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- Dec 5, 2013
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राज के मन में कोमल को और ज्यादा पाने की लालसा जाग उठी. उसने कोमल को गले से लगा लिया. उसके नाजुक से बदन को अपने मजबूत हाथों में कस लिया. फिर कोमल ही कहाँ पीछे रहती? उसके हाथो की जकडन भी राज के चारो तरफ लिपट गयी. ये जो पवित्र मिलन था. ये जो दो नदियों का संगम था. ये जो एक स्त्री और एक पुरुष था. वो इस जगह को. इस आम के पवित्र पेड़ को. इस सावन के मनभावने मौसम को और अधिक अमर किये जा रहा था. जिसका वर्णन कोई शायद ही कर सकता था. इसका आनंद या तो वो पगला आशिक राज दूध वाला जानता था या वो चंचल. शोख. मतवाली. पगली कोमल. या फिर ये सजीव पवित्र आम का पेड़ या फिर ये सावन का मादक पवित्र महीना. या फिर ये अतुल्य भारत की भूमि जिसपर ये दोनों आत्माएं अपना मिलन किये जा रहीं थीं.
फिर वो होना शुरू हो गया जिसकी कल्पना इन दोनों जीवों को तो क्या किसी को भी नही हो सकती. पहला प्यार. पहली मुलाक़ात. वो मुलाक़ात जिसमे प्यार का इजहार होना था लेकिन इतना कुछ होने जा रहा था. जो एक पति पत्नी के बीच होता है. न कोमल ने राज को रोका. न राज ने रुकने का प्रयास किया. जब राज उसको अपने आगोश में लेने की कोशिश किये जा रहा था तब कोमल ने मदभरी आँखों से राज की भूखी आँखों में देखते हुए कहा था, "कोई आ गया तो?"
कोमल के इस सवाल ने राज के सामने खुद का आत्म समर्पण का करने का संकेत दे दिया था. राज भी कोमल के हुस्न की खुश्बू में पागल था. फुसफुसाते हुए कोमल के कान में बोला, "यहाँ आज तक कोई नही आया तो अब क्यों आएगा? आज यहाँ हम तुम हैं फिर और किसी की गुंजाइश ही कहाँ बचती है?"
कोमल पूरी तरह से निश्चिन्त हो राज राग में मस्त हो गयी. दरअसल उस आम के पेड़ के नीचे सिर्फ आशिकों का ही डेरा रहता था. कुछ दिन पहले यहाँ एक प्रेमी जोड़े ने फांसी लगा अपनी जान दे दी थी. तब से यहाँ कोई आने की हिम्मत नही करता था लेकिन राज तो आज कोमल के इश्क में पागल था, उसे किसी भी चीज से डर न लग रहा था. इसी कारण वो कोमल को ले इस पेड़ के नीचे आ गया. जब से उस प्रेमी जोड़े ने यहाँ आत्महत्या की. अपने प्यार का गला घोंटा तब से यहाँ कोई भी प्यार का पंक्षी भी आने की हिम्मत न करता था. सोचते थे कि वहां जो जाएगा वो कभी भी चैन की जिन्दगी नही जी पायेगा. सुनने में आया था कि वो प्रेमी जोड़ा मरने से पहले ये श्राप दे गया था कि इस पेड़ के नीचे से गुजरेगा उसका जीवन बर्बाद हो जाएगा,
लेकिन राज ने आज इस श्राप को न माना. भगवान करे राज और कोमल के साथ ऐसा न हो. इन लोगों का उस आत्महत्या में क्या दोष था? ये तो खुद प्रेम के पुजारी थे लेकिन ये तो बाद में देखा जाएगा कि इन्हे श्राप लगा कि नही अभी तो इनकी शुरुआत थी. राज उस मतवाली चंचल कोमल में समा गया और वो कोमल उस पगले राज में.
दोनों ने मोहब्बत का दायरा पार कर दिया. दोनों ने वो जुर्म कर दिया जिसकी इश्क में लेशमात्र भी जगह नही थी. दोनों ने शादी से पहले के नियम को तोड़ दिया. दोनों ने समाज के बनाये बंधन को ध्वस्त कर दिया. दोनों वो कर बैठे जो नहीं करना था. ये वो हो चुका था जो समाज की नजरों में पाप था. कलंक था, गैर जरूरी था.
लेकिन अब हो गया तो हो गया. चाहे वो पुन्य हो या पाप. धर्म हो या अधर्म, जरूरी हो या गैर जरूरी. शायद प्यार के पक्षी समाज के दायरे को मानते ही नहीं है. पहचानते ही नहीं है. गठानते ही नहीं हैं.
फिर थोड़ी देर में दोनों को होश आया. फिर से अपने आप को संवारा. दोनों को अच्छा भी लग रहा था और गलत भी. कोमल को अपने भविष्य को लेकर चिंता थी और राज को भी. कोमल उदास हो राज से बोली, “क्या तुम जिन्दगी भर मेरा साथ दोगे?"
राज की आँखे मर्द होने के बावजूद गीली थीं. बोला, “मरते दम तक, जब तक राज में सांस है तब तक वो सिर्फ कोमल के लिए ही जियेगा."
कोमल उसी उदास अंदाज में बोली, “भूल तो नहीं जाओगे आपना वादा? मुकर तो नही जाओगे मुझे वादा करके? बीच भवर में नैय्या तो न छोड़ दोगे? अभी जैसे हो वैसे ही रहोगे? कहीं खायी हुई कसम तो न तोड़ दोगे?" कोमल इश्क में शायद शायराना हो गयी थी.
राज भी शायराना हो बोला, “अगर ऐसा हुआ तो समझ लेना वो राज ही नहीं होगा. जो तुमसे किया वादा भूल जाए. वादे से मुकर जाए. तुम्हे बीच राह में छोड़ जाए. जैसा अभी है वैसा न रहे. खायी हुई कसम तोड़ दे. वो राज नहीं कोई बहरूपिया राज के वेश में तुम्हारे सामने होगा. जो ऐसा पाप कर दे. राज अपना मुंह तुम्हारे सामने न दिखायेगा. जिस दिन राज ऐसा राज हो जाएगा."
शायर राज ने शायरा कोमल के सवाल का जबाब उसी अंदाज में दिया जिस अंदाज़ में कोमल ने पूंछा था. यही तो होता है दिलों का मेल. प्यार का खेल. इश्क की रेल. सामने वाला जैसा हो बैसे बन जाना. एक दूसरे के दिल को भा जाना. यही तो होता है किसी के इश्क में फना हो जाना. किसी का हो जाना. किसी को अपना कर लेना. यही तो है इश्क का सजदा. किसी के दर्दे-ए-दिल पर मरहम लगाना. किसी को अपने दिल का दर्द बताना. बड़े मियां यही तो होता है प्यार का असली नजराना. कोमल अभी कुछ कहने वाली थी कि उसका नजर अपने कॉलेज के बच्चों पर पड़ी जो काफी दूर एक रास्ते पर जा रहे थे. कोमल का दिल धकधका उठा. उसे पता चल चुका था कि उसके कॉलेज की छुट्टी हो गयी है. एकदम से राज से बोली, “राज अब मुझे चलना होगा. मेरे स्कूल की छुट्टी हो गयी है. घर टाइम से पहुंचना बहुत जरूरी है." ___
राज को जैसे किसी ने तलवार की धार से चीर दिया, जैसे किसी ने उसके सीने में भाला घोंप दिया. कोमल के जाने वाली बात सुनकर उसे ऐसा ही लगा. तडपकर कोमल की तरफ देख बोला, "क्या तुम और थोड़ी देर रुक नही सकती? अभी तो आयीं और अभी चल दीं? भला ऐसा भी कोई करता है? तुम बड़ी जालिम हो कोमल. जाओ में तुमसे नाराज़ हूँ.
फिर वो होना शुरू हो गया जिसकी कल्पना इन दोनों जीवों को तो क्या किसी को भी नही हो सकती. पहला प्यार. पहली मुलाक़ात. वो मुलाक़ात जिसमे प्यार का इजहार होना था लेकिन इतना कुछ होने जा रहा था. जो एक पति पत्नी के बीच होता है. न कोमल ने राज को रोका. न राज ने रुकने का प्रयास किया. जब राज उसको अपने आगोश में लेने की कोशिश किये जा रहा था तब कोमल ने मदभरी आँखों से राज की भूखी आँखों में देखते हुए कहा था, "कोई आ गया तो?"
कोमल के इस सवाल ने राज के सामने खुद का आत्म समर्पण का करने का संकेत दे दिया था. राज भी कोमल के हुस्न की खुश्बू में पागल था. फुसफुसाते हुए कोमल के कान में बोला, "यहाँ आज तक कोई नही आया तो अब क्यों आएगा? आज यहाँ हम तुम हैं फिर और किसी की गुंजाइश ही कहाँ बचती है?"
कोमल पूरी तरह से निश्चिन्त हो राज राग में मस्त हो गयी. दरअसल उस आम के पेड़ के नीचे सिर्फ आशिकों का ही डेरा रहता था. कुछ दिन पहले यहाँ एक प्रेमी जोड़े ने फांसी लगा अपनी जान दे दी थी. तब से यहाँ कोई आने की हिम्मत नही करता था लेकिन राज तो आज कोमल के इश्क में पागल था, उसे किसी भी चीज से डर न लग रहा था. इसी कारण वो कोमल को ले इस पेड़ के नीचे आ गया. जब से उस प्रेमी जोड़े ने यहाँ आत्महत्या की. अपने प्यार का गला घोंटा तब से यहाँ कोई भी प्यार का पंक्षी भी आने की हिम्मत न करता था. सोचते थे कि वहां जो जाएगा वो कभी भी चैन की जिन्दगी नही जी पायेगा. सुनने में आया था कि वो प्रेमी जोड़ा मरने से पहले ये श्राप दे गया था कि इस पेड़ के नीचे से गुजरेगा उसका जीवन बर्बाद हो जाएगा,
लेकिन राज ने आज इस श्राप को न माना. भगवान करे राज और कोमल के साथ ऐसा न हो. इन लोगों का उस आत्महत्या में क्या दोष था? ये तो खुद प्रेम के पुजारी थे लेकिन ये तो बाद में देखा जाएगा कि इन्हे श्राप लगा कि नही अभी तो इनकी शुरुआत थी. राज उस मतवाली चंचल कोमल में समा गया और वो कोमल उस पगले राज में.
दोनों ने मोहब्बत का दायरा पार कर दिया. दोनों ने वो जुर्म कर दिया जिसकी इश्क में लेशमात्र भी जगह नही थी. दोनों ने शादी से पहले के नियम को तोड़ दिया. दोनों ने समाज के बनाये बंधन को ध्वस्त कर दिया. दोनों वो कर बैठे जो नहीं करना था. ये वो हो चुका था जो समाज की नजरों में पाप था. कलंक था, गैर जरूरी था.
लेकिन अब हो गया तो हो गया. चाहे वो पुन्य हो या पाप. धर्म हो या अधर्म, जरूरी हो या गैर जरूरी. शायद प्यार के पक्षी समाज के दायरे को मानते ही नहीं है. पहचानते ही नहीं है. गठानते ही नहीं हैं.
फिर थोड़ी देर में दोनों को होश आया. फिर से अपने आप को संवारा. दोनों को अच्छा भी लग रहा था और गलत भी. कोमल को अपने भविष्य को लेकर चिंता थी और राज को भी. कोमल उदास हो राज से बोली, “क्या तुम जिन्दगी भर मेरा साथ दोगे?"
राज की आँखे मर्द होने के बावजूद गीली थीं. बोला, “मरते दम तक, जब तक राज में सांस है तब तक वो सिर्फ कोमल के लिए ही जियेगा."
कोमल उसी उदास अंदाज में बोली, “भूल तो नहीं जाओगे आपना वादा? मुकर तो नही जाओगे मुझे वादा करके? बीच भवर में नैय्या तो न छोड़ दोगे? अभी जैसे हो वैसे ही रहोगे? कहीं खायी हुई कसम तो न तोड़ दोगे?" कोमल इश्क में शायद शायराना हो गयी थी.
राज भी शायराना हो बोला, “अगर ऐसा हुआ तो समझ लेना वो राज ही नहीं होगा. जो तुमसे किया वादा भूल जाए. वादे से मुकर जाए. तुम्हे बीच राह में छोड़ जाए. जैसा अभी है वैसा न रहे. खायी हुई कसम तोड़ दे. वो राज नहीं कोई बहरूपिया राज के वेश में तुम्हारे सामने होगा. जो ऐसा पाप कर दे. राज अपना मुंह तुम्हारे सामने न दिखायेगा. जिस दिन राज ऐसा राज हो जाएगा."
शायर राज ने शायरा कोमल के सवाल का जबाब उसी अंदाज में दिया जिस अंदाज़ में कोमल ने पूंछा था. यही तो होता है दिलों का मेल. प्यार का खेल. इश्क की रेल. सामने वाला जैसा हो बैसे बन जाना. एक दूसरे के दिल को भा जाना. यही तो होता है किसी के इश्क में फना हो जाना. किसी का हो जाना. किसी को अपना कर लेना. यही तो है इश्क का सजदा. किसी के दर्दे-ए-दिल पर मरहम लगाना. किसी को अपने दिल का दर्द बताना. बड़े मियां यही तो होता है प्यार का असली नजराना. कोमल अभी कुछ कहने वाली थी कि उसका नजर अपने कॉलेज के बच्चों पर पड़ी जो काफी दूर एक रास्ते पर जा रहे थे. कोमल का दिल धकधका उठा. उसे पता चल चुका था कि उसके कॉलेज की छुट्टी हो गयी है. एकदम से राज से बोली, “राज अब मुझे चलना होगा. मेरे स्कूल की छुट्टी हो गयी है. घर टाइम से पहुंचना बहुत जरूरी है." ___
राज को जैसे किसी ने तलवार की धार से चीर दिया, जैसे किसी ने उसके सीने में भाला घोंप दिया. कोमल के जाने वाली बात सुनकर उसे ऐसा ही लगा. तडपकर कोमल की तरफ देख बोला, "क्या तुम और थोड़ी देर रुक नही सकती? अभी तो आयीं और अभी चल दीं? भला ऐसा भी कोई करता है? तुम बड़ी जालिम हो कोमल. जाओ में तुमसे नाराज़ हूँ.