desiaks
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कुल मिलाकर धीरे—धीरे हमारा हनीमून का सारा मजा अब किरकिरा होना शुरू हो गया था।
शुरू के कुछेक दिनों में हमने जो हनीमून का आनन्द ले लिया था, बस वह ले लिया था। अब तो अजीब—सी दहशत मुझे हर वक्त अपने इर्द—गिर्द मंडराती महसूस होती थी। इसके अलावा मेरा यह विश्वास भी दृढ़ होता जा रहा था कि सरदार करतार सिंह के कारण भी कुछ—न—कुछ गड़बड़ जरूर होगी।
वह सरदार हंगामा करके रहेगा।
इसी प्रकार दहशत के माहौल में हम दोनों के सिंगापुर में तीन दिन और गुजर गये।
मैंने तिलक राजकोटिया से किसी दूसरी लॉज में शिफ्ट होने का आग्रह भी किया, लेकिन इसके लिए वो तैयार न हुआ।
वह उसकी खास पसंदीदा लॉज थी।
उस लॉज में नये जोड़ों के मनोरंजन के लिए अक्सर नये—नये प्रोग्राम भी होते रहते थे।
ऐसे ही एक बार वहां एक ‘डांस पार्टी’ का आयोजन किया गया।
उस ‘डांस पार्टी’ में तिलक राजकोटिया और मैंने भी हिस्सा लिया।
एक बात कन्फर्म थी।
कम—से—कम तिलक राजकोटिया अब पूरी तरह चिन्तामुक्त था।
और फोन वाली बात तब तक वो शायद भुला चुका था।
हम दोनों डांसिंग फ्लोर पर एक—दूसरे की बांह—में—बांह डालकर अन्य जोड़ों के साथ थिरकने लगे।
“मैं तुमसे फिर कहूंगी तिलक!” मैं थिरकते हुए उसके कान में बहुत धीरे से फुसफुसाई—”हमें यह लॉज छोड़कर किसी दूसरी जगह शिफ्ट हो जाना चाहिए।”
“यह तुम्हें क्या हो गया है शिनाया!” तिलक राजकोटिया झुंझलाकर बोला—”पिछले तीन दिन से तुम यही एक बात कहे जा रही हो कि हमें यह लॉज छोड़ देनी चाहिए। आखिर तुम्हें यहां रहने में क्या परेशानी है, तमाम सुविधाएं तो इस लॉज में मौजूद हैं।”
“मैं जानती हूं, इस लॉज में काफी सुविधाएं हैं।” मैं बोली—”लेकिन अब यहां मेरा दिल घबराने लगा है।”
“क्यों?”
“म... मुझे लगता है,” मैं थोड़े भयभीत स्वर में बोली—”अगर हम यहां कुछ दिन और ठहरे, तो हमारे साथ जरूर कोई—न—कोई घटना घट जाएगी।”
तिलक राजकोटिया हंस पड़ा।
हंसते हुए ही उसने एक बांह मेरी कमर के गिर्द लपेट दी।
हम दोनों के कदम थिरकते रहे।
“तुम हंस क्यों रहे हो?” मैं बोली।
“माई डेलीशस डार्लिंग!” तिलक राजकोटिया ने मेरे गाल का पुनः प्रगाढ़ चुम्बन लिया—”तुम्हारी बातें ही ऐसी हैं। जरा सोचो- हिन्दुस्तान से इतनी दूर एक अंजान—सी जगह पर हमारे साथ क्या घटना घटेगी, यहां हमारा कौन दुश्मन हो सकता है।”
“मुझे उस सरदार से डर लगता है।”
“सरदार करतार सिंह से?”
“वही।”
“डार्लिंग- उस बेचारे से क्या डरना! वह तो खुद अपनी किस्मत के हाथों सताया हुआ है।”
“तुम कुछ भी कहो- मुझे तो वह कोई ढोंगी मालूम होता है।” मैं अपनी बात पर दृढ़ थी—”देखा नहीं, वह मुझे हरदम किस तरह घूरता रहता है। मानों मुझे आंखों—ही—आंखों में निगल जाएगा।”
“यह तो अच्छी बात है।” तिलक पुनः हंसा— “मुमकिन है कि वह तुम्हारा कोई पुराना आशिक हो।”
“बेकार की बात मत करो।” मैं गुर्रा उठी—”मैं साफ कहे देती हूं, मैं इस लॉज के अंदर अब और नहीं ठहरूंगी।”
“ओ.के. बाबा! कल हम कोई अच्छी—सी लॉज देखने चलेंगे।”
“रिअली?” मैं प्रफुल्लित हो उठी।
“रिअली।”
“ओह तिलक- तुम सचमुच कितने अच्छे हो।” मैं डांस करते—करते तिलक राजकोटिया से कसकर लिपट गयी।
वह मेरी बड़ी जीत थी।
आखिरकार मैंने तिलक राजकोटिया को वह लॉज छोड़ देने के लिए तैयार कर ही लिया था।
हम दोनों और भी काफी देर तक दूसरे जोड़ों के साथ वहां डांस करते रहे।
तभी एकाएक मेरी निगाह सरदार करतार सिंह पर पड़ी। उसने लगभग तभी उस डांसिंग हॉल में कदम रखा था।
सरदार को देखते ही मेरे शरीर में सरसराहट दौड़ गयी।
उस हरामजादे की निगाह डांसिंग हॉल में आने के बाद मेरी तलाश में ही इधर—उधर भटकनी शुरू हो गयी थी, फिर उसने जैसे ही मुझे देखा, उसकी निगाह फौरन मेरे ऊपर ही आकर ठहर गयी।
सबसे बड़ी बात ये थी कि आज वो ज्यादा शराब पिये हुए भी नहीं था।
उसके कदम भी नहीं लड़खड़ा रहे थे।
उसकी आंखों को देखकर आज मेरे मन में न जाने क्यों और भी ज्यादा दहशत पैदा हुई।
सरदार करतार सिंह की आंखों में आज मेरे लिये वो अजनबीपन नहीं था, जो हमेशा होता था।
उनमें आज विलक्षण चमक थी।
मुझे लगा- सरदार मेरी असलियत से वाफिक हो गया है। मैं डांस करना भूल गयी।
•••
शुरू के कुछेक दिनों में हमने जो हनीमून का आनन्द ले लिया था, बस वह ले लिया था। अब तो अजीब—सी दहशत मुझे हर वक्त अपने इर्द—गिर्द मंडराती महसूस होती थी। इसके अलावा मेरा यह विश्वास भी दृढ़ होता जा रहा था कि सरदार करतार सिंह के कारण भी कुछ—न—कुछ गड़बड़ जरूर होगी।
वह सरदार हंगामा करके रहेगा।
इसी प्रकार दहशत के माहौल में हम दोनों के सिंगापुर में तीन दिन और गुजर गये।
मैंने तिलक राजकोटिया से किसी दूसरी लॉज में शिफ्ट होने का आग्रह भी किया, लेकिन इसके लिए वो तैयार न हुआ।
वह उसकी खास पसंदीदा लॉज थी।
उस लॉज में नये जोड़ों के मनोरंजन के लिए अक्सर नये—नये प्रोग्राम भी होते रहते थे।
ऐसे ही एक बार वहां एक ‘डांस पार्टी’ का आयोजन किया गया।
उस ‘डांस पार्टी’ में तिलक राजकोटिया और मैंने भी हिस्सा लिया।
एक बात कन्फर्म थी।
कम—से—कम तिलक राजकोटिया अब पूरी तरह चिन्तामुक्त था।
और फोन वाली बात तब तक वो शायद भुला चुका था।
हम दोनों डांसिंग फ्लोर पर एक—दूसरे की बांह—में—बांह डालकर अन्य जोड़ों के साथ थिरकने लगे।
“मैं तुमसे फिर कहूंगी तिलक!” मैं थिरकते हुए उसके कान में बहुत धीरे से फुसफुसाई—”हमें यह लॉज छोड़कर किसी दूसरी जगह शिफ्ट हो जाना चाहिए।”
“यह तुम्हें क्या हो गया है शिनाया!” तिलक राजकोटिया झुंझलाकर बोला—”पिछले तीन दिन से तुम यही एक बात कहे जा रही हो कि हमें यह लॉज छोड़ देनी चाहिए। आखिर तुम्हें यहां रहने में क्या परेशानी है, तमाम सुविधाएं तो इस लॉज में मौजूद हैं।”
“मैं जानती हूं, इस लॉज में काफी सुविधाएं हैं।” मैं बोली—”लेकिन अब यहां मेरा दिल घबराने लगा है।”
“क्यों?”
“म... मुझे लगता है,” मैं थोड़े भयभीत स्वर में बोली—”अगर हम यहां कुछ दिन और ठहरे, तो हमारे साथ जरूर कोई—न—कोई घटना घट जाएगी।”
तिलक राजकोटिया हंस पड़ा।
हंसते हुए ही उसने एक बांह मेरी कमर के गिर्द लपेट दी।
हम दोनों के कदम थिरकते रहे।
“तुम हंस क्यों रहे हो?” मैं बोली।
“माई डेलीशस डार्लिंग!” तिलक राजकोटिया ने मेरे गाल का पुनः प्रगाढ़ चुम्बन लिया—”तुम्हारी बातें ही ऐसी हैं। जरा सोचो- हिन्दुस्तान से इतनी दूर एक अंजान—सी जगह पर हमारे साथ क्या घटना घटेगी, यहां हमारा कौन दुश्मन हो सकता है।”
“मुझे उस सरदार से डर लगता है।”
“सरदार करतार सिंह से?”
“वही।”
“डार्लिंग- उस बेचारे से क्या डरना! वह तो खुद अपनी किस्मत के हाथों सताया हुआ है।”
“तुम कुछ भी कहो- मुझे तो वह कोई ढोंगी मालूम होता है।” मैं अपनी बात पर दृढ़ थी—”देखा नहीं, वह मुझे हरदम किस तरह घूरता रहता है। मानों मुझे आंखों—ही—आंखों में निगल जाएगा।”
“यह तो अच्छी बात है।” तिलक पुनः हंसा— “मुमकिन है कि वह तुम्हारा कोई पुराना आशिक हो।”
“बेकार की बात मत करो।” मैं गुर्रा उठी—”मैं साफ कहे देती हूं, मैं इस लॉज के अंदर अब और नहीं ठहरूंगी।”
“ओ.के. बाबा! कल हम कोई अच्छी—सी लॉज देखने चलेंगे।”
“रिअली?” मैं प्रफुल्लित हो उठी।
“रिअली।”
“ओह तिलक- तुम सचमुच कितने अच्छे हो।” मैं डांस करते—करते तिलक राजकोटिया से कसकर लिपट गयी।
वह मेरी बड़ी जीत थी।
आखिरकार मैंने तिलक राजकोटिया को वह लॉज छोड़ देने के लिए तैयार कर ही लिया था।
हम दोनों और भी काफी देर तक दूसरे जोड़ों के साथ वहां डांस करते रहे।
तभी एकाएक मेरी निगाह सरदार करतार सिंह पर पड़ी। उसने लगभग तभी उस डांसिंग हॉल में कदम रखा था।
सरदार को देखते ही मेरे शरीर में सरसराहट दौड़ गयी।
उस हरामजादे की निगाह डांसिंग हॉल में आने के बाद मेरी तलाश में ही इधर—उधर भटकनी शुरू हो गयी थी, फिर उसने जैसे ही मुझे देखा, उसकी निगाह फौरन मेरे ऊपर ही आकर ठहर गयी।
सबसे बड़ी बात ये थी कि आज वो ज्यादा शराब पिये हुए भी नहीं था।
उसके कदम भी नहीं लड़खड़ा रहे थे।
उसकी आंखों को देखकर आज मेरे मन में न जाने क्यों और भी ज्यादा दहशत पैदा हुई।
सरदार करतार सिंह की आंखों में आज मेरे लिये वो अजनबीपन नहीं था, जो हमेशा होता था।
उनमें आज विलक्षण चमक थी।
मुझे लगा- सरदार मेरी असलियत से वाफिक हो गया है। मैं डांस करना भूल गयी।
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