non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन - Page 8 - SexBaba
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non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन

सासूमाँ- हे राम... पर उनकी तबीयत कैसी है? इतना चुदाना उनकी सेहत के लिये ठीक नहीं है दीदी। अभी कल ही लो। मेरा चुदाना दो ही बार हुआ था पर आज के लिए हिम्मत नहीं हो रही है।

सुमनलता- क्या बात कर रहे हैं दीदी? चू- दाना से तो तबीयत तरोताजा हो जाती है। आप कहीं डुप्लीकेट चूदाना तो नहीं इश्तेमाल कर रही हैं?

सासूमाँ- नहीं दीदी... कल तो असली चुदाना ही मिला था। पर अभी उमर हो रही है ना तो जल्दी थक जाती हूँ।

सुमनलता- पर मुँह में ही तो लेना है ना।

सासूमाँ- अरे... आप खाली मुँह से ही काम चलाते हैं?

सुमनलता- अरे बहन जी मुँह में जाते ही जो मजा आता है क्या बताऊँ?

सासूमाँ- अरे बहन जी, आपकी बेटीयां भी हैं वहाँ पर?

सुमनलता- हाँ... दीदी, और स्पीकर भी ओन है। वो भी सुन रही हैं। और मजे ले-लेकर सुन रहीं हैं। अभी कुँवारी है ना।

सासूमाँ- अरे दीदी, आप उनके सामने चुदाने की बात कर लेती हैं?

सुमनलता- हाँ हाँ दीदी... अभी मेरे पति के गुजरने के बाद हम चारों माँ और बेटियों ने ये चू-दाने का बिजनेस संभाल रखा है।

सासूमाँ- बहनजी, इससे पहले की मेरा कन्फ्यूजन से सिर फट जाए। प्लीज थोड़ा खुलकर बोलिए कि आपकी कंपनी का नाम क्या है?

सुमनलता- हमारी कंपनी का नाम है। चू-दाने में मजा आता है प्राइवेट लिमिटेड। एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है। हमारी। और बढ़िया चल रहा है चू-दाने का धंधा।

सासूमाँ- चुदाने में मजा आता है प्राइवेट लिमिटेड। तो कौन-कौन चुदता है आपकी कंपनी में? आप, आपकी तीनों बेटियां, सविता, बबीता, और कविता।

सुमनलता- हाँ.. ओहह... क्या कहा बहनजी? कौन-कौन चुदता है? प्लीज आप ऐसी खराब बातें ना निकले अपने मुँह से।।

सासूमाँ- और अभी तक क्या हम भजन संध्या के बारे में बातें कर रहे थे... चुदाने के बारे में ही तो बातें चल रही
थीं...

सुमनलता- आह्ह... चू-दाने के बारे में बात चल रही थी।

सासूमाँ- चुदाने के बारे में बात चल रही थी चुदाई की नहीं?

सुमनलता- “आपको कैसे पता चला दीदी की हमारी कंपनी का पहला नाम चू-दाई में मजा आता है प्राइवेट लिमिटेड था। सच में पहले सविता के पापा ने जब कंपनी खोली तब यही नाम था। चूदाई में मजा आता है। पर उनके जाने के बाद जब लोग दो-तीन बार रिपीट करते थे तब कुछ अलग लगता था। जैसे लोग इसका कुछ अलग मतलब निकल रहे हों...”

सासूमाँ- और इसका क्या मतलब है बहन जी?

सुमनलता- असल में हमारा चू-दाने का बिजनेस है।
 
सासूमाँ- फिर कन्फ्यू जन हो रहा हाँ बहनजी। चुदाने का बिजनेस है बोल रही हैं। आप और तीनों बेटियां मिलकर सम्हाल रही हैं। लड़कियां तीनों कुँवारी हैं बोल रही है। कहीं कुछ उल्टा सीधा हो गया तो?

सुमनलता- अरे दीदी, आप फिकर ना करे। मेरी तीनों बेटियां पढ़ी लिखी और समझदार हैं। चू-दाने का धंधा अच्छी तरह संभाल रखी हैं। मैं तो दिन भर में थोड़ी देर के लिए ही जाती हूँ आफिस। बाकी टाइम ये तीनों बहनें ही बारी-बारी से सम्हालती है, चू-दाने का धंधा।

सासूमाँ- पर दीदी, चुदाने में कहीं पेट ओट फूल गया तो? लड़कियां कुँवारी हैं... थोड़ा ध्यान रखिएगा? अच्छा, खुद चुदवाती हैं या और लड़कियों को रख हुआ है चुदवाने को।

सुमनलता- क्या मतलब है बहनजी? चुदवाने को? हमारे यहाँ चू-दाने का काम होता है बहन जी, चुदाने का नहीं? ओह्ह... लगता है बहनजी आपको गंगा जमुना जैसे फिर से बड़ा ही कन्फ्यू जन हो गया है। हे भगवान्... आपने तो क्या से क्या मतलब निकाल लिया। बगल में लड़कियां भी मुँह छुपाते हुए हँस रही हैं।

सासूमाँ- क्या मतलब दीदी? कैसा कन्फ्यूजन... जरा खुलकर समझाइये।

सुमनलता- हमारा धंधा है चू-दाने का, चुदाने का नहीं। चू-दाना... याने चूनमून दाना... बहनजी चूनमून दाना, चुदाना नहीं? चूनमून दाना आपने कभी नहीं खाया है क्या?

सासूमाँ हँसते हुए- हे भगवान्... इतनी देर तक आप चूनमून दाने की ही बात कर रही थी क्या? मैं तो सोची की चुदाने की बात कर रही हैं। वही मैं सोचूँ की आपकी अस्सी साल की सास को अभी भी चुदाने का शौक कैसे है? सारी सारी... दीदी, अगेन सारी।

सुमनलता- “चलो कोई बात नहीं दीदी। आखिरकार आपका कन्फ्यू जन दूर तो हुआ। इधर मेरी बेटियां भी हँस रही है ।

सासूमाँ- “हाँ हाँ... इधर मेरी बहू भी अपने भाई का लण्ड पकड़कर हँसे जा...”

सुमनलता- क्या मतलब है दीदी? क्या राम प्रसाद के बारह इंची लण्ड को उसकी खुद की बहन पकड़ रखी है?

सासूमाँ- नहीं नहीं... लण्ड नहीं, कान पकड़कर हँस रही है।

सुमनलता- अच्छा, मेरे कान बजे होंगे।

सासूमाँ- हाँ हो सकता है? कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन था अपने दूर कर दिया। बैंक्स।

सुमनलता- थैक्स कैसा? वैसे किसी दिन घूमने आइए, हमारे यहां। और हाँ... राम प्रसाद मस्ताना को थोड़ा फोन देंगे।

सासूमाँ- अच्छा नमस्ते... और ये लीजिए मेरे राम बेटे से बात कीजिए।

मैं- हेलो, मेम नमस्ते।

सुमनलता- “अरे राम प्रसाद जी, मेरी तीनों बेटियों ने तो आपको पसंद कर लिया है। फाइनल पसंद मेरे को करनी है तो आप अभी आधे घंटे में आ जाओ। हमारे घर पे। हाँ हाँ... नोट कर लो पता...”

मैं- “ठीक है, मैं मैंने नोट कर लिया है। आधे घंटे के बाद पहुँचता हूँ आपके घर पे...”

मैंने फोन रख दिया। देखा तो सासूमाँ और दीदी का चेहरा उतरा हुआ था।

मैं- क्या हुआ दीदी? चेहरा कैसे उतर गया?

दीदी- अभी आप जाओगे तो हमारे प्रोग्राम का क्या होगा?
 
सासूमाँ- हाँ हाँ बेटे... ये साली तीन बेटियां और उसकी माँ ने साली कन्फ्यूजन पैदा कर दिया था। वो बोल कुछ और रहे थे और मैं कुछ और ही समझ रही थी। खैर जिस काम के लिए आए हो वो करना जरूरी भी है। और बहूरानी ये भी सोच की अगर रामू बेटा का सेलेक्सन इस सुमनलता ने अपने चुदाने की कंपनी में ओहह... फिर से सारी चूनमून दाने की कंपनी में कर लिया तो क्या होगा?

दीदी- तो क्या होगा अम्मा?

सासूमाँ- अरे पगली... फिर हमारे तो मौजे ही मौजे हैं। फिर रामू हमारे ही शहर में हमारे ही घर में हमारे साथ रहेगा। और हम हर रात को इसके गधे लण्ड का मजा लूट पाएंगे।

दीदी- सच मम्मी... ये बात तो मैंने सोचा ही नहीं था। सच भैया... आपसेलेक्सन के लिए जी तोड़ मेहनत करना। जाओ हमारी दुआ आपके साथ है।

सासूमाँ- हाँ बेटे, मेरा भी आशीर्बाद तेरे साथ है। थोड़ी देर रुक बेटी इधर आना तो। पाँच मिनट के बाद एक कटोरी में पीला-पीला सा पानी लेकर आ गई दीदी।

दीदी- ले भैया, इससे पी ले। ये हम दोनों सास बहू की दुआ है, आशीर्वाद है। तू अवश्य जीतेगा, और तेरी नौकरी पक्की। देख ये पानी थोड़ा नमकीन लग सकता है पर एक बूंद भी नहीं छोड़ना।

मैंने कटोरी ले ली और पहला पूँट पिया तो...

सासूमाँ बोली- “अरे बाहर मत निकलना... पी जा... पी जा...”

मैंने पूरी कटोरी खाली कर दी। मैंने पूछा- सच-सच बताओ दीदी। ये आप दोनों का सू-सू था ना?
दीदी- हाँ भैया, इससे हमारे बीच प्यार बढ़ता ही रहेगा।
 
* * * * * * * * * *सास बह का प्यार

सासूमाँ- “अच्छा बहू, एक बात बता? तू इससे पहले कभी भी रामू बेटे से नहीं चुदवाई थी। या फिर झूठ बोल रही है..."

दीदी- “सच बताऊँ सासूमाँ... मैं चुदवाना तो बहुत दिनों से चाहती थी पर कभी भी मौका नहीं मिला। मौका मिला तो हिम्मत नहीं हुई। हिम्मत हुई तो रामू भाई की जगह...”

सासूमाँ- रामू भाई की जगह... क्या बेटी? बता, किससे चुदवा बैठी? मेरे खयाल से दमऊ होना चाहिए। हैं ना बेटी?

दीदी- हाँ मम्मीजी... पर आपको कैसे पता?

सासूमाँ- दमऊ बेटा चुदाई के टाइम कुछ भी पूछ लो कभी भी झूठ नहीं बोलता।

दीदी- “साला, दमऊ का बच्चा...”

सासूमाँ- अरे उसको क्यों डांटती है? बेचारा, मुझसे कुछ भी नहीं छिपाता।

दीदी- पर आप... आप सासूमाँ... मुझसे दमऊ के बारे में इतने दिन तक क्यों छुपाया?

सासूमाँ- “मैं पहले डर गई थी बेटा की कहीं तुम नाराज तो नहीं हो जाओगी। फिर जब एक दिन दमऊ ने कहा की उसने अंधेरे का फायदा उठाकर तुम्हें चोदा है और तुम्हें पता भी नहीं चला तो...”

दीदी- फिर क्या? सासूमाँ।

सासूमाँ- फिर मैंने ही उसे तुम्हें फिर से चोदने के लिए उकसाया था।

दीदी- अच्छा अच्छा... तभी मैं सोचूँ की दमऊ भैया में मुझे चोदने जैसी हिम्मत कैसे आ गई?

सासूमाँ- वो सब बातें थोड़ा बिस्तार से बता बेटी। ताकी मुझे कुछ-कुछ मजा आए।
 
दीदी- हाँ... सासूमाँ, रामू भैया के आने तक हम दोनों बात चीत करके समय काट लेते हैं।

सासूमाँ- तो फिर शुरू हो जा बेटा... और एक नई कहानी लेकर जिसका नाम है- “अंधेरे में चुदवा बैठी अपने ही भाई के साथ”

दीदी हँसते हुए- “आप भी ना सासूमाँ, बड़ी वो हैं.”

सासूमाँ उसकी चूचियां दबाते हुए- बड़ी क्या हूँ बेटी?

दीदी- कुछ नहीं.. तो सुनिये मेरी चुदाई अंधेरे में अपने ही भाई के साथ, मेरी ही जुबानी।

सासूमाँ- हाँ हाँ बता दे बेटी की तुम अपने दमऊ भाई के साथ कैसे चुदवा बैठी?

दीदी- जी सासूमाँ... बात उन दिनों की है। जब मेरी शादी हो चुकी थी। आप तो जानती ही हैं की मैं शादी से पहले एकदम उअनछुई, अनचुदी थी।

सासूमाँ- हाँ बेटी, तेरे बिस्तर की चद्दर तेरे कुँवारेपन का गवाही था बेटी।

दीदी- हाँ... तो पहले आपके बेटे याने मेरे सैया ने मुझे चोद-चोदकर चुदाई का आदी बना दिया था। हम दिन रात, सुबह, दोपहर, शाम, जब भी मौका मिले शुरू हो जाते थे। मैंने तो अम्माजी नीचे पैंटी पहनना ही छोड़ दिया था। तो इस तरह से हमारी शादीशुदा जिंदगी में चुदाई की गाड़ी बड़े ही सुंदर तरीके से राजधानी एक्सप्रेस की तरह आगे बढ़ रही थी की शादी के बाद पहला सावन आ गया।

सासूमाँ- हाँ पहले सावन में तुझे मायके जाना पड़ा था।

दीदी- दमऊ भैया लेने आए थे। हम दोनों एक ही स्लीपर में सोकर गये बस में।

सासूमाँ- तो क्या बेटी बस में ही चुदाई हो गई तुम दोनों की?
 
दीदी- नहीं मम्मीजी। बस में हम दोनों भले ही एक-दूसरे के साथ चिपक के सोए हों। पर मेरे मन में उस समय तक मेरे भाई के प्रति गंदे बिचार नहीं आए थे। मेरे लिए तो वो मेरा छोटा सा प्यारा सा नन्हा सा दमऊ भाई ही था। हाँ मुझे लगा की वो मेरे कूल्हे सहला रहा है। कभी-कभी उसके हाथ मेरी चूचियों को भी सहला रहे थे। पर मैंने सोचा की वो ये सब नींद में कर रहा है। मैं उत्तेजित होती जा रही थी। फिर जब दमऊ के हाथ मेरी फुद्दी के ऊपर सहलाने लगे तो मेरी उत्तेजना चरम सीमा पर थी। जैसे तैसे मैंने अपने आपको संभाला। और उसका हाथ हटाते हुए उसे कहा- “दमऊ... थोड़ा ठीक से सो। अभी बड़ा हो गया है भाई..”

फिर दमऊ ने मेरे साथ दुबारा कोई हरकत नहीं की। और सुबह तक हम आराम से अपने मायके पहुँच गये।

सासूमाँ- मुख्य बात पे आ बहूरानी, मुख्य बात पे आ। देख मेरी फुद्दी में खुजलाहट होनी शुरू हो चुकी है। बढ़िया मजेदार चुदाई की कहानी शुरू कर ताकी ये मुई अपना पानी छोड़े।

दीदी- आप एक काम क्यों नहीं करती मम्मीजी, अपने सारे कपड़े क्यों नहीं खोल देती?

सासूमॉ- अभी, इस समय... कहीं कोई आ गया तो? अच्छा चल मेरे कमरे में चलते हैं। चम्पा... ओ चम्पा... जरा मेनगेट बंद कर देना। हम दोनों सास बह मेरे कमरे में हैं। वैसे भी तू मानेगी नहीं, तो तांक-झांक ना करते हुए सीधे मेरे कमरे में आ जा।

चम्पा (किचेन में सेबाहर निकलती हुई)- ठीक है अम्मा। मैं अभी मेनगेट बंद करके आती हूँ।

सासूमाँ के कमरे पहुँचकर हम दोनों सास बहू पूरी तरह नंगे हो चूकने के बाद पलंग पे एक-दूसरे से चिपक के लेट गये। इतने में चम्पा भी आ गई और वो भी अपने कपड़े खोलना चाहती थी। पर दीदी ने माना कर दिया।

दीदी- सुन चम्पा रानी, अभी तू नंगी ना होना। कहीं कोई आ गया तो दरवाजा क्या नंगी होकर खोलेगी।

सासूमाँ- तूने सही कहा.. चम्पा, तूने तो साड़ी पहन रखी है ना खाली पैंटी निकाल दे और आ जा मजा लेने। तीनों एक-दूसरे की चूत में उंगली कर रहे थे।

सासूमाँ- हाँ हाँ तो बेटी अब तूने कैसे चुदवाया अपने भाई के साथ वो भी तो बता?

दीदी- उधर मैं बिन चुदाई के तड़प रही थी। यहां तो आपके बेटे मुझे दिन में तीन चार बार चोदते थे। अब एक चुदाई भी नसीब नहीं हो रही थी। मैंने अपने पति को फोन पे मेरे पास आने के लिए बोला तो उन्होंने काम का बहाना बताया। वो तो मुझे बाद में मालूम पड़ा की झरना दीदी आ रखी हैं।

सासूमाँ- हाँ... और वो दिन रात झरना की चूत में लण्ड डाले फिर रहा था।

दीदी- तो सौ बात की एक बात मम्मीजी... मैं लण्ड खाने को तड़प रही थी और इधर आपके बेटे को अपनी बहन की चूत रोज चोदने को मिल रही थी।

सासूमाँ- तो तुम क्यों तड़प रही थी बेटी। वहां तेरे पास तेरा भाई था, उसका मस्त लण्ड था। चुदाई भी कितनी मस्त करता है। क्यों चम्पा?

चम्पा- “हाँ हाँ भाभीजी... एकदम मस्त चुदाई करते हैं दमऊ भैया...”

दीदी- तू भी चुदवा ली, दमऊ भैया से?

चम्पा- हाँ... एक दिन मैंने उन्हें झरना दीदी को चोदते हुए देख लिया। और उन्होंने मुझे उन्हें देखते हुए देख लिया। तो फिर ये राज फिर उस दिन से हमारे तीनों के बीच में ही रहा और... इनाम में मुझे दमऊ भैया के लण्ड का रस मिलने लगा।

दीदी- “वाह री चम्पा रानी...”
 
चम्पा- हाँ... तो एक दिन, दिन में मैं दमऊ भाई के कमरे में कुछ करने जा रही थी तो देखा की कमरे का दरवाजा बंद है और अंदर से फुसफुसाहट की आवाजें आ रही थी। अंदर मैंने देखा की.... ...”

सासूमाँ- अंदर तूने देखा की तुम्हारी माँ बिस्तर पे नंगी टाँगें फैलाए लेटी है और तेरे दमऊ भैया दनादन अपना लण्ड उनकी झांटों भरी बुर में पेले जा रहे हैं... पेले जा रह हैं...”

दीदी- “अरे नहीं अम्मा... मेरी अम्मा नहीं चुदवा रही थी... बल्कि मैंने देखा की......"

सासूमाँ- “तूने देखा की पड़ोसवाली आंटी की बुर में तेरे भैया लण्ड पेल रहे है... या फिर आंटी तेरे भैया का लण्ड चूस रही है... या फिर तेरे दमऊ भैया आंटी की बुर चाट रहे हैं... अरे बोल ना बेटी? और अपनी उंगली मेरी बुर में चलाती रह..."

दीदी- अरे अम्मा... आप बात के बीच में ही अपनी बुर की झांट टिका देती हैं।

सासूमाँ- हीहीही... अरे बहूरानी, देख ले मेरी बुर एकदम सफाचट है, और इस बुर का दीवाना तेरा वो दमऊ भैया भी है। साला मस्ता चूसता है।

चम्पा- हाँ भाभी, मस्त चाटता है।

दीदी- जानती हूँ मैं कि मेरा भाई बुर चटाई का मास्टर है मास्टर। सारे मुहल्ले की क्या अंटी... क्या लड़कियां... क्या भाभियां, नंबर से हमारे घर में आती हैं, बुर चटवाने को।

सासूमाँ- “अच्छा... दमऊ ने तो कभी ये नहीं कहा...”

दीदी- वो क्या बताएगा की बुर चुसाई के पैसे के दम पर वो ऐश कर रहा है।

सासूमाँ- क्या बुर चुसाई का पैसा भी लेता है, दमऊ? हमसे तो कभी नहीं लिया आज तक उसने।

दीदी- अरे आपसे पैसे कैसे ले सकता है सासूमाँ? आप तो घरवाले हो गये।

सासूमाँ- हाँ.. तो तूने अंदर क्या देखा?

दीदी- “हाँ... तो मैंने जब अंदर देखा तो क्या देखा? मेरे पाँव के नीचे से धरती जैसे हिलने लगी। मेरे पाँव काँपने लगे। मैंने फिर से हिम्मत की और देखा तो अंदर दमऊ भैया और रामू भैया दोनों.......”

सासूमाँ- क्या वो दोनों एक-दूसरे की गाण्ड मार रहे थे?

दीदी- छीः मम्मीजी, आप भी ना... सबको अपने बेट जैसा गान्डू समझा रखा है क्या?

सासूमाँ- अरे बेटी मैं तो तेरी कहानी के बीच में तड़का लगा रही हैं, क्यों मजा नहीं आ रहा है क्या बेटी?
दीदी- मजा आ रहा है मम्मीजी... इसीलिए तो मैं भी मजे ले-लेकर आपको कहानी सुना रही हूँ।

सासूमाँ- तो बता ना मेरी बहूरानी कि अंदर रामू और दमऊ दोनों क्या रहे थे? तुमरी अम्मा चोद को रहे थे या तुमरी छोटी बहना की बुर में लण्ड पेल रहे थे?

दीदी- छी... छी... छी... क्या बात कर रहे हो सासूमाँ? सबको अपने जैसे ही चुदक्कड़ समझ लिया है क्या आपने? मेरी अम्मा एकदम धार्मिक प्रवृत्ति की महिला हैं।

सासूमाँ- धार्मिक प्रवृत्ति की महिला हैं। तो क्या तुमरे अब्बू के लण्ड की पहले पूजाकरती हैं, फिर अपनी बुर में पेलवाती हैं। सोरी... सारी... पहले आपके बाबूजी के लिंग को पावन जल से स्नान करवाती हैं। चावल चंदन फूल से पूजाकरती हैं। फिर अपने योनीद्वार में प्रवेश करवाती हैं। और अंत में लण्डनाथ की आरती के साथ संभोग क्रिया समाप्त करवाती हैं। और अंत में वीर्य से निकले महाप्रसाद का सेवन करती हैं।

दीदी- “वाह... वाह... मम्मीजी, क्या बात कही आपने? तालियां...”

सब मिलकर ताली बजाती हैं।

दीदी- हाँ... खैर मेरी मम्मी ऐसे तो नहीं करती। पर वो सिर्फ और सिर्फ मेरे बाबूजी के लण्ड से ही चुदवाती हैं। और... मेरी छोटी बहन कालेज में पढ़ती है, डाक्टर बनेगी। ये साल उसका आखिरी साल है।

सासूमाँ- तो अंदर दमऊ और रामू क्या कर रहे थे? मेरी अम्मा।

दीदी- अरे अम्माजी... आप मुझे मेरी अम्मा कहती है ना तो मुझे बहुत मजा आता है। हाँ तो अंदर रामू भैया और दमऊ भैया एक किताब देख रहे थे और अपने-अपने लण्ड के ऊपर अपना-अपना हाथ चला रहे थे।


सासूमाँ- लो, कर लो बात... खोदा पहाड़ और निकली चुहिया। कहाँ तो हम उनके लण्ड से तुमरी अम्मा... सारे पड़ोस की आंटियों को चुदवा रहे थे, और कहाँ तुम उनके मूठ मारने की दास्तान सुनाने लगी।

दीदी- अरे सासूमाँ... ये उनके मूठ मारने की दास्तान नहीं, बल्कि मेरे हैरान होने की दास्तान है। वैसे तो मैंने दमऊ भैया के लण्ड को पहले भी बहुत बार देख रखा है, मूठ मरते हुए। पर रामू भैया का लण्ड? है मम्मीजी... मैंने पहली बार इतना बड़ा लण्ड देखा था, सावन का महीना, इतना बड़ा लण्ड... सच कहती हूँ मम्मीजी मेरी तो चूत ने तुरंत पानी ही छोड़ दिया।

सासूमाँ- अच्छा तो तूने क्या किया? तुरंत कमरे में प्रवेश किया और रामू को पलंग के ऊपर पटकते हुए उसके लण्ड के ऊपर सवार हो गई और दमऊ के लण्ड को मुँह में लेकर चूसने लगी।

दीदी- नहीं अम्माजी... पर आप रुक क्यों जाती हैं? देखिए ना... उस दिन की घटना याद आते ही मेरी चूत पानी छोड़ने लगती है। आप उंगली घुसा के आगे-पीछे करते रहिए। मैं चम्पा की बुर में उंगली कर रही हूँ और चम्पा रानी आपके बुर में अपनी उंगली चला रही हैं। इसमें भी कुछ अलग मजा आ रहा है। है ना मम्मीजी?

सासूमाँ- हाँ... बेटी हाँ... इसमें भी मजा आ रहा है। फिर आगे क्या हुआ सो बता?

दीदी- तो मैं जब रामू भैया का बीकराल लण्ड को देखी तो मेरी तो आँखें फटी की फटी ही रह गई। और मैं उसे एकटक देखने लगी। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की लण्ड इतना बड़ा भी हो सकता है?
 
सासूमाँ- हाँ... साले, रामू का लण्ड है भी इतना मस्ताना की नजर एक बार टिकी तो फिर नजर हटाने को दिल नहीं चाहता।

दीदी- हाँ सासूमाँ.. मैं देख रही थी कि दोनों किताब को देखकर दोनों ही मूठ मार रहे थे की इतने में दमऊ भैया ने कहा- “अबे साला... मेरा तो पानी निकला...” और उनके लण्ड ने पिचकारी छोड़ना चालू कर दिया, एक... दो... तीन ना जाने कितनी बार उनके लण्ड ने फर्श पर पिचकारी छोड़ी कि गिनती ही नहीं थी।

दमऊ बोल रहा था- “आज फिर तू जीता और मैं हारा। देख अभी तक तेरा नहीं निकला है...”

रामू भाई कह रहे थे- दमऊ, मैंने तुझसे कितनी बार कहा है की मूठ मारने का प्रतियोगिता मेरे साथ मत करना पर तु है की मानता ही नहीं।

दमऊ बोल रहा था- अरे रामू, मैं जानता हूँ कि तू हमेशा ही जीतता आ रहा है और आगे भी जीतेगा। पर इसमें मजा कितना आता है वो सोच ना मेरे दोस्त। खैर, अभी अपना पानी निकाल। ऐसा करना कि आज रात तू भी यहीं सो जा। देख आज बाबूजी नहीं हैं। शहर जा रखे हैं। तो ऐसा करना तू भी यहीं पे सो जा।

रामू- ठीक है यार, देखते हैं।

रात हुई तो मैंने दोनों की मनपसंद का खाना बनाया। दोनों उंगलियां चाटते हुए मेरी तारीफ करने लगे और मैं मुश्कुराते हुए कनखियों से रामू भैया के पैंट की तरफ देख रही थी की काश... पैंट की जिप खुली हुई हो। और मुझे उनके मस्ताने लण्ड के दर्शन हो जायें। मुझे ऐसा लग रहा था की अभी के अभी रामू भैया को नीचे पटक के उनकी पैंट को फाड़ दें और उनके लण्ड लण्ड को चूस-चूसकर गील कर दें। फिर उनके ऊपर सवार होकर उनके लण्ड को मेरी प्यारी सी फुद्दी में घुसेड़कर ऊपर-नीचे हो जाऊँ। और तब तक ऐसा करते रहूं, जब तक कि मेरा सारा पानी निकल नहीं जाए। मैं बार-बार साड़ी के ऊपर से अपनी चूत खुजला रही थी। एक दो बार तो रामू भैया की नजर पड़ी। वो मुझे देखकर मुश्कुरा दिए और मैं उन्हें देखकर।

खाना खाने के बाद में दोनों टीवी देखने लगे और मैं बर्तन साफ करने के बाद बाथरूम में नहाने चली गई। मैंने रगड़-रगड़कर अपने बदन को धोया।

सासूमाँ- क्यों तकलीफ की बेटी? रामू को तेरा बदन फिर से गंदा करना था। फिर एक साथ ही धो लेती।

दीदी- “हीहीही... सासूमाँ, आप भी ना...”

सासूमाँ- अच्छा बेटी, तेरे मन में था तो रामू को वहीं पे पटक के सवार क्यों नहीं हो गई बेटा?
दीदी- क्या करती अम्मा? मेरा सगा भाई दमऊ भी तो वहीं था ना।

सासूमॉ- अरे उसका लण्ड चूसने लग जाती। जब रामू का काम हो जाता तो उसका घुसेड़ लेती।

दीदी- अरी अम्मा... उस समय तक मैं आपके जितनी महा-चुदक्कड़ नहीं बनी थी ना। आज का समय होता तो जरूर से कर लेती। हाँ... तो मैंने नहाने के बाद सिर्फ नाइटी पहन ली। और नीचे मैंने ब्रा और पैंटी भी नहीं पहनी।

सासूमाँ- फिर तो बेटी, दमऊ और रामू दोनों ने बाहर निकलते ही तुझे पटक के तेरी फुद्दी में लण्ड घुसेड़ दिया होगा।

दीदी- काश की सासूमाँ... ऐसा हुआ होता? अरी अम्मा, मुझे चुदवाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े थे। मैं दोनों के पास बैठ के टीवी देखने लगी। जब रात के ग्यारह बज गये तो मैंने कहा...”

सासूमाँ- तूने कहा होगा कि साले, गान्डुओं... तुम्हारे सामने मैं अधनंगी होकर बैठी हूँ। साले लण्ड पकड़कर खाली मूठ मरते हो। अपनी बहन की कामायनी शांत नहीं कर सकते। डूब मरो चम्मच भर पानी में।

दीदी- काश की अम्मा मैं आपके जैसे बोल्ड हो पाती उस समय?

सासूमाँ- तो फिर तूने क्या कहा?

दीदी- मैंने कहा कि रात काफी हो गई है। चलो चलके सोते हैं।

रामू- ठीक है दीदी, गुड नाइट।

दमऊ- चल यार गेस्टरूम में थोड़ा और गपशप करते हैं। फिर तू अपने रूम में और मैं अपने रूम में।

मैंने सोचा- कम्बख़्त अभी भी नहीं सो रहा है।

सासूमाँ- फिर तूने क्या किया बेटी? किचेन से बैगन लाकर घुसेड़ लिया होगा अपनी बुर में?

दीदी- नहीं अम्मा... मैं चुपचाप आकर अपने पलंग में लेट गई, और... फिर एक घंटे बाद एकाएक कमरे की लाइट बुझ गई। मैंने सोचा- ये क्या हुआ? फिर सोचा “मेरी किश्मत खुल गई है... आज मेरी किश्मत से ही लाइट गई। है.. अमृता इस मौके को हाथ से ना जाने दे... जाकर रामू के लण्ड को चूत में जकड़ ले। आज अगर उनसे नहीं चुदवाएगी तो फिर कभी उनका लण्ड देख नहीं पाएगी...” फिर मैं अंधेरे में सरकते हुए गेस्टरूम की तरफ बढ़ी।

पलंग के ऊपर एक साया नजर आया। और मैं कमरे के अंदर दाखिल हुई।

सासूमाँ- फिर क्या हुआ बेटी? ये भी तो बता? सासूमाँ ने उसकी बुर में उंगली पेलते हुए कहा।

दीदी- हाँ हाँ... बताती हैं, बताती हैं। आप अपनी उंगली चलाना बंद मत करिए।

चम्पा- भाभी, आप भी तो उंगली आगे-पीछे करिए ना। मजा आ रहा है। उंगली पेलवाती हुए ऐसी रसीली कहानी सुनना।

दीदी- हाँ... तो मेरी प्यारी सासूमाँ.. मैंने अंधेरे कमरे में कदम रखा और पलंग की ओर बढ़ने लगी। मेरे पाँव काँप रहे थे। मैं धीरे-धीरे पलंग की ओर बढ़ी।

सासूमाँ- अरी.. तो कमरे में पलंग क्या दो किलोमीटर तक अंदर में था। जो चले जा रही है.. चले जा रही है, पलंग तक तो पहुँच। मैं तेरी जगह होती तो अभी तक चुदवाकर अपने कमरे में टाँगें फैलाकर किसी दूसरे के लण्ड को अपनी फुद्दी में घुसवा करके दूसरा राउंड शुरू कर चुकी होती।

दीदी- हाँ... तो सासूमाँ, आप अपनी उंगली चलाती रहिए और कान खोल के सुनिए आगे क्या हुआ?

सासूमाँ- अरे बहूरानी, कान तो क्या मैं अपनी दोनों टाँगें फैलाये अपनी फुद्दी को भी खोल के रखी हूँ जहाँ चम्पारानी अपनी उंगली की जगह अब अपनी जीभ चला रही हैं। साबाश चम्पा, बहुत ही कम दिनों में तूने अच्छी तरक्की कर ली है। आगे बढ़िया नाम कमाएगी।

चम्पा- सब आपके चूतरस का आशीर्वाद है अम्मा जी।
 
सासूमाँ- हाँ ऐसे ही लगी रह... और बेटी तू अपना मुँह चालू रख, और सुना की कैसे तूने अंधेरे का फायदा उठाते हुए अपने रामू बेटे से चुदवाया।

दीदी- हाँ... तो मैंने जैसे ही पायजामे का नाड़ा खोला। रामू भाई का लण्ड फड़फड़ा करके बाहर आ गया। मैंने तुरंत ही उसे अपने मुँह में ले लिया, और चपर-चपर चूसने लगी। हाय... क्या बताऊँ सासूमाँ... ऐसा मजा मुझे कभी ना मिला था।

सासूमाँ- हाँ... पहली बार जो रामू बेटे का लण्ड अपने मुँह में ले रही थी।

दीदी- हाँ अम्माजी, मुझे जो मजा मिल रहा था। पर रामू भाई को भी मजा मिल रहा था। पर एकाएक वो उठ बैठा।

रामू- कौन है? कौन है जो मेरा लण्ड चूस रहा है?

दीदी- मैं पूरी तरह डर गई। हे राम... अब क्या होगा? मैंने उससे कहा- श... श... रामू भैया चुप... एकदम चुप... ये मैं हूँ अमृता।

रामू- अरे अमृता दीदी, आप... पर ये आप क्या कर रही हैं?

दीदी- रामू भाई प्लीज... भगवान के लिए चुप रहिए और धीरे-धीरे बोलिये। बगल के कमरे में दमऊ भैया सो रहे हैं। अगर वो आ गये तो मैं जीते जी मर ही जाऊँगी, मारे शर्म के।

रामू- और अभी जो आप कर रही हैं वो?

दीदी- भैया, दोपहर को जब से आपका लण्ड देखा है... क्या बताऊँ? मैंने अभी तक बड़ी कुश्किल से सहन किया है। अब और सहन नहीं हो रहा है। भैया प्लीज... वैसे भी देखो ना भैया कि सावन का महीना है। शादी के सिर्फ दो महीने हुए हैं। तेरे जीजाजी ने दिन-रात, सुबह-शाम चोद-चोदकर मेरी फुद्दी को लण्ड का ऐसा चस्का लगाया है की बिना चुदाई के नींद ही नहीं आती।

रामू- “पर मैं? नहीं...”

दीदी- बस अब कोई बात नहीं भैया। मैं जानती हूँ कि आप भी मुझे अपने सगी बहन जैसा प्यार करते हैं। पर आज भैया प्लीज...”

सासूमाँ- फिर तूने क्या कहा बेटी?

दीदी- बता रही हूँ अम्माजी... इतनी बेताब क्यों हो रही हैं आप? चम्पा, तू उंगली चलाती रह। हाँ... तो अम्माजी सुनिए कमरे के अंदर की कहानी।
मैं रामू भैया के लण्ड को चूस रही थी।


रामू- पर दीदी, ये ठीक नहीं है। घर में और एक दोस्त है।

दीदी- “ओहह... रामू भैया, अब चुप हो जाओ, उसे पता भी नहीं चलेगा और हम दोनों का काम भी हो जाएगा। जब से आपका विशाल लण्ड देखा है तब से बुर में खुजली हो रही है। भैया, दिन में बाथरूम जाकर तीन बार उंगली कर चुकी हैं फिर भी खुजली मिटने की जगह बढ़ती ही जा रही है, इस खुजली को आपका लण्ड ही मिटा सकता है भैया...”
रामू- पर दीदी, आपने कब मेरा लण्ड देखा?
दीदी- दोपहर को... आप और दमऊ भैया, किताब पढ़करके मूठ मार रहे थे ना... उस समय मैंने देखा था। आप बात कम कीजिए रामू भैया। दमऊ भैया की नींद एकदम कच्ची है। कहीं वो उठ गये तो लेने के देने पड़ जाएंगे। आपका क्या होगा पता नहीं? पर मैं शर्म से मर जाऊँगी।
रामू- अच्छा दीदी, एक बात बताइये? आपने मेरा... मतलब दमऊ का लण्ड भी देखा होगा?
दीदी- हाँ... पर क्यों? मुझे तो आपके लण्ड से ही चुदवाना है। वो तो मेरा सगा भाई है। उससे कैसे?
रामू- मैं भी तो आपका सगा भाई हूँ?
दीदी- आप कैसे? वैसे तो आप मेरे लिए दमऊ भैया से बढ़के हो। पर सगे तो नहीं हो ना। और आप ये सब बात करके मुझे शर्मिंदगी दे रहे हैं भैया। इसकी जगह आप अगर मेरी चूचियां दबाते तो मुझे अच्छा लगता।
रामू- पर दीदी... मैं आपको कैसे चोद सकता हूँ?
दीदी- “कैसे चोद सकता हूँ? दोस्त की बहन ही तो हूँ। लोग अपनी सगी बहन को चोद देते हैं और मैं अपने भाई के दोस्त से भी नहीं चुदवा सकती? चलिए मेरी चूचियां दबाइए.. हाँ साबाश... ऐसे ही हाँ..."
रामू- मेरे लण्ड से कुछ निकलने वाला है दीदी। अपना मुँह हटा लो।
दीदी- नहीं, मेरे मुँह में ही छोड़ दे। और सासूमाँ.. मैंने लण्ड चूसना जारी रखा, और थोड़ी ही देर में रामू भैया ने मेरे मुँह में पहली पिचकारी छोड़ी, फिर दूसरी, फिर तीसरी... लेकिन मैं भी पूरी लण्डखोर थी। मैंने एक बूंद भी जाया नहीं किया।
रामू- हाँ हाँ... दीदी चूस लो मेरे लण्ड... चूस लो... आखिरी बूंद तक पी लो... निचोड़ लो सारा का सारा रस... हाँ आप बहुत ही अच्छी तरह से चूस रही हो मेरा लण्ड... मजा आ गया आज तो... इतना मजा तो मूठ मारने में कभी नहीं आया।
दीदी- पगले, ये मजा तो कुछ भी नहीं है। आगे-आगे देख होता है क्या? चल मेरी जांघों के बीच मुंडी घुसा लो और मेरी चूत चाटना शुरू कर लो भैया।
रामू- अच्छा... बुर चाटने में भी मजा आता है क्या दीदी?
दीदी- जैसे तुझे पता ही नहीं है? कीताब पढ़कर मूठ तो अच्छी मार लेता है।
रामू- “वो तो दीदी...” तभी रामू ने जीभ लगाकर जो मेरी फुद्दी को चाटना शुरू किया तो मैं जल बिन मछली की तरह तड़फने लगी।
दीदी- हे... है भैया... बड़ी अच्छे तरह से चूस रहे हो मेरी फुद्दी को। तुम तो अपने जीजाजी से भी बेहतर चूस रहे हो। बस तेरा लण्ड दिखा, अब तड़फ सहन नहीं हो रही है। आ तेरा लण्ड चूसकरके खड़ा कर देती हूँ, ताकी तुमको स्वर्गीय आनंद दिला सकें।
रामू- और आपको भी तो मजा आएगा... है ना दीदी?
 
दीदी- अरे भैया, यह चुदाई ही एक ऐसा खेल है। जिसमें पार्टनर को जितना आनंद दोगे आपको उससे दोगुना ज्यादा आनंद मिलता है। आपका लण्ड तो पूरी तरह से तैयार है भैया। जल्दी से मेरे बीच में आ जाइये। कहीं दमऊ भैया उठ ना जाएं और यहाँ ना आ जायें।
रामू- उसकी चिंता मत करो दीदी। वो यहाँ पे नहीं आएगा। और आ भी गया तो कुछ भी नहीं कहेगा।
दीदी- सच भैया, पर कैसे?
रामू- “मुझे उसका एक गहरा राज मालूम है...” कहकर रामू भैया ने अपने लण्ड का सुपाड़ा मेरी फुद्दी में घुसाया तो मेरे मुँह से एक आहह... सी निकली। रामू ने कहा- “क्यों दीदी, तकलीफ हो रही है?”
दीदी- नहीं भैया, वो आपका लण्ड आपके जीजाजी से बड़ा है ना... कुछ तकलीफ तो होगी पर मजा भी तो उतना ही आएगा। वैसे भी लण्ड लिए 25 दिन हो गये। आज तो मजा ही आएगा। पर आपको दमऊ भैया का कौन सा राज पता है की वो अगर हम दोनों को कहीं पकड़ भी लिया इस तरह चुदवाते हुए तो भी कुछ नहीं कहेगा। बोलिए ना भैया।
रामू- पर आपको क्यों जानना है दीदी?
दीदी- इतना तो मैं समझती हूँ भैया की वो राज लण्ड चूत से संबधित ही है। क्यों मैंने सही कहा है ना?
रामू- हाँ दीदी.. पर कहीं आप उससे नाराज ना हो जाएं?
दीदी- अरे बाबा नाराज नहीं होऊँगी उससे। मैं भी तो इधर आपसे चुदा रही हूँ।
रामू- वो तो है... पर वो एकदम गहरे रिश्ते में चुदाई कर बैठा है।
दीदी- गहरे रिश्ते में? हे भगवान्... कहीं उसने मम्मीजी को तो नहीं चोद दिया है? अगर ये बात सही है तो मैं उससे माफ नहीं करूंगी हाँ.. आप बताओ।
रामू- देखिए आप नाराज हो रही हैं। इसीलिए तो नहीं बता रहा था। अभी थोड़ी देर पहले आप ही तो कह रही थी की जमाना कहाँ से कहाँ आगे निकल गया। और मैं अपने दोस्त की बहन को चोद नहीं पा रहा हूँ। अभी आप दमऊ पर नाराज हो रही हैं।
दीदी- “अच्छा... अच्छा... चल ठीक है नाराज नहीं होऊँगी। भले ही उसने मेरी और उसकी मम्मी को ही चोद दिया हो। अब तो ठीक है ना...”
रामू उसकी बुर में धक्के पे धक्का लगाते जाता था... इधर दीदी भी नीचे से चूतड़ उछालती हुई लण्ड अपनी बुर में पेलवा रही थी।
दीदी- हाँ... बताओ ना रामू भैया... दमऊ भैया का राज?
रामू- कहीं आप उसे ब्लैकमेल करके चुदवाने लगी तो फिर मेरा क्या होगा?
दीदी- आप भी ना... रामू भैया छीः छीः छीः कैसी गंदी बात करते हैं? भला मैं उससे कैसे चुदवाऊँगी? वो मेरा सगा भाई है।
रामू और आप मुझसे तो चुदवा ही रही हैं।
दीदी- पर आप मेरे भैया के दोस्त हैं। मैं आपसे तो चुदवा ही सकती हैं। पर दमऊ भैया से नहीं।
रामू- हाँ... पर सच बताओ कि आपने दमऊ का लण्ड भी तो देखा था ना? कैसा लगा, आपको उसका लण्ड?
दीदी- सुंदर था उसका लण्ड भी। आपके जैसे ही।
रामू- तो आपका एक बार भी मन नहीं किया उससे चुदवाने को।
दीदी- वो... वो सब छोड़िए भैया। और चोदए ना... धक्का लगाइए ना... खूब मजा आ रहा है। मैं तो सोच रही थी की आपके विशाल लण्ड से चुदवाने में मुझे नानी याद आएगी पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। मुझे मजा बहुत आ रहा है और आपको?
रामू- मुझे भी खूब मजा आ रहा है। आपको दमऊ से चुदवाने में भी उतना ही मजा आएगा। प्लीज दीदी उससे भी एक बार चुदवा लो ना।
दीदी- बेशर्म... भाई, पहले आप तो चोदो। फिर उसे देखेंगे।
रामू- बैंक यू दीदी की आपने हाँ कर दी।
दीदी- हाँ... पर मैं उससे अंधेरे में ही चुदवाऊँगी जैसे अभी आपसे चुदवा रही हूँ। उजाले में तो मैं शर्म के मारे धरती में समा जाऊँगी।
रामू- ठीक है दीदी, अपनी चुदाई खतम होते ही मैं उसे अभी कमरे में भेज दूंगा।
दीदी- अभी... पागल हो गये हो क्या?
रामू- कुछ नहीं होगा दीदी। आपको डबल मजा आयेगा।
दीदी- पर डबल मजा के चक्कर में अपने ही भाई से? नहीं नहीं भैया, मुझे शर्म आ रही है।
रामू- कुछ नहीं होगा। अभी आपको मजा आ रहा है की नहीं?
दीदी नीचे से चूतड़ उछालते हुए- “आपके साथ बहुत अच्छा लग रहा है, रामू भाई। हाँ आप दमऊ भाई का बता रहे थे, राज खाल दो।
रामू- पहले कसम खाओ, दीदी की आप सुनने के बाद उसे माफ कर दोगे।
दीदी- आपने जो चुदाई का मजा दिया है भैया। चलो, मैंने पहले ही उसे माफ कर दिया। अगर उसने अपनी सगी अम्मा को भी चोदा होगा तो भी उसे माफ... चलो अब बोलो।
रामू और एक शर्त? आप उससे चुदवाओगी?
दीदी- पर आप उसे कैसे समझाओगे?
रामू- कुछ नहीं... मैं उसे उठाऊँगा, और बोलूंगा कि गेस्टरूम में एक शानदार माल ले आया हूँ। बत्ती बिना जलाए चोदने के शर्त पर चोदना है। वैसे भी बत्ती नहीं है, क्या बोलती हैं आप?
दीदी- हाँ हाँ भैया, मैं इस शर्त पर तैयार हूँ। मैं दमऊ भैया से चुदवा भी नँगी और उसे मालूम भी नहीं पड़ेगा। ये आइडिया बहुत ही ठीक है।
रामू- तो तय रहा। अपनी चुदाई के बाद आप दमऊ से भी चुदवाओगी।
दीदी- अच्छा चल वादा रहा। पर उसका राज तो बता दो?
रामू- एक तो उसने अपनी बुआ की लड़की को चोदा है और दूसरी सगी बुआ को। याने की कजरी दीदी और मंजरी बुआ।
दीदी- क्या? क्या कहा आपने? कजरी दीदी और माजरी बुआ? हे राम... ये दमऊ तो बड़ा ही कमीना निकला।
रामू- मेरा निकल रहा है दीदी, कहाँ निकालूं?
दीदी- “मेरी फुद्दी में ही छोड़ दो भैया। वैसे भी दमऊ आ रहा है ना चोदने को। चूत गीली रहेगी तो तकलीफ नहीं होगी। और ले मेरा भी निकला रे... धक्का बंद मत करो भैया... धक्का तेज करो। हाँ हाँ मेरा निकला रे... निकला..."
रामू- धीरे-धीरे दीदी... अपने ही तो कहा था कि बगल के कमरे में दमऊ सो रखा है। उठ गया तो?
दीदी- उठने दो उसे, मैं क्या डर रही हूँ? आने से ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? मेरी फुद्दी में लण्ड ही तो डालेगा। ना। वैसे भी मैं चुदवाने के लिए तो तैयार ही हूँ।
सासूमाँ- अच्छा बेटी, तूने तो कहा था की पहली बार बस में ही रामू भैया से चुदवा ली। तो ये कहानी क्या तेरा सपना था बेटे?
दीदी- आप उंगली करते रहिए अम्माजी। आम खाओ, गुठली क्यों गिन रही हो? कहानी आगे बढ़ने दो। राज एक-एक करके सामने आएगा। हाँ तो हम दोनों पशीने से लथपथ हो गये। और एक-दूसरे से लिपट गये। थोड़ी देर में रामू भैया उठे। और...
रामू- तो दीदी, मैं जाता हूँ और दमऊ को भेज रहा हूँ।
दीदी- हाँ हाँ... जाओ, पर उसे अकेले ही भेजना। आप उसके रूम में सो जाना।
रामू- “मैं समझता हूँ दीदी। आपको शर्म आएगी। वैसे भी मैं यह देख नहीं सकता था। ठीक है, मैं उसे समझाकर
आपके पास भेज रहा हूँ। और आप ऐसे ही नंगे रहना। उसे भी नंगा ही भेजूंगा.” रामू भैया कमरे से बाहर निकले, बिना अपना कपड़ा पहने। मुझे ये खयाल बाद में आया।
सासूमाँ चम्पा की चूत में उंगली चलते हुए बोली- “फिर क्या हुआ बेटी?”
 
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