hotaks444
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अपडेट........《 58 》
अब तक,,,,,,,
हाॅस्पिटल के सामने कार के रुकते ही मैने जल्दी से गेट खोला और नीलम को सावधानी से निकाल कर अपनी गोंद में लिया और बिना किसी की तरफ देखे हाॅस्पिटल की तरफ लगभग दौड़ते हुए जाने लगा। मेरे पीछे ही बाॅकी सब भी आ रहे थे। कुछ ही देर में मैं नीलम को लिए हाॅस्पिटल के अंदर आ गया। वहाॅ का माहौल देख कर ऐसा लगा जैसे वहाॅ के डाक्टर तथा कर्मचारी हमारा ही इन्तज़ार कर रहे थे। जल्द ही दो आदमी स्ट्रेचर लिये मेरे पास आए। मैने आहिस्ता से नीलम को स्ट्रेचर पर लिटा दिया। मेरे लेटाते ही वो दोनो आदमी स्ट्रेचर को तेज़ी से ठेलते हुए ले जाने लगे। मैं, आदित्य, रितू दीदी व सोनम दीदी भी साथ ही साथ चलने लगे थे। थोड़ी ही देर में वो दोनो आदमी नीलम को स्ट्रेचर सहित ओटी में ले गए। डाक्टर ने हम सबको ओटी के बाहर ही रोंक दिया और खुद अंदर चला गया।
हम चारो वहीं पर खड़े रह गए थे। हम चारों के मन में बस एक ही बात थी कि नीलम को कुछ न हो। अभी हम सब वहाॅ पर खड़े ही थे कि तभी वहाॅ पर एसीपी रमाकान्त शुक्ला भी आ गया। उसने आते ही रितू दीदी से नीलम के बारे में पूछा तो दीदी ने बता दिया कि अभी अभी उसे ओटी में ले जाया गया है। एसीपी ने रितू दीदी से कहा कि उसने समूचे हास्पिटल में अंदर बाहर पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में तैनात कर दिये हैं। इस लिए अब किसी बात का ख़तरा नहीं है। एसीपी की बात सुन कर रितू दीदी ने उसे इसके लिए धन्यवाद किया। कुछ देर बाद एसीपी ये कह कर चला गया कि वो नीलम का हाल चाल लेने फिर आएगा।
एसीपी के जाने के कुछ देर बाद हम चारों वहीं गैलरी पर दीवार से सटी हुई रखी लम्बी चेयर्स पर बैठ गए। कुछ देर बाद मैं उठा और हाॅस्पिटल से बाहर पानी लाने के लिए चला गया। पानी लाकर मैने रितू दीदी व सोनम दीदी को दिया। उसके बाद उसी कुर्सी पर बैठ कर हम सब डाॅक्टर के बाहर आने का इन्तज़ार करने लगे। हम सबके लबों से बस एक ही दुवा निकल रही कि नीलम को कुछ न हो।
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अब आगे,,,,,,,,
उधर हवेली में।
ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी प्रतिमा अपने मोबाइल से बार बार अपने पति अजय सिंह के मोबाइल पर फोन लगा रही थी किन्तु अजय सिंह का फोन बंद बता रहा था। अजय सिंह का फोन बंद बताने से प्रतिमा को किसी अनहोनी आशंका होने लगी थी। उसके चेहरे पर एकाएक ही गहन चिंता, परेशानी तथा बेचैनी के भाव उभर आए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अजय ने अपना फोन क्यों बंद कर रखा है? वो अजय सिंह से फोन पर बात करके ये जानना चाहती थी कि वो इस वक्त कहाॅ है तथा बाॅकियों के हालात कैसे हैं? मगर अजय सिंह का फोन बंद बताने से प्रतिमा को अब प्रतिपल बेचैनी सी होने लगी थी। उसके मन में तरह तरह के ख़यालों का आवागमन शुरू हो गया था।
उसके सामने ही दूसरे सोफे पर शिवा किसी और ही दुनियाॅ में खोया हुआ नज़र आ रहा था। उसे जैसे अपने माॅ बाप की कोई ख़बर ही नहीं थी। वो तो बस सोनम के ख़यालों में खोया हुआ था। नीलम व सोनम को अब तक तीन से चार घंटे हो गए थे। मगर वो दोनो अब तक वापस नहीं लौटी थी। किन्तु शिवा को जैसे समय का ख़याल ही नहीं था। वो तो बस अपनी ऑखों के सामने नज़र आ रहे सोनम के खूबसूरत चेहरे को ही अपलक देखे जा रहा था। हलाॅकि जब प्रतिमा ने उसे इस बात से अवगत कराया कि वो दोनो यहाॅ से भागने का सोच कर ही गई हो सकती हैं तो शिवा का दिल एकदम से बैठ सा गया था। बाद में प्रतिमा के ही निर्देश पर उसने कुछ नये आदमियों की मजबूत टीम बना कर उनके पीछे लगा दिया था।
"उफ्फ क्या करूॅ इस इंसान का।" सहसा तभी प्रतिमा की खीझी हुई इस आवाज़ से शिवा हकीक़त की दुनियाॅ में आया, जबकि प्रतिमा कह रही थी____"कभी कोई काम ठीक से नहीं कर सकते हैं। ये तो हद हो गई, इतना लापरवाह इंसान मैने आज तक नहीं देखा।"
"क्या हुआ माॅम?" शिवा ने प्रतिमा के एकाएक ही तमतमा गए चेहरे को देखते हुए कहा____"किस लापरवाह इंसान की बात कर रही हैं आप?"
"तुम्हारे बाप की।" प्रतिमा ने आवेश में कहा___"जो कि हद दर्ज़े का लापरवाह और बेवकूफ इंसान है।"
"अरे ये आप क्या कह रही हैं माॅम?" शिवा अपनी माॅ की बातों से बुरी तरह हैरान रह गया।
"सच ही तो कह रही हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"वरना कौन ऐसा करता है कि इतनी ख़राब सिचुएशन में होकर अपना फोन ही बंद कर दे?"
"क्या मतलब???" शिवा जैसे चकरा सा गया।
"तुम्हारे बाप से फोन द्वारा पूछना चाहती थी कि वहाॅ के हालात कैसे हैं?" प्रतिमा ने कहा___"मगर महाशय का मोबाइल फोन ही ऑफ बता रहा है। अब तुम ही बताओ कि ऐसे हालात में कौन अपना फोन कर बंद करके रखता है?"
"बात तो आपने सही कही माॅम।" शिवा के चेहरे पर एकाएक सोचने वाले भाव उभरे____"ऐसे हालात में कोई भी अपना फोन ऑफ नहीं रख सकता। हाॅ अगर मोबाइल ही डिस्चार्ज़ हो गया हो तो अलग बात है। लेकिन माॅम मुझे यकीन है डैड अपना फोन ऑफ नहीं करेंगे ऐसे वक्त में। ज़रूर कोई बात हो गई होगी।"
"चुप कर तू।" प्रतिमा अंदर ही अंदर जाने क्यों बुरी तरह हिल गई, बोली___"जो मुह में आता है बिना सोचे समझे बोल देता है।"
"ऐसा नहीं है माॅम।" शिवा ने नर्म भाव से कहा___"लेकिन आप खुद सोचिए कि क्या डैड ऐसे वक्त में अपना फोन ऑफ कर सकते हैं, नहीं ना? उन्हें भी पता है कि हालात कितने गंभीर हैं। लेकिन ये भी सच है कि अगर डैड का फोन ऑफ बता रहा है तो ज़रूर कोई ऐसी बात होगी जिसके बारे में फिलहाल हमें कुछ भी पता नहीं है।"
शिवा की इस बात पर प्रतिमा तुरंत कुछ बोल न सकी। उसके चेहरे पर गहन सोचों के भाव ज़रूर उभर आए थे। जैसा सोच रही हो कि क्या सच में ऐसा कुछ हुआ होगा? उधर अपनी माॅम को सोचों में गुम देख कर शिवा पुनः कह उठा____"इस तरह बैठने से कुछ नहीं होगा माॅम। मुझे लगता है कि हमें डैड का पता करना चाहिए। जैसा कि आपने मुझे बताया था कि आज विराज रितू दीदी के साथ नीलम व सोनम को लेने आने वाला है शायद, इसी लिए आपने उनके पीछे अलग से एक मजबूत टीम बना कर मेरे द्वारा भेजवाया था। वहीं दूसरी तरफ से डैड भी अपने साथ कुछ आदमियों को लिए आ रहे हैं। इस बात से यही ज़ाहिर होता है कि अगर विराज सचमुच आ रहा है तो डैड तथा हमारे आदमियों के साथ उसकी भिड़ंत अनिवार्य है। इस भिड़ंत में यकीनन हमारी जीत होगी। यानी कि अंततः विराज रितू दीदी के साथ पकड़ा ही जाएगा। उसके बाद डैड उन सबको फार्महाउस ले जाएॅगे। फार्महाउस पहुॅचने के बाद ही वो हमें फोन करने वाले थे। किन्तु उनके फोन बंद बताने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमने जो उम्मीद की थी वो हुआ ही नहीं है।"
"नहीं नहीं।" प्रतिमा ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाया, बोली___"ऐसा नहीं हो सकता बेटा। इस बार मैने और तेरे डैड ने उस विराज की सोच से बहुत आगे बढ़ कर प्लान बनाया था। मुझे उसकी सोच का अब अंदाज़ा हो चुका था, इसी लिए तो डबल बैकअप रखा था हमने। एक हमारे आदमियों का दूसरा तेरे डैड के साथ आए आदमियों का। डबल बैकअप के बाद तो जीत हमारी ही होनी निश्चित थी बेटा।"
"काश! ऐसा ही हुआ हो माॅम।" शिवा ने कहा___"उन सबके साथ साथ नीलम व सोनम भी तो पकड़ ली गई होंगी। उफ्फ! कितना भरोसा था मुझे कि सोनम ये गाॅव तथा हमारे खेते घूम कर वापस यहीं आएगी। मगर कदाचित नीलम ने उसे भी सब कुछ बता दिया था तभी तो दोनो एक साथ चली गईं। मगर अब मैं अपने दिल का क्या करूॅ माॅम? ये तो उसी का होकर रह गया है।"
शिवा की इस बात का प्रतिमा अभी कुछ जवाब देने ही वाली थी सहसा तभी ड्राइंग रूम में बड़े वेग से एक आदमी दाखिल हुआ। उसके चेहरे से ही लग रहा था कि वो कहीं से मैराथन दौड़ लगा कर आया है। बुरी तरह हाॅफ रहा था वह। प्रतिमा व शिवा उसे देख कर बुरी तरह चौंक पड़े।
"क्या बात है हैदर?" शिवा ने उसकी तरफ हैरानी से देखते हुए कहा___"तुम इतना हाॅफ क्यों रहे हो? और...और तुम यहाॅ कैसे, तुम तो टीम के साथ ही गए थे न?"
"हाॅ छोटे ठाकुर।" हैदर नाम के उस आदमी ने हाॅ में सिर हिलाते हुए कहा___"गया तो मैं टीम के साथ ही था। मगर,
"मगर क्या???" शिवा उतावलेपन में पूछ बैठा।
"सब कुछ गड़बड़ हो गया छोटे ठाकुर।" हैदर ने दीनहीन दशा में बोला____"ठाकुर साहब ने तो सबको पकड़ ही लिया था और बाज़ी भी हमारे ही हाॅथ में थी। मगर ऐन वक्त पर वहाॅ पुलिस की पूरी फौज आ गई और फिर एसीपी के निर्देश पर सबको हिरासत में ले लिया गया। यहाॅ तक कि ठाकुर साहब को भी वो एसीपी गिरफ्तार करके ले गया है। मैं किसी तरह छुपता छुपाता वहाॅ से निकल कर ये सब बताने के लिए आपके पास आया हूॅ।"
हैदर की बात सुन कर शिवा तथा प्रतिमा दोनो को ही जैसे साॅप सूॅघ गया। दोनो के ही चेहरों की हालत ऐसे हो गई जैसे कपड़े से पानी निचोड़ लेने पर कपड़े की हो जाती है। प्रतिमा को तो ऐसा लगा जैसे दिल का दौरा पड़ जाएगा। उसकी ऑखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। शिवा की नज़र जब प्रतिमा पर पड़ी तो वह अपने सोफे से उठ कर बड़ी तेज़ी से उसके पास आकर उसे सम्हाला। हालत तो उसकी भी ख़राब हो चुकी थी। किन्तु जवान खून था अभी इस लिए हैदर की इस डायनामाइट जैसी बात को हजम कर गया था।
"सब कुछ खत्म हो गया बेटा।" प्रतिमा अपने बेटे की बाहों में सिमटी एकदम से असहाय भाव से बोली___"अब कुछ भी शेष नहीं रहा। तेरी बहन रितू ने अपने महकमे का सहारा ले कर अपने बाप को एक और क्षति पहुॅचा दी। उसने अपने बाप के माथे पर एक और नाकामी की मुहर लगा दी। इस बात से ज़ाहिर होता है कि उसके दिल में अपने माॅ बाप के प्रति ज़रा सी भी जगह नहीं रह गई है।"
"मैं उस कुतिया को ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा माॅम।" शिवा के मुख से सहसा गुर्राहट निकली___"डैड को जेल भिजवा कर उसने ये अच्छा नहीं किया है। भला उसकी हमसे क्या दुश्मनी है माॅम, दुश्मनी तो विराज से है।"
"मैडम, ठाकुर साहब ने गुस्से में आकर अपनी छोटी बेटी नीलम को गोली भी मार दी है।" सहसा हैदर ने ये कह कर मानो धमाका सा किया____"नीलम की हालत बहुत ही गंभीर है। उसे वो लोग यकीनन हास्पिटल ले गए होंगे।"
"ये क्या कह रहे हो तुम??" प्रतिमा हैदर की ये बात सुन कर सकते में आ गई। चेहरा सफेद फक्क पड़ गया।
"हाॅ मैडम।" हैदर ने कहा___"गुस्से में पागल हुए ठाकुर साहब ने एसीपी का रिवील्वर निकाल कर नीलम पर फायर कर दिया था। गोली नीलम की पीठ पर लगी थी। जहाॅ से खूॅन बहे जा रहा था।"
"हे भगवान!।" प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं___"ये कैसा दिन दिखा रहे हो हमे? एक बाप अपनी ही बेटियों के खून का प्यासा हो चुका है।"
"लेकिन हैदर।" प्रतिमा के रुदन पर ज़रा भी ध्यान दिये बग़ैर शिवा ने पूछा___"डैड ने नीलम पर गोली क्यों चलाई थी?"
हैदर ना शुरू से लेकर अंत तक की सारी राम कहानी संक्षेप में कह सुनाई। उसकी इस राम कहानी में वो सीन भी था जिसमें अजय सिंह ने अपनी ही बेटी नीलम से अश्लील बातें की थी। ये भी कि अंत में कैसे नीलम ने ठाकुर साहब को थप्पड़ मारा था जिसकी वजह से गुस्से में आकर अजय सिंह ने एसीपी का रिवाल्वर छीन कर नीलम पर गोली चलाई थी। सारी बातें सुनने के बाद शिवा तो बस हैरान ही था किन्तु प्रतिमा एकदम से मानो बुत बन गई थी। उसका चेहरा एकदम से तेज़हीन सा हो गया था।
"अब मेरे लिए क्या आदेश है छोटे ठाकर?" हैदर ने कहा।
"तुम जाओ हैदर।" शिवा ने गंभीरता से कहा___"गेस्ट हाउस में आराम करो। हम सोचते हैं कि अब इसके आगे हमें क्या करना है?"
शिवा के कहने पर हैदर वहाॅ से चला गया। उसके जाने के बाद ड्राइंगरूम में मरघट जैसा सन्नाटा छा गया। काफी देर तक माॅ बेटे के बीच यही आलम रहा। जैसे उनमें से किसी को कुछ सूझ ही न रहा हो कि अब क्या बात करें?
"आख़िर जिस चीज़ की नियति बन चुकी थी।" सहसा प्रतिमा ने कहीं खोये हुए से कहा___"उसका आग़ाज हो ही गया। इस लड़ाई में किसी न किसी को तो शहीद होना ही है। फिर चाहे वो नीलम ही क्यों न हो?"
"आपने बिलकुल सही कहा माॅम।" शिवा ने भी गंभीर भाव से कहा___"किसी न किसी के साथ तो ये होना ही है। मगर एक बात तो मैं भी कहूॅगा, और वो ये कि डैड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नहीं किया। मैं जानता हूॅ कि आपको मेरी ये बात नागवार लग सकती है। मगर इसके बावजूद कहूॅगा मैं कि डैड को नीलम पर गोली नहीं चलाना चाहिए था। मैं मानता हूॅ कि मेरी दोनो बहनों ने हमसे बगावत करके ग़लत किया है। उन्हें सोचना चाहिए था कि माॅ बाप कैसे भी हों हैं तो अपने ही। वैसे ही डैड को भी सोचना चाहिए था माॅम। हम उन्हें उनके किये की सज़ा ज़रूर देते मगर इस तरह नहीं कि उनको जान से ही मार दें। ये सब उस विराज की वजह हे हुआ है, उसी ने मेरी दोनो बहनों को बहकाया है। उसी ने उन दोनो का ब्रेनवाश किया है, वरना उनके दिलो दिमाग़ में कम से कम ये सोच तो रहती ही कि माॅ बाप जैसे भी हों, वो अपने ही होते हैं।"
प्रतिमा शिवा की ये बातें सुन कर मन ही मन हैरान थी। शिवा का बदला हुआ ये रवैया उसे हजम नहीं हो रहा था। किन्तु उसे ये भी पता था कि शिवा अपने बाप की टूकाॅपी है। यानी सूरज कभी पश्चिम से उदय नहीं हो सकता।
"क्या बात है।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"आज अपनी बहनों से इतनी हमदर्दी? क्या ये सोनम से हुए इश्क़ का असर है बेटा? जिसने तेरी सोच को इस हद तक बदल दिया है?"
"मुझे खुद पता नहीं है माॅम।" शिवा ने नज़रें चुराते हुए कहा___"मैं सिर्फ इतना समझ रहा हूॅ कि डैड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नहीं किया। अगर वही गोली वो विराज पर चला देते तो शायद मुझे उनसे कोई शिकायत न रहती।"
"ख़ैर छोंड़।" प्रतिमा ने इस मैटर को ज्यादा न बढ़ाने की गरज़ से कहा___"अब हमें ये सोचना है कि तेरे डैड को पुलिस से कैसे छुड़ाया जाए? उन पर नीलम को जान से मारने की कोशिश का भी केस लग सकता है, और संभव है कि उस एसीपी ने ये केस लगा भी दिया हो उन पर। अतः हमें अब किसी क़ाबिल वकील से मिलना पड़ेगा। ताकि वो उनको जेल से किसी तरह छुड़ा सके।"
"हाॅ ये सच कहा आपने।" शिवा ने कहा___"डैड को जेल से तो छुड़ाना ही पड़ेगा।"
"रुको मैं पता करती हूॅ।" प्रतिमा ने कहा___"मेरी जानकारी में एक क़ाबिल वकील है जो अजय को जेल से छुड़ा सकती है। मेरी एक काॅलेज फ्रैण्ड है। मैने और अनीता ब्यास ने एक साथ ही एलएलबी किया था। उसके बाद उसने वकालत को ही अपना पेशा बना लिया जबकि मैं अजय के साथ घर बसा कर सिर्फ एक हाउसवाइफ बन कर रह गई। हलाॅकि अजय ने मुझे इस बात के लिए कभी भी मना नहीं किया कि मैं वकालत न करूॅ। बल्कि हमने तो साथ में ही इसकी पढ़ाई की थी। अजय तो चाहते थे कि हम दोनो वकील बन जाएॅ। मगर मैने ही इंकार कर दिया था। किन्तु आज सोचती हूॅ कि काश मैं बन ही जाती तो आज अपने अजय को चुटकियों में जेल से छुड़ा लाती।"
"वकालत तो आप आज भी कर सकती हैं माॅम।" शिवा ने कहा___"आपके पास इस सबके राइट्स तो होंगे ही।"
"सब कुछ है बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"मगर ये सब अब इतना आसान भी नहीं है। उसके लिए पहले इस सबकी बारीकियों को समझना पड़ता है। कई तरह के केसों का अध्ययन करना पड़ता है। मैं कभी कोर्ट के अंदर वकील का चोंगा पहन कर नहीं गई, इस लिए मुझे इसका तज़ुर्बा भी नहीं है। दूसरी बात अनुभव भी कोई चीज़ होती है। जो कि मुझे नहीं है। हर चीज़ का एक क्रम होता है। अगर आप समय के साथ ही साथ लाइन पर चल रहे हैं तब तो आप सीधी लाइन पर ही बिना किसी रुकावट के चलते रहेंगे पर अगर आपने लाइन को बहुत पहले ही छोंड़ दिया है तो फिर लम्बे समय बाद उसी लाइन पर चलना ज़रा मुश्किल सा हो जाता है। वो फिर तभी अपनी लय पर आएगा जब उसकी नियमित प्रैक्टिस हो। ख़ैर, छोंड़ इस बात को। मैं अनीता को फोन लगा कर उससे बात करती हूॅ। मेरे फ्रैण्ड सर्कल में एक वही है जो अब तक मेरे टच में में है। बाॅकियों का तो कहीं पता ही नहीं है।"
कहने के साथ ही प्रतिमा ने अपने मोबाइल को अनलाॅक करके उस पर अनीता ब्यास का नंबर ढूॅढ़ने लगी। जबकि शिवा ये कह कर सोफे से उठा कि वो कुछ देर में आता है अभी।
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केशव जी के जिस आदमी ने फोन पर उस जासूस के बारे में सूचित किया था उसका नाम निरंजन वर्मा था। रितू ने जब केशव जी से कहा कि वो अपने उस आदमी से कहे कि उसे पकड़ने की कोशिश करे और खुद भी वापस जाएॅ वहाॅ तो केशव ने वैसा ही किया था। उन्होंने निरंजन को फोन करके उससे पूछा था कि क्या वो अकेले उस जासूस को पकड़ सकता है तो निरंजन ने कहा कि वो इस बारे में कुछ कह नहीं सकता है। क्योंकि उसने सुना था कि कोई कोई जासूस लड़ने के मामले में भी काफी निपुण होते हैं। इस लिए बेहतर यही होगा कि वो उस पर सिर्फ नज़र रखे और फिर जब वो सब आ जाएॅगे तो उसे जल्द ही घेर लिया जाएगा। केशव जी को भी निरंजन की बात सही लगी। इस लिए वो फुल स्पीड में अपने आदमियों को लिए आ रहे थे।
इधर निरंजन बड़ी सफाई से हरीश राणे पर नज़र रखे हुए था। किन्तु उसे भी पता था कि ये जासूस यहाॅ पर ज्यादा देर तक रुकने वाला नहीं है। उसके पास काले रंग की एक पल्सर बाइक थी। इस वक्त वह बाइक के ही पास नीचे बैठा बाइक में कुछ कर रहा था। निरंजन को समझ नहीं आ रहा था कि वो बाइक के पास इस तरह बैठ कर क्या कर रहा है? निरंजन उससे बस कुछ ही दूरी पर एक पेड़ की ओट में छुप कर खड़ा था और उस पर नज़र रखे हुए था। उसके पास हथियार के रूप में कुछ भी नहीं था। जबकि उसे पूर्ण विश्वास था कि उस जासूस के पास रिवाल्वर ज़रूर होगा। यही वजह थी कि वो खुल कर उसके सामने नहीं जा रहा था।
निरंजन के चेहरे पर प्रतिपल बेचैनी बढ़ती जा रही थी। क्योंकि उसे पता था कि जासूस अगर यहाॅ से चला गया तो फिर उसे ढूॅढ़ पाना मुश्किल होगा। अतः वह बार बार देवी माॅ से प्रार्थना कर रहा था कि केशव जी सारे आदमियों को लेकर जल्दी आ जाएॅ। उसकी नज़र सामने ही थी। जहाॅ पल्सर बाइक के पास नीचे बैठा वो जासूस कुछ कर रहा था। जासूस का चेहरा उसके बगल से दिख रहा था। निरंजन के मन में कई बार ये ख़याल आया था कि वो चुपके से जाए और उस जासूस को दबोच ले मगर अगले ही पल वो उसके पास जाने का अपना ये ख़याल त्याग देता था। क्योंकि बार बार उसे उसके पास रिवाल्वर होने का बोध करा देता था। उसने आस पास देख भी लिया था। पास में कहीं भी उसे कोई डंडे जैसी वस्तु भी न नज़र आई थी जिसे लेकर वो उस जासूस के पास चला जाता।
अभी निरंजन उस जासूस को देख ही रहा था कि तभी वो जासूस उठ कर खड़ा हुआ और अपने दाहिने पैर को बाइक के आगे वाले पहिये पर रिम में रख कर उस पर ज़ोर से दबाव बनाया। ये देख कर निरंजन के मस्तिष्क में झनाका सा हुआ। एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। साला इतनी देर से वो समझ नहीं पा रहा था कि ये जासूस बाइक के पास बैठा कर क्या रहा था? अब उसे समझ आया था। दरअसल बाइक का अगला पहिया पंचर था अथवा उसमें हवा कम थी। पहिये पर निरंजन का ध्यान पहली बार गया था। उसने ग़ौर से देखा पहिये पर जहाॅ पर से हवा भरी जाती है वहाॅ पर कोई पतली सी तार या फिर यू कहें कि पतला सा पाइप लगा हुआ था। जिसका दूसरा सिरा इस वक्त उस जासूस के दाहिने हाॅथ में था।
निरंजन को समझ न आया कि अगर बाइक का अगला पहिया पंचर है या उसमे हवा कम है तो वो जासूस यहाॅ पर उसे ठीक कैसे कर लेगा और ये पतला सा पाइप क्यों लगा रखा है उसने पहिये की निब पर? तभी वो जासूस पुनः बैठ गया। इस बार निरंजन ने भी अपनी जगह बदली और फिर ध्यान से देखा उसने। पाइप का दूसरा सिरा उस जासूस ने अपने होठों पर दबाया और फिर निरंजन ने देखा कि जासूस के दोनो गाल फूल गए। ये देख कर निरंजन की हॅसी छूट ही गई होती अगर उसने जल्दी से अपने मुह को अपने हाथों से भींच न लिया होता तो। दरअसल वो जासूस पाइप लगा कर मुह से हवा भर रहा था पहिये पर। बस यही देख कर निरंजन को बड़ी ज़ोर की हॅसी आ गई थी। उसने सोचा कि इसे जासूस किसने बना दिया? भला मुह से भी कोई बाइक के पहिये पर हवा भरता है? ये तो दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य ही है।
निरंजन ने भी सोचा कि बेचारा यहाॅ पर बाइक में हवा भरवाए भी तो कैसे? किन्तु मुख से हवा तो भरने से रही। कहने का मतलब ये कि जासूस की इस क्रिया पर निरंजन उसे बेवकूफ ही समझ रहा था। मगर वो उस वक्त हैरान रह गया जब वो जासूस पुनः उठा और पहले की भाॅति अपना दाहिना पैर रिम में रख दबाव बनाया। उसके चेहरे से ज़ाहिर हुआ कि अब वो संतुष्ट है। उसने झुक कर तुरंत ही पाइप को पहिये के निब से निकाला। निरंजन ने देखा कि निब के पास लगे पाइप के उस छोर पर कोई चीज़ लगी हुई थी। ये देख कर निरंजन का दिमाग़ घूम गया। चकित होकर वह उस जासूस को देखे जा रहा था। अब उसे समझ आया कि वो जासूस यूॅ ही तो नहीं बन गया होगा। ज़रूर उसमें काबीलियत थी।
अभी निरंजन ये सब सोच ही रहा था कि तभी उसने देखा कि वो जासूस उस पाइप को लिए बाइक के बाएॅ साइड आया और फिर अपनी दाहिनी टाॅग उठा कर बाइक की सीट पर बैठ गया। ये देख कर निरंजन एकदम से हड़बड़ा गया। वो समझ गया कि अब ये जासूस यहाॅ से चला जाएगा। निरंजन को समझ न आया कि वो उसे कैसे यहाॅ से जाने से रोंके? वो खुद निहत्था था वरना वो कोई जोखिम उठाने का सोचता भी। उसे पूरा यकीन था कि उस जासूस के पास पिस्तौल होगी। यही वजह थी कि वो उसके पास खुल कर जा नहीं रहा था। किन्तु अब हालात बदल गए थे। क्योंकि निरंजन की ऑखों के सामने ही वो जासूस बाइक पर बैठ चुका था और अब ये भी तय था कि वो बाइक को स्टार्ट कर यहाॅ से चला ही जाएगा।
निरंजन ने देखा कि बाइक पर बैठा जासूस उस पतले से पाइप को गोल गोल छल्ली की शक्ल देकर समेट रहा था। उसकी पीठ निरंजन की तरफ ही थी। पाइप का दूसरा सिरा जासूस की दाहिनी जाॅघ से थोड़ा ही नीचे झूल रहा था और प्रतिपल ऊपर की तरफ उठता भी जा रहा था। ये देख कर निरंजन के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके चेहरे पर एकाएक ही कुछ सोच कर चमक आ गई। वो फुर्ती से अपनी जगह से हिला और फिर बड़ी सावधानी व सतर्कता से लम्बे लम्बे क़दम बढ़ाते हुए जासूस के पीछे पहुॅच गया।
हरीश राणे को सहसा अपने पीछे किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ। उसने इस एहसास के तहत ही जल्दी से पीछे मुड़ कर देखना चाहा मगर अगले ही पल जैसे बिजली सी कौंधी। निरंजन ने डर व भय की वजह से बड़ी ही फुर्ती का प्रदर्शन किया था। उसने जासूस के मुड़ने से पहले ही झुक कर जासूस के नीचे जाॅघ के पास झूलते उस पाइप को पकड़ा और फिर तेज़ी से खड़े होकर उसी छोर से दूसरा हाॅथ सरका कर उसने जासूस के सिर से अपनी एक कलाई घुमा कर बड़ी फुर्ती से उस पाइप को जासूस की गर्दन पर कस दिया।
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हाॅस्पिटल के सामने कार के रुकते ही मैने जल्दी से गेट खोला और नीलम को सावधानी से निकाल कर अपनी गोंद में लिया और बिना किसी की तरफ देखे हाॅस्पिटल की तरफ लगभग दौड़ते हुए जाने लगा। मेरे पीछे ही बाॅकी सब भी आ रहे थे। कुछ ही देर में मैं नीलम को लिए हाॅस्पिटल के अंदर आ गया। वहाॅ का माहौल देख कर ऐसा लगा जैसे वहाॅ के डाक्टर तथा कर्मचारी हमारा ही इन्तज़ार कर रहे थे। जल्द ही दो आदमी स्ट्रेचर लिये मेरे पास आए। मैने आहिस्ता से नीलम को स्ट्रेचर पर लिटा दिया। मेरे लेटाते ही वो दोनो आदमी स्ट्रेचर को तेज़ी से ठेलते हुए ले जाने लगे। मैं, आदित्य, रितू दीदी व सोनम दीदी भी साथ ही साथ चलने लगे थे। थोड़ी ही देर में वो दोनो आदमी नीलम को स्ट्रेचर सहित ओटी में ले गए। डाक्टर ने हम सबको ओटी के बाहर ही रोंक दिया और खुद अंदर चला गया।
हम चारो वहीं पर खड़े रह गए थे। हम चारों के मन में बस एक ही बात थी कि नीलम को कुछ न हो। अभी हम सब वहाॅ पर खड़े ही थे कि तभी वहाॅ पर एसीपी रमाकान्त शुक्ला भी आ गया। उसने आते ही रितू दीदी से नीलम के बारे में पूछा तो दीदी ने बता दिया कि अभी अभी उसे ओटी में ले जाया गया है। एसीपी ने रितू दीदी से कहा कि उसने समूचे हास्पिटल में अंदर बाहर पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में तैनात कर दिये हैं। इस लिए अब किसी बात का ख़तरा नहीं है। एसीपी की बात सुन कर रितू दीदी ने उसे इसके लिए धन्यवाद किया। कुछ देर बाद एसीपी ये कह कर चला गया कि वो नीलम का हाल चाल लेने फिर आएगा।
एसीपी के जाने के कुछ देर बाद हम चारों वहीं गैलरी पर दीवार से सटी हुई रखी लम्बी चेयर्स पर बैठ गए। कुछ देर बाद मैं उठा और हाॅस्पिटल से बाहर पानी लाने के लिए चला गया। पानी लाकर मैने रितू दीदी व सोनम दीदी को दिया। उसके बाद उसी कुर्सी पर बैठ कर हम सब डाॅक्टर के बाहर आने का इन्तज़ार करने लगे। हम सबके लबों से बस एक ही दुवा निकल रही कि नीलम को कुछ न हो।
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उधर हवेली में।
ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी प्रतिमा अपने मोबाइल से बार बार अपने पति अजय सिंह के मोबाइल पर फोन लगा रही थी किन्तु अजय सिंह का फोन बंद बता रहा था। अजय सिंह का फोन बंद बताने से प्रतिमा को किसी अनहोनी आशंका होने लगी थी। उसके चेहरे पर एकाएक ही गहन चिंता, परेशानी तथा बेचैनी के भाव उभर आए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अजय ने अपना फोन क्यों बंद कर रखा है? वो अजय सिंह से फोन पर बात करके ये जानना चाहती थी कि वो इस वक्त कहाॅ है तथा बाॅकियों के हालात कैसे हैं? मगर अजय सिंह का फोन बंद बताने से प्रतिमा को अब प्रतिपल बेचैनी सी होने लगी थी। उसके मन में तरह तरह के ख़यालों का आवागमन शुरू हो गया था।
उसके सामने ही दूसरे सोफे पर शिवा किसी और ही दुनियाॅ में खोया हुआ नज़र आ रहा था। उसे जैसे अपने माॅ बाप की कोई ख़बर ही नहीं थी। वो तो बस सोनम के ख़यालों में खोया हुआ था। नीलम व सोनम को अब तक तीन से चार घंटे हो गए थे। मगर वो दोनो अब तक वापस नहीं लौटी थी। किन्तु शिवा को जैसे समय का ख़याल ही नहीं था। वो तो बस अपनी ऑखों के सामने नज़र आ रहे सोनम के खूबसूरत चेहरे को ही अपलक देखे जा रहा था। हलाॅकि जब प्रतिमा ने उसे इस बात से अवगत कराया कि वो दोनो यहाॅ से भागने का सोच कर ही गई हो सकती हैं तो शिवा का दिल एकदम से बैठ सा गया था। बाद में प्रतिमा के ही निर्देश पर उसने कुछ नये आदमियों की मजबूत टीम बना कर उनके पीछे लगा दिया था।
"उफ्फ क्या करूॅ इस इंसान का।" सहसा तभी प्रतिमा की खीझी हुई इस आवाज़ से शिवा हकीक़त की दुनियाॅ में आया, जबकि प्रतिमा कह रही थी____"कभी कोई काम ठीक से नहीं कर सकते हैं। ये तो हद हो गई, इतना लापरवाह इंसान मैने आज तक नहीं देखा।"
"क्या हुआ माॅम?" शिवा ने प्रतिमा के एकाएक ही तमतमा गए चेहरे को देखते हुए कहा____"किस लापरवाह इंसान की बात कर रही हैं आप?"
"तुम्हारे बाप की।" प्रतिमा ने आवेश में कहा___"जो कि हद दर्ज़े का लापरवाह और बेवकूफ इंसान है।"
"अरे ये आप क्या कह रही हैं माॅम?" शिवा अपनी माॅ की बातों से बुरी तरह हैरान रह गया।
"सच ही तो कह रही हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"वरना कौन ऐसा करता है कि इतनी ख़राब सिचुएशन में होकर अपना फोन ही बंद कर दे?"
"क्या मतलब???" शिवा जैसे चकरा सा गया।
"तुम्हारे बाप से फोन द्वारा पूछना चाहती थी कि वहाॅ के हालात कैसे हैं?" प्रतिमा ने कहा___"मगर महाशय का मोबाइल फोन ही ऑफ बता रहा है। अब तुम ही बताओ कि ऐसे हालात में कौन अपना फोन कर बंद करके रखता है?"
"बात तो आपने सही कही माॅम।" शिवा के चेहरे पर एकाएक सोचने वाले भाव उभरे____"ऐसे हालात में कोई भी अपना फोन ऑफ नहीं रख सकता। हाॅ अगर मोबाइल ही डिस्चार्ज़ हो गया हो तो अलग बात है। लेकिन माॅम मुझे यकीन है डैड अपना फोन ऑफ नहीं करेंगे ऐसे वक्त में। ज़रूर कोई बात हो गई होगी।"
"चुप कर तू।" प्रतिमा अंदर ही अंदर जाने क्यों बुरी तरह हिल गई, बोली___"जो मुह में आता है बिना सोचे समझे बोल देता है।"
"ऐसा नहीं है माॅम।" शिवा ने नर्म भाव से कहा___"लेकिन आप खुद सोचिए कि क्या डैड ऐसे वक्त में अपना फोन ऑफ कर सकते हैं, नहीं ना? उन्हें भी पता है कि हालात कितने गंभीर हैं। लेकिन ये भी सच है कि अगर डैड का फोन ऑफ बता रहा है तो ज़रूर कोई ऐसी बात होगी जिसके बारे में फिलहाल हमें कुछ भी पता नहीं है।"
शिवा की इस बात पर प्रतिमा तुरंत कुछ बोल न सकी। उसके चेहरे पर गहन सोचों के भाव ज़रूर उभर आए थे। जैसा सोच रही हो कि क्या सच में ऐसा कुछ हुआ होगा? उधर अपनी माॅम को सोचों में गुम देख कर शिवा पुनः कह उठा____"इस तरह बैठने से कुछ नहीं होगा माॅम। मुझे लगता है कि हमें डैड का पता करना चाहिए। जैसा कि आपने मुझे बताया था कि आज विराज रितू दीदी के साथ नीलम व सोनम को लेने आने वाला है शायद, इसी लिए आपने उनके पीछे अलग से एक मजबूत टीम बना कर मेरे द्वारा भेजवाया था। वहीं दूसरी तरफ से डैड भी अपने साथ कुछ आदमियों को लिए आ रहे हैं। इस बात से यही ज़ाहिर होता है कि अगर विराज सचमुच आ रहा है तो डैड तथा हमारे आदमियों के साथ उसकी भिड़ंत अनिवार्य है। इस भिड़ंत में यकीनन हमारी जीत होगी। यानी कि अंततः विराज रितू दीदी के साथ पकड़ा ही जाएगा। उसके बाद डैड उन सबको फार्महाउस ले जाएॅगे। फार्महाउस पहुॅचने के बाद ही वो हमें फोन करने वाले थे। किन्तु उनके फोन बंद बताने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमने जो उम्मीद की थी वो हुआ ही नहीं है।"
"नहीं नहीं।" प्रतिमा ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाया, बोली___"ऐसा नहीं हो सकता बेटा। इस बार मैने और तेरे डैड ने उस विराज की सोच से बहुत आगे बढ़ कर प्लान बनाया था। मुझे उसकी सोच का अब अंदाज़ा हो चुका था, इसी लिए तो डबल बैकअप रखा था हमने। एक हमारे आदमियों का दूसरा तेरे डैड के साथ आए आदमियों का। डबल बैकअप के बाद तो जीत हमारी ही होनी निश्चित थी बेटा।"
"काश! ऐसा ही हुआ हो माॅम।" शिवा ने कहा___"उन सबके साथ साथ नीलम व सोनम भी तो पकड़ ली गई होंगी। उफ्फ! कितना भरोसा था मुझे कि सोनम ये गाॅव तथा हमारे खेते घूम कर वापस यहीं आएगी। मगर कदाचित नीलम ने उसे भी सब कुछ बता दिया था तभी तो दोनो एक साथ चली गईं। मगर अब मैं अपने दिल का क्या करूॅ माॅम? ये तो उसी का होकर रह गया है।"
शिवा की इस बात का प्रतिमा अभी कुछ जवाब देने ही वाली थी सहसा तभी ड्राइंग रूम में बड़े वेग से एक आदमी दाखिल हुआ। उसके चेहरे से ही लग रहा था कि वो कहीं से मैराथन दौड़ लगा कर आया है। बुरी तरह हाॅफ रहा था वह। प्रतिमा व शिवा उसे देख कर बुरी तरह चौंक पड़े।
"क्या बात है हैदर?" शिवा ने उसकी तरफ हैरानी से देखते हुए कहा___"तुम इतना हाॅफ क्यों रहे हो? और...और तुम यहाॅ कैसे, तुम तो टीम के साथ ही गए थे न?"
"हाॅ छोटे ठाकुर।" हैदर नाम के उस आदमी ने हाॅ में सिर हिलाते हुए कहा___"गया तो मैं टीम के साथ ही था। मगर,
"मगर क्या???" शिवा उतावलेपन में पूछ बैठा।
"सब कुछ गड़बड़ हो गया छोटे ठाकुर।" हैदर ने दीनहीन दशा में बोला____"ठाकुर साहब ने तो सबको पकड़ ही लिया था और बाज़ी भी हमारे ही हाॅथ में थी। मगर ऐन वक्त पर वहाॅ पुलिस की पूरी फौज आ गई और फिर एसीपी के निर्देश पर सबको हिरासत में ले लिया गया। यहाॅ तक कि ठाकुर साहब को भी वो एसीपी गिरफ्तार करके ले गया है। मैं किसी तरह छुपता छुपाता वहाॅ से निकल कर ये सब बताने के लिए आपके पास आया हूॅ।"
हैदर की बात सुन कर शिवा तथा प्रतिमा दोनो को ही जैसे साॅप सूॅघ गया। दोनो के ही चेहरों की हालत ऐसे हो गई जैसे कपड़े से पानी निचोड़ लेने पर कपड़े की हो जाती है। प्रतिमा को तो ऐसा लगा जैसे दिल का दौरा पड़ जाएगा। उसकी ऑखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। शिवा की नज़र जब प्रतिमा पर पड़ी तो वह अपने सोफे से उठ कर बड़ी तेज़ी से उसके पास आकर उसे सम्हाला। हालत तो उसकी भी ख़राब हो चुकी थी। किन्तु जवान खून था अभी इस लिए हैदर की इस डायनामाइट जैसी बात को हजम कर गया था।
"सब कुछ खत्म हो गया बेटा।" प्रतिमा अपने बेटे की बाहों में सिमटी एकदम से असहाय भाव से बोली___"अब कुछ भी शेष नहीं रहा। तेरी बहन रितू ने अपने महकमे का सहारा ले कर अपने बाप को एक और क्षति पहुॅचा दी। उसने अपने बाप के माथे पर एक और नाकामी की मुहर लगा दी। इस बात से ज़ाहिर होता है कि उसके दिल में अपने माॅ बाप के प्रति ज़रा सी भी जगह नहीं रह गई है।"
"मैं उस कुतिया को ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा माॅम।" शिवा के मुख से सहसा गुर्राहट निकली___"डैड को जेल भिजवा कर उसने ये अच्छा नहीं किया है। भला उसकी हमसे क्या दुश्मनी है माॅम, दुश्मनी तो विराज से है।"
"मैडम, ठाकुर साहब ने गुस्से में आकर अपनी छोटी बेटी नीलम को गोली भी मार दी है।" सहसा हैदर ने ये कह कर मानो धमाका सा किया____"नीलम की हालत बहुत ही गंभीर है। उसे वो लोग यकीनन हास्पिटल ले गए होंगे।"
"ये क्या कह रहे हो तुम??" प्रतिमा हैदर की ये बात सुन कर सकते में आ गई। चेहरा सफेद फक्क पड़ गया।
"हाॅ मैडम।" हैदर ने कहा___"गुस्से में पागल हुए ठाकुर साहब ने एसीपी का रिवील्वर निकाल कर नीलम पर फायर कर दिया था। गोली नीलम की पीठ पर लगी थी। जहाॅ से खूॅन बहे जा रहा था।"
"हे भगवान!।" प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं___"ये कैसा दिन दिखा रहे हो हमे? एक बाप अपनी ही बेटियों के खून का प्यासा हो चुका है।"
"लेकिन हैदर।" प्रतिमा के रुदन पर ज़रा भी ध्यान दिये बग़ैर शिवा ने पूछा___"डैड ने नीलम पर गोली क्यों चलाई थी?"
हैदर ना शुरू से लेकर अंत तक की सारी राम कहानी संक्षेप में कह सुनाई। उसकी इस राम कहानी में वो सीन भी था जिसमें अजय सिंह ने अपनी ही बेटी नीलम से अश्लील बातें की थी। ये भी कि अंत में कैसे नीलम ने ठाकुर साहब को थप्पड़ मारा था जिसकी वजह से गुस्से में आकर अजय सिंह ने एसीपी का रिवाल्वर छीन कर नीलम पर गोली चलाई थी। सारी बातें सुनने के बाद शिवा तो बस हैरान ही था किन्तु प्रतिमा एकदम से मानो बुत बन गई थी। उसका चेहरा एकदम से तेज़हीन सा हो गया था।
"अब मेरे लिए क्या आदेश है छोटे ठाकर?" हैदर ने कहा।
"तुम जाओ हैदर।" शिवा ने गंभीरता से कहा___"गेस्ट हाउस में आराम करो। हम सोचते हैं कि अब इसके आगे हमें क्या करना है?"
शिवा के कहने पर हैदर वहाॅ से चला गया। उसके जाने के बाद ड्राइंगरूम में मरघट जैसा सन्नाटा छा गया। काफी देर तक माॅ बेटे के बीच यही आलम रहा। जैसे उनमें से किसी को कुछ सूझ ही न रहा हो कि अब क्या बात करें?
"आख़िर जिस चीज़ की नियति बन चुकी थी।" सहसा प्रतिमा ने कहीं खोये हुए से कहा___"उसका आग़ाज हो ही गया। इस लड़ाई में किसी न किसी को तो शहीद होना ही है। फिर चाहे वो नीलम ही क्यों न हो?"
"आपने बिलकुल सही कहा माॅम।" शिवा ने भी गंभीर भाव से कहा___"किसी न किसी के साथ तो ये होना ही है। मगर एक बात तो मैं भी कहूॅगा, और वो ये कि डैड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नहीं किया। मैं जानता हूॅ कि आपको मेरी ये बात नागवार लग सकती है। मगर इसके बावजूद कहूॅगा मैं कि डैड को नीलम पर गोली नहीं चलाना चाहिए था। मैं मानता हूॅ कि मेरी दोनो बहनों ने हमसे बगावत करके ग़लत किया है। उन्हें सोचना चाहिए था कि माॅ बाप कैसे भी हों हैं तो अपने ही। वैसे ही डैड को भी सोचना चाहिए था माॅम। हम उन्हें उनके किये की सज़ा ज़रूर देते मगर इस तरह नहीं कि उनको जान से ही मार दें। ये सब उस विराज की वजह हे हुआ है, उसी ने मेरी दोनो बहनों को बहकाया है। उसी ने उन दोनो का ब्रेनवाश किया है, वरना उनके दिलो दिमाग़ में कम से कम ये सोच तो रहती ही कि माॅ बाप जैसे भी हों, वो अपने ही होते हैं।"
प्रतिमा शिवा की ये बातें सुन कर मन ही मन हैरान थी। शिवा का बदला हुआ ये रवैया उसे हजम नहीं हो रहा था। किन्तु उसे ये भी पता था कि शिवा अपने बाप की टूकाॅपी है। यानी सूरज कभी पश्चिम से उदय नहीं हो सकता।
"क्या बात है।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"आज अपनी बहनों से इतनी हमदर्दी? क्या ये सोनम से हुए इश्क़ का असर है बेटा? जिसने तेरी सोच को इस हद तक बदल दिया है?"
"मुझे खुद पता नहीं है माॅम।" शिवा ने नज़रें चुराते हुए कहा___"मैं सिर्फ इतना समझ रहा हूॅ कि डैड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नहीं किया। अगर वही गोली वो विराज पर चला देते तो शायद मुझे उनसे कोई शिकायत न रहती।"
"ख़ैर छोंड़।" प्रतिमा ने इस मैटर को ज्यादा न बढ़ाने की गरज़ से कहा___"अब हमें ये सोचना है कि तेरे डैड को पुलिस से कैसे छुड़ाया जाए? उन पर नीलम को जान से मारने की कोशिश का भी केस लग सकता है, और संभव है कि उस एसीपी ने ये केस लगा भी दिया हो उन पर। अतः हमें अब किसी क़ाबिल वकील से मिलना पड़ेगा। ताकि वो उनको जेल से किसी तरह छुड़ा सके।"
"हाॅ ये सच कहा आपने।" शिवा ने कहा___"डैड को जेल से तो छुड़ाना ही पड़ेगा।"
"रुको मैं पता करती हूॅ।" प्रतिमा ने कहा___"मेरी जानकारी में एक क़ाबिल वकील है जो अजय को जेल से छुड़ा सकती है। मेरी एक काॅलेज फ्रैण्ड है। मैने और अनीता ब्यास ने एक साथ ही एलएलबी किया था। उसके बाद उसने वकालत को ही अपना पेशा बना लिया जबकि मैं अजय के साथ घर बसा कर सिर्फ एक हाउसवाइफ बन कर रह गई। हलाॅकि अजय ने मुझे इस बात के लिए कभी भी मना नहीं किया कि मैं वकालत न करूॅ। बल्कि हमने तो साथ में ही इसकी पढ़ाई की थी। अजय तो चाहते थे कि हम दोनो वकील बन जाएॅ। मगर मैने ही इंकार कर दिया था। किन्तु आज सोचती हूॅ कि काश मैं बन ही जाती तो आज अपने अजय को चुटकियों में जेल से छुड़ा लाती।"
"वकालत तो आप आज भी कर सकती हैं माॅम।" शिवा ने कहा___"आपके पास इस सबके राइट्स तो होंगे ही।"
"सब कुछ है बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"मगर ये सब अब इतना आसान भी नहीं है। उसके लिए पहले इस सबकी बारीकियों को समझना पड़ता है। कई तरह के केसों का अध्ययन करना पड़ता है। मैं कभी कोर्ट के अंदर वकील का चोंगा पहन कर नहीं गई, इस लिए मुझे इसका तज़ुर्बा भी नहीं है। दूसरी बात अनुभव भी कोई चीज़ होती है। जो कि मुझे नहीं है। हर चीज़ का एक क्रम होता है। अगर आप समय के साथ ही साथ लाइन पर चल रहे हैं तब तो आप सीधी लाइन पर ही बिना किसी रुकावट के चलते रहेंगे पर अगर आपने लाइन को बहुत पहले ही छोंड़ दिया है तो फिर लम्बे समय बाद उसी लाइन पर चलना ज़रा मुश्किल सा हो जाता है। वो फिर तभी अपनी लय पर आएगा जब उसकी नियमित प्रैक्टिस हो। ख़ैर, छोंड़ इस बात को। मैं अनीता को फोन लगा कर उससे बात करती हूॅ। मेरे फ्रैण्ड सर्कल में एक वही है जो अब तक मेरे टच में में है। बाॅकियों का तो कहीं पता ही नहीं है।"
कहने के साथ ही प्रतिमा ने अपने मोबाइल को अनलाॅक करके उस पर अनीता ब्यास का नंबर ढूॅढ़ने लगी। जबकि शिवा ये कह कर सोफे से उठा कि वो कुछ देर में आता है अभी।
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केशव जी के जिस आदमी ने फोन पर उस जासूस के बारे में सूचित किया था उसका नाम निरंजन वर्मा था। रितू ने जब केशव जी से कहा कि वो अपने उस आदमी से कहे कि उसे पकड़ने की कोशिश करे और खुद भी वापस जाएॅ वहाॅ तो केशव ने वैसा ही किया था। उन्होंने निरंजन को फोन करके उससे पूछा था कि क्या वो अकेले उस जासूस को पकड़ सकता है तो निरंजन ने कहा कि वो इस बारे में कुछ कह नहीं सकता है। क्योंकि उसने सुना था कि कोई कोई जासूस लड़ने के मामले में भी काफी निपुण होते हैं। इस लिए बेहतर यही होगा कि वो उस पर सिर्फ नज़र रखे और फिर जब वो सब आ जाएॅगे तो उसे जल्द ही घेर लिया जाएगा। केशव जी को भी निरंजन की बात सही लगी। इस लिए वो फुल स्पीड में अपने आदमियों को लिए आ रहे थे।
इधर निरंजन बड़ी सफाई से हरीश राणे पर नज़र रखे हुए था। किन्तु उसे भी पता था कि ये जासूस यहाॅ पर ज्यादा देर तक रुकने वाला नहीं है। उसके पास काले रंग की एक पल्सर बाइक थी। इस वक्त वह बाइक के ही पास नीचे बैठा बाइक में कुछ कर रहा था। निरंजन को समझ नहीं आ रहा था कि वो बाइक के पास इस तरह बैठ कर क्या कर रहा है? निरंजन उससे बस कुछ ही दूरी पर एक पेड़ की ओट में छुप कर खड़ा था और उस पर नज़र रखे हुए था। उसके पास हथियार के रूप में कुछ भी नहीं था। जबकि उसे पूर्ण विश्वास था कि उस जासूस के पास रिवाल्वर ज़रूर होगा। यही वजह थी कि वो खुल कर उसके सामने नहीं जा रहा था।
निरंजन के चेहरे पर प्रतिपल बेचैनी बढ़ती जा रही थी। क्योंकि उसे पता था कि जासूस अगर यहाॅ से चला गया तो फिर उसे ढूॅढ़ पाना मुश्किल होगा। अतः वह बार बार देवी माॅ से प्रार्थना कर रहा था कि केशव जी सारे आदमियों को लेकर जल्दी आ जाएॅ। उसकी नज़र सामने ही थी। जहाॅ पल्सर बाइक के पास नीचे बैठा वो जासूस कुछ कर रहा था। जासूस का चेहरा उसके बगल से दिख रहा था। निरंजन के मन में कई बार ये ख़याल आया था कि वो चुपके से जाए और उस जासूस को दबोच ले मगर अगले ही पल वो उसके पास जाने का अपना ये ख़याल त्याग देता था। क्योंकि बार बार उसे उसके पास रिवाल्वर होने का बोध करा देता था। उसने आस पास देख भी लिया था। पास में कहीं भी उसे कोई डंडे जैसी वस्तु भी न नज़र आई थी जिसे लेकर वो उस जासूस के पास चला जाता।
अभी निरंजन उस जासूस को देख ही रहा था कि तभी वो जासूस उठ कर खड़ा हुआ और अपने दाहिने पैर को बाइक के आगे वाले पहिये पर रिम में रख कर उस पर ज़ोर से दबाव बनाया। ये देख कर निरंजन के मस्तिष्क में झनाका सा हुआ। एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। साला इतनी देर से वो समझ नहीं पा रहा था कि ये जासूस बाइक के पास बैठा कर क्या रहा था? अब उसे समझ आया था। दरअसल बाइक का अगला पहिया पंचर था अथवा उसमें हवा कम थी। पहिये पर निरंजन का ध्यान पहली बार गया था। उसने ग़ौर से देखा पहिये पर जहाॅ पर से हवा भरी जाती है वहाॅ पर कोई पतली सी तार या फिर यू कहें कि पतला सा पाइप लगा हुआ था। जिसका दूसरा सिरा इस वक्त उस जासूस के दाहिने हाॅथ में था।
निरंजन को समझ न आया कि अगर बाइक का अगला पहिया पंचर है या उसमे हवा कम है तो वो जासूस यहाॅ पर उसे ठीक कैसे कर लेगा और ये पतला सा पाइप क्यों लगा रखा है उसने पहिये की निब पर? तभी वो जासूस पुनः बैठ गया। इस बार निरंजन ने भी अपनी जगह बदली और फिर ध्यान से देखा उसने। पाइप का दूसरा सिरा उस जासूस ने अपने होठों पर दबाया और फिर निरंजन ने देखा कि जासूस के दोनो गाल फूल गए। ये देख कर निरंजन की हॅसी छूट ही गई होती अगर उसने जल्दी से अपने मुह को अपने हाथों से भींच न लिया होता तो। दरअसल वो जासूस पाइप लगा कर मुह से हवा भर रहा था पहिये पर। बस यही देख कर निरंजन को बड़ी ज़ोर की हॅसी आ गई थी। उसने सोचा कि इसे जासूस किसने बना दिया? भला मुह से भी कोई बाइक के पहिये पर हवा भरता है? ये तो दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य ही है।
निरंजन ने भी सोचा कि बेचारा यहाॅ पर बाइक में हवा भरवाए भी तो कैसे? किन्तु मुख से हवा तो भरने से रही। कहने का मतलब ये कि जासूस की इस क्रिया पर निरंजन उसे बेवकूफ ही समझ रहा था। मगर वो उस वक्त हैरान रह गया जब वो जासूस पुनः उठा और पहले की भाॅति अपना दाहिना पैर रिम में रख दबाव बनाया। उसके चेहरे से ज़ाहिर हुआ कि अब वो संतुष्ट है। उसने झुक कर तुरंत ही पाइप को पहिये के निब से निकाला। निरंजन ने देखा कि निब के पास लगे पाइप के उस छोर पर कोई चीज़ लगी हुई थी। ये देख कर निरंजन का दिमाग़ घूम गया। चकित होकर वह उस जासूस को देखे जा रहा था। अब उसे समझ आया कि वो जासूस यूॅ ही तो नहीं बन गया होगा। ज़रूर उसमें काबीलियत थी।
अभी निरंजन ये सब सोच ही रहा था कि तभी उसने देखा कि वो जासूस उस पाइप को लिए बाइक के बाएॅ साइड आया और फिर अपनी दाहिनी टाॅग उठा कर बाइक की सीट पर बैठ गया। ये देख कर निरंजन एकदम से हड़बड़ा गया। वो समझ गया कि अब ये जासूस यहाॅ से चला जाएगा। निरंजन को समझ न आया कि वो उसे कैसे यहाॅ से जाने से रोंके? वो खुद निहत्था था वरना वो कोई जोखिम उठाने का सोचता भी। उसे पूरा यकीन था कि उस जासूस के पास पिस्तौल होगी। यही वजह थी कि वो उसके पास खुल कर जा नहीं रहा था। किन्तु अब हालात बदल गए थे। क्योंकि निरंजन की ऑखों के सामने ही वो जासूस बाइक पर बैठ चुका था और अब ये भी तय था कि वो बाइक को स्टार्ट कर यहाॅ से चला ही जाएगा।
निरंजन ने देखा कि बाइक पर बैठा जासूस उस पतले से पाइप को गोल गोल छल्ली की शक्ल देकर समेट रहा था। उसकी पीठ निरंजन की तरफ ही थी। पाइप का दूसरा सिरा जासूस की दाहिनी जाॅघ से थोड़ा ही नीचे झूल रहा था और प्रतिपल ऊपर की तरफ उठता भी जा रहा था। ये देख कर निरंजन के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके चेहरे पर एकाएक ही कुछ सोच कर चमक आ गई। वो फुर्ती से अपनी जगह से हिला और फिर बड़ी सावधानी व सतर्कता से लम्बे लम्बे क़दम बढ़ाते हुए जासूस के पीछे पहुॅच गया।
हरीश राणे को सहसा अपने पीछे किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ। उसने इस एहसास के तहत ही जल्दी से पीछे मुड़ कर देखना चाहा मगर अगले ही पल जैसे बिजली सी कौंधी। निरंजन ने डर व भय की वजह से बड़ी ही फुर्ती का प्रदर्शन किया था। उसने जासूस के मुड़ने से पहले ही झुक कर जासूस के नीचे जाॅघ के पास झूलते उस पाइप को पकड़ा और फिर तेज़ी से खड़े होकर उसी छोर से दूसरा हाॅथ सरका कर उसने जासूस के सिर से अपनी एक कलाई घुमा कर बड़ी फुर्ती से उस पाइप को जासूस की गर्दन पर कस दिया।