non veg kahani एक नया संसार - Page 3 - SexBaba
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non veg kahani एक नया संसार

अजय सिंह और प्रतिमा की नज़रें एक साथ उस चीज़ पर पड़ीं। और उस चीज़ को पहचानते ही दोनो अपनी अपनी जगह बैठे उछल पड़े। प्रतिमा ने अपना हाॅथ आगे बढ़ा कर उस चीज को उठा लिया। वो कण्डोम का पैकिट था। पैकिट खुला हुआ था मतलब उसमे मौजूद कण्डोमों में से कुछ का इस्तेमाल हो चुका था। प्रतिमा ने अपने पति अजय सिंह की तरफ अजीब भाव से देखा।

"ये है आपके शहजादे की पढ़ाई।" प्रतिमा के लहजे में कठोरता थी बोली__"और ये सब सिर्फ आपके लाड प्यार का नतीजा है।"
"इस उमर में ये नेचुरल बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"क्या तुम भूल गई कि हम दोनों ने खुद शादी के पहले इसका कितना इस्तेमाल किया था?"

"हाॅ मगर तब आप नौकरी पेशा थे।" प्रतिमा के चेहरे पर कुछ पल के लिए शर्म की लाली छाई थी किन्तु उसने शीघ्र ही खुद को नाॅर्मल करते हुए कहा था__"लेकिन शिवा अभी पढ़ रहा है। अगर इसी तरह चलता रहा तो वो क्या कर पाएगा भविश्य में?"

"तुम बेवजह छोटी सी बात को इतना तूल दे रही हो यार।" अजय सिंह ने कहा__"मुझे तुमसे ज्यादा चिंता है उसके भविश्य की, अगर नहीं होती तो ये सब नहीं करता। और अब इस बारे में कोई बात नही होगी समझी न?"

प्रतिमा कुछ न बोली। इसके साथ ही ड्राइंग रूम में सन्नाटा छा गया। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद अजय सिंह ने कहा__"अब यूॅ मुह न फुलाओ मेरी जान, आज रात तुम्हें खुश कर दूॅगा चिन्ता मत करो।"

"क्या सच में?" प्रतिमा के चेहरे पर खुशी छलक पड़ी__"लेकिन दो राउण्ड से पहले नहीं सोने दूॅगी मैं आपको ये सोच लेना।"
"ठीक है मेरी जान।" अजय सिंह मुस्कुराया__"एक एक राउण्ड तुम्हारे आगे पीछे से अच्छे से लूॅगा।"

"अच्छा जी?" प्रतिमा मुस्कुराई__"आप तो जब देखो मेरे पिछवाड़े के पीछे ही पड़े रहते हो।"
"औरत को पीछे से रगड़ रगड़ कर ही ठोंकने में हम मर्दों को मज़ा आता है डियर।" अजय सिंह ने कहा__"और तुम्हारे पिछवाड़े की तो बात ही अलग है यार।"

"और किसके किसके पिछवाड़े की बात अलग है?" प्रतिमा ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा__"ज़रा ये भी तो बताइए।"
"तुम अच्छी तरह जानती हो मेरी जान।" अजय सिंह के चेहरे पर अजीब से भाव थे__"फिर क्यों पूॅछ रही हो?"

"बताने में हर्ज़ ही क्या है?" प्रतिमा हॅसी__"बता ही दीजिए।"
"तुम्हारे बाद अगर किसी और के पिछवाड़े में अलग बात है तो वो है हमारी बड़ी बेटी रितू। हाय क्या पिछवाड़ा है ज़ालिम का बिलकुल तुम्हारी तरह ही है उसका पिछवाड़ा।"

"अपनी ही बेटी पर नीयत बुरी है आपकी?" प्रतिमा ने कहने के साथ ही मैक्सी के ऊपर से अपने एक हाॅथ से अपनी चूॅत को बुरी तरह मसला फिर बोली__"मगर ये जान लीजिए कि रितू का पिछवाड़ा इतनी आसानी से मिलने वाला नही है आपको।"

"यही तो रोना है यार।" अजय सिंह आह सी भरते हुए बोला__"तुमको मेरी ख्वाहिश का पता है फिर भी अब तक कुछ नहीं किया।"
"चिंता मत कीजिए।" प्रतिमा ने कहा__"आपके लिए एक नई चूॅत और एक नए पिछवाड़े का इंतजाम कर दिया है मैंने।"

"क् क्या सच में..???"अजय सिंह खुशी से झूम उठा__"ओह डियर आखिर तुमने कर ही दिया। मगर, ये तो बताओ किसकी चूत और पिछवाड़े का इंतजाम किया है तुमने?"
"अभी थोड़ी कसर बाॅकी है जनाब।" प्रतिमा ने कहा__"मगर मुझे यकीन है कि एक दो दिन में काम हो जाएगा आपका।"

"काश! गौरी को हासिल कर पाता मैं।" अजय सिंह बोला__"उस पर तो मेरी तब से नज़र थी जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी। एक झलक उसके जिस्म की देखा थी मैंने। एक दम दूध सा गोरा रंग था उसका और बनावट ऐसी कि उसके सामने कुदरत की हर कृति फीकी पड़ जाए।"

"कम से कम मेरे सामने उसकी खूबसूरती का बखान मत किया कीजिए आप।" प्रतिमा ने तीखे भाव से कहा__"आपको कितनी बार ये कहा है मैने। फिर भी आप उस हरामजादी की तारीफ करके मेरा खून जलाने से बाज नहीं आते हैं।"

"क्या करूॅ मेरी जान?" अजय सिंह कह उठा__"तुम्हारे बाद मुझे अगर किसी से प्यार हुआ है तो वो थी गौरी। मैं चाहता तो कब का उसकी खूबसूरती का रसपान कर लेता किन्तु मैने ऐसा नही किया। मैं उसे प्यार से हासिल करना चाहता था। तभी तो मैंने ये सब किया, उसको इतने दुख दिए और उसके लिए सारे रास्ते बंद कर दिए। मगर फिर भी कुछ हासिल नहीं हुआ और अब होगा भी कि नहीं क्या कहा जा सकता है?"

"आपने तो उन लोगों की खोज में अपने आदमी लगाए थे न?" प्रतिमा ने कहा__"उन लोगों ने क्या रिपोर्ट दी उनके बारे में?"
"मेरे आदमी खाली हाॅथ वापस आ गए थे।" अजय सिंह के चेहरे पर कठोरता के भाव उजागर हुए__"वो हरामी की औलाद विराज बड़ा ही चतुर व चालाक निकला। उसने अपनी माॅ और बहन को किसी दूसरे शहर के रूट से उन्हें मुम्बई ले जाने में कामयाब हो गया था।"

"शायद उसे अंदेशा था कि आप उन्हें पकड़ने के लिए अपने आदमियों को भेजेंगे।" प्रतिमा ने सोचपूर्ण भाव से कहा।
"हाॅ यही बात रही होगी।" अजय सिंह बोला__"वर्ना वो ऐसा काम क्यों करता? मगर कब तक मुझसे छिपा कर रखेगा वो अपनी माॅ और बहन को? मैं चैन से बैठा नहीं हूॅ प्रतिमा, बल्कि आज भी मेरे आदमी उनकी खोज में मुम्बई की खाक़ छान रहे हैं।"
 
"ये आपने अच्छा किया है।" प्रतिमा ने सहसा आवेशयुक्त स्वर में कहा था__"जब आपके आदमी उन सबको पकड़ कर यहा लाएंगे तो मैं अपने हाॅथों से उस कुत्ते को गोली मारूंगी जिसने उस दिन मेरे बेटे का वो हाल किया था।"

"तुम्हारी ये इच्छा जरूर पूरी होगी डियर।" अजय सिंह ने भभकते लहजे में कहा__"और अब मैं भी गौरी की बीच चौराहे पर रगड़ रगड़ कर ठोंकूॅगा। अब बात प्यार की नहीं रह गई बल्कि अब प्रतिशोध की है। मेरे उस प्रण की है जो मैंने वर्षों पहले लिया था।"

"किस प्रण की बात कर रहे हैं डैड?" रितू ऊपर से सीढ़िया उतरते हुए पूछी।
"कुछ नहीं बेटी बस ऐसे ही बात कर रहे थे हम लोग।" प्रतिमा ने जल्दी से बात को टालने की गरज से कहा। जबकि अजय सिंह अपनी बड़ी बेटी को एकटक देखे जा रहा था।

रितू नहा धो कर तथा एक दम फ्रेस होकर आई थी। इस वक्त उसके गोरे किन्तु मादकता से भरे जिस्म पर एक दम टाइट फिटिंग वाले कपड़े थे। जिसमें उसकी भरपूर जवानी साफ उभरी हुई नजर आ रही थी। अजय सिंह मंत्रमुग्ध सा उसे देखे जा रहा था। उसकी आखों में हवस और वासना के कीड़े गिजबिजाने लगे थे। अपने पति को अपनी ही बेटी की तरफ यूं हवस भरी नज़रों से देखते देख प्रतिमा ने तुरंत ही उसे खुद को सम्हालने की गरज से कहा__"आपको आज पिता जी और माता जी से मिलने जाना था न?"

अजय सिंह प्रतिमा के इस वाक्य को सुन कर चौंका तथा तुरंत ही वास्तविक माहौल में लौटते हुए कहा__"हाॅ जाना तो है। क्या तुम साथ नहीं चलोगी?"
"नहीं आप हो आइए।" प्रतिमा ने कहा__"पिछली बार गई थी उनसे मिलने आपके साथ। उनसे मिलने का कोई फायदा तो है नहीं। न वो कुछ बोलते हैं और न ही हिलते डुलते हैं फिर क्या फायदा उनसे मिलने का?"

"डैड क्या कुछ संभावना है कि कब तक दादा दादी ठीक होंगे?" रितू ने पूछा।
"बेटा डाॅ. की तरफ से यही कहना है कि कुछ कहा नही जा सकता इस बारे में।" अजय सिंह बोला__"याददास्त का मामला होता ही ऐसा है।"

"डैड आपके दोस्त कमिश्नर अंकल तो अब तक पता नहीं लगा पाए कि दादा दादी की कार को किसने और क्यो टक्कर मारी थी?" रितू ने सहसा तीखे भाव से कहा__"आज दो साल हो गए इस बात को और पुलिस के हाॅथ कोई छोटा सा सुराग तक नही लगा। बड़ा गुस्सा आता है मुझे अपने दैश की इस निकम्मी पुलिस पर। आज अगर मैं होती पुलिस डिपार्टमेन्ट में तो इस केस को कब का क्लियर करके मुजरिमों को जेल की सलाखों के पीछे पहुॅचा दिया होता। लेकिन कोई बात नहीं डैड...जल्द ही इस निकम्मी पुलिस के बीच मुझ जैसी एक तेज तर्रार पुलिस आफिसर इन्ट्री करेगी। फिर मैं खुद इस केस पर काम करूॅगी, और केस को पूरा साल्व करूॅगी।"

रितू की ये बातें सुनकर अजय सिंह और प्रतिमा को साॅप सा सूॅघ गया। चेहरे पर घबराहट के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। किन्तु जल्द ही उन दोनों ने खुद को सम्हाला।

"मतलब मेरे लाख मना करने और समझाने पर भी तुमने पुलिस फोर्स ज्वाइन करने का अपना इरादा नहीं बदला?" अजय सिंह ने नाराजगी भरे स्वर में कहा__"तुम जानती हो बेटी कि मुझे तुम्हारा पुलिस फोर्स ज्वाइन करने का फैसला बिलकुल भी पसंद नही है। तुम्हें कोई जरूरत नहीं थी कोई नौकरी करने की, भला क्या कमी की है हमने तुम्हें कछ देने में?"

"ये नौकरी मैं किसी चीज के अभाव में नही कर रही हूॅ डैड।" रितू ने शान्त भाव से कहा__"आप जानते हैं कि पुलिस आफिसर बनना मेरा एक ख्वाब था। पुलिस आफिसर बन कर मैं उन लोगों का वजूद मिटाना चाहती हूं जो इस इस देश और समाज के लिए अभिशाप हैं।"

"तुम ये भूल रही हो बेटी कि तुम एक लड़की हो, एक औरत ज़ात जिसे खुद कदम कदम पर किसी मर्द के द्वारा मजबूत सुरक्षा की आवश्यकता होती है।" प्रतिमा ने समझाने वाले भाव से कहा__"और पुलिस फोर्स तो ऐसी है कि इसमें रोज एक से बढ़ कर एक खतरनाक अपराधियों का सामना करना पड़ता है जिसकि मुकाबला करना तुम्हारे लिए बेहद मुश्किल है।"

"आप मुझे एक आम लड़की समझकर कमजोर समझती हैं माॅम जबकि रितू सिंह बघेल कोई आम लड़की नहीं है।" रितू के चेहरे पर कठोरता थी__"बल्कि मैं मिस्टर अजय सिंह बघेल की शेरनी बेटी हूॅ। और मुझसे टकराने में किसी अपराधी को हजार बार सोचना पड़ेगा। आप जानती माॅम मैंने मासल आर्ट्स में ब्लैक बैल्ट हासिल किया है। क्योकि मुझे पता है कि एक आम लड़की पुलिस में किसी अपराधी का सामना नहीं कर सकती। इसी लिए मैंने किसी भी तरह के अपराधियों से डॅटकर कर मुकाबला करने के लिए मासल आर्ट्स की ट्रेनिंग ली थी।"
 
अजय सिंह और प्रतिमा दोनो जानते थे कि रितू अपने कदम अब वापस नही करेगी। इस लिए चुप रह गए किन्तु अंदर से ये सोच सोच कर घबरा भी रहे थे कि अगर रितू पुलिस आफिसर के रूप में अपने दादा दादी के एक्सीडेंट वाला केस अपने हाॅथ में लेगी तो क्या होगा?????"

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अजय सिंह अपने आफिस के शानदार केबिन में रिवाल्विंग चेयर पर बैठा कुछ फाइलों को इधर उधर रख रहा था कि तभी उसके केबिन का डोर नाॅक हुआ।

"कम इन।" उसने बिना सर उठाए ही कहा।

इसके साथ ही केबिन का डोर खुला और एक ब्यक्ति अंदर दाखिल हुआ। पचास से पचपन की उमर का वो मोटा सा आदमी था, आखों पर मोटे लैंस का चश्मा लगा रखा था उसने। उसके दाहिने हाॅथ में एक फाइल थी। चेहरे पर बारह बजे हुए थे। बड़ी ही दयनीय स्थिति में अपनी जगह खड़ा था।

केबिन के अंदर पैना सन्नाटा छाया रहा। अजय सिंह को जब ध्यान आया कि अभी कोई उसके केबिन में आया है तो उसने सिर उठा कर सामने देखा। नजर केबिन में आने वाले ब्यक्ति पर पड़ी, साथ ही उसकी वस्तुस्थिति पर तो अजय सिंह चौंका।

"क्या बात है दीनदयाल?" अजय सिंह ने पूछा__"तुम्हारे चेहरे पर इतना पसीना क्यों आ रहा है? तुम्हारी तबियत तो ठीक है न?"
"स सर व वो वो।" दीनदयाल हकलाते हुए बोलना चाहा।
"क्या हुआ?" अजय सिंह बोला__"तुम इस तरह हकला क्यों रहे हो भई?"

"सर बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई।" दीनदयाल रो देने वाले लहजे में बोला था__"हम बरबाद हो गए।"
"ये क्या बक रहे हो तुम?" अजय सिंह बुरी तरह चौंका__"तुम होश में तो हो न?"
"मैं पूरी तरह होश में हू सर।" दीनदयाल बोला__"सब कुछ बरबाद हो गया सर।"

"साफ साफ बोलो दीनदयाल।" अजय सिंह तीखे सुवर में बोला__"यू पहेलियाॅ न बुझाओ। ऐसा क्या हुआ है जिससे तुम सब कुछ बरबाद हो जाने की बात कर रहे हो?"
"सर पिछले महीने।" दीनदयाल बोला__"हमें जो करोड़ों का टेंडर मिला था वह सब महज एक फ्राड था।"

"क क्या मतलब?" अजय सिंह बुरी तरह चौंका था।
"मतलब साफ है सर।" दीनदयाल बोला__"हमें जिस फाॅरेन की पार्टी से करोड़ों का टेंडर मिला था वो सब झूठ था। हमें बरबाद करने के लिए यह किसी की सोची समझी चाल थी। हमने उस टेंडर के हिसाब से आज एक महीने से भारी मात्रा में कपड़े तैयार किये हैं जिसके लिए हमें करोड़ों की लागत का खर्च करना पड़ा किन्तु अब सब कुछ बरबाद हो गया।"

अजय सिंह ये सुनकर किसी स्टेचू की तरह बिना हिले डुले बैठा रह गया। ऐसा लग रहा था जैसे ये सब जानकर उसे साॅप सूॅघ गया था। चेहरा निस्तेज हो गया था उसका।

"हमने यकीनन बहुत बड़ा धोखा खाया है सर।" दीनदयाल हतास भाव से बोला__"हमें इस बारे में सोचना चाहिये था। अब क्या होगा सर, हम इतने बड़े नुकसान की भरपाई कैसे कर सकेंगे?"
"उसके बारे में कुछ पता किया तुमने?" अजय सिंह ने अजीब भाव से पूछा।
 
"एक हप्ते से मैं सिर्फ इसी काम में लगा हुआ था सर।" दीनदयाल ने कहा__"मगर उस फाॅरेनर का कहीं कुछ पता नहीं चल सका। उसकी हर एक बात झूठी निकली सर। होटल सनशाइन में पता किया तो होटल के मैनेजर ने बताया कि स्टीव जाॅनसन व एॅजेला जाॅनसन नाम के कोई भी फाॅरेनर यहाॅ पिछले एक महीने से नहीं ठहरे थे। ये दोनो पति पत्नी जिस कंपनी को अपनी कह रहे थे उसका कहीं कोई वजूद ही नहीं, जबकि अब से एक हप्ते पहले कंपनी की बाकायदा वेबसाइट हमने खुद देखी थी, जिसमें सब डिटेल्स थी।"

"कौन ऐसा कर सकता है हमारे साथ?" अजय सिंह मानो खुद से ही पूछ रहा था__"हमारी तो किसी से इस तरह की कोई दुश्मनी भी नहीं है फिर कौन इतना बड़ा नुकसान कर सकता है?"

"जिसने भी ये सब किया है सर।" दीनदयाल बोला__"उसने इस सबकी तैयारी बहुत पहले से कर रखी थी। हर चीज सोची समझी थी। एक एक प्वाइंट को बारीकी से जाॅच कर उस पर काम किया गया था वर्ना क्या हमें कुछ पता न चलता? "

"नुकसान तो हो ही गया दीनदयाल।" अजय सिंह बोला__"लेकिन इसका पता करना भी सबसे जरूरी है। हमें हर हाल में पता करना है कि वो दोनों कौन थे तथा हमारे साथ इतना बड़ा धोखा करके आखिर क्या मिला उन्हें?"

"एक बुरी खबर और भी है सर।" दीनदयाल दीन हीन लहजे के साथ बोला__"समझ में नहीं आता कि कैसे कहूॅ आपसे?"
"आज क्या हो गया है तुम्हें दीनदयाल?" अजय सिंह एक झटके से अपनी चेयर से उठते हुए बोला__"ये क्या मनहूस खबरें लेकर आए हो आज हमारे पास?"

"माफ कीजिए सर।" दीनदयाल ने सर झुका लिया__"मगर मैं क्या करूॅ? मुझे खुद भी समझ में नहीं आ रहा है कि ये सब क्या हो रहा है?"
"अब बताओ भी कि तुम्हारी दूसरी बुरी खबर क्या है?" अजय सिंह ने कहा।
"सर अरविंद सक्सेना जी हमारी कंपनी से अपनी पार्टनरशिप तोड़ रहे हैं।" दीनदयाल ने ये कह कर जैसे धमाका सा किया था।

"क् क्या..????"अजय सिंह बुरी तरह चौंका__"ये क्या कह रहे हो दीनदयाल? भला सक्सेना हमसे पार्टनरशिप क्यों तोड़ रहा है? उसने इसके बारे में हमसे तो कोई बात नहीं की अब तक? सक्सेना को फोन लगाओ हम उससे बात करेंगे अभी।"

"सर वो यहीं आ रहे हैं।" दीनदयाल ने कहा__"मुझे फोन करके उन्होंने मुझसे आपके बारे में पूछा की आप कहां हैं तो मैंने बता दिया कि आज आप यहीं हैं तो बोले ठीक है आ रहे हैं। उनका लहजा बड़ा अजीब था सर, मैंने वजह पूछी तो बोले कि आपसे पार्टनरशिप तोड़ना है। उनकी ये बात सुन कर मेरा तो दिमाग ही सुन्न पड़ गया था"

अभी अजय सिंह कुछ कहने ही वाला था कि केबिन के डोर में नाॅक हुआ। दीनदयाल ने कहा__"लगता है मिस्टर सक्सेना ही हैं।"
"ठीक है तुम जाओ अब।" हम बाद में तुमसे बात करेंगे।"
"ओके सर।" दोनदयाल ने कहा और केबिन का डोर खोला तो बाहर से सक्सेना अंदर दाखिल हुआ जबकि दीनदयाल सक्सेना को नमस्कार कर बाहर निकल गया।

"आओ आओ सकसेना।" अजय सिंह ने सक्सेना का इस्तकबाल करते हुऐ कहा और हैण्डशेक किया उससे।
"कैसे हो अजय सिंह?" सक्सेना ने हाथ मिलाने के बाद कहा।
"बेहतर।" अजय सिंह ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"मेरे यहाॅ आने की वजह तो तुम्हें पता चल ही गई होगी?" सक्सेना ने कहा।

"हाॅ मुझे दीनदयाल अभी यही बता रहा था।" अजय सिंह ने गंभीरता से कहा__"और ये जानकर दुख भी हुआ कि तुम मुझसे पार्टनरशिप तोड़ रहे हो। जहाॅ तक मेरा अंदाज़ा है मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है जिसकी वजह से तुम पार्टनरशिप तोड़ रहे हो।"

"मुझे पता है कि तुमने वाकई कुछ नहीं किया।" सक्सेना ने सपाट लहजे में कहा__"लेकिन फिर भी मैं ये पार्टनरशिप तोड़ रहा हूॅ, क्योकि मुझे अब विदेश में सेटल होना है अपने परिवार के साथ। यहा का सब कुछ बेच कर अब विदेश में ही रहूगा तथा वहीं कारोबार करूगा।"

"तो पार्टनरशिप तोड़ने की ये वजह है?" अजय सिंह ने कहा।
"बिलकुल।" सक्सेना ने कहा__"और अब मैं चाहता हूॅ कि तुम मेरा सब कारोबार खुद खरीद लो तथा मेरे हिस्से का जो कुछ है उसे मुझे देकर मुझे जाने दो।"
 
"अब जब तुमने मन बना ही लिया है तो कोई क्या कर सकता है भला?" अजय सिंह बोला__"खैर कब जा रहे हो?"
"तुम हिसाब किताब क्लियर कर लो।"सक्सेना ने कहा__"तब तक मैं कुछ और इंतजाम कर लेता हूॅ"

"ठीक है सक्सेना।" अजय सिंह ने कहा__"हिसाब किताब भी हो जाएगा। मगर यार मेरा कुछ तो खयाल किया होता।"
"क्या करूॅ यार?" सक्सेना ने कहा__"तुम्हारे लिए अफसोस तो हो रहा है मगर अब और नहीं रुक सकता। ये सब तो मैं बहुत पहले से करने की सोच रहा था किन्तु हर बार तुम्हारा खयाल आ जाने से मैंने खुद को रोंके रखा।"

"हिसाब किताब तो ठीक है।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन कुछ समय की मोहलत चाहता हूॅ क्योंकि इस वक्त पैसे का बड़ा लोचा हो रखा है।"
"हाॅ पता चला है मुझे इस बारे में।" सक्सेना ने कहा__"पर यार इतने नुकसान से क्या फर्क पड़ता है तुम्हें? और वैसे भी कारोबार में नफा नुकसान तो चलता ही रहता है।"

"बात ये नहीं है कि क्या फर्क पड़ता है?" अजय सिंह ने कहा__"बात है रेपुटेशन की। लोग क्या सोचेंगे कि अजय सिंह बघेल को कोई ब्यक्ति चुतिया बना कर चला गया और उसे पता भी नहीं चला।"
"हाॅ ये सही कहा तुमने।"सक्सेना ने कहा__"इज्जत का कचरा हो गया।"

"मैं उस हरामजादे को छोंड़ूॅगा नहीं सक्सेना।" अजय सिंह ने एकाएक गुस्से में बोला__"उसको ढूॅढ़ कर उसे ऐसी मौत दूॅगा कि उसकी रूह फिर दुबारा ऐसे किसी शरीर को धारण नहीं करेगी। मुझे अपने नुकसान का कोई ग़म नहीं है सक्सेना,ये करोड़ों का नुकसान मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। मगर मेरी इज्जत को शहर भर में यूॅ दाग़दार करके उसने अच्छा नहीं किया। उसे इसकी कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ेगी।"

"उसके साथ ऐसा होना भी चाहिए अजय सिंह।" सक्सेना ने एक सिगरेट सुलगाई और उसका एक गहरा कस लेकर धुआॅ ऊपर की तरफ उछालते हुए कहा__"वैसे क्या लगता है तुम्हें, ये किसका काम हो सकता है?"

"ये तो पक्की बात है सक्सेना कि वो दोनों विदेशी नहीं थे।" अजय सिंह बोला__"बल्कि वो दोनों हमारे ही देश के और हमारे ही शहर के कोई पहचान वाले ही थे।"
"ये बात तुम इतने विश्वास और दावे के साथ कैसे कह सकते हो अजय सिंह?" सक्सेना हल्के से चौंका था फिर बोला__"जबकि तुम्हारे पास इस बात का कोई छोटा सा सबूत तक नहीं है।"

"ग़लती मेरी भी है सक्सेना।" अजय सिंह ने कहा__"एक महीने पहले जब उनसे हमें ये टेंडर मिला था तब हमें ये अंदाज़ा नहीं था, बल्कि हम सोच भी नहीं सकते थे कि हम इन लोगों द्वारा किसी साजिश का शिकार होने जा रहे हैं। हम तो खुश थे कि हमारे कपड़ों की खासियत से प्रभावित होकर कोई विदेशी हमसे डील कर रहा है और इतनी ज्यादा मात्रा में हमसे कपड़े की माॅग कर रहा है। उस समय दिलो दिमाग में यही था कि अब हमारा संबंध विदेशी लोगों से हो रहा है जिससे निकट भविश्य में हमारे कारोबार को और भी फायदा होगा। किसी साजिश का हम सोच ही नहीं सके थे क्योकि उन लोगों का सब कुछ परफेक्ट था। और वैसे भी हमें इससे क्या लेना देना था कि वो कितनी बड़ी कंपनी के मालिक थे, हमें तो उनकी डील से मतलब था जिसके लिए हमे करोड़ों का मुनाफा होने वाला था।"

"वो सब तो ठीक है अजय।" सकसेना बीच में ही अजय की बात काट कर कह उठा__"मगर तुम कह रहे हो कि वो विदेशी नहीं थे ये बात तुम दावे के साथ कैसे कह सकते हो?"

"मैं बताते हुए वहीं आ रहा था सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"ख़ैर अब जबकि ये सब हो गया उससे यही समझ आता है कि ये काम किसी फाॅरेनर का नहीं है। क्योंकि आज तक हमारा किसी भी तरह का लेन देन किसी विदेशी से नहीं हुआ और जब कोई लेन देन ही नहीं हुआ किसी विदेशी से तो किसी तरह की रंजिश के तहत किसी फाॅरेनर का ये सब करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। अब सोचने वाली बात है कि जब हमारा किसी विदेशी से कोई ब्यौसायिक संबंध ही नहीं था तो कोई विदेशी किस वजह से हमारे साथ इतनी बड़ी साजिश करके हमें धोखा देगा अथवा हमारा इतना बड़ा नुकसान करेगा?"

"तुम्हारा तर्क बिलकुल दुरुस्त है अजय।" सक्सेना सोचपूर्ण भाव के साथ बोला__"फिर तो यकीनन ये काम किसी ऐसे ब्यक्ति का है जो तुम्हें अच्छी तरह जानता भी है और तुम्हारा बुरा भी चाहता है। कौन हो सकता है ऐसा ब्यक्ति?"
 
"यही तो सोच रहा हूॅ सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"मगर जेहन में ऐसे किसी ब्यक्ति का चेहरा नहीं आ रहा।"
"ये काम तुम्हारे किसी कम्पटीटर का ही हो सकता है।" सक्सेना ने कहा__"ये एक ब्यौसायिक मामला है अजय। ब्यौसाय से जुड़े तुम्हारे किसी कम्पटीटर ने ही इस काम को अंजाम दिया होगा। अच्छी तरह सोचो कि ये किसने किया हो सकता है?"

"मुझे तो कुछ और ही लगता है सक्सेना।" अजय सिंह ने सोचपूर्ण भाव से कहा__"ये काम मेरे किसी कम्पटीटर का भी नहीं है क्योकि इन सबसे मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" सक्सेना चौंका__"अगर ये सब तुम्हारे किसी कम्पटीटर का नहीं है तो फिर किसका है? कहीं तुम इन सबके लिए मुझे तो नहीं जिम्मेदार ठहरा रहे हो?"

"हो सकता है सक्सेना।" अजय सिंह ने सपाट लहजे में कहा__"इस सब में सबसे पहले उॅगली तो तुम पर ही उठेगी।"
"क्या मेरे बारे में तुम ऐसा सोचते हो कि मैं अपने घनिष्ठ मित्र के साथ ऐसा नीच काम करूॅगा?" सक्सेना ने कहा__"तुम मेरे बारे में अच्छी तरह जानते हो अजय कि मैं ऐसा किसी के भी साथ नहीं कर सकता। मेरी फितरत इस तरह किसी को धोखा देने की नहीं है।"

"रुपये पैसे के लिए कोई भी ब्यक्ति किसी के भी साथ कुछ भी कर सकता है सक्सेना।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा__"मैं तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं लगा रहा लेकिन इस तरह का सवाल तो खड़ा होगा ही। कानून का कोई भी नुमाइंदा तुमसे ये सवाल कर सकता है कि तुम अचानक ही अजय सिंह से पार्टनशिप तोड़ कर तथा अपना हिसाब किताब करके हमेशा के लिए विदेश क्यों जा रहे हो जबकि हाल ही में अजय सिंह के साथ ऐसा संगीन वाक्या हो गया?"

"तुम तो मुझ पर साफ साफ इल्जाम लगाते हुए कानून के लपेटे में डालने की बात कर रहे हो अजय सिंह।" सक्सेना दुखी भाव से बोला__"जबकि भगवान जानता है कि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।"

"भगवान तो सबके विषय में सब जानता है सक्सेना।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन इंसान नहीं जानता। इंसान तो वही जानता है जो उसे या तो नजर आता है या फिर समझ आता है। आज जो हालात बने हैं उससे साफ तौर पर यही समझ आता है कि ये सब तुम्हारे अलावा दूसरा कौन और क्यों कर सकता है?"

अरविन्द सक्सेना मूर्खों की तरह देखता रह गया अजय सिंह को। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि वह अभी अपने सिर के बाल नोंचने लगेगा।

"मुझे समझ नहीं आ रहा अजय सिंह कि मैं तुम्हें कैसे इस बात का यकीन दिलाऊॅ?" सक्सेना असहाय भाव से बोला__"कि ये सब मैं करने के बारे में सोच तक नहीं सकता। तुम जानते हो हम दोनो ऐसे हैं कि एक दूसरे का सब कुछ जानते हैं। हम दोनों के संबंध तो ऐसे हैं कि हम अपनी अपनी बीवियों को भी आपस में बाॅट लेते हैं। क्या कोई इतना भी घनिष्ठ मित्र हो सकता है किसी का? जिसके साथ ऐसे संबंध हों वो भला अपने दोस्त का इतना बड़ा अहित कैसे कर देगा यार?"

"तुम तो यार एक दम से सीरियस ही हो गए सक्सेना।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा__"मैं तो बस एक तर्कसंगत बात कह रहा था कि इस वाक्ये के बाद किसी भी ब्यक्ति के मन में सबसे पहले यही विचार उठेगा जो अभी मैने कहा था।"

"तुम मुझे जान से मार दो अजय सिंह मुझे जरा भी फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन ऐसे इल्जाम लगा कर मारोगे तो मैं मर कर भी कहीं चैन नहीं पाऊॅगा।" सक्सेना ने कहा।

"छोड़ो इस बात को और ये बताओ कि विदेश कब जा रहे हो?" अजय सिंह ने पूछा।
"दो दिन बाद।" सक्सेना ने कहा__"कल तक यहाॅ के सारे करोबार का रुपया मेरे एकाउंट में आ जाएगा और परसों यहाॅ से निकल जाऊॅगा। लेकिन.....।"

"लेकिन..??" अजय सिंह ने पूछा।
"लेकिन उससे पहले मैं चाहता हूॅ कि।" सक्सेना ने कहा__"हम लोगों का एक शानदार प्रोग्राम हो जाए।"
 
"जाने से पहले मेरी बीवी के मजे लेना चाहते हो।" अजय सिंह हॅसा।
"हाॅ तो बदले में तुम्हें भी तो मेरी बीवी से मजे लेना है।" सक्सेना ने भी हॅसते हुए कहा__"और वैसे भी मेरी बीवी तो रात दिन तुम्हारा ही नाम जपती रहती है। पता नहीं क्या जादू कर दिया है तुमने? साली मुझे बड़ी मुश्किल से हाॅथ लगाने देती है।"

"अच्छा ऐसा क्या?" अजय सिंह जोरों से हॅसा।
"हाॅ यार।" सक्सेना बोला__"और पता है विदेश जाने के लिए तो मान ही नहीं रही थी वो। जब मैने उसे ये कहा कि तुम हर महीने हमसे मिलने तथा मस्ती करने आओगे तब कहीं जाकर मानी थी वो।"

"मतलब कि अब मुझे हर महीने तुम्हारे पास इस सबके लिए आना पड़ेगा?"अजय सिंह मुस्कुराया।
"हाॅ बिलकुल।" सक्सेना ने कहा__"और वो भी भाभी के साथ।"

"सोचना पड़ेगा सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"और वैसे भी अभी मेरे पास सिर्फ एक ही अहम काम है, और वो है उन लोगों का पता लगाना जिनकी वजह से आज मुझे करोड़ों का नुकसान हुआ है तथा मेरी इज्जत की धज्जियाॅ उड़ी हैं।"

"हाॅ ये तो है।" सक्सेना ने कहा__"अगर कभी मेरी जरूरत पड़े तो बेझिझक याद करना अजय, तुम्हारे एक बार के कहने पर मैं तुम्हारे पास आ जाऊॅगा।"

"ठीक है सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"कल तक मैं तुम्हारा हिसाब किताब करके तुम्हारे एकाउंट में पैसे डाल दूॅगा।"

ऐसी ही कुछ और औपचारिक बातों के बाद सक्सेना वहाॅ से चला गया। जबकि अजय सिंह ये न देख सका कि जाते समय सक्सेना के होठों पर कितनी जानदार मुस्कान थी?

"ये सब क्या है डैड?" शिवा ड्राइंग रूम में दाखिल होते हुए तथा उत्तेजित से स्वर में बोला__"देखिए आज के अख़बार में क्या ख़बर छपी है?"
"क्या हुआ बेटे?" सोफे पर बैठे अजय सिंह ने सहसा चौंकते हुए पूॅछा__"कैसी ख़बर की बात कर रहे हो तुम?"

"आप खुद ही देख लीजिए डैड।" शिवा ने अपने हाॅथ में लिए अख़बार को अपने पिता की तरफ एक झटके से बढ़ाते हुए कहा__"देख लीजिए कि किस तरह अख़बार वालों ने आपकी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाई हैं?"

अजय सिंह शिवा के हाॅथ से अख़बार लेने के बाद उस पर नज़रें दौड़ाई। अख़बार के फ्रंट पेज पर ही बड़े अच्छरों में छपी हेडलाइन को पढ़ कर उसके होश उड़ गए। अख़बार में छपी हेडलाइन कुछ इस प्रकार की थी।

"मशहूर बिजनेसमैन अजय सिंह किसी अग्यात शख्स द्वारा धोखे का शिकार"
हल्दीपुर(गुनगुन): शहर के मशहूर बिजनेसमैन अजय सिंह को किसी अग्यात ब्यक्ति द्वारा करोड़ों रुपये का चूना लगाने का संगीन मामला सामने आया है। प्राप्त सूत्रों के अनुसार ये जानकारी मिली है कि मशहूर बिजनेसमैन अजय सिंह किसी विदेशी ब्यक्ति के साथ पिछले महीने करोड़ों रुपये की डील की थी। उस डील के तहत अजय सिंह द्वारा विदेशी ब्यक्ति को करोड़ों रुपये के बेहतरीन कपड़ों के थान सौंपे जाने थे। किन्तु पिछले दिन ही शाम को अजय सिंह के पीए को ये पता चला कि उनका जिस विदेशी ब्यक्ति के साथ करोड़ों का सौदा हुआ था वो दरअसल सिरे से ही फर्ज़ी था। कहने का मतलब ये कि विदेशी ब्यक्ति ने करोड़ों के कपड़े तैयार करवाए और उन कपड़ों के थान को लेने की बजाय बिना कुछ बताए लापता हो गया। मिली जानकारी के अनुसार विदेशी ब्यक्ति ने खुद को दूसरे देश का मशहूर बिजनेसमैन बताया जिसके सबूत के तौर पर खुद अजय सिंह द्वारा उस विदेशी ब्यक्ति की कंपनी प्रोफाइल भी देखी गई थी। विश्वस्त सूत्रों द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार अजय सिंह को करोड़ों रूपये के धोखे का पता तब चला जब उनकी फैक्ट्री में तैयार कपड़ों का करोड़ों रुपये के थान जिनमें और भी बहुत सी चीज़ें शामिल थी डील के लिए तैयार था। किन्तु उस सब को लेने वाला विदेशी नदारद था। उसके साथ कंटैक्ट करने की सारी कोशिशें जब नाकाम हो गईं और जब दो दिन तक भी विदेशी डीलर का पता न चला तो तब अजय सिंह को समझ आया कि उनके साथ कोई गेम खेल गया। मगर अब हो भी क्या सकता था? मिली जानकारी के अनुसार अजय सिंह की फैक्ट्री से तैयार करोड़ों की थान का अब कोई लेनदार न होने की वजह से भारी नुकसान हुआ है। ये विचार करने योग्य बात है कि विदेशी बिजनेसमैन के साथ ब्यौसायिक संबंध बनाने के चक्कर में अजय सिंह जैसे पढ़े लिखे व सुलझे हुए बिजनेसमैन बिना सोचे समझे करोड़ों की डील करके खुद का नुकसान कर बैठे। कदाचित् बाहरी मुल्कों से ब्यौसायिक संबंध बनाने के लालच में ही इतने बड़े धोखे और नुकसान के भागीदार बन बैठे।
 
अख़बार में छपी इस ख़बर को पढ़कर अजय सिंह का दिमाग़ सुन्न सा पड़ गया था। उसे समझ नहीं आया कि ये बात अख़बार वालों को किसने बताया हो सकता है? काफी देर तक अजय सिंह के दिमाग के घोड़े इस बात की खोज में भटकते रहे।

"किस सोच में पड़ गए डैड?" सहसा शिवा ने पिता की तरफ गौर से देखते हुए कहा__"और ये सब आख़िर है क्या ? अख़बार में छपी इस ख़बर का क्या मतलब है डैड??

अजय सिंह को समझ न आया कि अपने बेटे को क्या जवाब दे। फिर पता नहीं जाने क्या सोच कर उसने अपना मोबाइल निकाला और किसी को फोन लगा कर मोबाइल कान से लगा लिया।

कुछ देर कानों में रिंग जाने की आवाज़ सुनाई देती रही फिर उधर से काल रिसीव की गई।

"ये सब क्या है दीनदयाल?" काल रिसीव होते ही अजय सिंह लगभग आवेश में बोला__"आज के अख़बार में हमारे संबंध में ये क्या बकवास छापा है अख़बार वालों ने??"
"--------------"उधर से जाने क्या कहा गया।
"हम कुछ नहीं सुनना चाहते।" अजय सिंह पूर्वत आवेश में ही बोला__"आख़िर इस बात की ख़बर अख़बार वालों को किसने दी?"
"_________________"
"अरे तो पता लगाओ दीनदयाल।" अजय सिंह ने कहा__"अख़बार वालों को क्या कोई ख़्वाब चमका है जो उन्हें इस बारे में ये सब पता चला?"

"_______________"
"वही तो कह रहे हैं हम दीन के दयाल।" अजय सिंह बोला__"अख़बार वालों को ये ख़बर देने वाला वही है जिसने इस साजिश को रच कर इसे अंजाम दिया है। तुम जल्द से जल्द पता लगाओ कि कौन है ये नामुराद जो हमारी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाने पर तुला हुआ है?"

"_______________"
"हम कुछ नहीं जानते दीनदयाल।" अजय सिंह इस बार गुर्राया__"24 घंटे के अंदर उस शख्स को ढूॅढ़ कर हमारे सामने हाज़िर करो। वर्ना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"

इतना कहने के बाद अजय सिंह ने फोन काट कर मोबाइल को सोफे पर लगभग फेंक दिया था। इस वक्त अजय सिंह के चेहरे पर क्रोध और अपमान का मिला जुला भाव गर्दिश करता नज़र आ रहा था।

"क्या बात है डैड?" शिवा अपने पिता के चेहरे के भावों को गौर से देखते हुए बोला__"आप कुछ परेशान से लग रहे है?"
"अभी हम किसी से बात करने के मूड में नहीं हैं बेटे।" अजय सिंह ने अजीब लहजे मे कहा__"इस लिए तुम जाओ यहाॅ से, हमें कुछ देर अकेले में रहना है।"

शिवा पूछना तो बहुत कुछ चाहता था किन्तु अपने पिता का खराब मूड देख कर चुपचाप वहाॅ से अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।

"बेटे को तो टाल दिया आपने।" सहसा प्रतिमा ने ड्राइंगरूम में आते हुए कहा__"मगर मुझे इस तरह टाल नहीं सकते आप।"

"प्रतिमा प्लीज़।" अजय सिंह ने झ़ुझलाते हुए कहा__"मैं इस वक्त किसी से कोई बात नहीं करना चाहता।"
"ये तो कोई बात न हुई।" प्रतिमा ने कहा__"किसी बात को लेकर अगर आप परेशान हैं तो आपको देखकर हम सब भी परेशान हो जाएंगे। इस लिए जो भी बात है बता दीजिए कम से कम मन को शान्ति तो मिलेगी।"

अजय सिंह जानता था कि प्रतिमा बात को बिना जाने नहीं मानेगी, इस लिए उसने उसे सबकुछ बता देना ही बेहतर समझा। एक गहरी साॅस लेकर उसने प्रतिमा को सारी बातें बता दी जो पिछले महीने से अब तक उसके साथ हुआ था। सब कुछ जानने के बाद प्रतिमा भी गंभीर हो गई।
 
"लेकिन आप ये कैसे पता लगाएंगे कि किसने आपके साथ ये सब किया है?" प्रतिमा ने कहा__"जबकि आपके पास उसके बारे में कोई सबूत नहीं है। अगर आप ये समझते हैं कि उनके चेहरे की बिना पर उन्हें खोजेंगे तो तब भी आप उन्हें नहीं खोज पाएंगे।"

"तुम ऐसा कैसे कह सकती हो भला?" अजय सिंह चौंकते हुए बोला था।
"सीधी सी बात है।" प्रतिमा ने कहा__"वो जो भी थे आपसे या आपके पीए से हमेशा फाॅरेनर की वेशभूसा या शक्ल में ही मिले थे। मतलब साफ है कि वो लोग शुरू से ही आपसे या आपके पीए से अपनी असलियत छुपाना चाह रहे थे, ये भी कि आपको तथा आपके पीए को उनके बारे में ज़रा सा भी किसी प्रकार का शक न हो। आज ये आलम है कि वो अपने मकसद में उसी तरह कामयाब हो कर गायब हो गए जैसा उन्होंने कर गुज़रने का प्लान बनाया रहा होगा।"

अजय सिंह अपनी बीवी की इस बात को सुन कर अवाक् सा रह गया। प्रतिमा को इस तरह देखने लगा था वह जैसे प्रतिमा की गर्दन अपने धड़ से अलग हो कर हवा में कत्थक करने लगी हो।

"क्या मैंने कुछ ग़लत कहा डियर?" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"कभी कभी तुम्हारा दिमाग़ भी किसी सफल जासूस की तरह चलता है।" अजय सिंह बोला__"यकीनन तुम्हारा ये तर्क अपनी जगह एक दम दुरुस्त है। तुम्हारी बातों में वजन है, और अगर तुम्हारी इस बात के अनुसार सोचा जाए तो अब हमारे लिए ये बेहद मुश्किल काम है उन लोगों को ढूॅढ़ पाना।"

"वकालत की पढ़ाई आपने ही नहीं बल्कि मैंने भी की है जनाब।" प्रतिमा ने हॅस कर कहा__"ये अलग बात है कि मैंने इस पढ़ाई के बाद वकील बन कर किसी कोर्ट में किसी के पक्ष में वकालत नहीं की।"

"अच्छा ही किया न।" अजय सिंह ने भी हॅस कर कहा__"वर्ना बड़े बड़े वकीलों की छुट्टी हो जाती।"
"ऐसा आप कह सकते हैं।" प्रतिमा ने अर्थपूर्ण लहजे में कहा__"क्योंकि आपको ही अपनी छुट्टी हो जाने का अंदेशा हुआ नज़र आया है।"

"तुम ऐसा सोचती हो तो चलो ऐसा ही सही।" अजय सिंह बोला__"लेकिन इस बारे में अब तुम्हारा क्या खयाल है, मेरा मतलब कि अब हम कैसे उन लोगों का पता लगाएंगे?"

"सब कुछ बहुत सोच समझ कर पहले से ही प्लान बना लिया था उन लोगों ने।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा__"इस लिए इस बारे में पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता कि वो हमारे द्वारा पता कर ही लिए जाएंगे।"

अजय सिंह का खयाल भी यही था इस लिए कुछ बोला नहीं वह।जबकि,,,,

"वैसे आपका अपने उस भतीजे के बारे में क्या खयाल है?" प्रतिमा ने कहा__"हो सकता है ये सब उसी का किया धरा हो?"

"नहीं यार।" अजय सिंह कह उठा__"उससे इस सब की उम्मीद मैं नहीं करता। क्योंकि जिस तरह से सोच समझ कर तथा प्लान बना कर हमसे धोखा किया गया है वैसा करना विराज के बस का रोग़ नहीं है। वो साला तो किसी होटल या ढाबे में अपने साथ साथ अपनी माॅ बहन को भी कप प्लेट धोने के काम में लगा दिया होगा। इतना कुछ करने के लिए दिमाग़ चाहिए और फाॅरेनर लुक पाने के लिए ढेर सारा पैसा जो उसके पास होने का कोई चान्स ही नहीं है। तुम बेवजह ही इस सबके पीछे उसको ही जिम्मेदार ठहरा रही हो प्रतिमा।"

"हमें हर पहलू पर गौर करना चाहिए डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने कहा__"एक अच्छा इन्वेस्टिगेटर वही होता है जो हर पहलू के बारे में सोच विचार करे। ज़रा सोचिए...इस तरह की घटनाएं तभी से शुरू हुईं हैं जबसे विराज अपने साथ अपनी माॅ बहन को लेकर यहाॅ से मुम्बई गया है। इसके पहले आज तक कभी भी ऐसी कोई बात नहीं हुई। उसका हमारे बेटे को बुरी तरह मार पीटकर यहाॅ से जाना, ट्रेन से अपनी माॅ बहन सहित रहस्यमय तरीके से गायब हो जाना, और अब ये.....आपका किसी के द्वारा इस तरह धोखा खा कर नुकसान हो जाना। ये तो आपको भी पता है कि कोई दूसरा आपके साथ ऐसा नहीं कर सकता फिर बचता कौन है??"

अजय सिंह के दिलो दिमाग़ में अचानक ही मानो धमाके से होने लगे। प्रतिमा द्वारा कहा गया एक एक शब्द उसके मनमस्तिष्क पर गहरी चोंट कर रहा था। जबकि....

"वर्तमान समय में अगर कोई आपके खिलाफ खड़ा हो सकता है तो वो है विराज।" प्रतिमा गंभीरता से कह रही थी__"आपसे जिसे सबसे ज्यादा तक़लीफ है तो वो है विराज। बात भी सही है डियर हस्बैण्ड...हमने उनके साथ क्या क्या बुरा नहीं किया। हर दुख दिये उन्हें, यहां तक कि हमारी वजह से आज वो अपने ही घर से बेघर हैं। ख़ैर...इन सब बातों के कहने का मतलब यही है कि मौजूदा हालात में इस सबके पीछे अगर किसी पर सबसे ज्यादा उॅगली उठती है तो सिर्फ विराज पर।"
 
अजय सिंह के पास कहने के लिए जैसे कुछ था ही नहीं, जबकि उसकी खामोशी और उसके चेहरे पर तैरते हज़ारों भावों को बारीकी से परखते हुए प्रतिमा ने पुन: कहा__"आप हमेशा इस बात पर ज़ोर देते हैं कि विराज मुम्बई में किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोता होगा और अब अपनी माॅ बहन को भी इसी काम में लगा दिया होगा। लेकिन क्या आपके पास अपकी इस बात का ठोस सबूत है? क्या आपने कभी अपनी आॅखों से देखा है कि विराज मुम्बई में किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोने का काम करता है...नहीं न?? बल्कि ये सिर्फ आपकी अपनी सोच है जो ग़लत भी हो सकती है।"

"तुमने तो यार मेरा ब्रेन वाश ही कर दिया।" अजय सिंह गहरी साॅस ली, उसकी आॅखों में अपनी पत्नी के प्रति प्रसंसा के भाव थे__"यकीनन तुममें एक अच्छे इन्वेस्टिगेटर होने के गुण हैं। तो तुम्हारे मतानुसार ये सब जो कुछ हुआ है उसका जिम्मेदार सिर्फ विराज है?"

"मै ये नहीं कहती डियर हस्बैण्ड कि ये सब विराज ने ही किया है।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा__"बल्कि मैं तो सिर्फ संभावना ब्यक्त कर रही हूॅ कि किसने क्या किया हो सकता है। पक्के तौर पर तो तभी कहा जाता है न जब हमारे पास किसी बात का ठोस व पुख्ता सबूत हो??"

"आई एग्री विद यू माई डियर।" अजय ने मुस्कुराते हुए कहा__"तो हम अब इस थ्योरी के साथ चलेंगे कि ये सब विराज ने किया हो सकता है। लेकिन अब सवाल ये है कि...कैसे?? इतना कुछ वो कैसे कर सकता है भला जबकि इतना कुछ कर गुजरने की काबिलियत उसमे है ही नहीं इतना तो मुझे यकीन है?"

"आपका ये यकीन बेमतलब भी तो हो सकता है डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने तर्क किया__"क्योकि आपके पास अपने इस यकीन की भी ठोस वजह नहीं है ये मुझे पता है।"

"अब बस भी करो यार।" अजय सिंह ने बुरा सा मुॅह बनाया__"आज क्या मूॅग की दाल में भीमसेनी काजल मिला कर खाया है तुमने? मेरी हर बात की हर विचार की धज्जियाॅ उड़ाए जा रही हो तुम।"

"मेरा ऐसा करने का कोई इरादा नहीं था डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा मुस्कुराई__"मैने तो बस अपने विचार और तर्क पेश किये हैं, और अपने डियर हस्बैण्ड को सही राह की तरफ जाने का मार्ग बताने की कोशिश की है।"

अजय सिंह को प्रतिमा पर बेहद प्यार आया, और उसने आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को अपनी बाॅहों मे भर लिया। कुछ पल उसकी आॅखों में झाॅकने के बाद उसने झुक कर प्रतिमा के रस भरे अधरों को अपने होठों के बीच भर कर उन्हें चूमने चूसने लगा।

प्रतिमा के जिस्म में आनंद की मीठी मीठी लहरें तैरने लगी। उसने भी अपने दोनो हाॅथ अजय सिंह के गले में डालकर इन होठों के चुंबन तथा चुसाई का भरपूर आनंद लेने लगी। वे दोनो भूल गये कि इस वक्त वे अपने बेडरूम में नहीं बल्कि ड्राइंगरूम में हैं जहाॅ पर किसी के भी द्वारा देख लिए जाने का खतरा था।

अजय सिंह बुरी तरह प्रतिमा के होठों को चूस रहा था। उसका बाॅया हाॅथ सरकते हुए सीथा प्रतिमा के दाॅएं बोबे पर आकर बड़े आकार के बोबे को सख्ती से अपनी मुट्ठी में भर कर मसलना शुरू कर दिया। अपनी चूॅची को इस तरह मसले जाने से प्रतिमा के मुॅह से एक दर्दयुक्त किन्तु आनंद से भरी हुई आह निकल गई जो अजय सिंह के होठों के बीच ही दब कर रह गई। ये दोनों जैसे सब कुछ भूल चुके थे, ये भी कि अपने कमरे से ड्राइंगरूम की तरफ आता हुआ उनका बेटा शिवा अपने माॅम डैड को इस हालत में देख कर भी वापस नहीं पलटा था बल्कि वहीं छुपकर इस नज़ारे का मज़ा लेने लगा था। उसके होठों पर बेशर्मी से भरी मुस्कान तैरने लगी थी तथा साथ ही अपने दाएॅ हाथ से पैन्ट के ऊपर से ही सही मगर अपने लौड़े को मसले भी जा रहा था।

"तुम दोनों ने बहुत ही बेहतर तरीके से इस काम को अंजाम दिया है मेरे बच्चो।" ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठे जगदीश ओबराय ने मुस्कुराते हुए कहा__"अजय सिंह सोच भी नहीं सकता है कि उसके साथ ये खेल खेलने वाले वो दो फाॅरेनर कौन थे?"

"खेल ऐसा ही होगा अंकल जो किसी को समझ में ही न आए।" विराज ने प्रभावशाली स्वर में कहा__"और अजय सिंह के साथ अब वो होगा जो उसने सोचा भी न होगा।"

"मैं तो बेवजह ही तुम्हें इसके लिए किसी ऐक्टर या माॅडल का सजेशन दे रहा था बेटे।" जगदीश ने कहा__"मुझे लगता था कि इस काम के लिए एक ऐक्टर ही बेहतर हो सकता है क्योकि उन्हें हर तरह के किरदार निभाने का तरीका और अनुभव होता है। जबकि तुमने खुद ही इस काम को करने का ज़ोर दिया।"
 
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