non veg kahani एक नया संसार - Page 2 - SexBaba
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non veg kahani एक नया संसार

"तुम फिक्र मत करो बेटे।" फिर उसने शिवा से कहा__"बहुत जल्द वो हरामज़ादा तुम्हारे कदमों के नीचे होगा। मैंने पुलिस को इनफार्म कर दिया है और कह दिया है कि उन सबको किसी भी हालत में पकड़ कर हमारे पास ले कर आएॅ।"

"उस कमीने ने मुझे बहुत मारा है डैड।" शिवा ने कराहते हुए अपने पिता से कहा__"मैं उसे छोड़ूॅगा नहीं, जान से मार दूॅगा उस हरामजादे को।"
"चिन्ता मत करो बेटे।" अजय सिंह ने भभकते हुए लहजे में कहा था__"सबका हिसाब देना पड़गा उसे। अभी तक मै नरमी से पेश आ रहा था। मगर अब मै उन्हें दिखाऊगा कि मुझसे और मेरे बेटे से उलझने का अंजाम क्या होता है?"

"मालिक हम हास्पिटल पहुॅच गए हैं।" ड्राइविंग करते हुए एक आदमी ने कहा।

उस आदमी की बात सुन कर अजय सिंह ने कार से उतर कर शिवा को भी सहारा देकर नीचे उतारा और हास्पिटल के अंदर की तरफ बढ़ गया।

एक घंटे बाद अजय सिंह अपने बेटे के साथ हवेली मे पहुचा। शिवा की हालत अब बेहतर थी क्योकि हास्पिटल में उसकी ड्रेसिंग हो गई थी। अजय सिंह ने अपनी पत्नी प्रतिमा को सब बताया कि क्या क्या हो गया है आज। सारी बाते सुन कर प्रतिमा की भी भृकुटी तन गई। उसने तो सर पर आसमान ही उठा लिया।

"ये सब आपकी वजह से हो रहा है।" प्रतिमा ने गुस्से से कहा__"मैं तो उस दिन भी कह रही थी कि नाग नागिन और उनके सॅपोलों को कुचल दीजिए मगर आप ही नहीं माने।"
"धीरे बोलो प्रतिमा।" अजय ने सहसा तपाक से बोला__"दीवारों के भी काॅन होते हैं।"

"मुझे किसी की परवाह नही है।" प्रतिमा ने कहा__"आज अगर मेरे बेटे को कुछ हो जाता तो आग लगा देती इस हवेली को।"
"मैने उनका इंतजाम कर दिया है।"अजय सिंह ने कहा__"वो हमसे बच कर कहीं नही जा पाएंगे। बस इंतजार करो वो सब तुम्हारे सामने होंगे फिर जो दिल करे करना उन सबके साथ।"

"डैड मैं तो बस निधि को चाहता हू।" शिवा कमीने ढंग से मुस्कुराया था बोला__"बाकी का आप और माॅम जानो।"
"जो कुछ करना सोच समझ कर करना बेटे।" अजय सिंह ने राजदाराना लहजे में कहा__"तुम्हारे दादा दादी की चिन्ता नहीं है हमें। बस अपने चाचा अभय से जरा सावधान रहना। उसे ये सब पता न चल पाए कि हम क्या कर रहे हैं? हमने बड़ी मुश्किल से उसे अपनी तरफ किया है।"

"वो तो ठीक है डैड।" शिवा ने कहा__"लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? आखिर चाचा लोगो को हम अपने सभी कामों मे शामिल कब करेंगे?"
"बेटा ये इतना आसान नहीं है।" अजय ने कहा__"तुम्हारे चाचा और चाची लोग जरा अलग तबियत के हैं।"

"अगर ऐसा नही हो सकता तो।" प्रतिमा ने कहा__"तो फिर हमारे पास एक ही रास्ता है।"
"हमें कोशिश करते रहना चाहिए।"अजय ने कहा__"तुम भी करुणा पर कोशिश करती रहो।"

तभी अजय का मोबाइल बजा।
"लो लगता है उन लोगों को ढूॅढ़ लिया गया है।" अजय सिंह ने अपनी कोट की जेब से मोबाइल निकालते हुए कहा और मोबाइल की काॅल को रिसीव कर कान से लगा लिया। उधर से जाने क्या कहा गया जिसे सुन कर अजय के चेहरे पर गुस्से के भाव आ गए।

"ऐसा कैसे हो सकता है?"अजय सिंह गुर्राया__"वो लोग ट्रेन से कैसे गायब हो गए? तुम उन्हें ढूॅढ़ो और शीघ्र हमारे पास लेकर आओ वरना ठीक नहीं होगा समझे?"
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"अरे जाएगे कहाॅ?" अजय ने कहा__"ठीक से ढूॅढ़ो उन्हें।" कहने के साथ ही अजय ने फोन काट दिया।
"क्या हुआ?" प्रतिमा ने पूछा__"किससे बात कर रहे थे आप?"
"डीसीपी अशोक पाठक से।" अजय ने बताया__"उसका कहना है कि विराज अपनी माॅ और बहन सहित ट्रेन से गायब हैं।"

"क् क्या...???" प्रतिमा और शिवा एक साथ उछल पड़े___"ऐसा कैसे हो सकता है भला? वो सब मुम्बई के लिए ही निकले थे।"
"हो सकता है कि वो लोग ट्रेन में बैठे ही न हों।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा__"कदाचित उन्हे ये अंदेशा रहा हो कि उनकी करतूत का पता चलते ही उन्हे पकड़ने के लिए आप उनके पीछे पुलिस को या अपने आदमियों को लगा देंगे। इस लिए वो ट्रेन से सफर करना बेहतर न समझे हों।"

"ऐसा नहीं है।" अजय ने कहा__"क्योकि विराज ने तत्काल रिज़र्वेशन की तीन टिकटें ली थीं। रेलवे कर्मचारियों के पास इसका सबूत है कि उन्होने तत्काल रिजर्वेशन की तीन टिकटें ली थी मुम्बई के लिए।"

"तो फिर वो कहाॅ गायब हो गए?" शिवा ने कहा__"उन्हे ये जमीन खा गई या आसमान निगल गया?
"चिंता मत करो।" अजय सिंह ने कहा__"हम उन्हें जरूर ढूंढ् लें
 
उधर विराज अपनी माॅ और बहन को ट्रेन से उतार कर अब बस पकड़ चुका था। उसका खयाल था कि बस से वह किसी अन्य शहर जाएगा और फिर वहाॅ से किसी दूसरी ट्रेन से मुम्बई जाएगा।

"तुम हमें ट्रेन से उतार कर बस में क्यों लाए बेटा?" माॅ गौरी ने सबसे पहले यही सवाल पूछा था।
"ट्रेन में जाने से खतरा था माॅ।" विराज ने कहा__"बड़े पापा ने हमें पकड़ने के लिए अपने आदमी भेजे थे जो सभी जगह चेक कर रहे थे।"
"क् क्या..???" गौरी बुरी तरह चौंकी___"पर तुम्हें कैसे पता?"

"मुझे इस बात का पहले से अंदेशा था माॅ।" विराज ने कहा__"इस लिए मैंने अपने एक दोस्त को बड़े पापा की हर गतिविधि की खबर रखने के लिए कह दिया था फोन के जरिए। जब हम लोग ट्रेन मे बैठ कर चले थे तब तक ठीक था। आप जानती है ट्रेन वहा से निकलने के बाद एक जगह रुक गई थी और फिर छ: घंटे रुकी रही। क्योंकि उसमें कोई तकनीकी खराबी थी। मेरे दोस्त का फोन शाम को आया था उसने बताया कि बड़े पापा ने हमे ढूढ़ने के लिए हर जगह अपने आदमी भेज दिये हैं। मुझे पता था ट्रेन मे उनके आदमी हमे बड़ी आसानी से ढूढ़ लेंगे क्योकि उन्हे रेल कर्मचारियो से हमारे बारे में पता चल जाता और हम पकड़े जाते। इस लिए मैंने आप सबको ट्रेन से उतार कर किसी अन्य तरीके से मुम्बई ले जाने का सोचा।"

"आपने बहुत अच्छा किया भइया।"निधि ने कहा__"अब वो हमें नही ढूढ़ पाएंगे।"
"इतना लम्बा चक्कर लगाने का यही मतलब है कि वो हमें उस रूट पर ढूढ़ेगे जबकि हम यहा हैं।" विराज ने कहा__"मैं अकेला होता तो ये सब नही करता बल्कि खुल कर उन सबका मुकाबला करता मगर आप लोगों की सुरक्षा जरूरी थी।"

"अभी मुकाबला करने का समय नही है बेटा।" गौरी ने कहा__"जब सही समय होगा तब मैं खुद तुझे नही रोकूॅगी।"
"आप बस देखती जाओ माॅ।" विराज ने कहा__"कि अब क्या करता हूॅ मैं?"

"हाॅ भइया आप उन्हें छोंड़ना नहीं।" निधि ने कहा__"बहुत गंदे लोग हैं वो सब। हमे बहुत दुख दिया है उन्होने।"
"फिक्र मत कर मेरी गुड़िया।" विराज ने कहा__"मैं उन सबसे चुन चुन कर हिसाब लूॅगा।"

ऐसी ही बातें करते हुए ये लोग दूसरे दिन मुम्बई पहुॅच गए। विराज उन दोनो को सुरक्षित अपने फ्लैट पर ले गया। ये फ्लैट उसे कम्पनी द्वारा मिला था जिसमें दो कमरे एक ड्राइंग रूम एक डायनिंग रूम एक लेट्रिन बाथरूम तथा एक किचेन था। पीछे की तरफ बड़ी सी बालकनी थी। कुल मिलाकर इन सबके लिए इतना पर्याप्त था रहने के लिए।

विराज चूॅकि यहाॅ अकेला ही रहता था इस लिए वो साफ सफाई से ज्यादा मतलब नही रखता था। हलाॅकि सफाई वाली आती थी लेकिन वो सफाई नही करवाता था ऐसे ही रहता था। फ्लैट की गंदी हालत देख कर दोनो माॅ बेटी ने पहले फ्लैट की साफ सफाई की। विराज ने कहा भी कि सफर की थकान है तो पहले आराम कीजिए, सफाई का काम वह कल करवा देगा जब सफाई वाली बाई आएगी तो लेकिन माॅ बेटी न मानी और खुद ही साफ सफाई में लग गईं।

इस बीच विराज मार्केट निकल गया था किराना का सामान लाने के लिए। हलाकि कंपनी से रहने खाने का सब मिलता था लेकिन विराज बाहर ही होटल मे खाना खाता था। फ्लैट में गैस सिलेंडर और चूल्हा वगैरा सब था किन्तु राशन नही था। दो कमरों मे से एक कमरे में ही एक बेड था। किचेन बड़ा था जिसमें एक फ्रिज़ भी था। ड्राइंग रूम मे एक बड़ा सा एल सी डी टीवी भी था।

लगभग दो घंटे बाद विराज मार्केट से लौटा। उसने देखा कि फ्लैट की काया ही पलट गई है। हर चीज अपनी जगह ब्यवस्थित तरीके से रखी गई थी। विराज को इस तरह हर जगह आॅखें फाड़े देखता देख निधि ने कहा__"न आप खुद का खयाल रखते हैं और न ही किसी और चीज का। लेकिन अब ऐसा नही होगा, अब हम आ गए हैं तो आपका अच्छे से खयाल रखेंगे।"

"ओहो क्या बात है।"विराज मुस्कुराया__"हमारी गुड़िया तो बड़ी हो गई लगती है।"
"हाॅ तो?" निधि विराज के बगल से सट कर खड़ी हो गई__"देखिए आपके कंधे तक बड़ी हो गई हूॅ।"

"हाॅ हाॅ तू तो मेरी भी अम्मा हो गई है न।" गौरी ने कहा__"धेले भर की तो अकल है नहीं और बड़ी बड़ी बाते करने लगी है।"
"देखिए भइया जब देखो माॅ मुझे डाॅटती ही रहती हैं।"निधी ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा।

"मत डाॅटा कीजिए माॅ गुड़िया को।" विराज ने निधि को अपने सीने से लगाते हुए कहा__"ये जैसी भी है मेरी जान है ये।"
"सुन लिया न माॅ आपने?" निधि ने विराज के सीने से सिर उठा कर अपनी माॅ गौरी की तरफ देख कर कहा__"मैं भइया की जान हूॅ और हाॅ...भइया भी मेरी जान हैं...हाॅ नहीं तो।"

"अच्छा ठीक है बाबा।" गौरी ने हॅस कर कहा__"अब भाई को छोंड़ और जा जाकर नहा ले, फिर मुझे भी नहाना है और खाना भी बनाना है।"
"मैं खाना बाहर से ही ले आया हूॅ माॅ।" विराज ने कहा__"आप लोग खा पी कर आराम कीजिए कल से यहीं खाना पीना बनाना।"
 
"अब ले आया है तो चल कोई बात नहीं।" गौरी ने कहा__"लेकिन आज के बाद बाहर का खाना पीना बंद। ठीक है न??"
"जैसा आप कहें माॅ।" विराज ने कहा और सारा सामान अंदर किचन में रख दिया।

गौरी के कहने पर निधि नहाने चली गई। जबकि विराज वहीं ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गया। अचानक ही उसके चेहरे पर गंभीरता के भाव गर्दिश करने लगे थे। गौरी किचेन में सामान सेट कर रही थी।

विराज के मोबाइल पर किसी का काॅल आया। उसने मोबाईल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा तो होठों पर एक अजीब सी मुस्कान उभर आई।

"मैं आ गया हूॅ।" विराज ने कहा__"और अब मैं तैयार हूॅ उस काम के लिए, बोलो कहाॅ मिलना है?""
"__________________"
"ठीक है फिर।" विराज ने कहा और फोन काट दिया। 'अजय सिंह बघेल अब अपनी बरबादी के दिन गिनने शुरू कर दे क्योकि अब विराज दि ग्रेट का क़हर तुम पर और तुमसे जुड़ी हर चीज़ पर टूटेगा'

उस ब्यक्ति का नाम जगदीश ओबराय था। ऊम्र यही कोई पचपन(55) के आसपास की। सिर के नब्बे प्रतिशत बाल सिर से गायब थे। शरीर भारी भरकम था उसका किन्तु उसे मोटा नही कह सकते थे क्योकि कद की लम्बाई के हिसाब से उसका शरीर औसतन ठीक नजर आता था। भारी भरकम शरीर पर कीमती कपड़े थे। गले में सोने की मोटी सी चैन तथा दाएं हाॅथ की चार उॅगलियों में कीमती नगों से जड़ी हुई सोने की अॅगूठियाॅ। इसी उसकी आर्थिक स्थित का अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह निहायत ही कोई रुपये पैसे वाला रईश ब्यक्ति था।

"तो तुम तैयार हो बरखुर्दार?" जगदीश ओबराय ने कीमती मेज के उस पार कीमती सोफे पर बैठे विराज की तरफ एक गहरी साॅस लेते हुए पूछा।
"जी बिलकुल सर।" विराज ने सपाट स्वर में कहा।
"तुम हमें सर की जगह अंकल कह सकते हो विराज बेटे।" जगदीश ने अपनेपन से कहा__"वैसे भी हम तुम्हें अपने बेटे की तरह ही मानते हैं। बल्कि ये कहें तो ज्यादा अच्छा होगा कि तुम हमारे लिए हमारे बेटे ही हो।"

"आप मुझे अपना समझते हैं ये बहुत बड़ी बात है अंकल।"विराज ने गंभीर होकर कहा__"वर्ना अपने कैसे होते हैं ये मुझसे बेहतर कौन जानता होगा?"
"इस युग में कोई किसी का नहीं होता बेटे।" जगदीश ने कहा__"हर इंसान अपने मतलब के लिए रिश्ते बनाता है और रिश्तों को तोड़ता है। हम भी इसी युग में हैं इस लिए हमने भी अपने मतलब के लिए तुमसे एक रिश्ता बना लिया। ये आज के युग की सच्चाई है बेटे।"

"आपके मतलबीपन में एक अच्छाई है अंकल।"विराज ने कहा__"आप अपने मतलबीपन में किसी का अहित नहीं करते हैं और न ही किसी को तकलीफ देकर खुद के लिए कोई खुशी हासिल करते हैं।"

"ये तुम्हारा नज़रिया है बेटा।" जगदीश ने कहा__"जो तुम हमारे बारे में ऐसा बोल रहे हो। मगर सोचो सच्चाई तो कुछ और ही है, हम जो करते हैं उससे भी तो सामने वाले को तकलीफ होती है फिर भले ही वह खुद कोई देश समाज के लिए किसी अभिशाप से कम न हो।"

"बुरे लोगों को मार कर या उन्हें तकलीफ देकर अच्छे लोगों को खुशिया देना कोई अपराध तो नहीं है।"विराज ने कहा।
"ख़ैर, छोड़ो इन बातों को।" जगदीश ने पहलू बदला__"हम अपने मुख्य विषय पर बात करते हैं।"

"जी अंकल।" विराज ने अदब से कहा।
"हमने सारे कागजात तैयार करवा दिये हैं बेटे।" जगदीश ने बड़ी सी मेज पर रखे अपने एक छोटे से ब्रीफकेस को खोलते हुए कहा__"तुम एक बार खुद देख लो। फिर हम आगे की बात करेंगे।"

"इसकी क्या जरूरत थी अंकल।" विराज ने कहा।
"जरूरत थी बेटे।" जगदीश ने कहा__"इतने बड़े बिजनेस एम्पायर को हमारे बाद सम्हालने वाला हमारा अपना कोई नहीं है। तुम तो सब जानते हो कि एक हादसे ने हमारा सब कुछ तबाह कर दिया था। हम नहीं जानते कि हमारे साथ ईश्वर ने ऐसा क्यों किया? हमने तो कभी किसी का बुरा नहीं चाहा...हाॅ शायद ये हो सकता है कि हमारे पिछले जन्मों में किये गए किन्हीं पापों का ये फल मिला है हमें।"

विराज कुछ न बोला, बस देखता रह गया उस शख्स को जिसके चेहरे पर इस वक्त ज़माने भर का ग़म छलकने लगा था।
 
तुम हमारी कंपनी में दो साल पहले आए थे।" जगदीश ओबराय कह रहा था__"तुम्हारे काम से हर कोई प्रभावित था जिसमे हम भी शामिल थे। कंपनी की जो ब्राॅच अत्यधिक नुकसान में चल रही थी वो तुम्हारी मेहनत और लगन से काफी मुनाफे के साथ आगे बढ़ गई। तुमने उन सभी का पर्दाफाश किया जो कंपनी को नुकसान पहुॅचा रहे थे और मज़े की बात ये कि किसी को पता भी नहीं चल पाया कि किसने उनका भंडाफोड़ कर दिया।" जगदीश ने कुछ पल रुक कर एक गहरी साॅस ली फिर बोला__"हम तुमसे बहुत प्रभावित थे बेटे और बहुत खुश भी। हमने तुम्हारे बारे में अपने तरीके से पता लगाया और जो जानकारी हमें मिली उससे हमें बहुत दुख भी हुआ। हमें तुम्हारे बारे में सब कुछ पता चल चुका था। हम जान चुके थे कि सबके सामने खुश रहने वाला ये लड़का अंदर से कितना और क्यों दुखी है? हमारा हमेशा से ही ये ध्येय रहा था कि हम हर उस सच्चे ब्यक्ति की मदद करेंगे जो अपनो तथा वक्त के द्वारा सताया गया हो। हमने फैसला किया कि हम तुम्हारे लिए कुछ करेंगे। हम एक ऐसे इंसान की तलाश में भी थे जिसे हम खुद अपना बना सकें और जो हमारे इतने बड़े बिजनेस एम्पायर को हमारे बाद सम्हाल सके।"

"आज के समय में किसी ग़ैर के लिए इतना कुछ कौन सोचता और करता है अंकल?" विराज गंभीर था बोला__"जबकि आज के युग में अपने ही अपने अपनों का बुरा करने में ज़रा भी नहीं सोचते या हिचकिचाते हैं। मेरे साथ मेरे अपनों ने जो कुछ किया है उसका हिसाब मैं सिर्फ अपने दम पर करना चाहता था अंकल।"

"हम तुम्हारी हिम्मत और बहादुरी की कद्र करते हैं बेटे।" जगदीश ने कहा__"लेकिन ये हिम्मत और बहादुरी बिना किसी मजबूत आधार के सिर्फ हवा में लाठियाॅ घुमाने से ज्यादा कुछ नहीं होता। तुम जिनसे टकराना चाहते हो वो आज के समय में तुमसे कहीं ज्यादा ताकतवर हैं। उनके पास ऊॅची पहुॅच तथा किसी भी काम को करा लेने के लिए रुपया पैसा है। जबकि तुम इन दोनो चीज़ों से विहीन हो बेटे। किसी से जब भी जंग करो तो सबसे पहले अपने पास एक ठोस और मजबूत बैकप बना के रखो जिससे तुम्हारे आगे बढ़ते हुए कदमों पर कोई रुकावट न आ सके।"

विराज कुछ न बोला जबकि जगदीश ने उसके चेहरे पर उभर रहे सैकड़ों भावों को देखते हुए कहा__"हम जानते हैं कि तुम खुल कर पूरी निडरता से उनका मुकाबला करना चाहते हो वो भी उनके ही तरीके से। कुछ चीज़ें अनैतिक तथा पाप से परिपूर्ण तो हैं लेकिन चलो कोई बात नहीं। तुम सब कुछ अपने तरीके से करना चाहते हो मतलब 'जैसे को तैसा' वाली तर्ज पर।"

"मैं आपके कहने का मतलब समझता हूॅ अंकल।" विराज ने अजीब भाव से कहा___"और यकीन मानिये ये सब करने में मुझे कोई खुशी नहीं होगी पर फिर भी वही करूॅगा जिसे आप अनैतिक और पाप से परिपूर्ण कह रहे हैं। आज के समय में जैसे को तैसा वाली तर्ज पर अमल करना पड़ता है अंकल तभी सामने वाले को ठीक से समझ और एहसास हो पाता है कि वास्तव में उसने क्या किया था।"

"खैर छोड़ो इन बातों को।" जगदीश ने पहलू बदला__"ये बताओ कि उनके खिलाफ तुम्हारा पहला कदम क्या होगा?"
"मेरा पहला कदम उनके उस ताकत और पहुॅच का मर्दन करना होगा जिसके बल पर वो ये सब कर रहे हैं।"विराज ने कठोर स्वर में कहा।

"तुम्हारी सोच ठीक है।" जगदीश ने कहा__"मगर हम ये चाहते थे कि तुम वैसा करो जिससे उन्हें ये पता ही न चल सके कि ये क्या और कैसे हुआ?"
"पता तो ऐसे भी न चलेगा अंकल।" विराज ने कहा__"आप बस वो कीजिएगा जो करने का मैं आपको इशारा करूॅ।"

"ठीक है बेटे।" जगदीश ने कहा__"वही होगा जो तुम कहोगे। हम तुम्हारे साथ हैं।" कहने के साथ ही जगदीश ने विराज की तरफ एक कागज बढ़ाया__"इस कागज पर साइन कर दो बेटे और अपने पास ही रखो इसे।"

"इस सबकी क्या जरूरत है अंचल?" विराज ने कागज को एक हाॅथ से पकड़ते हुए कहा।
"हमारे जीवन का कोई भरोसा नहीं है बेटे।" जगदीश ने कहा__"दो बार हमें हर्ट अटैक आ चुका है, अब कौन जाने कब अटैक आ जाए और हम इस दुनियाॅ से......"
 
"न नहीं अंकल नहीं।" विराज तुरंत ही जगदीश की बात काटते हुए बोल पड़ा__"आपको कुछ नहीं होगा। ईश्वर करे आपको मेरी उमर लग जाए। आप हमेशा मेरे सामने रहें और मेरा मार्गदर्शन करते रहें।"
"हा हा हा बेटे तुम्हारी इन बातों ने हमें ये बता दिया है कि तुम्हारे दिल में हमारे लिए क्या है?" जगदीश के चेहरे पर खुशी के भाव थे__"तुम हमें यकीनन अब अपना मानने लगे हो और हमें ये जान कर बेहद खुशी भी हुई है। एक मुद्दत हो गई थी अपने किसी अज़ीज़ के ऐसे अपनेपन का एहसास किये हुए। तुम मिल गए तो अब ऐसा लगने लगा है कि हम अब अकेले नहीं हैं वर्ना इतने बड़े बॅगले में तन्हाईयों के सिवा कुछ न था। सारी दुनिया धन दौलत के पीछे रात दिन भागती है बेटे वो भूल जाती है कि इंसान की सबसे बड़ी दौलत तो उसके अपने होते हैं।"

"ये बातें कोई नहीं समझता अंकल।" विराज ने कहा__"समझ तथा एहसास तब होता है जब हमें किसी चीज़ की कमी का पता चलता है। जिनके पास अपने होते हैं उन्हें अपनों की अहमियत का एहसास नहीं होता और जिनके पास अपने नहीं होते उन्हें संसार की सारी दौलत महज बेमतलब लगती है, वो चाहते हैं कि इस दौलत के बदले काश कोई अपना मिल जाए।"

"संसार में हमारे पास किसी चीज़ का जब अभाव होता है तभी हमें उसकी अहमियत का एहसास होता है बेटे।" जगदीश ने कहा__"हलाॅकि दुनियाॅ में ऐसे भी लोग हैं जिनके पास सब कुछ होता है मगर वो सबसे ज्यादा अपनों को अहमियत देते हैं, धन दौलत तो महज हमारी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का जरिया मात्र होती है।"

विराज कुछ न बोला ये अलग बात है कि उसके चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते और लुप्त होते नज़र आ रहे थे।

"हम चाहते हैं कि।" जबकि जगदीश कह रहा था__"तुम अपनी माॅ और बहन के साथ अब हमारे साथ इसी घर में रहो बेटे। कम से कम हमें भी ये एहसास होता रहेगा कि हमारा भी अब एक भरा पूरा परिवार है।"

"मैं इसके लिए माॅ से बात करूॅगा अंकल।" विराज ने कहा।
"हम खुद चल कर तुम्हारी माॅ से बात करेंगे बेटे।" जगदीश ने गंभीरता से कहा__"हम उससे कहेंगे कि वो हमें अपना बड़ा भाई समझ कर हमारे साथ ही रहे।"

"आप फिक्र न करें अंकल।" विराज ने कहा__"मैं माॅ से बात कर लूॅगा। वो इसके लिए इंकार नहीं करेंगी।
"ठीक है बेटे।" जगदीश ने कहा__"हम तुम सबके यहाॅ आने का इंतज़ार करेंगे।"

कुछ देर और ऐसी ही कुछ बातें हुईं फिर विराज वहाॅ से अपने फ्लैट के लिए निकल गया। विराज ने अपनी माॅ गौरी से जगदीश से संबंधित सारी बातें बताई, जिसे सुन कर गौरी के दिलो दिमाग में एक सुकून सा हुआ।

"आज के समय में इतना कुछ कौन करता है बेटा?" गौरी ने गंभीरता से कहा__"मगर हमारे साथ हमारे अपनों ने इतना कुछ किया है जिससे अब आलम ये है कि किसी पर भरोसा नहीं होता।"

"जगदीश ओबराय बहुत अच्छे इंसान हैं माॅ।" विराज ने कहा__"इस संसार में उनका अपना कोई नहीं है, वो मुझे अपने बेटे जैसा मानते हैं। अपनी सारी दौलत तथा सारा कारोबार वो मेरे नाम कर चुके हैं, अगर उनके मन में कोई खोट होता तो वो ऐसा क्यों करते भला?"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" गौरी बुरी तरह चौंकी__"उसने अपना सब कुछ तुम्हारे नाम कर दिया?"
"हाॅ माॅ।" विराज ने कहा__"यही सच है और इस वक्त वो सारे कागजात मेरे पास हैं जिनसे ये साबित होता है कि अब से मैं ही उनके सारे कारोबार तथा सारी दौलत का मालिक हूॅ। अब आप ही बताइए माॅ...क्या अब भी उनके बारे में आपके मन में कोई शंका है?"

"यकीन नहीं होता बेटे।" गौरी के जेहन में झनाके से हो रहे थे, अविश्वास भरे लहजे में कहा उसने__"एक ऐसा आदमी अपनी सारी दौलत व कारोबार तुम्हारे नाम कर दिया जिसके बारे में न हमें कुछ पता है और न ही हमारे बारे में उसे।"

"सब ऊपर वाले की माया है माॅ।" विराज ने कहा__"ऊपर वाले ने कुछ सोच कर ही ये अविश्वसनीय तथा असंभव सा कारनामा किया है। जगदीश अंकल इसके लिए मुझे बहुत पहले से मना रहे थे किन्तु मैं ही इंकार करता रहा था। फिर उन्होंने मुझे समझाया कि बिना मजबूत आधार के हम कोई लड़ाई नहीं लड़ सकते। उन्होंने ये भी कहा कि उनकी सारी दौलत उनके बाद किसी ट्रस्ट या सरकार के हाॅथ चली जाती। इससे अच्छा तो यही है कि वो ये सब किसी ऐसे इंसान को दे दें जिसे वो अपना समझते भी हों और जिसे इसकी शख्त जरूरत भी हो। मैं उनकी कंपनी में ऐज अ मैनेजर काम करता था, वो मुझसे तथा मेरे काम से खुश थे। उनके दिल में मेरे लिए अपनेपन का भाव जागा। उन्होंने मेरे बारे में सब कुछ पता किया और जब उन्हें मेरी सच्चाई व मेरे साथ मेरे अपनों के किये गए अन्याय का पता चला तो एक दिन उन्होंने मुझे अपने बॅगले में बुला कर मुझसे बात की।"

"तुमने ये सब मुझे पहले कभी बताया क्यों नहीं बेटा?" गौरी ने विराज के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा__"इतना कुछ हो गया और तमने मुझसे छिपा कर रखा। क्या ये अच्छी बात है?"

"आपने भी तो मुझसे वो सब कुछ छुपाया माॅ।" विराज ने सहसा गमगीन भाव से कहा__"जो बड़े पापा और छोटे चाचा लोगों ने आपके और मेरी बहन के साथ किया। मेरे पिता जी की मौत कैसे हुई ये छुपाया गया मुझसे। मगर मैं सब जानता हूॅ माॅ, आपने भले ही मुझसे छुपाया मगर मैं सब जानता हूॅ।"

"क् क् क्या जानते हो तुम?" गौरी हड़बड़ा गई।
"जाने दीजिये माॅ।" विराज ने फीकी मुस्कान के साथ कहा__"अब इन सब बातों का समय नहीं है, अब समय है उन लोगों से बदला लेने का।"

"जाने कैसे दूॅ बेटा?" गौरी ने अजीब भाव से कहा__"मुझे जानना है कि तुम्हें ये सब कैसे पता चला?"
 
"इतना कुछ हो गया।" विराज कह रहा था__"एक हॅसता खेलता संसार कैसे इस तरह तिनका तिनका हो कर बिखर गया? मैं कोई बच्चा नहीं था माॅ जिसे इन सब बातों का एहसास नहीं था बल्कि सब समझता था मैं।"

"हमारे भाग्य में यही सब कुछ लिखा था बेटे।" गौरी की आॅखें छलक पड़ी__"शायद ऊपरवाला हमसे ख़फा हो गया था।"
"कोई बात नहीं माॅ।" विराज ने कहा__"अब उन लोगों का भाग्य मैं लिखूॅगा। साॅपों से खेलने का बहुत शौक है न तो मैं उन्हें बताऊगा कि साॅप को जो दूध पिलाते हैं एक दिन वही साॅप उन्हें भी डस कर मौत दे देता है।"

"क्या कहना चाहते हो तुम?" गौरी मुह और आखें फाड़े देखने लगी थी विराज को।
"हाॅ माॅ।" विराज कह रहा था__"मुझे सब पता है। मेरे पिता जी की मौत सर्प के काटने से हुई थी लेकिन वो स्वाभिक रूप से नहीं हुआ था बल्कि सब कुछ पहले से सोचा समझा गया एक प्लान था। एक साजिश थी माॅ, मेरे पिता जी को अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटा देने की।"

"ये तुम क्या कह रहे हो बेटे?" गौरी उछल पड़ी, आखों से झर झर आॅसू बहने लगे उसके__"ये सब उन लोगों की साजिश थी?"
"हाॅ यही सच है माॅ।" विराज ने कहा__"आपको इस बात का पता नहीं है लेकिन मुझे है। मैं तो ये भी जानता हूॅ माॅ कि ये सब क्यों हुआ?"

"क् क् क्या जानते हो तुम?" गौरी के चेहरे पर अविश्वास के भाव थे।
"वही जो आप भी जानती हैं।" विराज ने अपनी माॅ गौरी की आखों मे झाॅकते हुए कहा__"कहिये तो बता भी दूॅ आपको।"

"न नहीं नहीं" गौरी के चेहरे पर घबराहट के साथ साथ लाज और शर्म की लाली छाती चली गई। उसका सिर नीचे की तरफ झुक गया।
"आपको नजरें चुराने की कोई जरूरत नहीं है माॅ।" विराज ने अपने दोनों हाथों से माॅ गौरी का शर्म से लाल किन्तु खूबसूरत सा बेदाग़ चेहरा थामते हुए कहा__"आपने ऐसा कोई काम नहीं है जिससे आपको मुझसे ही नहीं बल्कि किसी से भी नज़रें चुराना पड़े। आप तो गंगा की तरह पवित्र हैं माॅ, जिसकी सिर्फ पूजा की जा सकती है।"

"ब बेटे।" गौरी बुरी तरह रोते हुए अपने बेटे के चौड़े सीने से जा लगी। उसने कस कर विराज को जकड़ा हुआ था। विराज ने भी माॅ को छुपका लिया फिर बोला__"नहीं माॅ, अब आप रोएंगी नहीं। रोने धोने वाला वक्त गुज़र गया। अब तो रुलाने वाला वक्त शुरू होगा।"

"कितनी नासमझ थी मैं।" गौरी ने विराज के सीने से लगे हुए ही गंभीरता से कहा__"मैं जिस बेटे को छोटा और अबोध समझ रही थी तथा ये भी कि वो बहुत मासूम है नासमझ है अभी वो तो अपनी छोटी सी ऊम्र में भी कहीं ज्यादा समझदार और जिम्मेदार हो गया है। मैंने सब कुछ अपने बेटे से छुपाया, सिर्फ इस लिए कि मैं अपने बेटे को खो देने से डरती थी।"

"आप एक माॅ हैं माॅ।" विराज ने कहा__"और आपने जो कुछ भी किया अपनी ममता से मजबूर हो कर किया। इस लिए इसके लिए मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। लेकिन हाॅ एक शिकायत जरूर है।"
"अच्छा।" गौरी ने विराज के सीने से अपना सिर अलग किया तथा ऊपर बेटे के की आखों मे प्यार से देखते हुए कहा__"ऐसी क्या शिकायत है मेरे बेटे को मुझसे, जरा मुझे भी तो पता चले।"

"शिकायत यही है कि।" विराज ने कहा__"आप हर पल खुद को दुखी रखती हैं और अपनी आॅखों पर तरस खाने की बजाय उन्हें रुलाती रहती हैं। ये हर्गिज़ भी अच्छी बात नहीं है।"

"अब से ऐसा नहीं होगा।" गौरी ने मुस्कुराते हुए कहा__"अब मैं न तो खुद को दुखी रखूॅगी और न ही अपनी आखों को रुलाऊॅगी। अब ठीक है न?"
"यही बात आप मेरी कसम खा कर कहिए।" विराज ने कहने के साथ ही माॅ गौरी का दाहिना हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रखा।

"न नहीं नहीं।" गौरी ने विराज के सिर से तुरंत ही अपना हाॅथ खींच लिया__"मैं इसके लिए तुम्हारी कसम नहीं खा सकती मेरे लाल। तुम तो जानते हो एक माॅ अपने बच्चों के लिए कितना संवेदनशील होती है। उसका ममता से भरा हुआ ह्रदय इतना कोमल और कमजोर होता है कि अपने बच्चों के लिए एक पल में पिघल जाता है। सीने में पल भर में भावना का ऐसा तूफान उठ पड़ता है कि उसे रोंकना मुश्किल हो जाता है, और आंखें तो जैसे इस इंतजार में ही रहती हैं कि कब वो छलक पड़ें।"
 
विराज माॅ की बात सुन कर मुस्करा उठा। माॅ के सुंदर चहरे और नील सी झीली आखों में खुद के लिए बेशुमार स्नेह व प्यार देखता रहा और हौले से झुक कर पहले उन आखों को फिर माॅ के माॅथे को प्यार से चूॅम लिया।

"क्या बात है?" गौरी विराज के इस कार्य पर मुस्कुराई तथा अपनी आखों की दोनो भौहों को ऊपर नीचे करके कहा__"आज अपनी इस बूढ़ी माॅ पर बड़ा प्यार आ रहा है मेरे बेटे को।"
"प्यार तो हमेशा से था माॅ।" विराज ने कहा__"और हमेशा रहेगा भी। मगर आपने खुद को बूढ़ी क्यों कहा?"

"अरे पगले! अब मैं बूढ़ी हूॅ तो बूढ़ी ही कहूॅगी न खुद को।" गौरी ने हॅस कर कहा।
"नहीं माॅ।" विराह कह उठा__"आप बूढ़ी बिलकुल भी नहीं हैं। आप तो गुड़िया की बड़ी बहन लगती हैं। आप खुद देख लीजिए।" कहने के साथ ही विराज ने माॅ गौरी को कमरे में एक तरफ दीवार से सटे एक बड़े से आदम कद आईने के सामने ला कर खड़ा कर दिया।

"ये ये सब क्या कर रहा है बेटा?" गौरी हॅसते हुए बोली, उसने सामने लगे आईने में खुद को देखा। उसके पीछे ही विराज उसे उसके दोनो कंधों से पकड़े हुए खड़ा था।

"अब गौर से देखिए माॅ।" विराज ने आईने में अपनी माॅ को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा__"देखिए अपने आपको। आप अब भी मेरी माॅ नहीं बल्कि मेरी बड़ी बहन लगती हैं न?"
"हे भगवान!" गौरी ने हॅसते हुए कहा__"तुम्हें मैं तुम्हारी बड़ी बहन लगती हूॅ? कोई और सुने तो क्या कहे?"

"मुझे किसी से क्या मतलब?" विराज ने कहा__"जो सच है वो बोल रहा हूॅ। गुड़िया आपकी ही फोटो काॅपी है माॅ। मतलब आप जब गुड़िया की उमर में रहीं होंगी तब आप बिलकुल गुड़िया जैसी ही दिखती रही होंगी।"

"हाॅ तुम्हारी ये बात तो सच है बेटे कि गुड़िया मुझ पर ही गई है।" गौरी ने कहा__"सब कोई यही कहता था कि गुड़िया की शक्लो सूरत मुझसे मिलती जुलती है। लेकिन मैं उसके जैसी अल्हड़ और मुहफट नहीं थी।"

"वो अभी बच्ची हैं माॅ।"विराज ने कहा__"उसमें अभी बहुत बचपना है। उसे यूॅ ही हॅसने खेलने दीजिए, वो ऐसे ही अच्छी लगती हैं।"
"उसकी उमर में मैंने जिम्मेदारी और समझदारी से रहना सीख लिया था बेटा।" गौरी ने सहसा गंभीर होकर कहा__"अब वो बच्ची नहीं रही, भले ही दिल और दिमाग से वह बच्ची बनी रहे। मगर,,,,,"

"वैसे दिख नहीं रही वो।" विराज ने चहा__"कहाॅ है वह?"
"ऊपर छत पर गई थी कपड़े डालने।" गौरी ने कहा।
"कोई हमें याद करे और हम तुरंत उसके सामने न आएं ऐसा कभी हो सकता है क्या?" सहसा कमरे के दरवाजे से अंदर आते हुए निधि ने कहा__"वैसे किस लिए याद किया गया है हमें? जल्दी बताया जाए क्योंकि हम बहुत बिजी हैं, हमें अभी कपड़े डालने जाना है ऊपर छत पर।"

"इस लड़की का क्या करूॅ मैं?" गौरी ने अपना माथा पीट लिया।
"बस प्यार कीजिए माॅ प्यार।" निधि ने अपने दोनो हाॅथों को इधर उधर घुमाते हुए कहा__"हम आपके बच्चे हैं, हमें बस प्यार कीजिए।"

"तू रुक अभी तुझे बताती हूॅ मैं।" गौरी उसे मारने के लिए निधि की तरफ लपकी, जबकि निधि जिसे पहले ही पता था कि क्या होगा इस लिए वह तुरंत ही विराज के पीछे जा छुपी और बोली__"भईया बचाइए मुझे नहीं तो माॅ मारेंगी मुझे। मैं आपकी जान हूॅ न? अब बचाइये अपनी जान को, हाॅ नहीं तो।"

"रुक जाइए माॅ।" विराज ने माॅ को रोंक लिया__"मत मारिए इसे। आपने देखा न इसके आते ही वातावरण कितना खुशनुमा हो जाता है।"
"हाॅ माॅ।" निधि तुरंत बोल पडी__"मेरी बात ही अलग है। आप समझती नहीं हैं जबकि भइया मुझे अच्छे समझते हैं, हाॅ नहीं तो।"

"तेरे भइया ने ही तुझे बिगाड़ रखा है।" गौरी ने कहा__"अब जा कपड़े डाल कर आ जल्दी।"
"आपकी जान का इतना बड़ा अपमान।" निधि ने पीछे से विराज की तरफ अपना सिर करते हुए कहा__"बड़े दुख की बात है कि आप कुछ नहीं कर सकते मगर, हम चुप नहीं रहेंगे एक दिन इस बात का बदला जरूर लेंगे, देख लीजियेगा, हाॅ नहीं तो।"

"क्या बड़बड़ा रही है तू?" गौरी ने आखें दिखाते हुए कहा।
"कुछ नही माॅ।" निधि ने जल्दी से कहा__"वो भइया को हनुमान चालीसा का रोजाना पाठ करने को कह रही थी।"

"वो क्यों भला?" गौरी के माॅथे पर बल पड़ता चला गया। जबकि निधि की इस बात से विराज की हॅसी छूट गई। वो ठहाके लगा कर जोर जोर से हॅसे जा रहा था। निधि अपनी हॅसी को बड़ी मुश्किल से रोंके इस तरह मुह बनाए खड़ी थी जैसे वो महामूर्ख हो। इधर विराज के इस प्रकार हॅसने से गौरी को कुछ समझ न आया कि उसका बेटा किस बात इतना हॅसे जा रहा है?
 
इसी तरह एक हप्ता गुज़र गया। इस बीच विराज अपनी माॅ और बहन को लेकर जगदीश ओबराय के बॅगले में आकर रहने लगा था। जगदीश ओबराय इन लोगों के आने बहुत खुश हुआ था। गौरी को अपनी छोटी बहन के रूप में पाकर उसे बेहद खुशी हुई, गौरी भी उसे अपने बड़े भाई के रूप में पाकर खुश हो गई थी। निधि तो सबकी लाडली थी ही, अब जगदीश के लिए भी वह एक गुड़िया ही थी।

निधि का स्वभाव चंचल था। उसमे बचपना था तथा वह शरारती भी बहुत थी किन्तु पढ़ाई लिखाई में उसका दिमाग बहुत तेज़ था। उसने दसवी क्लास 90% मार्क्स के साथ पास किया था। इसके आगे वह पढ़ न सकी क्योकि तब तक हालात बहुत खराब हो चुके थे। गाॅव में दसवीं तक ही स्कूल था। आगे पढ़ने के लिए उसे पास के शहर जाना पड़ता, हलाॅकि शहर जाने में उसको कोई समस्या नहीं थी किन्तु हालात ऐसे थे कि उन माॅ बेटी का घर से निकलना मुश्किल हो गया था। आए दिन अजय सिंह का बेटा शिवा गलत इरादों से उसे छेंड़ता था। ये दोनो बाप बेटे एक ही थाली में खाने वाले थे। अजय सिंह की नीयत गौरी पर खराब थी। जबकि गौरी उसके मझले स्वर्गीय भाई विजय सिंह की बेवा थी तथा निधि उसकी बेटी समान थी। ये दोनो बाप बेटे अपने ही घर की इज्जत से खेलना चाहते थे। पैसे और ताकत के घमंड में दोनो बाप बेटे रिश्तों की मान मर्यादा भूल चुके थे।

जगदीश ओबराय ने निधि की पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए उसका एडमीशन सबसे अच्छे स्कूल में करवा दिया था। अभी वक्त था इस लिए स्कूल में दाखिला बड़ी आसानी से हो गया था। अब निधि रोजाना स्कूल जाती थी। अपनी पढ़ाई के पुनः प्रारम्भ हो जाने से निधि बहुत खुश थी।

विराज अब चूॅकि खुद ही जगदीश ओबराय की सारी सम्पत्ति का इकलौता मालिक था इस लिए अब वह कंपनी में मैनेजर के रूप में नहीं बल्कि कंपनी के एम डी के रूप में जाता था। कंपनी में काम करने वाला हर ब्यक्ति ये जान कर आश्चर्य चकित था कि कंपनी में काम करने वाला एक मैनेजर आज इस कंपनी का मालिक है, यानी उन सबका मालिक। किसी को ये बात हजम ही नही हो रही थी। हर ब्यक्ति विराज और विराज की किस्मत से रक़्श कर रहा था। विराज के उच्च अधिकारी जो पहले विराज को हुक्म देते थे तथा उसे तुच्छ समझते थे वो अब विराज के सामने उसके महज एक इशारे से किसी गुलाम की तरह सर झुकाए खड़े हो जाते थे। कोई भी उच्च अधिकारी विराज के सामने किसी गुलाम की तरह झुकना नही चाहता था और न ही उसको अपना बाॅस मानना चाहता था किन्तु अब ये संभव नही था। सच्चाई सबके सामने थी और उस सच्चाई को स्वीकार करके उसको अपनाना सभी के लिए अब अनिवार्य था। विराज ये सब बातें अच्छी तरह जानता था। इस लिए उसने सबसे पहले एक मीटिंग रखी जिसमें कंपनी के सभी उच्च अधिकारी शामिल थे। मीटिंग में विराज ने बड़ी शालीनता से सबके सामने ये बात रखी कि अगर किसी के दिलो दिमाग में कोई बात है तो वो खुल कर जाहिर करे। वो अब ओबराय कंपनीज का मालिक है इससे अगर किसी को कोई तकलीफ हो तो वो बता दे अन्यथा बाद में किसी का भी गलत ब्यौहार या किसी भी तरह की गलत बात का पता चलते ही उसे कंपनी से आउट कर दिया जाएगा।

विराज ने ये भी कहा कि आज वह भले ही ओबराय कंपनीज़ का मालिक बन गया है लेकिन वह कंपनी में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को हमेशा अपना दोस्त या भाई ही समझेगा।

विराज की इन बातों से मीटिंग रूम में बैठे काफी उच्च अधिकारी प्रभावित हुए और कुछों के चेहरे पर अब भी अजीब से भाव थे। सबके चेहरों के भावों को बारीकी से जाॅचने के बाद विराज ने अंत मे ये भी कहा कि अगर किसी के दिलो दिमाग में ऐसी बात है कि वो इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर रहे हैं तो वो शौक से अपना अपना स्तीफा देकर जा सकते हैं।

कुछ लोग हालातों से बड़ा जल्दी समझौता करके आगे बढ़ जाते हैं किन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जो बिना मतलब का खोखला सम्मान और गुरूर लेकर खाली हाॅथ बैठे रह जाते हैं। कहने का मतलब ये कि मीटिंग के बाद एक हप्ते के अंदर अंदर कंपनी के काफी उच्च अधिकारियों ने स्तीफा दे दिया। विराज जैसे जानता था कि यही होगा। इस लिए उसने पहले से ही ऐसे लोगों को उनकी जगह फिट किया जो उसकी नज़र में इमानदार व वफादार होने के साथ साथ उसके अपने मित्र भी थे।
 
ऐसे ही पन्द्रह बीस दिन गुज़र गए। विराज अब कुशलतापूर्वक कंपनी का सारा कारोबार सम्हालने लगा था। जगदीश ओबराय उसकी हर तरह से मदद भी कर रहा था। उसने एक ग्राण्ड पार्टी रखी जिसमें शहर के सभी बड़े बड़े लोग आमंत्रित थे। यहाॅ तक कि मंत्री मिनिस्टर तथा पुलिस महकमें के उच्च अधिकारी वगैरा सब। इस पार्टी को रखने का एक मकसद था और वो था विराज को प्रमोट करना। जगदीश ने स्टेज में जा कर तथा एनाउंसमेन्ट कर सबको बताया कि उसकी सारी मिल्कियत का अब से विराज ही अकेला वारिस तथा मालिक है। सब ये सुन कर हैरान भी थे और खुश भी। सभी बड़े बड़े लोगों से विराज को मिलवाया गया।

अब विराज कोई आम इंसान नहीं रह गया था बल्कि अब उसे सारा शहर जानता था। प्रेस और मीडिया वालों को कुछ सोचकर जगदीश ने पार्टी में आने नहीं दिया था। अब उसका सम्मान और रुतबा वैसा ही हो गया था जैसे खुद जगदीश ओबराय का था। गौरी व निधि इस सबसे बहुत खुश थी। उनके मन में जगदीश के प्रति बड़ा आदर और सम्मान हो गया था। अब ये सब जगदीश को पूरी तरह अपना मानने लगे थे। उन्होंने ये ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि ऐसा असंभव कार्य भी कभी होगा लेकिन सच्चाई अब उनके सामने थी। आज गौरी का बेटा हज़ारों करोड़ रूपये की सम्पत्ति का मालिक था। गौरी इस बात के लिए भगवान का लाख लाख शुक्रिया कर रही थी।

जगदीश ओबराय हार्ट का मरीज़ था। उसने अपने जीवन में एक ही झटके में अपनों को खोया था। उसके एक ही बेटा था, अमरीश ओबराय। अमरीश की नई नई शादी हुई थी और वो अपनी बीवी के साथ हनीमून के लिए इटली जा रहा था। किन्तु इटली जा रहा विमान क्रैस हो गया और एक ही झटके में विमान में बैठे सभी पैसेंजर मौत को प्राप्त हो गए थे। उस हादसे से जगदीश की मुकम्मल दुनिया ही तबाह हो गई थी। उसका अपना कोई नहीं बचा था। उसकी इतनी बड़ी दौलत और इतने बड़े कारोबार को सम्हालने वाला कोई नहीं बचा था। उसकी पत्नी तो पहले ही गुज़र गई थी जिससे वह बेहद प्यार करता था। इस सबसे जगदीश दिल का मरीज़ बन गया था, उसे दो बार दिल का दौरा पड़ चुका था जिसमें वह बड़ी मुश्किल से बचा था। वह रात दिन इसी सोच में मरा जा रहा था कि उसके बाद उसकी मिल्कियत का अब क्या होगा? उसके कम्पटीटर कहीं न कहीं इस बात से खुश थे और जो उसके घनिष्ठ मित्र थे वो जगदीश की इस हालत से दुखी थे। वह चाहता तो इस उमर में भी दूसरी शादी कर सकता था जिसके लिए उसके खास चाहने वाले मित्रों ने सुझाव भी दिया था। किन्तु जगदीश ने दूसरी शादी करने से साफ मना कर दिया था। उसका कहना था कि इस उमर में वह किसी से शादी नहीं करेगा, लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे कि उसने अपनी बेटी की उमर वाली लड़की शादी की।

अपनों के खोने का दुख और उसके द्वारा रात दिन सोचते रहने की वजह से वह दिल का मरीज़ बन गया था। इतने बड़े बॅगले में वह अकेला रहता था, ये अकेलापन उसे किसी सर्प की भाॅति रात दिन डसता रहता था। नौकर चाकर तो बहुत थे लेकिन जिनसे उसके मन को तथा आत्मा को सुकून व त्रप्ति मिलती वो उसके अपने नहीं थे। विराज के आने से उसे ऐसा लगा जैसा उसे उसका खोया हुआ बेटा अमरीश मिल गया था। उसने विराज के बारे में गुप्त रूप से सारी मालुमात की थी। विराज के अपनों ने उसके और उसकी माॅ बहन के साथ क्या अत्याचार किया ये उसको पता चला था। विराज का नेचर उसे बहुत अच्छा लगा। विराज एक होनहार तथा मेहनती लड़का था। जगदीश ने फैसला कर लिया था कि विराज ही अब उसका 'अपना' होगा। उसने विराज को अपने बॅगले में बुलवाया और तसल्ली से उससे बात की। उसने विराज से उसके बारे में सब बातें पूछी और खुद भी अपने मन की बात विराज को बताई कि वह क्या चाहता है। अपने बाॅस व मालिक की ये बातें सुन कर विराज चकित था, उसे यकीन ही नही हो रहा था कि कोई ऐसा भी कर सकता है।

विराज ने जगदीश की बातें सुनकर ये कहा कि उसे सोचने के लिए वक्त चाहिए। जगदीश ने उसे वक्त दिया और विराज वहा से चला आया था। उसने अकेले में इस बारे में बहुत सोचा। उसे जगदीश के प्रति ऐसा कुछ भी नहीं लगा कि इस सबके पीछे जगदीश का कोई गलत इरादा या मकसद हो। कंपनी में काम करने वाले सभी कर्मचारियों की तरह वह भी ये बात जानता था कि उसके मालिक जगदीश ओबराय निहायत ही एक सच्चे व नेकदिल इंसान हैं। उनकी नेकनीयती व नरमदिली का कंपनी के कुछ उच्च अधिकारी लोग गलत फायदा उठा रहे थे। जिनका उसने बड़ी सफाई से पर्दाफाश किया था। किसी को इस बात का पता तक न चला था। विराज ने पक्के सबूत इकट्ठा करके सीधा जगदीश ओबराय के सामने रख दिया था। जगदीश ओबराय विराज के इस कार्य और उसकी इस इमानदारी से बेहद प्रभावित हुए थे। उन्होंने विराज को अपनी सभी कंपनियों की गुप्तरूप से जाॅच पड़ताल का काम सौंप दिया किन्तु प्रत्यक्ष रूप में वह कंपनी का एक मैनेजर ही रहा।

जगदीश ओबराय के द्वारा सौंपे गए इस गुप्त कार्य को उसने बड़ी ही कुशलता तथा सफाई से अंजाम दिया। एक महीने के अंदर अंदर ही उन सबको तगड़े नोटिश के साथ कंपनी से तत्काल निकाल दिया गया। किसी को कुछ सोचने समझने का मौका तक नहीं मिला और न ही किसी को ये समझ आया कि ये अचानक उनके साथ क्या और कैसे हो गया? सबूत क्योंकि पक्के थे इस लिए उन सबको वो सब भारी हरजाने के साथ देना पड़ा जो उन सबने कंपनी से खाया था। एक झटके में ही सबके सब भीख माॅगने की हालत में आ गए थे। बात अगर इतनी ही बस होती तो भी ठीक था किन्तु उनके द्वारा किये गए इन कार्यों के लिए उन सबको जेल का दाना पानी भी मिलना नसीब हो गया था।
 
विराज द्वारा किये गए इस अविश्वसनीय कार्य से जगदीश ओबराय बहुत खुश हुए। उनके मन में विचार आया कि विराज के बारे में उन्होंने जो फैसला लिया है वो हर्गिज भी गलत नही है।

दोस्तो आप सब समझ सकते हैं कि ये सब बताने के पीछे मेरा क्या मकसद हो सकता है? और अगर नहीं समझे हैं तो बता देता हूॅ,,, दरअसल बात ये है कि किन परिस्थितियों की वजह से विराज को आज ये सब प्राप्त हुआ ? आखिर विराज में जगदीश को क्या ऐसा नजर आया कि उसने उसे अपना सब कुछ मान भी लिया और सब कुछ दे भी दिया? हलाॅकि आज के युग की सच्चाई ये है कि आप भले ही किसी के लिए अपना सब कुछ निसार कर दीजिए किन्तु बदले में आपको कुछ मिलने की तो बात दूर आपके किये गए इस बलिदान का कोई एहसान तक नहीं मानता। ख़ैर, जाने दीजिए.....हम कहानी पर चलते हैं।

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"डैड मुझे इसके आगे की पढ़ाई मुम्बई से करना है।"नीलम ने बड़ी मासूमियत से कहा था__"मेरी सब दोस्त भी वहीं जा रही हैं।"
"अरे बेटा।" अजय सिंह चौंका था__"मगर यहाॅ क्या परेशानी है भला? यहाॅ भी तो पास के शहर में बहुत अच्छा काॅलेज है?"

"यहाॅ के काॅलेजों में कितनी अच्छी शिक्षा मिलती है ये तो आप भी अच्छी तरह जानते हैं डैड।" नीलम ने कहा__"मुझे अपनी डाक्टरी की बेहतर पढ़ाई के लिए बेहतर शिक्षा की आवश्यकता है।"
"अच्छी बात है बेटी।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन मुम्बई से अच्छा तो तुम्हारे लिए दिल्ली रहेगा। क्योकि दिल्ली में तुम्हारी बड़ी बुआ भी है। तुम अपनी सौम्या बुआ के साथ रह कर वहाॅ बेहतर पढ़ाई कर सकती हो।"

"नहीं डैड।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया__"मैं मुम्बई में अपनी मौसी के यहाॅ रह कर पढ़ाई करूॅगी। आप तो जानते हैं कि मौसी की बड़ी बेटी अंजली दीदी आजकल मुम्बई में ही एक बड़े हास्पिटल में एज अ डाक्टर काम करती हैं। उनके पास रहूॅगी तो उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा।"

"ये सही कह रही है डैड।" रितु ने कहा__"अंजली दीदी के पास रह कर इसे अपनी पढ़ाई के लिए काफी कुछ जानने समझने को भी मिल जाएगा। आप इसे बड़ी मौसी के पास ही जाने दीजिए।"

"ठीक है बेटी।" अजय सिंह ने कहा__"तुम्हारी भी यही राय है तो नीलम अब मुम्बई ही जाएगी।"
"ओह थैंक्यू सो मच डैड एण्ड।" नीलम ने खुश हो कर अजय सिंह से कहने के बाद रितू की तरफ पलट कर कहा__"एण्ड थैंक्स यू टू दीदी।"

"कौन कहाॅ जा रहा है डैड?" बाहर से ड्राइंग रूम में आते हुए शिवा ने कहा।
"तुम्हारी नीलम दीदी मुम्बई जा रही है अपनी बड़ी मौसी पूनम के पास।" अजय सिंह ने कहा__"ये वहीं रह कर अपनी डाक्टरी की पढ़ाई करेगी।"

"क क्या..???" शिवा उछल पड़ा__"नीलम दीदी मुम्बई जाएंगी? नहीं डैड आप इन्हें मुम्बई कैसे भेज सकते हैं? जबकि आप जानते हैं कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन विराज मुम्बई में ही है।"

"अरे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"और उससे डरने की भी कोई जरूरत नहीं है। और वैसे भी उसे क्या पता चलेगा कि नीलम कहाॅ है? वो तो किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धो रहा होगा। उसे इस काम से फुर्सत ही कहाॅ मिलेगी कि वो नीलम को खोजेगा?"

"हा हा हा आप सच कहते हैं डैड।" शिवा ठहाका लगा कर जोरों से हॅसते हुए कहा__"वो यकीनन किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट ही धो रहा होगा।"
"ख़ैर छोंड़ो।" अजय सिंह ने नीलम की तरफ देख कर कहा__"तो तुम्हें कब जाना है मुम्बई?"

"मैं तो कल ही जाने का सोच रही हूॅ डैड।" नीलम ने कहा__"मैंने सारी तैयारी भी कर ली है।"
"चलो ठीक है।" अजय सिंह ने कहा__"मैं तुम्हारे लिए ट्रेन की टिकट का बोल देता हूॅ।"

"जी डैड।" नीलम ने कहा और ऊपर अपने कमरे की तरफ पलट कर चली गई।
"तू भी कुछ करेगा कि ऐसे ही आवारागर्दी करता इधर उधर घूमता रहेगा?" सहसा किचेन से आती हुई प्रतिमा ने कहा__"सीख कुछ इनसे। ऐसे कब तक चलेगा?"

"इतना ज्यादा पढ़ लिख कर क्या करना है माॅम?" शिवा ने बेशर्मी से खीसें निपोरते हुए कहा__"डैड की दौलत काफी है मेरे उज्वल भविष्य के लिए। मैंने सही कहा न डैड?" अंतिम वाक्य उसने अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा था।

"बात तो तुम्हारी ठीक है शहज़ादे।" अजय सिंह पहले मुस्कुराया फिर थोड़ा गंभीर हो कर बोला__"लेकिन जीवन में उच्च शिक्षा का होना भी बहुत जरूरी होता है। माना कि मैने तुम्हारे लिए बहुत सारी दौलत बना कर जोड़ दी है लेकिन ये दौलत कब तक तुम्हारे लिए बची रहेगी? दौलत कभी किसी के पास टिकी नहीं रहती। उसको बनाए रखने के लिए काम करके उसे कमाना भी जरूरी है। आज जितना हम उसे खर्च करते हैं उससे कहीं ज्यादा उसे प्राप्त करना भी जरूरी है।"

"ओह डैड आप तो बेकार का लेक्चर देने लगे मुझे।" शिवा ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा__"इतना तो मुझे भी पता है कि दौलत को पाने के लिए काम करना भी जरूरी है और अच्छे काम के लिए अच्छी शिक्षा का होना जरूरी है। तो डैड, मैं पढ़ तो रहा हूॅ न?"

"जिस तरह की तुम पढ़ाई कर रहे हो न।" प्रतिमा ने तीखे लहजे में कहा__"उसका पता है मुझे।"
"ओह माॅम अब आप भी डैड की तरह लेक्चर मत देने लग जाना।" शिवा ने कहा।

"ये लेक्चर तुम्हारे भले के लिए ही दिया जा रहा है बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"इस पर ग़ौर करो और अमल भी करो।"
"जी डैड कर तो रहा हूॅ न?" शिवा ने कहा और सोफे से उठ कर अपने कमरे की तरफ चला गया। किन्तु वह ये न देख सका कि उसके पैन्ट की बाॅई पाॅकेट से उसकी कौन सी चीज़ गिर कर सोफे पर रह गई थी।
 
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