hotaks444
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कमरे के दरवाजे पर अपनी आॅखों से डबडबाते आॅसू के साथ खड़ी निधि अपने भाई विराज को देखे जा रही थी जो अपने दाहिने हाॅथ में मॅहगी शराब की बोतल को मुॅह से लगाए गटागट पिये जा रहा था। देखते ही देखते सारी बोतल खाली हो गई। विराज ने खाली बोतल को बार काउंटर पर पटका और फिर से एक बोतल उठा ली उसने।
निधि को जैसे होश आया, वह बिजली की सी तेज़ी से कमरे के अंदर विराज के पास पहुॅची और हाॅथ बढ़ा कर एक झटके से विराज के हाॅथ से बोतल खींच ली।
"ये क्या पागलपन है भइया?" निधि ने रोते हुए किन्तु चीख कर कहा__"आप शराब को हाॅथ कैसे लगा सकते हैं? क्या उसका ग़म इतना बड़ा है कि उसके ग़म को भुलाने और मिटाने के लिए आपको इस शराब का सहारा लेना पड़ रहा है? क्यों भइया क्यों...क्यों उसको याद करके घुट घुट के जी रहे हैं? एक ऐसी बेवफा के लिए जिसको आपके सच्चे प्यार की कोई कद्र ही न थी। जिसने आपकी गुरबत को देख कर आपका साथ देने की बजाय आपका साथ छोंड़ दिया। क्यों भइया....क्यों ऐसे इंसान को याद करना? क्यों ऐसे इंसान की यादों में तड़पना जिसको प्यार और मोहब्बत के मायने ही पता नहीं?"
विराज ख़ामोश खड़ा था। उसका चेहरा आॅसुओं से तर था। चेहरे पर ज़माने भर का दर्द जैसे तांडव कर रहा था। आॅखें शराब के नशे में लाल सुर्ख हो चली थीं। निधि क्या बोल रही थी उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जबकि निधि ने उसे पकड़ कर आराम से वहीं रखे एक सोफे पर बिठाया और खुद भी उसके पास ही बैठ गई।
"तु तुझे ये सब कैसे पता चला गुड़िया?" फिर विराज ने लरजते हुए स्वर में कहा।
"आप सारी दुनियाॅ को बहला सकते हैं भइया,लेकिन अपनी गुड़िया को नहीं।" निधि ने कहा__"मुझे इस बात का आभास तो पहले से ही था कि आप जो हम सबको दिखा रहे हैं वैसा असल में है नहीं। मैंने अक्सर रातों में आपको रोते हुए देखा था। एक दिन जब आप किसी काम से बाहर गए हुए थे तो मैंने आपके कमरे की तलाशी ली। उस समय मैं खुद नहीं जानती थी कि आपके कमरे में मैं क्या तलाश कर रही थी? किन्तु इतना ज़रूर जानती थी कि कुछ तो मिलेगा ही ऐसा जिससे ये पता चल सके कि आप अक्सर रातों में क्यों रोते हैं? काफी तलाश करने के बाद जो चीज़ मुझे मिली उसने अपनी आस्तीन में छुपाई हुई सारी दास्तां को मेरे सामने रख दिया। मेरे हाॅथ आपकी डायरी लग गई थी....उसी से मुझे सारी बातें पता चलीं। डायरी में आपके द्वारा लिखा गया एक एक हर्फ़ ऐसा था जिसने मुझे और मेरी अंतर्आत्मा तक को झकझोर कर रख दिया था भइया। अच्छा हुआ कि वो डायरी मुझे मिल गई थी वर्ना भला मैं कैसे जान पाती कि आप अपने सीने में कितना बड़ा दर्द छुपा कर हम सबके सामने हॅसते बोलते रहते हैं?"
"ये सब माॅ से मत बताना गुड़िया।" विराज ने बुझे स्वर में कहा__"वर्ना माॅ को बहुत दुख होगा। उन्होंने बहुत दुख सहे हैं, मैं उन्हें अब किसी भी तरह दुखी नहीं देख सकता।"
"और मुझे???" निधि ने विराज की आॅखों में बड़ी मासूमियत से देखते हुए कहा__"क्या मुझे दुखी सकते है आप??"
"नहीं, हर्गिज़ नहीं गुड़िया।" विराज ने कहने के साथ ही निधि के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच लिया__"तू तो मेरी जान है रे। तेरी तरफ तो दुख की परछाई को भी न फटकने दूॅ।"
"अगर ऐसी बात है तो क्यों खुद को इतनी तकलीफ़ देते हैं आप?" निधि ने रुआॅसे स्वर में कहा__"आप भी तो मेरी जान हैं, और मैं भला अपनी जान को दुख में देख कर कैसे खुश रह सकती हूॅ, कभी सोचा है आपने? आप तो हमेशा उसी की याद में दुखी रहते हैं, उसी के बारे में सोचते रहते हैं। आपको इस बात का ख़याल ही नहीं रहता कि जो सचमुच आपसे प्यार करते हैं वो आपको इस तरह दुखी देख कर कैसे खुश रह सकते हैं?"
विराज कुछ न बोला। सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका लिया उसने और अपनी आॅखें बंद कर ली। उस पर अब नशा हावी हो गया था। दुख दर्द जब असहनीय हो जाता है तो वह कुछ भी कर गुज़रने पर उतारू हो जाता है। आज तक उसने शराब को हाथ भी न लगाया था। अपने इस दर्द को किसी से बयां भी न किया था, किन्तु आज अपनी ये सच्चाई जब निधि के मुख से सुनी तो उसे जाने क्या हुआ कि उसके जज्बात हद से ज्यादा मचल गए और उसने शराब पी। हलाकि वह अंदर इस लिए आया था क्योंकि वह निधि के सामने खुद को इस हाल में नहीं दिखा सकता था। जब वह कमरे में आया तो नज़र कमरे में ही एक तरफ लगे बार काउंटर पर पड़ी। अपनी हालत को छुपाने के लिए उसने पहली बार शराब की तरफ अपना रुख किया था। जुनून के हवाले हो चुके उसने शराब की बोतल ही मुख से लगा ली और सारी बोतल डकार गया। किन्तु अब उस पर शराब का नशा तारी हो चुका था।
निधि कोई बच्ची नहीं थी बल्कि सब समझती थी। उसे एहसास था कि शराब ने उसके भाई पर अपना असर दिखा दिया है। क्या सोच कर आए थे दोनो यहाॅ लेकिन क्या हो गया था। निधि को अपने भाई की इस हालत पर बड़ा दुख हो रहा था। वह आॅखे बंद किये अपने भाई को ही देखे जा रही थी। उसने उसे झकझोर कर पुकारा, तो विराज हड़बड़ा कर उठा। इधर उधर देखा फिर नज़र निधि पर पड़ी तो एकाएक ही वह चौंका। उसे निधि के चेहरे पर किसी और का ही चेहरा नज़र आ रहा था। वह एकटक देखे जा रहा था उसे। फिर एकाएक ही उसके चेहरे के भाव बदल गए।
"अब यहाॅ क्या देखने आई हो विधि?" विराज भावावेश में कह रहा था__"देख लो तुमने जो ग़म दिये थे वो थोड़ा कम पड़ गए वर्ना आज मैं ज़िंदा नहीं रहता बल्कि कब का मर गया होता या फिर पागल हो गया होता। लेकिन चिन्ता मत करो, क्योंकि ज़िन्दा भी कहाॅ हूॅ मैं? हर पल घुट घुट कर जीता हूॅ मैं। इससे अच्छा तो ये होता कि तुम मुझे ज़हर दे देती। कम से कम एक बार में ही मर जाता।"
इधर विराज जाने क्या बोले जा रहा था जबकि उधर निधि पहले तो बुरी तरह चौंकी थी फिर जब उसे सब कुछ समझ आया तो उसका दिल तड़प उठा। उसने कुछ कहा नहीं बल्कि अपने भाई को बोलने दिया ये सोच कर कि ये उसके अंदर का गुबार है। इस गुबार का निकलना भी बहुत ज़रूरी है। उसे जाने क्या सूझी कि उसने इस सबके लिए खुद विधि का रोल प्ले करने का सोच लिया।
"क्यों किया ऐसा विधि?" विराज भर्राए गले से कह रहा था__"क्या यही प्यार था? क्या तुम्हें मेरे धन दौलत से प्यार था? और जब तुमने देखा कि मेरे अपनों ने मुझे मेरी माॅ बहन सहित हर चीज़ से बेदखल कर दिया है तो तुमने भी मुझे दुत्कार दिया? क्यों किया ऐसा विधि....?"
"प्यार व्यार ये सब फालतू की बाते हैं मिस्टर विराज।" विधि का रोल कर रही निधि ने अजीब भाव से कहा__"समझदार आदमी इनके चक्करों में पड़ कर अपना समय बर्बाद नहीं करता। मैने तुमसे प्यार किया था क्योंकि तुम उस समय अमीर थे। तुम्हारे पास धन था दौलत थी। उस समय तुम मेरे लिए कुछ भी खरीद कर दे सकते थे। तुमसे शादी करती तो सारी ज़िन्दगी ऐश करती। मगर तुम तो अपनों के द्वारा दर दर का भिखारी बना दिये गए। भला कोई भिखारी मेरी ज़रूरतों को कैसे पूरा कर पाता? इस लिए मैंने समझदारी से काम लिया और तुमसे जो प्यार का चक्कर चलाया था उसे खत्म कर दिया। हर ब्यक्ति अपने सुख और हित के बारे में सोचता है। मैं ने भी तो यही सोचा था, इसमें भला मेरी क्या ग़लती?"
"कितनी आसानी से ये सब कह दिया तुमने?" विराज के अंदर जैसे कोई हूक सी उठी थी, बोला__"क्या एक पल के लिए भी तुम्हारे मन में ये ख़याल नहीं आया कि तुम्हारे इस तरह के कठोर बर्ताव से मुझ पर क्या गुज़री रही होगी? क्या तुम्हें एक पल के लिए भी नहीं लगा कि तुम ये जो कुछ कर रही हो वह कितना ग़लत है? क्या तुझे एक पल के लिए भी नहीं लगा था कि तेरे इस तरह दुत्कार देने से सारी ऊम्र मैं सुकून से जी नहीं पाऊॅगा? बता बेवफा....बता बेहया लड़की?"
विराज एकाएक ही बुरी तरह चीखने चिल्लाने लगा था। जुनून और पागलपन सा सवार हो गया था उस पर। उसने एक झटके में निधि की गर्दन को अपने दोनो हाॅथों से दबोच लिया। निधि को इस सबकी उम्मीद नहीं थी। इस लिए जैसे ही विराज ने अपने दोनो हाॅथों से उसकी गर्दन दबोची वैसे ही वह बुरी तरह घबरा गई। जबकि विराज जुनूनी हो चुका। इस वक्त उसके चेहरे पर नफरत घृड़ा और गुस्सा जैसे कत्थक करने लगा था। आॅखें तो नशे में वैसे ही लाल सुर्ख हो गई थी पहले से अब चेहरा भी सुर्ख पड़ गया था।
निधि ने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है। विराज ने उसकी गर्दन को शख्ती से दबोचा हुआ था। निधि बुरी तरह सहम गई थी। डर और भय के चलते उसका चेहरा निस्तेज़ का हो गया था। जबकि.....
"अब बोलती क्यों नहीं खुदगर्ज़ लड़की? बोल क्यों किया मेरे दिल के साथ इतना बड़ा खिलवाड़?" विराज भभकते स्वर में बोले जा रहा था__"बोल क्यों मेरी पाक भावनाओं को पैरों तले रौंदा था? बोल कितनी धन दौलत चाहिए तुझे? आज तो मैं फिर से अमीर हो गया हूॅ....मेरे पास आज इतनी दौलत है कि तेरे जैसी जाने कितनी लड़कियों को एक साथ उस दौलत से तौल दूॅ। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुझे पता चल गया हो कि मैं फिर से धन दौलत वाला हो गया हूॅ और इस लिए तू फिर से अपना फरेबी प्यार मेरे आगे परोसने आ गई? नहीं नहीं...अब मुझे तेरे इस घिनौने प्यार की ज़रूरत नहीं है। बल्कि अब तो मैं तेरे जैसी लड़कियों को अपनी उसी दौलत से दो कौड़ी के दामों में खरीद कर अपने नीचे सुलाऊॅगा और रात दिन रगड़ूॅगा उन्हें समझी तू???"
"भ भइया...ये क् क्या हो गया है आ आपको?" निधि बड़ी मुश्किल से बोल पा रही थी__"मैं वि विधी नहीं बल्कि मैं आ आपकी गुड़िया हूॅ भइयाऽऽ।"
विराज इस तरह रुक गया जैसे स्टैचू में तब्दील हो गया हो। कानों में सिर्फ एक यही वाक्य गूॅज रहा था 'मैं वि विधी नहीं बल्कि मैं आ आपकी गुड़िया हूॅ भइयाऽऽ।' बार बार यही वाक्य कानों में गूॅज रहा था। एक झटके से विराज ने निधि की गर्दन से अपने हाॅथ खींचे। एक पल में ही उसकी बड़ी अजीब सी हालत हो गई। आॅखें फाड़ कर निधि को देखा उसने। और फिर फूट फूट कर रो पड़ा वह। निधि को अपने सीने से छुपका लिया उसने।
"मुझे माफ कर दे...माफ कर दे मुझे।" विराज ने निधि को अपने सीने से अलग करके अपने दोनो हाथ जोड़ कर कहा__"ये मैं क्या कर रहा था गुड़िया? अपने इन्हीं हाॅथों से अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी अपनी गुड़िया का गला दबा रहा था मैं। मुझे माफ कर दे गुड़िया, मुझसे कितना नीच काम हो गया...तू तू मुझे इस सबके लिए कठोर से भी कठोर सज़ा दे गुड़िया।"
"भइयाऽऽ।" निधि का दिल हाहाकार कर उठा, उसने एक झटके से विराज को खुद से चिपका लिया। बुरी तरह रोये जा रही थी वह। वह जानती थी कि ये जो कुछ भी हुआ उसमें विराज की कहीं कोई ग़लती नहीं थी। वो तो बस एक गुबार था, जो इस प्रकार से निधि को ही विधी समझ कर उसके अंदर से फट पड़ा था।
जाने कितनी ही देर तक यही आलम रहा। निधि अपने भाई को शान्त कराती रही। शराब के नशे में विराज वहीं निधि की गोंद में सिर रख कर सो गया था। निधि बड़े प्यार से उसके सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरती जा रही थी। उसकी नज़रें अपने भाई के उस चेहरे पर जमी हुई थी जिस चेहरे पर इस वक्त संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी।
'आप चिन्ता मत कीजिए भइया, आपकी ये गुड़िया आपको इतना प्यार करेगी कि आप संसार के सारे दुख सारे ग़म भूल जाएॅगे। आप मेरी जान हैं और मैं आपकी जान हूॅ। इस लिए आज से आपकी खुशी के लिए मैं वो सब कुछ करूॅगी जिससे आपको खुशी मिले।
निधि को जैसे होश आया, वह बिजली की सी तेज़ी से कमरे के अंदर विराज के पास पहुॅची और हाॅथ बढ़ा कर एक झटके से विराज के हाॅथ से बोतल खींच ली।
"ये क्या पागलपन है भइया?" निधि ने रोते हुए किन्तु चीख कर कहा__"आप शराब को हाॅथ कैसे लगा सकते हैं? क्या उसका ग़म इतना बड़ा है कि उसके ग़म को भुलाने और मिटाने के लिए आपको इस शराब का सहारा लेना पड़ रहा है? क्यों भइया क्यों...क्यों उसको याद करके घुट घुट के जी रहे हैं? एक ऐसी बेवफा के लिए जिसको आपके सच्चे प्यार की कोई कद्र ही न थी। जिसने आपकी गुरबत को देख कर आपका साथ देने की बजाय आपका साथ छोंड़ दिया। क्यों भइया....क्यों ऐसे इंसान को याद करना? क्यों ऐसे इंसान की यादों में तड़पना जिसको प्यार और मोहब्बत के मायने ही पता नहीं?"
विराज ख़ामोश खड़ा था। उसका चेहरा आॅसुओं से तर था। चेहरे पर ज़माने भर का दर्द जैसे तांडव कर रहा था। आॅखें शराब के नशे में लाल सुर्ख हो चली थीं। निधि क्या बोल रही थी उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जबकि निधि ने उसे पकड़ कर आराम से वहीं रखे एक सोफे पर बिठाया और खुद भी उसके पास ही बैठ गई।
"तु तुझे ये सब कैसे पता चला गुड़िया?" फिर विराज ने लरजते हुए स्वर में कहा।
"आप सारी दुनियाॅ को बहला सकते हैं भइया,लेकिन अपनी गुड़िया को नहीं।" निधि ने कहा__"मुझे इस बात का आभास तो पहले से ही था कि आप जो हम सबको दिखा रहे हैं वैसा असल में है नहीं। मैंने अक्सर रातों में आपको रोते हुए देखा था। एक दिन जब आप किसी काम से बाहर गए हुए थे तो मैंने आपके कमरे की तलाशी ली। उस समय मैं खुद नहीं जानती थी कि आपके कमरे में मैं क्या तलाश कर रही थी? किन्तु इतना ज़रूर जानती थी कि कुछ तो मिलेगा ही ऐसा जिससे ये पता चल सके कि आप अक्सर रातों में क्यों रोते हैं? काफी तलाश करने के बाद जो चीज़ मुझे मिली उसने अपनी आस्तीन में छुपाई हुई सारी दास्तां को मेरे सामने रख दिया। मेरे हाॅथ आपकी डायरी लग गई थी....उसी से मुझे सारी बातें पता चलीं। डायरी में आपके द्वारा लिखा गया एक एक हर्फ़ ऐसा था जिसने मुझे और मेरी अंतर्आत्मा तक को झकझोर कर रख दिया था भइया। अच्छा हुआ कि वो डायरी मुझे मिल गई थी वर्ना भला मैं कैसे जान पाती कि आप अपने सीने में कितना बड़ा दर्द छुपा कर हम सबके सामने हॅसते बोलते रहते हैं?"
"ये सब माॅ से मत बताना गुड़िया।" विराज ने बुझे स्वर में कहा__"वर्ना माॅ को बहुत दुख होगा। उन्होंने बहुत दुख सहे हैं, मैं उन्हें अब किसी भी तरह दुखी नहीं देख सकता।"
"और मुझे???" निधि ने विराज की आॅखों में बड़ी मासूमियत से देखते हुए कहा__"क्या मुझे दुखी सकते है आप??"
"नहीं, हर्गिज़ नहीं गुड़िया।" विराज ने कहने के साथ ही निधि के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच लिया__"तू तो मेरी जान है रे। तेरी तरफ तो दुख की परछाई को भी न फटकने दूॅ।"
"अगर ऐसी बात है तो क्यों खुद को इतनी तकलीफ़ देते हैं आप?" निधि ने रुआॅसे स्वर में कहा__"आप भी तो मेरी जान हैं, और मैं भला अपनी जान को दुख में देख कर कैसे खुश रह सकती हूॅ, कभी सोचा है आपने? आप तो हमेशा उसी की याद में दुखी रहते हैं, उसी के बारे में सोचते रहते हैं। आपको इस बात का ख़याल ही नहीं रहता कि जो सचमुच आपसे प्यार करते हैं वो आपको इस तरह दुखी देख कर कैसे खुश रह सकते हैं?"
विराज कुछ न बोला। सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका लिया उसने और अपनी आॅखें बंद कर ली। उस पर अब नशा हावी हो गया था। दुख दर्द जब असहनीय हो जाता है तो वह कुछ भी कर गुज़रने पर उतारू हो जाता है। आज तक उसने शराब को हाथ भी न लगाया था। अपने इस दर्द को किसी से बयां भी न किया था, किन्तु आज अपनी ये सच्चाई जब निधि के मुख से सुनी तो उसे जाने क्या हुआ कि उसके जज्बात हद से ज्यादा मचल गए और उसने शराब पी। हलाकि वह अंदर इस लिए आया था क्योंकि वह निधि के सामने खुद को इस हाल में नहीं दिखा सकता था। जब वह कमरे में आया तो नज़र कमरे में ही एक तरफ लगे बार काउंटर पर पड़ी। अपनी हालत को छुपाने के लिए उसने पहली बार शराब की तरफ अपना रुख किया था। जुनून के हवाले हो चुके उसने शराब की बोतल ही मुख से लगा ली और सारी बोतल डकार गया। किन्तु अब उस पर शराब का नशा तारी हो चुका था।
निधि कोई बच्ची नहीं थी बल्कि सब समझती थी। उसे एहसास था कि शराब ने उसके भाई पर अपना असर दिखा दिया है। क्या सोच कर आए थे दोनो यहाॅ लेकिन क्या हो गया था। निधि को अपने भाई की इस हालत पर बड़ा दुख हो रहा था। वह आॅखे बंद किये अपने भाई को ही देखे जा रही थी। उसने उसे झकझोर कर पुकारा, तो विराज हड़बड़ा कर उठा। इधर उधर देखा फिर नज़र निधि पर पड़ी तो एकाएक ही वह चौंका। उसे निधि के चेहरे पर किसी और का ही चेहरा नज़र आ रहा था। वह एकटक देखे जा रहा था उसे। फिर एकाएक ही उसके चेहरे के भाव बदल गए।
"अब यहाॅ क्या देखने आई हो विधि?" विराज भावावेश में कह रहा था__"देख लो तुमने जो ग़म दिये थे वो थोड़ा कम पड़ गए वर्ना आज मैं ज़िंदा नहीं रहता बल्कि कब का मर गया होता या फिर पागल हो गया होता। लेकिन चिन्ता मत करो, क्योंकि ज़िन्दा भी कहाॅ हूॅ मैं? हर पल घुट घुट कर जीता हूॅ मैं। इससे अच्छा तो ये होता कि तुम मुझे ज़हर दे देती। कम से कम एक बार में ही मर जाता।"
इधर विराज जाने क्या बोले जा रहा था जबकि उधर निधि पहले तो बुरी तरह चौंकी थी फिर जब उसे सब कुछ समझ आया तो उसका दिल तड़प उठा। उसने कुछ कहा नहीं बल्कि अपने भाई को बोलने दिया ये सोच कर कि ये उसके अंदर का गुबार है। इस गुबार का निकलना भी बहुत ज़रूरी है। उसे जाने क्या सूझी कि उसने इस सबके लिए खुद विधि का रोल प्ले करने का सोच लिया।
"क्यों किया ऐसा विधि?" विराज भर्राए गले से कह रहा था__"क्या यही प्यार था? क्या तुम्हें मेरे धन दौलत से प्यार था? और जब तुमने देखा कि मेरे अपनों ने मुझे मेरी माॅ बहन सहित हर चीज़ से बेदखल कर दिया है तो तुमने भी मुझे दुत्कार दिया? क्यों किया ऐसा विधि....?"
"प्यार व्यार ये सब फालतू की बाते हैं मिस्टर विराज।" विधि का रोल कर रही निधि ने अजीब भाव से कहा__"समझदार आदमी इनके चक्करों में पड़ कर अपना समय बर्बाद नहीं करता। मैने तुमसे प्यार किया था क्योंकि तुम उस समय अमीर थे। तुम्हारे पास धन था दौलत थी। उस समय तुम मेरे लिए कुछ भी खरीद कर दे सकते थे। तुमसे शादी करती तो सारी ज़िन्दगी ऐश करती। मगर तुम तो अपनों के द्वारा दर दर का भिखारी बना दिये गए। भला कोई भिखारी मेरी ज़रूरतों को कैसे पूरा कर पाता? इस लिए मैंने समझदारी से काम लिया और तुमसे जो प्यार का चक्कर चलाया था उसे खत्म कर दिया। हर ब्यक्ति अपने सुख और हित के बारे में सोचता है। मैं ने भी तो यही सोचा था, इसमें भला मेरी क्या ग़लती?"
"कितनी आसानी से ये सब कह दिया तुमने?" विराज के अंदर जैसे कोई हूक सी उठी थी, बोला__"क्या एक पल के लिए भी तुम्हारे मन में ये ख़याल नहीं आया कि तुम्हारे इस तरह के कठोर बर्ताव से मुझ पर क्या गुज़री रही होगी? क्या तुम्हें एक पल के लिए भी नहीं लगा कि तुम ये जो कुछ कर रही हो वह कितना ग़लत है? क्या तुझे एक पल के लिए भी नहीं लगा था कि तेरे इस तरह दुत्कार देने से सारी ऊम्र मैं सुकून से जी नहीं पाऊॅगा? बता बेवफा....बता बेहया लड़की?"
विराज एकाएक ही बुरी तरह चीखने चिल्लाने लगा था। जुनून और पागलपन सा सवार हो गया था उस पर। उसने एक झटके में निधि की गर्दन को अपने दोनो हाॅथों से दबोच लिया। निधि को इस सबकी उम्मीद नहीं थी। इस लिए जैसे ही विराज ने अपने दोनो हाॅथों से उसकी गर्दन दबोची वैसे ही वह बुरी तरह घबरा गई। जबकि विराज जुनूनी हो चुका। इस वक्त उसके चेहरे पर नफरत घृड़ा और गुस्सा जैसे कत्थक करने लगा था। आॅखें तो नशे में वैसे ही लाल सुर्ख हो गई थी पहले से अब चेहरा भी सुर्ख पड़ गया था।
निधि ने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है। विराज ने उसकी गर्दन को शख्ती से दबोचा हुआ था। निधि बुरी तरह सहम गई थी। डर और भय के चलते उसका चेहरा निस्तेज़ का हो गया था। जबकि.....
"अब बोलती क्यों नहीं खुदगर्ज़ लड़की? बोल क्यों किया मेरे दिल के साथ इतना बड़ा खिलवाड़?" विराज भभकते स्वर में बोले जा रहा था__"बोल क्यों मेरी पाक भावनाओं को पैरों तले रौंदा था? बोल कितनी धन दौलत चाहिए तुझे? आज तो मैं फिर से अमीर हो गया हूॅ....मेरे पास आज इतनी दौलत है कि तेरे जैसी जाने कितनी लड़कियों को एक साथ उस दौलत से तौल दूॅ। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुझे पता चल गया हो कि मैं फिर से धन दौलत वाला हो गया हूॅ और इस लिए तू फिर से अपना फरेबी प्यार मेरे आगे परोसने आ गई? नहीं नहीं...अब मुझे तेरे इस घिनौने प्यार की ज़रूरत नहीं है। बल्कि अब तो मैं तेरे जैसी लड़कियों को अपनी उसी दौलत से दो कौड़ी के दामों में खरीद कर अपने नीचे सुलाऊॅगा और रात दिन रगड़ूॅगा उन्हें समझी तू???"
"भ भइया...ये क् क्या हो गया है आ आपको?" निधि बड़ी मुश्किल से बोल पा रही थी__"मैं वि विधी नहीं बल्कि मैं आ आपकी गुड़िया हूॅ भइयाऽऽ।"
विराज इस तरह रुक गया जैसे स्टैचू में तब्दील हो गया हो। कानों में सिर्फ एक यही वाक्य गूॅज रहा था 'मैं वि विधी नहीं बल्कि मैं आ आपकी गुड़िया हूॅ भइयाऽऽ।' बार बार यही वाक्य कानों में गूॅज रहा था। एक झटके से विराज ने निधि की गर्दन से अपने हाॅथ खींचे। एक पल में ही उसकी बड़ी अजीब सी हालत हो गई। आॅखें फाड़ कर निधि को देखा उसने। और फिर फूट फूट कर रो पड़ा वह। निधि को अपने सीने से छुपका लिया उसने।
"मुझे माफ कर दे...माफ कर दे मुझे।" विराज ने निधि को अपने सीने से अलग करके अपने दोनो हाथ जोड़ कर कहा__"ये मैं क्या कर रहा था गुड़िया? अपने इन्हीं हाॅथों से अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी अपनी गुड़िया का गला दबा रहा था मैं। मुझे माफ कर दे गुड़िया, मुझसे कितना नीच काम हो गया...तू तू मुझे इस सबके लिए कठोर से भी कठोर सज़ा दे गुड़िया।"
"भइयाऽऽ।" निधि का दिल हाहाकार कर उठा, उसने एक झटके से विराज को खुद से चिपका लिया। बुरी तरह रोये जा रही थी वह। वह जानती थी कि ये जो कुछ भी हुआ उसमें विराज की कहीं कोई ग़लती नहीं थी। वो तो बस एक गुबार था, जो इस प्रकार से निधि को ही विधी समझ कर उसके अंदर से फट पड़ा था।
जाने कितनी ही देर तक यही आलम रहा। निधि अपने भाई को शान्त कराती रही। शराब के नशे में विराज वहीं निधि की गोंद में सिर रख कर सो गया था। निधि बड़े प्यार से उसके सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरती जा रही थी। उसकी नज़रें अपने भाई के उस चेहरे पर जमी हुई थी जिस चेहरे पर इस वक्त संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी।
'आप चिन्ता मत कीजिए भइया, आपकी ये गुड़िया आपको इतना प्यार करेगी कि आप संसार के सारे दुख सारे ग़म भूल जाएॅगे। आप मेरी जान हैं और मैं आपकी जान हूॅ। इस लिए आज से आपकी खुशी के लिए मैं वो सब कुछ करूॅगी जिससे आपको खुशी मिले।