बादल का ये चुन्नी के लिए लिखा प्रेमपत्र पढ़कर ठाकुर का खून ऐसे खौल गया जैसे चूल्हे पर पानी. अगर ये लवलेटर चुन्नी को मिला होता तो शायद इसकी ठीक उलटी प्रतिक्रिया होती. चुन्नी को बुरे बक्त में ये बादल का प्यार भरा पत्र थोडा सुकून दे जाता. बड़े ठाकुर ने तुरंत
अपने छोटे लड़के बिशेष को बुलाया और सारी बात उसे बताई.
उसका भी खून खोल गया. बोला, "पिताजी आज इस बादल को खत्म ही कर डालो. न रहेगा बांस न बजेगी बासुरी." बड़े ठाकुर का भी सोचना यही था. झट से बोले, "ठीक है मेरी दोनाली बंदूक निकाल कर ला और अपनी लोहा लगी लाठी."
बिशेष ने बाप के कहे अनुसार ही किया लेकिन बड़े ठाकुर की पत्नी ठकुरानी उन्हें समझाती रहीं. कहतीं थी कि छोडो बैसे ही मान जाएगा. हम बात करेंगे उसके घर. मारने वारने से क्या फायदा? केस का केस बनेगा और फिर चारो तरफ बदनामी होगी वो अलग से.
बड़े ठाकुर ने गुस्से में ठकुरानी से कहा, "आज तुम हमारे सामने से हट जाओ. आज हम किसी के रोके न रुकेंगे, चल भाई चल बिशेष. ठकुरानी बहुत पैरों में पड़ी लेकिन ठाकुर के सर पर खून सवार था वो बिशेष को ले घर से बादल के घर की तरफ चल दिए.
चुन्नी ने जब सुना कि पिताजी और भैया बादल को मारने गये हैं तो बंद कमरे में रोती चिल्लाती इधर उधर भागने लगी. चुन्नी का वश चलता तो वह भागकर बादल से कह आती कि तुम भाग जाओ पिताजी और भैय्या तुम्हे मारने आ रहे है लेकिन वो तो इस काल कोठरी में बंद थी. बड़े ठाकुर और उनका लड़का पूरी तैयारी के साथ बादल के घर की तरफ पहुंचे लेकिन बादल अपने घर से पहले ही बने एक घर में बैठा था. वहां शायद वो चुन्नी को भगा कर लाने वाली प्लानिंग ही कर रहा होगा. बड़े ठाकुर की नजर उस पर पड़ी. जब तक बादल कुछ जान पाता तब तक उस पर बिशेष की चार पांच लाठियां पड़ चुकी थीं.
__ लाठी के निचले हिस्से पर लोहे की चादर से ढका था और वही हिस्सा बादल के सर पर पड़ता रहा. इतना पड़ा कि उसके सर का हलुआ सा बनने लगा. बड़े ठाकुर के हाथ में दोनाली बंदूक थी जिसके कारण कोई भी आदमी बादल को बचाने नही आया. लेकिन
कोई कब तक किसी इंसान को मारता. बिशेष ने बादल को मरा समझ मारना बंद कर दिया. उसके बाद दोनों अपने घर चले आये.
जैसे ही बादल के घर वालों को ये बात पता चली तो सब आनन फानन में भाग छूटे. तुरंत बादल को बैल गाड़ी में डालकर डॉक्टर के पास ले जाया गया. लोकल के डॉक्टर ने शहर के अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. बादल के चोट गम्भीर थी. डॉक्टरों का पहले ही
कहना था कि बादल बचे न बचे कोई पता नही है लेकिन फिर भी इलाज़ किया जाता रहा, जब भी बादल होश में आता तो सिर्फ एक ही शब्द अपने मुंह से बोलता, “चुन्नी, चुन्नी और चुन्नी." न कभी पानी माँगा न कभी रोटी.
इधर बेचारी चुन्नी को जब पता चला कि बादल को इतना मारा गया है कि मर भी जाए तो पता नहीं. तो चुन्नी का दिल हर एक क्षण बादल को अपनी आँखों से देखने को करता था. उसे लगता था कि अगर वो बादल के सामने पहुंच जाय तो बादल अपने आप ठीक हो जाएगा. क्या पता प्यार, इश्क और मोहब्बत में इतनी शक्ति होती हो कि मरता व्यक्ति भी ठीक हो जाए लेकिन ले कौन जाए चुन्नी को बादल के सामने? __
_चुन्नी पल पल बादल के लिए दुआ करती थी.रो रो कर भगवान से बादल की जिन्दगी की भीख मांगती थी. दुपट्टा फैलाकर अपने दिल के जानी की जिन्दगी ऊपर वाले से मांगती थी. सारा दिन रोने में निकल जाता लेकिन भगवान तो जैसे पत्थर के हो गये थे. न चुन्नी की सुनते थे और न बादल की. दोनों के दिलों में मिलने की तड़पन उन्हें हर पल तड़पाती थी. उन्हें हर क्षण ये उम्मीद रहती कि वो मिलेंगे जरुर.
इधर बादल भी घर वालों से चुन्नी को देखने और उससे मिलने की जिद करता था. कहता था मैं विना इलाज के ठीक हो जाऊँगा अगर चुन्नी मेरे सामने आ जाय. घर वालो के लिए चुन्नी को लाना कोई आसान खेल था. कैसे लाते किसी की लडकी को उठाकर? लेकिन उनके घर के लडके की जिन्दगी तो सिर्फ चुन्नी के हाथ में थी जो शायद अब कभी भी बादल के सामने न आनी थी.
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