desiaks
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ईव्निंग.... मुंबई काया फ्लॅट....
घर को आपस मे ही लड़ते देख और अपने भाई रजत की हरकतें सुन अब जैसे देल्ही उसे काटने के लिए दौड़ रही थी. एक दिन पहले ही वो मुंबई आ गयी थी, और आज हर्षवर्धन और अमृता पहुँच गये थे....
काया को समझ मे नही आया कि अभी कल ही वो आई थी, और आज मोम-डॅड दोनो सामने.... काया अंदाज़ा लगा सकती थी ये दोनो क्यों आए होंगे...
काया.... मोम-डॅड, अभी कल ही तो आई मैं देल्ही से, ऐसी भी क्या एमर्जेन्सी कि आप दोनो आज यहाँ...
अमृता.... बात ही कुछ ऐसी थी काया....
अमृता और हर्ष ने अपने दिल का पूरा दर्द काया के सामने रख दिया. हर वो बात जो शुरू से हुई थी काव्या, अमृता और हर्ष के बीच. शम्शेर और एसएस ग्रूप को ले कर. और फाइनली मनु और मानस से नफ़रत की वजह भी.
बीती किसी बात का अफ़सोस नही था उन दोनो को, सिवाय इतना कि उसने उन दोनो भाई के साथ कभी जस्टिफाइ नही किया. फिर मानस और मनु के अलग होने की ज़िम्मेदारी अपने उपर लेती अमृता कहने लगी..... "दोनो भाई के अलग होने की वजह एक तरह से हम ही हैं, पर
बेटा तुम चाहो तो हमारा परिवार फिर एक हो जाएगा, सब लोग एक छत के नीचे बस तुम ही कर सकती ही यदि तुम कोसिस करो तो"
काया को अपने मोम-डॅड का पछतावा सच्चा लगा...... पर डर के मारे उसकी धड़कनें बहुत तेज हो गयी, क्योंकि मनु अब अपने ही परिवार को बर्बाद करने पर तुला था. काया..... वो मनु को जानती थी उसने अगर सोच लिया तो कर के छोड़ेगा.
अपने मोम-डॅड को सुन'ने के बाद, दोनो अब इनोसेंट से नज़र आ रहे थे. रजत से भी कोई शिकवा नही रहा क्योंकि वो समझ चुकी थी कि
उसके दिमाग़ मे उसके मोम-डॅड ने क्या बीज बोया था.... पर जो सब से बड़ी समस्या थी वो थी मनु का दृढ़ प्रण.
काया सोच मे पड़ गयी. दिल से एक ही आवाज़ आ रही थी ..... "कहीं देर ना हो जाए, उसे मनु का प्लान बता देना चाहिए". काफ़ी असमंजस मे काया फसि थी और अंत मे ना चाहते हुए भी ऐसा फ़ैसला करना पड़ा जिसके लिए उसे अफ़सोस सा हो रहा था.... पर कोई ना कोई नतीजे
पर पहुँच कर एक जबाव तो देना ही था....
काया गहरी साँसे लेती कहने लगी....... "मैं इन किसी भी मसलों मे आप सब के बीच नही पड़ूँगी. जो भी आप लोगों ने किया उस का कुछ तो परिणाम होगा हे. मैं रजत को भी देख चुकी हूँ, और उसकी नफ़रत भी. दोनो भाई उस छत के नीचे आ भी गये तो भी उन-दोनो भाई के लिए
जो नफ़रत का बीज आप ने रजत के दिल मे बो चुकी हैं, क्या वो ख़तम हो जाएगा. पहले रजत को सम्भालो, जिस दिन वो सम्भल गया, मैं
वादा करती हूँ उन दोनो भाई को उस छत के नीचे ले आउन्गि. मैं चलती हूँ मेरे क्लास का टाइम हो गया है"
काया फिर वहाँ रुकी नही. खुद से सॉरी कहती वो निकली, सब जानती हुए भी उसने सारी बातें छिपा ली. निर्दोष से लग रहे अपने पेरेंट को
छोड़ दिया उसके हाल पर. बाहर आते ही उसने तुरंत कॉल अखिल को लगाया....
घर को आपस मे ही लड़ते देख और अपने भाई रजत की हरकतें सुन अब जैसे देल्ही उसे काटने के लिए दौड़ रही थी. एक दिन पहले ही वो मुंबई आ गयी थी, और आज हर्षवर्धन और अमृता पहुँच गये थे....
काया को समझ मे नही आया कि अभी कल ही वो आई थी, और आज मोम-डॅड दोनो सामने.... काया अंदाज़ा लगा सकती थी ये दोनो क्यों आए होंगे...
काया.... मोम-डॅड, अभी कल ही तो आई मैं देल्ही से, ऐसी भी क्या एमर्जेन्सी कि आप दोनो आज यहाँ...
अमृता.... बात ही कुछ ऐसी थी काया....
अमृता और हर्ष ने अपने दिल का पूरा दर्द काया के सामने रख दिया. हर वो बात जो शुरू से हुई थी काव्या, अमृता और हर्ष के बीच. शम्शेर और एसएस ग्रूप को ले कर. और फाइनली मनु और मानस से नफ़रत की वजह भी.
बीती किसी बात का अफ़सोस नही था उन दोनो को, सिवाय इतना कि उसने उन दोनो भाई के साथ कभी जस्टिफाइ नही किया. फिर मानस और मनु के अलग होने की ज़िम्मेदारी अपने उपर लेती अमृता कहने लगी..... "दोनो भाई के अलग होने की वजह एक तरह से हम ही हैं, पर
बेटा तुम चाहो तो हमारा परिवार फिर एक हो जाएगा, सब लोग एक छत के नीचे बस तुम ही कर सकती ही यदि तुम कोसिस करो तो"
काया को अपने मोम-डॅड का पछतावा सच्चा लगा...... पर डर के मारे उसकी धड़कनें बहुत तेज हो गयी, क्योंकि मनु अब अपने ही परिवार को बर्बाद करने पर तुला था. काया..... वो मनु को जानती थी उसने अगर सोच लिया तो कर के छोड़ेगा.
अपने मोम-डॅड को सुन'ने के बाद, दोनो अब इनोसेंट से नज़र आ रहे थे. रजत से भी कोई शिकवा नही रहा क्योंकि वो समझ चुकी थी कि
उसके दिमाग़ मे उसके मोम-डॅड ने क्या बीज बोया था.... पर जो सब से बड़ी समस्या थी वो थी मनु का दृढ़ प्रण.
काया सोच मे पड़ गयी. दिल से एक ही आवाज़ आ रही थी ..... "कहीं देर ना हो जाए, उसे मनु का प्लान बता देना चाहिए". काफ़ी असमंजस मे काया फसि थी और अंत मे ना चाहते हुए भी ऐसा फ़ैसला करना पड़ा जिसके लिए उसे अफ़सोस सा हो रहा था.... पर कोई ना कोई नतीजे
पर पहुँच कर एक जबाव तो देना ही था....
काया गहरी साँसे लेती कहने लगी....... "मैं इन किसी भी मसलों मे आप सब के बीच नही पड़ूँगी. जो भी आप लोगों ने किया उस का कुछ तो परिणाम होगा हे. मैं रजत को भी देख चुकी हूँ, और उसकी नफ़रत भी. दोनो भाई उस छत के नीचे आ भी गये तो भी उन-दोनो भाई के लिए
जो नफ़रत का बीज आप ने रजत के दिल मे बो चुकी हैं, क्या वो ख़तम हो जाएगा. पहले रजत को सम्भालो, जिस दिन वो सम्भल गया, मैं
वादा करती हूँ उन दोनो भाई को उस छत के नीचे ले आउन्गि. मैं चलती हूँ मेरे क्लास का टाइम हो गया है"
काया फिर वहाँ रुकी नही. खुद से सॉरी कहती वो निकली, सब जानती हुए भी उसने सारी बातें छिपा ली. निर्दोष से लग रहे अपने पेरेंट को
छोड़ दिया उसके हाल पर. बाहर आते ही उसने तुरंत कॉल अखिल को लगाया....