non veg kahani व्यभिचारी नारियाँ - Page 4 - SexBaba
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non veg kahani व्यभिचारी नारियाँ

नजीबा ने ये सोचते हुए लंबी साँस ली। उसकी पलकें झपकीं और उसके होंठ थरथराये। कुत्ते से चुदने का ख्याल काफी विकृत था, ये नजीबा जानती थी - पर फिर भी ये ख्याल था बहूत चोदू। नजीबा को महसूस हो रहा था कि उसके चूतड़ों पे टकराता लंड कितना बड़ा और सख्त था - और वो कल्पना करने लगी कि वो विशाल लंड-माँस उसकी चूत को चोदता हुआ कैसा महसूस होगा।

एक चोदू जानवर को उसके आँड खाली करने में मदद करके उससे बचने का यह तर्कसंगत तरीका प्रतीत हो रहा था।


दूसरा कुत्ता भी उनके आसपास उछलता हुआ उत्तेजना से भौंक रहा था। नजीबा ने देखा कि उस कुत्ते की टाँगों के बीच में उसका अत्यंत बड़ा लंड ऐसे झूल रहा था जैसे कि समुद्री जहाज का मस्तूल। अगर वो एक कुत्ते को चोदने देती है तो, नजीबा ने सोचा कि उसे दूसरे कुत्ते को भी चोदने देना पड़ेगा। सिर्फ एक को ही चोदने का मौक देना तो दुसरे के लिये उचित नहीं होगा। के लिये उचित नहीं होगा। “वैसे भी दो बार चुदने में तो अधिक आनन्द आयेगा!” नशे में चूर चुदक्कड़ औरत ने सोचा।

नजीबा ने अपना हाथ अपने घुटनों के बिच में से पीछे ले जाकर टीपू के चिपचिपे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया। वो विशाल लंड नजीबा की पकड़ में धड़कने लगा। अब नजीबा को समझ आया कि उसके चूतड़ों पर वो लंड इतना सख्त क्यों महसूस हो रहा था। असल में उसके लंड में हड्डी सी थी जिसके कारण वो इतना सख्त और कड़क था। नजीबा ने लंड को अपनी मुट्ठी में सहलाया और टीपू ने आगे-पीछे हिलना बंद कर दिया। वो समझ गया कि इस चुदक्कड़ औरत का हाथ सहायता के लिये हाज़िर है और वो अपना लंड सही स्थान पर टिकाने के लिए नजीबा का इंतज़ार करने लगा।
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नजीबा ने फिर से अपनी मुट्ठी लंड पर आगे-पीछे चला कर उसे सहलाया। वो सोच रही थी कि क्यों ना ऐसे ही अपनी मुट्ठी से उस कुत्ते के लंड को झड़ा दे और फिर वैसे ही दूसरे कुत्ते को भी मुठ मार कर झड़ा दे। कुत्तों को मुठ मार कर झड़ाना, उनको चोदने जितना विकृत नहीं होगा, नजीबा ने सोचा।

परंतु इसमें चोदने जैसा मज़ा भी तो नहीं आयेगा।

टीपू के लंड को जड़ से पकड़ कर नजीबा ने अपनी कलाई तिरछी की और लंड का गर्म और दहकता सुपाड़ा अपनी गर्म चूत पर रगड़ने लगी। जब लंड का धड़कता हुआ गर्म । माँस उसकी क्लिट को छुआ तो नजीबा थरथरा उठी।
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टीपू मस्ती से पागल हुआ जा रहा था और नजीबा के कुल्हों से चिपका हुआ वो भौंकने और ठिनठिनाने लगा। उसका पूरा हट्टा-कट्टा बदन कांप रहा था। नजीबा यह जान कर बहुत रोमाँचित हो रही थी कि उसकी वजह से कुत्ता कितना उत्तेजित हो गया था और उसे चोदने के लिये कितना मतवाला हुआ जा रहा था। और दूसरा कुत्ता भी उतना ही मतवाला और जोश में था और अपना सख्त लंड झुलाता हुआ उनके आसपास ही कूद रहा था अपनी चूत के लिये कुत्तों की लालसा देख कर नजीबा और अधिक उत्तेजित हुई। जा रही थी। जानवरों से चुदाई के संबंध में जो भी शक या शुबहा उसे था, वो उसकी कामुक्ता और उत्तेजना की गर्मी में पिघल कर दूर हो गया।
 
नजीबा ने अपनी कलाई घुमायी और टीपू के लंड का सुपाड़ा अपनी मलाईदार चूत में चमचे की तरह घुमा कर अपनी चूत के रस को गर्म शोरबे में परिवर्तित करने लगी। फिर उसने खींच कर कुत्ते के लंड का सुपाड़ा अपनी चूत में घुसा दिया परंतु उसने अपनी । पकड़ उसके लंड पर बनाये रखी। नजीबा उस मतवाले कुत्ते को जोरदार चुदाई करने के लिए खुला छोड़ने से पहले उसके लंड से आरंभिक कामुक-खिलवाड़ का मज़ा लेना चाहती थी।
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लंड का सिर्फ आधा सुपाड़ा चूत के अंदर घुसे होने से टीपू पागल हुआ जा रहा था। उसने आगे धक्का दिया पर नजीबा की मुट्ठी ने उसे अंदर घुसने से रोक दिया। वो गुर्राया। और अपने ताकतवर जबड़े चटकाने लगा। उसकी काली आँखें गोल-गोल घूम रही थीं और वो नजीबा की झुकी हुई पतली कमर पर अपने जबड़ों से बहुत अधिक मात्रा में राल बहा रहा था। उसके पिछले पैरों के पंजे कार्पेट में गड़े हुए थे। उसके पुष्ट बदन में प्रत्येक रग चटक रही थी और उसके बदन की सब माँसपेशियाँ तनाव से खिंच रही थीं।
कुत्ते के वजन के तले अपने चूतड़ हिलाती हुई नजीबा उत्तेजना और विकृत आनन्द के पूर्वानुमान से कलकलाने लगी। कुत्ते के लंड का सुपाड़ा उसकी खुली चूत मे चौड़ा फैलने लगा और उसकी चूत के बाहरी अधर उसे गिरफ्त में लेकर उस गर्म और लाल लंड को खींचते हुए अंदर चूसने लगे।
टीपू के लंड का मूत-छिद्र लहरा कर खुला और नजीबा सिसकने लगी जब उसे अपनी मलीदार गुफा में कुत्ते के अग्रिम-वीर्य का गरम स्राव चूता हुआ महसूस हुआ। कुत्ते का लंड नजीबा की मुट्ठी में भिनभिना और ठनठना रहा था और लंड का सुपाड़ा चूत में ज़बरदस्त कुटाई कर रहा था लंड में से और अधिक मात्रा में चिपचिपा द्रव्य रिसने लगा। नजीबा को इस आरंभिक काम-क्रिया में बहुत मज़ा आ रहा था पर कुत्ते के लंड से चिपचिपा रस इतना सारा निकल रहा था कि उसे डर लगने लगा कि कहीं वो चोदू कुत्ता समय से पूर्व ही ना झड़ जाये - कहीं वो अपना लंड उसकी चूत में पूरा अंदर ठेलने से पहले ही अपना वीर्य उसकी चूत में ना दाग दे।।
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नजीबा ने बाकी का फुला हुआ सुपाड़ा अपनी चूत में खींचा। उसकी गीली चूत की तहों ने उसे घेर लिया और चूत के गुलाबी होंठ उस मोटे लंड के इर्द-गिर्द जकड़ गये। नजीबा जानती थी कि सुपाड़ चूत में धंसने के बाद अब कुत्ते को उसके हाथ की सहायता की जरूरत नहीं पड़ेगी। अपने हाथ के बंधन से लंड को आज़ाद करके वो अपने हाथ को उसके लंड पर सरकाती हुई पीछे ले गयी और उसके फूले हुए टट्टों को सहलाने लगी।
नजीबा ने प्यार से टट्टों को अपनी अंगुलियों से मसला जैसे कि कुत्ते के टट्टों में उफनता वीर्य महसूस कर रही हो। फिर उसने अपना हाथ वहाँ से दूर खींच लिया। अपनी गाँड और ऊँची उचका कर और सिर नीचे झुका कर नजीबा उस ताकतवर कुत्ते द्वारा जोरदार चुदाई शुरू होने की प्रतीक्षा करने लगी। एक क्षण के लिए टीपू स्थिर रहा। सिर्फ उसका सुपाड़ा नजीबा की चूत में था और उसके लंड में से बह कर और अधिक वीर्य-स्राव नजीबा की चूत में बुदबुदाने लगा।
 
नजीबा का जवान मादक बदन स्प्रिंग की तरह लिपट गया - उसने अपनी गाँड और चूतड़ ऊपर उठाये और अपना पेट और चूचियाँ पीछे धकेलीं तो उसकी पीठ और मुड़ गयी और उसका बदन सिकुड़ गया। नजीबा ने फिर एक झटका दिया और उसकी चूत में कुत्ते का डेढ़-दो इंच लंड घुस गया। जब उसके लंड पर नजीबा की चूत खिसकी तो टीपू जोर से गुर्राया। उसके पुट्टे अकड़ गये और उसने जोर से एक वहशियाना धक्का दिया और | अपना कड़कड़ाता पूरा लंड नजीबा की चूत में गाड़ दिया। ।

ओहहहहहह... आआआआहहह” नजीबा चींखी जब उसे अपनी चूत में पहली बार किसी जानवर का लंड भरा हुआ महसूस हुआ। टीपू ने पूरी बेफिक्री से धुंआधार । अपना लंड नजीबा की चूत में चोदना शुरू कर दिया। उसका पूरा लंड टट्टों तक चूत में फँसता और फिर झटक कर इतना बाहर निकल आता कि सिर्फ सुपाड़ा ही अंदर रहता और फिर जोर से अंदर फँस जाता। टीपू का लंड नजीबा की चूत की लचीली दीवारों को फैलाता हुआ उसकी दहकती चूत की गहराइयों में धक्के मारता हुआ चोद रहा था।

नजीबा की चूत उस लंड के चारों ओर जैसे साँचे में ढल गयी थी और लंड के फिसलते हुए प्रत्येक हिस्से पर जकड़ कर चिपकी हुई थी। चूत की दीवारों ने चोदू लंड को पूरी शक्ति से चूसना शुरू कर दिया। नजीबा के नशे ने उसमें नयी उत्तेजना और ऊर्जा भर दी। थी और वो उस चोदू कुत्ते की शक्ति की बराबरी कर रही थी। टीपू का लंड जब उसकी चूत में अंदर फँसता तो नजीबा उतनी ही ताकत से अपने चूतड़ पीछे ठेल देती। और जब टीपू अपना लंड बहर खींचता तो नजीबा अपने कुल्हे दांय-बांय घुमाती। टीपू प्रचंडता से अपना लंड नजीबा की चूत में ठेल रहा था और उसके फूले हुए आँड चूत के बाहर चपेतें मार रहे थे।

कुत्ते का लंड काफी बड़ा था और हर धक्के के साथ वो और अधिक फूल रहा था। नजीबा को लंड का सुपाड़ा अपनी चूत की बहुत गहरयी में धड़कता हुआ महसूस हो रहा था। टीपू का लंड उसकी चूत को कगार तक भर रहा था। जब भी वो झटक कर अपना सख्त लंड बाहर खींचता तो चूत के होंठ घिसट कर लगभग पल्ट से जाते। अंदर-बाहर ठिलते हुए लंड की छड़ का प्रत्येक हिस्सा नजीबा की क्लिट पर रगड़ रहा था।

किसी भी क्षण, नजीबा उस कुत्ते से गरमागरम वीर्य अपनी चूत में दागने की आशा कर रही थी। वो भी उस चिपचिपे गाढ़े रस की खुराक के लिए उत्सुक थी, पर फिर भी वासना से भरी कामुक औरत को इस चुदाई में इतना मज़ा आ रहा था कि वो इसका अंत नहीं चाहती थी। नजीबा चाहती थी कि कुत्ते के झड़ने के पहले उसकी चूत की चटनी बन जाये।

टीपू पूरी गरजना से चोद रह था। चूंकि उसके आँड सुबह ही शाजिया के चूत में खाली हुए थे, इसलिए वो इस समय दृढ़ता से चुदाई कर रहा था। हर पल उसका लंड पहले से ज्यादा फूल रहा था और उसके आँड भी वैसे ही फुल रहे थे। कुत्ते के लंड के खुले हुए मूत-छिद्र से अग्रिम वीर्य-स्राव लगातार चूत में टपक रहा था परंतु टीपू अभी झड़ने के लिये तैयार नहीं था। नजीबा को इस बात का एहसास नहीं था और उसे टीपू के शीघ्र ही झड़ने का अनुमान था, इसलिए उसने अपनी नज़रें दूसरे कुत्ते की तरफ घुमायीं और टीपू के झड़ने के पहले से ही मस्ती से औरंगजेब के लंड और वीर्य की कल्पना करने लगी। नजीबा का चेहरा दमक रहा था जब उसने उपेक्षित कुत्ते की तरफ देखा और पाया कि वो कितना तड़प रहा था।

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औरंगजेब झुक कर नजीबा के सामने बैठ गया। उसका शक्तिशाली विशाल लंड सीधा खड़ा था और उसके लंड का सुपाड़ा उसके वीर्य-स्राव के झाग से लिसड़ा हुआ था। वो गाढ़ा द्रव्य लंड के सुपाड़े के लाल माँस पर पारे की तरह बह रहा था। वीर्य-रस की पतलीपतली धारायें लंड से नीचे की तरफ बह रही थीं और चाँदी की तरह झिलमिलाती एक डोरी-सी उसके मूत-छिद्र से कार्पेट तक लटकी हुई थी।
 
नजीबा ये देख कर ठिनठिनाने लगी। वो औरंगजेब के प्रबल लंड की लिप्सा करने लगी जबकि टीपू उतने ही शक्तिमान लंड से उसकी चूत की लगातार धुनायी कर रहा था।

नजीबा को चिंत होने लगी थी कि दूसर कुत्ता, बेचरा जो इतनी देर से उपेक्षित था, कहीं ऐसे ही झड़ ना जाये और उसका गर्म और गाढ़ा वीर्य व्यर्थ हो जाये। नजीबा हाथ बढ़ा। कर उसके लंड और टट्टों को सहलाना चाह रही थी लेकिन उसे डर था थी कि कहीं गल्ती से कुत्ता झड़ ना जाये।
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तभी टीपू ने पीछे से नजीबा की चूत में जोर के झटके से एक करारा धक्का लगाया जिससे वो आगे की तरफ, औरंगजेब के नज़दीक खिसक गयी। औरंगजेब ने सिर उठा कर देखा। उसकी जीभ बाहर लटकी हुई थी। वो कुत्ता शाजिया द्वारा भली भांति प्रशिक्षित था और औरतों के मीठे भेद समझता था। नजीबा का सुंदर चेहरा कर्पेट पर नीचे औरंगजेब के पेट के स्तर तक झुका हुआ था। औरंगजेब रिरियाता हुआ खड़ा हो गया और उसने अपनी अगली टाँगें। नजीबा की गर्दन में डाल दीं और नजीबा के सिर पर इस तरह सवार हो गया जैसे टीपू नजीबा के चूतड़ों पर सवार था। औरंगजेब ने अपना लंड नजीबा के चेहरे पर धकेल दिया।


नजीबा ने चौंक कर अपना सिर घुमाया और कुत्ते का पत्थर की तरह सख्त लंड उसके गाल पर छूने लग और कुत्ते के वीर्य की चिपचिपी धार उसके गाल पर बहने लगी।
मादरचोद - ये चोद कुत्ता तो लंड चुसवाना चाहता है', नजीबा को एहसास हुआ तो इस ख्याल से वो दहल गयी।


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कुत्ते के लंड को चूसने का ख्याल नजीबा को कुत्ते से चुदवाने से भी ज्यादा विकृत लगा - पर उतना ही अधिक रोमाँचक भी। अपने दोनों छोरों में कुत्तों के लंड लेने की कल्पना से उस अति-कमुक और अय्याश औरत की हवस और बढ़ गयी और वो उस कुत्ते का लंड अपने मुँह में लेने के लिये अधीर हो गयी। नजीबा का सिर अभी भी एक तरफ घूमा हुआ था और औरंगजेब उत्तेजना से आगे-पीछे धक्के मारता हुआ उसके मुँह में अपना लंड डालने को छटपटा रहा था। वो कुण्ठा से भौंकने और रिरियाने लगा। कुत्ते की व्यग्रता और जोश असरदार था। नजीबा की पलकें फड़फड़ायीं और उसके थरथरते होंठों में से उसकी जीभ बाहर फिसल आयी।
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औरंगजेब थोड़ा सा पीछे हटा और उसके लंड का अग्रीम-स्राव से चूता हुआ सुपाड़ा नजीबा के मुँह पर फिसलने लगा और वीर्य उसके होठों पर बुदबुदाते हुए झाग बनाने लगा। आनजीबा ने अपनी जीभ फिरा कर वो चिपचिपा द्रव्य चाटा तो आवेश में उसके मुंह से सिसकरी निकल गयी। कुत्ते ने फिर से आगे की ओर धक्का लगाया तो उसके मोटे और वीर्य से लबालब भरे आँड नजीबा की ठुड्डी से टकराये। नजीबा ने अभी तक अपना मुँह नहीं खोला था। वो पूरी तरह निश्चय नहीं कर पायी थी कि वो कुत्ते का लंड चूसे या नहीं। कुत्ते के लंड का सुपाड़ा नजीबा के बंद होठों पर टक्कर मर रहा था जिससे नजीबा का सिर पीछे झुका हुआ था।
 
नजीबा ने अपनी मुट्ठी उसके लंड पर लपेट दी और अपने मुँह के सामने पकड़ कर उसकी चिकनी निचली सतह चूमने लगी। नजीबा ने अपनी नाक उस चिकने लंड पर रगड़ी और कुत्ते की तीखी पर मीठी सुगंध लेने लगी। उसने लंड को ऊपर-नीचे सहलाया तो सुपाड़ा जोर-जोर से धड़कने लगा और नजीबा के बंद होंठों पर और अधिक वीर्यस्राव छलक गया।
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उसके पीछे, टीपू ने एक वहशियाना धक्का मार कर जोर से अपना लंड नजीबा की चूत में ठेला और नजीबा जोर से चिल्लायी। वो स्वयं भी इस समय किसी जानवर की तरह ही स्वच्छंद वासना और कामुक्ता से चूर थी। वो जानती थी कि शायद सब कुछ ठंडा होने पर उसे पछतावा हो पर इस समय तो वो विकृत वासना की जकड़ में असहाय थी। टीपू ने फिर उसकी चूत में जोर से धक्का लगाया और नजीबा का चेहर औरंगजेब के लंड और टट्टों पर दब गया। नजीबा ने सिसकरी भरी और उसकी जीभ फिर बाहर फिसल आयी। उसने औरंगजेब के लंड के सुपाड़े की भीगी हुई निचली सतह चाटनी सूरू कर दी।

उसकी स्वाद-ग्रंथियों पर कुत्ते के लंड का कड़ा स्वाद पड़ा तो नजीबा आनंद से चिल्ला उठी। कुत्ते का लंड इतना चोदू स्वादिष्ट था कि उसकी आँखों में पानी आ गया।
उसकी गाँड और चूतड़ आगे पीछे झटकने लगे और वो गर्म और चुदास औरत उल्लासित होकर चुदवाने लगी। वो इतनी उत्साहित और मतवाली थी कि वास्तव में वो टीपू से भी ज्यादा तेज चुदाई कर रही थी और उसके लंड पर पिस्टन की तरह अपनी चूत ऊपरनीचे चला रही थी।

नजीबा की जीभ औरंगजेब के रसीले लंड पर हर जगह फिसल रही थी। कुत्ते के लंड से । चिपचिपा पदार्थ बुदबुदा कर निकलता और नजीबा झट से उसे चाट लेती और उसके थूक का झाग भी कुत्ते के लंड पर इकट्ठा हो रहा था। कुत्ते के लंड का अग्रिम स्राव नशे और वासना से चूर उस औरत की भूख बढ़ा रहा था और वो कुत्ते के टट्टों में उबलते हुए संपूर्ण वीर्य-रस को पीने के लिये तड़पने लगी थी। कुत्ते का वीर्य आदमी के वीर्य से अधिक गर्म और तीखा था और नजीबा उस लंड को चूसती हुई उत्तेजना के शीर्ष पर झूल रही थी।

नजीबा ने अपनी जीभ की नोक कुत्ते के लंड के फैले हुए मूत-छिद्र में घुसा दी और लंड के सुपाड़े को चूसती हुई वो उस छिद्र को जीभ से चोदने लगी। फिर उसने धीरे से अपने होंठ खोले और कुत्ते के लंड का स्वादिष्ट सुपाड़ा अपने मुँह के अंदर ले लिया। उसके होंठों ने चिकने लंड के चारों और से ढक लिया और वो लालसा से लंड को मुँह में भर कर चूसने लगी।
ऊऊऊमममममम, वो निहाल हो कर गोंगियाई।

कुत्ते के लंड को चूसते हुए नजीबा के गाल अंदर पिचक गये और उसके होंठ लंड के चारों ओर बाहर की तरफ मुड़ गये। उसकी जीभ लंड की निचली सतह पर फिसलने लगी।
 
कुत्ते का वीर्य अब नजीबा की जीभ पर बाढ़ की तरह लगातर बह रहा थ। हालांकि कुत्ता अभी झड़ा नहीं था परंतु उसका आरंभिक रिसाव भी किसी आम आदमी के संपूर्ण । - स्खलन से अधिक प्रचुर था। नजीबा मस्त हो कर उसे निगल रही थी।

औरंगजेब ने आगे-पीछे धक्के मारते हुए नजीबा के मुँह में अपना लंड इस तरह चोदना शुरू कर दिया जैसे कि वो नजीबा की चूत हो। उसका मुँह कुत्ते को चूत की तरह महसूस हो । रहा था - और नजीबा को भी। उसकी जीभ उसकी क्लिट की तरह ही गर्म थी और वो इतनी अधिक मात्रा में राल टपका रही थी जितनी कि उसकी चूत अपना मलाईदार रस छोड़ रही थी। औरंगजेब ने धक्का मार कर नजीबा का सिर पीछे झुकाते हुए अपने लंड का सुपाड़ा नजीबा के हलक में ठाँस दिया।

ऊममघघ” कुत्ते का लंड गले में अटकने से नजीबा की साँस घुटने लगी। फिर जब कुत्ते ने अपना लंड बाहर खींचा तो नजीबा ने बिल्ली जैसे घुरघुराते हुए लंड के आरपर हर बहुमूल्य हिस्से को चूसा।


उस कामुक औरत के दोनों छोरों पर सवार, नजीबा को आपस में बाँटते हुए, औरंगजेब और टीपू नजीबा के पीठ के ऊपर से एक दूसरे को ताक रहे थे। उनकी जीभे बाहर लटकी हुई थीं और आँखें चमक रही थीं। भली भांति प्रशिक्षित कुत्तों की तरह दोनों नजीबा को । एक ताल और लय में चोद रहे थे। टीपू नजीबा की चूत में धक्का मार कर चोदता और नजीबा का सिर औरंगजेब के लंड पर और आगे ढकेल देता। फिर औरंगजेब उसके मुँह में अपना लंड ठेल कर उसकी चूत को वापस टीपू के लंड पर पीछे ढकेल देता। नजीबा एक हड्डी की तरह उनके बीच में प्रतीत हो रही थी जिसके लिये दोनों कुत्ते लड़ रहे हों।

नजीबा निश्चय नहीं कर पा रही थी कि ये दोहरी चुदाई किस छोर से उसे अधिक आनन्द । दे रही थी। उसकी चूत थी कि मुँह की तरह टीपू का लंड चूस रही थी और उसका मुँह चूत की तरह चुद रहा था और वो चूदास औरत सातवें आसमन पर थी।

औरंगजेब ने अपना संपूर्ण विशाल लंड उसके मुँह में गाढ़ दिया और उसके आँड नजीबा की ठुड्डी के नीचे टकराने लगे। फिर टीपू ने भी उसकी चूत पूरी तरह अपने लहराते हुए लंड से भर दी। वो उन दोनों लौड़ों द्वारा इस तरह आरपार छिदी हुई प्रतीत हो रही थी जैसे सिलाई से छिदा हुआ सुअर आग के ऊपर भुना जा रहा हो। नजीबा को टीपू का लंड अपनी चूत में बिल्कुल अंदर तक धड़कता महसूस हुआ और फिर उसे औरंगजेब का लंड अपने गले में टकराता महसूस हुआ। उसे संदेह हुआ कि क्या दोनों कुत्तों के लौड़ों के सुपाड़े उसके बदन के बीच में कहीं आपस में टकरा रहे हैं।
 
नजीबा की चूत से मलाईदार रस बह रहा थ और मुँह से थूक की राल बह रही थी। असीम मादक सुख की तूफानी लहरें उसकी टाँगों से उठ कर उसकी चूत और पेट तक बह रही थीं और उसकी जीभ सनसना रही थी।
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जब औरंगजेब ने अपना लंड नजीबा के गले तक ठाँस कर उसके पेट में अपने वीर्य की धारायें छोड़ी तो नजीबा गोंगियाने लगी। नजीबा के होंठ औरंगजेब के लंड की बालों से ढकी जड़ पर लिपट गये और उसकी चूत के अधर भी टीपू के लंड की जड़ पर फैल गये।
दोनों कुत्ते आनन्द भरे शिखर की तरफ बढ़ते हुए भौंकने और गुर्राने लगे। नजीबा की चूत पहले से ही अपनी मलाई छोड़ रही थी और उसकी चूत जब पटाखों की लढ़ी की तरह फूटने लगी तो नजीबा कराहती और चिल्लाती हुई कुत्तों के झड़ने की प्रतीक्षा करने लगी। अपने मुँह और चूत में कुत्तों के वीर्य की पिचकारी छूटने के लिए नजीबा तड़प रही थी।
झड़ने की कगार पर पहुँचते हुए टीपू इतनी तेजी और ताकत से अपना लंड नजीबा की चूत में चोद रहा था कि उसकी पिछली टाँगें धुंधली दिखायी दे रही थीं। नजीबा को उसका लंड अपनी चूत में बहुत अधिक फूलता हुआ महसूस हो रहा था और उसकी चूत की दीवारें भी उस धड़कते हुए लंड के चारों और फैल रही थीं। वो औरंगजेब के सुहावने लंड को लोलुप्ता से चूस रही थी और उत्तेजना में गले तक भर कर निगलते हुए कलकल की आवाज़ निकाल रही थी। एक चुदक्कड़ औरत के लिये ये कितनी आनन्दप्रद स्थिति थी।
नजीबा बार-बार तीव्रता से झड़ रही थी और दोनों कुत्ते भी झड़ने के कगार पर थे।
| घुड़कते और गुर्राते हुए दोनों कुत्ते पूरे जोश में अपने लंड नजीबा की चुत और मुँह में
चोद रहे थे। नजीबा को टीपू का पूरा लंड बहुत जोर से अपनी चूत में घुसता महसूस हुआ तो वो सिसकी पर मुँह में औरंगजेब का लंड भरे होने के कारण उसकी सिसकरी की
आवाज़ दब गयी। फिर औरंगजेब ने भी आगे धक्का दिया और नजीबा का मुँह अपने लंड से इतना भर दिया कि उसके दोनों गाल एक साथ बाहर की ओर फूल गये।


नजीबा ने भी अपनी चूत टीपू के लंड पर जड़ तक पीछे ढकेल दी और औरंगजेब के लंड को इतनी जोर से चूसने लगी कि वो उसके लंड को अपने फेफड़ों में खींचती हुई प्रतीत हो रही थी। तभी नजीबा को अपनी चूत में टीपू के लंड की गाँठ और अधिक फूलती हुई महसूस हुई। एक बार तो उसने अपनी चूत को भींच कर वो गाँठ चूत से बाहर ढकेलने की नाकाम कोशिश की। फिर उसे एहसास हुआ कि वास्तव में उसे गाँठ के चूत में फूलने से मज़ा आने लगा था। चूत में कुत्ते के लंड की गाँठ का स्पंदन उसे आनंद प्रदान कर रहा था।
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टीपू के लंड से वीर्य का एक ढेर, रॉकेट की तरह निकल कर नजीबा की पिघलती हुई। चूत में फट पड़ा। नजीबा कराही और दूसरे ही पल औरंगजेब के लंड से गरमागरम वीर्य भभक कर उसके मुँह में भर गया।
वो कुत्ते नजीबा के दोनों छोरों में अपना वीर्य भर रहे थे। टीपू ने अपना लंड जड़ तक उसकी चूत में ठाँस दिया और उसके लंड की जड़ फुल कर एक डाट की तरह चूत में ।
फँस गयी। नजीबा की चूत उसके वीर्य से लबालब भरने लगी। औरंगजेब भी उसके मुँह में आइतनी प्रचुर मात्रा में वीर्य बहा रह था कि, हालाँकि नजीबा बड़े-बड़े चूँट पी कर निगल
रही थी पर फिर भी बहुत सारा बहुमूल्य पदार्थ उसके होंठों से बाहर निकल कर उसकी ठुड्डी के दोनों किनारों से नीचे बह रहा था। वो जोर-जोर से कुत्ते का लंड चूसते हुए उसका वीर्य निगल रही थी। कुत्तों का इतना सारा वीर्य उसकी चूत में झटपट ऊपर दौड़ रहा था और हलक के नीचे बह रहा था कि उसे लगने लगा कि उसका पेट गुब्बारे की तरह फूलने लगेगा। वीर्य के ढेर के ढेर उसकी चूत में फूट रहे थे और दूसरे सिरे पर उसके मुँह में भर-भर कर वीर्य बह रहा थ। दोनों कुत्ते कराहते हुए डगमगाने लगे और जैसे-जैसे उनके आँड खाली होने लगे उनके धक्के भी अस्थिर हो गये।

अतृप्य और चुदक्कड़ नजीबा दोनों कुत्तों के बीच में अभी भी हिल रही थी और अपनी चूत टीपू के लंड पर चोदती हुई, वीर्य से रिसते औरंगजेब के लंड को चूस रही थी। कुत्तों ने हिलना बंद कर दिया था और हाँफते हुए, उसके चूतड़ और कंधे के सहारे उससे चिपके हुए थे। नजीबा उन दोनों के बीच झटकती हुई उनके झड़े हुए लौड़ों पर अपनी चूत के अंतिम तरंग महसूस कर रही थी।
 
उसकी चूत की दीवारें टीपू के लंड पर ऐंठ कर उसके चिपचिपे वीर्य के आखिरी कतरे
खींचने लगी। औरंगजेब के लंड को भी नजीबा अपना सिर हिला-हिला कर चूसती हुई उसमें से वीर्य के बहुमूल्य कतरे अपनी जीभ पर निकालने की कोशिश कर रही थी। वो आनन्द से सिसकी जब उसकी क्लिट में एक अंतिम झनझनाहट उठी। फिर उसने हिलना बंद कर दिया।


जैसे ही नजीबा अपने चरम कामोन्माद के बाद थोड़ी सी संभली तो उसने टीपू को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश की, लेकिन कुत्ते के लंड की गाँठ उन दोनों को कस कर एक साथ जकड़े हुए थी। असल में नजीबा को वो गाँठ और भी बड़ी होती हुई महसूस हुई। टीपू ने अपनी टाँगें नजीबा की कमर से हटा लीं और पीछे घूम गया जिससे अब उन दोनों की गाँड एक दूसरे से जुड़ी हुई थी। नजीबा को अचंभा हुआ कि टीपू अपना लंड उसकी चूत में से बाहर क्यों नहीं निकाल पा रहा था और उसके लंड की गाँठ अभी भी नजीबा की चूत में फँसी हुई थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करेगी। नजीबा ने घबरा कर अपनी गाँड को दो-तीन झटके दे कर स्वयं को कुत्ते से आज़ाद करने की कोशिश की पर जब इससे नजीबा को बहुत दर्द हुआ तो उसने । कुत्ते से अलग होने की कोशिश छोड़ दी।
नजीबा को याद आया कि कुत्तिया को चोदने के बाद कुत्तों का लंड कुछ देर तक अंदर फँसा रहता है। नजीबा की परेशानी कुछ कम हुई और उसने सोचा कि उसे कुत्ते के लंड की गाँठ के सिकुड़ने का कुछ देर इंतज़ार करना पडेगा और वैसे उसे गाँठ के फूलने से मज़ा भी आ रहा था। वो औरंगजेब के लंड को भी मुँह में लिये हुए थी। वो सोच रही थी कि
क्या ऐसा हो सकता है कि उसकी चूत और मुँह से बाहर निकलने के पहले ही वो लंड फिर सख्त हो जायें? काफी कामुक ख्याल था और नवीन जोश के संकेत की उम्मीद में उसने अपनी चूत की दीवारों को टीपू के लंड पर एक बार भींच दिया।
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शाजिया, उस समय, गधे के चट्टान जैसे सख्त लंड का इलाज कर रही थी।
गधा तिरछा घूम गया था और शाजिया ललचायी नज़रों से उसके विशाल लंड को निहार रही थी। इसमें कोई ताज्जुब नहीं था कि वो जानवर इतना हट्टा-कट्टा था, शाजिया ने सोचा। इतने 
भारी लंड और टट्टों को हर समय ढोने से शरीर तो बलवान बनेगा ही।

अब वक्त आ गया था उस गधे के बोझ को कम करने का - उसके टट्टों को रिक्त करके उसके लंड के अकड़ाव को कम करने का। शाजिया घुटनों के बल उसके नज़दीक खिसकी। गधा रेंकने लगा और उसके लंड की मांसपेशियाँ फड़कने लगी और वो लंबा लंड ऊपरनीचे झटकने लगा। जब वो लंड ऊपर की ओर झटकता तो उसका चमकीला काला सुपाड़ा गधे की छाती से टकराता। वो मूसल काला लंड वीर्य से चुपड़ा हुआ था और जब वो गधे की छाती पर टकराया तो लिसलिसे वीर्य के छींटे उड़े। यह देख कर शाजिया ने सिसकरी भरी और वो अपने होंठ चाटने लगी।
शाजिया ने अपना हाथ बढ़ा कर उस उत्तेजित गधे के लंड पर टट्टों से सुपाड़े तक फिराया। लंड की मोटी नस शाजिया के हाथ में धड़कने लगी। शाजिया ने अपनी अंगुलियाँ उसके सुपाड़े के निचके हिस्से पर फिरायीं और उसकी दरार से और अधिक लिसलिसा द्रव्य चू कर सुपाड़े पर से बहता हुआ शाजिया के हाथ में टपकने लगा।
 
उसने अपना चिकना हाथ वापस खींचा और अपने चेहरे के सामने ला कर उस चिपचिपे वीर्य में अपनी जीभ डुबा दी। शाजिया की आखें सिकुड़ गयी और उसकी लंबी पलकें फड़फड़ाने लगी। उसने अपने खुले होंठ अपने हाथ पर दबा कर गधे का वीर्य अपने मुँह में अंदर सुड़क लिया। वो पदार्थ इतना गाढ़ा और चिपचिपा था कि शाजिया को लगा जैसे उसके मुँह में कच्ची झींगा मछली हो। फिर वो पदार्थ शाजिया की गरम जीभ पर पिघल गया और वो रिरियाते हुए उसे पी गयी।
गधे ने सिर घुमा कर शाजिया को देखा। उसकी जाँचें थरथराने लगी और उसका लंड आगे निकल कर हवा में लहराते हुए अपने मूत-छिद्र से और वीर्य छलकाने लगा।

हाथ से चाटने के बावजूद गधे का वीर्य बहुत स्वादिष्ट था और शाजिया लालच से कराहने लगी। उसकी लंड चूसने की इच्छा तीव्र हो गयी थी।
शाजिया ने झुक कर अपनी जीभ गधे के लंड के सुपाड़े पर फिरानी शुरू कर दी। उसकी
गुलाबी जीभ तरलता से लंड के काले माँस पर फिसलने लगी और उस पर चुपड़ा हुआ | चिपचिपा पदार्थ चाटने लगी। गधा उत्तेजना से कांपने लगा। गधा समझ नहीं पा रहा था कि हो क्या रहा है - इस औरत की मुख-मैथुन की रूचि उस बेवकूफ गधे के लिये रहस्य थी - पर उसे बहुत ही निराला आनंद महसूस हो रहा था।
गधे का लंड फिर से लहराने लगा और और उसका सुपाड़ा शाजिया के होंठों पर फिसलने । लगा। शाजिया ने उसके लंड की लंबी और चमड़े जैसी छड़ को चाटना शुरू कर दिया और वो अपनी जीभ उस पर लपेट कर फिराती हुई मग्न हो कर चाट रही थी। फिर वो अपनी जीभ सपाट करके गधे के लंड की नीचे की फड़कती हुई मोटी नस पर सरकाती हुई पीछे लंड की जड़ तक ले गयी और फिर कुछ समय उसके फूले हुए टट्टों पर जीभ फिराने में बिताया।
गधे का उपेक्षित लंड फिर कूदने लगा। शाजिया को डर था कि कहीं वो गधा जल्दी ही अपना वीर्य ना छोड़ दे। वीर्य की भूखी वो औरत चाहती थी कि चिपचिपे वीर्य के झरने के फुटने के वक्त, उसका मुँह सही जगह पर हो। शाजिया उसके लंड की छड़ पर अपने होंठ कस कर उसकी बांसुरी बजाती हुई आगे की तरफ चाटने लगी। उस विराट लंड के
भारी सुपाड़े पर अपने होंठ आगे खिसकाते हुए शाजिया का मुँह उस लंड के तीखे पर ॥ रसभरे स्वाद से सनसना रहा था।
लंड के सुपाड़े के निचले हिस्से पर अपनी जीभ और होंठ सपाट करके शाजिया उसके उस नाज़ुक स्थान को सहलाने लगी जहाँ लंड की छड़ की मोटी नस सुपाड़े के नीचे त्रिकोण में फैलती है। फिर उसने अपना मुँह सुपाड़े के इर्द-गिर्द खोलना शुरू कर दिया।

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उस सुनसान वातावरण में शाजिया को घर की तरफ से कुत्तों के गुर्राने और भौंकने की धुंधली सी आवाज़ आ रही थी। शाजिया सोच रही थी कि औरंगजेब और टीपू शायद उसे चोदने की प्रतीक्ष में उत्तेजित हो रहे होंगे पर उसे बिल्कुल भी आभास नहीं था कि उसके कुत्ते उसकी सहेली को चोद कर मतवाले हो रहे हैं।
शाजिया ने अपने जबड़े चौड़े फैलाये और एक भयानक क्षण के लिये शाजिया को लगा कि गधे का लंड उसके मुँह में समाने के लिये काफी बड़ा है। वो कुण्ठा से कराही। उसने सोचा कि उसे लंड के सुपाड़े पर अपना मुँह लगा कर रखना पड़ेगा और अपने होठों से लंड को रगड़ कर उसे स्खलित करना पड़ेगा। शाजिया को यह उपाय भी अच्छा लगा पर उसे ज्यादा मज़ा तब आता जब झड़ते समय गधे का चोदता हुआ लंड ठीक उसके मुँह के अंदर हलक तक होता।
परंतु फिर शाजिया के होंठ उस चिकने सुपाड़े के चारों ओर फैल गये और उसका निचला जबड़ा भी फैल कर लगभग उसकी चूचियों तक पहुँच गया और फिर सुड़कता हुआ गधे के लंड का सुपाड़ा शाजिया के मुँह में लुप्त हो गया।
गधा तो जैसे पागल हो गया। उसका पूरा बदन उत्तेजना और आनंद से उछलने लगा। पहली बार उसे औरत के मुँह से अपना लंड चुसवाने के आनंद का एहसास हुआ था। उसका सुपाड़ा फूल कर शाजिया के कण्ठ में भर गया।
 
शाजिया उसे अति-लोलुप्ता से चूस रही थी। उसके दोनों मुलायम गाल लंड से पूरी तरह भरे हुए थे और बाहर की तरफ फूले हुए थे। उसके होंठ भी सुपाड़े के ऊपर खिंच कर सुपाड़े
को बिल्कुल पीछे जकड़े हुए थे। सुपाड़े का टपकता हुआ अग्रभाग शाजिया के गले में दबा हुआ था पर वो इतना मोटा था कि हलक के नीचे नहीं फिसल सकता था और हलक के द्वार पर फँसा हुआ शाजिया के उदर में वीर्य छलका रहा था। शाजिया के मुँह में उसकी जीभ के लिये कोई स्थान नहीं रह गया था वो चुस्त और चटोरी जीभ सुपाड़े के तले फँसी हुई थी।।
शाजिया को साँस लेने में दिक्कत हो रही थी और जब वो अंदर साँस लेती तो सुपाड़े के चारों ओर सीटी सी बज रही थी। शाजिया हाँफ रही थी और गोंगिया रही थी पर उसने लंड चूसना जारी रखा। वो लंड के मस्की स्वाद का आनन्द लेते हुए उसके वीर्य के छूटने की लालसा कर रही थी।
मुख मैथुन के प्रथागत तरीके (ट्रेडिशनल मैनर) के अनुसार उसने अपने सिर को ऊपरनीचे हिचकोले देने की कोशिश की पर वो उस लंड की मोटी छड़ पर और आगे अपने होंठ नहीं खिसका पायी। लंड के सुपाड़े ने ही उसका मुँह आखिर तक भर दिया था।
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शाजिया ने अपने खुले हाथ गधे के लंड पर पर पीछे खिसका कर लंड की नाल को अपने दोनों हाथों में भर लिया। फिर उसके टट्टों को सहलाती और पुचकारती हुई उन्हें प्यार से ऐसे ऊपर-नीचे खींचने लगी जैसे कि गाय का दूध दुह रही हो - पर वो तो इतने गाढ़े और मालईदार दूध की लालसा कर रही थी जितना कभी किसी गाय के थन से ना निकला होगा।
गधे के टट्टों से खेलते हुए शाजिया लगातार उसके लंड के सुपाड़े को चूस रही थी। अपने होंठ, जीभ और गालों को समान स्वर में उपयोग करती हुई शाजिया अपने मुँह में लंड के माँस के स्वाद का मज़ा लेती हुई डेज़र्ट के लिये उत्सुक हो रही थी।
अपने नये अनुभव से सन्न होकर वो गधा अपनी टाँगें फैलाये स्थिर खड़ा था। उस जानवर । को एहसास हो गया था कि औरत का मुँह, चूत का अच्छा विकल्प था और यह कि औरत दोनों छोरों से चुदाई योग्य बहुत ही शानदार जीव थी।
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वो गधा अपने लंड को ठेलता हुआ शाजिया के मुँह को ऐसे चोदने लगा जैसे वो चूत हो। जब उसने अपना लंड आगे ठेला तो शाजिया का सिर पीछे झुक गया और जब उसने लंड पीछे लिया तो शाजिया ने अपने होंठ लंड पर लपेट कर अपना चेहरा तिरछा मरोड़ लिया।
जब मोटे मूसल जैसे लंड के सुपाड़े ने और वीर्य शाजिया के मुँह में छलकाया तो वो उसके आफैले हुए होंठों के किनारों से बाहर बह निकला। शाजिया की जीभ मानो लिसलिसे वीर्य के
समुद्र में तैर रही थी। उसने मुँह भर कर वो चिपचिपा वीर्य निगला और उसके मूत-छिद्र से और वीर्य दुहने लगी। वो हाँफते हुए गलल-गलल करती हुई पूँट पी रही थी और वासना में डूब कर गधे के रसभरे लंड की मन ही मन प्रशंसा कर रही थी।

जब वो झड़ने के कगार पर आया तो गधे ने एक झटका लगाया और उसका लंड शाजिया के मुंह में और फैल गया और उसके होंठों को इलास्टिक बैंड की तरह फैला कर और चौड़ा कर दिया। शाजिया उसके टट्टों को खींच रही थी और उसे वो फूलते और हिलकोरे मारते महसूस हुए। गधे के वीर्य के लिये शाजिया इतनी अधीर हो रही थी कि उसने अपने हाथ गधे के टट्टों से हटा कर उसके लंड को फकड़ लिया और चूसने के साथ-साथ अपनी मुट्टियों से रगड़ कर लंड को उकसाने लगी।
शाजिया जोर-जोर से अपने हाथ लंड की नाल पर चलाने लगी और जब टट्टों में से वीर्य तेजी से बाहर बढ़ने लगा तो शाजिया को लंड में धड़कन महसूस हुई। शाजिया आशा से चींख
उठी पर मुँह में भरे लंड के सुपाड़े पर उसकी चींख दब गयी। वो लालसा से लंड को | चूसते हुए फिर अपने हाथों में मसलने लगी।
 
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