hotaks444
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सुनील- मज़ा आ रहा है क्या?
शालू- मज़ा तो आ रहा है। थोड़ा अलग तरह का है लेकिन कुछ कुछ चूत में उंगली करने जैसा भी लग रहा है।
सुनील- ठीक है फिर हम यही किया करेंगे। लेकिन अभी तो इसमें उंगली ही बड़ी मुश्किल से जा रही है लंड कैसे जाएगा? कुछ सोचना पड़ेगा। आज इसे छोड़ के बाकी तू जो चाहे सब कर लेते हैं।
शालू- बाकी सब बाद में कर लेंगे कोई बात नहीं लेकिन अभी कपड़े उतार के नंगे तो हो। शर्म नहीं आती नंगी बहन के सामने पूरे कपड़े पहन कर खड़े हो! जल्दी उतारो मुझे बड़ा प्यार आ रहा है आप पर, अपने नंगे भाई को गले लगाने का मन कर रहा है।
फिर जैसे ही सुनील नंगा हुआ शालू उस से ऐसे चिपक गई जैसे बन्दर का बच्चा बंदरिया को कस के पकड़कर चिपका रहता है। उस दिन पहले तो दोनों भाई बहन ने बहुत साड़ी नंगी मस्ती की फिर अलग अलग तरह के चुम्बन और आलिंगन जो उन किताबों में बताए थे वो सब करके देखे। आखिरी में भाई ने बहन की चूत और बहन ने भाई का लंड चूस कर एक दूसरे को झड़ाया। अगले दिन सुनील गाँव के बढ़ई से एक कंगूरे जैसा कुछ बनवा लाया।
गांड का गुल्ला
बढ़ई को तो उसने यही कहा था कि पलंग का कंगूरा टूट गया है तो बना दो लेकिन सच तो कुछ और ही था। शहर जा कर वो एनिमा लगाने का सामान भी ले आया था।
उस रात सुनील ने वो लकड़ी का कंगूरा एक घी के डब्बे में डुबो कर रख दिया। उस रात दोनों भाई बहन साथ ही सोये और उन्होंने नंगे-पुंगे काफी मस्ती की चुदाई नहीं की। अभी घर वालों को शादी से वापस आने में 2-3 दिन और बाकी थे।
अगली सुबह शालू जब संडास से वापस आई तो सुनील ने उसे एनिमा लगाया और जब उसका मलाशय पूरा साफ़ हो गया तो उसी एनिमा की नली से उसकी गुदा में ४-६ बड़े चम्मच घी अन्दर डाल दिया और फिर घी में रात भर से डूबा हुआ वो लकड़ी का कंगूरा उसके गुदाद्वार पर रख कर दबाया तो फिर वही सिकुड़ने वाली समस्या सामने आई लेकिन ये सुनील ने लकड़ी का खिलौना बनवाया था इसमें ३ कंगूरे थे सबसे छोटा, मंझोला और फिर सबसे बड़ा और उसके बाद चपटा था जो अन्दर नहीं जा सकता था। धीरे धीरे करके सुनील ने तीनों कंगूरे शालू की गांड में डाल दिए। पर्याप्त मात्रा में घी होने की वजह से ज्यादा दर्द नहीं हुआ।
उसके बाद शालू अपने रसोई के काम में लग गई। शुरू शुरू में खिनचाव के कारण पिछाड़ी में थोड़ा दर्द था लेकिन धीरे धीरे वो काम काज में सब भूल गई और दो तीन घंटे में दर्द ख़त्म भी हो गया।
दोपहर में दोनों ने हल्का फुल्का ही खाना खाया और उसके बाद बेडरूम का दरवाज़ा बंद करके दोनों भाई-बहन अपनी उस अवस्था में आ गए जैसा ऊपर वाले ने उन्हें इस दुनिया में भेजा था।
नंगी शालू बिस्तर पर पलटी मार के लेट सुनील उसकी जाँघों के दोनों और अपने पैर घुटनों के बल टिका कर बैठ गया। उसका लंड उसकी नंगी बहन की खूबसूरती को सलाम ठोक रहा था। सुनील ने उस लकड़ी के चपटे हिस्से को पकड़ कर धीरे धीरे खींचना शुरू किया। पहला कंगूरा निकलने में थोड़ी मुश्किल हुई क्योंकि ये सबसे बड़ा था। थोड़ा दर्द भी हुआ लेकिन बीच वाला कंगूरा बिना किसी दर्द के निकल गया और छोटा वाला तो पता ही नहीं चला कि कब निकल गया।
सुनील ने बिना समय गंवाए अपने लंड पर थूक लगाया और शालू की गांड में डाल दिया। पर ये क्या उसके लंड का मुंड ही अन्दर गया था और शालू की गांड ने उसे कस कर पकड़ लिया। दरअसल अभी जो कंगूरे निकाले थे उनके निकलने की अनुभूति अलग थी और कोई भी गांड किसी वास्तु को निकालने में तो अभ्यस्थ होती है लेकिन अन्दर लेने के लिए नहीं … इसलिए ऐसा हुआ था।
खैर सुनील ने धीरज रखी और थोड़ी देर बाद जब गांड ढीली पड़ी तब धीरे धीरे लंड अन्दर डाला।
हालाँकि घी ने शालू की गांड काफी नरम और चिकनी कर दी थी और इतनी देर उस लकड़ी के डुच्चे की वजह से भी कुछ फर्क पड़ा था। आखिर लंड पूरा अन्दर गया और फिर सुनील ने अपनी बहन की गांड मारनी शुरू की। कुछ देर तक लेटे-लेटे गांड मराने के बाद शालू घोड़ी बन गई और फिर सुनील ने उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों से मसलते हुए पकड़ा और शालू को ऊपर खींच लिया अब शालू भी घुटनों के बल खड़ी थी और सुनील पीछे से उसके उरोजों को मसलते हुए उसके साथ गुदा-मैथुन कर रहा था।
शालू के हाथ ऊपर उठे हुए थे और वो अपने पीछे खड़े अपने भाई के सर को अपनी ओर खींच रहे थे। इस अवस्था ने दोनों होंठों से होंठ जोड़ का चुम्बन भी कर रहे थे।
तभी सुनील ने अपना एक हाथ शालू के स्तन से हटा कर उसकी योनि की तरफ बढ़ाया। जैसे ही सुनील ने अपनी बहन की चूत का दाना छुआ, शालू ऊह-आह की आवाजें निकालने लगी। और जब सुनील ने उसे मसलना और रगड़ना शुरू किया तो शालू पगला गई और कुछ तो भी बड़बड़ाने लगी।
शालू- ऊऽऽऽह… आऽऽऽह… सुनील… सुनील… उम्म्ह… अहह… हय… याह… मज़ा आ रहा है सुनील… और करो… मस्त चोद रहे हो यार…
यह पहली बार था जब उसने अपने भाई को नाम से बुलाया था लेकिन वो अपने आपे में नहीं थी।
जल्दी ही दोनों भाई बहन झड़ने लगे। सुनील ने अपना सारा वीर्य शालू की गांड में ही छोड़ दिया जो इतनी कस गई थी कि सुनील का ढीला पड़ा लंड भी आसानी से नहीं निकल पाया। उसने कोशिश भी नहीं की और दोनों एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े और काफी समय तक वैसे ही पड़े रहे।
इस तरह शालू ने पहली बार अपने ही भाई से गांड मराई। उसके बाद वो अक्सर अपने भाई के साथ कामक्रीड़ा करती लेकिन हमेशा गुदा या मुख मैथुन ही होता था। कभी उसके भाई ने उसे चोदा नहीं था। गांड मराई के अवसर भी परिवार के साथ होने के कारण कम ही मिल पाते थे लेकिन लंड चूसने का काम तो हर एक दो दिन में हो ही जाता था। घर का शायद ही ऐसा कोई कोना हो जिसमें उसने अपने भाई का लंड नहीं चूसा हो।
विराज ने सपने भी नहीं सोचा था कि शालू ने इतना बड़ा राज़ उस से छिपाया था। क्या विराज शालू से खफा हो जाएगा या उसे उसके भाई से पहली बार चुदवाने के लिए इजाज़त दे देगा? ये हम देखेंगे अगले भाग में।
दोस्तो, भाई बहन के सेक्स आनन्द से भरपूर मेरी कहानी का यह भाग आपको कैसी लगा?
शालू- मज़ा तो आ रहा है। थोड़ा अलग तरह का है लेकिन कुछ कुछ चूत में उंगली करने जैसा भी लग रहा है।
सुनील- ठीक है फिर हम यही किया करेंगे। लेकिन अभी तो इसमें उंगली ही बड़ी मुश्किल से जा रही है लंड कैसे जाएगा? कुछ सोचना पड़ेगा। आज इसे छोड़ के बाकी तू जो चाहे सब कर लेते हैं।
शालू- बाकी सब बाद में कर लेंगे कोई बात नहीं लेकिन अभी कपड़े उतार के नंगे तो हो। शर्म नहीं आती नंगी बहन के सामने पूरे कपड़े पहन कर खड़े हो! जल्दी उतारो मुझे बड़ा प्यार आ रहा है आप पर, अपने नंगे भाई को गले लगाने का मन कर रहा है।
फिर जैसे ही सुनील नंगा हुआ शालू उस से ऐसे चिपक गई जैसे बन्दर का बच्चा बंदरिया को कस के पकड़कर चिपका रहता है। उस दिन पहले तो दोनों भाई बहन ने बहुत साड़ी नंगी मस्ती की फिर अलग अलग तरह के चुम्बन और आलिंगन जो उन किताबों में बताए थे वो सब करके देखे। आखिरी में भाई ने बहन की चूत और बहन ने भाई का लंड चूस कर एक दूसरे को झड़ाया। अगले दिन सुनील गाँव के बढ़ई से एक कंगूरे जैसा कुछ बनवा लाया।
गांड का गुल्ला
बढ़ई को तो उसने यही कहा था कि पलंग का कंगूरा टूट गया है तो बना दो लेकिन सच तो कुछ और ही था। शहर जा कर वो एनिमा लगाने का सामान भी ले आया था।
उस रात सुनील ने वो लकड़ी का कंगूरा एक घी के डब्बे में डुबो कर रख दिया। उस रात दोनों भाई बहन साथ ही सोये और उन्होंने नंगे-पुंगे काफी मस्ती की चुदाई नहीं की। अभी घर वालों को शादी से वापस आने में 2-3 दिन और बाकी थे।
अगली सुबह शालू जब संडास से वापस आई तो सुनील ने उसे एनिमा लगाया और जब उसका मलाशय पूरा साफ़ हो गया तो उसी एनिमा की नली से उसकी गुदा में ४-६ बड़े चम्मच घी अन्दर डाल दिया और फिर घी में रात भर से डूबा हुआ वो लकड़ी का कंगूरा उसके गुदाद्वार पर रख कर दबाया तो फिर वही सिकुड़ने वाली समस्या सामने आई लेकिन ये सुनील ने लकड़ी का खिलौना बनवाया था इसमें ३ कंगूरे थे सबसे छोटा, मंझोला और फिर सबसे बड़ा और उसके बाद चपटा था जो अन्दर नहीं जा सकता था। धीरे धीरे करके सुनील ने तीनों कंगूरे शालू की गांड में डाल दिए। पर्याप्त मात्रा में घी होने की वजह से ज्यादा दर्द नहीं हुआ।
उसके बाद शालू अपने रसोई के काम में लग गई। शुरू शुरू में खिनचाव के कारण पिछाड़ी में थोड़ा दर्द था लेकिन धीरे धीरे वो काम काज में सब भूल गई और दो तीन घंटे में दर्द ख़त्म भी हो गया।
दोपहर में दोनों ने हल्का फुल्का ही खाना खाया और उसके बाद बेडरूम का दरवाज़ा बंद करके दोनों भाई-बहन अपनी उस अवस्था में आ गए जैसा ऊपर वाले ने उन्हें इस दुनिया में भेजा था।
नंगी शालू बिस्तर पर पलटी मार के लेट सुनील उसकी जाँघों के दोनों और अपने पैर घुटनों के बल टिका कर बैठ गया। उसका लंड उसकी नंगी बहन की खूबसूरती को सलाम ठोक रहा था। सुनील ने उस लकड़ी के चपटे हिस्से को पकड़ कर धीरे धीरे खींचना शुरू किया। पहला कंगूरा निकलने में थोड़ी मुश्किल हुई क्योंकि ये सबसे बड़ा था। थोड़ा दर्द भी हुआ लेकिन बीच वाला कंगूरा बिना किसी दर्द के निकल गया और छोटा वाला तो पता ही नहीं चला कि कब निकल गया।
सुनील ने बिना समय गंवाए अपने लंड पर थूक लगाया और शालू की गांड में डाल दिया। पर ये क्या उसके लंड का मुंड ही अन्दर गया था और शालू की गांड ने उसे कस कर पकड़ लिया। दरअसल अभी जो कंगूरे निकाले थे उनके निकलने की अनुभूति अलग थी और कोई भी गांड किसी वास्तु को निकालने में तो अभ्यस्थ होती है लेकिन अन्दर लेने के लिए नहीं … इसलिए ऐसा हुआ था।
खैर सुनील ने धीरज रखी और थोड़ी देर बाद जब गांड ढीली पड़ी तब धीरे धीरे लंड अन्दर डाला।
हालाँकि घी ने शालू की गांड काफी नरम और चिकनी कर दी थी और इतनी देर उस लकड़ी के डुच्चे की वजह से भी कुछ फर्क पड़ा था। आखिर लंड पूरा अन्दर गया और फिर सुनील ने अपनी बहन की गांड मारनी शुरू की। कुछ देर तक लेटे-लेटे गांड मराने के बाद शालू घोड़ी बन गई और फिर सुनील ने उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों से मसलते हुए पकड़ा और शालू को ऊपर खींच लिया अब शालू भी घुटनों के बल खड़ी थी और सुनील पीछे से उसके उरोजों को मसलते हुए उसके साथ गुदा-मैथुन कर रहा था।
शालू के हाथ ऊपर उठे हुए थे और वो अपने पीछे खड़े अपने भाई के सर को अपनी ओर खींच रहे थे। इस अवस्था ने दोनों होंठों से होंठ जोड़ का चुम्बन भी कर रहे थे।
तभी सुनील ने अपना एक हाथ शालू के स्तन से हटा कर उसकी योनि की तरफ बढ़ाया। जैसे ही सुनील ने अपनी बहन की चूत का दाना छुआ, शालू ऊह-आह की आवाजें निकालने लगी। और जब सुनील ने उसे मसलना और रगड़ना शुरू किया तो शालू पगला गई और कुछ तो भी बड़बड़ाने लगी।
शालू- ऊऽऽऽह… आऽऽऽह… सुनील… सुनील… उम्म्ह… अहह… हय… याह… मज़ा आ रहा है सुनील… और करो… मस्त चोद रहे हो यार…
यह पहली बार था जब उसने अपने भाई को नाम से बुलाया था लेकिन वो अपने आपे में नहीं थी।
जल्दी ही दोनों भाई बहन झड़ने लगे। सुनील ने अपना सारा वीर्य शालू की गांड में ही छोड़ दिया जो इतनी कस गई थी कि सुनील का ढीला पड़ा लंड भी आसानी से नहीं निकल पाया। उसने कोशिश भी नहीं की और दोनों एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े और काफी समय तक वैसे ही पड़े रहे।
इस तरह शालू ने पहली बार अपने ही भाई से गांड मराई। उसके बाद वो अक्सर अपने भाई के साथ कामक्रीड़ा करती लेकिन हमेशा गुदा या मुख मैथुन ही होता था। कभी उसके भाई ने उसे चोदा नहीं था। गांड मराई के अवसर भी परिवार के साथ होने के कारण कम ही मिल पाते थे लेकिन लंड चूसने का काम तो हर एक दो दिन में हो ही जाता था। घर का शायद ही ऐसा कोई कोना हो जिसमें उसने अपने भाई का लंड नहीं चूसा हो।
विराज ने सपने भी नहीं सोचा था कि शालू ने इतना बड़ा राज़ उस से छिपाया था। क्या विराज शालू से खफा हो जाएगा या उसे उसके भाई से पहली बार चुदवाने के लिए इजाज़त दे देगा? ये हम देखेंगे अगले भाग में।
दोस्तो, भाई बहन के सेक्स आनन्द से भरपूर मेरी कहानी का यह भाग आपको कैसी लगा?