Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी - Page 3 - SexBaba
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Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी

कोमल अपनी बहन देवी के साथ अपने घर को आ गयी. आज का दिन कोमल और राज के लिए सबसे बुरा दिन था. बीता हुआ कल का दिन उनकी जिन्दगी का सबसे खुशनुमा दिन था. कैसी तक़दीर होती है इंसानों की. कभी कांटे कभी फूल. कभी बारिश कभी धुप. कभी सूखा कभी बाढ़, क्यों एक जैसा सुख नही रहता उसकी जिन्दगी में? क्यों कोमल और राज को कल जैसा सुकून नहीं मिला?


कोमल के इस प्यारे से शांत गाँव का इतिहास प्यार करने वाली लड़कियों के लिए कोई खास अच्छा नही रहा था. जिन लडकियों ने जब भी प्यार करने की कोशिश की या कर भी लिया उनके ऐसे पंख कतर दिए गये कि प्यार करने के नाम से उनकी रूहें कापती थीं. जिन दो लडकियों का जिक्र देवी ने अपनी बहन कोमल से किया था उनका भी हश्र बहुत बुरा हुआ था. इससे पहले ठीक से प्यार करने की जहमत उठाई थी चुन्नी नाम की लडकी ने. जिसकी जिन्दगी नरक बना दी गयी थी.
 
भाग-4
चांदनी गाँव के सबसे अमीर परिवारों में से एक घर की लडकी थी. चांदनी से कब उसका नाम चुन्नी पड़ गया ये किसी को भी पता नहीं चला. चुन्नी पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थी और घर में सबसे लाडली भी.


भरा हुआ गोरा बदन, कजरारी आँखें. पतली कमर. लम्बा चौड़ा कद काठी. काले गहने कमर को छूते बाल. क्या कमी थी चुन्नी में? जाने कितने लडके उसपर फ़िदा हुए थे लेकिन चुन्नी ने एक को भी अपने दिल में न बसाया था. उसे तो किसी ऐसे की तलाश थी जो उसके दिल को पहली ही नजर में भा जाए. फिर एक दिन ऐसा भी आ गया जब चुन्नी को पहली ही नजर में किसी से प्यार हो गया.

चुन्नी के घर के सामने एक पंडित जी का घर था. पंडित जी के घर के द्वार पर एक छबीला नौजवान आकर बैठता था. बाल बड़े बड़े अभिनेताओ की तरह. हाथ में रेडियो रहता था. जिसमे दिन भर प्यार भरे गाने नॉनस्टॉपचलते थे. पेंट की पिछली जेब में एक छोटा पॉकेट कंघा रहता था जिससे वो नौजवान समय समय पर अपने बाल संवारता रहता था. उस नौजवान का असली नाम तो पता नही लेकिन लोग प्यार से उसे बादल कहते थे.


बादल का जैसा नाम बैसा काम. गाँव के किसी भी आदमी से उसकी रंजिश नही थी. कोई भी आदमी बादल की बुराई नही करता था. हरएक से प्यार से बोलना. सभी को रोज दुआ सलाम करना. सभी की इज्जत करना उसका स्वभाव था. लेकिन एक रोग ने बादल को दुराहे पर लाकर खड़ा कर दिया. वो रोग था मोहब्बत का. ये मोहब्बत का रोग उसे चुन्नी से लगा था. इसी कारण वह चुन्नी के घर के सामने बने पंडित जी के द्वार पर आकर बैठता था.


सुबह खाना खाकर आता फिर शाम को उठकर जाता. चुन्नी से इश्क करना तो जैसे उसकी नौकरी हो गयी थी. बादल को ये मोहब्बत एक फिल्म देखकर हुई थी जिसमे हिरोइन एकदम चुन्नी जैसी थी. बादल को हिरोइन इतनी अच्छी लगी कि वो उसकी हमशक्ल चुन्नी को अपना दिल दे बैठा और चुन्नी भी उसके इस हरफनमौला अंदाज़ पर फ़िदा हो गयी. इश्क जोरों से हो निकला. लवलेटर एक दूसरे को दिए जाने लगे. चुन्नी से बादल और बादल से चुन्नी.


बादल पंडित के द्वार पर होता था और चुन्नी अपने द्वार पर. दोनों आमने सामने बैठे एकदूसरे को देखते रहते. दोनों की आशिकी आस पास बैठे लोग देखते और चटखारे लेते लेकिन गाँव की मोहब्बत इतनी आसान कहाँ होती है? यहाँ तो आपको दोधारी तलवार से गुजरना ही पड़ता है. चाहे आप अमीर हों या गरीब. हालांकि गरीब का पक्ष हमेशा कमजोर होता था. गरीब को मोहब्बत करने में अमीर से ज्यादा भुगतना पड़ता था.


कोमल के घर के सामने रहने वाले छोटू के ताऊ की लडकी थी चुन्नी लेकिन चुन्नी का घर दूसरे मोहल्ले में पड़ता था जबकि बादल छोटू की गली का रहने वाला था. बादल और चुन्नी दोनों की मुलाकात चुन्नी के घर के पिछबाड़े वाले आम के बाग़ में होती थी. जब भी मौका मिलता दोनों वहीं मिलते थे. बादल और चुन्नी की प्रेम कहानी अपने चरम पर थी कि चुन्नी के बाप बड़े ठाकुर को इस बात की भनक लग गयी.


उन्होंने चुन्नी की माँ से चुन्नी को समझाने के लिए कहा लेकिन प्यार तो प्यार होता है, उसे सिर्फ प्यार से ही समझाया जा सकता है. अगर ताकत से कुछ हुआ होता तो हीर रांझा और लैला मजनू की प्रेम कहानिया सुनने को न मिलती.


साथ ही चुन्नी के बाप बड़े ठाकुर ने पंडित को भी खबरदार कर दिया कि इस बादल को अपने द्वार पर न बिठाये लेकिन उसका कोई फायदा न हुआ. नौबत यहाँ तक आ पहुंची कि बड़े ठाकुर बादल के घर वालों को ये धमकी दे आये कि आइंदा बादल उनके घर की तरफ भी भटका तो उसे गोली मार देंगे.


ये गौली बाली बात सुन बादल के घर वालों ने बादल को खूब समझाया. बादल ने पंडित के घर जाना तो छोड़ दिया लेकिन बड़े ठाकुर के घर के पिछबाड़े, जहाँ एक आम का बाग़ था. वहां से चुन्नी को लवलेटर देना और मिलना शुरू कर दिया.
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लेकिन बात इश्क मोहब्बत की थी छुपायी कैसे जाती? बड़े ठाकुर को फिर से पता चला कि बादल अब भी चुन्नी को लवलेटर देने आता है. इस बात पर उन्होंने चुन्नी को बहुत मारा और उस दिन के बाद चुन्नी को एक ताले बंद कमरे में रखा जाने लगा. अब चुन्नी को उसी कमरे में रोटी मिलती थी और उसी में पानी. चुनी की जिन्दगी अपने ही घर में एक कैदी के समान हो गयी लेकिन जब दोनों तरफ से इश्क बराबर हो तो लोहे की दीवारें भी उन्हें झुका नही सकतीं

और यही हुआ. बादल ने किसी तरह पता कर लिया कि चुन्नी किस कमरे में बंद है. बादल ने उसी दिन एक लवलेटर लिखा और चुन्नी के उस कमरे में फेंक दिया. लेकिन हाय रे इस आशिक की किस्मत! वो फेंका हुआ लवलेटर बड़े ठाकुर की गोद में जा गिरा. बड़े ठाकुर उस कमरे के सीध पर बैठे थे. जब बादल का निशाना चूका तो वो लेटर ठाकुर के पास आ गिरा. बड़े ठाकुर ने झट से वो कागज खोला और पढना शुरू कर दिया, “मेरी प्राणों प्यारी चुन्नी. जब से तुम्हारी सूरत नही देखी तब से रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं खाया है. सिर्फ पानी पी पी कर दिन गुजार रहा हूँ. लेकिन तुम ये न समझना कि में तुम्हारे बाप के डर से चुपचाप बैठ गया हूँ. मैंने तुम्हे इस दलदल से निकालने की एक योजना बना ली है. जिस दिन तुम्हारा बाप घर पर नही होगा उस दिन कई लोग मिलकर तुम्हारे घर पर धावा बोल देंगे और में तुम्हे बहां से भगा ले आऊंगा. फिर हम दोनों कहीं दूर जाकर अपने प्यार की दुनिया बसायेगे. तुम डरना मत कि में तुम्हे यहाँ से भगा लेजाकर कभी दुःख दूंगा या परेशानी में रतूंगा. में तुम्हारे सुख के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दूंगा. तुम्हे मेरी कसम चुन्नी जो तुम कतई भी रोई. बस एकाध दिन की परेशानी है फिर तुम हमेशा के लिए मेरी हो जाओगी. में तुम्हे लेने कभी भी आ सकता हूँ. तुम अपने एकाध जोड़ी कपड़े तैयार रखना. और हाँ तुम दिल से भी तैयार रहना. कहीं चलते समय तुम्हारा दिल न बदल जाए. कहीं तुम्हे माँ बाप की याद न सताने लगे. तुम माँ बाप की याद छोड़ दो. ये तो कसाई से भी बुरे हैं. सोचो अगर ये तुम्हारे माँ बाप होते तो क्या तुम्हे इस हाल में रखते? क्या तुम्हारे साथ ऐसा करते जैसा अब कर रहे हैं? सब कुच्छ भूल अपनी नई जिन्दगी के बारे में सोचो. में तुम्हे कभी भी लेने आ सकता हूँ. मुझे आशा है तुम न नही कहोगी, "तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा. जनम जनम का साथी-बादल." ___
 
बादल का ये चुन्नी के लिए लिखा प्रेमपत्र पढ़कर ठाकुर का खून ऐसे खौल गया जैसे चूल्हे पर पानी. अगर ये लवलेटर चुन्नी को मिला होता तो शायद इसकी ठीक उलटी प्रतिक्रिया होती. चुन्नी को बुरे बक्त में ये बादल का प्यार भरा पत्र थोडा सुकून दे जाता. बड़े ठाकुर ने तुरंत
अपने छोटे लड़के बिशेष को बुलाया और सारी बात उसे बताई.


उसका भी खून खोल गया. बोला, "पिताजी आज इस बादल को खत्म ही कर डालो. न रहेगा बांस न बजेगी बासुरी." बड़े ठाकुर का भी सोचना यही था. झट से बोले, "ठीक है मेरी दोनाली बंदूक निकाल कर ला और अपनी लोहा लगी लाठी."


बिशेष ने बाप के कहे अनुसार ही किया लेकिन बड़े ठाकुर की पत्नी ठकुरानी उन्हें समझाती रहीं. कहतीं थी कि छोडो बैसे ही मान जाएगा. हम बात करेंगे उसके घर. मारने वारने से क्या फायदा? केस का केस बनेगा और फिर चारो तरफ बदनामी होगी वो अलग से.


बड़े ठाकुर ने गुस्से में ठकुरानी से कहा, "आज तुम हमारे सामने से हट जाओ. आज हम किसी के रोके न रुकेंगे, चल भाई चल बिशेष. ठकुरानी बहुत पैरों में पड़ी लेकिन ठाकुर के सर पर खून सवार था वो बिशेष को ले घर से बादल के घर की तरफ चल दिए.


चुन्नी ने जब सुना कि पिताजी और भैया बादल को मारने गये हैं तो बंद कमरे में रोती चिल्लाती इधर उधर भागने लगी. चुन्नी का वश चलता तो वह भागकर बादल से कह आती कि तुम भाग जाओ पिताजी और भैय्या तुम्हे मारने आ रहे है लेकिन वो तो इस काल कोठरी में बंद थी. बड़े ठाकुर और उनका लड़का पूरी तैयारी के साथ बादल के घर की तरफ पहुंचे लेकिन बादल अपने घर से पहले ही बने एक घर में बैठा था. वहां शायद वो चुन्नी को भगा कर लाने वाली प्लानिंग ही कर रहा होगा. बड़े ठाकुर की नजर उस पर पड़ी. जब तक बादल कुछ जान पाता तब तक उस पर बिशेष की चार पांच लाठियां पड़ चुकी थीं.


__ लाठी के निचले हिस्से पर लोहे की चादर से ढका था और वही हिस्सा बादल के सर पर पड़ता रहा. इतना पड़ा कि उसके सर का हलुआ सा बनने लगा. बड़े ठाकुर के हाथ में दोनाली बंदूक थी जिसके कारण कोई भी आदमी बादल को बचाने नही आया. लेकिन
कोई कब तक किसी इंसान को मारता. बिशेष ने बादल को मरा समझ मारना बंद कर दिया. उसके बाद दोनों अपने घर चले आये.


जैसे ही बादल के घर वालों को ये बात पता चली तो सब आनन फानन में भाग छूटे. तुरंत बादल को बैल गाड़ी में डालकर डॉक्टर के पास ले जाया गया. लोकल के डॉक्टर ने शहर के अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. बादल के चोट गम्भीर थी. डॉक्टरों का पहले ही
कहना था कि बादल बचे न बचे कोई पता नही है लेकिन फिर भी इलाज़ किया जाता रहा, जब भी बादल होश में आता तो सिर्फ एक ही शब्द अपने मुंह से बोलता, “चुन्नी, चुन्नी और चुन्नी." न कभी पानी माँगा न कभी रोटी.


इधर बेचारी चुन्नी को जब पता चला कि बादल को इतना मारा गया है कि मर भी जाए तो पता नहीं. तो चुन्नी का दिल हर एक क्षण बादल को अपनी आँखों से देखने को करता था. उसे लगता था कि अगर वो बादल के सामने पहुंच जाय तो बादल अपने आप ठीक हो जाएगा. क्या पता प्यार, इश्क और मोहब्बत में इतनी शक्ति होती हो कि मरता व्यक्ति भी ठीक हो जाए लेकिन ले कौन जाए चुन्नी को बादल के सामने? __

_चुन्नी पल पल बादल के लिए दुआ करती थी.रो रो कर भगवान से बादल की जिन्दगी की भीख मांगती थी. दुपट्टा फैलाकर अपने दिल के जानी की जिन्दगी ऊपर वाले से मांगती थी. सारा दिन रोने में निकल जाता लेकिन भगवान तो जैसे पत्थर के हो गये थे. न चुन्नी की सुनते थे और न बादल की. दोनों के दिलों में मिलने की तड़पन उन्हें हर पल तड़पाती थी. उन्हें हर क्षण ये उम्मीद रहती कि वो मिलेंगे जरुर.



इधर बादल भी घर वालों से चुन्नी को देखने और उससे मिलने की जिद करता था. कहता था मैं विना इलाज के ठीक हो जाऊँगा अगर चुन्नी मेरे सामने आ जाय. घर वालो के लिए चुन्नी को लाना कोई आसान खेल था. कैसे लाते किसी की लडकी को उठाकर? लेकिन उनके घर के लडके की जिन्दगी तो सिर्फ चुन्नी के हाथ में थी जो शायद अब कभी भी बादल के सामने न आनी थी.

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भाग-5

बादल के बड़े भाई दीनू और कमली की कहानी भी कुछ इसी प्रकार थी. छोटू के घर के ठीक सामने कमली का घर था और गली में आगे जाकर दीनू का. कमली छोटू को बचपन में बहुत खिलाती थी. छोटू का खाना भी वही होता था रहना भी. ऐसा लगता था कि छोटू कमली का सगा है. कमली जाति से ब्राह्मण थी और दीनू ठाकुर लेकिन मोहब्बत ने कभी इस जाति बिरादरी को माना ही नही था जो आज मानती.


कमली गाँव की पहली लडकी थी जिसने मोहब्बत की हद को पार किया था. ये घटना चुन्नी और बादल से भी पहले की थी. कमली का रंग थोडा सांवला था लेकिन दिखने में बहुत सुंदर थी. गोल नथुनी. कानों में कुंडल. पैरों में छन छन करती पाजेब. आँखें काली और बड़ी बड़ी. होंठ नपे तुले. बातों में गुड सी मिठास. सर बाल इतने लम्बे की घुटनों तक आ जाएँ. ___

अगर ये कहा जाय कि कमली सांवली होते हुए भी बहुत सुंदर थी तो गलत न होगा. दिल तो बहुतों के आये लेकिन कमली ने स्वीकारा सिर्फ दीनू के हसीन दिल को. इस दिल में न जाने कमली को क्या दिखा जो उसने कई दिलों को तोड़ इससे नाता जोड़ लिया. आशिकी तो आशिकी ठहरी. कब किसी से हो जाए कोई नहीं जानता. अब कमली को दीनू और दीनू को कमली दिखाई देते थे. कब दोनों एक दूसरे के लिए आम से खास हो गये किसी को पता नही चला.


पहले नजरों से मुहब्बत हुई. फिर दिल से और उसके बाद जुबान पर आ गयी. पहले नजरों से बात की फिर चिट्ठियों से और उसके बाद मिलना मिलाना शुरू हो गया. और हो भी क्यों न? कोई मन का मीत अगर मिला है तो उससे क्यों न मिला जाय? क्यों न प्यार किया जाय?


आखिर दिल का भी तो कुछ अरमान होता है? सब कुछ तो समाज के दायरे में नही चल सकता. भगवान् और क़ानून तो मोहब्बत करने की इजाजत देते हैं. तो फिर मोहब्बत करने में बुराई क्या है.


कमली और दीनू दोनों ज्यादा मिलते या बात तो नहीं करते थे लेकिन जितना भी मिलना होता था वो दोनों की मोहब्बत को आसमान की बुलंदियों तक ले कर जाता था. किन्तु गाँव के लोग किसी को मुहब्बत करते देख लें और उसकी चर्चा न करें ऐसा तो हो ही नहीं सकता. चारो तरफ चर्चाये गर्म थी. कमली के बाप पंडित सोरन को जब ये बात पता चली तो उन्होंने कमली को बहुत मारा. बेचारी कमली पिटती रही लेकिन दीनू को अपने दिल से बेदखल न
कर सकी.


चोट खाया प्यार किसी घायल शेर से कम नही होता और यही हुआ. कमली को दीनू से और अधिक मोहब्बत हो गयी. दीनू भी कमली के जज्बे को देख दो कदम आगे बढ़ गया. ऐसे ही कदम कदम आगे बढ़ते कब इतने करीब आ गये कि पता ही न चला. दिल की आग थी कि बुझने का नाम ही नही लेती थी. जितना बुझाने की कोशिश करते उतनी तेज होती चली जाती थी.


कमली के घर से निकलने पर पावंदी लगा दी गयी और पंडित सोरन ने दीनू के घर जाकर भी शिकायत कर दी. लेकिन प्यार में आगे बढ़ जाने पर बापिसी का कोई रास्ता ही नही होता तो ये दोनों कैसे पीछे हटते? कमली को दीनू से बात करने का दिल करता था लेकिन घर की बंदिश उसे ऐसा करने से रोक रही थी. मौहब्बत के दीवानों का उनके जीते जी कभी हौसला टूटा है जो कमली या दीनू का टूटता.


कमली के पास छोटू खेलने आता था. कमली थोड़ी पढ़ी लिखी भी थी. उसे एक विचार आया कि क्यों न दीनू को चिट्ठी लिख छोटू के हाथों भेजी जाय लेकिन छोटू तो तब तीन चार साल का बच्चा था.


अगर चिट्ठी वाला कागज खा जाए तो या किसी के हाथ पड जाए तो आफत खड़ी हो जाती.
फिर कमली को ध्यान आया कि क्यों न छोटू के कपड़ों के अंदर चिट्ठी छुपाकर भेजी जाय? छोटू जब छोटा था तो इलास्टिक के निक्क(कच्छे) पहनता था. अब कमली चिट्ठी लिखकर छोटू के निक्कर में डाल देती और उस चिट्ठी को दीनू निकाल कर पढ़ लेता.


वाह रे जुगाडू आशिको. क्या कमाल की योजना निकाली थी. किन्तु गजब तो तब होता जब कभी कभी निक्कर में कागज होने की वजह से छोटू रोने लगता या कभी कभी छोटू निक्कर में पेशाब कर लेता था. उस वक्त दोनों प्रेमियों की आफत आ जाती थी. लेकिन आशिक दिल दीनू ने कई बार पेशाब में भीगा लवलेटर भी पढ़ डाला था. इश्क में डूबे दिल को कोई भी चीज बुरी या अच्छी नहीं लगती सिवाय अपने महबूब के. दीनू इसी बात का नमूना पेश करता था.


लेकिन छोटू नाम का लेटर बॉक्स कब तक इन आशिकों की चिट्ठियां ले जाता? एक दिन कमली द्वारा निक्कर में चिट्ठी रखे जाने पर छोटू चीख चीख कर रोया. कमली की माँ ने जब उसको रोते देखा तो उसके पास आ उसने देखा कि वह निक्कर की तरफ इशारा कर कर के रो रहा है. कमली की माँ ने सोचा सायद कोई कीड़ा आदि होगा जिससे ये लड़का रो रहा है. उसने जैसे ही उसने छोटू का निक्कर उतारा तो कागज की चिट्ठी उसमे से निकल पड़ी.


छोटू चुप हो गया. कमली की माँ ने चिठ्ठी उठाकर फेंक दी और उसी दिन कमली के बाप से कह दिया की जितनी जल्दी हो सके कमली की शादी करा दो. पंडित सोरन ने फटाफट में कमली के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया,


शादी होने की खबर सुन कमली की जान गले में आ लटकी. उसे पता था कि शादी क्या होती है और शादी होने के बाद उसकी मोहब्बत का क्या होगा? दीनू उससे यहीं छूट जाएगा और कोई अनजान आदमी उसके दिल का स्वामी बनने की कोशिश करेगा जिसे वो जानती तक नहीं कि वो है कौन? जबकि कमली इसके लिए कतई तैयार नहीं थी.
 
बस फिर क्या था कमली का दिल दीनू को ये बात बताने के लिए तड़पने लगा लेकिन कोई बहाना ही नहीं मिलता था. कमली ने चिट्ठी लिख कर तैयार कर ली थी परन्तु उसे दीनू तक पहुंचाए कैसे? फिर एक दिन उसने दीनू को घर के सामने खड़ा देखा. दोनों की प्यासी
आँखों ने एक दूसरे को नजर भर कर देखा. कमली ने झट से चिट्ठी निकाली और उसमे एक कंकड़ रख दीनू की तरफ फेंक दी.


दीनू को वो आती हुई चिट्ठी किसी अमृत की बौछार के समान लगी जिसे पी कर उसे अमर होना था. चिट्ठी दे कमली फिर से घर में घुस गयी. दीनू चिट्ठी हाथ में दबा वहां से एकांत स्थान की और चल दिया जहां वह अपनी महबूबा के दिल की लिखी बातों को ध्यान से पढ़ सके. एकांत जगह पर पहुंच दीनू ने प्रेमपत्र खोला. उसमे से कंकड़ निकाल कर कागज को अपने होठों से लगा लिया. मानो चिट्ठी की लिखाई में कमली दिखाई देती हो और दीनू उसे चूम रहा हो.


लेकिन प्रेम पत्र पढने की अधीरता उससे कहीं ज्यादा थी. दीनू ने ने फटाफट चिट्ठी पढनी शुरू की, “मेरे छोटे से दिल के बड़े दिलवर दीनू. तुम कैसे हो? मुझे पता है अभी तुम ठीक नही होगे जैसे कि में अभी ठीक नही हूँ. तुम्हारे भी दिल में मेरी तरह एकदूसरे से मिलने की तडप होगी. तुम्हे भी सबकुछ तन्हा तन्हा सा लगता होगा? तुम्हें भी मेरी तरह भूख नही लगती होगी.


में जानती हूँ कि में तुम्हारे लिए क्या हूँ और तुम भी जानते हो कि तुम मेरे लिए क्या हो? दोनों ही एकदूसरे के बिना जी नहीं सकते हैं लेकिन इस सौदाई जमाने का क्या जो दो लोगों में मोहब्बत होते देख ही नही सकता है. मेरे प्राणों से प्यारे दीनू ये दुश्मन जमाने वाले ये भूल जाते है कि मोहब्बत कभी मिटती नही और न ही कभी मरती है. मरते तो इंसान है जो इसको करते हैं.


दीनू आगे में जो बात तुम्हे बताने जा रही हूँ उसे ध्यान से पढना. ये बात पढ़कर होश न खो देना. कहीं कोई गलत काम न कर बैठना. तुम्हें इस तुम्हारी कमली के सर की कसम जो तुम कुछ भी ऐसा करो जिससे मेरे दिल को ठोस पहुंचे. जैसे में इस बात को झेल रही हूँ ऐसे ही तुम भी झेलना. यही मोहब्बत का कायदा क़ानून भी है और यही इस इबादत की रस्म भी.
जिसे में या तुम तोड़ नही सकते. बात ये है कि घर वालों ने मेरी शादी करने का फैसला किया है और एक लड़का भी पसंद कर लिया है. पता नही कब मेरी डोली इस घर से विदा हो जाए? लेकिन तुम एक बात तो जानते हो कि मैं तुम्हारे अलावा किसी की नहीं हो सकती हूँ. न ही होउंगी. तुम जैसे कैसे भी हो मुझे इस जेल से अपने पास बुलाने का उपाय करो.


मुझे एक एक पल यहाँ किसी नरक की यातना दे रहा है और तिस पर ये शादी नाम की फांसी का एलान मुझे जीते जी मार गया. मेरे प्रियतम दीनू एकमात्र तुम ही मेरे दिल के स्वामी हो जिसे मैंने अपना सर्वस्व सौप दिया है. फिर तुम ही बताओ में कैसे किसी और की हो जाऊं. मुझे पता है तुम भी मेरी तरह ही सोचोगे.


तुम भी मुझे इस शादी को न करने की सलाह दोगे लेकिन मेरे जीवन के आधार दीनू मेरे वश में अभी कुछ भी नहीं है. में अपने घर वालों के सामने अपाहिज की तरह हूँ जो कुछ भी नही कर सकती. दीनू तुम तो एक पुरुष हो तुम्हारे पास मौक़ा है कि मुझे यहाँ से अपने पास बुला लो. अगर तुम मुझे अपने पास न बुला सके तो शायद में जिन्दगी भर के लिए किसी और की हो जाउंगी.


तुम्हारा मेरा जन्म जन्म का ये पावन रिश्ता इस शादी के होते ही टूट जाएगा. क्योंकि हिन्दुस्तानी औरत की मजबूरी ये है कि वो एक दिल में एक ही पुरुष को चाह सकती है लेकिन ये हिन्दुस्तानी रिवाज़ पुरुषों के मन पर लागू नहीं होता है. तुम्हे इस छूट का फायदा मेरी शादी के बाद भी मिलेगा. तुम अपनी शादी के बाद अपनी पत्नी के साथ साथ मुझे भी याद कर सकते हो लेकिन में नही.


मुझे तो हर साल करवाचौथ का व्रत भी रखना पड़ेगा लेकिन तुम्हें नही. आखिर में तुमसे ये तुम्हारी कमली बस इतना ही कहना चाहती है कि अगर तुम मुझे यहाँ से निकाल अपने साथ रख सको तो ठीक वरना मेरी शादी होने पर उसमे कोई व्यवधान न डालना क्योंकि में नहीं चाहती कि मेरे माँ बाप की मेरे कारण बदनामी हो. में इस बात के लिए तुम्हारे पैर पकड़ प्रार्थना करती हूँ कि तुम मेरे कहे अनुसार ही करोगे, तुम्हारी होने या न हो सकने वाली अभागन कमली.'


कमली के कोमल हाथों से लिखा भावपूर्ण पत्र पढ़कर दीनू की आँखों से आसू बहे जा रहे थे. सोचता था अगर कमली की शादी हो गयी तो क्या होगा? कमली तो उसके प्राण हैं अगर प्राण ही न रहे तो दीनू जियेगा कैसे? अब दीनू के पास एक यही रास्ता था कि वह कमली को किसी तरह यहाँ से ले जाये. तभी वह उसकी हो सकती थी. लेकिन कमली को घर से लाया कैसे जाए? कमली के तीन तीन मुस्टंडे भाई और कई रिश्तेदार हरवक्त उसकी निगरानी करते रहते थे.


दीनू ने बहुत सोचा लेकिन उसे कोई रास्ता नहीं सूझा, बहुत लोगों से मदद मांगी लेकिन सबने हाथ खड़े कर दिए. भगवान से भी बहुत प्रार्थना की लेकिन सब की सब प्रार्थना बेकार गयी. दीनू को जब कोई रास्ता दिखाई न दिया तो उसने कुछ ऐसा करने की सोची जो सबका दिल दहलाने बाली घटना थी. लेकिन उससे पहले उसने कमली को एक पत्र लिखना जरूरी समझा. उसने फटाफट कमली को एक पत्र लिखा और वो मौका तलाशने लगा जब कमली कहीं से दिखाई दे और वो इस पत्र को उसे दे सके.
 
दूसरे दिन सुबह सुबह कमली छत पर कपड़े सुखाती दिखाई दी लेकिन उसके साथ एक दो औरतें भी थी. दीनू काफी देर खड़ा रहा लेकिन तभी कमली की नजर उस पर पड़ गयी. दीनू को देखते ही कई दिन से उदास कमली चेहरे पर हंसी ले आई. हंसी ऐसी थी जिसमे लाखों दुखों की झलक थी. दीनू भी उसको मुस्कुराते देख थोडा सा मुस्कुराया.


दोनों दुखी जानें आज अपने अपने दिल के सुकुनों को देख अपनी प्यासी आत्माओं को तृप्त किये जा रहे थे. कमली का सुहाना रूप. वो गोल नथुनी लगी नाक. वो कुंडल वाले कान. वो बड़ी बड़ी काजल लगी आँखे. वो काले सुलझे बाल और वो मुकुराते होंठ. हे मेरे राम! ऐसा लगता था कि ईश्वर ने कमली के चेहरे का एक एक हिस्सा बड़ी शिद्दत से बनाया था. दीनू की आत्मा कमली की सुघड़ता से तृप्त हो गयी. उसका रूप आज किसी जीवनदायनी वूटी से कम न लग रहा था.


कमली का रूप आज ऐसी कांति लिए हुए था जिसका वर्णन दीनू की नजर से करना शायद मुश्किल था. दीनू की नजरों में उस रूप का कोई विकल्प नहीं था. उस रूप की कोई कीमत नहीं थी. उस रूप का कोई सानी नहीं था. दीनू को कमली का यह रूप आज ऐसा लग रहा था जैसा कि आज से पहले कभी नहीं देखा. कमली भी दीनू को एकटक देखे जा रही थी. दीनू की मर्दाना शक्ल. बड़े बड़े बाल, पतले चेहरे पर काली मूंछे. बड़ी बड़ी मर्दाना भवें.


कमली को लगता था दीनू आज जरुर कोई समाधान लाया होगा. कोई न कोई रास्ता निकल कर लाया होगा जिससे दोनों एक हो सकें. लेकिन दीनू के पास तो आज कुछ और ही रास्ता था जो दोनों के भविष्य को तय करने वाला था. दीनू ने झट से पत्र निकाला उसमे एक कंकड़ रखा और कमली की तरफ फेंक दिया.


कमली को पता था पत्र में आज क्या लिखा होगा? वो जानती थी दीनू उसे जरुर यहाँ से लेजाकर अपना बना लेगा. आज जरुर कोई ऐसी तरकीब लिखी होगी जो हम दोनों दिलदारों को एक कर डालेगी.


पत्र कमली के पास पहुंचा, कमली ने उठा कर मुख से चूम लिया. दीनू को लगा जैसे कमली ने पत्र को नही उसे चूमा हो. कमली ने एक बार फिर से दीनू को देखा और दीनू ने फिर से कमली को. दीनू ने कमली के पवित्र सौन्दर्य को आँखों में ऐसे बसा लिया जैसे वो उसको आखिरी बार देख रहा हो.जैसे आज के बाद वो उसको देखने ही नही आएगा. जैसे आज के बाद...?


कमली पत्र लेकर जल्दी से उसे पढ़ने के लिए चली गयी. उसे जल्दी थी दीनू के उस समाचार की जिसमे वो कमली को अपनी बनाने की बात कह रहा होगा. जिसमे दिल से दिल मिलने की सूचना होगी. दीनू भी अपने निढाल कदमों को ले कुए पर बैठ गया. वहां रखी बाल्टी से पानी लिया और अपनी दवाई की एक पुडिया पानी के साथ खाली.


कमली ने अपने कमरे में पहुंच दरवाजा अंदर से बंद किया और दीनू की लिखी हुई चिट्ठी खोल कर पढनी शुरू कर दी, “मेरे जीने की एकमात्र वजह प्यारी कमली. मैं हर वक्त तुम्हारे बारे में सोचता हूँ. तुम भी मेरे बारे में ही सोचती हो. मैं तुम्हारे रूप का इस कदर दीवाना था कि तुमसे इश्क कर बैठा, पहले में तुम्हारे रूप का पुजारी था लेकिन बाद में मुझे पता चला कि तुम्हारा मन भी उतना ही सुंदर है जितना तुम्हारा रूप. तुम्हारा मन गंगा की तरह पवित्र है लेकिन कमली इस कांटो भरे समाज ने तुम्हे और मुझे अलग अलग जाति और धर्म में बाँट दिया है.

तुम एक ब्राह्मण हो और में एक ठाकुर. घरवाले और जमाने के लोग कहते हैं कि हमारा मिलन हो ही नहीं सकता लेकिन ये पागल लोग ये नही जानते कि दिल का मिलन किसी जाति या धर्म से तय नही होता. वो तो सिर्फ इंसान की पहचान से होता है. परन्तु में आज मजबूर हूँ. मुझमे इस बेईमान जमाने की रिवाजों से टक्कर लेने की हिम्मत नहीं है. यह कहते हुए मुझे अपने आप पर शर्म महसूस होती है. मुझे पता है तुमने मुझसे क्या उम्मीद की होगी? तुम सोचती होंगी कि में तुम्हे यहाँ से कहीं ले जाकर तुम्हे अपनी बना लूंगा. फिर जिन्दगी भर तुम्हे अपने से जुदा न करूँगा.


में समझ सकता हूँ कि एक औरत अपने मर्द साथी से क्या अपेक्षा रखती है? वो सोचती है कि जब भी मुझपर कोई मुसीबत आएगी तो मेरा साथी मुझे उससे बचाएगा लेकिन आज में उस स्थिति में नहीं हूँ कि तुम्हारी इस घोर मुसीबत में मदद कर सकूँ. मैंने जब तुमसे मोहब्बत की थी तब बहुत सपने देखे थे.


सोचता था तुम्हारे साथ हसीन जिन्दगी बिताऊंगा. अपने दो बच्चे होंगे जिनमे एक तुम पर जाएगा और एक मुझपर, कितना सुखी परिवार होगा हमारा जब तुम जैसी देवी मेरे यहाँ कदम रखेगी. तुम्हारे सौन्दर्य को देख मोहल्ले की सारी भाभियाँ जलकर राख हो जायेगी. जब तुम सोलह सुंगार कर मेरे सामने आया करोगी तब मेरा दिल राजा इन्द्र से भी ज्यादा खुश हुआ करेगा.


लेकिन मेरी प्यारी कमली किसी ने कहा है कि सपने सिर्फ सपने होते हैं और मेरा भी ये सपना सिर्फ सपना रह गया. न तुम मेरी बन सकी न मैं तुम्हारा. लेकिन ये दीनू तुम्हारा था और जब तक जियेगा तुम्हारा ही रहेगा. कमली तुम मेरे जीवन में मेरी सांसो से ज्यादा अहमियत रखती हो.
 
आज मेरे जीवन में साँसे तो है लेकिन तुम नही. शायद इसीलिए ये जिन्दगी जीना कठिन हो गया है. मेरी कमली मेरी जिन्दगी. में पत्र को ज्यादा लम्बा न कर तुम्हे सीधे सीधे कुछ बता देना चाहता हूँ. वो वात पढने से पहले तुम्हे मुझसे एक वादा करना होगा कि तुम मेरी ये बात सुनकर जरा भी भयभीत न होओगी. न ही अपनी हिम्मत हारोगी. मुझे यकीन है तुमने वादा कर दिया होगा.


तो सुनो कमली. मेरा मन मुझे धोखा दे गया है वो तुम्हारी जगह किसी और को अपनाने की बात करता है. में कह सकता हूँ कि ये बेबफा हो गया है. ये इसकी बेबफाई का ही सबब है की इसने ये फैसला लेने पर मुझे मजबूर कर दिया कि में जहर खा अपनी जान दे दूँ. तुम्हे मेरी कसम कमली जो एक भी आंसू अपनी इन सुरमई आँखों से निकालो. में तुम्हे कभी माफ़ नही कर पाऊंगा अगर तुम जरा भी इस बात पर रोयीं. तुम मुझे कायर भी कह सकती हो जो तुम्हे मोहब्बत में फसा खुद चैन की नींद सोने जा रहा हूँ. लेकिन मेरी हसीन कमली मेरे दिल में अब और ज्यादा सहने की शक्ति नहीं है.


अगर में जहर न खाऊंगा तो कुढ़ कुढ़ कर मरूँगा और में कुढ़ कुढ़ कर मरने में विश्वास नही रखता. घर वालों को काफी दुःख दिया. बहुत बदनामी भी करायी. अब और ज्यादा अपने और तुम्हारे जन्मदाताओ को परेशान करने का मेरा इरादा नही है. जब तक तुम मेरा ये आखिरी पत्र पढकर खत्म करोगी तब तक मेरी जिन्दगी इस रुढ़िवादी दुनिया से बहुत दूर जा चुकी होगी.


तुम्हें फिर से एक बार मेरी सौगंध जो ज्यादा रोयीं या कुछ गलत करने की कोशिश की तो. तुम्हारे इस मोहक पवित्र रूप के दर्शन मेरी आँखों में बसे है जिन्हें में अपनी मौत के साथ ले जा रहा हूँ. अगर हमारा प्यार सच्चा है तो फिर किसी जन्म में हमारा मिलन होगा. और खत के आखिर में, अगर जाने अनजाने में मुझसे कोई गलती हुई हो तो माफ़ करना, तुम्हारा न हो सकने वाला. कायर. दीनू."


कमली पूरा पत्र पढ़ चुकी थी. उसका दिमाग और शरीर पूरी तरह सुन्न था लेकिन एकदम से उसे होश आया. उसे याद आया कि दीनू ने अपनी जान देने की जो बात खत में लिखी है. अगर वो सच...? कमली एकदम से कमरा खोल किसी रेल की तरह से भाग छूटी. घर का कोई कुछ समझ पाता उससे पहले कमली घर से बाहर निकल चुकी थी. कमली में किसी मशीन जैसी शक्ति आ गयी थी.


भागती हुई सीधी उस गली की तरफ भागी जिधर दीनू का घर पड़ता था. लेकिन कमली जब तक दीनू के घर पहुंचती उससे पहले ही एक जगह भीड़ जमा थी. कमली की खोजी आँखों ने दीनू के शरीर की खुसबू को भरी भीड़ में पहचान लिया. दौड़कर उस भीड़ में घुस गयी. कमली को ऐसे आया देख भीड़ के लोग दो दो कदम पीछे हट गये. कमली ने जैसे ही दीनू के मृत शरीर को देखा वैसे ही उसके मुंह से पूरे गाँव का दिल दहलाने वाली ऐसी चीख निकली कि वहां खड़े लोगों के रोंगटे खड़े हो गये.


कमली ने दीनू के झाग भरे मुंह को देखा जो चीख चीख कर कह रहा था कि दीनू जहर खा कर मर चुका है. कमली दीनू की लाश से लिपट गयी. ऐसी जैसे नागिन अपने मरे हुए नाग से. कमली का दिल फटा जाता था. लगता कि अभी दीनू के साथ ही मर जायेगी.

लेकिन तब तक कमली के घर वाले भागते हुए आ गये. उन्होंने कमली को जबरदस्ती वहां से हटाना शुरू कर दिया. लेकिन कमली थी कि दीनू को छोड़ना ही नही चाहती थी. देखने वालों के भी दिल कुम्हला गये. आसपास खड़ी औरतें कमली की चीखों को सुनकर रोने लगी थी. फिर जैसे तैसे कमली को उसके घरवाले लेकर जा पाए. अब कमली की निगरानी बढ़ा दी गयी क्योंकि घरवालों को डर था कि कहीं कमली आत्महत्या न कर ले. किन्तु कमली के दिमाग में ऐसा कोई विचार नहीं था, वो तो दीनू के मरते ही मर गयी थी.


दीनू अब इस दुनिया में नही था और कमली की हालत भी दुनिया में न होने जैसी ही थी.खाना पीना तो वो उसी दिन से छोड़ चुकी थी. लेकिन घरवाले उसे जबरदस्ती जो भी खिलाते वो खाती थी.कमली की शादी का दिन करीब आया. शादी हुई. कमली दुल्हन के रूप में किसी अप्सरा जैसी लग रही थी लेकिन मुंह पर उदासी किसी मृत लडकी जैसी थी. कमली को कोई होश नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है? जो घरवाले करवाते वही करती जाती थी.


शादी के बाद कमली विदा हो गाँव से अपनी ससुराल चली गयी. उसकी हालत देख ससुराल के लोग उसे पागल कहते थे जबकि चंद दिनों पहले जब वो कमली के घर उसे देखने आये थे तो कमली उन्हें हंसते खिलखिलाते हुए मिली थी. खुद कमली के पति की समझ में ये सारा माजरा न आता था. उसे क्या पता था कि कमली के साथ क्या हो चुका है?
 
शादी के बाद से कमली बीमार ही रहने लगी थी. ससुराल में न तो किसी से ज्यादा बात करती थी और न ही किसी के पास बैठती थी. सजना संवरना तो अब उससे होता ही नही था. साल भर बाद उसके बच्चा भी हुआ. बच्चा होने पर कमली थोडा सम्हली थी लेकिन उसकी रंगत पहले सा कुछ भी देखने को नहीं मिलता था. ___फिर एक दिन वह अपने गाँव घूमने आई. पहले से थोडा खुश थी. सबसे बातचीत भी करती रही लेकिन पहले जैसा हंसी मजाक. हसना बोलना. चलना फिरना. रूप सुंगार, खुद को सजाने सवारने का शौक अब कमली के अंदर नही रहा था.


गाँव आने पर जब छोटू उसके सामने आया तो उसे फिर से वही याद आ गयी जब वह उसके निक्कर में चिट्ठियाँ रखकर दीनू को भेजा करती थी. कमली ने छोटू को अपनी बहुत खिलाया था लेकिन आज छोटू काफी बड़ा हो गया था. कमली ने आज फिर से छोटू को गले से लगा अपनी यादें ताजा कर ली. फिर आँखों में आंसू ले बिना कुछ कहे अपने घर चली गयी और अपने घर से सीधी ससुराल.


कुछ दिन बाद खबर आई कि कमली की मौत हो गयी है. लम्बी बीमारी के बाद कमली ने अपना शरीर त्याग दिया था. आज न कमली थी और न ही दीनू. शायद कमली मरने के बाद दीनू से मिली हो क्योंकि दीनू भी तो मर गया था. दोनों गये तो एक ही जगह होंगे.


कमली को जानने वाला हर आदमी जानता था कि उसे क्या बीमारी थी? बीमारी लगी कब से थी लेकिन कोई बोलना नही चाहता था. गाँव मोहब्बत करने बाली लड़की की कोई पक्ष ले भी क्यों? उसे तो सजा और मिलनी चाहिए थी. वाह रे बुजदिल जमाने. भगवान करे तू जल्दी बदल जाए. जिससे फिर कोई कमली ऐसी कमली न बनने पाए.


कमली की मौत के कुछ दिन बाद दीनू के भाई बादल ने कई गुंडों को लेकर कमली के बाप सोरन के घर पर धावा बोल दिया. सारा सामान लूटा. पूरे घर को बुरी तरह से पीटा. घर के सारे लोग खूब चीखे चिल्लाये थे. गाँव के लोगों में भी भय का माहौल बन गया था. शायद वो दिवाली का दिन था. ___

चोर सोरन पंडित की छत पर चढकर गाँव के लोगों से कहते थे, “गाँव वालो कान खोलकर सुन लो. हमारी तुम लोगों से कोई दुश्मनी नही है. हम सिर्फ इस सोरन पंडित को लूटने आये है. हमारी इससे निजी रंजिस है इसलिए कोई बीच में आने की हिम्मत न करे, आया तो उसकी खैर नही. हम वादा करते हैं तुम में से किसी और से कुछ नही कहेंगे."
यह सब सुनने के बाद किसी गाँव के आदमी ने सोरन की मदद करने की कोशिश नहीं की, सोरन पंडित के लडके यानि कमली के भाई गाँव के लोगों के दरबाजे पीटते रहे लेकिन किसी ने उनके लिए दरवाजा नही खोला. बादल ने खूब बदला लिया अपने भाई दीनू की मौत का लेकिन इससे फायदा क्या हुआ? अब वो लौटकर तो नहीं आ जायेगा.


अगर दीनू जिन्दा होता तो ऐसा करने ही नही देता. वो अपनी कमली के घर वालों से ऐसा वर्ताव कभी बर्दास्त नहीं करता. दीनू कमली से प्यार करता था और उसके घर के लोगों की इज्जत भी. फिर कुछ साल बाद बादल भी चुन्नी से इश्क कर बैठा. जिसका हश्र भी इससे कम भयानक नही था. इस एक घर के दो लडके प्यार में अपनी जान गवां बैठे थे. एक बादल और उसका भाई दीनू,


कोमल की हिम्मत तो देखो इतने के बाद भी वह राज से इश्क कर बैठी. राम जाने इस नादान लडकी का क्या होगा? लेकिन कुछ भी हो इससे ये तो साबित होता ही है कि दिल किसी के बाप की जागीर नही जिसे अपने कब्जे कर कोई डरा धमका कर, मार पीट कर बंदिश लगाकर और यहाँ तक कि जान से मार कर भी मोहब्बत करना नही भुला सकता. कोमल इसका पुख्ता प्रमाण थी.
 
भाग -6

आज की रात राज और कोमल के साथ देवी के लिए भी बहुत मुश्किल भरी थी. उसे अपनी बहन कोमल को दिया वादा भी पूरा करना था क्योंकि कोमल ने आज राज से बात न कर अपना वादा पूरा कर दिया था. उसने आज अपना दिल मसोस लिया था. उसने ऐसा कर देवी को उसका वादा पूरा करने के लिए बाध्य कर दिया था,


शाम हुई फिर रात हुई. कोमल ने आज पेट भर खाना भी न खाया. दोनों बहनें सोने चल गयी. घर में अभी सब कुछ सामान्य सा था लेकिन घर की इन दो लडकियों के दिलों में आज भूकम्प आया हुआ था. ऐसा भूकम्प जो आज इन्हें ठीक से सोने भी नहीं दे रहा था. कोमल दाए करवट से लेटी थी और देवी बाए से. दोनों की दशा सिक्के के दो पहलुओजैसी थी. दोनों को नींद नहीं आई इसलिए अभी तक जाग रहीं थी. दोनों ही जानती थी कि बगल में पड़ी उसकी बहन जाग रही है लेकिन दोनों में से कोई एकदूसरे से बोलती नही थी. दोनों की दिमागी सोच किसी समस्या के हल वाले समन्दरों की गहराई नाप रही थी. लेकिन दोनों की स्थिति उस मछुआरे जैसी थी जो बीच समुंदर से भी बार बार खाली हाथ लौटता आता हो.
सांसो की आवाजे दोनों की स्थिति का हाल एकदूसरे को बयां कर रही थी. जब भी दोनों तेज तेज साँसे लेने लगती तो पता चलता था कि अब कोई हल सोचा जा रहा है लेकिन जैसे ही वो एक लम्बी सास ले छोडती तभी दूसरे को पता चलता कि हल नहीं मिल पा रहा है और बगल में पड़ी बहन निराश हुई है. दोनों बेशक एक दूसरे के बिपरीत मुंह करे पड़ी थी लेकिन सोच सिर्फ एक ही बात रही थी.
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इधर राज की नींद भी इन दोनों बहनों की तरह ही उडी हुई थी. वह पड़ा पड़ा कोमल के आज किये वर्ताव पर सोच के घोड़े दौडाए जा रहा था. उसे सुबह तक की तस्सली नही थी. ये प्यार में अँधा आशिक अभी के अभी यह जाना चाहता था कि उसकी महबूबा ने आज उससे ऐसा व्यवहार क्यों किया? क्यों बिना देखे चली गयी? क्यों न कुछ बताया? क्या में कोई नही लगता उसका? क्यों वो मुझे बताना नही चाहती?


देवी ने जब देखा कि उसके साथ साथ कोमल की नींद भी उडी हुई है तो देवी के दिल में बहन के लिए प्यार उमड़ आया. वो बगल में लेटी पड़ी कोमल की तरफ पलटी. फिर कोमल को अपने आगोश में लेती हुई उससे बोली, “कोमल क्या तुम्हें नींद नही आ रही. सो जाओ मेरी बहन सब ठीक हो जाएगा. भगवान जरुर कुछ न कुछ......


देवी आगे कुछ बोल पाती उससे पहले ही कोमल देवी की तरफ पलट बोल पड़ी, “अगर तुम मुझे भगवान के भरोसे ही रखना चाहती थी तो आज यह शर्त क्यों रख दी कि में राज से तब तक बात नहीं करू जब तक कि तुम इस परेशानी का हल नहीं निकाल लेती? तुमने तो खुद इस समस्या को सुझाने का वादा मुझसे किया है और अब मुझे भगवान भरोसे छोड़ रही हो."


देवी एक दम से निरुत्तर हो गयी. देवी के मुंह से भगवान के कुछ न कुछ करने वाली बात ने कोमल को यह सन्देश दिया कि देवी ने अभी कुछ भी हल नही निकाल पाया है. और ना ही वो निकालने में सक्षम है. यह सोच देवी अपनी बात को घुमाते हुए बोली, “कैसी बातें करती हो मेरी बहन? क्या तुम नही जानती कि तुम्हारे साथ में भी अभी तक नही सोयी? आधी रात तक आज से पहले तुमने मुझे कभी जगते देखा है. मुझे लगता है कि तुम्हे अपनी इस बहन पर भरोसा ही नहीं है."


कोमल देवी के भरोसे वाली बात से हडवडा गयी. वो तुरंत देवी से बोली, "देवी तुम ये कहने से पहले मेरे आज के रवैये पर नजर डाल सोचती तो शायद ये बात नही कहती. अगर मुझे तुम्हारे ऊपर भरोसा न होता तो आज में राज से बिना कुछ कहे और बिना उसकी तरफ देखे न चली आती.” इतना कह कोमल का गला भर आया. आँखे आसुओं के अम्बार लगाने लगी. ____
 
यह सब देख देवी का दिल भी भर आया. उसने कोमल को अपने कलेजे से लगा लिया और धीरे से बोली, “मेरी बात का गलत मतलब न निकालो मेरी बहन. में सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए सोचती हूँ. मुझे नहीं पता कि मेरे मुंह से क्या का क्या निकल रहा है? आज का सब कहा सुना माफ़ करो." यह कह देवी ने कोमल का मुखड़ा अपने हाथों में लिया और उसका माथा चूम उससे बोली, “अब सो जाओ मेरी राजकुमारी. कल की सुबह तुम्हारे लिए भी कुछ न कुछ उजाला जरुर ले कर आएगी."


कोमल को देवी के प्यार से समझाने पर थोडा अच्छा महसूस हुआ. वो फिर से विना कुछ बोले दूसरी तरफ करवट ले सो गयी. राज ने भी यही सोचा कि कल सुबह वो जब दूध लेने कोमल के घर जाएगा तब उससे जरुर पूंछेगा कि पूरी बात क्या है? तीनों दो अलग अलग जगह पर पड़े सोने की कोशिश किये जा रहे थे और फिर तीनो को ही नींद ने आ दबोचा.


सुबह हुई. राज की माँ ने राज को झकझोर कर उठाते हुए कहा, “क्यों रे राज आज दूध कढाने नहीं जायेगा क्या?"

राज रात भर ठीक से सो नहीं पाया था. ऊपर से दिल का भारी भरकम दर्द, माँ से बोला, “आज नहीं जाना पापा को भेज दो."

माँ इतना सुन मुड़ने को हुई लेकिन राज को तब तक ध्यान आ गया कि उसे कोमल के पास भी तो जाना है. वह झट से चारपाई से उठा और माँ से बोला, “रहने दो माँ में ही जा रहा हूँ."
माँ ने देखा कि अभी राज बीमारों की तरह पड़ा था लेकिन न जाने फिर क्या दिमाग में आया कि इतनी फुर्ती से उठ बैठा. राज झट पट से तैयार हो. टंकी को साईकिल पर बाँध कर भाग चला. माँ ने राज की हाल की गतिविधियों को देख सोचा कि वो राज के बाप से इसकी शादी जल्दी करने को कहेगी. गाँव में अक्सर माँ बाप बच्चों की ऊंटपटांग हरकतों को उनकी शादी से जोड़कर देखते हैं..


यही नहीं, अगर बच्चे चारपाई पर बैठ कर पैर हिलाने लगे तो समझ लो वो किसी लड़की के बारे में सोचता होगा. जल्दी ही उस लडके या लडकी की शादी की बात होनी शुरू हो जाती है. किसी लडकी पर अगर भूत आना शुरू हो जाय तो समझ लो उसकी शादी पक्की हो ही जाएगी. और एक लड़का या लडकी ज्यादा हंस हस कर बात कर लें तो दोनों के बीच कोई न कोई चक्कर है.


जल्दी ही उन लोगों के घरवाले उनकी शादी करा डालते हैं. यही नहीं, अगर कोई लड़का या लडकी अकेले रहने लगे या किसी से बात न करें तो भी उनकी शादी करवा दी जाती है. क्योंकि ये लक्षण तो सिर्फ प्यार के रोग में ही पाए जाते हैं जिनका इलाज सिर्फ शादी ही
होता है.


राज एक सांस में कोमल के गाँव पहुंचा. फिर कोमल के घेर(भैसों के रहने की जगह) में. राज का दिल आज कुछ ज्यादा ही धडक रहा था. सोचता था अभी कोमल आएगी तो क्या कहूँगा या वो क्या कहेगी? क्या वो अभी भी कल जैसा ही वर्ताव करेगी या पहले जैसा?


राज अभी यह सोच ही रहा था कि देवी दूध निकालने वाली वाल्टी लिए आ पहुंची. राज का दिमाग बिजली के मारे करंट की तरह झनझना गया. उसे अपनी आँखों पर यकीन न आया. जहां आज तक दूध दूहने कोमल ही आती थी वहां आज देवी आई थी. अब राज को पक्का शक हो गया कि कोई न कोई बात जरुर है.


देवी दूध दुहने भैस के पास बैठ गयी. राज का दिल करता था कि देवी से ही पूँछ ले कि आखिर बात क्या है आज कोमल दूध दुहने क्यों नही आई? फिर सोचा पहले देवी दूध दूह ले फिर पूँछ लेगा. थोड़ी देर बाद देवी भैंस का दूध निकाल राज को देने आई. राज ने लीटर से दूध नाप अपनी बाल्टी में डाल लिया. उसके बाद देवी जाने को हुई लेकिन राज के गम्भीर स्वर ने उसे रोक लिया. राज बोला, "देवी बहन जी आज...वो..कोमल दूध दुहने क्यों नही आई? क्या कोई परेशानी है उन्हें?"
 
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