Indian Sex Story वक़्त के हाथों मजबूर - Page 8 - SexBaba
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Indian Sex Story वक़्त के हाथों मजबूर

उसकी ठाट बाट देखकर तो मैं दंग रह गया. उस वक़्त उसके पास कम से कम अरबों की प्रॉपर्टी थी. फिर यहाँ पर मैने अपनी बिहारी बुद्धि लगाई. और उसकी भतीजी यानी कि पार्वती के पीछे हाथ धो कर पद गया. उस वक़्त वो भी उतनी खूबसूरत तो नहीं थी पर मेरे लिए वो सोने की अंडे देने वाली मुर्गी थी. मुझे उसके ज़रिए वो दौलत हासिल करनी थी.

करीब 1 साल तक मैं उसके पीछे हाथ धो कर पड़ा रहा. उसकी हर बात मानता. उसकी हर तरह से सेवा करता. और ऐसे ही धीरे धीरे मैने उसको अपने झूठे प्यार के जाल में फाँस लिया.और एक दिन वो मेरे साथ घर छोड़ कर भाग गयी. लेकिन मैं तो उसके घर में ही रहना चाहता था उसकी पूरी प्रॉपर्टी को निगलना चाहता था. लेकिन उसकी जिद्द की वजह से मुझे भी भागना पड़ा.

जब ये बात शौर्य सिंग को पता चली तो वो अपने आदमियों से कुत्तों की तरह हमारी छान बीन करवाना चालू का दिया. लेकिन यहाँ पर मेरी किस्मत ने मेरा साथ दिया. शौर्य सिंग के आदमियों ने हमे रेलवे स्टेशन तक जाते ही पकड़ लिया. और हम दोनो को उसके सामने ले जाया गया.

पहले तो शौर्य सिंग ने पार्वती को बहुत बुरा भला कहा और दो चार डंडों से मेरी भी अच्छे से सेवा की. मगर वो जल्दी ही पसीज गया और हमारे रिस्ते को हां कर दी. मगर शौर्य सिंग जितना बेवकूफ़ दिखता था उतना था नहीं. उसने किसी भी अपनी प्रॉपर्टी का ज़िक्र ना ही मुझसे किया और ना ही पार्वती से.

जब पार्वती 21 साल की हुई तो उसने एक वसीयत बनवाई. और वसीयत के मुताबिक सारी प्रॉपर्टी की मलिकिन पार्वती और वो बुड्ढ़ा सौर्य सिंग था. उसने मेरे नाम एक फूटी कौड़ी तक नही की. मेरा तो खून खौल उठा. मगर मैं क्या कर सकता था. तब मैं बड़े प्यार से उसकी सेवा भाव करने लगा. तो वो मुझसे खुस होकर मुझे एलेक्षन में खड़ा करवा दिया और मेरी किस्मेत कि मैं वो चुनाव जीत गया.

ऐसे ही धीरे धीरे मैं सत्ता में आ गया और अपनी हस्ती और वजूद मैने खुद बनाया. बाद में उस बुड्ढे ने आधी प्रॉपर्टी अपने बच्चो के नाम कर दी और आधा प्रॉपर्टी जो कि पार्वती की था वो उसी के नाम ही रहने दिया. मैने कई बार पार्वती से इस बारे में जिक्र किया तो उसने सॉफ सॉफ कह दिया कि जाओ और मेरे चाचा से इस बारे में बात करो. लेकिन मुझे इस बारे में बात करने की कभी हिम्मत ही नही हुई.फिर कुछ साल के बाद मेरी एक लड़की हुई. मैने उसे बड़े प्यार से पाला पोशा और जब वो थोड़ी बड़ी हुई तो शौर्य सिंग ने उसे पढ़ाने के लिए ऑस्ट्रेलिया भेज दिया. और पार्वती की आधी प्रॉपटी उसके नाम लिख दिया. यानी कि 25% पार्वती का और 25% शोभा का यानी मेरी बेटी का. और बाकी बचा 50 % जो शौर्य शिंग ने अपने परिवार के नाम कर दिया और मुझे हिलाने के लिए एक घंटा थमा दिया.
 
लेकिन मैने कई बार कोशिश की पार्वती वो सारी प्रॉपर्टी मेरे नाम कर दे मगर उसको भी मेरी नियत की भनक लग गयी. और वो भी जान गयी थी कि मैने उससे कभी प्यार ही नहीं किया बल्कि मुझे उसकी दौलत से प्यार था. मैं तो साला इसी आस में था कि कभी ना कभी पार्वती का दिल पिघल जाएगा और वो खुशी खुशी सारी दौलत मेरे नाम कर देगी .मगर अब मेरी सोने की मुर्गी भी हाथ से निकल गयी...

विजय- ओह .....हो तब तो तूने वाकई में बहुत बड़ी मछली फँसाई हैं. और तेरे मा बाप का क्या हुआ वो लोग नहीं आए क्या कभी तुझसे मिलने???

बिहारी- हां मछली तो मैने वाकई बड़ी फँसाई हैं मगर ना इसको पूरा खाए बनता हैं और ना ही निगलते बनता हैं.और मेरे मा बाप आए तो थे मगर मैने ही उन्हें पहचानने से सॉफ इनकार कर दिया. क्यों कि मैं जब शौर्य सिंग से पहली बार मिला था तब मैने उसको बता दिया था कि मैं अनाथ हूँ. मेरा इस दुनिया में कोई नहीं हैं.और आज भी उनलोगों को मेरी असलियत नही मालूम यहाँ तक कि मेरी पत्नी को भी नहीं.

विजय- चल यार तेरी दुखद भरी कहानी सुनकर तो वाकई में मेरी मगरमच्छ जैसी आँखों में भी आँसू आ गये. और इतना कहकर विजय और बिहारी ज़ोर से हँसने लगते हैं.
 
बिहारी- और एक बात तू पार्वती को कुछ नहीं करेगा. जो कुछ करूँगा मैं करूँगा और डाइवोर्स से पहले करूँगा.

विजय- लेकिन डाइवोर्स होने के बाद तो भाभिजी को आसानी से मरवाया जा सकता हैं. तो पहले क्यों???

बिहारी- तू नहीं समझेगा. इसी को तो पॉलिटिक्स कहते हैं.अगर मैं उसे डाइवोर्स के बाद मरवा दूँगा तो कोई भी आसानी से यही अंदाज़ा लगा सकता हैं कि मैने अपनी दुश्मनी के लिए अपनी पत्नी को पहले तलाक़ दिया फिर उसे जान से मरवा दिया. जिससे सारा ब्लेम मुझपर ही आ जाएगा. और अगर वो डाइवोर्स से पहले मरी तो कोई भी ये नहीं जान पाएगा कि इन सब के पीछे मेरा हाथ हैं.

विजय- तो कब भाभिजी को यमराज के पास भेजने का प्लान हैं.

बिहारी- वही तो सोच रहा हूँ. अब हमे हर एक कदम बहुत सोच कर उठाना पड़ेगा.पहले ही हमारे दो आदमी मारे जा चुके हैं.फिर उस इनस्पेक्टर पर जान लेवा हमला. और अब ट्रक और उस कॉंट्रॅक्टर का पकड़े जाना. यानी इस समय अब किसी भी तरह का रिस्क लेना बहुत ख़तरनाक हैं. और अभी पोलीस भी पूरी आक्टिव हो गयी हैं. अभी कुछ दिन रुक जाते हैं . बेचारी को कुछ दिन का सूरज देख लेने दे. मरना तो हर हाल में हैं उसे.

विजय- ठीक हैं बिहारी मगर ये काम जितनी जल्दी हो जाए उतना ही हमारे लिए बढ़िया हैं...

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उधेर कृष्णा भी उस दिन के बाद जो घर से निकाला था तब से वो दो दिन तक घर नही आया था. राधिका उसके लिए एक दम बेचैन और परेशान हो गयी थी. तभी उसके घर की डोर बेल बजती हैं और राधिका दौड़ कर दरवाजा खोलती हैं. सामने उसके भैया थे..

राधिका- भैया आप कहाँ चले गये थे.. आपको ज़रा भी अंदाज़ा हैं कि मैं आपके लिए कितनी परेशान हूँ. कम से कम एक फोन तो कर ही सकते थे ना..और इतना बोलकर राधिका झट से अंदर आ जाती हैं. और जाकर बिस्तेर पर पेट के बल लेट जाती हैं.

कृष्णा भी दरवाजा बंद करके अंदर आता हैं और राधिका के कमरे में चला जाता हैं. राधिका उसको अपने पास आता देखकर वो बिस्तेर से उठकर बैठ जाती हैं.

कृष्णा- मुझे माफ़ कर दे राधिका. मैने तुझपर अपना हाथ उठाया. मैं जानता हूँ कि तू मुझसे नाराज़ हैं..

राधिका- एक टक कृष्णा को देखते हुए- हां भैया मैं आपसे बहुत नाराज़ हूँ लेकिन इस लिए नहीं कि आपने मुझपर अपना हाथ उठाया बल्कि इस लिए कि आप दो दिन तक बिना बताए चले गये और आपने मुझे फोन करके बताना भी ज़रूरी नहीं समझा. आख़िर क्यों?? क्या हैं इसके पीछे वजह??

कृष्णा- बस ऐसे ही अपने एक दोस्त के यहाँ पर रुक गया था. मैं तो ये सोचकर तेरे सामने नहीं आया कि मैने तुझपर अपना हाथ उठाया है तो तू मेरे बारे में क्या सोचेगी.

राधिका- वादा करो भैया कि आज के बाद तुम मुझे कभी भी छोड़ कर कहीं नही जाओगे.

कृष्णा भी मुस्कुरा कर राधिका को अपने सीने से लगा लेता हैं.

राधिका- आप मूह हाथ धो लो मैं आपके लिए खाना निकाल देती हूँ.

थोड़ी देर के बाद कृष्णा और राधिका भी खाना खाते हैं और फिर राधिका जाकर किचन सॉफ करने लगती हैं. और कुछ देर में वो दोनो राधिका के रूम में वापस आ जाते हैं.

कृष्णा- एक बात कहूँ राधिका बुरा तो नहीं मनोगी ना.

राधिका- हां भैया कहो ना मुझे आपकी बात का भला कैसे बुरा लगेगा.

कृष्णा- क्या तू सच में राहुल से शादी नही करना चाहती. क्या तू उस बिहारी से .....................

राधिका एक टक कृष्णा की आँखों में देखती हैं - छोड़ो ना भैया क्या अब आप भी बेकार की बातें लेकर बैठ गये.

कृष्णा अपना हाथ राधिका के कंधे पर रखकर उसे अपनी तरफ घूमता है- तू इसे बेकार की बातें कहती हैं. ये तेरी ज़िंदगी का सवाल हैं. बता मुझे.

राधिका- वो तो मैने गुस्से में कह दिया था.

कृष्णा-क्या तू सच में मेरे साथ वो सब करना चाहती हैं. कृष्णा राधिका की आँखों में देखते हुए बोला..

राधिका- आपको क्या लगता हैं भैया कि मैं आपसे मज़ाक कर रही थी. अगर यकीन ना आए तो एक बार कह के तो देख लो मैं अभी इसी वक़्त अपने सारे कपड़े आपके सामने उतार दूँगी.

क्रिसना- तू कैसी बातें करती हैं. भला तुझे शरम नही आएगी मेरे सामने अपने पूरे कपड़े उतारते हुए.

राधिका- जब आप मेरे सामने पूरा नंगा हो सकते हैं तो मैं क्यों नहीं. आख़िर आप की रगों में भी तो मेरा ही खून दौड़ रहा हैं ना. फिर आपसे शरम कैसा.

कृष्णा की कही हुई बात आज राधिका ने फिर से उसपर पलट दी थी. वो भी एक टक राधिका को देखने लगता हैं.

कृष्णा- नही राधिका अब मैं तेरे साथ वो सब नहीं करना चाहता.
 
राधिका- आख़िर क्या हो गया हैं भैया आपको. क्यों आज आप इतना बदल गये हैं????

कृष्णा- मुझे ये सब ठीक नहीं लगता. और आज मैं नही बदला हूँ राधिका बल्कि तू बदल गयी हैं. मुझे तो समझ में नही आ रहा हैं कि तू इतना कैसे बदल सकती हैं.

राधिका- क्या ठीक नही लगता भैया. मुझसे सेक्स करने के लिए तो आप हमेशा मेरे पीछे पागल रहते थे. क्या आप नही चाहते थे कि मैं अपना बदन आपको सौप दूँ. और आपने तो मुझे सिड्यूस करने के लिए 2 हफ्ते का समय भी माँगा था. और दो हफ्ते ख़तम होने में केवल एक दिन ही बचा हैं. क्या आप नही चाहोगे कि आप शर्त जीत जाओ. मैं तो अब आपको किसी बात के लिए रोकूंगी भी नहीं.

कृष्णा- बस कर राधिका. ये पाप मुझसे नही होगा.

राधिका- वाह भैया वाह..... आज ये सब आपको पाप लगने लगा. अगर इतना ही पाप पुन्य का ख्याल था तो क्यों मेरा हाथ बचपन में ही छोड़ दिया था. क्यों नही बचाने आए हर जगह मेरी लाज को. आपको क्या मालूम भैया कि जब भी मैं बाहर निकलती हूँ लोग मुझे खा जाने वाली नज़रो से देखते हैं. ऐसा लगता हैं कि मैं कोई सेक्स की मशीन हूँ. आपको तो ये भी नहीं मालूम होगा कि आज तक कितने लड़कों ने मुझे छेड़ा हैं शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब कोई मुझसे कुछ ना कहा हो. ये सब सुनकर मुझपर क्या बीतती हैं आप इसका अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते. जब भी मैं किसी सड़क या गली मुहल्ले से गुजरती हूँ तो लोग मेरे बारे में कैसी गंदी गंदी बातें करते हैं आपको तो शायद ये भी नही मालूम.

उस वक़्त आप कहाँ थे. क्या आपने कभी मुझसे पूछा हैं कि क्या कभी तुझे किसी बात की तकलीफ़ हैं. क्या तुझे कोई तंग करता हैं. नहीं ना तो आज आपके मन में ये पाप पुण्य का ख्याल कहाँ से आ गया. मुझे जवाब दो.

आप ही कहते हैं ना कि कोई तुझ पर बुरी नज़र डालेगा तो मैं उसकी आँखें फोड़ दूँगा. कितनो की आँखें फोड़ोगे आप भैया. कहने और करने में बहुत फरक हैं. और आप इस बात को अच्छे से जानते हैं कि राधिका कहती नही हैं बल्कि करती भी हैं. आपको क्या मालूम कि औरत की ज़िंदगी कितनी मुश्किल होती हैं.

कृष्णा- मुझे माफ़ कर दे राधिका. मैं मानता हूँ कि मैं समय रहते तेरे सहारा नहीं बन सका. एक अच्छा भाई नहीं बन सका. मगर आज मैं अपनी ग़लती सुधारना चाहता हूँ. मुझे एक मौका तो दे...........

राधिका- क्यों शर्मिंदा करते हो भैया. मैं कौन होती हूँ आपको माफ़ करने वाली. खैर अब मैं आपसे इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहती.

कृष्णा राधिका के करीब जाता हैं और जाकर उसे बड़े प्यार से गले लगा लेता हैं.

राधिका- भैया एक बात कहूँ बुरा तो नहीं मनोगे ना..

कृष्णा- कहो..

राधिका- क्या मेरे जिस्म को देखकर आब आपका मन नही करता क्या कि आप मेरे साथ सेक्स करें.

कृष्णा- ये क्या बेहूदा सवाल हैं. मैं तेरे सवाल का जवाब देना ज़रूरी नहीं समझता.

राधिका- मैं जानती हूँ कि आज भी आपके ख़यालात पहले जैसे हैं. बस आप मुझसे झूट बोल रहे हैं.

कृष्णा राधिका को अपने से दूर करते हुए--- ठीक हैं अगर तुझे ऐसा लगता हैं तो ........लगे. मैं ये बात साबित तो नहीं कर सकता.

राधिका- लेकिन मैं साबित कर सकती हूँ. अगर आप हां कहो तो..........................

कृष्णा उसको सवालियों नज़र से देखता हैं- मतलब???

राधिका कृष्णा का एक हाथ को पकड़कर अपने हाथ में लेती हैं और उसे झट से अपने सीने पर रख देती हैं और कसकर अपने हाथ पर दबाव डालने लगती हैं. कृष्णा जैसे ही समझता हैं वो अपना हाथ राधिका के सीने से हटाने की कोशिश करता हैं मगर राधिका उसका हाथ कसकर पकड़े रखती हैं. आज पहली बार कृष्णा ने राधिका के बूब्स को अपने हाथों में महसूस किया था. और नीचे उसके लंड में भी हलचल होनी शुरू हो जाती हैं.

कृष्णा फिर एक झटके से अपना हाथ राधिका के सीने से हटा लेता हैं- ये क्या मज़ाक हैं राधिका.

राधिका- क्यों भैया सच कहिए क्या आपको अच्छा नहीं लगा इस तरह मेरे सीने पर हाथ रखकर. अगर नहीं तो ये बात मेरी आँखों मे देखकर कहिए. मैं कसम खाती हूँ भैया कि मैं आज के बाद आपको सेक्स के लिए कभी फोर्स नहीं करूँगी.

कृष्णा का तो मूह से कोई शब्द नहीं निकलता हैं और वो खामोश होकर अपना सिर नीचे झुका लेता हैं.

राधिका- मैं जानती थी भैया कि दुनिया में इंसान शराब और शबाब कभी नहीं छोड़ सकता. ये वो नशा हैं जब ये इंसान पर हावी हो जाती हैं तो इंसान कुछ नहीं सोचता. ये भी नहीं कि कौन उसकी बेहन हैं, कौन उसकी मा हैं और कौन उसकी बेटी हैं. फिर आप को तो दोनो का शौक हैं. और मैं यकीन से कह सकती हूँ कि आपका भी खून ज़रूर गरम हुआ होगा. फिर ये सब ढोंगबाज़ी किस लिए???

राधिका ने तो आज कृष्णा का भी मूह बंद कर दिया था. आज उसके पास राधिका के सवाल का भी कोई जवाब नही था.
 
वक़्त के हाथों मजबूर--23

कृष्णा- मुझे अब चलना चाहिए राधिका. मुझे अब काम पर भी जाना हैं..

जैसे ही कृष्णा जाने के लिए मुड़ता हैं राधिका झट से उसका हाथ थाम लेती हैं. आज सब कुछ उसके साथ उल्टा होता नज़र आ रहा था. अब तक वो राधिका का हाथ पकड़ता था मगर आज राधिका ने उसका हाथ पकड़ लिया था.

राधिका- आख़िर कब तक बचोगे मुझसे भैया. चिंता मत करो आज मैं आपको हाथ भी नही लगाउन्गि. मगर कल आपको मुझसे कौन बचाएगा. अभी आपने राधिका को अच्छे से जाना कहाँ हैं. मैं कल आपको बताउन्गि कि राधिका क्या कर सकती हैं. और हां ये मत समझना कि आप घर नहीं आओगे तो बच जाओगे. आगर नहीं आए तो मैं कहीं कोई ऐसा कदम ना उठा लूँ कि कहीं आपको बाद में फिर पछताना पड़े.

कृष्णा की तो मानो ज़ुबान से आवाज़ ही निकलनि बंद हो गयी थी. वो कुछ बोलता नहीं बस चुप चाप घर से अपना मूह लटकाकर बाहर की ओर निकल जाता हैं. आज उसका सारा दाँव उसी पर उल्टा पड़ता नज़र आ रहा था.

थोड़ी देर के बाद राधिका के मोबाइल पर फोन आता हैं. फोन राहुल का था.

राहुल- अरे कहाँ पर हो मेडम साहिबा. तुम्हारा तो दो दिन से कुछ पता ही नहीं हैं. ना मुझ से मिलती हो ना ही बात करती हो. आभी इस वक़्त आ जाओ मैं तुम्हारा यहीं गार्डेन में वेट कर रहा हूँ. और इतना कहकर राहुल फोन रख देता हैं.

राधिका भी जल्दी से तैयार होकर राहुल से मिलने चली जाती हैं. थोड़े देर के बाद जब वो वहाँ पर पहुचती हैं तो वहाँ पर निशा भी राहुल के साथ बैठी मिलती हैं.

निशा- आओ राधिका शुक्र हैं कि तुमको टाइम तो मिल गया हम से मिलने का. वैसे आज कल तुम ज़्यादा बिज़ी रहती हो...हैं ना.

राधिका कुछ कहती नही बस एक प्यारा सा स्माइल देकर वहीं राहुल और निशा के पास बैठ जाती हैं.

राहुल- हां तो राधिका आज का तुम्हारा क्या प्लान हैं. कहीं आज बिज़ी तो नहीं हो ना.

राधिका- नहीं राहुल ऐसी कोई बात नहीं हैं. बस ऐसे ही दो दिन से मेरी तबीयात थोड़ी ठीक नहीं लग रही हैं.

निशा- आरे हम तुम्हारे लगते ही कौन हैं. बताना तो तुम कोई भी बात हम से ज़रूरी नहीं समझती.

राधिका- नहीं निशा ऐसी कोई बात नहीं हैं. बस ऐसे ही.

राहुल- चलो यार आज कहीं बाहर चलते हैं घूमने. मैं आज दोपहर तक फ्री हूँ. और इसी बहाने राधिका का भी मूड फ्रेश हो जाएगा.

फिर थोड़ी देर में वो तीनों सहर के बाहर एक हिल स्टेशन की ओर निकल पड़ते हैं. मगर आज राधिका सिर्फ़ खामोश थी. वो ज़्यादा खुल कर ना ही राहुल से बोल रही थी और ना ही निशा से.

कुछ देर के बाद वो तीनों मनाली की सुंदर घाटियो में पहुँच जाते हैं और प्रकृति के सुंदर नज़ारे का आनंद उठाते हैं.

राहुल- यार तुम ऐसे क्यों खामोश हो. और कोई बात हैं क्या. मैं तुम्हारा मूड फ्रेश करने के लिए ही तो तुम्हें यहाँ पर लाया हूँ और तुम बस खामोश बैठी हो.

राधिका- नहीं राहुल बस कुछ अच्छा नहीं लग रहा.

राहुल- जानती हो राधिका अपनी निशा को किसी से प्यार हो गया हैं. और वो उस लड़के से बहुत प्यार करती हैं. मगर वो किसी और को चाहता हैं. अरे इतनी अच्छी लड़की उसे कहाँ मिलेगी.

राधिका जब ये बात सुनती हैं तो उसके दिल की धड़कन तुरंत बढ़ जाती हैं. और वो राहुल को सवालियों नज़र से देखने लगती हैं.

राधिका- किससे...............कौन हैं वो???

राहुल- यार इसी बात का तो दुख हैं ये बस बता ही नहीं रही हैं. अगर बताती तो मैं उस साले को जाकर एक दो डंडे लगाता और उसे यहीं पर बुलाकर उसका हाथ निशा के हाथों में दे देता.आब तुम ही कहो ना इसी कि ये हमे बताए. शायद तुम्हारी बात ये नहीं टालेगी.

राधिका को कुछ समझ में नहीं आता कि वो क्या बोले बस वो राहुल और निशा को चुप चाप देखने लगती हैं. बोलती भी कैसे वो ये बात अच्छे से जानती थी कि निशा भी राहुल से ही प्यार करती हैं. मगर निशा ये बात नहीं जानती थी कि राधिका समझ चुकी हैं कि उसका लवर और कोई नहीं बल्कि राहुल ही हैं.

राहुल- चुप क्यों हो राधिका कुछ तो जवाब दो.

राधिका- मुझे नहीं मालूम राहुल. अगर निशा ने तुम्हें ये बात नहीं बताई हैं तो वो मुझे कैसे बताएगी.
 
राधिका के इस जवाब से लगभग निशा और राहुल भी हैरान थे.अब राहुल को ठीक नहीं लगता और वो ये बात को वही ख़तम कर देता हैं.

राहुल कुछ देर तक इधेर उधेर की बातें करता हैं फिर वो तीनों वापस लौट आते हैं. आज निशा भी कुछ खामोश लग रही थी. वो भी ज़्यादा उन्दोनो की मॅटर में इंटरफेर नहीं कर रही थी.

तभी राहुल राधिका का हाथ पकड़ लेता हैं और तुरंत उसे अपने सीने से चिपका लेता हैं और राधिका कुछ समझती उससे पहले राहुल राधिका के लब को चूम लेता हैं. ये नज़ारा देखकर निशा के तो होश ही उड़ जाते हैं और उसके सब्र का बाँध टूट जाता हैं और वो तुरंत वहाँ से जाने के लिए बोलती हैं. आज उसका दिल फिर से रोने को कर रहा था. वो कैसे भी करके आपने आँसू थामे हुए थी.

जैसे ही निशा वहाँ से निकलती हैं राधिका उसकी आँखों की नमी को पढ़ लेती हैं. वो जानती थी कि राहुल की इस हरकत से निशा के दिल पर क्या बीती होगी. और निशा की आँखों से तुरंत आँसू का सैलाब उमड़ पड़ता हैं...

थोड़ी देर के बाद वो भी राहुल से विदा लेती हैं और अपने घर ना जाकर वो सीधा निशा के घर जाने का फ़ैसला करती हैं. फिर वो एक ऑटो पकड़ कर निशा के घर की तरफ चल देती हैं. थोड़ी देर में वो निशा के घर पहुँच जाती हैं. राधिका फिर डोर बेल बजाती हैं और उसकी मम्मी सीता दरवाज़ा खोलती हैं.

सीता- आओ बेटा कैसे आना हुआ.

राधिका- आंटी जी निशा कहाँ पर हैं.

सीता- वो तो आभी घर नहीं आई. बोल कर गयी तो थी कि कॉलेज जा रही हूँ पर .............कोई बात हैं क्या.

राधिका- नहीं आंटी ऐसी कोई बात नहीं हैं. अभी मैने उससे बात की थी तो कह रही थी की मैं घर पर हूँ. इसलिए. पूछा.

सीता- एक काम करो बेटा तुम उसी के कमरे में जाकर बैठो. हो सकता हैं अभी दस मिनिट में वो आ जाए...

यहीं तो राधिका भी चाहती थी कि वो उसके कमरे में जाए. और वो भी तुरंत सीढ़ियों के रास्ते निशा के कमरे में चली जाती हैं.

जैसे ही वो वहाँ पर बैठती हैं उसकी आँखें सर्च एंजिन की तरह कमरे के हर कोने में कुछ तलाशने लगती हैं. और कुछ देर के बाद उसे वो चीज़ मिल जाती हैं जिसके लिए वो यहाँ पर आई थी.वहीं बेड के पास एक ड्रॉयर में लाल डायरी रखी हुई थी. वो उसे तुरंत उठा लेती हैं और उसके पन्ने पलटने लगती हैं. तभी सीता भी रूम में आ जाती हैं इसी पहले कि सीता की नज़र उस डायरी पर पड़ती वो उसे झट से अपने बॅग में रख लेती हैं.

सीता- लो बेटी चाइ पी लो. ये लड़की भी ना कुछ समझ नही आता इसका. पता नहीं कब मेच्यूर होगी.

तभी एक कबाड़ी वाला वहाँ से गुज़रता हैं और सीता दौड़ कर उसे आवाज़ देती हैं.

सीता- आरे भैया रूको घर पर बहुत सारे पुराने कापी किताबें रखी हैं ज़रा इसको लेते जाओ.

फिर सीता वो सारी पुरानी किताबें वहीं कबाड़ी वाले को दे देती हैं.

सीता- चलो घर का कचरा तो सॉफ हुआ. पता नहीं कितने महीनों से पड़ा हुआ था.

राधिका- अब मुझे चलना चाहिए आंटी. मैं बाद में आकर निशा से मिल लूँगी.

राधिका भी तुरंत अपने घर की ओर निकल पड़ती हैं. वो उस डायरी को जल्दी से जल्दी पढ़ना चाहती थी.और जानना चाहती थी क्या हैं निशा के दिल का राज़..

जैसे ही राधिका घर पहुँचती हैं उसकी धड़कनें वैसे वैसे बढ़ने लगती हैं. वो तुरंत घर का लॉक खोलती हैं और झट से अपने बेडरूम में आकर वो डायरी को अपने बॅग से बाहर निकालती है. फिर वही बेड पर लेटकर वो डायरी को पढ़ना शुरू करती हैं.

जैसे ही राधिका डायरी खोलती हैं डायरी के पहले पन्ने पर ही एक तारीख लिखी हुई थी 19-सेप-2008. ये वो तारीख थी जिस दिन राधिका और निशा का जग्गा नाम के गुंडे से बहस हुई थी और राधिका ने उस जग्गा का पूरा बॅंड बजाया था. मगर इसी दिन तो राहुल से भी उन्दोनो की पहली मुलाकात हुई थी. राधिका अपने दिमाग़ पर ज़्यादा ज़ोर डालते हुए इस तारीख के बारे में सोचने लगती है. थोड़े देर के बाद उसे भी कुछ धुन्दलि सी तस्वीर उसके आँखों के सामने याद आने लगती हैं.

फिर वो डायरी का दूसरा पन्ना पलट ती हैं और जो बात निशा ने राहुल के बारे में उससे मज़ाक में की थी कि ""पहली नज़र का प्यार"" वो सारी बातें उसकी सारी फीलिंग सब कुछ इसमें लिखा हुआ था. वो राहुल के बारे में क्या सोचती हैं उसकी पसंद ना पसंद सब कुछ. जैसे जैसे राधिका डायरी के एक एक पन्ने खोलती जाती हैं उसकी आँखों से आँसू फुट पड़ते हैं. करीब एक घंटे तक वो उस डायरी को पढ़ती हैं और लगातार उसकी आँखों नम ही रहती हैं. डायरी पढ़ लेने के बाद वो समझ जाती हैं कि निशा राहुल से किस कदर मुहब्बत करती हैं.
 
डायरी के आखरी पन्नो पर जब उसकी नज़र पड़ती हैं तो उसके होश उड़ जाते हैं. निशा ने लाल अक्षरों से सॉफ सॉफ लिखा था कि अगर राहुल मेरा नहीं हो सका तो मैं अपने आप को हमेशा हमेशा के लिए मिटा दूँगी.

राधिका जब पूरा डायरी पढ़ लेती हैं तो उसका शक़ पूरा यकीन में बदल जाता हैं कि निशा का प्यार और कोई नहीं बल्कि राहुल ही हैं. और उसे ऐसा लगने लगता हैं कि वो शायद निशा और राहुल के बीच में आ गयी हैं. आज राधिका की भी आँखें नम थी. आब उसके सामने केवल दो ही रास्ते बचे थे या तो दोस्ती के लिए अपने प्यार को कुर्बान कर देना या फिर प्यार के लिए दोस्ती को. अब यहाँ पर फ़ैसला राधिका को लेना था कि वो कौन सा ऑप्षन चूज़ करती हैं.. दोस्ती...................या प्यार.

काफ़ी देर तक वो ऐसे ही गुम्सुम बैठी रहती हैं. आज वक़्त ने उसके सामने ऐसी परिस्थिती खड़ा कर दी थी कि वो चाह कर भी कोई फ़ैसला नहीं ले पा रही थी. बस वो एक टक राहुल के बारे में सोचने लगती हैं और उसकी आँखें फिर से नम हो जाती हैं...............

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उधेर निशा भी राधिका के जाने के करीब 1/2 घंटे बाद घर आती हैं. और आज भी उसका मूड बहुत डिस्टर्ब था. वो कुछ बोलती नहीं बस चुप चाप सीधे अपने कमरे में आकर बिस्तेर पर लेट जाती हैं. थोड़े देर में सीता भी उसके रूम में आती हैं.

सीता- आ गयी तू. अभी तुझसे राधिका मिलने आई थी. थोड़ा देर इंतेज़ार किया फिर वो अपने घर निकल गयी.

निशा- क्या??? लेकिन ऐसा आचनक बिन बताए. कोई बात थी क्या ???

सीता- नहीं ज़्यादा कुछ कहा नहीं बस चाइ पी और इधेर उधेर की दो चार बातें की और बस......

निशा- ठीक हैं मा. मैं राधिका से बाद में बात कर लूँगी.

सीता फिर अपने कमरे में आ जाती हैं और घर के काम में जुट जाती हैं. और उधेर निशा जाकर अपनी डायरी ड्रॉयर से निकालती हैं मगर उसे अपनी डायरी कहीं नज़र नहीं आती. जब वो पूरा घर छान मारती हैं तो वो परेशान होकर अपनी मा को आवाज़ देती हैं..

निशा- मम्मी क्या आपने मेरे ड्रॉयर में मैने एक लाल कलर की डायरी रखी थी.क्या आपने वो डायरी देखी हैं???

सीता- पता नहीं . हां याद आया आज कबाड़ी वाला आया था तो मैने घर में रखा सारा पुराना कापी किताब सब बेच दिया. हो सकता हैं वो डायरी भी वो कबाड़ी वाला ले गया हो.

निशा अपने सिर पर हाथ रखते हुए- हे भगवान कम से कम आपको मुझसे एक बार पूछ तो लेना चाहिए था ना. आप जानती नहीं हैं वो डायरी मेरे लिए कितनी इंपॉर्टेंट थी.

सीता- पर तू भी अपनी सारे किताबें इधेर उधेर हमेशा फेंक कर रखती हैं तो मुझे क्या मालूम कि कौन से किताब तेरे लिए ज़रूरी हैं और कौन नहीं. और सीता फिर अपने कमरे में चली जाती हैं.

निशा भी उस डायरी के खो जाने से काफ़ी परेशान रहती हैं. मगर उसे मालूम था कि वो डायरी उसे अब कभी नहीं मिलेगी. गुस्सा तो उसे अपनी मम्मी पर बहुत आता हैं मगर वो कुछ कहती नहीं और जाकर बिस्तर पर चुप चाप लेट जाती हैं.

जिस तरह निशा को डायरी लिखने का शौक था उसी तरह राधिका की भी हॉबी थी. और ये प्रेणना उसे राधिका से ही मिली थी. तब से वो भी अपनी पर्सनल मॅटर डायरी में ही लिखती थी.

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इधेर मोनिका ने भी अपनी डील की शुरूवात की पहली पहल शुरू कर दी थी. वो तो बस यही चाहती ही कि वो कैसे भी विजय और बिहारी के चंगुल से बाहर निकले चाहे इसके बदले राधिका की ही बलि क्यों ना देनी पड़े. और वो ये बात भी अच्छे से जानती थी कि अगर एक बार राधिका उनके चंगुल में फँस गयी तो उसकी ज़िंदगी पूरी तरह तबाह हो जाएगी. मगर स्वार्थ आदमी को कितना अँधा बना देता हैं. आज मोनिका अपने फ़ायदे के लिए राधिका को भी बर्बाद करने से पीछे नही हटने वाली थी.

थोड़ी देर के बाद राधिका के मोबाइल पर एक कॉल आता हैं. नंबर अननोन था.

राधिका- हेलो!!! कौन???

फोन मोनिका ने ही किया था.

मोनिका- क्या आप राधिका बोल रहीं हैं.

राधिका- हां कहिए क्या बात हैं. और आप कौन.???

मोनिका- कौन हूँ मैं ये बताने के लिए मैने फोन नहीं किया हैं. मैं जानती हूँ कि तुम इस वक़्त अपने घर पर बिल्कुल अकेली हो.

राधिका- देखिए आप बोल कौन रहीं हैं और आपको ये सब कैसे पता.

मोनिका- मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम्हारे भाई का नाम कृष्णा हैं ना. और वो तुमसे यही बता कर घर से गया होगा कि वो आज काम पर जा रहा हैं. वो कोई काम पर नहीं गया हैं. मैने यही अभी थोड़े देर पहले उसे एक वेश्या के साथ देखा हैं.

राधिका- ज़ोर से चिल्लाते हुए- आप बोल कौन रहीं हैं और आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरे भैया के बारे में ऐसे गंदी बातें बोलने की.

मोनिका- चिल्लाने से सच नहीं बदल जाएगा. अगर तुम्हें यकीन नही होता मेरी बात का तो मैं तुम्हें एक अड्रेस देती हूँ. तुम तुरंत वहाँ पर पहुँच जाओ और जाकर खुद ही अपनी आँखों से देख लो. अगर मेरी बात झूट निकले तो जो सज़ा दोगि मुझे मंज़ूर होगा. फिर मोनिका उसे एक अड्रेस देती हैं.
 
मोनिका- ज़्यादा दिमाग़ पर ज़ोर मत डालो कि मैं कौन हूँ और ये सब बातें तुम्हें क्यों बता रही हूँ बस जहाँ का अड्रेस दिया हैं वहाँ पर तुरंत पहुँच जाओ और अपने भैया के करेक्टर को अपनी आँखों से आकर देखो.और हां जो भी हूँ तुम्हारी शुभ चिंतक ही हूँ. और इतना बोलकर मोनिका फोन रख देती हैं.

राधिका की परेशानी दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी. उसे तो लगा था कि अब उसके भैया रंडी बाज़ी छोड़ चुके होंगे.और वो पूरी तरह से उसके लिए बदल गये होंगे. यह सब सोचकर वो तुरंत तैयार होती हैं और मोनिका के बताए जगह पर निकल पड़ती हैं. जिस एरिया में वो जाती हैं वो एक बहुत ही गंदी बस्ती थी. वहाँ पर एक भी पक्का मकान नही था. सब घरों के उपर छज्जे लगे हुए थे. और सभी घर टूटे फुट थे. जैसे जैसे उसके कदम आगे बढ़ रहें थे उसकी दिल की धड़कने भी वैसे वैसे तेज़ होती जा रही थी. वो तो यही भगवान से मना रही थी की ये बात झूट हो. पर कोई उससे क्यों इस तरह से मज़ाक करेगा.

वहाँ पर जितने भी लोग थे सब के सब राधिका को खा जाने वाली नजरो से देख रहे थे. लेकिन वो ये सब परवाह ना करते हुए आगे बढ़ती हैं और थोड़ी दूर के बाद उसे वो घर मिल जाता है जहाँ का उसके पास अड्रेस था. वो बहुत असमंजस में फँसी रहती हैं. हर तरफ गंदगी और नंगे बच्चे इधेर उधेर खेलते रहते हैं. चारों तरफ बदबू ही बदबू. उसे बहुत बुरा लगता हैं और वो जाकर उस घर के दरवाज़े के सामने खड़ी हो जाती हैं.

फिर एक हाथ आगे बढ़ाकर वो दरवाजा खटखटाती हैं और कुछ देर के बाद दरवाज़ा खुलता हैं और सामने जिस इंसान की शकल उसे दिखाई देता है उसे ऐसा लगता हैं कि उसके शरीर का पूरा खून किसी ने निकाल लिया हो और वो बुत बनकर एक टक उस शक्श को देखने लगती हैं.
 
वक़्त के हाथों मजबूर--24

सामने जो शक्श खड़ा था वो और कोई नहीं बल्कि कृष्णा था. और उस वक़्त उसके शरीर पर मात्र एक लूँगी थी. जैसे ही कृष्णा की नज़र राधिका पर पड़ती हैं कृष्णा की तो पाँव तले ज़मीन खिसक जाती हैं. वो कभी सपने में भी अपनी बेहन को यहाँ पर होने की उम्मीद नही किया था. वो भी बस ऐसे ही खामोश होकर राधिका को हैरत से देखने लगता हैं.

राधिका- तो यहाँ पर ये काम आप कर रहें हैं. ठीक कह रही हूँ ना मैं.....

तभी अंदर से एक औरत की आवाज़ आती हैं..... कौन है ???

राधिका भी झट से अंदर आ जाती हैं. सामने एक औरत पूरी तरह से नंगी हालत में बिस्तेर पर पड़ी हुई थी. जैसे ही उस औरत की नज़र राधिका पर पड़ती हैं वो तुरंत वहाँ रखा कंबल ओढ़ लेती हैं. कृशा भी राधिका के पीछे पीछे आ जाता हैं.

राधिका- शरम आती हैं भैया मुझे आप पर. मैने आप पर कितना भरोसा किया था और आपने मेरे भरोसे का ये सिला दिया.

कृष्णा- मुझे माफ़ कर दे राधिका. मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी.

राधिका- बस.........अब बंद करो भैया ये सब ढोंगबाज़ी. सच तो ये हैं कि आप कभी सुधर ही नहीं सकते. मैने ही आपको पहचानने में भूल की थी. आज फिर अपने ये साबित कर दिया कि मैं......................

राधिका इससे आगे कुछ बोल पाती तभी वो औरत तुरंत बीच में बोल पड़ती हैं- वाह वाह क्या तेवर हैं इसके. साली जितनी मस्त हैं उतनी तेज़ इसकी ज़ुबान भी चलती हैं.अगर ये हमारे धंधे में आ जाए तो साला अपनी तो लॉटरी खुल जाए. इसको देखकर ही मूह माँगी रकम मिलेगी.

कृष्णा इतना सुनते ही आग बाबूला हो जाता हैं और जाकर उस औरत को एक थप्पड़ कस कर उसके गाल पर जड़ देता हैं.

राधिका- बस करो भैया. क्या यही सब अब बच गया था मुझे देखने और सुनने को. ये सब देखने से तो अच्छा था कि मैं मर गयी होती. और इतना कहकर राधिका की आँखों से आँसू निकल पड़ते हैं.

कृष्णा कुछ कह नही पाता और चुप चाप अपना सिर नीचे झुकाए खड़ा रहता हैं.

राधिका आगे कुछ नहीं कहती और चुप चाप वो भी वहाँ से बाहर निकलकर अपने घर की तरफ चल पड़ती हैं. आज उसके भैया की वजह से एक रंडी ने उसे ऐसे शब्द बोल दिए थे जिसकी वजह से उसका दिल आज पूरी तरह से टूट गया था. रास्ते भर वो यही सोच रही थी कि कौन हो सकती हैं वो जिसने मुझे फोन करके ये खबर दी थी. आख़िर क्या साबित करना चाहती हैं. पता नहीं वो एक दोस्त के नाते ये सब कर रही हैं या मुझसे कोई दुश्मनी निकाल रही हैं.

आज राधिका पूरी तरह से डिस्टर्ब थी. जैसे तैसे वो घर पहुँचती हैं और आकर धम्म से बिस्तेर पर गिर पड़ती हैं. और ना जाने कितने देर तक उसके आँखों से आँसू बहते रहते हैं.

इधेर कृष्णा भी जल्दी से अपने कपड़े पहनकर बाहर आज जाता हैं. वो आज किसी भी कीमत पर राधिका को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था. उसे पता था कि आज उसकी वजह से राधिका को कितना बड़ा धक्का लगा हैं. आज उसका अपने भैया के प्रति जो विश्वास था वो आज पूरी तरह टूट कर बिखेर गया था. जो वो अब अपने भाई पर करने लगी थी. लेकिन कृष्णा के मन में ये बात बार बार परेशान कर रही थी कि आख़िर राधिका को ये सब बातें कैसे पता चली. किसने बताया उसे यहाँ का पता. मगर आज उसके अंदर थोड़ी भी हिम्मत नहीं बची थी कि वो राधिका से इस बारे में कोई सवाल जवाब करें.

ग़लती तो यहाँ पर कृष्णा की भी नहीं थी. आज सुबह राधिका ने उसके साथ जो हरकत की थी उससे उसका खून पहले से ही गरम हो गया था. आज बार बार राधिका के बूब्स उसकी नजरो के सामने घूम रहे थे.जब उसने आज पहली बार राधिका के बूब्स को अपने इन कठोर हाथों में महसूस किया था वो एहसास उसके दिमाग़ से नहीं निकल पा रहा था. वो तो हमेशा से ही राधिका के नाम की मूठ मारा करता था. मगर आज उसे ऐसा मौका भी नहीं मिला था कि वो आज फारिग हो पाता. इसलिए उसका आज काम में मन नहीं लग रहा था. इस वजह से वो आज सीधा एक रंडी के पास चला गया था अपनी प्यास को बुझाने मगर वहाँ भी निराशा ही उसके हाथ लगी.
 
इधेर राधिका का भी आत्म सम्मान और विश्वास पूरा टूट चुका था. वो बहुत देर तक ऐसे ही बिस्तेर पर रोती रहती हैं फिर अचानक से उठकर वो अपने भैया के कमरे में जाती हैं और जाकर उनके रूम की अलमारी खोलती हैं. और अलमारी में कुछ ढूँडने लगती हैं. और थोड़ी देर के बाद उसे वो चीज़ मिल जाती हैं.

करीब शाम को 6 बजे कृष्णा घर आता हैं. आज वो ये सोच कर आया था कि चाहे राधिका उसको कुछ भी बुरा भला कहे वो एक शब्द कुछ भी नहीं कहेगा. और उसकी मन की पूरी भडास निकाल लेने देगा. आख़िर सारी ग़लती उसकी की तो थी. जैसे ही वो अपने मेन डोर के पास पहुँचता हैं दरवाजा पहले से ही सटा हुआ था. वो भी चुप चाप दरवाजा बंद करके अंदर आ जाता हैं.

अंदर आकर जब उसकी नज़र राधिका पर पड़ती हैं तो कृष्णा लगभग चीखता हुआ राधिका के पास दौड़ कर आता हैं. जिस अवस्था में राधिका बिस्तेर पर सोई हुई थी वो उस वक़्त वो शराब के नशे में थी. आज ज़िंदगी में पहली बार राधिका ने शारब को हाथ लगाया था.

कहते हैं ना इंसान को अगर गम भूलना हो तो उसे शराब का सहारा लेना पड़ता हैं. और राधिका ने भी आज अपना गम भूलने के लिए आज शराब का शहरा लिया था. वो आज बेसूध होकर बिस्तेर पर पड़ी हुई थी. और साथ में उसके हाथ में एक विल्स सिगरेट का पॅकेट भी था.राधिका ने आज 2 पेग विस्की और साथ में 2 सिगरेटेस भी पी थी. ये सब देखकर तो कृष्णा के होश उड़ जाते हैं.

वो राधिका के एक दम करीब आता हैं और राधिका के गाल पर अपने हाथ रखकर उसे हिलाता हैं. थोड़ी देर के बाद राधिका अपनी आँखें खोलती हैं.

राधिका की ज़ुबान लड़खाड़े हुए निकलती हैं.

राधिका- भैया... आप ..आ गये .

कृष्णा- राधिका तूने शराब पी हैं.

राधिका- क्यों भैया...... नहीं.. पी सकती क्या..आख़िर क्या बुराई..... हैं... सब लोग ...तो पीते हैं...फिर.

कृष्णा- मुझे विश्वास नहीं होता राधिका कि तू ये सब..............

राधिका- किश विश्वास की बात कर रहे हो भैया.... वो विश्वास जो मैने आप पर अपने आप से ज़्यादा किया था..... वो विश्वास जो अबी अबी आप कुछ देर पहले उसकी धज़ियाँ उड़ा चुके हैं.

कृष्णा- तुझे जो कहना हैं कह ले. जो सज़ा मुझे देनी हैं दे दे. मुझे सब मंज़ूर हैं मगर तू अपने आप को इसकी सज़ा क्यों दे रही हैं. क्यों तू अपने आप को बर्बाद करने पर तुली हुई हैं.

राधिका- सब कुछ ख़तम हो गया भैया. सब कुछ..

कृष्णा- नहीं राधिका ऐसा मत बोल मैं तेरा गुनेहगार हूँ. तुझे जो भी सज़ा देनी हैं, मुझे दे. मैं उफ्फ तक नहीं करूँगा. लेकिन तू आपने आप को इसकी सज़ा क्यों दे रहीं हैं.

राधिका- भैया कितना आसान हैं ना किसी के विश्वास को पल भर में तोड़ कर बस सॉरी बोल देना. भैया मेरे माफ़ करने ना करने से क्या होगा. आपने तो ना सिर्फ़ मेरा विश्वास को तोड़ा हैं बल्कि आज मेरे आत्म सम्मान को भी चोट पहुँचाई हैं. आपकी वजह से एक रंडी ने मेरी तुलना आप आप से की. उसका भी कहना सही हैं. मैं हूँ ही इसी लायक.

कृष्णा की आँखों से भी आँसू निकल पड़ते हैं.
 
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