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सुबह दिन चढ़ने तक कंचन सोती रही. आँख खुलते ही शांता ने उसे बताया कि हवेली से नौकर आया था उसे पुच्छने.
कंचन ने हवेली जाने से मना कर दिया. शांता ने ज़ोर देना ठीक नही समझा. वो खुद भी नही चाहती थी कि कंचन और चिंटू उसकी नज़रों से दूर हों.
हवेली से आए नौकर से ये भी पता चला कि रवि और उनकी माजी दीवान जी के घर ठहरे हुए हैं. और सुगना उनसे बात करने उनके पास गया है.
रवि के दीवान जी के घर होने की बात सुनकर कंचन का मुरझाया चेहरा खिल उठा. उसे इस बात की खुशी थी कि वो अपने साहेब को फिर से देख सकेगी. उसके अंदर उम्मीद की एक किरण जाग उठी. शायद साहेब और माजी उसे क्षमा कर दें और उसे स्वीकार कर लें.
सुगना भी यही आशा पाले घर से निकला था. वो यही सोचता जा रहा था कि चाहें कमला जी पावं ही क्यों ना पड़ना पड़े, पर कंचन के लिए उन्हे मना ही लेगा.
सुगना अभी बस्ती की सीमा से बाहर निकल कर मंदिर तक ही पहुँचा था कि उसे कमला जी मंदिर की सीढ़ियाँ उतरती दिखाई दी.
सुगना वहीं खड़ा होकर उनके नीचे उतरने का इंतेज़ार करने लगा.
कमला जी की नज़र भी सुगना पर पड़ चुकी थी.
कमला जी सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आईं और अपना सॅंडल पहनने लगी.
तभी सुगना उनके पास आया और हाथ जोड़कर नमस्ते किया.
कमला जी सुगना के आने का कारण अच्छी तरह जानती थी. उन्हे पता था कि कंचन के मोह ने सुगना को उनके पास भेजा है.
कमला जी अनमने मन से सुगना के नमस्ते का उत्तर देकर आगे बढ़ी.
"बेहन जी, मैं आप ही से मिलने जा रहा था. अच्छा हुआ आप यहीं मिल गयीं." सुगना उन्हे जाते देख, विनम्र स्वर में बोला.
"मुझसे...? किस लिए....?" कमला जी जानकार अंजान बनती हुई बोली.
"बेहन जी, ये मत समझिएगा कि मुझे आप लोगों के दुख का एहसास नही है. मुझे कंचन ने सब बता दिया है. आपके पति के बारे में जानकार मेरा दिल भी कराह उठा है. आपसे विनती है बेहन जी, ठाकुर साहब की वजह से आप हमारी और से अपना मन मैला ना करें."
"मैं आपकी ओर से अपना मन मैला क्यों करूँगी सुगना जी. आप तो भले इंसान हैं. आपसे हमारी कोई नाराज़गी नही है."
"विधाता ने सच-मच आपको विशाल हृदय दिया है. ऐसा कहकर आपने मेरी चिंता दूर कर दी. मैं यही जानने आया था कि उस सच के उजागर होने के बाद कहीं कंचन और रवि बाबू के रिश्ते में कोई खटास तो नही पड़ी."
"ज़रा ठहरिए....आप शायद मेरी बातों का ग़लत अर्थ निकाल रहे हैं." कमला जी ने सुगना को बीच में टोक-कर कहा - "सुगना जी आप अगर ये सोच रहे हैं कि मैं कंचन को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लूँगी तो मैं आपको स्पस्ट कहे देती हूँ कि कंचन मेरे घर की बहू कभी नही बन सकती."
"ऐसा ना कहिए बेहन जी, मेरी मासूम बेटी पर दया कीजिए." सुगना ने फरियाद किया. - "वो मेरी बेटी है. उसे मैने पाला है. वो हर पाप पुन्य से निर्दोष है. ठाकुर साहब की ग़लतियों की सज़ा आप मेरी कंचन को मत दीजिए. उसकी ज़िंदगी नर्क बनकर रह जाएगी. आप कंचन को मेरी बेटी जानकार अपना लीजिए."
"आप व्यर्थ में ज़िद कर रहे हैं सुगना जी. जो हो नही सकता आप वो बात कर क्यों रहे हैं? कंचन आपकी बेटी नही है. आपने सिर्फ़ पाला है. आप चाहते हैं मैं उस लड़की को अपनी बहू बना लूँ जिसके बाप ने मेरा सिंदूर उजाड़ा है?" कमला जी बिफर कर बोली - "मैं इतनी मूर्ख नही हूँ. अगर मैं कंचन को अपने घर ले आई तो वो जीवन भर मेरी आखों को काँटे की तरह खटकती रहेगी, शूल बनकर मेरी छाती में चुभती रहेगी और मेरी आत्मा को लहू-लुहान करती रहेगी. नही....मैं उसे कभी स्वीकार नही करूँगी."
सुगना के पास कमला जी की बातों का कोई उत्तर ना था. वो निरुत्तर हो गया.
"सुगना जी, मुझे आपसे या कंचन से कोई बैर नही है. पर मैं आप लोगों की खुशी के लिए अपने दुख का सामान नही कर सकती. कंचन मेरे घर की बहू नही बन सकती. अब मुझे आग्या दीजिए." कमला जी ये कहकर आगे बढ़ गयी.
सुगना ठगा सा उन्हे जाते हुए देखता रह गया. उसकी कोई भी युक्ति काम ना आई. उसकी मिन्नतें कमला जी के दिल में बसी नफ़रत को नही हरा सकी.
सुगना आँखों में आँसू लिए भारी मन के साथ अपने रास्ते बढ़ गया.
कंचन ने हवेली जाने से मना कर दिया. शांता ने ज़ोर देना ठीक नही समझा. वो खुद भी नही चाहती थी कि कंचन और चिंटू उसकी नज़रों से दूर हों.
हवेली से आए नौकर से ये भी पता चला कि रवि और उनकी माजी दीवान जी के घर ठहरे हुए हैं. और सुगना उनसे बात करने उनके पास गया है.
रवि के दीवान जी के घर होने की बात सुनकर कंचन का मुरझाया चेहरा खिल उठा. उसे इस बात की खुशी थी कि वो अपने साहेब को फिर से देख सकेगी. उसके अंदर उम्मीद की एक किरण जाग उठी. शायद साहेब और माजी उसे क्षमा कर दें और उसे स्वीकार कर लें.
सुगना भी यही आशा पाले घर से निकला था. वो यही सोचता जा रहा था कि चाहें कमला जी पावं ही क्यों ना पड़ना पड़े, पर कंचन के लिए उन्हे मना ही लेगा.
सुगना अभी बस्ती की सीमा से बाहर निकल कर मंदिर तक ही पहुँचा था कि उसे कमला जी मंदिर की सीढ़ियाँ उतरती दिखाई दी.
सुगना वहीं खड़ा होकर उनके नीचे उतरने का इंतेज़ार करने लगा.
कमला जी की नज़र भी सुगना पर पड़ चुकी थी.
कमला जी सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आईं और अपना सॅंडल पहनने लगी.
तभी सुगना उनके पास आया और हाथ जोड़कर नमस्ते किया.
कमला जी सुगना के आने का कारण अच्छी तरह जानती थी. उन्हे पता था कि कंचन के मोह ने सुगना को उनके पास भेजा है.
कमला जी अनमने मन से सुगना के नमस्ते का उत्तर देकर आगे बढ़ी.
"बेहन जी, मैं आप ही से मिलने जा रहा था. अच्छा हुआ आप यहीं मिल गयीं." सुगना उन्हे जाते देख, विनम्र स्वर में बोला.
"मुझसे...? किस लिए....?" कमला जी जानकार अंजान बनती हुई बोली.
"बेहन जी, ये मत समझिएगा कि मुझे आप लोगों के दुख का एहसास नही है. मुझे कंचन ने सब बता दिया है. आपके पति के बारे में जानकार मेरा दिल भी कराह उठा है. आपसे विनती है बेहन जी, ठाकुर साहब की वजह से आप हमारी और से अपना मन मैला ना करें."
"मैं आपकी ओर से अपना मन मैला क्यों करूँगी सुगना जी. आप तो भले इंसान हैं. आपसे हमारी कोई नाराज़गी नही है."
"विधाता ने सच-मच आपको विशाल हृदय दिया है. ऐसा कहकर आपने मेरी चिंता दूर कर दी. मैं यही जानने आया था कि उस सच के उजागर होने के बाद कहीं कंचन और रवि बाबू के रिश्ते में कोई खटास तो नही पड़ी."
"ज़रा ठहरिए....आप शायद मेरी बातों का ग़लत अर्थ निकाल रहे हैं." कमला जी ने सुगना को बीच में टोक-कर कहा - "सुगना जी आप अगर ये सोच रहे हैं कि मैं कंचन को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लूँगी तो मैं आपको स्पस्ट कहे देती हूँ कि कंचन मेरे घर की बहू कभी नही बन सकती."
"ऐसा ना कहिए बेहन जी, मेरी मासूम बेटी पर दया कीजिए." सुगना ने फरियाद किया. - "वो मेरी बेटी है. उसे मैने पाला है. वो हर पाप पुन्य से निर्दोष है. ठाकुर साहब की ग़लतियों की सज़ा आप मेरी कंचन को मत दीजिए. उसकी ज़िंदगी नर्क बनकर रह जाएगी. आप कंचन को मेरी बेटी जानकार अपना लीजिए."
"आप व्यर्थ में ज़िद कर रहे हैं सुगना जी. जो हो नही सकता आप वो बात कर क्यों रहे हैं? कंचन आपकी बेटी नही है. आपने सिर्फ़ पाला है. आप चाहते हैं मैं उस लड़की को अपनी बहू बना लूँ जिसके बाप ने मेरा सिंदूर उजाड़ा है?" कमला जी बिफर कर बोली - "मैं इतनी मूर्ख नही हूँ. अगर मैं कंचन को अपने घर ले आई तो वो जीवन भर मेरी आखों को काँटे की तरह खटकती रहेगी, शूल बनकर मेरी छाती में चुभती रहेगी और मेरी आत्मा को लहू-लुहान करती रहेगी. नही....मैं उसे कभी स्वीकार नही करूँगी."
सुगना के पास कमला जी की बातों का कोई उत्तर ना था. वो निरुत्तर हो गया.
"सुगना जी, मुझे आपसे या कंचन से कोई बैर नही है. पर मैं आप लोगों की खुशी के लिए अपने दुख का सामान नही कर सकती. कंचन मेरे घर की बहू नही बन सकती. अब मुझे आग्या दीजिए." कमला जी ये कहकर आगे बढ़ गयी.
सुगना ठगा सा उन्हे जाते हुए देखता रह गया. उसकी कोई भी युक्ति काम ना आई. उसकी मिन्नतें कमला जी के दिल में बसी नफ़रत को नही हरा सकी.
सुगना आँखों में आँसू लिए भारी मन के साथ अपने रास्ते बढ़ गया.