hotaks444
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बात एक रात की--86
गतान्क से आगे.................
कुछ भी करने और कहने का मोका नही मिला रोहित को. पेड़ का तना झट से काट दिया साइको ने और तने के कट-ते ही खौफनाक खाई ने खींच लिया रोहित और शालिनी को. गिरते हुए रोहित चिल्लाया, "हम मर रहे हैं पर तुझे तेरे पापो की सज़ा ज़रूर मिलेगी कामीने."
"मेरा बदला पूरा हुआ. तुम दोनो को भयानक मगर सुंदर मौत दी और मेरी आर्ट का हिस्सा भी बन गये तुम दोनो हिहिहिहीही अब पद्मिनी की बारी है. उसका तो मास्टर पीस बनाउन्गा मैं. वैसे तुम दोनो की ये मौत भी मास्टर पीस से कम नही है हहेहहे."
..............................
....................................................................
पद्मिनी गहरी नींद से चिल्ला कर उठी, "रोहित...."
आवाज़ बाहर जीप में बैठे राज शर्मा को भी सुनाई दी. वो दरवाजे की तरफ भागा. और उसने घर की बेल बजाई. घर में काम वाली बाई रुकी हुई थी. उसने दरवाजा खोला.
"क्या हुआ, पद्मिनी जी क्यों चिल्लाई."
"मुझे नही पता. मैं भी उनकी आवाज़ सुन कर अभी उठी."
राज शर्मा पद्मिनी के कमरे की तरफ दौड़ा. सीढ़ियाँ चढ़ कर वो उपर आया और पद्मिनी के रूम के दरवाजे को पीटने लगा, "पद्मिनी जी क्या हुआ, दरवाजा खोलिए."
पद्मिनी काँपते कदमो से उठी बिस्तर से और दरवाजा खोला. वो बहुत डरी हुई लग रही थी.
"क्या हुआ पद्मिनी जी आप क्यों चिल्लाई थी."
"मैने बहुत भयानक सपना देखा राज शर्मा, मुझे बहुत डर लग रहा है."
"ओह...सपना ही तो था. इसमे डरने की क्या बात है. वैसे क्या देखा आपने सपने में."
"मैने देखा की पोलीस स्टेशन में ही साइको ने रोहित की गर्दन....नही बोल सकती मैं..."
"कोई बात नही मैं समझ गया. आप घबराओ मत. लगता है रोहित सर आपके अच्छे दोस्त थे कॉलेज में."
"हां बहुत अच्छे दोस्त थे हम. मैं रोहित से बात करना चाहती हूँ. क्या उसका नंबर है तुम्हारे पास."
"नंबर तो है पर इस वक्त रात के 2 बजे हैं और शायद वो सो रहे होंगे."
"मुझे नंबर दो प्लीज़ मुझे अभी बात करनी है रोहित से."
"क्या आप प्यार करती हैं रोहित सर से." राज शर्मा ने दर्द भारी आवाज़ में कहा.
"ओह कम ऑन, नंबर दो प्लीज़. हम अच्छे दोस्त थे बस कितनी बार कहूँ और तुम्हे क्या हक़ है ये सवाल करने का, खुद तो 10-10 लड़कियों से संबंध रखते हो और मुझसे ऐसा सवाल करते हो."
राज शर्मा ने नंबर दे दिया पद्मिनी को. पद्मिनी ने तुरंत नंबर मिलाया.
"हेलो रोहित, थॅंक गॉड तुमने फोन उठाया."
"ओह तो ये फोन किसी रोहित का है."
"कौन हो तुम?" पद्मिनी ने पूछा.
"मुझे ये फोन सड़क किनारे पड़ा मिला. मैने उठा लिया. सोच रहा था कि सुबह पोलीस स्टेशन जमा कर दूँगा. आप अपना अड्रेस दे दो मैं फोन आपके अड्रेस पर दे दूँगा."
पद्मिनी ने फोन काट दिया.
"क्या हुआ पद्मिनी जी."
"फोन किसी आदमी के पास था. कह रहा था कि उसे वो सड़क किनारे मिला. मुझे तो रोहित की चिंता हो रही है...कही सच में तो साइको ने उसे...."
राज शर्मा ने अपने फोन से फोन मिलाया रोहित का और उस आदमी को पद्मिनी के घर का अड्रेस दे दिया.
"है तो बहुत अजीब बात. पर हो सकता है की रोहित सर का फोन ग़लती से सड़क पर गिर गया हो."
"राज शर्मा, पहले वो सपना अब ये रोहित का फोन सड़क पर मिलना, मुझे किसी अनहोनी का अंदेसा हो रहा है."
"आप घबराओ मत, सो जाओ आराम से. ये सब इत्तेफ़ाक है"
"नही मेरा दिल घबरा रहा है, कुछ ना कुछ गड़बड़ ज़रूर है."
"मैं ए एस पी साहिबा को फोन मिलाता हूँ. शायद उन्हे कुछ पता हो." राज शर्मा ने शालिनी का फोन मिलाया.
"हेलो मेडम मैं राज शर्मा बोल रहा हूँ."
"हिहिहिहीही बोलते रहो बेटा वो तो मेरी आर्ट का हिस्सा बन चुकी है हाहहहाहा अब पद्मिनी की बारी है. तू घर पर है ना उसके. उसे समझा कि आँखो में ख़ौफ़ भर ले अब उसका नंबर आ गया है. बहुत इंतेज़ार कर लिया मैने."
राज शर्मा को बहुत गुस्सा आ रहा था मगर पद्मिनी के कारण चुप रहा.
"ओह थॅंक यू मेडम, ठीक है रोहित सर का फोन नही मिल रहा था इसलिए ट्राइ किया."
"अबे उल्लू के पत्थे रोहित भी टपका दिया शालिनी के साथ, और ये अजीब बातें क्यों कर रहा है मेरी बात समझ नही आ रही क्या तुझे हिहिहीही."
"ओके गुड नाइट मेडम." राज शर्मा ने भारी मन से कहा. उसकी आँखे नम हो गयी थी रोहित और शालिनी के बारे में सुन कर.
राज शर्मा ने फोन काट दिया.
"क्या हुआ तुम्हारी आँखे नम क्यों हैं." पद्मिनी ने पूछा.
राज शर्मा पद्मिनी को सब कुछ बता कर डराना नही चाहता था. "कुछ नही मेडम ने आज पहली बार प्यार से बात की."
"तुम्हारा उसके उपर भी दिल है क्या, निकल जाओ अभी मेरे घर से. पता नही कैसा प्यार है तुम्हारा."
………………………………………………………………….
"खो...खो...आअहह" खाँसते हुए उठा वो. मुँह से मानो खून की नादिया बह रही थी उसके. आँखे खोली उसने. हल्की सी रोशनी देखाई दी उसे.
"लगता है सुबह हो गयी है" उसने मन ही मन सोचा और अचानक वो बेचैन हो गया और बड़बड़ाया,"मेडम कहाँ है."
रोहित ने उठने की कोशिस की पर वो उठ नही पाया.
"खो...खो...आअहह...रोहित"
"मेडम.... आप कहाँ हो"
"तुम्हारे सर के बिल्कुल उपर. उठो रोहित और मुझे मार दो प्लीज़ आहह."
"ये..ये आप क्या कह रही हैं...प्लीज़ ये सब मत बोलिए. मुझे माफ़ कर दीजिए कुछ नही कर पाया मैं आपके लिए."
"तो अब कर दो, मुझे मार दो प्लीज़." शालिनी गिड़गिडाई.
रोहित के मन में खाई में गिरने का पूरा नज़ारा घूम गया. उपर से गिरने के बाद वो दोनो तीन बार अलग अलग पेड़ में अटके. इस कारण वो सीधा नीचे गिरने से बच गये मगर अब उनको अपना बचना भी कष्टदायी लग रहा था.
रोहित ने पूरा ज़ोर लगा कर हल्की सी अपनी गर्दन उठाई. अपने शरीर को देख कर काँप गया वो. उसके घुटने बुरी तरह छिल गये थे और उनमे से खून बहे जा रहा था. कुछ ऐसा ही हाल था लगभग शरीर के हर अंग का. रोहित ने पूरी कोशिस की उठने की मगर उठ नही पाया. किसी तरह से उसने करवट ली और सर को उठा कर शालिनी की तरफ देखा. रो पड़ा वो शालिनी को देख कर. पेट में एक लकड़ी घुसी हुई थी शालिनी के और वो दर्द से छट पटा रही थी. अब रोहित को समझ में आया की वो क्यों उसे उसको मारने को बोल रही थी.
रोहित आँखो में आँसू लिए ज़मीन पर खुद को घसीट-ता हुआ शालिनी की ओर बढ़ा और उसके पास आ कर बोला, "माफ़ कर दीजिए मुझे मेडम, कुछ नही कर पाया मैं आपके लिए."
"र..रोहित मैं सह नही पा रही हूँ. प्लीज़ मुझे मार दो."
"नही कर पाउन्गा ये पाप, प्लीज़ ये सब करने को ना बोलिए."
"तुम समझ नही रहे हो मैं तड़प रही हूँ कब से पर ये जान पता नही क्यों नही जा रही...." रोने लगी शालिनी ये बोल कर.
"हे भगवान मेरी मदद कर." रोहित ने कहा और पूरा ज़ोर लगा कर उठने की कोशिस की.
उठते वक्त उसे ऐसा लगा जैसे की उसका घुटना बाहर आ जाएगा. मगर शालिनी की हालत देख कर उसमे कुछ करने का जोश आ गया था और वो किसी तरह से उठ गया.
"मेडम आपको हॉस्पिटल ले जाउन्गा मैं. आप मरने की बाते मत करो प्लीज़." रोहित बोल कर लड़खड़ा कर फिर से गिर गया.
"कैसे ले जाओगे रोहित. तुम खुद को नही संभाल पा रहे हो. मुझे मार कर निकल जाओ यहा से, प्लीज़."
"आपके साथ ही मारना पसंद करूँगा मैं यहा से अकेले जाने की बजाए."
"तुम पागल हो गये हो. अच्छा मत मारो मुझे मगर यहा से निकल जाओ तुम. मैं कुछ ही पल की मेहमान हूँ लगता है. मेरे उपर वक्त बर्बाद मत करो...जाओ."
"आपको छोड़ कर कही नही जा रहा मैं." रोहित फिर से हिम्मत करके खड़ा हो गया.
"इट्स आन ऑर्डर रोहित चले जाओ."
"जाउन्गा तो आपको साथ लेकर ही जाउन्गा. आपके किसी ऑर्डर को नही मानूँगा आज."
रोहित ने बड़ी मुस्किल से उठाया शालिमि को और उसे गोदी में लेकर वाहा से चल दिया लड़खड़ाते हुए कदमो से.
"ये लकड़ी तो खींच लो बाहर कम से कम." शालिनी गिड़गिडाई.
"नही इसे अभी निकाला तो आपकी जान को ख़तरा बढ़ जाएगा."
"रोहित खाई में हैं हम. कैसे निकलेंगे यहाँ से. मुझे उठा कर कैसे चढ़ोगे पहाड़ पर. मेरी बात मानो तुम निकल जाओ यहा से और जींदा मत छोड़ना साइको को. गोली मारना उसके सर में." शालिनी ने कहा.
"आप मारेंगी उसे गोली और आप चुप रहो बस.. जैसे भी हो मैं आपको ले चलूँगा हॉस्पिटल."
रोहित हिम्मत करके गोदी में उठा कर चल तो रहा था शालिनी को मगर जल्द ही उसे ये अहसास हो गया कि वो हारी हुई बाजी खेल रहा है. खाई के चारो तरफ पहाड़ियाँ बहुत स्टीप थी. उनपर शालिनी को गोदी में लेकर चढ़ना नामुमकिन था. उसकी गोदी में शालिनी दर्द से छटपटा रही थी और उसे शालिनी की मौत नज़दीक नज़र आ रही थी. इतना निराश हो गया रोहित कि रो पड़ा फिर से.
"मैं क्या करूँ भगवान कोई तो रास्ता दिखाओ, मैं कैसे और कहा से लेकर जाउ मेडम को हॉस्पिटल."
शालिनी ने आँखे खोल कर रोहित की ओर देखा. वो भी रो पड़ी, रोक नही पाई खुद को. उसने रोहित के गाल पर हाथ रखा और बोली, "रोहित एक ही रास्ता है जिसे तुम देख कर भी इग्नोर कर रहे हो. क्यों ढो रहे हो मुझे. मरने ही वाली हूँ मैं. तुम बेवजह अपना वक्त बर्बाद कर रहे हो. क्या अपनी मेडम की बात नही मानोगे, प्लीज़ छोड़ दो मुझे मेरे हाल पर और यहाँ से निकल जाओ. तुम्हे भी मेडिकल अटेन्षन की ज़रूरत है. जाओ तुम्हे उस साइको को गोली मारनी है अभी. मैं बॉस हूँ तुम्हारी मेरी बात मान-नी पड़ेगी तुम्हे."
"शट अप, बकवास बंद करो अपनी. आई मेरी बॉस. बॉस हो तो क्या कुछ भी बोलॉगी. तुम्हारे बिना जंगल से नही जाउन्गा मैं. तुम्हे कुछ हो गया तो खुद को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा. चुप रहो बिल्कुल, एक शब्द भी निकाला मुँह से तो थप्पड़ पड़ेगा अब. आई बड़ी बॉस हुह."
"बॉस को डाँट रहे हो, आप से तुम पर आ गये, और थप्पड़ क्यों मारोगे तुम, अपनी हद में रहो आअहह." शालिनी दर्द से कराह उठी.
"दुबारा बेहूदा बात की मुझसे तो थप्पड़ ज़रूर पड़ेगा. क्या समझती हो खुद को तुम. हर वक्त तुम्हारी ही बात मानी जाएगी क्या."
"रोहित प्लीज़, मैं तुम्हारे लिए बोल रही हूँ. कोई रास्ता नही है यहा से निकलने का. मुझे उठा कर तो कभी नही निकल पाओगे. मेरी बात मान लो छोड़ दो मुझे यही."
"मैने कहा ना अकेले यहा से नही जाउन्गा मैं. यहा से हम साथ जाएँगे. नही जा पाए तो साथ मरेंगे यही."
"कौन हूँ मैं तुम्हारी जो ऐसी बाते कर रहे हो?"
"इंसानियत का रिस्ता है आपसे. इतना काफ़ी है आपसे ऐसी बाते करने के लिए."
"कोई भी रास्ता नही है रोहित, समझते क्यों नही तुम आआहह."
"कहते हैं कि जहाँ चाह, वहाँ राह. कोई ना कोई रास्ता ज़रूर मिलेगा हमें. वैसे साइको ने आपको कैसे किडनॅप कर लिया."
क्रमशः.........................
गतान्क से आगे.................
कुछ भी करने और कहने का मोका नही मिला रोहित को. पेड़ का तना झट से काट दिया साइको ने और तने के कट-ते ही खौफनाक खाई ने खींच लिया रोहित और शालिनी को. गिरते हुए रोहित चिल्लाया, "हम मर रहे हैं पर तुझे तेरे पापो की सज़ा ज़रूर मिलेगी कामीने."
"मेरा बदला पूरा हुआ. तुम दोनो को भयानक मगर सुंदर मौत दी और मेरी आर्ट का हिस्सा भी बन गये तुम दोनो हिहिहिहीही अब पद्मिनी की बारी है. उसका तो मास्टर पीस बनाउन्गा मैं. वैसे तुम दोनो की ये मौत भी मास्टर पीस से कम नही है हहेहहे."
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पद्मिनी गहरी नींद से चिल्ला कर उठी, "रोहित...."
आवाज़ बाहर जीप में बैठे राज शर्मा को भी सुनाई दी. वो दरवाजे की तरफ भागा. और उसने घर की बेल बजाई. घर में काम वाली बाई रुकी हुई थी. उसने दरवाजा खोला.
"क्या हुआ, पद्मिनी जी क्यों चिल्लाई."
"मुझे नही पता. मैं भी उनकी आवाज़ सुन कर अभी उठी."
राज शर्मा पद्मिनी के कमरे की तरफ दौड़ा. सीढ़ियाँ चढ़ कर वो उपर आया और पद्मिनी के रूम के दरवाजे को पीटने लगा, "पद्मिनी जी क्या हुआ, दरवाजा खोलिए."
पद्मिनी काँपते कदमो से उठी बिस्तर से और दरवाजा खोला. वो बहुत डरी हुई लग रही थी.
"क्या हुआ पद्मिनी जी आप क्यों चिल्लाई थी."
"मैने बहुत भयानक सपना देखा राज शर्मा, मुझे बहुत डर लग रहा है."
"ओह...सपना ही तो था. इसमे डरने की क्या बात है. वैसे क्या देखा आपने सपने में."
"मैने देखा की पोलीस स्टेशन में ही साइको ने रोहित की गर्दन....नही बोल सकती मैं..."
"कोई बात नही मैं समझ गया. आप घबराओ मत. लगता है रोहित सर आपके अच्छे दोस्त थे कॉलेज में."
"हां बहुत अच्छे दोस्त थे हम. मैं रोहित से बात करना चाहती हूँ. क्या उसका नंबर है तुम्हारे पास."
"नंबर तो है पर इस वक्त रात के 2 बजे हैं और शायद वो सो रहे होंगे."
"मुझे नंबर दो प्लीज़ मुझे अभी बात करनी है रोहित से."
"क्या आप प्यार करती हैं रोहित सर से." राज शर्मा ने दर्द भारी आवाज़ में कहा.
"ओह कम ऑन, नंबर दो प्लीज़. हम अच्छे दोस्त थे बस कितनी बार कहूँ और तुम्हे क्या हक़ है ये सवाल करने का, खुद तो 10-10 लड़कियों से संबंध रखते हो और मुझसे ऐसा सवाल करते हो."
राज शर्मा ने नंबर दे दिया पद्मिनी को. पद्मिनी ने तुरंत नंबर मिलाया.
"हेलो रोहित, थॅंक गॉड तुमने फोन उठाया."
"ओह तो ये फोन किसी रोहित का है."
"कौन हो तुम?" पद्मिनी ने पूछा.
"मुझे ये फोन सड़क किनारे पड़ा मिला. मैने उठा लिया. सोच रहा था कि सुबह पोलीस स्टेशन जमा कर दूँगा. आप अपना अड्रेस दे दो मैं फोन आपके अड्रेस पर दे दूँगा."
पद्मिनी ने फोन काट दिया.
"क्या हुआ पद्मिनी जी."
"फोन किसी आदमी के पास था. कह रहा था कि उसे वो सड़क किनारे मिला. मुझे तो रोहित की चिंता हो रही है...कही सच में तो साइको ने उसे...."
राज शर्मा ने अपने फोन से फोन मिलाया रोहित का और उस आदमी को पद्मिनी के घर का अड्रेस दे दिया.
"है तो बहुत अजीब बात. पर हो सकता है की रोहित सर का फोन ग़लती से सड़क पर गिर गया हो."
"राज शर्मा, पहले वो सपना अब ये रोहित का फोन सड़क पर मिलना, मुझे किसी अनहोनी का अंदेसा हो रहा है."
"आप घबराओ मत, सो जाओ आराम से. ये सब इत्तेफ़ाक है"
"नही मेरा दिल घबरा रहा है, कुछ ना कुछ गड़बड़ ज़रूर है."
"मैं ए एस पी साहिबा को फोन मिलाता हूँ. शायद उन्हे कुछ पता हो." राज शर्मा ने शालिनी का फोन मिलाया.
"हेलो मेडम मैं राज शर्मा बोल रहा हूँ."
"हिहिहिहीही बोलते रहो बेटा वो तो मेरी आर्ट का हिस्सा बन चुकी है हाहहहाहा अब पद्मिनी की बारी है. तू घर पर है ना उसके. उसे समझा कि आँखो में ख़ौफ़ भर ले अब उसका नंबर आ गया है. बहुत इंतेज़ार कर लिया मैने."
राज शर्मा को बहुत गुस्सा आ रहा था मगर पद्मिनी के कारण चुप रहा.
"ओह थॅंक यू मेडम, ठीक है रोहित सर का फोन नही मिल रहा था इसलिए ट्राइ किया."
"अबे उल्लू के पत्थे रोहित भी टपका दिया शालिनी के साथ, और ये अजीब बातें क्यों कर रहा है मेरी बात समझ नही आ रही क्या तुझे हिहिहीही."
"ओके गुड नाइट मेडम." राज शर्मा ने भारी मन से कहा. उसकी आँखे नम हो गयी थी रोहित और शालिनी के बारे में सुन कर.
राज शर्मा ने फोन काट दिया.
"क्या हुआ तुम्हारी आँखे नम क्यों हैं." पद्मिनी ने पूछा.
राज शर्मा पद्मिनी को सब कुछ बता कर डराना नही चाहता था. "कुछ नही मेडम ने आज पहली बार प्यार से बात की."
"तुम्हारा उसके उपर भी दिल है क्या, निकल जाओ अभी मेरे घर से. पता नही कैसा प्यार है तुम्हारा."
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"खो...खो...आअहह" खाँसते हुए उठा वो. मुँह से मानो खून की नादिया बह रही थी उसके. आँखे खोली उसने. हल्की सी रोशनी देखाई दी उसे.
"लगता है सुबह हो गयी है" उसने मन ही मन सोचा और अचानक वो बेचैन हो गया और बड़बड़ाया,"मेडम कहाँ है."
रोहित ने उठने की कोशिस की पर वो उठ नही पाया.
"खो...खो...आअहह...रोहित"
"मेडम.... आप कहाँ हो"
"तुम्हारे सर के बिल्कुल उपर. उठो रोहित और मुझे मार दो प्लीज़ आहह."
"ये..ये आप क्या कह रही हैं...प्लीज़ ये सब मत बोलिए. मुझे माफ़ कर दीजिए कुछ नही कर पाया मैं आपके लिए."
"तो अब कर दो, मुझे मार दो प्लीज़." शालिनी गिड़गिडाई.
रोहित के मन में खाई में गिरने का पूरा नज़ारा घूम गया. उपर से गिरने के बाद वो दोनो तीन बार अलग अलग पेड़ में अटके. इस कारण वो सीधा नीचे गिरने से बच गये मगर अब उनको अपना बचना भी कष्टदायी लग रहा था.
रोहित ने पूरा ज़ोर लगा कर हल्की सी अपनी गर्दन उठाई. अपने शरीर को देख कर काँप गया वो. उसके घुटने बुरी तरह छिल गये थे और उनमे से खून बहे जा रहा था. कुछ ऐसा ही हाल था लगभग शरीर के हर अंग का. रोहित ने पूरी कोशिस की उठने की मगर उठ नही पाया. किसी तरह से उसने करवट ली और सर को उठा कर शालिनी की तरफ देखा. रो पड़ा वो शालिनी को देख कर. पेट में एक लकड़ी घुसी हुई थी शालिनी के और वो दर्द से छट पटा रही थी. अब रोहित को समझ में आया की वो क्यों उसे उसको मारने को बोल रही थी.
रोहित आँखो में आँसू लिए ज़मीन पर खुद को घसीट-ता हुआ शालिनी की ओर बढ़ा और उसके पास आ कर बोला, "माफ़ कर दीजिए मुझे मेडम, कुछ नही कर पाया मैं आपके लिए."
"र..रोहित मैं सह नही पा रही हूँ. प्लीज़ मुझे मार दो."
"नही कर पाउन्गा ये पाप, प्लीज़ ये सब करने को ना बोलिए."
"तुम समझ नही रहे हो मैं तड़प रही हूँ कब से पर ये जान पता नही क्यों नही जा रही...." रोने लगी शालिनी ये बोल कर.
"हे भगवान मेरी मदद कर." रोहित ने कहा और पूरा ज़ोर लगा कर उठने की कोशिस की.
उठते वक्त उसे ऐसा लगा जैसे की उसका घुटना बाहर आ जाएगा. मगर शालिनी की हालत देख कर उसमे कुछ करने का जोश आ गया था और वो किसी तरह से उठ गया.
"मेडम आपको हॉस्पिटल ले जाउन्गा मैं. आप मरने की बाते मत करो प्लीज़." रोहित बोल कर लड़खड़ा कर फिर से गिर गया.
"कैसे ले जाओगे रोहित. तुम खुद को नही संभाल पा रहे हो. मुझे मार कर निकल जाओ यहा से, प्लीज़."
"आपके साथ ही मारना पसंद करूँगा मैं यहा से अकेले जाने की बजाए."
"तुम पागल हो गये हो. अच्छा मत मारो मुझे मगर यहा से निकल जाओ तुम. मैं कुछ ही पल की मेहमान हूँ लगता है. मेरे उपर वक्त बर्बाद मत करो...जाओ."
"आपको छोड़ कर कही नही जा रहा मैं." रोहित फिर से हिम्मत करके खड़ा हो गया.
"इट्स आन ऑर्डर रोहित चले जाओ."
"जाउन्गा तो आपको साथ लेकर ही जाउन्गा. आपके किसी ऑर्डर को नही मानूँगा आज."
रोहित ने बड़ी मुस्किल से उठाया शालिमि को और उसे गोदी में लेकर वाहा से चल दिया लड़खड़ाते हुए कदमो से.
"ये लकड़ी तो खींच लो बाहर कम से कम." शालिनी गिड़गिडाई.
"नही इसे अभी निकाला तो आपकी जान को ख़तरा बढ़ जाएगा."
"रोहित खाई में हैं हम. कैसे निकलेंगे यहाँ से. मुझे उठा कर कैसे चढ़ोगे पहाड़ पर. मेरी बात मानो तुम निकल जाओ यहा से और जींदा मत छोड़ना साइको को. गोली मारना उसके सर में." शालिनी ने कहा.
"आप मारेंगी उसे गोली और आप चुप रहो बस.. जैसे भी हो मैं आपको ले चलूँगा हॉस्पिटल."
रोहित हिम्मत करके गोदी में उठा कर चल तो रहा था शालिनी को मगर जल्द ही उसे ये अहसास हो गया कि वो हारी हुई बाजी खेल रहा है. खाई के चारो तरफ पहाड़ियाँ बहुत स्टीप थी. उनपर शालिनी को गोदी में लेकर चढ़ना नामुमकिन था. उसकी गोदी में शालिनी दर्द से छटपटा रही थी और उसे शालिनी की मौत नज़दीक नज़र आ रही थी. इतना निराश हो गया रोहित कि रो पड़ा फिर से.
"मैं क्या करूँ भगवान कोई तो रास्ता दिखाओ, मैं कैसे और कहा से लेकर जाउ मेडम को हॉस्पिटल."
शालिनी ने आँखे खोल कर रोहित की ओर देखा. वो भी रो पड़ी, रोक नही पाई खुद को. उसने रोहित के गाल पर हाथ रखा और बोली, "रोहित एक ही रास्ता है जिसे तुम देख कर भी इग्नोर कर रहे हो. क्यों ढो रहे हो मुझे. मरने ही वाली हूँ मैं. तुम बेवजह अपना वक्त बर्बाद कर रहे हो. क्या अपनी मेडम की बात नही मानोगे, प्लीज़ छोड़ दो मुझे मेरे हाल पर और यहाँ से निकल जाओ. तुम्हे भी मेडिकल अटेन्षन की ज़रूरत है. जाओ तुम्हे उस साइको को गोली मारनी है अभी. मैं बॉस हूँ तुम्हारी मेरी बात मान-नी पड़ेगी तुम्हे."
"शट अप, बकवास बंद करो अपनी. आई मेरी बॉस. बॉस हो तो क्या कुछ भी बोलॉगी. तुम्हारे बिना जंगल से नही जाउन्गा मैं. तुम्हे कुछ हो गया तो खुद को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा. चुप रहो बिल्कुल, एक शब्द भी निकाला मुँह से तो थप्पड़ पड़ेगा अब. आई बड़ी बॉस हुह."
"बॉस को डाँट रहे हो, आप से तुम पर आ गये, और थप्पड़ क्यों मारोगे तुम, अपनी हद में रहो आअहह." शालिनी दर्द से कराह उठी.
"दुबारा बेहूदा बात की मुझसे तो थप्पड़ ज़रूर पड़ेगा. क्या समझती हो खुद को तुम. हर वक्त तुम्हारी ही बात मानी जाएगी क्या."
"रोहित प्लीज़, मैं तुम्हारे लिए बोल रही हूँ. कोई रास्ता नही है यहा से निकलने का. मुझे उठा कर तो कभी नही निकल पाओगे. मेरी बात मान लो छोड़ दो मुझे यही."
"मैने कहा ना अकेले यहा से नही जाउन्गा मैं. यहा से हम साथ जाएँगे. नही जा पाए तो साथ मरेंगे यही."
"कौन हूँ मैं तुम्हारी जो ऐसी बाते कर रहे हो?"
"इंसानियत का रिस्ता है आपसे. इतना काफ़ी है आपसे ऐसी बाते करने के लिए."
"कोई भी रास्ता नही है रोहित, समझते क्यों नही तुम आआहह."
"कहते हैं कि जहाँ चाह, वहाँ राह. कोई ना कोई रास्ता ज़रूर मिलेगा हमें. वैसे साइको ने आपको कैसे किडनॅप कर लिया."
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