desiaks
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किंतु मैं ने उससे अलग होते हुए कहा, “अरे बेटा मैं खुद भी तेरा दीवाना हो गया हूं। जबतक यहां हूं, कसम से तेरी गांड़ मारता रहूंगा। जब भी तेरे यहां आऊंगा, बिना तेरी गांड़ चोदे नहीं जाऊंगा। फिलहाल हमें यहां से चलना चाहिए, वरना कोई आ जायेगा तो हम मुश्किल में पड़ सकते हैं।” इतना कहकर हमने अपने कपड़े पहने और फिर शादी की महफ़िल में आ गए। उसी समय फिर किसी की आवाज मेरे कानों में टकराई, “खा लिया हमारा माल साला बूढ़ा।” मैं ने नजर घुमा कर आवाज की दिशा में देखा तो एक 25 – 30 साल का नौजवान हमारी ओर देख कर मुस्कुरा रहा था। मैं भी उसकी ओर देख कर मुस्कुरा उठा। बाद में पता चला कि वह भी अशोक की अॉफिस में काम करने वाला उसका सहकर्मी रमेश था। उस समय करीब ग्यारह बज रहे थे। शादी की रस्म पूरी होते होते एक बज गया।
एक बजे अशोक फिर मेरे पास आया और मुझ से सट कर मेरे लौड़े को धोती के ऊपर से ही सहलाते हुए बोला, “चलिए ना फिर एक बार और हो जाय, अभी तो बहुत देर है बिदाई में।” उसके हाथ लगाते ही मेरा लौड़ा फिर तन कर मेरी धोती फाड़ कर बाहर निकलने को मचलने लगा। मैं और बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसके साथ फिर उसी स्थान पर चला गया जहां हमने चुदाई का खेल खेला था। इस वक्त हम दोनों बिना एक पल गंवाए सीधे नंगे हो कर एक दूसरे से गुंथ गये और फिर एक बार वही चुदाई का दौर चालू हुआ। इस बार तो हम बेहद गंदे तरीके से खुल कर चुदाई में डूब गए थे। एक दूसरे में समा जाने की जी तोड़ धकमपेल में मग्न।
“ओह साली कुतिया, ओह ओ्ओ्ओ्ओह मेरे लंड की रानी, गांडू साले मां के लौड़े तेरी गांड़ का गूदा निकालूं ओह ओ्ओ्ओ्ओह” मैं गंदी गंदी गालियों की बौछार कर रहा था और वह मस्ती में चुदते हुए बोल रहा था, “हाय हाय हरामी मादरचोद पापा, साले कुत्ते, मेरी गांड़ के राज्ज्ज्जा, चोद हरामजादे मेरी गांड़ का भुर्ता बना दीजिए, मझे अपनी रंडी बना लीजिए, कुतिया बना लीजिए, ओह ओ्ओ्ओ्ओह आह मजा दे दे स्वर्ग दिखा दे, ओह ओ्ओ्ओ्ओह राजा।”
इधर हम इतने बेखबर हो गये थे कि वही व्यक्ति, जिसने हम पर कमेंट पास किया था, कब वहां आ पहुंचा हमें पता ही नहीं चला। “ओह तो साले बुढ़ऊ अकेले अकेले मज़ा लूट रहे हो? साले मादरचोद अशोक, हमारा ख्याल नहीं आया?” उसकी आवाज सुनकर हम चौंक पड़े।
अशोक तुरंत बोला, “अभी नहीं, प्लीज अभी नहीं, पहले पापा को चोदने दे फिर तुम चोद लेना।”
“ठीक है साले बुढ़ौ चोद ले चोद ले, इसके बाद मेरा नंबर है।” कहता हुआ फटाफट कपड़े खोल कर नंगा हो कर अपनी बारी का इंतजार करने लगा। करीब साढ़े पांच फुट ऊंचा गठीले बदन का युवक था वह। उसका लंड मुश्किल से साढ़े छः इंच लम्बा और दो इंच मोटा रहा होगा। जैसे ही मैं झड़ कर हांफते हुए अलग हुआ झट से रमेश मेरी जगह ले लिया और फिर उनके बीच घमासान छिड़ गया।
“साले हरामजादे मादरचोद, मुझे छोड़ कर बुड्ढे का लौड़ा खाने अकेले अकेले आ गया, ले साले मेरा लौड़ा खा” कहते हुए चोदने लगा और ताज्जुब तो मुझे यह देखकर हो रहा था कि मुझसे चुदने के बाद भी अशोक बड़े आनन्द से रमेश से भी चुदवाने में मग्न था। लेकिन रमेश सिर्फ दस मिनट में ही झड़ गया और लुढ़क गया।
“साला चोद चोद के तेरा गांड़ भी ढीला कर दिया तेरे पापा ने, सॉरी पापा जी, फिर भी मज़ा आ गया। तेरी गांड़ चोदने से मन ही नहीं भरता है। लगता है जैसे लंड डाल कर पड़े रहें।” कहते हुए वह उठा और अपने कपड़े पहनने लगा।फिर हम तीनों वापस शादी की भीड़ में आ गए। मुझे अशोक ने बताया कि यह रमेश है, उसकी अॉफिस का सहकर्मी। रमेश के अलावा और भी तीन लोग उसके अॉफिस में थे जिनके साथ उसका समलैंगिक संबंध था। उनमें एक उसके अॉफिस का पचपन साल का बॉस भी था।उस वक्त दो बज रहा था। मैं ने उससे पूछा, “तुझे गांड़ मरवाने का शौक कब से है?”
वह बोला, “जी मुझे यह शौक स्कूल के समय से है।”
मैं आश्चर्यचकित हो गया। पूछ बैठा, “कैसे शुरू हुआ यह सब?”
“ठीक है, बताऊंगा, शादी तो हो चुकी है, विदाई सवेरे है। चलिए कमरे में तब तक हम एक नींद मार लेते हैं, फिर विदाई के बाद, इत्मिनान से मैं पूरी बात बताऊंगा।” इतना कहकर उस कमरे की ओर बढ़ा जहां हम ठहरे हुए थे। हमारे साथ रमेश भी चला आया। सवेरे जब विदाई होने लगी तब किसी ने हमें उठा दिया। विदाई के बाद फिर हम अपने कमरे में आ गए। फ्रेश होकर जब हम बैठे तो मैंने कहा, “हां, अब बताओ”।
“ठीक है तो सुनिए” वह बोलना शुरू किया। हमारे साथ रमेश भी था।
इसकेे बाद की कहानी मैं अगली कड़ी में ले कर आऊंगी।
एक बजे अशोक फिर मेरे पास आया और मुझ से सट कर मेरे लौड़े को धोती के ऊपर से ही सहलाते हुए बोला, “चलिए ना फिर एक बार और हो जाय, अभी तो बहुत देर है बिदाई में।” उसके हाथ लगाते ही मेरा लौड़ा फिर तन कर मेरी धोती फाड़ कर बाहर निकलने को मचलने लगा। मैं और बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसके साथ फिर उसी स्थान पर चला गया जहां हमने चुदाई का खेल खेला था। इस वक्त हम दोनों बिना एक पल गंवाए सीधे नंगे हो कर एक दूसरे से गुंथ गये और फिर एक बार वही चुदाई का दौर चालू हुआ। इस बार तो हम बेहद गंदे तरीके से खुल कर चुदाई में डूब गए थे। एक दूसरे में समा जाने की जी तोड़ धकमपेल में मग्न।
“ओह साली कुतिया, ओह ओ्ओ्ओ्ओह मेरे लंड की रानी, गांडू साले मां के लौड़े तेरी गांड़ का गूदा निकालूं ओह ओ्ओ्ओ्ओह” मैं गंदी गंदी गालियों की बौछार कर रहा था और वह मस्ती में चुदते हुए बोल रहा था, “हाय हाय हरामी मादरचोद पापा, साले कुत्ते, मेरी गांड़ के राज्ज्ज्जा, चोद हरामजादे मेरी गांड़ का भुर्ता बना दीजिए, मझे अपनी रंडी बना लीजिए, कुतिया बना लीजिए, ओह ओ्ओ्ओ्ओह आह मजा दे दे स्वर्ग दिखा दे, ओह ओ्ओ्ओ्ओह राजा।”
इधर हम इतने बेखबर हो गये थे कि वही व्यक्ति, जिसने हम पर कमेंट पास किया था, कब वहां आ पहुंचा हमें पता ही नहीं चला। “ओह तो साले बुढ़ऊ अकेले अकेले मज़ा लूट रहे हो? साले मादरचोद अशोक, हमारा ख्याल नहीं आया?” उसकी आवाज सुनकर हम चौंक पड़े।
अशोक तुरंत बोला, “अभी नहीं, प्लीज अभी नहीं, पहले पापा को चोदने दे फिर तुम चोद लेना।”
“ठीक है साले बुढ़ौ चोद ले चोद ले, इसके बाद मेरा नंबर है।” कहता हुआ फटाफट कपड़े खोल कर नंगा हो कर अपनी बारी का इंतजार करने लगा। करीब साढ़े पांच फुट ऊंचा गठीले बदन का युवक था वह। उसका लंड मुश्किल से साढ़े छः इंच लम्बा और दो इंच मोटा रहा होगा। जैसे ही मैं झड़ कर हांफते हुए अलग हुआ झट से रमेश मेरी जगह ले लिया और फिर उनके बीच घमासान छिड़ गया।
“साले हरामजादे मादरचोद, मुझे छोड़ कर बुड्ढे का लौड़ा खाने अकेले अकेले आ गया, ले साले मेरा लौड़ा खा” कहते हुए चोदने लगा और ताज्जुब तो मुझे यह देखकर हो रहा था कि मुझसे चुदने के बाद भी अशोक बड़े आनन्द से रमेश से भी चुदवाने में मग्न था। लेकिन रमेश सिर्फ दस मिनट में ही झड़ गया और लुढ़क गया।
“साला चोद चोद के तेरा गांड़ भी ढीला कर दिया तेरे पापा ने, सॉरी पापा जी, फिर भी मज़ा आ गया। तेरी गांड़ चोदने से मन ही नहीं भरता है। लगता है जैसे लंड डाल कर पड़े रहें।” कहते हुए वह उठा और अपने कपड़े पहनने लगा।फिर हम तीनों वापस शादी की भीड़ में आ गए। मुझे अशोक ने बताया कि यह रमेश है, उसकी अॉफिस का सहकर्मी। रमेश के अलावा और भी तीन लोग उसके अॉफिस में थे जिनके साथ उसका समलैंगिक संबंध था। उनमें एक उसके अॉफिस का पचपन साल का बॉस भी था।उस वक्त दो बज रहा था। मैं ने उससे पूछा, “तुझे गांड़ मरवाने का शौक कब से है?”
वह बोला, “जी मुझे यह शौक स्कूल के समय से है।”
मैं आश्चर्यचकित हो गया। पूछ बैठा, “कैसे शुरू हुआ यह सब?”
“ठीक है, बताऊंगा, शादी तो हो चुकी है, विदाई सवेरे है। चलिए कमरे में तब तक हम एक नींद मार लेते हैं, फिर विदाई के बाद, इत्मिनान से मैं पूरी बात बताऊंगा।” इतना कहकर उस कमरे की ओर बढ़ा जहां हम ठहरे हुए थे। हमारे साथ रमेश भी चला आया। सवेरे जब विदाई होने लगी तब किसी ने हमें उठा दिया। विदाई के बाद फिर हम अपने कमरे में आ गए। फ्रेश होकर जब हम बैठे तो मैंने कहा, “हां, अब बताओ”।
“ठीक है तो सुनिए” वह बोलना शुरू किया। हमारे साथ रमेश भी था।
इसकेे बाद की कहानी मैं अगली कड़ी में ले कर आऊंगी।