Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) - Page 2 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )

-“तुम गलत समझते थे। वह और रंजना बहुत ही कम मिला करती हैं। मीना अपना ज्यादातर वक्त अपने ढंग से ही गुजारती है।”

सैनी कटुतापूर्वक मुस्कराया।

-“हो सकता है, इस हफ्ते अपना वक्त वह कुछ ज्यादा ही अपने ढंग से गुजारती रही है।”

-“क्या मतलब?”

-“जो चाहो मतलब निकाल सकते हो।”

इन्सपैक्टर चौधरी मुट्ठियाँ भींचे आगे बढ़ा। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था।

राज ने कार का दरवाजा खोला और पैर जोर से जमीन पर पटका।

इन आहटों ने इन्सपैक्टर को रोक दिया। उसने दुष्टतापूर्वक मुस्कराते सैनी को घूरा फिर पलटकर चला गया। कुछ दूर जाकर उनकी तरफ से पीठ किए खड़ा रहा।

-“मेरा मुँह बंद कराना चाहता था।” सैनी खुशी से चहका- “इसका गुस्सा किसी रोज खुद इसी को ले डूबेगा।”

मिसेज सैनी लॉबी का दरवाजा खोलकर बाहर निकली। उसके चेहरे पर व्याकुलतापूर्ण भाव थे।

-“क्या हुआ सतीश?” उन दोनों की ओर बढ़ती हुई बोली।

-“हमेशा कुछ न कुछ होता ही रहता है। मैंने इन्सपैक्टर को बताया, इस हफ्ते मीना बवेजा काम पर नहीं आई तो वह मुझे ही इस के लिए जिम्मेदार समझने लगा। जबकि उसकी उस घटिया साली के लिए मैं कतई जिम्मेदार नहीं हूँ।

मिसेज सैनी ने पति की बाँह पर कुछ इस अंदाज में हाथ रखा मानों किसी भड़के हुए पशु को शांत कराना चाहती थी।

-“तुम्हें जरूर गलतफहमी हुई है, डार्लिंग। मुझे यकीन है, मीना की किसी हरकत के लिए वह तुम्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता। शायद वह मीना से मनोहर के बारे में पूछताछ करना चाहता है।”

-“क्यों?” राज बोला- “क्या वह भी मनोहर को जानती थी?”

-“बिल्कुल जानती थी। मनोहर उसका दीवाना था। ऐसा ही था न, सतीश?”

-“बको मत।”

वह पति से अलग हट गई। ऊँची एड़ी के अपने सैंडलों पर कुछ इस ढंग से लड़खड़ाती हुई मानों पीछे धकेल दी गई थी।

-“बताइए मिसेज सैनी। यह बात महत्वपूर्ण हो सकती है क्योंकि मनोहर मर चुका है।”

-“मर चुका है?” वह झटका सा खाकर बोली और राज से निगाहें हटाकर अपने पति को देखा- “क्या मीना भी इसमें शामिल है?”

-“मैं नहीं जानता।” सैनी ने कहा- “बस बहुत हो गया। अंदर जाओ, रजनी। तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है। यहाँ सर्दी में खड़ी रहकर तुम बेवकूफी कर रही हो।”

-“मैं नहीं जाऊँगी। तुम इस तरह मुझ पर हुक्म नहीं चला सकते। मुझे पूरा हक है जिससे चाहूँ बात कर संकू।”

-“नहीं, इस हरामजादे के सामने तुम कोई बकवास नहीं करोगी।”

-“मैंने ऐसा कुछ नहीं....।”

-“बको मत। तुम पहले ही काफी बकवास कर चुकी हो।”
 
सैनी ने पीछे से पत्नि की बाहें पकड़ीं और घसीटता हुआ सा उसे लॉबी के दरवाजे की ओर ले चला। उसकी पकड़ से छूटने के लिए रजनी ने संघर्ष किया लेकिन जब उसने छोड़ा तो एक बार भी मुड़कर देखे बगैर अंदर चली गई।

सैनी अपने बालों में उँगलियाँ फिरता हुआ वापस लौटा।

राज को लगा वह उन अधेड़ आदमियों में से था जो इस असलियत को नहीं पचा सकते की उनकी जवानी का दौर लद चुका है। शायद इसीलिए उसके मिजाज में अभी तक गर्मी थी।

-“तुम औरतों के साथ नर्मी से पेश आने में यकीन नहीं करते।”

-“मैं कुतियों से निपटना जानता हूँ। चाहे वे किसी भी नस्ल की क्यों न हो।” सैनी उसे घूरता हुआ बोला- “इतना ही नहीं हरामजादों से निपटना भी मुझे आता है। इसलिए मेरी सलाह है, फौरन यहाँ से दफा हो जाओ।”

राज ने इन्सपैक्टर की तलाश में आसपास निगाहें दौड़ाईं। वह एक टेलीफोन बूथ में रिसीवर थामें खड़ा था मगर उसे देखकर नहीं लगता था कि बातें कर रहा था।

-“मैं इन्सपैक्टर के साथ आया हूँ। इस बारे में उसी से बातें करो।”

-“तुम हो कौन? अगर मुझे पता चला इन्सपैक्टर को मेरे खिलाफ भड़काने वाले तुम हो....?”

-“तो क्या होगा?” राज ने ताव दिलाने वाले लहजे में पूछा। वह चाहता था सैनी उस पर हाथ उठाए ताकि उसे भी उसकी धुनाई करने का मौका मिल सके।

-“तुम जमीन पर पड़े होंगे और तुम्हारे दांत टूटकर हलक में फंसे होंगे।”

-“अच्छा।” राज उपहासपूर्वक बोला- “मैं तो समझा था तुम सिर्फ औरतों को ही घसीटना जानते हो।”

-“तुम देखना चाहते हो, मैं क्या जानता हूँ?”

रोबीले स्वर के बावजूद यह कोरा ब्लफ था। वह कनखियों से उधर आते इन्सपैक्टर को देख रहा था।
इन्सपैक्टर शांत एवं सामान्य नजर आ रहा था।

-“सॉरी, सतीश। मुझे तुम पर गुस्सा नहीं करना चाहिए था।”

-“अगर तुमने गुस्से पर काबू पाना नहीं सीखा तो वो दिन दूर नहीं है जब गुस्से की वजह से नौकरी से हाथ धो बैठोगे।”

-“छोड़ो इसे। तुम्हें कोई चोट तो मैंने नहीं पहुँचाई।”

-“अब कोशिश करके देख लो।”

इन्सपैक्टर के चेहरे पर व्याप्त भावों से स्पष्ट था वह जबरन स्वयं पर काबू पाए हुए था।

-“इसे छोड़ो और मीना के बारे में बताओ। कोई नहीं जानता लगता वह कहाँ है। उसने रंजना को भी नहीं बताया कि वह नौकरी छोड़ रही है या कहीं जा रही है।”

-“उसने नौकरी नहीं छोड़ी। वह वीकएंड मनाने गई थी और सोमवार सुबह काम पर नहीं आई। जाहिर है वीकएंड से नहीं लौटी। मेरे पास उसकी कोई सूचना नहीं है।”

-“गई कहाँ थी?”

-“यह तो तुम्हें ही पता होना चाहिए। मुझे तो वह रिपोर्ट देती नहीं।”

दोनों ने खामोशी से एक-दूसरे को घूरा। उनकी निगाहों से एक-दूसरे के प्रति नफरत साफ झलक रही थी।
 
-“तुम झूठ बोल रहे हो।” अंत में चौधरी बोला।

-“तो फिर तुम खुद सच्चाई का पता लगा लो।”

राज गौर से उन्हें देख रहा था। चौधरी ने यह देखा तो उसे हिला कर जाने का संकेत कर दिया।

राज उन्हें छोडकर अंदर चला गया।
लॉबी में अंधेरा था। एक बंद खिड़की से बाहर से हल्की सी रोशनी अंदर आ रही थी। सतीश सैनी की पत्नि रजनी दूर एक कोने में कुर्सी में धँसी हुई थी।

-“कौन है?” वह बोली।

-“राज। वह आदमी जो तुम्हारे लिए मुसीबत लाया था।”

-“तुम मुसीबत नहीं लाए। यह शुरू से ही मेरे साथ है।” वह उठकर उसके पास आ गई- “तुम पुलिस विभाग में हो?”

-“नहीं। मैं प्रेस रिपोर्टर हूँ।” सच्चाई का पता लगाकर अखबार के जरिये लोगों तक पहुंचाता हूँ।

-“इस किस्से से तुम्हारा क्या ताल्लुक है?”

-“कुछ नहीं। इत्तिफ़ाक से इसमें फंस गया हूँ।”

-“ओह।”

-“तुम्हें तो इसके बारे में जरूर कुछ पता होगा।”

-“क्यों।”

-“क्योंकि तुम इसमें इनवाल्व लोगों को जानती हो।”

-“तुम दूसरों की बात कर रहे हो मैं तो अपने पति तक को पूरी तरह नहीं जानती।”

-“तुम्हारी शादी को कितना अर्सा हो गया?”

-“सात साल। तुम किस अखबार के लिए काम करते हो?”

-“पंजाब केसरी के लिए।”

-“पंजाब केसरी के राज कुमार हो।” रजनी के स्वर में हैरानी का पुट था- “तुम्हारा काफी नाम मैंने सुना है। तुम मुसीबतजदा लोगों की मदद करते हो। मेरी मदद करोगे?”

-“किस मामले में?”

-“क....क्या मैं तुम पर भरोसा कर सकती हूँ?”

-“मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ भले लोग अक्सर मुझ पर भरोसा करते हैं।”

-“सॉरी। मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।”

-“मुझसे क्या करना चाहती हो?”

-“यह तो सही मायने में खुद मैं भी नहीं जानती। मगर इतनी बात जरूर है किसी के लिए परेशानी खड़ी करना मैं नहीं चाहती?”

-“इस किसी में तुम्हारा पति भी शामिल है?”

-“हाँ।” एकाएक उसका स्वर बहुत धीमा हो गया- “मैंने पिछली रात सतीश को अपनी सभी चीजें दो बड़े सूट केसों में पैक करते पाया था। मुझे यकीन है वह मुझे छोड़कर जाने वाला है।”
 
-“उससे पूछ क्यों नहीं लेती?”

-“इतनी हिम्मत मुझमें नहीं है।”

-“उसे प्यार करती हो?”

-“पता नहीं। कई साल पहले तो करती थी।”

-“तुम दोनों के बीच कोई दूसरी औरत है?”

-“कोई नहीं, कई औरतें हैं।”

-“मीना बवेजा भी उनमें से एक है?”

-“वह हुआ तो करती थी। पिछले साल तक उनके बीच कुछ था। सतीश का कहना है वो जो भी था खत्म हो गया। लेकिन वो अभी भी हो सकता है। अगर तुम मीना को ढूँढकर पता लगाओ की किस के साथ उसके गहरे ताल्लुकात हैं तो असलियत का पता चल सकता है।”

-“वह कब से गायब है?”

-“पिछले शुक्रवार को गई थी वीकएंड मनाने।”

-“कहाँ?”

-“यह मैं नहीं जानती।”

-“तुम्हारे पति के साथ गई थी?”

-“नहीं। कम से कम वह तो मना करता है। मैं कहने जा रही थी....।”

राज के पीछे से सैनी का स्वर उभरा।

-“तुम क्या कहने जा रही थीं?”

स्पष्टत: वह चुपचाप लॉबी का दरवाजा खोकर अंदर आ गया था।

राज को एक तरफ धकेलकर अपनी पत्नि के सामने अड़ गया।

-“मैंने तुम्हें बकवास करने के लिए मना किया था।”

-“म...मैंने कुछ नहीं कहा।”

-“लेकिन मैंने तुम्हें कहते सुना था। अब यह मत कहना मैं झूठ बोल रहा हूँ....।”

अचानक उसने पत्नि के मुँह पर थप्पड़ जमा दिया।

वह लड़खड़ाकर पीछे हट गयी।

राज ने उसका कंधा पकड़कर उसे अपनी ओर घुमाया।
-“औरत पर ताकत मत आजमाओ, पहलवान।”

-“हरमजादे।” सैनी गुर्राया और घूंसा चला दिया।

राज को अपनी गरदन की बायीं साइड सुन्न हो गई महसूस हुई। वह पीछे हटकर दरवाजे के पास रोशनी में आ गया।

आशा के अनुरूप सैनी भी उसकी ओर झपटा।

प्रत्यक्षत: शांत खड़ा राज तनिक घूमा और उसके पेट में साइड किक जमा दी।

सैनी के चेहरे पर पीड़ा भरे भाव प्रगट हुए। दोनों हाथों से पेट दबाए वह दोहरा हो गया।

राज ने आगे बढ़कर उसकी गरदन के पृष्ठ भाग पर दोहत्थड़ दे मारा।

सैनी औंधे मुँह नीचे गिरा। उसका चेहरा फर्श से टकराया और उसकी चेतना जवाब दे गई।
 
राज लॉबी से बाहर आ गया।

इन्सपैक्टर चौधरी की पुलिस कार जा चुकी थी। तेज रोशनी में नहाया प्रवेश द्वार के आसपास का एरिया सुनसान था।

राज अपनी कार में सवार होकर हाईवे पर पहुँचा। उसकी फिएट शहर की ओर जाते वाहनों में शामिल हो गई। दूसरों के फटे में टाँग अड़ाने की अपनी आदत की वजह से अब वह चाहता था मिसेज सैनी की मुसीबत दूर हो जाए और सैनी ढेर सारी मुसीबतों में जा फंसे।

उसने मौका पाते ही अपनी कार को यू टर्न देकर वापस घुमाया। मोटल के सामने से गुजरा। करीब सौ गज दूर ले जाकर पुन: यू टर्न लेकर पेड़ों के साए में कार पार्क कर दी।

मोटल के प्रवेश द्वार पर निगाहें जमाए एक-एक करके दो सिगरेटें फूँक डालीं। ठीक उस वक्त जब वह तीसरी सिगरेट सुलगाने के लिए जेब से पैकेट निकालने वाला था मोटल के बाहर की रोशनियाँ बुझ गईं। डीलक्स मोटल और नो वैकेंसी के साइन बोर्ड भी अंधेरे में डूब गए।

राज ने फिएट का इंजिन चालु कर दिया।

मुश्किल से पाँच मिनट बाद।

सैनी मोटल से निकला और पीछे की ओर चला गया।

दो-तीन मिनट बाद उधर से एक जिप्सी प्रगट हुई। दो बार हार्न बजाया गया। जवाब में मिसेज सैनी प्रवेश द्वार से निकली और जिप्सी की ओर दौड़ गई।

राज को जिप्सी का पीछा करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। दोनों कारें अलीगढ़ में दाखिल हुई।

पूरे शहर से गुजरने के बाद जिप्सी पहाड़ी पर बने रिहाइशी इलाके में एक दो मंज़िला मकान के सामने जा रुकी।

मिसेज सैनी नीचे उतर गई।

राज ने उस मकान की लोकेशन अपने दिमाग में अंकित कर ली।

सैनी ने जिप्सी वापस घुमाई और शहर के मध्य भाग की ओर दौड़ाने लगा।

अंत में वह मेन रोड के पास एक साइड स्ट्रीट पर पहुँचा। जिप्सी पार्क करके पैदल चल दिया।
राज भी अपनी कार पार्क करके उसके पीछे लग गया।

इलाका बढ़िया नहीं था।

आगे जा रहा सैनी रुक गया। वहाँ साइन बोर्ड लगा था- ग्लोरी बार कम रस्टोरेंट।

सैनी को गली में आगे पीछे देखता पाकर राज एक दुकान के अंदर खिसक गया और वहाँ शोकेस में सजी चीजें देखने लगा।

कोई दो मिनट बाद वह दुकान से बाहर निकाला तो सैनी कहीं नजर नहीं आया।

वह उसी रेस्टोरेंट के सम्मुख पहुँचा।

सैनी एक वेटर के साथ रेस्टोरेंट के पिछले हिस्से में उस तरफ जाता दिखाई दिया जहाँ मेहराबदार दरवाजे पर परदा झूल रहा था।

वेटर ने आगे बढ़कर परदा खिसकाया।

सैनी अंदर चला गया।

चंदेक क्षोणोंपरांत राज भीतर दाखिल हुआ।

रेस्टोरेंट काफी बड़ा और पुराने फैशन का था। एक साइड में बार थी, दूसरी में कोई दर्जन भर केबिन बने थे और बीच के स्थान में मेजे पड़ी थीं, वहाँ मौजूद ख़ासी भीड़ का जायजा लेते राज के पास पिछले हिस्से की तरफ से आता वही वेटर पहुँचा।

-“आपकी केबिन चाहिए सर?”

-“प्राइवेट रूम नहीं मिलेगा?”

-“सॉरी सर। वो दिया जा चुका है। अगर आप दो मिनट पहले आ जाते....।”

-“कोई बात नहीं।”

राज सामने के एक केबिन में बैठ गया ताकि बार के पीछे लगे शीशे में मेहराबदार दरवाजे को वाच कर सके।
वेटर वारटेंडर से लार्ज ड्रिंक लेकर मेहराबदार दरवाजे की ओर चला गया।

फिर मीनू सहित राज के पास लौटा।

राज ने दीवार पर एक स्थान पर उखड़ी बिजली की वायरिंग की ओर इशारा किया।

-“इसे ठीक क्यों नहीं कराते? इस तरह की लापरवाही से आग लग जाती है। मुझे इन चीजों से बड़ा डर लगता है। क्या यहाँ से बाहर जाने का पीछे की तरफ भी कोई रास्ता है?”

-“नो, सर। लेकिन यह वायरिंग पूरी तरह सेफ है।”

राज निश्चिंत हो गया। सैनी उसकी निगाहों से बचकर वहाँ से बाहर नहीं जा सकता था।

उसने दो लार्ज पैग विस्की और तंदूरी चिकन का आर्डर दे दिया।

वेटर आर्डर सर्व कर गया।
 
चिकन स्वादिष्ट था। राज विस्की की चुस्कियाँ लेता खाने लगा।

खाना-पीना खत्म करके जब वह सिगरेट सुलगा रहा था एक लड़की ने अंदर प्रवेश किया।

लड़की खूबसूरत थी। उसके उभार इतने आकर्षक थे कि बारटेंडर सहित बार में मौजूद हर आदमी की निगाहें उसकी तरफ घूम गईं।

राज की निगाहें उससे मिलीं तो वह मुस्करा दिया।

लड़की उसे घूरकर वेटर की तरफ पलट गई।

-“इज ही हेअर?”

-“ही जस्ट केम इन, मिस। ही इज वेटिंग फॉर यू इन दी बैक रूम।”

लड़की नितंबों में नपा-तुला उतार-चढ़ाव पैदा करती वेटर के पीछे चल दी।

राज ने सोचा क्या वह मीना बवेजा थी। लेकिन किसी मोटल की मैनेजर की बजाय वह देखने में स्ट्रगलिंग एक्ट्रेस या मॉडल या फिर ऐसी कालगर्ल नजर आती थी जो अपने पेशे में बहुत ज्यादा कामयाब थी। उसका धंधा जो भी था सैक्स से गहरा ताल्लुक रखने वाला था। सैक्स उसमें यूँ भरा था जैसे बेहद रसीले अंगूर में भरा होता है और वह इस कदर जवान थी कि दावे के साथ कहा जा सकता था अंगूर में खट्टापन आना शुरू नहीं हुआ था।

वेटर प्राइवेट रूम का आर्डर लेकर किचिन में पास करने चला गया तो राज सिगरेट का अवशेष एश ट्रे में कुचलकर खड़ा हो गया।

मेजों के बीच से गुजरकर वह मेहराबदार दरवाजे पर पहुँचा और परदा खिसकाकर अंदर सरक गया।

उसने स्वयं को संकरे नीमरोशन गलियारे में खड़ा पाया। दूर दूसरे सिरे पर बने दरवाजों में से एक पर ‘मेन्स’ तथा दूसरे पर ‘लेडीज’ लिखा था। दायीं ओर निकटतम खुले दरवाजे पर भारी परदा झूल रहा था। अंदर से बातचीत के धीमें स्वर सुनकर राज दरवाजे की बगल में दीवार से चिपक गया।

-“फोन पर कौन थी- तुम्हारी पत्नि?” युवती कह रही थी- “मैंने पहले कभी उससे बात नहीं की। काफी पढ़ी-लिखी लगती है।”

-“बहुत ही ज्यादा पढ़ी-लिखी है।” सैनी के स्वर में कड़वाहट थी- “तुम्हें मोटल में मुझे फोन नहीं करना चाहिए था। कल रात मुझे पैकिंग करते पकड़ लिया था। वह समझ गई होगी।”

-“हमारे बारे में?”

-“हर एक बात के बारे में।”

-“तो क्या हुआ? हमें रोक तो नहीं सकती।”

-“तुम उसे नहीं जानती इसीलिए ऐसा कह रही हो। वह अभी भी मेरे साथ चिपकी हुई है। इस वक्त हर एक छोटी-छोटी बात से बड़ा भारी फर्क पड़ता है। मुझे भी यहाँ नहीं आना चाहिए था?”

-“मुझसे मिलकर तुम खुश नहीं हो?”

-“मैं बहुत ज्यादा खुश हूँ। लेकिन हमें थोड़ा इंतजार करना चाहिए था।”

-“मैंने सारा दिन इंतजार किया था, डार्लिंग। मगर तुम्हारा फोन तक नहीं आया। दूसरे मेरे पास सिगरेट खत्म हो गए थे। तुम तो जानते हो उन सिगरेटों के बगैर मेरी हालत कितनी खराब हो जाती है। इसलिए तुमसे मिलना जरूरी था। मैं यह भी जानना चाहती थी की क्या हुआ?”

-“कुछ नहीं हुआ। तरकीब कामयाब रही। काम हो गया।”

-“तो फिर हम जा सकते हैं?” युवती के स्वर में आतुरता थी- “अभी?”

-“अभी नहीं। मुझे कई काम करने है। जौनी को कांटेक्ट करना है....।”

-“वह चला नहीं गया?”

-“न ही गया हो तो बेहतर होगा। उसके पास अभी मेरा पैसा है।”

-“वह दे देगा। उस पर भरोसा कर सकते हो। जौनी बेईमान या ठग नहीं है। कब मिलना है उससे?”

-“बाद में। उसी अकेले से नहीं मिलना है मुझे।”

-“जब उससे मिलो तो मेरा भी एक काम कर देना।” युवती का स्वर याचना पूर्ण था- “उससे मेरे लिए कुछ सिगरेट माँग लेना। नेपाल में तो उनकी कोई कमी नहीं रहेगी। मुझे बस आज रात और सफर के लिए चाहिए। यह इंतजार मुझ पर भारी गुजर रहा है?”

-“तुम समझती हो मुझे इस इंतजार में मजा आ रहा है?” सैनी कलपता हुआ सा बोला- “मुझ पर भी यह इतना भारी गुजर रहा है कि एक पल के लिए भी चैन नहीं है। अगर मेरा दिमाग ठिकाने होता तो मैंने हरगिज यहाँ का रुख नहीं करना था।”

-“फिक्र मत करो डार्लिंग। यहाँ कुछ नहीं हो सकता। इस रेस्टोरेंट का मालिक जीवनदास हमारे बारे में जानता है।”

-“और कितने लोग हमारे बारे में जानते है? और कितना जानते है? मोटल में भी एक प्रेस रिपोर्टर सूंघ लेने आया था....।”

-“इस किस्से को छोड़ो डार्लिंग।” लड़की चहकी- “यहाँ आओ और हमारे नए बंगले के बारे में बताओ। क्या हम वहाँ सारा दिन खुले आसमान के नीचे पड़े रह सकते हैं बिना कोई कपड़ा पहने? क्या हम चिड़ियों की चहचहाहट सुनते हुए मौज मजा कर सकते हैं? क्या नौकर हमारा हुक्म सुनने के लिए हाथ बाँधे खड़े रहेंगे? आओ न, मुझे सब बताओ।

दीवार से चिपके खड़े राज को अंदर कदमों की आहट सुनाई दी। उसने दरवाजे की चौखट और परदे के सिरे के बीच बनी पतली सी झिर्री से अंदर झाँका।

सैनी लड़की की कुर्सी के पीछे गावदी की भांति खड़ा था। उसकी ठोढ़ी पर बैंड-एड चिपकी थी। उसके हाथ ऊपर उठे और लड़की के वक्षों पर कस गए।
 
दीवार से चिपके खड़े राज को अंदर कदमों की आहट सुनाई दी। उसने दरवाजे की चौखट और परदे के सिरे के बीच बनी पतली सी झिर्री से अंदर झाँका।

सैनी लड़की की कुर्सी के पीछे गावदी की भांति खड़ा था। उसकी ठोढ़ी पर बैंड-एड चिपकी थी। उसके हाथ ऊपर उठे और लड़की के वक्षों पर कस गए।
सैनी बोला, "अपनी टाँगें खोलो ना!"
लड़की सिसकते हुए फुसफुसा कर धीरे से बोली, "ऊँम्म... कुछ हो गया तो..!"

सैनी फिर उसकी गर्दन पे अपने होंठ रगड़ते हुए बोला, "मैं भला अपनी जान को कुछ होने दुँगा... प्लीज़ एक बार कर लेना दो ना... तुम्हें मेरी कसम..!"
लड़की सैनी की प्यार भरी चिकनी चुपड़ी बातें सुन कर एक दम से पिघल गयी। उसने लरजते हुए टाँगों में फंसी अपनी कैप्री को अपने पैरों मे गिरा दिया और फिर उसमें से एक पैर निकाल कर खड़े-खड़े अपनी टाँगें फैला दी। सैनी ने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर लड़की की गाँड से नीचे ले जाते हुए उसकी चूत की फ़ाँकों पर रख कर अपने लंड के सुपाड़ा को लड़की के चूत के छेद पर टिकाने की कोशिश करने लगा पर खड़े-खड़े उसे लड़की की चूत के छेद तक अपना लंड पहुँचाने में परेशानी हो रही थी।

" तुम्हारी फुद्दी के छेद पर लंड लगा क्या?" सैनी ने पूछा।

"ऊँम्म्म मुझे नहीं मालूम..!" लड़की बोली।

"बताओ ना..!" सैनी ने फिर पूछा तो लड़की ने कसमसाते हुए कहा, "नहीं..!"

लड़की की चूत की फ़ाँकों में अपने लंड को रगाड़ कर छेद को तलाशते हुए सैनी ने फिर पूछा, "अब..?"

लड़की ने फिर से ना में गर्दन हिला दी और सैनी ने फिर से अपने लंड को एडजस्ट किया और जैसे ही सैनी के लंड का दहकता हुआ सुपाड़ा लड़की की चूत के छेद से टकराया तो लड़की के पूरे जिस्म ने एक तेज झटका खाया। उसके होंठों पर शर्मीली मुस्कान फैल गयी और उसने अपने सिर को झुका लिया।

सैनी ने पुछा, "अब?"

लड़की ने हाँ में सिर हिलाते हुआ कहा, "हुँम्म्म्म!"

सैनी ने धीरे-धीरे अपने मूसल लंड को ऊपर की ओर चूत के छेद पर दबाना शुरू कर दिया। सैनी का लंड लड़की की तंग चूत में धीरे-धीरे अंदर जाने लगा। लंड के सुपाड़े की रगड़ लड़की को अपनी चूत की दीवारों पर मदहोश करती जा रही थी। उसके पैर खड़े-खड़े काँपने लगे और आँखें मस्ती में बंद होने लगी थी। सैनी ने लड़की को थोड़ा सा धक्का देकर ठीक एक पेड़ के नीचे कर दिया और उसकी पीठ को दबाते हुए उसे झुकाना शुरू कर दिया। लड़की ने अपने हाथों को पेड़ के तने पर टिका दिया और झुक कर खड़ी हो गयी। लड़की की बाहर की तरफ़ निकाली गाँड देख कर सैनी एक दम से पागल हो गया। उसने ताबड़तोड़ धक्के लगाने शुरू कर दिये। सैनी की जाँघें लड़की के चूतड़ों से टकरा कर थप-थप कर रही थी और लड़की बहुत कम आवाज़ में सिसकारियाँ भरते हुए चुदाई का मज़ा ले रही थी। उसके पैर मस्ती के कारण काँपने लगे थे। सैनी ने लड़की की चूत से लंड बाहर निकाला और फिर से एक झटके के साथ लड़की की चूत में पेल दिया। लड़की एक दम से सिसक उठी। सैनी ने फिर से अपने लंड को रफ़्तार से लड़की की चूत के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। पाँच मिनट बाद लड़की और सैनी फिर से झड़ गये। सैनी ने अपना लंड लड़की की चूत से बाहर निकाला और तिरपाल पर पड़ी हुई पैंटी को फिर से उठा कर अपना लंड साफ़ करने लगा।

लड़की दीवार से अपना कंधा टिकाये हुए मदहोशी से भरी आँखों से ये सब देख रही थी। उसकी कैप्री अभी भी उसके एक पैर में फंसी हुई ज़मीन पे पड़ी हुई थी। सैनी ने अपना लंड साफ़ करने के बाद अपना अंडरवियर और पैंट पहनी और लड़की के पास आकर झुक कर बैठ गया और उसकी जाँघों को फैलाते हुए उसकी चूत को पैंटी से साफ़ करने लगा। लड़की बेहाल सी ये सब देख रही थी। फिर लड़की ने अपने कपड़े ठीक किये

पीछे से एक स्वर उभरा।

-“किसी चीज की तलाश है, सर?”

राज ने आवाज की दिशा में देखा। वही वेटर तंदूरी चिकन की प्लेटें ट्रे में उठाए मेहराबदार दरवाजे में खड़ा था।

-“मेन्स टायलेट।” राज ने कहा।

-“वो सामने है सर।” वेटर के होठों पर मुस्कराहट थी लेकिन लहजे में गुर्राहट- “साफ तो लिखा है।”

-“शुक्रिया। मेरी निगाह काफी कमजोर है।”

-“ठीक है। उधर जाइए।”

राज टायलेट में चला गया।

जब तक वह दोबारा बाहर निकला प्राइवेट रूम खाली हो चुका था। सैनी के खाली गिलास के पास चिकन की प्लेटें अनछुई रखी थीं।

राज बार में आ गया।

काउंटर के पास वही वेटर खड़ा था।

-“वे कहां चले गए?” राज ने पूछा।

-“वेटर ने यूँ उसे घूरा मानों पहले कभी नहीं देखा था फिर एक केबिन की ओर चला गया।

राज रेस्टोरेंट से बाहर निकला।

गली सुनसान पड़ी थी। सैनी कि जिप्सी भी जा चुकी थी।

राज ने अपनी कार में सवार होकर आस-पास के इलाके का चक्कर लगाया।

मेन रोड और सुभाष मार्ग के कार्नर के पास अचानक वही लड़की दिखाई दे गई।
 
सर झुकाए पैदल जा रही थी। हालांकि वह अकेली थी मगर उसके कदम बड़े ही खास अंदाज में इस ढंग से उठ रहे थे मानों स्टेज पर ऑडिएंस के सामने परफारमेंस दे रही थी।

राज ने अपनी कार साइड में रोक दी।

लड़की को काफी आगे निकाल जाने दिया फिर उसका पीछा करने लगा।

लड़की एक अन्य सड़क पर मुड़ गई।

उस इलाके की इमारतें पुरानी थीं और सड़क की हालत खस्ता थी। सड़कों पर गुजरते लोगों के लिबास उनके निम्न मध्यम वर्गीय होने के सबूत थे। स्ट्रीट लाइट्स कम और अपेक्षाकृत अधिक फासले पर थीं।

एक कार्नर पर लोफर किस्म के लड़के खड़े थे। लड़की को देखकर उन्होने एक-दूसरे पर उसी को निशाना बनाते हुए फिकरे कसने शुरू कर दिये।

उनकी ओर ध्यान दिये बगैर वह आगे बढ़ गई।

राज सुस्त रफ्तार से पीछा करता रहा।

जल्दी ही वह एक चार मंजिला इमारत में दाखिल हो गई।

राज साइड में कार पार्क करके नीचे उतरा। सड़क की दूसरी साइड में जाकर इमारत का निरीक्षण किया। किसी जमाने में शानदार रही इमारत की हालत रख-रखाव के अभाव में खस्ता नजर आ रही थीं।

लड़की के नाम तक से अनजान राज को उम्मीद नहीं थी करीब दो दर्जन फ्लैटों वाली उस इमारत में उसे ढूंढ पाएगा।

वह वापस अपनी कार की ओर चल दिया।

वे लड़के अब कार के पास खड़े थे।

-“अभी जो लड़की यहाँ से गई थी।” राज ने पूछा- “वह कौन है?”

-“पता नहीं।” एक लड़के ने जवाब दिया।

-“तुम इसी इमारत में रहते हो?”

-“नहीं।”

राज अपनी कार में सवार होकर वापस लौट पड़ा।
 
बवेजा ट्रांसपोर्ट कंपनी ढूँढ़ने में ज्यादा दिक्कत पेश नहीं आई।

ऑफिस बंद हो चुका था। एक तरफ छ:-सात ट्रक खड़े थे। बड़े से एक गोदाम के बाहर अधेड़ उम्र का एक आदमी बैठा बीड़ी फूँक रहा था। चौकीदार टाइप वह कंपनी का पुराना मुलाजिम लगता था।

राज को कार से उतरता देखकर खड़ा हो गया।

-“कहिए?”

-“मैं मिस्टर बवेजा से मिलना चाहता हूँ।”

-“साहब यहाँ नहीं है। अपने दामाद के साथ चले गए।”

-“दामाद के साथ?”

-“इन्सपैक्टर ब्रजेश्वर चौधरी उनका दामाद है।”

-“इस वक्त कहाँ मिलेंगे? घर पर?”

-“हो सकता है। आप बिजनेस के सिलसिले में मिलना चाहते हैं?”

-“ऐसा ही समझ लो। मैंने सुना है तुम लोगों का एक ट्रक गायब है?”

-“हाँ।”

-“और एक ड्राइवर मारा गया?”

-“हाँ।”

-“ट्रक कैसा था?”

-“बाइस टन का सैमी ट्रेलर।”

-“ट्रक में था क्या?”

-“पता नहीं। साहब ने इस बारे में बाते करने से मना किया है।”

-“क्यों?”

-“वह बेहद परेशान है। ट्रक और उसमें भरा माल तो इंश्योर्ड थे लेकिन जब किसी ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक इस ढंग से गायब हो जाता है तो लोग तरह-तरह की बातें बनाते हैं। कंपनी का मजाक उड़ाते है।” उसने राज की फिएट पर निगाह डाली- “आप कौन है? प्रेस रिपोर्टर?”

-“नहीं।” राज ने झूठ बोला।

-“बीमा कंपनी वाले?”

-“नहीं। ट्रक में क्या माल था?”

अधेड़ ने संदेहपूर्वक उसे घूरा। फिर पास ही पड़ी लोहे की करीब तीन फुट लंबी मोटी रॉड उठा ली।

-“तुम कौन हो और यह सब क्यों पूछ रहे हो?”

-“नाराज मत होओ....।”

-अधेड़ का चेहरा कठोर था। गरदन की नसें तन गई थीं। लोहे की रॉड को उसने यूँ हाथों में थामा हुआ था मानों किसी भी क्षण हमला कर देगा।

-“मेरे एक दोस्त को आवारा कुत्ते की तरह शूट कर दिया गया और तुम कहते हो नाराज न होऊँ।” वह गुर्राता सा बोला- “साफ-साफ बताओ यह सब क्यों पूछ रह हो?”

राज पूर्णतया सतर्क और किसी भी आकस्मिक हमले से निपटने के लिए तैयार था।

-“तुम्हारा नाराज होना अपनी जगह सही है। हाईवे से तुम्हारे उस दोस्त को मैं ही उठाकर लाया था और मुझे भी यह अच्छा नहीं लगा।”

-“मनोहर की लाश को तुम उठाकर लाए थे?”

-“जब मैं उसे लाया वह जिंदा था। उसकी मौत कुछ देर बाद अस्पताल में हुई थी।”

-“मनोहर ने कुछ बताया था?”

-“क्या?”

-“यही कि उसे किसने शूट किया था?”

-“नहीं। वह बेहोश था और उसी हालत में दम तोड़ दिया। मैं उसके हत्यारे का पता लगाना चाहता हूँ।”

-“क्यों? तुम पुलिस अफसर हो?”

-“नहीं। लेकिन मैं पुलिस वालों के साथ मिलकर काम करता हूँ।” राज ने कहा। फिर झूठ का सहारा लेकर बोला- मैं प्राइवेट जासूस हूँ।”

-“ओह तुम्हें बवेजा साहब ने मदद के लिए बुलाया है?”

-“अभी नहीं।”

-“तुम समझते हो, मदद मांगेंगे?”

-“हाँ, बशर्ते कि वह समझदार है।”

अधेड़ तनिक मुस्कराया। उसने लोहे कि रॉड पास पड़ी पेटी पर रख दी।

-“वह ऐसा नहीं करेगा।”

-“क्यों?”

-“इसलिए की अव्वल दर्जे का कंजूस है।”

राज ने जेब से प्लेयरज गोल्ड फ्लैक का पैकेट निकाल कर उसे सिगरेट आफर की और उसकी अपनी सिगरेटें सुलगाईं।

–“तुम चौकीदार हो?”

-“हाँ। मेरा नाम सूरज प्रकाश है।”

-“मैं राज कुमार हूं। मनोहर किसी खास रूट पर ट्रक चलाता था?”

-“नहीं। वैसे वह ज़्यादातर करीमगंज जाया करता था। आज भी वहीं से आ रहा था स्पेशल कंसाइनमेंट लेकर।”

-“ट्रक कैसा था?”

-“बीस टन की क्षमता वाला टाटा मर्सिडीज का बंद सैमी ट्रेलर।” उसने गेट के पास खड़े एक ट्रक की ओर इशारा किया- “ठीक वैसा।”

एल्युमिनियम पेंट वाले उस ट्रक पर लाल काले अक्षरों में लिखा था- बवेजा ट्रांसपोर्ट कंपनी, अलीगढ़।

-“उसमें माल क्या लदा था?”

-“यह तो बवेजा साहब ही बता सकते हैं। अपने एक्सीडेंटों के बाद से मैं सिर्फ चौकीदार बनकर रह गया हूँ। ऐसी बातों की जानकारी रखना मेरा काम नहीं है।”
 
-“काम भले ही न हो लेकिन तुम पहुँचे हुए आदमी हो।” राज मुस्कराकर उसे फूँक देता हुआ बोला- “तुम्हारी तजुर्बेकार निगाहों से इस कंपनी की कोई बात छुपी नहीं रह सकती। जानकारियाँ खुद-ब-खुद तुम्हारे पास आ जाती हैं। अगर मेरा ख्याल गलत नहीं है तो तुम भी पहले ड्राइवर रह चुके हो- बहुत ही कुशल ड्राइवर।”

-“वो अब गई गुजरी बात हो गई।” अधेड़ आह सी भरकर बोला- “मेरे वक़्तों के लोग जानते हैं सूरज प्रकाश लाजवाब ड्राइवर हुआ करता था। बड़ी-बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनियों के मालिक मुझे नौकरी देने के लिए मेरे आगे-पीछे घूमते थे.... खैर, अब उन बातों को याद करना बेकार है। तुम लोड के बारे में पूछ रहे थे?”

-“हाँ।”

-“क्या तुम इस बात को अपने तक रख सकते हो?”

-“मैं वादा करता हूँ।”

-“मैंने बूढ़े को इन्सपैक्टर से बातें करते सुन लिया था। उसमें शराब थी।”

-“पूरा ट्रक लोड?”

-“हाँ। पूरा लोड सत्रह लाख रुपए में इंश्योर्ड था।”

-“मनोहर का भी बीमा था?”

-“उसका लाइफ इंशयोरेंस तो था ही। हर एक ट्रिप पर बीस हजार रुपए का अलग से कंपनी उसका बीमा कराती थी। पहले मैं तुम्हें बीमा कंपनी का आदमी समझ बैठा था इसलिए सीधे मुँह बात नहीं की। क्योंकि उन लोगों ने ट्रक के गायब होने के लिए सीधे मनोहर को ही जिम्मेदार समझना था ताकि उसे कसूरवार ठहरा कर वे लोड के बीमें की रकम देने से बच जाएँ।”

-“मनोहर को कोई कसूरवार नहीं ठहरा सकता।” राज ने आश्वासन दिया।

-“लेकिन यह बात मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आ रही है। उसे कड़ी हिदायतें थीं कि किसी भी वजह से किसी के लिए भी ट्रक नहीं रोका जाए। बूढ़ा बवेजा अपने ड्राइवरों को हमेशा ताकीद किया करता है अगर खुद राष्ट्रपति भी लिफ्ट लेने के लिए ट्रक रुकवाना चाहे तो रोकना नहीं। अगर कोई रास्ता रोकने की कोशिश करता है तो उसे कुचलते हुए गुजर जाओ।”

-“इसके बावजूद, हालात से जाहिर है, मनोहर को ट्रक रोकना पड़ा था। क्यों?”

-“मेरी समझ में सिर्फ एक ही वजह हो सकती है। मनोहर अपनी हिदायतों को भूलकर हाईवे पर किसी के लिए ट्रक रोकने की बेवकूफी कर बैठा और यही उसकी जान की दुश्मन बन गई।”

-“मनोहर तुम्हारा दोस्त था?”

-“उम्र के फर्क के बावजूद मैं उसे पसंद करता था- बहुत ही ज्यादा। हम दोनों एक ही बोर्डिंग हाउस में रहते थे। मुझ पर उसके एक अहसान का कर्जा भी था। जब मेरे पैट्रोल टैंकर वाले ट्रक के ब्रेक फेल हुए मनोहर मेरा हैल्पर हुआ करता था। साठ-सत्तर की स्पीड से दौड़ता ट्रक खाई में जा गिरा। मनोहर ट्रक के नीचे गिरने से पहले ही कूद गया था और अपनी जान की परवाह न करके मुझे ट्रक से निकालकर दूर खींच ले गया था।”

-“मनोहर ने किसके लिए ट्रक रोका हो सकता था? मैंने सुना है उसे औरतों में बड़ी भारी दिलचपी थी।”

-“जवानी में किसे नहीं होती?” वह मुस्कराया- “अपने दौर में मुझे भी थी।” और हर एक रूट पर मैंने दो-तीन पाल रखी थीं।”

-“मनोहर की भी पालतु रही होंगी?”

-“जरूर होंगी। एक की जानकारी तो मुझे भी है। हालांकि यकीन के साथ मैं नहीं जानता।”

-“वह मीना बवेजा तो नहीं थी?”

-“मीना बवेजा? नहीं। वह बवेजा की बेटी है उसे भला अपने बाप के किसी ट्रक ड्राइवर में क्या दिलचस्पी होनी थी?”

-“मैंने तो सुना है मनोहर उसमें बड़ी भारी दिलचस्पी लेता था।”

-“एक मायने में यह सही भी था। मनोहर उसके बारे में काफी बातें किया करता था। उसे मीना का दीवाना भी कहा कहा जा सकता है। लेकिन मीना उससे कभी नहीं मिली। मीना के इंटरेस्ट दूसरे हैं। मनोहर की ज़िंदगी में यह सबसे बड़ा गम था। लेकिन असल में इसकी कोई अहमियत नहीं थी। मेरा कहने का मतलब है जिस दूसरी लड़की की बात मैं कर रहा हूँ, वह मीना से अलग तरह की थी। हफ्ते-दस दिन से वह बराबर मनोहर के ख्यालों में बसी रहती थी। मनोहर ने मुझे बताया की वह उसकी दीवानी थी। मुझे लगा वह अपनी औकात और हैसियत को भूल बैठा था ठीक उसी तरह जैसे उसने मीना के मामले में कोशिश की थी। वह लड़की वाकई हंगामाखेज और क्लब में सिंगर है।”

-“तुम उससे मिले थे?”

-“नहीं। मनोहर ने क्लब के बाहर लगी उसकी फोटो मुझे दिखाई थी।”

-“यहीं। इसी शहर में?”

-“हाँ। सुभाष रोड पर रॉयल क्लब है। पिछले कुछेक रोज से मनोहर का ज़्यादातर वक्त वही गुजरता था और जिस ढंग से उसके बारे में वह बातें करता था उससे लगता है उसके लिए ट्रक भी वह रोक सकता था।”

-“उस लड़की का नाम क्या है?”

-“मनोहर उसे लीना कहता था।” उसने अपने बालों में हाथ फिराया- “लेकिन इस मामले में एक बात मुझे अजीब लगती है। जितनी तेजी और जिस ज़ोर-शोर से वह मनोहर पर मर मिटी थी उससे लगता है इसके पीछे जरूर उसकी कोई तगड़ी वजह होनी चाहिए।”

-“क्यों? मनोहर सेहतमंद और देखने में भी अच्छा खासा था। हो सकता है उसे ऐसे ही युवक पसंद हों।”
 
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