Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 5 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“साले कमीने कुत्ते आखिर मुझे अपनी कुतिया बना ही लिया, बेटी चोद, आह ओ्ह्ह्ह्ह” मैं कुतिया की तरह उनके लौड़े से फंसी बड़ बड़ करती रही। करीब बीस मिनट तक हम कुत्ते कुतिया की तरह आपस में जुड़े रहे उसके बाद उनका लंड सामान्य हुआ और “फच्चाक” की आवाज से मेरी चूत से बाहर निकल आया। हमारी चुदाई को सभी बड़े ही आश्चर्य, अविश्वास और कौतूहल से देख देख मजा लेते रहे। यह कार्यक्रम करीब दो घंटे तक चलता रहा था। सभी मर्दों ने जी भर के मनमाने ढंग से मुझे चोदा और अपने अंदर की ग्लानी से मुक्त हो कर मानो हवा में उड़ने लगे थे। सभी खुश थे और मैं भी बेहद खुश थी कि इन पांच वहशी दरिंदों की दरिंदगी भरी कामक्रीड़ा में शामिल हो कर उनकी सामुहिक भोग्या बन कर अकेले दम पर उनकी काम पिपाशा शांत कर सकी। मुझे अपनी क्षमता पर नाज़ हो रहा था, यह और बात है कि इस तरह मैं बड़ी ही बेशरम, नीच, छिनाल बनती जा रही थी। हम सभी थके मांदे पूरी तरह संतुष्ट निढाल नंग धड़ंग अवस्था में फर्श पर बिछे कालीन पर पड़े हुए थे।

मेरी चूचियों और सीने पर नानाजी और बड़े दादाजी के दांतों के लाल लाल निशान पड़ गये थे। करीम चाचा ने इस बेदर्दी से मेरी चूचियों को मसला था कि अभी भी दर्द कर रहा था जो कि चुदाई की मस्ती में मुझे महसूस नहीं हुआ था। मेरी चूत तो फूल कर किसी चुदी हुई कुतिया की तरह बाहर की ओर उभर आई थी। मेरी गांड़ का तो करीम चाचा ने सच में भुर्ता बना दिया था।

अचानक नानाजी, दादाजी से बोले, “अरे रघु, तूने चोदते समय कामिनी को रंडी की औलाद, कुतिया की औलाद क्यों कहा था?”

“यह सच है। इसकी मां सही में छिनाल ही थी। चाहे अनचाहे वह रंडी बनी। मेरा बेटा बच्चा पैदा करने के काबिल नहीं है यह बात मैं जान गया था, उस डॉक्टर से जिसने उसकी जांच की थी। उसका वीर्य बहुत पतला था। उसके वीर्य में शुक्राणु नहीं के बराबर थे या बहुत कमजोर थे जो लाइलाज था। फिर भी मेरी बहु गर्भवती हुई। मैं चकित था और एक दिन मैं ने अकेले में उससे पूछ ही लिया, “बहु सच बताओ, किसका बच्चा तेरे पेट में पल रहा है?” वह सन्न रह गई।

मैं बोला, “देखो मुझे पता है कि मेरा बेटा बाप नहीं बन सकता है। तूने किसके साथ मुंह काला किया है? मुझे सच बताओ तो मैं कुछ नहीं बोलुंगा, क्योंकि यह हमारे परिवार की इज्जत का सवाल है। तू गर्भवती है, सभी खुश हैं, हमारे खानदान का चिराग आने वाला है इस ख्याल से मैं भी खुश हूं। अब बता कौन है वह आदमी?” डरते डरते और रोते रोते उसने हरिया का नाम लिया। मैं ने उसे कहा कि यह बात और किसी को पता नहीं चलना चाहिए। फिर उसने इस लौंडिया को जन्म दिया। हम थोड़े निराश हुए लेकिन एक संतान होने की खुशी परिवार में थी। मुझे इस बात की तसल्ली थी कि मेरी बहु मां बन सकती है।

मैं ने कामिनी के पैदा होने के एक साल बाद बहु से कहा, “अब हमें खानदान चलाने के लिए एक बेटे की जरूरत है। मैं नहीं चाहता कि तुम फिर से बाहर के किसी मर्द के बच्चे को जन्म दो, जब घर में ही मेरे जैसा मर्द उपलब्ध है तो क्यों नहीं मुझसे ही संभोग करके गर्भधारण करती हो?”

मेरे इस प्रस्ताव से वह हत्प्रभ रह गई फिर बोली, “हाय राम, ससुरजी आप के साथ?”

“हां मेरे साथ। क्यों, मुझमें क्या खराबी है? चुपचाप मेरी बात मान लो वरना ठीक नहीं होगा।” मैं बोला। असल में जब से मुझे पता चला कि बहु लक्ष्मी बाहर के मर्द से चुद चुकी है, मैं उसे अलग ही नजर से देखने लगा था। उसके मस्त जवान नंगे बदन को अपनी बाहों में भर कर चोदने का ख्याल बार बार मेरे दिमाग में घूमता रहता था। मैं ने इसी बहाने से उसे मजबूर किया और चोदा।

यह सब मेरे इस चचेरे बड़े भाई केशव को एक दिन पता चला तो मुझसे बोला, “साले मादरचोद, अकेले अकेले इतने मस्त माल में हाथ साफ कर रहे हो? मुझे भूल गए हरामी? मैं भी बहु को चोदुंगा।” मैं क्या करता। राजी हो गया और बहु को केशव से भी चुदने के लिए मजबूर किया। फिर ठीक नौ महीने बाद इसका भाई पैदा हुआ। इस तरह मैं कुछ हद तक अपनी बहु लक्ष्मी को रंडी बना दिया।”

“ओह दादाजी आप तो बहुत बड़े हरामी निकले। मेरी मां को भी रंडी बना दिया।” मैं बोली।

नानाजी भी बेसाख्ता बोल उठे, “साले मादरचोद मेरी बेटी को इस हरामी हरिया के साथ साथ तुम दोनों भी चोद लिए? बड़े कमीने हो साले हरामियों।”

अगले भाग में आप विस्तार से जानेंगे कि किस तरह से मेरे दादाजी और बड़े दादाजी का मेरी मां के साथ अनैतिक संबंध स्थापित हुआ।

तब तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
 
मेरे प्रिय पाठकों,

पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि दादाजी के जन्मदिन पर पांच पांच बूढ़े मेरे द्वारा रचे गए कामुकता पूर्ण माहौल में वासना के भूखे भेड़ियों में परिवर्तित हो कर वहशी दरिंदों की तरह बेहद घिनौने और निर्ममता पूर्वक मनमाने तरीके से मेरे तन से अपनी अपनी हवस मिटाई और इस दौरान मेरे पूरे बदन को निचोड़ कर रख दिया। वासना का वह भीषण तूफान जो मुझ पर गुजरा, उसका उन नशे में चूर कामुक बूढ़ों को रत्ति भर भी अंदाजा नहीं था और न ही परवाह थी। वे तो अपने अपने ढंग से अपनी हवस मिटा कर मेरे चारों ओर नंग धड़ंग अवस्था में पड़े हुए थे। मैं उनके बीच नुची चुदी दोनों पैर फैलाए छत की ओर चेहरा उठाए आंखें बंद किए पड़ी हुई थी। मेरे उरोजों का उभार उनके दरिंदगी भरे नोच खसोट और मर्दन से सूज कर लाल हो गये थे। मेरे उभारों और सीने पर कई जगह दांतों के काटे जाने के लाल लाल निशान पड़ गये थे। उन भेड़ियों की जानवरों जैसी चुदाई से मेरी योनि सूज कर बड़े से कचौरी की तरह उभर आई थी। मेरी गुदा को सिर्फ करीम चाचा ने अपने लिंग से कूटा मगर अपने विशाल लिंग से ऐसी बेरहमी से कूटा कि मेरी गुदा का द्वार लाल हो कर सूज गया था। इतनी दरिंदगी को मैं कैसे झेल पाई यह सोच कर चकित थी। मुझे अभी भी हल्का हल्का नशा सा अनुभव हो रहा था। मुझे संदेह होने लगा कि कहीं इन दरिंदो ने मेरे शीतल पेय में कोई नशीला पदार्थ तो नहीं मिलाया था।

संदेह निवारण हेतु मैं ने उनसे सीधे पूछा, “किस ने मेरे कोल्डड्रिंक में दारू मिलाया था?”

“हमने” नानाजी ने बेहयाई से उत्तर दिया।

“साले हरामी मादरचोद, मुझे बेवकूफ बना कर शराब पिलाया और चोद चोद कर रंडी बना दिया, साले कुत्ते। मगर अच्छा ही हुआ। अगर मैं नशे में नहीं होती तो इतने मनमाने ढंग से मुझे चोद नहीं पाते तुम लोग। नशे में थी इसलिए मैं भी खूब मज़ा ले सकी। थैंक्स नानाजी। अब चूंकि आप पांच लोगों ने आपसी साझेदारी में मुझे सामूहिक रूप से चोद लिया तो मैं आप पांच लोगों की एकलौती भोग्या हुई, याने एक तरह से आप पांच पांडवों की एकलौती औरत द्रौपदी।” मैं बोली।

“बिल्कुल ठीक बोली हो मेरी रानी। तू हमारी द्रौपदी और हम पांच पांडव तेरे पति” दादाजी खुश हो कर बोले।

हमारे वार्तालाप के बीच ही अचानक नानाजी ने दादाजी की ओर मुखातिब हो कर पूछा, “लेकिन तू पहले ये बता कि कामिनी को चोदते समय इसे रंडी की औलाद क्यों कहा?”

दादाजी बोले, “देखो भाई, सच यही है कि कामिनी की मां रंडी से कम नहीं है। पूरी बात बताऊं?” प्रश्नवाचक दृष्टि से हमें देखा।

“बता भी दो भाई, अब हम सब इस एक ही हमाम में नंगे हैं।” नानाजी बोले।

“ठीक है बताऊंगा, लेकिन तू बुरा मत मानना, क्योंकि वह तेरी बेटी है, कहीं तुझे बुरा न लगे, लेकिन मैं जो बताऊंगा सच बताऊंगा।” दादाजी बोले।

“अरे बेटी वेटी कुछ नहीं। सच है तो सच है। अपनी नतनी को कुतिया बना कर चोदा तो क्या बेटी और क्या बहु। सब के सब पहले औरत हैं, जिनकी चूत है चुदने के लिए। आखिर चूत चाहे लौड़ा। लौड़ा चाहे किसी का भी हो। तू पूरी बात बता मादरचोद” बड़ी बेशर्मी से नानाजी बोले।

“तो ठीक है सुनो। यह सच है। इसकी मां सच में छिनाल ही थी। चाहे या अनचाहे वह रंडी बन गई। मेरा बेटा बच्चा पैदा करने के काबिल नहीं है यह बात मैं जान गया था, उस डॉक्टर से जिसने उसकी जांच की थी। उसका वीर्य बहुत पतला था। उसके वीर्य में शुक्राणु नहीं के बराबर थे या बहुत कमजोर थे जो लाइलाज था। फिर भी मेरी बहु गर्भवती हुई।

मैं चकित था और एक दिन मैं ने अकेले में, जब वह हमारे बेडरूम में सवेरे सवेरे चाय लेकर आई तो उससे पूछ ही लिया, “बहुत सच बताओ बहु, किसका बच्चा तेरे पेट में पल रहा है?” वह सन्न रह गई।

मैं बोला, “देखो मुझे पता है कि मेरा बेटा बाप नहीं बन सकता है। तूने किसके साथ मुंह काला किया है? मुझे सच बताओ तो मैं कुछ नहीं बोलुंगा, क्योंकि यह हमारे परिवार की इज्जत का सवाल है। तू गर्भवती हैं, सभी खुश हैं, हमारे खानदान का चिराग आने वाला है इस ख्याल से। मैं भी खुश हूं। अब बता कौन है वह आदमी?”

डरते डरते और रोते रोते उसने कहा, ” वह आदमी हरिया है बाबूजी”। मैं ने उसे कहा कि यह बात और किसी को पता नहीं चलना चाहिए। फिर उसने इस लौंडिया को जन्म दिया। हम थोड़े निराश जरूर हुए लेकिन एक संतान होने की खुशी परिवार में थी। मुझे इस बात की तसल्ली थी कि मेरी बहु मां बन सकती है।

मैं ने कामिनी के पैदा होने के एक साल बाद बहु से कहा, “अब हमें खानदान चलाने के लिए एक बेटे की जरूरत है। मैं नहीं चाहता कि तुम फिर से बाहर के किसी मर्द के बच्चे को जन्म दो, जब घर में ही मेरे जैसा मर्द उपलब्ध है तो क्यों नहीं मुझसे ही संभोग करके गर्भधारण करती हो?”

मेरे इस खुले प्रस्ताव से वह हत्प्रभ रह गई फिर बोली, “हाय राम, ससुरजी आप के साथ?”

“हां मेरे साथ।“हां मेरे साथ। क्यों, मुझमें क्या खराबी है? चुपचाप मेरी बात मान लो वरना ठीक नहीं होगा।” मैं बोला। असल में जब से मुझे पता चला कि बहु लक्ष्मी बाहर के मर्द से चुद चुकी है, मैं उसे अलग ही नजर से देखने लगा था। उसके मस्त जवान नंगे बदन को अपनी बाहों में भर कर चोदने का ख्याल बार बार मेरे दिमाग में घूमता रहता था। उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां देख कर मेरे मुंह में पानी आ जाता था। जब वह चलती थी तो उसकी मोटी मोटी गांड़ थिरकते हुए मानो मुझे निमंत्रण दे रही हो। मेरा लौड़ा फनफना उठता था। मैं बड़ी मुश्किल से अपने को काबू में रख रहा था। उसको चोदने की बड़ी इच्छा होती थी लेकिन एक तो रिश्ते का ख्याल, समाज का डर और बहु द्वारा इनकार और उसके घृणा का पात्र बनने का भय, इन्हीं कारणों से मेरी हिम्मत नहीं होती थी। लेकिन मुझे अब यह सुनहरा मौका हाथ लग गया था। सौभाग्य से अशोक की मां भी दो हफ्तों के लिए मायके गई हुई थी। मैं तो मौके की ताक में था ही, बहु की कमजोर नस मेरी पकड़ में थी, जिसकी बदौलत मैं बड़ी आसानी से उसे चोद सकता था। मेरी बातों को सुनकर वह नजरें नीचे कर के बड़ी मुश्किल से कहा, “प्लीज बाबूजी मुझे खराब मत कीजिए, मैं आपके सामने हाथ जोड़ती हूं। मुझे माफ़ कर दीजिए।”

अब मेरा धीरज जवाब दे गया और सीधे सीधे शब्दों में उसे बोला, “साली हरामजादी कुतिया, जब तू बाहर के मर्द हरिया से चुदवा रही थी तो खराब नहीं हुई बोल? अब मैं घर का आदमी तुझे चोदना चाहता हूं तो खराब हो जाएगी?”

मेरे बात करना के लहजे से वह सहम गई और मरे हुए आवाज में बोली, “ठीक है बाबूजी, लेकिन प्लीज यह बात मेरे पति या घर के और किसी को पता नहीं लगने दीजियेगा।”

उसकी सहमति से मेरी बांछे खिल गईं और उसी समय मेरा लौड़ा फनफना उठा, मगर किसी तरह अपने को काबू में रखा और बोला, “बहुत बढ़िया, आज जब अशोक (मेरा बेटा) ऑफिस चला जाएगा तो दोपहर को खाना खिला कर कामिनी को सुला देना और मेरे कमरे में आ जाना।”
 
“ठीक है बाबूजी,” कहकर धीरे धीरे मेरे कमरे से बाहर निकली। पीछे से उसकी थरथराती गांड़ को देखते हुए मेरा लौड़ा पैजामा को तंबू बना दिया था। मैं बड़ी बेताबी से दोपहर का इंतजार करने लगा। खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेटे बहु का इंतजार करने लगा। मैं सिर्फ पैजामे में था। ठीक एक बजे मेरे कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई।

मैं समझ गया कि बहु आ गई है, “आ जाओ दरवाजा खुला है” मैं बोला। वह झिझकते हुए कमरे में दाखिल हुई तो मैंने कहा, “दरवाजा भीतर से बंद कर दो बहु और आ जाओ बेड पर।” वह धीरे-धीरे चल कर बिस्तर के पास आई तो मैं बेसब्री से उसे बाहों में भर कर एक झटके में बिस्तर पर गिरा दिया और चूमने लगा। मेरे बेसब्रेपन से वह सहम गई और धीरे से बोली, “प्लीज बाबूजी, मुझ पर रहम कीजिए।”

“अब तू चुप रह बहु। रहम ही तो कर रहा हूं तुझ पर। अब मैं जो करने जा रहा हूं उसमें तू सहयोग कर, मुझे जबरदस्ती करने को मजबूर न कर।” मैं उसे चूमते हुए बोला। वह समझ गई कि मैं उसे चोदे बिना छोड़ने वाला नहीं हूं। चुपचाप आंसू बहाती हुई अपने आप को मेरे हवाले कर दिया। मुझे उसकी आंसुओं की कोई फिक्र नहीं थी। मैं ने उसकी साड़ी का पल्लू हटा कर उसके ब्लाऊज को खोल दिया और यह देख कर और उत्तेजित हो गया कि उसका ब्रा बहुत मुश्किल से उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को ढंका हुआ था। आधी चूचियां तो ब्लाऊज के बाहर ही थीं। मैं ने एक झटके से उसका ब्रा भी उतार फेंका। गजब की चूचियां थीं उसकी। बड़ी बड़ी चूचियां देख कर मेरे मुंह में पानी आ गया। जैसे ही उसकी चूचियों को हाथ लगाया, दंग रह गया, एक बच्ची की मां बनने के बाद भी एकदम टाइट थीं। मैं ने उसकी चूचियों को पहले सहलाया और उत्तेजना में आ कर कस के दबाना शुरू कर दिया।

जोश में आ कर इतनी जोर से दबा दिया कि वह आह आकर बैठी और बोली, ” आह बाबूजी, धीरे दबाईए ना, दर्द कर रहा है।”

“अभी देख तेरा दर्द कैसे गायब हो जाएगा,” बोलते हुए उसकी चूचियों को मुंह लगा कर चूसना शुरु कर दिया। कुछ ही देर में वह शरमाती हुई भी मस्ती में भर कर बेसाख्ता सिसकारियां निकालने लगी। मैं समझ गया कि अब मामला थोड़ा थोड़ा सलटने लगा है। फिर मैंने उसकी साड़ी को पेटीकोट समेत ऊपर उठा दिया। मैं उसकी पैन्टी के ऊपर से ही उसकी चूत को सहलाने लगा। वह अब मस्ती में भरती जा रही थी। वह इस्स्स् इस्स्स् करने लगी थी। कुछ ही देर में मैं ने महसूस किया कि उसकी पैन्टी गीली हो गयी है। मैं ने धीरे धीरे उसकी पैन्टी उतार दी। उसकी चिकनी चूत पर हाथ फेरा तो वह गनगना उठी।

“ओ््ओ्ओ्ओह्ह्ह, आ्आ्आ्आह” उसके मुंह से निकलने लगी। अब मैं भी बहुत गरम हो चुका था। बर्दाश्त से बाहर। मैं उसकी साड़ी पेटीकोट खोल कर पूरी नंगी कर दिया। आह, क्या नजारा था। मस्त मक्खन जैसी चूत के ऊपर हलकी हलकी झांट। गांड़ तो पूछो ही मत। बड़ी बड़ी फूली हुई चिकनी गांड़।

मैं ने झट से पैजामा खोल दिया और उसके ऊपर आ गया, मगर उसने जब टनटनाया हुआ मेरा लौड़ा देखा तो डर गई और बोली, “हाय बाबूजी मर जाऊंगी, प्लीज मुझे छोड़ दीजिए, आपका लौड़ा बहुत बड़ा है।”

मगर अब मैं कहां मानने वाला था, इतना मस्त माल चोदने को मिला था कि पूछो ही मत, “चुप साली रंडी, नखरा मत कर, चुपचाप पैर फैला और चोदने दे,” मैं बोला, मगर वह डर के मारे अपनी जांघों को सटाकर रखी थी। मुझे गुस्सा आ गया और मैं ने जबरदस्ती उसकी चिकनी जांघों को फैला दिया और अपने लौड़े को उसकी चूत पर टिका दिया। वह नहीं नहीं करती मेरे नीचे छटपटाती रही मगर मैं ने उसकी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया और सीधे एक जोरदार धक्का लगाया, वह किसी हलाल होती बकरी की तरह चीखने के लिए मुंह खोला ही था कि मैं उसके मुंह को कस कर दबा दिया। उसकी आंखें फटी की फटी रह गई, मेरा लौड़ा एक ही झटके में उसकी टाईट चूत को चीरता हुआ आधा घुस गया। मैं ने दुबारा एक जोरदार धक्का लगाया और पूरा लंड उसकी चूत के अंदर ठेल दिया। वह छटपटा कर रह गई। कुछ देर तक उसी तरह उसे दबा कर रखा, जब उसका छटपटाना बंद हुआ तब उसके मुंह से हाथ हटाया। उसकी आंखों से आंसू बह रहा था। उसकी आंसुओं की परवाह किए बगैर मैं ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर चूमना चालू किया और धीरे धीरे लंड बाहर निकाला और दुबारा ठोंका, इसी तरह आठ दस बार लंड अंदर बाहर करने के बाद लक्ष्मी का रोना बंद हुआ और फिर वह मस्ती में भर गई और शरमाते हुए नीचे से धीरे धीरे अपनी चूतड़ उछालने लगी।

“अब आ रहा है ना मज़ा साली हरामजादी, इसी के लिए इतना रोना गाना कर रही थी बुर चोदी। अब देख कितना मज़ा आ रहा है।” मैं चोदते हुए बोला।

 
अब वह अपने दोनों पैरों को उठा कर मेरे कमर पर चढ़ा दी और अपनी चूत को खोल कर परोस दी और शरमाते हुए वह अब मस्ती में डूब कर बोल रही थी, “आह ओह ओह ओ्ओ्ओ्ओह, हां बाबूजी, अब बहुत मजा आ रहा है, आह आह ओह ओह, ससुरजी आप बड़े बदमाश हो। बड़े माहिर हो औरत फंसाने में। मुझे आखिर फंसा ही लिया अपने जाल में। आह ओह ओह ओ्ओ्ओ्ओह, आपका लौड़ा बहुत बड़ा है मगर आपका चोदना बड़ा अच्छा लग रहा है राजा। हाय राम मैं यह क्या बोल रही हूं।” शरमा कर आंखें बंद कर ली उसने। मुझे उसकी यह अदा बहुत पसंद आई।

मैं दुगुने उत्साह और जोश से दनादन चोदने लगा, “मेरी प्यारी बहु, साली कुतिया, आज के बाद तू मेरे लंड की रानी बन गई, तेरी मस्त चूची, मस्त टाईट चूत, मस्त चिकनी गांड़, मेरी तो किस्मत खुल गई।” मैं बोला।

अब वह पूरी खुल चुकी थी, शर्म हया कहां छू मंतर हो गया था पता नहीं, मस्ती में भर कर एकदम रंडी की तरह गन्दी गन्दी गालियां निकालने लगी थी, “मादरचोद बुढ़ऊ, मेरी बुर के रसिया, बहुचोद हरामी, लौड़े को तेरी बहु की चूत में डाल, चोद राजा चोद अपनी बहु को रंडी बना दे, लंड की रानी बना दे आह आह आह आह ओह।”

“हां रे कुतिया तुझे अपनी लंड की रानी बना लूंगा चूतमरानी, मेरे बच्चों की मां बना दूंगा, आज से तू मेरा ही लौड़ा खोजेगी रंडी, मजा आ रहा है।” बोलता हुआ उसे रगड़ रगड़ कर चोदा और करीब आधे घंटे बाद मेरा लंड पानी छोड़ने लगा, “आ्आ्आ्आ्आ स्स्स्स्साली्ई्ई्ई्ई कुत्त्त्त्त्ती” “हांआआआआ ओ्ओ्ओ्ओ्ओ ह राज्ज्ज्ज्ज्जाआ” कहती हुई वह भी छिपकली की तरह मुझ से चिपक कर झड़ने लगी। पूरा खल्लास होने के बाद वहीं बिस्तर पर हम पसर गये।

मैं बोला, “कैसा लगा बहु?”

“बहुत अच्छा लगा बाबूजी। आप बहुत मस्त चुदक्कड़ मर्द हैं। आपका लौड़ा भी बहुत जानदार है। अशोक का लंड तो सिर्फ साढ़े चार इंच लम्बा है और पतला है। मैं आपकी दीवानी हो गई राजा” कहते हुए मेरे सीने पर अपना सिर रख दी। उसी समय करीब दस मिनट बाद मैंने उसे फिर एक बार चोदा, इस बार उसे कुतिया की तरह पीछे से। वह बड़े मजे ले कर चुदवाई। उस दिन के बाद तो जब भी जहां कहीं मौका मिलता था मैं उसको पकड़ के चोद लेता था, कभी बाथरूम में, कभी किचन में खड़े खड़े और कभी दिनदहाड़े ड्राइंगरुम में। लक्ष्मी भी बहुत खुश थी। यह सिलसिला बिंदास चल रहा था कि एक दिन ऐसे ही ड्राइंगरुम में मैं चोदने में मशगूल था तभी यह केशव आ धमका, हम अबतक एक हफ्ते के अंदर बिल्कुल निर्भय होकर खुल्लमखुल्ला चुदाई करने लगे थे और तनिक लापरवाह भी हो गये थे, उस दिन करीब दो बजे दिन में सामने का दरवाजा सिर्फ उढ़का हुआ था, बिना खटखटाए सीधा अंदर आ गया और हमें इस हाल में देख लिया। कभी दरवाजा खटखटाना या कॉलबेल बजाना शुरू से उसकी आदत नहीं थी।

“रघु के बच्चे मादरचोद, यह क्या हो रहा है?” वह आंखें फाड़कर देखते हुए बोला। हम रंगे हाथ पकड़े गए थे। लक्ष्मी की हालत खस्ता हो गई थी। हम तो ठहरे एक ही थैली के चट्टे बट्टे, लक्ष्मी को अपने नीचे दबाए हुए उसी नंग धड़ंग अवस्था में मैं लापरवाही से बोल उठा, “देख नहीं रहे हो क्या हो रहा है? अपनी बहु को चोद रहा हूं साले।”

“हाय दैया, छोड़िए मुझे बेशरम, इनके सामने तो छोड़िए,” लक्ष्मी घबराकर बोली।

“तू चिंता मत कर बहु, बिना पूरा चोदे मैं तुझे छोड़ुंगा नहीं। इसके सामने शरमाओ मत। यह मादरचोद भी कम नहीं है। केशू, तू चुपचाप सोफे पर बैठ कर देख।” कह कर मैं धकाधक चोदने लगा और पांच मिनट बाद खल्लास हो गया, बहु भी समझ गयी थी कि ये दोनों एक नंबर के हरामी हैं, चुदती हुई मेरे ही साथ झड़ गई।

जैसे ही हमारी चुदाई खत्म हूई, बहु अपने कपड़ों की तरफ भागी, मगर यह क्या, इतनी देर में केशव भाई भी कपड़े उतार कर नंगे हो गए थे और बहु को दबोच लिया, “भागती कहां है बहु, अभी मेहमान की खातिरदारी नहीं करोगी क्या?”

लक्ष्मी का बुरा हाल था। छः फुट लंबे, काले कलूटे, बदसूरत, तोंदियल, पान खा खा कर काले दांतों को निपोरते हुए अजनबी की बांहों में छटपटा कर रह गई। “मुझे छोड़ दीजिए प्लीज़।” वह बोल उठी।

“छोड़ कैसे दें रानी। आज तक हम दोनों मिल बांट कर खाते आए हैं। आज कैसे छोड़ दूं। इतना मस्त माल साले रघु अकेले अकेले कैसे खा रहा था चूतिए? एक बार भी मेरा ख्याल नहीं आया?” केशव बोला।

“देख मैं तुझे बताने ही वाला था। पर पहले इसे राजी करना जरूरी था ना। अब यह राजी खुशी मुझसे चुदने को तैयार हो गई है। अब ठीक मौके पर तू आ ही गया है, अब बताने की क्या जरूरत। चल तू भी चोद ले। बहु, केशव को मना मत करो। अपना ही भाई है, जैसा मैं, वैसा ही यह है।” मैं लक्ष्मी को बोला।

“आपलोग बड़े जंगली हो। बाबूजी पहले अपने मुझे फंसाया और अब इनसे भी चुदने को बोल रहे हैं। आपको शर्म नहीं आती है।” लक्ष्मी केशव की बांहों में छटपटाती बोली।

 
“हम लोगों को शरम आती है लेकिन जब कोई औरत को चोदने का मौका मिलता है तो शर्म चली जाती है। अब भाषण मत दे। मेहमान की आवभगत कर।” मैं बेशर्मी से बोला।

केशव काफी दूर से आया था, इसलिए पसीने से लथपथ था। नंगा जानवर लग रहा था। शरीर से पसीने की बदबू आ रही थी इसलिए लक्ष्मी घिना भी रही थी। वह जंगली जानवर की तरह जबरदस्ती लक्ष्मी को फर्श पर गिरा कर उसके ऊपर चढ़ गया और अपने गन्दे होंठों से चूमने लगा। लक्ष्मी तब और ज्यादा छटपटाने लगी जब उसने अपने हाथ की एक उंगली उसकी गांड़ में घुसा दी।

“अहा कितना मस्त गांड़ है रानी तेरा। मुझे तेरी गांड़ बहुत पसंद है। मैं तो तेरी गांड़ चोदुंगा। तेरी शादी के समय से ही तेरी गांड़ देख कर मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता था। आज मौका मिला है।” वह उसकी गांड़ में उंगली घुसा कर अन्दर बाहर करते हुए बोला।

“आह ओह नहीं नहीं प्लीज मेरी गांड़ में नहीं” वह रोती हुई बोली।

मैं जानता था कि केशव गांड़ का रसिया है। जहां मस्त गांड़ देखा कि उसके मुंह में पानी आ जाता था। इसने तो चिकने लड़कों को भी नहीं छोड़ा। बहला फुसलाकर लड़कों की गांड़ भी चोद लेता था। जहां कोई चिकना लड़का दिखा कि इसका लौड़ा फनफना उठता था। यहां तो इतना अद्भुत गांड़ फोकट में मिल गया था, कैसे छोड़ता भला।

“चुप रंडी कहीं की, चुपचाप अपनी गांड़ चोदने दे।” वह गुर्राया। लक्ष्मी समझ गई कि उसके बचने का कोई रास्ता नहीं है, अतः शांत हो कर अपनी गांड़ में होने वाले हमले के लिए सांस रोक कर तैयार हो गई। केशव ने उसे कुतिया की तरह झुका कर अपने लंड में थूक लगाया और उसकी गांड़ में एक ही झटके में सटाक से पूरा लंड पेल दिया जिसे वह अपनी उंगली से चोद कर ढीला कर चुका था।

“आ्आ्आ्आ्आ मर गई मेरी अम्म्म्म्आ्आ्आ्आह्ह्ह् ््म्म्््म््म्््म््म्म््म््म्््म््म्म्म्मा, फट गई मेरी गांड़,” वह चीख पड़ी।

मैं घबरा गया कि कहीं कामिनी उठ न जाय। लेकिन किस्मत से वह उठी नहीं, सोती रही।

“चुप बुर चोदी, अभी देख कितना मज़ा आएगा” कहते हुए उसने उसकी चूचियों को पीछे से पकड़ कर दबाना शुरू किया और दनादन अपना लौड़ा उसकी गांड़ में ठोंकना चालू किया। थोड़ी ही देर में लक्ष्मी मस्ती में भर कर गांड़ उठा उठा कर चुदवाने लगी।

“आह राजा ओह रसिया, चोद मेरी गांड़, आह हरामी के पिल्ले बेटी चोद,” उसी तरह बड़बड़ाती हुई मस्ती में डूब कर अपनी गांड़ चुदवाने लगी।

“आह रानी ओह रंडी कुतिया साली हरामजादी गांड़ मरानी, अब आ रहा है ना मज़ा, ओह मस्त गांड है रे तेरा।” बोलता जा रहा था।

“हां साले कुत्ते, मुझे कुतिया बना कर खूब मज़ा दे रहे हो ओह ओह आह आह” वह भी बोले जा रही थी।

करीब पच्चीस मिनट बाद केशव ने अपना लौड़ा रस उसकी गांड़ में भरना चालू किया। पूरा खल्लास हो कर दोनों वहीं लस्त पस्त फर्श पर लुढ़क गए। उस दिन के बाद तो हम दोनों की चांदी हो गई। दोनों ने उसे खूब चोदा। केशव दो दिन के लिए आया था लेकिन एक हफ्ता तक रुका। फिर लक्ष्मी की सास आ गयी तो हम थोड़ा सावधान हो गये और बड़ी होशियारी से मौका खोज कर चोदने लगे। मैं चाहता था कि लक्ष्मी फिर से मां बने और बेटे को जन्म दे। भगवान ने हमारी प्रार्थना सुन ली और उसने एक बेटे को जन्म दिया। (बेटा तो हुआ मगर बेहद घटिया, जलील और कमीना। उसके कमीने पन की कथा मैं बाद में बताऊंगी)

“ओह दादाजी आप तो बहुत बड़े हरामी निकले। मेरी मां को भी रंडी बना दिया।” मैं बोली।

नानाजी भी बेसाख्ता बोल उठे, “साले मादरचोद मेरी बेटी को इस हरामी हरिया के साथ साथ तुम दोनों भी चोद लिए? बड़े कमीने हो साले हरामियों। कोई बात नहीं साले मादरचोद, सब चलेगा, हम सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। अब इसी कामिनी को देख लो। कौन है यह? जो भी थी पहले थी, मगर अब तो हमारी चूत मरानी रानी है ना। मेरी तो कुतिया है, बाकी सब की क्या है नहीं मालूम।”

“मैं आप सबकी द्रौपदी हूं साले कुत्ते। द्रौपदी तो एक एक करके चुदवाती थी। आप सभी ने तो एक साथ चोद कर मुझे द्रौपदी से भी महान बना दिया। आप सभी लोग आज से मेरे पांडव पति हो।” मैं उन नंगे भुजंगे वासना के पुजारियों के बीच नंगी ही लेटे लेटे बोल पड़ी।

“हां हां, तू हमारी पत्नी द्रौपदी और हम आज से तेरे पांच पति, पांडव हैं,” मेरे नंगे जिस्म पर हाथ फेरते हुए सब एक स्वर में बोल उठे।

इसके बाद की घटनाएं मैं अगले भागों में बताऊंगा। अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराते रहिएगा।
 
प्रिय पाठकों, पिछले भाग में अपने पढ़ा कि किस तरह मेरे दादाजी और बड़े दादाजी ने मेरी मां को अपनी हवस का शिकार बनाया और मनमाने ढंग से मेरी मां को भोगा। अपनी गंदी सोच को कार्यरूप में परिणत कर दिया और रिश्ते की मर्यादा को तार तार करते हुए मेरी मां को एक बेटे की मां बना डाला। मेरी मां भी उनकी वासना की आग में झुलस कर कामुकता पूर्ण खेल में खुल कर भाग लेने लगी और रिश्तों की मर्यादा भूल गयी। पापा की कमजोरी भी उसकी एक वजह थी, इसलिए मेरी मां को क्या दोष दूं। खैर जो हुआ सो हुआ मगर इस तरह कामलोलुप मर्दों की भोग्या बन कर मेरी मां को पराए मर्दों का चस्का लग चुका था। हरिया, मेरे पापा, दादाजी और बड़े दादाजी के विभिन्नता भरे नित नवीन तरह की कामुकतापूर्ण खेल से मेरी मां के अंदर वासना का समुंदर हिलोरें लेने लगा जिसका पूरा फायदा मेरे दादाजी और बड़े दादाजी ने जी भर के उठाया। मेरे छोटे भाई के पैदा होने के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति की खुशी में घर वाले जश्न मनाने लगे। इधर मेरी मां के साथ उनका अनैतिक संबंध ज्यों का त्यों चलता ही रहा। मेरा भाई रितेश ज्यों ज्यों वह बड़ा होता गया वह मां बाप के अत्यथिक लाड़ प्यार के कारण बिगड़ता चला गया। आवारा साथियों के सोहबत में वह 15 साल की उम्र से ही नशे का आदी हो गया। उसके आवारा दोस्त अक्सर हमारे घर आया जाया करते थे। उनकी कुसंगति में पड़ कर रितेश छिप छिपकर सिगरेट पीने लगा था। उसे अश्लील साहित्य और अश्लील फिल्मों का चस्का लग गया था। मैं ने मम्मी पापा से इसकी शिकायत भी की थी लेकिन उनकेे कानों में जूं तक नहीं रेंगी, डांटना तो दूर, एक शब्द भी उन्होंने उसे नहीं कहा, नतीजा यह हुआ उसका मन और बढ़ गया, स्कूल में बदमाशी करना, मारपीट करना, लड़कियों से छेड़खानी करना, क्लास से भागना उसकी आदत में शुमार हो चुका था। कहने का तात्पर्य यह है कि वह धीरे-धीरे हाथ से निकलता चला गया। मैं भी समझ गई कि कुछ कहना सुनना व्यर्थ है, अतः सिर्फ अपने काम से काम रखने लगी। उसके आवारा दोस्तों की गंदी नजर मुझ पर भी पड़ती थी किंतु किसी की हिम्मत नहीं हुई मुझसे कुछ कहने की क्योंकि सब जानते थे कि मैं किस तरह की लड़की हूं। सबकी नजरों में निहायत ही शरीफ मगर मुझसे ग़लत हरकत करने वालों के लिए उतनी ही कठोर थी जिसका एक दो नमूना मैंने दिखाया भी था।

खैर उसके बारे में विस्तार से बाद में बताऊंगी। फिलहाल तो उसी तरह नंगे पड़े दादाजी के मुख से मेरी मां की छिनाल पन की बातें सुनने में हम सब लीन थे। उनकी बातें सुन कर मुझे बीती बातें याद आने लगी। जब से मैं ने होश संभाला तब से कई बार मैंने अपनी मां को दादाजी के कमरे से अस्त व्यस्त हालत में निकलते देखा था किन्तु कभी मैं ने उनके बीच इस तरह के संबंध की कल्पना भी नहीं की थी। कभी दादाजी को किचन से निकलने के बाद मां के लाल चेहरे को किचन में देखा था। इधर दादाजी बता रहे थे, “लक्ष्मी को अब अलग अलग लंड का मज़ा मिल गया था। उसे भी जब मौका मिलता था आ जाती थी हमारे कमरे में और सीधे मेरा लंड पकड़ लेती थी। बीच बीच में हफ्ते दो हफ्ते में जब केशव आ जाता था तो लक्ष्मी लाज शरम छोड़ कर मेरे सामने ही इसका लंड पकड़ लेती थी और बोलती थी, “बाबूजी, इतने दिनों बाद आए हैं, मेहमान नवाजी का मौका दीजिए ना।” केशव ठहरा एक नंबर का चुदक्कड़, “वाह बिटिया वाह, यह हुई न बात, तुझे तो देखते ही मेरा लौड़ा फनफना जाता है। आजा मेरी मेहमान नवाजी कर।” फिर शुरू होता था धमाधम चुदाई। उसकी हालत ऐसी थी कि जब हममें से कोई नहीं मिलता था तो किसी से भी चुदवा लेती थी। इसका पता मुझे तब चला जब एक हफ्ते के लिए मैं गांव गया था और अचानक दोपहर में वापस आया तो दरवाजा के बाहर एक जोड़ा फटा पुराना मैला कुचैला चप्पल पड़ा था। दरवाजा अंदर से बंद था। मैं ने दरवाजा खटखटाया तो काफी देर बाद दरवाजा खुला और दरवाजे पर अस्त व्यस्त हालत में लक्ष्मी खड़ी थी बाल बिखरे हुए थे। वह सिर्फ एक नाईटी पहने हुए थी। साफ पता चल रहा था कि अंदर कुछ नहीं पहनी हुई थी। “अरे बाबूजी आप?” अपने होश संभालती हुई घबराए आवाज में बोली।

मुझे संदेह हुआ, मैं ने चारों तरफ नजर घुमाया, कोई नहीं दिखा। “इतनी देर क्यों लगा दरवाजा खोलने में बहु?” मैं पूछा।

“जी वो मैं बाथरूम में थी। आप बैठिए ना। मैं अभी पानी लाई,” कहते हुए किचन में गई। मैं तुरंत बाथरूम गया, बाथरूम सूखा था। फिर मैं हर कमरे में झांका, कहीं कोई नहीं था। जैसे ही मैंने बेडरूम में बेड के नीचे देखा तो भौंचक रह गया। बेड के नीचे इस इलाके का काला कलूटा पागल भिखारी नंगे बदन, सिर्फ फटा हुआ हाफ पैंट पहना हुआ छिपा हुआ था।
 
“बाहर निकल साले हरामी” मैं चीख पड़ा। इधर डरते डरते वह भिखारी बाहर निकला। उस दुबले पतले, करीब तीस पैंतीस साल का, साढ़े चार फुटिया नाटे गंदे भिखारी को देख कर मैं ताज्जुब कर रहा था कि भगवान जाने इस पागल भिखारी में लक्ष्मी ने क्या देखा था, जबकि लक्ष्मी अच्छी खासी साढ़े पांच फुट की बेहद सुंदर, गोरी और सेक्सी औरत थी। बिखरे गंदे खिचड़ी बाल और बेतरतीब झाड़ियों की तरह लंबी दाढ़ी के साथ पिचके गाल, अपने काले रंग के अनुसार उस पागल भिखारी का नाम कालू था। उसका हाफ पैंट सामने से तंबू बना हुआ था। एक तरफ उसका मैला कुचैला फटा पुराना बनियान फर्श पर पड़ा हुआ था। साफ साफ पता चल चल रहा था कि यहां चुदाई का कार्यक्रम शुरू होने वाला था।

“बहु, जल्दी इधर आ साली कुतिया।” मैं ने बहु को आवाज दी। लक्ष्मी डरते डरते बेडरूम में आई। “साली हरामजादी बुर चोदी, और कोई नहीं मिला चुदवाने के लिए। यही पागल भिखारी मिला?” मैं गुस्से से बोला।

रंगे हाथ पकड़ाने के बावजूद वह बड़ी बेशरमी से बोली, “और क्या करती मैं? आप लोगों ने ही तो मुझे रंडी बनाया है। मुझे लंड का चस्का लगा दिया। आप लोगों ने ही तो मेरी आदत खराब की है। अब आप लोग नहीं रहिएगा तो मैं अपने शरीर की गर्मी का क्या करूं, बताईए?”

मुझे उस पर तरस आया और बोला, “ठीक है बहु ठीक है, मगर तुझे यही पागल मिला था?”

मेरे नरम पड़ने पर वह थोड़ी हिम्मत से बोली, “बाबूजी, मुझे लगा कि इस पागल के साथ ये सब करना ज्यादा सुरक्षित है। यह किसी से कुछ बोलेगा भी नहीं।”

“तू तो बहुत चालाक हो बहु। पर तूने इसे फंसाया कैसे?” अब मैंने गुस्सा थूक कर मजा लेते हुए पूछा।

थोड़ी झिझकते हुए वह बोलने लगी, “बाबूजी यह रोज इधर भीख मांगने आता था। दिमागी तौर से यह पागल है मगर खतरनाक नहीं। आज तक इसने किसी को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया है। यह दरवाजे पर आकर बैठ जाता था और रोटी या खाने की कोई भी चीज मिलने पर यहीं बैठ कर खाता था और चला जाता था। इधर आप लोग नहीं रहने के कारण मैं तड़प रही थी और बड़ी परेशान थी कि अपने शरीर की गर्मी कैसे शांत करूं। आज जब वह रोज की तरह दरवाजे पर आया और आवाज लगाया, “मां जी कुछ खाने को मिलेगा?” मेरे दिमाग में एक आईडिया आया और मैं जोर से बोली, “थोड़ा रुको मैं अभी आती हूं,” और तुरंत अपना ब्रा और पैंटी उतार के नाईटी पहन ली। नाईटी के ऊपर के दो बटन खोल दी ताकि थोड़ा सा झुकने पर ही सामने से मेरी चूचियां नंगी हो कर दिखने लगे। इसी तरह कमर से नीचे के बटन भी खोल दी कि थोड़ा सा पैर फैलाने पर सामने से मेरी चूत भी दिखाई दे। फिर मैं दरवाजा खोल कर उसे अंदर आने को बोली। वह अंदर आया तो मैंने उसे बैठने के लिए कहा। जब वह बैठ रहा था तो मैंने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। वह चुपचाप नीचे फर्श पर बैठ गया। जब वह बैठा तो मेरी नज़र उसके पैंट से झांकते लंड पर पड़ी जिसे देखते ही मैं गनगना उठी। पैंट के अन्दर यह कुछ नहीं पहना था और इसका लंड स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। मैं रोटी ला कर उसके सामने प्लेट में डालने के लिए झुकी तो सामने से खुली नाईटी से झांकते मेरी चूचियों पर कालू की नज़रें पड़ीं और वहीं जम गई। मैं ने महसूस किया कि इसका लंड खड़ा होने लगा है। मैं अब अपने पांव थोड़ा फैलाई तो मेरी चूत के सामने से नाईटी का पर्दा हट गया और मेरी चूत भी सामने से साफ साफ दिखाई देने लगी। जब प्लेट में रोटियां देखने के लिए सिर झुका रहा था तो इसकी नजर मेरी खुली चूत पर पड़ी, इसकी नजरें मेरी चूत पर ही जम गयीं। मैं इसी के चेहरे की प्रतिक्रिया देख रही थी। इसका आधा तना लंड और तनने लगा। मैं समझ गई कि इसे पटाने में कोई समस्या नहीं होगी। फिर इसने सिर उठाकर मुझे देखा तो मैं मुस्कुरा उठी। पता नहीं इसने कभी किसी को चोदा था या नहीं। जितनी देर यह खाता रहा, मैं इसे अपनी चूचियां और चूत दिखाती रही।

खाना खाने के बाद मैं ने इसके हाथ धुुलवाया और पूछा “और कुछ चाहिए?” यह असमंजस में चुपचाप मुझे देख रहा था। मैं ने इसका हाथ पकड़ा और बोली, “चलो अंदर, मैं तुम्हें कुछ और भी दूूंगी।” यह यंत्र चालित पालतू कुत्ते की तरह मेरे साथ बेडरूम में आ गया। “बेेड पर आराम से बैठ जाओ।” मैं ने कहा। यह आराम से बेड पर बैठ गया। मैं भी आ कर इससे सटकर बैठ गई। पता नहीं कितने दिनों से नहाया नहीं था, इसके गंदे शरीर से पसीने की दुर्गन्ध भी आ रही थी मगर मुझे उसकी परवाह नहीं थी, मेरा उद्देश्य तो सिर्फ एक ही था, उसके लंड से अपनी चूत की आग बुझाना। उस समय इसके शरीर की बदबू भी मुझे अच्छी लग रही थी। मैं ने इसके हाथों को अपनी चूचियों पर रखा तो यह अपने आप मेरी चूचियों को सहलाने और दबाने लगा। नाईटी के ऊपर वाले बटन तो खुले ही थे, जिस कारण वह आसानी से हाथ घुसा कर मेरी चूचियों को मसलने लगा। मैं उसके फटे हुए हाफ पैंट में हाथ डाल कर उसके लंड को सहलाने लगी,
 
तभी आपने दरवाजा खटखटा कर पूरा मजा किरकिरा कर दिया। मैं झट से कालू को बिस्तर के नीचे घुसा कर दरवाजा खोलने आ गई।”

“मतलब तू इससे चुदने को तैयार हो चुकी थी। चलो कोई बात नहीं। अब जब इतना कुछ हो चुका है तो बाकी काम भी कर ही लो। बेचारे कालू को क्यों तरसता छोड़ोगी। जहां से मैंने डिस्टर्ब किया वहीं से शुरू हो जा, मैं बैठ कर पहले देख देख कर मजा लूंगा फिर तुझे चोदूंगा।” मैं ने कहा और बेडरूम के कोने में रखी कुर्सी पर बैठ गया। मेरी ओर से हरी झंडी मिलते ही लक्ष्मी खुश हो गई और झट से कालू के साथ बिस्तर पर बैठ गयी। कालू भी खुश हो गया और दोनों हाथों से लक्ष्मी की नाईटी में हाथ डालकर चूचियों को पकड़कर दबाना शुरू किया। लक्ष्मी भी उसके पैंट में हाथ घुसा कर उसके लंड को सहलाने लगी। धीरे धीरे कालू का लंड टाईट होने लगा और उसका सोया हुआ लंड तनतना कर खड़ा हो गया। ऐसा लगता था कि कालू ने किसी औरत को आज तक नहीं चोदा था, इसलिए उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ, वह बेचैनी से कसमसा रहा था। इतना तो जरूर था कि उसके लंड को सहलाने से उसे बहुत मज़ा आ रहा था, मगर उसके आगे क्या? वह जोश में आ कर अचानक लक्ष्मी की चूचियों को जोर जोर से दबाने लगा। लक्ष्मी आह ओह कर रही थी। कालू भी आह आह कर रहा था। लक्ष्मी पागल हो रही थी, उसने अपनी नाईटी पूरी तरह खोल कर फेंक दी। ऐसी नंगी औरत कालू ने पहले कभी नहीं देखा था। वह घूर घूर कर उसकी पनियायी चूत को देखने लगा। इधर गरमाई हुई लक्ष्मी बेकरारी से उसकी पैंट को खोलने लगी। कालू की कुछ समझ में नहीं आ रहा था लेकिन वह भी बेचैनी से अपनी पैंट से आजाद होने के लिए मचल उठा। जैसे ही कालू का पैंट खुला, लक्ष्मी का होश गुम हो गया। मैं भी चकित रह गया। कम से कम दस इंच लम्बा और चार इंच मोटा लंड काले नाग की तरह फनफना कर खड़ा था। मैं समझ गया कि आज लक्ष्मी की चूत का बाजा बजने वाला है। लक्ष्मी हड़बड़ा कर बिस्तर से उठ गई, “हाय राम इतना बड़ा लंड, नहीं नहीं मैं नहीं चुदवाऊंगी। ये तो मेरी चूत फ़ाड़ देगा।”

मगर मैं गुस्से से बोला, “साली हरामजादी, चुदवाने के लिए कालू को तू खुद लाई है और अब इसका लंड देख कर तेरी गांड़ फट रही है। कालू, छोड़ना मत इस कुतिया को, फाड़ दे इस बुर चोदी की बुर।” मैं उठा और लक्ष्मी को बिस्तर पर पटक दिया।

“नहीं नहीं छोड़ दीजिए मुझको प्लीज।” वह रोने गिड़गिड़ाने लगी।

“चुप साली चूत मरानी कुत्ती, अब देख क्या रहा है मादरचोद। चल इसकी चूत का बाजा बजाना शुरू कर।” मैं गुस्से में बोला। लेकिन कालू को क्या पता था कि चुदाई कैसे की जाती है।

मैं जबरदस्ती लक्ष्मी के पैरों को फैला कर उसकी चूत दिखा कर कालू से बोला, “ये है इस कुतिया की चूत और ये है तेरा लंड,” उसके लंड को पकड़ कर लक्ष्मी के ऊपर खींचा। “अब अपना लौड़ा इसकी चूत में घुसा” कहते हुए उसका लंड लक्ष्मी की चूत के मुहाने पर रखा। कालू लक्ष्मी के ऊपर चढ़ चुका था और लक्ष्मी की चूत में लंड घुसाने की कोशिश करने लगा। उसका सुपाड़ा छेद में नहीं घुस रहा था, इधर उधर फिसल रहा था। फिर अचानक ही उसके लंड का सुपाड़ा ठीक जगह पर टिका और जैसे जैसे कालू दबाव बढ़ाने लगा, लक्ष्मी की चूत फाड़ता हुआ उसका गधे जैसा लंड अंदर घुसने लगा। लक्ष्मी ने दर्द के मारे चीखने के लिए मुंह खोला तो मैं ने उसका मुंह बंद कर दिया।

“चीखना मत हरामजादी, वरना टेंटुआ दबा दूंगा।” उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उधर कालू को तो मानो स्वर्ग का द्वार मिल गया था। धीरे धीरे पूरा लंड पेल दिया और फिर तो वह जानवर बन गया। उसे चूत का स्वाद मिल गया था, ठीक उस बेजुबान कुत्ते की तरह जिसके लपलपाते लौड़े को किसी कुतिया की चूत मिल गई हो। फिर तो वह लक्ष्मी की गांड़ के नीचे हाथ डाल कर कुत्ते की स्पीड से दनादन चोदना चालू कर दिया। कुछ ही देर में जब दर्द कम हुआ तो लक्ष्मी भी नीचे से गांड़ उठा उठा कर मज़े से चुदवाने लगी और रोना गाना बंद कर के मस्ती में भर कर बोलने लगी, “आह कालू, ओह राजा, चोद राजा, आह्ह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह।” कालू बिना कुछ बोले कुत्ते की तरह घपाघप मशीन की तरह चोदने में लगा रहा। करीब दस मिनट में ही लक्ष्मी झड़ने लगी, “आ्वा्हा्आ्आ्आह्ह्ह” करते हुए निढाल हो गई, मगर कालू कहां छोड़ने वाला था, जैसे ही वह निढाल होकर पलटने लगी, उसने उसके पलटते ही पीछे से पकड़ लिया और चूत के छेद का पता तो चल ही गया था, मजा भी जान गया था, पीछे से ही कुत्ते की तरह चढ़ कर जो चुदाई शुरू किया कि लक्ष्मी हाय हाय कर उठी और फिर से कुतिया की तरह गांड़ उठा उठा कर चुदवाने लगी। कालू तो मानो जंगली जानवर ही बन गया था। लक्ष्मी के गालों को अपने दांतों से काट काट कर पहले ही लाल कर दिया था, पीछे से चूचियों को निचोड़ने लगा। ताज्जुब की बात थी कि लक्ष्मी पागलों की तरह इस सबका मज़ा ले रही थी।
 
करीब चालीस मिनट तक पटक पटक कर कुत्ते की तरह चोदने के बाद जिंदगी में पहली बार खलास होने लगा ओर ऐसा ज़ोर से लक्ष्मी को जकड़ लिया मानो उसके अंदर घुस ही जाएगा। एकदम किसी जानवर की तरह वह डकारते हुए पूरा एक मिनट तक अपने लंड का रस उसकी चूत में डालता रहा। इस पूरी चुदाई के दौरान लक्ष्मी कुल तीन बार झड़ी। लक्ष्मी का तो पूरा शरीर निचोड़ डाला था। कालू पूरा पसीने से लथपथ हांफते हुए खलास हो कर जैसे ही एक तरफ लुढ़का, मैं ने देखा कि लक्ष्मी की चूत फूल कर भैंंस की चूत जैसे हो गई थी। लक्ष्मी का पूरा शरीर खुद का और कालू का बदबूदार पसीने से भीग चुका था। मुझे अब उसकी चूत चोदने के बदले उसकी गांड़ चोदने की इच्छा होने लगी। मैं इनकी चुदाई के दौरान ही गरमा गया था और अपना कपड़ा खोल कर तैयार था कि जैसे ही कालू चोद कर हटेगा, मैं इस कुतिया पर चढ़ जाऊंगा। जैसे ही कालू हटा, बिना देर किए लक्ष्मी के पीछे से सवार हो गया और, लक्ष्मी मना करती रही मगर मैं सीधे अपना टन टन करता लंड उसकी गांड़ में एक ही बार में ठोक दिया और करीब बीस मिनट तक जम के उसकी गांड़ का भुर्ता बनाता रहा। इस बीस मिनट के अंदर ही कालू का लंड दुबारा टाईट हो गया और अब उसने देख लिया था कि उसकी गांड़ के छेद में भी लंड डाल कर चोदा जा सकता है, जैसे ही मैं खलास हो कर लक्ष्मी पर से हटा, कालू दुबारा उस पर चढ़ गया, मगर इस बार उसकी गांड़ का भुर्ता बनाने।

“नहीं कालू नहीं,” लक्ष्मी चीख पड़ी, “अरे मादरचोद मेरी गांड़ फाड़ डालोगे क्या?” कालू को क्या परवाह थी। वह तो भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा और एक ही जोर के झटके में उसकी चुदी चुदाई गांड़ में अपना गधा लंड पेल दिया।

“अरे फाड़ दिया रे मादरचोद मेरी गांड़, ओह साले कुत्ते हट हाय हाय,” चीखती रही मगर उस पागल पर क्या असर पड़ने वाला था। एक बार लंड घुसाने की देर थी कि दे दनादन लक्ष्मी की गांड़ की कुटाई करने लगा। ठीक किसी कुत्ते की तरह कभी दाहिना टांग चढ़ा कर चोदता तो कभी बांया टांग चढ़ा कर चोदता रहा और इस बार तो और गज़ब ही कर दिया, पूरे पचास मिनट तक पागलों की तरह नोचते खसोटते रौंदते भंभोड़ते जो चोदा कि लक्ष्मी की हालत देखने लायक थी। जब वह उसकी गांड़ चोद कर अपना लंड निकाला तो कालू के लंड पर पीला पीला मल लिथड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था कि लक्ष्मी की अंतड़ियों को साफ करते हुए बाहर आया था। उसकी गांड़ का छेद भी बढ़ कर खुला खुला दिखाई दे रहा था और गांड़ से होकर जांघों तक कालू के लौड़ा रस से भीगा पीला पीला मल बह निकला था। लक्ष्मी कालू का हाथ पकड़ कर खींचते हुए बाथरूम में जा घुसी। जल्दी ही धो धा कर दोनों बाहर आए। इस पूरे नज़ारे को देख कर मुझे खूब मज़ा आया।

“शाबाश कालू, आज तूने कमाल कर दिया। साली रंडी की चूत और गांड़ का अच्छा बाजा बजाया। मजा आ गया,” मैं ताली बजाते हुए बोला।

लक्ष्मी को चिढ़ाते हुए बोला, “साली हरामजादी रंडी, तुझे ठीक ऐसा ही चुदक्कड़ चाहिए था। अब आया ना मज़ा?”

लक्ष्मी भी कम छिनाल थोड़ी थी, वह साली हरामजादी बुर चोदी थक कर चूर हो गई थी मगर मुस्करा कर बोली, “आह मजा आ गया बाबूजी। आज तक मुझे ऐसा मजा पहले कभी नहीं मिला था। क्या गजब का लंड है इसका। इतने सारे मर्दों में आज तक इतना जबरदस्त चुदक्कड़ नहीं मिला था।”

“इतने सारे मर्दों का क्या मतलब है? सच सच बता रे रंडी, अशोक, हरिया, केशव और मेरे अलावा और कितने लोग हैं जिन्होंने तुझे चोदा है।” मैं गुर्रा कर पूछा।

उसे तुरंत अपनी गलती का अहसास हो गया। उसने दांतों से अपनी जीभ काट ली। “हाय राम मैं यह क्या बोल उठी” उसके मुंह से निकला। फिर भी हिम्मत जुटा कर बोली, “आप लोगों ने ही तो मुझे बर्बाद किया। पहले हरिया ने मेरी नादानी का फायदा उठाकर मुझे चोदा। आप लोगों के लिए तो बस एक बहाना मिल गया और उसी का फायदा उठाकर मुझे चोदने लगे और पराए मर्दों के लंड का चस्का लगा दिया। असल में तो लड़का पैदा करने का सिर्फ़ बहाना था। सच तो यह है कि आप लोग मुझे चोदने की फिराक में ही थे। आप और बड़े बाबूजी ने मुझे रंडी बनाने में कोई कसर छोड़ी थी क्या? मुझे पराए मर्दों के लंड का चस्का आप ही लोगों ने लगाया था ना? मुझे तो आप लोगों से चुदने के बाद कामिनी के पापा के साथ चुदने की इच्छा ही मर गई थी। आप लोगों के नहीं रहने पर जब मुझे चुदने की इच्छा होती थी तो मैं पागल हो जाती थी। मैं क्या करती? आप ही बताईए? आस पड़ोस के भूखे मर्द मुझे खा जाने की नजरों से देखते रहते थे, मगर आप लोगों से चुदने के पहले मैं किसी और मर्द को घास भी नहीं डालती थी। मगर आप लोगों ने मेरे अंदर चुदाई की भूख को इतना बढ़ा दी थी कि मेरे लिए अब सभी मर्द बराबर हो गये थे।”
 
“अच्छा बाबा अच्छा, अब मुझे कुछ नहीं पूछना है। अगर तुझे बताना है तो बता, तेरी मर्जी, वरना कोई बात नहीं।” मैं नरमी से बोला।

अब वह थोड़ी खुल गई और बोली, “ठीक है, अगर आप सुनना चाहते हैं तो सुनिए। सच बात बोलूं तो मुझे खुद पता नहीं कि अब तक कितने लोगों नें मुझे चोदा है।”

“क्या मतलब, तुझे पता ही नहीं कि कितने लोगों ने तुझे चोदा है?” मैं अकचका गया।

“हां यह सच है” वह बोली।

अबतक हम सब उसी तरह नंग धड़ंग बैठे हुए थे, कालू भी चुपचाप उसी तरह पालतू कुत्ते की तरह नंग धड़ंग वहां खड़ा था और हमारी बातें सुन रहा था।

“अबे साले तू अब तक यहां खड़ा क्या कर रहा है। अपने कपड़े पहन और दफा हो यहां से।” मैं कालू को डांटा। लक्ष्मी तुरंत बोल उठी, “ठीक है कालू तू अभी यहां से जा। बहुत मजा दिया राजा। आज से तू भी मेरे तन का भोग लगाने आते रहना।” कालू आज्ञाकारी कुत्ते की तरह सिर हिलाता हुआ अपने कपड़े पहन कर चुपचाप चला गया। उसके चेहरे से साफ मालूम हो रहा था कि अभी उसका मन नहीं भरा है। लेकिन फिर आने के निमंत्रण को समझ गया था।

“हां, अब तू सुना।” मैं लक्ष्मी से बोला।

“तो मैं कह रही थी कि आस पड़ोस के मर्द मुझे भूखी नजरों से घूरते रहते थे। अब जबकि आप लोगों ने मुझ पर पराये मर्दों से चुदवाने का नशा भर दिया था तो मैं सोचने लगी कि ये जो मर्द मुझे भूखी नज़रों से घूरते रहते हैं, उन्हें क्यों वंचित रखूं, उनकी भूख मिटाते हुए अपनी भी भूख मिटाने में क्या हर्ज है। यह शुभ काम शुरू हुआ हमारे घर में दूध देने वाले ग्वाले से। वह पैंतीस चालीस साल का लंबा चौड़ा छः फुटा ग्वाला शंभू रोज़ सवेरे दूध देने आता था और मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को घूरता रहता था। एक दिन ऐसा हुआ कि मैं रात भर चुदासी के मारे तड़पती रही। संयोग से उस दिन घर में न आप थे और न ही कोई और। ग्वाला शंभू थोड़ी देर से दूध देने आया, तब तक बच्चे स्कूल जा चुके थे और कामिनी के पापा भी औफिस जा चुके थे। मैं मौका अच्छा देख कर दूध का बर्तन लेने किचन में गई और फटाफट ब्रा पैंटी खोल कर आज की तरह ही नाईटी के ऊपर और नीचे के बटन खोल कर दरवाजे पर आई। ऊपर से मेरी चूचियां आधे से ज्यादा बाहर झांक रही थीं। शंभू जब मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को इस तरह खुला देखा तो देखता ही रह गया। उसकी धोती के अंदर उसका लौड़ा खड़ा होने लगा। मैं समझ रही थी। दूध का केन नीचे रखा हुआ था। जब वह दूध निकालने के लिए झुका तो मैं ने अपने पैर जरा सा फैला दिया जिससे मेरी चूत भी दिखाई देने लगी। जैसे ही उसने सिर उठा कर मेरी चूत को इतने सामने से खुला देखा तो मेरे चेहरे की ओर देखा। मैं मुस्कुरा उठी। वह सब माजरा समझ गया और उसकी आंखें भूखे भेड़िए की तरह चमक उठी। बिना कुछ बोले मैं दूध लेकर पलटी और अंदर की ओर चली। मेरे पीछे पीछे शंभू भी अंदर घुस आया और धीरे से दरवाजा बंद कर दिया।

मैं किचन में दूध का बर्तन अभी रखी ही थी कि पीछे से आकर शंभू ने मुझे पकड़ लिया और बोला, “आज मौका मिला है रानी। बहुत तड़पाई हो।” कहते हुए मेरी चूचियां मसलने लगा और मेरी चूत सहलाने लगा।

मैं झूठ मूठ का ड्रामा करने लगी, “छोड़ हरामी, ये क्या कर रहे हो?”

“ड्रामा मत कर रानी। हम सब समझते हैं। आज तुझे अपने लौड़े का कमाल दिखाए बिना नहीं छोड़ेंगे।” कहते हुए मेरी नाईटी खोल कर किचन में ही नंगी कर दिया और अपनी धोती उतार कर खुद भी नंगा हो गया। उसका आठ इंच का लंड फनफना रहा था। वहीं पर मुझे झुका कर पीछे से मेरी चूत में अपना लंड ठोंक दिया।

“हाय हरामी मादरचोद, यह क्या किया। छोड़ मुझे, आह आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह” मैं छटपटाने का नाटक कर रही थी।

“साली रंडी, चुप, आज तो मौका मिला है इतने दिन बाद। खूब तरसाई हो। चोदने दे।” कहते हुए उसी अवस्था में जो चुदाई चालू किया कि पूछो ही मत। मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को जी भर के दबाता रहा, नोचता रहा, निचोड़ता रहा। करीब बीस मिनट तक खूब जम के चोदा और मुझे भरपूर मजा देकर चला गया। फिर तो जब भी वह आता और घर खाली पाता तो बिना चोदे नहीं छोड़ता है। मैं भी बहुत खुश होती हूं। उसी तरह हमारा पेपर वाला भी मुझे चोदने लगा। एक दिन पेपर का बिल पेमेंट के लिए आया था तो मैंने उसे दूसरे दिन आने को कहा क्योंकि उस वक्त घर में काफी लोग थे। मैं ने दूसरे दिन उसे तब बुलाया जब मुझे पता था कि उस वक्त घर में कोई नहीं होगा। मैं ने उसे ठीक उसी तरह ललचा कर फंसाया जिस तरह दूध वाले को फंसाया था। उसने पहली बार मुझे सोफे पर ही चोदा। उसके बाद तो जब भी मौका मिलता आ जाता और चोद कर चला जाता है। हमारे घर से कुछ दूर शर्मा जी रहते हैं, वे भी मुझे काफी दिनों से घूरते रहते थे। एक दिन मेरे पति से किसी काम के सिलसिले में मिलने आए थे तो मैंने मौका ताड़ कर उसे फंसाया। में ने उन्हें चाय पी कर जाने के लिए कहा और उसी तरह खाली नाईटी पहन कर चाय देने आई
 
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