hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
जगदीश राय के मन में पिछले दिनों की सीन्स फ़्लैश बैक की तरह दौड गयी।
जगदीश राय (शर्माते हुए): अरे नहीं नहीं…कुछ भी बोलती रहती है… निशा, गुप्ताजी के लिए चाय तो बनाओ…
गुप्ताजी: अरे नहीं नहीं… मैं तो मॉर्निंग वाक के लिए निकला था…चाय पीकर निकला हूँ… फिर आऊंगा कभी …बिटिया के हाथ से खाना भी खाके जाऊंगा है है हा…।
और जाते जाते भी मैक्सी के ऊपर से निशा की फुटबॉल जैसे बड़े मम्मो को घूरते हुए चला गया।
निशा(मन में): ठरकी बुड्ढा… तू आ तुझे खाना नहीं…ज़हर देती हूँ…
फिर निशा रोज़ के काम काज पर लग गयी। उसने 11।30 बजे तक जगदीश राय से कुछ भी नहीं बोली…
पर जगदीश राय पेपर की आड़ लिए निशा को देखे जा रहा था। मैक्सी के ऊपर से निशा का हर अंग उभर कर आ रहा था।
और पेपर के अंदर से अपने लंड को सहला भी रहा था।
थोड़ी देर बाद निशा अपने पापा के सामने आकर खड़ी हो गयी और फैन से हवा खाने लगी।
निशा: ओह पापा… कितनी गर्मी है…हमे ए सी लगा देनी चाहिये…
जगदीश राय (ड्रामा स्टाइल में, पेपर हटाते हुए): हाँ… लग सकती है…
निशा पसीने में लथपथ खड़ी थी… मैक्सी पूरी तरह उसके मम्मो , पेट और जांघ से चिपक गई थी।
जगदीश राय निशा को घूरे जा रहा था। निशा इस बात से अन्जान नहीं थी। उसने पुरी कॉन्फिडेंस से अपने बदन के अंगो को पापा को दिखा रही थी।
कुछ देर बाद वह अपने कमरे में चली गयी। जगदीश राय ने राहत की सास ली। उसका लंड खड़ा हुआ था।
जगदीश राय फिर अपने आप को पेपर के पीछे छुपा दिया।
तभी निशा नीचे आ गयी।
निशा: उफ़… अब कुछ राहत है…गर्मी ने तो मार दिया…
जगदीश राय ने जब देखा तो उसके सोने-जा रहा लंड फिर फड़फड़ना शुरू कर दिया।
जगदीश राय (शर्माते हुए): अरे नहीं नहीं…कुछ भी बोलती रहती है… निशा, गुप्ताजी के लिए चाय तो बनाओ…
गुप्ताजी: अरे नहीं नहीं… मैं तो मॉर्निंग वाक के लिए निकला था…चाय पीकर निकला हूँ… फिर आऊंगा कभी …बिटिया के हाथ से खाना भी खाके जाऊंगा है है हा…।
और जाते जाते भी मैक्सी के ऊपर से निशा की फुटबॉल जैसे बड़े मम्मो को घूरते हुए चला गया।
निशा(मन में): ठरकी बुड्ढा… तू आ तुझे खाना नहीं…ज़हर देती हूँ…
फिर निशा रोज़ के काम काज पर लग गयी। उसने 11।30 बजे तक जगदीश राय से कुछ भी नहीं बोली…
पर जगदीश राय पेपर की आड़ लिए निशा को देखे जा रहा था। मैक्सी के ऊपर से निशा का हर अंग उभर कर आ रहा था।
और पेपर के अंदर से अपने लंड को सहला भी रहा था।
थोड़ी देर बाद निशा अपने पापा के सामने आकर खड़ी हो गयी और फैन से हवा खाने लगी।
निशा: ओह पापा… कितनी गर्मी है…हमे ए सी लगा देनी चाहिये…
जगदीश राय (ड्रामा स्टाइल में, पेपर हटाते हुए): हाँ… लग सकती है…
निशा पसीने में लथपथ खड़ी थी… मैक्सी पूरी तरह उसके मम्मो , पेट और जांघ से चिपक गई थी।
जगदीश राय निशा को घूरे जा रहा था। निशा इस बात से अन्जान नहीं थी। उसने पुरी कॉन्फिडेंस से अपने बदन के अंगो को पापा को दिखा रही थी।
कुछ देर बाद वह अपने कमरे में चली गयी। जगदीश राय ने राहत की सास ली। उसका लंड खड़ा हुआ था।
जगदीश राय फिर अपने आप को पेपर के पीछे छुपा दिया।
तभी निशा नीचे आ गयी।
निशा: उफ़… अब कुछ राहत है…गर्मी ने तो मार दिया…
जगदीश राय ने जब देखा तो उसके सोने-जा रहा लंड फिर फड़फड़ना शुरू कर दिया।