non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन - Page 13 - SexBaba
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non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन

सहेली- अच्छा... तूने तो खूब मजे लूटे यार जीजाजी से।
कमलावती- अब असल वाकया सुन।
सहेली- सुना दे... उसको भी क्यों बाकी रखती है... सुना दे कि रात में कैसे चुदवाई?
कमलावती- दिन में हुई चुदाई से मैं कुछ पाँव को फैलाकर चल रही थी।
जब मेरी सास आई तो उनहोंने हँस के पूछा- बेटी क्या अभी कामरू आया था?
मैंने चौंक के उनको पूछा- हाँ सासूमाँ... पर आपको कैसे मालूम?
मेरी सास ने हँसकर बोला- “टाँगें फैलाकर चल रही है ना इसीलिए मैंने जाना... अपनी जवानी में तेरे ससुरजी से मिलने के बाद सुबह-सुबह मैं भी ऐसे ही चलती थी... पर तू तो दिन में ही...”
तब मैंने शर्माके कहा- “मैं क्या करती अम्मा जी, उन्होंने तो आते ही आपके लिए पूछा और जब उन्हें ये पता चला की आप घर पे नहीं हो तो अपनी बाहों में भरके पलंग के ऊपर पटक दिया और मुझे अपनी बाहों से तभी आजाद किया जब अपनी पूरी मनमानी कर ली...”
सहेली- अच्छा... तब तेरी सास ने क्या कहा?
कमलावती- “और क्या कहती... बोली की बड़ा ही बांका जवान है मेर कामरू... बिल्कुल अपने बाप के जैसा ही है। उसका... मस्त कड़क...”
सहेली- अच्छा, फिर तुने पूछा नहीं की उसने कब देख लिया, अपने बेटे का मस्त कड़क लण्ड।
कमलावती- अरे मैं कैसे पूछती भला... पर उन्होंने खुद ही कह दिया की एक दिन वो पेशाब कर रहा था तब देखा था उन्होंने।
सहेली- अच्छा... अच्छा मैं सोची की कहीं।
कमलावती- तूने क्या सोचा?
सहेली- नहीं... तू नाराज हो जाएगी?
कमलावती- बता तो सही।
सहेली- मैंने सोचा की कहीं उसने अपने बेटे के मस्ताने तगड़े लण्ड को कहीं अपनी फुद्दी में घुसवाके महसूस ना किया हो।
कमलावती- छीः छिनाल कहीं की।
सहेली- अच्छा फिर क्या हुआ? ये भी तो बता।
कमलावती- अरे यार क्या बताऊँ... रात हुई तो उन्होंने फिर से अपनी बाहों में भर लिया। और मैंने भी सुबह के मजे को सोचकर फिर से अपनी टाँगें फैला दीं... अब मुझे क्या मालूम था की दिन में उनका पानी निकल चुका था... और रात को उन्होंने जो चुदाई की की क्या बताऊँ? मेरा तीन बार पानी निकल चुका था। और वो मेरी । फुद्दी में दनदन-दनादन अपने लौड़े को पेले जा रहे थे... पेले जा रहे थे। मैंने उन्हें रुकने को कहा पर उन्होंने नहीं माना और पेलते ही गए... पेलते ही गये। मैं रोने लगी। छटपटाने लगी। पर उन्हें कोई रहम नहीं आया। मेरा दर्द बढ़ने लगा।
मैं जब जोर-जोर रोने लगी और उनके नीचे से निकलने को सोचने लगी तो उन्होंने मुझे जोर से जकड़ लिया और अपने लण्ड को घुसाने लगे। उनके होंठ मेरे होंठों पे थे, तो मेरी चीख नहीं निकल पा रही थी। पर मेरी आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे। फिर दर्द मजे में बदला और मैंने उनकी पीठ पर हाथ फिराना चालू कर दिया। नीचे से चूतड़ को भी उछालने लगी और फिर मैं चौथी बार झड़ गई, और शांत हो गई। पर ये... ये बिना रुके मेरी फुद्दी में लण्ड पेलते रहे। अब मजा दर्द में तब्दील हो गया। मेरी चीखें फिर से निकल गई। और जब इनका पानी निकला तो जैसे कोई बाढ़ सी आ गई हो। और हम दोनों ही उसमें बहने लगे। एक-दूसरे की बाहों में बाहें डाले पड़े रहे।
दस मिनट के बाद ये उठे और मेरी तरफ देखा और चौंक गये। मैंने इनकी नजर का पीछा किया और नीचे अपनी फुद्दी की तरफ देखा तो उसमें से खून बह रहा था... ऐसी चुदाई कर दी थी की मेरी चूत फूलकर पावरोटी बन गई थी... मेरी फुद्दी का रंग एकदम लाल हो चुका था। दर्द के मारे छुआ भी नहीं जा रहा था। मैं उठ ही नहीं पा रही थी.. और फिर मैं बेहोश हो गई। और जब होश आया तब।
सहेली- क्या? ऐसे बेरहम हैं मेरे जीजाजी... उन्होंने तनिक भी रहम नहीं किया तुम पे। फिर क्या हुआ?
कमलावती- जब होश आया तो मेरी सास एक बर्तन में गरम पानी करके उसमें कपड़े भिगोकर मेरी फुद्दी को सेंक रही थी। मैंने शर्म से आँखें बंद कर ली और उठना चाहा।
तो मेरी सास ने कहा- अरे बहू लेटी रह... मेरे से क्या शर्म.. बेटी, लेटी रह। मैंने गरम पानी में हल्दी डाल के तेरी फुद्दी को सेंक दिया है। कल तक आराम आ जाएगा। कामरू को खूब डांटा है मैंने।
फिर मैंने कहा- अभी कुछ आराम मिला है।
तब उन्होंने मेरी साड़ी नीची करके अपने बेटे को आवाज लगाई और अपने सामने बैठकरके बड़े प्यार से समझाई की एक दिन में सिर्फ एक बार ही चोदना है.. और उन्होंने मन लिया।
पर मेरी सहेली आज तो इन्होंने दिन में मुझे पेल ही दिया है। उस बार तो मेरी सास ने गरम पानी का सेंक देकर मेरी फुद्दी को ठीक कर दिया... पर आज... हे भगवान्, मैं किस मुसीबत में फंस गई.. आज मेरा क्या होगा? मेरी फुद्दी का क्या होगा? मैं तो मर ही जाऊँगी। और मेरी फुद्दी फट के वो क्या बोलते हैं भोसड़ा बन जाएगी... हाँ नहीं तो।
सहेली- अरे कमलावती, तेरी सहेली के रहते तू क्यों चिंता करती है... मैं हूँ ना।
कमलावती- हाँ एक काम करते हैं... आज रात दोनों दोस्तों को साथ-साथ सोने देते हैं। और अपन दोनों सहेलियां एक साथ सो जाते हैं। भले ही रात को तुम मेरा चूस लेना और मैं तुम्हारा चूस लूंगी... प्लीज मेरी सहेली मुझे बचा ले।
सहेली- अरे... अभी से क्यों चिंता करती है... रात तो होने दे।
कमलावती- “फिर कहेगी कि अभी रात बाकी... अभी बात बाकी। फिर कहेगी पहले चुदवा ले, फिर देखते हैं। अरे एक बार ये शुरू हो गये ना फिर रुकने वाले नहीं हैं हाँ..."
सहेली- अरे, मैं कुछ करूंगी ना बाबा।
कमलावती- क्या करेगी बोल?
सहेली- होटेल का मैनेजर बोल रहा था की रात ठीक दस बजे यहाँ पावर कट होता है... रात ग्याराह बजे तक। तो मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है। अगर तुझे पसंद आए तो?
कमलावती- अरी बोल तो सही... पर मुझे इनसे बचा ले।
सहेली- देख, हम चारों खा पीकर ठीक नौ पचास पर ऊपर सीढ़ी चढ़ेंगे। दोनों को आगे-आगे चलने देंगे और हम पीछे-पीछे ठीक है?
कमलावती- फिर... फिर क्या होगा?
सहेली- वो दोनों अपने-अपने कमरे का दरवाजा खोल चुके होंगे। और जब हम सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुँचेंगे तभी ठीक दस बजेगा और अंधेरा हो जायगा। हाथ को हाथ सुझाई नहीं देगा।
कमलावती- तब क्या होगा?
सहेली- तब हम कमरे में प्रवेश करेंगे और दरवाजा बंद कर लेंगे और पलंग पे जाकर सो जाएंगे। बस खतम।
कमलावती- अरे मेरे सैया मुझे सोने देंगे तब ना... बिना चोदे उन्हें नींद नहीं आती और अगर चोदे तो जानती है। ना क्या होगा? दिन में अपना पानी निकाल चुके हैं... और सहेली, अगर मैं उनके पास सोई तो... मेरी खैर नहीं... मेरी फुद्दी की खैर नहीं।
 
सहेली- फिर तू ही बता की क्या करना है? मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है की क्या करें?
कमलावती- अरे, कैसे समझ में नहीं आ रहा है। एक कमरे में अपन दोनों सहेलियां सोएंगी और दूसरे में दोनों मर्द... बस फाइनल।
सहेली- क्या फाइनल? यहां हनीमून मानने आए हैं कोई भजन समारोह हो रहा है या की तीर्थ यात्रा पर आए हैं। जो मर्द औरत एक साथ नहीं सो सकते। अरे तुम्हें नहीं घुसवाना है लण्ड तो ठीक है... तुम्हारे पति को फुद्दी नहीं चाहिए वो भी ठीक है... तेरे खातिर मैं भी अपनी फुद्दी में अपने पति का नहीं घूसवाऊँगी वो भी ठीक है... वैसे मैं बिना चुदाई के रात को सो नहीं पाती हूँ वो भी ठीक है... चल तेरे लिए वो भी सह लँगी। पर इसमें मेरे पति का क्या दोष है? बता... उनको तो फुद्दी चाहिये ही चाहिए।
कमलावती- मैं वो सब नहीं जानती... मुझे बचा ले मेरी सहेली बचा ले... अगर मैं रात को अपने पति के पास सोई तो सच कहती हूँ कल का सूरज मैं देख नहीं पाऊँगी... फिर रोते रहना अपनी सहेली की फटी फटाई फुद्दी को देखकर।
सहेली- अरे ऐसी बात क्यों करती है। चल मैं सोचती हूँ।
कमलावती- कुछ सोचा?
सहेली- अरे बाबा, एक मिनट हुए नहीं की कुछ सोचा... कुछ सोचा... की रट लगाके बैठ गई।
कमलावती- मेरी जगह तू रहती ना तो जानती।
सहेली- तेरी जगह मैं रहती ना... तो चूतड़ उछाल-उछाल के चुदवाती रात दिन।
कमलावती- तो चुदवा ले ना इनके संग में आज रात।
सहेली- पागल हो गई है क्या? मैं? नहीं.. कहने की बात अलग है... तू तो जानती है कि अपन दोनों ने एक दूसरे की चूत भले ही चाटी हो पर शादी की रात तक दोनों ही कुँवारी थीं।
कमलावती- हाँ, पर सहेली ही तो सहेली के काम आती है। आज रात चुदवा ले ना मेरी बहन... भगवान तेरा भला
करेगा।
सहेली- अच्छा... मैं अगर जीजाजी से चुदवाऊँगी तो मेरे पति क्या मूठ मारेंगे? बोल... रात को तू कहाँ रहेगी? बोल, मेरे पति को मालूम पड़ा तो मुझे अपने दिल के साथ-साथ अपने घर से भी निकाल देंगे... और तेरे पति?
कमलावती- हे राम... रे... ये तो मैंने सोचा भी नहीं था। राम रे... अब क्या होगा? मेरी सहेली मुझे बचा ले।
सहेली- मुझे एक आइडिया आया है... अपन एक काम करते हैं कि तेरे पति के खाने में नींद की गोली मिला देंगे तो उन्हें रात को बड़ी अच्छी नींद आएगी और तू बच भी जाएगी।
कमलावती- पर नींद की गोली है कहाँ और कैसे मिलाएगी?
सहेली- वो सब तू मुझ पर छोड़ दे और चल मन प्रसन्न कर ले और शिमला का मजा ले।
कमला- कहीं ये मजा सजा में ना तब्दील हो जाए?
सहेली- अरे कुछ नहीं होगा। निश्चिंत रह।
कमलावती- “ठीक है फिर...”
सहेली- “चल चल... घूमते हैं...”
*****
*****
रात के ठीक नौ बजे... चारों ही होटेल के रिस्टोरेंट में बैठे थे। सहेली ने जब कमलावती को आँख मारी तो कमलावती उह्ह... आह... करी तो।
कामरू- क्या हुआ कमला?
भादरू- अरे भाभी क्या हुआ?
दोनों ही कमलावती की तरफ देखने लगे और इतने में ही सहेली ने पूड़िया निकालके कामरू की खीर की कटोरी में मिला दी।
कमलावती ने कहा- कुछ नहीं... कुछ चींटी काटने जैसे लगा।
कामरू- कहाँ पे चींटी ने काटा कमला?
कमलावती- है जी... जाँघ के ऊपर।
भादरू- “हाय रे... चींटी तेरी किश्मत। जहाँ तक हमें अभी तक दर्शन नहीं हुए हैं। साली के वहाँ पर तूने पप्पी दे डाली...”
और सभी हँसने लगे।
भादरू- तुम्हें पता है सहेली... मेरे दोस्त कामरू को बढ़िया जादू भी आता है। देखो सभी खीर की कटोरियों को एक जगह करो। मैं ये काजू एक कटोरी में डालता हूँ.. पहचानना की कौन सी कटोरी में काजू है?
खीर की चोरों कटोरियां टेबल के बीच में आ गई।
सहेली- “लाओ काजू मैं डालती हूँ..." और सहेली ने काजू उस कटोरी में डाली जिसमें उसने दवाई मिलाई थी। अब कामरू के हाथ का कमाल देखने लगे। कटोरियां इधर से उधर होने लगी और सहेली ये भूल गई की काजू वाली कटोरी कौन सी है।
कामरू- अब सब लोग के पास एक-एक कटोरी है। जिसके हिस्से में काजू आएगा वो जीता। उसको मेरे दोस्त भादरू की तरफ से एक पप्पी... इनाम।
कमलावती- अरे... ये आप क्या बक रहे हो? अगर काजू मेरे हिस्से में आया तो?
कामरू- तो क्या? तुम्हारे गोरे-गोरे गाल होंगे और मेरे दोस्त भादरू के होंठ होंगे... पप्पी तो लेना ही पड़ेगा।
कमलावती- हाय... मैं कैसे?
कामरू- अरे मैं कैसे क्या? अरे तुम अपनी दोनों आँखें बंद कर लेना। पप्पी तुमको थोड़े ही देना है। तुमको तो पप्पी लेनी है। पप्पी तो मेरे दोस्त भादरू को देनी है।
सब लोग हँसके खीर खाने लगे और काजू आ गया... हाँ... सब लोग चौंक गये। काजू आया सहेली के खीरे की कटोरी में। सहेली आधी खीर खा चुकी थी।
 
सहेली चौंकी- हे भगवान्... इसमें तो मैंने दवाई मिलाई थी। अब क्या होगा? अपना जूठन कामरू जीजाजी को तो दे नहीं सकती.. उसके शातिर दिमाग ने सोचा- है अब क्या होगा? दवाई देने तो आई थी कामरू जीजाजी को लेकिन खुद खा बैठी। अब मेरी सहेली का क्या होगा? बेचारी जीते जी मर जाएगी... उसकी चूत का कचूमर बन जाएगा। मुझे कुछ ना कुछ तो करना ही होगा। उसने सबकी नजर बचा करके अपना पर्स खोला और एक गोली अपनी सहेली कमलावती के पनीर की सब्जी की कटोरी में मिला दी। उसने जो दबाई मिलाई थी वो यौन उत्तेजना बढ़ाने वाली दवाई नहीं थी... नींद की गोली थी। उसने सोचा अब जो होगा देखा जाएगा।
कमलावती- मुझे पनीर की सब्जी अच्छी नहीं लगती है? ओ जी आप खलो ना।
कामरू- अरे ये तो मुझे भी अच्छी नहीं लगती है।
भादरू- “फिर.. कौन खाएगा? अरे साली जी खाके तो देखो? अच्छा, आधा मैं ले लेता हूँ। आधा तुम..” और पनीर की सब्जी दोनों ने आधा आधा खा लिया।
सहेली ने सोचा कि ये तो गड़बड़ हो गई। और उसने आनन फानन में एक नींद की गोली कामरू के खाने में। मिला दी। पर जब रैपर को देखा को तो वो सिर से पाँव तक हिल गई। हाय राम... हड़बड़ी में नींद की गोली की जगह यौन उत्तेजान बढ़ाने वाली दवाई ही खिला दी उसने कामरू जीजाजी को... हाय आज मेरी सहेली कमलावती की फुद्दी फट के ही रहेगी। इतने में ही उसकी खुद की फुद्दी खुजलाने लगी... क्या हो रहा है उसे? उसे कुछ शक हुआ तो उसने एकदम पहले वाले रैपर को देखा तो वो सिर से पाँव तक काँप गई। उसके खुद के खाने में भी नींद की गोली नहीं... यौन उत्तेजना बढ़ाने वाली दवाई ही थी। हे भगवान्... ये आज क्या हो गया? और न जाने आगे क्या होगा?
उसने हिसाब लगाया। कमलावती और उसके पति ने नींद की गोली खा ली हैं.. कामरू जीजाजी ने यौन उत्तेजना बढ़ाने वाली दवाई खाली है... उसकी अपनी चोदो... पर उसकी सहेली का क्या होगा? नींद में चीख भी नहीं पाएगी बेचारी... और नींद में विरोध ना होता देखकर कामरू जीजाजी दवाई के असार से दोगुने स्पीड से चोदेंगे... वैसे ही कामरू जीजाजी का जल्दी नहीं निकलता है। और ऊपर से उसने दवाई और मिला दी. अब क्या होगा? उसे अपनी सहेली को बचाना ही होगा। और उसने एक फैसला ले ही लिया।
उसने घड़ी की तरफ देखा तो नौ चालिस हुये थे। सहेली बोली- अरे भाई जल्दी-जल्दी खाओ। लाइट जाने में बीस मिनट बचे हैं।
और सब लोग ने खाना खतम किया। सहेली ने घड़ी देखा नौ पैंतालिस।
सहेली- ओ जी... ये लो चाभी, और चलो कमरे का दरवाजा खोलो। और जीजाजी आप भी।
कामरू- “हाँ हाँ मेरे पास ही है चाभी। मैं भी खोलकर तैयार रहता हूँ, आप दोनों सहेलियां आओ तो सही...” दोनों आगे-आगे और दोनों औरतें पीछे-पीछे।
कमलावती- यार सहेली... तूने काम तो कर दिया ना?
सहेली- हाँ, मैंने कर दिया है। तू घबरा मत।
कमलावती- “यार मुझे कुछ नींद-नींद सी लग रही है... पर मैं तो...”
सहेली- कुछ नहीं, थकावट के कारण। चल सीधी चलना जारी रख। उसने घड़ी में समय देखा तो नौ पचपन... दोनों सीढ़ी चढ़ने लगे और ऊपर पहुँच गये। उसने फिर से घड़ी देखी तो नौ उनसठ। सिर्फ एक मिनट बाकी है..
और इतने में ही कमलावती गिरने के जैसे हुई। उसने उसे बाहों में भरा और कमरे की ओर बढ़ने लगी। उसने । मन ही मन कुछ सोचा और कमलावती को अपने कमरे में ले गई। कमरे में पलंग के ऊपर भादरू कपड़े पहने ही सो चुका था। नींद की गोलियां असर दिखा चुकी थीं। उसने उसके बगल में सहेली को लिटाया और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। पर चाभी ले जाना भूली नहीं।
वो बाहर निकली और डरते-डरते अपनी सहेली कमलावती के कमरे में प्रवेश किया। वो भगवान से मना रही थी की कामरू जीजाजी सोए रहें तो सब ठीक हो जाए। इतने में ही लाइट चली गई... और उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया... और कमरे में प्रवेश किया। उसकी खुद की चूत चुनचुना रही थी। दवाई अपना असर दिखा रही थी।
उसने अपने मन को समझाया की सब ठीक हो जायेगा। उसने आमीर खान की तरह अपना एक हाथ सीने पे रखकर कहा- आल इज वेल... आल इज वेल... सब ठीक होगा... उसने कमरे का दरवाजा बंद किया। हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था। वो पलंग के ऊपर बैठी ही थी की उसने अपने आपको जीजाजी की बाहों में पाया। वो थोड़ा सा कसमासाई... पर उसने चुप रहना ही ठीक समझा।
कामरू ने सहेली को अपने गले से लगाया। और पप्पी देने लगा तो उसने अपना चेहरा हटा लिया। कामरू बोलाअरे रानी कमलावती, अपना चेहरा क्यों हटा रही हो? पप्पी तो देने दो?
सहेली- अजी मुझे नींद आ रही है।
कामरू- अरे कमलावती तेरी आवाज को क्या हुआ?
सहेली- वो थोड़ा गला बैठ गया है। अब हमें सोने दीजिए।
कामरू- ऐसे कैसे सोने दें? तू तो जानती ही है की मुझे तेरी फुद्दी में एक बार लण्ड डाले बिना नींद ही नहीं आती। महीने में वो तीन दिन बड़ी मुश्किल से गुजारता हूँ।
सहेली- तो अभी भी ये सोच लो की मेरा वो दिन चल रहा है। मेरी फुद्दी लाल पानी फेंक रही है। तुम्हारे मस्ताने लण्ड के लायक नहीं है... फुद्दी की पत्तियां कमजोर हैं।
कामरू- अरे वाह रानी... आज तो मस्त-मस्त बातें कर रही हो... मेरा तो लण्ड टनटना रहा है... अब तो ये बिना घुसे मानेगा ही नहीं।
 
सहेली हड़बड़ा गई। वो संभलकर बोली- “नहीं जी, ऐसी बात नहीं है। आज आपका कुछ ज्यादा ही मोटा और लंबा लग रहा है.”
कामरू- तो घबराती क्यों है? जरा पकड़ ना।
सहेली ने फिर से कामरू के लण्ड को पकड़ लिया। अब उसकी खुद की फुद्दी में चींटियां रेंगने लगी। उसकी भी खुद की इच्छा होने लगी। पर ये लण्ड... बाप रे... बेचारी कमलावती ठीक ही कहती थी... बहुत ही तगड़ा और मोटा लण्ड है ये तो... कमलावती धन्य हो तुम और धन्य है तुम्हारी फुद्दी जो इतने बिशाल लण्ड को भी निगल लेती है, तुम्हारी जगह मैं होती तो मेरी तो सचमुच में फट गई होती।
सहेली कामरू के लण्ड को सहला रही थी। और इधर कामरू सहेली की चूचियों को दबाने लगा तो सहेली बोलीक्या कर रहे जी? मेरी चूचियों को चोदो।
कामरू- अरे ऐसे कैसे बिदक रही है? जैसे मेरी बीवी ना होकर मेरी साली लगती हो। और अपने जीजा से पहली बार चूचियां दबवाते हुए नई घोड़ी की तरह बिदक रही हो। अरे तुम मेरे लण्ड को सहलाओ। मैं तुम्हारी इन चूचियों को दबाता हूँ। तो मेरा जल्दी निकल जाएगा... क्या बोलती है?
सहेली ने सोचा- चलो ये भी ठीक है। उसने लण्ड के साइज को अंधेरे में ही टटोला। सचमुच बिशाल था लण्ड। जैसे कोई गधे का उखाड़ करके फिट करवा लिया हो।
सहेली- अच्छा, एक बात पूंछू जी?
कामरू- पूछो रानी।
सहेली- क्या आपके दोस्त... भादरू भैया का भी इतना ही बड़ा है क्या जितना बड़ा आपका है?
कामरू- क्यों? उस साले भादरू के लण्ड से चुदवाना है क्या? उसपे मन आ गया क्या? चल फिर उसके कमरे में चल.. पर फिर मैं क्या करूँगा? हाँ हाँ मैं उसकी बीवी की चूत में घुसाऊँगा। बोल मजोर है?
सहेली- छीः छीः छीः कैसी गंदी बातें करते हो जी आप भी। मैं तो इसीलिए पूछ रही थी की सबका इतना ही बड़ा होता है क्या? आज तक मैंने आपके अलावा और किसी का नहीं देखा है ना इसीलिए। ज्ञान वर्धन... वो क्या कहते हैं आप... जनरल नालेज के लिए पूछ रही थी।
कामरू- अच्छा... मैं समझा भादरू से चुदवाने का इरादा है, पर उसका लण्ड मेरे जितना बड़ा नहीं है।
सहेली- आपके जितना बड़ा तो हाथी का भी नहीं है।
कामरू- क्या मतलब? हाथी का बड़ा होता है?
सहेली- पर आपके जितना बड़ा नहीं। आप तो छः फूट के हैं जी। और हाथी का भी मेरे खयाल से छः फूट का तो होगा नहीं?
कामरू- अरे वाह रानी। आज तो बड़ी मस्त-मस्त बोल रही है... मेरा लण्ड और टाइट होने लगा है। आज लण्ड को मस्त-मस्त ढंग से सहलाते हुए मूठ भी नये तरीके से मार रही है। बहुत मजा आ रहा है, मेरी रानी।
सहेली- पर.. ये... ये आप क्या कर रहें हैं? मेरे ब्लाउज़ क्यों खोल रहे हैं?
कामरू- वो क्या है कि तुम्हारी चूचियों को सहलाते हुए मूठ मरूंगा तो जल्दी निकल जाएगा और तुम्हारे इन कोमल-कोमल हाथों को ज्यादा तकलीफ नहीं होगी... इसीलिए।
सहेली- “ठीक है जी, दबा लो चूचियां..." और मन में कहा- “मुझे माफ करना कमलावती। मैंने तुम्हें धोखा दिया। और जीजाजी के लण्ड से खेल रही हूँ...”
कामरू- तुम्हारी चूचियां तो रानी, आज कुछ अलग-अलग सी लग रही हैं। एकदम कठोर, बेल के फल जैसी।
सहेली घबरा गई। वो सोची- आज तो पकड़ी ही जाएगी। अगर पकड़ी गई तो क्या होगा? उसकी और उसकी सहेली दोनों की ही इज़्ज़त चली जाएगी। हे भगवान् बचाना। फिर उसने बात को संभाला- “अजी, मेरी तो वही चूचियां हैं सब दिन वाली। क्या इसमें नट बोल्ट लगा रखा है जो बाजार से नया खरीद के फिटिग करवा लूंगी। वैसे तो मैं भी कह सकती हूँ की आज आपका लण्ड सचमुच में थोड़ा और मोटा और बड़ा भी लग रहा है.” सहेली ने लण्ड को सहलाते हुए कहा।
कामरू- वो तो है। पर तुमरी चूचियां आज कुछ अलग सी लग रही हैं।
सहेली- यहाँ पर ठंड बहुत ज्यादा है ना जी इसीलिए मेरी चूचियां ठंड से पथरा गई हैं।
कामरू- हाँ.. ये हो सकता है... तुमरे आने से पहले मेरा लण्ड भी सिकुड़ गया था।
सहेली- पर सैंया जी। अभी तो ये आपकी लुंगी फाड़ने के ऊपर उतारू है।
कामरू- नहीं रानी। ये अभी तुमरी फुद्दी के अंदर घुसने पर उतारू है।
सहेली का मन बेकाबू होने लगा। चूत में चींटियां सी रेंगने लगी। चूत किसी लण्ड को अपने अंदर लेने को कसमसाने लगी, उसकी चूत पनियाने लगी। उसने अपने मन को बहुत समझाया पर मन उसके काबू में ना था। उसे तो बहुत कुछ चाहिए था। पर ये मस्ताना लण्ड... ये मस्ताना लण्ड तो उसकी सहेली कमलावती के पति कामरू जीजाजी का था। उसके ऊपर उसका अधिकार ना था। अगर वो चुदवाती है तो ये उसकी सहेली के साथ धोखा होगा।
पर उसके मन ने कहा- वाह री सहेली... जीजाजी के साथ एक अंधेरे कमरे में उससे लिपट रखी है, उनसे अपनी नंगी चूचियां दबवा रही है, उनके लण्ड को सहला रही है, मूठ भी मार रही है और अभी भाषण देने लगी। ये उचित नहीं हैसहेली, ये अच्छी बात नहीं है। मौका भी है, नजाकत भी है, मस्ताना लण्ड भी है, तेरी तड़फती फुद्दी भी है, कमरे में अंधेरा भी है। ऐसा मौका बार-बार नहीं आएगा सहेली। बार-बार ऐसा मौका नहीं आएगा। शुरू हो जा। पर... ये तो मेरे जीजाजी हैं। अगर उनको पता चल गया तो? तो क्या? तो क्या होगा? थोड़ा सा शर्माने का नाटक करना। इधर तेरी सहेली कमलावती भी तो तेरे कमरे में तेरे पति के साथ एक ही पलंग पे लेट रखी है।
 
कामरू- सही कहा है मेरी साली ने। अरे गजब... तुमने तो गजब कर दिया कमलावती... मेरे सुपाड़े के ऊपर पप्पी दे दी। अरे तुमने तो सुपाड़े को अपने मुँह में ले लिया।
सहेली- अरे, आपका लण्ड बहुत बड़ा है जी... पर मजा आ रहा है।
कामरू- देखा, मैं कहता था ना की लण्ड चूसने में मजा आएगा।
सहेली- हाँ सैंया जी, मैं ही गलत थी। खूब मजा आ रहा है।
कामरू- तो चूसे जा... अरे तुमने तो अपने गले तक ले लिया है, और बहुत ही मजेदार तरीके से चूस रही हो। आज तक किसी ने ऐसा नहीं चूसा।
सहेली- अच्छा... इसका मतलब और भी किसी ने चूसा है आपका। आपको मेरी कशम है, बताइए कौन है वो जो आपका लण्ड चूसी है।
कामरू- मुझे माफ करना कमलावती। पर तुमने कशम दे दी है तो बताना ही पड़ेगा। मेरे दोस्त भादरू ने मेरा लण्ड चूसा है।
सहेली- क्या भादरू ने? भादरू भाई साहब ने आपका लण्ड चूसा है। पर उनका लण्ड तो बिशाल है?
कामरू- अरे कहाँ का बिशाल है। मेरे से आधा है। और थोड़ा सा पतला भी।
सहेली- अच्छा... तो आपने उनकी गाण्ड भी मारी होगी?
कामरू- नहीं, साले ने मेरा लण्ड घुसवाने से मना कर दिया। पर साले ने मुझे धोखा दिया। पहले मेरी गाण्ड मार ली और जब मेरी गाण्ड मारने की बारी आई तो बिदक गया।
और भादरू बोला- मेरी गाण्ड फट जाएगी, मुझे नहीं मरवानी गाण्ड। हाँ... लण्ड चूस के पानी निकाल देता हूँ।
सहेली- अच्छा... ऐसा किया उन्होंने? आप एक काम करेंगे?
कामरू- बोल मेरी रानी?
सहेली- मेरी फुद्दी चूसेंगे?
काम- क्या? मैं तुमरी फुद्दी चुहूं?
सहेली- हाँ.. पर आपको पसंद ना हो तो रहने दीजिए। वो तो मेरी सहेली बोल रही थी कि पत्नी लण्ड चूसे और पति उसी समय पत्नी की फुद्दी चाटे तो मजा दोगुना हो जाता है।
कामरू- अच्छा... तुम्हारी सहेली ऐसे बोल रही थी। बड़ी ही रंगीली, रसीली साली है हमारी। जरा कभी हमसे भी तो मिलवाओ।
सहेली- चलिए उठिए।
कामरू- क्या हुआ? नाराज क्यों होती हो? मैंने तो मजाक किया था।
सहेली- पर मैं मजाक नहीं कर रही हूँ। एकदम सीरियस हूँ मैं। चलिए उठिए।
कामरू- मुझे माफ कर दे कमलावती। आइन्दा ऐसे नहीं बोलूंगा वादा।
सहेली- नहीं आप उठिए और चलिए।
कामरू- लेकिन कहाँ चलें?
सहेली- बगल के कमरे में जहाँ मेरी सहेली आपके दोस्त के बाहों में लिपटी हुई है, उनसे मिलवाने को। चलिए।
कामरू- अरे मरवाएगी क्या?
सहेली- क्यों? अभी आप ही ने तो कहा था कि कभी अपनी सहेली से हमें भी मिलवाइए। तो चलिए अभी मिला देती हूँ।
कामरू- अरे यार, तूने तो मेरी जान ही निकाल दी थी।
सहेली- हाँ... मेरी सहेली की चूचियां बिल्कुल मेरी जैसी हैं। फुद्दी भी एकदम सफाचट रखती है। मेरी सहेली रोज लण्ड चूसती है अपने पति का।
कामरू- क्या बोलती हो कमलावती। क्या तुम्हारी सहेली रोज अपने पति का लण्ड चूसती है?
सहेली- हाँ हाँ सैंया जी। मैं झूठ थोड़े ही बोल रही हैं।
कामरू- पर ऐसा यकीन के साथ कैसे कह सकती हो तुम। कभी देखा है क्या अपनी सहेली को भादरू का लण्ड चूसते हुए?
सहेली मन में- “साले, जब मैं खुद ही बोल रही हूँ की मैं रोज अपने पति का लण्ड चूसती हूँ। तब भी यकीन नहीं करता है..."
सहेली ने कहा- मेरी सहेली ने मुझे खुद बताया है।
कामरू- अच्छा, और क्या-क्या करती है वो अपने पति के साथ?
सहेली- आप चलिए ना... अच्छा जरा रुकिये मैं उसे बुलाकर ले आती हूँ यहाँ पर। उससे खुद ही पूछ लीजिएगा कि अपने पति का लण्ड कैसे करके चूसती है? अपनी फूद्दी अपने पति से कैसे करके चुसवाती है? बुला के ले
आऊँ?
कामरू- अरे नहीं कमलावती... क्यों मजाक करती है?
सहेली- अच्छा, मैं मजाक कर रही हूँ। पर शुरुवात तो आपने की है मेरे राजा।
कामरू- कमलावती, आज अपनी सहेली से मिलकर क्या आ गई तू तो की पूरी की पूरी बदल गई है।
सहेली- क्यों? मेरा ये बदलाव आपको अच्छा नहीं लगा? फिर बन जाऊँ मैं वही पहले वाली, वही छुई मुई सी कमलावती...
कामरू- अरे नहीं मेरी छम्मकछल्लो, नहीं... मुझे अभी की कमलावती बहुत पसंद है। लण्ड चूत, चुसाई चुदाई का नाम कभी अपनी जुबान पर ना लेने वाली आज खुद पहल करके मेरा लण्ड चूस रही है। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है।
सहेली- अच्छा एक काम करती हूँ। लण्ड को दाँत से थोड़ा सा काट लेती हूँ। दर्द होगा ना तब यकीन आएगा।
कामरू- काट ले, मैं तो कहता हूँ पूरा ही खा ले... फिर घुसाती रहियो अपनी चूत में गाजर... बैगन... मूली।
सहेली- “क्यों घुसाऊँ अपनी चूत में ये सब चीजें। मेरे पास है ना आपका ये मस्ताना गधा जैसा लण्ड, फिर मैं क्यों घुसाऊँ ये सब चीजें? वैसे भी मंहगाई इतनी बढ़ गई है। सब्जी बनाने के लिए तो मिलती नहीं है। और आप फुद्दी में घुसाने की बात करते हैं। इससे तो अच्छा है किसी और को पटा के...”
 
कामरू- किसी और को पटा के क्यों? हम नहीं हैं क्या? अरे अभी तो मेरा लण्ड खड़ा होता है। जब खड़ा होना बंद हो जाएगा ना तब पटाना किसी और को।
सहेली- अच्छा, लग गई ना मिर्ची गाण्ड पे? और गाजर बैगन घुसाने के लिए कैसे बोले।
कामरू- तेरी माँ की चूत में लौड़ा घुसाऊँ... साली।
सहेली- “देखो जी, हम दोनों के बीच में हमरी माँ को ना लाओ... और रही हमरी अम्मा को चोदने की... तो मैं मानती हूँ की आपका लण्ड बड़ा है, मोटा है, तगड़ा है। पर सैंया जी, आप यहाँ और हमरी अम्मा अपने गाँव में.. आपका लण्ड इतना बड़ा तो है नहीं की यहीं से हमरी अम्मा की चूत में लण्ड घुसेड़ सको। उन्हें चोदने के लिए तो आपको हमरे मायके जाना पड़ेगा। और रही बात साली को चोदने की... तो मैं तो कहती हूँ अभी वो बगल के कमरे में ही है। कहो तो बुलाए देती हूँ, हुमच-हुमच कर चोद लेना कुछ भी ना बोलूंगी... हाँ नहीं तो... और तुम हमरी अम्मा को चोदने जाओगे तो क्या हमरी चूतवा तुमरे बाबूजी आकर चोदेंगे?
कामरू- अरे, कमलावती फिर से मुझे माफ कर दे। गलती से माँ की गाली निकल गई।
सहेली- कोई बात नहीं सैंया जी, चुदाई के समय ये गाली देने से चुदाई की इच्छा प्रवाल हो जाती है। इच्छा ना होते हुए भी चूत पनियाने लगती है। और लण्ड को अपने अंदर समेटने के लिए फड़फड़ाने लगती है।
कामरू- इसका मतलब है कि तुम चुदाने के लिए तैयार हो।
सहेली- और नहीं तो क्या आपके हाथ में राखी बाँधने के लिए तैयार हूँ। अरे सैंया जी... मैं बिल्कुल नंगी आपसे चूचियां दबवा रही हूँ, चुसवा रही हूँ, चूत को सहलवा रही हैं, और आप तो अभी चाटने भी लगे हो। इधर मैं आपके लण्ड को चूसने लगी हूँ फिर भी आप पूछ रहे हो की मैं चुदवाने के लिए तैयार हैं।
कामरू- पर... मेरा पानी जल्दी नहीं निकलेगा?
सहेली- कोई बात नहीं सैंया जी... मजा भी तो उतना ही आएगा। बस अब बर्दास्त नहीं हो रहा है सैंया जी, अपने लण्ड को घुसेड़ ही दो।
कामरू- मुझसे भी अभी बर्दास्त नहीं हो रहा है कमलावती। अब मैं अपना लण्ड तेरी फुद्दी में घुसाने ही वाला हूँ।
सहेली- घुसा दो और किस बात की राह देख रहे हो?
कामरू- ले संभाल फिर।
सहेली- अरे.. राम रे... ये क्या घुसा दिया मेरी फुद्दी में?
कामरू- अरे, ये मेरे लण्ड का सुपाड़ा है।
सहेली- पर ये तो मेरी फुददी की दीवारों को चीरता हुआ घुसे ही जा रहा है। अब बस करो जी।
कामरू- क्या बस करो। अभी तो सुपाड़ा ही घुसा है। ये ले मेरा दूसरा धक्का।
सहेली- उइई.. माँ... मरी रे... बचाओ।
कामरू- धीरे-धीरे रानी। ये अपना घर नहीं, होटेल है। सब इकट्ठे हो जाएंगे।
सहेली- पर आपने तो पूरा एक साथ ही घुसेड़ दिया है सैंया जी। एक साथ घुसेड़ोगे तो दर्द तो होगा ही ना।
कामरू- सारा एक साथ कहाँ घुसेड़ा है मेरी जान। अभी आधा ही घुसेड़ा है... आधा लण्ड मेरा बाहर ही है।
सहेली- क्या? आधा ही घुसेड़ा है... आधा और बाकी है? मैं तो मर जाऊँगी सैंया जी। इतना बड़ा मेरी फुद्दी में घुस नहीं सकता? फुद्दी मेरी फट जाएगी, मैं मर जाऊँगी।
कामरू- अरे कुछ नहीं होगा कमलावती, कुछ नहीं होगा। सब दिन घुसता है मेरा लौड़ा तेरी फुद्दी में। आज कोई नया थोड़े ही घुस रहा है। पर आज कुछ-कुछ तेरी फुद्दी टाइट लग रही है कमलावती। बाकी दिन तो लण्ड आसानी से घुस जाता है। आज तेरी फुद्दी बहुत टाइट है... क्या बात है?
सहेली क्या बोलती की ये लौड़ा इस फुद्दी में तो पहली बार ही घुस रहा है।
पर बोले भी तो क्या बोले?
और तभी सहेली चिल्लाई- अरे... रे... रुक जाओ। है माँ... पूरा ही घुसा दिया इसने तो... मैं मर गई अम्मा... मुझे बचाओ... मेरी फुद्दी फट गई... राम रे... इस हैवान ने मुझे पूरा ही मार दिया। हे भगवान् बचाओ... मुझसे गलती हो गई की इनसे चुदवाने आ गई.. आज बचा लो भगवान.. फिर से ऐसी गलती नहीं होगी।
कामरू- बस रानी कमला, पूरा घुस चुका है। बस अब दर्द नहीं होगा।
सहेली- पक्के बहनचोद हो तुम।... ऐसे भी कहीं लड़की चोदी जाती है।
कामरू- तुम्हें कैसे मालूम पड़ा रानी की मैं पक्का बहनचोद हूँ।
सहेली- अच्छा... आप बहनचोद हो ये मेरे मुँह से निकल गया और अपने स्वीकार कर लिया। साबाश... दोस्त भादरू से गाण्ड मरवा चुके हो, उससे अपना लण्ड चुसवा चुके हो, बहनचोद हो याने मेरी ननद चम्पारानी को भी चोद चुके हो। वाह... वाह... क्या बात है?
कामरू- मुझे माफ कर दे कमला।
सहेली- माफी बाद में मिलेगी। पहले चोदना तो शुरू करो।
कामरू- क्या? क्या चोदना शुरू करूं?
सहेली- हाँ हाँ सैंया जी। हाँ... ऐसे ही धक्के लगाओ। बस चोदते रहो। आज पहली बार इतना बड़ा लण्ड मेरी फुददी में घुसा है। दर्द के साथ-साथ मजा भी खूब आ रहा है। बस रुको मत पेलते रहो।।
कामरू- आज तो खूब मजा आ रहा है। कमलावती, तेरी चूचियां मजेदार लग रही हैं। एक को दबाते हुए दूसरे को चूसता हूँ। कुछ नया-नया सा लग रहा है, ऊपर से सफाचट बुर, ऊपर से तुम्हारी ये चूत लण्ड वाले शब्द, ऊपर से मुझे धक्के लगाने पर उसकाना।
 
सहेली- ऊपर से तुम्हारा हुमच-हुमच कर धक्के लगाना। ऊपर से... सारी ऊपर से नहीं नीचे मेरा आपके हर धक्के के जवाब में चूतड़ उछालना, ऊपर से आपकी पीठ पर हाथ फिराना, ऊपर से आपके गालों पर पप्पियां देना। वाह... आपके साथ-साथ मुझे भी खूब मजा आ रहा है।
कामरू- वो सब तो ठीक है कमलावती... पर आज पहली बार मेरा ये बिशाल लण्ड अपनी फुद्दी में घुसवा रही है... ऐसा क्यों कह रही हो? रोज रात को तो घुसाता हूँ।
फैंसी रे... रामजी, ये क्या निकल गया मेरे मुँह से?
सहेली- वो क्या है कि रोज तो आप अपना लण्ड घुसते ही हो। पर आज कुछ और भी मोटा, और भी लंबा लग रहा है ना इसीलिए बोल रही थी। मेरा निकला सैंया जी... बस धक्का लगते रहो। बंद मत करो।
कामरू- ले साली... ले... ये ले और धक्का ।
सहेली- वाह... सैंया जी। आप मस्त चोदते हो। मेरी ऐसी चुदाई आज तक नहीं हुई। ऐसा मजा मुझे आज तक नहीं आया।
कामरू- हाँ... कमला। मुझे भी खूब मजा आया। कहाँ तो मैं सोच रहा था की मूठ मार के ही काम चलाना पड़ेगा। और कहाँ मुझे ऐसी दमदार चुदाई नसीब हो गई। हाँ मेरा भी निकलने वाला है।
सहेली- निकाल दो सैंया जी... निकाल दो... पर सुनो, मेरे मुँह में निकालना।
कामरू- क्या? मुँह में?
सहेली- हाँ... इसका स्वाद बहुत बढ़िया लगता है।
कामरू- क्या कहा? इसका स्वाद बढ़िया लगता है। पर तुमने कहाँ से चखा?
साली सहेली तू तो फिर से हँसी- अरे... ऐसा मेरी सहेली ने कहा था... तो मैंने सोचा- चख करके देखती हूँ। पर आपको पसंद ना हो तो ना चखाओ?
कामरू- अरी कमला, ऐसी बात नहीं है। मेरा तो बड़े दिनों का सपना आज पूरा होगा।
और सहेली कामरू के लण्ड को चूसने लगी।
कामरू- हाय... कमला, ऐसा लण्ड चूसना तूने कहाँ से सीखा?
सहेली- अपनी सहेली से।
कामरू- पर उसके पास थोड़े ही लण्ड है। लण्ड तो मर्द के पास होते हैं, और तूने सीखा है अपनी सहेली के पास से। इसका मतलब कि तूने भादरू का लण्ड चूस लिया।
सहेली- ठंड रखो... सैंया जी ठंड रखो। मैंने आपके अलावा अपने पति का ही लण्ड चूसा है। हाँ नहीं तो। मैं तो ये कह रही थी की मेरी सहेली ने मुझे ये सिखाया की लण्ड कैसे चूसा जाता है।
कामरू- अच्छा... अच्छा... ऐसा क्या?
सहेली- हाँ नहीं तो... आपने सभी को अपने जैसा सोच लिया क्या?
कामरू- क्या मतलब?
सहेली- नहीं नहीं... कुछ नहीं चूस रही हूँ।
कामरू- कुछ भी हो आज तुममें बहुत बदलाव आ गया है।
सहेली- तो पहले वाली कमलावती बन जाऊँ?
कामरू- नहीं नहीं... अब वाली सही है। बस चूसती रहो, मेरा निकलने वाला है.. अरे निकलने वाला ही है... अरे । अपने मुँह से निकाल लो.. निकल जाएगा... अरे मुँह गंदा हो जाएगा... अरे निकला... जा साली, चूस ले... अरे तूने तो सचमुच चूस ही लिया। अरे गजब... आज तो मुझे पूरा ही हिला दिया। हाँ... बस हो गया। सारा रस तो निचोड़ लिया तूने... बस और नहीं... और नहीं। अरे बाप रे क्या लण्ड चूस रही हो जानम... तेरी सहेली ने बढ़िया ट्रेनिंग दी है। गजब की चुदक्कड़ होगी वो तो।
सहेली- अच्छा... बीवी बगल में है और साली याद आ रही है। बुला दू साली को। सच कहती हूँ कि मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा।
कामरू- “अरे.. रे..."
सहेली- अच्छा, चलो एक काम करते हैं। अभी अंधेरा है... आज अभी तुम हमरे जीजाजी और हम तुमरी साली... कहो क्या बोलते हो?
कामरू- हाँ... साली को चोदने में मजा आएगा।
सहेली- ठीक है फिर... अभी आप हमको साली कहना और हम आपको जीजाजी कहेंगे, चुदाई में मजा आएगा। अरे आपका लण्ड तो फिर से खड़ा हो गया है। साली को चोदने को... क्यों जीजाजी?
कामरू- हाँ हाँ साली जी। आज पहली पहली बार मैं अपनी साली को चोदूंगा ना?
 
सहेली- हाँ... जीजाजी। मैं भी तो अपने कामरू जीजाजी से पहली बार ही चुदवा रही हूँ। क्यों जीजाजी?
कामरू- “हाँ... साली हाँ...”
सहेली- पर एक बात बताओ जीजाजी?
कामरू- बोलो।
सहेली- अगर हम आपकी साली हैं और आपके साथ चुदवा रहे हैं... तो आपकी बीवी कहाँ है? वो तो आपके दोस्त के साथ चुदवा रही है। क्यों जीजाजी?
कामरू- क्या बक-बक कर रही हो कमला?
सहेली- कमला नहीं जीजाजी... सहेली बोलो... सहेली। हम आपकी साली और... और आप हमरे जीजाजी। बस आप अपनी साली को चोदो, उसकी नई चूत का मजा लो... पर संभाल के... उसकी चूत आपके बड़े लण्ड की आदी नहीं है। संभाल के धीरे-धीरे चोदना कहीं फाड़ ना देना.. ऐसा फैला ना देना की उसकी चूत आपके दोस्त के पतले लण्ड के काबिल ही ना रहे।
कामरू- मैं तो यही चाहता हूँ साली। यही मैं चाहता हूँ कि ऐसा चोदू तुझे की तेरी फुद्दी ऐसी फैले की भादरू चोदे तो तुझे मजा ही ना आवे, और हर रात तू दौड़ी-दौड़ी मेरे लण्ड से चुदवाने को आए।
सहेली- फिर आपकी बीवी कमलावती... वो क्या करेगी?
कामरू- अरे उसे दिन में चोद दूंगा। या तू कहे तो दिन में घूमने आ जाना तो दिन में तुझे निपटा दूंगा। रात को बीवी है ही।
सहेली- तो जीजाजी... कैसी हैं आपकी साली की चूचियां?
कामरू- बहुत ही मस्त-मस्त चूचियां हैं। मैं तो पहले चुसँगा इनको।
सहेली- “तो चूसो ना जीजाजी। मना किसने किया?
कामरू- पर साली डर लगता है।
सहेली- “कैसा इर जीजाजी?"
कामरू- अरे भूल गई कमला... ओहो साली... सुहागरात के बाद में दिन में हुई पहली चुदाई के बाद उसी दिन रात को हुई चुदाई को। चीख-चीख कर सारे घर को इकट्ठा कर दिया था तुमने। फुद्दी ने लाल पानी फेंकना शुरू कर दिया था। बुर फूल के पावरोटी बन गई थी। हमरी अम्मा ने हल्दी डाल के गरम पानी से सेंक दिया तब जाकर तुम्हारी फुद्दी को थोड़ा सा आराम मिला था। फिर तुम लण्ड देखते ही थर-थर काँपने लग जाती थी। और बड़ी मुश्किल से ही तीन चार दिन बाद में चुदवाने के लिए राजी हुई। हमें ये कशम खानी पड़ी थी की मैं एक दिन में दो बार चुदाई नहीं करूँगा। जियो मेरी कमलावती।
सहेली- ना... ना... ना... जीजाजी कमलावती नहीं.. साली कहो साली... तभी मजा लूट पाओगे। अपनी बीवी को तो एकबार से ज्यादा चोद ना पाओगे। सली की फुद्दी की ही हिम्मत है जो लण्ड खड़ा होते ही इसे जांघ फैलाए हुए स्वागत में मुश्कुराते हुए पाओगे। अरे जीजाजी... उन बातों को साल भर हो गये। अभी मेरी फुद्दी आपके लण्ड के कबील हो गई है। अब दो बार तो चुदाई करवा चुकी हैं तीसरी बार घुसवाने को फुद्दी में चींटियां रेंगने लगी हैं।
कामरू- अरे, वाह साली वाह... आज तो मौजे ही मौजे हैं।
सहेली- अच्छा जीजाजी, मोजे ही मोजे हैं तो जूते कहाँ गये? आपकी अम्मा की बुर में।
कामरू- साली... मेरी अम्मा की झांटदार बुर तक आ गई... ये ले।
सहेली- जरा रुकिये जीजाजी... मैंने अम्मा की बुर कहा... और आपने अम्मा की झांटदार बुर कहा। इसका मतलब... जहाँ तक मैं समझती हूँ कि आप अपनी अम्मा को भी?
कामरू- अरे नहीं भगवान, नहीं... वो एक दिन अम्मा गर्मी में दोपहर को सोई हुई थी, और नींद में साड़ी ऊपर खिसक गई तो मुझे दर्शन हो गये थे और कुछ नहीं।
सहेली- अच्छा अच्छा... मैं तो समझी थी की आप अपनी अम्मा की बुर में अपना मस्ताना लण्ड पेल चुके हो।
कामरू- “अरे उस दिन मन तो बहुत कर रहा था पर डर के मारे हिम्मत नहीं हुई.. और..."
सहेली- और... मूठ मार के रह गया।
कामरू- हाँ... पर साली, तुम्हें कैसे मालूम?
सहेली- और नहीं तो क्या? हम तो थे नहीं... वरना हमरी चूत में बजा देते। कोई चूत नहीं मिलने पर जैसे हम औरतें अपनी फुद्दी में गाजर, मूली, बैगन घुसा लेते हैं। वैसे ही मर्द लोग मूठ मारके शांत होते हैं।
कामरू- हाँ... साली, अब खाट-कबड्डी चालू करें।
सहेली- नहीं जी.. अभी तो कीर्तन है, जगराता करेंगे।
कामरू- “साली, तेरी मजाक करने की आदत गई नहीं। ल... ये गया मेरे लण्ड का सुपाड़ा तेरी मखमली फुद्दी के
अंदर।
सहेली- और... ये उछाला मैंने नीचे से अपना चूतड़।
सहेली- अरे सचमुच सैंया जी, आपका लौड़ा तो पूरा का पूरा घुस गया और हमें तो मालूम ही नहीं पड़ा। आज तो बहुत मजा आ रहा है।
कामरू- पूरा का पूरा घुस गया है। सपना देख रही है क्या साली? अभी तो मेरा केवल सुपाड़ा ही घुसा है। असल घुसाई तो अब होगी... ये ले।
सहेली- अरे बाप रे... क्या बाड़ दिया मेरी फुदी में सैंया जी... बस हो गया ना?
कामरू- ये मारा मैंने तीसरा धाक्का और घुस गया है आधा लौड़ा।
 
सहेली- क्या? अभी आधा ही घुसा है। दर्द बढ़ रहा है सैंया जी। बर्दास्त से बाहर है। मैं ये तो नहीं कहती की बाहर निकाल लो... पर सैंया जी बस बस।
कामरू- साली भूल गई.. आज की चुदाई में मैं तेरा जीजाजी हूँ और तू मेरी साली।
सहेली- ऐसी तगड़ी चुदाई में... कहाँ के जीजाजी और कहाँ के सैंया जी। अरे राम रे... निकालो... निकालो... गले से निकल जाएगा... निकालो सैंया जी... ओहो जीजाजी निकालो... मुझे नहीं चुदवाना है... नहीं लेना मुझे मजा... काहे का मजा, आपने चूत को दिया है बजा... मेरे लिए है सजा। ओ मेरे राजा... रुक क्यों गये? धक्का तो लगा।
कामरू- आईं... क्या कहा तूने धक्का लगाऊँ?
सहेली- और नहीं तो क्या? दर्द थोड़ी ही देर हुआ। अब तो मजा आने लगा है। मारो धक्का सैंया जी मारो... थक गये क्या जी?
कामरू- नहीं साली, मैं तो तेरे दर्द से डर रहा था। आज पहली बार तीसरी चुदाई कर रहा हूँ ना।
सहेली- अरे, सब भूल जाओ और धक्का लगाओ। बहुत मजा आ रहा है सैंया जी... क्या मस्त चोद रहे हो आप... अच्छा एक काम करो ना... मैं घोड़ी बन जाती हूँ पीछे से चोदना।
कामरू- अरे साली मुझसे गाण्ड मरवाएगी? मजा आ जाएगा तब तो।
सहेली- पागल हो गये हो जीजाजी... मुझे मरना है क्या? मैं तो घोड़ी बनकर तुम्हारे गधे लण्ड को पीछे की तरफ से अपनी फुद्दी में घुसवाना चाहती हूँ।
सहेली घोड़ी बन जाती है और कामरू पीछे से लण्ड घुसाता है।
सहेली- हाँ... अब बताओ कैसे लग रहा है?
कामरू- अरे वाह साली... आज ये तो बहुत ही मजा दे रहा है। इसमें तो मेरा लण्ड पूरा का पूरा ही तेरी फुद्दी में अंदर तक समा रहा है। आगे-पीछे करता हूँ तो फछ-फछ की आवाजें मन को मोहित कर रही हैं। लण्ड दोगुने जोश के साथ अंदर-बाहर हो रहा है।
सहेली- क्या बात है जीजाजी। आपके लण्ड का सुपाड़ा अंदर बच्चेदानी से टकरा रहा है। इतना मजा आज तक नहीं मिला था जीजाजी। बस लण्ड पेलते रहो... पेलते रहो। रुकना मत... जब तक अपना निकाल नहीं लो, रुकना मत।
कामरू- कहाँ रुक रहा हूँ। ऐसी पोजीशन में आज पहली बार चोद रहा हूँ। मेरा निकलने से पहले आज चोदना बंद करूँगा ही नहीं। भले ही तू कितना चिल्लाए।
सहेली- हाँ... चोदो चोदो... बिना रुके चोदो... चोदते रहो... चोदते रहो... जीजाजी मेरा फिर से निकला रे... निकला... जैसे कोई नदी बह रही हो। क्या मस्त चोद रहे हो जीजाजी।
कामरू- तेरा निकल गया। पर मेरा नहीं निकला है।
सहेली- तो पेलो ना सैंया, रोका किसने है? पेलते रहो... पेलते रहो। जब तक आपका ना निकले।
कामरू मन ही मन सोचता है- आज तो कमाल हो रहा है। साली कमलावती एक के बाद एक झटका दे रही है। पहले खुद पहल करके उससे चुदवा रही है... चूचियां कठोर हैं. चूत सफाचट है... गंदी-गंदी बातें कर रही है... तीसरी बार चुदाई भी गाण्ड उछाल-उछालकर करवा रही है। वाह क्या बात है? उसने कमलावती की पीठ के ऊपर हाथ फेरते हुए सोचा... और वो चौंक गया... कमलावती की पीठ में एक घाव का निशान था। जो की हाथ फेरने से महसूस होता था। आज कहाँ गया? क्या कमलावती ने जादू के जोर से उसे गायब कर दिया। नहीं और ही कुछ बात है। उसने कमलावती के चोट के ऊपर हाथ फेरा तो एक बार फिर से चौंक गया। भले ही उसकी चूत सफाचट हो पर छोटे छोटे बाल जैसे दो-तीन दिन पहले के हों ऐसा लग रहा था। कमलावती ने तो कहा था की आज ही उसकी सहेली ने क्रीम से साफ किया है। तो इतनी जल्दी चंद घंटे में ही इतने बड़े-बड़े कैसे हो गये। उसने अपने सिर को झटका।
सहेली- क्या हुआ जीजू? रुक क्यों गये?
कामरू हड़बड़ा करके फिर से चोदने लगा। कामरू बोला- कुछ नहीं साली... एक बात सोच रहा था। काश की मैं तुम्हें देख पाता? अंधेरे में जीजा साली बने हुए हैं, काश की लाइट आ जाती तो मैं तुम्हारा चेहरा भी देख पाता की मेरी बीवी कैसे मुझे जीजू जीजू बोल रही है.. तो?
सहेली- नहीं जीजाजी, लाइट को ना बुलाना... लाइट को ना बुलाना।
और लाइट आ गई। कमरे में उजाला ही उजाला। सहेली ने अपना मुँह छुपा लिया। कामरू दनादन चोद रहा था। सहेली मुँह छुपाए हुए गाण्ड पीछे कर रही थी।
कामरू- थोड़ा अपना चेहरा तो दिखा दे साली।
 
सहेली- नहीं जीजू, चेहरा दिखा दी तो गजब हो जाएगा। कमरे में भूचाल आ जाएगा।
कामरू- आने दो... पर मुझे मजा तो लेने दो। दिखा दो अपना चेहरा... लेने दो मजा साली।
सहेली- तो लीजिए अपनी साली का चेहरा देख लीजिए.. पर जीजू हमें माफ कर दीजिए।
कामरू- अरे वाह, साली कितनी सुंदर है तू तो। अरे मेरा निकल रहा है... साली, कहाँ निकालूं?
सहेली- मेरे अंदर ही डाल दो जीजू। हाँ... क्या गरम-गरम निकल रहा है। पूरा का पूरा निचोड़ दो मेरी चूत के अंदर।
कामरू- “वाह साली, आज तो मजा आ गया... मजा आ गया..." और दोनों एक-दूसरे की बाहों में लिपट गये।
कामरू सोचता है- अरे वाह... आज मेरी बीवी कुछ बदली-बदली सी नजर आ रही है, चूचियां कठोर हैं, चूत सफाचट है, आज शाम को ही क्रीम से साफ करवा रखी है पर चूत के ऊपर जो छोटे-छोटे मुलायम झाँट उग रखे हैं। वो ये कहते हैं कि तीन दिन पहले झांटों की सफाई हुई है। जबकी मैंने दिन में चोदा था तब झांटों के जंगल थे। पीठ के ऊपर के घाव जो अंधेरे में भी महसूस हो रहे हैं। वो भी अंधेरे में महसूस नहीं हो रहे थे। और अभी उजाले में तो गायब ही हो गये हैं। और चेहरा? हाय मेरी कमलावती, तूने चेहरे पर कौन सा क्रीम लगवा लिया की तेरा चेहरा पूरा बदल गया है और चेहरा पूरा का पूरा मेरी साली के जैसे दिख रहा है।
सहेली- साली के जैसे दिख नहीं रहा है जीजाजी। मैं आपकी साली ही हूँ।
कामरू- अरे, वो तो मैं तेरे कमरे में आकर मुझसे लिपटते ही समझ गया था। चूचियां दबाते ही समझ में आ गया था की तू मेरी बीवी नहीं साली है। पर तेरे नाटक में मैंने अपना नाटक शुरू कर दिया। और बता कैसे लगा मेरा नाटक?
सहेली- बड़े गजब के नाटकबाज हो तुम जीजाजी। पर आपसे भी बड़ा नाटकबाज तो आपका ये लण्ड है। साला चोदते समय जान ही निकाल देता है। और अब देखो कैसे मुरझाए हुए मुँह लटकाए बैठा है।
कामरू- तुम कहो तो फिर से उठा दें।
सहेली- अरे नहीं जीजाजी, मुझे मरना है क्या?
कामरू- पर मेरी बीवी कमलावती?
सहेली- आप उसकी चिंता ना करो। वो मेरे कमरे में सोई है।
कामरू- पर... तेरे कमरे में तो भादरू भी होगा ना?
सहेली- अरे जीजाजी... आपने उनकी बीवी को दो-दो बार चोद दिया है, और मुझे लगता है दो बार कम से कम और भी चोदोगे। पर आपकी बीवी किसी और से चुदवाए ये बर्दास्त नहीं... यही मर्द की फितरत है।
कामरू- वो तो खैर चोदूंगा ही अपनी साली को। पर मुझे कमलावती की चिंता लग रखी है। दिन में मैं चोद चुका हूँ। रात को फिर से चुदवाई तो उसकी चूत का बैंड बज जाएगा।
सहेली- अरे आपके दोस्त का इतना बड़ा लण्ड नहीं है की मेरी सहेली कमलावती की चूत का बैंड बज जाए। पर आप चिंता मत करो। वो दोनों ही अपने कमरे में सोए पड़े होंगे। मैंने दोनों के ही खाने में नींद की गोली मिला दी थी।
कामरू- फिर भी साली साहिबा। हमें देखना चाहिए। कहीं वो चुदाई ना कर रहे हों। मेरी बीवी अकेली उस भादरू के साथ-साथ उसके पलंग में अकेली ही सोई है। साला मौके का फायदा ना उठाले। मेरी बीवी कमलावती को ना चोद ले।
सहेली- अच्छा जीजाजी... एक बात बताइए? आपको अपनी बीवी की चिंता है की कहीं वो आपके दोस्त से ना चुदवा ले। और आप यहाँ पे अपने दोस्त की बीवी के साथ अभी दो-दो बार खाट-कबड्डी खेल चुके हैं उसका क्या? मेरे पति का तो नार्मल साइज का लण्ड है। मेरी सहेली मेरे पति से एक बार क्या पाँच बार भी चुदवा लेगी तो कुछ नहीं होगा उसे चुदाई का मजा ही लूटेगी। इधर मुझे देखो... आपके दोस्त की बीवी हैं. आपको शुरू से ही मालूम पाड़ गया था, खुद अपने मुँह से आपने अभी-अभी कबूल किया था। फिर आपने हमें क्यों चोदा? खुद दूसरे की बीवी चोद सकते हो, उसकी मखमली चूत में अपना गधे जैसा लण्ड घुसेड़ सकते हो... पर आपकी बीवी के लिए चाहते हो की वो केवल आपसे ही चुदवाए।
खुद अपनी बहन चम्पारानी को चोद चुके हो। पर अपनी बीवी को अपने दोस्त के साथ एक ही पलंग पर नींद की गोली खाकर बेसुध सोई हुई भी बर्दास्त नहीं। अपनी माँ की नंगी बुर देख सकते हो.. जैसा की आपने खुद कबूल किया था.. पर आपकी बीवी की चूचियों को कोई सहलाए... ये आपसे बर्दास्त नहीं। अपने दोस्त से गाण्ड । मरवा सकते हो। उसकी बीवी को दो बार चोद चुके हो। दो बार और भी चोदना चाहते हो। पर दोस्त आपकी बीवी को ना चोदे। वाह रे जीजू... वाह... कमाल के हो आप।

कामरू- बस करो स... साली, और कितना जलील करेगी। ठीक है कमलावती को भी चुदवा लेने दे भादरू के साथ। मैं कुछ नहीं कहूँगा बस... पर नाराज ना हो मेरी साली... खुश हो जा और मेरे गले लग जा।
सहेली- वो बात नहीं है जीजाजी की मैं आपसे नाराज हूँ। मैं एक साधारण सी बात कर रही हूँ। इंसान की फितरत ही यही है। केवल आपकी ही बात नहीं कर रही हैं। इधर अपनी बीवी कमलावती को कल सुबह देख लेना। खुद भले ही रात में मेरे पति से तीन-चार बार चुदवा ली होगी? पर... सुबह-सुबह उसका नाटक देखना कि कैसे मेरे ऊपर बिगड़ेगी। और मेरा पति तीन-चार बार कमलावती को चोदने के बावजूद भी देख लेना यही कहेगा की उसने तो भाभीजी को छुआ तक नहीं है। और हम दोनों ने खाली अपना-अपना मुँह काला किया है। देख लेना कि कल सुबह अगर उन्होंने ये बात नहीं कही तो मैं सहेली... अपनी झाँट मुंड़वा लँगी।
 
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