desiaks
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में ने उन्हें चाय पी कर जाने के लिए कहा और उसी तरह खाली नाईटी पहन कर चाय देने आई और फिसलने का बहाना करके उसकी पैंट पर ठीक लंड के ऊपर चाय गिरा दिया।
“हाय राम ये क्या हुआ” कहते हुए झट से चाय गिरने की जगह पर भीगे कपड़े से रगड़ने लगी। “इससेे कपड़े पर चाय का दाग नहीं रहेगा” कहते हुए मैं ने महसूस किया कि उनका लंड खड़ा हो गया है। फिर क्या था, मैं ने पैंट के ऊपर से ही उनका लंड पकड़ लिया। शर्मा जी तो कई दिनों से मेरी ओर से सिग्नल मिलने का इंतजार ही कर रहे थे। झट से मुझे दबोच लिया और लगे दनादन चूमने।
“हाय रानी, कई दिनों से तुझे चोदने की केवल कल्पना करता था। आज मौका मिला है। तेरी चूचियां गज़ब की हैं रानी। जब तू चलती है तो तेरी गांड़ दिल में छुरियां चला देती हैं रानी।” वह बोल रहा था।
“तो अब अपने मन की कीजिए ना राजा। मैं तो भी तो कई दिनों से इसी पल का इंतज़ार कर रही थी।” मैं बोली। मेरी बात सुनकर तो वह पागल हो गया। फटाफट पहले मुझे नंगी किया और खुद भी नंगा हो गया। मेरे नंगे बदन को देख कर वह पलक झपकाना भी भूल गया। फिर अचानक मानों जैसे नींद से जाग उठा और मुझ पर टूट पड़ा। मेरी चूचियों को चूसने लगा, मेरे चूत में उंगली डाल कर अंदर-बाहर करने लगा और चूत रस से सनी उंगली को मेरी गांड़ में भोंक कर रसीला कर दिया। फिर मझे झुका कर पीछे से मेरी गांड़ में अपना सात इंच का लंड एक ही झटके में उतार दिया। मैं मदहोशी के आलम में आंखें बंद किए आह आह करने लगी। वह उंगली से मेरी चूत चोद रहा था और मेरी गांड़ में लंड डाल कर दनादन अंदर-बाहर धकमपेल किए जा रहा था। मुझे चोद कर बहुत खुश हुआ और मुझे भी खुश कर दिया। अब जब भी मौका मिलता है, या तो वह आ जाता है और चोद लेता है या उसका घर खाली होने पर मैं किसी बहाने से वहां जाकर चुदवा लेती हूं।
एक बार तो गजब ही हो गया। आपको याद है, कि तीन साल पहले मेरी चाची की मृत्यु हो गई थी, जिसके यहां मैं अपने पति के साथ गई हुई थी। जब हम लौट रहे थे तो चूंकि पिछले पांच दिनों से मैं अपनी चूत की प्यास नहीं बुझा पाई थी इसलिए मैं चुदने के लिए तड़प रही थी। लौटते समय हम अंबाला स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करने लगे। इंतजार करते समय बार बार मेरा हाथ मेरी चूत की तरफ अनायास ही चला जाता था और मैं हल्के से चूत सहला देती थी। चल रही थी तो दोनों जांघों को आपस में रगड़ रही थी। बेंच पर बैठी थी तो टांग पर टांग चढ़ा कर कसमसा रही थी। सावन के महीने में कांवड़ियों की भीड़ में एक लंबा चौड़ा साधू बाबा हमारे पास खड़ा बार बार मुझे देख रहा था और मेरी स्थिति को समझ लिया था। मैं ने सर उठा कर जैसे ही उसकी ओर देखा तो वह बेहद अश्लील ढंग से मुस्करा उठा। उसकी आंखों में मैं ने वासना की भूख को पढ़ लिया था। मैं भीतर ही भीतर रोमांचित हो उठी। जब मैं पति के साथ अंबाला से ट्रेन में चढ़ी तो पलट कर देखा कि वह साधू बाबा देख रहा था मैं किस बोगी में चढ़ रही हूं। हम सेकेंड एसी बोगी में थे। ट्रेन में चढ़ने से पहले मैं ने देखा था कि जेनरल बोगी और नन एसी रिजर्व कंपार्टमेंट में लोगों की खचाखच भीड़ थी। रात करीब बारह बजे हमारी ट्रेन चल पड़ी। मैं नीचे बर्थ पर थी और ऊपर बर्थ पर मेरे पति। वे लेटते ही खर्राटे भरने लगे। मुझे पता नहीं क्या हुआ कि अचानक मेरे शरीर में चींटियां सी रेंगने लगी। पिछले चार दिनों से मैं किसी से चुदी नहीं थी। मुझे चुदाई का कीड़ा काटने लगा। समझ नहीं पा रही थी कि क्या करुं। उसी समय वही दाढ़ी वाला साधू बाबा जो प्लेटफार्म पर मुझे घूर रहा था हमारे बर्थ के पास आया और मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया। मैं चुदासी के आलम में बिना आगे पीछे सोचे उसे रुकने का इशारा किया और टायलेट में जा घुसी और फटाफट ब्रा और पैंटी उतार कर अपने पर्स में डाल कर बर्थ के सिरहाने रख उसके पीछे पीछे चल पड़ी। वह नन एसी रिजर्व बोगी की ओर चल पड़ा। बोगी के दरवाजे और बाथरूम के आस पास रात के एक बजे भी लोग खचाखच भरे हुए थे। सावन का महीना था और कांवड़ियों की काफी भीड़ थी। वहां सभी उम्र के मर्द एक दूसरे से सट कर कुछ खड़े थे और कुछ बैठे हुए थे। वह साधु उसी भीड़ में मेरा हाथ पकड़ कर खींच कर घुसा दिया और मुझसे सटकर खड़ा हो गया। वह साधु बाबा करीब पचपन साल का काला छः फुट लंबा मजबूत कद काठी का आदमी था। बोगी की मंद रोशनी में मैंने देखा कि मेरे दाएं बाएं कुछ जवान लड़के खड़े थे। मेरे पीछे भी अधेड़ उम्र के कुछ कांवड़िए गेरुए वस्त्र में मुझ से सट कर खड़े थे। मैं उन सबके बीच पिसती हुई वासना की आग में जल रही थी। कुछ ही पलों में मैं ने अपनी दाहिनी चूचि पर किसी के हाथ का स्पर्श महसूस किया। उसी तरह बांई चूची पर भी किसी के हाथ का दबाव महसूस करने लगी। मैं समझ गई कि मेरे दाएं बाएं खड़े लड़के मेरी चूचियों पर हाथ साफ कर रहे हैं। मैं यही तो चाहती थी
“हाय राम ये क्या हुआ” कहते हुए झट से चाय गिरने की जगह पर भीगे कपड़े से रगड़ने लगी। “इससेे कपड़े पर चाय का दाग नहीं रहेगा” कहते हुए मैं ने महसूस किया कि उनका लंड खड़ा हो गया है। फिर क्या था, मैं ने पैंट के ऊपर से ही उनका लंड पकड़ लिया। शर्मा जी तो कई दिनों से मेरी ओर से सिग्नल मिलने का इंतजार ही कर रहे थे। झट से मुझे दबोच लिया और लगे दनादन चूमने।
“हाय रानी, कई दिनों से तुझे चोदने की केवल कल्पना करता था। आज मौका मिला है। तेरी चूचियां गज़ब की हैं रानी। जब तू चलती है तो तेरी गांड़ दिल में छुरियां चला देती हैं रानी।” वह बोल रहा था।
“तो अब अपने मन की कीजिए ना राजा। मैं तो भी तो कई दिनों से इसी पल का इंतज़ार कर रही थी।” मैं बोली। मेरी बात सुनकर तो वह पागल हो गया। फटाफट पहले मुझे नंगी किया और खुद भी नंगा हो गया। मेरे नंगे बदन को देख कर वह पलक झपकाना भी भूल गया। फिर अचानक मानों जैसे नींद से जाग उठा और मुझ पर टूट पड़ा। मेरी चूचियों को चूसने लगा, मेरे चूत में उंगली डाल कर अंदर-बाहर करने लगा और चूत रस से सनी उंगली को मेरी गांड़ में भोंक कर रसीला कर दिया। फिर मझे झुका कर पीछे से मेरी गांड़ में अपना सात इंच का लंड एक ही झटके में उतार दिया। मैं मदहोशी के आलम में आंखें बंद किए आह आह करने लगी। वह उंगली से मेरी चूत चोद रहा था और मेरी गांड़ में लंड डाल कर दनादन अंदर-बाहर धकमपेल किए जा रहा था। मुझे चोद कर बहुत खुश हुआ और मुझे भी खुश कर दिया। अब जब भी मौका मिलता है, या तो वह आ जाता है और चोद लेता है या उसका घर खाली होने पर मैं किसी बहाने से वहां जाकर चुदवा लेती हूं।
एक बार तो गजब ही हो गया। आपको याद है, कि तीन साल पहले मेरी चाची की मृत्यु हो गई थी, जिसके यहां मैं अपने पति के साथ गई हुई थी। जब हम लौट रहे थे तो चूंकि पिछले पांच दिनों से मैं अपनी चूत की प्यास नहीं बुझा पाई थी इसलिए मैं चुदने के लिए तड़प रही थी। लौटते समय हम अंबाला स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करने लगे। इंतजार करते समय बार बार मेरा हाथ मेरी चूत की तरफ अनायास ही चला जाता था और मैं हल्के से चूत सहला देती थी। चल रही थी तो दोनों जांघों को आपस में रगड़ रही थी। बेंच पर बैठी थी तो टांग पर टांग चढ़ा कर कसमसा रही थी। सावन के महीने में कांवड़ियों की भीड़ में एक लंबा चौड़ा साधू बाबा हमारे पास खड़ा बार बार मुझे देख रहा था और मेरी स्थिति को समझ लिया था। मैं ने सर उठा कर जैसे ही उसकी ओर देखा तो वह बेहद अश्लील ढंग से मुस्करा उठा। उसकी आंखों में मैं ने वासना की भूख को पढ़ लिया था। मैं भीतर ही भीतर रोमांचित हो उठी। जब मैं पति के साथ अंबाला से ट्रेन में चढ़ी तो पलट कर देखा कि वह साधू बाबा देख रहा था मैं किस बोगी में चढ़ रही हूं। हम सेकेंड एसी बोगी में थे। ट्रेन में चढ़ने से पहले मैं ने देखा था कि जेनरल बोगी और नन एसी रिजर्व कंपार्टमेंट में लोगों की खचाखच भीड़ थी। रात करीब बारह बजे हमारी ट्रेन चल पड़ी। मैं नीचे बर्थ पर थी और ऊपर बर्थ पर मेरे पति। वे लेटते ही खर्राटे भरने लगे। मुझे पता नहीं क्या हुआ कि अचानक मेरे शरीर में चींटियां सी रेंगने लगी। पिछले चार दिनों से मैं किसी से चुदी नहीं थी। मुझे चुदाई का कीड़ा काटने लगा। समझ नहीं पा रही थी कि क्या करुं। उसी समय वही दाढ़ी वाला साधू बाबा जो प्लेटफार्म पर मुझे घूर रहा था हमारे बर्थ के पास आया और मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया। मैं चुदासी के आलम में बिना आगे पीछे सोचे उसे रुकने का इशारा किया और टायलेट में जा घुसी और फटाफट ब्रा और पैंटी उतार कर अपने पर्स में डाल कर बर्थ के सिरहाने रख उसके पीछे पीछे चल पड़ी। वह नन एसी रिजर्व बोगी की ओर चल पड़ा। बोगी के दरवाजे और बाथरूम के आस पास रात के एक बजे भी लोग खचाखच भरे हुए थे। सावन का महीना था और कांवड़ियों की काफी भीड़ थी। वहां सभी उम्र के मर्द एक दूसरे से सट कर कुछ खड़े थे और कुछ बैठे हुए थे। वह साधु उसी भीड़ में मेरा हाथ पकड़ कर खींच कर घुसा दिया और मुझसे सटकर खड़ा हो गया। वह साधु बाबा करीब पचपन साल का काला छः फुट लंबा मजबूत कद काठी का आदमी था। बोगी की मंद रोशनी में मैंने देखा कि मेरे दाएं बाएं कुछ जवान लड़के खड़े थे। मेरे पीछे भी अधेड़ उम्र के कुछ कांवड़िए गेरुए वस्त्र में मुझ से सट कर खड़े थे। मैं उन सबके बीच पिसती हुई वासना की आग में जल रही थी। कुछ ही पलों में मैं ने अपनी दाहिनी चूचि पर किसी के हाथ का स्पर्श महसूस किया। उसी तरह बांई चूची पर भी किसी के हाथ का दबाव महसूस करने लगी। मैं समझ गई कि मेरे दाएं बाएं खड़े लड़के मेरी चूचियों पर हाथ साफ कर रहे हैं। मैं यही तो चाहती थी