hotaks444
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मैं हूँ हसीना गजब की पार्ट--1
मैं स्मृति हूँ. 26 साल की एक शादीशुदा महिला. गोरा रंग और
खूबसूरत नाक नक्श. कोई भी एक बार मुझे देख लेता तो बस मुझे
पाने के लिए तड़प उठता था. मेरी फिगर अभी 34(ल)-28-38. मेरा
बहुत सेक्सी
है. मेरी शादी पंकज से 6 साल पहले हुई थी. पंकज एक आयिल
रेफाइनरी मे काफ़ी
अच्च्ची पोज़िशन पर कम करता है. पंकज निहायत ही हॅंडसम और
काफ़ी अच्छे
स्वाभाव का आदमी है. वो मुझे बहुत ही प्यार करता है. मगर मेरी
किस्मेत मे सिर्फ़ एक आदमी का प्यार नही लिखा हुआ था. मैं आज दो
बच्चो की मा हूँ मगर उनमे से किसका बाप है मुझे नही मालूम.
खून तो शायद उन्ही की फॅमिली का है मगर उनके वीर्य से पैदा हुआ
या
नही इसमे संदेह है. आपको ज़्यादा बोर नही करके मैं आपको पूरी
कहानी
सुनाती हूँ. कैसे एक सीधी साधी लड़की जो अपनी पढ़ाई ख़तम
करके
किसी कंपनी मे
सेक्रेटरी के पद पर काम करने लगी थी, एक सेक्स मशीन मे तब्दील
हो गयी. शादी
से पहले मैने किसी से जिस्मानी ताल्लुक़ात नही रखे थे. मैने अपने
सेक्सी बदन को बड़ी मुश्किल से मर्दों की भूखी निगाहों से बचाकर
रखा था. एक अकेली लड़की का और वो भी इस पद पर अपना कोमार्य
सुरक्षित रख पाना अपने आप मे बड़ा ही मुश्किल का काम था. लेकिन
मैने इसे संभव कर दिखाया था. मैने अपना कौमार्या अपने पति को
ही समर्पित किया था. लेकिन एक बार मेरी योनि का बंद द्वार पति के
लिंग से खुल जाने के बाद तो पता नही कितने ही लिंग धड़ाधड़ घुसते
चले गये. मैं कई मर्दों के साथ हुमबईस्तर हो चुकी थी. कई
लोगों
ने तरह तरह से मुझसे संभोग किया……………
मैं एक खूबसूरत लड़की थी जो एक मीडियम क्लास फॅमिली को बिलॉंग
करती थी. पढ़ाई ख़तम होने के बाद मैने शॉर्ट हॅंड आंड ऑफीस
सेक्रेटरी का कोर्स किया. कंप्लीट होने पर मैने कई जगह अप्लाइ
किया. एक कंपनी सुदर्शन इंडस्ट्रीस से पी ए के लिए कॉल आया.
इंटरव्यू मे सेलेक्षन हो गया. मुझे उस कंपनी के मालिक मिस्टर. खुशी
राम की पीए के पोस्ट के लिए सेलेक्ट किया गया. मैं बहुत खुश हुई.
घर
की हालत थोड़ी नाज़ुक थी. मेरी तनख़्वाह ग्रहस्थी मे काफ़ी मदद करने
लगी.
मैं काम मन लगा कर करने लगी मगर खुशी राम जी की नियत अच्छि
नही
थी. खुशिरामजी देखने मे किसी भैंसे की तरह मोटे और काले थे.
उनके पूरे चेहरे
पर चेचक के निशान उनके व्य्क्तित्व को और बुरा बनाते थे. जब वो
बोलते तो उनके होंठों के दोनो किनारों से लार निकलती थी. मुझे
उसकी
शक्ल से ही नफ़रत थी. मगर
क्या करती मजबूरी मे उन्हे झेलना पड़ रहा था.
मैं ऑफीस मे सलवार कमीज़ पहन कर जाने लगी जो उसे नागवार
गुजरने
लगा. लंबी आस्तीनो वाले ढीले ढले कमीज़ से उन्हे मेरे बदन की
झलक नही मिलती थी और ना ही मेरे बदन के तीखे कटाव ढंग से
उभरते.
"यहाँ तुम्हे स्कर्ट और ब्लाउस पहनना होगा. ये यहाँ के पीए का ड्रेस
कोड
है." उन्हों ने मुझे दूसरे दिन ही कहा. मैने उन्हे कोई जवाब नही
दिया. उन्हों ने शाम तक एक टेलर को वही ऑफीस मे बुला कर मेरे
ड्रेस का ऑर्डर दे दिया. ब्लाउस का गला काफ़ी डीप रखवाया और स्कर्ट
बस इतनी लंबी की मेरी आधी जाँघ ही ढक पाए.
दो दिन मे मेरा ड्रेस तैयार हो कर आगेया. मुझे शुरू मे कुच्छ दिन
तक तो उस ड्रेस को पहन कर लोगों के सामने आने मे बहुत शर्म आती
थी. मगर धीरे धीरे मुझे लोगों की नज़रों को सहने की हिम्मत
बनानी पड़ी. ड्रेस तो इतनी छ्होटी थी कि अगर मैं किसी कारण झुकती
तो सामने वाले को मेरे ब्रा मे क़ैद बूब्स और पीछे वाले को अपनी
पॅंटी के नज़ारे के दर्शन करवाती.
मैं घर से सलवार कमीज़ मे आती और ऑफीस आकर अपना ड्रेस चेंज
करके अफीशियल स्कर्ट ब्लाउस पहन लेती. घर के लोग या मोहल्ले वाले
अगर मुझे उस ड्रेस मे देख लेते तो मेरा उसी मुहूर्त से घर से
निकलना ही बंद कर दिया जाता. लेकिन मेरे पेरेंट्स बॅक्वर्ड ख़यालो
के
भी नही थे. उन्हों ने कभी मुझसे मेरे पर्सनल लाइफ के बारे मे
कुच्छ भी पूछ ताछ नही की थी.
एक दिन खुशी राम ने अपने कॅबिन मे मुझे बुला कर इधर उधर की
काफ़ी
बातें
की और धीरे से मुझे अपनी ओर खींचा. मैं कुच्छ डिसबॅलेन्स हुई तो
उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया. उसने मेरे होंठों को अपने
होंठों से च्छू लिए. उसके मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी.
मैं एक दम घबरा गयी. समझ मे ही नही आया कि ऐसे हालत का
सामना
किस तरह से करूँ. उनके हाथ मेरे दोनो चूचियो को ब्लाउस के उपर
से मसल्ने के बाद स्कर्ट के नीचे पॅंटी के उपर फिरने लगे. मई
उनसे
अलग होने के लिए कसमसा रही थी. मगर उन्होने ने मुझे अपनी बाहों
मे बुरी तरह से जाकड़ रखा था. उनका एक हाथ एक झटके से मेरी
पॅंटी के अंदर घुस कर मेरी टाँगों के जोड़ तक पहुँच गया. मैने
अपने दोनो टाँगों को सख्ती से एक दूसरे के साथ भींच दिया लेकिन
तब तक तो उनकी उंगलियाँ मेरी योनि के द्वार तक पहुँच चुकी थी.
दोनो उंगलियाँ एक मेरी योनि मे घुसने के लिए कसमसा रही थी.
मैने पूरी ताक़त लगा कर एक धक्का देकर उनसे अपने को अलग किया.
और वहाँ से भागते हुए
निकल गयी. जाते जाते उनके शब्द मेरे कानो पर पड़े.
"तुम्हे इस कंपनी मे काम करने के लिए मेरी हर इच्च्छा का ध्यान
रखना पड़ेगा."
मैं अपनी डेस्क पर लगभग दौड़ते हुए पहुँची. मेरी साँसे तेज तेज
चल रही थी. मैने एक
ग्लास ठंडा पानी पिया. बेबसी से मेरी आँखों मे आँसू आ गये. नम
आँखों से मैने अपना रेसिग्नेशन लेटर टाइप किया और उसे वही पटक
कर ऑफीस से
बाहर निकल गयी. फिर दोबारा कभी उस रास्ते की ओर मैने पावं नही
रखे.
फिर से मैने कई जगह अप्लाइ किया. आख़िर एक जगह से इंटरव्यू कॉल
आया.
सेलेक्ट होने के बाद मुझे सीईओ से मिलने के लिए ले जाया गया. मुझे
उन्ही
की पीए के पोस्ट पर अपायंटमेंट मिली थी. मैं एक बार चोट खा चुकी
थी इस लिए दिल बड़ी तेज़ी से धड़क रहा था. मैने सोच रखा था
कि
अगर मैं कहीं को जॉब करूँगी तो अपनी इच्च्छा से. किसी मजबूरी या
किसी की रखैल बन कर नही. मैने सकुचते हुए उनके
कमरे मे नॉक किया और अंदर गयी.
मैं स्मृति हूँ. 26 साल की एक शादीशुदा महिला. गोरा रंग और
खूबसूरत नाक नक्श. कोई भी एक बार मुझे देख लेता तो बस मुझे
पाने के लिए तड़प उठता था. मेरी फिगर अभी 34(ल)-28-38. मेरा
बहुत सेक्सी
है. मेरी शादी पंकज से 6 साल पहले हुई थी. पंकज एक आयिल
रेफाइनरी मे काफ़ी
अच्च्ची पोज़िशन पर कम करता है. पंकज निहायत ही हॅंडसम और
काफ़ी अच्छे
स्वाभाव का आदमी है. वो मुझे बहुत ही प्यार करता है. मगर मेरी
किस्मेत मे सिर्फ़ एक आदमी का प्यार नही लिखा हुआ था. मैं आज दो
बच्चो की मा हूँ मगर उनमे से किसका बाप है मुझे नही मालूम.
खून तो शायद उन्ही की फॅमिली का है मगर उनके वीर्य से पैदा हुआ
या
नही इसमे संदेह है. आपको ज़्यादा बोर नही करके मैं आपको पूरी
कहानी
सुनाती हूँ. कैसे एक सीधी साधी लड़की जो अपनी पढ़ाई ख़तम
करके
किसी कंपनी मे
सेक्रेटरी के पद पर काम करने लगी थी, एक सेक्स मशीन मे तब्दील
हो गयी. शादी
से पहले मैने किसी से जिस्मानी ताल्लुक़ात नही रखे थे. मैने अपने
सेक्सी बदन को बड़ी मुश्किल से मर्दों की भूखी निगाहों से बचाकर
रखा था. एक अकेली लड़की का और वो भी इस पद पर अपना कोमार्य
सुरक्षित रख पाना अपने आप मे बड़ा ही मुश्किल का काम था. लेकिन
मैने इसे संभव कर दिखाया था. मैने अपना कौमार्या अपने पति को
ही समर्पित किया था. लेकिन एक बार मेरी योनि का बंद द्वार पति के
लिंग से खुल जाने के बाद तो पता नही कितने ही लिंग धड़ाधड़ घुसते
चले गये. मैं कई मर्दों के साथ हुमबईस्तर हो चुकी थी. कई
लोगों
ने तरह तरह से मुझसे संभोग किया……………
मैं एक खूबसूरत लड़की थी जो एक मीडियम क्लास फॅमिली को बिलॉंग
करती थी. पढ़ाई ख़तम होने के बाद मैने शॉर्ट हॅंड आंड ऑफीस
सेक्रेटरी का कोर्स किया. कंप्लीट होने पर मैने कई जगह अप्लाइ
किया. एक कंपनी सुदर्शन इंडस्ट्रीस से पी ए के लिए कॉल आया.
इंटरव्यू मे सेलेक्षन हो गया. मुझे उस कंपनी के मालिक मिस्टर. खुशी
राम की पीए के पोस्ट के लिए सेलेक्ट किया गया. मैं बहुत खुश हुई.
घर
की हालत थोड़ी नाज़ुक थी. मेरी तनख़्वाह ग्रहस्थी मे काफ़ी मदद करने
लगी.
मैं काम मन लगा कर करने लगी मगर खुशी राम जी की नियत अच्छि
नही
थी. खुशिरामजी देखने मे किसी भैंसे की तरह मोटे और काले थे.
उनके पूरे चेहरे
पर चेचक के निशान उनके व्य्क्तित्व को और बुरा बनाते थे. जब वो
बोलते तो उनके होंठों के दोनो किनारों से लार निकलती थी. मुझे
उसकी
शक्ल से ही नफ़रत थी. मगर
क्या करती मजबूरी मे उन्हे झेलना पड़ रहा था.
मैं ऑफीस मे सलवार कमीज़ पहन कर जाने लगी जो उसे नागवार
गुजरने
लगा. लंबी आस्तीनो वाले ढीले ढले कमीज़ से उन्हे मेरे बदन की
झलक नही मिलती थी और ना ही मेरे बदन के तीखे कटाव ढंग से
उभरते.
"यहाँ तुम्हे स्कर्ट और ब्लाउस पहनना होगा. ये यहाँ के पीए का ड्रेस
कोड
है." उन्हों ने मुझे दूसरे दिन ही कहा. मैने उन्हे कोई जवाब नही
दिया. उन्हों ने शाम तक एक टेलर को वही ऑफीस मे बुला कर मेरे
ड्रेस का ऑर्डर दे दिया. ब्लाउस का गला काफ़ी डीप रखवाया और स्कर्ट
बस इतनी लंबी की मेरी आधी जाँघ ही ढक पाए.
दो दिन मे मेरा ड्रेस तैयार हो कर आगेया. मुझे शुरू मे कुच्छ दिन
तक तो उस ड्रेस को पहन कर लोगों के सामने आने मे बहुत शर्म आती
थी. मगर धीरे धीरे मुझे लोगों की नज़रों को सहने की हिम्मत
बनानी पड़ी. ड्रेस तो इतनी छ्होटी थी कि अगर मैं किसी कारण झुकती
तो सामने वाले को मेरे ब्रा मे क़ैद बूब्स और पीछे वाले को अपनी
पॅंटी के नज़ारे के दर्शन करवाती.
मैं घर से सलवार कमीज़ मे आती और ऑफीस आकर अपना ड्रेस चेंज
करके अफीशियल स्कर्ट ब्लाउस पहन लेती. घर के लोग या मोहल्ले वाले
अगर मुझे उस ड्रेस मे देख लेते तो मेरा उसी मुहूर्त से घर से
निकलना ही बंद कर दिया जाता. लेकिन मेरे पेरेंट्स बॅक्वर्ड ख़यालो
के
भी नही थे. उन्हों ने कभी मुझसे मेरे पर्सनल लाइफ के बारे मे
कुच्छ भी पूछ ताछ नही की थी.
एक दिन खुशी राम ने अपने कॅबिन मे मुझे बुला कर इधर उधर की
काफ़ी
बातें
की और धीरे से मुझे अपनी ओर खींचा. मैं कुच्छ डिसबॅलेन्स हुई तो
उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया. उसने मेरे होंठों को अपने
होंठों से च्छू लिए. उसके मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी.
मैं एक दम घबरा गयी. समझ मे ही नही आया कि ऐसे हालत का
सामना
किस तरह से करूँ. उनके हाथ मेरे दोनो चूचियो को ब्लाउस के उपर
से मसल्ने के बाद स्कर्ट के नीचे पॅंटी के उपर फिरने लगे. मई
उनसे
अलग होने के लिए कसमसा रही थी. मगर उन्होने ने मुझे अपनी बाहों
मे बुरी तरह से जाकड़ रखा था. उनका एक हाथ एक झटके से मेरी
पॅंटी के अंदर घुस कर मेरी टाँगों के जोड़ तक पहुँच गया. मैने
अपने दोनो टाँगों को सख्ती से एक दूसरे के साथ भींच दिया लेकिन
तब तक तो उनकी उंगलियाँ मेरी योनि के द्वार तक पहुँच चुकी थी.
दोनो उंगलियाँ एक मेरी योनि मे घुसने के लिए कसमसा रही थी.
मैने पूरी ताक़त लगा कर एक धक्का देकर उनसे अपने को अलग किया.
और वहाँ से भागते हुए
निकल गयी. जाते जाते उनके शब्द मेरे कानो पर पड़े.
"तुम्हे इस कंपनी मे काम करने के लिए मेरी हर इच्च्छा का ध्यान
रखना पड़ेगा."
मैं अपनी डेस्क पर लगभग दौड़ते हुए पहुँची. मेरी साँसे तेज तेज
चल रही थी. मैने एक
ग्लास ठंडा पानी पिया. बेबसी से मेरी आँखों मे आँसू आ गये. नम
आँखों से मैने अपना रेसिग्नेशन लेटर टाइप किया और उसे वही पटक
कर ऑफीस से
बाहर निकल गयी. फिर दोबारा कभी उस रास्ते की ओर मैने पावं नही
रखे.
फिर से मैने कई जगह अप्लाइ किया. आख़िर एक जगह से इंटरव्यू कॉल
आया.
सेलेक्ट होने के बाद मुझे सीईओ से मिलने के लिए ले जाया गया. मुझे
उन्ही
की पीए के पोस्ट पर अपायंटमेंट मिली थी. मैं एक बार चोट खा चुकी
थी इस लिए दिल बड़ी तेज़ी से धड़क रहा था. मैने सोच रखा था
कि
अगर मैं कहीं को जॉब करूँगी तो अपनी इच्च्छा से. किसी मजबूरी या
किसी की रखैल बन कर नही. मैने सकुचते हुए उनके
कमरे मे नॉक किया और अंदर गयी.