desiaks
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अपडेट—26
शीतल दीदी मुझे मारने के लिए जैसे ही चप्पल उठा कर मेरे पीछे भागी तो मैं दादी के पास से उठ के अंदर की ओर भागा लेकिन भागने के चक्कर मे किसी से टकरा गया.
संयोग से मैं जिससे टकराया उसके दूध पर ग़लती से मेरा हाथ टच हो गया....मुझे उसके दूध का नरम एहसास बहुत अच्छा लगा तो मैने बिना उसकी तरफ देखे ही कि ये कौन है उसके दूध को अपने फुल पंजे मे पकड़ कर खूब ज़ोर ज़ोर से जल्दी जल्दी चार पाँच बार दबा दबा कर मसल दिया.
मैने जैसे ही उसके दूध दबाए ज़ोर से तो उसकी ज़ोर से ‘’आआआहह’’ कर के चीख निकल गयी...मैं ये चीख सुन कर जैसे ही उसका चेहरा देखा तो मेरे चेहरे का रंग उड़ गया.
क्यों कि मैने जिसकी चुचि दबाई थी वो रश्मि दीदी थी….उनके चेहरे पर दर्द के भाव साफ जाहिर हो रहे थे….वो मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थी.
राज (मन मे)—लौन्डे लग गये….शीतल दीदी क्या कम थी जो अब तो ये भी मेरा जीना हराम कर देगी.
रश्मि (मन मे)—कितना बड़ा कमीना है….मैं इसकी बहन हूँ ये जानते हुए भी कितनी ज़ोर से मेरी चुचियो को मसल दिया….शीतल सही
कहती है..इससे बच कर रहना होगा…पता नही कब मेरा भी रेप कर दे ये, इस सांड़ का कोई भरोसा नही है.
मैं अपनी ही सोच मे गुम था कि तब तक शीतल दीदी मेरे पास आ गयी और ज़ोर से मेरी पीठ पर एक मुक्का ठोंक दिया…. मेरे जिस्म मे दर्द की एक तेज़ लहर दौड़ गयी….शीतल दीदी का मुक्का सीधा पीठ मे मेरी चोट वाली जगह पर लगा था. जिसके फलस्वरूप मेरी दर्द से कराह निकल गयी….कोई कुछ सवाल करे इसके पहले ही मैं बिना रुके अपने रूम मे भाग गया.
मीनू—शीतल तेरे हाथ मे से ये खून क्यो निकल रहा है, कोई चोट लगी है क्या….?
शीतल (चौंक कर)—न्न्नहि तो…..मुझे तो कोई चोट नही लगी है…..(फिर मन मे)—मुझे तो कोई चोट नही है फिर मेरे हाथ मे ताज़ा खून कहाँ
से आ गया….(कुछ याद आने पर)..ओमाइगॉड..इसका मतलब ये खून राज का है, तभी वो मेरे मुक्का मारने पर चिल्लाया था.
माँ—शीतल बेटा कोई चोट लगी है क्या तुझे….?
शीतल दीदी ने कोई जवाब नही दिया और वहाँ से उठ कर मेरे रूम का दरवाजा नॉक करने लगी…जो कि मैने बंद कर लिया था और इस
समय ब्र्ड पर लेटा हुआ था दर्द की वजह से.
शीतल—ओये…दरवाजा खोल जल्दी.
राज—क्यो फिर से मारना है….?
शीतल—तू दरवाजा तो खोल पहले फिर बताती हूँ कि क्या करना है.
राज—मैं नही खोलता..
शीतल—मैं दरवाजा तोड़ दूँगी समझा...नही तो सीधी तरह से खोल दे.
राज—वाह...मैं दरवाजा खोल दूं तो ये जंगली बिल्ली मुझे नोच डाले...इतना पागल नही हूँ मैं
दादी—क्यो परेशान करती रहती है उसको हमेशा…..? और तेरे हाथ मे खून क्यो बह रहा है….?
शीतल—अभी पता चल जाएगा, एक बार दरवाजा तो खोल दे.
मीनू—रुक मैं खुल्वाती हूँ दरवाजा, मेरे पास आइडिया है
माँ—क्या…?
मीनू (ज़ोर से)—राज….जल्दी से दरवाजा खोल…देख शीतल के हाथ से बहुत खून निकल रहा है….उसको डॉक्टर के पास ले जा जल्दी से.
शीतल दीदी को चोट लगने और खून निकलने की बात सुनते ही मैं तुरंत शर्ट पहन कर बाहर निकल आया और जल्दी से शीतल दीदी के पास जा कर उनका हाथ चेक करने लगा, उनके हाथ मे खून लगा देख मैने उन्हे अपनी गोद मे उठा लिया और तेज़ी से बाहर जाने लगा.
शीतल—उतार मुझे नीचे….जल्दी उतार मुझे नीचे….कहाँ ले के जा रहा है.
राज—नही आपको चोट लगी है….पहले डॉक्टर के पास चलो…..फिर मार लेना मुझे जी भर के.
मेरे ऐसे अचानक करने से सब चौंक गये, सबसे ज़्यादा रश्मि दीदी हैरान हुई....शीतल दीदी बार बार मुझे नीचे उतारने को चिल्लाए जा रही थी.
शीतल—उतार मुझे….कोई चोट वोट नही लगी है मुझे…पहले नीचे उतार फिर बताती हूँ.
रश्मि—ये सब क्या है मीनू…?
मीनू—क्यों कि मुझे पता है कि राज हम सब बहनों मे से शीतल को सबसे ज़्यादा चाहता है...उसकी मामूली सी खरोंच भी वो बर्दास्त नही
कर पता इसलिए मैने झूठ बोला दरवाजा खुलवाने के लिए.
राज—क्याआ.... ? आपने झूठ बोला....लेकिन दीदी के हाथ से खून क्यो निकल रहा है फिर... ?
शीतल—नीचे उतार मुझे फिर बताती हूँ.
मैने शीतल दीदी को नीचे उतार दिया.....नीचे उतरते ही चत्टाअक्कक......चतत्त्टाककक....उन्होने मेरे दोनो गालो पर अपने हाथो की मोहर लगा दी.
माँ (चिल्लाते हुए)—शीतलल्ल्ल्ल्ल....ये क्या बदतमीज़ी है.
शीतल (ज़ोर से)—इसने अपने गंदे हाथो से मुझे छुआ भी कैसे…..? और ये खून मेरा नही आपके इस लाड़ले का है… इसकी शर्ट उतरवाओ पहले…सब पता चल जाएगा.
राज—दादी…चलो मुझे नीद आ रही है.
शीतल (चिल्लाते हुए)—रुक , पहले शर्ट उतार अपनी.
राज—मुझे कुछ नही उतारना है.
माँ—चल दिखा मुझे कहाँ चोट लगी है तुझे.
राज—मुझे कोई चोट नही लगी है माँ…आप चिंता मत करो
मैं जल्दी से रूम मे चला गया…..वैसे भी थप्पड़ खाने के बाद मेरा दिमाग़ खराब हो गया था….मेरे वहाँ से जाने के बाद मीनू दीदी शीतल के उपर चिल्लाने लगी.
मीनू—तू हरदम उसके पीछे क्यो पड़ी रहती है….? क्यो इतनी नफ़रत करती है उससे.... ? एक ही तो भाई है हमारा....जब देखो तब उसे खरी खोटी सुनाती रहती है.....अब तो तेरा हाथ भी उठने लगा है....और एक वो है जो तुझे हम सबसे अधिक चाहता है तेरी एक खरोंच पर भी तड़प जाता है.....क्या तेरे सीने मे दिल नाम की कोई चीज़ नही है..... ?
शीतल (ज़ोर से)—हान्न्न...करती हूँ नफ़रत मैं.....एक बलात्कारी मेरा भाई कभी नही हो सकता.....उससे कह दो मुझसे दूर ही रहा करे....मैं उसकी शकल भी देखना नही चाहती.
माँ (चिल्लाते हुए)—शीतलल्ल्ल्ल्ल......आज के बाद दोबारा ऐसी बेहूदा बाते मुझे सुनने को ना मिले..समझी
मैं दादी के बिस्तर मे लेटे हुए शीतल दीदी के अपने प्रति व्यवहार के बारे मे सोच रहा था....शीतल दीदी की कही हुई बतो से मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही थी जो कि मैने रूम मे जाते हुए सुन ली थी...साथ मे पीठ मे दर्द भी बहुत हो रहा था.....सोचते हुए कब नीद आ गयी पता ही नही चला.
रात मे मुझे अपने चेहरे पर कुछ गीलापन महसूस होने से नीद टूट गयी....मैने महसूस किया कि कोई मेरे पास बैठ कर रो रहा है जिसके
आँखो से गिरते आँसू मेरे जख़्मो को भिगो रहे थे.
मुझे उसके आँसुओं से बेहद सुखद एहसास होने लगा ऐसा लगने लगा जैसे कि मुझे अब कोई दर्द ही ना हो.....मैं समझ गया कि ये शीतल दीदी ही हैं...क्यों की मुझे भली भाँति पता है की उन्हे मेरी चोट से सबसे ज़्यादा तकलीफ़ होती है.
भले ही वो सब के सामने मुझसे नफ़रत करने का दिखावा करती हैं लेकिन सच तो यही है कि वो मुझे दर्द मे नही देख पाती....कुछ देर तक आँसू टपकाने के बाद उन्होने मलम ला कर मेरे जख़्मो पर लगाया और मेरे गालो पर जहाँ उन्होने थप्पड़ मारा था वहाँ काफ़ी देर तक धीरे धीरे चूमती रही और सिसकती रही.
अपने घर की हर औरत को मैने केवल भोगने की नज़र से देखा है शीतल दीदी को छोड़ कर....ना जाने क्यो उन्हे देखते ही मैं सब कुछ जैसे भूल जाता हूँ....मेरे हृदय मे एक अलग ही तरह की तरंगे हिलोरे लेने लगती हैं....मेरे अंदर की सारी कामुकता गायब सी हो जाती है और मेरा
दिल हमेशा चाँद को भी मात कर देने वाले मुखड़े को अपने सामने देखते रहना चाहता है...ऐसा क्यो है.... ? इसका जवाब तो शायद अभी मेरे पास भी नही है.
उनके इस मर्म स्पर्शी छुवन के एहसास से मैं एक बार फिर अपनी सुध बुध खो कर सुखद नीद की आगोश मे समाता चला गया….मुझे दादी के पास जाने का ख्याल भी दिमाग़ से निकल गया.
सुबह जब मेरी नीद खुली तो वहाँ कोई नही था….आज की सुबह मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत सुबह मे से एक थी…मैने फ्रेश होने के बाद बाहर आ गया तो मुझे कुछ सीटी बजने जैसी आवाज़ सुनाई पड़ी.
मैं समझ गया कि कोई अपनी बुर खोले मूत रही है….बुर की खुश्बू मिलते ही लंड राज अकड़ के सीना तान कर खड़ा हो गया…मैं धीरे कदमो से उधर बढ़ गया जिधर से किसी के मूतने से सीटी बजने की आवाज़ आ रही थी.