Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 37 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

"वो डार्लिंग अब क्या कहुँ तुमसे" मुकेश ने अपना कन्धा झुकाते हुए अपनी बेटी के साथ होने वाला सीन अपनी पत्नी को बता दिया।
"च तो यह बात है मैं भी कहुँ आज मेरे पतिदेव को क्या हो गया है" रेखा ने अपने पति की बात सुनकर उसे टोकते हुए कहा।
"डारलिंग मगर वह सब इतफ़ाक़ से हुआ था" मुकेश ने अपनी सफायी देते हुए कहा ।

"हाँ हुआ तो इतफ़ाक़ से ही था मगर आपका दिल तो इसे हकीकत में भी करना चाहता है" रेखा ने मुकेश की आँखों में देखते हुए कहा।
"नही डार्लिंग मेरा ऐसा कोई ख़याल नही" मुकेश ने अपनी पत्नी के सामने शर्म से अपना कन्धा झुकाते हुए कहा।
"झूठ मत कहो अगर तुम कंचन का मजा लेना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं क्योंकी मैं भी तो अपने बेटे से मजा ले चुकी हुँ" रेखा ने मुकेश के बिलकुल क़रीब जाते हुए कहा ।

डारलिंग सच कहुँ तो मेरा दिल तो बुहत करता है मगर डर लगता है" मुकेश ने अखिरकार अपनी पत्नी के सामने खुलते हुए कहा।
"ह्म्मम्म डर किस बात का। तुम अपनी बेटी के साथ फुल मजा ले सकते हो क्योंकी वह नरेश और विजय दोनों से चुदवा चुकी है। इसीलिए अगर वह नखरा करे तो तुम उसे कह देना की तुम्हें सब कुछ पता है" रेखा ने अपने पति को आईडिया देते हुए कहा ।

"क्या कहा डार्लिंग तुमने मेरे दिल की बात छीन ली" मुकेश ने अपनी पत्नी की बात सुनकर उसके होंठो पे एक किस करते हुए कहा।
"मैं चाय बनाने जा रही हूँ और तुम्हारे पास तुम्हारी बेटी कंचन ही चाय लेकर आएगी" रेखा ने मुस्कराते हुए कहा और अपने पति से दूर होते हुए वहां से बाहर चलि गयी ।


रेखा के जाते ही मुकेश बाथरूम में घुस गया और फ्रेश होने के बाद सोफ़े पर बैठकर अपनी बेटी का इंतज़ार करने लगा । मुकेश का लंड आज उसकी पेण्ट में ही बुहत ज़ोर से उछल रहा था क्योंकी उसे अपनी बेटी का जवान और ख़ूबसूरत जिस्म से खेलने की इजाज़त मिल गयी थी ।

रेखा बाहर निकलने के बाद सीधा अपनी बेटी कंचन के कमरे में जाने लगी । रेखा जैसे ही कंचन के कमरे के बाहर पुहंची दरवाज़ा अंदर से बंद था रेखा ने दरवाज़े को नॉक किया कुछ ही देर में कंचन ने आँखें मलते हुए दरवाज़ा खोला।
"बेटी फ्रेश होकर किचन में आ जाओ। मैं चाए बना रही हूँ और हाँ सब को उठा देना" रेखा ने कंचन से कहा और खुद किचन में जाकर चाए बनाने लगी ।
 
कंचन अपनी माँ के जाते ही बाथरूम में घुस गयी और फ्रेश होने के बाद शीला को उठाते हुए खुद अपने कमरे से निकल गयी । कंचन अपने कमरे से निकलकर अपने भाइयों के कमरे का दरवाज़ा खटखटाने लगी, कुछ ही देर में नरेश ने आकर दरवाज़ा खोला ।

"दीदी आप अंदर आओ ना" नरेश ने कंचन को अपने सामने देखकर खुश होते हुए कहा। नरेश की हालत से पता चल रहा था की वह अभी नींद से उठा है,
"भइया आप विजय को भी उठा दिजिये चाय तैयार है" कंचन ने नरेश से कहा और वहां से जाने के लिए मुडी ही थी के नरेश ने उसे पीछे से पकडा और खींचकर कमरे में ले गया ।

"वाह दीदी क्या ख़ुश्बू आ रही है आपके रेशमी बालों से एक किस तो दे दो" नरेश ने अंदर होते ही कंचन को सीधा करते हुए कहा।
"भइया आप भी न कुछ तो शर्म करो" कंचन ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
"दीदी क्या करुं इसमें मेरा क्या क़सूर है आप ही तो अपने बालों को खोलकर ऐसे तैयार होकर सामने आई हैं की मैं अपना कण्ट्रोल खो बैठा" नरेश ने कंचन के खुले हुए बालों में अपना हाथ ड़ालते हुए कहा ।

"भइया मम्मी मेरा किचन में इंतज़ार कर रही है" कंचन ने नरेश से अलग होते हुए कहा।
"तो करने दो मैं बस एक किस की तो बात कर रहा हुँ" नरेश ने कंचन की आँखों में देखते हुए कहा।
"ठीक है भैया सिर्फ एक किस्स" कंचन ने शर्म से अपना कन्धा झुकाते हुए कहा ।

"हाँ दीदी सिर्फ एक किस्स" नरेश ने खुश होते हुए कहा । कंचन नरेश की बात सुनकर उसके क़रीब आ गयी और अपने गुलाबी होंठो को नरेश के गाल पर रखकर एक किस दे दिया।
"दीदी यह क्या इसे भी कोई किस कहता है । मैंने वहां नहीं यहाँ पर किस करने को कहा था" नरेश ने कंचन की तरफ देखकर अपने होंठो पर अपने हाथ को रखते हुए कहा ।

"भइया आप भी ना" कंचन ने नरेश की बात सुनकर गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा और फिर से नरेश के क़रीब जाते हुए अपने होंठो को नरेश के होंठो पर रख दिया, कंचन के होंठ जैसे ही नरेश के होंठो पर पडे उसने अपने हाथों से कंचन के सर को पकड लिया और कंचन के दोनों नाराम गुलाबी होंठो को बुरी तरह चूसने लगा ।

कंचन इस अचानक हमले के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी इसीलिए वह नरेश से छूटने के लिए झटपटाने लगी मगर वह नरेश को अपने आप से दूर न कर सकी । नरेश कुछ देर तक लगातार कंचन के दोनों होंठो को चूसने के बाद उससे अलग हो गया, नरेश के अलग होते ही कंचन बुहत ज़ोर से साँसें लेते हुए बुरी तरह हाँफने लगी ।
 
"क्या हुआ दीदी मजा आया" नरेश ने कंचन को हाँफता हुआ देखकर मुस्कराते हुए कहा।
"बदमाश तुम्हें तो मैं देख लूंग़ी" कंचन ने गुस्से से नरेश की तरफ देखा और अपने कपड़ों को ठीक करते हुए बाहर निकल गयी ।

कंचन ने बाहर आकर पहले कोमल और पिंकी को उठाया और फिर अपनी माँ के पास किचन में चली गई।
"आ गयी बेटी क्या बात है आज तो बुहत ज्यादा सूंदर लग रही हो" रेखा ने कंचन को देखकर उसकी तारीफ करते हुए कहा । कंचन अपनी माँ के मुँह से अपनी तारीफ सुनकर शरमा गयी और अपना कन्धा नीचे झुका लिया ।

"बेटी जाओ पहले तुम अपने पिता को चाय देकर आओ" रेखा ने चाय का एक कप और कुछ बिसकुटस ट्रे में रखकर कंचन को देते हुए कहा । कंचन ट्रे को उठाकर अपने पिता के कमरे में जाने लगी और अपने पिता के कमरे के पास पुहंच कर दरवाज़े को नॉक करने लगी।
"दरवाज़ा खुला है आ जाओ" मुकेश ने दरवाज़े के खटकाने से वहीँ पर बैठे हुए कहा ।

कंचन अपने पिता की आवज़ सुनकर अंदर दाखिल हो गई और अपने पिता के पास जाकर चाय की ट्रे को टेबल पर रखने लगी । मुकेश ने जैसे ही अपनी बेटी को देखा उसके होश ही उड़ गए क्योंकी कंचन के बाल खुले हुए थे और वह ताज़ा फ्रेश होकर आई थी इसीलिए वह बुहत ज्यादा सूंदर लग रही थी। कंचन जैसे ही ट्रे को नीचे रखने के लिए झुकी उसके गले से पल्लु खिसककर नीचे गिर गया और उसकी दो जवान गोल गोल गोरी चुचियां आधी नंगी होकर मुकेश के आँखों के सामने आ गयी ।

मुकेश का लंड अपनी बेटी की जवान चुचियों को देखकर उसकी पेण्ट में बुहत ज़ोर के झटके खाने लगा।
"पिताजी चाय" कंचन ने ट्रे के रखने के बाद वैसे झुके हुए ही उनकी तरफ देखते हुए कहा । कंचन ने जैसे ही देखा की उसका पिता उसकी चुचियों को घूर रहा है वह जल्दी से सीधा हो गई और अपने पल्लु को वापस अपनी चुचियों पर रख दिया ।

"बेटी आज तो तुम बुहत सूंदर लग रही हो" मुकेश ने चाय का कप उठाकर अपनी बेटी की तरफ देखते हुए कहा।
"पिताजी मम्मी मेरा इंतज़ार कर रही है क्या मैं जाऊँ?" कंचन ने अपने पिता की बात सुनकर शर्म से अपना कन्धा झुकाते हुए कहा ।

"अरे बेटी छोड़ो मम्मी को आओ मेरे पास आकर बैठो। आज कितने दिनों के बाद तो तुमसे बात करने का मौका मिला है" मुकेश ने चाय के कप में से एक चुसकी लेते हुए कहा । अपने पिता की बात सुनकर कंचन की साँसें बुहत ज़ोर से चलने लगी और वह धीरे धीरे चलते हुए अपने पिता के साथ सोफ़े पर आकर बैठ गयी ।
 
"अरे बेटी तुम इतना डरी हुयी क्यों हो इधर आओ मेरे पास" मुकेश ने कंचन के बैठने के बाद चाय का कप ख़तम किया और उसके बाद कंचन को कलाई से पकडकर अपने पास करते हुए कहा । कंचन अब सोफ़े पर अपने पिता से बिलकुल सट कर बैठी थी ।

"बेटी उस दिन वाली बात किसी को बतायी तो नही" मुकेश ने कंचन की आँखों में देखते हुए कहा।
"नही" कंचन ने सिर्फ इतना कहा वह अपने पिता की बात सुनकर शर्म से पानी पानी हो रही थी।
"बुहत अच्छा क्या तुम्हें पता है जब तुम छोटी थी तो मैं तुम्हें अपनी गोद में बिठाकर खिलाता था। आओ आज मुझे फिरसे अपनी बेटी को अपनी गोद में बिठाना है" मुकेश ने कंचन के बाज़ू को पकडते हुए कहा ।

"नही पिताजी" कंचन ने अपने पिता की बात सुनकर इन्कार करते हुए कहा।
"अरे क्यों बेटी तुम बड़ी हो गई तो क्या हुआ मेरे लिए तो तुम वही छोटी लाड़ली बेटी हो" मुकेश ने कंचन की बात सुनकर मुँह बनाते हुए कहा । अचानक दरवाज़ा खुला और रेखा ट्रे लेकर कमरे में दाखिल हुयी ।

कंचन अपनी माँ को देखकर अपने पिता से थोडा दूर होकर बैठ गयी।
"अरे बेटी तुमने तो आने में देर कर दी। इसीलिए मैं तुम्हारी चाय यहीं लेकर आ गई" रेखा ने ट्रे को टेबल पर रखते हुए कहा।
"डालिंग देखो तुम्हारी बेटी अपने पिता से डर रही है। तुम्हें पता है मैंने बचपन से इसे अपनी गोद में बिठाकर खिलाया है और जब आज मैंने इसे प्यार से अपनी गोद में बैठने के लिए कहा तो यह शरमा गई" मुकेश ने रेखा की तरफ देखते हुए कहा ।

"क्यों कंचन अपने पिता का दिल मत दुखाओ चाय पीकर एक दफ़ा उनकी गोद में बैठ जाओ" रेखा ने अपने पति की बात सुनकर कंचन को डाँटते हुए कहा । कंचन के पास अब और कोई रास्ता नहीं था उसने जैसे ही चाए ख़तम की रेखा ट्रे को लेकर वहां से जाने लगी।
"सुना बेटी अब तो तेरी माँ ने भी इजाज़त दे दी है" रेखा के जाते ही मुकेश ने कंचन के क़रीब जाते हुए उसके हाथ को पकड लिया ।

कंचन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे। बस वह तेज़ साँसें लेते हुए सोफ़े से उठकर अपने पिता की गोद में बैठने लगी, कंचन ने जैसे ही अपने चूतडों को अपने पिता की गोद में रखा उसे अपने चूतड़ो के बीच कोई चीज़ बुहत ज़ोर से चुभ गयी । कंचन समझ गई की वह क्या है इसीलिए वह वापस उठने ही लगी थी की मुकेश ने अपने दोनों हाथों से उसकी कमर को पकडकर अपनी गोद पर बिठा दिया ।
 
कंचन अपने पिता की की गोद में बैठ तो गयी मगर उसके चूतडों में मुकेश का लंड बुरी तरह से चूभ रहा था इसीलिए वह बार बार वहां से उठने की कोशिश कर रही थी।
"क्या हुआ बेटी बार बार क्यों उठ रही हो" मुकेश ने अपनी बेटी को कमर से पकडे हुए ही कहा।
"कुछ नहीं पिता जी बस ऐसे ही" कंचन अपने पिता का सवाल सुनकर शरम से पानी पानी होते हुए बोली और मजबूरन वह अब बिना हिले अपने पिता की गोद में बैठी रही ।

कंचन को महसूस हो रहा था की उसके पिता का लंड उसके चुप होकर बैठने के बाद बुरी तरह से उसके चूतडों के बीच घुसकर चूभ रहा था । कंचन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे,
"बेटी तुम्हें पता है बचपन में तुम मेरी गोद में बैठकर ही खाना ख़ाती थी" मुकेश ने कंचन के चुप होकर बैठने के बाद अपने हाथ को उसकी कमर से ले जाकर उसके चिकने पेट पर रखते हुए कहा ।

कंचन ने अपने पिता की बात का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप वहीँ पर बैठी रही । अचानक मुकेश ने अपना मुँह कंचन की पीठ पर रख दिया और वह अपने हाथ को अपनी बेटी के जवान चिकने पेट पर फिराने लगा, अपने पिता के हाथ को अपने पेट और उनके मूह को अपनी पीठ पर महसूस करके कंचन की साँसें बुहत ज़ोर से चलने लगी और उसे अपने पूरे जिस्म में अजीब किस्म की सिहरन का अहसास होने लगा ।

कंचन भी अब गरम होने लगी थी और उसे अपनी पिता की हरक़तों से मजा आ रहा था । कंचन इतना गरम हो गई थी की अब वह खुद अपने चूतडों को ज़ोर लगाकर अपने पिता के लंड पर दबा कर हिला रही थी।
"बेटी तुमने तो आज मुझे तेरे बचपन की याद दिला दी तो बताओ तुम्हें कैसा महसूस हो रहा है?" मुकेश ने अपनी बेटी के चूतडों के हिलने से खुश होते हुए उससे सवाल किया ।

"पिताजी मुझे अच्छा लग रहा है" कंचन ने सिर्फ इतना कहा । कंचन की बात सुनकर मुकेश को जैसे ग्रीन सिग्नल मिल गया इसीलिए मुकेश ने अब अपने हाथ को अपनी बेटी के चिकने पेट से फिसलाते हुए ऊपर उसकी चुचियों के क़रीब ले जाने लगा, अपने पिता के हाथ को अपनी चुचियों की तरफ जाता हुआ देखकर कंचन की साँसें बुहत ज़ोर से चलने लगी और उसका दिल अगले पल के बारे में सोचकर बुहत ज़ोर से धडकने लगा ।
 
मुकेश का हाथ उसकी बेटी की चुचियों के बिलकुल नज़दीक पुहंच चूका था और वह अपने हाथ को बिना रोके ऊपर करता जा रहा था । कंचन महसूस कर रही थी की उसके पिता का हाथ जैसे जैसे उसकी चुचियों के क़रीब हो रहा था वैसे वैसे उनका लंड ज़ोर के झटके खा रहा था और उनकी साँसें तेज़ होती जा रही थी ।

"नही पिताजी बस" अचानक कंचन को जाने क्या हुआ उसने अपने हाथ को अपने पिता के हाथ पर रख दिया और उसके हाथ को अपनी चुचियों के पास ही रोक दिया।
"अरे सॉरी बेटी मैं तो भूल ही गया की हमारी बेटी जवान हो चुकी है। लगता अब तुम्हारे लिए जल्दी ही कोई दूल्हा ढूढ़ना पडेगा" मुकेश ने कंचन के हाथ को अपने हाथ पर पडते ही कहा ।

"पिताजी अब मैं जाऊं" कंचन ने तेज़ साँसें लेते हुए कहा।
"बेटी बस एक बार मुझे तुम एक किस दे दो जैसे बचपन में टॉफ़ी लेने के बाद देती थी" मुकेश ने अपनी बेटी के पेट से अपने हाथ को हटाते हुए कहा।
"पिताजी मुझसे नहीं होगा मुझे शर्म आ रही है" कंचन ने जल्दी से अपने पिता की गोद से उठकर उसके क़रीब ही सोफ़े पर बैठते हुए कहा ।

कंचन की हालत बुहत खराब हो चुकी थी । उसकी चूत से उत्तेजना के मारे पानी टपक रहा था।
"बेटी अपने पिता से कैसी शरम । ठीक है अगर तुम शर्मा रही हो तो मैं ही तुम्हें किस कर देता हुँ" मुकेश ने कंचन की बात सुनकर खुश होते हुए कहा । अपने पिता की बात सुनकर कंचन की हालत और ज्यादा खराब होने लगी क्योंकी अब मुकेश खुद उसे किस करने वाला था ।

"बेटी ऐसा करो तुम अपना सर मेरी गोद में रखकर अपनी आँखें बंद कर लो । मैं खुद ही अपनी फूल जैसी बेटी का किस लूँगा" मुकेश ने कंचन के हाथ को पकडकर उसे अपने पास खीचते हुए कहा । कंचन को तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे बस उसे चुपचाप अपने पिता की बात को मानना था। इसीलिए वह चुपचाप अपने पिता की गोद में सर रखकर लेट गयी ।

"ओहहहह मेरी स्वीटी तुम कितनी अच्छी हो" मुकेश ने अपनी बेटी के के सर को अपनी गोद पर महसूस करते ही खुश होते हुए कहा और अपने हाथ से कंचन के एक गाल की चिकोटी ले ली । मुकेश अब थोडा झुककर अपनी बेटी को किस करने के लिए नीचे झुकने लगा। कंचन ने जैसे ही देखा उसका बाप उसे किस करने के लिए नीचे हो रहा है उसने अपनी आँखों को बंद कर दिया ।
 
उत्तेजना के मारे कंचन की साँसें अब भी बुहत ज़ोर से चल रही थी । मुकेश नीचे झुकते हुए अपनी बेटी की चुचियों को बुहत गौर से देख रहा था क्योंकी कंचन की बड़ी बड़ी चुचियां बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी। मुकेश ने एक नज़र अपनी बेटी के गुलाबी लबों पर डाली और अपने होंठो को उसके फुले हुए गाल पर रख दिया ।

कंचन को जैसे ही अपने पिता के होंठ अपने गोरे गाल पर महसूस हुए उसकी चूत से उत्तेजना के मारे बुहत ज्यादा पानी निकलने लगा । मुकेश अपने होंठो को वैसे ही अपनी बेटी के गालों पर रखे हुए उसके होंठो को घूर रहा था, मुकेश का दिल कर रहा था की अभी अपनी बेटी के होंठो को अपने मुँह में लेकर जी भरकर चूसे मगर वह ऐसा नहीं कर सकता था ।

"आहहह पिता जी अब हटो ना" कंचन ने सिसकते हुए कहा।
"बेटी इतने सालों बाद तुम्हें किस किया है की अब तुमसे दूर हटने का मन ही नहीं कर रहा है" मुकेश ने अपनी बेटी के गालों पर वैसे ही अपना मूह रखे हुए उसकी साँसों को अपने होंठो से टकराते हुए महसूस करके कहा । मुकेश अब अपने होंठो को अपनी बेटी के गालों पर रगडते हुए उसके होंठो के क़रीब ले जाने लगा ।

"आहहह पिताजी बस करिये न क्या कर रहे हैं" कंचन की आँखें बंद थी मगर वह अपने पिता के लबों के हिलने से समझ चुकी थी की उसका पिता अपने लबों को उसके होंठो के क़रीब ला रहा है।
"बेटी थोडी देर चुप रहो और मुझे अपनी गुडिया से खेलने दो" मुकेश ने अपनी बेटी के होंठो के बिलकुल क़रीब पुहंचते हुए कहा ।

कंचन ने अपने पिता की साँसों को अपने मुँह के इतना क़रीब महसूस करके अपनी आखों को खोल दिया । कंचन ने जैसे ही अपनी आँखों को खोला उसके सामने अपने पिता का चेहरा आ गया, मुकेश ने जैसे ही देखा उसकी बेटी ने अपनी आँखें खोल दी है उसने जल्दी से अपने होंठो को अपनी बेटी के गुलाबी होंठो पर रख दिया ।

कंचन का पूरा जिस्म वैसे ही बुहत ज्यादा गरम हो चुका था जैसे ही उसने अपने होंठो पर अपने पिता के होंठो को महसूस किया वह अपने होश खो बैठी और उसकी चूत से पानी की नदी बहने लगी । कंचन को उस वक्त खुद समझ में नहीं आ रहा था की आज उसके साथ क्या हो रहा है। कंचन ने मज़े से अपने पिता के बालों को ज़ोर से पकड लिया और अपने होंठो से ज़ोर से अपने पिता के होंठो को चूसने लगी ।
 
कंचन में आये अचानक इस बदलाव को देखकर मुकेश भी हैंरान हो गया और वह अपनी बेटी के होंठो को बुरी तरह से चूसने लगा, कंचन को तो कोई होश ही नहीं था जैसे ही वह मज़े की दुनिया से निकली तो उसे अहसास हुआ की उसने क्या कर दिया है । कंचन ने जल्दी से अपने पिता के बालों में से अपने हाथों को हटाकर उसे धक्का देते हुए अपने आप से दूर कर दिया और भागते हुए वहाँ से निकलकर अपने कमरे में आ गयी ।

"कंचन क्या हुआ ऐसे क्यों हांफ रही हो" शीला ने कंचन को यो अचानक कमरे में तेज़ साँसें लेते हुए देखकर कहा । कंचन ने शीला को कोई जवाब नहीं दिया और बाथरूम में घुस गई, कंचन ने जल्दी से अपने कपडे उतारे और शावर के नीचे आकर ठन्डे पानी से अपने जिस्म को शांत करने लगी। मगर अपने गरम जिस्म पर ठण्डा पानी पडते ही उसका जिस्म ठण्डा होने के बजाये ज्यादा गरम होने लगा ।

कंचन का जिस्म अब भी अपने पिता के साथ होने वाले सीन को सोचकर गरम हो रहा था। उसे खुद समझ में नहीं आ रहा था की आज उसे क्या हो गया है । वह एक बार झरकर भी इतना गरम क्यों है। कंचन को अचानक एक आईडिया आया और वह बाथरूम में नीचे बैठकर ऊँगली को अपनी चूत में डालकर अंदर बाहर करने लगी, कंचन अपनी ऊँगली को तेज़ी के साथ अपनी चूत में अंदर बाहर करते हुए अपने पिता के साथ होने वाली किस को याद कर रही थी। 5 मिनट में ही कंचन का जिस्म झटके खाते हुए झरने लगा ।

कंचन को झडने के बाद कुछ सुकून महसूस होने लगा और वह अपने जिस्म को शावर के नीचे ले जाकर ठण्डा करने लगी । कंचन 20 मिनट तक अपने जिस्म पर ठण्डा पानी गिराती रही तब जाकर उसका जिस्म पूरी तरह ठण्डा हुआ और वह अपने कपडे पहनकर बाथरूम से बाहर निक़ल आई।
 
अरे यार क्या बात है कहीं भैया ने तो कुछ नहीं किया" कंचन के बाहर आते ही उसे शीला ने टोकते हुए कहा।
"नही दीदी ऐसी बात नहीं है" कंचन ने मुस्कराते हुए शीला से कहा।
"फिर तुम दूसरी बार क्यों नहायी?" शीला ने कंचन को घूरते हुए कहा ।

"मेरी माँ तुम ऐसे नहीं मानोगी अभी बताती हूँ" कंचन ने शीला के पास बेड पर बैठते हुए कहा और बेड पर बैठने के बाद शीला को अपने पिता के साथ हुई सारी बात बता दी।
"कंचन दीदी मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है की तुम्हारे पिता भी यह सब कर सकते हे" शीला ने पूरी बात सुनने के बाद हैंरानी से कंचन की तरफ देखते हुए कहा ।

"क्यों शीला दीदी वह मरद नहीं है क्या?" कंचन ने शीला की बात सुनकर उसे टोकते हुए कहा।
"मैंने कब कहा वह मरद नहीं है मगर वह देखने में कितने शरीफ लगते हैं और काम देखो अपनी बेटी को पटाने की कोशिश कर रहे है" शीला ने ज़ोर से हँसते हुए कहा।
"साली शरीफ तो तुम भी दिखती हो पर तुमने भी तो अपने सगे और मेरे भाई से चुदवाया है" कंचन ने गुस्से से शीला को घूरते हुए कहा ।

"वाह मेरी जान तुम तो अभी से अपने पिता के बारे में कुछ सुन नहीं पा रही हो क्या बात है? लगता है आग दोनों तरफ बराबर लगी हुयी है" शीला ने कंचन का गुस्सा देखकर उसे टोकते हुए कहा।
"चल हट पगली ऐसी कोई बात नहीं है" शीला की बात सुनकर कंचन ने शरमाते हुए कहा ।

"तो क्या बात है मेरी लाडो रानी? मैं तो कहती हूँ ऐसे तडपने से अच्छा है की तुम अपने पिता के साथ भी मजा ले ले" शीला ने कंचन के सर को पकडकर उसकी आँखों में निहारते हुए कहा।
"शीला दीदी छोड़ो इस बात को" कंचन ने शीला के हाथों को अपने सर से हटाते हुए कहा।
"अरे सच तो कह रही हूँ तुम्हें अगर अपनी मस्तानी जवानी में से थोडा मजा मामू ने ले लीया तो तेरा क्या बिगड जाएगा" शीला ने कंचन को समझाते हुए कहा।

"अगर तुम्हें मेरे पिता की इतनी चिंता है तो तुम खुद क्यों नहीं उनसे चुदवा लेती" कंचन ने शीला को देखते हुए कहा।
"शाली अगर मेरे मामु ने मुझे हाथ लगाया होता तो मैं उनके सामने अपना पूरा जिस्म निसार कर देती मगर उन्हें तो अपनी सगी बेटी का जिस्म भा गया है" शीला ने शरारत से कंचन को देखते हुए कहा ।
 
शीला की बात सुनकर कंचन चुप हो गई क्योंकी अब उसके पास बोलने के लिए कुछ नहीं बचा था । कंचन का जिस्म न जाने क्यों अपने पिता के बारे में सोचते ही फिर से गरम होने लगा था।
क्या हुआ किस सोच में चलि गयी। कहीं अपने पिता के बारे में तो नहीं सोच रही हो?" शीला ने कंचन की कमर में हाथ ड़ालते हुए कहा ।

"चल हट बदमाश मुझे इस वक्त इस बारे में कुछ नहीं कहना" कंचन ने शीला के हाथ को अपनी कमर से हटाते हुए कहा।
"ठीक है दीदी तुम रात तक सोच लो । अब हम इस बारे में रात को बात करेंगे" शीला ने कंचन की बात सुनकर कहा और खुद कमरे से निकलकर बाहर चलि गयी ।शीला के जाते ही कंचन बेड पर लेटकर अपने पिता के बारे में सोचने लगी, कंचन का दिमाग सोचते हुए कह रहा था की उसे अपने पिता के साथ यह सब नहीं करना चाहिए मगर उसका दिल कह रहा था की जब उसने अपने भाई और नरेश से चुदवा लिया है तो उसे अपने पिता को भी अपने जिस्म का लुत्फ़ उठा लेने देना चाहिए ।

शीला अपने कमरे से निकलकर अपनी माँ के पास चली गयी क्योंकी वह सुबह से अपने कमरे से नहीं निकली थी । शीला कमरे में दाखिल होते ही अपनी माँ के पास बेड पर बैठ गयी और उनसे तबीयत के बारे में पूछने लगी।
"बेटी एक काम करो तुम अपने भाई के साथ बाजार जाकर मेरे लिए कुछ सामन ले आओ" मनीषा ने कुछ देर तक अपनी बेटी से बातें करने के बाद उससे कहा ।

"ठीक है माँ आप सामन बता दें मैं अभी जाकर ले आती हुँ" शीला ने अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा । मनीषा ने शीला को जो चीज़ें मंगवानी थी वह बता दी। शीला अब वहां से निकलकर अपने भाई के कमरे में चलि गयी और सारी बात नरेश को बता दी।
"शीला मेरी तबीयत भी कुछ ठीक नहीं है तुम ऐसा करो विजय के साथ बाजार चलि जाओ" नरेश ने शीला की बात सुनकर कहा ।

"ठीक है मुझे कोई प्रॉब्लम नही" विजय ने जल्दी से उठते हुए कहा । शीला विजय के साथ ही बाजार के लिए निकल गई।
 
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