desiaks
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दरवाजा खोला तो सामने क्रीम सिल्क और मैरून एंड ब्लैक बार्डर की बेहद खूबसूरत साड़ी में शीतल थीं। मेरी आँखों ने उनकी आँखों में देखा, तो मैं ये भूल गया कि उन्हें अंदर आने के लिए भी कहना है। उन्हें देखकर मैं अपना होश खो बैठा था। लगभग एक मिनट तक हम दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखते ही रहे। खुद को सँभालकर शीतल को अंदर आने के लिए कहा।
"हो गए तुम तैयार?" शीतल ने पूछा।
"हाँ, आई एम रेडी।" मने जवाब दिया। शीतल इतनी प्यारी लग रही थीं, कि मैं उनकी तारीफ में भी कुछ नहीं कह पा रहा था। हाँ, इतना जरूर कहा था,
"तुम्हारी लिप्टिक अच्छी नहीं लग रही है।" इतना सुनते ही शीतल उठीं और आईने में खुद को देखकर तुरंत अपनी लिप्टिक हटा दी। एक पल के लिए मुझे लगा कि मेरी पसंद-नापंसद उनके लिए कितना मैटर करती है।
"तो मैं एक सेल्फी ले लूँ, फिर चलते हैं।"- शीतल ने मोबाइल निकालते हुए कहा। मेरे बेड पर बैठकर शीतल अपनी मेल्फी ले रही थीं और मैं बस ये इंतजार कर रहा था कि कब वो कहें कि आओ न तुम भी फोटो में। लेकिन जैसा आपका दिल चाहता है, वैसा थोड़ी न हमेशा होता है।
प्रोग्राम के लिए आए सभी लोगों को होटल से वेन्यू तक ले जाने के लिए एक बस और एक कार नीचे खड़े थे। मुझे कार से जाना था और शीतल को बस से। एक यही पल भर का अकेलापन हम दोनों को खल रहा था। आगे मेरी कार चल रही थी और पीछे चल रही बस में खिड़की के किनारे शीतल बैठी थीं। खिड़की से बाहर देखती उनकी आँखें मुझे खोज रही थीं, तो मन इस बात से परेशान था कि यह सफर अकेला क्यों है।
खैर, जो होता है अच्छे के लिए होता है। तीन दिन हर पल उनके साथ रहने पर उनसे दर रहने का अहसास होना भी जरूरी था। शायद एक-दूसरे के बिना रहने का भी यह पहला अहसास था। इस अजीब से अहसास के साथ हम बेन्यू की तरफ बढ़ते जा रहे थे...
एक तसल्ली के साथ, कि चंद मिनटों बाद जब हम मिलेंगे, तो एक-दूसरे को अपनी बाँहों में भर लेंगे।
कार और बम की रफ्तार और साइज में फर्क होता है, इसलिए प्रोग्राम के वेन्यू पर मैं जल्दी पहुँच गया था। करीब दस मिनट बाद शीतल और बाकी लोग बस से पहुंचे थे।
"हेलो राज, कहाँ हो तुम?"
“मैं वेन्यू परहूँ, तुम लोग कहाँ हो?"
"अरे, हम लोग बाहर ही हैं; कौन-से गेट से एंट्री करनी है?"
"रुकिए, मैं आता हूँ बाहर।" ।
"ओके, जल्दी आइए, आई एम वेटिंग।" बेन्यू के गेट की तरफ बढ़ते हुए मेरे कदम ऐसे लग रहे थे, जैसे बरसों से जिस मंजिल की तरफ मैं बढ़ रहा है, बो अब चंद कदम दूर है। होटल से यहाँ तक आने में हमें मात्र आधा घंटा लगा होगा, लेकिन इस आधे घंटे के अकेलेपन में न जाने कितने सालों की दूरी का दर्द सह लिया था दोनों ने। इसीलिए एक बार जब शीतल सामने आई तो ऐसे लगा जैसे बचपन का बिछड़ा हुआ कोई अपना लौट आया हो। ये खुशी मन में थी। शीतल भी अपनी खुशी को दबा रही थीं। चेहरे पर इस खुशी का इजहार हम दोनों इसलिए नहीं कर पा रहे थे, कि हम एक-दूसरे को अपने दिल की हालत बताने से बच रहे थे। न मुझे ये पता था कि शीतल के दिल में मेरे लिए जगह बन गई है और न शीतल जानती थीं कि बो मेरे दिल के करीब आ गई हैं।
"हो गए तुम तैयार?" शीतल ने पूछा।
"हाँ, आई एम रेडी।" मने जवाब दिया। शीतल इतनी प्यारी लग रही थीं, कि मैं उनकी तारीफ में भी कुछ नहीं कह पा रहा था। हाँ, इतना जरूर कहा था,
"तुम्हारी लिप्टिक अच्छी नहीं लग रही है।" इतना सुनते ही शीतल उठीं और आईने में खुद को देखकर तुरंत अपनी लिप्टिक हटा दी। एक पल के लिए मुझे लगा कि मेरी पसंद-नापंसद उनके लिए कितना मैटर करती है।
"तो मैं एक सेल्फी ले लूँ, फिर चलते हैं।"- शीतल ने मोबाइल निकालते हुए कहा। मेरे बेड पर बैठकर शीतल अपनी मेल्फी ले रही थीं और मैं बस ये इंतजार कर रहा था कि कब वो कहें कि आओ न तुम भी फोटो में। लेकिन जैसा आपका दिल चाहता है, वैसा थोड़ी न हमेशा होता है।
प्रोग्राम के लिए आए सभी लोगों को होटल से वेन्यू तक ले जाने के लिए एक बस और एक कार नीचे खड़े थे। मुझे कार से जाना था और शीतल को बस से। एक यही पल भर का अकेलापन हम दोनों को खल रहा था। आगे मेरी कार चल रही थी और पीछे चल रही बस में खिड़की के किनारे शीतल बैठी थीं। खिड़की से बाहर देखती उनकी आँखें मुझे खोज रही थीं, तो मन इस बात से परेशान था कि यह सफर अकेला क्यों है।
खैर, जो होता है अच्छे के लिए होता है। तीन दिन हर पल उनके साथ रहने पर उनसे दर रहने का अहसास होना भी जरूरी था। शायद एक-दूसरे के बिना रहने का भी यह पहला अहसास था। इस अजीब से अहसास के साथ हम बेन्यू की तरफ बढ़ते जा रहे थे...
एक तसल्ली के साथ, कि चंद मिनटों बाद जब हम मिलेंगे, तो एक-दूसरे को अपनी बाँहों में भर लेंगे।
कार और बम की रफ्तार और साइज में फर्क होता है, इसलिए प्रोग्राम के वेन्यू पर मैं जल्दी पहुँच गया था। करीब दस मिनट बाद शीतल और बाकी लोग बस से पहुंचे थे।
"हेलो राज, कहाँ हो तुम?"
“मैं वेन्यू परहूँ, तुम लोग कहाँ हो?"
"अरे, हम लोग बाहर ही हैं; कौन-से गेट से एंट्री करनी है?"
"रुकिए, मैं आता हूँ बाहर।" ।
"ओके, जल्दी आइए, आई एम वेटिंग।" बेन्यू के गेट की तरफ बढ़ते हुए मेरे कदम ऐसे लग रहे थे, जैसे बरसों से जिस मंजिल की तरफ मैं बढ़ रहा है, बो अब चंद कदम दूर है। होटल से यहाँ तक आने में हमें मात्र आधा घंटा लगा होगा, लेकिन इस आधे घंटे के अकेलेपन में न जाने कितने सालों की दूरी का दर्द सह लिया था दोनों ने। इसीलिए एक बार जब शीतल सामने आई तो ऐसे लगा जैसे बचपन का बिछड़ा हुआ कोई अपना लौट आया हो। ये खुशी मन में थी। शीतल भी अपनी खुशी को दबा रही थीं। चेहरे पर इस खुशी का इजहार हम दोनों इसलिए नहीं कर पा रहे थे, कि हम एक-दूसरे को अपने दिल की हालत बताने से बच रहे थे। न मुझे ये पता था कि शीतल के दिल में मेरे लिए जगह बन गई है और न शीतल जानती थीं कि बो मेरे दिल के करीब आ गई हैं।