hotaks444
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शाम तक दोनो होटेल ललित में चेक्किन कर गये - इनके लिए सूयीट रूम बुक था जहाँ से खजुराहो के टेंपल दिखते थे.
सूयीट के बेड रूम में पहुँच के सुमन बिस्तर पे लूड़क गयी - आह कितनी थकान हो गयी है - नहा के फ्रेश होना पड़ेगा.
'मोम कॉन सी सहेली रहती है आपकी यहाँ और सीधे उसके घर क्यूँ नही गये'
सुमन खिलखिला के हँस पड़ी ' सहेली ! रात की बात भूल गया क्या वी आर ऑन डेट'
सुनील सीरीयस हो गया.
'बेटे इस डेट पे मुझे दो फ़र्ज़ निभाने हैं - एक माँ का और एक दोस्त का - जस्ट रिलॅक्स - मैं फ्रेश होके आती हूँ' सुमन जान बुझ के मटकती हुई बाथरूम की तरफ बड़ी लेकिन पहले उसने अपने बॅग से एक पारदर्शी नाइटी निकाल ली'
सुनील बाल्कनी में जा के खड़ा हो गया और ढलते हुए सूरज की छटा का असर खजुराहो के मंदिर पे होता देखने लगा.
सुमन और सुनील के जाने के बाद सागर हाल में अख़बार लेके बैठ गया.
उसे एक बात की हैरानी थी कि सुनील को इस कड़वे सच का पता कैसे चला -खैर जो भी हुआ - ये बात तो सुमन बता देगी - पर सुनील के अंदर जो दर्द समा गया था उस दर्द को सागर महसूस कर रहा था - शायद सुमन सागर को दर्द की इन लहरों से बाहर निकाल के ले आए - इस ख़याल से खुद को तसल्ली देते हुए उसने ठंडी सांस भरी और अपना ध्यान अख़बार में लगा दिया.
ना सागर ड्यूटी पे गया ना सोनल. दोनो ही सुनील के बारे में सोच रहे थे एक अपने बेटे के दर्द के बारे में और एक अपने प्यार के बारे में.
शाम हो चुकी थी अभी तक दोनो की कोई खबर नही आई. सोनल से रहा ना गया और सुनील का मोबाइल डाइयल कर लिया सुनील उस वक़्त बाल्कनी में खड़ा नज़ारे देख रहा था.
'हां दी बोलो - बस अभी होटेल पहुँचे हैं'
'अहह' सुनील को सोनल की सिसकी सुनाई दी.
सोनल :'तेरे बिना दिल नही लग रहा'
सुनील : 'दी ये क्या हो गया है आपको - प्लीज़ कल भी इतना समझाया था'
सोनल : 'प्यार पे किसी का ज़ोर नही होता पगले - बस हो जाता है और मुझे अपने प्यार पे भरोसा है'
सुनील :'कम ऑन प्लीज़ नोट अगेन'
सोनल : 'तरसा ले जालिम जितना तरसाना है - एक दिन मेरी भी बारी आएगी'
सुनील : 'उफफफ्फ़'
सोनल : अच्छा मोम कहाँ है
सुनील : बाथ ले रही हैं आती हैं तो फोन करवाता हूँ.
सोनल : चल मोम से बाद में बात करवा देना - एंजाय युवरसेल्फ - वेटिंग टू सी यू - लव बाइ
सुनील झुंझला के फोन को देखने लगता है . क्या हो गया है उसकी बहन को.
सुमन बाथ टब का मज़ा लेते हुए सोच रही थी कि उसे अब आगे क्या करना है.
सुमन जब बाथरूम से बाहर निकली तो इस तरह दिख रही थी कि
कमरे में ज़लज़ला आ गया था - यूँ लग रहा था खजुराहो मंदिर की कोई मूर्ति जीती जागती सामने हो - और उपर सवर्ग से देखती अप्सराएँ जल के कबाब हो गयी थी.
सुनील आँखें फाडे सुमन को देख रहा था - उसने ख्वाब में भी नही सोचा था कि उसकी माँ इस रूप में उसके सामने आएगी.
मर्यादा की दीवार कितनी भी सख़्त क्यूँ नाहो - संस्कारों का दबाव कितना भी क्यूँ ना हो - औरत का वो रूप जिसमे सुमन इस वक़्त थी विश्वामित्र तो क्या भीष्म पितामह की साधना भी शायद भंग कर देती.
सुनील की आँखों ने जो देखा उसका असर उसके जिस्म पे हुआ और उसका लंड खड़ा होने लग गया - उसकी पॅंट में बनते हुए तंबू को सुमन देख रही थी और मुस्कुरा रही थी .
सुमन ' ये था सेक्स का पहला लेसन - इट स्टार्ट्स फ्रॉम आइज़'
सुनील की तो आवाज़ ही नही निकली
सुमन खिलखिला के हसी ' अब जा फ्रेश हो कर आ'
सुनील ख़यालों से बाहर निकला - ग्लानि से भर वो फट से बाथरूम में घुस्स गया.
सुमन अच्छी तरहा जानती थी उसका खूबसूरत बदन जिसे बड़े जतन से उसने मेनटेन किया था वो क्या क्या गुल खिला सकता है.
बाथरूम में घुस सुनील बिना कपड़े उतारे शवर के नीचे खड़ा हो गया - खुद को गालियाँ देने लगा - उसे समझ में आ गया था क्यूँ उसका मोसा ( अब पिता) उसकी माँ का दीवाना बन गया था.
एक बेटा होते हुए उसके जिस्म ने ऐसे क्यूँ रिएक्ट किया - कहाँ गयी थी उसकी मर्यादा - कहाँ गये थे उसके संस्कार.
'सेक्स स्टार्ट्स फ्रॉम आइज़' सुमन के ये अल्फ़ाज़ उसके कानो में गूंजने लगे. जिस्म की गर्मी ठंडे पानी के नीचे खड़े होने के बावजूद कम नही हो रही .
जिस्म की माँग और दिमाग़ में जंग छिड़ गयी थी.
सूयीट के बेड रूम में पहुँच के सुमन बिस्तर पे लूड़क गयी - आह कितनी थकान हो गयी है - नहा के फ्रेश होना पड़ेगा.
'मोम कॉन सी सहेली रहती है आपकी यहाँ और सीधे उसके घर क्यूँ नही गये'
सुमन खिलखिला के हँस पड़ी ' सहेली ! रात की बात भूल गया क्या वी आर ऑन डेट'
सुनील सीरीयस हो गया.
'बेटे इस डेट पे मुझे दो फ़र्ज़ निभाने हैं - एक माँ का और एक दोस्त का - जस्ट रिलॅक्स - मैं फ्रेश होके आती हूँ' सुमन जान बुझ के मटकती हुई बाथरूम की तरफ बड़ी लेकिन पहले उसने अपने बॅग से एक पारदर्शी नाइटी निकाल ली'
सुनील बाल्कनी में जा के खड़ा हो गया और ढलते हुए सूरज की छटा का असर खजुराहो के मंदिर पे होता देखने लगा.
सुमन और सुनील के जाने के बाद सागर हाल में अख़बार लेके बैठ गया.
उसे एक बात की हैरानी थी कि सुनील को इस कड़वे सच का पता कैसे चला -खैर जो भी हुआ - ये बात तो सुमन बता देगी - पर सुनील के अंदर जो दर्द समा गया था उस दर्द को सागर महसूस कर रहा था - शायद सुमन सागर को दर्द की इन लहरों से बाहर निकाल के ले आए - इस ख़याल से खुद को तसल्ली देते हुए उसने ठंडी सांस भरी और अपना ध्यान अख़बार में लगा दिया.
ना सागर ड्यूटी पे गया ना सोनल. दोनो ही सुनील के बारे में सोच रहे थे एक अपने बेटे के दर्द के बारे में और एक अपने प्यार के बारे में.
शाम हो चुकी थी अभी तक दोनो की कोई खबर नही आई. सोनल से रहा ना गया और सुनील का मोबाइल डाइयल कर लिया सुनील उस वक़्त बाल्कनी में खड़ा नज़ारे देख रहा था.
'हां दी बोलो - बस अभी होटेल पहुँचे हैं'
'अहह' सुनील को सोनल की सिसकी सुनाई दी.
सोनल :'तेरे बिना दिल नही लग रहा'
सुनील : 'दी ये क्या हो गया है आपको - प्लीज़ कल भी इतना समझाया था'
सोनल : 'प्यार पे किसी का ज़ोर नही होता पगले - बस हो जाता है और मुझे अपने प्यार पे भरोसा है'
सुनील :'कम ऑन प्लीज़ नोट अगेन'
सोनल : 'तरसा ले जालिम जितना तरसाना है - एक दिन मेरी भी बारी आएगी'
सुनील : 'उफफफ्फ़'
सोनल : अच्छा मोम कहाँ है
सुनील : बाथ ले रही हैं आती हैं तो फोन करवाता हूँ.
सोनल : चल मोम से बाद में बात करवा देना - एंजाय युवरसेल्फ - वेटिंग टू सी यू - लव बाइ
सुनील झुंझला के फोन को देखने लगता है . क्या हो गया है उसकी बहन को.
सुमन बाथ टब का मज़ा लेते हुए सोच रही थी कि उसे अब आगे क्या करना है.
सुमन जब बाथरूम से बाहर निकली तो इस तरह दिख रही थी कि
कमरे में ज़लज़ला आ गया था - यूँ लग रहा था खजुराहो मंदिर की कोई मूर्ति जीती जागती सामने हो - और उपर सवर्ग से देखती अप्सराएँ जल के कबाब हो गयी थी.
सुनील आँखें फाडे सुमन को देख रहा था - उसने ख्वाब में भी नही सोचा था कि उसकी माँ इस रूप में उसके सामने आएगी.
मर्यादा की दीवार कितनी भी सख़्त क्यूँ नाहो - संस्कारों का दबाव कितना भी क्यूँ ना हो - औरत का वो रूप जिसमे सुमन इस वक़्त थी विश्वामित्र तो क्या भीष्म पितामह की साधना भी शायद भंग कर देती.
सुनील की आँखों ने जो देखा उसका असर उसके जिस्म पे हुआ और उसका लंड खड़ा होने लग गया - उसकी पॅंट में बनते हुए तंबू को सुमन देख रही थी और मुस्कुरा रही थी .
सुमन ' ये था सेक्स का पहला लेसन - इट स्टार्ट्स फ्रॉम आइज़'
सुनील की तो आवाज़ ही नही निकली
सुमन खिलखिला के हसी ' अब जा फ्रेश हो कर आ'
सुनील ख़यालों से बाहर निकला - ग्लानि से भर वो फट से बाथरूम में घुस्स गया.
सुमन अच्छी तरहा जानती थी उसका खूबसूरत बदन जिसे बड़े जतन से उसने मेनटेन किया था वो क्या क्या गुल खिला सकता है.
बाथरूम में घुस सुनील बिना कपड़े उतारे शवर के नीचे खड़ा हो गया - खुद को गालियाँ देने लगा - उसे समझ में आ गया था क्यूँ उसका मोसा ( अब पिता) उसकी माँ का दीवाना बन गया था.
एक बेटा होते हुए उसके जिस्म ने ऐसे क्यूँ रिएक्ट किया - कहाँ गयी थी उसकी मर्यादा - कहाँ गये थे उसके संस्कार.
'सेक्स स्टार्ट्स फ्रॉम आइज़' सुमन के ये अल्फ़ाज़ उसके कानो में गूंजने लगे. जिस्म की गर्मी ठंडे पानी के नीचे खड़े होने के बावजूद कम नही हो रही .
जिस्म की माँग और दिमाग़ में जंग छिड़ गयी थी.