Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी - Page 2 - SexBaba
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Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी

राज के मन में कोमल को और ज्यादा पाने की लालसा जाग उठी. उसने कोमल को गले से लगा लिया. उसके नाजुक से बदन को अपने मजबूत हाथों में कस लिया. फिर कोमल ही कहाँ पीछे रहती? उसके हाथो की जकडन भी राज के चारो तरफ लिपट गयी. ये जो पवित्र मिलन था. ये जो दो नदियों का संगम था. ये जो एक स्त्री और एक पुरुष था. वो इस जगह को. इस आम के पवित्र पेड़ को. इस सावन के मनभावने मौसम को और अधिक अमर किये जा रहा था. जिसका वर्णन कोई शायद ही कर सकता था. इसका आनंद या तो वो पगला आशिक राज दूध वाला जानता था या वो चंचल. शोख. मतवाली. पगली कोमल. या फिर ये सजीव पवित्र आम का पेड़ या फिर ये सावन का मादक पवित्र महीना. या फिर ये अतुल्य भारत की भूमि जिसपर ये दोनों आत्माएं अपना मिलन किये जा रहीं थीं.


फिर वो होना शुरू हो गया जिसकी कल्पना इन दोनों जीवों को तो क्या किसी को भी नही हो सकती. पहला प्यार. पहली मुलाक़ात. वो मुलाक़ात जिसमे प्यार का इजहार होना था लेकिन इतना कुछ होने जा रहा था. जो एक पति पत्नी के बीच होता है. न कोमल ने राज को रोका. न राज ने रुकने का प्रयास किया. जब राज उसको अपने आगोश में लेने की कोशिश किये जा रहा था तब कोमल ने मदभरी आँखों से राज की भूखी आँखों में देखते हुए कहा था, "कोई आ गया तो?"


कोमल के इस सवाल ने राज के सामने खुद का आत्म समर्पण का करने का संकेत दे दिया था. राज भी कोमल के हुस्न की खुश्बू में पागल था. फुसफुसाते हुए कोमल के कान में बोला, "यहाँ आज तक कोई नही आया तो अब क्यों आएगा? आज यहाँ हम तुम हैं फिर और किसी की गुंजाइश ही कहाँ बचती है?"


कोमल पूरी तरह से निश्चिन्त हो राज राग में मस्त हो गयी. दरअसल उस आम के पेड़ के नीचे सिर्फ आशिकों का ही डेरा रहता था. कुछ दिन पहले यहाँ एक प्रेमी जोड़े ने फांसी लगा अपनी जान दे दी थी. तब से यहाँ कोई आने की हिम्मत नही करता था लेकिन राज तो आज कोमल के इश्क में पागल था, उसे किसी भी चीज से डर न लग रहा था. इसी कारण वो कोमल को ले इस पेड़ के नीचे आ गया. जब से उस प्रेमी जोड़े ने यहाँ आत्महत्या की. अपने प्यार का गला घोंटा तब से यहाँ कोई भी प्यार का पंक्षी भी आने की हिम्मत न करता था. सोचते थे कि वहां जो जाएगा वो कभी भी चैन की जिन्दगी नही जी पायेगा. सुनने में आया था कि वो प्रेमी जोड़ा मरने से पहले ये श्राप दे गया था कि इस पेड़ के नीचे से गुजरेगा उसका जीवन बर्बाद हो जाएगा,


लेकिन राज ने आज इस श्राप को न माना. भगवान करे राज और कोमल के साथ ऐसा न हो. इन लोगों का उस आत्महत्या में क्या दोष था? ये तो खुद प्रेम के पुजारी थे लेकिन ये तो बाद में देखा जाएगा कि इन्हे श्राप लगा कि नही अभी तो इनकी शुरुआत थी. राज उस मतवाली चंचल कोमल में समा गया और वो कोमल उस पगले राज में.


दोनों ने मोहब्बत का दायरा पार कर दिया. दोनों ने वो जुर्म कर दिया जिसकी इश्क में लेशमात्र भी जगह नही थी. दोनों ने शादी से पहले के नियम को तोड़ दिया. दोनों ने समाज के बनाये बंधन को ध्वस्त कर दिया. दोनों वो कर बैठे जो नहीं करना था. ये वो हो चुका था जो समाज की नजरों में पाप था. कलंक था, गैर जरूरी था.


लेकिन अब हो गया तो हो गया. चाहे वो पुन्य हो या पाप. धर्म हो या अधर्म, जरूरी हो या गैर जरूरी. शायद प्यार के पक्षी समाज के दायरे को मानते ही नहीं है. पहचानते ही नहीं है. गठानते ही नहीं हैं.


फिर थोड़ी देर में दोनों को होश आया. फिर से अपने आप को संवारा. दोनों को अच्छा भी लग रहा था और गलत भी. कोमल को अपने भविष्य को लेकर चिंता थी और राज को भी. कोमल उदास हो राज से बोली, “क्या तुम जिन्दगी भर मेरा साथ दोगे?"

राज की आँखे मर्द होने के बावजूद गीली थीं. बोला, “मरते दम तक, जब तक राज में सांस है तब तक वो सिर्फ कोमल के लिए ही जियेगा."


कोमल उसी उदास अंदाज में बोली, “भूल तो नहीं जाओगे आपना वादा? मुकर तो नही जाओगे मुझे वादा करके? बीच भवर में नैय्या तो न छोड़ दोगे? अभी जैसे हो वैसे ही रहोगे? कहीं खायी हुई कसम तो न तोड़ दोगे?" कोमल इश्क में शायद शायराना हो गयी थी.


राज भी शायराना हो बोला, “अगर ऐसा हुआ तो समझ लेना वो राज ही नहीं होगा. जो तुमसे किया वादा भूल जाए. वादे से मुकर जाए. तुम्हे बीच राह में छोड़ जाए. जैसा अभी है वैसा न रहे. खायी हुई कसम तोड़ दे. वो राज नहीं कोई बहरूपिया राज के वेश में तुम्हारे सामने होगा. जो ऐसा पाप कर दे. राज अपना मुंह तुम्हारे सामने न दिखायेगा. जिस दिन राज ऐसा राज हो जाएगा."


शायर राज ने शायरा कोमल के सवाल का जबाब उसी अंदाज में दिया जिस अंदाज़ में कोमल ने पूंछा था. यही तो होता है दिलों का मेल. प्यार का खेल. इश्क की रेल. सामने वाला जैसा हो बैसे बन जाना. एक दूसरे के दिल को भा जाना. यही तो होता है किसी के इश्क में फना हो जाना. किसी का हो जाना. किसी को अपना कर लेना. यही तो है इश्क का सजदा. किसी के दर्दे-ए-दिल पर मरहम लगाना. किसी को अपने दिल का दर्द बताना. बड़े मियां यही तो होता है प्यार का असली नजराना. कोमल अभी कुछ कहने वाली थी कि उसका नजर अपने कॉलेज के बच्चों पर पड़ी जो काफी दूर एक रास्ते पर जा रहे थे. कोमल का दिल धकधका उठा. उसे पता चल चुका था कि उसके कॉलेज की छुट्टी हो गयी है. एकदम से राज से बोली, “राज अब मुझे चलना होगा. मेरे स्कूल की छुट्टी हो गयी है. घर टाइम से पहुंचना बहुत जरूरी है." ___

राज को जैसे किसी ने तलवार की धार से चीर दिया, जैसे किसी ने उसके सीने में भाला घोंप दिया. कोमल के जाने वाली बात सुनकर उसे ऐसा ही लगा. तडपकर कोमल की तरफ देख बोला, "क्या तुम और थोड़ी देर रुक नही सकती? अभी तो आयीं और अभी चल दीं? भला ऐसा भी कोई करता है? तुम बड़ी जालिम हो कोमल. जाओ में तुमसे नाराज़ हूँ.
 
कोमल तडपकर बोली, “भला कौन मुआं जाना चाहता है? मेरा दिल तो करता है कि दिन रात तुम्हारी आँखों के सामने बैठी तुम्हे निहारती रहूँ. तुम्हारी बाहों में अपने आप को समेटे रहूँ लेकिन आज जाउंगी तभी तो फिर आउंगी. जालिम में नहीं जालिम तो समय है जो आज ऐसे भाग रहा है कि जैसे हमसे इसकी कोई दुश्मनी हो. तुम नाराज ना होओ राज. में तुम्हारी थी तुम्हारी रहूँगी. मुझे तुमसे अलग कोई नही कर सकता? न ये समय. न ये घर वाले."


राज को अपनी राधा कोमल के मुख से प्यार भरे शब्द ऐसे लगे जैसे प्यासे को पानी. बो कोमल की प्यार भरी नर्म बातों में ऐसे घुल गया जैसे नमक में पानी और दिल को हाथों से थाम बोला, "मुझे माफ़ करना कोमल. मैने तो तुम्हारे जाने की वजह से ऐसा कह दिया, तुम्हारा जाना मुझे उदास किये जा रहा है. पता नही कल तक का समय जब तुम फिर से स्कूल आओगी कैसे कटेगा? ये कमबख्त रात कैसे कटेगी? जब अभी यह हालत है तो रात कैसी होगी? ऐसा लगता कि तुम्हारे विना में मर ही न जा...."

कोमल की आँखे भर आयीं. ____ राज का मुंह अपने कोमल हाथ से बंद कर रोते हुए बोली, “मैं कहे देती हूँ राज हमारे सामने मरने मारने की बातें न करना. तुम्हें हमारी कसम. तुम हमे अपना मानते हो तो आइंदा ऐसी बात न कहना. तुम्हारी ऐसी बातों से हमारी जान निकल जाती है. कभी सोचा है तुम न रहे तो हमारा क्या होगा? हम तो जीते जी मर जायेगे."


कोमल कुछ और कहती उससे पहले राज का प्रायश्चित भरा स्वर उभरा. बोला, “बस कोमल बस आगे कुछ न कहो. आज के बाद हम ध्यान रखूगा की तुम्हारे सामने ऐसी कोई बात न कहूँ और कह भी दूतो तुम मुझे अपना अपराधी मान क्षमा कर देना."

इतना कह राज कोमल से फिर से लिपट गया. कोमल भी उससे किसी बेल की तरह लिपट गयी. दोनों फिर हिल्की भर भर कर रोये. आंसूओं की नदियाँ दोनों की आँखों से उफान ले रहीं थी. दोनों का भावुक मिलन बहती हवा को सर्द कर गया. सावन के महीने को सर्दी का एह्साह करा गया. आम का पवित्र पेड़ भी शायद भावुक हो गया था. पक्षियों के स्वरों में भी नमी आ गयी जो पेड़ों पर बैठे चहचहा रहे थे. ये मिलन का बिछोड़ा होता ही ऐसा था लेकिन कहा जाता है की मिलन के बाद बिछोड़ा और बिछोड़े के बाद मिलन होता ही होता है. ये बात वो पागल दिल कैसे समझे क्योंकि दिल के दिमाग तो नही होता न.


लेकिन समय का ध्यान कर कोमल ने राज को अपने से अलग किया और बोली, “मुझे अब जाना चाहिए नही तो घर में माँ पापा आफत खड़ी कर देंगे. चलो तुम भी घर पहुँचो तुम्हारे घर वाले भी तुम्हारी राह देख रहे होंगे. और अपना ध्यान रखा करो इतनी भी लापरवाही ठीक नही होती. तुम अकेले नही हो. किसी और को भी तुम्हारी जरूरत है."


राज कोमल की प्यार भरी फिकर की बात सुन कहीं खो सा गया. सच ही तो कहती थी कोमल. अब राज के साथ कोमल को भी तो उसकी जरूरत थी. अब वो उसकी जन्म जन्म की साथी थी. फिर राज की फिकर करना तो उसका हक था. राज के बारे में वो न सोचेगी तो कौन सोचेगा? राज का होश इस सोच में कहीं गुम था.


राज होश में आता हुआ बोला, “चलो तुम्हे साईकिल से तुम्हारे गाँव तक छोड़ आता हूँ."

कोमल बोली, “नही नही. किसी ने देख लिया तो मेरी मुश्किल और बढ़ जायेगी? तुम रहने दो में चली जाउंगी."

राज समझाते हुए बोला, “कैसी बातें करती हो? मुझे तो चैन नहीं पड़ेगा अगर तुम अकेली पैदल जाओगी तो. ऐसा करता हूँ तुम्हे ये रास्ता पार कर तुम्हारे गाँव की शुरुआत तक छोड़ आता हूँ फिर तुम वहां से अकेली चली जाना."


कोमल को ये विचार बुरा न लगा. उसका भी दिल कर रहा था कि राज उसे छोड़ने जाए. इस बहाने से थोड़ी देर और दोनों साथ साथ रह सकेंगे. बोली, “ठीक है पर जल्दी चलो कहीं देर न हो जाए."

राज कोमल की चिंता को समझ रहा था. उसने झटपट से साईकिल उस तरफ घुमा दी जिधर कोमल का गाँव था. जिधर वो रोज़ भैंस का दूध लेने जाता था. जिधर के गाँव की लडकी कोमल से उसे इश्क हो गया था.


राज ने साईकिल रास्ते पर की फिर कोमल को बिठाया और साईकिल को हवा से बातें करवा दीं. आज उसके बदन में अकूत ताकत आ गयी थी. आज उसकी महवूवा कोमल उसके साथ उसकी साईकिल पर बैठी थी. जिसके सामने अपनी साईकिल चलाने की प्रतिभा का प्रदर्शन दिखाना उसे ताकत दिए जा रहा था.


राज साईकिल चला रहा था. कोमल पीछे की सीट पर बैठी थी. कोमल ने पीछे से राज की कमर को अपने हाथ से पकड़ रखा था. राज को कोमल की ऐसी पकड़न से ऐसा महसूस होता था मानो कोमल उसकी बीबी हो और वो उसे उसके मायके छोड़ने जा रहा हो. या कहीं मेला दिखाने ले जा रहा हो. या फिर सिनेमा में लगी कोई फिल्म दिखाने!


राज को कोमल का एक एक स्पर्श हर बार एक नई अनुभूति दे रहा था. जैसे चीनी उबले पानी में पड़े तो चाय और ठंडे में पड़े तो शरवत बना देती है इसी प्रकार कोमल की हरेक छुअन राज को एक नया रूप देती थी. राज इस मिलने वाली तरुणाई का बखूबी
आनंद ले रहा था.
 
आज रास्ता पता ही नहीं चला. कोमल के गाँव की शुरूआती सडक आ पहुंची. राज ने साईकिल के ब्रेक लगा दिए. कोमल साईकिल से उतरी. राज ने साईकिल को खड़ा किया. कोमल जाने लगी लेकिन उसने देखा कि राज की आँखों में उसके लिए कुछ निवेदन है जिसे कोमल ही समझ सकती थी. वो फिर से मुड़ी और आकर राज से ऐसे लिपट गयी. जैसे चन्दन के पेड़ से सांप. जैसे नीम के पेड़ से गिलोय. जैसे भूसे की बुर्जी से लौकी तोरई की बेल.


दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में कस लिया. ऐसे जैसे कि फिर न मिलेंगे. ये उनके मन का मिलन था जो संकेत दे रहा था कि अब दोनों बिछड़ने वाले हैं. किसी के रास्ते पर आने की आशंका से दोनों अलग हो गये. भीगी आँखों से कोमल अपने गाँव की तरफ चल दी. राज वहीं खड़ा उसे देख रहा था. उसका दिल उस जाती हुई कोमल को देख फटने को होता था लेकिन कल फिर मिलने की तमन्ना उसे फटने से रोक रही थी.


किसी अपने को जाते हुए देखना बहुत दुखद होता है और वो अगर अपना दिल से अपना हो तो दर्द थोडा ज्यादा होता है. आते हुए जितनी खुशी होती है जाते हुए उससे कहीं ज्यादा दुःख होता है. ये हमेशा से होता था. आज भी हो रहा था और आगे भी होता रहेगा लेकिन दुःख और सुख का ये संगम कभी नही थमेगा.


कोमल मुड मुड कर राज को देख रही थी. राज भीगी आँखों से उसे जाते हुए देख रहा था. फिर दोनों एक दूसरे की आँखों से ओझल हो गये. जैसे सुबह होने पर चाँद और तारे और रात होने पर सूरज, दोनों उदास मन ले अपने अपने घर चल दिए जो आज पहली बार उन्हें नीरस लगने बाला था.


कोमल की आँखे अभी तक भीगी हुई थी लेकिन गाँव की शुरुआत में इमली के पेड़ से पहले छोटू मिल गया. कोमल का मन उसे देख थोडा हल्का हुआ. उसे देख बोली, “अरे आज तो साथ साथ छुट्टी हुई हमारी तुम्हारी?” छोटू बोला, “मेरी तो उसी टाइम पर हुई लेकिन तुम आज लेट हो गयीं."


कोमल हड्वड़ा कर बोली, “क्या सच में में लेट हो गयी?"

छोटू उसे समझाता हुआ बोला, "इतना भी नही, बस कोई पन्द्रह बीस मिनट मुश्किल से.

कोमल उससे बोली, “चलो फिर तो जल्दी घर पहुंचें." छोटू ने स्वीक्रति में सर हिला दिया और कोमल की चाल से चाल मिला चल पड़ा.


गाँव में घुसते ही कोमल की माँ कंडे(उपले) थापती मिल गयी. कोमल को देख बोली, “आज लेट कैसे हो गयी री छबिलिया? तेरे पापा गुस्सा हो रहे थे."

कोमल हड्वड़ा कर बोली, "अरे मम्मी स्कूल से तो में कब की आ गयी. इस छोटू की बातों में लेट हो गयी. येन जाने कहाँ कहाँ की बातें सुनाता रहा."


छोटू कुछ कहने वाला था कि कोमल ने उसकी तरफ देख अपनी काली कजरारी आँखे मिचमिचा दी. छोटू चुप हो गया. उसे पता था कि कोमल झूट बोल रही है लेकिन बच्चों में एकदूसरे को बचाने का बड़ा शौक होता है और वही आज छोटू ने किया.


कोमल की माँ बोली, “चल ठीक है. अब घर पहुंच जल्दी." कोमल घर चल दी.

छोटू ने थोडा आगे आकर कोमल से पूछा, "तुमने झूट क्यों बोला कि मेरी वजह से लेट हुईं थी?"

कोमल छोटू को मक्खन लगाती हुई बोली, "छोटू किसी से कहना मत कि मैंने झूट बोला. तुझे इस बार ज्यादा इमली खिलाऊँगी. लेट तो में स्कूल से आते में हो गयी थी. अब मम्मी को बताती तो वो मुझपर चिल्लाती.तू ये मत पूछना कि क्यों लेट हो गयी थी? ये बात में तुझे फिर कभी बताऊंगी."


छोटू कोमल की बात पर हाँ हाँ करता रहा. फिर दोनों अपने अपने घर को चले गये, कोमल से ज्यादा किसी ने कुछ कहा नही
लेकिन कोमल को घर में रहना बहुत नीरस लग रहा था. उसका मन तो फिर उसी रास्ते पर जाने को करता था जहाँ रोज राज उसका इन्तजार करता था. उसका मन तो उस जगह जाने को कर रहा था जहाँ आज पूरा दिन बिताया था. आज के जैसी उदासी. ये नीरसता, इतनी उबासी कोमल ने आज तक नहीं देखी थी.


ये वैसा ही गम था. वैसी ही नीरसता थी. जैसे वन में किसी हिरनी का साथी कहीं चला जाय. फिर उस हिरनी को हरी से हरी घास. मीठा से मीठा पानी. मधुर से मधुर फल अच्छा नहीं लगता. वो अपनी साथी हिरन के वियोग में दिन रात भूखी प्यासी रहकर काटती सोचती है जब वो आएगा तो मिलकर खायेगें और कभी कभी तो इस वियोग में उस हिरनी के प्राण तक चले जाते हैं लेकिन वो हूक नही जाती जो उसे अपने साथी के बिछुड़ने से मिली थी. ये जो इश्क की इबादत है वो इन्सान हो या जानवर सबको बराबर तपाती है. तभी उसपर अपनी मेहरवानी दिखाती है. जो तप गया सो पार और न तप पाया सो डूब जाता है.


कोमल ने थोडा सा खाना खाया. वो भी माँ और बहन के बार बार कहने पर. कोमल की भूख तो जैसे खत्म ही हो गयी थी. रात हुई तो सभी को दूध दिया जा रहा था. जो गाँव की परम्परा है. कोमल अपने पापा को दूध देकर आयी. थोड़ी देर बाद पापा की कर्कश आवाज आई, "क्यों री छबिलिया. इस दूध में क्या डाला है? क्या चीनी की जगह नमक डाल लायी है?
 
कोमल को होश आया. उसने पापा के पास से दूध ला चखकर देखा. दूध बहुत नमकीन था क्योंकि कोमल ने चीनी की जगह नमक डाल दिया था. वो अपने दिमाग में सिर्फ राज को लिए बैठी थी इसलिए ये भूल गयी कि दूध में नमक डाला या चीनी. और करती भी क्या दोनों का रंग सफ़ेद ही तो होता है. आँखे तो राज के स्वाद में थी फिर चीनी और नमक में कौन अंतर करे?


कोमल की माँ ने जब ये सुना तो बोली, "ये छोरी तो पागल हो गयी है पता नही इसका दिमाग कहाँ रहता है? क्या अपने सास ससुर को भी ऐसे ही चीनी की जगह नमक खिलाया करेगी?"

अब माँ को कौन बताये कि कोमल की आँखों पर राज के इश्क की पट्टी बंधी है और दिमाग पर उसकी यादों का ताला. बेचारी माँ क्या समझे ये इश्क विश्क के चक्कर? उसे तो चौका चूल्हे से लेकर गोबर थापने से ही फुर्सत नही.और माँ ही क्या सारा घर कोमल के इस कारनामे से बेखबर था. किसी से इश्क होना क्या कोई तेल साबुन का इश्तिहार है जिसके पोस्टर सडकों पर लगाये जाएँ? ये तो हद पार होने पर अपने आप मालुम पड जाता है.
इश्क होने का पता करना वैसा ही है जैसे किसी बच्चे को बड़े होते न जान पाना.जैसे ये जानना कि मर्दो की दाढ़ी और सर के बाल कब बढ़ते है? या पेड़ कब बड़े होते हैं? जैसे गर्भ में शिशु के जीवन कब आता है? जैसे नाखून कब बढ़ते हैं? कहने का मतलब किसी ने किसी का इश्क शुरू होते न जान पाया है. सच में ये है भी बड़ी अदभुत अनुभूति. जिसका न आदि है न अंत. तभी तो भगवान भी मोहब्बत में खुद का मौजूद होना बताते हैं. कोमल भी तो यही कर रही थी.
 
भाग-3
रात को सब सो गये. कोमल अपनी बहन के साथ एक चारपाई पर सोती थी. चांदनी रात और सावन का हल्का सर्द महीना. कोमल की बगल में उसकी बहन देवी लेटी थी. किन्तु कोमल सोचती थी कि काश उसकी बगल में राज लेटा होता. कितना आनंद, कितनी उमंग, कितना उल्लास हो जाता?


इस सावन की हल्की सर्द रातों में आग लग जाती. कोमल की बहन देवी सो रही थी लेकिन कोमल को तो नींद ही नहीं आती थी क्योंकि वो जानती थी कि राज को भी नींद नहीं आती होगी. उसका तो आज इश्क का रतजगा था.


अन्य दिन कोमल अपनी बहन देवी को अपना शरीर छूने तक न देती थी लेकिन आज खुद उसे अपने आगोश में लिए सो रही थी. उसे लगता था कि उसके साथ राज सो रहा है. रात भर न जाने क्या क्या सपने उसे आते रहे? कभी राज उसे साईकिल पर बिठाता है. कभी राज और कोमल आसमान में उड़ रहे होते हैं. कभी दोनों को एकसाथ बात करते कोई पकड़ लेता. कभी वो देवी को अपनी प्रेम कहानी सुना रही होती थी. एक सपना उसे ऐसे आया कि किसी ने उसे और राज को मार दिया है. एकदम से नींद खुल गयी. उठकर देखा तो वो जिन्दा थी. इसका मतलब वो सपना ही देख रही थी. पूरा शरीर सर्द रात के बावजूद पसीना पसीना हो रहा
था.


कोमल फिर से सो गयी लेकिन अपनी बड़ी बहन देवी की नींद उसने हराम कर दी थी. रात भर उसे राज समझ जकड़े रही. देवी ने मुश्किल से रात काटी लेकिन उसे कोमल पर शक होने लगा. उसे आज दाल में काला नजर आ रहा था. उसने सोचा अभी रात में तो नही लेकिन कल अकेले होने पर कोमल को पूँछेगी जरुर की आखिर बात क्या है जो ये लडकी एक दिन में इतना बदल गयी?


सुबह होते ही कोमल उठ गयी लेकिन राज को सामने न पाकर मायूस हो गयी. सपने में तो रात भर आया था. फिर उसे ध्यान आया कि सुबह सुबह राज दूध लेने भी तो आएगा. तुरंत उठ खड़ी हुई और हाथ मुह धोया और घर वालों से बोली, “माँ में दूध दुहने जा रही हूँ."


माँ अंदर से गला फाडकर बोली, “क्या पगला है री छोरी? अभी दूधिया को तो आ जाने दे और अभी वखत ही क्या हुआ है जो बाल्टी ले चल दी भैंस दूहने?" भैंस से कौन जनम की दुश्मनी निभा रही है? अभी तो वो चारा भी नहीं खा पाई होगी."


कोमल सकपका गयी. कल शाम से जब से वो राज के पास से लौटी थी तब से कई काम बिगाड़ चुकी थी. कई ऐसे पागलपन भरे काम कर चुकी थी जो पहले कभी नहीं करती थी. उसे खुद पता नहीं चल रहा था कि वो कर क्या रही है? आज वो मुंह धो अँधेरे सुबह भैंस का दूध निकालने चल दी.सोचती थी राज आएगा तो उसे देखेगी. उससे बात करेगी. कोई और न भैंस का दूध निकालने चल दे इसलिए वह खुद ही बाल्टी उठा चल दी थी.


लेकिन थोड़ी देर बाद राज आ गया. कोमल को आने की खबर उसकी दूध की टंकी की आवाज से लगी. राज सीधा कोमल के यहाँ आकर रुका जबकि अन्य दिन वो पहले तीन और लोगों का दूध लेकर तब कोमल के यहाँ आता था. कोमल भी बाल्टी ले उस जगह पहुंच गयी जहाँ उसकी भैंसे बंधी थी. जहाँ उसका आशिक राज खड़ा था.


वहां पहुंचते ही सबसे पहले दोनों की आखें चार हुई. दोनों की आँखों में मिलन की अनोखी प्यास थी जो एकदूसरे को बता रही थी कि उन्होंने ये बीच का वक्त कितनी मुश्किल से काटा है. दोनों के होटों पर मुस्कान थी. ऐसी मुस्कान जो दुनिया का खजाना मिलने पर भी न होती.



____ दोनों खड़े खड़े एकदूसरे को देखे जा रहे थे. कोमल भूल गयी कि वो यहाँ आई किस काम से थी? और राज, राज को तो सुबह से ही नही पता था कि वो करने क्या जा रहा है.

तभी तो तीन ग्राहकों को छोड़ सबसे पहले कोमल के यहाँ दूध लेने आ पहुंचा.
तभी पीछे से देवी की आवाज आई. बोली, "क्या हुआ कोमल रानी? दूध निकाल पाओगी कि नही? न निकाला जाय तो बता देना? हमारे भी हाथ दिए हैं भगवान ने."

कोमल और राज हड्वड़ा गये. कोमल एकदम से बोल पड़ी, “अरे निकालने तो जा रहे हैं हम. फिर तुम्हे जल्दी क्या पड़ी है? जाकर अपना काम करो. हमारा सर खाने को क्यों आ जाती हो?"


कोमल का व्यवहार पहले से बदल गया था. पहले वो अपनी बड़ी बहन देवी से बहुत प्यार से बात करती थी लेकिन अब उसे उसका पास रहना भी अखरता था. पहले कोमल उसके साथ रहना पसंद करती थी लेकिन अब राज की यादों में खो अकेले रहना.


देवी कोमल की बात सुन बडबडाती हुई चली गयी. कोमल राज से नजर मिला फिर मुस्कुरा दी और भैस का दूध निकालने बैठ गयी. दोनों की नजरें एकदूसरे से हटने का नाम न लेती थीं. लगता था आज दोनों नजरों से ही एकदूसरे में समा जायेंगे. परन्तु भैंस भी तो दूहनी थी. इसलिए कोमल का हाथ भैंस के थन पर था और आँखें राज पर, दूध भैंस के थन से निकल कभी बाल्टी में जाता कभी बाल्टी से बाहर जमीन पर लेकिन इस मोहब्बत के मस्तानों का आलम था कि उन्हें दुनियादारी से कोई वास्ता ही नही था. वे तो खुद में पूर्ण विश्व थे फिर उन्हें किससे मतलब?
 
कोमल ने राज को देखते देखते ही भैंस का पूरा दूध दुह दिया लेकिन दूध बाल्टी में कम जमीन पर ज्यादा गिरा था. कोमल अभी आराम से बाल्टी पकड़े खड़ी थी. वो जानबूझ कर धीरे धीरे काम कर रही थी जिससे राज को ज्यादा देर तक अपने पास रख सके. लेकिन तब तक उसकी माँ आ पहुंची और चिल्लाते हुए बोली, “क्या अब महूरत निकलवा कर दूध नपवाओगी? जल्दी से दूध नपवा लो और अपने काम पर लगो."


कोमल का ध्यान भंग हुआ. राज भी हड्बड़ा कर इधर उधर देखने लगा और जल्दी से कोमल की माँ के पैर छू लिए. कोमल की माँ हैरत में पड़ गयी. सोचती थी और दिन तो ये लड़का दुआ सलाम भी नही करता था और आज पैर छू लिए? जबकि आज न तो दिवाली थी और न होली. न ही नया साल फिर किस बात पर पैर छू लिए? शायद दारू पीकर आया होगा? कोमल ने जल्दी से राज को दूध नपवाया. आज दूध कम बैठा था. कोमल की माँ बोली, “क्यों री छबिलिया, आज दूध कम कैसे बैठा?"

कोमल ने आधा दूध राज से इश्क लड़ाने के चक्कर में जमीन पर फैला दिया था तो अब माँ को कैसे बताती? बोली, “मुझे क्या पता भैस से ही पूछ लो?"


इस कोमल की मजाक पर राज और कोमल दोनों ही हंस पड़े. कोमल की माँ कोमल की बात को नजरंदाज़ करती हुई बोली, "लगता है इसे किसी कमबख्त की नजर लग गयी है इसीलिए दूध कम दिया.” कोमल की माँ भैंस की नजर उतारने का उपाय करने चली गयी. माँ को जाते ही कोमल राज के करीब आ खड़ी हो गयी. राज ने एक झटके से कोमल का हाथ पकड अपने होटों से चूम लिया.


ओह मेरे राम! क्या आनंद था इस स्पर्श में. जिसका कल से इन्तजार था ये वो ही स्पर्श था. ये वो ही कोमल का सुकोमल हाथ था जिसे कल राज अपने होठों पे लगा पागल हो गया था. और कोमल! कोमल तो जैसे किसी बिष भरे सर्प ने सूंघ ली थी. राज का प्यार भरा चुम्बन उसके रोम रोम में मोहब्बत का जहर फैला गया. वो जहर जिसको मिटाने की दवा आज तक कोई वैज्ञानिक खोज ही न सका था. इसका जितना इलाज किया जाता है ये बिष उतना ही बढ़ता जाता है.


राज ने फुसफुसाते हुए कोमल से पूछा, "आज भी अकेली आओगी क्या? और थोडा जल्दी आ जाना. में तुम्हे रास्ते में ही इन्तजार करते मिलूँगा.”

कोमल राज की नशीली आँखों में देख बोली, “अकेले आने का तो पता नही लेकिन आउंगी जरुर. तुम आने की चिंता मत करो. अगर तुम वहां इन्तजार करोगे तो में भी यहाँ से निकलने का इन्तजार ही करुगी."


ये प्रेमी युगल कुछ और कहता उससे पहले किसी के आने की आहाट हुई. राज ने कोमल का हाथ छोड़ बाहर की और चल दिया. अभी उसे पूरे गाँव से दूध इकठ्ठा करना था. कोमल भी जल्दी जल्दी घर के काम कर रही थी. उसे आज जल्दी स्कूल जाना था.


राज रोजाना दूध लेते वक्त भैंस के आगे बैठता था जिससे कोई दूध में पानी न मिला दे लेकिन आज तो उसे होश ही नहीं था कि कोई पानी मिलाएगा कि नही. लोगों ने आज राज के इस खोये खोये हाल का जमकर फायदा उठाया. दूध में पानी मिलता ही चला गया. किसी ने एक लीटर तो किसी ने दो लीटर. आज दूध की टंकी में दूध कम पानी ज्यादा था. अन्य दिन दूध में पानी देखने को नही मिलता था लेकन आज तो राज दूधिया के हालात ही कुछ और थे.
जल्दी जल्दी सब लोगों का दूध ले राज डेयरी चला गया. उसे कोमल से मिलने की जल्दी थी इस कारण सारा काम निपटा कर उस रास्ते पर इन्तजार करने जाना था जिस पर कोमल उसे मिलेगी.


इधर कोमल जल्दी जल्दी तैयार हुई. आँखों में खास सुरमा लगाया. वो सुरमा जो उसके बुआ जी ने दिया. ये सुरमा बुआ जी ने बरेली से मंगवाया था. हाथों के नाखूनों पर नाखूनी लगाई. बालों को धो कर अच्छे से संवारा. मेले से पांच रूपये में लायी हुई अंगूठी पहनी. ये अंगूठी वो अंगूठी थी जिसे कोमल सिर्फ खास मौकों पर ही पहनती थी. जैसे किसी की शादी विवाह में. मम्मी का रखा हुआ खुसबू वाला पाउडर निकाल उसमें से दो चुटकी पाउडर ले एक कागज की पुडिया में रख लिया. घर पर पाउडर लगाने का मतलब आफत को दावत देना था.क्योंकि गाँव में पाउडर लगाकर जाने वाले को चुडेल या भूत लगने का खतरा होता है और कोमल तो लडकी ठहरी. ऊपर से क्वारी लडकी जिसे पराये घर जाना था. भूत व्यार लग जाए तो कौन उससे शादी करेगा? इसी डर से माँ लडकियों को पाउडर न लगाने देती थी. लेकिन कोमल को तो आज राज के लिए सजना संवरना था. फिर पाउडर छिपाकर ही ले जाना ठीक था. इसके बाद उसने पीतल का लौटा अच्छी तरह से मांजा. उसमे पानी लिया. दो चम्मच दूध डाला. थोड़ी चीनी डाली. एक गुलाब के फूल की पंखुड़िया डाली और तुलसी के पौधे के पास जा खड़ी हो गयी. उसका मुंह सूरज की तरफ था. सूरज देवता से प्रार्थना करते हुए तुलसी मैय्या से प्रार्थना करती हुई बोली, "हे सूरज देवता. मेरे और राज के प्यार को अपने जैसा तेज देना. हमेशा ऐसी ही गर्मी रहे. कभी भी प्यार कम न होवे. राज को लम्बी उम्र देना और हो सके तो मेरी उम्र भी उसी को दे देना."


फिर उसने सूरज को लौटा चढ़ा दिया और तुलसी के सामने सर झुकाती हुई बोली, “हे मेरी तुलसी मैय्या में तेरी ही एक बेटी हूँ. मेरे ऊपर अपनी कृपा रखना. सबकुछ ठीक रहे मेरी मैय्या यही आशीर्वाद देना, मेरे प्यार को बुरी नजर से बचाना. इस मोहब्बत को कभी किसी की नजर न लगे. में तुझे रोज़ लौटा चढाऊगी."


उसके बाद वह घर में आ गयी. कोमल ने देखा कि देवी कपड़े पहन तैयार हो रही है. वो उससे बोली, “देवी तुम आज कॉलेज जाओगी क्या? तुम्हारी कल तवियत खराब थी तो आज रहने दो कल से स्कूल चली जाना."
 
कोमल चाहती थी कि देवी आज स्कूल न जाए लेकिन देवी के दिमाग में कोमल के लिये शक था. आज इस स्कूल से रुकने की बात ने उस शक को और बढ़ा दिया. देवी तुनक कर बोली, "बीमार में थी या तू? अगर मुझे लगेगा कि मेरी तबियत खराब है तो नही जाउंगी. अगर नही लगेगा तो जाउंगी.तू सिर्फ अपना ध्यान रख."


कोमल को देवी के जाने की बात मालुम होने से बड़ी मायूसी हुई. उसे पता था कि देवी अगर उसके साथ गयी तो राज से एक भी दिल की बात न हो पाएगी और वही हुआ. देवी और कोमल कॉलेज के लिए चल दी. रास्ते में पहुंचते ही दोनों को राज के दर्शन हो गये.


कोमल की बड़ी बहन देवी बोली, "देखो एक ये पागल जो रोज़ रास्ते में बैठ जाता है. पता नही इसे क्या खीर खाने मिलती है हमारे साथ जाने में? इसका कुछ न कुछ करना पड़ेगा."

देवी का इतना कहना था कि कोमल तडप कर बोली, "देवी तुम क्यों इस बेचारे के पीछे पड़ी रहती हो? साथ जाता है तो जाने दो हमारा क्या बिगड़ता है

देवी खिसियाने के अंदाज़ में बोली, “अच्छा बड़ी तरफदारी हो रही है आज कल इसकी? ये लगता कौन है तुम्हारा?"

कोमल बस तडपकर रह गयी. क्या बोलती? क्या वो देवी से ये कहती कि राज उसका सब कुछ है. कि राज अब उसके जीने का आधार है. ये बोलती कि वो राज को अपना सर्वस्व सौंप चुकी है? कोमल कुछ न बोली, उसे पता था कि देवी से कुछ भी कहने का ये सही वक्त नही

राज ने कोमल के साथ उसकी बहन देवी को आते देखा तो उसका दिल मायूस हो गया. उसे पता था कि आज कोमल से मोहब्बत भरी बातें न हो सकेगी. आज उसे दिल का सुकून न मिल पायेगा. आज वो कोमल के कोमल हाथों का स्पर्श न पा सकेगा. लेकिन चलो कम से कम कोमल आई तो सही. राज की प्यासी आखें उसे जी भर के देख तो लेंगी इतना भी कम तो नही था. यह सोच राज फिर से अपने दिल को उर्जावान कर कोमल के साथ अपने गाँव के बाहर तक चलने के लिए तैयार हो गया.


कोमल और देवी राज के पास आ चुकी थी. राज और कोमल की नजरें मिली. नजरों नजरों में ही बात हो गयी, “मेरे साथी मुझे माफ़ करना. आज तुमसे से दिल भर के मिलना न हो सकेगा.' फिर दोनों ने नजरों नजरों में ही एक दूसरे को माफ़ कर दिया. यही तो होते है दिलों के हमराही. जो इतनी जल्दी पिघल जाते है जैसे आग से मोम.


आज न राज कुछ बोला न ही कोमल राज से कुछ बोली. बस दोनों की नजरें एक दूसरे से सारे रास्ते बात करती रही. इतनी बात कि शायद दोनों मुंह से बोलकर बात करते तो इतनी बातें नहीं कर सकते थे. लेकिन इन मौन बातों का सिसिला ज्यादा देर तक न चल पाया क्योंकि राज का गाँव आ चुका था. राज वहीं रुक गया. कोमल ने नम और राज के दर्शन की प्यासी आँखों से राज को देखा. राज की आँखे भी उसी की महबूबा जैसी थी. दोनों की आँखों में बिछुड़ने का दर्द साफ़ दिखाई देता था. दोनों का ही मन होता था कि आज कहीं न जाए बस एकदूसरे के पास ही बैठे रहे. लेकिन समाज की मान मर्यादा भी तो कुछ होती है. साथ में कोमल की बहन भी थी. दोनों की इच्छायें पूरी न होना तय था. आज वो आम का पेड़ भी शायद उदास होगा. जिसके नीचे महीनों बाद किसी आशिक ने अपनी महबूबा को प्यार किया था. आज ये दोनों भी उदास थे.


कोमल अपने स्कूल चली गयी और राज अपने घर चला गया. दोनों को अपने अपने स्थान पर अच्छा न लग रहा था. स्कूल पहुंची कोमल और देवी से मास्टर साहब ने सबसे पहला सवाल यही किया कि वे कल स्कूल क्यों नही आयीं थी? देवी ने बहस करते हुए कहा, "नही मास्टर जी कोमल तो स्कूल आई थी केवल में नही आई थी क्योंकि में बीमार थी." ____


मास्टर बोला, "किस ने बोला कि कल कोमल स्कूल आई थी? कल तुम दोनों ही स्कूल नही आयीं थी. क्यों कोमल में सही कह रहा हूँ न?"

कोमल पर तो मानो बज्र गिर पड़ा था. घर से सबको बता कर आई थी कि वह स्कूल जा रही है लेकिन वो राज के पास रुक गयी थी. मास्टर के सवाल के जबाब में कोमल ने हाँ में सर हिला दिया. देवी का मुंह फटा का फटा रह गया. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कोमल जब कल घर से स्कूल के लिए आई थी तो स्कूल की जगह कहाँ गयी?

मास्टर बोला, "चलो अब जाकर क्लास में बैठो."

देवी मास्टर के सामने कुछ न कह सकी लेकिन उसने सोच लिया था कि आज कोमल से पूछ के ही छोड़ेगी कि ये चल क्या रहा है? कल स्कूल की जगह कहाँ गयी थी? अब छुट्टी होने तक का समय कोमल और देवी दोनों के लिए भारी पड़ रहा था. देवी को यह जानने की जल्दी थी कि कल कोमल आखिर गयी कहाँ थी और कोमल को यह डर था कि देवी जब कल स्कूल न आने का कारण पूछेगी तो वह क्या बताएगी? इधर राज भी कोमल का इन्तजार कर रहा था उसे भी कोमल की छुट्टी होने का इन्तजार था जिसके बाद ही उससे मिल सकता था.


तीनो लोगों को अपनी अपनी चिंताएं थी. जिनका चिंतन तीनो हर एक पल किये जा रहे थे लेकिन तीनों में एक चीज समान थी. वो थी अपने मन की बात को तुरंत पाने की. पूछने की. छिपाने की. इसमें राज कोमल को तुरंत पाना चाहता था. देवी तुरंत कोमल से पूछना चाहती थी कि वो कल स्कूल न आई तो गयी कहाँ थी और कोमल को देवी के इस प्रश्न से बचना था. इच्छायें तो तीनों की पूरी होनी थी लेकिन मुश्किलों से. कॉलेज की छुट्टी हुई. कोमल का दिल धाड़ धाड़ कर धडके जा रहा था. राज भी घड़ी देख फुर्ती में आ गया और साईकिल उठा पहुंच गया उस रास्ते पर जहाँ से उसकी साथिन गुजरने वाली थी. किन्तु आज कोमल के लिए बहुत मुश्किल घड़ी थी. उसे देवी के सवालों का सामना करना था. उसे आज अग्निपरीक्षा देनी थी. उसे कल के दिन स्कूल न आने का कारण बताना था. देवी ने कोमल का हाथ पकडा और तेज कदमों से आगे ले चली.
 
कोमल देवी की चाल के साथ अपने कदम न चला पा रही थी. उसके कदम तो पीछे को खींच रहे थे. थोड़ी आगे चलने के बाद देवी रुक गयी. उसने कोमल का हाथ छोड़ दिया और उससे सीधा सवाल कर बोली, “कोमल देख तू मुझे सच सच बता दे कि कल तू कहाँ गयी थी? देख ले अगर तूने सच सच न बताया तो में आज घर जाकर तेरी शिकायत करने वाली हूँ."


देवी की आँखों में गुस्सा था जिसे देख आज पहली बार कोमल का दिल काँप रहा था.
कोमल की आँखे नीची हो गयी. फिर झूठा बहाना बनाते हुए बोली, “में रास्ते में लेट हो गयी थी तो वहीं छुट्टी तक रुकी रही फिर छुट्टी होने के समय घर आ गयी." कोमल यह बात कहते हुए पूरी तरह काँप रही थी. उसे खुद अपने जबाब से लग रहा था कि वो पकड़ी जाएगी लेकिन कुछ बोलना तो था ही.


लेकिन देवी आज झूट नहीं सुनना चाहती थी. ये उसके पूरे घर के लिए बहुत बड़ी बात थी कि घर की जवान लडकी आखिर पूरे दिन अकेली रही कहाँ थी. उसने फिर कड़े शब्दों में पूंछा, “देख कोमल सही सही बता दे नही तो आज अपनी खैर मना लेना. में आज जाते ही पापा से बोल दूंगी और फिर तू जानती ही है कि तेरी हालत क्या होगी? कल से ही तेरी पढाई बंद और शादी करने का सोच लिया जाएगा. इसलिए जो भी बात है सच सच बता दे हो सकता है में फिर तेरी शिकायत न करूं."


कोमल ये बातें सुन पूरी तरह से टूट गयी. उसे पता था कि घर पर शिकायत होने के बाद उसके साथ क्या सुलूक होगा? ऐसा सुलूक कि कोई अपराधी भी सुने तो काँप जाए. जैसा गाँव में कई लडकियों के साथ हो चुका था. वह थके हुए लहजे में बोली, “क्या तुम सच कह रही हो कि अगर मैने सच सच बता दिया कि कल में कहाँ गयी थी तो तुम मेरी शिकायत घर जाकर नही करोगी? पहले मेरी कसम खाओ तभी बताउगी."


देवी इस बक्त अधीर थी. वह कोमल की कसम तो न खाना चाहती थी लेकिन सच जानने की वजह से उसने कसम खा ली. बोली, “ठीक है में तेरी कसम खाकर कहती हूँ कि अगर तूने सच सच बताया तो में घर जाकर नही कहूँगी. पर अब जल्दी बता दे और सच सच ही बताना."

कोमल को देवी के द्वारा खायी गयी कसम पर पूरा भरोसा था. अब वह सच बता ही देना चाहती थी. आखिर कभी न कभी तो देवी को पता चलता ही. इसलिए आज बता देना ही उचित था.


कोमल का बदन ऐसे काँप रहा था जैसे वो किसी आइस्लैण्ड पर खड़ी हो. कापते हुए बोली, “देवी...में...कल..उसके साथ थी..मो..ह.न.." कोमल अपने मुंह से पूरी बात न कह पा रही थी

लेकिन देवी की अधीरता अपने चरम पर थी. वो खींझ कर बोली, "साफ़ साफ़ क्यों नही बताती? क्या म और आ बोल रही है?"


कोमल फिर उसी अंदाज़ में बोली, "राज..के...”

कोमल आगे कुछ बोलती उससे पहले देवी का जोरदार चांटा उसके कोमल से गाल पर पड़ा. चांटा इतना तेज था कि कोमल का गोरा गाल उतने ही हिस्से में लाल हो गया. उँगलियों के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे.


आज से पहले देवी ने बड़ी बहन होने के बावजूद कोमल के ऊपर हाथ न उठाया था लेकिन आज कोमल ने ऐसा काम कर दिया था जिसकी वजह से देवी का ये प्रण टूट गया. लेकिन थप्पड़ मारने के बाद देवी का कलेजा नरमा गया. आखिर वो उसकी छोटी बहन थी.


कोमल अप्रत्याशित थप्पड़ पड़ने की वजह से सन्न थी. उसकी आँखों में आसू छलक पड़े थे. उसे हैरत थी कि देवी ने उसके ऊपर हाथ क्यों उठा दिया था. जो आज से पहले कभी नहीं हुआ था. वो तो उसकी बड़ी बहन थी. कोमल उसे बड़ी बहन के साथ साथ अपनी सबसे प्यारी सखी भी मानती थी और देवी भी उसे इसी तरह मानती थी लेकिन आज क्यों इस सखी और बहन ने उसके साथ ऐसा व्यवहार कर दिया? क्या किसी से प्यार करना इतना बड़ा गुनाह है? क्या सिर्फ घर के लडके ही मोहब्बत कर सकते हैं लडकियाँ नहीं? क्या किसी अपने मन के व्यक्ति को चाहना पाप है. कोमल ने प्यार ही तो कर लिया था कोई चोरी तो नही की थी? किसी के यहाँ डांका तो नही डाला था? फिर किस बात के लिए उसे पापा से डराया जा रहा था?


अभी कोमल अपनी बहन देवी से कुछ कहती उससे पहले देवी आखों में पानी लिए बोली, “देख कोमल. तूने जो किया है वो माफ़ करने लायक गुनाह नहीं है.तू जानती है राज कौन है और हम कौन है? राज छोटी जाति का है और हम ऊँची जाति के.एकदूसरे की जाति में कभी मेल नही हो सकता है. न तो हमारे घर के लोग चाहेंगे और न राज के घर के लोग."
 
देवी भावुक हो फिर से बोली, "तुझे नहीं पता मेरी बहन ये तू क्या करने जा रही थी? हमारे गाँव में हमारे माँ बाप की क्या इज्जत रह जायेगी अगर लोगों को ये पता चल गया कि तुम्हारा उस राज के साथ कुछ ऐसा वैसा चक्कर है. तू आज ही उस राज को भूल जा. अब कभी भी आज के बाद तू उससे न मिलेगी.न बात करेगी. इसी में तेरी भलाई है इसी में उस राज की."


कोमल ने जब देवी की ये बात सुनी तो उसकी आँखों से आंसू चल उठे. एकदम से देवी से लिपट गयी और फूट फूट कर रोने लगी. रोते हुए देवी से बोली, “देवी मेरी बहन में तुझे अपनी बहन से ज्यादा अपनी सखी मानती हूँ. अब तू मुझे एक सखी की हैसियत से ये बता क्या मेरी जगह तू होती तो ऐसा करती? क्या किसी को किसी के कहने से ऐसे एकदम से भूल जाती? क्या प्यार करके मैंने कोई पाप कर दिया? क्या में किसी मेरे जैसे इंसान को चाह नहीसकती? पहले प्यार किया अब भूल जाऊं? कैसे करूं मेरी बहन? मेरी सखी. तू मुझे कुछ तो बता."


कोमल का करुण रुदन और ये भावुक सवाल देवी के दिल में टीस पैदा कर गये. देवी भी एक नारी थी. वो भी एक जवान लडकी थी. उसका भी एक छोटा सा दिल था. उसके भी दिल में मोहब्बत का रस था. वो भी किसी को प्यार करना चाहती थी लेकिन अब तक खानदान की मान मर्यादा. गाँव में घरवालों की इज्जत. समाज के बनाये नियम कानून और न जाने क्या क्या सोच देवी आज तक अपना दिल किसी को न दे सकी. न ही किसी का प्यार पा सकी थी. परन्तु आज कोमल की करुना ने उसके दिल को पिघला दिया था. दिल पर पत्थर रखे घूमने वाली देवी आज मोम के दिल वाली हो गयी.


देवी ने अपनी छोटी बहन कोमल को कसकर अपने कलेजे से लगा लिया और रोते हुए कोमल से बोली, “मेरी बहन तू बड़ी भोली है. तू ये भी नही जानती कि हम लडकियाँ है. हमे ये सब करने का अधिकार नही है. अगर हम ने ऐसा कुछ किया तो हमारा हश्र उन लड़कियों जैसा होगा जो आज भी अपने भाग्य को कोसती हैं कि उन्होंने प्यार ही क्यों किया? क्यों न भूल गयी तभी जब कोई उन्हें अच्छा लगा था? क्या तुझे गाँव की लडकी चुन्नी का हाल याद नही. क्या तू गाँव की लडकी कमली को भूल गयी? क्या तुझे याद नही उनकी हालत आज क्या है? कहीं की नहीं रही आज वो दोनों. क्या तू भी उन्ही की तरह बनना चाहती है?



कोमल को पता था की चुन्नी के साथ क्या हुआ था और कमली के साथ क्या हुआ था? वह ये भी जानती थी कि उसके साथ क्या हो सकता है लेकिन प्यार क्या उसने जानबूझ कर किया था. उसे क्या पता था कि राज दूधिया जो उसकी जाति का भी नही है वो उसकी जिंदजान बन जाएगा? क्या बारिस किसी के करने से होती है? क्या कोई बारिस को रोक सका है? क्या आंधी पर किसी का जोर चला है? क्या तूफ़ान को कोई रोक पाया है? क्या बाढ़ से कोई भिड पाया है? अगर नहीं तो फिर कोमल की मोहब्बत पर सबका अधिकार क्यों? सबकी रोक
क्यों? सबका जोर क्यों?


__ फिर क्यों सब लोग संत महात्मा बुजुर्ग ग्रन्थ रामायण कहते हैं कि मोहब्बत तो भगवान की देन है. जब भगवान की देन है तो इसपर रोक क्यों? भगवान श्री कृष्ण ने भी तो मोहब्बत की थी. मीराबाई ने भी तो मोहब्बत की थी. जब सब लोग मोहब्बत कर सकते हैं तो कोमल क्यों नहीं कर सकती?


यह सोच कोमल अपनी बहन देवी से रोते हुए बोली, “तो तू ही बता देवी में क्या करूं? में अब कैसे उस को छोड़ दूँ जिसे अपना दिल दे दिया. देवी मेरी जान बसी है उसमे. अगर मैंने उसे छोड़ा तो में अपने आप को छोड़ दूंगी. अगर राज से न मिली तो अपने आप से भी न मिल सकूँगी. अगर तू मुझे जीवित देखना चाहती है तो मुझे कोई ऐसा रास्ता बता जिससे घरवालों की इज्जत भी बची रहे और मेंरी मोहब्बत भी सही सलामत रहे."


देवी अभी भी कोमल को अपने दिल से लगाये खड़ी थी. उसे खुद नही पता था ऐसा क्या किया जाय जिससे दोनों काम होते रहें. कोमल की मोहब्बत भी सलामत रहे और घरवालों की इज्जत भी. अगर देवी को ऐसा कोई तरीका पता होता तो वो भी अपने वंजर दिल को हराभरा न कर लेती. क्यों आज तक अपने दिल को सूना लिए घूमती रहती? क्यों आज तक मोहब्बत न करती? क्यों किसी से दिल का सौदा न करती? हकीकत तो ये थी कि देवी जानती ही नही थी कि ऐसा कोई तरीका हो भी सकता है कि नहीं. फिर कुछ सोच देवी अपनी प्यारी छोटी बहन कोमल से बोली, “देख कोमल में तुझे कोई रास्ता तो बता सकती हूँ लेकिन तुझे एक वादा करना होगा और उस वादे को निभाना भी होगा. अगर तुझे मंजूर हो तो बता?"


देवी के धडकते दिल से अपना मुंह लगाये चिपकी खड़ी कोमल तडपकर देवी से बोली, “तेरा हर वो वादा मुझे मंजूर है जो मेरे मन को राज से जुदा न होने दे. तू जो कहेगी वो में करूँगी. तू मेरी जान माँग ले लेकिन मुझे कोई रास्ता बता. में वादा करती हूँ तुझसे कि तुझे दिया हुआ हर बचन उसी सिद्दत से निभाऊँगी जिस सिद्दत से में राज से प्यार करती हूँ. तू बता तो मेरी बहन."
 
देवी को यकीन था कि आज दिया हुआ वादा कोमल कभी मुश्किल से ही तोड़ेगी. देवी को कोई रास्ता न सूझता था लेकिन उसे इस सब के हल को ढूढने के लिए थोडा समय चाहिए था. देवी कोमल से बोली, "तू ध्यान से सुन मेरी बहन. मुझे अपना दुश्मन न समझना. में तो तेरी माँ जाई बहन हूँ. हर पल तेरे भले का ही सोचूंगी. मैंने फैसला लिया है कि मैं तेरे लिए कोई न कोई रास्ता जरुर निकलूंगी. जिससे तू अपने मन का काम कर पाए लेकिन उसके लिए मुझे थोडा वक्त चाहिए. किन्तु तब तक तुझे मुझसे ये वादा करना होगा कि तू उस वक्त तक राज से बात भी न करेगी जब तक में तेरे लिए इसका कोई हल न खोज लूँ. अब फैसला तेरे हाथ में है. तू आधा चाहती है या पूरा."


देवी की राज से बात न करने वाली शर्त कोमल के लिए ऐसी थी जैसे कि वो अपने आप से बात न करे. अपने दिल को भूल जाए. अपनी आत्मा को मिलना छोड़ दे. अपने आप को कुछ दिन के लिए मार डाले लेकिन राज की प्राप्ति के लिए इस राधा को सबकुछ मंजूर था.
वो देवी से वादा करती हुई बोली, “देवी तूने मुझसे ऐसा वादा लिया है जिसे निभाना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल है. मेरे लिए मेरी आत्मा को कुछ दिन के लिए छोड़ने जैसा है ये सब लेकिन में तुझसे वादा करती हूँ. में आज के बाद राज को अपने मुंह से एक भी बात न बोलूंगी. जब तक कि तू इसका कोई हल खोज मुझे इसकी इजाजत न देगी. ये मेरा वादा है तुझसे लेकिन तू भी अपना वादा न भूल जाना.'


देवी ने अपनी भोली बहन कोमल के दिल पर बंदिश लगा उसको आधा कर दिया था. वो जानती थी कि ये जो बंदिश का समय होगा वो कोमल के लिए नरक जैसा होगा. वो न ठीक खाएगी.न ठीक से पहनेगी. न ही ठीक से सोएगी. फिर जीवन में रह ही क्या जाएगा करने के लिए? सब कुछ तो भूल जायेगी ये नाजुक मन लडकी. कितना बड़ा प्रहार किया था देवी ने उसके कोमल दिल पर? लेकिन दूसरा रास्ता ही क्या था देवी के पास कोमल की इस मुश्किल का हल निकालने के लिए? कोमल की तरफ देख देवी ने अपनी आँखों से उसे भरोसा दिलाया कि वो भी अपना वादा निभाएगी. वो भी अपने काम को सिद्दत से करेगी.
उसके बाद देवी ने कोमल के रोते हुए मुखड़े को अपने दुपट्टे से साफ़ किया और बोली, “अब रो मत सब कुछ थोड़े ही दिनों में ठीक हो जाएगा. चलो अब घर चलते हैं." यह कह देवी ने अपने प्यार भरे होटों से कोमल का प्यारा माथा चूम लिया.


देवी ने अपनी बहन कोमल का हाथ अपने हाथ में लिया और अपने रास्ते पर चल पड़ी. दोनों बहन चली जाती थीं. दोनों के मन चिंतित थे. दोनों के चलने में दर्द झलकता था. कोई भी पारखी आदमी उनके चेहरे और चाल ढाल को देख बता देता कि दोनों किसी घोर चिन्तन से जूझ रही हैं. दोनों किसी बात को ऐसे सोच रही है जैसे ये उनके जीने मरने का प्रश्न हो.
दोनों ही दोनों का साथ देने के लिए बाध्य थी. जिसे समाज ने सखी का नाम दे रखा है. जिसे समाज ने बहन का नाम दे रखा है. वो सखी वो बहन. आज अपनी सखी. अपनी बहन के लिए त्याग की मूरत बन गयीं थी.


दोनों बहनें रास्ते पर चुपचाप चली जा रही थी लेकिन राज को रास्ते पर खड़ा देख दोनों की नजरें मिली. इशारा हुआ कि अपना वादा याद रहे. उसे निभाने में कोई चूक न हो जाए. राज के पास से गुजरने जा रही कोमल अपनी नजरों को राज की सूरत को देखने से लाख वार बचा रही थी लेकिन जो नजर राज की आदी थी वो एकदम कैसे मान जाती? कोमल अपनी नजरों पर अपना काबू न रख पा रही थी और फिर नजरों ने राज को देख ही लिया.


ओह मेरे राम! ये है क्या जो आदमी को इतना पागल बना देता है कि वो न भी चाहे तो भी किसी को चाहने लगता है? कोमल आज न चाहते हुए भी अपनी नजरो को राज को देखने से रोक नहीं पा रही थी और जैसे ही राज के चेहरे को देखा वैसे ही कोमल का मन हुआ कि जाकर राज से लिपट जाए.


तोड़ दे सारे वादे जो अभी उसने देवी से किये थे लेकिन वो जानती थी कि आज वादा तोड़ने से राज हमेशा के लिए उससे छूट जाएगा. अगर कुछ दिन राज को न देखेगी तो राज उसे जरुर मिल जाएगा. यह सोच उसने राज से अपनी नजरें हटा ली लेकिन राज का उदास चेहरा उसकी आँखों में अभी भी था.


कोमल के लिए ये सब वैसा ही कठिन था जैसे चकोर चाँद को न देखने का वादा करदे. जैसे पतंगा आग के पास खुद को न जलाने जाए. जैसे मछली खुद को जल से अलग रहने का वादा करदे. ये जो अपने जीवन से मिलने का अरमान चकोर, पतंगा और मछली को होता है वैसा ही कुछ कोमल को राज से मिलने का होता था.


आज वही उससे छिन गया था, अब कोमल के मन में संजोने के लिए सिर्फ राज के साथ बिताये पिछले सुखद पल थे जिन्हें वो तब तक याद करेगी जब तक राज उसे दोबारा नहीं मिल जाये.


दोनों बहनें राज के पास से गुजर चुकी थीं. राज आज हतप्रभ था. उसे कोमल पर भी आश्चर्य हो रहा था कि जो लडकी हमेशा उसका स्वागत मुस्कान के साथ करती थी उसने आज सूनी नजरों से देख मुंह फेर लिया. जैसे कि वो मुझे जानती तक नही. क्या मुझसे कोई भूल हो गयी? अगर हो भी गयी तो मुझे बता तो देती? क्या किसी और ने कुछ कहा? क्या देवी ने उसे कुछ कहा? हो सकता है कोमल अपनी बहन देवी की वजह से मुझसे न बोली हो लेकिन कुछ भी हो राज जब तक ये न जान लेगा कि बात क्या हुई तब तक चैन न लेगा.
राज ने देखा कि कोमल काफी दूर जा चुकी है लेकिन उसने एक भी बार उसे मुड़कर नहीं देखा.


कोमल का दिल भी करता था कि वो मुड़कर देखे कि राज गया कि नही या अभी वहीं खड़ा है लेकिन आज वह देवी को दिए हुए वादे में बंधी हुई थी. इस कारण लौटकर अपने प्राणों को भी न देख सकी. राज अब भी कोमल को जाते देख रहा था. फिर एक दम से उसकी आँखे अपने धैर्य को खो बैठी. आंसुओं की ऐसी झड़ी लगी कि राज का चेहरा आसुओं से ढक गया. लेकिन कहते हैं कि जब किन्ही दो लोगों के दिल आपस में मिले होते हैं उन्हें अक्सर एक जैसी भावना उत्पन्न होती है और वही यहाँ हो रहा था.


कोमल को अंदर से लग रहा था कि राज जरुर रो रहा होगा. यह सोच कोमल भी आँखों से झरना बहाने लगी. एक स्त्री का दिल लाख चोट सहने के लिए भी तैयार होता है लेकिन उसका दिल दुनिया की सबसे नाजुक वस्तु भी होती है जो पता नही कब किस छोटी सी बात से चोट खा बैठे? उस दिली नाजुकता को हम कमजोर तो नही कह सकते लेकिन एक भावना से उत्पन्न हुआ अंग कहना ठीक होगा. शायद उसको कोई नाम भी न दिया जा सके. राज आँखों में आंसू लिए अपने घर को लौट गया.
 
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