desiaks
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-“तुम गलत समझते थे। वह और रंजना बहुत ही कम मिला करती हैं। मीना अपना ज्यादातर वक्त अपने ढंग से ही गुजारती है।”
सैनी कटुतापूर्वक मुस्कराया।
-“हो सकता है, इस हफ्ते अपना वक्त वह कुछ ज्यादा ही अपने ढंग से गुजारती रही है।”
-“क्या मतलब?”
-“जो चाहो मतलब निकाल सकते हो।”
इन्सपैक्टर चौधरी मुट्ठियाँ भींचे आगे बढ़ा। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था।
राज ने कार का दरवाजा खोला और पैर जोर से जमीन पर पटका।
इन आहटों ने इन्सपैक्टर को रोक दिया। उसने दुष्टतापूर्वक मुस्कराते सैनी को घूरा फिर पलटकर चला गया। कुछ दूर जाकर उनकी तरफ से पीठ किए खड़ा रहा।
-“मेरा मुँह बंद कराना चाहता था।” सैनी खुशी से चहका- “इसका गुस्सा किसी रोज खुद इसी को ले डूबेगा।”
मिसेज सैनी लॉबी का दरवाजा खोलकर बाहर निकली। उसके चेहरे पर व्याकुलतापूर्ण भाव थे।
-“क्या हुआ सतीश?” उन दोनों की ओर बढ़ती हुई बोली।
-“हमेशा कुछ न कुछ होता ही रहता है। मैंने इन्सपैक्टर को बताया, इस हफ्ते मीना बवेजा काम पर नहीं आई तो वह मुझे ही इस के लिए जिम्मेदार समझने लगा। जबकि उसकी उस घटिया साली के लिए मैं कतई जिम्मेदार नहीं हूँ।
मिसेज सैनी ने पति की बाँह पर कुछ इस अंदाज में हाथ रखा मानों किसी भड़के हुए पशु को शांत कराना चाहती थी।
-“तुम्हें जरूर गलतफहमी हुई है, डार्लिंग। मुझे यकीन है, मीना की किसी हरकत के लिए वह तुम्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता। शायद वह मीना से मनोहर के बारे में पूछताछ करना चाहता है।”
-“क्यों?” राज बोला- “क्या वह भी मनोहर को जानती थी?”
-“बिल्कुल जानती थी। मनोहर उसका दीवाना था। ऐसा ही था न, सतीश?”
-“बको मत।”
वह पति से अलग हट गई। ऊँची एड़ी के अपने सैंडलों पर कुछ इस ढंग से लड़खड़ाती हुई मानों पीछे धकेल दी गई थी।
-“बताइए मिसेज सैनी। यह बात महत्वपूर्ण हो सकती है क्योंकि मनोहर मर चुका है।”
-“मर चुका है?” वह झटका सा खाकर बोली और राज से निगाहें हटाकर अपने पति को देखा- “क्या मीना भी इसमें शामिल है?”
-“मैं नहीं जानता।” सैनी ने कहा- “बस बहुत हो गया। अंदर जाओ, रजनी। तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है। यहाँ सर्दी में खड़ी रहकर तुम बेवकूफी कर रही हो।”
-“मैं नहीं जाऊँगी। तुम इस तरह मुझ पर हुक्म नहीं चला सकते। मुझे पूरा हक है जिससे चाहूँ बात कर संकू।”
-“नहीं, इस हरामजादे के सामने तुम कोई बकवास नहीं करोगी।”
-“मैंने ऐसा कुछ नहीं....।”
-“बको मत। तुम पहले ही काफी बकवास कर चुकी हो।”
सैनी कटुतापूर्वक मुस्कराया।
-“हो सकता है, इस हफ्ते अपना वक्त वह कुछ ज्यादा ही अपने ढंग से गुजारती रही है।”
-“क्या मतलब?”
-“जो चाहो मतलब निकाल सकते हो।”
इन्सपैक्टर चौधरी मुट्ठियाँ भींचे आगे बढ़ा। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था।
राज ने कार का दरवाजा खोला और पैर जोर से जमीन पर पटका।
इन आहटों ने इन्सपैक्टर को रोक दिया। उसने दुष्टतापूर्वक मुस्कराते सैनी को घूरा फिर पलटकर चला गया। कुछ दूर जाकर उनकी तरफ से पीठ किए खड़ा रहा।
-“मेरा मुँह बंद कराना चाहता था।” सैनी खुशी से चहका- “इसका गुस्सा किसी रोज खुद इसी को ले डूबेगा।”
मिसेज सैनी लॉबी का दरवाजा खोलकर बाहर निकली। उसके चेहरे पर व्याकुलतापूर्ण भाव थे।
-“क्या हुआ सतीश?” उन दोनों की ओर बढ़ती हुई बोली।
-“हमेशा कुछ न कुछ होता ही रहता है। मैंने इन्सपैक्टर को बताया, इस हफ्ते मीना बवेजा काम पर नहीं आई तो वह मुझे ही इस के लिए जिम्मेदार समझने लगा। जबकि उसकी उस घटिया साली के लिए मैं कतई जिम्मेदार नहीं हूँ।
मिसेज सैनी ने पति की बाँह पर कुछ इस अंदाज में हाथ रखा मानों किसी भड़के हुए पशु को शांत कराना चाहती थी।
-“तुम्हें जरूर गलतफहमी हुई है, डार्लिंग। मुझे यकीन है, मीना की किसी हरकत के लिए वह तुम्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता। शायद वह मीना से मनोहर के बारे में पूछताछ करना चाहता है।”
-“क्यों?” राज बोला- “क्या वह भी मनोहर को जानती थी?”
-“बिल्कुल जानती थी। मनोहर उसका दीवाना था। ऐसा ही था न, सतीश?”
-“बको मत।”
वह पति से अलग हट गई। ऊँची एड़ी के अपने सैंडलों पर कुछ इस ढंग से लड़खड़ाती हुई मानों पीछे धकेल दी गई थी।
-“बताइए मिसेज सैनी। यह बात महत्वपूर्ण हो सकती है क्योंकि मनोहर मर चुका है।”
-“मर चुका है?” वह झटका सा खाकर बोली और राज से निगाहें हटाकर अपने पति को देखा- “क्या मीना भी इसमें शामिल है?”
-“मैं नहीं जानता।” सैनी ने कहा- “बस बहुत हो गया। अंदर जाओ, रजनी। तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है। यहाँ सर्दी में खड़ी रहकर तुम बेवकूफी कर रही हो।”
-“मैं नहीं जाऊँगी। तुम इस तरह मुझ पर हुक्म नहीं चला सकते। मुझे पूरा हक है जिससे चाहूँ बात कर संकू।”
-“नहीं, इस हरामजादे के सामने तुम कोई बकवास नहीं करोगी।”
-“मैंने ऐसा कुछ नहीं....।”
-“बको मत। तुम पहले ही काफी बकवास कर चुकी हो।”