desiaks
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मैं माँ को, मेरी मंजु को मेरी बीवी को बस देखता ही रहा.
‘जाइये न, नहा लीजिये’
मेरे होठो पे मुस्कान फैल गई ‘ जो हुकुम सरकार” बोल कर में बाथरूम की तरफ मुड गया.
‘रुकिए!’
माँ की कोमल मधुर आवाज़ ने मेरे कदम रोक दिये. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे कानों में मिश्री घोल दी गई हो.
ये मधुर आवाज, जो कभी मुझे लोरिया सुना के सुलाया करती थि, मुझे अच्छे बुरे का फरक समझाती थि, ये मधुर आवाज़ अब मेरी धरोहर हो गई है.
अब ये मधुर आवाज़ हर पल मेरे पास रहेगि, हर पल मेरे कानों में मिश्री घोलेगी.
कितना सकून मिलता है मुझे इस मधुर आवाज़ को सुन कर.
मैने मुड के देखा तो मेरी माँ मेरे लिए एक नया नाईट सूट निकाल रही थी.
वो धीरे धीरे चलति मेरे पास आई, उसकी पायल की रुनझुन मेरे जिस्म में संगीत की लहरें पैदा कर रही थी.
मेरा सारा धयान उस रुन झुन में चला गया ... वो रुन झुन जैसे कह रही थी ... ये संगीत आपका इंतज़ार कर रहा है ... जल्दी नहा कर आइये.
मा जैसे ही मेरे करीब आई, मेरे साँसों में उसंकी सुगंध फिर से बसने लगी और मेरा पेनिस इतना अकड गया की मेरे कपड़ों में उठा हुआ उभार जरूर माँ की आँखों ने देख लिया होगा.
मा ने मुझे वो नाईट सूट पकडाया, नाईट सूट पकड़ते हुए जब उनके कोमल उँगलियों ने मेरे हाथ को छूआ तो पूरा जिस्म झनझना गया ... शायद यही हालत माँ की भी थी.
हाथ में नाईट सूट पकडे में उनकी मोहिनी सूरत का रसपान करने लग गया, शर्म के मारे माँ ने नजरें झुका ली और फिर एक कोमल ध्वनी मेरे कानो में पडी
“जाइये न अब”
मै जैसे सपनो की दुनिया से वापस लोटा और मुस्कराता हुआ बाथरूम में घुस गया तब भी कनखियों से में माँ को ही देख रहा था.
उनके होठो पे एक मुस्कान थी जिसकी चंचलता मुझे अपने और खिंच रही थी.
खुद को सँभालते हुए में बाथ रूम में घूसा पर दरवाजा खुला ही रहने दिया.
मेरी ये शरारत माँ भाँप गई और खुद ही दरवाजा बंद कर दिया ... शायद उनके होठो ने कुछ कहा
‘बहुत बेशर्म बन गए हैं आप’
कब में मन में सोचने लगा बेशरमी तो अभी दिखानि है ... में फ़टाफ़ट नहाने लगा और आने वाले क्षणो के बारे में सोच कर पुलकित होने लगा ... जो अनुभुति मुझे हो रही थी , शायद या यक़ीनन माँ को भी हो रही होगी ... जिस तरहा मेरे दिल की धड़कन क़ाबू में नहीं हो रही थी ... वही हाल माँ का भी होगा.
वो पल अब दूर नहीं था जब माँ मेरी बाँहों में होगी ... मेरी बीवी का रूप ले कर ... मेरी माँ मेरी बाँहों में होगी और में मेरी माँ को हर जगह छू सकूँगा ... ये अहसास वो था जिससे में शब्दों में शायद ही बयान कर पाउँगा क्या सोच रही होगी वो ... शायद यही की आज हम एक ऐसे रास्ते पे निकल पडेंगे जो हमारे प्यार को और भी परवान चढ़ायेंगा.
‘जाइये न, नहा लीजिये’
मेरे होठो पे मुस्कान फैल गई ‘ जो हुकुम सरकार” बोल कर में बाथरूम की तरफ मुड गया.
‘रुकिए!’
माँ की कोमल मधुर आवाज़ ने मेरे कदम रोक दिये. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे कानों में मिश्री घोल दी गई हो.
ये मधुर आवाज, जो कभी मुझे लोरिया सुना के सुलाया करती थि, मुझे अच्छे बुरे का फरक समझाती थि, ये मधुर आवाज़ अब मेरी धरोहर हो गई है.
अब ये मधुर आवाज़ हर पल मेरे पास रहेगि, हर पल मेरे कानों में मिश्री घोलेगी.
कितना सकून मिलता है मुझे इस मधुर आवाज़ को सुन कर.
मैने मुड के देखा तो मेरी माँ मेरे लिए एक नया नाईट सूट निकाल रही थी.
वो धीरे धीरे चलति मेरे पास आई, उसकी पायल की रुनझुन मेरे जिस्म में संगीत की लहरें पैदा कर रही थी.
मेरा सारा धयान उस रुन झुन में चला गया ... वो रुन झुन जैसे कह रही थी ... ये संगीत आपका इंतज़ार कर रहा है ... जल्दी नहा कर आइये.
मा जैसे ही मेरे करीब आई, मेरे साँसों में उसंकी सुगंध फिर से बसने लगी और मेरा पेनिस इतना अकड गया की मेरे कपड़ों में उठा हुआ उभार जरूर माँ की आँखों ने देख लिया होगा.
मा ने मुझे वो नाईट सूट पकडाया, नाईट सूट पकड़ते हुए जब उनके कोमल उँगलियों ने मेरे हाथ को छूआ तो पूरा जिस्म झनझना गया ... शायद यही हालत माँ की भी थी.
हाथ में नाईट सूट पकडे में उनकी मोहिनी सूरत का रसपान करने लग गया, शर्म के मारे माँ ने नजरें झुका ली और फिर एक कोमल ध्वनी मेरे कानो में पडी
“जाइये न अब”
मै जैसे सपनो की दुनिया से वापस लोटा और मुस्कराता हुआ बाथरूम में घुस गया तब भी कनखियों से में माँ को ही देख रहा था.
उनके होठो पे एक मुस्कान थी जिसकी चंचलता मुझे अपने और खिंच रही थी.
खुद को सँभालते हुए में बाथ रूम में घूसा पर दरवाजा खुला ही रहने दिया.
मेरी ये शरारत माँ भाँप गई और खुद ही दरवाजा बंद कर दिया ... शायद उनके होठो ने कुछ कहा
‘बहुत बेशर्म बन गए हैं आप’
कब में मन में सोचने लगा बेशरमी तो अभी दिखानि है ... में फ़टाफ़ट नहाने लगा और आने वाले क्षणो के बारे में सोच कर पुलकित होने लगा ... जो अनुभुति मुझे हो रही थी , शायद या यक़ीनन माँ को भी हो रही होगी ... जिस तरहा मेरे दिल की धड़कन क़ाबू में नहीं हो रही थी ... वही हाल माँ का भी होगा.
वो पल अब दूर नहीं था जब माँ मेरी बाँहों में होगी ... मेरी बीवी का रूप ले कर ... मेरी माँ मेरी बाँहों में होगी और में मेरी माँ को हर जगह छू सकूँगा ... ये अहसास वो था जिससे में शब्दों में शायद ही बयान कर पाउँगा क्या सोच रही होगी वो ... शायद यही की आज हम एक ऐसे रास्ते पे निकल पडेंगे जो हमारे प्यार को और भी परवान चढ़ायेंगा.