hotaks444
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रंजना भी उसी कश्ती की सवार थी जिस पे रानो और शीला थीं।
उम्र हो गई थी लेकिन विकलांग और खूबसूरत न होने की वजह से उसका भी रिश्ता नहीं हो पा रहा था और वह भी उन दोनों बहनों की ही तरह अपनी ही आग में झुलस रही थी।
रानो की ही तरह बबलू भी अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए मोहल्ले की एक कोचिंग में पढ़ाने जाता था।
दो बजे कॉलेज से आकर चार बजे जाता था और रात को आठ बजे आता था।
उनकी सबसे छोटी बहन आकृति ऐसा कोई कमाई वाला काम नहीं करती थी, बल्कि वह तो कॉलेज से आकर कोचिंग पढ़ने जाती थी और बारी बारी से कोई न कोई घर में रहता था।
घर में मानसिक रूप से अपंग चाचा एक ऐसी ज़िम्मेदारी था जो उन्हें उसके मरने तक उठानी थी।
वह उनके पिता से काफी छोटा था और शीला से आठ साल बड़ा था। दिमाग सिर्फ खाने, उलटे सीधे ढंग से कपड़े पहन लेने, हग-मूत लेने तक ही सीमित था।
दिमाग के साथ ही उसकी रीढ़ की हड्डी में भी ऐसी समस्या थी कि बहुत ज्यादा देर न खड़ा रह सकता था न चल फिर सकता था। बस कमरे तक ही सीमित रहता था।
एक तरह से जिन्दा लाश ही था, जिसके लिए वह लोग मनाते थे कि मर ही जाए तो उसे मुक्ति मिले और उन्हें भी…
लेकिन किसी के चाहने से कोई मरता है क्या।
सेक्स असल में शरीर में पैदा होने वाली अतिरिक्त ऊर्जा है जिसे वक़्त-वक़्त पर निकालना ज़रूरी होता है, न निकालें तो यह आपको ही खाने लगती है।
इस यौनकुंठा के शिकार सिर्फ वही दोनों बहनें नहीं थीं उस घर में, बल्कि वह चाचा भी था जिसका दिमाग भले कुछ सोचने समझने लायक न हो लेकिन उसके पास एक यौनांग था और उसके शरीर में भी वह ऊर्जा वैसे ही पैदा होती थी जैसे किसी सामान्य इंसान के शरीर में।
बल्कि शायद दिमाग की लिमिटेशन के कारण किसी सामान्य इंसान से ज्यादा ही पैदा होती थी।
कभी किसी वक़्त में प्राकृतिक रूप से या किसी इत्तेफ़ाक़ से उसे हाथ के घर्षण के वीर्यपात करने के तरीके का पता चल गया होगा और अब वह रोज़ वही करता था।
उसे न समझ थी न ज्ञान… कई बार तो वह भतीजियों की मौजूदगी में ही हस्तमैथुन करने लगता था और उन्हीं लोगों को हटना पड़ता था।
हमेशा से ऐसे हर हस्तमैथुन के बाद उसने बाबा को ही उसकी सफाई धुलाई करते देखा था और जब से बाबा गुज़रे थे, यह ज़िम्मेदारी उस पर आन पड़ी थी।
लड़की होकर यह सब करना उसे वितृष्णापूर्ण और अजीब लगता था लेकिन विकल्पहीनता के कारण करना उसे ही था। वही घर की बड़ी थी और किसी बड़े की सारी ज़िम्मेदारियां उसे ही निभानी थी।
न उनके घर में कोई स्मार्टफोन था, न कंप्यूटर, लैपटॉप और न ही ऐसी किसी जगह से उसका कोई लेना देना था जो वह कभी पोर्न देखती या सेक्स ज्ञान हासिल करती और न ही उसकी कोई ऐसी सखी सहेली थी जो उसे यह ज्ञान देती।
सेक्स की ज़रूरत भर जानकारी तो कुदरत खुद आपको दे देती है लेकिन व्यावहारिक ज्ञान तो आपको खुद दुनिया से हासिल करना होता है जिसमें वह नाकाम थी।
उसे पहला और अब तक का अकेला परिपक्व लिंग देखने का मौका तो काफी पहले ही मिल गया था, जब एक दिन चाचा ने उसकी मौजूदगी में ही उसे निकाल कर हाथ से रगड़ना शुरू कर दिया था।
तब वह घबरा कर भागी थी।
लेकिन अब भाग नहीं सकती थी।
अब तो उसे जब तब देखना पड़ता था और जब भी चाचा हस्तमैथुन करता था तो घर पे वह होती थी तो वह साफ़ करती थी या रानो हुई तो वह साफ करती थी।
वैसे ज्यादातर चाचा को रात में सोने से पहले ही हस्तमैथुन की इच्छा होती थी और इस वजह से ये ज़िम्मेदारी दस में से नौ बार उसे ही उठानी पड़ती थी।
चाचा को जब भी खाने पीने या किसी भी किस्म की हाजत होती थी तो वह बड़ी होने के नाते उसे ही बुलाता था। उसका नाम भी ठीक से नहीं ले पाता था तो ‘ईया’ कहता था।
जब वह हस्तमैथुन करके अपने कपडे ख़राब कर चुकता था तो ‘ईया’ की पुकार लगाता था और उसे पहुंच कर चाचे को साफ़ करना होता था।
पहले उसने कभी चाचा का लिंग देखा था तो इतना ध्यान नहीं दिया था पर अब देती थी। उसका सिकुड़ा रूप, उसका उत्तेजित रूप… सब वह बड़े गौर से देखती थी।
और ये देखना उसके अवचेतन में इस कदर घुस गया था कि सोने से पहले उसके मानस पटल पर नाचा करता था और सो जाती थी तो सपने में भी पीछा नहीं छोड़ता था।
उसे साफ़ करते वक़्त जब छूती थी, पकड़ती थी तो उसकी धड़कनें तेज़ हो जाया करती थीं, सांसों में बेतरतीबी आ जाती थी और एक अजीब से सनसनाहट उसके पूरे शरीर में दौड़ जाती थी।
उसने कोई और परिपक्व लिंग नहीं देखा था और जो देख रही थी उसकी नज़र में शायद सबके जैसा ही था।
वह जब मुरझाया हुआ होता था तब भी सात इंच तक होता था और जब उत्तेजित होता था तो दस इंच से भी कुछ ज्यादा ही होता था और मोटाई ढाई इंच तक हो जाती थी।
उसकी रंगत ऊपर शिश्नमुंड की तरफ ढाई-तीन इंच तक साफ़ थी और नीचे जड़ तक गेहुंआ था, जिसपे मोटी-मोटी नसें चमका करती थीं।
तब उसे भारतीय पुरुषों के आकार का कोई अंदाज़ा नहीं था और वो इकलौता देखा लिंग उसे सामान्य लिंग लगता था, उसे लगता था सबके ऐसे ही होते होंगे।
सेक्स के बारे में उसे बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी। बस इतना पता था कि यह भूख शरीर में खुद से पैदा होती है और इस पर कोई नियंत्रण नहीं किया जा सकता।
एक तरह की एनर्जी होती है जिसे शरीर से निकालना ज़रूरी होता है और इसे निकालने के तीन तरीके होते हैं। पहला सम्भोग, दूसरा हस्तमैथुन और तीसरा स्वप्नदोष।
पहले दो तरीकों से आपको खुद ये ऊर्जा बाहर निकालनी है और खुद से नहीं निकाली तो स्वप्नदोष के ज़रिये आपका शरीर खुद ये ऊर्जा बाहर निकाल देगा।
उसके लिये तीसरा तरीका ही जाना पहचाना था। सम्भोग का कोई जुगाड़ नहीं था, हस्तमैथुन के तरीकों से अनजान भी थी और डरती भी थी। बस स्वप्नदोष के सहारे ही जो सुख मिल पता था, उसे ही जानती थी।
इन सपनों ने उसे अट्ठारह से अट्ठाइस तक बहुत परेशान किया था जब अक्सर बिना चेहरे वाले लोग (जिनके चेहरे याद नहीं रहते थे) उसके साथ सहवास करते थे और वह स्खलित हो जाती थी।
चूंकि उसने एक साइज़ का ही लिंग देखा था जो उसके अवचेतन में सुरक्षित हो गया था और उसी लिंग को वो योनिभेदन करते देखती थी… समझना मुश्किल था कि कैसे इतनी छोटी जगह में इतनी मोटी और बड़ी चीज़ घुस पाती थी।
उम्र हो गई थी लेकिन विकलांग और खूबसूरत न होने की वजह से उसका भी रिश्ता नहीं हो पा रहा था और वह भी उन दोनों बहनों की ही तरह अपनी ही आग में झुलस रही थी।
रानो की ही तरह बबलू भी अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए मोहल्ले की एक कोचिंग में पढ़ाने जाता था।
दो बजे कॉलेज से आकर चार बजे जाता था और रात को आठ बजे आता था।
उनकी सबसे छोटी बहन आकृति ऐसा कोई कमाई वाला काम नहीं करती थी, बल्कि वह तो कॉलेज से आकर कोचिंग पढ़ने जाती थी और बारी बारी से कोई न कोई घर में रहता था।
घर में मानसिक रूप से अपंग चाचा एक ऐसी ज़िम्मेदारी था जो उन्हें उसके मरने तक उठानी थी।
वह उनके पिता से काफी छोटा था और शीला से आठ साल बड़ा था। दिमाग सिर्फ खाने, उलटे सीधे ढंग से कपड़े पहन लेने, हग-मूत लेने तक ही सीमित था।
दिमाग के साथ ही उसकी रीढ़ की हड्डी में भी ऐसी समस्या थी कि बहुत ज्यादा देर न खड़ा रह सकता था न चल फिर सकता था। बस कमरे तक ही सीमित रहता था।
एक तरह से जिन्दा लाश ही था, जिसके लिए वह लोग मनाते थे कि मर ही जाए तो उसे मुक्ति मिले और उन्हें भी…
लेकिन किसी के चाहने से कोई मरता है क्या।
सेक्स असल में शरीर में पैदा होने वाली अतिरिक्त ऊर्जा है जिसे वक़्त-वक़्त पर निकालना ज़रूरी होता है, न निकालें तो यह आपको ही खाने लगती है।
इस यौनकुंठा के शिकार सिर्फ वही दोनों बहनें नहीं थीं उस घर में, बल्कि वह चाचा भी था जिसका दिमाग भले कुछ सोचने समझने लायक न हो लेकिन उसके पास एक यौनांग था और उसके शरीर में भी वह ऊर्जा वैसे ही पैदा होती थी जैसे किसी सामान्य इंसान के शरीर में।
बल्कि शायद दिमाग की लिमिटेशन के कारण किसी सामान्य इंसान से ज्यादा ही पैदा होती थी।
कभी किसी वक़्त में प्राकृतिक रूप से या किसी इत्तेफ़ाक़ से उसे हाथ के घर्षण के वीर्यपात करने के तरीके का पता चल गया होगा और अब वह रोज़ वही करता था।
उसे न समझ थी न ज्ञान… कई बार तो वह भतीजियों की मौजूदगी में ही हस्तमैथुन करने लगता था और उन्हीं लोगों को हटना पड़ता था।
हमेशा से ऐसे हर हस्तमैथुन के बाद उसने बाबा को ही उसकी सफाई धुलाई करते देखा था और जब से बाबा गुज़रे थे, यह ज़िम्मेदारी उस पर आन पड़ी थी।
लड़की होकर यह सब करना उसे वितृष्णापूर्ण और अजीब लगता था लेकिन विकल्पहीनता के कारण करना उसे ही था। वही घर की बड़ी थी और किसी बड़े की सारी ज़िम्मेदारियां उसे ही निभानी थी।
न उनके घर में कोई स्मार्टफोन था, न कंप्यूटर, लैपटॉप और न ही ऐसी किसी जगह से उसका कोई लेना देना था जो वह कभी पोर्न देखती या सेक्स ज्ञान हासिल करती और न ही उसकी कोई ऐसी सखी सहेली थी जो उसे यह ज्ञान देती।
सेक्स की ज़रूरत भर जानकारी तो कुदरत खुद आपको दे देती है लेकिन व्यावहारिक ज्ञान तो आपको खुद दुनिया से हासिल करना होता है जिसमें वह नाकाम थी।
उसे पहला और अब तक का अकेला परिपक्व लिंग देखने का मौका तो काफी पहले ही मिल गया था, जब एक दिन चाचा ने उसकी मौजूदगी में ही उसे निकाल कर हाथ से रगड़ना शुरू कर दिया था।
तब वह घबरा कर भागी थी।
लेकिन अब भाग नहीं सकती थी।
अब तो उसे जब तब देखना पड़ता था और जब भी चाचा हस्तमैथुन करता था तो घर पे वह होती थी तो वह साफ़ करती थी या रानो हुई तो वह साफ करती थी।
वैसे ज्यादातर चाचा को रात में सोने से पहले ही हस्तमैथुन की इच्छा होती थी और इस वजह से ये ज़िम्मेदारी दस में से नौ बार उसे ही उठानी पड़ती थी।
चाचा को जब भी खाने पीने या किसी भी किस्म की हाजत होती थी तो वह बड़ी होने के नाते उसे ही बुलाता था। उसका नाम भी ठीक से नहीं ले पाता था तो ‘ईया’ कहता था।
जब वह हस्तमैथुन करके अपने कपडे ख़राब कर चुकता था तो ‘ईया’ की पुकार लगाता था और उसे पहुंच कर चाचे को साफ़ करना होता था।
पहले उसने कभी चाचा का लिंग देखा था तो इतना ध्यान नहीं दिया था पर अब देती थी। उसका सिकुड़ा रूप, उसका उत्तेजित रूप… सब वह बड़े गौर से देखती थी।
और ये देखना उसके अवचेतन में इस कदर घुस गया था कि सोने से पहले उसके मानस पटल पर नाचा करता था और सो जाती थी तो सपने में भी पीछा नहीं छोड़ता था।
उसे साफ़ करते वक़्त जब छूती थी, पकड़ती थी तो उसकी धड़कनें तेज़ हो जाया करती थीं, सांसों में बेतरतीबी आ जाती थी और एक अजीब से सनसनाहट उसके पूरे शरीर में दौड़ जाती थी।
उसने कोई और परिपक्व लिंग नहीं देखा था और जो देख रही थी उसकी नज़र में शायद सबके जैसा ही था।
वह जब मुरझाया हुआ होता था तब भी सात इंच तक होता था और जब उत्तेजित होता था तो दस इंच से भी कुछ ज्यादा ही होता था और मोटाई ढाई इंच तक हो जाती थी।
उसकी रंगत ऊपर शिश्नमुंड की तरफ ढाई-तीन इंच तक साफ़ थी और नीचे जड़ तक गेहुंआ था, जिसपे मोटी-मोटी नसें चमका करती थीं।
तब उसे भारतीय पुरुषों के आकार का कोई अंदाज़ा नहीं था और वो इकलौता देखा लिंग उसे सामान्य लिंग लगता था, उसे लगता था सबके ऐसे ही होते होंगे।
सेक्स के बारे में उसे बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी। बस इतना पता था कि यह भूख शरीर में खुद से पैदा होती है और इस पर कोई नियंत्रण नहीं किया जा सकता।
एक तरह की एनर्जी होती है जिसे शरीर से निकालना ज़रूरी होता है और इसे निकालने के तीन तरीके होते हैं। पहला सम्भोग, दूसरा हस्तमैथुन और तीसरा स्वप्नदोष।
पहले दो तरीकों से आपको खुद ये ऊर्जा बाहर निकालनी है और खुद से नहीं निकाली तो स्वप्नदोष के ज़रिये आपका शरीर खुद ये ऊर्जा बाहर निकाल देगा।
उसके लिये तीसरा तरीका ही जाना पहचाना था। सम्भोग का कोई जुगाड़ नहीं था, हस्तमैथुन के तरीकों से अनजान भी थी और डरती भी थी। बस स्वप्नदोष के सहारे ही जो सुख मिल पता था, उसे ही जानती थी।
इन सपनों ने उसे अट्ठारह से अट्ठाइस तक बहुत परेशान किया था जब अक्सर बिना चेहरे वाले लोग (जिनके चेहरे याद नहीं रहते थे) उसके साथ सहवास करते थे और वह स्खलित हो जाती थी।
चूंकि उसने एक साइज़ का ही लिंग देखा था जो उसके अवचेतन में सुरक्षित हो गया था और उसी लिंग को वो योनिभेदन करते देखती थी… समझना मुश्किल था कि कैसे इतनी छोटी जगह में इतनी मोटी और बड़ी चीज़ घुस पाती थी।