hotaks444
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बिजली- मेरे प्रीतम... माँ तो कभी-कभी बापू का लण्ड चूसते हुए पी जाती है। मैं भी तो देखें कि तेरा रस स्वाद में कैसे लगता है? और मेरी बिजली रानी मेरे लण्ड को पूरी तरह चूसने लगी। जब मेरा पूरा का पूरा पानी चूस लिया तो उसने कहा- “खैर, इतना बुरा भी नहीं था तेरे लण्ड का स्वाद...”
फिर हम दोनों कपड़े पहनकर नीचे उतरने लगे। जब हम सीढ़ियों से उतर रहे थे तो नीचे बिजली के माँ पिताजी खड़े हमें ही देख रहे थे।
बिजली- “क्या माँ? तुम रोज पिताजी के साथ चीनी बोरी फड़वाने ऊपर जाती थी तो कहती थी खूब मजा आ रहा है। और चूतड़ उछाल-उछलकर पिताजी का लण्ड अपनी फुद्दी में लेती थी। पर मुझे तो बहुत दर्द हुआ माँ... वैसे बाद में बहुत मजा आया। वैसे भी दीनू का लौड़ा पिता जी के लौड़े से बहुत लंबा और मोटा है। कभी उससे चीनी बोरी फड़वाएगी ना तो तुझे नानी याद आ जाएगी। हाँ...”
बिजली के पिताजी- “जा बेटी, कमरे में जाकर आराम कर ले..." और फिर बिजली की अम्मी से बोले- “आज तेरी बेटी ने अपनी सील तुड़वा ली। जरा तेल लगाकर सेंकाई कर देना...”
फिर मुझे डांटा- “और तू साले, दीनू के बच्चे... ठहर जा, तेरी अम्मा की बुर में लौड़ा पेलू.. साले जब घर में चीनी बोरी फड़ी फड़ाई हुई पहले से मौजूद थी तो नई बोरी फाड़ने की क्या जरूरत थी? साले इतना ही ज्यादा शौक था लण्ड घुसेड़ने का तो बिजली की मम्मी की बुर में पेल देता लण्ड। रुक जा आज तुझे मैं नहीं छोडूंगा साले। पुलिस में पकड़वाकरके तेरी गाण्ड में डंडा पेलवाऊँगा..”
और मैं डर के मारे बाहर की ओर भागा । भागा... ऐसा भागा की सीधा नागपुर आकर ही मेरे पाँव थमे, और मैं यहीं का होकर रह गया। और किश्मत ने गोरी मेमसाहेब के रूप में बिजली रानी को फिर से मेरे सामने खड़ा कर दिया।
इधर बिजली रानी उर्फ आज की गोरी मेमसाहेब मेरा लण्ड चूसे जा रही थी। और फिर मैं भी उसकी फुद्दी चाटने लगा। और फिर थोड़े ही देर में कमरा हम दोनों की चुदाई की आवाजों से भर गया- “हाँ हाँ दीनू, तेरे लण्ड में वही कड़ापन है। दीनू, आज भी मुझे वो पहली चुदाई तेरे लण्ड की याद दिला रही है। बस ऐसे ही चोदे जा... ऐसे ही चोदे जा...”
और मेरे धक्के की स्पीड बढ़ने लगी लगी।
और मेरे हर धक्के का जवाब मेरी प्यारी बिजली रानी उर्फ गोरी मेमसाहेब अपना चूतड़ उछालते हुये दे रही थींहाँ हाँ मेरे सरताज... मेरे प्यारे दीनू..”
मैं- “वो मेमसाहेब..."
मेमसाहेब- मेमसाहेब के बच्चे... साले दीनू... मुझे मेमसाहेब बोलता है? साले पुलिस बुलाके तेरी गाण्ड में डंडा पेलवाऊँन क्या?
मैं- नहीं जलेबी रानी... पर मैं तुझे चोदकर जो भागा हूँ तो आज तुझसे मिल रहा हूँ.. तेरे साथ ये क्या हुआ? मेरी छम्मकछल्लो। तू कैसे इस धंधे में आ गई?
बिजली- और क्या करती? जिस लण्ड से अपनी बुर की सील तुड़वाई... वो तो गाण्ड में इंडा पेलवाने के डर से शहर भाग गया। मेरे बाबूजी ने मेरा घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया। अब जब माँ पिताजी नहीं रहे तो पेट पालने के लिए और क्या करती? ।
मैं- क्यों? क्या दुनियां में सभी अकेली औरतें... जांघे फैलाकर, बुर में लण्ड घुसेड़वाकर, हर रोज नये-नये लण्ड से चुदवाकर पेट पालती हैं?
बिजली- मेरे प्रीतम जमाने को जितना सरल समझते हो, उतना सरल है नहीं... जमान बहुत खराब है दीनू... जमाना बहुत ही खराब है। तुम्हारे जाने के बाद पिताजी ने एक अच्छा सा लड़का देखकर मेरी शादी कर दी। वो एक जगह नौकरी करता था। नौकरी में प्रमोशन पाने के लिए मुझे जबरन शराब पिलाकर अपने बास से चुदवाता था। और एक दिन मैं वहाँ से भाग निकली। पर हाय रे जमाना... हर कोई मेरी सहायत करने के लिए आगे तो आता था पर बदले में मुझे अपने नीचे लिटाकरके, जांघे फैलाकर, मेरी मखमली फुद्दी में अपना काला लण्ड घुसेड़ना चाहता था। मैंने सोचा कि जब यही करना है तो क्यों ना मजे लेकर करूँ। और मैं बन गई गोरी मेमसाहेब... पर तुम... तुम तो दीनू ऐसे ना थे...”
मैं- मैं आज भी ऐसा ना हूँ बिजली। मैं अब भी तुझसे प्यार करता हूँ।
मेमसाहेब- झूठ... बिलकूल झूठ... अगर प्यार करते रहते तो एक बार... एक बार तो मुझसे मिलने गाँव आए होते।
मैं- “गया था... मैं गया था मेरी बिजली रानी, पर तब तक तेरे बाबूजी सब कुछ बेचकर तुम लोगों को लेकर न जाने कहाँ जा चुके थे। मैंने बहुत हूँढ़ा, बहुत हूँढ़ा पर तुम नहीं मिली...” खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। चल, अब हम एक हो सकते हैं।
बिजली- “सच्च... मेरे प्रियतम सच...”
फिर हम दोनों कपड़े पहनकर नीचे उतरने लगे। जब हम सीढ़ियों से उतर रहे थे तो नीचे बिजली के माँ पिताजी खड़े हमें ही देख रहे थे।
बिजली- “क्या माँ? तुम रोज पिताजी के साथ चीनी बोरी फड़वाने ऊपर जाती थी तो कहती थी खूब मजा आ रहा है। और चूतड़ उछाल-उछलकर पिताजी का लण्ड अपनी फुद्दी में लेती थी। पर मुझे तो बहुत दर्द हुआ माँ... वैसे बाद में बहुत मजा आया। वैसे भी दीनू का लौड़ा पिता जी के लौड़े से बहुत लंबा और मोटा है। कभी उससे चीनी बोरी फड़वाएगी ना तो तुझे नानी याद आ जाएगी। हाँ...”
बिजली के पिताजी- “जा बेटी, कमरे में जाकर आराम कर ले..." और फिर बिजली की अम्मी से बोले- “आज तेरी बेटी ने अपनी सील तुड़वा ली। जरा तेल लगाकर सेंकाई कर देना...”
फिर मुझे डांटा- “और तू साले, दीनू के बच्चे... ठहर जा, तेरी अम्मा की बुर में लौड़ा पेलू.. साले जब घर में चीनी बोरी फड़ी फड़ाई हुई पहले से मौजूद थी तो नई बोरी फाड़ने की क्या जरूरत थी? साले इतना ही ज्यादा शौक था लण्ड घुसेड़ने का तो बिजली की मम्मी की बुर में पेल देता लण्ड। रुक जा आज तुझे मैं नहीं छोडूंगा साले। पुलिस में पकड़वाकरके तेरी गाण्ड में डंडा पेलवाऊँगा..”
और मैं डर के मारे बाहर की ओर भागा । भागा... ऐसा भागा की सीधा नागपुर आकर ही मेरे पाँव थमे, और मैं यहीं का होकर रह गया। और किश्मत ने गोरी मेमसाहेब के रूप में बिजली रानी को फिर से मेरे सामने खड़ा कर दिया।
इधर बिजली रानी उर्फ आज की गोरी मेमसाहेब मेरा लण्ड चूसे जा रही थी। और फिर मैं भी उसकी फुद्दी चाटने लगा। और फिर थोड़े ही देर में कमरा हम दोनों की चुदाई की आवाजों से भर गया- “हाँ हाँ दीनू, तेरे लण्ड में वही कड़ापन है। दीनू, आज भी मुझे वो पहली चुदाई तेरे लण्ड की याद दिला रही है। बस ऐसे ही चोदे जा... ऐसे ही चोदे जा...”
और मेरे धक्के की स्पीड बढ़ने लगी लगी।
और मेरे हर धक्के का जवाब मेरी प्यारी बिजली रानी उर्फ गोरी मेमसाहेब अपना चूतड़ उछालते हुये दे रही थींहाँ हाँ मेरे सरताज... मेरे प्यारे दीनू..”
मैं- “वो मेमसाहेब..."
मेमसाहेब- मेमसाहेब के बच्चे... साले दीनू... मुझे मेमसाहेब बोलता है? साले पुलिस बुलाके तेरी गाण्ड में डंडा पेलवाऊँन क्या?
मैं- नहीं जलेबी रानी... पर मैं तुझे चोदकर जो भागा हूँ तो आज तुझसे मिल रहा हूँ.. तेरे साथ ये क्या हुआ? मेरी छम्मकछल्लो। तू कैसे इस धंधे में आ गई?
बिजली- और क्या करती? जिस लण्ड से अपनी बुर की सील तुड़वाई... वो तो गाण्ड में इंडा पेलवाने के डर से शहर भाग गया। मेरे बाबूजी ने मेरा घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया। अब जब माँ पिताजी नहीं रहे तो पेट पालने के लिए और क्या करती? ।
मैं- क्यों? क्या दुनियां में सभी अकेली औरतें... जांघे फैलाकर, बुर में लण्ड घुसेड़वाकर, हर रोज नये-नये लण्ड से चुदवाकर पेट पालती हैं?
बिजली- मेरे प्रीतम जमाने को जितना सरल समझते हो, उतना सरल है नहीं... जमान बहुत खराब है दीनू... जमाना बहुत ही खराब है। तुम्हारे जाने के बाद पिताजी ने एक अच्छा सा लड़का देखकर मेरी शादी कर दी। वो एक जगह नौकरी करता था। नौकरी में प्रमोशन पाने के लिए मुझे जबरन शराब पिलाकर अपने बास से चुदवाता था। और एक दिन मैं वहाँ से भाग निकली। पर हाय रे जमाना... हर कोई मेरी सहायत करने के लिए आगे तो आता था पर बदले में मुझे अपने नीचे लिटाकरके, जांघे फैलाकर, मेरी मखमली फुद्दी में अपना काला लण्ड घुसेड़ना चाहता था। मैंने सोचा कि जब यही करना है तो क्यों ना मजे लेकर करूँ। और मैं बन गई गोरी मेमसाहेब... पर तुम... तुम तो दीनू ऐसे ना थे...”
मैं- मैं आज भी ऐसा ना हूँ बिजली। मैं अब भी तुझसे प्यार करता हूँ।
मेमसाहेब- झूठ... बिलकूल झूठ... अगर प्यार करते रहते तो एक बार... एक बार तो मुझसे मिलने गाँव आए होते।
मैं- “गया था... मैं गया था मेरी बिजली रानी, पर तब तक तेरे बाबूजी सब कुछ बेचकर तुम लोगों को लेकर न जाने कहाँ जा चुके थे। मैंने बहुत हूँढ़ा, बहुत हूँढ़ा पर तुम नहीं मिली...” खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। चल, अब हम एक हो सकते हैं।
बिजली- “सच्च... मेरे प्रियतम सच...”