Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात - Page 4 - SexBaba
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Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात

तीन दिन बाद विजय ने चंदन को चार्ज से हटा लिया और अखबारों में बयान दिया कि चंदन को शक के आधार पर तफ्तीश में लिया गया था किंतु बाद की जांच के मामले ने दूसरा रूप ले लिया और इस कत्ल की वारदात के पीछे किसी बहुत बड़ी हस्ती का हाथ होने का संकेत दिया ।

सावंत कांड अभी भी समाचार पत्रों की सुर्खियों में था । विजय ने इसे एक बार फिर नया मोड़ दे दिया था ।
उसी दिन शाम को मायादास का फोन आ गया ।

''आपकी जरूरत आन पड़ी वकील साहब ।"

"आता हूँ ।"

"उसी जगह, वक्त भी आठ ।

"ठीक है ।"

रोमेश ठीक वक्त पर होटल जा पहुँचा । मायादास के अलावा उस समय वहाँ एक और आदमी था । वह व्यक्ति चेहरे से खतरनाक दिखता था और उसके शरीर की बनावट भी वेट-लिफ्टिंग चैंपियन जैसी थी । उसके बायें गाल पर तिल का निशान था और सामने के दो दांत सोने के बने थे । सांवले रंग का वह लंबा-तगड़ा व्यक्ति गुजराती मालूम पड़ता था, उम्र होगी कोई चालीस वर्ष ।

"यह बटाला है ।" मायादास ने उसका परिचय कराया ।

"वैसे तो इसका नाम बटाला है, लेकिन अख्तर बटाला के नाम से इसे कम ही लोग जानते हैं । पहले जब छोटे-मोटे हाथ मारा करता था, तो इसे बट्टू चोर के नाम से जाना जाता था । फिर यह मिस्टर बटाला बन गया और कत्ल के पेशे में आ गया, इसका निशाना सधा हुआ है । जितना कमांड इसका राइफल, स्टेनगन या पिस्टल पर है, उतना ही भरोसा रामपुरी पर है । जल्दी ही हज करने का इरादा रखता है, फिर तो हम इसे हाजी साहब कहा करेंगे ।''

बटाला जोर-जोर से हंस पड़ा ।

''अब जरा दांत बंद कर ।" मायादास ने उसे जब डपटा, तो उसके मुंह पर तुरंत ब्रेक का जाम लग गया ।

''वकील लोगों से कुछ छुपाने का नहीं मानता ।" वह बोला "और हम यह भी पसंद नहीं करते कि हमारा कोई आदमी तड़ीपार चला जाये । अगर बटाला को जुम्मे की नमाज जेल में पढ़नी पड़ गई, तो लानत है हम पर ।''

"पण जो अपुन को तड़ीपार करेगा, हम उसको भी खलास कर देगा " बटाला ने फटे बास की तरह घरघराती आवाज निकाली ।"

"तेरे को कई बार कहा, सुबह-सुबह गरारे किया कर, वरना बोला मत कर ।" मायादास ने उसे घूरते हुए कहा ।

बटाला चुप हो गया ।

''सावंत का कत्ल करते वक्त इस हरामी से कुछ मिस्टेक भी हो गयी । इसने जुम्मन की टैक्सी को इस काम के लिये इस्तेमाल किया और जुम्मन उसी दिन से लापता है । उसकी टैक्सी गैराज में खड़ी है । यह जुम्मन इसके गले में पट्टा डलवा सकता है । मैंने कहा था- कोई चश्मदीद ऐसा ना हो, जो तुम्हें पहचानता हो । जुम्मन की थाने में हिस्ट्री शीट खुली हुई है और अगर वह पुलिस को बिना बताए गायब होता है, तो पुलिस उसे रगड़ देगी । ऐसे में वह भी मुंह खोल सकता है । जुम्मन डबल क्रॉस भी कर सकता है, वह भरोसे का आदमी नहीं है ।"

बटाला ने फिर कुछ बोलना चाहा, परंतु मायादास के घूरते ही केवल हिनहिनाकर रह गया ।

''तो सावंत का मुजरिम ये है ।'' रोमेश बोला ।

''आपको इसे हर हालत में सेफ रखना है वकील साहब, बोलो क्या फीस मांगता ? "

"फीस में तब ले लूँगा, जब काम शुरू होगा । अभी तो कुछ है ही नहीं, पहले पुलिस को बटाला तक तो पहुंचने दो, फिर देखेंगे ।"
☐☐☐
 
रोमेश डिनर के बाद फ्लैट पर पहुँचा, तो उसके पास सारी बातचीत का टेप मौजूद था । फिर भी उसने विजय को कुछ नहीं बताया ।

अगले ही दिन समाचार पत्रों में छपा की, विजय ने वह टैक्सी बरामद कर ली है, जिसे कातिल ने प्रयोग किया था । टैक्सी के मालिक रूप सुंदर को एक रात हवालात में रखने के बाद सुबह छोड़ दिया गया था । चालक जुम्मन गायब था ।

रोमेश के होंठों पर मुस्कुराहट उभर आई, इसका मतलब मायादास को पहले से पता था कि टैक्सी का सुराग पुलिस को मिल गया है और जुम्मन कभी भी आत्मसमर्पण कर सकता है । जुम्मन के हाथ आते ही बटाला का नकाब भी उतर जायेगा ।

शाम को रोमेश से विजय खुद मिला ।

''तुम्हारी बात सच निकली रोमेश ।''

"कुछ मिला ?"

"जुम्मन ने सब बता दिया है ।"

"जुम्मन तुम्हारे हाथ आ गया, कब ?"

"वह रात ही हमारे हाथ लग गया था,लेकिन मैंने उसे हवालात में नहीं रखा । बैंडस्टैंड के एक सुनसान बंगले में है । "

"यह तुमने अक्लमंदी की ।"

"मगर तुम जुम्मन को कैसे जानते हो ?"

"यह छोड़ो, एक बात मैं तुम्हें बताना चाहता था, तुम्हारे थाने का तुम्हारा कोई सहयोगी अपराधियों तक लिंक में है । कौन है, यह तुम पता लगाओगे ।''

"मुझे पता लग चुका है । इसलिये तो मैंने जुम्मन से हवालात में पूछताछ नहीं की । बलदेव, सब इंस्पेक्टर बलदेव ! फिलहाल मैंने उसे फील्डवर्क से भी हटा लिया है । जुम्मन ने बटाला का नाम खोल दिया है । स्टेनगन बटाला के पास है, आज रात मैं उसके अड्डे पर धावा बोल दूँगा । वह घाटकोपर में देसी बार चलाता है । मेरे पास उसकी सारी डिटेल आ गई है । चाहो तो रेड पर चल सकते हो । "

''नहीं, यह तुम्हारा काम है और फिर जब तुम बटाला को धर लो, तो जरा मुझसे दूर-दूर ही रहना ।"

"क्यों ? क्या उसका भी केस लड़ोगे ?''

"नहीं, मैं पेशे के प्रति ईमानदार रहना चाहता हूँ । हालांकि तुम खुद बटाला तक पहुंच गये हो, लेकिन इन लोगों को अगर पता चला कि उस केस के सिलसिले में तुम वहाँ जा रहे हो, तो वे यही समझेंगे कि यह सब मेरा किया धरा है । मैंने तुम्हें लाइन सिर्फ इसलिये दी, क्योंकि तुम गलत दिशा में भटक गये थे । अब सबूत जुटाना तुम्हारा काम है ।''

''लेकिन जनाब अगले हफ्ते नया साल शुरू होने वाला है और दस जनवरी को आपकी शादी की वर्षगांठ होती है, याद है ।'' इतना कहकर विजय ने सौ-सौ के नोटों की छः गड्डियां रोमेश के हवाले करते हुए कहा, "तुम तो तकाजा भी भूल गये ।''

''यार सचमुच तूने याद दिला दिया, मेरे को तो याद भी नहीं था । माय गॉड, सीमा वैसे भी आजकल मुझसे बहुत कम बोलती है । मैरिज एनिवर्सरी पर मैं उसे गिफ्ट दूँगा इस बार ।''

☐☐☐
 
घाटकोपर की एक बस्ती में ।

बटाला का अवैध शराब का बार चलता था ।

बटाला देसी बार के ऊपर वाले कमरे में बैठा था । उसकी बगल में एक पेशेवर औरत थी, जिसके साथ वह रमी खेल रहा था ।

पास ही एक बोतल रखी थी ।

तभी एक चेला अंदर आया ।

"मुखबिर का खबर आयेला ।''

"क्या ?"

"पुलिस का रेड इधर पड़ेला ।''

"आने दे कोई नया इंस्पेक्टर होगा । जब आ जाये तो बोल देना, ऊपर कू आए, मेरे से बात कर लेने का क्या, अब फुट जा । ''

तभी पुलिस का सायरन बजा । बटाला पर कोई असर नहीं पड़ा । वह उसी प्रकार रमी खेलता रहा । खबर देने वाला नीचे चला गया ।

कुछ ही देर में बार में तोड़फोड़ की आवाजें गूंजने लगी । चेला फिर हाँफता काँपता ऊपर आया ।

"इंस्पेक्टर विजय है । तुमको गिरफ्तार करने आया है ।''

बटाला ने उठकर एक झन्नाटेदार थप्पड़ चेले के मुँह पर मारा । अपनी रिवॉल्वर हवा में घुमाई और फिर उसे जेब में डालता उठ खड़ा हुआ । उसी वक्त बटाला ने फोन मिलाने के लिए डायल पर उंगली घुमाई, लेकिन वह चौंक पड़ा, टेलीफोन डेड पड़ा था ।

''हमारा काम करने का तरीका कुछ पसंद आया ।'' अचानक विजय ने उसी कमरे के दरवाजे पर कदम रखा, ''अब तुम किसी नेता को फोन नहीं मारेगा, थाने चलेगा सीधा ।''

''साले ! " बटाला ने रिवॉल्वर निकाली ।

लेकिन फायर करने से पहले विजय ने एक जोरदार ठोकर बटाला पर रसीद कर दी, बटाला लड़खड़ाया, विजय एकदम चीते की तरह उस पर झपटा और फिर विजय की रिवॉल्वर बटाला के सीने पर थी ।

''पुलिस पर गोली चलाएगा साले । मैं तेरे को बर्बाद कर दूँगा । अपुन को ठीक से जान लेने का, नहीं तो नौकरी से हाथ धो लेगा ।"

"जनार्दन रेड्डी के कुत्ते ।" विजय ने उसे एक ठोकर और जड़ दी, ''इधर पूरी बस्ती को घेरा है मैंने । कोई तेरी मदद को नहीं आएगा, मुम्बई के जितने भी तेरे जैसे लोग हैं, मेरा नाम सुनते ही सब का पेशाब निकल जाता है । सावंत का कत्ल किया तूने, चल ।"

विजय ने बटाला के हाथों में हथकड़ियां डाल दी ।

"ऐ चल भाग यहाँ से ।'' विजय ने पेशेवर युवती से कहा ।

बटाला को गिरफ्तार करके विजय गोरेगांव के लिए चल पड़ा । अभी बटाला से कुछ पूछताछ भी करनी थी, इसीलिये वह उसे लेकर सीधा थाने नहीं गया, बैंडस्टैंड के उसी बंगले में गया, जहाँ जुम्मन बंद था ।

"यह तो थाना नहीं है ।"

"बटाला जी पर यह मेरा प्राइवेट थाना है, साले यहाँ भूत भी नाचने लगते हैं मेरी मार से । अभी तो तेरे से स्टेनगन बरामद करना है ।"

उसके बाद बटाला की ठुकाई शुरू हो गई ।
☐☐☐
 
बटाला को अधिक देर तक प्राइवेट कस्टडी में नहीं रखा जा सकता था, विजय ने सुबह जब उसे लॉकअप में बन्द किया, तो स्टेनगन भी बरामद कर ली थी । अब उसने पूरा मामला तैयार कर लिया था । उसे मालूम था, बटाला को गिरफ्तार करते ही हंगामा होगा और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी उससे जवाब तलबी कर सकते थे ।
हुआ भी यही ।

मामला सीधा आई.जी. के पास पहुँचा ।

खुद एस.एस.पी. सीधा थाने पहुंच गया ।

"आज तक तुम्हारे खिलाफ कोई शिकायत नहीं आई ।" एस.एस.पी. ने कहा, "इसलिये बटाला को छोड़ दो, तुमने ठाणे जिले में कैसे हाथ डाल दिया, वहाँ की पुलिस… ।"

"सर । अगर मैं वहाँ की पुलिस को साथ लेता, तो बटाला हाथ नहीं आता, आखिरी वक्त तक वो यही समझता रहा कि उसी के थाने की पुलिस होगी, अगर उसे जरा भी पता चल जाता कि उसे सावंत मर्डर केस में अरेस्ट किया जा रहा है, तो वह हाथ नहीं आता ।"

"सावंत मर्डर केस पहले चंदन, फिर यह बटाला । "

"मैंने स्टेनगन भी बरामद कर ली ।"

"देखो इंस्पेक्टर विजय, आई.जी. का दबाव है, घाटकोपर की उस बस्ती में तुम्हारे खिलाफ नारे लगा रहे हैं , कोई ताज्जुब नहीं कि जुलूस निकलने लगे, तुम पुलिस इंस्पेक्टर हो, इसका यह मतलब नहीं कि…।"

"सर प्लीज, आप केवल रिजल्ट देखिये, ये मत देखिये कि मैंने कौन सा काम किस तरह किया है । यही शख्स सावंत का हत्यारा है । मैं इसका रिमांड लूँगा, ताकि असली हत्यारे को भी फंसाया जा सके ।"

"इसकी सावंत से क्या दुश्मनी थी ?"

"इसकी नहीं, यह तो मोहरा भी नहीं है, प्यादा भर है । इसने शूट किया, शूट किसी और ने करवाया, मैं मुकदमा दायर कर चुका हूँ, अब रिमांड लूँगा और उस शख्स को गिरफ्तार करूंगा, जिसने कत्ल करवाया है ।"

विजय ने एस.एस.पी. की एक न सुनी ।

बटाला लॉकअप में बन्द था ।

"मुझे मालूम है सर, मेरी सर्विस भी जा सकती है, लेकिन इस थाने का चार्ज और सावंत मर्डर केस की तफ्तीश कर रहा हूँ मैं, जब तक मेरी वर्दी मेरे पास है, पुलिस महकमे का बड़े से बड़ा ऑफिसर भी मुझे काम करने से नहीं रोक सकता ।"

"ठीक है, आई.जी. के सामने मैंने तुम्हारी बहुत तारीफ की थी, अब अपनी तारीफ खुद कर लेना, लेकिन मेरी व्यक्तिगत सलाह यही है कि…।"

"सॉरी सर ।"

एस.एस.पी. चला गया ।
☐☐☐

बटाला की गिरफ्तारी का समाचार ही सनसनीखेज था । सावंत मर्डर केस ने अब एक नया मोड़ ले लिया था । इस नए मोड़ के सामने आते ही स्वयं मायादास एडवोकेट रोमेश के घर पर आ पहुँचा ।

"बटाला से वह स्टेनगन भी बरामद कर ली गई है, जिससे मर्डर हुआ ।" रोमेश ने कहा ।

"तुम किस मर्ज की दवा हो, उसे फौरन जमानत पर बाहर करो भई ।" मायादास ने कहा, "अपनी फीस बोलो, लेके आया हूँ ।" उसने अपना ब्रीफकेस रोमेश की तरफ सरकाते हुए कहा ।

"मायादास जी, बेशक आप माया में खेलते रहते हैं । लेकिन आपकी जानकारी के लिए मैं सिर्फ इतना बता देना काफी समझता हूँ कि मैंने अपनी आज तक की वकालत की जिन्दगी में किसी मुजरिम का केस नहीं लड़ा, जिसके बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल उसी ने किया, उसे मैं फाँसी के तख्ते पर पहुंचाने में तो मदद कर सकता हूँ, मगर उसका केस लड़ने की तो सोच भी नहीं सकता ।"

"मेरा ख्याल है कि तुम नशे में नहीं हो ।"

"आपका ख्याल दुरुस्त है मायादास जी, मैं नशे में नहीं हूँ ।"

"मगर तुमने तो कहा था, तुम केस लड़ोगे ।"

"उस वक्त मैं नशे में रहा होऊंगा ।"

"आई सी ! नशे में न हम हैं न आप । मैं आपसे केस लड़वाने आया हूँ और आप उसे फाँसी चढ़ाने की सोच बैठे हैं ।"

"दूसरे वकील बहुत हैं ।"

"नहीं, मिस्टर रोमेश सक्सेना ! वकील सिर्फ तुम ही हो, हम जे.एन. साहब के पी.ए. हैं और जे.एन. साहब जो कहते हैं, वो ही होना होता है ।" मायादास ने फोन का रुख अपनी तरफ किया ।

जब तक वह नम्बर डायल करता रहा, तब तक सन्नाटा छाया रहा ।

नम्बर मिलते ही मायादास ने कहा, "सी.एम. साहब से बात कराओ हम मायादास ।"

कुछ पल बाद ।

"हाँ सर, हम मायादास बोल रहे हैं सर, आपने जिस वकील को पसन्द किया था, उसका नाम रोमेश सक्सेना ही है ना ?"

"हाँ, रोमेश ही है, क्यों ?" दूसरी तरफ से पूछा गया ।

"वो केस लड़ने से इंकार करता है । वो वकील कहता है, बटाला को फाँसी पर चढ़ना होगा । "

"उसको फोन दो ।"

मायादास ने रोमेश की तरफ घूरकर देखा और फिर रिसीवर रोमेश को थमा दिया ।

"लो तुम खुद बात कर लो, सी.एम. बोलते हैं ।"

रोमेश ने रिसीवर लिया और क्रेडिल पर रखकर कनेक्शन काट दिया ।

"बहुत गड़बड़ हो गई मिस्टर वकील ।" मायादास उठ खड़ा हुआ, "तुम जे.एन. साहब को नहीं जानते, इसका मतलब तो वह बताएंगे कि बटाला को पकड़वाने मैं तुम्हारा भी हाथ हो सकता है, क्योंकि इंस्पेक्टर विजय तुम्हारा मित्र भी है ।"

"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता ।"

"ठीक है, हम चलते हैं ।"

जाते-जाते ड्राइंग रूम में खड़ी सीमा पर मायादास ने नजर डाली । उसकी आँखों में एक शैतानी चमक आई, फिर वह मुस्कराया और रोमेश के फ्लैट से बाहर निकल गया ।

☐☐☐
 
"तुमने उसे नाराज करके अच्छा नहीं किया रोमेश ।" सीमा बोली, "कम से कम ये तो सोच लिया होता कि वह मुख्यमंत्री का पी.ए. है । जनार्दन नागारेड्डी अगर चाहे, तो जज तक को उसका कहा मानना पड़ेगा, तुम तो मामूली से वकील हो ।"

"मैं मामूली वकील नहीं हूँ मैडम ! इस गलतफहमी में मत रहना, यह मेरा बिजनेस है । आप इसमें दखल न दें, तो बहुत मेहरबानी होगी । बटाला ने एक एम.पी. का मर्डर किया है । एम.पी. का । जो जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है, उसने लाखों लोगों का मर्डर किया है, किसी एक का नहीं, समझी आप ।"

"मैं तो सिर्फ़ इतना समझती हूँ कि हमें चीफ मिनिस्टर से दुश्मनी नहीं लेनी चाहिये ।" इतना कहकर सीमा अन्दर चली गई ।

उसी दिन रात को रोमेश ने एक फोन रिसीव किया ।

"हैल्लो रोमेश सक्सेना स्पीकिंग ।"

दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर खामोशी टूटी ।

"हम जे.एन. बोल रहे हैं, जनार्दन नागारेड्डी, चीफ मिनिस्टर ।"

"कहिये ।"

"कल कोर्ट में हमारा आदमी पेश किया जायेगा, तुम उसके लिए कल वकालतनामा पेश करोगे और उसे तुरन्त जमानत पर रिहा कराओगे, यह हमारा हुक्म है । हम बड़े जिद्दी हैं, हमने भी तय कर लिया है कि तुम ही यह केस लड़ोगे और तुम ही बटाला को रिहा करवाओगे, पसन्द आई हमारी जिद ।"

इससे पहले कि रोमेश कुछ बोलता, दूसरी तरफ से फोन कट गया ।

"गो टू हेल ।" रोमेश ने रिसीवर पटक दिया ।
☐☐☐

सुबह वह नित्यक्रम के अनुसार ठीक समय पर कोर्ट के लिए रवाना हो गया । कोई खास बात नहीं थी, इससे पहले भी कई लोग उसे धमकी दे चुके थे, परन्तु उसका मन कभी विचलित नहीं हुआ था । न जाने आज क्यों उसे बेचैनी-सी लग रही थी । मुम्बई की समुद्री हवा भी उसे अजनबी सी लग रही थी ।

कोर्ट में उसका मन नहीं लगा । बटाला को पेश किया गया था कोर्ट में, किसी वकील ने उसकी पैरवी नहीं की । अगले तीन दिन की तारीख लगा दी ।

रोमेश को यह अजीब-सा लगा कि बटाला की पैरवी के लिए कोई वकील नहीं किया गया था । न जाने क्यों उसका दिल असमान्य रूप से धड़कने लगा ।

शाम को वह घर के लिए रवाना हुआ ।
☐☐☐ =

वह अपने फ्लैट पर पहुंचा, उसने बेल बजाई । दरवाजा कुछ पल बाद खुला, लेकिन दरवाजा खोलने वाला न तो उसका नौकर था, न सीमा । एक अजनबी सा फटा-फटा चेहरा नजर आया, जो दरवाजे के बीच खड़ा था । अजीब-सा लम्बा तगड़ा व्यक्ति जो काली जैकेट और पतलून पहने था ।

"सॉरी ।" रोमेश ने समझा, उसने किसी और के फ्लैट की बेल बजा दी है, "मैंने अपना फ्लैट समझा था ।"

"फ्लैट आपका ही है ।" उस व्यक्ति ने रास्ता दिया, "आइये, आइये ।"

रोमेश सकपका गया, "त… तुम ।"

"हम तो थोड़ी देर के लिए आपके मेहमान हैं ।"

रोमेश ने धड़कते दिल से अन्दर कदम रखा, फ्लैट की हालत उसे असामान्य सी लग रही थी, बड़ा अजीब-सा सन्नाटा छाया था । उस शख्स ने रोमेश के अन्दर दाखिल होते ही दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया और रोमेश के पीछे चलने लगा ।

"म… मगर… !" रोमेश पलटा ।

"बैडरूम में ।" उस व्यक्ति ने पीले दाँत चमकाते हुए कहा ।

रोमेश तेजी के साथ बैडरूम में झपट पड़ा । वहाँ पहुंचते-पहुंचते उसकी साँसें तेज चलने लगी थीं और फिर बैडरूम का दृश्य देखते ही उसकी आँख फट पड़ी, वह जोर से चीखा- "सीमा !"

तभी रिवॉल्वर की नाल उसकी गुद्दी से चिपक गई ।

"अब मत चिल्लाना ।" यह उस शख्स की आवाज थी, जिसने दरवाजा खोला था । उसके हाथ में अब रिवॉल्वर था ।

उसने रोमेश को एक कुर्सी पर धकेल दिया ।

एक शख्स खिड़की के पास पर्दा डाले खड़ा था । उसके हाथ में जाम था । वह धीरे-धीरे पलटा, जैसे ही उसका चेहरा सामने आया, रोमेश एक बार फिर तिलमिला उठा ।

"हरामी ! साले !! मायादास !!!"

बाकी के शब्द मायादास ने पूरे किये, "बाँध दो इसे ।"

कमरे में दो बदमाश और मौजूद थे ।

उन्होंने फ़ौरन रोमेश की मुश्कें कसनी शुरू कर दी । रोमेश को इस बीच में एक झापड़ भी पड़ गया था, जिसमें उसका होंठ फट गया । मायादास ने जाम रोमेश के चेहरे पर फेंका ।

"अभी हमने सिर्फ तुम्हारी बीवी के कपड़े उतारे हैं, इसके साथ ऐसा कुछ नहीं किया, जो या तो यह मर जाये या तुम आत्महत्या कर लो । हम तो तुम्हें सिर्फ नमूना दिखाने आये थे, तुम चाहो तो बान्द्रा पुलिस को फोन कर सकते हो, वहाँ से भी कोई मदद नहीं मिलने वाली ।" मायादास घूमकर सीमा के पास पहुँचा ।

सीमा का मुंह टेप से बन्द किया हुआ था,उसके हाथ पाँव बैड पर बंधे थे और उसके तन पर एक भी कपड़ा नहीं था ।

"डियर स्वीट बेबी, तुम अभी भी बहुत हसीन लग रही हो, दिल तो हमारा बहुत मचल रहा है, मगर सी.एम. साहब का हुक्म है कि हम दिल को सम्भालकर रखें, क्योंकि आगे का काम करने का शौक उन्हीं का है ।"

''हरामजादे ।" रोमेश चीखा ।

रोमेश के एक थप्पड़ और पड़ा ।

"साले अपने आपको हरिश्चन्द्र समझता है ।" मायादास गुर्राया, "अभी तेरे को हम तीन दिन की मोहलत देने आये हैं । जे.एन. साहब की जिद यही है कि तू ही बटाला को छुड़ायेगा । तीन दिन बाद तेरी बीवी के साथ जे.एन. साहब के नाजायज सम्बन्ध बन जायेंगे, इसके बाद इसे हम सबके हवाले कर दिया जायेगा । तेरा नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है, पानी छिड़क देना, होश आ जायेगा ।"

मायादास उस समय सिगरेट पी रहा था ।

उसने सिगरेट सीमा के सीने पर रखकर बुझाई । सीमा केवल तड़पती रह गई, मुँह बन्द होने के कारण चीख भी न सकी ।

मायादास ने कहा और बाहर निकल गया ।

☐☐☐
 
उन सबके जाते ही रोमेश हाँफता हुआ जल्दी से उठा । उसकी आँखों में आँसू आ गये थे । उसकी प्यारी पत्नी को इस रूप में देखकर ही रोमेश काँप गया था । उसने सीमा के बन्धन खोले, उसके मुंह से टेप हटाया ।

"म… मुझे माफ कर दो डार्लिंग ! मैं बेबस था ।"

"शटअप !" सीमा इतनी जोर से चीखी कि उसे खांसी आ गई, "आज के बाद तुम्हारा मेरा कोई वास्ता नहीं रहा, क्योंकि तीन दिन बाद मेरी जो गत बनने वाली है, वह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती ।"

सीमा रोती हुई वार्डरोब की तरफ भागी, टॉवल लपेटा और सीधे बाथरूम में चली गई ।

"सीमा प्लीज । "

वह बाथरूम से ही चीख रही थी, "आज के बाद हमारा कोई रिश्ता नहीं रहा राजा हरिश्चन्द । मैं अब तुम जैसे कंगले वकील के पास एक पल भी नहीं रहूँगी समझे ?"

"सीमा, मेरी बात तो सुनो, मैं अभी पुलिस को फोन करता हूँ ।"

रोमेश ड्राइंगरूम में पहुंचा, पुलिस को फोन मिलाया ।

बान्द्रा थाने का इंचार्ज अपनी ड्यूटी पर मौजूद था ।

"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ ।"

"यही कहना है ना कि आपके फ्लैट पर मायादास जी कुछ गुण्डों के साथ आये और आपकी बीवी को नंगा कर दिया ।"

"त… तुम्हें कैसे मालूम ?"

"वकील साहब, जब तक रेप केस न हो जाये, पुलिस को तंग मत करना, मामूली छेड़छाड़ के मुकदमे हम दर्ज नहीं करते । सॉरी… ।"

फोन कट गया ।

सीमा अपनी तैयारियों में लग चुकी थी । उसने अपने कपड़े एक सूटकेस में डाले और रोमेश उसे लाख समझाता रहा, मगर सीमा ने एक न सुनी ।

"मुझे एक मौका और दो प्लीज ।" रोमेश गिड़गिड़ाया ।

"एक मौका !" वह बिफरी शेरनी की तरह पलटी, "तो सुनो, जिस दिन तुम मेरे अकाउंट में पच्चीस लाख रुपया जमा कर दोगे, उस दिन मेरे पास आना, शायद तुम्हें तुम्हारी पत्नी वापिस मिल जाये ।"

"पच्चीस लाख ? पच्चीस लाख मैं कहाँ से लाऊंगा ? मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं जी सकता ।"

"चोरी करो, डाका डालो, कत्ल करो, चाहे जो करो, पच्चीस लाख मेरे खाते में दिखा दो, सीमा तुम्हें मिल जायेगी, वरना कभी मेरी ओर रुख मत करना, कभी नहीं ।"

"क… कब तक ? "

"सिर्फ एक महीना ।"

"प्लीज ऐसा न करो, दस जनवरी को तो हमारी शादी की वर्षगांठ है । प्लीज मैं तुम्हें वह अंगूठी ला दूँगा ।"

"नहीं चाहिये मुझे अंगूठी ।"

रोमेश ने बहुत कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी और उसे छोड़कर चली गई ।

फ्लैट से बाहर रोमेश ने टैक्सी को रोकने की भी कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी । रोमेश हताश सा वापिस फ्लैट में पहुँचा ।

रोमेश को ध्यान आया कि नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है । उसने तुरन्त नौकर पर पानी छिड़का । उसे होश आ गया ।

"तू जाकर पीछा कर, देख तो सीमा कहाँ गई है ?"

"क… क्या हो गया मालकिन को साहब ?"

पता नहीं वह हमें छोड़कर चली गई, जा देख । बाहर देख, टैक्सी कर, कुछ भी कर, उसे बुलाकर ला ।"

नौकर नंगे पाँव ही बाहर दौड़ पड़ा ।

रोमेश के कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करे, क्या न करे ? उसका होंठ सूखा हुआ था । बायीं आंख के नीचे भी नील का निशान और सूजन आ गई थी, लेकिन इस सबकी तरफ तो उसका ध्यान ही न था । वह सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा था और उसकी अक्ल जैसे जाम होकर रह गई थी ।

फिर उसने विजय का नम्बर मिलाया ।

विजय फोन पर मिल गया ।

"विजय बटाला को छोड़ दे, फ़ौरन छोड़ दे उसे ।" रोमेश पागलों की तरह बोल रहा था, "नहीं छोड़ेगा, तो मैं छुड़ा लूँगा उसे । और सुन, तेरे पास पच्चीस लाख रुपया है ?"

फोन पर बातचीत से ही विजय ने समझ लिया, दाल में काला है ।

"मैं आ रहा हूँ ।" विजय ने कहा ।

''हाँ जल्दी आना, पच्चीस लाख लेकर आना ।"

पन्द्रह मिनट बाद ही विजय और वैशाली रोमेश के फ्लैट पर थे । नौकर तब तक खाली हाथ लौट आया था । दरवाजे पर ही उसने विजय को सारी बात समझा दी ।

अब विजय और वैशाली का काम था, रोमेश को ढांढस बंधाना ।

"पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करो उसकी ।" विजय बोला ।

"न… नहीं । नहीं वह कह रहा था, जब तक रेप नहीं होता, कोई मुकदमा नहीं बनता ।"

"प्लीज, आपको क्या हो गया सर ?" वैशाली के तो आँखों में आंसू आ गये ।

"लीव मी अलोन ।" अचानक रोमेश हिस्टीरियाई अंदाज में चीख पड़ा, "वह मुझे छोड़कर चली गई, तो चली जाये, चली जाये ।" रोमेश बैडरूम में घुसा और उसने दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया ।

"मेरे ख्याल से वैशाली, तुम यहीं रहो । भाभी के इस तरह जाने से रोमेश की दिमागी हालत ठीक नहीं है, मैं जरा बान्द्रा थाने होकर जाता हूँ । देखता हूँ कि कौन थाना इंचार्ज है, जो रेप से नीचे बात ही नहीं करता ।"
☐☐☐
 
दो दिन बाद रोमेश बैडरूम से बाहर निकला । इस बीच उसने कुछ खाया पिया न था । उसने पुलिस से मदद लेने से भी इन्कार कर दिया । वैशाली इन दो दिनों उसी फ्लैट पर थी और कौशिश कर रही थी कि रोमेश अपनी रूटीन की जिन्दगी में लौट आये । इस बीच रोमेश बराबर शराब पीता रहा था ।

वैशाली अन्तत: अपनी कौशिश में कामयाब हुई ।

रोमेश ने स्नान किया और नाश्ते की टेबिल पर आ गया ।

"सीमा का कोई फोन तो नहीं आया ?" रोमेश ने पूछा ।

"आप धीरज रखिये, हम सीमा भाभी को मनाकर ले ही आयेंगे, वह भी तो आपको बहुत चाहती हैं । दो चार दिन में गुस्सा उतर जायेगा, आ जायेंगी ।"

"और किसी का फोन मैसेज वगैरा ?"

"कोई शंकर नागारेड्डी है, तीन-चार बार उसका फोन आया था । वह आपसे मुलाकात का वक्त तय करना चाहता है ।"

"शंकर नागारेड्डी, मैंने तो यह नाम पहली बार सुना, हाँ जनार्दन नागारेड्डी का नाम जरूर जेहन से चिपक सा गया है ।"

"जनार्दन नहीं शंकर नागारेड्डी ।"

"क्यों मिलना चाहता है ?"

"किसी केस के सम्बन्ध में ।"

"केस क्या है ?"

"यह तो उसने नहीं बताया, उसका फोन फिर आयेगा । आप समय तय कर लें, तो मैं उसे बता दूँ ।"

"ठीक है, आज शाम सात बजे का समय तय कर लेना । मैं घर पर ही हूँ, कहीं नहीं जाऊंगा । फिलहाल कोर्ट के मैटर तुम देख लेना ।"

"वह तो मैं देख ही रही हूँ सर, उसकी तरफ से आप चिन्ता न करें ।"

दोपहर एक बजे शंकर का फोन फिर आया । वैशाली ने मुलाकात का समय तय कर दिया । दिन भर रोमेश, वैशाली के साथ शतरंज खेलता रहा । विजय भी एक चक्कर लगा गया था, उसने भी एक बाजी खेली, सब सामान्य देखकर उसने वैशाली की पीठ थपथपायी ।

"पुलिस में मामला मत उठाना ।" रोमेश बोला, "वैसे तो मैं खुद बाद में यह मामला उठा सकता था । मगर इससे मेरी बदनामी होगी, कैसे कहूँगा कि मेरी बीवी… ।"

"ठीक है, मैं समझ गया ।"

"जिनके साथ बलात्कार होता है, पता नहीं वह महिला और उसके अभिवावकों पर क्या गुजरती होगी, जब वह कानूनी प्रक्रिया से गुजरते होंगे । कल बटाला को पेश किया जाना है ना ?"

"हाँ, मुझे उम्मीद है रिमाण्ड मिल जायेगा और उसकी जमानत नहीं होगी । एम.पी. सावन्त की पत्नी भी सक्रिय है, वह बटाला की किसी कीमत पर जमानत नहीं होने देंगे । मुझे उम्मीद है जब मैं जे.एन. को लपेटूंगा, तो पूरी लाठी मेरे हाथ होगी और कोई ताज्जुब नहीं कि कोई आन्दोलन खड़ा हो जाये ।"

"तुम काम करते रहो ।" रोमेश ने कहा ।

सात बजे शंकर नागारेड्डी उससे मिलने आया ।

रोमेश सोच रहा था कि वह शख्स अधेड़ आयु का होगा किन्तु शंकर एकदम जवान पट्ठा था । रंगत सांवली जरूर थी किन्तु व्यक्तित्व आकर्षक था । लम्बा छरहरा बदन और चेहरे पर फ्रेंचकट दाढ़ी थी ।

"मुझे शंकर नागारेड्डी कहते हैं ।"

"हैल्लो !" रोमेश ने हाथ मिलाया और शंकर को बैठने का संकेत किया ।

शंकर बैठ गया ।

फ्लैट का एक कमरा रोमेश का दफ्तर होता था । दायें बायें अलमारियों में कानून की किताबें भरी हुई थीं । मेज की टॉप पर इन्साफ की देवी का एक छोटा बुत रखा हुआ था, बायीं तरफ टाइपराइटर था ।

"कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?"

"मेरा एक केस है, मैं वह केस आपको देना चाहता हूँ ? "
"केस क्या है ?"
"कत्ल का मुकदमा ।"
"ओह, क्या आप मेरे बारे में कुछ जानकारी रखते हैं ?"
"जी हाँ, कुछ नहीं काफी जानकारी रखता हूँ । मसलन आप एक ईमानदार वकील हैं । किसी अपराधी का केस नहीं लड़ते । आप पहले केस को इन्वेस्टीगेट करके खुद पता करते हैं कि जिसकी आप पैरवी करने जा रहे हैं, वह निर्दोष है या नहीं ।"
"बस-बस इतनी जानकारी पर्याप्त है । अब बताइये कि किसका मर्डर हुआ और किसने किया ?"
"मर्डर अभी नहीं हुआ और जब मर्डर हुआ ही नहीं, तो हत्यारा भी अभी कोई नहीं है ।"
"क्या मतलब ?"
"पहले तो आप यह जान लीजिये कि मैं आपसे केस किस तरह का लड़वाना चाहता हूँ, मुझे मर्डर से पहले इस बात की गारंटी चाहिये कि मर्डर में जो भी अरेस्ट होगा,वह बरी होगा और यह गारंटी मुझे एक ही सूरत में मिल सकती है ।"
"वह सूरत क्या है ?"
"यह कि मर्डर आप खुद करें ।"
"व्हाट नॉनसेंस ।" रोमेश उछल पड़ा, "तुम यहाँ एक वकील से बात करने आए हो या किसी पेशेवर कातिल से ।"
"मैं जानता हूँ कि जब आप खुद किसी का कत्ल करेंगे, तो दुनिया की कोई अदालत आपको सजा नहीं दे पायेगी, यही एक गारन्टी है ।"
"बस अब तुम जा सकते हो ।"
"रास्ता मुझे मालूम है वकील साहब, लेकिन जाने से पहले मैं दो बातें और करूंगा, पहली बात तो यह कि मैं उस केस की आपको कुल मिलाकर जो रकम दूँगा, वह पच्चीस लाख रुपया होगा ।"
"प… पच्चीस लाख ! तुम बेवकूफ हो क्या, अरे किसी पेशेवर कातिल से मिलो, हद से हद तुम्हारा काम लाख में हो जायेगा, फिर पच्चीस लाख ।" रोमेश को एकदम ध्यान आया कि सीमा ने इतनी ही रकम मांगी थी, "प… पच्चीस लाख ही क्यों ?
"पच्चीस लाख क्यों ? अच्छा सवाल है । बिना शक कोई पेशेवर कातिल बहुत सस्ते में यह काम कर देगा, लेकिन उस हालत में देर-सवेर फंदा मेरे गले में ही आकर गिरेगा और आपके लिए मैंने यह रकम इसलिये लगाई है, क्योंकि मैं जानता हूँ, इससे कम में आप शायद ऐसा डिफिकल्ट केस नहीं लेंगे ।"
रोमेश ने उसे घूरकर देखा ।
"दूसरी बात क्या थी ?"
"आपने यह तो पूछा ही नहीं, कत्ल किसका करना है । दूसरी बात यह है, हो सकता है कि कत्ल होने वाले का नाम सुनकर आप तैयार हो जायें, उसका नाम है जनार्दन नागारेड्डी । "
"ज… जनार्दन… ?"
"हाँ वही, चीफ मिनिस्टर जनार्दन नागारेड्डी यानि जे.एन. । मैं जानता हूँ कि जब आप यह कत्ल करोगे, तो अदालत आपको रिहा भी करेगी और मुझ तक पुलिस कभी न पहुंच सकेगी ।"
"नेवर, यह नहीं होगा, यह हो ही नहीं सकता ।"
"यह रहा मेरा कार्ड, इसमें मेरा फोन नम्बर लिखा है । अगर तैयार हो, तो फोन कर देना, मैं आपको दस लाख एडवांस भिजवा दूँगा । बाकी काम होने के बाद ।"
"अपना विजिटिंग कार्ड टेबिल पर रखकर शंकर नागारेड्डी गुड बाय करता हुआ बाहर निकल गया ।
रोमेश ने कार्ड उठाया और उसके टुकड़े-टुकड़े करके डस्टबिन में फेंक दिया ।
"कैसे-कैसे लोग मेरे पास आने लगे हैं ।"
☐☐☐
 
अगले दिन रोमेश को पता चला कि पर्याप्त सबूतों के अभाव के कारण बटाला को जमानत हो गई, विजय उसकी रिमाण्ड नहीं ले सका ।
उसके आधे घण्टे बाद मायादास का फोन आया ।
"देखा हमारा कमाल, वह अगली तारीख तक बरी भी हो जायेगा । तुम जैसे वकीलों की औकात क्या है, तुमसे ऊपर जज होता है साले ! अब हम उस दरोगा की वर्दी उतरायेंगे । तू उसकी वर्दी बचाने के लिए पैरवी करना, जरूर करना और तब तुझे पता चलेगा कि मुकदमा तू भी हार सकता है । क्योंकि तू उसकी वर्दी नहीं बचा पायेगा, जे.एन. से टक्कर लेने का अंजाम तो मालूम होना ही चाहिये ।"
रोमेश कुछ नहीं बोला ।
फोन कट गया ।
☐☐☐
उस रात तेज बारिश हो रही थी, रोमेश बरसती घटाओं को देख रहा था । बिजली चमकती, बादल गरजते, वह बे-मौसम की बरसात थी । वह खिड़की पर खड़ा सोच रहा था कि क्या सीमा अब कभी उसकी जिन्दगी में नहीं लौटेगी ? उसकी दुनिया में यह अचानक कैसी आग लग गई ?
वह शराब पीता रहा ।
जनार्दन नागारेड्डी इस तबाही का एकमात्र जिम्मेदार था । ऐसे लोगों के सामने कानून बेबस खड़ा होता है, कानून की किताब रद्दी का कागज बन जाती है । पुलिस ऐसे लोगों की रक्षक बनकर खड़ी हो जाती है, तो फिर कानून किसके लिए है ? किसके लिए वकील लड़ता है ? यहाँ तो जज भी बिकते हैं ।
ऐसे लोगों को सजा नहीं मिलती ? क्यों… क्यों है यह विधान ?
"आज मेरे साथ हुआ, कल विजय के साथ होगा । हो सकता है कि वैशाली के साथ भी वैसा ही हादसा हो ? आने वाले कल में वह विजय की पत्नी है । मेरे और विजय के करीब रहने वाले हर शख्स को खतरा है ।"
उसे लगा, जैसे दूर खड़ी सीमा उसे बुला रही है ।
लेकिन वह जा नहीं पा रहा है । उसके पैरों में बेड़ियाँ पड़ी हैं और वह बेड़ियाँ एक ही सूरत से कट सकती है, पच्चीस लाख ! पच्चीस लाख !! पच्चीस लाख !!!
पच्चीस लाख मिल सकता है । शर्त सिर्फ एक ही है, जनार्दन नागारेड्डी का कत्ल ।
कानून की आन भी यही कहती है कि ऐसे अपराधी को सजा मिलनी ही चाहिये । क्या फर्क पड़ता है, उसे फांसी पर जल्लाद लटकाए या वह खुद ? कानून की आन रखने के लिए अगर वह जल्लाद बन भी जाता है, तो हर्ज क्या है ? क्या पुलिस, बदमाशों को मुठभेड़ में नहीं मार गिराती ?
मैं यह कत्ल करूंगा, जनार्दन नागारेड्डी अब तुझे कोई नहीं बचा सकता ।
सुबह रोमेश डस्टबिन से विजिटिंग कार्ड के टुकड़े तलाश कर रहा था, संयोग से डस्टबिन साफ नहीं हुआ था और कार्ड के टुकड़े मिल गये । रोमेश उन टुकड़ों को जोड़कर फोन नम्बर उतारने लगा ।
शंकर का फोन नम्बर अब उसके सामने था ।
उसने फोन पर नम्बर डायल करना शुरू कर दिया ।
☐☐☐
 
शंकर दस लाख लेकर आ गया । उसने ब्रीफकेस रोमेश की तरफ खिसका दिया ।
"गिन लीजिये, दस लाख हैं ।"
"मुझे यकीन है कि दस लाख ही होंगे ।" रोमेश ने कहा और ब्रीफकेस उठाकर एक तरफ रख दिया ।
"साथ में मेरी ओर से बधाई ।"
"बधाई किस बात की ?"
"कत्ल करने और उसके जुर्म में बरी होने के लिए । आप जैसे काबिल आदमी की इस देश में जरूरत ही क्या है, मैं आपको अमेरिका में स्टैब्लिश कर सकता हूँ ।"
"वह मेरा पर्सनल मैटर है कि मैं कहाँ रहूंगा, अभी हम केस पर ही बात करेंगे । पहले मुझे यह बताओ कि तुम यह कत्ल क्यों करवाना चाहते हो और तुम्हारा बैकग्राउण्ड क्या है, क्या तुम उसके कोई नाते रिश्तेदार हो ?"
"नागारेड्डी तो हजारों हो सकते हैं, फिलहाल मैं इस सवाल का जवाब नहीं दे पाऊंगा । हाँ, जब मुकदमा खत्म हो जायेगा; तब आप मुझसे इस सवाल का जवाब भी पा लेंगे ।"
"तुमने यह भी कहा था कि कोई पेशेवर कातिल इस काम को करेगा, तो तुम पकड़े जाओगे ।"
"हाँ, यह सही है । इसलिये मैं यह चाहता हूँ कि इस कत्ल को कोई पेशेवर न करे । आपको यह बात अच्छी तरह जाननी होगी कि कत्ल आपके ही हाथों होना हैं और बरी भी आपको होना है । यही दो बातें इस सौदे में हैं ।"
"ठीक है, काम हो जायेगा ।"
"मैं जानता हूँ, शत प्रतिशत हो जायेगा । एक बार फिर आपको मुबारकबाद देना चाहूँगा । मैं अखबार, रेडियो और टी.वी. पर यह खबर सुनने के लिए बेताब रहूँगा । जैसे ही यह खबर मुझे मिलेगी, मैं बाकी रकम लेकर आपके पास चला आऊँगा ।"
दोनों ने हाथ मिलाया और शंकर लौट गया ।
अब रोमेश ने एक नयी विचारधारा के तहत सोचना शुरू कर दिया ।
"मुझे यह रकम बहुत जल्दी खत्म कर देनी चाहिये ।" रोमेश ने घूंसा मेज पर मारते हुए कहा, "यह मुकदमा सचमुच ऐतिहासिक होगा ।"
☐☐☐
कुछ देर बाद ही रोमेश कोर्ट पहुँचा । उसने अपनी मोटरसाइकिल सर्विस के लिए दे दी और चैम्बर में पहुंचते ही उसने आवश्यक कागजात देखे और कुछ फाइलें देखीं और फिर अपने केबिन में वैशाली को बुलाया ।
"आज मैं तुम्हें एक विशेष दर्जा देना चाहता हूँ ।" रोमेश ने कहा ।
"क्या सर ?"
"आज के बाद यह जितने भी केस पेंडिंग पड़े हैं और जितनी भी पैरवी मैं कर रहा हूँ, वह सब तुम करोगी ।"
"मगर...। "
"पहले मेरी बात पूरी सुनो । ध्यान से सुनो । गौर से सुनो । आज के बाद मैं इस चैम्बर में नहीं आऊँगा, इसकी उत्तराधिकारी तुम हो । मैं पूरे पेपर साइन करके इसकी ऑनरशिप तुम्हें दे रहा है, क्योंकि मैं एक संगीन मुकदमे से दो चार होने जा रहा हूँ । एक ऐसा मुकदमा, जो कभी किसी वकील ने नहीं लड़ा होगा । यह मुकदमा अदालत से बाहर लड़ा जाना है । हाँ, इसका अन्त अदालत में ही होगा ।"
"मैं कुछ समझी नहीं सर ।"
"मैंने जनार्दन नागारेड्डी का कत्ल कर देने का फैसला किया है, कातिल बनने के बाद मुझे इस चैम्बर में आने का हक नहीं रह जायेगा, मेरी वकालत की दुनिया का यह आखिरी मुकदमा होगा ।"
"आप क्या कह रहे हैं ?" वैशाली का दिल बैठने लगा ।
"हाँ, मैं सच कह रहा हूँ । इसलिये ध्यान से सुनो, आज के बाद तुम मेरे फ्लैट पर भी कदम नहीं रखोगी । तुम्हें अपने जीवन में मेरी पहचान बनना है । यह बात विजय को भी समझा देना कि वह मुझसे दूर रहे । मैंने आज अपने घरेलू नौकर को भी हटा देना है ।"
"सर, मैं आपके लिए कुछ मंगाऊं ?"
"नहीं, अभी इतनी खुश्की नहीं आई कि पानी पीना पड़े । चैम्बर का चार्ज सम्भालो और लगन से अपने काम पर जुट जाओ । अगर तुम कभी सरकारी वकील भी बनो, तब भी एक बात का ध्यान रखना कि कभी भी किसी निर्दोष को सजा न होने पाये । यह तुम्हारा उसूल रहेगा । अपने पति को इतना प्यार देना, जितना कभी किसी पत्नी ने न दिया हो । जीवन में सिर्फ आदर्शों का महत्व होता है, पैसे का नहीं होता । विजय भी मेरी तरह का शख्स है, कभी उसे चोट न पहुँचे । यह लो, ये वह फाइल है, जिसमें तुम्हें इस चैम्बर की ऑनरशिप दी जाती है ।"
वैशाली की आंखें डबडबा आयीं ।
वह कुछ बोली नहीं ।
रोमेश उसका कंधा हुआ थपथपाता बाहर निकल गया ।
जाते-जाते उसने कहा, "कभी मेरे घर की तरफ मत आना । यह मत सोचना कि मैं मानसिक रूप से अस्वस्थ हूँ । मैं ठीक हूँ, बिल्कुल ठीक । और मेरा फैसला भी ठीक ही है ।"
रोमेश बाहर निकल गया ।
☐☐☐
 
रोमेश ने काम शुरू कर दिया । सबसे पहले जे.एन. के बारे में जानकारियां प्राप्त करने का काम था ।
उसकी पिछली जिन्दगी की जानकारी, उसकी दिनचर्या क्या है ? कौन उसके करीब हैं ? उसे क्या-क्या शौक हैं ?
रोमेश ने तीन दिन में ही काफी कुछ जानकारियां प्राप्त कर लीं । सबसे उल्लेखनीय जानकारी यह थी कि जनार्दन नागारेड्डी की माया नाम की एक रखैल थी, जिसके लिए उसने एक फ्लैट बांद्रा में खरीदा हुआ था । माया के पास वह बिना नागा हर शनिवार की रात गुजरता था, चाहे कहीं हो, उस जगह अवश्य पहुंच जाता था । वह भी गोपनीय तरीके से । उस समय उसके पास सरकारी गार्ड या पुलिस प्रोटेक्शन भी नहीं रहता था । उसके दो प्राइवेट गार्ड रहते थे, जो रात भर उस फ्लैट पर रहते थे ।
जे.एन. यहाँ वी.आई.पी. गाड़ी से नहीं आता था बल्कि साधारण गाड़ी से आता था । यह उसकी प्राइवेट लाइफ का एक हिस्सा था ।
सियासत से पहले जे.एन. एक माफिया था और उसने एक जेबकतरे से अपनी जिन्दगी शुरू की थी । वह दो बार सजा भी काट चुका था । किन्तु अब सरकारी तौर पर जे.एन. का कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं मिलता था ।
इसके अतिरिक्त एक कोड का पता चला, फ़ोन पर यह कोड बोलने से सीधा जे.एन. ही कॉल सुनता था । यह कोड बहुत ही खास आदमी प्रयोग करते थे । यह कोड माया भी प्रयोग करती थी । रोमेश के पास काफी जानकारियां थी । एक जानकारी यह भी थी कि किसी आंदोलन के डर से जे.एन. की पार्टी के लोग ही उसे मुख्यमन्त्री पद से हटाने के लिए अन्दर-अन्दर मुहिम छेड़े हुए हैं । वह जानते हैं कि सांवत मर्डर केस कभी भी रंग पकड़ सकता है । अगर जे.एन. मुख्यमन्त्री बना रहता है, तो पार्टी की छवि खराब हो जायेगी । हो सकता था कि एक दो दिन में ही जे.एन. को मुख्यमन्त्री पद छोड़ना पड़े । जे.एन. को केन्द्रीय मन्त्री के रूप में लिया जाना तय हो चुका था, किन्तु कुछ दिन उसे पार्टी ठंडे बस्ते में रखना चाहती थी ।
इकत्तीस दिसम्बर की सुबह ही टी.वी. में यह खबर आ गयी थी कि जे.एन. मुख्यमन्त्री पद से हटा दिये गये हैं । समाचार यह भी था कि शीघ्र ही जे.एन. को केन्द्रीय मन्त्री पद मिल जायेगा । टी.वी. पर जे.एन. का इण्टरव्यू भी था । उसका यही कहना था कि पार्टी का जो कहना होगा, वह उसे स्वीकार है । चाहे वह मन्त्री न भी रहे, तब भी जनता की सेवा तो करता ही रहेगा ।
एक्स चीफ मिनिस्टर जे.एन. अब भी अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्ति था ।
इकत्तीस दिसम्बर की रात जश्न की रात होती है ।
नया साल शुरू होने वाला था ।
रोमेश एक मन्दिर में गया, उसने देवी माँ के चरण की रज ली और प्रार्थना की, कि आने वाले साल में वह जिस काम से निकल रहा है, उसे सम्भव बना दे । वह जे.एन. को कत्ल करने के लिए मन्नत मांग रहा था ।
उसके बाद उसने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और मुम्बई की सड़कों पर निकल गया । एक डिपार्टमेंटल स्टोर के सामने उसने मोटरसाइकिल रोक दी । स्टोर में दाखिल हो गया, रेडीमेड गारमेंट्स के काउण्टर पर पहुँचा ।
"वह जो बाहर शोकेस में काला ओवरकोट टंगा है, उसे देखकर मैं आपकी शॉप में चला आया हूँ ।"
"अभी मंगाते हैं ।" सेल्समैन ने कहा ।
शीघ्र ही काउण्टर पर ओवरकोट आ गया ।
"क्या प्राइस है ?"
"अभी आप पसन्द कर लीजिये, प्राइस भी लग जायेगी और क्या दें, पैंट शर्ट ?"
"इससे मैच करती एक काली पैंट ।"
सेल्समैन ने कुछ काली पैंटे सामने रख दी और पैंटों की तारीफ करने लगा । रोमेश ने एक पैंट पसन्द की ।
"काली शर्ट ?" रोमेश बोला ।
"जी ।" सेल्समैन ने सिर हिलाया ।
अब काउंटर पर काली शर्टों का नम्बर था । रोमेश ने उसमें से एक पसन्द की ।
"एक काला स्कार्फ या मफलर होगा ।" रोमेश बोला ।
मफलर भी आ गया ।
"काले दस्ताने ।"
"ज… जी !" सेल्समैन ने दस्ताने भी ला दिये, "काले जुराब, काला चश्मा, काले जूते ।"
"तुम आदमी समझदार हो, वैसे काले जूते मेरे पास हैं ।" रोमेश ने अपने जूतों की तरफ इशारा किया ।
"चश्मा इसी स्टोर के दूसरे काउण्टर पर है ।" सेल्समैन बोला, "यहीं मंगा दूँ ?"
चश्मे का सेल्समैन भी वहाँ आ गया । उसने कुछ चश्मे सामने रखे, रोमेश ने एक पसन्द कर लिया ।
"अब एक काला फेल्ट हैट ।"
"हूँ !" सेल्समैन ने सीटी बजाने के अन्दाज में होंठ गोल किये, "मैं भी कितना अहमक हूँ, असली चीज तो भूल ही गया था । काला हैट !"
काला हैट भी आ गया ।
"क्यों साहब किसी फैंसी शो में जाना है क्या ?" सेल्समैन ने पूछा ।
"जरा मैं यह सब पहनकर देख लूं, फिर बताऊंगा ।"
सेल्समैन ने एक केबिन की तरफ इशारा किया । रोमेश सारा सामान लेकर उसमें चला गया ।
"अपुन को लगता है, कोई फिल्म का आदमी है, उसके वास्ते ड्रेस ले रहा होगा, नहीं तो मुम्बई के अन्दर कोट कौन पहनेगा ?"
"मेरे को लगता है फैंसी शो होगा ।"
दोनों किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाये, तभी रोमेश सारी कॉस्ट्यूम पहनकर बाहर आया ।
"हैलो जेंटलमैन !" रोमेश बोला ।
"ऐ बड़ा जमता है यार ।" एक सेल्समैन ने दूसरे से कहा, "फिल्म का विलेन लगता है कि नहीं ।"
"अब एक रसीद बनाना, बिल पर हमारा नाम लिखो, रोमेश सक्सेना ।"
"उसकी कोई जरूरत नहीं साहब, बिना नाम के बिल कट जायेगा । "
"नहीं, नाम जरूर ।"
"ठीक है आपकी मर्ज़ी, लिख देंगे नाम भी ।"
"रोमेश सक्सेना ।" रोमेश ने याद दिलाया ।
बिल काटने के बाद रोमेश ने पेमेंट दी और फिर बोला, "हाँ तो तुम पूछ रहे थे कि साहब किसी फैन्सी शो में जाना है क्या ?"
"वही तो ।" सेल्समैन बोला, "हम तो वैसे ही आइडिया मार रहे थे ।"
"मैं बताता हूँ । इन कपड़ों को पहनकर मुझे एक आदमी का खून करना है ।"
"ख… खून ।" सेल्समैन चौंका ।
"हाँ, खून !"
"मैं समझ गया साहब, अपना दूसरा वाला सेल्समैन ठीक बोलता था, आप फिल्म का आदमी है । साहब वैसे एक्टिंग मैं भी अच्छी कर लेता हूँ, दिखाऊं ।"
"नहीं, तुम गलत समझ रहे हो । मैं कोई फ़िल्मी आदमी नहीं हूँ । मुझे सचमुच इस लिबास को पहनकर किसी का कत्ल करना है और मैंने बिल में अपना नाम-पता इसलिये लिखवाया है, क्योंकि बिल की डुप्लीकेट कॉपी तुम्हारे पास रहेगी । यह कपड़े पुलिस बरामद करेगी, इन पर खून लगा होगा, तहकीकात करते-करते पुलिस यहाँ तक पहुंचेगी, क्योंकि इन कपड़ों की खरीददारी का यह बिल उस वक्त ओवरकोट की जेब में होगा ।"
सेल्समन हैरत से रोमेश को देख रहा था ।
"फिर… फिर क्या होगा साहब ?" उसने हकलाए स्वर में पूछा ।
"पुलिस यहाँ पहुंचेगी, बिल देखने के बाद तुम्हें याद आ जायेगा कि यहाँ इन कपड़ों को मैं खरीदने आया था । तुम उन्हें बताओगे कि मैंने कपड़ों को पहनकर खून करने के लिए कहा था और इसीलिये यह कपड़े खरीदे थे ।"
"ठीक है फिर ।"
"फिर यह होगा कि पुलिस तुम्हें गवाह बनायेगी ।" रोमेश ने उसका कंधा थपथपाकर कहा, "अदालत में तुम्हें पेश किया जायेगा, मैं वहाँ कटघरे में मुलजिम बनकर खड़ा होऊंगा । मुझे देखते ही तुम चीख-चीखकर कहना, योर ऑनर यही वह शख्स है, जो 31 दिसम्बर को हमारी दुकान पर आया और यह कपड़े जो सामने रखे हैं, इसने खून करने के लिए खरीदे थे । मुझसे कहा था ।" कुछ रुककर रोमेश बोला, "क्या कहा था ?"
"ऐं !" सेल्समैन जैसे सोते से जागा ।
"क्या कहा था ?"
"ख… खून करूंगा, कपड़े पहनकर ।"
"शाबास ।"
रोमेश ने भुगतान किया और सेल्समैन को स्तब्ध छोड़कर बाहर निकल गया ।
"साला क्या सस्पेंस वाली स्टोरी सुना गया ।" रोमेश के जाने के बाद सेल्समैन को जैसे होश आया, "फिल्म सुपर हिट होके रहेगा, जब मुझको सांप सूंघ गया, तो पब्लिक का क्या होगा ? क्या स्टोरी है यार, खून करने वाला गवाह भी पहले खुद तैयार करता फिर रहा है । पुलिस की पूरी मदद करता है ।"
"अपुन को पता था, वह फिल्म का आदमी है, तेरे को काम मांगना था यार चंदूलाल ।"
"मैं जरा डायलॉग ठीक से याद कर लूं ।"
चंदू एक्शन में आया, "देख सामने अदालत… कुर्सी पर बैठा जज, कैमरा इधर से टर्न हो रहा है, कोर्ट का पूरा सीन दिखाता है और फिर मुझ पर ठहरता है… बोल एक्शन ।"
"एक्शन !" दूसरे सेल्समैन ने कहा ।
"योर ऑनर ।" चन्दू ने शॉट बनाया, "यह शख्स जो कटघरे में खड़ा है, इसका नाम है रोमेश सक्सेना, मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल इसी ने किया है और यह कपड़े, यह कपड़े योर ऑनर ।"
"कट ।" दूसरे सेल्समैन ने सीन काट दिया ।
"क्या हो रहा है यह सब ?" अचानक डिपार्टमेन्टल स्टोर का मालिक राउण्ड पर आ गया ।
दोनों सेल्समैन सकपकाकर बगलें झांकने लगे ।
फिर उन्होंने धीरे-धीरे सारी बात मालिक को बता दी । मालिक भी जोर से हँसने लगा ।
साला हमारा दुकान का पब्लिसिटी होयेंगा फ्री में ।
सेल्समैन भी मालिक के साथ हँसने लगे ।
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