desiaks
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डॉली ने डरते-डरते दरवाजा खोला-सामने रौद्र रूप में जगदीश पालीवाल खड़ा था ।
उसकी कनपटी की नसें तनी हुई थीं-नथुने फूल-पिचक रहे थे ।
राज उसके दरवाजा खोलने से पहली ही बैड के नीचे जा छिपा था ।
“अ...आप !” जगदीश पालीवाल का वो रौद्र रूप देखकर डॉली कांप गयी-“अ...आप इस वक्त !”
“पीछे हटो ।” पालीवाल गुर्राया ।
डॉली सहमकर पीछे हो गयी ।
उसके हाथ-पैर ‘जूड़ी’ के मरीज की तरह कांपने लगे ।
“कौन हो तुम ?” अंदर आते ही पालीवाल चिंघाड़ा ।
“स...संध्या-म...मैं संध्या हूँ ।”
“नहीं ।” जगदीश पालीवाल कहर भरी नजरों से उसे घूरता हुआ धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा-“तुम संध्या नहीं हो-तुम संध्या नहीं हो सकतीं ।”
“क...क्यों ?” संध्या के शरीर में झुरझुरी दौड़ी-“म...मैं संध्या क्यों नहीं हो सकती ?”
“क्योंकि तुम किसी अपराधी संगठन की मैम्बर हो ।” पालीवाल चीखकर बोला-“और...और तुम्हारा यह नाम भी नकली है ।”
“डॉली हक्की-बक्की रह गयी ।
उसके दिमाग में भयंकर विस्फोट हुआ ।
जबकि जगदीश पालीवाल ने उसी क्षण आश्चर्यजनक फुर्ती के साथ रिवॉल्वर निकालकर डॉली के ऊपर तान दी थी ।
☐☐☐
पसीनों में लथपथ होती चली गयी डॉली !
“यह झूठ है ।” वो हलक फाड़कर डकरायी-“म...मैं किसी अपराधी संगठन की मैम्बर नहीं-मैं अपराधी नहीं ।”
मुझे बेवकूफ मत बनाओ ।” जगदीश पालीवाल ने दांत किटकिटाते हुए डॉली के माथे पर रिवॉल्वर रखी-“बहुत हो चुका अब यह नाटक-मैं तुम्हारी तमाम हरकतों से वाकिफ हो चुका हूँ चालाक लड़की । मुझे मालूम हो चुका है कि तुमने गवर्नेस की यह नौकरी भी किसी षड्यन्त्र के तहत हासिल की है ।”
क...कौन कहता है ।” डॉली ने हिम्मत करके पूछा-“कि मैंने गवर्नेस की यह नौकरी किसी षड्यन्त्र के तहत हासिल की है ?”
“मैं कहता हूँ ।” पालीवाल डकराया-“हालात कहते हैं तुम्हारी वह झूठी कहानी कहती है-जो तुमने मुझे इण्टरव्यू के दौरान सुनायी ।”
“कौन-सी कहानी ?”
“यही कि तुम चण्डीगढ़ के किसी कपड़ा व्यापारी की लड़की हो-जिसका नाम दीनदयाल मिश्रा था-जिसके परिवार की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी-तुम्हारी वह तमाम बातें-तमाम तर्क झूठे हैं लड़की-सब कुछ मनगढंत है ।”
“झूठ बोल रहे हैं आप !” डॉली बिफरकर बोली-“इस तरह का आरोप लगाकर आप एक निर्दोष और मजबूर लड़की के अकेलेपन का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं ।”
“शट अप ।”
चिंघाड़ा जगदीश पालीवाल -फिर उसके हाथ का एक ऐसा झन्नाटेदार झांपड़ डॉली के गाल पर पड़ा कि उसके मुँह से चीख निकल गयी-आंखों के गिर्द रंग-बिरंगे तारे झिलमिला उठे ।
“यू शुड बी अशेम्ड ऑफ योअर सैल्फ !” पालीवाल चीखता चला गया-“खबरदार जो ऐसा वाहियात इल्जाम मेरे ऊपर लगाया तो ।”
“ल...लेकिन आपके पास इस बात का क्या सबूत है ।” डॉली बोली-कि मेरी कहानी झूठी है ? मनगढंत है ?”
“सबसे पहला और सबसे बड़ा तोयही सबूत है । जगदीश पालीवाल दांत किटकिटाकर बोला-“कि तुम न तो चण्डीगढ़ की रहने वाली हो और न दीनदयाल मिश्रा नामक किसी कपड़ा व्यापारी की लड़की हो ।”
“आपको कैसे मालूम ?”
“बताता हूँ-सब कुछ बताता हूँ ।” जगदीश पालीवाल रिवॉल्वर हिलाता हुआ बोला-“इसमें कोई शक नहीं कि तुमने पूरा ड्रामा बड़े ही शानदार ढंग से किया था-मुझे शायद सात जन्म तक भी तुम्हारे ऊपर शक न हो पाता । लेकिन आज सुबह नेशनल म्यूजियम से लौटते समय काफी हद तक तुम्हारी हकीकत का पर्दाफाश हो गया ।
“क...क्यों-उस समय मैंने ऐसा क्या बोल दिया था-जो पर्दाफाश हो गया ।”
“तुम्हें याद है ।” पालीवाल बोला-“नेशनल म्यूजियम से लौटते समय तुम्हारे दिल-दिमाग पर एक ही चीज हावी थी-ताज और दुर्लभ ताज ! उस बेहद मूलयवान ताज के बार तुमने मुझसे एक ऐसा सवाल पूछा-जिसने तुम्हारी हकीकत की सारी कलई खोल दी । याद है तुम्हें -तुमने मुझसे उस ताज की गुप्त सिक्योरिटी के बारे में पूछा था और तुम्हारे मुँह से उस सवाल को सुनते ही मैं उछल पड़ा ।”
“क्यों-उछल क्यों पड़े तुम ?”
“क्योंकि आमतौर पर साधारण आदमियों को गुप्त सिक्योरिटी के बारे में कोई जानकारी नहीं होती-वो यही समझते हैं कि जो दिखाई दे रही है-वही सारी सिक्योरिटी है । इसके पीछे महत्वपूर्ण वजह भी है-क्योंकि गुप्त सिक्योरिटी के बारे में न तो लोगों को कोई जानकारी ही होती है और न इस तरह की सिक्योरिटी की पब्लिसिटी ही की जाती है । ऐसी परिस्थिति में एक बेहद सामान्य लड़की के मुँह से गुप्त सिक्योरिटी की बात सुनकर भला कौन ऑफीसर न चौंक पड़ेगा । फौरन मेरे दिमाग में यह बात खलबली मचाती चली गयी कि जरूर कहीं-न-कहीं कुछ गड़बड़ है-जरूर तुम कोई खतरनाक खेल, खेल रही हो । मैंने फौरन तुम्हारी हकीकत पता लगाने का फैसला कर लिया और इसी दिशा में मैंने सबसे पहले तुमसे तुम्हारे पिताजी का नाम पूछा ।”
डॉली भौंचक्की निगाहों से पालीवाल को देखने लगी ।
“प...पिताजी का नाम क्यों पूछा तुमने ?”
“बताता हूँ-वह भी बताता हूँ ।” जगदीश पालीवाल एक के बाद एक धमाका करता हुआ बोला-दरअसल तुमसे तुम्हारे पिताजी का नाम मालूम करके मैंने चण्डीगढ़ के पुलिस हैडक्वार्टर फोन किया-वहाँ के कमिश्नर को मैंने तुम्हारे पिताजी का नाम बताया और तुम्हारे द्वारा सुनाई गयी पूरी कहानी बतायी । मैंने वहाँ के कमिश्नर से आग्रह किया कि वो पूरी जांच-पड़ताल कराकर मुझे रिपोर्ट दें ।
“ल...लेकिन जब उन्हें मेरे चण्डीगढ़ के घर का एड्रेस ही मालूम नहीं था ।” डॉली बोली-“तो वह मेरे बारे में जांच-पड़ताल कैसे कर सकते थे ?”
“एड्रेस पता लगा लेना बहुत मामूली काम है ।” जगदीश पालीवाल रिवॉल्वर हाथ में लिये-लिये बोला-“तुम्हें शायद मालूम नहीं है कि लगभग सभी शहरों में वस्त्र व्यापारी संघ के नाम से कपड़ा व्यापारियों का एक संगठन होता है-और छोटे-बडे सभी कपड़ा व्यापारी उस संगठन के मैम्बर होते हैं ऐसा ही एक वस्त्र व्यापारी संघ चण्डीगढ़ में भी है-मैंने जैसे ही चण्डीगढ़ के पुलिस हैडक्वार्टर को तुम्हारे बारे में रिपोर्ट भेजी-तो फौरन हैडक्वार्टर के एक सब-इंस्पेक्टर ने चण्डीगढ़ के वस्त्र व्यापारी संघ से सम्पर्क स्थापित किया-संघ के पास शहर के सभी व्यापारियों की एक लिस्ट होती है । सब-इंस्पेक्टर ने जब तुम्हारे द्वारा बताया गया कथित दीनदयाल मिश्रा का नाम संघ के संचालक को बताया-तो फौरन तुम्हारे ड्रामे का पर्दाफाश हो गया । क्योंकि दीनदयाल मिश्रा नाम के कपड़ा व्यापारी तो चण्डीगढ़ में कई थे-लेकिन उनमें ऐसा कोई न था-जिसका परिवार आतंकवादियों के हाथों मारा गया हो या जिसके घर दुकान में आतंकवादियों ने आग लगायी हो । बहरहाल थोड़ी देर पहले ही चण्डीगढ़ के पुलिस हैडक्वार्टर से मेरे पास रिपोर्ट आ चुकी है और साबित हो गया है कि तुम्हारे द्वारा सुनाई गयी कहानी पूरी तरह झूठी है ।”
डॉली को अपने दिमाग में अनार छूटते हुए लगे ।
उसका चेहरा सफेद झक्क् पड़ गया ।
“अब अगर अपनी जिंदगी चाहती हो” जगदीश पालीवाल ने बेहद हिंसक अंदाज में रिवॉल्वर से उसका माथा ठकठकाया-“अगर चाहती हो कि तुम्हारा यह खूबसूरत जिस्म एक लाश में न बदल जाये-तो सच-सच बताओ, कौन हो तुम ? तुम्हें यहाँ किसने भेजा है ?”
तभी उस घटना ने बड़े अप्रत्याशित ढंग से करवट बदली ।
“उस लड़की से क्या पूछते हो साहब !” बैडरूम में धमाका-सा करती एक नई आवाज गूंजी थी-“मैं बताता हूँ कि यह कौन है और इसे यहाँ किसने भेजा है ।”
☐☐☐
जगदीश पालीवाल के दिल-दिमाग पर बम-सा गिरा ।
वह झटके से उस दिशा में घूमा-जिधर से आवाज आयी थी ।
अगले पल उसके होश उड़ गये ।
उसके सामने पौने छः फुट लम्बा सामान्य से बदन वाला राज खड़ा मुस्करा रहा था-राज की गोद में गुड्डू था-जिसकी कनपटी पर उसने रिवॉल्वर रखी हुई थी ।
“क...कौन हो तुम ?” जगदीश पालीवाल के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“दुश्मन का कोई नाम नहीं होता साहब-वह किसी भी रूप में, सामने आ सकता है ।”
“पहेलियां मत बुझाओ ।” पालीवाल गुर्राया-“सच-सच बताओ-कौन हो तुम ?”
“फिलहाल तुम्हारे लिये इतना ही जान लेना काफी है कि मैं संध्या का सहयोगी हूँ ।”
“ओह !”
“यह नाटक न जाने कितना लम्बा चलता मिस्टर !” राज बोला-“इसलिये ये अच्छा ही हुआ कि इस नाटक का यहीं अंत हो गया ।”
“लेकिन यह नाटक रचा क्यों क्या ?”
“वही बताने जा रहा हूँ-मगर उससे पहले अपनी यह रिवॉल्वर मेरे हवाले कर दो ।”
पालीवाल हिचकिचाया ।
“जल्दी करो ऑफीसर-वरना तुम्हारे बेटे की जान को नुकसान पहुँच सकता है-जिसके लिये फिर मैं जिम्मेदार नहीं होऊंगा ।”
जगदीश पालीवाल ने खून का-सा घूंट पीते हुए राज को रिवॉल्वर सौंप दी ।
“गुड !” मुस्कराया राज-“काफी समझदार आदमी हो-हमारा अच्छा साथ निभेगा ।”
“मैं तुम्हारी कोई बकवास नहीं सुनना चाहता ।” पालीवाल फुंफकारा -“मुझे सिर्फ यह बताओ कि तुम लोग कौन हो ।”
“वही बता रहा हूँ । पहली बात-तुम्हारा यह अंदाजा बिलकुल सही है कि संध्या किसी अपराधी संगठन के लिये काम कर रही है । दूसरी बात-तुम्हारा यह अंदाजा बिलकुल भी सही है कि संध्या ने तुम्हें जो कहानी सुनायी वह बिलकुल मनगढंत है । दरअसल वह कहानी तुम्हें इसलिये सुनाई गयी थी-ताकि तुम्हारी हमदर्दी हासिल करके इस कोठी के अंदर घुसा जा सके ।”
“लेकिन इस ड्रामें के पीछे वजह क्या थी ?”
“वजह !” मुस्कराया राज-“वजह सुनोगे, तो उछल जाओगे ऑफीसर !”
“मैं उछलना ही चाहता हूँ ।”
“ठीक है-तो सुनो ।” राज के चेहरे पर अब थोड़ी कठोरता उभर आयी-“तुमने दिल्ली शहर में सक्रिय उस संगठन के बारे में तो सुना ही होगा-जो दुर्लभ वस्तुओं की चोरी करता है ।”
“उस संगठन के बारे में कौन नहीं जानता ।”
“वैरी गुड-अगर उस संगठन के बारे में जानते हो-तो अब वही संगठन उस दुर्लभ ताज को भी चुराना चाहता है ।”
“परन्तु तुम दोनों का उस संगठन से क्या सम्बन्ध है ?”
“हमारा सम्बन्ध !” राज ने गले का थूक सटका -“हम उस संगठन के मैम्बर हैं ।”
जगदीश पालीवाल के नेत्र अचम्भे से फैल गये ।
“तुम...तुम उस संगठन मैम्बर हो ?”
“हाँ ।”
“लेकिन तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?”
“दरअसल हमारे संगठन को उस दुर्लभ ताज की गुप्त सिक्योरिटी के बारे में मालूम नहीं है ।”
“और तुम्हारा संगठन यह सोचता है ।” पालीवाल गुर्राया-“कि मैं तुम्हें उस सिक्योरिटी से वाकिफ करा दूंगा ।”
“बिल्कुल ।” राज ने दृढ़तापूर्वक कहा-हमारा संगठन जो सोचता है-वही होता है ।”
“अफसोस-बेहद अफसोस ! इस बार तुम्हारा गलत व्यक्ति से वास्ता पड़ गया है-मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के बारे में नहीं बताऊंगा ।”
“इस नन्ही-सी जान की कीमत पर भी नहीं ?”
“क...क्या मतलब ?” बौखला गया जगदीश पालीवाल ! मतलब यह कि मैं और संध्या फिलहाल तुम्हारे इस बेटे को अपने साथ लेकर जा रहे हैं-हमारे जाने के बाद पूरी रात तुम्हारे पास होगी-तुम खूब अच्छी तरह हमारे प्रस्ताव पर गौर करना-अगर तुमने हमें गुप्त सिक्योरिटी के बारे में बता दिया-तो तुम्हारे बेटे को छोड़ दिया जायेगा । वरना... ।”
“वरना क्या ?”
“वरना हमारा संगठन सिर्फ इतना करेगा ।” राज खूंखार लहजे में बोला-“कि इस मासूम बेटे की गर्दन धड़ से अलग करके तुम्हारे पास भेज देगा-ताकि तुम और तुम्हारी सरकार दोनों ही उस कटे हुए सिर पर दुर्लभ ताज की ताजपोशी कर सको ।”
“न...नहीं । जगदीश पालीवाल दहल गया -“नहीं । तुम ऐसा नहीं करोगे ।”
“हम ऐसा ही करेंगे ।” राज सख्त लहजे में बोला-“अभी तो मैंने सिर्फ तुम्हें उस दृश्य के बारे में बताया है-लेकिन जरा कल्पना करो कि कल जब तुम्हारे मासूम बेटे का कटा हुआ सिर साक्षात् तुम्हारी आंखों के सामने रखा होगा, तब तुम पर क्या बीतेगी । उस समय क्या तुम पागल नहीं हो जाओगे-चीखने नहीं लगोगे-और तुम्हारी पत्नी !” राज ने दांत किटकिटाये-“तुम्हारी पत्नी क्या उस दृश्य को देखकर जिन्दा रह सकेगी ऑफीसर ?”
“नहीं-नहीं ।” जगदीश पालीवाल चिंघाड़ उठा-“तुम दरिंदे हो-वहशी हो ।”
राज के होठों पर मुस्कान खेलती रही ।
“फिलहाल हम जा रहे हैं । ऑफीसर !” राज सहज स्वर में बोला-“कल तुमसे फिर किसी जरिये से सम्पर्क स्थापित किया जायेगा-तब तक अपना फैसला सोचकर रखना ।”
“सुनो-सुनो ।” पालीवाल चीख उठा ।
लेकिन वह नहीं रुके ।
जगदीश पालीवाल चीखता रहा और वो चले गये ।
उसके गुड्डू को लेकर चले गये ।
☐☐☐
उसकी कनपटी की नसें तनी हुई थीं-नथुने फूल-पिचक रहे थे ।
राज उसके दरवाजा खोलने से पहली ही बैड के नीचे जा छिपा था ।
“अ...आप !” जगदीश पालीवाल का वो रौद्र रूप देखकर डॉली कांप गयी-“अ...आप इस वक्त !”
“पीछे हटो ।” पालीवाल गुर्राया ।
डॉली सहमकर पीछे हो गयी ।
उसके हाथ-पैर ‘जूड़ी’ के मरीज की तरह कांपने लगे ।
“कौन हो तुम ?” अंदर आते ही पालीवाल चिंघाड़ा ।
“स...संध्या-म...मैं संध्या हूँ ।”
“नहीं ।” जगदीश पालीवाल कहर भरी नजरों से उसे घूरता हुआ धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा-“तुम संध्या नहीं हो-तुम संध्या नहीं हो सकतीं ।”
“क...क्यों ?” संध्या के शरीर में झुरझुरी दौड़ी-“म...मैं संध्या क्यों नहीं हो सकती ?”
“क्योंकि तुम किसी अपराधी संगठन की मैम्बर हो ।” पालीवाल चीखकर बोला-“और...और तुम्हारा यह नाम भी नकली है ।”
“डॉली हक्की-बक्की रह गयी ।
उसके दिमाग में भयंकर विस्फोट हुआ ।
जबकि जगदीश पालीवाल ने उसी क्षण आश्चर्यजनक फुर्ती के साथ रिवॉल्वर निकालकर डॉली के ऊपर तान दी थी ।
☐☐☐
पसीनों में लथपथ होती चली गयी डॉली !
“यह झूठ है ।” वो हलक फाड़कर डकरायी-“म...मैं किसी अपराधी संगठन की मैम्बर नहीं-मैं अपराधी नहीं ।”
मुझे बेवकूफ मत बनाओ ।” जगदीश पालीवाल ने दांत किटकिटाते हुए डॉली के माथे पर रिवॉल्वर रखी-“बहुत हो चुका अब यह नाटक-मैं तुम्हारी तमाम हरकतों से वाकिफ हो चुका हूँ चालाक लड़की । मुझे मालूम हो चुका है कि तुमने गवर्नेस की यह नौकरी भी किसी षड्यन्त्र के तहत हासिल की है ।”
क...कौन कहता है ।” डॉली ने हिम्मत करके पूछा-“कि मैंने गवर्नेस की यह नौकरी किसी षड्यन्त्र के तहत हासिल की है ?”
“मैं कहता हूँ ।” पालीवाल डकराया-“हालात कहते हैं तुम्हारी वह झूठी कहानी कहती है-जो तुमने मुझे इण्टरव्यू के दौरान सुनायी ।”
“कौन-सी कहानी ?”
“यही कि तुम चण्डीगढ़ के किसी कपड़ा व्यापारी की लड़की हो-जिसका नाम दीनदयाल मिश्रा था-जिसके परिवार की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी-तुम्हारी वह तमाम बातें-तमाम तर्क झूठे हैं लड़की-सब कुछ मनगढंत है ।”
“झूठ बोल रहे हैं आप !” डॉली बिफरकर बोली-“इस तरह का आरोप लगाकर आप एक निर्दोष और मजबूर लड़की के अकेलेपन का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं ।”
“शट अप ।”
चिंघाड़ा जगदीश पालीवाल -फिर उसके हाथ का एक ऐसा झन्नाटेदार झांपड़ डॉली के गाल पर पड़ा कि उसके मुँह से चीख निकल गयी-आंखों के गिर्द रंग-बिरंगे तारे झिलमिला उठे ।
“यू शुड बी अशेम्ड ऑफ योअर सैल्फ !” पालीवाल चीखता चला गया-“खबरदार जो ऐसा वाहियात इल्जाम मेरे ऊपर लगाया तो ।”
“ल...लेकिन आपके पास इस बात का क्या सबूत है ।” डॉली बोली-कि मेरी कहानी झूठी है ? मनगढंत है ?”
“सबसे पहला और सबसे बड़ा तोयही सबूत है । जगदीश पालीवाल दांत किटकिटाकर बोला-“कि तुम न तो चण्डीगढ़ की रहने वाली हो और न दीनदयाल मिश्रा नामक किसी कपड़ा व्यापारी की लड़की हो ।”
“आपको कैसे मालूम ?”
“बताता हूँ-सब कुछ बताता हूँ ।” जगदीश पालीवाल रिवॉल्वर हिलाता हुआ बोला-“इसमें कोई शक नहीं कि तुमने पूरा ड्रामा बड़े ही शानदार ढंग से किया था-मुझे शायद सात जन्म तक भी तुम्हारे ऊपर शक न हो पाता । लेकिन आज सुबह नेशनल म्यूजियम से लौटते समय काफी हद तक तुम्हारी हकीकत का पर्दाफाश हो गया ।
“क...क्यों-उस समय मैंने ऐसा क्या बोल दिया था-जो पर्दाफाश हो गया ।”
“तुम्हें याद है ।” पालीवाल बोला-“नेशनल म्यूजियम से लौटते समय तुम्हारे दिल-दिमाग पर एक ही चीज हावी थी-ताज और दुर्लभ ताज ! उस बेहद मूलयवान ताज के बार तुमने मुझसे एक ऐसा सवाल पूछा-जिसने तुम्हारी हकीकत की सारी कलई खोल दी । याद है तुम्हें -तुमने मुझसे उस ताज की गुप्त सिक्योरिटी के बारे में पूछा था और तुम्हारे मुँह से उस सवाल को सुनते ही मैं उछल पड़ा ।”
“क्यों-उछल क्यों पड़े तुम ?”
“क्योंकि आमतौर पर साधारण आदमियों को गुप्त सिक्योरिटी के बारे में कोई जानकारी नहीं होती-वो यही समझते हैं कि जो दिखाई दे रही है-वही सारी सिक्योरिटी है । इसके पीछे महत्वपूर्ण वजह भी है-क्योंकि गुप्त सिक्योरिटी के बारे में न तो लोगों को कोई जानकारी ही होती है और न इस तरह की सिक्योरिटी की पब्लिसिटी ही की जाती है । ऐसी परिस्थिति में एक बेहद सामान्य लड़की के मुँह से गुप्त सिक्योरिटी की बात सुनकर भला कौन ऑफीसर न चौंक पड़ेगा । फौरन मेरे दिमाग में यह बात खलबली मचाती चली गयी कि जरूर कहीं-न-कहीं कुछ गड़बड़ है-जरूर तुम कोई खतरनाक खेल, खेल रही हो । मैंने फौरन तुम्हारी हकीकत पता लगाने का फैसला कर लिया और इसी दिशा में मैंने सबसे पहले तुमसे तुम्हारे पिताजी का नाम पूछा ।”
डॉली भौंचक्की निगाहों से पालीवाल को देखने लगी ।
“प...पिताजी का नाम क्यों पूछा तुमने ?”
“बताता हूँ-वह भी बताता हूँ ।” जगदीश पालीवाल एक के बाद एक धमाका करता हुआ बोला-दरअसल तुमसे तुम्हारे पिताजी का नाम मालूम करके मैंने चण्डीगढ़ के पुलिस हैडक्वार्टर फोन किया-वहाँ के कमिश्नर को मैंने तुम्हारे पिताजी का नाम बताया और तुम्हारे द्वारा सुनाई गयी पूरी कहानी बतायी । मैंने वहाँ के कमिश्नर से आग्रह किया कि वो पूरी जांच-पड़ताल कराकर मुझे रिपोर्ट दें ।
“ल...लेकिन जब उन्हें मेरे चण्डीगढ़ के घर का एड्रेस ही मालूम नहीं था ।” डॉली बोली-“तो वह मेरे बारे में जांच-पड़ताल कैसे कर सकते थे ?”
“एड्रेस पता लगा लेना बहुत मामूली काम है ।” जगदीश पालीवाल रिवॉल्वर हाथ में लिये-लिये बोला-“तुम्हें शायद मालूम नहीं है कि लगभग सभी शहरों में वस्त्र व्यापारी संघ के नाम से कपड़ा व्यापारियों का एक संगठन होता है-और छोटे-बडे सभी कपड़ा व्यापारी उस संगठन के मैम्बर होते हैं ऐसा ही एक वस्त्र व्यापारी संघ चण्डीगढ़ में भी है-मैंने जैसे ही चण्डीगढ़ के पुलिस हैडक्वार्टर को तुम्हारे बारे में रिपोर्ट भेजी-तो फौरन हैडक्वार्टर के एक सब-इंस्पेक्टर ने चण्डीगढ़ के वस्त्र व्यापारी संघ से सम्पर्क स्थापित किया-संघ के पास शहर के सभी व्यापारियों की एक लिस्ट होती है । सब-इंस्पेक्टर ने जब तुम्हारे द्वारा बताया गया कथित दीनदयाल मिश्रा का नाम संघ के संचालक को बताया-तो फौरन तुम्हारे ड्रामे का पर्दाफाश हो गया । क्योंकि दीनदयाल मिश्रा नाम के कपड़ा व्यापारी तो चण्डीगढ़ में कई थे-लेकिन उनमें ऐसा कोई न था-जिसका परिवार आतंकवादियों के हाथों मारा गया हो या जिसके घर दुकान में आतंकवादियों ने आग लगायी हो । बहरहाल थोड़ी देर पहले ही चण्डीगढ़ के पुलिस हैडक्वार्टर से मेरे पास रिपोर्ट आ चुकी है और साबित हो गया है कि तुम्हारे द्वारा सुनाई गयी कहानी पूरी तरह झूठी है ।”
डॉली को अपने दिमाग में अनार छूटते हुए लगे ।
उसका चेहरा सफेद झक्क् पड़ गया ।
“अब अगर अपनी जिंदगी चाहती हो” जगदीश पालीवाल ने बेहद हिंसक अंदाज में रिवॉल्वर से उसका माथा ठकठकाया-“अगर चाहती हो कि तुम्हारा यह खूबसूरत जिस्म एक लाश में न बदल जाये-तो सच-सच बताओ, कौन हो तुम ? तुम्हें यहाँ किसने भेजा है ?”
तभी उस घटना ने बड़े अप्रत्याशित ढंग से करवट बदली ।
“उस लड़की से क्या पूछते हो साहब !” बैडरूम में धमाका-सा करती एक नई आवाज गूंजी थी-“मैं बताता हूँ कि यह कौन है और इसे यहाँ किसने भेजा है ।”
☐☐☐
जगदीश पालीवाल के दिल-दिमाग पर बम-सा गिरा ।
वह झटके से उस दिशा में घूमा-जिधर से आवाज आयी थी ।
अगले पल उसके होश उड़ गये ।
उसके सामने पौने छः फुट लम्बा सामान्य से बदन वाला राज खड़ा मुस्करा रहा था-राज की गोद में गुड्डू था-जिसकी कनपटी पर उसने रिवॉल्वर रखी हुई थी ।
“क...कौन हो तुम ?” जगदीश पालीवाल के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“दुश्मन का कोई नाम नहीं होता साहब-वह किसी भी रूप में, सामने आ सकता है ।”
“पहेलियां मत बुझाओ ।” पालीवाल गुर्राया-“सच-सच बताओ-कौन हो तुम ?”
“फिलहाल तुम्हारे लिये इतना ही जान लेना काफी है कि मैं संध्या का सहयोगी हूँ ।”
“ओह !”
“यह नाटक न जाने कितना लम्बा चलता मिस्टर !” राज बोला-“इसलिये ये अच्छा ही हुआ कि इस नाटक का यहीं अंत हो गया ।”
“लेकिन यह नाटक रचा क्यों क्या ?”
“वही बताने जा रहा हूँ-मगर उससे पहले अपनी यह रिवॉल्वर मेरे हवाले कर दो ।”
पालीवाल हिचकिचाया ।
“जल्दी करो ऑफीसर-वरना तुम्हारे बेटे की जान को नुकसान पहुँच सकता है-जिसके लिये फिर मैं जिम्मेदार नहीं होऊंगा ।”
जगदीश पालीवाल ने खून का-सा घूंट पीते हुए राज को रिवॉल्वर सौंप दी ।
“गुड !” मुस्कराया राज-“काफी समझदार आदमी हो-हमारा अच्छा साथ निभेगा ।”
“मैं तुम्हारी कोई बकवास नहीं सुनना चाहता ।” पालीवाल फुंफकारा -“मुझे सिर्फ यह बताओ कि तुम लोग कौन हो ।”
“वही बता रहा हूँ । पहली बात-तुम्हारा यह अंदाजा बिलकुल सही है कि संध्या किसी अपराधी संगठन के लिये काम कर रही है । दूसरी बात-तुम्हारा यह अंदाजा बिलकुल भी सही है कि संध्या ने तुम्हें जो कहानी सुनायी वह बिलकुल मनगढंत है । दरअसल वह कहानी तुम्हें इसलिये सुनाई गयी थी-ताकि तुम्हारी हमदर्दी हासिल करके इस कोठी के अंदर घुसा जा सके ।”
“लेकिन इस ड्रामें के पीछे वजह क्या थी ?”
“वजह !” मुस्कराया राज-“वजह सुनोगे, तो उछल जाओगे ऑफीसर !”
“मैं उछलना ही चाहता हूँ ।”
“ठीक है-तो सुनो ।” राज के चेहरे पर अब थोड़ी कठोरता उभर आयी-“तुमने दिल्ली शहर में सक्रिय उस संगठन के बारे में तो सुना ही होगा-जो दुर्लभ वस्तुओं की चोरी करता है ।”
“उस संगठन के बारे में कौन नहीं जानता ।”
“वैरी गुड-अगर उस संगठन के बारे में जानते हो-तो अब वही संगठन उस दुर्लभ ताज को भी चुराना चाहता है ।”
“परन्तु तुम दोनों का उस संगठन से क्या सम्बन्ध है ?”
“हमारा सम्बन्ध !” राज ने गले का थूक सटका -“हम उस संगठन के मैम्बर हैं ।”
जगदीश पालीवाल के नेत्र अचम्भे से फैल गये ।
“तुम...तुम उस संगठन मैम्बर हो ?”
“हाँ ।”
“लेकिन तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?”
“दरअसल हमारे संगठन को उस दुर्लभ ताज की गुप्त सिक्योरिटी के बारे में मालूम नहीं है ।”
“और तुम्हारा संगठन यह सोचता है ।” पालीवाल गुर्राया-“कि मैं तुम्हें उस सिक्योरिटी से वाकिफ करा दूंगा ।”
“बिल्कुल ।” राज ने दृढ़तापूर्वक कहा-हमारा संगठन जो सोचता है-वही होता है ।”
“अफसोस-बेहद अफसोस ! इस बार तुम्हारा गलत व्यक्ति से वास्ता पड़ गया है-मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के बारे में नहीं बताऊंगा ।”
“इस नन्ही-सी जान की कीमत पर भी नहीं ?”
“क...क्या मतलब ?” बौखला गया जगदीश पालीवाल ! मतलब यह कि मैं और संध्या फिलहाल तुम्हारे इस बेटे को अपने साथ लेकर जा रहे हैं-हमारे जाने के बाद पूरी रात तुम्हारे पास होगी-तुम खूब अच्छी तरह हमारे प्रस्ताव पर गौर करना-अगर तुमने हमें गुप्त सिक्योरिटी के बारे में बता दिया-तो तुम्हारे बेटे को छोड़ दिया जायेगा । वरना... ।”
“वरना क्या ?”
“वरना हमारा संगठन सिर्फ इतना करेगा ।” राज खूंखार लहजे में बोला-“कि इस मासूम बेटे की गर्दन धड़ से अलग करके तुम्हारे पास भेज देगा-ताकि तुम और तुम्हारी सरकार दोनों ही उस कटे हुए सिर पर दुर्लभ ताज की ताजपोशी कर सको ।”
“न...नहीं । जगदीश पालीवाल दहल गया -“नहीं । तुम ऐसा नहीं करोगे ।”
“हम ऐसा ही करेंगे ।” राज सख्त लहजे में बोला-“अभी तो मैंने सिर्फ तुम्हें उस दृश्य के बारे में बताया है-लेकिन जरा कल्पना करो कि कल जब तुम्हारे मासूम बेटे का कटा हुआ सिर साक्षात् तुम्हारी आंखों के सामने रखा होगा, तब तुम पर क्या बीतेगी । उस समय क्या तुम पागल नहीं हो जाओगे-चीखने नहीं लगोगे-और तुम्हारी पत्नी !” राज ने दांत किटकिटाये-“तुम्हारी पत्नी क्या उस दृश्य को देखकर जिन्दा रह सकेगी ऑफीसर ?”
“नहीं-नहीं ।” जगदीश पालीवाल चिंघाड़ उठा-“तुम दरिंदे हो-वहशी हो ।”
राज के होठों पर मुस्कान खेलती रही ।
“फिलहाल हम जा रहे हैं । ऑफीसर !” राज सहज स्वर में बोला-“कल तुमसे फिर किसी जरिये से सम्पर्क स्थापित किया जायेगा-तब तक अपना फैसला सोचकर रखना ।”
“सुनो-सुनो ।” पालीवाल चीख उठा ।
लेकिन वह नहीं रुके ।
जगदीश पालीवाल चीखता रहा और वो चले गये ।
उसके गुड्डू को लेकर चले गये ।
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