desiaks
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तिलक राजकोटिया जब मोबाइल रखकर मेरी तरफ घूमा, तो उस क्षण तक वह पसीनों में बुरी तरह लथपथ हो चुका था।
उसका दिल जोर—जोर से पसलियों को कूट रहा था।
उसकी ऐसी हालत थी- मानों किसी ने उसके जिस्म का सारा खून मिक्सी में डालकर निचोड़ डाला हो।
“क्या हुआ?” मैंने तिलक राजकोटिया के थोड़ा और निकट आकर पूछा।
“डॉक्टर अय्यर का फोन था।”
“वह तो मैं समझ चुकी हूं, लेकिन क्या कह रहा था वो दुष्ट आदमी?”
“हमारे लिए खबर कोई अच्छी नहीं है शिनाया!” तिलक ने बड़े विचलित अंदाज में मेरी तरफ देखा।
“लेकिन कुछ हुआ भी?”
“दरअसल पैथोलोजी लैब से रिपोर्ट आ गयी है। यह अब पूरी तरह साबित हो चुका है कि बृन्दा के आमाशय में जो सूक्ष्म कण पाये गये, वो ‘डायनिल’ और नींद की गोलियों के ही थे। इतना ही नहीं- उस हरामजादे को अब यह भी पता चल चुका है कि उस रात हमने बृन्दा की हत्या करने के लिए उसे जो टेबलेट दीं, उसकी कुल संख्या बीस थी।”
“ओह!”
मेरे जिस्म के रौंगड़े खड़े हो गये।
मैं भी थर्रा उठी।
सचमुच वो एक खतरनाक खबर थी।
“यह तो वाकई ठीक नहीं हुआ है तिलक!” मैं आहत मुद्रा में बोली—”उस शैतान को टेबलेट की सही—सही संख्या भी मालूम हो जाना वाकई आश्चर्यजनक है। अब क्या कह रहा है वो?”
“फिलहाल पुलिस के पास जाने की धमकी दे रहा था।” तिलक बोला—”मैंने बड़ी मुश्किल से उसे रोका है।”
“किस तरह रुका वो?”
तिलक राजकोटिया ने नजरें नीचे झुका लीं।
“कुछ मुझे बताओ तो।”
“उसने बीस लाख रुपये की डिमांड और की है।”
मैं चौंकी।
“बीस लाख!”
“हां।”
“और तुमने उसकी वह डिमांड मंजूर कर ली?”
“करनी ही पड़ी।” तिलक राजकोटिया बेबसीपूर्ण लहजे में बोला—”इसके अलावा मेरे सामने दूसरा रास्ता ही क्या था। वरना वो अभी पुलिस के पास जाने की धमकी दे रहा था।”
“उफ्!”
मैं और भी अधिक आतंकित हो उठी।
ब्लैकमेलिंग के ऐसे बहुत सारे किस्से मैं जासूसी उपन्यासों में पढ़ चुकी थी।
मैं जानती थी- इस तरह के किस्सों का अंत क्या होता है।
“तुम शायद अनुमान नहीं लगा सकते तिलक!” मैं धीमीं आवाज में बोली—”यह एक बहुत खतरनाक सिलसिले की शुरूआत हो गयी है। वह दुष्ट आदमी अब बिल्कुल साफ—साफ ब्लैकमेलिंग पर उतर आया है।”
“मैं भी सब कुछ महसूस कर रहा हूं।” तिलक बोला—”सच तो ये है शिनाया, अगर मुझे पहले से मालूम होता कि मैं बृन्दा की हत्या करके इतने बड़े संकट में फंस जाऊंगा, तो मैं कभी उसकी हत्या न करता। वैसे ही मैं आजकल काफी उलझनों में घिरा हुआ हूं।”
“क्या तुम मुझसे शादी करके पछता रहे हो तिलक?”
“नहीं- ऐसी कोई बात नहीं है।”
लेकिन मुझे भली—भांति महसूस हुआ, तिलक आजकल कोई ज्यादा खुश नहीं है।
मुझसे भी वो कुछ कटा—कटा रहने लगा था।
“आओ।” मैंने पुनः उसे अपनी मखमली बांहों में समेट लिया—”थोड़ी देर के लिए सबकुछ भूल जाओ! हम अपने पहले वाले खेल को ही आगे बढ़ाते हैं।”
“नहीं- मेरी अब इच्छा नहीं है शिनाया! तुम सो जाओ।” तिलक ने मेरी बांहें अपने जिस्म से अलग कर दीं।
मैं सन्न रह गयी।
चकित!
यह मेरी जिन्दगी का पहला वाक्या था, जब कोई मर्द मुझसे इतनी बेरुखी के साथ पेश आ रहा था।
वरना मर्द तो मेरी कंचन—सी काया को देखकर हमेशा मेरे ऊपर भूखे कुत्तों की तरह झपटते थे।
उस रात मैं सैक्स की तृषाग्नि में जलती हुई खामोशी के साथ बिस्तर पर लेट गयी। यह बड़ी अजीब बात है, जिस नाइट क्लब की कल्पना से ही मुझे खौफ सताने लगता था, उस रात मुझे उसी नाइट क्लब की बड़ी शिद्दत के साथ याद आयी। मेरी इच्छा हुई कि मैं अभी दौड़कर वहां पहुंचूं और अपना कोई पुराना मुरीद, कोई पुराना एडमायरर पकड़कर उससे अपने शरीर की प्यास बुझा लूं। अपनी उस खतरनाक इच्छा का मैं उस रात बड़ी मुश्किल से दमन कर सकी।
•••
उसका दिल जोर—जोर से पसलियों को कूट रहा था।
उसकी ऐसी हालत थी- मानों किसी ने उसके जिस्म का सारा खून मिक्सी में डालकर निचोड़ डाला हो।
“क्या हुआ?” मैंने तिलक राजकोटिया के थोड़ा और निकट आकर पूछा।
“डॉक्टर अय्यर का फोन था।”
“वह तो मैं समझ चुकी हूं, लेकिन क्या कह रहा था वो दुष्ट आदमी?”
“हमारे लिए खबर कोई अच्छी नहीं है शिनाया!” तिलक ने बड़े विचलित अंदाज में मेरी तरफ देखा।
“लेकिन कुछ हुआ भी?”
“दरअसल पैथोलोजी लैब से रिपोर्ट आ गयी है। यह अब पूरी तरह साबित हो चुका है कि बृन्दा के आमाशय में जो सूक्ष्म कण पाये गये, वो ‘डायनिल’ और नींद की गोलियों के ही थे। इतना ही नहीं- उस हरामजादे को अब यह भी पता चल चुका है कि उस रात हमने बृन्दा की हत्या करने के लिए उसे जो टेबलेट दीं, उसकी कुल संख्या बीस थी।”
“ओह!”
मेरे जिस्म के रौंगड़े खड़े हो गये।
मैं भी थर्रा उठी।
सचमुच वो एक खतरनाक खबर थी।
“यह तो वाकई ठीक नहीं हुआ है तिलक!” मैं आहत मुद्रा में बोली—”उस शैतान को टेबलेट की सही—सही संख्या भी मालूम हो जाना वाकई आश्चर्यजनक है। अब क्या कह रहा है वो?”
“फिलहाल पुलिस के पास जाने की धमकी दे रहा था।” तिलक बोला—”मैंने बड़ी मुश्किल से उसे रोका है।”
“किस तरह रुका वो?”
तिलक राजकोटिया ने नजरें नीचे झुका लीं।
“कुछ मुझे बताओ तो।”
“उसने बीस लाख रुपये की डिमांड और की है।”
मैं चौंकी।
“बीस लाख!”
“हां।”
“और तुमने उसकी वह डिमांड मंजूर कर ली?”
“करनी ही पड़ी।” तिलक राजकोटिया बेबसीपूर्ण लहजे में बोला—”इसके अलावा मेरे सामने दूसरा रास्ता ही क्या था। वरना वो अभी पुलिस के पास जाने की धमकी दे रहा था।”
“उफ्!”
मैं और भी अधिक आतंकित हो उठी।
ब्लैकमेलिंग के ऐसे बहुत सारे किस्से मैं जासूसी उपन्यासों में पढ़ चुकी थी।
मैं जानती थी- इस तरह के किस्सों का अंत क्या होता है।
“तुम शायद अनुमान नहीं लगा सकते तिलक!” मैं धीमीं आवाज में बोली—”यह एक बहुत खतरनाक सिलसिले की शुरूआत हो गयी है। वह दुष्ट आदमी अब बिल्कुल साफ—साफ ब्लैकमेलिंग पर उतर आया है।”
“मैं भी सब कुछ महसूस कर रहा हूं।” तिलक बोला—”सच तो ये है शिनाया, अगर मुझे पहले से मालूम होता कि मैं बृन्दा की हत्या करके इतने बड़े संकट में फंस जाऊंगा, तो मैं कभी उसकी हत्या न करता। वैसे ही मैं आजकल काफी उलझनों में घिरा हुआ हूं।”
“क्या तुम मुझसे शादी करके पछता रहे हो तिलक?”
“नहीं- ऐसी कोई बात नहीं है।”
लेकिन मुझे भली—भांति महसूस हुआ, तिलक आजकल कोई ज्यादा खुश नहीं है।
मुझसे भी वो कुछ कटा—कटा रहने लगा था।
“आओ।” मैंने पुनः उसे अपनी मखमली बांहों में समेट लिया—”थोड़ी देर के लिए सबकुछ भूल जाओ! हम अपने पहले वाले खेल को ही आगे बढ़ाते हैं।”
“नहीं- मेरी अब इच्छा नहीं है शिनाया! तुम सो जाओ।” तिलक ने मेरी बांहें अपने जिस्म से अलग कर दीं।
मैं सन्न रह गयी।
चकित!
यह मेरी जिन्दगी का पहला वाक्या था, जब कोई मर्द मुझसे इतनी बेरुखी के साथ पेश आ रहा था।
वरना मर्द तो मेरी कंचन—सी काया को देखकर हमेशा मेरे ऊपर भूखे कुत्तों की तरह झपटते थे।
उस रात मैं सैक्स की तृषाग्नि में जलती हुई खामोशी के साथ बिस्तर पर लेट गयी। यह बड़ी अजीब बात है, जिस नाइट क्लब की कल्पना से ही मुझे खौफ सताने लगता था, उस रात मुझे उसी नाइट क्लब की बड़ी शिद्दत के साथ याद आयी। मेरी इच्छा हुई कि मैं अभी दौड़कर वहां पहुंचूं और अपना कोई पुराना मुरीद, कोई पुराना एडमायरर पकड़कर उससे अपने शरीर की प्यास बुझा लूं। अपनी उस खतरनाक इच्छा का मैं उस रात बड़ी मुश्किल से दमन कर सकी।
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