Desi Porn Kahani नाइट क्लब - Page 11 - SexBaba
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Desi Porn Kahani नाइट क्लब

उस रात मैं सोई नहीं!

सारी रात जागी।

जबकि तिलक राजकोटिया के साढ़े दस बजे तक ही खर्राटे गूंजने लगे थे।

वह गहरी नींद सो गया था।
वैसे भी सारे दिन के थके—हारे तिलक राजकोटिया को आजकल जल्दी नींद आती थी। फिर भी मैंने हत्या करने में शीघ्रता नहीं दिखाई, मैंने और रात गुजरने का इंतजार किया।
रात के उस समय ठीक बारह बज रहे थे- जब मैं बिल्कुल निःशब्द ढंग से बिस्तर छोड़कर उठी।
मैंने तिलक राजकोटिया की तरफ देखा।
वो अभी भी गहरी नींद में था।
मैं बड़ी खामोशी के साथ चमड़े के कोट की तरफ बढ़ी, जो खूंटी पर लटका हुआ था।
फिर मैंने कोट की जेब में से देसी पिस्तौल बाहर निकाली और उसका चैम्बर खोलकर देखा।
चैम्बर में सिर्फ एक गोली बाकी थी।
एक गोली!
मैंने चैम्बर घुमाकर उस गोली को पिस्तौल में कुछ इस तरह सेट किया, जो ट्रेगर दबाते ही फौरन गोली चले।
तिलक राजकोटिया की हत्या करने के लिए वो एक गोली पर्याप्त थी।
मैंने ठीक उसकी खोपड़ी में गोली मारनी थी और उस एक गोली ने ही उसका काम तमाम कर देना था।
बहरहाल पिस्तौल अपने दोनों हाथों में कसकर पकड़े हुए मैं तिलक के बिल्कुल नजदीक पहुंची।
वो अभी भी गहरी नींद में था।
मैंने पिस्तौल ठीक उसकी खोपड़ी की तरफ तानी और फिर मेरी उंगली ट्रेगर की तरफ बढ़ी।
तभी अकस्मात् एक विहंगमकारी घटना घटी, जिसने मुझे चौंकाकर रख दिया।
उछाल डाला!
तिलक राजकोटिया ने एकाएक भक्क् से अपनी आंखें खोल दी थीं।
•••
तिलक राजकोटिया के आंखें खोलते ही मैं इस तरह डर गयी, जैसे मैंने जागती आंखों से कोई भूत देख लिया हो।
“त... तुम जाग रहे हो?” मेरे मुंह से चीख—सी खारिज हुई।
“क्यों- मुझे जागते देखकर हैरानी हो रही है डार्लिंग!” तिलक बहुत विषैले अंदाज में मुस्कुराते हुए बैठ गया—”दरअसल जब तुम्हारे जैसा दुश्मन इतना करीब हो, तो किसी को भी नींद नहीं आएगी। वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए एक बात और बता दूँ, जो पिस्तौल इस वक्त तुम्हारे हाथ में है- उसमें नकली गोलियां है।”
“न... नहीं।” मैं कांप गयी—”ऐसा नहीं हो सकता।”
“ऐसा ही है माई हनी डार्लिंग!” तिलक राजकोटिया बोला—”थोड़ी देर पहले मैंने खुद गोलियों को बदला है। दरअसल मेरे ऊपर यह प्राणघातक हमले तुम कर रही हो- इसका शक मुझे तुम्हारे ऊपर तभी हो गया था, जब आज रात तुमने सावंत भाई का आदमी बनकर ड्राइंग हॉल से ही मुझे फोन किया।”
“य... यह क्या कह रहे हो तुम?” मैं दहल उठी, मैंने चौंकने की जबरदस्त एक्टिंग की—”मैंने तुम्हें फोन किया?”
“हां- तुमने मुझे फोन किया।”
“लगता है- तुम्हें कोई वहम हो गया है तिलक!”
“बको मत!” तिलक राजकोटिया गुर्रा उठा—”मुझे कोई वहम नहीं हुआ। अगर तुम्हें याद हो- तो जिस वक्त तुम मुझे फोन कर रही थीं, ठीक उसी वक्त ड्राइंग हॉल में टंगा वॉल क्लॉक बहुत जोर—जोर से दस बार बजा था।”
मुझे तुरन्त याद आ गया।
सचमुच वॉल क्लॉक बजा था।
“ह... हां।” मैंने फंसे—फंसे स्वर में कहा—”बजा था।”
“बस उसी वॉल क्लॉक ने तुम्हारे रहस्य के ऊपर से पर्दा उठा दिया। दरअसल वह वॉल क्लॉक अपने आपमें बहुत दुर्लभ किस्म की वस्तु है। कभी उस वॉल क्लॉक को मैं इंग्लैण्ड से लेकर आया था। इंग्लैण्ड की एक बहुत प्रसिद्ध क्लॉक कंपनी ने दीवार घड़ियों की वह अद्भुत रेंज तैयार की थी। उस रेंज में वॉल क्लॉक के सिर्फ पांच सौ पीस तैयार किये गये थे और उन सभी पीसों की सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि उनके घण्टों में जो म्यूजिक फिट था, वह एक—दूसरे से बिल्कुल अलग था। यानि हर घण्टे का म्यूजिक यूनिक था- नया था। यही वजह है कि मैंने टेलीफोन पर तुमसे बात करते समय घण्टा बजने की वह आवाज सुनी, तो मैं चौंका । क्योंकि वह म्यूजिक मेरा जाना—पहचाना था। फिर भी मैं इतना टेंशन में था कि मुझे तुरंत ही याद नहीं आ गया कि वह मेरी अपनी वॉल क्लॉक की आवाज थी। और जब याद आया, तो यह मुझे समझने में भी देर नहीं लगी कि यह सारा षड्यंत्र तुम रच रही हो। क्योंकि उस वक्त अगर पैंथ हाउस में मेरे अलावा कोई और था, तो वह तुम थीं। सिर्फ तुम्हें ड्राइंग हॉल से फोन करने की सहूलियत हासिल थी।”
मेरे सभी मसानों से एक साथ ढेर सारा पसीना निकल पड़ा।
उफ्!
मैंने सोचा भी न था कि सिर्फ वॉल क्लॉक ही मेरी योजना का इस तरह बंटाधार कर देगी।
“तुम्हारी असलियत का पर्दाफ़ाश होने के बाद मैंने सबसे पहले तुम्हारी पिस्तौल की गोलियां बदली।” तिलक राजकोटिया बोला—”उसमें नकली गोलियां डाली। क्योंकि मुझे मालूम था कि अब तुम्हारा अगला कदम क्या होगा?”
“ल... लेकिन इस बात की क्या गारण्टी है!” मैंने बुरी तरह बौखलाये स्वर में कहा—”कि मेरी पिस्तौल के अंदर नकली गोली है।”
तिलक राजकोटिया हंसा।
जोर से हंसा।
“इस बात को साबित करने के लिए कोई बहुत ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ेगा डार्लिंग!” तिलक बोला—”पिस्तौल तुम्हारे हाथ में है, ट्रेगर दबाकर देख लो। अभी असलियत उजागर हो जाएगी।”
उस समय मेरी स्थिति का आप लोग अंदाजा नहीं लगा सकते।
मेरी स्थिति बिल्कुल अर्द्धविक्षिप्तों जैसी हो चुकी थी, पागलों जैसी। मेरे दिमाग ने सही ढंग से काम करना बंद कर दिया था।
मैंने फौरन पिस्तौल तिलक राजकोटिया की तरफ तानी और ट्रेगर दबा दिया।
धांय!
गोली चलने की बहुत धीमी—सी आवाज हुई।
जैसे कोई गीला पटाखा छूटा हो।
तिलक तुरन्त नीचे झुक गया। गोली सीधे सामने दीवार में जाकर लगी और फिर टकराकर नीचे गिर पड़ी।
दीवार पर मामूली खरोंच तक न आयी।
वह सचमुच नकली गोली थी।
अलबत्ता तिलक राजकोटिया ने उसी पल झपटकर तकिये के नीचे रखी अपनी स्मिथ एण्ड वैसन जरूर निकाल ली।
•••
 
पत्ते पलट चुके थे।
अब तिलक राजकोटिया की रिवॉल्वर मेरी खोपड़ी को घूर रही थी।
“मुझे अफसोस है शिनाया!” तिलक कर्कश लहजे में बोला—”कि तुमने मुझसे सिर्फ दौलत के लिए शादी की- एक पोजीशन हासिल करने के लिए शादी की। मैंने कर्ज के डॉक्यूमेण्ट रखने के लिए जब अलमारी खोली, तो दूसरा शक मुझे तुम्हारे ऊपर तब हुआ। क्योंकि अलमारी में रखे सारे पेपर इधर—से—उधर थे। इतना ही नहीं- इंश्योरेंस कंपनी के डॉक्यूमेण्ट अलमारी में सबसे ऊपर रखे थे। मैं तभी भांप गया- बीमे की रकम के लिए तुम मुझे मार डालना चाहती हो।”
“हां-हां।” मैं गुर्रा उठी—”बीमे की रकम के लिए ही मैं तुम्हें मार डालना चाहती हूं। दौलत के लिए ही मैंने तुमसे शादी की। वरना तुम क्या समझते हो, तुम्हारे जैसे हजारों नौजवान इस मुम्बई शहर में हैं। मैं किसी से भी शादी कर सकती थी।”
तिलक राजकोटिया के चेहरे पर दृढ़ता के अपार चिन्ह उभर आये। उसकी आंखों में ज्वालामुखी—सा धधकता दिखाई पड़ने लगा।
“मुझे इस समय तुमसे कितनी नफरत हो रही है शिनाया!” तिलक ने दांत किटकिटाये—”इस बात की तुम कल्पना भी नहीं कर सकतीं। अलबत्ता एक बात की मुझे जरूर खुशी है।”
“किसकी?”
“कम—से—कम अब तुम्हारा बीमे की रकम हड़पने का सपना पूरा नहीं होगा। अब मैं नहीं बल्कि तुम मरोगी- तुम!” तिलक दहाड़ा—”अब मैं लोगों से यह कहूँगा कि रात सावंत भाई के आदमी मुझे मारने आये थे, लेकिन इत्तफाकन उनके द्वारा चलायी गयी गोली तुम्हें लग गयी और तुम मारी गयीं। माई डेलीशस डार्लिंग- अब तुम्हारे द्वारा गढ़ी गयी योजना तुम्हारे ऊपर ही इस्तेमाल होगी।”
मेरी आंखों में मौत नाच उठी।
मेरे चेहरे का सारा खून निचुड़ गया। मौत अब मैं अपने बिल्कुल सामने खड़े देख रही थी।
“गुड बाय डार्लिंग! ऊपर बृन्दा की आत्मा बड़ी बेसब्री से तुम्हारी राह देख रही है।”
तिलक राजकोटिया ने रिवॉल्वर का सैफ्टी लॉक पीछे खींचा और फिर उंगली ट्रेगर की तरफ बढ़ी।
तभी मेरे अंदर न जाने कहां से हौंसला आ गया।
बेपनाह हिम्मत!
वहीं मेरे बराबर में स्टूल रखा हुआ था। तिलक राजकोटिया ट्रेगर दबा पाता- उससे पहले ही मैंने अद्वितीय फुर्ती के साथ झपटकर स्टूल उठा लिया और फिर उसे भड़ाक् से तिलक के मुंह पर खींचकर मारा।
तिलक की वीभत्स चीख निकल गयी।
वह लड़खड़ाकर गिरा।
उसी क्षण मैंने अपनी भरपूर ताकत के साथ एक लात उसके मुंह पर जड़ी और दूसरी लात बहुत जोर से घुमाकर उसके उस हाथ पर मारी- जिसमें उसने रिवॉल्वर पकड़ी हुई थी।
तिलक राजकोटिया बिलबिला उठा।
रिवॉल्वर उसके हाथ से छूट गयी।
मैंने झपटकर सबसे पहले रिवॉल्वर उठाई।
रिवॉल्वर एक बार मेरे हाथ में आने की देर थी, तत्काल वो तिलक राजकोटिया की तरफ तन गयी।
फिर मैं हंसी।
मेरी हंसी बहुत कहर ढाने वाली थी।
“उठो!” मैं रिवॉल्वर से उसकी खोपड़ी का निशाना लगाते हुए बोली—”उठकर सीधे खड़े होओ तिलक राजकोटिया!”
तिलक का चेहरा फक्क् पड़ गया।
वह धीरे—धीरे उठकर सीधा खड़ा हुआ।
•••
 
बाजी एक बार फिर पलट चुकी थी।
वो फिर मेरे हाथ में थी।
“अब क्या कहते हो तिलक राजकोटिया!” मैं उसे ललकारते हुए बोली—”तुम्हारे इस रिवॉल्वर में तो असली गोलियां हैं या फिर इसमें भी नकली गोलियां भरी हुई हैं?”
तिलक राजकोटिया चुप!
“लगता है- गोलियों को खुद ही चैक करना पड़ेगा।”
मैंने रिवॉल्वर का ट्रेगर दबा दिया।
ट्रेगर मैंने एकदम इतने अप्रत्याशित ढंग से दबाया था कि तिलक की कर्कश चीख निकल गयी।
उसने बचने का अथक परिश्रम किया, लेकिन गोली सीधे उसकी टांग में जाकर लगी।
गोली लगने के बावजूद वो चीते जैसी फुर्ती के साथ शयनकक्ष से निकलकर भागा।
मैं उसके पीछे—पीछे झपटी।
लेकिन जब तक मैं भागते हुए बाहर गलियारे में आयी, तब तक मुझे देर हो चुकी थी।
तब तक वो दूसरे गलियारे में मुड़ चुका था।
“तिलक!” मैं चीखी।
मैं भी धुआंधार स्पीड से दौड़ती हुई उसी गलियारे में मुड़ी।
एक दृढ़ संकल्प मैं कर चुकी थी- मैंने आज तिलक राजकोटिया को छोड़ना नहीं है।
जैसे ही मैं दूसरे गलियारे में मुड़ी, मुझे तिलक नजर आया।
वह अपनी पूरी जान लगाकर भागा जा रहा था।
उसकी टांग से निकलते खून की बूंदें गलियारे में जगह—जगह पड़ी हुई थीं।
मैंने फौरन रिवाल्वर अपने दोनों हाथों में कसकर पकड़ी और उसकी तरफ तान दी।
लेकिन मैं ट्रेगर दबा पाती- उससे पहले ही वो बेतहाशा दौड़ता हुआ गलियारे में दायीं तरफ मुड़ गया।
यह इस तरह नहीं पकड़ा जाएगा- मैंने सोचा।
मैं भागते—भागते रुक गयी।
फिर मैंने एक दूसरा तरीका अपनाया।
मैंने गलियारे में पड़ी खून की बूंदों का पीछा करते हुए धीरे—धीरे आगे बढ़ना शुरू किया।
मैं दायीं तरफ मुड़ी।
दायीं तरफ वाले गलियारे में भी खून की बूंदें काफी आगे तक चली गयी थीं।
मैं खून की बूंदों को देखती हुई आगे बढ़ती रही।
रिवॉल्वर अभी भी मेरे हाथ में थी।
मैं अलर्ट थी।
चैंकन्नी!
किसी भी खतरे का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार! मगर तभी मुझे एक स्थान पर ठिठककर खड़े हो जाना पड़ा।
दरअसल गलियारे के बिल्कुल अंतिम सिरे पर पहुंचकर खून की बूंदें नदारद हो गयी थीं। अब आगे उनका दूर—दूर तक कहीं कुछ पता न था।
मैंने इधर—उधर देखा।
तिलक राजकोटिया कहीं नजर न आया।
एकाएक खतरे की गंध मुझे मिलने लगी।
“मैं जानती हूं तिलक!” मैं गलियारे में आगे की तरफ देखते हुए थोड़े तेज स्वर में बोली—”तुम यहीं कहीं छिपे हो। तुम आज बचोगे नहीं, तुम्हारी मौत आज निश्चित है।”
गलियारे में पूर्ववत् खामोशी बरकरार रही।
गहरा सन्नाटा!
“तुम जानते हो!” मैं पुनः बोली—”मैं हत्या की जो योजना बनाती हूं- वह हमेशा कामयाब होती है। आज भी कामयाब होगी।”
तभी एकाएक मुझे हल्की—सी आहट सुनाई दी।
मैं अनुमान न लगा सकी, वह आवाज किस तरफ से आयी थी।
एकाएक तिलक राजकोटिया ने मेरे ऊपर पीछे से हमला कर दिया।
मेरे हलक से भयप्रद चीख निकली। वह बाहों में दबोचे मुझे लेकर धड़ाम् से नीचे फर्श पर गिरा और नीचे गिरते ही उसने मेरे हाथ से रिवॉल्वर झपट लेनी चाही।
मैं फौरन फर्श पर कलाबाजी खा गयी।
कलाबाजी खाते ही मैंने फायर किया।
तिलक राजकोटिया की खोपड़ी में सुराख होने से बाल—बाल बचा। उसने फिर झपटकर मुझे अपनी बांहों में बुरी तरह दबोच लिया।
“अगर आज मेरी मौत निश्चित है शिनाया!” वह कहर भरे स्वर में बोला—”तो आज बचोगी तुम भी नहीं। तुम भी मेरे साथ—साथ मरोगी।”
उसने अपनी दोनों टांगें मेरी टांगों में बुरी तरह उलझा दीं और उसके हाथ मेरी सुराहीदार गर्दन पर पहुंच गये।
फिर उसने बड़ी बेदर्दी के साथ मेरा गला घोंटना शुरू किया।
मौत एक बार फिर मेरी आंखों के सामने नाच उठी।
उस क्षण मैं फायर भी नहीं कर सकती थी। क्योंकि मेरा रिवॉल्वर वाला हाथ दोनों के पेट के बीच में फंसा हुआ था और बुरी तरह फंसा हुआ था। मैं उसे चाहकर भी नहीं निकाल पा रही थी।
वैसे भी मैं नहीं जानती थी, रिवॉल्वर की नाल उस वक्त किसकी तरफ है।
उसके पेट की तरफ?
या मेरी तरफ?
•••
 
उसी वक्त हालात ने एक और बड़ा विहंगमकारी मोड़ लिया।
एकाएक कोई पैंथ हाउस का मैंने गेट बुरी तरह पीटने लगा।
मैं और तिलक राजकोटिया- दोनों चौंके।
इस वक्त कौन आ गया?
यही एक सवाल हम दोनों के मस्तिष्क में हथौड़े की तरह बजा।
परन्तु हम दोनों ही बहुत नाजुक मोड़ पर थे।
खासतौर पर मेरी हालत तो कुछ ज्यादा ही दयनीय थी।
तिलक राजकोटिया की पकड़ अब मेरी गर्दन पर सख्त होती जा रही थी। मेरे हलक से गूं—गूं की आवाजें निकलने लगी थीं और मुझे ऐसा लग रहा था, अगर तिलक ने गला घोंटने का वह क्रम थोड़ी देर भी और जारी रखा- तो मेरा देहान्त हो जाएगा।
मुझे अपनी जान बचाने के लिए कुछ करना था।
उधर मैन गेट अब और भी ज्यादा बुरी तरह भड़भड़ाया जाने लगा था।
ऐसा लग रहा था- जैसे मैन गेट पर कई सारे लोग जमा थे और अब वो उसे तोड़ डालने का भरपूर प्रयास कर रहे थे।
मैन गेट पर प्रचण्ड चोटें पड़ने की आवाजें आ रही थीं।
क्या आफत थीं?
कौन लोग थे मैन गेट पर?
तभी तिलक राजकोटिया की पकड़ मेरे गले पर और भी ज्यादा सख्त हो गयी।
मुझे लगा- मेरे प्राण बस निकलने वाले हैं।
मैं मरने वाली हूं।
मैंने फौरन रिस्क उठाया। मैंने रिवाल्वर का ट्रेगर दबा दिया।
धांय!
गोली चलने की बहुत भीषण आवाज हुई।
खून का बड़ा जबरदस्त फव्वारा हम दोनों के बीच में-से फूट पड़ा। हम दोनों की चीखें गलियारे में गूंजीं।
फिर हम इधर—उधर जा गिरे।
खून वहां आसपास बहने लगा।
कुछ देर मैं बिल्कुल निढाल—सी पड़ी रही। उसके बाद मुझे अहसास हुआ, मैं जिंदा हूं।
मेरी सांसें चल रही हैं।
मेरे हाथ—पैरों में भी कम्पन्न था।
मैंने तिलक राजकोटिया की तरफ देखा।
वो मर चुका था।
गोली ठीक उसके पेट को फाड़ती चली गयी थी और उसकी आतें तक बाहर निकल आयी थीं। यह एक इत्तेफाक था- जिस समय मैंने गोली चलायी, उस वक्त रिवॉल्वर की नाल तिलक की तरफ थी।
मैंने अपनी जिन्दगी का एक जुआ खेला था- जिसमें किस्मत की बदौलत मैं कामयाब रही।
थैंक गॉड!
मैं धीरे—धीरे फर्श छोड़कर खड़ी हुई।
मेरा पूरा शरीर पसीनों में लथपथ था।
तभी बहुत जोर से मैन गेट टूटने की आवाज हुई। वह ऐसी आवाज थी- मानो पूरे पैंथ हाउस में भूकम्प आ गया हो। मानो पूरे पैंथ हाउस की दरों—दीवारों हिल गयी हों।
“चीखने की आवाज उस तरफ से आयी थी।” उसी क्षण मेरे कानों में एक आवाज पड़ी।
“उस गलियारे की तरफ से।” एक दूसरी आवाज।
फिर कई सारे पुलिसकर्मी धड़धड़ाते हुए मेरे सामने आ खड़े हुए।
सब हथियारबंद थे।
पुलिस!
मेरे होश उड़ गये।
और उस समय मेरे दिल—दिमाग पर घोर वज्रपात हुआ, जब उन पुलिसकर्मियों के साथ—साथ ‘बृन्दा’ भी दौड़ते हुए वहां आयी।
बृन्दा!
जिसकी मैंने सबसे पहले हत्या की थी।
वही जिंदा थी।
 
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सबसे बड़ा झटका—खेल खत्म!
“इंस्पेक्टर साहब!” बृन्दा, तिलक राजकोटिया की लाश की तरफ उंगली उठाकर बुरी तरह चिल्ला उठी—”आखिर जिस बात का मुझे डर था, वही हो गया। इस दुष्ट ने तिलक को भी मार डाला। उसे भी मौत की नींद सुला दिया।”
“ओह शिट!” इंस्पैक्टर ने लाश देखकर जोर से दीवार पर घूंसा मारा—”हमें यहां पहुंचने में सचमुच देर हो गयी।”
मेरे हाथ में अभी भी स्मिथ एण्ड वैसन थी।
लेकिन फिर वो रिवॉल्वर मेरी उंगलियों के बीच में से बहुत आहिस्ता से निकली और फिसलकर नीचे फर्श पर जा गिरी।
मैं अपलक बृन्दा को देख रही थी।
मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था, मेरे सामने वो बृन्दा ही खड़ी हुई थी।
“त... तुम जिंदा हो।” मैं विस्मित लहजे में बोली।
“हां- मैं जिंदा हूं।” वो नागिन की तरह फुंफकारी—”और इसलिए जिंदा हूं- क्योंकि शायद मैंने ही तुम्हारी असलियत कानून के सामने उजागर करनी थी।”
“ल... लेकिन तुम जिंदा कैसे हो?” मैं बोली—”तुम तो मर चुकी थीं बृन्दा!”
“यह सब किस्मत का खेल है।” उस थाना क्षेत्र का इंस्पेक्टर आगे बढ़कर बोला—”जो आज बृन्दा तुम्हें जीवित दिखाई दे रही है। वरना तुमने तो अपनी तरफ से इन्हें मार ही डाला था।”
“लेकिन यह करिश्मा हुआ कैसे?” मैं अचरजपूर्वक बोली—”यह मरकर जीवित कैसे हो गयी?”
मैं हतप्रभ् थी।
हतबुद्ध!
बृन्दा के एकाएक जीवित हो उठने ने मुझे झकझोर डाला था।
“इस रहस्य के ऊपर से पर्दा मैं उठाती हूं।” बृन्दा बोली—”कि मैं मरकर भी जीवित कैसे हो गयी। तुम्हारे द्वारा बीस डायनिल और दस नींद की टेबलेट्स खिलाने के बाद तो मैं मर ही गयी थी और फिर मेरी लाश ‘मेडिकल रिसर्च सोसायटी’ को दान भी दे दी गयी थी। लेकिन मैं वास्तव में मरी नहीं थी, मैं कोमा में थी। जब डॉक्टर अय्यर ने चीर—फाड़ करने के लिए मेरी लाश बाहर निकाली और मेरा अंतिम तौर पर चैकअप किया, तो वो यह देखकर चौंक उठा कि मेरे शरीर में अभी भी जीवन के निशान मौजूद थे। डॉक्टर अय्यर आनन—फानन मेरा इलाज करने में जुट गया। बहत्तर घण्टे के अथक परिश्रम के बाद आखिरकार वो क्षण आ ही गया, जब मैंने अपनी आंखें खोल दीं। मेडिकल साइंस में वह एक आश्चर्यजनक घटना थी- जब कोई लाश जीवित हो गयी थी।”
“फिर!” मैंने कौतुहलतापूर्वक पूछा—”फ... फिर क्या हुआ?”
“फिर होश में आने के बाद मैंने सबसे पहले डॉक्टर अय्यर को यह बताया,” बृन्दा बोली—”कि मेरी मौत एक स्वाभाविक मौत नहीं थी। बल्कि वो एक प्री—प्लान मर्डर था। मेरी, तिलक राजकोटिया और तुमने मिलकर हत्या की थी। मैंने डॉक्टर अय्यर से कहा- मेरे जीवन का अब बस एक ही लक्ष्य है, मैं तुम दोनों को सजा कराऊं। परन्तु तभी डॉक्टर अय्यर ने मेरा ध्यान एक कमजोरी की तरफ आकर्षित कराया।”
“कैसी कमजोरी?”
“इस बात को सिर्फ मैं कह सकती थी कि मेरी हत्या की गयी है। जबकि कानून के सामने इस बात को साबित करने के लिए मेरे पास कोई सबूत नहीं था। तभी डॉक्टर अय्यर ने मुझे एक सुझाव दिया। उसने कहा- पुलिस से इस सम्बन्ध में मदद लेने से पूर्व यह बेहतर रहेगा कि हम पहले सबूत एकत्रित कर लें। इसीलिए डॉक्टर अय्यर ने तिलक राजकोटिया के साथ ब्लैकमेल वाला नाटक शुरू किया। डॉक्टर अय्यर को इस बात की पूरी उम्मीद थी कि बौखलाहट में तुम दोनों से कोई—न—कोई ऐसा कदम जरूर उठेगा, जिससे हमारे हाथ सबूत लग जाएंगे।”
“ओह!” मेरे होंठ सिकुड़े—”इसका मतलब डॉक्टर अय्यर अपने जिस राजदार की बात करता था- वह तुम थीं?”
“हां- वह मैं ही थी।”
मेरे शरीर में रोमांच की वृद्धि होने लगी।
रहस्य के नये—नये पत्ते खुल रहे थे।
“बहरहाल मुझे झटका तब लगा,” बृन्दा बोली—”जब तुम दोनों ने डॉक्टर अय्यर की भी हत्या कर दी और उसकी लाश कहां ठिकाने लगायी- इस बारे में किसी को भी पता न चला। डॉक्टर अय्यर के गायब होने के बाद मैंने फौरन पुलिस की मदद ली और इन इंस्पैक्टर साहब को सारी कहानी कह सुनायी।”
“अगर तुमने तभी पुलिस की मदद ले ली थी,” मैं बेहद सस्पैंसफुल लहजे में बोली—”तो पुलिस ने पैंथ हाउस में आकर डॉक्टर अय्यर के सम्बन्ध में हम लोगों से पूछताछ क्यों नहीं की?”
“इस सवाल का जवाब मैं देता हूं।” इंस्पैक्टर बोला।
मैंने अब इंस्पेक्टर की तरफ देखा।
“दरअसल तुम और तिलक राजकोटिया मिलकर दो—दो हत्या जरूर कर चुके थे- लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल ये थी कि हमारे पास तुम लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं थे। फिर मैं यह भी जानता था कि बिना सबूतों के तिलक राजकोटिया जैसे बड़े आदमी पर हाथ डालना मुनासिब नहीं है- क्योंकि ऐसी अवस्था में वो बड़ी आसानी से छूट जाएगा। तभी बृन्दा ने मुझे एक ऐसी बात बतायी- जिसने मेरे अंदर उम्मीद पैदा की। बृन्दा ने बताया- तुम ‘नाइट क्लब’ की एक मामूली कॉलगर्ल हो और तुमने सिर्फ दौलत हासिल करने के लिए तिलक राजकोटिया से शादी की है। बृन्दा ने एक रहस्योद्घाटन और किया कि जिस दौलत के लिए तुमने तिलक से शादी की है और यह सारा षड्यंत्र रचा है- वास्तव में वो दौलत तिलक के पास है ही नहीं। वो दीवालियेपन के कगार पर खड़ा आदमी है। बृन्दा ने मुझे यह भी बताया कि तिलक राजकोटिया का पचास करोड़ रुपये का बीमा है। बीमे की उसी रकम ने मेरी आंखों में उम्मीद की चमक पैदा की। मुझे लगा कि जिस दौलत को हासिल करने के लिए तुम इतना बड़ा षड्यंत्र रच सकती हो- उसी दौलत को हासिल करने के लिए तुम मौका पड़ने पर तिलक राजकोटिया की हत्या करने से भी नहीं चूकोगी। तब बृन्दा के जीवित होने वाली सनसनी को थोड़े समय के लिए और दबाकर रखा गया। क्योंकि पुलिस का लक्ष्य था- जब तुम तिलक की हत्या करने की कोशिश करो, तभी तुम्हें रंगे हाथों पकड़ लिया जाए। इससे कम—से—कम तुम्हारे खिलाफ हमारे पास कुछ पुख्ता सबूत हो जाएंगे। मगर बेहद अफसोस की बात है- हमने तुम्हें रंगे हाथों तो अरेस्ट कर लिया, मगर उससे पहले तुम एक हत्या और करने में सफल हो गयीं।”
मेरा सिर अब घूमने लगा था।
उनकी बात सुन—सुनकर मेरे ऊपर क्या गुजर रही थी, इसकी शायद आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
बृन्दा के अप्रत्याशित रूप से जीवित निकल आने ने मेरे छक्के छुड़ा डाले थे।
“लेकिन तुम लोगों को यह कैसे मालूम हुआ,” मैं बोली—”कि मैं तिलक राजकोटिया की आज रात की हत्या करने वाली हूं- जो तुम इतने बड़े लाव—लश्कर के साथ इस तरह दनदनाते हुए पैंथ हाउस में घुसे चले आये?”
“अच्छा सवाल पूछा है।” इंस्पेक्टर बोला—”तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं शिनाया शर्मा- तिलक राजकोटिया ने कोई सवा दस बजे स्थानीय पुलिस स्टेशन में टेलीफोन किया था और उस वक्त ड्यूटी पर तैनात एस.आई. (सब—इंस्पेक्टर) को बताया था कि आज रात उसकी हत्या हो सकती है। मगर यह दुर्भाग्य है कि उस एस.आई. ने तिलक की बात को गम्भीरता से नहीं लिया। जबकि मैं उस वक्त पेट्रोलिंग (गश्त) पर गया हुआ था। थोड़ी देर पहले ही जब मैं पेट्रोलिंग से वापस लौटा और एस.आई. ने मुझे यह सूचना दी- तो मेरे रोंगटे खड़े हो गये। मैं तत्काल बृन्दा को अपने साथ लेकर बस दौड़ा—दौड़ा यहां चला आया। लेकिन मैं फिर भी तिलक राजकोटिया को न बचा सका।”
“ओह!”
मेरी आंखों के सामने अब अंधेरा—सा घिरने लगा।
मैं बुरी तरह फंस चुकी थी।
तभी होटल में से भी काफी सारे आदमी दौड़ते हुए ऊपर पैंथ हाउस में आ गये।
मैनेजर भी उनमें शामिल था।
•••
 
अब शायद आप लोगों को यह बताने की जरूरत नहीं है कि मेरे सारे पत्ते पिट चुके थे।
मेरी तमाम उम्मीदें, तमाम सपने कांच के उस खूबसूरत गिलास की तरह चकनाचूर हो गये- जिसे किसी ने बड़ी बेदर्दी के साथ फर्श पर पटक मारा हो।
मुझे गिरफ्तार कर लिया गया।
बृन्दा, डॉक्टर अय्यर और तिलक राजकोटिया- उन तीनों की हत्या के इल्जाम में मुझे कोर्ट ने फांसी की सजा सुनायी।
मैंने अपने हर अपराध को बे—हिचक कबूल किया।
यहां तक कि सिंगापुर में हुई सरदार करतार सिंह की हत्या को भी मैंने कबूला।
मैं अंदर से बुरी तरह टूट चुकी थी।
मुझे अपनी मौत की भी अब परवाह नहीं थी। आखिर मैंने जो किया- उसी का प्रतिफल तो मुझे मिल रहा था।
बहरहाल मेरी जिन्दगी की कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती।
मैं इस सम्पूर्ण अध्याय को इसी जगह खत्म हुआ समझ रही थी। लेकिन ऐसा समझना मेरी भारी भूल थी। अभी अध्याय खत्म नहीं हुआ था। बल्कि अभी एक ऐसा धमाका होना और बाकि था, जो अब तक का सबसे बड़ा धमाका था और जिसने सारे घटनाक्रम को एक बार फिर उलट—पलटकर रख दिया।
वह उस रंगमंच का सबसे बड़ा पर्दा था, जो उठा।
•••
वह जेल की एक बहुत सीलनयुक्त बदबूदार कोठरी थी- जिसके एक कोने में, मैं घुटने सिकोड़े बैठी थी और बस अपनी मौत की प्रतीक्षा कर रही थी।
मैं खुद को फांसी के लिए तैयार कर चुकी थी।
तभी ताला खुलने की आवाज हुई और फिर काल—कोठरी का बहुत मजबूत लोहे का दरवाजा घर्र—घर्र करता खुलता चला गया।
दरवाजे के खुलते ही बहुत हल्का—सा प्रकाश उस काल—कोठरी में चारों तरफ बिखर गया और एक हवलदार ने अंदर कदम रखा।
“खड़ी होओ।” हवलदार मेरे करीब आते ही थोड़े कर्कश लहजे में बोला।
मैंने अपनी गर्दन घुटनों के बीच में से धीरे—धीरे ऊपर उठाई।
“क्या बात है?”
“कोई तुमसे मिलने आया है?”
मैं चौंकी।
वह मेरे लिए बेहद हैरानी की बात थी।
भला अब मुझसे मिलने कौन आ सकता था?
कौन बचा था ऐसा आदमी?
“क... कौन आया है?” मैंने हवलदार से पूछा।
“मुझे उसका नाम नहीं मालूम।” हवलदार बोला— “मुलाकाती कक्ष में चलो- वहीं उसकी सूरत देख लेना। और थोड़ा जल्दी करो, मुलाकात के लिए ज्यादा समय नहीं है तुम्हारे पास।”
•••
‘मुलाकाती कक्ष’ में बीचों—बीच लोहे की एक लम्बी जाली लगी हुई थी। उस जाली में एक तरफ कैदी खड़ा होता था और दूसरी तरफ मुलाकाती!
मैं जब उस कक्ष में पहुंची और मैंने जाली के पास जिस चेहरे को देखा, उसे देखकर मेरी हैरानी की कोई सीमा न रही।
मुझसे मिलने बृन्दा आयी थी।
सबसे बड़ी बात ये है- बृन्दा के चेहरे पर उस समय घृणा के भी निशान नहीं थे। बल्कि वो मुस्कुरा रही थी- उसके होठों पर बड़ी निर्मल आभा थी। इस समय वह बीमार भी नहीं लग रही थी।
“त... तुम!”
“क्यों- हैरानी हो रही है!” बृन्दा बिल्कुल लोहे की जाली के करीब आकर खड़ी हो गयी—”कि मैं तुमसे मिलने आयी हूं?”
मैं चुप!
मेरी गर्दन उसके सामने अपराध बोध से झुक गयी।
आखिर मैं उसकी गुनाहगार थी।
मैंने उसकी हंसती—खेलती जिन्दगी में आग लगायी थी।
“तुम खुद को बुद्धिमान समझती हो शिनाया- लेकिन तुम मूर्ख हो, अव्वल दर्जे की मूर्ख!”
वह बात कहकर एकाएक इतनी जोर से खिलखिलाकर हंसी बृन्दा, जैसे किसी चुडै़ल ने शमशान घाट में भयानक अट्ठाहस लगाया हो।
मैंने झटके से अपनी गर्दन ऊपर उठाई।
उस समय बृन्दा साक्षात् चण्डालिनी नजर आ रही थी।
“शिनाया डार्लिंग!” वो खिलखिलाकर हंसते हुए ही बोली—”मालूम है- एक बार मैंने ‘नाइट क्लब’ में तुमसे क्या कहा था? मैंने कहा था कि मैं जिंदगी में एक—न—एक बार तुमसे जीतकर जरूर दिखाऊंगी और मेरी वो जीत ऐसी होगी कि तुम चारों खाने चित्त् जा पड़ोगी। मेरी वो जीत ये है- ये!” उसने लोहे की जाली को बुरी तरह से ठकठकाया—”आज यह जो तुम चारों खाने चित्त् जाकर पड़ी हो, यह सब मेरे कारण हुआ है।”
मेरे दिमाग में अनार छूट पड़े।
“य... यह तुम क्या कह रही हो बृन्दा?”
“यह बृन्दा का मायाजाल है!” वो फिर ठठाकर हंसी—”और जो मायाजाल को इतनी आसानी से समझ जाए, वो मायाजाल नहीं होता डार्लिंग!”
“अ... आखिर क्या कहना चाहती हो तुम?”
“दरअसल पैथ हाउस में इंस्पेक्टर के सामने जो कहानी मैंने तुम्हें सुनायी!” बृन्दा बोली—”वो असली कहानी नहीं थी। असली कहानी सुनोगी- तो तुम्हारे पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी। आसमान तुम्हारे ऊपर टूटकर गिरेगा।”
“क... क्या है असली कहानी?” मेरी आवाज कंपकंपाई।
मैं अब बृन्दा को इस प्रकार देखने लगी, जैसे मेरे सामने कोई जादूगरनी खड़ी हो।
“दरअसल कॉलगर्ल की उस नारकीय जिन्दगी को तिलांजलि देने के लिए जिस तरह तुम ढेर सारी दौलत हासिल करना चाहती थीं, उसी तरह मैं भी ढेर सारी दौलत हासिल करना चाहती थी। इसीलिए मैंने तिलक राजकोटिया को अपने प्रेमपाश में बांधकर उससे शादी की। लेकिन तभी एक गड़बड़ हो गयी।”
“कैसी गड़बड़?”
मेरी उत्कण्ठा बढ़ती जा रही थी।
“शादी के कुछ महीने बाद ही मुझे पता चला।” बृन्दा बोली—”कि तिलक राजकोटिया दीवालियेपन के कगार पर खड़ा व्यक्ति है और उसके पास दौलत के नाम पर कुछ नहीं है। यह बात पता चलते ही मानो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। आखिर मेरी सारी मेहनत पर पानी फिर गया था। तभी मेरे हाथ बीमे के वह डाक्यूमेण्ट लगे, जिनसे मुझे यह जानकारी हुई कि तिलक ने पचास करोड़ का बीमा कराया हुआ है। मेरी आंखों में उम्मीद की चमक जागी और उसी पल मेरे दिमाग ने एक बहुत भयानक षड्यंत्र को जन्म दे डाला।”
“कैसा षड्यंत्र?”
“षड्यंत्र- बीमे की रकम के लिए तिलक को मार डालना।” बृन्दा ने दांत किटकिटाये—”उसकी हत्या करना।”
“न... नहीं।”
मैं कांप उठी।
“यह सच है शिनाया डार्लिंग।” बृन्दा बोली—”अलबत्ता यह बात जुदा है कि मैंने तिलक राजकोटिया को अपने हाथों से मार डालने की बात नहीं सोची। बल्कि मैंने पहले इस पूरे प्रकरण पर गम्भीरता से विचार किया। तभी मुझे तुम्हारा ख्याल आया- तुम न सिर्फ जासूसी उपन्यास पढ़ती थीं बल्कि पहले से ही उल्टे—सीधे हथकण्डों में भी माहिर थीं। मुझे महसूस हुआ- तुम तिलक को ज्यादा—आसानी से ठिकाने लगा सकती हो। बस मैंने फौरन तुम्हें ‘बलि का बकरा’ बनाने का फैसला कर लिया और फिर तुम्हें फांसने के लिए एक बहुत खूबसूरत फंदा भी तैयार कर डाला।”
“कैसा खूबसूरत फंदा?”
“सारा ड्रामा डॉक्टर अय्यर के साथ मिलकर रचा।” बृन्दा बोली—”डॉक्टर अय्यर क्लब के जमाने से ही मेरा पक्का मुरीद था। दूसरे शब्दों में वो मेरा फैन, मेरा एडमायरर, मेरी स्टेडी कस्ट्यूमर था। जो अमूमन किसी रण्डी के दस—पांच होते ही होते हैं। वो मेरे एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहता था। उसके साथ मिलकर ही मैंने बीमार पड़ने का नाटक रचा और डॉक्टर अय्यर ने ही मुझे ‘मेलीगनेंट ब्लड डिसक्रेसिया’ जैसी भयंकर बीमारी घोषित की।”
“यानि तुम ये कहना चाहती हो,” मैं हतप्रभ् लहजे में बोली—”कि तुम पेशेण्ट नहीं थीं?”
“बिल्कुल भी नहीं। मेलीगनेट ब्लड डिसक्रेसिया तो अपने आप में बहुत बड़ी बीमारी है, जबकि मुझे तो नजला—बुखार भी नहीं था। मैं एकदम तन्दरुस्त थी। चाक—चौबंद थी और जो कुछ पैंथ हाउस में मेरी बीमारी को लेकर हो रहा था- वह नाटक के सिवा कुछ नहीं था।”
“बड़ी आश्चर्यजनक बात बता रही हो।” मैं बोली—”और तुम्हारी आंखों में जो काले—काले गड्डे पड़ गये थे, तुम्हारा शरीर जो पतला—दुबला हो गया था, वह सब क्या था?”
“आंखों में गड्ढे डालने या शरीर को पतला—दुबला करना कौन—सी बड़ी बात है!” बृन्दा रहस्योद्घाटन पर रहस्योद्घाटन करती चली गयी—”मैंने कम खाना—पीना शुरू कर दिया, तो थोड़े बहुत दिन में ही मेरी हालत बीमारों जैसी अपने आप हो गयी। अब तुम्हारे दिमाग में अगला सवाल यह उमड़ रहा होगा कि इस सारे ड्रामें से मुझे फायदा क्या था? तो उसका जवाब भी देती हूं- दरअसल तुम्हें किसी तरह पैंथ हाउस में बुलाना मेरा उद्देश्य था। बीमारी के बाद ही मैंने तिलक राजकोटिया से कहकर अखबार में ‘लेडी केअरटेकर’ का विज्ञापन निकलवाया। वह विज्ञापन सिर्फ तुम्हारे लिये था। इतना ही नहीं—तुमने जब पहली बार अखबार में छपा वह विज्ञापन देखा, वह भी मेरी ही प्लानिंग थी। वो डॉक्टर अय्यर जैसा ही मेरा एक मुरीद था, मेरा एक कस्ट्यूमर था, जो उस रात तुम्हें अपने घर ले गया था और तुमने वहां वो विज्ञापन देखा। सब कुछ पहले से फिक्स था। उसके बाद जैसा मैं चाहती थी, वैसा ही हुआ। मैं यह बात अच्छी तरह जानती थी कि उस विज्ञापन को पढ़कर तुम्हारे मन में कैसा लालच पैदा होगा? तुम फौरन तिलक की बीवी बनने का सपना देखने लगोगी। वैसा सपना तुमने देखा भी। अलबत्ता एक जगह मुझे अपनी सारी योजना जरूर फेल होती नजर आयी।”
“किस जगह?”
“जब तुमने पैंथ हाउस में आकर मुझे देखा और मुझसे ये कहा कि बिल्ली भी दो घर छोड़कर शिकार करती है, इसीलिए अब मैं कोई गलत काम नहीं करूंगी और पूरे तन—मन से तुम्हारी सेवा करूंगी। तुम्हारी इस बात को सुनकर मुझे जबरदस्त झटका लगा। मुझे लगा- मेरी सारी योजना फेल हो गयी है। बहरहाल मैंने संतोष की सांस तब ली- जब तुम तिलक राजकोटिया के साथ प्यार का खेल, खेलने लगीं।”
वह एक अद्भुत रहस्य मेरे सामने उजागर हो रहा था।
मैं चकित थी।
बृन्दा ऐसा खेल भी खेलेगी, मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
“फिर तिलक राजकोटिया ने और तुमने मिलकर मेरी हत्या की योजना बनायी।” बृन्दा बोली—”सच बात तो ये है कि हत्या की वह योजना बनाने के लिए भी मैंने तुम दोनों को प्रेरित किया। जरा सोचो- अगर डॉक्टर अय्यर तुमसे यह न कहता कि मेरी तबीयत में अब सुधार होने लगा है- तो क्या तुम मेरी हत्या के बारे में सोचती भी? हर्गिज नहीं! लेकिन अपनी हत्या कराना भी मेरी योजना का एक हिस्सा था, इसीलिए मैंने अपनी तबीयत में सुधार होने वाली बात प्रचारित की। जल्द ही तुमने ‘डायनिल’ और ‘स्लिपिंग पिल्स’ से मेरी हत्या करने का प्लान बना डाला। तुम्हारा प्लान वाकई शानदार था- मैंने और डॉक्टर अय्यर तक ने तुम्हारे प्लान की तारीफ की। मैं छुपकर तुम्हारी और तिलक की हर बात सुनती थी- इसलिए जब तुमने यह प्लान बनाया, तभी मुझे इसके बारे में पता चल गया। तुम्हारी जानकारी के लिए एक बात और बता दूं, जब—जब तुम मुझे ‘डायनिल’ खिलाने का प्रोग्राम बनाती थीं, तब—तब मैं चीनी भारी मात्रा में पहले ही खा लेती थी। डॉक्टर ने पहले ही बता रखा था कि ‘डायनिल’ टेबलेट की काट सिर्फ शुगर है। अगर शुगर पहले ही भारी मात्रा में खा ली जाए, तो ‘डायनिल’ टेबलेट का इंसानी शरीर पर कोई खतरनाक रिएक्शन नहीं होगा। यहां तक कि ‘डायनिल’ खाने के बाद मेरी जो तबीयत खराब होती थी, वह भी मेरा ड्रामा था। और जिस दिन तुमने मुझे बीस ‘डायनिल’ खिलाई, उस दिन तो मैंने बहुत भारी मात्रा में चीनी का सेवन किया था।”
“यानि उन डायनिल टेबलेट्स का भी तुम्हारे ऊपर कोई असर नहीं हुआ था?” मैं भौंचक्के स्वर में बोली।
“यस!”
“और स्लिपिंग पिल्स- स्लिपिंग पिल्स के असर से कैसे बचीं तुम?”
“स्वीट हार्ट!” बृन्दा के होठों से बड़ी शातिराना मुस्कुराहट दौड़ी—”मैं स्लिपिंग पिल्स के असर से बची नहीं बल्कि बेहोश हो गयी। यह उन स्लिपिंग पिल्स का ही असर था—जो तुम सबने मुझे मरा हुआ समझा।”
“ओह!” मेरे नेत्र सिकुड़ गये—”अब तुम्हारी कुछ—कुछ चालें मेरी समझ आ रही हैं। ‘मेडिकल रिसर्च सोसायटी’ को शवदान देने की बात भी तुम्हारी योजना का ही एक अंग थी। क्योंकि अगर तुम्हारा अंतिम क्रियाकर्म हो जाता- तुम्हारा शव अग्नि की भेंट चढ़ जाता, तो तुम वास्तव में ही मर जातीं- इसलिए तुमने वह चाल चलकर अपने आपको बचाया। इतना ही नहीं- ‘मेडीकल रिसर्च सोसायटी’ के नाम पर खुद डॉक्टर अय्यर तुम्हारे शव को पैंथ हाउस से निकालकर ले गया।”
“एब्सोल्यूटली करैक्ट!” बृन्दा प्रफुल्लित अंदाज में बोली—”सब कुछ इसी तरह हुआ। फिर मेरा अगला शिकार डॉक्टर अय्यर था।”
“डॉक्टर अय्यर!” मैं चौंकी—”लेकिन डॉक्टर अय्यर तो तुम्हारा मुरीद था- तुम्हारा एडमायररर था?”
“वह सब बातें अपनी जगह ठीक हैं। लेकिन डॉक्टर अय्यर मेरी पूरी योजना से वाकिफ था और वह कभी भी मेरे लिए खतरा बन सकता था। इसीलिए उसको रास्ते से हटाना जरूरी था। डॉक्टर अय्यर को रास्ते से हटाने के लिए ही मैंने उसे ब्लैकमेलिंग जैसे काम के लिए प्रेरित किया और यह कहकर प्रेरित किया कि अगर तुम तिलक तथा शिनाया को ब्लैकमेल करोंगे, तो इससे तुम दोनों के बीच आतंक फैलेगा और ऐसी परिस्थिति में तुम यानि शिनाया बौखलाहट में तिलक को आनन—फानन ठिकाने लगाने की बात सोचोगी। उस वक्त उस बेवकूफ मद्रासी डॉक्टर के दिमाग में यह बात नहीं आयी कि तिलक राजकोटिया से पहले तुम उसके मर्डर की बात सोच सकती थीं। जैसाकि तुमने सोचा भी और तिलक के साथ मिलकर डॉक्टर अय्यर की हत्या कर दी। बहरहाल डॉक्टर अय्यर की हत्या करके तुमने मेरे ही एक काम को अंजाम दिया। मेरे ही एक कांटे को रास्ते से हटाया।”
•••
 
मेरे दिमाग में अब चिंगारियां—सी छूट रही थीं।
धुआंधार चिंगारियां!
मैं ‘मुलाकाती कक्ष’ में जालियों के इस तरफ सन्न्—सी अवस्था में खड़ी थी और मेरे हाथ—पैर बर्फ की तरह ठण्डे हो रहे थे।
बृन्दा ने मुझे जिस तरह इस्तेमाल किया था, वह सचमुच आश्चर्यजनक था।
मैं यकीन नहीं कर पा रही थी कि मेरे सामने खड़ी साधारण शक्ल—सूरत वाली लड़की इस कदर बुद्धिमान भी हो सकती है।
“शिनाया डार्लिंग!” बृन्दा एक—एक शब्द चबाते हुए बोली—”वह सारे काम तुम अपने दिमाग से जरूर कर रही थीं- लेकिन सच ये है कि मैं चालें इस तरह चल रही थी कि तुम्हारा दिमाग भी ऐन वही बात सोच रहा था, जो मैं चाहती थी।”
मेरे मुंह से शब्द न फूटा।
“अब योजना का वह हिस्सा आता है!” बृन्दा बोली—”जिसको अंजाम देने के लिए बड़ा प्रपंच रचा गया था। यानि तिलक राजकोटिया की हत्या! तिलक की हत्या कराने के लिए मैंने सबसे पहले तुम्हारे दिमाग में बीमे वाली बात ठूंसी।”
“मेरे दिमाग में तुम वो बात किस तरह ठूंस पायीं?”
“अगर तुम्हें याद हो,” बृन्दा बोली—”तो तुम्हारे पास पैंथ हाउस में एक लड़की का फोन आया था- जो बीमा कंपनी की एजेण्ट थी। और उसी की मार्फत तुम्हें सबसे पहले यह राज मालूम हुआ कि तिलक राजकोटिया का पचास करोड़ का बीमा भी है।”
“बिल्कुल आया था।”
“तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं।” बृन्दा मुस्कुराकर बोली—”फोन करने वाली वह लड़की मैं ही थी।”
मैं पुनः भौंचक्की रह गयी।
“बहरहाल बीमे वाली बात पता चलने के बाद तुमने जहां तिलक राजकोटिया की हत्या का प्रोग्राम बना डाला- वहीं इस बीच मैं अपनी योजना का अगला हिस्सा चल रही थी। मैं स्थानीय थाना क्षेत्र के इंस्पैक्टर से जाकर मिली और उसे मैंने एक दूसरी ही कहानी सुनायी। वो कहानी- जिसे तुम पैंथ हाउस में मेरी जबानी पहले ही सुन चुकी हो।”
मैं ‘मुलाकाती कक्ष’ की जाली पकड़े चुपचाप खड़ी रही।
“ये तो था मेरा मायाजाल शिनाया शर्मा!” बृन्दा ने पुनः जोरदार अट्ठाहस किया—”जिसके बलबूते पर मैंने एक बड़ा षड्यंत्र रचा- एक बड़ी चाल खेली। मैंने तुम्हें ऐसी शिकस्त दी है, जिसके बारे में तुमने कभी ख्वाब में भी न सोचा होगा। इसके अलावा मैं तुम्हें एक बात और बता दूं।”
“क्या?”
“मेरे जीवित प्रकट होते ही न सिर्फ तुम्हारी वो शादी खुद—ब—खुद अवैध साबित हो गयी है, जो तुमने तिलक से की थी बल्कि अब बीमे की जो सौ करोड़ रुपये की धनराशि मिलेगी- उस पर भी पूरी तरह मेरा कब्जा होगा। सारी मेहनत तुमने की डार्लिंग, लेकिन अब इत्मीनान से बैठकर उसका फल मैं खाऊंगी।”
मेरा सिर घूमने लगा।
मेरा दिल चाह रहा था- अगर वह जालियां मेरे बीच में—से हट जाएं, तो मैं अभी एक हत्या और कर डालूं।
बृन्दा की हत्या!
“इतना ही नहीं!” बृन्दा ने आगे कहा—”अगर तुम मेरी यह योजना अदालत में चीख—चीखकर भी सुनाओगी- तब भी तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं। अदालत भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। क्योंकि तुम्हारे पास मेरे खिलाफ साबित करने के लिए कुछ नहीं है- कुछ भी नहीं। साबित तो तब होगा शिनाया डार्लिंग- जब मैंने कुछ किया हो। किया तो सब कुछ तुमने है- सिर्फ तुमने।”
•••
मैं खामोशी के साथ अब अपनी काल—कोठरी में बैठी थी।
काल—कोठरी बंद थी।
वहां अंधेरे के सिवा कुछ नहीं था।
दम तोड़ते सन्नाटे के सिवा कुछ नहीं था।
बृन्दा जा चुकी थी। लेकिन वो अपने पीछे विचारों का जो द्वन्द छोड़कर गयी थी, वो अभी भी मेरे अंदर खलबली मचाये हुए था।
मुझे आज रह—रहकर फारस रोड का वो कोठा याद आ रहा था, जिस पर मेरा जन्म हुआ।
मुझे अपनी मां याद आ रही थी।
मुझे एक—एक करके उन तमाम बद्जात मर्दों के चेहरे भी याद आ रहे थे, जिन्होंने बचपन से ही मुझे इस बात का अहसास कराया कि मैं एक लड़की हूं। जो दस—ग्यारह साल की लड़की को भी एक नंगी—बुच्ची औरत की तरफ घूरते थे।
फिर मुझे वो काला मुस्टंडा आदमी भी याद आया- जिसने सबसे पहले मेरे साथ सैक्स किया था। मेरी चीख निकल गयी थी।
फिर कोठे का तबलची याद आया- जिसके साथ मैंने बचपन में ही न जाने कितनी बार सैक्स किया था।
आज महसूस होता है- हमारे समाज ने चाहे कितनी ही प्रगति क्यों न कर ली हो, मगर फिर भी लड़की होना एक गुनाह है। एक अपराध है। हर पुरुष लड़की के साथ सिर्फ सेक्सुअल अटेचमेण्ट चाहता है। वो उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं करता।
मैं सोचती हूं- गलती मेरी ही थी।
जो मैंने बेहतर भविष्य चाहा।
मैं ‘नाइट क्लब’ के लिए ही बनी थी। ‘नाइट क्लब’ ही मेरी दुनिया थी। मैंने सारी उम्र बस शरीर का सौदा करना था और फिर मर जाना था। वह मौत कैसी भी होती!
हर औरत का बस यही नसीब है।
वह चाहे कॉलगर्ल हो या फिर किसी की पत्नी। उसने सिर्फ बिस्तर की शोभा बनना होता है। और घर की चारदीवारी में भी कोई औरत कहां सुरक्षित रह पाती है! शायद इसीलिए यह कहावत सच ही है- जिस तरह हर वेश्या थोड़ी बहुत औरत होती है- ठीक उसी प्रकार हर औरत थोड़ी बहुत वेश्या जरूर होती है।
मेरी यह कहानी अब बस यहीं समाप्त होती है।
मैंने जो अपराध किये- मुझे उसकी सजा मिल गयी।
लेकिन आपको क्या लगता है, बृन्दा को सजा नहीं मिलनी चाहिए?
सबसे बड़ी अपराधी तो वह थी।
मैं तो उसकी सिर्फ कठपुतली थी- जिसने मुझे अपने इशारों पर नचाया और मैं नाची।
यह कहां का इंसाफ है कि कठपुतली को सजा मिले और कठपुतली को नचाने वाला सुख भोगे।
दौलत का आनंद ले।
क्या इसीलिए उसके सारे अपराध माफ थे, क्योंकि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था?
क्या सबूत न होने से ही आदमी निर्दोष हो जाता है?
क्या इसी को कानून कहते हैं?
अगर इसी को कानून कहते हैं- तो मैं लानत भेजती हूं ऐसे कानून पर।
मुझे नफरत है ऐसे कानून से।
बस- अब मैं लिखना बंद करती हूं। वैसे भी लिखते—लिखते अब मेरी उंगलियां दर्द करने लगी हैं।
अगर मेरी यह कहानी किसी तरह आप लोगों तक पहुंची, तो यह मेरा सौभाग्य होगा।
अलबत्ता एक बात मैं आप लोगों से जरूर कहना चाहूंगी- दौलत के पीछे किसी भी आदमी को इतना नहीं भागना चाहिए, जो वह अंधा हो जाए। और कोई बृन्दा की तरह उसे अपने हाथों की ‘कठपुतली’ बना ले।
 
17
उपसंहार
मैंने शिनाया शर्मा की वो आत्मकथा बड़े मनोयोग के साथ पढ़ी और फिर अपनी रिवाल्विंग चेयर से पीठ लगा ली थीं।
मैंने चश्मा उतारकर अपनी राइटिंग टेबल पर रख दिया।
मैं!
यानि ‘अमित खान’ आपसे सम्बोधित हूं।
इसमें कोई शक नहीं- शिनाया शर्मा ने अपनी वो पूरी कहानी बड़े दिलचस्प अंदाज में लिखी थी।
मैं खुद उसे एक ही सांस में पढ़ता चला गया।
इतना ही नहीं- उस कहानी ने मेरी अंतरात्मा को झंझोड़ा भी। हालांकि शिनाया शर्मा एक खूनी थी- लेकिन फिर भी पूरी कहानी पढ़ने के बाद उसके कैरेक्टर से हमदर्दी होती थी।
वह आत्मकथा मेरे तक पहुंची भी बड़े अजीब अंदाज में थी। कल ही ‘सेण्ट्रल जेल’ के जेलर का मेरे पास फोन आया था।
“मुझे अमित खान जी से बात करनी है।”
“कहिये।” मैंने कहा—”मैं अमित खान ही बोल रहा हूं।”
“ओह- सॉरी अमित जी, मैं आपको पहचान न सका।”
“कोई बात नहीं।”
“मैं दरअसल सेण्ट्रल जेल का जेलर हूं।” उसने बताया—”हमारी जेल में एक कैदी लड़की है, जो आपके उपन्यासों की जबरदस्त फैन है। कल सुबह ठीक पांच बजे उसे फांसी होने वाली है। लेकिन वो मरने से पहले एक बार आपसे जरूर मिलना चाहती है।”
वह मेरे लिए अद्भुत बात थी।
अपने ढेरों प्रशंसकों से मैं मिला था। मगर ऐसा फैन पहली बार देखा था, जो मरने से पहले एक बार मुझसे मिलने को इच्छुक था।
वो भी फांसी पर चढ़ने से पहले!
“उस लड़की की आपसे बहुत मिलने की इच्छा है मिस्टर अमित!” जेलर पुनः बोला—”अगर आप थोड़ी देर के लिए उससे मिलेंगे, तो मुझे भी खुशी होगी।”
“ठीक है।” मैं बोला—”मैं चार बजे तक सेण्ट्रल जेल पहुंचता हूं।”
“थैंक्यू- थैंक्यू वैरी मच! आइ’म वेरी ग्रेटफुल टू यू!”
“ओ.के.।”
•••
जेलर मुझे शिनाया शर्मा से मिलाने सीधे काल—कोठरी के अंदर ही ले गया। वरना अमूमन इस तरह की मुलाकातें ‘मुलाकाती कक्ष’ में ही होती हैं।
मैंने जब जेलर के साथ काल—कोठरी में कदम रखा, तो शिनाया शर्मा सामने ही फर्श पर घुटने सिकोड़े बैठी थी।
आहट सुनते ही उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया।
वह सचमुच बहुत सुंदर थी।
उसके जिस्म की रंगत ऐसी थी- मानो जाफरान मिला दूध हो।
मुझे देखते ही उसके चेहरे पर पहचान के चिद्द उभरे।
आखिर मेरी तस्वीरें वो उपन्यासों के पीछे देखती रही थी, इसलिए मुझे पहचानना उसके लिए मुश्किल न था। वहीं नजदीक में उसकी लिखी हुई आत्मकथा रखी थी।
“ओह- आप आ गए।” वह तुरन्त उठकर खड़ी हुई—”मैं तो सोच रही थी, पता नहीं आप आएंगे भी या नहीं।”
“ऐसा नहीं हो सकता था।” मैं बोला—”कि मेरा कोई प्रशंसक मुझे बुलाये और मैं न पहुंचूं।”
मैं अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पा रहा था- इतनी खूबसूरत लड़की ने कोई ऐसा जघन्य अपराध भी किया हो सकता है, जो उसे फांसी जैसी सजा मिले!
“मैं बस कल सुबह तक की मेहमान हूं मिस्टर अमित!” शिनाया शर्मा बोली—”कल सुबह पांच बजे के बाद मेरी सांसों की डोर टूट जाएगी। मेरी जिन्दगी का यह जहूरा खत्म हो जाएगा।”
“लेकिन तुमने ऐसा क्या अपराध किया है!” मैं कौतुहलतापूर्वक बोला—”जिसके कारण तुम्हें इतनी खौफनाक सजा दी जा रही है?”
शिनाया शर्मा ने बहुत संक्षेप में मुझे अपना जुर्म बताया।
मेरे रौंगटे खड़े हो गये।
चार खून!
उस अप्सरा जैसी लड़की ने चार खून किये थे।
“मिस्टर अमित- आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहती हूं।”
“कैसा सवाल?”
“आप हमेशा अपने उपन्यासों में एक बात लिखते हैं। आप लिखते हैं कि हर चालाक—से—चालाक अपराधी को उसके अपराध की सजा जरूर मिलती है। वो कहीं—न—कहीं जरूर फंसता है।”
“बिल्कुल लिखता हूं।” मैं बोला—”और सिर्फ लिखता ही नहीं हूँ बल्कि इस बात पर मेरा पूरा यकीन भी है। दृढ़ विश्वास भी है।”
वो हंसी।
उसकी हंसी में व्यंग्य का पुट था।
“मैं क्षमा चाहूंगी मिस्टर अमित!” शिनाया शर्मा बोली—”इस तरह हंसकर अनायास ही मुझसे आपका अपमान हो गया है। सच बात तो ये है- आपका यह यकीन सिर्फ मेरे ऊपर लागू हुआ है। आखिर इतनी चालाकी से खून करने के बावजूद भी मैं कानून के शिकंजे में फंस ही गयी। लेकिन बृन्दा के बारे में आप क्या कहेंगे? इस पूरे खेल की असली खिलाड़ी तो वह थी। सब कुछ उसके इशारों पर हुआ। लेकिन फिर भी कानून उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाया, क्योंकि कानून की इमारत सबूत नाम की जिस बुनियाद पर खड़ी होती है, वह सबूत उसके खिलाफ नहीं थे।”
मैं निरुत्तर हो गया।
शिनाया शर्मा काफी हद तक ठीक कह रही थी।
इसमें कोई शक नहीं- बृन्दा के खिलाफ कोई सबूत नहीं थे और इसीलिए वो बच गयी थी।
“मिस्टर अमित!” शिनाया शर्मा कुपित लहजे में बोली—”अगर हो सके- तो आज के बाद आप अपने उपन्यासों में यह लिखना छोड़ दें कि हर अपराधी को सजा मिलती है। बल्कि आज के बाद आप अपने उपन्यासों में यह लिखें कि इस दुनिया में कुछ अपराधी ऐसे भी होते हैं, जो अपनी बुद्धि के बल पर कानून की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब रहते हैं। जिनका कानून कुछ नहीं बिगाड़ पाता।”
मैं कुछ न बोला।
जबकि शिनाया शर्मा ने फिर अपनी ‘आत्मकथा’ उठाकर मेरी तरफ बढ़ाई थी।
“मैंने अपनी यह कहानी लिखी है मिस्टर अमित!” वह बोली—”कागज के इन पन्नों पर मेरे सपने, मेरी उम्मीदें, मेरे गुनाह, मेरी जिन्दगी का एक—एक लम्हा कैद है। अगर हो सके, तो मेरी यह कहानी हिन्दुस्तान के तमाम पाठकों तक पहुंचा दें। मेरे पास बृन्दा के खिलाफ सबूत नहीं है- इसलिए मैं अपने इस केस को अदालत में तो नहीं लेकर जा सकती। लेकिन आपकी बदौलत कम—से—कम पाठकों की अदालत तक तो इस केस को लेकर जा ही सकती हूं- ताकि पाठक फैसला कर सकें कि बृन्दा में और मुझमें कौन बड़ा अपराधी है? ताकि उन्हें पता चल सके कि किस प्रकार इस केस के एक अपराधी को सजा मिली और दूसरे को कानून ने छुआ तक नहीं। अगर आप मेरा यह काम करेंगे मिस्टर अमित, तो आपका मेरे ऊपर बहुत बड़ा अहसान होगा।”
मैंने ‘आत्मकथा’ की वो पाण्डुलिपि अपने हाथों में पकड़ ली।
“मिस्टर अमित!” शिनाया शर्मा पुनः बोली—”आप मेरी इस कहानी को पाठकों की अदालत तक पहुंचाएंगे न?”
“मैं पूरी कोशिश करूंगा।”
“कोशिश नहीं।” शिनाया शर्मा बोली—”बल्कि आप वादा करें।”
“ठीक है- मैं वादा करता हूं।”
“थैंक्यू- थैंक्यू वैरी मच!” शिनाया शर्मा ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और उस पर अपना प्रगाढ़ चुम्बन अंकित किया—”आप नहीं जानते- आपने यह बात कहकर मेरे दिल का कितना बड़ा बोझ हल्का कर दिया है। मेरे लिए यही बहुत होगा- मेरी कहानी लाखों पाठकों तक पहुंचेगी।”
मेरी निगाह अपलक उस लड़की के चेहरे पर टिकी थी।
कल सुबह उसे फांसी होने वाली थी। लेकिन उसके चेहरे पर किसी भी तरह की कुण्ठा या खौफ के निशान नहीं थे। ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि उसे फांसी का खौफ हो।
“क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा शिनाया शर्मा?” मैंने उसकी बिल्लौरी आंखों में झांकते हुए सवाल किया—”आखिर कुछ घंटों बाद तुम मरने जा रही हो?”
“नहीं- मुझे बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा।” वह बोली—”बल्कि मुझे खुशी है कि मां की तरह मुझे खौफनाक मौत नहीं मिली। हां- एक बात का अफसोस जरूर है।”
“किस बात का?”
“कुछेक ऐसे निर्दोष आदमियों के खून से मेरे हाथ रंग गये, जिनके खून से मेरे हाथ नहीं रंगने चाहिए थे।”
“इट वाज गॉडस विल।” मैं गहरी सांस लेकर बोला— “मे गॉड गिव यू स्ट्रेंथ टु बीयर दिस टेरिबल ब्लो।”
मैंने धीरे—धीरे शिनाया शर्मा का कंधा थपथपाकर उसे सांत्वाना दी।
•••
 
मैंने चाय का कप खाली करके टेबिल पर रखा।
उस समय मैं जेलर के ऑफिस में बैठा हुआ था।
“यह लड़की कुछ अजीब है मिस्टर अमित!” जेलर अपलक मुझे देखता हुआ बोला—”यह जितनी भावनाओं से भरी हुई है- उसे देखकर लगता ही नहीं कि इसने चार खून किये होंगे। और खून भी ऐसे, जिन्हें आसानी से ‘कोल्ड ब्लाडिड मर्डर’ की संज्ञा दी जा सकती है।”
“क्या इसकी यह फांसी रुक नहीं सकती?” मैंने जेलर से सवाल किया।
“मैं अपनी तरफ से काफी कोशिश कर चुका हूं।” जेलर ने बताया—”लेकिन यह लड़की खुद फांसी पर चढ़ने को तैयार है। मैंने इसे काफी समझाया कि अगर यह राष्ट्रपति के नाम एक चिट्ठी लिख दे- तो मैं पूरी कोशिश कर सकता हूं कि इसकी फांसी की सजा उम्रकैद में बदल जाए। मगर अफसोस तो इस बात का है- यह चिट्ठी भी लिखने को तैयार नहीं।”
“इसमें इसकी गलती कुछ नहीं जेलर!” मैं बोला—”इंसान के सपने जब एक बार टूट जाते है, तो उसका व्यक्तित्व बेजान मोतियों की तरह इधर—उधर बिखर जाता है। और यही इंसानी जिन्दगी का वो पड़ाव है, जहां से इंसान का जिन्दगी से नहीं बल्कि मौत से इश्क शुरू होता है। उस खूबसूरत लड़की को भी अब मौत से इश्क हो गया है।”
जेलर हैरानीपूर्वक मेरी तरफ देखने लगा।
“फिलहाल मैं चलता हूं जेलर!” मैं कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया।
“ओ.के.।” जेलर ने भी कुर्सी छोड़ी और गरमजोशी के साथ मुझसे हाथ मिलाया—”वी विल मीट अगेन!”
“जरूर।”
मैं सेण्ट्रल जेल से बाहर निकल आया।
•••
पाण्डुलिपि पढ़ने के बाद मैंने उसे टेबिल पर ही एक तरफ रख दिया।
मैं अभी भी उस कहानी के मोहजाल में डूबा हुआ था।
सुबह का समय था।
मैंने वॉल क्लॉक की तरफ दृष्टि उठाई।
चार बज चुके थे।
शिनाया शर्मा की फांसी में सिर्फ एक घण्टा बाकी था। उस पूरी रात मैं सोया नहीं था।
पूरी कहानी पढ़ने के बाद इस बात का अहसास मुझे अच्छी तरह हो चुका था कि बृन्दा के खिलाफ कहीं कोई ऐसा सबूत नहीं है, जो कानून उसे गिरफ्तार कर सके।
सचमुच उसने एक—एक चाल बहुत सोच—समझकर चली थी।
तो क्या इस बार एक अपराधी को सजा नहीं मिलेगी?
वह इसी प्रकार खुला घूमता रहेगा?
मैं बृन्दा के बारे में जितना सोच रहा था, उतनी मेरी दिमागी उलझन बढ़ रही थीं।
तभी वॉल क्लॉक बहुत जोर—जोर से पांच बार बजी।
मेरी आंखें मुंद गयीं।
मेरा शरीर रिवाल्विंग चेयर पर शिथिल पड़ गया।
शिनाया शर्मा को फांसी हो चुकी थी।
मैं आँखें बंद किये-किये इसी तरह ना जाने कब तक चेयर पर पड़ा रहा।
दस बजे मेरी आँख खुली।
मैंने टी.वी. ऑन किया।
टी.वी. पर शिनाया की फाँसी की खबर ही चल रही थी।
तभी टी.वी. पर एक और खबर भी चलनी शुरू हुई। यह खबर बृन्दा से सम्बन्धित थी। जब बृन्दा लिफ्ट में सवार होकर पैंथ हाउस से नीचे होटल की तरफ जा रही थी, तभी न जाने कैसे लिफ्ट का तार कट गया और लिफ्ट धड़ाम् से नीचे जाकर गिरी। बृन्दा की तत्काल ऑन द स्पॉट मौत हो गयी। पुलिस को उसके वेनिटी बैग में-से सौ करोड़ का बीमे का चैक भी बरामद हुआ, जो बृन्दा को उसी दिन बीमा कंपनी से प्राप्त हुआ था और तब वो उस चैक को अपने बैंक एकाउण्ट में जमा कराने जा रही थी। मगर ऐसी नौबत ही न आयी। उन सौ करोड़ रुपयों का सुख वो न भोग सकी।
टी.वी. पर उस खबर को सुनकर मेरे चेहरे पर बेपनाह हर्ष की लकीरें खिंच गयीं।
मेरी कुण्ठा समाप्त हो गयी।
जिस बृन्दा को कानून सजा न दे सका, उसे उसके कृत्य की ईश्वर ने सजा दे दी थी।
उस पल के बाद मेरा यह निश्चय और भी ज्यादा दृढ़ हो गया, अपराधी कभी बचता नहीं है!
उसे उसके पापों की सजा जरूर मिलती है।
एज यू सो, सो शैल यू रीप।
समाप्त
 
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