Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 7 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

प्रिय पाठकों, अब तक आप लोगों ने पढ़ा कि पांच बुजुर्गों के साथ मेरे अनैतिक संबंध को किस तरह विवाह जैसे पवित्र बंधन का जामा पहना दिया गया था और हमारे अंदर अब किसी तरह का अपराधबोध नहीं रह गया था, फलस्वरूप अब हम पति-पत्नी बन कर अंतरंग संबंधों का लुत्फ बेरोकटोक उठाने को स्वतंत्र थे, जिसका विधिवत शुभारंभ हमारी बेशर्मी भरी सुहागरात से हो चुकी थी। इसकेे प्रत्यक्ष साक्षी मेरी मां, चाची और पंडित जी थे। उन्होंने न सिर्फ हमारी बेहयाई भरी सुहागरात को अपनी आंखों से देखा, साथ ही साथ मां, चाची और पंडित जी ने हमारी आंखों के समक्ष आपस में वासना का नंगा नाच भी खेला। उस कमरे में उपस्थित सारे लोगों पर से वासना के तूफान का एक दौर गुजर चुका था। सभी लस्त पस्त नग्नावस्था में अस्त व्यस्त हालत में पड़े हुए थे। मैं अपने पांचों पतियों की मनमानी में पूर्ण रूप से समर्पित सहभागी होकर उन्हें पूरी संतुष्टि और खुशी प्रदान करती करती खुद भी स्त्रीत्व का आनंद लेती रही और इस दौरान मेरे साथ जो धकमपेल हुआ, उसके उपरांत थकान से चूर निढाल हो गई थी। उधर पंडित जी ने भी मेरी मां और चाची को तो अपनी चुदाई से बेहाल कर दिया मगर इस धींगामुश्ती में खुद भी थक कर चूर लुढ़के पड़े थे। इसी दौरान मेरे दिमाग में यह कुत्सित विचार आया कि क्यों न अभी ही मेरी मां के रंडीपन को अपनी आंखों से देखूं। मैं ने दादाजी के कानों में यह बात डाल दी और साथ ही यह भी कहा कि यह आप लोगों की पत्नी की इच्छा है और ज्यों ही मेरे बाकी पतियों को मेरी ख्वाहिश के बारे में पता चला, आज्ञाकारी पतियों की तरह प्रत्यक्ष रूप से मुझे खुश करने के लिए (किंतु परोक्ष रूप से शायद वे भी यही चाहते थे) देखते ही देखते मेरे पांचों पतियों के लिंग टनटना कर पुनः खड़े हो गए, जैसे शिकार को देख कर भेड़ियों की आंखों में चमक आ जाती है, वैसे ही सब की आंखों में चमक आ गई और सब के सब टूट पड़ने को तैयार हो गये।

“ध्यान रखिएगा कि सबसे पहले नानाजी का लौड़ा अपनी बेटी की चूत में घुसना चाहिए, क्योंकि वे मेरी मां को पहली बार चोदेंगे, फिर करीम चाचा, उनका लंड भी मेरी मां की चूत में पहली बार जाएगा और उसके बाद बाकी सब, क्योंकि आप लोग तो मेरी मां को पहले भी कई बार चोद चुके हैं। जैसी मर्जी वैसा चोदिए, जरा मैं भी तो अपनी मां के रंडीपन को देखूं” मैं ने कुटिलतापूर्वक मुस्कुराते हुए फुसफुसा कर उन्हें हिदायत दी। सब सहर्ष अपनी सहमत हो गए।

“अब देख क्या रहे हो, टूट पड़ो मेरे पतियों।” मैं ने सिग्नल दे दिया।

“जैसी आपकी आज्ञा श्रीमती जी” सब एक स्वर में बोल उठे और फिर पंडित जी से नुच चुद कर बेहाल लस्त पस्त थकी निढाल मेरी मां के नग्न जिस्म पर किसी भूखे शिकारी कुत्तों की तरह टूट पड़े। मेरी मां अपने ऊपर हुए इस आकस्मिक आक्रमण से दहशत में भर गई और बदहवास चीख पड़ी, “छोड़ो हरामियों मुझे, आह, कमीनों, मेरी बेटी को चोद कर पेट नहीं भरा क्या? कामिनी रोक अपने चोदू पतियों को, हाय राम ओह।” छटपटाती हुई अपने आप को उन भेड़ियों के चंगुल से मुक्त होने की असफल कोशिश करने लगी, किंतु मेरे काम पिपाशु पतियों को भला अब कौन रोक सकता था, बेलगाम पशुओं की तरह लगे भंभोड़ने, नोचने खसोटने। बड़े दादाजी मेरी मां की मोटी मोटी गांड़ में मुंह डाल कर चाटने लगे, दादाजी मां की पावरोटी जैसी योनि को चूसने चाटने लगे, करीम और हरिया बड़ी थल थल करती स्तनों को बेरहमी से चीपने और चूसने लगे, इधर जैसे ही मेरे बुलडोग थूथन वाले काले तोंदियल पति नानाजी अपने टन्नाए हुए मूसल जैसे लिंग के साथ मां के मुंह के पास पहुंचे, मां गिड़गिड़ाने लगी, “नहीं पापा, प्लीज आप तो अपनी बेटी के साथ ऐसा मत कीजिए”।

नानाजी गुर्राहट के साथ बोले, “अभी पापा बोलती है साली हरामजादी कुतिया, जब सभी ऐरे गैरे नत्थू खैरे मर्दों के लंड से अपनी चूत की कुटाई करवा करवा कर हमारी नाक कटवा रही थी तब यह ख्याल नहीं आया? पहले तू हमारी बेटी थी, अब बेटी से हमारी सास बन गई, लेकिन हम सब जानते हैं कि तू एक औरत है, और वह भी एक छिनाल औरत, जिसे चोदने के लिए हमारे बीच कोई रिश्ता नाता मायने नहीं रखता है। सिर्फ इतना याद रख कि तू एक चुदासी चूत वाली चुदक्कड़ औरत और मैं चुदक्कड़ मर्द। चुपचाप चूस मेरा लौड़ा, बुर चोदी, फिर मैं तेरी चूत का भुर्ता बनाता हूं।”

मेरी बेबस मां समझ गई कि इनकी बात मानने के अलावा और उसके पास और कोई चारा नहीं है। चुपचाप नानाजी का लिंग चूसने लगी। कुछ ही देर में नानाजी ने अपना तनतनाया हुआ लिंग मेरी मां के मुंह से निकाला और पंडित जी के वहशीयत भरे संभोग से फूल कर कुप्पा हुई योनि का तिया पांचा करने मां को कुतिया की तरह झुकने का हुक्म दिया, “चल अब तू मेरी कुतिया बन जा, मां की लौड़ी।”

 
दादाजी और बड़े दादाजी ने अपना स्थान छोड़ कर नानाजी को जगह दिया। मां आज्ञाकरी गुलाम की तरह कुतिया की अवस्था में झुक गई और पीछे से नानाजी ने अपने लिंग को मां की योनि पर टिकाया और मां की कमर को जोर से पकड़ कर एक करारा धक्का लगाया, “ले बुर चोदी कुतिया अपनी बुर में मेरा लौड़ा,” कहते हुए पूरा का पूरा लिंग एक ही बार में अंदर तक घुसा दिया।

“आह पापा, ओह ओ्ओ्ओ्ओह” चीख पड़ी मेरी मां।

“चुप हरामजादी रांड, चुपचाप कुतिया की तरह पड़ी रह और मुझे चोदने दे।” नानाजी अब वहशी दरिंदे बन चुके थे। जंगली कुत्ते की तरह मेरी मां की कमर पकड़ कर मेरी मां की चीख पुकार को अनसुना करते हुए दनादन लगे चोदने। “आह ओह मेरी बुर चोदी बेटी, मेरे ही लौड़े से पैदा हो कर पता नहीं कितने लौड़े से चुद गई और मुझे पता ही नहीं चला। आज सारी कसर निकाल लूंगा। क्या मस्त चूत पाई हो, अपनी मां से भी मस्त है वाह वाह।”

इधर नानाजी मेरी मां की योनि की चटनी बना रहे थे और उधर बाकी लोग उसके बड़े बड़े स्तनों को बेरहमी से मसल मसल कर मलीदा बना रहे थे। उसकी चीखें धीरे धीरे आनंदमयी सिसकारियों में तब्दील हो गई थीं।

“आह ओ्ह्ह्ह्ह पापा, हाय चोदू पापा, चोद राजा, आज तक आपने मुझे चोदा क्यों नहीं ओह ओ्ओ्ओ्ओह” मेरी मां उत्तेजना के आवेग में पागलों की तरह बड़ बड़ करने लगी थी। दादाजी अपने लिंग को मम्मी के मुंह में डाल कर मुख मैथुन का मजा लेने लगे। बड़ा ही घिनौना मगर बेहद उत्तेजक नजारा था। मैं सुहाग सेज पर बैठ कर तन्मयता से उस दृश्य का लुत्फ उठा रही थी। उस कामुकता भरे माहौल का ऐसा असर होने लगा कि मुझ पर भी पुनः वासना का खुमार तारी होने लगा था। मेरी योनि में पानी आने लगा था। मेरी तंद्रा भंग हुई जब मैंने अचानक ही रमा चाची की चीख सुनी। मेरे साथ साथ सबकी नजरें चाची की ओर गयीं। यह देख कर सभी मुस्करा उठे कि पंडित जी जो इतनी देर शांत पड़े हुए थे, इस उत्तेजक दृश्य को देखकर गरमाई हुई चाची पर, जो आंखें फाड़े बैठ कर तन्मयता के साथ मेरी मां को चुदते देख रही थी, अचानक टूट पड़े थे और अनायास हुए इस हमले से सम्भल नहीं पाई और धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ी। चाची, जो कुछ देर पहले ही इस वहशी पंडित की भीषण चुदाई को झेल कर सुस्ताती हुई मेरे पांचों पतियों से मेरी मां की चुदाई के उत्तेजक दृश्य का लुत्फ उठा रही थी, फिर से उसी कमीने चुदक्कड़ भेड़िए पंडित, जिसे चुदाई का मुफ्त लाईसेंस मिल चुका था, की बेबस शिकार की तरह छटपटाने लगी, मगर पंडित जी भी एक नंबर के हरामी चुदक्कड़ थे। पंडित जी के मूसलाकार लिंग की चुदाई के दहशत से अभी पूरी तरह उबर ही नहीं पाई थी कि दुबारा उस दर्दनाक दौर से गुजरने की कल्पना से सिहर उठी थी।

“नहीं पंडित जी नहीं प्लीज़ दुबारा नहीं। बहुत बड़ा है आपका लौड़ा।” घिघियाने लगी।

“अरी रमा रानी, पहली बार जो भी औरत मेरा लौड़ा लेती है, सब यही बात बोलती है। तू एक बार ले चुकी है ना, अब कुछ तकलीफ नहीं होगी। अब तुझे बहुत मजा आएगा। मुझे मालूम नहीं है क्या कि तू खूब खेली खाई औरत है? मुझे सब पता है, इस बस्ती के कई मर्दों का लंड ले चुकी है तू।” पंडित जी माहिर चुदक्कड़ की तरह बोले। वैसे तो मेरी चाची उस गांव के एक सरकारी उच्च विद्यालय की शिक्षिका थी, लेकिन इस उम्र में भी उनके व्यक्तित्व में गजब का आकर्षण था। मैं समझ गयी कि चेहरे से सौम्य दिखाई देने वाली चाची भी अंदर से कम छिनाल नहीं है, वरना पंडित जी इस प्रकार की बातें क्यों करते ही क्यों? इस बस्ती में अवश्य मेरी चाची के कई नाजायज रिश्ते होंगे। पंडित जी भी हो सकता है मेरी चाची के जिस्म का भोग लगाने की फिराक में कई दिनों से लगे होंगे और आज सौभाग्य से उन्हें यह सुनहरा मौका मिला होगा, जैसे बिल्ली के भाग से छींका टूटा हो। वैसे मेरी चाची को देख कर किसी भी मर्द के मुंह में पानी आ सकता है। अधेड़ उम्र और मझोले कद काठी की होती हुई भी उसका शारीरिक गठन आकर्षक था। तीखे नैन नक्श वाली, चेहरा मोहरा भी आम स्त्रियों से तनिक बीस ही थी। भारी थलथलाते स्तन और चलते समय भारी मोटे मोटे नितम्बों का हिलना खुद ब खुद किसी भी मर्द के लिंग में तनाव लाने के लिए काफी थीं। वह इलाका घनी आबादी वाला भी नहीं था, बस्ती भी कोई खास बड़ा था नहीं। इसलिए इस प्रकार की बातें ज्यादा दिन छुपा रहना असंभव था। पंडित जी अवश्य चाची के चरित्र के बारे में अवगत रहे होंगे। कुल मिलाकर मुझे यह समझ में आ गया था कि नानाजी ने शादी के प्रोग्राम में ऐसे ही लोगों का चुनाव किया था जिनके चरित्र के बारे में उन्हें अच्छी तरह से पता था। चाची के चीख पुकार की परवाह किए बगैर उन्होंने एक करारा ठाप मार दिया और एक ही झटके में आधा लिंग उसकी यौनगुहा में उतार दिया, “आह मादरचोद मार डाला रे आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह कुत्ते।” दर्दनाक चीख चाची के मुंह से निकला। पंडित जी को उसकी चीख से क्या मतलब था, दन से दूसरा धक्का लगा कर पूरा दानवी लिंग उसकी झांटों भरी फूली हुई यौनगुहा में पैबस्त कर दिया। भले ही कितनी बड़ी चुदक्कड़ रही हो मेरी चाची, दस इंच लंबा और वैसा ही मोटा लिंग किसी भी औरत की योनि के लिए काफी बड़ा है। एक बार नुच चुद कर ही वह बेहाल थी, पंडित जी ने अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फंसाकर दूसरी बार जब भोगना शुरू किया तो शुरू में तो ऐसा लगा मानो चाची की जान ही निकल जा रही हो, लेकिन वाह री चाची वाह, कमाल ही कर दिया जब कुछ ही देर में बोलने लगी, “आह पंडित और जोर से चोद साले, ओह ओ्ओ्ओ्ओह राजा चोद कमीने चोद आज तक ऐसा मजा पहले कभी नहीं मिला राजा ओह ओ्ओ्ओ्ओह”!
 
“हम बोले थे ना रंडी, मजा आएगा, अब देख लिया मेरे लौड़े का कमाल” पंडित जी दुगुने उत्साह के साथ खुश हो कर संभोग में लीन हो गए। सच में मुझे भी पंडित जी के दमदार लिंग ने अपने मोहपाश में बांध लिया था। उनके शारीरिक बनावट से क्या लेना देना था, चुदना तो लिंग से ही था। मस्त गधे जैसा बड़ा और बेहद खूबसूरत लिंग। ऐसा लग रहा था कि काश इस वक्त मैं चाची की जगह होती। खैर आज नहीं तो कल पंडित जी के लिंग का मज़ा तो ले कर रहूंगी। अब उधर चाची की चुदाई और इधर मां की चुदाई, बेहद कामुक दृश्य था, जिसकी मैं एकमात्र दर्शक। उत्तेजना के मारे मेरे गुप्तांग में पानी आ गया था।

अब तक नानाजी अपनी ही बेटी की कमर कुत्ते की तरह पीछे से पकड़ कर पागलों की तरह चोदने में मशगूल थे। करीब पन्द्रह मिनट बाद उनका लिंग मेरी मां के यौनांग में कुत्ते की तरह फंस गया। यह मेरी मां के लिए बिल्कुल नया अनुभव था। छूटने की कोशिश में उनकी चीख निकल गई। योनि के अन्दर नानाजी के लिंग के जड़ के पास बड़ी सी गांठ के कारण उनकी योनि अब फटी तब फटी हो रही थी। थक हार कर उसी अवस्था में स्थिर हो गई और नानाजी भी कुत्ते की तरह लिंग फंसाए पलट गये। इसी समय लंबे चौड़े छः फुटे बड़े दादाजी अपने लंबे लंबे पैर दोनों ओर फैला कर उनके बीच अपना स्थान बना कर मेरी मां की ओर मुखातिब हो कर पहले अपने तनतनाए लिंग पर थूक लसेड़ कर मेरी मां के गोल गोल चूतड़ों के फांक के मध्य गुदा द्वार पर टिकाया। मेरी मां के लिए यह कोई नई बात नहीं थी, जैसा कि दादाजी ने बताया था। लेकिन नया था तो कुत्ते कुतिया की तरह किसी का लिंग अपनी योनि में फंसाकर गुदा की कुटाई। मां बेबसी में अगले ही पल अपनी गुदा में होने वाले आक्रमण के लिए अभी तैयार ही हो रही थी कि बिना किसी पूर्वाभास के बड़े दादाजी ने एक जोरदार झटके से पूरा का पूरा लिंग मेरी मां की गुदा में समाहित कर दिया। उस 65 साल के बूढ़े की ताकत की दाद देनी पड़ेगी, मेरी मां की कमर को सख्ती से पकड़ कर फिर जो घमासान चुदाई चालू किया कि मां हाय हाय कर उठी। रफ्तार का तो कहना ही क्या था, जवान लड़के शर्म के मारे पानी पानी हो जाएं। “ले साली कुतिया मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में, ले रंडी लौड़े की, हुम हुम हुम गांड़ रानी,” उनके मुख से अल्फाज़ उबल रहे थे। प्राथमिक वेदना से बेहाल मेरी मां कुछ ही पलों में सारी वेदना भूल कर मस्ती के आलम में सिसकारियां निकलने लगी, “आह ओह राजा चोद मेरी गांड़ के रसिया, मेरी बेटी के भतार, बेटी चोद,आह ओह मेरी बेटी के सामने ही मेरी गांड़ का गूदा निकाल दे कुत्ते, साली कामिनी अगर रंडी है तो मैं भी उसकी मां हूं, उससे महा रंडी, आह ओह मैं गई ओह मैं झड़ रही हूं आ्आ्आ्आ्आह रज्ज्ज्जाआआ।” कहते हुए मां खलास होने लगी। नानाजी के लिंग पाश से बंधी, बड़े दादाजी के लिंग से अपनी गुदा की कुटाई करवाती हुई, अपने बड़ी बड़ी स्तनों को पापा और करीम के बेदर्द हाथों से मलीदा बनवाती हुई भी आनंद के अतिरेक में पागलों की तरह सर झटकती रही और सिसियाती रही। तभी नानाजी ने खलास हो कर मां की योनि को अपने लिंग पाश से मुक्त कर दिया। मेरी मां के मुंह से राहत भरी लंबी सांस निकल पड़ी। जब नानाजी का लिंग मेरी मां की योनि से निकला तो एक जोरदार फच्चाक की आवाज से पूरा कमरा गूंज उठा। निकलने के बाद भी हम नानाजी के लिंग के गांठ के आकार को देख कर चकित थे, टेनिस बॉल से भी बड़ा। इसका मतलब यह था कि योनि के अन्दर यह गांठ और भी बड़ा रहा होगा। मेरे साथ भी यही हुआ था मगर अभी मैं ने साक्षात दर्शन कर लिया। इधर नानाजी ज्यों ही मम्मी को चोद कर फारिग हुए, बड़े दादाजी मम्मी की गुदा में अपना लिंग डाले मम्मी को लिए दिए पलट गये। अब मम्मी की चुदी चुदाई योनि ऊपर की ओर हो गई थी, गजब का नजारा था, फूल कर कुप्पा हुई कुतिया की तरह बाहर की ओर निकल पड़ी थीं। करीम चाचा के लिए इससे बेहतर अवसर और क्या हो सकता था। तुरंत ही दस इंच का लिंग ले कर मैदाने जंग में कूद पड़े। मां लस्त पस्त बेहाल नीचे से अपनी गुदा में बड़े दादाजी के लिंग के भीषण आक्रमण को झेलती रही। करीम चाचा ने आव देखा न ताव मां के दोनों पैरों को फैला कर सटाक से पूरा का पूरा लिंग मां की यौनगुहा में उतार दिया और मां सिसक उठी, “उफ्फ आह्ह्ह्ह ओ्ह्ह्ह्ह”।
 
करीम चाचा बड़ी बेरहमी से पूरा मूसलाकार लिंग मम्मी की यौनगुहा में उतार कर दनादन चोदने लगा। दादाजी और नानाजी तो मेरी मां की योनि की अच्छी तरह कुटाई कर चुके थे और बड़े दादाजी अभी भी अपने मनपसंद छिद्र में लिंग डाले आनंदपूर्वक चोदने में मग्न थे, करीम चाचा अब चुद चुद कर बेहाल मां की योनि में लिंग डाले अपनी कसरत के दंड पेल के अंतिम दौर में थे, जबकि हरिया अपनी बारी का बेकरारी से इंतजार कर रहे थे। इस दौरान मां तीन बार झड़ी। पंडित जी और मां की चुदाई के कारण पूरा कमरा हांफना, सिसकारियां भरना और योनि में लिंग के अंदर बाहर होने से पैदा होती हुई फच फच की मिश्रित आवाज से भर कर अजीब सा माहौल पैदा कर रहा था। इधर इस माहौल में मेरी भी हालत खस्ता हो रही थी, फिर भी अपनी पनिया उठी योनि सहलाती हुई कामुकता से ओत-प्रोत दृश्य देखकर आनंदित हो रही थी। फिर शुरू हुआ करीम चाचा का लंबा स्खलन। इसी समय चार लोग स्खलन की प्रक्रिया से गुजरने लगे। बड़े दादाजी मां की गुदा मार्ग में फचफचा कर वीर्य भरने लगे, करीम चाचा मां की योनि में, मां और चाची भी हाय हाय करती हुई झड़ने लगी। अद्भुत था वह दृश्य। एक दूसरे से ऐसे चिपक गये थे मानों एक दूसरे में समा ही जाएंगे। मर्द डकारते हुए खलास हो रहे थे और चाची आह आह करती हुई आंखें बंद किए मानो दूसरी दुनिया में पहुंच गई थी। अब बारी थी हरिया की। जैसे ही थकी मांदी मां को निचोड़ निचोड़ कर भोगने के पश्चात बड़े दादाजी और करीम चाचा अलग हुए, वह वहीं लस्त पस्त पसर गई। हरिया जो काफी देर से इस पल का इंतज़ार कर रहा था, मेरी मां के अर्धचेतन शरीर पर भूखे कुत्ते की तरह टूट पड़ा, “साली हरामजादी रंडी, देख मैं तेरा क्या हाल करता हूं, बुर चोदी कुतिया, मां की लौड़ी, छिनाल, लौड़े की दीवानी, बेगैरत, गैर मर्दों की चूत, बनाता हूं तेरी बुर का भोंसड़ा, बहुत शौक है ना चुदवाने का, मिटाता हूं तेरी चूत की खुजली, अभी तुझे दिखाता हूं चुदाई साली रंडी चूत”, कहते हुए झपट पड़ा। मेरी मां के शरीर में इतनी भी शक्ति नहीं थी कि किसी भी प्रकार का विरोध प्रकट कर सके। आनन फानन मां के दोनों पैरों को फैला कर अपने कंधों पर उठा लिया और चुद चुद कर फूल चुकी मां की योनि में एक ही झटके में सरसरा कर अपना लिंग उतार दिया और लगभग बेजान से शरीर को लगा भंभोड़ने। सिर्फ एक मरियल सी आह निकली मेरी मां के मुंह से। आंखें बंद थीं। सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी। हरिया को क्या परवाह थी मेरी मां की हालत की। मैं आज समझ सकती हूं उस वक्त की उनकी उसकी मानसिक स्थिति। जिसने मेरी मां को संभोग सुख से परिचित कराया था, भावनात्मक लगाव तो अवश्य रहा होगा, दादाजी के मुंह से उसी स्त्री के छिनाल पन के बारे में सुन कर और आज अपनी आंखों से उसकी छिनाल पन को देख कर जिस मानसिक स्थिति से गुज़र रहा था, सारा का सारा गुब्बार निकाल देने पर तुल गया। झिंझोड़ रहा था, बड़ी बड़ी चूचियों को निचोड़ रहा था, पागलों की तरह होंठों को, गालों को, गर्दन को चूम रहा था, चाट रहा था, दांतों से काट रहा था, चूतड़ के नीचे हाथ डाल कर किसी वहशी दरिंदे की तरह चोद रहा था मानो आज अपने दिल की सारी भंड़ास निकाल कर ही छोड़ेगा। मैं उस वक्त समझ नहीं पा रही थी कि हरिया इतनी दरिंदगी पर क्यों उतर आया था। मैं सहम गई थी मेरी मां की हरिया के हाथों होती हुई दुर्दशा को देख कर। करीब आधे घंटे तक मां के निढाल शरीर को कुत्ते की तरह रगड़ रगड़ कर चोदा और भैंसे की तरह डकारते हुए दीर्घस्खलन से मां की चूत को लबालब कर दिया। झड़ते समय उसने मां को इतनी जोर से भींचा कि अर्धचेतन अवस्था में भी मेरी मां के मुख से लंबी आह निकल पड़ी।

अब तक सब लोग चुदाई से निवृत्त हो चुके थे और थक कर चूर यहां वहां पसर गये थे सिवाय पंडित जी और मेरे। मैं तो उस माहौल की गर्मी से गरम हो अपनी उंगलियों से योनि रगड़ने लग गई थी। पंडित जी अभी तक चाची के ढीले पड़ चुके शरीर में पिले हुए थे।

“हमारी दुल्हन, और कुछ है तेरी इच्छा तो बोल दे।” दादा जी बोले। सब मेरी ओर देखने लगे। पंडित जी भी चोदना छोड़ कर मेरी ओर देखने लगे।
 
“हां, है, मगर सोच रही हूं बोलूं कि नहीं।” मैं झिझकते हुए बोली।

“अरी बोल रानी, तू बोल के तो देख, तू जो बोलेगी वही होगा” दादाजी बोल उठे।

“यह आप न बोल रहे हैं। सब लोग बोलेंगे तभी बताऊंगी।” मैं बोली।

सब एक स्वर में बोले, “हमारी प्यारी दुल्हन, हम वचन देते हैं कि तेरी खुशी की खातिर हम कुछ भी करेंगे”

झिझकते हुए मैं बोली, “आप लोगों को कुछ नहीं करना है। आप लोगों की इतनी देर की चुदाई ने मुझे फिर से गरम कर दिया है। मैं भी अभी अपनी गरमी शांत करना चाहती हूं। इसके लिए तुरंत कौन मर्द तैयार है?” मैं जानती थी कि दो दो बार झड़ चुकने के बाद मेरे बूढ़े पतियों का लिंग का अभी तुरंत खड़ा होना मुश्किल है।

इससे पहले कि कोई बोलता, पंडित जी झट से बोल उठे, “मैं तैयार हूं”

“साले पंडित तू हमारी बीवी को चोदेगा मादरचोद?” हरिया बोल उठा।

“अभी आप लोगों ने कहा कि कामिनी की खुशी के लिए कुछ भी करेंगे, फिर इतना गरम क्यों हो रहे हैं। पहले कामिनी बिटिया से तो पूछ लीजिए?” पंडित जी बोले। पंडित जी बहुत चालाक थे। शायद उन्होंने अपने लिंग पर मेरी हसरत भरी निगाहों को ताड़ लिया था।

“हां यह ठीक है” मेरे भोले भाले पतियों ने एक स्वर से कहा।

“बोल रानी तू क्या चाहती है?” दादाजी बोले।

“छि छि, कैसी बात करते हैं जी, अपने पतियों के सामने किसी गैर मर्द के साथ? अब मैं क्या बोलूं आप लोगों से? आप लोग भी तो दो दो बार इतनी कसरत कर के थक चुके हैं। वैसे भी हरिया को तो पंडित जी पसंद नहीं हैं। छोड़िए, चलिए मैं ऐसे ही सो जाती हूं।” मैं मायूसी से नंग धड़ंग बिस्तर पर पसरते हुए बोली।

“अरे इतनी मायूस क्यों होती हो हमारी जान? पंडित जी गैर मर्द जरूर हैं मगर हमारे परिवार के सदस्य जैसे ही है। अगर तुझे मंजूर हो तो हमें भी कोई ऐतराज नहीं है।” नानाजी से मेरी मायूसी देखी नहीं गई। “क्यों भाई लोग, क्या बोलते हो?” नानाजी बोले, उन्हें भी पता था कि चोद चोद कर थक चुके बाकी मर्दों में फिलहाल के लिए इतनी शक्ति नहीं बची है कि मेरी प्यास बुझा सकें। थके मांदे अलसाए मेरे बाकी पतियों ने भी नानाजी की बातों का समर्थन किया। मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा, मगर प्रत्यक्षतय: मायूसी का दिखावा करती हुई बोली, “नहीं जी, वैसे मैं इतनी गयी गुजरी नहीं हूं कि अपनी कामुकता पर काबू न रख पाऊं।” मैं फिर भी ढोंग करती रही।

“चुप, अब एक शब्द नहीं। तेरी इस छोटी छोटी सी खुशी के लिए (छोटी कहां, अपने सामने अपनी पत्नी को गैर मर्द से चुदते देखना छोटी बात तो कत्तई नहीं थी, किंतु शायद उन वासना के पुजारियों के लिए शायद यह कोई बड़ी बात भी नहीं थी) हम लोग इतना भी नहीं कर सकें तो लानत है हम पर। चल अब दिल में बिना कोई बोझ लिए पंडित जी से चुद ले, वरना हमें हमेशा के लिए दुःख रहेगा कि सुहागरात में अपनी पत्नी की एक छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सके।” दादाजी बोले।

मैं मन ही मन हंस पड़ी उनकी मासूमियत भरी बातें सुन कर। प्रत्यक्ष तौर पर झिझकते और लजाते हुए, पर पंडित जी के विशाल और खूबसूरत लिंग से चुदने की कल्पना से रोमांचित होती हुई बोली, “हाय राम, आप लोगों के सामने किसी गैर मर्द के साथ संभोग? नहीं बाबा नहीं। आप लोगों को कैसा लगेगा यह तो मुझे पता नहीं, मैं तो लाज से मर ही जाऊंगी। काश आप लोगों में से कोई होता?”

“देख रानी, हमें यह देख कर अच्छा ही लगेगा कि तू पूरी तरह संतुष्ट हो गई है। आज भर इस पंडित से काम चला ले, तू तो अब हमारी पत्नी है ही और हम भी तुम्हारे पति, हम कहीं भागे नहीं जा रहे हैं। जो कुछ होगा हमारे सामने और हमारी रजामंदी से ही होगा ना। न तू हमें धोखा दे रही है और न ही कोई बेवफाई कर रही है। चल अब तू बेझिझक और बेरोकटोक अपनी आग बुझा ले, बिल्कुल आजादी से, कोई रोक-टोक नहीं होगा।” बड़े दादाजी बड़ी उदारता और सहानुभूति पूर्वक बोल उठे।

“तो ठीक है। चलिए पंडित जी मैं फर्श पर बिछे कालीन पर ही आ जाती हूं, सुहाग सेज को पराए मर्द के साथ संसर्ग करके अपवित्र नहीं करना चाहती।” मैं नग्नावस्था में ही बिस्तर से उतर कर उनके सामने खड़ी हो गई और लाजवंती बनी हथेलियों से चेहरा छुपाते हुए बोली। दिल तो मेरा बल्ले बल्ले कर रहा था।

आगे क्या हुआ? इसे जानने के लिए अगली कड़ी का इंतजार करें।
 
अब तक आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मेरे सुहागरात में हमारे बेडरूम में वासना का नंगा नाच खेला जा रहा था। मेरी मां, चाची, पंडित जी हमारे ही कमरे में हमारे सामने बेशरमी से वासना का नंगा नाच खेल रहे थे। मेरे पतियों ने मेरी मां के शरीर से अपने अपने अंदाज में जी भर के मौज किया। उनकी चुदाई देख देख कर मैं भी उत्तेजित हो गई थी।। उसी उत्तेजना को शांत करने के लिए मैंने पंडित जी जैसे बदशक्ल, बेढब, आदमी की अंकशायिनी बनना स्वीकार किया था। पंडित जी की तो जैसे लाटरी निकल पड़ी। पहले सालों से चाची को चोदने की तमन्ना पूर्ण हुई। फिर मेरी मां के मादक जिस्म को भोगने का स्वर्ण अवसर प्राप्त हुआ। अब मेरी दपदपाते मदमस्त गदराए यौवन का रसपान करने का कल्पनातीत स्वर्णिम अवसर मिल रहा था। उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह स्वप्न है या हकीकत। मैं उसकी हालत समझ रही थी। मैं शुरू से देख रही थी कि पंडित जी की भूखी नज़रें मुझ पर ही टिकी हुई थीं। जब वे मेरी मां की मादक देह का मर्दन कर रहे थे, जब चाची की चूत की चटनी बना रहे थे, तब भी उसकी नजरें मेरे ही जिस्म से चिपकी हुई थीं। ऐसा लग रहा था मानो मां और चाची को चोदते समय उनके दिमाग में सिर्फ मैं थी और शायद कल्पना में मुझे ही चोद रहे थे।

लाटरी तो मेरी भी निकल पड़ी थी। पंडित जी के आकर्षक विशाल लिंग से चुदने की कल्पना साकार होने जा रही थी। मेरे सारे शरीर में चींटियां रेंगने लगी। पंडित जी जंगली भालू की तरह लग रहे थे। उनका बड़ा सा लिंग सामने किसी काले नाग की तरह झूम रहा था। बाहर की ओर निकले बड़े बड़े पीले दांत दिखाते हुए अश्लीलता पूर्वक मुस्कुराते हुए खड़े हो गए और मेरे नग्न जिस्म को खा जाने वाली नजरों से देखने लगे। मेरे पास आकर मेरे चेहरे से हाथ हटाते हुए बोले, “बहुरानी, देख मैं आ गया हूं तेरी प्यास बुझाने।” इतने नजदीक से पंडित जी के वीभत्स रूप को देख कर एक बार तो मैं वितृष्णा से भर उठी। फिर मैं सोचने लगी कि मुझे इसके रुप रंग से क्या लेना देना है। चुदना तो उसके लिंग से है। मैं कुछ बोली नहीं, खामोशी से अपने नग्न जिस्म को उस कामुक भेड़िए के भोग के लिए समर्पित कर दिया। उसने अपने बदबूदार मुंह को पास ला कर गंदे होंठों से मेरे होंठों को चूम लिया। सांस लेने में मुझे घुटन सी महसूस हो रही थी, किंतु अपनी इस हालत के लिए तो मैं खुद ही जिम्मेदार थी, अतः बर्दाश्त करने को वाध्य थी। फिर उनके बनमानुषी पंजे मेरे उन्नत उरोजों पर नृत्य करने लगे।

उन्होंने एक हाथ से मेरा हाथ पकड़ा और अपने मूसल सरीखे काले लिंग पर रख दिया और कहा, “ले बहुरानी, मेरा लौड़ा को पकड़ के देख। इसी लौड़े से मैं तेरी चूत की प्यास बुझाऊंगा।”

“हाय दैया, इतना मोटा और लम्बा।” गनगना कर मेरे लबों से सिर्फ यही अल्फाज़ निकले। दर असल मैं घबरा गई थी। मेरी जिंदगी में इतना बड़ा लिंग पहले कभी नहीं देखा था। दूर से इसका आकार इतना बड़ा नहीं लग रहा था। इतने सामने से दस इंच लम्बा और करीब चार इंच मोटा लिंग देख कर और हाथ में लेकर लेकर वाकई मैं दहशत में आ गयी। सिहर उठी मैं, रोंगटे खड़े हो गए। मैं समझ गई कि पंडित जी के विशाल फनफनाए लिंग से चुदने की इच्छा ने मुझे अच्छी खासी मुसीबत में डाल दिया है। अब भुगतना तो था ही। दिल कड़ा करके मैं ने सोच लिया कि ऊखल में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना।
 
पंडित जी माहिर चुदक्कड़ थे। मेरी मानसिक स्थिति को समझ गये। पहले मेरे उन्नत उरोजों को सहलाने लगे। उनकी जादुई हथेलियों के स्पर्श से मुझ पर नशा सा तारी होने लगा। मेरी आंखें बंद होने लगीं। मैं बेख्याली में अपने हाथों से उनके मूसल लिंग को पकड़ कर सहलाने लगी। उनके लिंग के चारों ओर बेहद घने लम्बे लम्बे बाल भरे हुए थे। वैसे तो उनका बेहद मोटा तोंदियल कोयले की तरह काला शरीर पूरा ही बालों से भरा हुआ था किंतु लिंग के चारों ओर करीब तीन तीन इंच घने लंबे बाल लिंग को और भयानक रूप दे रहे थे। मोटे और पत्थर की तरह कठोर लिंग के बाहरी चमड़े पर ऊंची ऊंची उभरी हुई नसों के कारण लिंग और भी भयावह दिख रहा था। कुछ मिनटों पश्चात उन्होंने मेरे सख्त उन्नत उरोजों को चाटना और चूसना शुरू कर दिया। मैं मदहोश होने लगी और मुह से सिसकारियां उबलने लगीं। कुछ मिनटों पश्चात उन्होंने मुझे सीधा लिटा दिया और चूमते चाटते अपना मुंह मेरी नाभि से होते हुए मेरी चिकनी योनि तक ले आए। मैं उनके इन कामोत्तेजक हरकतों से उत्तेजना के मारे मेरी सांसें धौकनी की तरह चलने लगी और सीना फूलने पिचकने लगा, मेरे शरीर में कामोत्तेजक लहरें उफ़ान मारने लगीं, मैं थरथराने लगी। पंडित जी ऐसी स्थिति में थे कि उनका भीमकाय लिंग ठीक मेरे मुंह के पास झूलने लगा था। इधर वे मेरी योनि के भगांकुर को अपनी जादुई जिह्वा से छेड़छाड़ करने लगे।

“उफ्फ, आ्आह्ह्ह” मैं आहें भरने को विवश हो उठी। पंडित जी इतने चालाक थे कि धीरे धीरे अपने लिंग के सुपाड़े को मेरे खुले होठों के बीच ले आए और हल्के-हल्के अपनी कमर को जुम्बिश देते रहे, परिणाम स्वरूप धीरे धीरे उत्तेजना के मारे बेध्यानी में उनके विशाल सुपाड़े को होंठों के बीच ले कर चूसने लगी। जीभ से चाटने लगी। पंडित जी मेरी कामुकता को हवा दे कर भड़का रहे थे ताकि उनके विकराल लिंग का भय मेरे मन से विलुप्त हो जाए। पंडित जी की योजना सफल होती जा रही थी। अब मैं उनके लिंग का एक तिहाई हिस्सा मुंह में ले चुकी थी और आनंद के अतिरेक में आंखें बंद किए बदहवास, चूसने में लीन थी। शायद उससे ज्यादा ले भी नहीं सकती थी। पंडित जी जबरदस्ती अपना लिंग मेरे मुंह में ठोक कर मुझे भयभीत नहीं करना चाहते थे, लेकिन चाट चाट कर मेरी फक फक करती योनि में भयानक अग्नि भड़का चुके थे। मैं कसमसाने लगी। पंडित जी समझ गये कि लोहा गरम है और फौरन सीधे हो मेरे पैरों को फैला दिया और जांघों के बीच आ गये। मैं बेचैनी से सिसकारियां भर रही थी। तभी पंडित जी ने अपने लिंग का विशाल सुपाड़ा मेरी गीली योनि के द्वार पर टिकाया और आहिस्ता आहिस्ता दबाव बढ़ाने लगे। उनका चिकना सुपाड़ा मेरी योनि के द्वार को फैलाता हुआ अहिस्ता आहिस्ता अंदर सरकता जा रहा था। मैं इतनी उत्तेजित थी कि मेरी योनि को सीमा से बाहर फैलाता हुआ इतने मोटे लिंग के प्रवेश से होने वाली व्यथा पर, बेलनाकार लिंग के बाहरी भाग का मेरी योनि मार्ग की भीतरी दीवार पर हो रहे सरसराहट भरे घर्षण से उत्पन्न अद्भुत आनंद हावी हो गया और मैं आंखें बंद किए उस अनिर्वचनीय सुख के सागर में डूबती चली गई। कब उसका विकराल लिंग मेरी योनि के अंदर मेरे गर्भगृह तक पैबस्त हो गया मुझे अहसास ही नहीं हुआ। हां उसके लिंग के सुपाड़े की दस्तक को मैंने अपनी कोख में अवश्य महसूस किया। जब पंडित जी ने देखा कि उसने संभोग का प्रथम चरण सफलता पूर्वक तय कर लिया है तो एक पल रुका और धीरे धीरे कमर उठाते हुए लिंग बाहर निकालने लगा। उतना ही निकाला कि लिंग का सुपाड़ा योनि के अन्दर ही रहे।

“आह्ह्ह्ह्ह ओह ओ्ओ्ओ्ओह” उसके विशाल लिंग के लिए संकीर्ण योनि मार्ग में वह चरम आनंद प्रदान करने वाला घर्षण, अनूठा था। लिंग के बाहरी चमड़े पर उभरे हुए नसों के कारण घर्षण का आनंद दुगुना हो गया था। मेरी योनि की भीतरी दीवार उसके लिंग पर कसी हुई मचल रही थी। ओह वह अहसास। शब्दों में बयां करना मुश्किल था। फिर वह पुनः धीरे धीरे लिंग मेरी योनि में अंदर धकेलने लगा। “ओह ओह ओ्ओ्ओ्ओह” गज़ब का था वह अहसास, उसके मोटे लिंग पर अपेक्षाकृत मेरी संकीर्ण योनि का कसाव।

जब उसने देखा कि मैं उसके लिंग को सुगमतापूर्वक अपनी योनि में समाहित कर रही हूं, उसने मेरे दोनों पैरों को अपने कंधों पर चढ़ा लिया और मेरी कमर को दृढ़ता पूर्वक अपने दैत्याकार पंजों से थामा और बड़े ही भद्दे ढंग से मुस्कुराते हुए कहा, “तू तो बड़ी खेली खाई लौंडिया है बहु। मेरा लौड़ा पहली बार में ही आराम से ले ली। चल रानी अब तू देख मैं तेरी चूत की प्यास कैसे बुझाता हूं।” कहते हुए एक करारा ठाप मार दिया। “ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में, ओह,” अबतक आराम से पंडित जी मेरे साथ पेश आ रहे थे किंतु अब उनकी पाशविक प्रवृत्ति जागृत हो गई थी। धीरे धीरे वे अपनी चोदने की रफ़्तार बढ़ाते चले गये। मैं उनके भैंस जैसे मोटे शरीर को अपनी बाहों से समेटने की असफल कोशिश करती रही। उनके शरीर के बालों का अपने नंगे जिस्म पर रगड़ना अलग ही मजा दे रहा था। ज्यों ज्यों उसकी रफ़्तार बढ़ती गई, मैं आनंद के अथाह समुद्र में डूबती गई।
 
“आह पंडित जी, ओह ओ्ओ्ओ्ओह ओह ओ्ओ्ओ्ओह” मैं बुद बुदाने लगी।आराम से चुदने और इस तूफानी अंदाज में चुदने में बहुत फर्क था और वह भी इतने बड़े लंड से। आम स्त्रियों के लिए सच में भयावह था, किंतु मैं उन आम स्त्रियों की श्रेणी में नहीं थी। खेल कूद में सदैव अव्वल रहने वाली सुगठित देह की स्वामिनी थी मैं। पिछले कुछ ही दिनों में मैं इस प्रकार के वासना के खेल में अच्छी खासी महारत हासिल कर चुकी थी। रतिक्रिया में माहिर पंडित जी अब मेरी नग्न कमनीय मादक देह को अपने दानवी शरीर से पूरी पैशाचिकता के साथ संभोग में मशगूल हो गए और अपनी अदम्य संभोग क्षमता से मुझे दूसरी ही दुनिया में पहुंचा दिया। मैं अपने पतियों और मां, चाची, सबकी उपस्थिति भूल गयी और मदहोशी के आलम में बेशर्मी पर उतर आई, “आह, ओह ओ्ओ्ओ्ओह चोदू पंडित जी, आह राजा ओह साले कमीने कुत्ते मेरी चूत के लौड़े, चोद मादरचोद, मां के चोदू, चाची की चूत के रसिया, हाय राजा, गधे के लौड़े, चोद राजा चोद साले मेरी चूत की चटनी बना दे आह आह मेरी बुर का भोंसड़ा बना डाल राजा, काले भैंसे, साले चोदू भालू” और न जाने क्या क्या बके जा रही थी।

मेरी बड़बड़ाहट से उत्साहित पंडित भी बड़बड़ाने लगा, “आह बहुरानी, ओह ओ्ओ्ओ्ओह रानी ओह रंडी कुतिया आह हरामजादी, मस्त लौंडिया है रे तू, लौंडिया की चूत, आह हुमा,” और न जाने क्या क्या बोले जा रहे थे और मुझे करीब तीस पैंतीस मिनट तक नर पिशाचों की तरह नोचते खसोटते रौंदते भंभोड़ते रहे। फच फच की आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी। इस दौरान हम दोनों आनंदातिरेक में डूबे अपने अंदर की मनस्थिति व मनोभावों को खुल कर अपशब्दों और बेहद घृणित अश्लील शब्दों के द्वारा व्यक्त करते रहे। मैं उनकी पैशाचिक हरकतों से हलकान होने की जगह पूरी बेहयाई पर उतर आई और रंडियों की तरह खुल कर पूरी शिद्दत से प्रति पल प्राप्त होने वाले नवीनतम आनंद से विभोर होती रही। उनके दीर्घ स्तंभन क्षमता की मैं कायल हो गई। रतिक्रिया के दौरान मैं अपनी चूतड़ नीचे से ऊपर उछाल उछाल कर पंडित जी का पूरा साथ दे रही थी। अंततः पंडित जी के स्खलन का समय आ पहुंचा। चोदने की रफ़्तार इतनी बढ़ गई थी कि ऐसा लग रहा था मानो वे मानव नहीं कोई संभोग की मशीन हों। मैं समझ गई कि पंडित जी खलास होने के करीब पहुंच गये हैं। सच बात तो यह है कि मैं इस दौरान दो बार झड़ चुकी थी। अभी तीसरी बार झड़ने के करीब थी। अचानक ही उन्होंने मुझे पूरी शक्ति से जकड़ लिया और फिर शुरू हुआ उनका अंतहीन स्खलन। उसी समय मैं भी झड़ने लगी।

“ओह मां, ओह ओ्ओ्ओ्ओह आह्नेह्ह्” संभोग के सुख का वह चरमोत्कर्ष, मैं निहाल हो गई। थरथराती कांपती हुई आंखें बंद किए स्वर्गीय सुख से सराबोर होने लगी।

मेरे मुंह से बेसाख्ता सिसकारियां निकलने लगीं। “ले बुर चोदी बहुरानी मेरा माल अपनी चूत में आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह” किसी जंगली भालू की तरह मुझ से चिपक कर अपने लिंग के वीर्य से मेरी कोख को सींचने लगे। ऐसा लग रहा था मानो मेरी कोख में वीर्य का बाढ़ आ गया हो। इस समय मेरी संकुचित योनि उसके लिंग से कस के चिपक गई थी। मेरी योनि ने एक तरह से उनके लिंग को जकड़ लिया था। जब तक उनका लिंग स्खलित हो कर शिथिल नहीं हो गया तब तक मेरी योनि की दीवारें उनके लिंग से चिपकी उनके लिंग से निकलते वीर्य का कतरा कतरा अनमोल मोतियों की तरह जज्ब करती रही। पूरी तरह झड़ चुकने के बाद पंडित जी ने मुझे अपने दानवी पाश से मुक्त किया और उनका निचुड़ चुका लिंग मेरे द्वारा योनि को सप्रयास संकुचित कर सख्ती से पकड़े रखने की कोशिश के बावजूद शिथिल हो कर फच्च की आवाज से बाहर निकल आया। उनका राक्षसी लिंग इस वक्त भीगे हुए मासूम चूहे की तरह दिखाई दे रहा था। मैं पूर्ण रूप से तृप्त हो चुकी थी। मेरा पूरा शरीर हल्का हो कर हवा में उड़ रहा था। मैं पगली दीवानी उस मोटे भैंस के बेडौल नंगे जिस्म से लिपट कर उनके कुरूप चेहरे पर चुम्बन जड़ दी। उनका घिनौना चेहरा और बेडौल तन मुझे बहुत प्यारा लगने लगा था।

“खुश कर दिया राजा। शुक्रिया मेरे पतियों, सुहागरात में इतना यादगार तोहफा देने के लिए।” मैं थकान से चूर बिस्तर पर लुढ़क कर लंबी-लंबी सांसें लेने लगी।

कमरे में उपस्थित बाकी सारे लोग खामोशी से तमाशबीनों की तरह हमारी कामलीला देख रहे थे। अब तक मेरी मां अपना होश संभाल चुकी थी। उनके मुख से निकला, “बना दिया ना मेरी बेटी को भी रंडी। पांच पांच मर्दों की पत्नी होने के बावजूद एक बाहर का आदमी मेरी बेटी को उनकी आंखें के सामने चोद रहा था और सारे के सारे नामर्द पति तमाशा देख रहे थे, साले मादरचोद कुत्ते।”
 
“चुप साली रंडी। हमारी पत्नी, तेरी बेटी, हमारी मर्जी से चुद रही थी, तेरे जैसी नहीं कि पति की आंख बचाकर किसी भी मर्द का लौड़ा लेने के लिए मरी जा रही है।” हरिया बोला।

“अच्छा तो मुझे रंडी कहने के पहले पहले ये बताओ हरामी, कि मैं आज दूसरे मर्दों से चुद रही हूं तो क्यों? क्योंकि मैं अंदर से बहुत चुदासी रहती हूं और इसके जिम्मेदार तुम, ससुर जी और बड़े ससुरजी हैं। तुम लोगों ने मेरी नादानी का फायदा उठाकर मुझे रंडी की तरह चोद चोद कर मुझे चुदाई का नशा चढ़ा दिया। मुझे इन बातों से अब कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि मैं इस तरह की जिंदगी में खुश हूं। मैं ने तो कभी मेरी इस स्थिति के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया, बल्कि उल्टे मैं तो खुश हूं कि आप लोगों ने मुझे जीवन जीने का आनंदमय मार्ग दिखा दिया। और तो और मेरे पति, कामिनी के पापा भी कम जिम्मेदार हैं क्या? वो नामर्द, कभी भी मुझे पत्नी का सुख नहीं दे पाया। दो मिनट में खलास हो कर हमेशा मुझे तरसती छोड़ कर सो जाता है।” बोलती जा रही थी “ऊपर से है समलैंगिक (गांडू), मर्दों से गांड़ मरवाने की आदत। हां, मेरे पति को स्त्रियों में कोई खास दिलचस्पी नहीं है। चिकना है। अब आप लोग ही बताइए ऐसे मर्द की पत्नी क्या करे?” बड़े दादाजी की ओर देखते हुए बोली, “आप भी तो उनका गांड़ मारते हैं, अभी चुप क्यों हैं? बोलिए, सच है कि नहीं?”

“हां भाईयों यह सच है,” सर हिलाते हुए बड़े दादाजी बोले, “कामिनी का बाप चिकना तो है ही, ऊपर से उसको गांड़ मरवाने की आदत भी है। तुम सब लोगों को पता नहीं है क्या कि उसका गांड़ बिल्कुल औरतों की तरह है? मुझे वैसे भी गांड़ चोदने का शौक तो है ही। उसकी गांड़ देखने से ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है। पिछले दस सालों से मैं उसकी गांड़ मारता आ रहा हूं। मगर मैं जबरदस्ती कभी नहीं किया। वह खुद ही मुझे ललचा कर गांड़ मारने को तैयार किया। कई लोगों से उसका संबंध है। परिवार की इज्जत की खातिर मैं ने किसी को नहीं बताया, यहां तक कि रघु को भी नहीं। आज जब बात खुल ही गई है तो बता रहा हूं।”

हम सब को जैसे काठ मार गया था। कमरे में सन्नाटा पसर गया था। सब चुपचाप बड़े दादाजी की बातें सुन रहे थे। हे भगवान! यह कैसा परिवार था मेरा? नानाजी, दादाजी, बड़े दादाजी, पापा हरिया, करीम चाचा, मां सब एक से बढ़कर एक वासना के भूखे, कामुकता के दलदल में आकंठ डूबे। अब पिताजी के समलैंगिक होने का रहस्योद्घाटन। उन्हीं के नक्शे-कदम पर चलती अब मैं।

“तुम ठीक कह रही हो लक्ष्मी। मैं भी आज इस स्थिति में हूं तो इन्हीं के तरह के कामुक मर्दों की वजह से। सारे मर्द एक जैसे हैं। पहले हम जैसी स्त्रियों का शिकार करेंगे और खुद को पाक साफ दिखाएंगे, सारी बदनामी हम स्त्रियों के माथे मढ़कर।” अब तक चुप चाची भी बोल उठी।

“लो, अब तू भी बोल ले। अब तेरे छिनाल बनने में हमारा क्या दोष? तू तो पहले से बनी बनाई छिनाल है, हमने तो सिर्फ बहती गंगा में डुबकी लगाई है।” पंडित जी बोले।

“अच्छा तो सुनाऊं मैं आप मर्दों के किस्से? आप नहीं तो क्या हुआ, आप जैसे मर्दों की कमी है क्या हमारे समाज में? बताऊं मैं, शरीफों का नकाब ओढ़े हुए यहां के मर्दों के बारे में, जिन्होंने मुझे एक शरीफ घरेलू औरत से छिनाल बना कर रख दिया। मुझे चोद चोद कर किस तरह मेरे अंदर चुदास भर दिया है यहां के तथाकथित शरीफ मर्दों ने। अगर आप लोग सुनना चाहते हैं तो सुनिए।” चाची बोली।

“ठीक है ठीक है, तू भी अपनी रामकहानी सुना देना, मगर अभी नहीं, कल सवेरे। चलो अब सब सो जाओ।” दादाजी बोले।

मुझे भी बहुत सारी बातें जाननी थी। चाची की चुदाई यात्रा के बारे में और मेरे पापा के समलैंगिक होने के बारे में। और भी पता नहीं क्या क्या छिपा है हमारे परिवार के सदस्यों के बारे में। यही सब सोचते सोचते पता नहीं कब आंख लग गई।

बाकी की बातें अगली कड़ी में
 
प्रिय पाठकों,

पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मेरे सुहागरात में मेरे पांचों पतियों, मां और चाची के सामने हमारी शादी कराने वाले पंडित जी और मेरे बीच वासना का नंगा नाच चला। सबसे किस्मत वाले थे पंडित जी। वहां उपस्थित तीनों स्त्रियों के साथ संभोग का स्वर्ण अवसर प्राप्त हुआ जिसका उन्होंने भरपूर लाभ उठाया। पहले मेरी मां और चाची के मदमस्त जिस्म का जी भर कर भोग लगाने का सुअवसर प्राप्त हुआ और फिर कल्पनातीत स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ मेरे कमनीय गदराए तन से खेलने का। बदशक्ल और विकृत शरीर वाले कामुक पंडित कुशल चुदक्कड़ की तरह चटखारे ले ले कर हम तीनों स्त्रियों के शरीरों को अमानुषिक संभोग क्षमता का प्रदर्शन करते हुए रौंद ही डाला। चाची और मां के बारे में तो मुझे पता नहीं, किंतु मैं तो निहाल हो गई। अब तक संभोग का इतना आनंद नहीं मिला था। संभोग सुख का वह चरमोत्कर्ष था, उफ्फ, कभी न भूलने वाला स्त्रीत्व की संपूर्णता का वह अद्भुत अहसास। पंडित जी पर बेहद प्यार आ रहा था किन्तु अपने पतियों के सम्मुख उसका प्रर्दशन नहीं कर सकती थी।

पंडित जी के कानों में फुसफुसाते हुए मैंने अपनी भावनाओं का इजहार किया, “आई लव यू राजा, आपकी चुदाई की दीवानी हो गई मैं, मुझ पर ऐसी ही कृपा करते रहिएगा जी।”

पंडित जी मुस्कुरा उठे और फुसफुसा कर बोले, “ओह ओ्ओ्ओ्ओह बहुरानी, तुझे चोद कर मुझे स्वर्ग मिल गया, कैसे भूल जाऊं। जब बोलो तब चोदूंगा रानी, जब भी मुझे चोदने का मन होगा, मैं बुला लूंगा, जरूर आना।”

“हां राजा हां, मैं आपकी दासी हो गई।” मैं निछावर होकर उनके कानों में फुसफुसाते हुए बोली।

सभी की वासना की भूख उस समय के लिए मिट चुकी थी। उस दीर्घ कामक्रीड़ा के पश्चात थककर चूर सभी लोग उसी कमरे में यहां वहां नंग धडंग पसर गये थे। उस वक्त रात का दो बज रहा था। प्रात: जब मेरी निद्रा खुली, मैं ने देखा नौ बज रहे थे। अब तक सभी जानवरों की तरह नंग धड़ंग बेतरतीब, पूरी बेशर्मी से दीन दुनिया से बेखबर खर्राटे भर रहे थे। मैं ने देखा कि सभी अब तक घोड़े बेच कर सो रहे हैं तो मैं अपने बगल में लेटे भैंस जैसे पंडित जी को देखने लगी। बड़े ही वीभत्स रूप रंग, आधे गंजे और बेडौल जिस्म के स्वामी। बड़ा सा तोंद फूल पिचक रहा था। मुह खुला हुआ और ऊपर के बड़े बड़े चार दांत बाहर की ओर निकले हुए उनकेे कुरूप चेहरे को और भी वीभत्स रूप प्रदान कर रहे थे। बड़े बड़े कानों में लंबे लंबे बाल। एक बार तो मैं वितृष्णा से भर गई, छि:, इसी जानवर ने कल रात को मेरे जिस्म को भोगा। फिर मेरी दृष्टि उनके लिंग पर पड़ी जिससे चुद कर मैंने अब तक के संभोग का सर्वश्रेष्ठ और स्वर्गिक आनंद की प्राप्ति की। मेरे अंदर से उनकी शारीरिक कुरूपता से उपजी पल भर की वितृष्णा गायब हो गई और उसके स्थान पर मेरे दिल में पंडित जी के लिए बेइंतहा प्यार उमड़ पड़ा और मैं उनके नग्न जिस्म से चिपक कर उनके मोटे मोटे होंठों को चूम उठी। पंडित जी ने आंखें खोली तो मुझे अपने ऊपर देख कर अपनी मजबूत बांहों में कस लिया और मेरे चुम्बन का प्रत्युत्तर प्रगाढ़ चुम्बन से दिया। उनके मुख से निकलते बदबूदार भभके से भी मुझे कोई घृणा नहीं हुई। फिर मैं उनकी बांहों से आजाद हो कर मीठी मुस्कान के साथ बाथरूम की ओर बढ़ी। पंडित जी भी मेरे पीछे पीछे बाथरूम में घुस गये और मुझे पीछे से पकड़ लिया। उनका मूसलाकार लिंग पूरी तरह सख्त हो कर मेरी गुदा में दस्तक दे रहा था। मैं घबरा कर अहिस्ते से बोली, “ओह ओ्ओ्ओ्ओह राजा, अभी नहीं बाबा, कोई उठ जाएगा तो? बाद में कर लीजिएगा ना। मैं कहीं भागी थोड़ी ना जा रही हूं।”

“ठीक है बहुरानी ठीक है। बाद में ही सही।” मायूसी से पंडित जी बोले और टनटनाए खड़े लिंग के साथ बाथरूम से बाहर निकल गये। मैं बाथरूम में फ्रेश होकर कपड़े पहन कर उन सबको उठाने लगी, “अरे उठ जाओ भई, नौ बज गए हैं।”
 
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