hotaks444
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मा की साँसें तेज चलने लगी. मैं भी बहुत उत्तेजित था, न जाने क्यों एक दूसरे
पुरुष के लंड को देखकर मुझे इतने उत्तेजना क्यों हुई! पर मैं खुश भी
था, मा के मतवाले शरीर को भोगने के लिए इससे अच्छे लंड की मैं कल्पना
भी नही कर सकता था. मा के सौंदर्य के लिए परफ़ेक्ट जोड़ था यह.
मा की अवस्था देखकर शशिकला गर्व से बोली "पसंद आया मा? मेरे डॅडी
लाखों मे एक है. पर तुम भी तो अपने इस खूबसूरत लाड़ले को नंगा करो,
मुझे देखना है कपड़े निकाल कर कैसा दिखता है? अंदर से भी क्या इतना
ही नाज़ुक है जितना वैसे दिखता है"
मा मेरे पास आई और मेरा चुंबन ले कर मेरे कपड़े उतारने लगी. वह
बेहद उत्तेजित थी. मुझे बार बार चूमते हुए उसने मेरे सब कपड़े उतार दिए.
बड़े शान से मुझे उसने शशिकला को दिखाया जैसे अपनी बनाई कोई कलाकृति
दिखा रही हो.
मुझे देखकर शशिकला ने सीटी बजा दी, एकदम मस्त सीटी. बड़ी चालू चीज़
थी. मैं शरमा गया पर अच्छा भी लगा "अरे क्या चीज़ है मा, एकदम गुड्डा
है, प्यारा खिलौने जैसा, कितना चिकना है, मुझे लगता है कि इससे चिकनी
तो लड़किया भी कम मिलेगी. और इसका यह लंड, मैं मर जाउ, एकदम रसीले
गाजर जैसा है, लगता है अभी खा जाउ, इसके पीछे लड़किया बहुत लगती
होंगी मा? मेरे ख़याल से तो मर्द भी लग जाएँ ऐसा शरीर है इसका."
मा भी बड़ी शान से बोली "तो? आख़िर मेरा बेटा है, मेरी आँखों का तारा, मुझे
इतना सुख दिया है इसने जो किसी बेटे ने अब तक अपनी मा को नही दिया. और मा
के बदन के रस मे ऐसा डूबा रहता है कि और कही देखने की फुरसत ही नही
है इसे."
शशिकला जाकर अपनी अलमारी से बहुत सी ब्रेसियार उठा लाई. तीन चार उसने मा
को दे दी. "मा, अपने लाड़ले को ज़रा कुर्सी मे आराम से बिताओ और ठीक से हाथ
पैर बाँध दो, मैं डॅडी की खबर लेती हू. ये मर्द बड़ी जल्दी मे होते है,
इनका कंट्रोल भी नही होता. इन्हें बाँधा नही तो आज की इस खूबसूरत रात का ये
कबाड़ा कर देंगे. कुछ नही तो जल्दी मे मूठ मार लेंगे"
"बहुत प्यारी ब्रसियर है तेरी शशि, उन्हें छूकर ही मेरा बेटा बेहाल हो
जाएगा." मा ने मुझे बिठाकर मेरे हाथ और पैर ब्रा से बाँधते हुए कहा.
मुझे रोमांच हो आया, शशिकला की ब्रसियर से मेरे हाथ पैर बँधे थे.
"और ये बड़ी ब्रेसियार किसकी है?" अशोक साहब बोले. उनकी आँखों मे असीम
वासना थी. मैं पहचान गया, शशिकला के हाथ मे मा की पुरानी ब्रेसियर
थी, मा शायद पहले ही उन्हें यहाँ ले आई थी.
"ठीक पहचाना अनिल, मैने मम्मी से पिछले हफ्ते ही मँगवा ली थी, डॅडी
के काम आएँगी मुझे मालूम था." शशिकला अशोकजी के लंड को प्यार से
चूमते हुए बोली. वे अब कुर्सी मे बँधे थे और हिल डुल भी नही सकते थे,
लंड को हाथ लगाने की बात तो दूर रही.
हमे बाँध कर मा और शशिकला एक दूसरे की ओर देखकर हँसी. "चलो, इन
दोनों शैतानों का इंतज़ाम तो हो गया, नही तो ये परेशान कर देते, अब आओ
मा, हफ़्ता हो गया तेरे आगोश मे आए. चलो, मुझे प्यार करो, इन दोनों को भी
देखने दो कि मा बेटी का प्यार कैसा होता है? रात भर इन्हें दिखाएँगे कि
दो औरतें आपस मे कितना मीठा और तीखा प्यार कर सकती है" शशिकला मा
के कपड़े उतारते हुए बोली.
पुरुष के लंड को देखकर मुझे इतने उत्तेजना क्यों हुई! पर मैं खुश भी
था, मा के मतवाले शरीर को भोगने के लिए इससे अच्छे लंड की मैं कल्पना
भी नही कर सकता था. मा के सौंदर्य के लिए परफ़ेक्ट जोड़ था यह.
मा की अवस्था देखकर शशिकला गर्व से बोली "पसंद आया मा? मेरे डॅडी
लाखों मे एक है. पर तुम भी तो अपने इस खूबसूरत लाड़ले को नंगा करो,
मुझे देखना है कपड़े निकाल कर कैसा दिखता है? अंदर से भी क्या इतना
ही नाज़ुक है जितना वैसे दिखता है"
मा मेरे पास आई और मेरा चुंबन ले कर मेरे कपड़े उतारने लगी. वह
बेहद उत्तेजित थी. मुझे बार बार चूमते हुए उसने मेरे सब कपड़े उतार दिए.
बड़े शान से मुझे उसने शशिकला को दिखाया जैसे अपनी बनाई कोई कलाकृति
दिखा रही हो.
मुझे देखकर शशिकला ने सीटी बजा दी, एकदम मस्त सीटी. बड़ी चालू चीज़
थी. मैं शरमा गया पर अच्छा भी लगा "अरे क्या चीज़ है मा, एकदम गुड्डा
है, प्यारा खिलौने जैसा, कितना चिकना है, मुझे लगता है कि इससे चिकनी
तो लड़किया भी कम मिलेगी. और इसका यह लंड, मैं मर जाउ, एकदम रसीले
गाजर जैसा है, लगता है अभी खा जाउ, इसके पीछे लड़किया बहुत लगती
होंगी मा? मेरे ख़याल से तो मर्द भी लग जाएँ ऐसा शरीर है इसका."
मा भी बड़ी शान से बोली "तो? आख़िर मेरा बेटा है, मेरी आँखों का तारा, मुझे
इतना सुख दिया है इसने जो किसी बेटे ने अब तक अपनी मा को नही दिया. और मा
के बदन के रस मे ऐसा डूबा रहता है कि और कही देखने की फुरसत ही नही
है इसे."
शशिकला जाकर अपनी अलमारी से बहुत सी ब्रेसियार उठा लाई. तीन चार उसने मा
को दे दी. "मा, अपने लाड़ले को ज़रा कुर्सी मे आराम से बिताओ और ठीक से हाथ
पैर बाँध दो, मैं डॅडी की खबर लेती हू. ये मर्द बड़ी जल्दी मे होते है,
इनका कंट्रोल भी नही होता. इन्हें बाँधा नही तो आज की इस खूबसूरत रात का ये
कबाड़ा कर देंगे. कुछ नही तो जल्दी मे मूठ मार लेंगे"
"बहुत प्यारी ब्रसियर है तेरी शशि, उन्हें छूकर ही मेरा बेटा बेहाल हो
जाएगा." मा ने मुझे बिठाकर मेरे हाथ और पैर ब्रा से बाँधते हुए कहा.
मुझे रोमांच हो आया, शशिकला की ब्रसियर से मेरे हाथ पैर बँधे थे.
"और ये बड़ी ब्रेसियार किसकी है?" अशोक साहब बोले. उनकी आँखों मे असीम
वासना थी. मैं पहचान गया, शशिकला के हाथ मे मा की पुरानी ब्रेसियर
थी, मा शायद पहले ही उन्हें यहाँ ले आई थी.
"ठीक पहचाना अनिल, मैने मम्मी से पिछले हफ्ते ही मँगवा ली थी, डॅडी
के काम आएँगी मुझे मालूम था." शशिकला अशोकजी के लंड को प्यार से
चूमते हुए बोली. वे अब कुर्सी मे बँधे थे और हिल डुल भी नही सकते थे,
लंड को हाथ लगाने की बात तो दूर रही.
हमे बाँध कर मा और शशिकला एक दूसरे की ओर देखकर हँसी. "चलो, इन
दोनों शैतानों का इंतज़ाम तो हो गया, नही तो ये परेशान कर देते, अब आओ
मा, हफ़्ता हो गया तेरे आगोश मे आए. चलो, मुझे प्यार करो, इन दोनों को भी
देखने दो कि मा बेटी का प्यार कैसा होता है? रात भर इन्हें दिखाएँगे कि
दो औरतें आपस मे कितना मीठा और तीखा प्यार कर सकती है" शशिकला मा
के कपड़े उतारते हुए बोली.