Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज - Page 12 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - मिस्टर चैलेंज

लविन्द्र सर सहित सबने उन्हें समझाने की कोशिश की । कोशिश यही थी जो किसी भी नये आदमी को राज पता लगने पर की जाती थी । ' उसे रैकेट में शामिल कर लेना । शेयर का लालच देना । मगर सत्या मैडम पर किसी चीज का असर नहीं हुआ । उन्हें सबसे ज्यादा शिकायत लबिन्द्र सर से थी ।

जब वे हम सबका भेद कैम्पस में जाकर खोलने की धमकी देने लगी तो चन्द्रमोहन ने चाकू खोल दिया । बोला ---- " तेरा इलाज केवल ये है । " सब समझ चुके थे सत्या मेडम को शामिल करना तो दूर , पोल खोलने तक से नहीं रोका जा सकता । अतः सबको वही रास्ता नजर आया जो चन्द्रमोहन कह रहा था । केवल लविन्द्र सर ने विरोध किया । कहा- " वे सत्या को समझा लेंगे । ऐसा कोशिश उन्होंने की भी किन्तु सत्या मैडम खतरा भांप चुकी थीं ।

लविन्द्र सर समझाने - बुझाने की कोशिश कर ही रहे थे कि उन्होंने दरवाजे की तरफ जम्प लगाई । सैंडिल वहीं रह गई । सब उनके पीछे लपके । भेद खुलने पर फांसी का फंदा साफ - साफ नजर आ रहा था । पेपर मुट्ठी में दवाये सत्या मैडम को जिधर जगह मिली भागती चली गयी । हम उनके पीछे थे ।

चाकू ऐरिक सर के हाथ में भी आ चुका था । भागम - भाग के बाद सब टेरेस पर पहुंचे । ऐरिक सर ने चाकू भौंका । सत्या मैडम के हलक से चीख निकली । जख्म से खून का फव्वारा ! पेपर उनके अपने खून से सन गया । हिमानी मैडम ने झपटकर उसे छीना । सत्या मैडम चीखती हुई टैरेस के सिरे की तरफ भागी । चाकू सम्भाले ऐरिक सर पुनः उन पर झपटे

मगर हममें से कोई भी टैरेस के सिरे पर नहीं जा सकता था । जानते थे वहां कैम्पस में मौजूद लोगों द्वारा देख लिये जायेंगे । और फिर हमसे बचने के प्रयास में ये टेरेस से गिर गई " बताने के बाद गुल्लू चुप हो गया । गहरी - गहरी सांसें ले रहा था वह ।
" आगे बको । "
" सब अवाक रह गये । जो हुआ , आनन - फानन में हो गया था । लविन्द्र सर तो ऐरिक पर गुर्रा भी उठे ---- ' ये क्या किया तुमने ? ' ऐरिक सर दहाड़े ---- और क्या करता ? " अल्लारखा बोला ---- ' जो हो गया सो गया , इस पर बाद में सोचेंगे । फिलहाल हमारा कैम्पस की भीड़ में शामिल होना जरूरी है। बात सबको जँची। ऐरिक सर ने चाकू चन्द्रमोहन को देने के साथ कहा ---- ' इसे कहीं छुपा दे । '

एकता ने हिमानी से कहा --- ' ये पेपर या पैपर के टुकड़े भी किसी के हाथ नहीं लगने चाहिए । ' हिमानी ने पेपर अपने वक्षस्थल में ठूंस लिया । चन्द्रमोहन टैरेस से टैरेस पर कूदकर व्यायज़ हॉस्टल में पहुंचा । जल्दी ही हम सब भी कैम्पस की भीड़ में शामिल हो गये । "

" उसके बाद ? " मेरे मुंह से निकला ।

" डेथ से पूर्व कैम्पस की जमीन पर सत्या मैडम द्वारा लिखा गया CHALLENGE जैसे अन्य सबके लिए पहेली था वैसे ही हमारे लिए भी था । आज तक है ! हम लोग आपस में कई बार विचार - विमर्श के बावजूद नहीं समझ सके कि सत्या मैडम ने CHALLENGE क्यों लिखा ? "

" चन्द्रमोहन की गिरफ्तारी की तुम लोगों पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी ? "
" चन्द्रमोहन के खिलाफ शोर - शराबा राजेश आदि ने शुरू किया । ज्यादातर स्टूडेन्ट्स ने उनका साथ दिया । इस्पेक्टर ने उसके कमरे की तलाशी लेने का फैसला किया । खून से सना चाकू बेवकूफ ने वहीं छुपा रखा था ! मरना तो था ही ! पकड़ा गया । इंस्पैक्टर के जाते ही ऐरिक सर के कमरे में आठों की मीटिंग हुई । ज्यादातर की हवा यह सोच - सोचकर शंट हुई जा रही थी कि चन्द्रमोहन टूट गया तो क्या होगा ? "
" लविन्द्र की क्या प्रतिक्रिया थी उस वक्त ? " " वे खामोश थे । एक लफ्ज़ नहीं बोले । वार्ता में हिस्सा भी नहीं लिया । सबने पूछा भी वे क्या सोच रहे हैं ? केवल इतना कहा ---- जो हुआ , अच्छा नहीं हुआ ।
 
ऐरिक सर बोले - हम कब कह रहे हैं अच्छा हुआ मगर यह न होता तो उससे भी बुरा होता । लविन्द्र सर पुनः खामोश हो गये । सब चन्द्रमोहन के टूट जाने से डरे हुए थे । केवल ऐरिक सर को विश्वास था चन्द्रमोहन टूटने वाला नहीं है और फिर उस वक्त मैं गेट पर खड़ा था जब इंस्पैक्टर साहब और ये ! " गुल्लू ने मेरी तरफ इशारा करके कहना जारी रखा ---- " उसे लेकर आये । चन्द्रमोहन ने एक ही इशारे में मुझे बता दिया कि उसने इंस्पैक्टर को कुछ नहीं बताया है । मेरी बांछे खिल गई । यही हाल पता लगने पर बाकी सबका हुआ है । "

" लविन्द्र का भी ? " " उनका एटीट्यूट किसी की समझ में नहीं आ रहा था । चुप - चुप से थे । वेद जी के जाने के बाद पुनः मीटिंग हुई जिसमें चन्द्रमोहन ने बताया उसे इंस्पैक्टर ने किस - किस तरह कितना टॉर्चर किया मगर उसने हकीकत उगलकर नहीं दी । "

सुनकर मैंने और विभा ने एक - दूसरे की तरफ देखा । जाहिर था --- चन्द्रमोहन ने अपने साथियों को यह नहीं बताया कि जैकी ने उसे अपना मुखबिर बनाकर छोड़ा है । विभा ने अगला सवाल किया ---- " उसके बाद चन्द्रमोहन तुम्हें कब और कहां मिला ? "

" रात के वक्त ! मर्डर से पूर्व कैम्पस में । "
" अब पूरा सच बताओ । क्या बातें हुई तुम्हारी ? "
" हमने कहा था ---- तुम वैसे ही सबके शक के दायरे में हो चन्द्रमोहन ! एकाध रात स्मैक की तलब को दबा लो तो ठीक रहेगा । " उसने कहा --- मैं स्मैक लेने नहीं , एक जरूरी फोन करने स्टॉफ रूम तक जा रहा हूं ।

हमने काफी पूछा किसे फोन करना है ? उसने नहीं बताया । दो नोट दिये । गेट पर जाकर ड्यूटी देने के लिए कहा । उस वक्त हमने कल्पना तक नहीं की थी यह इंस्पेक्टर को फोन करेगा । जहन में यही था शायद किसी लड़की को फोन करने वाला है । इसीलिए फॉलो किया । उसके बाद वही सब हुआ जो बता चुके हैं ।

उसकी जेब से सत्या के खून से सने पेपर की बरामदगी और यह जानने के बाद तुम लोगों पर क्या प्रतिक्रिया हुई कि वह जैकी को सारा भेद बताने वाला था ? "
" सबके सामने तो कोई किसी किस्म की प्रतिक्रिया व्यक्त कर ही नहीं सकता था । " गुल्लू ने कहा ---- " बाद में मीटिंग हुई ।

हिमानी मैडम के कमरे से सत्या मैडम के खून से सना पेपर गायब पाया गया । सब समझ गये ---- उसे चन्द्रमोहन ने चुराया होगा ।

इंस्पेक्टर बता ही चुका था कि चन्द्रमोहन ने फोन पर उससे क्या और कितनी बातें की । उनसे जाहिर था ---- चन्द्रमोहन खुद को बचाकर हमें फंसाने के फेर में था । सबकी एक ही राय बनी --- अच्छा हुआ मारा गया । "

" यह सबाल नहीं उठा ---- मारा किसने ? "

" उठा क्यों नहीं ? काफी जद्दोजहद हुई । मगर नतीजा किसी की समझ में नहीं आया उसे किसने और क्यों मारा ? "
" लविन्द्र की प्रतिकिया क्या थी ? " मैंने चौंककर विभा की तरफ देखा ।

समझ नहीं पाया ---- वह बात - बात पर लविन्द्र की ही प्रतिक्रिया जानने के लिए उत्सुक क्यों है ? सवाल करने का मौका नहीं था क्योंकि गुल्लू ने बोलना शुरू कर दिया था --- " जद्दोजहद में कोई खास हिस्सा नही लिया उन्होंने । मुनासिब शायद यही कहना होगा वे चुप - चुप से थे । "
" उसके बाद हिमानी , अल्लारक्खा , ललिता और अब लबिन्द्र की हत्या पर तुम्हारे ग्रुप को क्या प्रतिक्रिया रही ? "
 
" लविन्द्र सर की हत्या के बाद तो हम लोग अभी मिल नहीं पाये है लेकिन हर हत्या के बाद मीटिंग होती रही । हर बार यही विचार - विमर्श हुआ कि यह सब हो क्या रहा है ? कौन और क्यों कर रहा है हत्याएं ? किसी की समझ में कुछ नहीं आया । "

" यह सवाल नहीं उठा हत्याएं तुम्हारे ही ग्रुप की क्यों हो रही है ? "

" उठा था । अल्लारखा और ललिता की हत्या के बाद लविन्द्र सर ने उठाया था । उन्होंने कहा पहले चन्द्रमोहन , उसके बाद हिमानी और अब अल्लारक्खा तथा ललिता । हमारे ही गुप के लोग क्यों मर रहे हैं ? मुझे लगता है कोई पेपर आऊट करने वाले रैकेट के पीछे पड़ गया है । एक - एक करके सबको खत्म करता जा रहा है वह । ऐरिक सर ने विरोध किया । बोले ---- अपने बे सिर पैर के ख्याल से दहशत मत फैलाओ । जो मरे वे हमारे ग्रुप के थे , यह केवल इत्तफाक है । सत्या मैडम के अलावा हमारा राज जानता ही कौन है ? और वह अब इस दुनिया में नहीं है ।

लबिन्द्र सर ने कहा ---- ' मुझे लगता है , कोई हमसे सत्या की हत्या का बदला ले रहा है । ऐरिक सर भड़क उठे ---- चोर की दाढ़ी में तिनका वाली बात मत करो ! किसी को पता नहीं सत्या की हत्या हमने की है । फिर भला कौन बदला लेगा ? ये कुछ और चक्कर चल रहा है । व्यर्थ ही उसे अपने गुनाह से जोड़कर सबका दिमाग खराब मत करो । '

लबिन्द्र सर यह बड़बड़ाने के बाद चुप हो गये कि अगर ये इत्तफाक है तो बड़ा अजीब है । ऐरिक सर ने कहा ---- ' लबिन्द्र की बातों से डरकर कोई अपना मुंह फ़ाड़ने की बेवकूफी न करे । हम लोग केवल तभी तक सुरक्षित है जब तक इंस्पैक्टर , विभा और वो लेखक यह सोच रहे है कि सत्या का मर्डर भी इन्हीं मडर्स की श्रृंखला है । जैसे ही उन्हें पता लगा सत्या की हत्या हमने की है .... हमारी गर्दनों में फांसी के फंदे पड़े होंगे ।

मैंने कहा ---- ' लेकिन सर ! पता तो लगना चाहिए - मर्डरस कर कौन रहा है ? '
' तीन - तीन इन्वेस्टिगेटर जुटे पड़े है । अपना दिमाग खराब करने की जरूरत नहीं हमें । हमारी पॉलिसी वही रहनी चाहिए जो अब तक है । चुप्पी ! और वैसा एटीट्यूट जैसा दूसरे स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स का है ।

दूसरे लोगों से जरा भी ज्यादा सक्रियता दिखाने या एग्रेसिव होने की कोशिश की तो इन्वेस्टिगेटर्स की नजरों में आ जायेंगे । वह हमारे हित में नहीं होगा । देर - सवेर हत्यारे को पकड़ ही लेंगे वे । तब सत्या की हत्या भी उसी के मत्थे मढ़ जायेगी । हमारी तरफ ध्यान तक नहीं जायेगा किसी का।

" विभा ने कहा ---- " तुम्हीं में से एक और मारा गया । अब क्या सोचते हो तुम ? "
" अब तो हमें भी लविन्द्र सर की बात ही ठीक लगती है । कोई हमारे रैकिट को , सत्या मैडम के हत्यारों को एक - एक करके खत्म कर रहा है । शायद अगला नम्बर मेरा ही है । "
" CHALLENGE का मतलब तुम लोगों की समझ में अब तक नहीं आया ? "
" न - नहीं । क्या आपकी समझ में आ गया है ? "
" शटअप ! " विभा गुर्राई । गुल्लू सकपका उठा । कुछ देर विभा जाने क्या सोचती रही । फिर बोली - . - .- . " सत्या की हत्या करने और पेपर आऊट करने की सजा से खुद को बचाना चाहते हो तो जो बातें हुई हैं उनका एक लफ्ज भी एकता , नगेन्द्र और ऐरिक को नहीं बताओगे । "
“ बिल्कुल नहीं बताऊंगा मैडम जी ! आप नहीं चाहेंगी तो क्यों बताऊंगा ? "
" अगर ये तुम्हें मीटिंग में काल करते हैं तो उसे उसी तरह अटैण्ड करोगे जैसे हमसे बातें होने से पहले करते रहे हो । "
" बिल्कुल ऐसा ही होगा बट "
" बको । "
" आप सेफ तो कर लेंगी हमें ? "
" हमारा साथ दोगे तो फायदा होगा । " कैंटीन के बाहर अजीब सा शोर उभरा । जैसे स्टूडेन्ट्स का हुजूम वहां पहुंचा हो । हम तीनों का ध्यान उस तरफ गया । कैंटीन के दरवाजे पर जोर से दस्तक दी गई । स्टूडेन्ट्स भन्नाये हुए और गुस्से में नजर आ रहे थे । उनका नेतृत्व राजेश कर रहा था ।
 
भीड़ में एकता , ऐरिक और नगेन्द्र भी थे । मैंने नोट किया गुल्लू की तरफ खास नजरों से देखा उन्होंने । जैसे जानना चाहते हों कि अंदर क्या बातें हो रही थीं , और उसने हमें क्या बताया है ? उनकी इन नजरों को मैं इसलिए नोट कर सका क्योंकि जान चुका था वे एक ही थाली के चट्टे - बट्टे हैं । ऐसा न होता तो शायद उनकी गतिविधियों पर ध्यान तक नहीं जाता । मैंने यह सोचकर नजरें हटा ली कि कहीं वे भी न ताड जायें कि मैं उनके बारे में कुछ जान गया हूं । "

आप यहां बंद केंटीन में गुल्लू से जाने क्या बातें कर रही हैं विभा जी ! और वहां , हमें लगता है एक मर्डर और हो चुका है" राजेश के लहजे में हल्का सा रोष था । एक और मर्डर ? " मेरे हलक से चीख निकल गई ---

" किसका ? "
" लोकेश नहीं मिल रहा । "
" कौन लोकेश ? "
" मेरे क्लास का स्टूडेन्ट है । " दीपा ने आगे बढ़कर कहा ।
" बगर लाश मिले किसी को मृत नहीं मानना चाहिए बेटे ।
" राजेश ने पुछा---- " क्या हम जान सकते हैं कि बंद कमरे में आप गुल्लू से क्या बातें कर रही थी ? "
" बंसल साहब इसे माफ कर दे तो बता सकती हूं । "
" ह - हम ? हमसे क्या मतलब ? "
" आप ही से मतलब है । आप इसकी नौकरी छीन सकते हैं । इस डर से डरकर इसने उस रात की एक महत्त्वपूर्ण घटना का जिक्र नहीं किया जिस रात चन्द्रमोहन की हत्या हुई । "
" ऐसी कौन सी घटना थी ? "
" आप इसे सजा न देने का वादा करें तो बताऊं ? "
" माफ करते हैं ।

तब विभा ने यह सब बता दिया जो गुल्लू ने नोट पकड़े जाने के बाद केंटीन के बाहर ही बता दिया था । मैं समझ सकता था वह सब विभा ने एकता , नगेन्द्र और ऐरिक के मनों से यह शंका मिटाने के लिए किया था कि बंद केंटीन में गुल्लू ने यहीं सब कुछ उगल तो नहीं दिया है ।

विभा के चुप होने पर एक स्टूडेन्ट ने कहा ---- " यह सब तो गुल्लू बाहर ही बता चुका था । हमें वे बातें जाननी है जो कैंटीन के अंदर हुई । " मैंने और विभा ने उसे एक साथ गौर से देखा । वह उन स्टूडेन्ट्स में से एक था जिनके सामने गुल्लू को घसीटकर कैंटीन के अंदर ले जाया गया था । विभा ने सभी शंकाओं पर पानी फेरने की मंशा से कहा ---- " उसी सबकी डिटेल जानने के लिए कैंटीन के अन्दर ले जाया गया था उसे । जानना ही चाहते हो तो सुनो ! " कहने के बाद यह एक पल के लिए चुप हुई , अगले . पल इस तरह बोली जैसे बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन कर रही हो ---- " जिस रात चन्द्रमोहन कैम्पस की दीवारों पर अपने द्वारा तैयार किये गये -दृश्यों के नंगे फोटो लगा रहा था , उस रात भी इसने उससे पांच सौ रुपये लेकर अपना मुंह बंद रखा । "

सभी घृणित नजरों से गुल्लू को घुरने लगे । बंसल ने कहा ---- " वादा न किया होता तो हम इसी वक्त इसे नौकरी से निकाल देते। उस काण्ड में जितना गुनेहगार चन्द्रमोहन था , उतना ही ये भी है । रात ही में शोर मचाकर उसे पकड़वा देता तो .... " उस बात को छोड़िए बंसल साहब ! फिलहाल हमारे लिए लोकेश को ढूंढना ज्यादा जरूरी है । " कहने के बाद विभा ने सवाल किया।
 
" क्या आपके पास लोकेश का फोटो होगा ? "
" हम उसका एडमिशन फार्म निकलवा देते है । " " वह तो निकलवाइए ही मगर .... क्या एक ऐसा फोटो नहीं मिल सकता जिसमें लोकेश की पूरी कद - काठी हो ? "
" पिछले साल का ग्रुप फोटो मिल सकता है । "
" गुड ! वह भी निकलवा दीजिए ।
" हुक्म सा देने के बाद उसने स्टूडेन्ट्स से कहा ---- " तुम्हारे साथ लोकेश को हम भी तलाश करते हैं । "

सारी बातें सुनने के बाद जैकी कह उठा -- " केस तो हल हो चुका है । "
" हत्यारे के पकड़े जाने से पहले कैसे हल हुआ माना जा सकता है ? "
" वो बात ठीक है मगर गुल्लू के बयान के बाद स्पष्ट हो गया ---- हमारी सम्भावनाएं ठीक थीं ।

यह केस दो हिस्सों में बंटा हुआ था । पहला सत्या का मर्डर दूसरा अन्य मर्डरस ! हम भूल ही यह कर रहे थे कि अन्य मर्डरों को भी सत्या के मर्डर की श्रृंखला मानते रहे । "
" ऐसे ही नहीं मानते रहे । इस हत्यारे की चालाकी भरी वह चाल कही जायेगी जिसमें हम फंसे रहे । उसने हर मक्तूल से CHALLENGE लिखवाकर न केवल सभी मर्डरों को सत्या के मर्डर की श्रृंखला बना दिया बल्कि पहेली को और ज्यादा उलझा दिया । "
" मगर तुम उलझने वाली कहां हो जानेमन ! " मैंने मस्ती के मूड में कहा ---- " पहले पहेली हल की ! उसके बाद गुल्लू को पकड़ा ।

केस के एक हिस्से यानी सत्या के मर्डर की बखिया तो उधेड़ ही चुकी हो । कातिल सामने है ! हम कत्ल का कारण जान चुके है "
" मैंने पहले भी कहा , फिर कहूंगी --- मुजरिम कुछ देर के लिए इन्वेस्टिगेटर्स को भले ही छका ले मगर हमेशा नहीं छकाये रख सकता । वही बात अन्य क़त्ल के कातिल पर लागू है । जैकी , जितनी जानकारियां इस वक्त हमारे पास उनके आधार पर तुम्हारे ख्याल से हमारा अगला कदम क्या होना चाहिए ? "
" गुल्लू , एकता , ऐरिक और नगेन्द्र को सत्या की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार करके फौरन जेल में ठूँस देना चाहिए । "
" फायदा ?
" कालिज में कत्ल होने रुक जायेंगे । "
" और जेल में शुरू " ये बात अच्छी तरह दिमाग में उत्तार लो जैकी ! हत्यारा भावुकता के तहत सत्या के हत्यारों की हत्याएं कर रहा है । ऐसा हत्यारा जब तक पकड़ा नहीं जाता , तब तक जेल तो क्या पाताल तक अपने शिकारों का पीछा नहीं छोड़ता । जो स्टोरी यहाँ चल रही है वह जेल में चल पडेगी । "
" जेल में किसी को कत्ल करना इतना आसान नहीं होता । वहां पहुंचना और कत्ल करने के बाद निकल जाना अपने आप में......

मेरे ख्याल से तुम पूरी तरह गलत हो । जेल में घुसना क्या मुश्किल है ? चलते को थप्पड़ मारो और जेल पहुंच जाओ । कत्ल करने के बाद निकलने की क्या जरूरत है वहां से ? हत्यारा उतनी ही आसानी से खुद को कैदियों की भीड़ में छुपा सकता है जितनी आसानी से कालिज की भीड़ में छुपा हुआ है । "
" आप कहना क्या चाहती है ?
 
" हम हत्यारे के लिए मजबूत जाल बिछा सकते हैं । नये हालात में पन्द्रह व्यक्तियों की सुरक्षा करने की जरूरत नहीं है । जानते है ---- हत्यारे का अगला शिकार एकता या ऐरिक है । हत्यारा यह नहीं जानता कि हम यह जानते है । वह पूरी निश्चिन्तता के साथ जल्द ही अपने अगले शिकार पर हाथ डालेगा । ऐरिक और एकता हमारे पूर्ण पहरे में होंगे । हत्यारे को पकड़ने के लिए इससे अच्छी स्थिति और क्या हो सकती है ? "
“ मैं आपसे सहमत हूं । "
" हालांकि सुरक्षा व्यवस्था का मेन जाल एकता और ऐरिक के इर्द - गिर्द होगा परन्तु ऐसा नजर नहीं आना चाहिए । नजर आना चाहिए जैसे आम पहरा बैठाया गया हो । हत्यारे को अगर यह इल्म हो गया ---- हमें उसके अगले शिकार की भनक है तो वह अपना पैतरा बदल सकता है । "

" ये बात मेरे जहन में थी । "
" मैं एरिक की निगरानी करूगी । तुम एकता की । और तुम ! " विभा ने मुझसे कहा ---- " तुम्हारा काम गुल्लू पर नजर रखना होगा ---- जो कुछ उसने कैंटीन में बका यदि वह वो सब एकता , ऐरिक और नगेन्द्र को बताता है तो तुम्हारी गैरजानकारी में न बता पाये । "
" वो तो मैं कर लूंगा लेकिन ----
" तुम लेकिन ! किन्तु ! बट ! परन्तु बहुत करते हो ! वको । "
" कुछ सवालों के जवाब चाहता हूं मैं । "
" जानती हूं तुम्हें सवालों के जवाब न मिले तो पेट में दर्द शुरू हो जाता है । "
" लोकेश अब तक नहीं मिला है । "
" मिल जायेगा । " विभा ने पूरी निश्चितता के साथ कहा ---- " उसके लिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है । "
विभा का जवाब ही ऐसा था कि मैं और जैकी , दोनों चौक पड़े ।
मैने कहा ---- " बात समझ में नहीं आई विभा ! तुम तो इस तरह कह रही हो जैसे जानती हो लोकेश कहां है ? "
" सारे सवालों के जवाब अभी लोगे तो हाजमा बिगड़ जायेगा तुम्हारा । " मुझे टालने के बाद उसने जैकी से कहा ---- " हमें बगैर टाइम गंवाए एकता और ऐरिक की सुरक्षा का जाल बिछा देना चाहिए । "
मैं समझ सकता था ---- महामाया अब अपनी फुल फार्म में थी।

चप्पे - चप्पे पर पुलिस का सख्त पहरा था । कैम्पस से होस्टल और होस्टल से मेस तक ।

उधर , कॉलिज के मुख्य द्वार से बंसल के बंगले तक । हर कोना रोगनी से जगमगा रहा था । पेड़ों पर भी बल्ब टांग दिये गये थे । चार पुलिस मैन मेन स्विच पर तैनात थे । एक ऐसे जनरेटर का इन्तजाम किया गया था जो लाइट जाते ही ऐटोमेटिक रूप से चालू हो जाने वाला था ।

कुल पुलिस वालों को संख्या एक सौ पच्चीस थी । छात्रों और प्रोफेसर्स से कहा गया वे अपने अपने रूम में जाकर चैन से सो सकते हैं परन्तु स्टूडेन्ट्स नहीं माने विभा तक के समझाने के बावजूद उन्होंने गुट में बंटकर पहरा देने का निश्चय किया ।

मैं , जैकी और विभा अपनी - अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थे । रात के यारह बजे वह वक्त आया जब तीनों एक जगह एकत्रित हुए । वह जगह थी --- ऐरिक के रूम के पीछे बनी सर्विस लेन । हम तीनों के एक जगह इकट्ठा होने का कारण धा ---- तीनों के शिकारों का एक जगह इक्कठे होना । मैं वहां गुल्लू पर नजर रखता पहुंचा था । जैकी , एकता को फालो करता और विभा ऐरिक का पीछा करती ।
 
कमरे में इस वक्त नगेन्द्र भी था । हम सब सर्विस लेन की तरफ खुलने बाली बंद खिड़की की दरारों पर कान सटाये हुए थे । अंदर से एकता की आबाज आ रही थी -- " लविन्द्र सर के बाद मुझे तो उन्हीं की बात सच लगने लगी है सर ! ऐसा लगता है जैसे कोई हमारे ही ग्रुप के पीछे पड़ा है । चुन - चुनकर मार रहा है हमारे साथियों को ।
" नगेन्द्र बोला ---- " अब तो लगता है , अगला नम्बर हमही में से किसी का होगा । "

" भोला शंकर हमारी मदद करें । " गुल्लू की आवाज ।
" वुद्धि भ्रष्ट हो गयी है तुम सबकी । " क्रोधित ऐरिक ने कहा ---- " क्या लोकेश भी हमारे ही दल का सदस्य था ? " "
" नहीं । "
" वह क्यों लापता हो गया ? "
" गायव ही तो हुआ है ! मरा तो नहीं ? "
" मर भी जायेगा । क्या पता ---- मर चुका हो ! केवल शव ही तो नहीं मिला है उसका ? "
" आप कहना क्या चाहते है ? "
" केवल इतना ----अपहरण अपराधी ने अचार डालने के लिए नहीं किया होगा उसका ! निश्चय ही मार डाला होगा । तात्पर्य ये कि आप लोगों की शंका निर्मूल है । अपराधी केवल हमारे ही दल के लोगों को नहीं मार रहा अपितु जो जहां हाथ लग रहा है , मार रहा है । यह संयोग है कि मरने वाले पांच हमारे साथी थे । हमें अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए ।

सामने मर्डर नजर आ रहा हो तो कौन धैर्य रख सकता है ? "
" धैर्य रखने के अतिरिक्त चारा भी क्या है ? एक पल को स्वीकार भी कर लें हमारे ही साथियों की हत्याएं हो रही है , तब भी कर क्या सकते हैं हम ? क्या लोगों को बता दें हम प्रश्न पत्र प्रकाशित करते थे ? सत्या की हत्या हमने की है ? वैसे ही सूली पर लटक जायेंगे । "
" हत्यारे का पता लगाने की कोशिश तो करनी चाहिए । "
" तीन - तीन गुप्तचर लगे पड़े है ! अब तो छावनी बन गया है विद्यालय ! वे ही पता नहीं लगा पा रहे हैं तो हम किस खेत की मूली है ? " " ये मीटिंग क्यों बुलाई गई है ? " गुल्लू ने पुछा।

" विशेष रूप से तुमसे वार्ता करने हेतु । " ऐरिक ने कहा ---- " वंद अल्प भोजनालय में विभा देवी ने तुम्हारे मुखारबिन्द से कुछ ऐसा तो नहीं उगलवा लिया जैसा नहीं उगलना चाहिए था ? " " भला हमसे क्या उगलवा सकती थी वो ? "
" क्या पूछ रही थी ? "
" दरवाजा खुलने पर उसने बताया तो था । "
" वही सब या अन्य कुछ ? " बंद खिड़की की दरारों से कान लगाने के पीछे हमारा उद्देश्य यह जानना था कि गुल्लू बंद कैंटीन में हुई बातें उन्हें बताता है या नहीं ? सो , उनका जिक्र उसने नहीं किया ।

करीब पन्द्रह मिनट बाद मीटिंग वर्खास्त हुई । ऐरिक वहीं रह गया । सो विभा भी यहीं रह गयी । जैकी ने एकता को फॉलो किया । मैंने गुल्लू को । एक बार फिर हम अलग हो गये ।

जैकी तो एकाध बार टकराया भी क्योंकि इधर गुल्लू तो अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद था ही , उधर एकता भी राजेश वाले ग्रुप के साथ पहरे पर थी । मगर विभा नहीं टकराई ।

मैं समझ गया ---- एरिक शायद अपने कमरे ही में है और विभा एक पल के लिए भी उससे दूर नहीं होना चाहती । दो बजे के बाद जैकी भी नहीं मिला । मैं जानता था ---- राजेश वाला ग्रुप दो बजे के बाद अपने - अपने कमरों में जाकर सो चुका है । समझ सकता था ---- जैकी एकता के कमरे के इर्द - गिर्द होगा । सख्त पहरे के कारण जैसी की उम्मीद थी ---- रात बगैर किसी दुर्घटना के गुजर गयी।
 
मगर यह मेरी कितनी बड़ी गलतफहमी थी इसका एहसास सुबह के आठ बजे हुआ । तब जब सारे कालिज में एक दरवाजा पीटने की आवाज गूंज उठी ।
सब चौंके ।
बल्कि जो जहां था वहीं उछल पड़ा ।
पुलिस वाले तो खैर ट्रेंड थे । उन्हें हुक्म था कि अन्य कहीं चाहे जो होता रहे , जिसकी ड्यूटी जहां है वहां से नहीं हिलना है । अतः वे सतर्क जरूर हुए मगर मुस्तैद रहे ।
स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स आवाज की दिशा में दौड़े । दौड़ने बालों में गुल्लू भी शामिल था । उसके पीछे मैं भी दौड़ा । भगदड़ सी मची हुई थी चारों तरफ । लक्ष्य था ---- गर्ल्स होस्टल !

हॉस्टल का फर्स्ट फ्लोर ।
एकता के कमरे के बंद दरवाजे पर पिले पड़े जब मैं पहुंचा तब जैकी वहां तैनात पुलिस वाले और स्टूडेन्ट्स जुनूनी अवस्था थे । उसे तोड़ डालने पर आमादा थे वे । वातावरण में उस पर होती चोटों की आवाज गूंज रही थी । जो सामने पड़ा मैंने उससे चीखकर पुछा ---- " हुआ क्या है ? "
" अनेक आवाजें लगाई जा चुकी हैं । पता नहीं एकता दरबाजा क्यों नहीं खोल रही ? कोई आवाज तक नहीं है अंदर । सबसे पहले संजय आया था उसे जगाने ! जब नहीं उठी तो ... "

भड़ाक ! " की जोरदार आवाज के साथ दरवाजा टूटा । एक साथ अनेक चीखें उभरी । मैं दरवाजे की तरफ लपका । उसी समय एरिक और विभा भी नजर आये ।
“ लाश - लाश ! " चीखती हुई ढेर सारी लड़कियों का रेला गैलरी में इधर - उधर भागा । मेरा और विभा का रुख अलग - अलग दिशाओं से कमरे की तरफ था । टूटा हुआ दरवाजा कमरे के अंदर फर्श पर पड़ा था । चौखट पार करके उधर से विभा ने , इधर से मैंने दरवाजे पर कदम रखे ही थे कि जहां के तहां जाम होकर रह गये । जैकी आदि पहले ही मूर्ति बने खड़े थे । दृश्य ही ऐसा था।

औरों की तो क्या कहूँ ? अपने सम्पूर्ण जिस्म में मैंने चोटियां सी रेंगती महसूस की । जहन सांय - सांय कर रहा था । क्या इतने पहरे के बावजूद वह सब हो सकता था ? हुआ था !

हमारे सामने हुआ पड़ा था । मगर कैसे ? मुझे लगा हत्यारा , हत्यारा नहीं जादुगर है । एकता के जिस्म पर झीनी नाइटी थी । डबल बेड पर चित अवस्था में लेटी हुई थी वह । आंखें बंद ! चेहरे पर शान्ति ।

होठो से नीले झाग न निकल रहे होते तो कोई नहीं कह सकता था वह मरी हुई है । वेड ही पर एक छोटी सी शीशी लुढ़की पड़ी थी । उस पर चिपके लेवल पर लिखा था CHALLENGE |

तो क्या आत्महत्या कर ली थी एकता ने ?
मगर क्यों ? क्या हो रहा था ? आत्महत्या ललिता ने भी की थी ।
उसके पीछे वजह थी चिन्नी । एकता ने ऐसा क्यों किया ? उसकी क्या मजबूरी थी ?

वही बात जैकी ने कही भी .... " दो बजे के बाद मेरे सामने कमरे में सोने आई थी ये पूरी तरह स्वस्थ मानसिक अवस्था में थी । मैं सोच तक नहीं सकता था सुसाइड कर लेगी ! "

विभा ने आगे बढ़कर गंभीर स्वर में कहा ---- " तुमसे किसने कहा ये सुसाइड है ? "
" सुसाइड नहीं तो क्या हत्या है ? "
" हन्नरेड परसेन्ट । "
" क - क्या बात कर रही है आप ? कमरे का एकमात्र दरवाजा अंदर से बंद था । सर्विस लेन की तरफ घुलने वाली खिड़की अब तक बंद है । जहर की वह शीशी बेड पर पड़ी है जिससे मौत हुई । हत्या तब कहीं जा सकती थी जब कोई और आकर मारे "
एकता को किसी और ही ने कत्ल किया है । "

" नामुमकिन हरगिज नहीं मान सकता विभा जी ! " पागलों की मानिन्द चीख पड़ा जैकी ---- " भला कैसे हो सकता है ऐसा ?
 
सारी रात मैं खुद पांच पुलिस वालों के साथ कमरे में बंद दरवाजे के बाहर गैलरी में तैनात रहा हूं । गैलरी में बीसों पुलिस वाले और थे । इस खिड़की के पार , नीचे पांच पुलिस वालों की ड्यूटी है । इस वक्त भी यहीं मुस्तैद खड़े होंगे वे । आदमी तो आदमी ---- सारी रात परिन्दे तक ने पर नहीं मारा है कमरे में ! और आप कह रही है कोई जहर दे गया ? कैसे मान लू ?

उस रोशनदान की तरफ देखो ! " विभा ने बेड के ठीक ऊपर छत में बने एक छोटे से रोशनदान की तरफ इशारा किया ।
" क्या बात कर रही हैं आप ? सारा रोशनदान ही छ : इंच बाई छ : इंच का है । उस पर ग्रिल भी लगी है ? क्या ग्रिल को उखाड़े वगैर वहां से कोई व्यक्ति कमरे में आ सकता ?
" मैं कह उठा ---- " ग्रिल को उखाड़कर भी नहीं आ सकता । "
" ग्रिल अपनी जगह मजबूती से लगी है । " ऐरिक ने कहा ।
“ जहर की बूँद तो आ सकती है ---- जिसने एकता की जान ली । "
" कमाल की बात कर रही हैं आप ? रोशनदान से जहर की बूंद आई और सीधी एकता के मुंह में गिरी । ऐसा कहीं हो सकता है।
" हो सकता है जैकी ! " विभा ने भेद भरी मुस्कान के साथ कहा ---- " मैं भी कर सकती हूं । "
" अ - आप कर सकती है ? द - दिखाइए करके । "
" दिखाती हूं । पहले ये बताओ ढ़क्कन कहां गया शीशी का ? "
“ यही कहीं होगा । लाश के नीचे भी दबा हो सकता है । "
“ कोशिश करो ढूंढने की ! याद रहे लाश ज्यादा हिलनी - डुलनी नहीं चाहिए ।
" जैकी ने ही क्यों , सबने ढक्कन ढूंढने की कोशिश की मगर नहीं मिला । जब सब हार मान चुके तो विभा ने कहा ---- " ढ़क्कन का न मिलना इस बात का सुबूत है कि ये सुसाइड नहीं है । होती तो ढक्कन कहां चला जाता ? तुम लोग यहीं रहना ! मैं बताती हूँ कैसे हुआ ? "

कहने के बाद वह घुमी और कमरे से बाहर निकल गयी । हम सब हकबकाए से खड़े सोच रहे थे कि पता नहीं वह क्या दिखाना चाहती है । करीब पांच मिनट बाद रोशनदान से विभा की आवाज उभरी ---- " ढक्कन यहां रोशनदान के नजदीक छत पर पड़ा है । "

सबकी नजर एक झटके से रोशनदान की तरफ उठ गई । विभा ने वहां से एक धागा लटकाना शुरू किया । सब सांस रोके उसकी कार्यवाई देख रहे थे । देखते ही देखते धागे का निचला सिरा इतना नीचे आ गया कि एकता के होठों के मध्य को चूमने लगा । अब विभा ने धागे के ऊपरी सिरे पर पानी की बूंद डाली । बूँद ने घागे पर नीचे की तरफ सफर शुरू किया । विभा ने कहा ---- " इसे तुम जहर की बूंद समझ सकते हो । " सबके दिल धाड़ - धाड़ कर रहे थे । नजरें धागे पर सफर कर रही बूंद पर जमीं थी।

और अंततः बूँद ' टप ' से एकता के होठों के मध्य गिर गई । " खेल समाप्त " कहने के साथ विभा ने धागा वापस खींचना शुरू करते हुए कहा ---- " अब आप ऊपर आ सकते है ।

यहां हत्यारे के फुट स्टैप्स तक मौजूद है । " हत्या की इस टेक्निक पर मैं ही क्या , सब हैरान थे ।
 
हम छत पर पहुंचे । भरपूर भीड़ के बावजूद कब्रिस्तान जैसी खामोशी छाई हुई थी । सब डरे और सहमे हुए थे । किसी के मुंह से बोल न फूट रहा था । छत पर बड़े स्पष्ट , सफेद रंग के फुट स्टेप्स बने हुए थे । ये निशान छत के एक कोने में पड़ी ढेर सारी कली से शुरू हुए थे ।

यह कली वह थी जो ' पुताई से बचने के बाद अक्सर छतों को चुने से बचाने के लिए डाल दी जाती है ।
रात भर पड़ी ओस के कारण कली में नर्मी थी । उसी नमी के कारण हत्यारे के जूतों के तली में लगी थी । कली पर जूतों के बड़े ही स्पष्ट निशान थे । वहां से निशान ' कदमों ' की शक्ल में रोशनदान की तरफ आये थे । और रोशनदान से गये थे पानी की टंकी की सीढ़ी तक । वहां के वाद --- अर्धात टंकी से नीचे उतरने का कोई चिन्ह नहीं था ।

मैं क्या उन निशानों द्वारा कही जा रही कहानी सभी समझ सकते थे । दिभा ने वही कहानी कही ---- " अंधेरे के कारण हत्यारा शायद कली के ढेर को देख न सका । वहां से कली उसके जूतों में लगी रोशनदान पर आया । वह किया जो कुछ देर पहले मैंने करके दिखाया । उसके बाद पानी की टंकी की तरफ गया । "

" टंकी की तरफ क्यों गया वह " जैकी ने पुछा ---- " और टंकी पर चढ़ने के निशान तो हैं , उतरने के नहीं ! क्या मतलब हुआ इसका ? "

" मेरे ख्याल से काम निपटाने के बाद उसे अपने जूतों में लगी कली का एहसास हो गया था इसलिए रोशनदान से सीथा टंकी पर पहुंचा । जूते धोये ! इसीलिए नीचे उतरने के निशान नहीं है ।
" बंसल कर उठा ---- " समझ में नहीं आ रहा सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने से फायदा क्या होता है ? "
" विभा जी ! " जैकी ने पुछा ---- " वो ढक्कन कहाँ है ?

ये रहा । " विभा अपने हाथों में मौजूद एक हरा ढक्कन उसे देती बोली । ढक्कन लेते हुए जैकी ने पूछा -... " आपने इसे उठा क्यों लिया ? "

" इतनी वारदातों के बाद जान चुके हैं । हत्यारा ग्लस पहने हुए होता है । किसी वस्तु पर उसकी अंगुलियों के निशान होने का सवाल ही नहीं उठता । "
“ मगर विभा जी ! " ढक्कन को बहुत गौर से देखते जैकी ने कहा -- " मुझे यह ढक्कन एकता के बेड पर पड़ी शीशी का नहीं लगता । " " यही देखना चाहती थी मैं --- यह कि तुम्हें भी वहीं डाउट होता है या नहीं जो मुझे हुआ है ।

शीशी के मुकाबले ढक्कन थोड़ा बड़ा है । यदि उसका नहीं है तो बड़ी विचित्र बात है । कौन - सी शीशी का ढक्कन है ये और यहां क्यों डाला गया ? साथ ही सवाल उठता है उस शीशी का ढक्कन कहां गया ?

" जैकी ने रोशनदन के जरिए कमरे में झाँका। बेड पर लेटी एकता की लाश और बगल में पड़ी शीशी साफ नजर आ रही थी ।
विभा ने कहा ---- " शुरू में , जब मुझे यह लग रहा था , ढ़क्कन उसी शीशी का है तब मेरे दिमाग में यह सवाल था कि हत्यारे ने अपना काम करके शीशी बेड पर और ढ़क्कन यहां क्यों डाला ? धागे की तरह अपने साथ ले क्यों नहीं गया ? या दोनों को एक जगह क्यों नहीं डाला ? लगता था हत्यारा अपना काम करने के साथ हमसे खिलवाड़ भी कर रहा है मगर यदि ये ढक्कन उस शीशी का नहीं है तो खिलवाड़ भी ऊंचे दर्जे का है । "
" क्या मैं शीशी को यहाँ मंगा सकता हूं विभा जी ? "
" जो शक हुआ है , उसकी पुष्टि के लिए जरूरी है । "
 
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