hotaks444
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अजय सिंह ने जब उसे इस हालत में देखा तो उससे रहा न गया। गौरी को देखकर ही उसके अंदर आग सी लग गई थी और अब अपनी पत्नी को इस तरह देखा तो होश खो बैठा वह। प्रतिमा आँखें कर गहरी साॅसें ले रही थी जबकि अजय सिंह ने उसे पल भर में दबोच लिया। वह इतना उतावला हो चुका था कि वह प्रतिमा के ब्लाउज को उसके ऊपरी गले के भाग वाले सिरों को पकड़ कर एक झटके से फाड़ दिया। नाज़ुक सा ब्लाउज था बेचारा वह अजय सिंह झटका नहीं सह सका। ब्लाउज के सारे बटन एक साथ टूटते चले गए। अजय सिंह पागल सा हो गया था। ब्लाउज के अलग होते ही प्रतिमा की भारी भरकम चूचियाॅ उछल कर बाहर आ गईं। अजय ने उन दोनो फुटबालों को दोनो हाथों से शख्ती से दबोच कर उनके निप्पल को अपना मुह खोल कर भर लिया और बुरी तरह से उन्हें चुभलाने लगा।
प्रतिमा एकाएक ही हुए इस हमले से हतप्रभ सी रह गई। किन्तु अजय की रॅग रॅग से वाकिफ थी इस लिए बस मुस्कुरा कर रह गई। अजय सिंह उसकी चूचियों को बुरी तरह मसल रहा था और साथ ही साथ उनको अपने दाॅतों से काटता भी जा रहा था। वह पल भर में जानवर नज़र आने लगा था।
"आहहहहह धीरे से अजय।" प्रतिमा की दर्द में डूबी कराह निकल गई___"दर्द हो रहा है मुझे। ये कैसा पागलपन है? क्या हो गया है तुम्हें?"
"चुपचाप लेटी रह मेरी रांड़।" अजय सिंह मानो गुर्राया___"वरना ब्लाउज की तरह तेरा सब कुछ फाड़ कर रख दूॅगा।"
"अरे तो फाड़ ना भड़वे।" प्रतिमा भी उसी लहजे में बोली___"लगता है गौरी का भूत फिर से सवार हो गया तुझे। चल अच्छा हुआ, जब जब ये भूत सवार होता है तुझ पर तब तब तू मेरी मस्त पेलाई करता है। आहहहह हाय फाड़ दे रे....मुझ पर भी बड़ी आग लगी हुई है। शशशश आहहहह रंडे के जने नीचे का भी कुछ ख़याल कर। क्या चूचियों पर ही लगा रहेगा?"
"हरामज़ादी साली।" अजय सिंह उठ कर प्रतिमा की साड़ी को पेटीकोट सहित एक झटके में उलट दिया। साड़ी और पेटीकोट के हटते ही प्रतिमा नीचे से पूरी तरह नंगी हो गई।
"साली पेन्टी भी पहन कर नहीं गई थी उस मजदूर के पास।" अजय सिंह ने ज़ोर से प्रतिमा की चूत को अपने एक हाँथ से दबोच लिया। प्रतिमा की सिसकारी गूॅज उठी कमरे में।
"आहहहह दबोचता क्या है रंडी के जने उसे मुह लगा कर चाट ना।" प्रतिमा अपने होशो हवाश में नहीं थी___"उस हरामी विजय ने तो कुछ न किया। हाय अगर एक बार कहता तो क्या मैं उसे खोल कर दे न देती? आहहह ऐसे ही चाट.....शशशशश अंदर तक जीभ डाल भड़वे की औलाद।"
अजय सिंह पागल सा हो गया। उसे इस तरह की गाली गलौज वाला सेक्स बहुत पसंद था। प्रतिमा को भी इससे बड़ा आता था। और आज तो दोनो पर आग जैसे भड़की हुई थी। अजय सिंह प्रतिमा की चूत में मानो घुसा जा रहा था। उसका एक हाँथ ऊपर प्रतिमा की एक चूची पर जिसे वह बेदर्दी से मसले जा रहा था जबकि दूसरा हाथ प्रतिमा की चूत की फाॅकों पर था जिन्हें वह ज़रूरत के हिसाब से फैला रहा था।
कमरे में हवस व वासना का तूफान चालू था। प्रतिमा की सिसकारियाॅ कमरे में गूॅजती हुई अजीब सी मदहोशी का आलम पैदा कर रही थी। अजय सिंह उसकी चूत पर काफी देर तक अपनी जीभ से चुहलबाजी करता रहा।
"आहहहह ऐसे ही रे बड़ा मज़ा आ रहा है मुझे।" प्रतिमा बड़बड़ा रही थी। उसकी आँखें मज़े में बेद थी। बेड पर पड़ी वह बिन पानी के मछली की तरह छटपटा रही थी।
"शशशश आहहह अब उसे छोंड़ और जल्दी से पेल मुझे भड़वे हरामी।" प्रतिमा ने हाँथ बढ़ा कर अजय सिंह के सिर के बालों को पकड़ कर ऊपर उठाया। अजय सिंह उसके उठाने पर उठा। उसका पूरा चेहरा प्रतिमा के चूत रस से भींगा हुआ था। ऊपर उठते ही वह प्रतिमा के होठों पर टूट पड़ा। प्रतिमा अपने ही चूत रस का स्वाद लेने लगी इस क्रिया से।
प्रतिमा ने खुद को अलग कर बड़ी तेज़ी से अजय सिंह के कपड़ों उतारना शुरू कर दिया। कुछ ही पल में अजय सिंह मादरजाद नंगा हो गया। उसका हथियार फनफना कर बाहर आ गया। प्रतिमा उकड़ू लेट कर तुरंत ही उसे एक हाथ से पकड़ कर मुह में भर लिया।
अजय सिंह की मज़े से आँखें बंद हो गई तथा मुह से आह निकल गई। वह प्रतिमा के बालों को मजबूती से पकड़ कर उसके मुह में अपनी कमर हिलाते हुए अपना हथियार पेलने लगा। वह पूरी तरह जानवर नज़र आने लगा था। ज़ोर ज़ोर से वह प्रतिमा के गले तक अपना हथियार पेल रहा था। प्रतिमा की हालत खराब हो गई। उसका चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया। आँखें बाहर को आने लग जाती थी साथ ही आँखों से आँसू भी आने लगे। तभी अजय ने उसके सिर को पीछे की तरफ से पकड़ कर अपने हथियार की तरफ मजबूती से खींचा। नतीजा ये हुआ कि उसका हथियार पूरा का पूरा प्रतिमा के मुह मे गले तक चला गया। प्रतिमा की आँखें बाहर को उबल पड़ी। आँखों से आँसू बहने लगे। साँस लेना मुश्किल पड़ गया उसे। उसका जिस्म झटके खाने लगा। उसके मुह से लार टपकने लगी।
प्रतिमा को लगा कि उसकी साॅसें टूट जाएॅगी। अजय सिंह उसे मजबूती से पकड़े हुए था। वह अपने मुह से उसके हथियार को निकालने के लिए छटपटाने लगी। अजय को उसकी इस हालत का ज़रा भी ख़याल नहीं था, वह तो मज़े में आँकें बंद किये ऊपर की तरफ सिर को उठाया हुआ था।
प्रतिमा के मुह से गूॅ गूॅ की अजीब सी आवाज़े निकल रही थी। जब उसने देखा कि अजय सिंह उसे मार ही डालेगा तो उसने अपने दोनो हाँथों से अजय सिंह के पेट पर पूरी ताकत से चिकोटी काटी।
"आहहहहहहह।" अजय सिंह के मुह से चीख निकल गई। वह एक झटके से उसके सिर को छोंड़ कर तथा उसके मुह से अपने हथियार को निकाल कर अलग हट गया। मज़े की जिस दुनियाॅ में वह अभी तक परवाज़ कर रहा था उस दुनिया से गिर कर वह हकीकत की दुनियाॅ में आ गया था। बेड के दूसरी तरफ घुटनो पर खड़ा वह अपने पेट के उस हिस्से को सहलाए जा रहा था जहाँ पर प्रतिमा ने चिकोटी काटी थी। उसे प्रतिमा की इस हरकत पर बेहद गुस्सा आया था किन्तु जब उसने प्रतिमा की हालत को देखा तो हैरान रह गया। प्रतिमा का चेहरा लाल सुर्ख तमतमाया हुआ था। वह बेड पर पड़ी अपनी साॅसें बहाल कर रही थी।
"तुमको ज़रा भी अंदाज़ा है कि तुमने क्या किया है मेरे साथ?" प्रतिमा ने गुस्से से फुंकारते हुए कहा___"तुम अपने मज़े में ये भी भूल गए कि मेरी जान भी जा सकती थी। तुम इंसान नहीं जानवर हो अजय। आज के बाद मेरे करीब भी मत आना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
अजय सिंह उसकी ये बातें सुनकर हैरान रह गया था। किन्तु जब उसे एहसास हुआ कि वास्तव में उसने क्या किया था तो वह शर्मिंदगी से भर गया। वह जानता था कि प्रतिमा वह औरत थी जो उसके कहने पर दुनिया का कोई भी काम कर सकती थी और करती भी थी। ये उसका अजय के प्रति प्यार था वरना कौन ऐसी औरत है जो पति के कहने पर इस हद तक भी गिरने लग जाए कि वह किसी भी ग़ैर मर्द के नीचे अपना सब कुछ खोल कर लेट जाए???? अजय सिंह को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। वह तुरंत ही आगे बढ़ कर प्रतिमा से माफी माॅगने लगा तथा उसको पकड़ने के लिए जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया तो प्रतिमा ने झटक दिया उसे।
"डोन्ट टच मी।" प्रतिमा गुर्राई और फिर उसी तरह गुस्से में तमतमाई हुई वह बेड से नीचे उतरी और बाथरूम के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया उसने। अजय सिंह शर्मिंदा सा उसे देखता रह गया। उसमें अपराध बोझ था इस लिए उसकी हिम्मत न हुई कि वह प्रतिमा को रोंक सके। उधर थोड़ी ही देर में प्रतिमा बाथरूम से मुह हाँथ धोकर निकली। आलमारी से एक नया ब्लाउज निकाल कर पहना, तथा उसी साड़ी को दुरुस्त करने के बाद उसने आदमकद आईने में देख कर अपने हुलिये को सही किया। सब कुछ ठीक करने के बाद वह बिना अजय की तरफ देखे कमरे से बाहर निकल गई। अजय सिंह समझ गया था कि प्रतिमा उससे बेहद नाराज़ हो गई है। उसका नाराज़ होना जायज़ भी था। भला इस तरह कौन अपनी पत्नी की जान ले लेने वाला सेक्स करता है?? अजय सिंह असहाय सा नंगा ही बेड पर पसर गया था।
प्रतिमा एकाएक ही हुए इस हमले से हतप्रभ सी रह गई। किन्तु अजय की रॅग रॅग से वाकिफ थी इस लिए बस मुस्कुरा कर रह गई। अजय सिंह उसकी चूचियों को बुरी तरह मसल रहा था और साथ ही साथ उनको अपने दाॅतों से काटता भी जा रहा था। वह पल भर में जानवर नज़र आने लगा था।
"आहहहहह धीरे से अजय।" प्रतिमा की दर्द में डूबी कराह निकल गई___"दर्द हो रहा है मुझे। ये कैसा पागलपन है? क्या हो गया है तुम्हें?"
"चुपचाप लेटी रह मेरी रांड़।" अजय सिंह मानो गुर्राया___"वरना ब्लाउज की तरह तेरा सब कुछ फाड़ कर रख दूॅगा।"
"अरे तो फाड़ ना भड़वे।" प्रतिमा भी उसी लहजे में बोली___"लगता है गौरी का भूत फिर से सवार हो गया तुझे। चल अच्छा हुआ, जब जब ये भूत सवार होता है तुझ पर तब तब तू मेरी मस्त पेलाई करता है। आहहहह हाय फाड़ दे रे....मुझ पर भी बड़ी आग लगी हुई है। शशशश आहहहह रंडे के जने नीचे का भी कुछ ख़याल कर। क्या चूचियों पर ही लगा रहेगा?"
"हरामज़ादी साली।" अजय सिंह उठ कर प्रतिमा की साड़ी को पेटीकोट सहित एक झटके में उलट दिया। साड़ी और पेटीकोट के हटते ही प्रतिमा नीचे से पूरी तरह नंगी हो गई।
"साली पेन्टी भी पहन कर नहीं गई थी उस मजदूर के पास।" अजय सिंह ने ज़ोर से प्रतिमा की चूत को अपने एक हाँथ से दबोच लिया। प्रतिमा की सिसकारी गूॅज उठी कमरे में।
"आहहहह दबोचता क्या है रंडी के जने उसे मुह लगा कर चाट ना।" प्रतिमा अपने होशो हवाश में नहीं थी___"उस हरामी विजय ने तो कुछ न किया। हाय अगर एक बार कहता तो क्या मैं उसे खोल कर दे न देती? आहहह ऐसे ही चाट.....शशशशश अंदर तक जीभ डाल भड़वे की औलाद।"
अजय सिंह पागल सा हो गया। उसे इस तरह की गाली गलौज वाला सेक्स बहुत पसंद था। प्रतिमा को भी इससे बड़ा आता था। और आज तो दोनो पर आग जैसे भड़की हुई थी। अजय सिंह प्रतिमा की चूत में मानो घुसा जा रहा था। उसका एक हाँथ ऊपर प्रतिमा की एक चूची पर जिसे वह बेदर्दी से मसले जा रहा था जबकि दूसरा हाथ प्रतिमा की चूत की फाॅकों पर था जिन्हें वह ज़रूरत के हिसाब से फैला रहा था।
कमरे में हवस व वासना का तूफान चालू था। प्रतिमा की सिसकारियाॅ कमरे में गूॅजती हुई अजीब सी मदहोशी का आलम पैदा कर रही थी। अजय सिंह उसकी चूत पर काफी देर तक अपनी जीभ से चुहलबाजी करता रहा।
"आहहहह ऐसे ही रे बड़ा मज़ा आ रहा है मुझे।" प्रतिमा बड़बड़ा रही थी। उसकी आँखें मज़े में बेद थी। बेड पर पड़ी वह बिन पानी के मछली की तरह छटपटा रही थी।
"शशशश आहहह अब उसे छोंड़ और जल्दी से पेल मुझे भड़वे हरामी।" प्रतिमा ने हाँथ बढ़ा कर अजय सिंह के सिर के बालों को पकड़ कर ऊपर उठाया। अजय सिंह उसके उठाने पर उठा। उसका पूरा चेहरा प्रतिमा के चूत रस से भींगा हुआ था। ऊपर उठते ही वह प्रतिमा के होठों पर टूट पड़ा। प्रतिमा अपने ही चूत रस का स्वाद लेने लगी इस क्रिया से।
प्रतिमा ने खुद को अलग कर बड़ी तेज़ी से अजय सिंह के कपड़ों उतारना शुरू कर दिया। कुछ ही पल में अजय सिंह मादरजाद नंगा हो गया। उसका हथियार फनफना कर बाहर आ गया। प्रतिमा उकड़ू लेट कर तुरंत ही उसे एक हाथ से पकड़ कर मुह में भर लिया।
अजय सिंह की मज़े से आँखें बंद हो गई तथा मुह से आह निकल गई। वह प्रतिमा के बालों को मजबूती से पकड़ कर उसके मुह में अपनी कमर हिलाते हुए अपना हथियार पेलने लगा। वह पूरी तरह जानवर नज़र आने लगा था। ज़ोर ज़ोर से वह प्रतिमा के गले तक अपना हथियार पेल रहा था। प्रतिमा की हालत खराब हो गई। उसका चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया। आँखें बाहर को आने लग जाती थी साथ ही आँखों से आँसू भी आने लगे। तभी अजय ने उसके सिर को पीछे की तरफ से पकड़ कर अपने हथियार की तरफ मजबूती से खींचा। नतीजा ये हुआ कि उसका हथियार पूरा का पूरा प्रतिमा के मुह मे गले तक चला गया। प्रतिमा की आँखें बाहर को उबल पड़ी। आँखों से आँसू बहने लगे। साँस लेना मुश्किल पड़ गया उसे। उसका जिस्म झटके खाने लगा। उसके मुह से लार टपकने लगी।
प्रतिमा को लगा कि उसकी साॅसें टूट जाएॅगी। अजय सिंह उसे मजबूती से पकड़े हुए था। वह अपने मुह से उसके हथियार को निकालने के लिए छटपटाने लगी। अजय को उसकी इस हालत का ज़रा भी ख़याल नहीं था, वह तो मज़े में आँकें बंद किये ऊपर की तरफ सिर को उठाया हुआ था।
प्रतिमा के मुह से गूॅ गूॅ की अजीब सी आवाज़े निकल रही थी। जब उसने देखा कि अजय सिंह उसे मार ही डालेगा तो उसने अपने दोनो हाँथों से अजय सिंह के पेट पर पूरी ताकत से चिकोटी काटी।
"आहहहहहहह।" अजय सिंह के मुह से चीख निकल गई। वह एक झटके से उसके सिर को छोंड़ कर तथा उसके मुह से अपने हथियार को निकाल कर अलग हट गया। मज़े की जिस दुनियाॅ में वह अभी तक परवाज़ कर रहा था उस दुनिया से गिर कर वह हकीकत की दुनियाॅ में आ गया था। बेड के दूसरी तरफ घुटनो पर खड़ा वह अपने पेट के उस हिस्से को सहलाए जा रहा था जहाँ पर प्रतिमा ने चिकोटी काटी थी। उसे प्रतिमा की इस हरकत पर बेहद गुस्सा आया था किन्तु जब उसने प्रतिमा की हालत को देखा तो हैरान रह गया। प्रतिमा का चेहरा लाल सुर्ख तमतमाया हुआ था। वह बेड पर पड़ी अपनी साॅसें बहाल कर रही थी।
"तुमको ज़रा भी अंदाज़ा है कि तुमने क्या किया है मेरे साथ?" प्रतिमा ने गुस्से से फुंकारते हुए कहा___"तुम अपने मज़े में ये भी भूल गए कि मेरी जान भी जा सकती थी। तुम इंसान नहीं जानवर हो अजय। आज के बाद मेरे करीब भी मत आना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
अजय सिंह उसकी ये बातें सुनकर हैरान रह गया था। किन्तु जब उसे एहसास हुआ कि वास्तव में उसने क्या किया था तो वह शर्मिंदगी से भर गया। वह जानता था कि प्रतिमा वह औरत थी जो उसके कहने पर दुनिया का कोई भी काम कर सकती थी और करती भी थी। ये उसका अजय के प्रति प्यार था वरना कौन ऐसी औरत है जो पति के कहने पर इस हद तक भी गिरने लग जाए कि वह किसी भी ग़ैर मर्द के नीचे अपना सब कुछ खोल कर लेट जाए???? अजय सिंह को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। वह तुरंत ही आगे बढ़ कर प्रतिमा से माफी माॅगने लगा तथा उसको पकड़ने के लिए जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया तो प्रतिमा ने झटक दिया उसे।
"डोन्ट टच मी।" प्रतिमा गुर्राई और फिर उसी तरह गुस्से में तमतमाई हुई वह बेड से नीचे उतरी और बाथरूम के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया उसने। अजय सिंह शर्मिंदा सा उसे देखता रह गया। उसमें अपराध बोझ था इस लिए उसकी हिम्मत न हुई कि वह प्रतिमा को रोंक सके। उधर थोड़ी ही देर में प्रतिमा बाथरूम से मुह हाँथ धोकर निकली। आलमारी से एक नया ब्लाउज निकाल कर पहना, तथा उसी साड़ी को दुरुस्त करने के बाद उसने आदमकद आईने में देख कर अपने हुलिये को सही किया। सब कुछ ठीक करने के बाद वह बिना अजय की तरफ देखे कमरे से बाहर निकल गई। अजय सिंह समझ गया था कि प्रतिमा उससे बेहद नाराज़ हो गई है। उसका नाराज़ होना जायज़ भी था। भला इस तरह कौन अपनी पत्नी की जान ले लेने वाला सेक्स करता है?? अजय सिंह असहाय सा नंगा ही बेड पर पसर गया था।