Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ - Page 11 - SexBaba
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Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

Contd.....*** मौजा ही मौजा ***




तभी तेजी सरदार पीछे से आया और मेरी पतली कमर थाम ली।

"नई सदस्या का स्वागत है !"


उसने मेरी गाण्ड से चिपकते हुए कहा। उसका मोटा लण्ड मेरी गाण्ड से चिपक चुका था। सरदार लोग मुझे वैसे ही बहुत अच्छे लगते थे। खास कर उनकी सेक्स अपील बहुत प्यारी होती है।


"धन्यवाद तेजी, पर मेरे पीछे तुम क्या कर रहे हो?"


"तुम्हें पक्की सदस्या बना रहा हूँ, और क्या !" उसका सख्त लण्ड मेरी गाण्ड को खोलने की कोशिश कर रहा था।


मुझमें सनसनी सी छा गई। अब गाण्ड चुदेगी मेरी ! ये लोग कितना ख्याल रखते है सबका। मेरा मन खुश हो गया। मैं उसकी सहायता करने लगी। कुछ देर में पानी के भीतर मेरी गाण्ड में उसका लण्ड घुस गया था।


तेजी ने जोर से सभी को पुकारा,"हमारी नई मेम्बर शमीम बानो जी !"


सभी का ध्यान मेरी ओर आ गया। सभी आस पास झुण्ड बना कर कोई तैर रहा था तो कोई किनारे पर आ कर पानी में ही मुझे निहारने लग गया था।


"ये देखो, मेरा लण्ड इसकी गाण्ड में भीतर चला गया है, इसे बधाई दो !"


उफ़्फ़, ये क्या, अब तो सबने देख लिया, ओह मां, चुदाते देखते तो साधारण बात थी पर गाण्ड मराते हुए देख लिया। ओह मैया री, ये तो सब जाने क्या सोचेंगे। एक नम्बर की चुदक्कड़ होते हुए भी शरम के मारे मैं तो मर ही गई थी।


तभी सबने कहा,"तेजी, मारो उसकी गाण्ड मारो, बना लो मेम्बर उसे !" ओह तो क्या यहाँ गाण्ड मार कर मेम्बर बनाया जाता है।


आह मुई ! मैं मर क्यों नहीं जाती। उसका लण्ड जैसे मेरे तन को फ़ाड़ने लगा। मेरी चीख निकल गई। वो बेदर्दी से गाण्ड मारता रहा। मुझे उतना दर्द नहीं हुआ जितना मैं चीखी थी। पर मुझे लगा कि सभी को मेरा चीखना अच्छा लग रहा है। सो मैं अब जान कर बिना दर्द के ही जोर जोर चीखने लगी। तब तक चीखती रही जब तक तेजी झड़ नहीं गया। सभी मेरी कष्टमय चुदाई को देख देख कर खुश हो रहे थे। लड़कियाँ तो खुशी के मारे चीख रही थी मेरी गाण्ड फ़ाड़ चुदाई देख कर।



मुझे तो गाण्ड चुदाने में भी बहुत आनन्द आ रहा था पर मैं सब कुछ समझ रही थी। यानि चुदाओ तो जोर जोर से ! खुशी की सीत्कारें भरो और गाण्ड चुदाओ तो चीखो, चिल्लाओ जैसे बहुत कष्ट हो रहा हो।


हम सभी लन्च के लिये एक बन्द हॉल में बड़े से गद्दे पर नंगे ही गए थे। वहाँ अब दारू, बीयर का दौर चलने वाला था। मैंने भी अपने लिये एक बीयर मंगवा ली। मुझे बीयर बेहद स्वादिष्ट लगती है। लगभग आधे घण्टे में ही सभी नशे में मस्त हो गए थे।

"अरे नई मेम्बर कहाँ है यार, चलो उसे तो चख लें !"


मेरे पास सबसे पहले आने वाले में विकास था। उसने मुझे कमर से पकड़ लिया और चूमने चाटने लगा। तभी पीछे से राहुल लिपट गया। मैं बहुत मस्ताने लगी थी। नशे में इन सब कामों में बहुत मजा आ रहा था। तभी जाने कब मुझे नीचे गद्दे पर गिरा दिया। विकास ने मुझे ऊपर लेकर मुझे कहा,"बानो आज मुझे चोद दे यार, दिल की हसरत निकल जायेगी।"


"ओह तो यह बात है !" मैंने उसके तने हुए लण्ड पर अपनी कोमल चूत रख दी और उसका लण्ड भीतर घुसा लिया। अब मैं उस पर झुक गई उसे चोदने के लिये। तभी मेरी गाण्ड में राहुल का लौड़ा प्रवेश कर गया।


आह ! मैं दोनों ओर से चुदने लगी। हाय मेरे अल्लाह, मुझे ये कहा जन्नत में ले आया। शायद जन्नत होती होगी तो कुछ ऐसा ही होता होगा। बहुत देर तक मस्ती से चुदती रही। जब वे दोनों मस्त हो कर अपना वीर्य त्यागने लगे तब मेरी तन्द्रा टूटी।


लंच लग चुका था। सभी खाने के बाद अब थक कर सोने लगे थे। मुझे भी बहुत शांति की नींद आ गई। मेरी नींद खुली तब मेरे ऊपर ताहिर और शब्बीर चढ़ चुके थे। ओह ये इतना मोटा लण्ड बहुत सख्त है यार !


"अरे कौन, ओह ताहिर, यार जरा प्यार से, तेरी आपा जैसी हूँ ना !" मेरी बात सुन कर वो मुस्कराने लगा।


फिर एक दौर और चल गया। सो कर सभी तरोताजा हो गए थे और लगे थे फिर से चुदाई में।


गाड़ी शहर की ओर चल दी थी। सभी अत्यन्त सभ्य तरीके से बैठे थे। कोई नहीं कह सकता था कि अभी ये ही सब वासना के खेल में खूब चुद रहे थे।


"हां भाईयों और बहनों !"


सभी ने अपना मुख दबा लिया और हंसने लगे।


"अगला कार्यक्रम हमारे नई मेम्बर बहना शमीम बानो प्रस्तावित करेगी।"


"बताऊं, वो विकास भैया के फ़ार्म हाउस पर !" विकास ने मेरी ओर देखा और मुझे आँख मार दी।


"विकास। बोलो ठीक है, और यह आंख मारना मना है।"


"जैसा बानो बहन ने कहा है वैसा ही होगा !" विकास झेंप सा गया।


गाड़ियाँ एक होटल के आगे खड़ी हो गई। हमारा रात्रि-भोज यहीं पर था। खाना खाते खाते रात के नौ बज गए थे। अन्त में सभी लड़कियों को दस दस हजार रुपये लड़कों को भरपूर सहयोग देने के लिये दिये गए थे और ये राशि हम लड़कियों को उनकी ओर से मनपसन्द गिफ़्ट लेने के लिये दी गई थी। धन्यवाद के साथ हम सब विदा हुए।




*** SAMAPT ***
 
Contd........*** चना जोर गरम ***





मैं और मेरी पत्नी चुदाई का बहुत मज़ा ले रहे थे, सरजू का जिक्र होते ही रीति गर्म हो जाती थी और मैंने देखा कि उसकी बूर पानी से भर जाती थी, मुझे दांतों से काटने लगती और सिसकारी भी लेती। हालाकिं किसी दूसरे समय बात करता तो मुझ पर गुस्सा दिखाती।


एक दिन जब गाड़ी रोकी तो देखा कि सरजू चने लेकर आया और उसने मेरी रीति की ओर का दरवाजा खोल कर चने रीति और मेरे हाथ में दिए, पहले वो खिड़की से ही देता था।


मैंने कुछ नहीं कहा, वो रीति से काफी सटकर खड़ा था। अब वो दो-अर्थी भाषा में भी बोलने लगा और रीति को सीधा ही संबोद्धित करता, जैसे एक दिन बोल पड़ा- मेमसाब, मेरा चना आपके लिए स्पेशल तैयार किया है गरमा गरम दिखाऊँ क्या?


हम सभी इसका मायने समझ रहे थे पर रीति ने अनजान होकर कहा- अभी नहीं कल दिखाना ! अभी भूख नहीं है !


दो या तीन दिन बाद हम फिर वहाँ गए, अब मेरी रीति भी इस अनुभव का बहुत मजे से आनंद लेने लगी थी। हम ध्यान रखते थे कि उसके ठेले पर जब भीड़ नहीं हो तभी वहाँ गाड़ी लगायें।


उस दिन रीति ने ब्रा नहीं पहनी, और ब्लाऊज़ के ऊपर के तीन हुक खोल लिए, मैंने गाड़ी रोकी तो सरजू नजदीक आया और रीति की ओर का दरवाजा खोला। हमने देखा कि उस समय उसने धोती सामने से चौड़ी कर ली थी थी और उसका नीले रंग का जांघिया साफ़ दिख रहा था, जिसके किनारे से उसने अपने लंड का आगे का हिस्सा निकाल रखा था और उसका सुपारा दीख रहा था, बिल्कुल लाल !


रीति ने साड़ी का पल्लू खिसकाया तो उसके दोनों स्तन ब्लाऊज़ के बाहर फूले से निकल पड़े, सरजू आँख फाड़ कर देखता रहा, रीति धीरे से मुस्कुराती रही और पूरे ही स्तनों को प्रदर्शित कर दिया, मुस्कुराते हुए पूछा- तुम्हारा गरम चना तैयार है तो क्यों नहीं खिलाते ? मैं भी देखूं कि कितना गर्म है !


सरजू को अब स्पष्ट इशारा मिल गया था। हम तीनों ही अब बेबाक हो गये थे। सरजू मेरी उपस्थिति से बेफिक्र था, मैं भी सेक्स और वासना के पीछे दीवाना हो गया था।


सरजू बोला- मेमसाब, आपके सामने ही है, आप खुद ही देख लीजिये !


और उसने रीति के हाथों को पकड़ लिया और अपने जांघिये के पास लाकर अपने लंड को पकड़ा दिया।


रीति सन्नाटे में थी, उसने ऐसा सोचा नहीं था कि गैर मर्द का लंड भी पकड़ लेगी। उसने हाथ हटा लिया।


मैंने हिम्मत देते हुए कहा- चना खाना है तो देखना तो होगा ही कैसा है, घबराओ नहीं !


रीति का गला सूख गया, उसकी आवाज नहीं निकल रही थी, हम लोग मजाक में ही बहुत आगे बढ़ चुके थे।


रीति ने कहा- घर चलो, फिर आयेंगे !


मैंने सरजू से कहा- कल आएंगे और चल पड़े। सरजू थोड़ा उदास दिखा। कुछ दिन हम नहीं गए लेकिन अन्दर से रीति और मैं दोनों ही दोबारा ऐसा हो, ऐसा चाहते थे।


एक दिन रीति से फिर कहा तो बोली- ठीक है, लेकिन मैं उसका लिंग नहीं पकडूंगी !

मैंने कहा- ठीक है, लेकिन अगर वो तुम्हारे स्तन छूना चाहे या दबाये तो मना मत करना !


देखूँगी ! कह कर वो तैयार हो गई। लौटते हुए हमने देखा कि सरजू के ठेले के पास कोई नहीं है। हम रुक गए, उसे अवाज़ दी तो वो आया।


मैंने कहा- आज चने नहीं खिलाओगे?


तो सरजू बोला- आप नाराज हैं साब ! हम कैसे अपनी मर्जी से आपको और मेमसाब को चना खाने बोल सकते हैं? आपको चाहिए तो अभी ले कर आता हूँ।


मैंने इशारा किया और सरजू चने लेने गया तो रीति से कहा- क्यों मुझे और उस बेचारे को तड़पाती हो?


अन्दर से मन रीति का भी था, बिना बोले उसने अपने ब्लाऊज़ खोला और स्तनों को बाहर निकाला और पल्लू ढक कर बैठी रही। इसी बीच सरजू आया तो मैंने चने लिए और उससे कहा- मेमसाब को तुम्हारे चने अच्छे लगते हैं लेकिन डरती हैं कि ज्यादा लेने से नुक्सान होगा।


सरजू समझ रहा था, रीति का चेहरा लाल हो गया, वो शरमा रही थी, सरजू बोला- आप चिंता न करें साब, हम भी अच्छे लोग हैं आपकी इज्जत मेरी है, मेमसाब का मन नहीं तो उन्हें कुछ ना कहें लेकिन मेरे ठेले पर आते रहिएगा !


कहकर रीति के गालों पर धीरे से हाथ लगाया और लौटने लगा, रीति जैसे पिघल गई, वो तैयार ही थी लेकिन उसे अन्दर की झिझक थी, उसने सरजू को आवाज़ दी- सुनो, तुम्हारे ये चने ठण्डे हैं, मुझे गर्म चने दो !


सरजू वापस मुड़ा और आकर दरवाज़ा खोल रीति से सट कर खड़ा हो गया। रीति ने किनारे से साड़ी खिसकाई और पल्लू खींच अपने दोनों उभार उसे दिखाए। सरजू ने मेरी तरफ देखा तो और मुझे चुप-चाप देखता पाकर उसने धीरे से एक हाथ रीति के उरोजों पर रख कर हल्के से उठाया और दबा दिया, रीति ने पल्लू ऊपर कर अपने चूचो को ढक लिया, कुछ शर्म से और इसलिए कि किसी को अनायास दिखे नहीं !


मेरा हथियार दवाब से फटने को तैयार था, जैसे कि पैंट फाड़ कर बाहर निकल जायेगा। उधर रीति का पूरा शरीर थरथरा रहा था, वो बहुत धीमे आवाज़ में कुछ बड़बड़ा रही थी।


सरजू झुका और पल्लू में सर घुसा कर रीति के चूचों को चूस लिया, रीति ने हलकी सिसकार मारकर उसका मुँह अपने चूचों से अलग किया। सरजू ने रीति की जांघों को हल्के से दबा दिया और उठ खड़ा हुआ।वो बहुत गर्म हो गई थी, मैंने सरजू से कहा- कल आयेंगे !


और गाड़ी शुरू कर दी, उस रात खूब जमकर चुदाई हुई, रीति खुल कर सरजू की बातें कर रही थी और बहुत मजा ले रही थी। मुझे भी गजब का आनंद आ रहा था। हम दो दिन तक नहीं जा सके, रीति हर समय उसकी बातें करना चाहती थी, मुझे लगा कि अब उसे अपने पर कण्ट्रोल नहीं है।


तीसरे दिन रीति शाम को तैयार थी, उसने अन्दर जिप वाली ब्रा और पेंटी पहनी थी।

हम सरजू के ठेले पर पहुंचे तो वहाँ कुछ लोग थे, मैंने सरजू को इशारा किया हम थोड़ी देर में लौटते हुए आते हैं। वापस आने तक हम यही सोचते रहे कि क्या करना है।


रीति अब सरजू के साथ मस्ती के लिए तो तैयार थी लेकिन एक सीमा के अन्दर ! सोचा जो होगा देखा जाएगा, सरजू के शरीर ने रीति को आकर्षित किया और जब एक सामाजिक दायरे के बाहर चोरी-चोरी किस्म का सेक्स होता है तो बहुत उत्तेजना होती है, और यहाँ तो मैं साथ था जिसके कारण रीति और ज्यादा उत्तेजित हो रही थी। मैं रीति को बहुत चाहता हूँ, सोचा कि एक बार इसकी ख़ुशी के लिए, हालाँकि मुझे भी उत्तेजना बहुत हो रही थी, आप कह सकते हैं हम बहक गए थे।


हमने इस बार गाड़ी थोड़ी दूर एक दीवार के साथ खड़ी की जो रीति की ओर थी, बीच में बस थोड़ी जगह छोड़ दी कि दरवाजा खुल सके और एक आदमी खड़ा हो सके। यह जगह पहले से ज्यादा सुरक्षित थी, थोड़ा अँधेरा भी था, कोई जल्द देख नहीं सकता था।


गाड़ी देख सरजू मेरे पास आया।


मैंने कहा- मेमसाब को बहुत भूख लगी है, तुम्हारे पास क्या है उन्हें खिलाओ !


सरजू हँसते हुए बोला- साहब, हम क्या खिलाएंगे, मेमसाब को देख कर अच्छे-अच्छे की भूख उड़ जायेगी !


और वो रीति के दरवाज़े के पास आया, रीति ने खुद ही दरवाज़ा खोल दिया और बोली- पास आकर तो बताओ क्या है?


सरजू रीति की ओर से हामी चाहता था, यह सुनते ही आगे आया और दीवार और दरवाज़े के बीच खड़ा होकर रीति की गर्दन पर हाथ रख झुक कर उसके वक्ष को चूम लिया, रीति ने हाथ पीछे कर उसकी कमर पर रख दिया और अपनी तरफ खींचा, वो लगभग रीति की गोद में आ गया, उसने जोर से रीति के होठों को चूमा और पूरा ब्लाऊज़ और ब्रा खींच कर ऊपर कर उसके स्तनों को दबाने लगा, साथ ही उसे चूम भी रहा था। एक मिनट बाद ही उसने रीति के हाथ पकड़ केर अपनी धोती में डाल दिया और रीति ने उसके तने हुए लंड को बाहर निकाल लिया, मैंने देखा कि मोटा बहुत था, काला, पर एकदम चिकना !


मैंने सरजू से कहा- तुम पीछे की सीट पर आ जाओ, हम लोग थोड़ी देर में घूम कर आते हैं।


सरजू ने ठेला एक लड़के को सम्भाला और वापस आ गया। मैं, रीति और सरजू वहाँ से कोई पन्द्रह मील दूर निकल गए, रास्ते में कई बार उसने रीति की चूचियों को चूमा और उसके साथ खिलवाड़ करता रहा।


रीति अब भी शरमा रही थे, लेकिन उसे मजा भी आ रहा था, उसका चेहरा लाल और खुशी से भरा था।


स्त्रियाँ जब वासना के वशीभूत हो जाती है तो सब भूल जाती हैं, यह सच है !


करीब पन्द्रह मील दूर जाकर एक छोटा सा पुल है वहाँ से मैंने गाड़ी को सड़क से नीचे उतारा और कुछ दूर जाकर एक टीला और घनी झाड़ियाँ थी, उसके पीछे गाड़ी को खड़ा कर दिया। अब वहाँ ऊपर सड़क पर जाने आने वाला कोई हमें देख नहीं सकता था।


मैंने गाड़ी के अन्दर की एक छोटी लाइट जला दी, सरजू ने रास्ते में ही रीति का ब्लाऊज़ करीब करीब पूरा खोल दिया था। मैंने और रीति ने देखा कि सरजू की धोती भी अस्त व्यस्त होकर खुल गई थी, उसने जांघिया पहना हुआ था जो बहुत कसा था और एक लंगोट की तरह ही बंधा हुआ था। उसके लिंग की मोटाई ऊपर से ही मालूम हो रही थी।


मैंने लाइट बंद की और पीछे का दरवाज़ा खोल रीति को बैठने के लिए कहा। वो पीछे की सीट पर आ गई और सरजू के बगल में बैठी, फिर मैं बैठा। अब वो हम दो पुरुषों के बीच थी।


मैं सरजू से बोला- मेरी रानी को आज दुनिया दिखा दे !



Contd........
 
Contd........*** चना जोर गरम ***




सरजू रीति से लिपट गया, उसने रीति की साड़ी को ऊपर किया और उसके जांघों पर हाथ फेरने लगा। रीति का एक हाथ पकड़ अपने जांघिये पर रख दिया। मैं रीति की दूसरी जांघ सहला रहा था।


सरजू ने रीति के मुँह से मुँह सटा दिया और चूमने लगा। पहले तो रीति सकपकाई, फिर वो भी उसे चूम कर जवाब देने लगी।


मैंने रीति की चूत को छुआ तो देखा सरजू अपने हाथ से पहले से ही उसे सहला रहा था। मैंने पैंटी की जिप खोल दी और अंगुली बुर में डाल हल्के-हल्के घर्षण करने लगा और उसकी बुर अंगुली से चोदने लगा। रीति अब जोर जोर से कमर हिला रही थी और उसकी बूर से तेज पानी निकल रहा था जैसे नाली से पानी बह रहा हो। बुर एकदम चिकनी हो गई थी। वो गरम हो सरजू के जांघिये को खींच रही थी, सरजू ने एक गाँठ खोली और जांघिया जैसे भरभराकर खुल गया।


मैंने उठ कर लाइट जला दी, रीति बेहाल थी, सरजू का लंड काला और बहुत मोटा था, इतना लम्बा तो नहीं पर छः इंच तो होगा ही, रीति उसे देखने लगी। रीति सरजू के लंड को खींच के अपने मुँह के पास ले गई और लंड की चमड़ी को एकदम पीछे कर दिया और लाल सुपारा देख कर हैरान सी हो गई। सुपारा पानी से लस लस था, उसने सुपारे को होठों से चूमा और हल्के से चूसा पर पूरी तरह से मुँह में नहीं लिया।


मैंने रीति की साड़ी खोल उसकी गांड के नीचे से सरका के अलग कर दिया। अब वो एक छोटी सी पेंटी में थी और उसकी भी जिप खुली हुई थी।


रीति की जांघ रोशनी में देख सरजू से रहा नहीं गया, वह जांघों के बीच मुँह डाल कर बूर को चाटने की कोशिश करने लगा। रीति ने उसकी पीठ पर हाथ लपेटा और उसके उसके मुँह को अपनी चूत की ओर कर उसका सर दबा दिया और जांघों को चौड़ा कर लिया। सरजू रीति की जिप के अन्दर जीभ और मुँह लगा कर उसकी बूर को काटने और चाटने लगा, रीति बहुत आवाज़ निकाल रही थी।


मैंने कहा- धीरे बोलो ! कोई सुन लेगा !



रीति मेरे लंड को खींच रही थी, वो बड़बड़ाने लगी- तुम दोनों कुत्ते हो ! क्या मैं तुम लोगों की रंडी हूँ? मेरा भोसड़ा तुम लोग खा जाओ ! मेरी चूत को भोंसड़ा बनाओगे क्या ? वगैरह ऐसा बकने लगी।. रीति को चुदाई के समय मेरे साथ गन्दी बातें करना बहुत पसंद था।


उसने सरजू की शर्ट खींच कर उतार दी, अब सरजू गंजी में था और रीति के शरीर पर सिर्फ एक छोटी पैँटी थी, मैंने कहा- यह ठीक नहीं ! हम सबको नंगा होना चाहिए !


सरजू को कहा- रीति की पेंटी खोल दे !


सरजू ने मेरी पत्नी की गांड उठा कर पैन्टी निकाल दी और रीति ने उसकी गंजी उतार दी। अब वो दोनों पूरी तरह नंगे थे, रीति बोली- तुम क्यों नहीं अपना खोलते ? आज क्या शर्म आ रही है?



और मेरी पैंट और अन्डरवीयर उतार दिया, मेरी शर्ट और गंजी भी उतार दी, हम तीनों ही मादरजात नंगे हो गए थे।



मैंने रीति को हाथ पकड़ कर गाड़ी से नीचे उतारा और पीछे डिक्की के सहारे खड़ा कर दिया और सरजू से कहा- इसे चूस डाल जहाँ जहाँ तेरा मन है !



सरजू शरीर से बहुत ही आकर्षक था, उसकी जांघें तगड़ी थी और सुडौल शरीर था, उसके पंजे और हाथ मजबूत थे, लंड भी किसी स्त्री को लुभाने के लिए काफी था। यो तो लंड मेरा भी बराबर ही लम्बा था लेकिन सरजू के लंड में एक लचक थी, लटकता हुआ काला भयानक, अंडकोष छोटे थे इसलिए भी लंड बड़ा और ज्यादा आकर्षक लगता था।



रीति ने उसे कमर से पकड़ अपने ऊपर गिरा लिया और उसके हाथ अपनी चूचियों पर डाल उसे चूमने लगी, सरजू स्तनों को मसल रहा था, उसका लंड रीति की योनि के पास दब रहा था, वो सूरज को जोर से कमर से पकड़ अपनी ओर दबा रही थी और उसके चिकने मजबूत जिस्म का मजा ले रही थी, उसके मुँह में मुँह डालकर खूब चूम रही थी, बार बार सरजू को कह रही थी- मैं तेरी रंडी हूँ, मुझे रोज लेकर आएगा ना ? मुझे जोर से चोद ! तू मेरी बूर का मालिक है !

मेरी रीति आनंद की दुनिया में खोई हुई थी, रीति को आभास हुआ कि शायद वो मेरी ओर कम ध्यान दे रही है, उसने पलट कर सरजू को नीचे कर दिया डिक्की के सहारे और खुद को उसके ऊपर डाल दिया, मैंने पीछे से रीति को पकड़ा कमर से, उसके चूतड़ दबाने लगा और पीछे से उसकी बूर से अपना लंड सटा कर दबाया। वो दो दो लोगों के एक साथ दबाने पर चित्कार करने लगी। मेरा लंड गांड की तरफ से उसकी बूर पर था, मैंने थोड़ा धक्का मारा तो अन्दर थोड़ा सा सा घुस गया। मैंने धीरे चोट देनी शुरू की, सामने से सरजू ने उसकी चूचियाँ सीने से दबा रखी थी और चूम रहा था। मैं और सरजू दोनों रीति की कमर पकड़े हुए थे, सामने से सरजू का लंड रीति को योनि पर दबाव डाल कर आनंद दे रहा था।

मैं चाहता था कि सरजू ही उस दिन पूरी तरह रीति को अन्दर तक पेल कर चुदाई का मजा दे और अपना वीर्य उसकी योनि में डाल दे, इसलिए मैं अपने लंड से उसे चोद कर ठंडा नहीं करना चाहता था, मैं सिर्फ रीति को छू कर, छेड़ कर और बातों से उत्तेजित कर रहा था।

सरजू की हालत ख़राब थी, वो नीचे बैठ गया, रीति ने हाथों से डिक्की का सहारा लिया और सरजू योनि के बराबर आकर अपने दोनों हाथों से बूर की पत्तियों को फैलाया और रीति की गांड को पकड़ उसकी चूत को अपने मुँह पर दबाकर चाटने लगा, उसने कई बार बूर की पत्तियों ( बूर के किनारे अन्दर की ओर की लाल दीवार, बूर के दरवाज़े का अन्दर का भाग) को जोर से काट डाला। इससे रीति चिल्लाने लगती थी। वो जांघो को भी चूम रहा था, काट रहा था और पागलों की तरह दीवाना हुआ जा रहा था।

रीति की गालियाँ सुनकर सरजू भी बकने लगा, वो रीति को साली मादरचोद और छिनान कह रहा था। रीति ने उसे ऊपर उठाया और पकड़ कर गाड़ी के पिछले सीट पर धक्का दे दिया, सरजू सीट पर गिर गया, उसका विशालकाय लंड आसमान की तरफ मुँह करके खड़ा था, रीति उसके ऊपर गिर गई, रीति ने कई जगह सरजू को बुरी तरह से दांत से काटा, उसके कंधे पर गहरे दांत काटने के निशान बन गए थे, इतनी बुरी तरह कभी मुझे भी नहीं काटा।

रीति के नितम्ब देखने जैसे थे, वो उन्हें बार बार उछाल रही थी, बड़े बड़े मांसल गुदाज और गोल तरबूजों की तरह, सरजू नीचे दबा था, रीति कह रही थी- मुझे तू चोदेगा? हिम्मत है ?

वो उसे उकसा रही थी, वासना के ज्वार में बक रही थी।

अभी बताता हूँ ! कह कर सरजू ने रीति की कमर को एक हाथ से से पकड़ा और दूसरे हाथ से लंड को पकड़ बूर के सुराख़ पर लगा जोर का धक्का दिया। एक ही धक्के में पूरा लंड बूर ने खा लिया। उसके बाद रीति जोरों से उस पर गांड उछालने लगी। थोड़ी देर में लंड डाले हुए ही सरजू पलट कर ऊपर आ गया, रीति को नीचे दबा कर वो जोर जोर से धक्के दे रहा था, दोनों पसीना पसीना थे।

मैं गाड़ी की रोशनी में देख रहा था, मैंने रीति से कहा- आज इस चुद्दकड़ को ठंडा करके बता ! सरजू को कहा- मेरी पत्नी अब तेरी भी है, इसकी चूत को फाड़ देगा तो इसे तेरे घर बैठा दूंगा !

थोड़ी देर में दोनों चिल्ला रहे थे- आह आह ऊह ऊह !

सरजू चिल्लाने लगा- मैं आ रहा हूँ, मेरा निकल रहा है !

रीति भी बोली- जोर से दे ! मेरा भी अब हो रहा है !

और दोनों ही एक दूसरे को भींच कर धक्का दे रहे थे। कुछ ही देर में सरजू ने अपने लंड का वीर्य रीति की चूत के अन्दर डाल दिया और निढाल सा होकर उस पर पड़ गया। रीति भी आँख बंद कर पड़ी थी, मैंने तब तक अपना पानी मुठ मार कर निकाल लिया था।


रीति ने सरजू को उठने को कहा, देखा उसकी बूर से वीर्य बह कर बाहर आ रहा था, सरजू निढाल सा सीट पर किनारे बैठ गया। रीति ने अपने लहंगे से सरजू के लंड को पौंछा और फिर अपनी बूर को पौंछ कर सीट के सहारे पीठ लगा कर आँख बंद कर बैठ गई।

कोई कुछ नहीं बोल रहा था।


हमने कपड़े पहने और अपने साथ हम कॉफी ले गए थे, वो पी !


घड़ी देखी तो रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, यानि हम करीब साढ़े तीन घंटे से सरजू के साथ थे।


हम वापस शहर की तरफ चले, रास्ते में सभी चुप थे। मैंने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा- सोचने की बात नहीं, इसे एक आनंद-दाई रात समझो।


सरजू को उसके घर से कुछ दूर उतारा, उसने उतरते समय रीति को हाथ से कंधे पर छुआ और मुझे सलाम कर के अपने घर की तरफ चल दिया !


उसके बाद ऐसा कोई तीन चार बार और हुआ ! लेकिन रीति का सम्मोह थोड़े समय बाद खत्म हो गया, बाद में वो मना करने लगी, हम लोगों का जाना भी कम हो गया।


सरजू ने कभी भी इसका फायदा नहीं उठाया, ना ही उसने कोई दबाव डाला।


कोई एक साल पहले सरजू भी वहाँ से चला गया, एक दो बार हम उससे मिले थे।


मैंने देखा कि रीति का प्यार मेरे लिए बहुत ही बढ़ गया था, अब वो तीसरे आदमी के जिक्र से उत्तेजित नहीं होती ! शायद उसका मन भर गया लेकिन आज भी जब हम सम्भोग करते हैं तो वो वैसी ही हो जाती है जैसे पहले ! बल्कि उम्र बढ़ने के साथ उसकी सेक्स में रुचि और बढ़ गई है, लेकिन मेरे साथ ही ! अब वो तीसरे के नाम से दूर भागती है।



*** SAMAPT ***
 
मैं भ्रम में रह गया.....



मैं रामनगर, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ, मेरी उम्र २३ वर्ष हो रही है। मेरे परिवार में मात्र तीन लोग रहते हैं, मैं, मेरी माँ और मेरी पत्नी ! और हाँ एक और सदस्य आज ही आया जो हमारे ही बीच का है पर आज से ठीक दो साल पहले ही उसकी शादी हो चुकी है, जो अपने ससुराल में रहती है, वह है मेरी दीदी ! जिसके पति तीन दिन पहले अरब देश जा चुके हैं, जिसके चलते वह हमारे यहाँ रहने आ गई है।


पर आते ही मेरे कमरे और मेरी बीवी पर पहला अधिकार जमा लिया। सबकी दुलारी होने से कोई कुछ नहीं मना करता और किसी काम को करने से नहीं रोकता है। माँ की दुलारी तथा मेरी भी बड़ी दीदी होकर भी साथ साथ पले बढ़े हैं क्योंकि मुझसे मात्र दो साल ही बड़ी है। हम लोग उनकी सेवा में लगे हुए थे और देखते देखते शाम, फिर रात भी हो गई, परन्तु दीदी मेरे कमरे में जमी रही। अंत में मुझे दूसरे कमरे में यह सोच कर सोना पड़ा कि शायद आज ही आई है तो सो गई, कल से दूसरे कमरे में सोयेंगी।


दूसरे कमरे में आकर मैंने सोने की कोशिश की मगर नींद नहीं आई तो टी.वी. चला लिया। शनिवार होने से चैनल बदलते हुए मेरा हाथ रैन टी.वी. पर रुक गया जहाँ गर्म फिल्म आ रही थी। अब तो मेरी नींद भी जाती रही, एक तो बीवी से डेढ़ साल में पहली बार रात में अलग सोना, उस पर से रैन टी.वी. का कहर !


मुठ मारते पूरी रात काटनी पड़ी पर मन टी.वी. बिना देखे मान ही नहीं रहा था। किसी तरह मुठ मारते रात काट ली और सुबह काफी देर तक सोता रहा। जब उठा तब मेरी बीवी नाश्ता बना रही थी। मुझे देख कर मुस्कुराते हुए बोली- लगता है कि काफी निश्चिंत होकर रात में सोये हैं जनाब !


मेरा नाराजगी भरा चेहरा देख कर और कुछ न बोल कर चाय का प्याला मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैं भी कुछ कहे बिना चुपचाप से चाय पीने लगा। दिन भर सभी अपने अपने काम में लग गए, मैं भी अपने ब्रोकिंग एजेंसी को देखने चला। दिन भर तो काम में लगा रहा, शाम को घर आने पर चाय और नाश्ता देकर बीवी फिर दीदी के पास जाकर बैठ गई जो मेरे ही सामने के कुर्सी पर बैठी नाश्ता ले रही थी।


अब मैंने थोड़ा ध्यान दीदी की तरफ दिया, सोचने लगा- क्या दीदी आज भी मेरे ही कमरे में सोयेंगी?


और बातों बातों में पता लगा कि वे आज भी नहीं जान छोड़ने वाली !


फिर वही कहानी पिछली रात वाली !


मुझे आज फिर अकेले दूसरे कमरे में सोना था ! पर आज मुझे दीदी पर बहुत गुस्सा आ रहा था और बकबकाते हुए मैं बाहर आ गया। पिछली पूरी रात खराब कर के रख दी थी !


रात होते ही मेरा मुठ मारना शुरु हो गया और आज न जाने कैसे रात कट गई, पता नहीं कब नींद लग गई !


सुबह जगा तो पूरे सात बज रहे थे। मैंने सोच रखा था चाहे कुछ भी हो आज रात रानी को (मेरी बीवी) नहीं छोड़ना है, या तो मेरे कमरे में या रसोई में, कहीं भी चुदाई होगी तो होगी !


जैसे ही दीदी ने नहाने के लिए स्नानघर में प्रवेश किया, मैं मौका देख कर रसोई में घुस गया और पीछे से रानी को पकड़ उसके बोबे मसलते हुए चूतड़ों की फांकों में अपने फनफनाये लंड का दबाब डालते हुए गालों को जोर से चूम लिया तो रानी बोली- कोई देख लेगा ! क्या करते हो? दो रातों में ही अकडू महराज पायजामे से बाहर हो रहे हैं, अगर दो रातें और बिता ली तो पायजामे से निकल किसी बिल में ही घुस जायेंगे तो ढूंढना मुश्किल हो जायेगा !

मैंने कहा- देखो रानी, अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा ! आज रात कुछ करो यार ! यह दीदी अपने तो अकेली रहने की सजा कट रही हैं, साथ में हमें भी मार रही हैं ! या तो तुम मेरे कमरे में आ जाना या रात को यहीं रसोई में ही चुदाई करेंगे !



रानी भी थोड़ी उत्तेजित हो चुकी थी, वह बोली- नहीं, रसोई में ठीक नहीं होगा ! मैं तुम्हारे कमरे में भी नहीं आ सकती क्योंकि दीदी सोचेगी कि दो रात में जवानी काबू में ना रही जो मराने चली गई।



मैं बोला- तो मैं मुठ मार कर सोता रहूँ?



"नहीं जी ! मैंने ऐसा कब कहा? अगर यह समस्या सदा के लिए टालनी है तो हम अपने कमरे में ही करेंगे। अगर दीदी जाग गई तो शरमा कर कल से नहीं सोयेंगी। और ना जगी तो रोज ऐसे ही चलेगा !"



रानी का जबाब सुन कर मैंने कहा- पर इसमें तो दीदी के जागने का ज्यादा चांस है, जागने पर क्या सोचेंगी?



रानी ने कहा- मैं तो चाहती हूँ कि रात को दीदी जग जाये जिससे कल से यह समस्या ख़त्म हो जाये ! समझे बुद्धू ?



मैं समझने की कोशिश करता हुआ काम बनता देख ज्यादा ना पूछा पर जानना चाहा- पर रात में मैं तुझे पहचानूँगा कैसे?



वह बोली- मैं बेड के इसी किनारे सोऊंगी और दरवाजा खुला रखूंगी ! तुम धीरे से आ जाना बस !



मैं कुछ और पूछता, इससे पहले दीदी नहाकर निकलने जा रही थी। तो मैं धीरे से निकल चला और रात के इंतजार में जल्दी से तैयार हो कर अपने काम पर चल दिया।



पुनः अपनी बात पर आते हुए : मैं रानी के फीगर के बारे में आपको बताना ही भूल गया। वह इतनी खूबसूरत है जैसे कोई माडल हो, उम्र लगभग बाइस वर्ष, एकदम संगमरमरी गौरी चमड़ी, जैसे नाखून गड़ा दो तो खून टपक जायेगा, सर पर भूरे रंग के लम्बे बाल, अप्सराओं जैसा अत्यन्त खूबसूरत चेहरा, बड़ी-बड़ी काली आँखें जिनमें डूबने को दिल चाहे, तीखी नाक, धनुषाकार सुर्ख गुलाबी रंगत लिये हुए होंठ, अत्यन्त मनमोहक मुस्कान जो सामने वाले को गुलाम बना दे। लम्बाई लगभग पांच फीट छह इंच, स्तन 34, कमर 26 और कूल्हे 36 ईंची !



उसे पहली बार देखने पर किसी भी साधु सन्यासी का लण्ड भी दनदनाता हुआ खड़ा होकर फुंफकारे मारने लगे।



और आज तो तिसरी रात होने के कारण उसमें और खूबसूरती आ गई है। अब मुझे केवल रात का इन्तजार था।



आखिर शाम हुई, फिर रात हुई और सबने खाना खाकर अपने अपने बिछावन को पकड़ लिया पर दीदी मेरे ही कमरे में डेरा जमाये हुए थी। इन्तजार करते करते लगभग रात के ग्यारह बज चुके थे। सम्पूर्ण अंधेरा था क्योंकि बिजली भी नहीं थी, कमरों के भीतर की बत्तियाँ भी बंद थी, मकान में एकदम सन्नाटा छाया था, माँ के कमरे से खर्राटों की आवाज आ रही थी। सुनने में ऐसा लगा कि वह गहरी नींद में होगी।



मैंने निश्चिन्त होने के लिये पांच मिनट का इन्तजार किया। अब लगभग अपने कमरे के पास पहुँच मैंने अपना दायां हाथ इस प्रकार से दरवाजे के तरफ़ बढ़ाया कि कोई हलचल न होने पाये। और कमरे के अन्दर अपने बेड के पास आकर देखने की कोशिश करने लगा पर कुछ साफ न दिखने से अन्दाजा लगाया कि रानी ने कहा था कि वह बेड के इसी तरफ़ सोयेगी। आज पहली बार मुझे अपने ही घर में अपने कमरे में चोरों की तरह घुसना पड़ रहा था। धड़कते दिल से मैं बिछावन के पास पहुँचा और मध्यम रौशनी के सहारे इस तरफ़ की आकृति को छुआ। मेरा हाथ उसके चूतड़ पर लगा।



फिर कुछ देर रुक कर मैंने अपना हाथ आगे पेट की ओर बढ़ाते हुए आहिस्ता से उसके उन्नत-शिखरों की ओर खिसका दिया। मेरे हाथ का पंजा उसके स्तनों के पास पहुँच कर पूरे पंजे से उसके बोबे दबाने लगा। अब मैंने उसके खुले गले के ब्लाऊज़ के गले के अंदर हाथ डाला तो मेरा पहला स्पर्श उसकी सिल्की ब्रा का हुआ, पर इससे तो मुझे सन्तुष्टि नहीं हुई। फिर मैंने आहिस्ता से अपना हाथ उसके स्तनों के बीच की घाटी में प्रविष्ट करा दिया और आहिस्ता आहिस्ता उसके दोनों स्तनों पर अपने हाथ घुमाने लगा। मैं उसकी दूध की दोनों डोडियों से खेलने लगा।


Contd........
 
Contd.........मैं भ्रम में रह गया.....




अब मेरे दिमाग ने काम करना बिल्कुल बंद कर दिया। मैं बिल्कुल कामातुर हो चुका था, मैं यह भूल चुका था कि यदि दीदी ने जागकर देख लिया तो पता नहीं क्या सोचने लगेगी ! अब मैं रानी के स्तनों के साथ उसकी चूत को भी मसलना चाहता था। मैंने आहिस्ता से उसका साया खोल कर उसकी मखमली पैंटी पर हाथ रख दिया और कोई प्रतिक्रिया न देखकर फिर अंदर चूत को सहलाने के लिये हाथ बढ़ाया तो मेरा हाथ उसके दाने से टकराया। बिल्कुल छोटी मखमली झांटों को सहलाने का लुत्फ उठाने लगा। अब लगा मेरे दोनों हाथों में जन्नत है, मेरा बायां हाथ तो उसके वक्षों से खेल रहा था और दायां हाथ उसके वस्ति-क्षेत्र का भ्रमण कर रहा था।



अब मुझे यह तो सुनिश्चित हो चुका था कि वह नींद में नहीं है तो मैं हौले से उसके भग्नासा के दाने को सहालाकर उत्तेजित करने की कोशिश करने लगा। पर वह भी आँखें मींचकर पड़ी हुई थी। मैंने सोचा कि अब यह गर्म है तो समय भी तो तेजी खिसका जा रहा है, इसके लिये दूसरा उपाय करना होगा। इधर उसके सिर के तरफ़ मैंने लण्ड का रुख करके उसके मुँह के ऊपर रखा था तो मेरा लण्ड मुँह खोलकर चूसने लगी। अब मैंने अपनी लुन्गी खोलकर कमर से हटाते हुए उसके मुँह से पूरा सटा दिया, उसमें से चिपचिपाहट भी निकल रही थी जो उसके होंठों को गीला कर रही थी। अब दोबारा मैंने अपने दोनों हाथों को व्यस्त रखते हुए उसकी चूत में अपनी उंगली प्रविष्ट कराई तो देखा वहाँ गीला-गीला सा था, मतलब वह गर्म हो चुकी थी।



स्तन मर्दन के साथ जैसे ही मैंने उंगली चूत में अंदर-बाहर करनी शुरु की तो रानी छटपटाने लगी और उसने अपनी नींद का नाटक छोड़ा और मेरी तरफ करवट बदलकर मेरे चूतड़ों पर हाथ फिराने के बाद उसे लण्ड अपने मुँह में तेजी से चूसना शुरु कर लिया। मैं तो अपने होशोहवास खो चुका था, वह भी पागलों की तरह लण्ड मुँह में अंदर-बाहर कर रही थी। उधर मैं भी उसे अपने दोनों हाथों से बराबर उसे उत्तेजित कर रहा था।



मैंने कमरे में अपने बगल की तरफ देखा, दीदी आराम से सोई हुई थी और सम्पूर्ण अंधेरा था, तो कोई डर नहीं था कि देख लेंगी।



हम दोनों किसी भी किस्म की आवाज नहीं निकाल रहे थे क्योंकि दीदी जाग सकती थी। अब रानी की लगातार मेहनत के कारण दस मिनट में ही मेरा लण्ड स्खलित होने की कगार पर पहुँच गया, तो मैंने उसे हाथ के इशारे से समझाने की कोशिश की पर उसने इस पर ध्यान नहीं दिया। तो मैं भी क्या करता, मैंने भी वीर्य का फव्वारा उसके मुँह में छोड़ दिया। उसने भी हिम्मत दिखाते हुए पूरा का पूरा गटक लिया।



अब मैं तो खाली हो गया किन्तु उसकी उत्तेजना शांत नहीं हुई थी, वह मेरे निर्जीव पड़े लण्ड को खड़ा करने की कोशिश करने लगी। मात्र पाँच मिनट में ही हम दोनों सफल हो गये। मेरा लण्ड फिर कड़क होकर फुंफकारने लगा। फिर एक दूसरे के शरीर को चूमने-सहलाने लगे। अब हम दोनों पागलॉ की तरह लिपट गये और एक दूसरे के शरीर को टटोल कर आनंद लेने लग गये। अब मैंने उसकी चोली खोल दी और पैंटी भी उतार दी, उसके तन व मेरे बीच में कोई नहीं था।




मैं अब बेड पर बैठ गया, वह मेरी गोद में दोनों टांगों को बीच में लेकर अपने टाँगों को मोड़ कर इस प्रकार बैठी कि उसकी चूत मेरे लण्ड को स्पर्श करने लगी। वह मेरे सीने को हाथ से सहला रही थी, नीचे चुदाई चालू थी, वह भी हिलकर अपने शरीर को ऊपर नीचे होकर पूर्ण सहयोग कर रही थी। फिर मैं बारी बारी से उसके दोनों स्तनों पर अपनी जीभ फिराने लगा। उसके बाद मैंने उसकी गर्दन की दोनों तरफ कामुकता बढ़ाने वाली नस के साथ उसके कान की लोम व आँखों की भोहों पर भी अपनी जीभ फिराई। वह मदमस्त होकर पागल हो उठी। दोनों की सांसें एक दूसरे में विलीन हो रही थी। यदि हम किसी एकान्त कमरे में होते तो पागलपन में न जाने कितनी आवाजें निकालते। पर जगह और समय का ध्यान रखते हुए बिल्कुल खामोश रहने की कोशिश करते रहे।


अब इस मदहोश करने वाली अनवरत चुदाई को लगभग आधा घण्टा हो चुका था। अब एक ही आसन में चोदते हुए थकान होने लगी थी। तभी रानी ने मुझसे गति बढ़ाने का इशारा दिया और कुछ ही क्षण में हांफते हुए वह चरमसीमा पर पहुँच गई। फिर वह पस्त होकर ढीली पड़ कर लेट गई।


मैं तो अभी तक भरा बैठा था, मैंने कुछ समय रुककर इशारा किया कि अब मैं भी पिचकारी छोड़ना चाहता हूँ तो उसने इशारे से कहा- रुको !


वह खड़ी हुई और बेड पर हाथ रख और सिर झुकाकर खड़ी हो गई। मैंने भी पीछे से उसकी चूत में लण्ड पेल दिया और अपने दोनों हाथों से उसके उन्नत स्तनों को मसलते हुए उसे चोदने लगा। फिर जन्नत की यात्रा शुरु हुई। फिर मदमस्त होकर वह भी आगे पीछे होकर मुझे सहयोग देने लगी। हम दोनों ने अपनी गति और बढ़ा दी और लगभग दस मिनट बाद मेरी पिचकारी छुट गई, हम दोनों पस्त हो गये।


वह कुछ समय रुक कर सफाई करने बाथरुम मे जाकर वापिस अपनी बिछावन पर आ गई। भगवान का लाख-लाख शुक्र था कि दीदी अब तक सोई हुई थी और उनको इस चुदाई के बारे में शक भी नहीं हुआ।


अब मैं अपने कमरे मे आकर आराम से सो गया आज सुबह मेरा मन काफ़ी खुश था मैंने रसोई में बीवी को जब अकेले देखा तब उसके पास जाकर पीछे से बाहों मे भर चूमना शुरु कर दिया। रानी मुझे मनाने के लिये मेरे बालों मे उंगली फिराते बोली- सॉरी जी ! मैं रात में सो गई पर आप भी नहीं आए?


मेरे कान में इतना पड़ना था कि मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया।


तो क्या मेरे साथ रात में दीदी थी, अब मैं समझ गया !


यह घटना मेरे मन-मस्तिष्क पर एक चलचित्र की तरह स्पष्ट चल रही थी। हालांकि मैं भ्रम में रह गया लेकिन जब जान ही गया तो दोनों की तुलना करने लगा तो पाया कि वाकई में रानी से ज्यादा मजा तो दीदी को चोदने में आया !


और अब वह अलग कमरे में भी सो कर मुझसे हर दो दिन बाद चुदती है, नैहर (मेरे घर) अब अकसर आती है मेरे साथ चुदाई के लिये और फिर उसके पास मैं भी अक्सर जाने लगा हूँ। वह आज भी मेरी बहुत अच्छी दोस्त है।


रानी आज तक न जान पाई और ना मैंने उसे बताया। वह भी एक अद्वितीय अनुभव था।





*** SAMAPT ***
 
*** मैं क्या करूँ? ***






मैं 21 वर्षीया स्नातक लड़की हूँ, पिता जी का व्यवसाय है एवं माँ गृहणी हैं, हमारे पास का मकान कई सालों से खाली पड़ा है।

स्नातिकी करने के बाद मेरे पिता ने मुझे आगे पढ़ाना इसलिए मुनासिब नहीं समझा कि फिर ज्यादा पढ़े-लिखे लड़के मिलने मुश्किल हो जाते हैं और लड़की की शादी में परेशानी आ जाती है। इसलिए मैं छोटे मोटे कोर्स कर के अपना समय व्यतीत करती रही हूँ। खाली समय में माँ के साथ रसोई में हाथ बटा देती हूँ, खाना भी ठीक-ठाक पका लेती हूँ। पिताजी अक्सर नौ बजे घर से निकलते हैं और रात को नौ बजे घर लौटते हैं।

एक दिन अचानक ही पास वाले खाली पड़े मकान में हलचल नजर आने लगी, कोई किरायेदार वहाँ पर रहने के लिए आने वाले थे इसलिए मकान मालिक उसे साफ़ करवाने आया था। मकान मालिक का इसी शहर में एक और मकान है जिसमें वो अपने परिवार के साथ रहते हैं।

दो दिन बाद ही उसमे एक छोटा सा परिवार रहने आ गया, पति-पत्नी के अतिरिक्त उनका बीस-बाइस साल का एक लड़का भी है। पड़ोस का घर होने से कुछ हाय-हेलो हुई। माँ और पड़ोसन में कुछ जान पहचान आगे बढ़ने लगी। लड़का इंजीनियरिंग के अन्तिम साल में पढ़ रहा है, देखने में ठीक ठाक है, बुरा नहीं लगता, कद काठी भी अच्छी है।

हमारा शहर ज्यादा बड़ा तो नहीं है लेकिन छोटा भी नहीं है, मनोरंजन के साधन पर्याप्त रूप से उपलब्ध हैं। मैं कभी कभी अपनी सहेलियों के साथ फिल्म भी देख लेती हूँ। समय जैसे तैसे कट रहा है। अब पड़ोस का लड़का शाम के समय अक्सर अपनी छत पर समय काटता है।

मैं भी अपनी शाम कई बार छत पर बैठ कर गुजारती थी। अब जब भी मैं छत पर जाती तो पड़ोस का लड़का मुझे देखा करता और कभी कभी हाय-हेलो किया करता लेकिन मैं हाय-हेलो का जवाब देकर आगे की बातचीत गोल कर देती थी क्योंकि अक्सर यह फंडा लड़कियों को पटाने का होता है। हालाँकि मैं पढ़ी-लिखी हूँ लेकिन पारंपरिक रूप से मन पर भारतीय वातावरण ही छाया हुआ है इसलिए मैं इस प्रकार की दोस्ती पर ज्यादा ध्यान नहीं देती। वो कई बार मुझसे बात करने की कोशिश किया करता लेकिन मेरे बर्ताव को देखकर उसे आगे बढ़ने के रास्ते बंद से नजर आने लगे। उसके व्यवहार से लगता था कि वो मुझसे प्रभावित है और मेरे बर्ताव से व्यथित जरूर है लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी है।

कभी कभार वो हमारे घर आ भी जाया करता है जब उसकी माँ अचानक खत्म होने पर उसे कोई सामान लेने हमारे घर भेज दिया करती है।

यह सब रूटीन का काम था। अक्सर लड़कों की निगाहों का सामना करती रही हूँ इसलिए मैं जानती हूँ कि इनको जवाब ना देना ही इनको टालने का सबसे अच्छा प्रयास है। धीरे धीरे छः-आठ महीने नि़कल गए। सब कुछ ऐसा ही चलता रहा। जान पहचान का बार बार मिलते और देखते रहने से बढ़ना लाजमी होता है। मेरी माँ और पड़ोसन अक्सर दोपहर के खाली समय में एकसाथ बैठकर गपशप किया करती। कभी कभार मैं भी बैठ जाया करती लेकिन उनकी इधर उधर की लल्लो चप्पो मुझे कम ही पसंद आती थी।

मेरी दो सहेलियों की शादी हो चुकी थी इसलिए मुझसे सेक्स का भी थोड़ा बहुत ज्ञान था लेकिन मैं उस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती हूँ इसलिए मेरी सेक्स में रूचि अधिक जागृत नहीं है। जब शादी होगी तब पति की पहल पर देखा जायेगा वाली मानसिकता से मैं सराबोर हूँ।

अभी एक सप्ताह पहले की बात है कि मेरे मामाजी की लड़की की शादी के लिए माँ को पहले ही बुला लिया गया तो वो सात दिन पहले ही मुझे घर अच्छे से सम्हालने की हिदायत देकर घर से मामाजी के यहाँ प्रस्थान कर गई ताकि मामाजी के यहाँ घर में शादी का सा माहौल लगे और छोटे मोटे काम काज मम्मी सम्हाल सके। मुझे और पापा को शादी के एक दिन पहले मामाजी के यहाँ जाना था.

अब मैं सुबह शाम का खाना बना कर दिन में खाली रहती थी। टीवी देखती रहती ... दो दिन निकल गए।

तीसरे दिन दोपहर लगभग १२ बजे दरवाजे की बेल बजी, मैंने अचंभित होकर दरवाजा खोला तो पड़ोस का लड़का खड़ा था। मैंने सोचा कि कोई सामान लेने आया होगा सो एक तरफ होकर उसे रास्ता दिया, वो अंदर आ गया।

मुझे वो थोड़ा अपसेट सा लगा, मैंने उसके कुछ बोलने का इंतजार किया लेकिन वो सोच में डूबा हुआ कुछ बोल नहीं पा रहा था तो मैंने कहा- बोलो क्या बात है?

फिर भी वो जवाब नहीं दे रहा था, बस मेरी तरफ देखे जा रहा था, मेरे दो तीन बार पूछने पर वो बोला- मैं कुछ कहूँ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी ?

मैंने कहा- ऐसी क्या बात है जो मैं बुरा मान सकती हूँ ?

उसने कहा- नहीं, पहले आप मुझसे वादा कीजिये कि आप बुरा नहीं मानेंगी .....

अब मेरी असमंजस की बारी थी कि ऐसी क्या बात है जो मुझे इतना बुरा लग सकती है और जो यह कह नहीं पा रहा है .....

हम एक दूसरे को देखे जा रहे थे, फिर अंत में मैंने हिम्मत करके कहा- चलो, मैं बुरा नहीं मानूंगी ! तुमको जो कहना है कहो...

तो वो कुछ कहने की कोशिश करता, फिर चुप हो जाता तो मैंने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा- मैंने कहा ना कि मैं बुरा नहीं मानूंगी, तुम जो कहना चाहते हो वो कह सकते हो ..

उसके मुह से निकला- मैं .. फिर अटक गया,

तो मैंने कहा- हाँ तुम.. आगे बोलो ..

वो: मैं ... मैं... बहुत असमंजस में हूँ....

मैं: हाँ तो कहो ना किस असमंजस में हो....

वो: अब क्या कहूँ..., कैसे..
 
Contd......*** मैं क्या करूँ? ***





मैं: यदि तुम कुछ कह नहीं पाओगे तो मैं कैसे तुम्हारी कुछ सहायता कर पाऊँगी ....?

वो कुछ नजदीक आया और अपने दोनों हाथों से मेरे हाथ पकड़ कर बोला- आप सच में बुरा नहीं मानेंगी ना..?

मैं अपना हाथ छुडाने की कोशिश करते हुए बोली- मैं बुरा नहीं मानूंगी...लेकिन मेरा हाथ तो छोड़ो !

इस तरह यह पहला वाकया था जब किसी लड़के ने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश की थी, कोशिश क्या पकड़ ही लिया था...

वो: नहीं पहले आप वचन दो कि बुरा नहीं मानोगी ...

मैंने परेशान होकर कहा- हाँ बाबा, मैं बुरा नहीं मानूंगी, तुम मुझसे जो कहना चाहते हो वो कह सकते हो लेकिन मेरा हाथ छोडो.. प्लीज ....

लेकिन उसने हाथ नहीं छोड़ा....

उसकी हालत देखकर मुझे लगा कि वो शायद ठीक से सो भी नहीं पाया है और कुछ परेशान भी है...

फिर उसने धीरे धीरे अटक अटक कर बोलना शुरू किया- मैं कुछ दिन से बहुत ......परेशान हूँ, ठीक से .. नींद भी नहीं आ रही है .... कैसे कहूँ.. क्या कहूँ बस यह सोच कर.... बहुत....परेशान हो . गया हूँ....... यदि आपको यह बात .....

मैं : हाँ बोलो ना... बोलते रहो, मैं सुन रही हूँ.....

वो : आप यदि बुरा भी मान जाएँ तो आप मुझे मारिएगा.. पीटना मुझे ..

उसकी आँखें डबडबा आई ......

मैं : लेकिन बोलो तो सही ऐसी क्या बात है.....

वो : मेरी परेशानी का कारण आप हैं...

अब मेरी समझ में कुछ आया लेकिन फिर भी मैं बोली- क्या....!! मैं तुम्हारी परेशानी का कारण.....

वो फिर अचकचा गया .. मेरी तरफ कातर नजरो से देखने लगा....

मैं : बताओ तो सही आखिर मैं .. परेशानी का कारण .. कैसे हूँ....?

वो : मैं आपका ख़याल अपने मन से नहीं निकाल पा रहा हूँ !

मैं अवाक् रह गई.....

वो मेरी आँखों में देखकर बोला- मैं आपको पसंद करने लगा हूँ........ और आप हर समय मेरे मन में घूमती रहती हैं........ मैं आपसे बात... करना चाहता हूँ .....और आप ठीक से बात भी नहीं करती हैं.....

मैं सोचने लगी कि यह क्या हो गया है ? किसी से बात नहीं करना इतना बुरा हो सकता है ??

मैं क्या कहती ... बस उसकी तरफ देखती रही .. उसने अब तक मेरे हाथ पकड़े हुए थे... अब मुझे उनका भी होश नहीं था.....

उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे, वो बोलता गया .....मुझे कुछ भी ... अच्छा नहीं लगता... ना खाना ... सोना भी.... बस आप .....ही आप.... मैं आज के बाद आपको कुछ नहीं कहूँगा....

देखूँगा भी नहीं ... चाहे तो आप मुझे मार सकती हैं....

यह कह कर उसने मुझे अपनी बाहों में ले लिया ....

अब मुझे होश आया .. मैंने छुड़ाने की कोशिश की तो उसने अपनी बाहों को और भी जकड़ लिया..

अब मैं सोचने लगी कि यदि अब कोई आकर दरवाजा खटखटाए तो हम दोनों को इस तरह अकेले देखकर क्या सोचेगा.. यह क्या कह रहा है ... क्या हो रहा है यह सब... हे भगवान ....

मुझे घबराहट होने लगी...

मैंने बोला- छोड़ मुझे .. कोई आ गया तो क्या होगा.. पागल....

लेकिन उसने मुझे नहीं छोड़ा.. वो मुझे मेर मुँह पर यहाँ-वहाँ चूमने की सफल/असफल कोशिश करने लगा... मेरे माथे पर, आँखों और नाक पर, मेरे गालों पर.. मैं अपना चेहरा इधर उधर करने लगी ....

लेकिन उसके आँखों से आंसू गिर रहे थे और वो मुझे चूमे जा रहा था....

फिर उसका एक हाथ मेरी छाती पर ...मेरे एक बोबे पर आ गया...अब मेरे शरीर में सिरहन दौड गई....

मुझे बस एक ही ख़याल आ रहा था कि ये मुझे छोड़ कर चला जाये लेकिन उसकी पकड़ के सामने मैं कुछ कर नहीं पा रही थी.......

वो मेरा बोबा दबाने लगा....धीरे धीरे मेरे शरीर में चींटियाँ रेंगने लगी ....मैं छूटने की नाकाम कोशिश करती रही ...

मेरी हिम्मत धीरे धीरे टूटती जा रही थी...मैं शिथिल पड़ती जा रही थी, मुझे लगने लगा कि मेरे साथ ये क्या होने वाला है ....

हे भगवान .....

उसने मेरे होटों पर अपने होंट रख दिए और चूसने लगा।

मैं कसमसाई लेकिन छूटना मुश्किल था...

अब उसका बोबे वाला हाथ मेरे सर के पीछे, मेरा चेहरा उसके मुँह की तरफ दबाव दिए हुए था, अब मेरे हाथ समर्पण की मुद्रा में ढीले पड़ गए...मैंने सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दिया....

कुछ देर में मेरे होंट कब उसके होंटो को चूसने लगे मुझे कुछ पता नहीं चला...मेरे शरीर में चींटियाँ रेंग रही थी....दिल में हौल मची हुई थी.. दिल धाड़ धाड़ बज रहा था....मुझे कुछ भी दिखाई देना बंद हो गया था...मेरे हाथ धीरे से उठे और उसके हाथों को पकड़ लिया.....

इतने में उसने मुझे वहीं सोफे पर गिरा दिया ...मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, बस अब लगने लगा था कि यह जो कुछ करना चाहता है वो जल्दी से कर ले... और चला जाये....वो मुझ पर छा गया...उसका एक हाथ फिर से मेरे बोबे पर आ गया, मेरी साँसे जोर जोर से चलने लगी .... उसका दबाव मेरे वस्ति-क्षेत्र पर पड़ने लगा... मुझे अच्छा लगा....मैं खुद पर आश्चर्य करने लगी कि यह सब मुझे क्यों अच्छा लग रहा है ..!!

एक हाथ से उसने अपना वजन सम्हाल रखा था और दूसरे से मेरे बोबे दबा रहा था....मुझे लगने लगा कि वो मुझे मसल डाले....और जोर से ...

मेरे मुँह से ऊं ऊं ....करके आवाज निकलने लगी तो उसने अपना मुह मेरे होंटों से अलग किया और मेरा कुरता ऊँचा करके बोबे नंगे करने लगा....

बोबे देखकर जैसे वो पागल हो गया....वो उन्हें चूमने लगा फिर चुचूक मुँह में लेकर चूसने लगा ...

अब मेरी रही सही हिम्मत भी चली गई, मैं बिल्कुल उसकी मेहरबानी पर निर्भर हो गई .......

मेरे हाथ धीरे से उठे और उसके बाल सहलाने लगे.. अचानक उसका हाथ मेरी पेंटी में घुसता चला गया...मेरी सिरहन सर से पैर तक दौड़ गई लेकिन अब तक मैं बेबस हो चुकी थी...उसकी ऊँगली मेरी चूत की खांप में चलने लगी, मेरे शरीर में चींटियाँ ही चींटियाँ चलने लगी, मेरे हाथ उसके खोपड़ी के पीछे से मेरे बोबों पे दबाने लगे ....मेरे मुँह से अनर्गल शब्द निकल रहे थे...आं...ऊं हाँ...और जाने क्या क्या....

मैं मिंमियाई सी कुनमुनाने लगी, मेरी चूत से पानी निकलने लगा..जो मेरी गांड से होता हुआ.......मेरी पेंटी गीली होती जा रही रही थी..सब कुछ मेरी बर्दाश्त से बाहर होने लगा..., मुझे लगा कि यह कुछ करता क्यों नहीं है.... मैं बेबस हुई जा रही थी...

अचानक वो उठा और अपनी पैंट नीचे सरका कर अंडरवियर सहित फिर से मेरे ऊपर आ गया... फिर उसका हाथ नीचे हुआ और जब उसका हाथ हटा तो मुझे अपनी चूत पर कुछ गड़ता हुआ महसूस हुआ...उस गड़न से मुझे बहुत बहुत राहत महसूस हो रही थी, चींटियाँ जैसे थमने लगी थी....और सिमट कर चूत की तरफ अग्रसर होने लगी ....उसके नीचे का हिस्सा चक्की की तरह मेरे शरीर पर चलने लगा ...मेरी चूत में चींटियों ने जैसे अपना बिल बना लिया है, मैं अपने हाथ से चूत को खुजाना चाहती थी लेकिन उसका शरीर मुझसे बुरी तरह से चिपका हुआ था....

झख मार कर मैंने उसकी बांह पर अपनी उँगलियाँ गडा दी, मेरे मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी- कर ...जोर से...

मैं फुसफुसाई- अंदर डाल ना....

लेकिन उसने जैसे कुछ सुना ही नहीं ... मैं उसको भी नहीं देख पा रही थी...मेरी आँखें मुंदी हुई थी...वो मुझे रगड़े जा रहा था, उसके होंट मेरे होंटो पर और उसके एक हाथ में मेरा बोबा जिसे वो दबाये जा रहा था... धीरे धीरे मेरे शरीर में सनसनी चलने लगी ...वो बिना रुके रगड़ता गया...

सनसनी बढ़ती जा रही थी....और मुझे लगने लगा जैसे मैं अपने शरीर से अलग होकर हवा में उड़ने लगी हूँ, मेरा शरीर हवा सा हल्का हो गया है.....

मुझे डर लगने लगा....मैं अपने हाथों को हवा में घुमा कर कुछ पकड़ने को सहारा ढूँढने लगी ताकि उड़ते में गिर ना जाऊं लेकिन जब नाकाम हो गई तो उसकी पीठ पर अपनी उँगलियों से जोर से दबाया कि उसके मुँह से आह निकल गई....मुझे डर लगने लगा कि जाने यह क्या हो गया है मुझे ....मेरी आँखों से आंसू निकलने लगे ...फिर मुझे लगा कि वो मेरे ऊपर ठहर गया है....

मैं बड़बड़ाने लगी- मुझे डर लग रहा है....मुझे पकड़ लो ....प्लीज .......और आंसू थे कि रुक नहीं रहे....

वो जैसे होश में आया...उसने मुझे सहारा देकर बिठाया और मुझे अपने से चिपका लिया....बोला- कुछ नहीं हुआ रानी .....चुप हो जाओ प्लीज ...

वो मुझे पुचकार कर चुप कराने लगा और बताने लगाकि मुझे कुछ नहीं हुआ है, मैं यहीं हूँ अपने घर में ...., कहीं नहीं गई हूँ.....

थोड़ी देर में मैं होश में आने लगी... फिर मुझे होश आया कि मेरे साथ क्या हुआ है ...मैंने अपना कुरता नीचा किया और उसकी तरफ देखने लगी ...

फिर मेरा हाथ उठा और उसके एक चांटा पड़ा ...मेरे मुँह से निकला ...तूने यह क्या कर दिया.....

उसने अपनी पैंट ऊँची की, बटन और चेन लगाईं, अपने कपड़े ठीक किये और सॉरी बोल कर नजरें नीचे किये दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया....

मैं धीरे-धीरे पूरे होश में आ गई और पूरे वाकये को सोचने लगी ...15 मिनट में ही मेरे साथ यह क्या हो गया था....??
 
Contd......*** मैं क्या करूँ? ***




सब कुछ मेरे सामने घूमने लगा....बार बार.....

सोचते सोचते मेरा सर भन्नाने लगा...

फिर मुझे कुछ अच्छा भी लगा कि जाने हवा में कैसे उड़ने लगी थी मैं.....

बहुत कोशिश करने पर मैं अपने बुरे ख्यालों से निकलने लगी ....शाम तक मुश्किल से मैं अपने ख्यालों को कुछ नियंत्रित कर पाई....

फिर नहाई और खाना बनाने में अपने को व्यस्त करने लगी....

जैसे तैसे खाना बना कर पापा का इन्तजार किया, छत पर जाने का मन नहीं हुआ......

पापा आये तो उन्हें खाना खिला कर अपने कमरे में आकर सोने का बहाना करने लगी, पापा को आश्चर्य हुआ कि आज मुझे क्या हुआ है ...

मुझे उसकी करनी याद आने लगी तो उस पर गुस्सा आने लगा....धीरे धीरे समय निकलता गया, आँखों से नींद गायब थी...

फिर मुझे सनसनी, चींटियाँ रेंगना और हवा में उड़ना याद आने लगा, मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मुझे हुआ क्या था फिर सहेलियों की बातें याद आई कि पति का साथ तो बस....तो क्या ये वही अनुभूति ......

उफ्फ्फ्फ़

सोचते सोचते दिमाग फटने लगा...फिर ना जाने कब नींद आ गई....एकाएक लगा कि बारिश होने लगी है ...हड़बड़ा कर उठी तो देखा पापा हाथ में गिलास लिए मेरे मुँह पर पानी के छींटे मार रहे हैं...

उठो बेटा ...देखो आठ बज गए...कब तक सोती रहोगी.....

मैं उठी, नहाई-धोई और खाना बनाया ...पापा को खाना खिला कर भेजा...

उफ़ ...अब फिर खाली समय का अंतराल ....मेरा सर फट जायेगा.....

वो ही घटना बार बार मेरे मानस में घूम रही थी फिर उसके बाद हवा में उड़ना .....ओह ......क्या था वो...कौन बता सकता है ....किस से पूछूँ ....

क्या मैं पूछ सकती थी....शायद नहीं ....अब वो रोमांच भरने लगा...

लगा कि कहीं वो आज फिर ना आ जाये....

दो दिन बीत गए ...अब मुझे दिन में उसका इंतजार था कि शायद वो आज आ जाये....लेकिन वो नहीं आया...एक दिन बचा था फिर हमें मामाजी के यहाँ जाना था, तीन दिन का लंबा इंतजार मामाजी के घर......ओह....मैं ये क्या सोचने लगी ...

मैंने सर झटक दिया.....अब धीरे धीरे दुर्घटना बिसरने लगी और सनसनी और हवा में उड़ना याद आने लगा....मुझे रोमांच होने लगा ...

क्या एक और बार ...

अरे हट ! मैं यह क्या सोचने लगी ...अब मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा था....

मैं छत की सीढ़ियों से बार बार देखती लेकिन वो कहीं नजर नहीं आ रहा था....बाहर भी नहीं .....

चोरी चोरी चोर नजरों से उसके नजर आने की राह देखने लगी ...वो मुझे अच्छा लगने लगा...

मामाजी के यहाँ जाते समय भी देखा लेकिन वो नहीं दिखा .....

तीन दिन बाद मामाजी के यहाँ से आई तो भी मुझे उसके दिखने का इन्तजार था....शाम को मैं छत पर गई तो वो दिखा ....लेकिन नजरें नीचे किये नीचे उतर गया....

उफ्फ्फ जालिम.....

अगले दिन जब वो छत पर दिखा तो मैंने बहुत उम्मीद से उसे देखा लेकिन उसने अपने हाथ अपने कानों पर लगाए और हाथ जोड़ दिए ....

जैसे कह रहा हो कि गलती हो गई.....उसकी नजरें फिर ऊपर नहीं उठी....मैं चाह कर भी कुछ नहीं कह पाई .....

मैं नीचे अपने कमरे में आकार सोचने लगी कि मैं इसलिए हँसू कि उसने मेरे साथ वो कुछ नहीं किया जो वास्तव में होना चाहिए था

या रोऊँ कि अब वो मुझे नहीं देख रहा...

मैं सोच रही थी कि क्या मैंने उसे चांटा मार कर सही किया ....आखिर किसी को कुछ कह भी नहीं सकती थी ...उसने मेरे साथ किया क्या था...

जो कुछ किया ..ऊपर से ही ....., मेरी पैंटी तक नीची नहीं की थी उसने .......

फिर उसके करने से ज्यादा मुझे हवा में उड़ना क्यों याद आता है बार बार, क्यों अच्छा लगता है वो उड़ना ....

क्या वो गलत था या अब मैं गलत हूँ......सोच सोच कर सर फटने लगा है.....आह...




*** SAMAPT ***
 
तुझे संतुष्ट करना मुश्किल है

मेरे घर में मै माँ और पिताजी ही थे..मेरी उमर उस समय २५ साल की थी मेरा लंड ७.५ लंबा और २.५ इंच मोटा है..लेकिन मुझे सेक्स का कोई अनुभव नही था..हाँ मूठ मार लेता था..

मै इंजीनियरिंग कर चुका था और अभी नौकरी के लिए प्रयत्न कर रहा था. एक दिन , सुबह ७:०० ऍम पर मै जब उठा और बाथरूम जा रहा था की घर की दरवाजे की घंटी बजी..खोल के देखा तो मेरी मौसी का लड़का रमेश और उसकी बीवी रचना आए है.

माँ ने तुरंत देखा और कहा आओ आओ दोनों ने अपना समान अन्दर रखा और माँ को प्रणाम किया थोड़ी देर कुछ बात करने के बाद भाभी तुरंत किचेन में माँ के साथ काम करने लगी पिताजी बाथरूम से निकले और कपड़े पहन कर काम पर जाने के लिए तैयार हो गए..

तब रमेश और भाभी ने पिताजी को भी प्रणाम किया सबने मिल कर नाश्ता किया.फ़िर रमेश ने कहा की गाव में उसका कोई काम नही चल रहा है और घर की हालत ख़राब होती जा रही है इसलिए मौसी ने कहा है की शहर में जाकर कोई काम ढून्ढो...जब तक रहने का इंतज़ाम नही होता तब तक यहाँ रुकेंगे..

अगर माँ पिताजी चाहे तो..माँ पिताजी दोनों ने कहा कोई बात नही..हमारा घर बड़ा है..एक कमरा उन्हें दे दिया मेरे बाजू वाला...और कहा पहले नौकरी देखो बाद में घर दूंढ लेना..नाश्ता करने के बा???

रमेश भी फ्रेश होकर नौकरी की तलाश में निकल गया. . रमेश के जाने के बाद भाभी माँ के साथ घर के काम में लग गई मै स्नान करने बाथरूम में गया और तैयार होकर बाहर आया.

भाभी मेरे साथ थोड़ी देर बैठ कर बाते करने लगी..थोड़ी देर में हमारी अच्छी दोस्ती हो गई..भाभी का रंग गोरा था.और चुन्चिया एकदम कसी हुयी..पतली कमर...गोल उभरी हुई गांड....कुल मिलाकर भाभी एक चोदने की चीज़ थी..लेकिन अभी मेरे दिमाग में ऐसा कुछ नही आया . मुझसे बात करते हुए वो काम भी कर रही थी.

शाम को रमेश वापस आया..उसे एक नौकरी मिल गई थी किसी लेथ मशीन पर.वो लेथ मशीन का ओपेरटर था..और उसकी तनख्वाह थी २०० रुपये रोज की. . दो दिन ऐसे ही बीत गए..मै उनके कमरे के बाजु वाले कमरे में ही सोता हु..दोनों कमरों के बीच की दीवार ऊपर से खुली है..

रात को दोनों के बीच झगड़ा होता था...भाभी की आवाज़ मैंने सुनी...तुम फ़िर से झड़ गए..मेरा तो कुछ हुआ ही नही...फ़िर से करो ना..लेकिन रमेश कहता था.तेरी चूत कोई घोडा भी चोदेगा तो ठंडी नही होगी..मुझे स???ने दे..ऐसा दो रात हुआ..भाभी उठ कर बाथरूम जाती थी फ़िर बड़बढ़ाते हुए वापस आ कर सो जाती थी.. भैय्या कहते थे..तू बहुत चुदासी है..तुझे संतुष्ट करना मुश्किल है..ख़ुद ही अपने हाथ से आग बुझा ले..

तीसरे दिन , पापा और रमेश नाश्ता करके अपने काम पर चले गए मै लेता था..भाभी मेरे कमरे में आई और कहा की नाश्ता करने चलो..माँ शायद बाथरूम में थी..मैंने किचेन में जा कर नाश्ता करना शुरू किया.भाभी मेरे एकदम से क़रीब आई और बड़े प्यार से बोली संजय..एक बात पूंछू ? मैंने कहा पूंछो ..भाभी बोली "किसी से बताओगे तो नही?" मैंने पूंछा ऐसी कौनसी बात है?और आप तो जानती हो मै चुगली नही करता. . भाभी फिर से बोली मै जानती हु लेकिन आप प्रोमिस दो आप किसी को नही बताएँगे मैंने कहा हाँ मै प्रोमिस देता हु..

तब भाभी ने धीरे से कहा मेरे और तुम्हारे भैय्या के लिए कोक शास्त्र ला दो., मैंने पूंछा ..क्यो? भाभी ने कहा तुम्हारे भाई को औरत की कैसे चुदाई की जाती है वो सीखना पड़ेगा वो मुझे संतुष्ट नही कर पता. मै ने कहा ठीक है मै ला दूंगा मै सुबह मार्केट में गया और एक बुक स्टोर से अच्छा कोक शास्त्र और दो चुदाई की कहानी की पुस्तक ले आया.

घर आकर मैं ने चुदाई की पुस्तके पढी..मेरा लंड खड़ा हो गया..मैंने मूठ मारी..और पहली बार मुझे भाभी को चोदने का ख़्याल आया. कोक शास्त्र में चुदाई की कई तस्वीरे थी..फ़िर मैंने भाभी को तीनो पुस्तके दे दोपहर का खाना खाने के बाद भाभी वो पुस्त ले कर अपने कमरे में चली गई..

पुस्तक पढते हुये वो गरम हो गई..मैंने दरवाजे से देखा वो अपने चूत में हाथ दल के मसल रही थी.. रात को डिनर के बाद १० :३० बजे सब अपने बेडरूम में सोने गए मै ड्राइंग रूम में बैठ कर भाभी और रमेश भाई जो बात कर रहे थे वो सुन रहा था , रमेश ने भाभी की चुदाई की लेकिन उसे संतुष्ट नही कर सका और रोज की तरह जल्दी ही झड़ गया....

भाभी उसे समझाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो सुनता ही नही था उसने कहा मुझसे फालतू बात मत कर तू कभी भी संतुष्ट नही होगी , अखिर में भाभी रूम से बाहर निकली और बाथरूम में गयी ,

बाथरूम से जब वापस आयी तब मैंने भाभी को रोका और भाभी का एक हाथ पकड़ के मेरे गरम लंडपर रख दिया , भाभी में मेरे लंड पर प्यार से हाथ फेरा और बोली ये तो बहुत बड़ा लंड है ..मैंने कहा जब लंड बड़ा और मज़बूत होगा तभी ज्यादा मजा भी आयेगा..

भाभी बोली लगता है एही सच है..लेकिन ये तो मेरी चूत फाड़ देगा भाभी ने कहा आप मूठ मत मरना संजू भाई मै रमेश के सोने के बाद तुमसे चुदाने आऊंगी , ये कह कर मेरे लंड को दबा के वो अपने रूम में चली गई.., जाते ही रमेश बोला यह दूध में शक्कर डाला ही नही है जाके शक्कर मिला के लाओ. भाभी बिना कुछ कहे वो दूध लेके बाहर आयी, और मुझे इशारे से किचेन में बुलाया..मै उनके पीछे किचेन में गया, भाभी धीरे से बोली कोई नींद की गोली है?मैंने कहा बहोत सी है , ममी पहेले लेती थी , मैंने दो गोली निकल के दी भाभी ने दोनों गोली पीस के दूध में डाली और शक्कर डाली फिर चम्मच से हिला के दूध तैयार किया ,

फिर वो बोली मुझे तुम्हारा लंड दिखाओ मैंने पाजामे से लंड बाहर निकला और भाभी के हाथ में दिया...भाभी उसे देख कर हैरान हो गई और बोली..बाप रे इतना लंबा और इतना मोटा..कितना सलोना और तगडा है आज मुझे इस लंड से चुदाना ही है..तुम आज मेरी चूत फाड़ दोगे...मेरा ७.५ इंच लंबा और २.५ इंच मोटा लंड उन्होंने हाथ में ले करा सहलायऍ ? , फ़िर कहा..आज मुझे पूरी औरत बना देना वैसा बोलके दूध अपने साथ लेके वो बेडरूम में चली गयी .

मै अपने बिस्तर पर आ कर लेट गया और भाभी का इंतज़ार करने लगा..मेरा लंड भी बेताब हो गया था..मैंने पुस्तक में जैसा पढ़ा था और जो चुदाई की स्टाइल के तस्वीर देखी थी उन्हें याद करने लगा रात को डिनर के बाद १०:३० बजे सब अपने बेडरूम में सोने गए

मै ड्राइंग रूम मेंबैठ कर भइया भाभी की चुदाई के मजे ले रहा था..आज भी रमेश जल्दी ही झड़ गया. मै बाहर बैठा सब सुन रहा था..भाभी ने उसे समझाया..लेकिन उनके बीच कहा सुनी होने लगी भाभी संतुष्ट नही हुयी.. भाभी उसे समझाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो सुनता ही नही था, अपनी गलती मान ही नही रहा था.

आखिर में भाभी रूम से बाहर निकली और बाथरूम में गयी, अपनी चूत को साफ किया और फ़िर पनि साड़ी से चूत को पोंछते हुए , बाथरूम से जब वापस आयी तब मैंने हिम्मत कर के उन्हें रोका और भाभी का एक हाथ पकड़ के मेरे गरम लंड पर रखा., भाभी के खप से उसे पकड़ा और फ़िर प्यार से उस पर हाथ फेरने लगी और बोली यह तो बहुत बड़ा लंड है

मैंने कहा बड़ा ही नही मजबूत भी है..तुम्हे संतुष्ट कर सकता है..बड़े और मोटे लंड से ही चुदाई का असली मज़ा आता है., भाभी बोली शायद यही सच है.तुम क्या कर रहे हो..मैंने कहा मूठ मार रहा ऊँ..भाभी बोली मत मारो मै अभी रमेश के सोने के बाद तुमसे चुदवाने आऊंगी., ये कह कर वो मेरे लंड को थपथपा के जाने लगी..मैंने उनकी चुन्ची को दबा दिया..वो उईई.कर उठी..और फुसफुसाके बोली..थोड़ा सब्र करो..सब दूंगी..राज्जा..पूरी नंगी होके चुदवाऊन्गी और वो अपने कमरे में चली गई.. जाते ही रमेश बोला यह दूध में शक्कर डाला ही नही है जाके शक्कर मिला के ले आओ .

भाभी बिना कुछ कहे वो दूध लेके बाहर आयी और मुझे इशारा कर के किचेन में बुलाया..मै उनके पीछे उनकी गांड से मेरा खड़ा लंड टिका के खड़ा हो गया..उन्होंने भी मेरे लंड पर अपनी गांड और चिपका दी..फ़िर बोली कोई नींद की गोली है ?मैंने कहा बहुत है.. ममी पहले लेती थी मैंने दो गोली निकाल के दी भाभी ने दोनों गोली पीस के दूध में डाली और शक्कर डाल के फ़िर चम्मच से हिला के दूध तैयार किया फ़िर वो बोली मुझे तुम्हारा लंड दिखाओ , मैंने अपना पाजामा खोला और अपना मूसल बाहर निकला..उसक् ? सुपाडे के छेद से अब पानी निकल रहा था. उसने अब उसे हाथ में लिया..बाप रे ये तो दुगुना लंबा और मोटा है..

मेरा ७.५ इंच लंबा और २.५ इंच मोटा लंड हाथ में लेने की कोशिश की..और कहा कितना सलोना है..और कितना तगड़ा है बहुत मोटा है ये..मेरी चूत फाड़ डालेगा..और झुक के मेरे लंड को चूमा और कहा मेरा इंतज़ार करो ऐसा बोल के दूध अपने साथ ले के वो बेडरूम में चली गयी...
 
तुझे संतुष्ट करना मुश्किल है cont.......................

मै अपने बेड पर आ के पाजामा खोल के सो गया..लंड को मै सहला रहा करीब २० मिनिट के बाद भाभी बेडरूम का दरवाजा खोल के मेरे रूम मे आई उसने आते ही मुझसे कहा संजय आज मेरी पूरी प्यास बुझा दो मेरी चूत को तुम्हारे मोटे लंड से तृप्त कर दो..मैंने भाभी को अपने बिस्तर पर मेरे ऊपर खीच लिया मै तो नंगा ही था, भाभी ने मेरे लंड को महसूस किया मै उन्हें चूमने लगा. उन्होंने फूस फुसते हुए कहा..इतना मोटा लंड मेरी चूत मे धीरे धीरे डालना संजू. मै उन्हें चूमते हुए उनका ब्लाउज खोलने लगा.अंडा ब्रा ऍ ?ही पहना था शायद रमेश से चुदवाते हुए वो पहले ही खोल चुकी थी..मैंने उनकी साड़ी भी खोल के नीचे फेंक दिया..अब सिर्फ़ पेटीकोट मे थी वो..कितनी गोरी थी..मै उन्हें चूमे जा रहा था और चुन्चिया मेरे हाथो मे थे..मस्त नरम मख्खन जैसी चुन्चिया थी..मैंने उनके पेट को सहलाते हुए नीचे चूत पर हाथ लगाया उफ़ लगा जैसे आग लगी है मैंने उनके चूची को आटा गूंथने जैसे मसला वो आह..ओह्ह.. कर रही थी लेकिन बहुत धीरे...फ़िर मैंने उनका पेटीकोट का नाडा खोल दिया और उसे नीचे खीच दिया..चड्डी भी नही थी..मैंने भाभी को मेरे बेड परलिटा दिया उफ़ क्या छोट थी पुस्तक मे कुंवारी लड़की की जैसी चूत थी ठीक वैसी ही चूत की दरार थी..मै तो पागल होने लगा..झुक कर चूत को चूमा..चूत गीली थी..मैंने दाने को ढूंढा उसे मसल दिया भाभी ऑफ़ कर उठी..फ़िर एक ऊँगली गीली चूत मे दाल दी..बहुत टाईट थी चूत..मेरी ऊँगली भी मुश्किल से जा रही थी..भाभी ने कहा अब मुझे पहले तुम्हारे लंड से च ोद दो.. .मैंने उन्हें और तडपाने के लिए अब मेरी जीभ चूत पर लगा दी और चूसने लगा अब भाभी बेचैन हो गई..अहह संजय..क्या कर रहे हो..आह्ह..इश..ओ माँ और जीभ चूत पर लगाने से उनकी चूत से और पानी निकलने लगा ..उन्होंने कहा पहले एक बार इस लंड को अन्दर दाल के चोद डालो..फ़िर बाद मे जो चाहे करना..मैंने कहा ठीक है..और मै उनके पैरों के बीच बैठ गया.मैंने देखा उनकी चूत का सूराख बहूत छोटा है..पास ही टेबल पर फेयर न लवली करें का नया ट्यूब था उसे मेरे लंड पर अच्छे से लगाया..और ऊँगली से भाभी के सूराख पर भी.., भाभी ने अपने पैर अच्छे से फैला दिए मैंने अपना लंड चूत पर रखा..भाभी ने तुरंत लंड हाथ मे पकड़ लिया और अपनी चूत पे रगड़ने लगी , थोड़ी देर के बाद मेरे लंड का सुपाडाअपने चूत के गुलाबी छेद पर रखा और फूसफुसाके बोली संजू ये इतना मोटा है तुम मेरी चूत का ख़्याल रखना..एकदम आहिस्ता आहिस्ता अन्दर डालो..मेरी चूत फाड़ मत देना...ये सुनकर मै और जोश म् ? आ गया..फ़िर भी मैंने लंड के सुपाड़े को अन्दर धकेला..और भाभी..उईई..माँ...कर के उछल पड़ी मैंने अब लंड को धीरे धीरे अन्दर घुसाने लगा लेकिन चूत बहुत टाईट थी..मैंने थोड़ा जोर लगाया और चुन्ची दबा के धक्का दिया आधा लंड अन्दर घुस गया और भाभी उछल पड़ी..मैंने देखा चूत से थोड़ा खून निकल आया..मै डर गया..मैंने पूंछा भाभी ज्यादा दर्द हो रहा है क्या.
भाभी ने कहा तुम फिकर मत करो अन्दर डालो पूरा..आह्ह मजा आ रहा है..लेकिन भाभी के चेहरे पर दर्द दिख रहा था..मैंने आधे घुसे लंड को अन्दर बाहर करना शुरू किया.थोड़ी देर में भाभी ने कहा और तेज ..और तेज.आह..और मै जोश में आ गया.मैंने लंड को बाहर खीचा और पुरी ताकत से अन्दर दाल दिया और इस बार भाभी जोर से चीखने जा रही थी लेकिन अपने ही हाथो को मुँह में डाला और काट लिया उनकी कलाई से खून निकल आया लेकिन वो अब कमर उछालने लगी थीं मुझे चिपक रही थीं..आह..ऊह्ह....संजू..मै आने वाली हूँ..और जोर से..और...और फ़िर उन्होंने दो टिन झटके मारे और मुझसे चिपक गई..उनका पूरा बदन कांप रहा था पसीना निकल आया था और मेरे लंड पर भी बहुत गरम गरम लगा..उनका पानी..उन्होंने मेरा चुम्मा लिया और कहा....आज मेरी चूत पहली बार झड़ी है जिंदगी में..अब तुम जैसे चाहो चोदो मुझे..मैंने कहा तुम्हारी चूत से खून भी निकला है..उन्होंने कहा ..सच्च...मैंने अपना लंड निकल कर दिखाया..जो की लाल हो रहा था..वो मुझसे और जोर से लिपटी और कहा आज ही मै सही मायने में औरत बनी हूँ.. भाभी ने जिस तरह से चूत को झटके दिए उससे मै तो घबरा गया था..मै उनसे कुछ पूछने जा रहा था उन्होंने मेरा मुह हाथ से बंद किया और मेरा लंड वापस चूत में डालने का इशारा किया इस बार मैंने लंड को एक झटके में अन्दर डाला..भाही ने फ़िर से कमर उछालना शुरू किया..शायद अभी पूरी झड़ी नही थी..मेरे लंड को चूत में कस लिया मै उनकी चूची चूसते हुए जोर से झटके मारने लगा“ भाभी ने कहा संजय..बहुत मज़ा आया रहा है..तुम सच में अच्छा चोदते हो..और तुम्हारा ये मजबूत लंड आः..अब मुझे भी मेरे लंड में से कुछ निकलेगा ऐसा महसूस हो रहा था..लंड और कड़क हो के फुल रहा था..


मैंने अब धक्को की स्पीड बड़ा दी मेरे धक्को से भाभी की चुचिया उछल रही थी..और ७-८ धक्को के बाद मैंने लंड को चूत की गहराई में पेल दिया और मेरे लंड से पिचकारियाँ निकलने लगी..एक निकली..दुसरी निकली..तीसरी..चौथी...और ऐसे क़रीब ७-८ मोटी धार की पिचकारी से भाभी की चूत पूरी भर गयी..मै उनके ऊपर ल???ट गया..

वो मेरे बालों में हाथ फेरने लगी..फ़िर हमने एक दुसरे के होठों को बहुत जोर से चूमा.. ,क़रीब ५ मिनिट के बाद भाभी ने कहा अब लंड को बाहर निकाल लो..मै उठा और लुंड जो अभी भी आधा खड़ा था..उसे बाहर निकाला..पक्क की एक आवाज़ हुयी..और भाभी की चूत से मेरा लावा और खून दोनों बह कर चादर पर गिरने लगे , मैंने देखा पहले जो चूत सिर्फ़ एक पतली दरार दिख रही थी अब वो अंग्रेज़ी के "ओ" जैसी दिखने लगी थी , मैंने सोचा भाभी को अब रमेश का लंड बहुत ही छोटा लगेगा.

भाभी ने उठाते हुए आह्ह की आवाज़ की..मैंने अहिस्ता पूंछा क्या हुआ..उन्होंने कहा चूत चरपरा रही है.. मैंने उनका हाथ पकड़ कर खड़ा किया .. उसके बाद हम दोनों बाथरूम में गए..भाभी और मै दोनों नंगे ही थे.. बाथरूम में भाभी चूत साफ करने बैठी तो मैंने देखा और भी बहुत सा माल उनकी चूत से निकला..उन्होंने कहा..कितना माल निकाला है..

रमेश का तो एक चम्मच ही गिरता है...ये तो क़रीब १० चम्मच है..फ़िर उन् होंने मेरे लंड को साबुन लगा के धोया..लंड फ़िर खड़ा होने लगा..मैंने कहा भाभी और एक बार...भाभी ने कहा..देखते है..फ़िर हम दोनों बेद पर आ कर लेट गए नंगे..और सो गए..

थोड़ी देर मैंने उनकी चूची मसली चुम्बन किया..उनकी चूत सह्लायी..भाभी भी मेरे लंड को सहला रही थी.. एक घंटे के बाद फिरसे मेरा लंड खड़ा हुआ अब मैंने भाभी को जगाने लगा.. वो जाग गई

थोड़ी देर चुम्बन के बाद मैंने भाभी से कहा..मेरा लंड चुसो न..उसने पहले मना किया फ़िर किस किया..मैंने भाभी को कहा चाटो..उन्होंने चाटना शुरू किया मैंने कहा सुपाडे को मुह में लो..,उसने कोशिश की..लेकिन पूरा नही ले पा रही थी....मैंने भाभी से कहा तुम अपनी चूत मेरे मुँह के ऊपर रखो..वो दोनों पैर फैला के मेरे मुह पर बैठ गई..मैंने उन्हें कहा मेरे लंड को झुक के मुँह में लो..उसने किया..और इस तरह चूत चटवाते हुए क़रीब १२-१३ मिनिट में वो उह.. आह्ह..और जोर से चाटो..जीभ मेरे अन्दर तक डाल दो..आह्ह..उनकी चूत से पानी निकल के मेरे गले और चहरे पर बहने लगा था..

मै उनकी कुंवारी गांड के छेद को ऊँगली से टटोल रहा था..और भाभी..आह्ह..मेरा होने वाला है..संजय..पूरी जीभ अन्दर डालो..और भाभी ने चूत मेरे मुँह पर दबा दी और झटके मारने लगी..इस बार उन्होंने अपने चूत के पानी से म???रा पूरा मुह भिगो दिया...और बदन ऐँठ कर शांत हो गई..

थोड़ा चूसने के बाद मैंने भाभी को चार पाया बनाया और पिछे से चूत में लंड डाला...इस बार क़रीब ३० मिनिट से ज्यादा मैंने भाभी को चोदा..वो बिस्तर पर पेट के बल लेट गई..लेकिन मै चोदता रहा..

इस दौरान भाभी और ३ बार झड़ी..फ़िर मै पीछे से ही भाभी की चूत में झड़ गया.. और उनके पीठ के ऊपर लेट गया और सामने हाथ डाल कर चूची दबाता रहा.

इस तरह आधा घंटा सोने के बाद हम लोग फ़िर नंगे ही बाथरूम में गए ..तब सुबह के चार बज रहे थे..बाथरूम में साफ होने के बाद वापस आके मैंने भाभी को नंगी ही पकड़ के .बहुत ...चूमा .. मम्मे दबाये..फ़िर वो अपने कपड़े पहन कर बेड रूम में रमेश के पास चली गई..

अब तो मै भाभी को बहुत चोदता हू हपते में तीन चार रात तो भाभी मेरे ही बिस्तर पर रात गुजारती है, और चुदाई का पूरा मज़ा लेती है.. शायद इस बार भाभी गर्भवती है कह रही थी मासिक नही हुआ अभी तक...ये बच्चा मेरा ही है..
 
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