई ना करे, तो फिर यहाँ से खिस्को."
चिंटू सहमा. उसने भय से काँपते हुए रवि को देखा. - "अब तुम दीदी के कपड़े वापस दो."
"मैं ये कपड़े तुम्हारी दीदी के ही हाथों में दूँगा."
"लेकिन दीदी मुझे मारेगी." वह डरते हुए बोला. उसका चेहरा डर से पीला पड़ गया था.
"तुम्हारी दीदी को बताएगा कौन कि तुमने उसके कपड़े मुझे दिए हैं." रवि ने उसका भय दूर किया - "जब तुम यहाँ रहोगे ही नही तो वो तुम्हे मारेगी कैसे?"
"लेकिन तुम दीदी को मत बताना कि मैने उनके कपड़े तुम्हे दिए हैं."
"नही बताउन्गा. प्रॉमिस." रवि अपना गला छू कर बोला.
अगले ही पल चिंटू नौ दो ग्यारह हो गया. रवि कंचन के कपड़े हाथों में लिए पास की झाड़ियों में जा छुपा और कंचन के बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगा.
क्रमशः.................
"चिंटू" बच्चे ने उँची आवाज़ में बोला - "और तुम्हारा क्या नाम है?"
उसकी तेज आवाज़ से रवि बोखलाया. उसने झट से अपना पर्स निकाला और उसमे से 10 का नोट निकालकर चिंटू को पकड़ा दिया. नोट हाथ में आते ही चिंटू हंसा.
"क्या तुम मुझसे और पैसे लेना चाहते हो?" रवि ने घुटनो के बल बैठते हुए कहा.
"हां...!" बच्चे ने सहमति में सर हिलाया.
"तो फिर मैं तुमसे जो कुच्छ भी पुछुन्गा, क्या तुम मुझे सच सच बताओगे?" उसने वापस अपना पर्स निकालते हुए बच्चे से कहा.
चिंटू ने रवि का पर्स देखा और फिर अपने होठों पर जीभ घुमाई. - "हां."
"ठीक है तो फिर उस लड़की को देखो जो पीले रंग की पेटिकोट पहनी हुई है." रवि ने अपनी उंगली का इशारा कंचन की और किया - "क्या तुम उसे जानते हो?"
"हां." बच्चे ने गर्दन हिलाई.
"क्या नाम है उसका?" रवि ने पुछा.
"पहले पैसे दो. फिर बताउन्गा." बच्चा शातिर था. रवि ने 10 का नोट उसकी और बढ़ाया.
"वो मेरी कंचन दीदी है." बच्चा 10 का नोट अपनी जेब में रखता हुआ बोला.
"तुम्हारी कंचन दीदी?" रवि उसके शब्दों को दोहराया.
"हां. लेकिन तुम उनका नाम क्यों पुच्छ रहे थे?" बच्चे ने उल्टा प्रश्न किया.
"बस ऐसे ही, मॅन में आया तो पुच्छ लिया. जैसे तुमने पुछा."
चिंटू ने अजीब सी नज़रों से उसे देखा.
"अच्छा चिंटू, अब एक काम और करोगे?"
"पैसे मिलेंगे?" चिंटू ने वापस अपने होठों पर जीभ घुमाई.
रवि ने वापस 10 का नोट उसे थमाया. - "तुम अपनी दीदी के कपड़े मुझे लाकर दे सकते हो?"
"दीदी के कपड़े, नही.....दीदी मारेगी." चिंटू डरते हुए बोला.
"तो फिर मेरे सारे पैसे वापस करो." रवि ने अपनी आँखें दिखाई.
चिंटू कुच्छ देर अपनी मुट्ठी में बँधे नोट को देखता रहा और सोचता रहा. फिर बोला - "तुम दीदी के कपड़ों का क्या करोगे?"
"कुच्छ नही....बस हाथ में लेकर देखना चाहता हूँ कि तुम्हारी दीदी के कपड़े कैसे हैं."
चिंटू कुच्छ देर खड़ा रहा. उसके मन में एक तरफ रुपयों का लालच था तो दूसरी तरफ दीदी की डाँट का ख्याल. आख़िरकार उसने रुपयों को जेब में रखा और कपड़ों की तरफ बढ़ा. दूसरे मिनिट में वो कंचन के कपड़े लेकर वापस आया. रवि ने उसके हाथ से कपड़े लिए और बोला - "चिंटू महाराज, अब अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी दीदी तुम्हारी पिटाई ना करे, तो फिर यहाँ से खिस्को."
चिंटू सहमा. उसने भय से काँपते हुए रवि को देखा. - "अब तुम दीदी के कपड़े वापस दो."
"मैं ये कपड़े तुम्हारी दीदी के ही हाथों में दूँगा."
"लेकिन दीदी मुझे मारेगी." वह डरते हुए बोला. उसका चेहरा डर से पीला पड़ गया था.
"तुम्हारी दीदी को बताएगा कौन कि तुमने उसके कपड़े मुझे दिए हैं." रवि ने उसका भय दूर किया - "जब तुम यहाँ रहोगे ही नही तो वो तुम्हे मारेगी कैसे?"
"लेकिन तुम दीदी को मत बताना कि मैने उनके कपड़े तुम्हे दिए हैं."
"नही बताउन्गा. प्रॉमिस." रवि अपना गला छू कर बोला.
अगले ही पल चिंटू नौ दो ग्यारह हो गया. रवि कंचन के कपड़े हाथों में लिए पास की झाड़ियों में जा छुपा और कंचन के बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगा.
क्रमशः.................