desiaks
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नीलेश फ्रंट का घेरा काट कर उधर पहुंचा और कार में उसके पहलू में जा बैठा ।
श्यामला ने कार आगे बढ़ाई ।
कथित कैफे उसी सड़क पर था जहां कि सुबह की उस घड़ी आठ दस लोग ही मौजूद थे । दोनों भीतर जाकर बैठे । श्यामला ने काफी का आर्डर दिया, जिसके सर्व होने तक उनके बीच बड़ी बोझिल सी खामोशी छाई रही जिसे नीलेश ने ‘थैंक्यू’ बोल कर भंग किया ।
“काफी के लिये बोले रहे हो ?” - वो बोली ।
“नहीं, भई । मेरी जान बचाने के लिये ।”
“मैंने बचाई ?”
“बराबर बचाई । तुम्हारे पापा की गिरफ्तारी के बाद मेरी उनसे बात हुई थी । उन्होंने तब वो तमाम डायलॉग दोहराया था जो तुम्हारे और उनके बीच सीढ़ियों पर हुआ था । मुझे ये तक बताया था कि तुमने कहा था कि अगर उन्होंने मेरी मुखालफत में कोई कदम उठाया तो तुम उनकी बेटी नहीं । कहा था कि अगर उन्होंने एक कदम भी ऊपर की तरफ बढ़ाया तो तुम उनकी गन छीन लोगी ।”
वो खामोश रही, उसने काफी के कप पर सिर झुका लिया ।
“तुम्हारी ही वजह से मोकाशी साहब को मेरी मदद करना, उस विकट घड़ी में अपने साथियों का साथ देने की जगह मेरे साथ खड़ा होना, कुबूल हुआ । तुम्हारी मोटीवेशन से मोकाशी साहब के मिजाज में इंकलाबी तब्दीली न आयी होती तो मेरी मौत निश्चित थी ।”
“किसकी मैात निश्चित थी” - वो होंठों में बुदबुदाई - “ये तो ऊपर वाला ही जानता था । मेरी भी पापा से बात हुई थी । जैसे उन्होंने तुम्हें बताया था कि सीढ़ियों में क्या हुआ था, वैसे मुझे बताया था कि ऊपर हाल मे क्या हुआ था । तुमने महाबोले की टांग में गोली न मारी होती तो उसका निशाना न चूका होता, तो वहां उसकी जगह मेरे पापा मरे होते । पुलिस वालों को शूटिंग की, सुपरफास्ट एक्ट करने की, ट्रेनिंग होती है, मेरे पापा नौसिखिये थे, गन उनके पास स्टेटस सिम्बल के तौर पर थी जिसके इस्तेमाल की कभी नौबत नहीं आयी थी । उपर से ओल्ड एज की वजह से उनके रिफ्लेक्सिज कमजोर थे, उनका गोली खा जाना निश्चित था ।”
“फिर भी इत्तफाक हुआ कि उनकी चलाई गोली ऐन निशाने पर लगी !”
“करिश्मा हुआ । किसी अदृश्य शक्ति ने चमत्कार दिखाया, महाबोले दूसरी गोली चला पाया होता तो…”
उसके शरीर ने जोर की झुरझुरी ली ।
“लिहाजा” - फिर बोली - “थैंक्यू तुम्हें नहीं, मेरे को बोलना चाहिए । शुक्रगुजार तुम्हें मेरा नहीं, मुझे तुम्हारा होना चाहिये । नहीं ?”
“हम दोनों को ऊपर वाले का शुक्रगुजार होना चाहिये । जिसको वो रक्खे, उनको कौन चक्खे !”
“आगे क्या होगा ?”
नीलेश की भवें उठीं ।
“मेरे पापा को महाबोले की मौत के लिये जिम्मेदार ठहराया जायेगा ? उन पर कत्ल का इलजाम आयद होगा ?”
“नहीं । उन्होंने जो किया, सैल्फ डिफेंस में किया । मरने से बचने के लिये मारना पड़ा । आत्मरक्षा हर नागरिक का अधिकार है । महाबोले को शूट करके उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया ।”
“बड़े विश्वास के साथ कह रहे हो !”
“हां, क्योंकि ऐसी सिचुएशन पर लागू हाने वाले कायदे कानून का मुझे ज्ञान है ।”
“क्योंकि पुलिस आफिसर हो ! इंस्पेक्टर…इंस्पेक्टर नीलेश गोखले हो !”
“कौन बोला ?”
“कौन बोला क्या ! अब ये बात सबको मालूम है । तुम्हारा डीसीपी ही बोला जो कि ऐन मौके पर पीएसी की फोर्स के साथ ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ पहुंचा । सबके सामने अपने बहादुर, जांबाज, कर्त्तव्यपरायण इ्ंस्पेक्टर गोखले की तारीफ करता था । तुम्हें कोई गैलेन्ट्री मैंडल मिलने की भी बात करता था ।”
“ओह !”
“सरकारी आदमी !”
“क्या ?”
“झुठलाते थे मेरी बात को ! अभी निकले न !”
“सारी !”
“वाट सारी ! मेरे से कोई लगाव महसूस करते तो मेरे से तो सच बोला होता !”
“सच का हिंट बराबर दिया था । जब त्रिमूर्ति के कुकर्म गिनाये थे तो यही किया था ।”
“दो टूक सच बोला होता ! मेरे कहे को कनफर्म किया होता !”
“गलत होता ऐसा करना ।”
“क्यों ?”
“कनफर्मेशन ब्राडकास्ट हो जाती । शक यकीन में तब्दील हो जाता । नतीजन आइलैंड पर सांस लेना दूभर हो जाता ! त्रिमूर्ति मुझे हरगिज जिंदा न छोड़ती ! मेरी लाश समंदर में तैरती पायी जाती ।”
“ओह, नो ।”
“ओह, यस ।”
“मैं किसी को बोलती तो ऐसा होता न !”
“मोकाशी साहब को जरुर बोलती । तुम पिता पुत्री एक दूसरे के बहुत करीब हो । यही सोच के बोलतीं कि घर की बात घर में थी । लेकिन बात एक मूर्ति तक पहुंचना और त्रिमूर्ति तक पहुंचना एक ही बात होती ।”
वो खामोश रही ।
“राज की बात कोई भी हो, वो तभी तक अपनी होती है जब तक अपने पास रहे । एक बार जुबान से निकल जाये तो वो सबकी मिल्कियत बन जाती है ।”
“शायद तुम ठीक कह रहे हो । बहरहाल बात ये हो रही थी कि मेरे पापा को कत्ल का अपराधी नहीं ठहराया जायेगा ।”
“लेकिन और बहुतेरे अपराध हैं उनके जिनकी जिम्मेदारी से वो नहीं बच सकेंगे ।”
“ये तुम कह रहे हो !
“ये एक पुलिस आफिसर कह रहा है ।”
“जो कोई रियायत बरतना नहीं जानता ! जो किसी बात की तरफ से आंखें बंद करना नहीं सीखा !”
श्यामला ने कार आगे बढ़ाई ।
कथित कैफे उसी सड़क पर था जहां कि सुबह की उस घड़ी आठ दस लोग ही मौजूद थे । दोनों भीतर जाकर बैठे । श्यामला ने काफी का आर्डर दिया, जिसके सर्व होने तक उनके बीच बड़ी बोझिल सी खामोशी छाई रही जिसे नीलेश ने ‘थैंक्यू’ बोल कर भंग किया ।
“काफी के लिये बोले रहे हो ?” - वो बोली ।
“नहीं, भई । मेरी जान बचाने के लिये ।”
“मैंने बचाई ?”
“बराबर बचाई । तुम्हारे पापा की गिरफ्तारी के बाद मेरी उनसे बात हुई थी । उन्होंने तब वो तमाम डायलॉग दोहराया था जो तुम्हारे और उनके बीच सीढ़ियों पर हुआ था । मुझे ये तक बताया था कि तुमने कहा था कि अगर उन्होंने मेरी मुखालफत में कोई कदम उठाया तो तुम उनकी बेटी नहीं । कहा था कि अगर उन्होंने एक कदम भी ऊपर की तरफ बढ़ाया तो तुम उनकी गन छीन लोगी ।”
वो खामोश रही, उसने काफी के कप पर सिर झुका लिया ।
“तुम्हारी ही वजह से मोकाशी साहब को मेरी मदद करना, उस विकट घड़ी में अपने साथियों का साथ देने की जगह मेरे साथ खड़ा होना, कुबूल हुआ । तुम्हारी मोटीवेशन से मोकाशी साहब के मिजाज में इंकलाबी तब्दीली न आयी होती तो मेरी मौत निश्चित थी ।”
“किसकी मैात निश्चित थी” - वो होंठों में बुदबुदाई - “ये तो ऊपर वाला ही जानता था । मेरी भी पापा से बात हुई थी । जैसे उन्होंने तुम्हें बताया था कि सीढ़ियों में क्या हुआ था, वैसे मुझे बताया था कि ऊपर हाल मे क्या हुआ था । तुमने महाबोले की टांग में गोली न मारी होती तो उसका निशाना न चूका होता, तो वहां उसकी जगह मेरे पापा मरे होते । पुलिस वालों को शूटिंग की, सुपरफास्ट एक्ट करने की, ट्रेनिंग होती है, मेरे पापा नौसिखिये थे, गन उनके पास स्टेटस सिम्बल के तौर पर थी जिसके इस्तेमाल की कभी नौबत नहीं आयी थी । उपर से ओल्ड एज की वजह से उनके रिफ्लेक्सिज कमजोर थे, उनका गोली खा जाना निश्चित था ।”
“फिर भी इत्तफाक हुआ कि उनकी चलाई गोली ऐन निशाने पर लगी !”
“करिश्मा हुआ । किसी अदृश्य शक्ति ने चमत्कार दिखाया, महाबोले दूसरी गोली चला पाया होता तो…”
उसके शरीर ने जोर की झुरझुरी ली ।
“लिहाजा” - फिर बोली - “थैंक्यू तुम्हें नहीं, मेरे को बोलना चाहिए । शुक्रगुजार तुम्हें मेरा नहीं, मुझे तुम्हारा होना चाहिये । नहीं ?”
“हम दोनों को ऊपर वाले का शुक्रगुजार होना चाहिये । जिसको वो रक्खे, उनको कौन चक्खे !”
“आगे क्या होगा ?”
नीलेश की भवें उठीं ।
“मेरे पापा को महाबोले की मौत के लिये जिम्मेदार ठहराया जायेगा ? उन पर कत्ल का इलजाम आयद होगा ?”
“नहीं । उन्होंने जो किया, सैल्फ डिफेंस में किया । मरने से बचने के लिये मारना पड़ा । आत्मरक्षा हर नागरिक का अधिकार है । महाबोले को शूट करके उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया ।”
“बड़े विश्वास के साथ कह रहे हो !”
“हां, क्योंकि ऐसी सिचुएशन पर लागू हाने वाले कायदे कानून का मुझे ज्ञान है ।”
“क्योंकि पुलिस आफिसर हो ! इंस्पेक्टर…इंस्पेक्टर नीलेश गोखले हो !”
“कौन बोला ?”
“कौन बोला क्या ! अब ये बात सबको मालूम है । तुम्हारा डीसीपी ही बोला जो कि ऐन मौके पर पीएसी की फोर्स के साथ ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ पहुंचा । सबके सामने अपने बहादुर, जांबाज, कर्त्तव्यपरायण इ्ंस्पेक्टर गोखले की तारीफ करता था । तुम्हें कोई गैलेन्ट्री मैंडल मिलने की भी बात करता था ।”
“ओह !”
“सरकारी आदमी !”
“क्या ?”
“झुठलाते थे मेरी बात को ! अभी निकले न !”
“सारी !”
“वाट सारी ! मेरे से कोई लगाव महसूस करते तो मेरे से तो सच बोला होता !”
“सच का हिंट बराबर दिया था । जब त्रिमूर्ति के कुकर्म गिनाये थे तो यही किया था ।”
“दो टूक सच बोला होता ! मेरे कहे को कनफर्म किया होता !”
“गलत होता ऐसा करना ।”
“क्यों ?”
“कनफर्मेशन ब्राडकास्ट हो जाती । शक यकीन में तब्दील हो जाता । नतीजन आइलैंड पर सांस लेना दूभर हो जाता ! त्रिमूर्ति मुझे हरगिज जिंदा न छोड़ती ! मेरी लाश समंदर में तैरती पायी जाती ।”
“ओह, नो ।”
“ओह, यस ।”
“मैं किसी को बोलती तो ऐसा होता न !”
“मोकाशी साहब को जरुर बोलती । तुम पिता पुत्री एक दूसरे के बहुत करीब हो । यही सोच के बोलतीं कि घर की बात घर में थी । लेकिन बात एक मूर्ति तक पहुंचना और त्रिमूर्ति तक पहुंचना एक ही बात होती ।”
वो खामोश रही ।
“राज की बात कोई भी हो, वो तभी तक अपनी होती है जब तक अपने पास रहे । एक बार जुबान से निकल जाये तो वो सबकी मिल्कियत बन जाती है ।”
“शायद तुम ठीक कह रहे हो । बहरहाल बात ये हो रही थी कि मेरे पापा को कत्ल का अपराधी नहीं ठहराया जायेगा ।”
“लेकिन और बहुतेरे अपराध हैं उनके जिनकी जिम्मेदारी से वो नहीं बच सकेंगे ।”
“ये तुम कह रहे हो !
“ये एक पुलिस आफिसर कह रहा है ।”
“जो कोई रियायत बरतना नहीं जानता ! जो किसी बात की तरफ से आंखें बंद करना नहीं सीखा !”