Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक - Page 14 - SexBaba
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Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक

सलौनी का हाथ लगते ही वो और ज़्यादा बुरी तरह से फन-फ़ना उठा.., दोनो के जवान बदन बिजली के करेंट की तरह झन-झना उठे…!

सलौनी ने शंकर के लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर दबा दिया.., अपनी बेहन का हाथ लगने से शंकर के बदन में एक नयी उत्तेजना भर उठी.., वो सिसकते हुए बोला –

आअहह…गुड़िया…, और ज़ोर्से दबा इसे…,

धीरे – धीरे सलौनी की झिझक कम होती जा रही थी.., उसने उसका अंडरवेर भी निकाल दिया और नंगी आँखों से पहली बार इतने नज़दीक से अपने भाई के लंड को निहारने लगी…!

उसको बड़ी प्यारी नज़रों से निहारते हुए अपने कोमल हाथों से उसे सहलाने लगी…, उसका मन हुआ कि उसे चूम ले.., सो धीरे-धीरे वो उसके उपर झुकने लगी…!

शंकर ये जानकर कि उसकी प्यारी बेहन उसके लंड को चूमने वाली है.., इस एहसास ने उसके लंड को और बुरी तरह से सख़्त कर दिया.., वासना की आग में वो दहकने लगा…!

अब सलौनी की गरम सासें उसके लंड पर पड़ने लगी थी.., शंकर को ये लम्हा असहनीय होने लगा.., वो चाहता था कि जल्दी से सलौनी इसे अपने होठों के बीच लेकर चूसे…!

अंततः सलौनी के तपते होठ उसके गरम दहक्ते लोहे जैसे सख़्त लौडे पर रख गये…, शंकर ने उत्तेजना बस अपने होठ कस लिए..,

उधर लंड की गर्मी उसके मुलायम होठ सहन नही कर सके और उसने फ़ौरन अपना मूह अलग कर लिया…!

रंगीली ने अपनी बेटी के सिर को स्नेह से सहलाते हुए कहा – क्या हुआ लाडो.., अपना मूह क्यों उठा लिया तूने.., चूस ले अपने भाई का लंड.., अच्छा लगेगा तुम दोनो को, देख तो कैसा बुला रहा है तुझे…, शंकर के लौडे की ठुनकी देख कर रंगीली बोली…!

सलौनी ने सिर उठाकर अपनी माँ को देखते हुए कहा – ये तो बहुत गरम है माँ..,

रंगीली ने मुस्कुराते हुए कहा – असली मर्द का लंड है गुड़िया.., चल पहले तू इसे चख ले.., फिर भाई तेरी मुनिया को चखेगा…!

इतना कहकर उसने सलौनी के सिर को उसके लंड पर दबा दिया.., सलौनी ने उसे अपने होठों के बीच ले लिया और कुछ लंबाई तक वो अपने मूह में लेकर उसे चूसने लगी…!

कुछ देर लंड चूसने के बाद रंगीली ने अपनी बेटी को अपने उपर खींच लिया.., इस झटके से शंकर का लंड उसके मूह से निकल गया..,

रंगीली ने उत्तेजना के बशिभूत सलौनी की छोटी सी कच्ची मुनिया को अपनी पकौड़े जैसी फूली हुई चूत पर दबा लिया और उसकी कमर को पकड़ कर उपर नीचे करते हुए एक दूसरे की चूत को आपस में रगड़ने लगी…!

ये गरमा-गरम दृश्य देख कर शंकर का लॉडा खुशी से झूमते हुए उसके पेट तक ठोकरें मारने लगा…!

दोनो माँ -बेटी की वासना भी पल प्रतिपल बढ़ती जा रही थी, दोनो के मूह से कामोत्तेजना में लिपटी हुई गरम गरम साँसें एक दूसरे के चेहरे से टकरा रही थी…!

बेत-हाशा सिसकते हुए उन दोनो के होठ आपस में जुड़ गये…, और बुरी तरह से एक दूसरे की चुतो को आपस में रगड़ती हुई वो एक दूसरे के होठों को चूसने लगी…!

सलौनी किसी बच्ची की तरह अपनी माँ के गुदाज बदन पर पड़ी मचल रही थी.., रंगीली की तनी हुई सुडौल चुचियाँ.., सलौनी के कच्चे अनारों से रगड़ खा रही थी..,

माँ की पाव रोटी जैसी चिकनी चूत से सलौनी की हल्के रोँये वाली कच्ची कली जैसी चूत के होठ आपस में रगड़ा खाते तो वो अपने मूह से निकलती सिसकी को रोक नही पाती….!

बड़ा ही कामुक नज़ारा था, जिसे शंकर उनके पैरों में बैठा देख रहा था और बुरी तरह से अकडे हुए अपने लंड को मसल मसल कर शांत करने की कोशिश कर रहा था…!

लेकिन ऐसे हालत में वो भला कैसे शांत हो पाता, जितना वो उसे नीचे को दबाता, छोड़ते ही उससे कई गुना वेग से वो जाकर उसके पेट से टकराता, जिससे चटक जैसी आवाज़ आती, मानो किसी ने थप्पड़ मारा हो..,
 
बड़ा ही कामुक नज़ारा था, जिसे शंकर उनके पैरों में बैठा देख रहा था और बुरी तरह से अकडे हुए अपने लंड को मसल मसल कर शांत करने की कोशिश कर रहा था…!

लेकिन ऐसे हालत में वो भला कैसे शांत हो पाता, जितना वो उसे नीचे को दबाता, छोड़ते ही उससे कई गुना वेग से वो जाकर उसके पेट से टकराता, जिससे चटक जैसी आवाज़ आती, मानो किसी ने थप्पड़ मारा हो..,

दोनो की चुते रस से सराबोर होने लगी थी…, सिल्परी होने से उन दोनो को और ज़्यादा मज़ा आरहा था.., लेकिन शंकर को सहन करना भारी पड़ता जा रहा था…!

जब कभी ज़्यादा दबाब डालकर सलौनी अपनी चूत अपनी माँ की चूत के उपर दबाती तो उसकी पतली-पतली फांकों वाली मुनिया, रंगीली की भरपूर जवान फूली हुई चूत में कहीं खो सी जाती..

देखते देखते शंकर का धीरज जबाब दे गया.., उसने सलौनी की पतली सी कमर में अपना एक हाथ डालकर उसे फूल की तरह उठा लिया.., और माँ की साइड में पटक कर उसकी गीली मुनिया के होठों पर अपने प्यासे होठ रख दिए…!

हमला इतना अप्रत्याशित था की दोनो में से कोई भी समझ नही पाई.., रंगीली की चूत किसी भट्टी की मानिंद दहक रही थी..,

बेटे को बेटी की चूत पर हमला करते देख उसकी वासना फट पड़ी और उसने अपनी चूत में एक साथ दो-दो उंगलियाँ डालकर बहुत तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी…!

उधर सलौनी की पतली पतली फांकों को जब शंकर की लिज-लीजी जीभ ने चाटा.., मानो डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो.., सलौनी ने अपनी कमर उचका कर उसकी जीभ का स्वागत किया…!

एक मादक सिसकी लेकर वो तड़प कर बोली – आअहह….सस्स्सिईइ…भाई…मेरे… अच्छे भीइ…हाई…रीए…चाट ले…खजाअ…मेरी चूत को…,

उउम्म्मनन्ग्घह…..चूस ले भाई..अपनी प्यारी गुड़िया की चूत को…,

बहुत परेशान करती है…,,, उउऊययईीी…म्म्माआ…मुझे क्या हो रहा है….उउउहह…. उउउहहुउऊ…माइय्य्ाआ…मोररीइ…..मे उड़ रही हूँ.., पकदूओ.. मुझीए…

बुरी तरह सिसकते हुए उसकी कमर हवा में लहराने लगी…,

इधर रंगीली…अपनी बेटी की ऐसी कामुक सिसकियों को सुनकर और ज़्यादा उत्तेजना में भरकर तेज़ी से अपनी उंगलियों को चूत में अंदर बाहर करने लगी…,

और कुछ ही क्षणों में वो भल भला कर झड़ने लगी…!

इधर जब शंकर को लगा कि सलौनी अपनी चूत का पानी छोड़ने वाली है.., उसने अपने होठों को उसकी फांकों पर कस लिया और एक जोरदार चुस्का मारा…!

सलौनी को लगा मानो उसके बदन से प्राण निकल कर उसकी मुनिया के रास्ते शंकर के मूह में समाते जा रहे हों…,


किल-कारी मारते हुए उसने अपनी कमर को धनुषकार मोडते हुए वो भी शंकर के मूह में झड़ने लगी….!

कुछ पलों बाद माँ बेटी की उत्तेजना थम गयी.., शंकर चटकारे ले लेकर अपनी गुड़िया की चूत का सारा रस गटक चुका था.., फिर उसके प्यारे से होठों को चूमकर बोला…

बहुत स्वीटी है गुड़िया तू…, मज़ा आ गया…!

शंकर की बात सुनकर जहाँ सलौनी ने शर्म से अपना मूह उसकी छाती में छुपा लिया वहीं रंगीली एक लंबी साँस लेकर मुस्कुराते हुए बोली – आख़िर बेहन किसकी है..?

स्वीट तो होगी ही.., वैसे भी कोरी गागर का पानी तो हमेशा मीठा ही होता है.., लेकिन अब लगता है तेरे शेर के हाल चाल कुछ ठीक नज़र नही आ रहे मुझे…!

देख तो बेचारा कैसा फड़ फडा रहा है.., किसी बिगड़ैल घोड़े की तरह बिदक रहा है…!
 
शंकर ने अपने लौडे को नीचे की तरफ दबाते हुए कहा – हां माँ, बहुत परेशान है बेचारा.., लेकिन मजबूरी है.., अभी उसे कोई रास्ता खाली दिखाई ही नही दे रहा…,

रंगीली ने अपनी चूत सहलाते हुए कहा – ये रास्ता है ना.., थोड़ा इसे कोशिश करके सवारी करने लायक कर्दे.., फिर देख कैसा सरपट दौड़ाती हूँ तेरे इस बिगड़ैल घोड़े को…!

माँ-बेटे की इतनी उत्तेजना से पूर्ण बातें सुनकर सलौनी मंद-मंद मुस्कुराते हुए अपनी माँ की चुचियों को सहलाने लगी…!

शंकर ने अपनी माँ की चूत को चाटना शुरू कर दिया.., दोनो भाई बेहन के प्रयासों ने रंगीली को जल्दी ही फिरसे कामोत्तेजित कर दिया…!

शंकर को सवारी करने का इशारा करते हुए बोली – आजा मेरे लाल.., तेरे घोड़े के लिए रास्ता तैयार है.., जैसे चाहे दौड़ा ले…!

इशारा पाकर शंकर ने अपनी माँ की जांघों के नीचे हाथ डालकर उसकी मोटी-मोटी गुदाज चिकनी जांघों को अपने मजबूत पाटों पर चढ़ाया..,

सुराख पर अपने दहक्ते लौडे के सुपाडे को रखा जो कामोत्तेजना से लाल सुर्ख हो चुका था.. करारा सा धक्का अपनी कमर में लगा दिया…!

माँ-बेटी दोनो के मूह से एक साथ बेहद कामुक सिसकी निकल पड़ी.., सलौनी उसे अपने अंदर इमगीन करके सिसकी,

वहीं रंगीली की चूत की मुलायम दीवारों को दरेरता हुआ जब उसका मूसल 3/4 तक अंदर गया…, इतने दिनो से चुद रही रंगीली जैसी परिपक्व महिला भी कराह उठी…!

हाईए…रे हरजाइ…आज क्या हो गया है इसे.., लगता है बेहन की कोरी चूत समझ कर कुछ ज़्यादा ही सख़्त हो गया है…!

शंकर लंड बाहर खींचते हुए बोला – हां माँ, मुझे भी ये आज कुछ ज़्यादा ही फूला सा लग रहा है.., तेरी चूत में एक दम से कस गया है…!

थोडा सा बाहर खींचकर शंकर ने फिरसे एक करारा सा धक्का देकर जैसे ही उसे जड़ तक अंदर किया.., सलौनी अपनी माँ के पेट पर लेटकर उसे देखने लगी…!

माँ की चूत पर आगे से अपने हाथ से टटोलकर देखते हुए बोली – हाई…माँ..ये तो पूरा का पूरा अंदर चला गया…, बहुत गहरी है तेरी चूत…!

औंधी लेटी सलौनी की गोल-मटोल गान्ड सहलाते हुए रंगीली ने उसकी चूत को अपनी उंगली से सहलाते हुए कहा – घबरा मत मेरी लाडो, कुछ दिन बाद तू भी पूरा लेने लगेगी इसे....,

औरत की चूत लंड के आकर के हिसाब से अपना आकार बना लेती है..,
सलौनी बड़े विश्मय के साथ उन दोनो की चुदाई देख रही थी.., माँ की उंगलियों को अपनी चूत पर पाकर उसे फिरसे मज़ा आने लगा था…!

धक्के मारते हुए शंकर ने उसे अपने बदन से सटा लिया.., बीच बीच में वो उसकी छोटी-छोटी कच्ची चुचियों से भी खेलने लगता…!

तीनो को भरपूर मज़ा आ रहा था…, कमरे में आहों कराहों का बाज़ार गरम हो चला था…!

रंगीली एक बार और झड चुकी थी.., शंकर को रोक कर वो अब घोड़ी बनकर बिस्तर पर औंधे मूह हो गयी..,

सलौनी को उसने अपने आगे लिटा लिया.., पीछे से शंकर ने अपना लॉडा उसकी गीली रस से तर-बतर चूत में फिर से पेल दिया..,

एक मादक सिसकी भरते हुए उसने अपना मूह अपनी बेटी की छोटी सी मुनिया की फांकों पर टिका दिया.. और अपनी जीभ से उसे चाटने लगी…!

कुछ देर की धमा-चौकड़ी के बाद अंततः तीनो ही एक साथ अपने अपने परम सुख को पा गये…, एक दूसरे में गुड-मूड बिस्तेर पे पड़े गहरी गहरी साँसें भरने लगे…!
 
सलौनी ने पहली बार इतना मज़ा लिया था.., वो इस मज़े को और लेना चाहती थी.., जब उपर से ही उसे इतना मज़ा मिल रहा था तो जब उसके भाई का मूसल जैसा लंड उसकी मुनिया को चीरता हुआ अंदर जाएगा तब कितना मज़ा आएगा…?

इसकी कल्पना करते ही उसका शिथिल हो चुका बदन थर-थरा उठा….!

अपनी माँ की गोल-गोल बड़ी बड़ी चुचियों से खेलते हुए वो बोली – माआ…

रंगीली ने थकान से भरी खुमारी में ही कहा – हुउऊंम्म….

सलौनी – मे आज ही भाई का ले लूँ तो…!

रंगीली उसकी गोल-मटोल गान्ड पर चपत मारते हुए बोली – क्यों री साली…, बड़ी चूत खुजा रही है तेरी.., बोला ना तेरे जन्म दिन पर तेरी सारी तमन्ना पूरी करवा दूँगी…!

चल उठ अब कपड़े पहन और अपने कमरे में जा.., मे भी आती हूँ, शंकर को भी सोने दे, सुबह पढ़ने जाना है तुम दोनो को.., एग्ज़ॅम सिर पर आगये हैं…!

मन मसोस कर सलौनी को उठना ही पड़ा.., अपने कपड़े समेटे, और नंगी पुँगी ही अपनी छोटी सी गोल-गोल गेंदों जैसी गान्ड हिलाते हुए वो कमरे से भाग गयी…!
 
सलौनी जिस मजबूरी भरे अंदाज में वहाँ से भागी थी उसे देखकर रंगीली मुस्कराते हुए मन ही मन सोचने लगी..,

अब जल्दी ही इसे लंड का स्वाद चखवाना पड़ेगा.., वरना कहीं ये किसी दिन ज़बरदस्ती ही शंकर के लंड पर आकर ना बैठ जाए..,

वो नही चाहती थी कि बोर्ड के फाइनल एग्ज़ॅम में उसकी बेटी का कोमल मन विचलित हो जाए.., इसलिए उसने उसे आज अपनी रंग रलियों में शामिल कर लिया था..,

वो ये भी जानती थी कि आज के इस खेल के बाद वो ज़्यादा दिन सबर नही कर पाएगी.., बस कुच्छ ही दिन बचे थे एग्ज़ॅम में, उसके फ़ौरन बाद ही उसका 18वा जन्मदिन भी है..,

वो बालिग भी हो जाएगी यही सोचकर उसने एक अस्वासन दे दिया था उसे, लेकिन लगता नही था कि वो इतने दिन चैन से रह पाएगी यही सब सोच कर उसने शंकर से कुच्छ कहने के लिए उसकी तरफ देखा…!

जो निरंतर खुले दरवाजे को निहार रहा था, उसके चेहरे पर एक कामुक मुस्कान खेल रही थी.., जिसका असर उसके लंड पर दिखाई दे रहा था..,

दरअसल शंकर भागकर जाती हुई सलौनी की गोल-मटोल गान्ड जो छोटी होने के बावजूद भी पीछे को निकल आई थी उसकी रब्बर की बॉल जैसी गान्ड की थिरकन देखकर उसका लंड खड़ा होने लगा था…!

रंगीली ने पहले उसके मनोभावों को पढ़ने की कोशिश की फिर जब उसकी कुच्छ समझ में आया तो वो भी मुस्करा उठी और एक हल्की सी चपत उसके सिर उठा रहे लंड पर लगाते हुए बोली…!

लगता है इसका मन अभी भरा नही है.., या फिर बेहन की कच्ची चूत देखकर लार टपकाने लगा है…?

शंकर अपनी माँ की भरी हुई गान्ड को मसल्ते हुए बोला.., गुड़िया अब सच में बड़ी हो गयी है.., देखा उसकी गान्ड कितनी बाहर को निकल आई है..,

जब वो यहाँ से भागते हुए गयी तो कैसी मस्त थिरक रही थी.. है ना माँ…

रंगीली मंद मंद मुस्कराते हुए बोली – ओ-हो..तो ये बात है.., कमीने कुच्छ तो शर्म कर वो तेरी छोटी बेहन है.., उसके बारे में कितना गंदा सोचता है…!

शंकर अपनी माँ की ये बातें सुनकर विश्मय से बोला – ये तुझे अचानक से क्या हो गया माँ..? कुच्छ देर पहले तो तूने खुद अपने साथ मस्ती करने को बुला लिया उसे और अब खुद ही मुझे शर्म लिहाज़ करने को बोल रही है…?

रंगीली उसके अधखाड़े लंड को मसल्ते हुए बोली – मज़ाक भी नही समझता है निगोडे.., वैसे तू सही कह रहा है.., गुड़िया को अब ये तेरा घोड़ा जल्दी ही दिलवाना पड़ेगा…!

मे वही तेरे से कहना चाह रही थी.., तू बीच बीच में उसे ऐसे ही उपर से संतुष्ट करते रहना अगर वो ज़्यादा कहे तो..,!

जब वो 18 की हो जाएगी तो मे खुद तुम दोनो को इसी तरह एक साथ मिलवा दूँगी.., मे खुद भी अपनी बेटी की सील उसके भाई के इस दमदार लंड से टूटने की गवाह बनना चाहती हूँ…!

सच माँ…ये कहते हुए शंकर आवेश में आकर उसके होठों को चूसने लगा.., रंगीली खुद ब खुद बिस्तर पर गिरती चली गयी..,

कामोत्तेजना फिर से दोनो के सिर पर चढ़कर बोलने लगी.., और शंकर का बलिष्ठ शरीर उसके बदन पर छाता चला गया……….!
 
दिन ऐसे ही मौज मस्ती में निकल रहे थे.., शंकर अपनी माँ के साथ साथ सुषमा की काम वासना की पूर्ति कर देता था..,

ऐसे ही एक रात जब वो चौबारे में सुषमा के साथ था.., अपने बच्चे को वो रंगीली के सुपुर्द कर गयी थी..,

एक बार दोनो अपनी काम क्रीड़ा ख़तम कर चुके थे, इस समय बसंत के सुहाने मौसम में चौबारे के वरॅंडा में ज़मीन पर गद्दे डाले मदरजात नंगे एक दूसरे की बाहों में लिपटे.., एक दूसरे के अंगों से खेलते हुए बातें कर रहे थे…!

सुषमा उसकी चौड़ी कसरती छाती को अपनी हथेली से सहलाते हुए बोली – बस मेरे प्यारे कुच्छ दिन और हैं तुम्हारा ग्रॅजुयेशन कंप्लीट हो जाएगा..,

मे तब तक एक पवर ऑफ अटर्नी तैयार करवाती हूँ, उसके बाद इस सारी जयदाद के तुम केर टेकर हो जाओगे.., संभाल लोगे ना ये ज़िम्मेदारी…?

शंकर ने सुषमा को अपने बदन से चिपकाते हुए उसकी भरावदार गान्ड की दरार में उंगली घुमाते हुए कहा…

इसकी क्या ज़रूरत है भाभी.., आप जैसे कहेंगी मे वैसे ही आपका साथ देता रहूँगा ना., फिर पवर आपके हाथ में रहे या मेरे क्या फ़र्क पड़ना है…?

शंकर तुम अभी बच्चे हो, समझने की कोशिश करो.., मे मानती हूँ पिताजी मेरे किसी मामले में टाँग नही अड़ाएँगे.., लेकिन वाकई लोग ऐसे नही हैं, वो तुम्हें रोकने की कोशिश ज़रूर करेंगे…,

फिर उसके फुल टाइट लंड को अपनी गीली चूत पर घिसते हुए बोली - जब एक बार लिखित में पवर तुम्हारे हाथ आ जाएगी फिर किसी की मज़ाल नही जो तुम्हारे काम में रुकावट डाल सके.,

इसलिए मे जो कर रही हूँ खूब सोच समझकर कर रही हूँ.., और वही ठीक है हम सबके लिए…!

जैसे ही उसके लंड का गरम सुपाडा सुषमा की चूत के मुहाने पर पहुँचा.., शंकर ने अपनी कमर आगे करके लंड को थोड़ा सा चूत में सरकाते हुए कहा..

सस्सिईइ…आअहह…जैसा ठीक समझो जानेमन, लेकिन पहले एग्ज़ॅम तो ख़तम होने दो.., ये कहते हुए उसने आधा लंड उसकी चूत में सरका दिया..,

और उसकी एक चुचि को मूह मे लेकर कमर में हाथ डालकर उसको अपने उपर ले लिया.., सुषमा ने उपर से अपने भारी-भरकम कुल्हों को दबाते हुए वाकी का लंड भी अपनी सुरंग में समा लिया…!

एक बार फिरसे चुदाई का एक जबरदस्त दौर शुरू हुआ जो अगले आधे घंटा तक चला.., सुषमा थक कर चूर चूर हो गयी, लंड को चूत में ही लिए हुए वो उसके आगोस में सिर रखकर सो गयी…!

जब दोनो की आँख खुली तो सुबह के 5 बज चुके थे…, हड़बड़ा कर वो उसके उपर से उतरी.., अपने कपड़े समेटे और शंकर को नीचे आने का इशारा करके वो नीचे चली गयी…!

ठीक उसी वक़्त कल्लू को जोरों की पेशाब लगी थी, वो चौक में बनी नाली पर ही खड़े खड़े धार मार रहा था.., इतनी सुबह सुबह सुषमा को उपर से आते देख वो चोंक पड़ा…!

सुषमा को पता ना चले इस वजह से वो थोड़ा साइड की दीवार की आड़ में हो गया.., थकान की मस्ती में चूर सुषमा ने भी इधर-उधर कोई ध्यान नही दिया.., और वो जाकर सीधी अपने कमरे में सो गयी…!

अभी वो अपना मुतना बंद भी नही कर पाया था कि सीडीयों पर उसे फिरसे किसी के आने की आहट सुनाई दी…,

जब उसने शंकर को उपर से नीचे आते देखा तब उसका माथा ठनका.., उसका मुतना ऑटोमॅटिकली थम गया.., एक बारगी गुस्से की तेज लहर उसके पूरे बदन में दौड़ गयी…!

रात की दारू की खुमारी उडनछू हो गयी.., आनन फानन में उसने अपना पाजामा उपर चढ़ाया.., रुका हुआ मूत उसके पाजामे में ही निकल गया..,

हाथ से रगड़ कर उसे सुखाने की कोशिश करते हुए वो उसे रंगे हाथों पकड़ने के लिए खुले में आना ही चाहता था कि तब तक शंकर अंधेरे में कहीं विलुप्त हो गया..!
 
कल्लू ने उसके पीछे जाना उचित नही समझा.., लेकिन बहुत देर तक वो वहीं सन्न अवस्था में खड़ा रहा.., विवेक हीन अवस्था से निकल कर अब वो सुषमा के कमरे की तरफ बढ़ गया…!

उसके हाव-भाव बता रहे थे कि वो उससे इस बारे में सवाल जबाब ज़रूर करने वाला है..,

कल्लू जब तक उसके कमरे तक पहुँचा, सुषमा दरवाजे को अंदर से बंद करके गहरी नींद में जा चुकी थी..,

एक दो बार उसने दरवाजा खटखटाया.., लेकिन जब उसकी तरफ से कोई जबाब नही आया तो उसी आवेश में भुन-भुनाता हुआ वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गया और जाकर अपने बिस्तेर पर गिर पड़ा…!


कल्लू बहुत देर तक बिस्तर पर पड़ा इधर से उधर करवट ही बदलता रहा.., 10 बजे तक सोने वाला बंदा आज 5 बजे नींद खुलने के बाद भी अब उसकी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी..,

रात की चढ़ाई हुई दारू की खुमारी ना जाने कहाँ गायब हो गयी, दिमाग़ में चल रहे विचारों के बवंडर में फँसा कल्लू का सिर चकराने लगा था.., बैचैनि उसे चैन से बिस्तर पर पड़े रहने भी नही दे रही थी..,

उसे अब इस बात में तो कोई शंका ही नही थी कि सुषमा और शंकर रात भर चौबारे में क्या कर रहे होंगे..?

ना जाने ये सब कब्से चल रहा होगा..? अपनी मर्दानगी पर तो उसे शुरू से ही शक़ था.., तो क्या उसका नवजात बच्चा भी उसका अपना नही है..? कहीं वो इस हरम्खोर शंकर की नाजायज़ औलाद तो नही…?

सुबह उठते ही वो उस साली छिनाल सुषमा से ज़रूर पूछेगा इस बारे में.., अगर वो मेरा नही है तो उसे इस हवेली में रखने का और फिर अपना वारिस बनाने का कोई मतलब नही है…! उसकी सारी ज़मीन जयदाद उसकी अपनी बेटी की होगी…,

तभी उसकी अंतरात्मा ने उसे लताड़ते हुए कहा – अबे साले बेवाड़े.., कॉन मानेगा तेरी बात.., और तू किस जयदाद की बात करता है..?

वो सारी की सारी तो उसी सुषमा के नाम है.., देखना कहीं लेने के देने ना पड़ जायें.., जो तेरी मौज मस्ती निर्विघ्न चल रही है ना.., वो भी बंद हो सकती है…!

और वैसे भी तू है ही किस लायक..हां..? ना बोल…किस लायक है तू.., साले नपुंश्क हिज़ड़े.., अगर तू किसी लायक होता तो वो क्यों जाती उस शंकर के पास..,

उस बेचारी को दोष देने की वजाए अपने गिरेबान में झाँक के देख साले बेवड़े.., अपने माँ-बाप की इज़्ज़त तक तो तू कर नही सकता.., फिर कॉन देगा तेरा साथ..

नतीजा क्या होगा जानता है..? तेरी ये बकवास सुनकर तेरा खुद का बाप जो अपनी बहू पर आँख मूंदकर भरोसा करता है.., गान्ड पे लात मारकर तुझे लाजो की तरह इस हवेली से बाहर निकाल फेंकेगा., दर-दर भटकते रहना फिर भिखारियों की तरह…!

एक मात्र सुषमा ही तेरा सहारा है जिसकी बजह से तू इस घर से जुड़ा हुआ है…!

अपनी अंतरात्मा की धिक्कार सुनकर कल्लू का शरीर डर से थर-थर काँपने लगा…

जिंदगी में पहली बार उसे अपनी इन घिनौनी करतूतों पर अफ़सोस होने लगा था.., अच्छा इंशान तो क्या एक अच्छा बेटा तक नही बन पाया तू, ये सोचते सोचते कल्लू की आँखों में पहली बार पश्चाताप के आँसू आ गये…,
 
बिस्तर पर पड़ा पड़ा वो बहुत देर तक पश्चाताप और बेबसी के आँसू बहाता रहा.., जब उसका मन कुच्छ हल्का हुआ तो ना जाने कब उसको फिरसे झपकी लग गयी…!

दिन चढ़े जब उसकी आँख खुली, नहा-धोकर, खाना पीना खाकर वो फिरसे घर से निकल गया अपनी बुलेट लेकर…, ना किसी से कोई बात की, और ना किसी को कुच्छ बताया..…!

उसने मन ही मन निश्चय किया कि अब वो धीरे धीरे अपने आपको सुधारने की कोशिश करेगा, सुषमा से इस विषय में कोई सवाल जबाब नही करेगा…!
लेकिन घर से निकलते ही फिर उसे उसके आवारा दोस्तों ने घेर लिया.., कस्बे में जाकर फिरसे पीने पिलाने का दौर चल पड़ा.., जो घर से निश्चय करके चला था उसकी मैया चुद गयी…!

दारू और चरस अंदर जाते ही उसे सुबह वाली घटना याद आ गयी.., अपनी अंतरात्मा की आवाज़ का गला घोंटकर वो शंकर से बदला लेने की बात सोचने लगा…!

दारू के नशे में उसे सुषमा और शंकर उसकी आँखों के सामने तैरने लगे.., मानो वो दोनो उसे चिढ़ते हुए एक दूसरे की बाहों में समाए उस पर हँस रहे हों…!

भरी दोपहरी में दारू और चरस के नशे में धुत्त अपने आवारा दोस्तों को वहीं छोड़ कर वो लड़खड़ाता हुआ खड़ा हो गया.., उसके दोस्तों ने पुछा भी की कल्लू भैया कहाँ चले…!

कोई उल्टा सीधा बहाना बनाकर वो वहाँ से अकेला ही बुलेट लेकर शहर से बाहर स्थित शंकर के कॉलेज की तरफ चल पड़ा…!

अंदर विचारों का तूफान जिस रफ़्तार से दौड़ रहा था, उससे कहीं तेज उसकी बुलेट संकरी सी उबड़-खाबड़ सड़क पर दौड़ रही थी..,

रास्ते में एक छोटी सी नहर (केनाल) जिसकी टूटी-फूटी पुलिया में एक हल्का सा टर्न था..,

नहर सुखी पड़ी थी.., पुलिया के पास ही नहर में एक बड़ा सा पत्थर पड़ा था, जिस पर नहर में पानी आने पर लोग कपड़े पछित कर धोने का काम कर लेते थे..!

पुलिया से गुज़रते हुए भी उसकी बुलेट की स्पीड में कोई कमी नही आई.., जहाँ टर्न था वही सेमेंट के उखड़ने से हल्का सा खड्डा बन गया था..,

कल्लू ने स्पीड में ही टर्न लिया..लेकिन व्हील खड्डे में होने से बुलेट टर्न तो नही हुई, उल्टा डिसबॅलेन्स होकर उसी स्पीड में पुलिया की दीवार से जा टकराई…!

झटका इतना ज़ोर का था कि कल्लू भैया.., बुलेट से उछल्कर हवा में कलाबाज़ियाँ खाते हुए नहर में पड़े उस पत्थर पे गिरे..,

पड़े भी पीठ के बल.., बेचारे की रीड की हड्डी (बॅक-बोन) चटख गयी.., बुलेट कुच्छ दूर बिना सवार दौड़ती चली गयी.., और पुलिया पार साइड की झाड़ियों में जाकर उलझ गयी…!

गिरते ही कल्लू के होश गुम हो गये.., दिमाग़ अवचेतन अवस्था में पहुँच गया…!

ना जाने वो और कितनी देर पड़े रहते लेकिन उसके कुच्छ देर बाद ही कॉलेज की छुट्टी हुई और शंकर अपनी बाइक पर घर लौट रहा था.., कस्बे के स्कूल से उसे सलौनी को लेना था…!

रास्ते में पुलिया के आगे झाड़ियों में उसे बुलेट के एंजिन की आवाज़ सुनाई दी जो अभी तक चालू ही था…, उसने अपनी बाइक रोकी.., वो फ़ौरन पहचान गया कि ये बुलेट तो कल्लू की है…!

उसने नहर में झाँक कर देखा तो पत्थर के उपर कल्लू महाराज पड़े थे.., एकदम निस्चल, शरीर में कहीं कोई हलचल नही…!

एकबारगी तो शंकर को लगा कि कहीं इसकी राम-नाम सत्य तो नही हो गयी.., फिर्भी वो लपक कर नीचे उतरा.., उसको आवाज़ देकर हिलाने की कोशिश की लेकिन सब बेकार..

फिर उसने अपना कान उसकी धड़कन सुनने के लिए उसकी छाती के उपर लगाए…, धड़कनों की बहुत हल्की सी आवाज़ उसे सुनाई दी.., फिर उसने उसकी नब्ज़ टटोलकर देखी जो अभी चल रही थी…!
 
शंकर ने राहत की साँस ली.., कल्लू के शरीर को हाथों में उठाया.., और बाइक पर बैठकर अपने आगे टाँगों पर उसे रख कर जैसे तैसे कस्बे के हॉस्पिटल तक ले गया.., जहाँ डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े हॉस्पिटल ले जाने की सलाह दी…!

ये फ़ैसला वो अकेला नही ले सकता था.., उसने लाला जी को बताना ठीक समझा.., हॉस्पिटल के फोन से लाला जी को फोन किया.., सारी बातें बताई…!

हवेली में कोहराम मच गया.., आनन फानन में लाला जी ने किसी तरह गाओं से गाड़ी चलाने वाले किसी ड्राइवर को तलाशा.., शंकर की जीप लेकर वो हॉस्पिटल पहुँचे

साथ में सुषमा और सेठानी भी लग ली.., जल्दी जल्दी उसे जीप में डालकर शहर ले गये और एक बड़े से हॉस्पिटल में कल्लू का इलाज शुरू हुआ…..!

ऑपरेशन थियेटर में कल्लू का ऑपरेशन चल रहा था, और बाहर ये सब लोग बैचैनि में भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि किसी तरह कल्लू ठीक हो जाए…!

तभी सेठानी का ममत्व हिलोरे मारते हुए बेचारे शंकर पर फट पड़ा…उसे उल्टा सीधा कहते हुए बोली – ज़रूर इस हराम जादे ने ही टक्कर मारी होगी उसे…!

इस बार लाला जी का संयम भी जबाब दे ही गया और उन्होने एक भरपूर तमाचा सेठानी की कनपटी पर जड़ दिया…, सेठानी अवाक मूह फाडे अपने गाल पर हाथ रखे लाला जी को बस देखती ही रह गयी…!

शर्म नही आती तुझे…, कैसी औरत है तू लाख बुराई अपने बेटे की छुपाते छुपाते तूने उसे इस हालत में लाकर खड़ा कर दिया…!

अरे अहसान मान इस लड़के का जो हर बार हमारे बच्चों को बचाता रहा है.., पहले भी यही उसे कॉलेज के लड़कों से बचा कर लाया, प्रिया को सांड से बचाया और आज फिरसे इसकी जान बचाई है…!

बैगरत औरत ज़रा सोच अपने कूड्मागज से.., आज ये समय पर वहाँ नही पहुँचता तो जानती है क्या होता…?

और फिर तेरी मंद बुद्धि में इतनी छोटी सी बात भी नही घुसी.., कि अगर ये उसे टक्कर मारता तो खुद ही हॉस्पिटल क्यों ले जाता, मरने नही छोड़ देता वहीं…!

दिनो रात नशे में धुत्त तेरा ये नालयक बेटा.., नशे में टकरा गया होगा पुलिया से.., अरे हमें तो इसके पैर धोकर पीने चाहिए.., जो हमारा कुच्छ ना होते हुए भी घर की सारी ज़िम्मेदारीओं को सगे से बढ़कर सभाल रहा है..,

अब अगर आइन्दा तूने शंकर या इसकी माँ के बारे में कुच्छ भी ग़लत कहा या सोचा भी.., तो समझ लेना मुझसे बुरा कोई नही होगा, भूल जाउन्गा कि तू मेरी पत्नी है..

ये कहते हुए सेठ जी अपनी आँखों में पानी लिए हुए एक तरफ को बढ़ गये…!

लाला जी के वहाँ से जाते ही सुषमा शंकर के आगे हाथ जोड़कर बोली – धन्यवाद शंकर भैया.., आज तुमने इन्हें एक बार फिर बचा लिया.., मे तुम्हारा ये एहसान कभी नही भूलूंगी..!

इधर जीवन में पहली बार लाला जी के इस करारे थप्पड़ ने सेठानी की आँखों पर बँधी अंधी ममता रूपी पट्टी को खोल दिया.., उसे पहली बार एहसास हुआ कि लाला जी कितनी सही बात कह रहे थे…!

आज शायद कल्लू अभी तक जिंदा है तो शंकर की बदौलत.., ये सोचते ही उन्हें अपने आपसे घिन सी होने लगी.., हिम्मत जुटाकर वो शंकर की तरफ बढ़ी और जाकर उसके पैरों में गिर पड़ी…!

शंकर ने फ़ौरन पीछे हटते हुए कहा- अरे मालकिन ये आप क्या कर रही हैं, ये तो मेरा फ़र्ज़ था, भगवान के लिए मेरे पैर मत पडो…!

घुटनों के बल आकर, सेठानी ने शंकर की कमर की कौली भर्ली और उससे लिपटकर फुट-फूटकर रोने लगी……..!

कल्लू बच तो गया, लेकिन उसकी रीड की हड्डी टूटने की वजह से उसका नीचे का धड़ बेकार हो चुका था, वो अब हिलने डुलने के लायक भी नही रहा था..,

उपर के दाए हिस्से को भी पेयरॅलाइस कर दिया था.., मूह टेडा होकर ज़ुबान ऐंठ चुकी थी.., बोलने की स्थिति में भी नही था.., बिस्तर में ही खाना पीना हगना मुतना वो भी दूसरों की मदद से…!
 
एक हफ्ते बाद हॉस्पिटल ने उसे छुट्टी दे दी, 24 घंटे की देखभाल के लिए एक नर्स को रखकर वो उसे घर ले आए.., अपने अपाहिज बेटे को देख देख कर सेठानी अपनी ग़लतियों को सोच सोच कर अंदर ही अंदर घुटती रहती थी…!

उनका व्यवहार एक दम से बदल चुका था.., अब वो किसी से उँची आवाज़ में बात करना तो दूर, किसी से कुच्छ काम के लिए भी नही कहती थी…!

घर की सारी ज़िम्मेदारी सुषमा ने रंगीली के कंधों पर डाल दी थी.., जिसे वो बखूबी निभा रही थी.., अपने मधुर और मिलनसार व्यवहार से घर का काम-काज पहले से बेहतर होने लगा था…!

भाई के आक्सिडेंट की खबर सुनकर दोनो बहनें भी उसे देखने आई थी.., उसकी हालत देखकर बहनों को भी बहुत दुख हुआ.., लेकिन भगवान के फ़ैसले के आगे किसी का बस तो नही चलता…!

प्रिया तो दो-चार दिन रुक कर अपने घर चली गयी क्योंकि उसका अपना भी कारोबार था जिसे वो खुद संभालती थी.., उसका बहुत मन था की एक बार शंकर उसकी चूत की खुजली मिटा दे…!

लेकिन एक तो समय ऐसा नही था कि वो उससे मिलकर अपने दिल की बात कह पाती, उपर से थोड़ा उसे अब अपनी प्रतिष्ठा का भी ख्याल होने लगा था…!

सुप्रिया ने कुच्छ दिन वहीं रुकने का फ़ैसला किया.., जिससे वो अपने प्रियतम के साथ कुच्छ दिन गुज़ार सके…!

लेकिन अब शंकर के उपर कारोबार की ज़िम्मेदारियों के साथ साथ फाइनल परीक्षा का भी भार था.., जिससे वो उसे इतना समय नही दे पा रहा था जितना वो सोचके आई थी…!

वो खुद भी एक समझदार लड़की थी, शंकर की व्यस्तता भली भाँति समझती थी, लेकिन फिर भी शंकर उसके लिए थोड़ा बहुत समय निकाल ही लेता था…!

अब उसे हवेली में कहीं आने जाने से रोकने वाला तो था नही.., एक तरह से पूरी हवेली पर माँ-बेटे का एक छत्र राज था.., वो कभी कभार सुषमा और सुप्रिया दोनो को एक साथ चोद देता था…!

ऐसे ही वो तीनो एक रात सुप्रिया के कमरे में थे.., दोनो ननद भौजाई शंकर के दोनो तरफ नितन्ग नंगी उसके कसरती बदन से सटी हुई पलंग पर पड़ी थी..,

शंकर भी बिना कपड़ों के किसी अरब शेख की तरह उन दोनो के बीच पड़ा उनके मादक बदन से खेल रहा था.., उसका लॉडा तन्कर कमरे की छत की तरफ मूह उठाए खड़ा था..,

सुप्रिया उसके गरम लौडे को मुट्ठी में लेकर अपनी चूत की फांकों पर रगड़ते हुए बोली – उउम्म्मन्णन…भाभी.., कितना गरम हो रहा है ये.., बहुत याद आती है इसकी…!

अब मेरा यहाँ से जाने का मन नही होता.., मे सोच रही हूँ, श्याम से कहकर यहीं पर कोई कारोबार शुरू करवा दूं, कम से कम शंकर से दूर तो नही रहना पड़ेगा…!

आप की तरह मे भी जब मन करे अपने प्यारे शंकर के लंड को अपनी चुत में लेकर इसकी प्यास बुझा सकूँगी…!

सुषमा ने अपनी प्यारी ननद की गोल-गोल चुचियों को मसल्ते हुए कहा – थोड़े दिन और रूको ननद जी.., शंकर का फाइनल हो जाने दो.., फिर इन्हें बिज्निस मॅनेज्मेंट का कोर्स करने के लिए किसी अच्छे कॉलेज में भेज दूँगी…!

मेने सब सोच रखा है.., इस ज़मीन जयदाद और सूदख़ोरी के कारोबार को छोड़ कर यहीं अपने छोटे से शहर में एक फुड पार्क शुरू करेंगे.., तुम भी उसमें पैसा लगा देना और बिज़्नेस के बहाने यही पर रहना…!

सुषमा की बात सुनकर सुप्रिया खुश हो उठी.., शंकर के उपर से पसारकर उसने सुषमा की एक चुचि को मूह में भरकर चुस्का मारते हुए कहा – वाह भाभी.., क्या सही सोचा है आपने…!

फिर हम तीनों ही मिलकर हमेशा मज़े ले सकते हैं…, शंकर उन दोनो की बस बातें सुनकर मज़े ले रहा था.., उसने सुषमा की गान्ड की दरार में उंगली फिराते हुए कहा…!

लेकिन भाभी इसमें तो काफ़ी वक़्त तक मुझे बाहर रहना पड़ेगा.., फिर इतने दिन यहाँ का काम-काज कॉन संभालेगा…?

सुषमा उसकी उंगली को अपनी गान्ड के छेद पर महसूस करके गरम हो उठी.., अपनी टाँगें चौड़ा कर शंकर के दोनो तरफ की और अपनी रसीली चूत को उसके लंड पर सेट करके उसके उपर सवार हो गई…

धीरे…धीरे… शंकर के गरम दह्कते लंड को अपनी चूत के अंदर लेते हुए बोली - सस्स्सिईइ…आअहह…मेरे रजाअ…यहाआँ..तो जैसे चल रहा है.., कुच्छ दिन और चलता रहेगा.., तुम ज़रूर जाओगे…

हाईए…री…उउफ़फ्फ़…मज़ा आगेया… यौंही सिसकते हुए वो उसके लंड की सवारी करती हुई अपनी कमर को आगे पीछे करके चुदने लगी…!
 
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