Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 19 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“देखो मैडम, आप ने ऑटो में बैठकर अपनी चूचियां दिखा कर खुद ललचाया है। मेरा लौड़ा मेरे वश में नहीं है। अब हम इसको कैसे रोकें। आपको चोदे बिना मानेगा नहीं, इसलिए चुपचाप चोदने दे। वैसे भी आपके जैसी औरत हमारी किस्मत में कहां। आज तो ऐसी सुंदर औरत हाथ लगी है।” कहते कहते मेरी इलास्टिक वाले ढीली पैजामी को एक झटके में मेरी पैंटी समेत नीचे खींच लिया। अब मेेेरे नीचे का हिस्सा बिल्कुल नंगा था जो चांदनी रात में चमक रहा था।

“हाय राम, मुझे छोड़ दो । छि: छि: कैसी गंदी बात कर रहे हो। मुझे जाने दो प्लीज।” मैं अपनी योनी को अपने हाथों से ढंकने की असफल कोशिश करती रही। लेकिन अब उस ऑटो वाले को रोक पाना असंभव था, मैं रोकना चाहती भी नहीं थी। मेरी दपदपाती चांदनी रात मे चमकती योनी का दर्शन करने के बाद तो वह पागल ही हो गया। एक झटके में मेरे नीचे के कपड़े को पैरों से निकाल फेंका। इससे पहले कि मैं कुछ कहती, वह मुझ पर सवारी गांठ चुका था। मेरे दोनों पैरों को जबरदस्ती फैला कर अपने लिंग का सुपाड़ा मेरी योनी छिद्र के ऊपर रख कर एक ही भीषण प्रहार से सड़ाक से पूरा लिंग उतार दिया।

“ओह्ह्ह्ह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ,” मैं चीख पड़ी। दर असल मैं चीखने में मजबूर हो गई थी, चूंकि उसने बड़ी ही बेरहमी और जल्दबाजी में यह सब किया था। सच में उसका यह कृत्य पीड़ादायक था। मेरे गोल गोल सख्त उरोजों के ऊपर खड़े निप्पल्स को देखकर उसकी हैवानियत और बढ़ गई थी। अपने मुह में भर कर दांत गड़ा दिया।

“आह्ह्ह्ह्ह, मार डाला रे हरामी” मैं फिर चीखी। लेकिन उस पर तो भूत सवार हो चुका था। इधर मेरी चूचियों पर अपनी हैवानियत का निशान छोड़ता जा रहा था और उधर दनादन मेरी योनी में अपने मोटे लिंग का आक्रमण पर अक्रमण किये जा रहा था। मेरी चीख पुकार का उसपर कोई असर नहीं हुआ। कुछ पलों की पीड़ा के पश्चात मैं उसके मशीनी अंदाज में संभोग से अजीबोगरीब स्थिति में पहुंच गई। एक तरफ दर्द, दूसरी तरफ सुखद अहसास।
 
शनैः शनैः मैं उसके बलात संभोग से सुख के गहरे सागर में डूबती चली गई और बेसाख्ता मेरे होठों से, “आह, ओह्ह्ह्ह, मां मां, ओह उफ्फ्फ, इस्स्स्स्स,” आनंद से परिपूर्ण सिसकारियां निकलने लगीं। मैं ने अपने पैरों से उसकी कमर को लपेट लिया था और उसकी गर्दन को अपने हाथों से लपेट कर सुखद संसार में झूले झूलने लगी। करीब पैंतीस मिनटों तक वह ऑटोवाला मुझे झिंझोड़ता रहा।

“आह ओह रानी, ओह मैडम, ले मेरा लौड़ा, ओह साली, मजा आ रहा है ना मेरी रानी, आह ऐसी औरत को चोदने का मजा, अहा, ओहो, तेरी चूत, ओह तेरी बुर, मस्त मस्त,….” बोलता जा रहा था और दनादन चोदता जा रहा था। इस दौरान मुझे दो बार झाड़ चुका था। मेरी सारी थकान उतार कर तरोताजा कर दिया था। मैं दुगुने जोश से कमर उछाल उछाल कर चुदवाती रही। फिर अचानक पूरी ताकत सी मुझे अपने से चिपका कर फच फच अपना मदन रस मेरी चूत में भरता चला गया। “आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्ह्,” डकारता हुआ खल्लास हो गया, तभी मैं भी एक लंबी आह्ह्ह्ह्ह के साथ उसके शरीर से चिपकी, झड़ने के अद्भुत अहसास से सराबोर हो उठी। अभी खल्लास हो कर मुझे छोड़ कर खड़ा हो ही रहा था कि, अचानक किसी आघात से वह एक दर्दनाक चीख के साथ औंधे मुंह गिर पड़ा। मैं घबरा कर सामने देखने लगी, दो काले भुजंग दानवाकार गुंडे खड़े थे।

“साला हरामी अकेले अकेले इतनी खूबसूरत लौंडिया को हमारे इलाके में लाकर चोद रहा है मादरचोद।” एक खौफनाक आवाज मुझे सुनाई पड़ी। मैं समझ गई कि मैं इन गुंडों के बीच फंस चुकी हूं। मैं ने पल भर में स्थिति को समझ लिया, और खड़ी होना चाह रही थी तभी उस गुंडे ने कहा, “कालिया, पकड़ साली कुतिया को। अब हम चोदेंगे, उठ कहाँ रही है हरामजादी।” जैसे ही कालिया नामक गुंडा मुझे पकड़ने के लिए मुझ पर झुका, मैंने अपने दाहिने पैर के घुटने का एक करारा प्रहार उसके जांघों के बीच जड़ दिया। “आह्ह्ह्ह्ह,” एक लंबी दर्दनाक चीख के साथ वह अपने गुप्तांग को पकड़ कर दोहरा हो गया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, मेरे बांये घुटने का प्रहार उसके थोबड़े पर हुआ। वह अचेत हो कर वहीं भरभरा कर गिर पड़ा।

“मादरचोद, हराम का माल पाया है? जा के अपनी मां बहन को चोद भड़वे”, मैं चीखी, अब मैं रणचंडी बन चुकी थी। पूरी तरह नंगी उस दूसरे गुंडे के सामने खड़ी हो गई। “आ, साले, चोदना तो दूर, हाथ लगा के दिखा मां के लौड़े।”
 
मेरा रौद्र रूप देख कर एकबारगी वह सहम गया। फिर भी हिम्मत बांध कर मेरी ओर बढ़ा। तभी मेरे दायें पैर का करारा किक उसके पेट पर पड़ा।

“आह्ह्ह्ह्ह” कराह कर ज्यों ही वह पेट पकड़ कर झुका, उसकी गर्दन कर मेरे दायें हाथ का चाप पड़ा। वह भी ढेर हो गया। अब तक संभल चुका ऑटो वाला ठगा सा यह सब देख रहा था।

मैं हाथ झाड़ते हुए अपने कपड़ें पहनते हुए बोली, “इस तरह आंखें फाड़कर देख क्या रहे हो, मुझे घर नहीं छोड़ना है क्या?” वह जैसे नींद से जागा। फिर फटाफट अपने कपड़े पहन कर ऑटो स्टार्ट किया। मैं कूद कर ऑटो में सवार हो गई। वह ऑटो वाला पूरे रास्ते चुप रहा।

जब मैं ऑटो से उतरी और पैसे देने लगी, शर्मिंदा होते हुए मुझ से पूछ बैठा, “मैडम, आपने दो गुंडों को मार गिराया, आप चाहती तो मुझे भी मार सकती थीं, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया, क्यों?”

“तू अपने काम से काम रख, वैसे नाम क्या है तुम्हारा?” मैं बोली।

“जी श्यामलाल” वह अब भी शर्मिंदा था।

“तो श्याम बाबू साहब, तू मुझे चोद सका, क्योंकि मैं ऐसा चाहती थी, समझ गये? तुम मुझे पसंद आए। आगे भी तुम मुझे चोद सकते हो। एक बात समझ लो, जिसे मैं पसंद नहीं करती, वह मुझे छू भी नहीं सकता है। अब देख क्या रहे हो, फूटो यहां से। कभी चोदने का मन करे तो बोल देना। यह रहा मेरा नंबर।” इतना कहकर मैं ने उसे अपना नंबर दे दिया। उसके बाद मैं कई बार उससे मिली और मजा किया। उसका एक और पार्टनर था, बलराम, पचास साल का एक स्थानीय आदिवासी, कद करीब पांच फुट ग्यारह इंच, बिल्कुल कोयले की तरह काला, गंजा, साधारण सा दिखने वाला, पेट थोड़ा निकला हुआ, किंतु लिंग आठ इंच का और लिंग की मोटाई भी उसी के अनुपात में। वह पूरा अनुभवी चुदक्कड़ था, स्त्रियों की कामक्षुधा को तृप्त करने की कला में माहिर और स्तंभन क्षमता अद्भुत। श्यामलाल की तुलना में कई गुना दक्ष खिलाड़ी। मैं श्यामलाल की शुक्रगुजार हूं ऐसे वासना के पुजारी से मिलाने के लिए। मेरे जैसी वासना की अदम्य भूखी औरत के लिए कुछ गिने चुने व्यक्तियों की सूचि में उसका नाम भी आता है। श्यामलाल के साथ साथ उसके साथ कई बार सामुहिक संभोग का लुत्फ भी उठाया। कभी अपने घर में, कभी उसके घर में और कभी बलराम के घर में। बलराम वाला किस्सा मैं बाद में बताऊंगी। कहने का तात्पर्य यह है कि मेरी मर्जी के बगैर कोई मुझे हाथ भी नहीं लगा सकता था, उस समय भी और आज भी।

आगे की घटना अगली कड़ी में।
 
हां तो मैं बता रही थी कि श्यामलाल के साथ मेरा जो शारीरक संबंध दस साल पहले एक बार जो शुरू हुआ वह तो फिर चलता ही रहा। वह तो दीवाना हो गया मेरा। बार बार मेरे साथ संभोग के लिए ललायित रहता। अब उसकी दिनचर्या हो गयी थी, मेरा इंतजार करना ऑटो स्टैंड मेंं। फिर किसी सुनसान जगह में अपने तन की प्यास बुझा लेते थे हम। इसी दौरान करीब दो हफ्ते बाद एक दिन ऐसे ही मैं ऑटो स्टैंड पहुंची तो देखा कि श्यामलाल एक स्कॉर्पियो के पास खड़ा है।

“क्या हुआ, आज तुम्हारा ऑटो कहाँ है?”

“मैडम, आज मेरे एक दोस्त के स्कॉर्पियो का सर्विसिंग था, तो हम ऑटो छोड़कर स्कॉर्पियो ले कर आया था सर्विसिंग के लिए। सोचा कि लौटते वक्त इसी में आप को ले लेंगे।”

“ठीक है चलो” मेरे मन में अबतक उसने विश्वास जमा लिया था, कोई शंका की बात नहीं थी। मैं सामने की सीट पर बैठ रही थी तभी उसने मुझे पीछे सीट पर बैठने का आग्रह किया, जिसे मैंने सहज भाव से लिया और ड्राईविंग सीट के पीछे वाली सीट पर बैठ गई।

“हम ग्लास चढ़ा कर ए सी चला देते हैं, आपको “गर्मी” बहुत लगती है ना” वह अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुरा रहा था।

“बहुत शैतान हो गये हो” मैं ने उसे मीठी झिड़की दी। वहां से जैसे ही हम लोआडीह चौक पहुंचे, एक काले से आदीवासी आदमी ने स्कॉर्पियो रुकवाया। श्यामलाल शायद उसका पूर्व परिचित था।

“मैडम, यह बलराम है, इस स्कॉर्पियो का मालिक। इन्हें भी रामपुर ही जाना है। वहीं रहता है यह भी। इनका घर वहीं पर है।” श्यामलाल बोला। इससे पहले कि मैं कुछ कहती, वह आदीवासी आदमी मेरी ही सीट पर आ बैठा। गाड़ी के अंदर आते ही मेरे नथुनों में शराब का तेज भभका टकराया। ऐसा लग रहा था वह बहुत शराब पिए हुए था। मैं तनिक असहज हो उठी और तनिक मायूस भी कि आज मेरी चुदाई प्रोग्राम का भट्ठा बैठ गया। मन मसोस कर रह गई। उसके तन से भी पसीने की बदबू आ रही थी। पता नहीं क्या था उस पसीने और शराब की मिली जुली दुर्गंध में कि मेरे अंदर पुरुष संसर्ग की कामना भड़क उठी।

मेरी मायूसी को भांपते हुए श्यामलाल तनिक झिझकते हुए बोला, “मैडम, बलराम को हमारे बारे में सब पता है। आज ही मुझ से कह रहा था कि एक बार मुझे भी मैडम की दिला दो। क्या कहती हैं आप?”

“तुम सब मर्द एक ही जैसे हो। बता दिया सब कुछ इन्हें? शर्म नहीं आई? आखिर फंसा ही दिया मुझे। तुम्हारी जगह कोई और होता तो तुम्हें पता है कि मैं उसका क्या हस्र करती। तुम्हारी बात कुछ और है इसलिए तुम्हारी बात रखने के लिए…..(मैं चुदने को तैयार हूँ इस बेवड़े से, मन ही मन तो खुश हो रही थी)” मैं बेबसी का नाटक करती हुई बोली। मेरे उत्तर से उन दोनों के चेहरे खिल उठे।

“ओह मैडम, दिल खुश कर दिया,” कहते हुए मुझ से सट गया और अपने दायें हाथ से मुझे समेट लिया और सीधे मेरी दायीं चूची पर हाथ रख दिया, सिर्फ हाथ ही नहीं रखा, तीन चार बार दबा भी दिया। “क्या मस्त चूची है, वाह मैडम” वह बोला, साथ ही अपने होठों से मेरे गालों, गले, होठों को चूमने लगा।

“छोड़ो मुझे, इस तरह रास्ते में कोई देख लेगा।” मैं छिटक कर अलग होने का नाटक करने लगी।
 
“कोई नहीं देखेगा मैडम, गाड़ी के काले शीशे के बाहर से कोई अंदर नहीं देख सकता है। अंदर से बाहर सब कुछ दिखता है।” कहते हुए बलराम ने अपनी बायीं हाथ मेरी जांघ पर रख कर तीन चार बार दबा दिया। मैं उसका हाथ हटाने की असफल कोशिश करती रही मगर धीरे धीरे जबरदस्ती, वह मेरी साड़ी के ऊपर से ही मेरी जांघों के बीच हाथ ले आया और ठीक मेरी योनी के ऊपर सहलाने लगा। उफ्फ्फ, मैं अपने शरीर पर से नियंत्रण खोती जा रही थी। मेरी वासना की भूख को हवा दे दिया था उस खड़ूस नें। कामदेव नें मुझे बेबस कर दिया और मैं कामदेव के तीर से घायल, मदहोश होती जा रही थी।

“उफ्फ्फ, छोड़ो मुझे प्लीज,” मेरे विरोध में छिपे आमंत्रण को बलराम ने बखूबी पढ़ लिया था। उसकी हरकतें बढ़ती जा रही थीं। उसने मेरी साड़ी धीरे से उठा दी और अब सीधे मेरी पैंटी के ऊपर से मेरी पहले से पानी छोड़ती हुई योनी को सहलाना शुरू किया। “आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, उफ्फ्फ,” मैं अपनी उत्तेजना को छिपा पाने में असमर्थ हो गई, सिसिया उठी मैं। वह धीरे धीरे मुझ पर पूरी तरह हावी हो गया।

“मैडम जी, आप तो गजब की चुदक्कड़ हो। आपकी चूत तो बिल्कुल पावरोटी की तरह फूली हुई है। चूचियां गजब की बड़ी बड़ी। खूबसूरत तो हो ही, मगर एक नंबर की चुदक्कड़ भी हो। श्यामलाल जैसा बोला था, एकदम वैसी ही हो। आज मजा आएगा चोदने का।” अब बलराम खुल कर मेरे शरीर से खेलने लगा। गाड़ी धीरे धीरे चल रही थी, म्यूजिक सिस्टम में सेक्सी गाने एक के बाद एक बजते जा रहे थे। हाईवे पर कब नामकुम पार हुआ, कब रामपुर पार हुआ पता नहीं। एक एक करके मेरे कपड़े खुलते गए और अंततः मैं पूरी मादरजात नंगी हो गई। मेरे नग्न शरीर की छटा देख कर वह तो मानो पगला गया। गाड़ी की सीट को ऐसा एडजस्ट किया कि ड्राईविंग सीट के पीछे का हिस्सा बिस्तर में तब्दील हो गया। आनन फानन वह भी अपने कपड़ों से मुक्त हो कर मादरजात नंगा हो गया।

“ओह्ह्ह्ह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ इतना बड़ा्आ्आ्आ्आ, हाय राम इत्त्त्त्त््त्त्आ्आ्आ्आ्आ््आआ मोटा्आ्आ्आ्” इतना बड़ा लिंग था उसका। आठ इंच लंबा, मगर गधे की तरह फनफनाता करीब चार इंच मोटा। फिर वही, मेरा घबराने का नाटक। भीतर ही भीतर तो मैं पुलकित हो रही थी, आखिर मैं भी पूरी चुदक्कड़ हूँ ना। उसका पूरा शरीर काला भुजंग, हब्शियों की तरह। शरीर की बनावट, गठा हुआ, मजबूत, बनमानुष की तरह, पेट निकला हुआ। मुझे उसके शरीर की बनावट की वजह से पता नहीं क्यों कुछ अधिक ही उत्तेजक लग रहा था। एक अलग अनुभूति हो रही थी।

“साली छिनाल मैडम, तेरी चूत के लिए तो ऐसा ही लौड़ा ठीक है। साली बुरचोदी मैडम, पता नहीं कितना लौड़ा खा चुकी है इस भोंसड़ा में। नाटक कर रही है हरामजादी मैडम।” मेरी फूली हुई चिकनी पनिया उठी चूत को देख कर अब वह पूरी तरह समझ चुका था कि मैं किस किस्म की औरत हूँ। “अरे श्यामलाल यह तो पूरी रंडी है रे रंडी, इतना बड़ा्आ्आ्आ्आ चूत, साली ऐसा लग रहा है मानो किसी भैंस की चूत है” बलराम मेरी चूत को देखकर अचंभे में पड़ गया।
 
“अरे बलराम भाई, जरा चोद के तो देखो, ऐसा चूत पहले कभी नहीं चोदा होगा, कसम से, मजा नहीं आया तो मेरा नाम श्यामलाल से चूतलाल रख देना।” ड्राईव करते करते श्यामलाल बोला। उसकी बात सुनकर कोई भूमिका बांधे बिना सीधा मुद्दे पर आ गया। मेरे पैरों को फैलाया और अपनी एक उंगली मेरी योनी में घुसा दिया और उंगली निकाल कर चाट लिया।

“वाह, टेस्टी है” वह चटखारे ले कर बोला।

“छि: छि:” मेरे मुंंह से निकला। उसने फिर वही क्रम दुहराया, लेकिन इस बार उसने दो उंगलियां घुसा दीं। “आह्ह्ह्ह्ह, क्या करते हो” मेरे मुह से निकला। लेकिन अब वह दनादन दो उंगलियां अंदर बाहर करने लगा और करीब दो मिनट तक वह तूफानी रफ्तार से ऐसा ही करता रहा जिसके कारण मैं अपने को रोक नहीं पाई और “ओह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्” करती हुई मैं उसी वक्त झड़ गई। मेरी थरथराहट और मेरे मुख से निकले निश्वास से उसे पता चल गया कि मैं झड़ रही हूँ।

“इतनी जल्दी ढीली मत पड़ो मैडम, अभी तो जी भर के चोदुंगा तुम्हें। रोज कोई न कोई मिल जाती थी चोदने के लिए, लेकिन आज कोई औरत मिली नहीं और किस्मत से मिली भी तो इतनी मस्त चुदक्कड़ औरत। सच में मजा आ गया” कहते हुए उसने मेरी चूचियों को चूसना और चाटना शुरू कर दिया। उंगलियां निकाल कर मेरी चूचियों पर मेरे चूत रस को मल दिया और बदस्तूर चाटता रहा चूसता रहा। फिर उसने अपनी उंगलियां मेरी चूत में डालकर उंगलियों से चोदना जारी रखा, उसकी इन हरकतों ने मुझे दुबारा जागृत कर दिया। मेरे बदन को ऐंठते देख कर वह समझ गया कि तवा गरम है, बिना एक पल गंवाए अपने विशालकाय लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पर रख कर, मेरी कमर को कस के पकड़ा और एक करारा ठाप लगा दिया।

“ले साली कुतिया मैडम मेरा लौड़ा, ओह्ह्ह्ह हुम्म्म्म्म्म्म, ओह, साली इतना बड़ा भोंसड़ा मगर इतना टाईट? ओह्ह्ह्ह मजा आएगा अब सचमुच में चोदने में। सच बोला श्याम, साले मादरचोद, ऐसी माल को अकेले अकेले इतने दिन से चोदता रहा। हमें भूल गया था गांडू।” बलराम आनंदित होता हुआ बोला।

“हा्आ्आ्आ्आय्य्य्य्य्य्य रा्आ्आ्आ्आ्आम, फट्ट्ट्ट्ट गई््ईई््ईई््ईई््ईई,” सचमुच में इस प्रहार से दर्द के मारे बेहाल हो गई। मेरे अंदाज से कुछ ज्यादा ही मोटा था उसका लंड। ऐसा लग रहा था फट गई मेरी चूत। अपनी सीमा से बाहर फैल गई थी और मेरी चूत ने उसके लिंग को कस कर जकड़ लिया था।

“चिल्लाओगी हरामजादी, चिल्ला, जी भर के चिल्ला। पता नहीं कितने लोगों का लंड अपनी चूत में डलवाई है, अब मेरा लौड़ा गया तो गांड़ फट रही है, साली रंडी।” खूंखार हो गया था वह, मानो शेर को खून का स्वाद मिल गया हो। अब वह मेरी चीख पुकार की परवाह किए बगैर मेरी कमर को सख्ती से अपनी दानवी गिरफ्त में ले कर गचागच चोदने में मशगूल हो गया। उफ्फ्फ, उसके चोदने का वह वहशियाना अंदाज, मेरी चूचियों पर अपने दांत गड़ा दिया, मेरे गालों को दांतों से काटने लगा था, मेरी गर्दन पर अपने दांतों का निशान लगाता जा रहा था। मेरे शरीर को किसी वहशी जानवर की तरह भंभोड़ता रहा करीब चालीस मिनट तक। शुरू में मैं उसकी पाशविक प्रवृत्ति से घबरा गई थी, किंतु कुछ मिनट पश्चात वही पीड़ा दायक पाशविक संभोग मुझे बेहद आनंदित करने लगा, “ओह्ह्ह्ह राजा, आह्ह्ह्ह्ह मेरे बल्लू (बलराम), ओह्ह्ह्ह चोदू, उफ्फ्फ मेरी मां, ओह मेरे कामदेव, ऐसा सुख पहले कभी नहीं मिला
 
रज्ज्ज्ज्ज्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, मार डालो मुझे ओह्ह्ह्ह भगवान, मां के लौड़े, ओह्ह्ह्ह मादरचोद, आह्ह्ह्ह्ह बहनचोद, रंडी बन गई रे तेरी ओह मैं कुतिया बन गई रे साले चूत के लौड़े,” आनंद के अतिरेक से बेहद गंदे अल्फाज निकल रहे थे मेरे मुह से। दूसरी ही दुनिया में पहुंच गई थी।

“हां मेरी रानी, मुझे भी ऐसी खूबसूरत चुदक्कड़ औरत से पहली बार पाला पड़ा है, ओह साली बुरचोदी रानी, आह रंडी, साले मादरचोद श्याम, ऐसी खूबसूरत छिना्आ्आ्आ्आल को कहां से पाया रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए ओह्ह्ह्स्स्स्साली्ई्ई्ई् की मस्त टाईट चूत, ओह्ह्ह्ह बुरचोदी की मस्त चू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊचियां्आं्आं्आं” वह भी अनाप शनाप कुछ भी बोले जा रहा था और मैं भी तो ऐसी अवस्था में बिल्कुल जंगली बन जाती हूँ, बेहद गंदे अल्फाज मेरे मुह से भी निकल रहे थे। करीब चालीस मिनट की अंतहीन पाशविक चुदाई के बाद जब वह खलास हुआ, तबतक मैं दो बार झड़ चुकी थी, तीसरी बार अभी झड़ने ही वाली थी कि वह खलास होकर लुढ़क गया।

“उफ्फ्फ, चोदते रहो प्लीज मैं भी झड़ने वाली हूं” मेरी आवाज पता नहीं वह सुन पा रहा था कि नहीं, अचानक गाड़ी रुकी और श्यामलाल ने मानो मेरा उद्धार कर दिया।

कूद कर मेरे ऊपर आया और बदहवास, बेसब्री से चोदने का अधूरा काम पूरा करने में जुट गया, “साली कुतिया मैडम जी, बहुत देर बर्दाश्त किया साली बुरचोदी मैडम, ले अब मेरा लौड़ा खा मां की लौड़ी मैडम,” लगा धकाधक चोदने।

“आजा साले बहनचोद, तू भी आ जा,” मैं नीचे से उछल उछल कर चुदवाने लगी। पल भर में ही मैं झड़ गई। मगर श्यामलाल तो अभी शुरू ही हुआ था। वह भी करीब आधे घंटे तक मुझे झिंझोड़ता रहा। पूरा निचोड़कर रख दिया उन दोनों ने मुझे। ओह्ह्ह्ह ऐसा मजा जो उस दिन मुझे मिला वह अकथनीय था। जहां गाड़ी खड़ी थी वह रामपुर पार करके करीब अस्सी किलोमीटर की दूरी पर थी। मैं उन दोनों की दीवानी हो गयी थी और उनके साथ मस्ती का जो सिलसिला आज से दस साल पहले जो शुरू हुआ, वह आज तक जारी है। बलराम ने अपनी चुदाई कला और क्षमता से काफी प्रभावित किया था जिस कारण मैं सदैव उसके लिए उपलब्ध रहने की पूरी कोशिश करती थी। वह भी मुझसे काफी प्रभावित था जिस कारण मुझे चोदने का कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहता था। बलराम के पास चार और गाड़ियां थीं जिन्हें वह भाड़े पर चलाता था। उसके पास चार ड्राईवर थे जो उसकी गाड़ियों को ऑर्डर पर ले कर जाते थे। यह तो संयोग था कि उस दिन उसका एक ड्राइवर नहीं आया था जिसके कारण श्यामलाल उसके स्कॉर्पियो को सर्विसिंग के लिए ले कर गया था और आगे जो कुछ हुआ मैं बता चुकी हूं। बलराम के संपर्क में आने के साथ ही साथ उसके ड्राईवरों के संपर्क में भी आई और एक बूढ़े शरीफ ड्राईवर को छोड़ कर बाकी तीन ड्राइवरों के साथ मेरा शारीरिक संबंध स्थापित हो चुका था जिससे बलराम अनभिज्ञ नहीं था। कुछ अवसरों में उन्होंने सामूहिक संभोग के लिए भी बाध्य किया, बाध्य क्या, यह समझ लीजिए कि मुझे राजी किया और मैं अपनी अदम्य कामुकता के वशीभूत उनके सम्मिलित संभोग का रसास्वादन करने को मजबूर हुई। फिलहाल अब वैसा रोजाना नहीं होता है, कभी दो हफ्ते में एक बार या कभी महीने में एक बार। अब तो वैसे भी मैं काफी व्यस्त हो गई हूं। ऑफिस का काम काफी बढ़ गया है और साथ ही साथ वृद्धाश्रम का काम भी देखना पड़ता है।
 
पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मैं एक ऑटो ड्राइवर श्यामलाल और उसके साथी बलराम के संपर्क मे आई और उनके साथ रंगरेलियां मनायी। यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो आज तक बदस्तूर, निर्बाध जारी है। मेरी इस उम्र में भी (मैं अब 51 साल की हूँ) वे अपनी वासना की भूख मिटाने के लिए मेरे आकर्षण में खिंचे चले आते थे। हालांकि उनका संबंध कई स्त्रियों के साथ रह चुका था और आज भी अपनी हवस बुझाने के लिए किसी भी उम्र की, किसी भी स्तर की, किसी भी रूप रंग, आकर प्रकार की स्त्रियों के पीछे कुत्तों की तरह पड़े रहते थे लेकिन उनकी स्वीकारोक्ति के अनुसार आजतक जितनी औरतों के साथ संभोग किया, मुझसे बेहतर संभोग की संतुष्टि और आनंद कहीं प्राप्त नहीं हुआ, शायद मेरे शारीरिक गठन के बावजूद लचीलेपन के कारण विभिन्न मुद्राओं में कामक्रीड़ा हेतु सक्षम होने की वजह से। यह स्वीकारोक्ति मेरी झूठी प्रशंसा भी हो सकती है, जिससे मैं इनकार नहीं कर सकती हूं, लेकिन मैं तो खूब आनंद उठा रही थी और अब भी उठा रही हूं।

पिछली कड़ी में मैंने जिक्र किया था कि बलराम के ड्राइवरों के साथ भी मेरा शारीरक संबंध स्थापित हो चुका था। यह किस तरह हुआ वही मैं बताने जा रही हूं।

बलराम के चार ड्राइवरों में एक पचपन साल का आदमी धर्मेश यादव जी को पारिवारिक संबंध से इतर सेक्स में कोई रुचि नहीं थी लेकिन बाकी तीन लोग अपने मालिक बलराम की जूठन चाटने में पीछे नहीं थे। अपने मालिक की मेहरबानी से ऐसी कई स्त्रियों से उन्होंने परिचय बढ़ा कर उनपर हाथ साफ किया और करते आ रहे हैं। उन्हीं स्त्रियों की श्रेणी में मैं भी आती हूँ। यह बात अलग है कि उनमें से किसके साथ और कब, अकेले या सामूहिक रूप से मैं अपने शरीर की कामपिपासा शांत करूंगी, इसे मैं खुद तय करती थी। इसकी शुरुआत बलराम के संपर्क में आने के करीब दो महीने बाद हुई। उन तीन लोगों में, साहिल 55 साल का छरहरे बदन का सांवला, साधारण शख्शियत वाला, लंबोतरा चेहरा, लंबी नाक, आधे बाल सफेद, छ: फुटा मुसलमान, तेजेन्द्र सिंह 50 साल का करीब साढ़े पांच फुट का हट्ठा कट्ठा, गोरा चिट्टा पंजाबी, एक नंबर का पियक्कड़ और तीसरा एक स्थानीय आदीवासी, घासीराम, काला, गंजा, नाटा सा करीब साढ़े चार फुट का मोटा ताजा 60 वर्षीय खड़ूस, तीनों में सबसे अधिक कुरूप, बेढब शरीर वाला किंतु अत्यधिक कामुक।

एक दिन पूर्वनियोजित योजना के अनुसार ऑफिस से निकलने के बाद, करीब साढ़े सात बजे श्यामलाल मुझे लेकर बलराम के घर आया। बलराम घर में हमारा ही इंतजार कर रहा था। उसका घर हमारे घर से करीब आधा कि. मी. आगे बस्ती से बाहरी छोर पर है। काफी बड़ा दोमंजिला घर है जो करीब तीन हजार वर्गफुट में फैला हुआ है। घर का मुख्य द्वार पूरब की ओर है। उत्तर की ओर एक काफी बड़ा गैराज है जिसमें उसकी चारों गाड़ियों के लिए पार्किंग का समुचित स्थान है। गैराज से सटा हुआ 12/12 का एक बड़ा सा कमरा, जिसे प्रायः विश्रामगृह के रूप में उपयोग किया जाता है, उससे जुड़ा हुआ एक स्नानगृह और शौचालय है।
 
वैसे तो मैं अपने व्यवसायिक कार्यों के सिलसिले में यहां वहां जाकर क्लाईंट्स से मिलते और कई अवसरों पर पार्टियां अटेंड करते करते थोड़ा बहुत पीना सीख गई थी। कुछ पियक्कड़ क्लाईंट्स की रातें रंगीन करते करते मुझे भी शराब की लत लग गई थी। उस दिन बलराम कुछ अधिक ही बेसब्र हो रहा था। मैं जब श्यामलाल के साथ उसके घर पहुंची तो दरवाजा बलराम ने ही खोला और बड़ी बेसब्री से मुझे बाहों में भींच कर ताबड़तोड़ चुम्बनों की बरसात कर बैठा। एक पल के लिए तो मैं घबरा गई थी। मेरे संभलने के पहले ही मुझे अपनी बांहों में उठा कर सीधे बिस्तर पर ला पटका।उसके बाद जो हुआ, क्या बताऊँ, खूब जम कर मेरी कुटाई हुई। कामांध श्यामलाल भी बलराम के साथ मिलकर इस दो घंटे की कमरतोड़ संभोग के दौरान मुझे भंभोड़ता रहा, झिंझोड़ता रहा, निचोड़ता रहा। इस पूरी कामलीला के दौरान उनके साथ तीन पैग शराब का चढ़ा गई थी। जब पूरी तरह निचुड़ कर लड़खड़ाते कदमों से बाहर निकल रही थी तो मेरी हालत देखकर बलराम ने घासीराम को आवाज दी जो उस वक्त विश्रामगृह में आराम कर रहा था। वह करीब एक घंटे पहले ही पटना से लौटा था और कमरे में शराब पी कर अपनी थकान उतार रहा था।

“घासीराम, क्या कर रहे हो? मैडम को जरा घर तक छोड़ दो।”

“आया साहब” कहते हुए वह कमरे से बाहर आया, सिर्फ लुंगी और बनियान में था वह। मेरे लड़खड़ाते कदमों और मेरी अस्त व्यस्त हालत को देखकर सब कुछ समझ गया था वह। मुझे अपनी बांहों का सहारा दे कर कार की ओर ले चला लेकिन कार में बैठाने की जगह गैराज से सटे विश्रामगृह में ले आया।

“आप बैठिए मैडम, जरा कपड़े तो पहन लें।” कहकर मुझे सामने बिस्तर पर बैठा दिया और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।

“दरवाजा क्यों बंद कर दिया?” मैं सशंकित हो उठी, क्या उस खड़ूस की नीयत डोल गई मुझ पर?

“जी कपड़े बदल रहा हूं ना”

“बेशरम, मैं तो सामने हूँ ना।” मैं बोली। लेकिन तबतक वह अपनी लुंगी उतार चुका था। हे भगवान! अंडरवीयर उसका विशाल तंबू बना हुआ था। साफ दिख हो रहा था कि वह उत्तेजित है। तंबू का आकार बता रहा था कि काफी बड़े लिंग का स्वामी है वह, मगर कितना बड़ा? मैं उत्सुक हो उठी। पिछले दो घंटे के नोच खसोट से मेरे शरीर का सारा अंग अंग टूट रहा था किंतु शराब का नशा अब भी सर चढ़ कर बोल रहा था। एक नंबर की वासना की पुतली तो थी ही, उस ठिंगने आदीवासी के अंडरवियर का इतना विशाल तंबू मुझे फिर से आकर्षित कर रहा था। लेकिन मेरी कमीनगी तो देखिए, चेहरे से जाहिर नहीं कर रही थी कि मैं उसके लिंग के दीदार को ललायित हूं। मैं तिरछी नजरों से ही देख रही थी। वह खड़ूस भी कम खेला खाया नहीं था। मेरी नजरों को पढ़ चुका था कमीना। मैं खड़े होकर दूसरी ओर मुड़ने की कोशिश में जानबूझकर लड़खड़ाई और गिरने का नाटक करने लगी। तभी घासीराम ने झपट कर मुझे थाम लिया।
 
“अरे आप खड़ी क्यों हो रही हैं। बैठिए, अभी हम ले चलते हैं।” मुझे थाम कर फिर से बिस्तर पर बैठा दिया, लेकिन इस क्रम में उसने मेरी चूचियों को हाथ लगा दिया था। मैं गनगना उठी। उसके तंबू के अंदर से उसका लिंग भी मेरी जांघों के बीच दस्तक दे दिया था। अब मेरा धैर्य जवाब देने लगा। मेरी योनी पानी छोड़ने लगी।

“मुझे पता नहीं क्या हो रहा है?” मैं नशे का अभिनय करते हुए बोली।

“आप थोड़ी देर लेट जाईए, कुछ देर में जब ठीक लगेगा तो हम पहूंचा देंगे।” कहते हुए मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। आंखें बंद करके मैं पांव फैला कर पसर गई। घासीराम लार टपकाती नजरों से मुझे सर से पांव तक घूरता रहा। शायद झिझक रहा था मुझ पर हमला करने से। मैं अधमुंदी आंखों से उसकी हालत देख रही थी। उसे ललचाने के लिए मैंने अपने दोनों हाथ फैला दिए, साड़ी का पल्लू एक तरफ हो गया, मेरी दोनों बड़ी बड़ी चूचियां छोटे से ब्लाऊज को फाड़कर बाहर निकल पड़ने को बेताब थे। कुछ पलों के बाद जब उसे लगा कि मैं सो गयी, वह मेरे करीब आया और आहिस्ते से मेरे बगल में बैठ गया। उसकी सांसे धौंकनी की तरह चल रही थीं। उसने धीरे से मेरे सीने की ओर हाथ बढ़ाया और ब्लाऊज के ऊपर से ही मेरी चूचियों को सहलाना शुरू किया। उफ, मेरी चूचियों पर उसके हाथों की छुअन से मेरा शरीर अंदर तक तरंगित हो उठा। मैं अपनी उत्तेजना को बमुश्किल काबू में रख पा रही थी। अब वह थोड़ा और हिम्मत बटोर कर मेरे ब्लाऊज को खोलना शुरू किया। किसी तरह मेरे कसे हुए ब्लाऊज को सामने से खोल तो लिया, लेकिन अब मेरी ब्रा को कैसे खोलता। ब्रा के ऊपर से ही मेरी चूचियों को सहलाने लगा। मेरा दिल भी उत्तेजना के मारे धाड़ धाड़ धड़क रहा था। मैं गहन निद्रा का ढोंग करती हुई करवट ले कर पलट गई। घासीराम झट से अपना हाथ खींच लिया। उसने कुछ पलों तक इंतजार किया, फिर दुबारा अपना हाथ मेेेरे ब्लाऊज को पूरी तरह खोलने की कोशिश करने लगा। मैंने अपने हाथ ढीले छोड़ रखे थे जिस कारण उसे मेरे ब्लाऊज को पूरी तरह खोलने में कोई परेशानी नहीं हुई। अब उसने मेरी ब्रा का हुक पीछे से खोल कर मेरी चूचियों को बंधन से मुक्त कर दिया। जैसे ही मुझे अहसास हुआ कि मेरी ब्रा का हुक खुल गया है मैं पुनः करवट बदल कर पूर्ववत हो गई, गहरी निद्रा का ढोंग करती हुई। एक पल के लिए वह चौंक कर अपने स्थान से खिसक गया। मेरे चेहरे को गौर से देखने लगा कि मैं जाग तो नहीं रही हूं। जब उसे विश्वास हो गया कि मैं सचमुच में नशे की जोर से नींद में ही हूं, वह पुनः मेरे पास आया और आहिस्ते से मेरी ब्रा को हटाने लगा। जैसे ही मेरी ब्रा का आवरण मेरी चूचियों पर से हटा, उसका मुह खुला का खुला रह गया। शायद अश्चर्य से कि इतनी बड़ी बड़ी चूचियां इस ब्रा से कैसे संभली हुई थीं। मेरी उत्तेजक चूचियों की खूबसूरती खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे तने हुए बड़े बड़े निप्पल्स। पहले वह धीरे धीरे सहलाया मेरी नग्न चूचियों को, निप्पल्स को चुटकियों में पकड़ कर शायद अपनी नजरों के विश्वसनीयता की ताकीद कर रहा था। अब उसे थोड़ी और हिम्मत आ गई थी। वह धीरे धीरे मेरी चूचियों को दबाने लगा। कुछ मिनटों के बाद अपने मुह से पहले मेरी चूचियों को चूमा, फिर हौले हौले मेरे निप्पल्स को चूसने लगा। इधर मेरी हालत बद से बदतर होती जा रही थी। वे पल मेरे लिए बेहद मुश्किल भरे थे। इस उत्तेजक क्रिया से भड़कती अपनी काम ज्वाला को नियंत्रित करना अब असंभव होता जा रहा था मेरे लिए। मेरे शरीर का ऊपरी भाग निर्वस्त्र हो चुका था। उसका एक हाथ अब धीरे धीरे नीचे खिसकते हुए मेरी नाभी से नीचे पहुंच चुका था। धीरे धीरे कमर में खोंसी हुई मेरी साड़ी को खोला और मेरे पेटीकोट के नाड़े की गांठ तलाशने लगा। ज्यों ही नाड़े का गांठ हाथ लगा, एक हल्के झटके से पेटी कोट ढीला कर दिया। अब उसके लिए समस्या थी कि इस अवस्था में मेरे शरीर से साड़ी और पेटीकोट अलग कैसे किया जाय।
 
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