Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - Page 9 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट

“कुछ लोग घर चले गये, कुछ गश्‍त की ड्‌यूटी पर लगाये गये थे लेकिन पता नहीं वो गश्‍त कर रहे हैं या घर पर बैठे हैं” - भाटे एक क्षण ठिठका, फिर बोला - “या मौसम वाले महकमे की वार्निंग पर अमल करते आइलैंड से नक्‍की कर गये । खाली एक हवलदार जगन खत्री को महाबोले का हुक्‍म हुआ था कि वो फौरन, सब काम छोड़कर, ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ पहुंचे ।”
“क्‍यों ?”
“मालूम नहीं । महाबोले साब ये भी बोला था कि बाद में वो भी उधरीच पहुंचेगा । अभी पता नहीं पहुंचा कि नहीं ! उधर है कि नहीं !”

“वहां हो क्‍या रहा है ?”
“मेरे को पक्‍की करके नहीं मालूम पण जो मालूम, वो बोलता है । उधर गोवानी बॉस फ्रांसिस मैग्‍नारो का बहुत कीमती सामान, जो वो उधर से किसी सेफ जगह पर शिफ्ट करना मांगता है ।”
“सेफ जगह क्‍या ?”
“पक्‍की करके नहीं मालूम । वैसे ऐसी एक जगह तो झील के पार मैग्‍नारो साब का मैंशन ही है । मैग्‍नारो साब को मोंगता होयेंगा तो सामान आइलैंड से दूर भी, कहीं भी, ले जाया जा सकता है ।”
“इस हाल में !”
“हां । बहुत पावरफुल मोटर बोट है मैग्‍नारो साहब के पास । किसी भी मौसम का मुकाबला कर सकती है ।”

“आई सी ।”
“अभी और बोले तो ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ भी कोई कम सेफ नहीं । इमारत की बुनियाद बहुत मजबूत है और तूफान मर्जी जोर मारे, दो मंजिल तक नहीं पहुंच सकेगा ।”
“हूं ।”
कुछ क्षण कोई कुछ न बोला ।
उस दौरान नीलेश ने दरवाजे पर जाकर बाहर के माहौल का मुआयना किया ।
हालात उसे बहुत चिंताजनक लगे ।
वो वापिस लौटा ।
“लौट जाने की जो आप्‍शन तुम्‍हारे पास थी” - वो श्‍यामला से बोला - “समझ लो कि वो गयी । मुझे नहीं लगता कि अब नेलसन एवेन्‍यू वापिस जा सकोगी ।”
श्‍यामला के चहेरे का रंग फीका पड़ा । चिंतित भाव से उसने सह‍मति में सिर हिलाया ।

“ऊपर क्‍या है ?” - नीलेश ने भाटे से पूछा ।
“छत है ।” - परेशानहाल भाटे बोला ।
“वो तो होगी ही ! छत के अलावा कुछ नहीं है ?”
“एक बरसाती है ।”
“वहां क्‍या है ?”
“कुछ नहीं । बस, कुछ पुराना फर्नीचर है वर्ना खाली पड़ी है ।”
“पानी का लैवल लगातार बढ़ रहा है । फोन तुमने बोला ही है कि डैड पड़ा है । यहां टिकने का कोई फायदा नहीं । मैडम को ऊपर ले कर जाओ ।”
नीलेश के स्‍वर में ऐसी निर्णायकता थी कि श्‍यामला ने नेत्र फैला कर उसकी तरफ रेखा ।

नीलेश ने जानबूझ कर उससे आंख नहीं मिलाई ।
“तुम क्‍या करोगे?” - वो आंदोलित स्‍वर में बोली - “कहीं तुम्‍हारा इरादा...ओ माई गॉड, यू आर ए मैड मैन !”
“कोई कोई काम ऐसा होता है कि दीवानगी में ही मुमकिन हो पाता है ।”
“तुम यकीनन पागल हो । पागल हो और अकेले हो, अकेले उनका मुकाबला हरगिज न‍हीं कर पाओगे । जाने दो उन्‍हें । निकल जाने दो ।”
नीलेश ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाया ।”
“तुम अपनी मौत खुद बुला रहे हो ।”
“मौत में ही जिंदगी है । मौत की राह पर ही मेरी वो मंजिल है जो मेरी बिगड़ी तकदीर संवार सकती है । ये मौका मैंने खो दिया तो ऐसा दूसरा मौका मुझे ताजिंदगी नहीं मिलेगा । मैंने अपने पापों का प्रायश्‍चित करना है जो या अभी होगा या कभी नहीं होगा ।”

“ये दीवानगी है । सरासर दीवानगी है । अरे, जान है तो जहान है ।”
“मैं ऐसे जहान का तालिब नहीं, मेरे कुकर्मों ने जिसमें मुझे किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा । करप्‍ट कॉप बन कर जिल्‍लत का जो बद्नुमा दाग मैंने खुद अपनी पेशानी पर लगाया, उसे मैं ही धो सकता हूं । और अब मौका है ऐसा करने का । मेरे आचार्य जी ने कहा था कि सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो भूला नहीं कहलाता । मैं शाम को घर आना चाहता हूं ताकि भूला न कहलाऊं । मैं अपने गुनाह बख्‍शवाना चाहता हूं, मैं नीलेश गोखले दि स्‍ट्रेट कॉप, दि ऑनेस्‍ट कॉप कहलाना चाहता हूं । मैं अपनी जिंदगी की किताब के वो वरका फाड़ देना चाहता हूं जिनमें मेरे करमों पर कालिख पुती है । जिस नौकरी ने मुझे बर्बाद किया, अब वो ही मुझे आबाद करेगी । जिस नौकरी ने मुझे बर्बाद किया, अब वो ही मुझे आबाद करेगी । जिस नौकरी ने मेरी हस्‍ती मिटा दी, अब वो ही मेरी हस्‍ती फिर से बनायेगी । जिस नौकरी ने मुझे कलंकित किया, अब वो ही मेरे पाप धोयेगी । मैं ये मौका नहीं गंवा सकता । दिस इज नाओ ऑर नैवर फार मी ।”

“यू...यू आर ए कॉप !”
“मर गया तो दो मुट्‌ठी खाक, जिंदा रहा तो नीलेश गोखले, इंस्‍पेक्‍टर मुम्‍बई पुलिस !”
“तुम पुलिस इंस्‍पेक्‍टर हो !”
“अभी नहीं हूं । कभी था । आगे होने की उम्‍मीद है । जाता हूं ।”
“एक बात सुन के जाओ ।”
नीलेश ठिठका, उसने घूमकर श्‍यामला की तरफ देखा ।
“मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं ।” - वो भर्राये कंठ से बोली - “पहले थी तो समझो अब नहीं है ।”
“थैंक्‍यू ।”
“तुम्‍हारी कामयाबी की दुआ करना मेरा अपने पिता का बुरा चाहना होगा इसलिये वो दुआ तो मेरे मुंह से नहीं निकल सकती लेकिन मैं तुम्‍हारे लौटने का इंतजार करूंगी ।”

आखिरी शब्‍द कहते कहते उसका गला रुंध गया । तत्‍काल उसने मुंह फेर लिया ।
“जाओ ।” - वो बोला ।
“पहले तुम जाओ ।” - पीठ फेरे फेरे वो बोली ।
“भाटे !” - नीलेश भाटे से सम्‍बोधित हुआ - “मैडम को ऊपर ले के जा ।”
जो डायलॉग अभी भाटे सुन कर हटा था, उससे वो मंत्रमुग्‍ध था । वो इस रहस्‍योद्‌घाटन से चमत्‍कृत था कि गोखले सरकारी महज आदमी नहीं था, उसके बॉस महाबोले के बराबर के रैंक का पुलिस आफिसर था । इंस्‍पेक्‍टर था । वो उछल कर खड़ा हुआ और श्‍यामला की बांह पकड़ कर उसे भीतर को ले चला ।

दोनों दृष्टि से ओझल हो गये तो नीलेश एसएचओ के कमरे में पहुंचा । कमरे को बाहर से कुंडी लगी हुई थी जिसको खोल कर वो भीतर दाखिल हुअ । अपने पहले फेरे में उसने वहां शीशे की एक अलमारी देखी थी जहां थाने के हथियार बंद रहते थे । वो उस अलमारी पर पहुंचा तो उसने पाया कि उस पर एक बड़ा सा पीतल का ताला झूल रहा था । भीतर चार रायफलें और बैल्‍ट होल्‍स्‍टर में एक पिस्‍तौल टंगी हुई थी ।
उसने ताले को पकड़ कर दो तीन झटके दिये तो महसूस किया कि वो यूं ही खुल जाने वाला नहीं था । उसने इधर उधर निगाह दौड़ाई तो उसे परे एक कैबिनेट पर एक पीतल का फूलदान पड़ा दिखाई दिया । वो कैबिनेट के करीब पहुंचा, उसने नकली फूल निकाल कर फर्श पर फेंके और फूलदान काबू में कर लिया । वो वापिस शीशे की अलमारी पर पहुंचा । उसने फूलदान को मुंह की तरफ से पकड़ा और भारी पेंदे का भीषण प्रहार एक शीशे पर किया ।

शीशा टूटने की बहुत जोर की आवाज हुई ।
पता नहीं आवाज तब तक शायद बरसाती में पहुंच चुके भाटे तक पहुंची नहीं या उसने जानबूझ कर आवाज को नजरअंदाज किया, उसके लौटने की कोई आहट नीलेश तक न पहुंची । उसने पिस्‍तौल को काबू में किया, वहीं पड़ी गोलियों की एक एक्‍स्‍ट्रा मैगजीन को काबू में किया और वहां से निकल पड़ा ।
वो इमारत से बाहर निकला और तेज बारिश में और टखनों से ऊपर पहुंचते पानी में चलता आगे बढ़ा ।
श्‍यामला की कार के करीब पहुंच कर वो ठिठका ।
इग्‍नीशन की चाबी भीतर इग्‍नीशन में लटक रही थी ।

उसने उधर का दरवाजा ट्राई किया तो उसे अनलॉक्‍ड पाया ।
वो कार में सवार हो गया । उसने इंजन ऑन किया तो वो फौरन गर्जा । उसने चैन की सांस ली और कार को यू टर्न दे कर सड़क पर डाला ।
सावधानी से कार चलाता एक्‍सीलेटर पर जोर रखता, ताकि लगभग एग्‍जास्‍ट तक पहुंचते पानी की वजह से इंजन बंद न हो जाये, आखिर वो वहां पहुंचा जहां सड़क के आरपार, आमने सामने कोंसिका क्‍लब और ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ थे ।
कोंसिका क्‍लब बंद थी और उस घड़ी अंधकार के गर्त्त में डूबी हुई थी अलबत्ता ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ की किसी किसी-खास तौर से दूसरी मंजिल की-खिड़की में रोशनी थी ।

उसने कार को ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ वाली साइड में खड़ा किया और सड़क पर दोनों तरफ दूर दूर तक निगाह दौड़ाई ।
वहां की निगरानी पर तैनात कोस्‍ट गार्ड्‌स का कहीं नामोनिशान नहीं था ।
होता भी कैसे ! उस तूफानी मौसम में कैसे तो वो ड्‌यूटी करते और प्रत्‍यक्षत: क्‍या रखा था वहां निगरानी के लिये !
ठीक !
जरूर वो वापिस बुला लिये गये थे ।
वो कार से निकला और लपक कर ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ की लॉबी के विशाल ग्‍लास डोर पर पहुंचा ।
 
ग्‍लास डोर को उसने मजबूती से बंद पाया । तूफान के पानी की बौछारें उससे टकरा टकरा कर लौट रही थीं । दरवाजे के नीचे से पानी भीतर भी दाखिल हो रहा था और भीतर हाल का फर्श पानी में डूबा दिखाई दे रहा था ।

जाहिर था कि होटल बंद था, वहां ठहरे मेहमान कब के वहां से कूच कर चुके थे । जो हाल वहां दिखाई दे रहा था, उसमें होटल चलाये रखा जा ही नहीं सकता था । वहां से मेहमान ही नहीं, सारा स्‍टाफ भी कूच कर चुका था इसलिये लॉबी भां भां कर रही थी ।
वो दरवाजे पर से हटा और फिर इमारत की दीवार के साथ सट कर चलता उसके सिरे पर पहुंचा जहां कि पिछवाड़े को जाती गली थी । गली में घुटने घुटने पानी में चलता वो पिछवाड़े में पहुंचा जहां कि आगे मेन रोड से पार समुद्र था जिसमें उस वक्‍त कई कई फुट ऊंची लहरें उठ रही थीं । पीछे ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ का उसके विशाल ओपन बैकयार्ड से आगे अपना प्राइवेट पायर था जो कि उफनते पानी में कहीं गुम था । पानी का बहाव इतना तेज था कि नीलेश को दीवार का सहारा न होता तो लहरें साथ बहा के ले गयी होतीं ।

गली को छोड़ कर वो इमारत के पिछवाड़े में पहुंचा तो उसे अहसास हुआ कि पिछवाड़े का एक दरवाजा खुला था और उसमें रोशनी थी । उसके देखते देखते महाबोले और जगन खत्री दायें बायें से एक ट्रंक उठाये बाहर निकले और पानी में डोलती एक मोटर बोट की ओर बढ़े । मोटर बोट पायर से कहीं बंधी हुई थी इसलिये उसकी वजह से ही अंदाजा किया जा सकता था कि पायर कहां था ।
“स्‍टाप !” - वो चिल्‍लाया ।
तूफान के शोर में उसकी आवाज किसी ने न सुनी ।
नीलेश ने गन निकाल कर हाथ में ले ली और पहले से ज्‍यादा जोर से चिल्‍लाया - “थाम्‍बा !”

इस बार बावाज उन दोनों के कानों में पड़ी । दोनों चिहुंक कर घूमे और उन्‍होंने आवाज की दिशा में देखा । नीमअंधेरे में भी शायद उन्‍होंने नीलेश को पहचाना क्‍योंकि ट्रंक उनके हाथों से छूटते छूटते बचा ।
नीलेश उनके करीब पहुंचा ।
“वापिस !” - वो चिल्‍लाया - “वापिस भीतर चलो ! ट्रंक समेत !”
ट्रंक थामे दोनों सकते की सी हालत में खड़े रहे, किसी ने हिलने की कोशिश न की ।
नीलेश ने अपना गन वाला हाथ अपने सामने यूं लहराया कि उन्‍हें वो जरूर दिखाई दे जाती । वैसे ये बात भी उसके फायदे की थी कि जब तक वो भारी ट्रंक उठाये था, अपने हथियार वो नहीं निकाल सकते थे ।

फिर उसे लगा जैसे दोनों आपस में कोई तकरार कर रहे हों । साफ लगता था कि एसएचओ कुछ कह रहा था जिस मातहत को-जिसकी गर्दन निरंतर इंकार में हिल रही थी-इत्तफाक नहीं था ।
नीलेश ने हवा में एक फायर किया ।
फायर की आवाज तूफान में भी न दबी ।
तत्‍काल वो घूमे और वापिस खुले, रोशन, दरवाजे की ओर बढे़ ।
वे वापिस भीतर पहुंच गये तो नीलेश भी उनके पीछे भीतर दाखिल हुआ ।
“गोखले !” - महाबोले तड़पता सा बोला - “तेरी ये मजाल !”
“ट्रंक होटल का तो हो नहीं सकता ।” - नीलेश शांति से बोला - “क्‍योंकि होटल का सामान आइलैंड का थानेदार तो उठाने से रहा ! लिहाजा जाहिर है कि ये कैसीनो का सामान है, मैग्‍नारो का माल है । ले के चलो सैकंड फ्लोर पर वापिस ।”

“पागल हुआ है ! ये यहां से निकलने का टाइम है या वापिस घुसने का टाइम है !”
“ये रावण की लंका है । बहुत मजबूत है । इसको कुछ नहीं होने वाला । चलो ।”
“हम सब मारे जायेंगे ।” - हवलदार खत्री दयनीय स्‍वर में बोला ।
“तो क्‍या बुरा होगा ! पाप का अंत, पापी का अंत जिस हाल में हो, वही अच्‍छा ।”
“ईडियट !” - महाबोले गुर्राया - “साथ में तू भी ।”
“तो क्‍या हुआ ! गेहुं के साथ घुन पिसता ही है । नाओ, कम आन ! मूव इट !”
धमकी के तौर पर नीलेश ने मजबूती से गन उनकी तरफ तानी ।

“थानेदार पर गन तानने की, उस पर हुक्‍म दनदनाने की मजाल किसी ऐरे गैरे की नहीं हो सकती । क्‍या बला है तू ?”
“इस वक्‍त तो बला ही हूं...तुम्‍हारे लिये ।”
“सीक्रेट एजेंट !”
“अब काहे का सीक्रेट ! अब तो तमाम राज खुल चुके हैं । जो नहीं खुले वो अब खुल जायेंगे ।”
“ऐसा है तो बकता क्‍यों नहीं, असल में तू कौन है ?”
“हिलो दोनों जने । दोबारा न कहना पड़े ।”
मजबूरन वो अपने स्‍थान से हिले और पूर्ववत्‍ आजू बाजू से ट्रंक उठाये संगमरमर की विशाल, भव्‍य, आबनूस की लकड़ी से सुसज्जित रेलिंग वाली अर्धवृत्ताकार सीढ़ियों की ओर बढ़े ।

पहली सूखी सीढ़ी पर उनके कदम पड़े तो नीलेश भी उनके पीछे आगे बढ़ा ।
भारी कदमों से भारी ट्रंक उठाये दोनों पुलिसिये, अफसर और मातहत, सीढ़ियां चढ़ते गये ।
आखिर वो दूसरी मंजिल पर और आगे एक विशाल दरवाजे पर पहुंचे जिसके आगे एक बड़ा हाल था ।
हाल की उस घड़ी की पोजीशन ने उसे बहुत हैरान किया । वो हाल खाली मिलने की उम्‍मीद कर रहा था - बड़ी हद बिलियर्ड की टेबल्‍स वहां तब भी हो सकती थीं लेकिन बमय रॉलेट व्‍हील, स्‍लॉट मैशींस, ब्‍लैकजैक टेबल्‍स वहां मिनी कैसीनो का तमाम साजोसामान यथास्‍थान, यथापूर्व मौजूद था ।

क्‍या माजरा था !
दोनों भीतर दाखिल हुए और वहीं दरवाजे पर ही उन्‍होंने ट्रंक हाथों से निकल जाने दिया । फर्श पर गिरने पर जैसी ट्रंक ने आवाज की, उससे साफ पता लगता था कि वो बहुत भारी था ।
गन से उनको कवर किये नीलेश उनके पीछे हाल में दाखिल हुआ ।
तभी हाल के परले सिरे पर का एक दरवाजा खुला और मुंह में एक लम्‍बा, फैंसी सिगार दबाये फ्रांसिस मैग्‍नारो ने उससे बाहर कदम रखा ।
उसकी निगाह दोनों पुलिसियों के बीच फर्श पर पड़े ट्रंक पर पड़ी तो उसके चेहरे पर सख्‍त हैरानी के भाव आये ।

“सांता मारिया !” - उसके मुंह से निकला - “ये मैं क्‍या देख रहा है ! अभी तुम दोनों साला इधरीच है ट्रंक के साथ !”
“जा के लौटे ।” - महाबोले पस्‍त लहजे से बोला ।
“वजह ?”
“ये है ।” - महाबोले ने नीलेश की तरफ इशारा किया ।
“ये कौन है ?”
“नीलेश गोखले ! जिससे आप मिलना चाहते थे ।”
“ओह !” - मैग्‍नारो ने बदले मिजाज के साथ नीलेश का मुआयना किया - “ओह !”
“हम इमारत से बाहर थे, पायर की ओर बढ़ रहे थे, बोट पर सवार होने वाले थे...ये आ गया । गन दिखा कर हमें धमकी से इधर वापिस ले कर आया । मरे जा रहे थे न इससे मिलने को ! मिलो अब ! गले लग के मिलो ।”

मैग्‍नारो के चेहरे पर उलझन और अनिश्‍चय के भाव आये ।
“रोनी !” - एकाएक वो उच्‍च स्‍वर में बोला ।
उसके पीछे से निकल कर एक और आदमी प्रकट हुआ ।
रोनी डिसूजा ! गोवानी रैकेटियर का बॉडीगार्ड !
डिसूजा का हाथ शोल्‍डर होल्‍स्‍टर में मौजूद गन की तरफ लपका ।
“फ्रीज !” - नीलेश तीखे स्वर में बोला - “ऑर आई शूट युअर बॉस !”
डिसूजा हड़बड़ाया ।
“तुम्‍हारा हाथ गन पर अभी पहुंचेगा, मेरे हाथ में पहले ही गन है । जब तक तुम्‍हारा हाथ गन पर पड़ेगा, गन निकालोगे, हाथ सीधा करोगे, तब तक बॉस गॉड को सलाम बोल रहा होगा । क्‍या !”

डिसूजा का हाथ रास्‍ते में ही फ्रीज हो गया, व्‍याकुल भाव से उसने मैग्‍नारो की तरफ देखा लेकिन मैग्‍नारो का चेहरा सपाट था, उस पर अपने बॉडीगार्ड के लिये कोई हिदायत दर्ज नहीं थी, कोई प्रोत्‍साहन दर्ज नहीं था ।
“ड्रॉप युअर हैण्‍ड्स बाई युअर साइड्स ।” - नीलेश ने आदेश दिया ।
चेहरे पर तीव्र अनिच्‍छा और पराजय के भाव लिये डिसूजा ने आदेश का पालन किया ।
“बॉस से परे हट के खड़ा हो ।”
 
डिसूजा हटा ।
“तुम दोनों” - उसने पुलिसियों को आदेश दिया - “ट्रंक के पास से हटो और जा कर डिसूजा के पास खड़े होवो ।”

“डीसीपी पाटिल का कुत्ता !” - दांत पीसता महाबोले बोला - “मेरे पर भौंकता है ! जानता नहीं...”
नीलेश न फायर किया ।
गोली महाबोले के कान को हवा देती गुजरी ।
तत्‍काल उसके चेहरे का रंग उड़ा, कस बल ढीले पड़े । भारी कदमों से चलता वो डिसूजा के करीब जा खड़ा हुआ ।
थर थर कांपता हवलदार खत्री पहले ही वहां खड़ा था । गोली की आवाज सुनते ही उसे पंख लग गये थे और वो उड़ कर निर्देशित स्‍थान पर पहुंचा था ।
नीलेश की अक्‍ल गवाही दे रही थी कि वो लोग हथियारबंद हो सकते थे और उसे उनको उनके हथियारों से महरूम करना चाहिये था लेकिन वो खुद आगे बढ़ कर, एक एक के पास जा कर ऐसा नहीं कर सकता था क्‍योंकि उसकी तवज्‍जो का मरकज जब एक जना होता तो बाकी तीन कोई भी करतब करके दिखा सकते थे । वो उनको अपने हथियार निकाल कर परे फेंकने को बोलता तो जब ऐसा एक जना कर रहा होता और उसकी निगाह उस पर होती तो बाकी तीन में से कोई अपना हथियार इस्‍तेमाल में लाने का हौसला कर सकता था ।

उसे मैग्‍नारो का दायां हाथ हिलता दिखाई दिया ।
“खबरदार !” - नीलेश चेतावनीभरे स्‍वर में बोला ।
“है न !” - मैग्‍नारो यूं मुस्‍कराता बोला जैसे किसी पार्टी में शिरकत कर रहा हो, उसने हाथ उठा कर अपना सिगार मुह से निकाला - “तो, माई डियर, तुम होते हो गोखले !”
“हां । मैं होता हूं गोखले । इंस्‍पेक्‍टर, मुम्‍बई पुलिस ।”
“बॉस” - महाबोले आवेशपूर्ण स्‍वर में बोला - “मैं पहले ही बोला कि ये...”
“शट अप !”
महाबोले खामोश हो गया ।
“अभी मैं बात करता है न !”
महाबोले ने सहमति में सिर हिलाया ।
“मैं कौन !” - मैग्‍नारो वापिस नीलेश से सम्‍बोधित हुआ - “मालूम ! नहीं मालूम तो बोलता है । मैं फ्रांसिस मैग्‍नारो । फ्रॉम गोवा । कभी नाम सुना ?”

“सुना ।” - नीलेश शांति से बोला ।
“फिर भी हूल देता है मेरे को !”
“देता है ।”
“यू आर मेकिंग ए बिग मिस्‍टेक...”
“नो ! यू आर मेकिंग ए बिग मिस्टेक ...”
“मेरा क्‍या मिस्‍टेक ?”
“रेड को नहीं पहचाना ।”
“रेड !”
“ऐग्‍जैक्‍टली !”
“रेड बीईंग कन‍डक्टिड बाई वन मैन ! साला एक सिंगल भीङू रेड मारता है ! रेड मारता है कि जोक मारता है ! क्‍या अथारिटी है तुम्‍हारा रेड मारने का ?”
“बॉस” - महाबोले दबे स्‍वर में बोला - “अभी ये बोला न ये पुलिस आफिसर...”
“बोले तो तुम्‍हेरा बिरादरी भाई !”
“बॉस...”

“इस वास्‍ते अभी तुम इसकी तरफ ! ब्‍लडी मैग्‍नारो कैन गो टु हैल ! नो ?”
“बॉस, ऐसी कोई बात नहीं ।”
“बोलता है ऐसा कोई बात नहीं । गोखले, सुनता है ! देखता है ! मैं साला गलत जगह पर गलत भीङू लोगों के भरोसे अपना रोकड़ा-ब्‍लडी बिग मनी-इनवैस्‍ट किया । अभी मेरे को अपना मिस्‍टेक्‍ट करैक्ट करने का । गोखले, यू टेक इट ईजी विद दैट गन आफ युअर्स । जस्ट रिलैक्‍स !”
“कोई भीङू कोई श्‍यानपंती न करे” - नीलेश सहज भाव से बोला - “तो मैं पर्फेक्‍टली रिलैक्‍स्‍ड है ।”
“गुड । पण इधर चार भीङू लोगों को अकेला कैसे हैंडल करेगा ? कब तक करेगा ?”

“नहीं कर सकता ।” - महाबोले जोश से बोला - “ये अकेला हम चार का मुकाबला नहीं कर सकता ।”
“यू बैटर शट अप ! ये अकेला नहीं हो सकता । ये रेड बोला कि नहीं बोला ?”
“वो तो ये बोला लेकिन...”
“तुम बोला कि नहीं बोला कि ये पुलिस आफिसर ! कैसे अकेला होयेंगा ! ऐसा आपरेशन का वास्‍ते एक पुलिस आफिसर विदाउट बैक अप कैसे एक्‍ट करेंगा ! तुम साला खुद पुलिस आफिसर, किधर रेड मारेंगा तो अकेला जायेंगा !”
महाबोले ने जवाब के लिये मुंह खोला फिर होंठ भींच लिये ।
“स्‍टे पुट, महाबोले । अभी तुम्‍हेरा स्‍मार्ट एक्‍ट नहीं मांगता मैं । जब टेम था तब कुछ किया नहीं, अभी गलत टेम पर होशियारी बताता है ।”

महाबोले ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“गोखले !” - मैग्‍नारो ने वापिस गोखले की तरफ तवज्‍जो दी - “महाबोले का माफिक मैं खाली पीली बोम नहीं मारने का । टु दि प्‍वायंट बात करने का । तुम इधर रॉलेट टेबल्‍स देखता है, स्‍लाट मैशीन्‍स देखता है, जिनको पहले का माफिक कंसील करने का मेरे को टेम नहीं मिला । मैं सीरियस करके एफर्ट भी न किया क्‍योंकि जब कभी भी इधर कोई अंडरकवर एजेंट आइलैंड की इललीगल एक्टिविटीज की टोह में आता है, इधर एडवांस में मालूम पड़ा...”
“मैं बोला...” - महाबोले बोले बिना न रह सका ।
“टेम पर न बोला । प्रीसाइजली न बोला । खाली शक जाहिर किया अपना । दैट टू ओनली यस्‍टरडे । टू वीक्‍स से ये भीङू इधर है । साला तुम ही आलवेज एडवोकेट करता था ये भीङू अंडरकवर एजेंट नहीं होना सकता । बोले तो तुम साला इनकम्‍पीटेंट बिजनेस पार्टनर...”

“ऐसा पहले तो कभी न बोला !”
“पहले साला गॉड्स एक्‍ट ने तुम्‍हेरा इनकम्‍पीटेंस कंसील करके रखा । कभी तो तुम्‍हेरा इनकम्‍पीटेंस एक्‍सपोज होने का था । अभी हुआ न !”
“ये जुल्म है । ज्यादती है ! मैं इतना आउट आफ दि वे जाकर आपको इधर अकामोडेट किया, हमेशा प्रोटेक्शन दिया...”
“ये थैंक्‍यू बोलता है । अभी आउट आफ दि वे जाकर खामोश रहने का । क्‍या !”
महाबोले के जबड़े कस गये ।
“गोखले, तभी क्‍या बोलता था मैं ! हां, इधर का खुफिया कैसीनो इस टेम एक्‍सपोज्‍ड है । इस टेम कोई प्रूफ साला जरूरी हैइच नहीं कि इधर कैसीनो चलाता था । तुम बोला रेड ! बड़ा बोल बोला तो खाली पीली बोम मारने को तो नहीं बोला होयेंगा ! इसलिये मेरे को पक्‍की कि रेड का सरकारी परवाना - वारंट - ले के आया होयेंगा, बैकअप के लिये टीम ले के आया होयेंगा जोकि बाहर किधर तुम्‍हेरे सिग्‍नल का वेट करता होयेंगा । पण बोले तो मैं अपना डिफेंस में अभी कुछ बोलना मांगता है । रिक्‍वेस्‍ट करता है कि सुनने का ।”

“क्‍या ? क्‍या सुनने का ? कहना चाहते हो ?”
“मैं तुम्‍हारा हैल्‍प से, बाले तो एक्टिव कोआपरेशन से, स्‍टोरी सैट करना मांगता है ।”
“कैसी हैल्‍प ? कैसी कोआपरेशन ? कैसी स्‍टोरी ?”
 
“बोलता है । पण पहले ज्‍यास्‍ती जरूरी बात बोलता है । मैग्‍नारो फ्री सर्विस नहीं मांगता...किसी से भी फ्री सर्विस नहीं मांगता, तुम तो फिर साला इम्‍पार्टेंट करके भीङू है । क्‍या !”
“मैं समझा नहीं ।”
“मैग्‍नारो पेज फार दि सर्विसिज रेंडर्ड । हैण्‍डसमली पे करता है । देखना तुम ।”
“कम टु दि स्‍टोरी ।”
“जो मैं सैट करना मांगता है । और तुम से ओके कराना मांगता है ।”

“वाटऐवर । कम टु इट ।”
“ओके । गोखले, तुम इधर ये सब गेम्‍बलिंग इक्‍विपमेंट देखा, तुमको सरपराइज हुआ ?”
“हुआ । तो ?”
“ऐसीच सरपराइज मेरे को हुआ ।”
“क्‍या बोला ?”
“मैं इधर होटल चलाता है - साला आइलैंड का ओनली रेटिड होटल चलाता है । मेरे को साला बिल्‍कुल नहीं मालूम था कि मेरा होटल मैनेजर स्टाफ के साथ मिल कर इधर साला सीक्रेटली कैसीनो चलाता था और मेरे को साला हवा नहीं लगने देता था ।”
“तुम कहना चाहते हो तुम्‍हें नहीं मालूम था इधर होटल के सैकण्‍ड फ्लोर पर कैसीनो चलता था ?”
“यहीच बोला मैं । बिल्‍कुल नहीं मालूम । मेरे मैनेजर और स्‍टाफ ने मिल कर जो किया, मेरा नॉलेज के बिना किया । मेरे को धोखा दिया बरोबर । अभी वो तमाम का तमाम एम्‍पलाई इधर से नक्‍की कर गया और साला मेरे को पीछे म्‍यूजिक फेस करने का वास्‍ते छोड़ गया ।”

“तो ये है वो स्‍टोरी जो तुम सैट करना चाहते हो ?”
“तुम्‍हेरा एक्टिव कोआपरेशन से ।”
“क्‍या एक्टिव कोआपरेशन ?”
“हज्‍म करो । स्‍वैलो इट हुक, लाइन एण्‍ड सिंकर ।”
“दिस इज ए टाल आर्डर ।”
“आई विल मेक ए टाल पेमेंट ।”
“मुझे तुमसे हमदर्दी है...”
“थैंक्‍यू, आफिसर !”
“...साथ में खुशी है कि जिस मुसीबत में इस घड़ी हो, उससे नावाकिफ नहीं हो !”
“मुसीबत ! पण अभी तो तुम बोला तुम्‍हेरे को मेरे से हमदर्दी !”
“हमदर्दी सजा से नहीं बचा सकती ।”
“सजा ! पण मैं क्‍या किया ! जो किया मेरा मैनेजर किया । उसका कंट्रोल्‍ड होटल स्‍टाफ किया । होटल मैं किधर चलाता है ! मैनेजर चलाता है । मैं खाली रोकड़ा खर्चा किया । प्रोजेक्‍ट फाइनांस किया ।”

“जिम्‍मेदारी मालिक की होती है, जो कि तुम हो ।”
“राइट, राइट । पण अभी हम जो स्‍टोरी सैट किया...”
“नो ‘हम’ । खाली तुम ।”
“हूं । तो ये बात है !”
“अभी आयी बात समझ में ।”
“बोले तो...अभी क्‍या करने का ?”
“मालिक को गिरफ्तार करने का । फ्रांसिस मैग्‍नारो, यू आर अंडर अरैस्‍ट ।”
“तुम साला आउटसाइडर । यू हैव नो राइट टू अरैस्‍ट मी । इधर का इंचार्ज महाबोले । इसको राइट है मेरे को अरैस्‍ट करने का और ये...”
“तुम्‍हारा चमचा है । तुम्‍हारी ड्योढ़ी का कुत्‍ता है । तुम्‍हारा मैला चाटता है...”
“ठहर जा, साले !” - महाबोले गर्जा ।”

“मैं ठहरा हुआ हूं, बराबर । तुम हिल के दिखाओ । अभी बुलेट गाड़ता हूं मगज में । कम आन ! मेक ए मूव ! मेक वन टीनी वीनी मूव । गिव मी ऐन एक्‍सक्‍यूज टु शूट यू ।”
महाबोले के कस बल निकल गये । उसकी हिलने की मजाल न हुई ।
“ये पिस्‍तौल !” - एकाएक वो बोला ।
“तुम्‍हारे थाने की है । पहचान ली !”
“तु-तुम थाने गये थे ?”
“वे जुदा मसला है । अभी मैं तुम्‍हारे मालिक को समझा रहा हूं कि तुम उसका कोई भला नहीं कर सकते क्‍योंकि तुम गिरफ्तार हो ।”

“क्या !”
“तुम्‍हारा हवलदार भी । मदारी की डुगडुगी पर नाचने वाला ये बंदर भी । डिसूजा नाम है न ! रोनी डिसूजा ।”
“डिसूजा ने जोर से थूक निगली ।”
“बहुत हाई फ्लाई करता है ।” - मैग्‍नारो बोला - “बहुत बढ़ बढ़ के बोलता है । अभी पहले जो महाबोले-इधर का पुलिस चीफ-बोला, वहीच अब मैं बोलता है । तुम साला एक हम चार का मुकाबला नहीं करना सकता । हम चारों हथियारबंद हैं । एक गन चार गंस से कम्‍पीट नहीं करना सकता । अकेला डिसूजा ही तुम्‍हेरे को सैट कर देगा । कुछ बैलेंस बचा तो महाबोले नक्‍की करेगा जिसको तुम हूल दिया । बोला, अरैस्‍ट करेगा ।”
 
“थानेदार साहब डबल ट्रबल में है । इन पर डैलीब्रट, कोल्‍डब्‍लडिड मर्डर का भी केस है । दफा तीन सौ दो में नपेंगे ।”
“क्‍या बकते हो ?” - महाबोले भड़का ।
“कीप युअर कूल, महाबोले” - मैग्‍नोरो एकाएक बोला - “ये भीङू सब जनता है । बोले तो ज्यास्ती जानता है । यू आर इन सूप , महाबोले ।”
“ये ...ये आप कह रहे है !”
मैग्‍नोरो हंसा ।
“हंसते हैं !” - महाबोले गर्जा - “अभी हंसने वाली कौन सी बात हुई है जिस पर हंसते हैं ! लगता है इमरजेंसी में आप, आपका मगज, किसी काम का नहीं । अब मुझे कुछ करना होगा ।”

“क्‍या करेगा तुम ?”
“आपकी तरह खोखली बातें नहीं करूंगा । ये हिंट नहीं सरकाऊंगा कि लिहाज का तालिब हूं । ये दुहाई नहीं देने लगूंगा कि आपके साथ धोखा हुआ । इसने कहा ये पुलिस आफिसर है, आपका दम निकल गया । जो बात इसको कहनी चाहिये थी, खुद कहने लगे कि इसकी बैकअप टीम इसके सिग्‍नल का इंतजार करती थी । कैसे रै‍केटियर हैं आप ! कैसे मवाली हैं ! जो इस...इस ढ़क्‍कन से डर गये !”
“तुम नहीं डरा ?”
“नहीं, मै नहीं डरा । मैं अभी दिखाता हूं साबित करके ।”
उसका हाथ वर्दी की बैल्‍ट में लगे होल्‍स्‍टर की ओर बढ़ा ।

“खबरदार, महाबोले !” - गन तानते नीलेश ने चेतावनी दी - “तुम्‍हें मार गिराने में मुझे कोई हिचक नहीं होगी ।”
“सर जी !” - हवलदार खत्री आतांकित भाव से चिल्‍लाया - “ये ठीक कहता है । खामखाह मारे जाओगे । साथ में मैं भी । बॉडीगार्ड भी । आप मैग्‍नारो की चाल को समझ नहीं रहे हैं । ये गोखले को भाव दे रहा है, आपको हूल दे रहा है, ताकि आप दोनों एक दूसरे को लुढ़का दें । भगवान के वास्‍ते समझिये कुछ ।”
महाबोले का हाथ रास्‍ते में फ्रीज हो गया, उसके चेहरे पर अनिश्‍चय के भाव आये ।

“सर, जी तूफान उठान पर है, पानी चढ़ रहा है, हम यहां चूहों की तरह फंस जायेंगे । अगर ये रेड है तो रेड सही । यहां फंस कर मरने से तो कहीं बेहतर है कैसे भी इधर से निकल लेना ।”
सन्‍नाटा छा गया ।
जिसे आखिर मैग्‍नारो ने भंग किया ।
“अभी भाषणबाजी बंद करने का” - वो बोला - “और सीरियस करके बात करने का । गोखले, हमेरे को नहीं मालूम कि तुम्‍हेरे साथ बैक अप है या नहीं - है तो किधर है - बट दिस इज आ‍बवियस कि तुम इधर अकेला है । अभी इधर क्‍या होयेंगा, आउटसाइड में मालूम नहीं पड़ना सकता । क्‍या !”

“आगे बोलो ।”
“अभी जो तुम महाबोले पर मर्डर चार्ज का बोला...”
“सब झूठ है ।” - महाबोले चिल्‍लाया - “बकवास है ।”
“ऐसा ?”
“बराबर ! उस सिलसिले में इसकी हां में मिलाना मुझे बलि का बकरा बनाना होगा । मैग्‍नारो, मैं नहीं बनने वाला ।”
“वाट ! नो सर ! नो बॉस ! नो मिस्‍टर ! खाली मैग्‍नारो !”
“ये मजाक का वक्‍त नहीं है ।”
“ओके । ओके । आई ग्रांट इट टु यू कि फुलझड़ी एक्‍सीडेंटल डैथ मरा । तुम खुद उसको टू बिट बिच बोला । ए‍क टू बिट कैसे मरा, कौन परवाह करता है !”

“मैंने कातिल को पकड़ा है ।”
“छोड़ देने का । उसकी बात मान लेने का कि कोई उसको सैट किया, छोकरी का लूट का माल उसकी बॉडी में कोई प्‍लांट किया । एक्‍सीडेंटल डैथ पर प्रेशर रखने का और क्‍लोज करने का । वांदा किधर है ?”
“अब ये नहीं हो सकता ।”
“काहे को ?”
“केस को मेरे डीसीपी ने अपने कंट्रोल में ले लिया है । लाश मुरूड में है । पोस्‍ट मार्टम वगैरह जैसा सब फालो अप उधर हो रहा है ।”
“डीसीपी मर्डर सस्‍पैक्‍ट को भी साथ ले गया ?”
“नहीं । वो इधर ही है । थाने के लॉकअप में बंद ।”

थाने के लॉकअप में बंद ! - नीलेश के जिस्‍म में सनसनी की लहर दौड़ गयी - देवा ! पाण्‍डेय का तो उसे -भाटे को भी - खयाल ही नहीं आया था । किस हाल में होगा लॉकअप में ! पहले ही मर नहीं गया होगा तो जरूर अब डूब के मर जायेगा ।
“फिर क्‍या वांदा है ?” - मैग्‍नारो कह रहा था - “तो बोलना डीसीपी को तुम्‍हारी प्रिलिमिनेरी इनवैस्टिगेशन में, उससे निकाले रिजल्‍ट्स में लोचा । अभी तुमको पक्‍की वो इनोसेंट ! कोई उसको सैट किया ! वांदा किधर है ?”
महाबोले खामोश रहा ।
“अभी टेम है इधर से नक्‍की करने का वास्‍ते इमीजियेट स्‍टैप लेने का । मेरा मोटर बोट साला बहुत पावरफुल । इस स्‍टार्म का मुकाबला बरोबर कर सकता है । इधरीच होटल के प्राइवेट पायर पर अवेलेबल है । इससे पहले कि तूफान हालात और बिगाड़ दे - या ये भीङू ही सच बोलता हो, इसके साथ बाहर बैकअप हो और वो लोग मोटर बोट को सीज कर लें - मेरे को इधर से निकल लेने को । इस वास्‍ते इस्‍ट्रेट बात बोलना जरूरी । गोखले !”

“यस !” - महाबोले पर से बिना निगाह उठाये नीलेश बोला ।
“कितना मांगता है ?”
नीलेश को एकाएक अपने पुराने मवाली आका याद आ गये कभी वो जिनके इशारों पर नाचता था । उसे लगा सवाल उससे फ्रांसिस मैग्‍नारो नहीं कर रहा था, सायाजी घोसालकर कर रहा था, अन्‍ना रघु शेट्‍टी कर रहा था ।
“अभी हुज्‍जत नहीं । स्‍मार्ट टाक नहीं । आनेस्‍ट कॉप वाला ड्रामा नहीं । साला आइडियल्‍स नहीं सरकाने का, प्रैक्‍टीकल बात करने का । कितना मांगता है ?”
“जितने की अपनी अक्‍खी लाइफ में तुमने शक्‍ल नहीं देखी, न देखेगा, उतना मांगता है ।”

“सो यू लाइफ टू एक्‍ट डिफीकल्‍ट !”
“आई डोंट एक्‍ट ।”
“मैं सोचा जैसे मैं इस पुलिस वाले को हैंडल कर सकता है, वैसे मैं तुम्‍हेरे को भी हैंडल कर सकता है ।”
“अब इसको पुलिस वाला न बोलो, अब इसका कुछ और ही नाम है ।”
“बोले तो ?”
“खूनी ! फांसी की सजा कर मुश्‍तहक !”
“जो मर्जी बोलो । पण अपना महाबोले तुम्‍हेरे जैसे पुलिसियों से कहीं ज्‍यादा समार्ट ! प्रैक्‍टीकल ! तुम क्‍या करता है ? किसका वास्‍ते करता है ? अनग्रेटफुल पब्लिक का वास्‍ते करता है । ब्‍लडी चिकन फीड जैसा सैलरी का वास्‍ते करता है । सोचता है आनेस्‍ट, ड्‍यूटीफुल, कॉप बनने में मैरिट ! मैडल ! प्रोमोशन ! बुलेट नहीं सोचता साला जो किसी भी टेम मगज में । बीवी का नहीं सोचता जिसको बेवा हो जाने का । चिल्‍लर का नहीं सोचता जिसको अनाथ हो जाने का । तुम साला आनेस्ट कॉप बन के मेरा बिजनेस फिनिश कर सकता है पण क्या बिजनेस को ही फिनिश कर सकता है ? जा के नाइस, रिस्‍पैक्‍टेबल गॉड फियरिंग पब्लिक को समझा सकता है कि मटका खेलना गलत ! सट्‍टा लगाना नाजायज ! रॉलेट व्‍हील पर या स्‍लॉट मशींस पर, या कार्ड्‍स टेबल पर जुआ खेलना बुरा ! ऐसा कुछ नहीं कर सकता है तुम । साला कोई नहीं कर सकता है । तुम्‍हारे बॉस लोगों को मालूम कंट्री में किधर इललीगल जुआघर चलाता है, किधर मटका कलैक्‍टर बैठेला है, किधर किधर सट्‍टे का एजेंट बैट्स क्‍लैक्‍ट करता है । तुम साला पुलिस वाला एक ठीया बंद करता है, हण्‍डर्ड नया ओपन हो जाता है । इसको हार जीत का गेम सोचे तो कौन हारा ! कौन जीता ! बोले तो मैं विक्‍टर ! मेरे जैसा कोई दूसरा मैग्‍नारो विक्‍टर ! तुम लूजर ! तुम्‍हारा पुलिस का महकमा लूजर ! ऐसीच नॉरकॉटिक्‍स ट्रेड में है । साला नॉरकॉटिक्‍स कंट्रोल ब्‍यूरो लूजर ! ड्रग लार्डस विक्‍टर ! सेम विद आर्म्‍स समगलिंग । सेम विद ऐनी अदर इललीगल एक्टिविटी ।”
 
“ये लैक्‍चर किसलिये ? इसलिये किय क्राइम प्रिवेंशन के किसी सरकारी महकमे का वजूद नहीं रहना चाहिये । ड्रग्‍स पनवाड़ी की दुकानों पर बिकने चाहियें । थानों पर बोर्ड लगा होना चाहिये, ‘यहां रिश्‍वत लेकर काम किया जाता है’…”
“वो तो पहले ही लगा है, खाली किसी को दिखाई नहीं देता । महाबोले से पूछो ।”
“पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं ।”
“कोई जबर निकल आये तो बराबर - चॉप, चॉप, चॉप - कर देता है ।”
“बहस छोड़ो । क्‍या कहना चाहते हो ?”
“कह चुका । गुलदस्‍ता कुबूल करो । साइज खुद बोलो ।”
“ये नहीं हो सकता ।”

“तो फार गॉड्स सेक, मेरे को गिरफ्तार करो, हम सबको गिरफ्तार करो, और हमें मेरी मोटर बोट पर ले कर चलो, ताकि हम सब इधर से निकल सकें, ताकि इधर ही हमेरा वाटरी ग्रेव न बन जाये ।”
“ऐसा नहीं होगा । यहां किसी को जल समाधि नहीं मिलेगी । तुम लोगों के मरने जीने से मेरे को कुछ नहीं लेना देना लेकिन अपने मरने जीने से लेना देना है । इसलिये बोलता हूं । हम इधर ही ठहरेंगे । यहां हम सेफ हैं । इस वक्‍त ये होटल आइलैंड की सेफेस्‍ट जगह है । हम इधर ही ठहरेंगे, जब तक कि बैक अप इधर नहीं पहुंचता ।”

“बोले तो ! अभी पहुंचा नहीं हुआ ?”
“जाहिर है कि अभी नहीं । वर्ना तुम सब के हाथों में हथकड़ियां होतीं ।”
“किधर से आना है बैक अप ने ? मुम्‍बई से ! इस तूफान में !”
“आइलैंड से ही ।”
“क्‍या !” - महाबोले के मुंह से निकला - “मुम्‍बई पुलिस आइलैंड पर मौजूद है ?”
“इधर के कोस्‍ट गार्डस को स्‍पैशल अथारिटी मिली है मुम्‍बई पुलिस को रिप्रेजेंट करने की, मुम्‍बई पुलिस के बिहाफ पर एक्‍ट करने की ।”
“कमाल है !”
“उन्‍हें” - मैग्‍नारो चिंतित भाव से बोला - “मालूम कैसे होगा हम यहां है !”

“उन्‍हें मालूम है मैं यहां हूं । अब बरायमेहरबानी सब्र दिखाइये और उनकी आमद का इंतजार कीजिये ।”
“उनकी आमद तक खड़े रहने का !”
“बैठ जाइये । टेबल पर । चारों । सबके हाथ टेबल पर हों । किसी भी घड़ी मेरे को टेबल पर आठ हाथ न‍ दिखाई दिये, मैं फायरिेंग शुरू कर दूंगा । सो बिवेयर । नो फैंसी ट्रिक्‍स ।”
“उनके आने तक तुम साला हमेरे पर गन ताने नहीं रह सकता । तूफान साला उनको भी तो प्राब्‍लम करता होयेंगा ! हो सकता है वो कल तक इधर न पहुंच पायें !”
“ऐसा नहीं होगा ।”

“पण, माई डियर, ये फिकर का बात !”
“तो फिक्र मैं करूंगा ।”
खामोशी छा गयी ।
फिर वो चारों उसके हुक्‍म के तहत, उसकी धमकी के तहत, उसके कहे मुताबिक एक टेबल पर बैठ गये ।
नीलेश ने भी जूते की एड़ी में अटका कर एक कुर्सी अपनी तरफ घसीटी और होशियार, खबरदार उस पर बैठ गया ।
ट्रंक दरवाजे के करीब उपेक्षित सा पड़ा था ।
कितना ही वक्‍त यूं ही सम्‍मोहन जैसी स्थिति में गुजरा ।
एकाएक तूफान की डरावनी आवाजों से ऊपर उठती एक नयी आवाज उन तक पहुंची ।
इंजन की आवाज !
उस माहौल में जो कि किसी मोटर बोट के इंजन की ही हो सकती थी ।

नीलेश ने सांस रोकी, कान खडे़ किये ।
फिर सीढ़ियों पर धम्‍म धम्‍म पड़ते कदमों की आवाज हुई ।
वो उछल कर खड़ा हुआ, लपक के दरवाजे के पहलू में पहुंचा और उसके साथ सट कर खड़ा प्रतीक्षा करने लगा ।
मेज पर बैठे चारों जनों पर उसकी निगाह बराबर थी ।
विकट स्थिति थी ।
अगर वहां कोई दुश्‍मन पहुंच रहा था तो वो दोनों तरफ निगाह नहीं रख सकता था ।
कदमों की आवाज करीब होती जा रही थी ।
“कौन है नीचे ?” - वो उच्‍च स्‍वर में बोला ।
“मोकाशी !” - जवाब आया - “तुम कौन हो ?”

“गोखले ! यहां कैसे पहुंच गये ?”
“मोटरबोट पर ?”
“क्‍या ! सड़कों पर इतना पानी गया है ?”
“हां यहां कैसे पहुंच गये ? यहां कैसे पहुंच गये ?”
“हां । मैं थाने गया था । वहां मुझे मेरी बेटी और सिपाही भाटे मिले । उन्‍होंने मुझे सब बताया । ये भी कि तुम ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ पहुंचे हो सकते थे...”
“मोकाशी साहब !” - एकाएक महाबोले चिल्‍लाया - “मैं महाबोले ! गौर से मेरी बात सुनो । मैं यहां ऊपर कैसीनो में हूं । मेरे साथ मैग्‍नारो, डिसूजा और खत्री भी यहां हैं । गोखले हमारे पर गन ताने है...”
 
सीढ़ियों से कदमों की आवाज आनी बंद हो गयी ।
“सुना ?”
“हां, सुना ।” - सीढ़ियों से आवाज आयी - “मैं क्‍या करूं ?”
“आपके पास गन है ?”
“हां, है ।”
“गोखले अपने एक्‍शन को रेड बताता है...”
“क्‍या ! अकेला गोखले रेड...”
“अभी ऐसा ही है । ये अकेला हम चार जनों को पकड़ कर यहां से नहीं ले जा सकता । इसे अपने बैक अप का इंतजार है जो पता नहीं कब यहां पहुंचेगा...”
“कैसा बैक अप ?”
“बोलता है कोस्‍ट गार्ड्स की टुकड़ी पुलिस की मदद कर रही है ।”
“कौन सी टुकड़ी ! छावनी तो खाली हो चुकी है !”

“क्‍या बोला ?”
“उनके कमांडेंट का आर्डर हुआ । सब छावनी छोड़ कर निकल गये ।”
“आपको कैसे मालूम ?”
“है मालूम किसी तरह से ।”
“ये पक्‍की बात है कि...”
“सौ टॉक पक्‍की बात है ।”
मैग्‍नारो ने जोर का अट्‍टहास किया ।
“बैकअप का वेट करता है ! ब्‍लडी फूल !”
नीलेश बेचैन होने लगा ।
वो बुरी खबर थी ।
या शायद कोई ब्‍लफ था ।
उसके अफसरान उसे यूं अकेला, असहाय नहीं छोड़ सकते थे ।
देवा ! ब्‍लफ ही हो ।
“मोकाशी साहब !” - महाबोले फिर बोला - “सुन रहे हैं ?”
“हां ।”

“आप बाजी पलट सकते हैं । समझे कुछ ?”
“समझा तो सही लेकिन...वो मुझे दिखाई नहीं दे रहा । मैं ऊपर पहुंचा तो मेरे को कैसे मालूम पड़ेगा वो हाल में किधर था !”
“दरवाजे के बाजू में खड़ा है । दायें बाजू में । दीवार से लग के । आप उसे नहीं देख सकते तो वो भी आपको नहीं देख सकता । दीवार ईंट पत्‍थर सीमेंट की नहीं है, लकड़ी की पार्टीशन है । गोली चलाओगे तो आरपार यूं गुजरेगी जैसे मक्‍खन से गुजरी । समझे ?”
“समझा !”
नीलेश दरवाजे के और करीब सरक आया ।
हालात में एकाएक जो तब्‍दीली आयी थी, उसने महाबोले को दिलेर बना दिया था । उन हालात में उसको चुप कराने का एक ही तरीका था कि नीलेश उसको गोली मार देता जो कि वो अभी नहीं करना चाहता था ।

सतर्कता की प्रतिमूर्ति बना, सांस रोके वो हालात में कोई-कोई भी, कैसी भी-तब्‍दीली आने का इंतजार करने लगा ।
***
मोकाशी पहली और दूसरी मंजिल के बीच के सीढ़ियों के मोड़ पर ठिठका खड़ा था । उसके आगे अब कुछ ही-दस, बारह-सीढ़ियां बाकी थी, वो खुद दीवार की ओट में था और रह कर ओट से सिर निकाल कर ऊपर सीढ़ियों के दहाने तक झांकता था । अपनी रिवाल्‍वर निकाल कर उसने हाथ में ले ली थी और उस घड़ी वो अपनी उखड़ी सांसों पर काबू पाने की कोशिश कर रहा था । जैसा उसका शरीर था, उसकी उम्र थी, उसकी रू में सीढ़ियां चढ़ना उसे हमेशा ही भारी पड़ता था ।

तभी उसके पीछे श्‍यामला प्रकट हुई ।
श्‍यामला से चार सीढ़ियां नीचे हकबकाया सा भाटे उसे दिखाई दिया ।
“तू !” - स्‍वयमेव मोकाशी के मुंह से निकाला - “यहां क्‍यों आयी ?”
“आप यहां क्‍या कर रहे हैं ?”
“अरे, मैंने तेरे को मोटर बोट में टिकने को बोला था !”
“जवाब दीजीये मेरे सवाल का । आप किस फिराक में है ? आपके हाथ में गन क्‍यों है ?”
“ऊपर चार जने फंसे हुए है । महाबोले समेत चार जने फंसे हुए हैं ।”
“आपको महाबोले की परवाह है ?”
“परवाह की बात नहीं है । उन लोगों की जान मौजूदा सांसत से न निकली तो जो कहर उन पर टूटा है, वो मेरे पर भी टूटेगा । हम सबकी वाट लग जायेगी । वो साला गोखले ऊपर उनको होल्‍ड किये है ।”

“क्‍यों होल्‍ड किये है ? साफ क्‍यों नहीं बोलते कि गिरफ्तार किये है !”
मोकाशी ने मुंह बाये अपनी बेटी की ओर देखा ।
“आपके हाथ में गन है, आपको ऊपर फंसे अपने दुष्‍कर्मों के साथियों की फिक्र है । आप गोखले को मार डालने की फिराक में हैं ।”
“मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं ।” - मोकाशी गोखले स्‍वर में बोला ।
“तो फिर हाथ में गन क्‍यों है ?”
“मेरी अपनी प्रोटेक्‍शन के लिये ।”
“क्यों जरूरत है आपको प्रोटेक्‍शन की ? फसाद वाली जगह पर कदम नहीं रखेंगे तो क्‍या जरूरत होगी आपको प्रोटेक्‍शन की ?”
“तू समझती नहीं है ।”

“क्‍या नहीं समझती मैं ?”
“वो लोग मेरे दोस्‍त हैं, सुख दुख के साथी हैं, उनकी मदद करना मेरा फर्ज है । तू नहीं समझती, नहीं जानती कि जो उनकी प्राब्‍लम है, वो मेरी भी प्राब्‍लम है । इस संकट की घड़ी में हम सब एक हैं ।”
“कैसा संकट ? कैसी प्राब्‍लम ?”
“तू नहीं समझेगी ।”
“क्‍या नहीं समझूंगी ? ये कि आप लोकल म्‍यू‍नीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट होने के अलावा भी कुछ हैं ! ये कि आप और महाबोले उस गोवानी रैकेटियर के काले कारनामों में शरीक हैं, उसके जोड़ीदार हैं ! ये कि अब आप का घड़ा फूटने की घड़ी आन पहुंची है तो आपके प्राण कांप रहे हैं ! क्‍या नहीं समझूंगी मैं ? क्‍या नहीं समझती मैं ? यहां कोई नासमझ है तो वो आप हैं जो नहीं समझते कि उतनी नासमझ मैं नहीं हूं जितनी कि आप मुझे समझते हैं । समझे ?”

मोकाशी के मुंह से बोल न फूटा ।
 
“एक बात सुन लिजिये । अगर आपने ऊपर जा कर नीलेश गोखले की मुखालफत में कोई कदम उठाया तो...तो...तो मैं आपकी बेटी नहीं ।”
मोकाशी हक्‍का बक्‍का सा बेटी का मुंह देखने लगा ।
“क्‍या बोला ?” - उसके मुंह से निकाल ।
“जो आपने सुना ।”
“तेरा एक फिकरा खून का रिश्‍ता खत्‍म कर सकता है ? नाखून को मांस से अलग कर सकता है ?”
“ये फैंसी बातें है जिनमें इस घड़ी मैं नहीं उलझना चाहती । इस घड़ी मैं अपने पिता के खुदगर्ज किरदार से हिली हुई हूं । आइलैंड पर कुदरत का कहर टूटा है, कमेटी के प्रेसीडेंट साहब को नहीं दिखाई देता । जगह जगह पर फंसे लोगों को मदद की, रेस्‍क्‍यू की जरूरत है, आइलैंड का पुलिस चीफ उनका मुहाफिज बनने की जगह एक मवाली की खिदमत के लिये इधर हाजिरी भरता है । जिन लोगों को आइलैंड की संकट की इस घड़ी में आन ड्‍यूटी होना चाहिये, वो अपने अपने घरों में सोये पड़े हैं । ये कैसा निजाम है ! कैसा इंतजाम है ! कैसा लैट डाउन है ! केसा अंधेर है ! रही सही कसर पूरी करने के लिये आप यहां पहुंच गये हैं ताकि कोई जुगत लड़ाकर, कोई घिनौनी चाल चल कर अपनी ड्‍यूटी करते एक पुलिस आफिसर को मौत के घाट उतार सकें । पापा, आई एम प्राउड आफ यू । मुझे नाज है अपनी किस्‍मत पर कि आप मेरे पिता हैं ।”

वो फफक पड़ी ।
“वो...गोखले” - मोकाशी कठिन स्‍वर में बोला - “पुलिस आफिसर है ?”
“हां ।”
“सीक्रेट एजेंट !”
“कुछ भी कहिये ।”
“तेरे को ये बात कैसे मालूम है ?”
“बस, मालूम है ।”
“वो खुद ऐसा बोला ?”
“हां ।”
“तुझे उससे...यू लव हिम ?”
“हां ।”
“तभी ।”
“पापा, आपने एक कदम भी ऊपर की तरफ बढ़ाया तो मैं...तो मैं...”
“क्‍या करेगी तू ?”
“गन छीन लूंगी ।”
“क्‍या ! अपने बाप की मौत का सामान करेगी ? ऐसा इसलिये करेगी कि वो बड़े आराम से मुझे गोली मार दे ?”
“आप क्‍यों ऐसी नौबत आने देते हैं ? ऊपर जाने का इरादा तर्क कर देंगे तो क्‍यों होगा ऐसा ?”

“क्‍या फर्क पड़ेगा ! परलोक जाने से बचूंगा तो जेल जाऊंगा ।”
“वही आपका मुकाम है...”
“ये मेरी बेटी बोल रही है !”
“…आपका, मोकाशी का, महाबोले का और आप लोगों के तमाम हिमायतियों का ।”
“देवा ! अरे, तू क्‍यों मेरे लिये मुसीबत बन रही है ?”
“कोई कुछ नहीं कर रहा । अपनी मुसीबत आप खुद बुला रहे हैं ।”
मोकाशी ने असहाय भाव से गर्दन हिलाई कई बार थूक निकली, कई बार पहलू बदला ।
“क्‍या करूं मैं ?” - आखिर बोला - “क्‍या करना चाहिये मुझे ?”
“आपको मालूम है । आपसे बेहतर किसको मालूम है !”

“अच्‍छा !”
फिर खामोशी छा गयी ।
जिसे फिर मोकाशी ने ही भंग किया ।
“मैं ऊपर जाता हूं ।” - वो बोला ।
श्‍यामला के चेहरे पर गहरी नाउम्‍मीदी के भाव आये, उसने गिला करती निगाह से अपने पिता की ओर देखा ।
“और” - मोकाशी आगे बढ़ा - “जा कर उस लड़के की कोई मदद करता हूं ।”
श्‍यामला ने चैन की लम्‍बी सांस ली ।
“पापा !” - वो भावविह्वल स्‍वर में बोली ।
“फिक्र न कर, बेटी वही होगा जो तू चाहती है । तेरी स्‍वर्गीय मां से मेरा वादा था कि मैं उसके पीछे तेरी हर ख्‍वाहिश पूरी करूंगा । तेरी मां सब देख रही है । मैं अपने वादे से नहीं फिर सकता ।”

“पापा !”
मोकाशी ने श्‍यामला के पीछे चार सीढ़ियां नीचे खड़े भाटे पर निगाह डाली ।
“भाटे !” - वो बोला - “तू किसके साथ है ?”
पिता पुत्री में हुए वार्तालाप ने भाटे को बहुत हिलाया था, बहुत जज्‍बाती कर दिया था, वो निसंकोच बोला - “आपके साथ ।”
“तो मेरी मदद कर ।”
“जो बोलोगे, करूंगा ।”
“मैं जानता हूं थाने का सारा ही स्‍टाफ महाबोले की तरफ नहीं है, उसकी धांधलियों, गैरकानूनी हरकतों में शरीक नहीं है, कई लोग मजबूरी में उसकी हां में हां मिलाते हैं लेकिन उससे डरते हैं इसलिये मुंह नहीं खोलते । तू जानता है ?”

“जानता हूं । एक तो मैं ही हूं ऐसा !”
“अपने जैसे औरों को भी जानता है जो महाबोले के कहरभरे किरदार से दुखी हैं, परेशान हैं, जो मौका लगने पर उसके खिलाफ खड़े हो सकते हैं ?”
“जानता हूं ।”
“मसलन कोई नाम ले ।”
“सब-इंस्‍पेक्‍टर जोशी है न !”
“गुड । तू किसी तरह से उसके पास पहुंच, उसको बता कि जो मौका थाने के ईमानदार पुलिसिये चाहते थे कि कभी लगे, जोशी वो अब लग गया समझे । उसे यहां के नाजुक हालात की खबर कर और फिर तुम दोनों ऐसे तमाम पुलिसियों को इकठ्ठा करो और इधर ले के आओ । मुझे य‍कीन है कि जब उनको पता चलेगा कि आइलैंड से रावणराज खत्‍म होने वाला है तो किसी को भी इस तूफान में घर से निकलने से गुरेज नहीं होगा । या होगा ?”

“नहीं होगा ।” - भाटे जोश से बोला ।
“तो जा, ये काम करके दिखा । भाटे मैं तुझे कोई ईनाम नहीं दे सकता लेकिन ऊपर वाला सब देखता है, वही तुझे इसका अज्र देगा ।”
“मोकाशी साब जी, रावण ढ़ेर हो, मेरा यही सब‍से बड़ा ईनाम है ।”
“शाबाश ! जा ।”
“मैं साथ जाउंगी ।” - श्‍यामला बोली ।
“क्‍या !” - भाटे के मुंह से निकला ।
मोकाशी ने भी हैरानी से बेटी की तरफ देखा ।
“जो बात तुम नहीं समझा सकोगे, वो मैं समझाऊंगी । लोग मेरी ज्‍यादा सुनेंगे क्‍योंकि...क्‍योंकि मैं महाबोले के जोड़ीदार की बेटी हूं ।”

“लेकिन तुम्‍हारे तूफान में...”
“फिर भी...”
“फिर भी ये कि मैं मोटरबोट को तुम्‍हारे से बेहतर हैंडल कर सकती हूं । क्‍या !”
भाटे ने हिचकिचाते हुए सहमति में‍ सिर हिलाया ।
“चलो ।”
श्‍यामला घूम कर आगे बढ़ी, ठिठकी, घूमी, उसने अत्‍यंत भावुक भाव से अपने पिता की तरफ देखा ।
“पापा” - वो भर्राये कण्‍ठ से बोली - “टेक केयर ।”
“यू टु, माई हनी चाइल्‍ड !”
वो जाने के लिये घूमी ।
“और सुन ।”
“यस, पापा ।”
“गोखले को कुछ नहीं होगा । ये मेरा तेरे से वादा है । कुछ होगा तो उससे पहले मुझे होगा ।”

आंसू बहाती श्‍यामला दौड़ कर करीब आयी और मोकाशी से लिपट कर सुबकने लगी ।
मोकाशी ने उसकी पीठ थपथपाई और बोला - “जा, अब । तूने बड़ी जिम्‍मेदारी का काम करना है ।”
मोकाशी वापिस घूमा और दृढ़ता से सीढ़ियां चढ़ने लगा ।
***
लम्‍बी खामोशी ने महाबोले को बहुत त्रस्‍त किया हुआ था, बहुत सस्‍पेंस में डाला हुआ था । आखिर उससे न रहा गया ।
“मोकाशी साहब !” - उसने उच्‍च स्‍वर में आवाज लगाई - “सुन रहे हैं आप ! अभी मैंने मोटर बोट स्‍टार्ट होने की आवाज सुनी । वो किधर...”
“जरा चुप करो, महाबोले” - दूसरी मंजिल की आखिरी सीढ़ी पर पहुंचा मोकाशी बोला - “मेरे को गोखले से बात करने दो । गोखले !”

“क्‍या है ?” - गोखले बोला ।
“सुन रहे हो ?”
“हां । क्‍या कहना चाहते हो ?”
“मैं भीतर आ रहा हूं । दोस्‍त की तरह ।”
“दोस्‍त गन ले कर नहीं आते ।”
“गन सामने तनी हुई न हो तो वांदा नहीं । मेरा गन वाला हाथ मेरी साइड में होगा, नाल का रुख फर्श की तरफ होगा । ओके ?”
“ओके ।”
“ठहरो ! ठहरो !” - महाबोले एकाएक भड़का - “क्‍या हो रहा है ये...”
तब तक मोकाशी चौखट से भीतर कदम डाल चुका था । उसने दायें बाजू निगाह दौड़ाई तो उसे गोखले दिखाई दिया, जो कि उसके भीतरकदम रखते ही दरवाजे से परे हट गया था ।

दोनों की निगाह मिली ।
“बाहर का क्‍या हाल है ?” - गोखले ने पूछा ।
“बुरा हाल है ।” - मोकाशी बोला - “पानी लगातार चढ़ रहा है । हमारे अलावा आसपास दूर दूर तक कोई नहीं है ।”
“ओह !”
“आप जरा इधर मेरे से बात करो ।” - महाबोले गुस्‍से से बोला ।
“बोलो ।”
“आपके साथ कौन था ?”
“मेरी बेटी थी ।”
“मैंने मोटर बोट के रवाना होने की आवाज सुनी । किधर गयी ?”
“पीएसी की एक टुकड़ी इधर पहुंची है...”
“क्‍या ! इस तूफान में ?”
“नेवी के स्‍टीमर पर ।”
“आपको क्‍या मालूम ?”

“मोकाशी केवल मुस्‍कराया ।”
“पहुंची है तो क्‍या !”
“श्‍यामला मोटर बोट लेकर मेन पायर पर गयी है ।”
“क्‍यों ?”
“उनको यहां का रास्‍ता दिखाने के लिये ।”
“क्‍या ! मोकाशी साहब, आप होश में तो हैं ?”
“अभी आया न !”
“तो मुखालफत की बातें क्‍यों कर रहे हैं ?”
“तुम्‍हें लगता है मैं मुखालफत की बातें कर रहा हूं ?”
“हां । तभी तो बोला । आपने श्‍यामला को पीएसी के जवानों को यहां का रास्‍ता दिखाने के लिये भेज दिया ! यकीन नहीं आता कि आपने ऐसा किया !”
 
“अब मैं क्‍या कहूं तुम्‍हारे यकीन को !”

“यानी सच में ऐसा ही है ?”
“है तो सही !”
“अक्‍ल मारी गयी आपकी ! खड़े पैर ! अपनी कब्र खुद खोद डाली !”
“क्‍या फर्क पड़ता है !”
“आपका दिमाग चल गया है । तूफान की टेंशन आपको बर्दाश्‍त न हुई, इसलिये मगज हिल गया ।”
“अब क्‍या फर्क पड़ता है !”
“आप बूढ़े हैं, अपने बनाने वाले के करीब हैं, आपको नहीं पड़ता, मेरा तो खयाल किया होता ! हमारा तो खयाल किया होता ! धोखा दिया आपने ! डबल क्रॉस किया ! कैसे...कैसे आप पाले के दोनों तरफ हो सकते हैं !”
“मुझे तुम्‍हारी तरफ होने का अफसोस है...”

“अब अफसोस है ! तब अफसोस नहीं था जब माल बटोर रहे थे ?”
“गलती किसी से भी हो सकती है । गलती करना नादानी है । गलती करके उसको सुधारने की कोशिश न करना ज्‍यादा बड़ी नादानी है ।”
“नौ सौ चूहे खा के बिल्‍ली हज को चली ।”
“मैंने तुम लोगों का साथ ये सोच के दिया था कि इसमें हमारे से ज्‍यादा आइलैंड का भला था । कैसीनो की वजह से, मौजमेले के साधनों की वजह से, यहां टूरिस्‍ट्स इनफ्लक्‍स बढ़ेगा तो आइलैंड पर खुशहाली आयेगी, यहां के बशिंदों की माली हैसियत में इजाफा होगा । नतीजा क्‍या निकला ? एक छोटा कम्‍प्रोमाइज एक बड़ा बखेडा़ बन गया । रण्डियों का जमवाड़ा होने लगा । भोर भये तक के ड्रिकिंग सैशन चलने लगे, बारों में शराबखोरी के बाद दंगे फसाद के वाकयात बढ़ने लगे । बारों में बारबालाओं ने ग्राहकों को शरेआम लूटना शुरू कर दिया । यहां कैसीनो की शिकायतें होने लगी कि स्‍लॉट मशीन मैनीपुलेटिड थीं, रॉलेट व्‍हील में बाल कैसीनो की मर्जी के नम्‍बर पर लैंड करती थीं, ताश की गड्‍डियां मार्क्‍ड थीं । यानी कि यहां हर ऐसा इंतजाम मौजूद था जिसके होते यहां से कोई भी कोई बड़ी रकम जीत के नहीं जा सकता था, अलबत्‍ता बड़ी रकम हार के जाना निश्‍चित था । आइलैंड पर ड्रग्‍स लोलीपोप और पीनट्स की तरह बिकने लगे । सट्टा, मटका पुलिस की सरपरस्‍ती में शरेआम खेला जाने लगा । हमें पता ही न चला कि आइलैंड पर मैग्‍नारो का राज हो गया और हम इसके मुलाजिमों के रोल में आ गये । कर्टसी मैग्‍नार, एक दिन यहां अराजकता का ऐसा बोलबाला होगा, मैंने सपने में नहीं सोचा था । मैंने जरा सी ढ़ील क्‍या दी मेरे हाथ से डोर निकल गयी । जिस लानत की शुरूआत में बाकायदा मेरी शिरकत थी उसको लगाम लगा पाना मेरे बूते की बात ही न रही । मुझे मजबूरन तुम्‍हारी, इन रैकेटियर की हर लाइन टो करनी पड़ी । महाबोले मेरा यकीन करो मेरा दिल मेरी मजबूरी पर, मेरी बेचारगी पर आठ आठ आंसू रोता है ।”

“ब्‍लडी हिपोक्राइट !” - मैग्‍नारो तिरस्‍कारभरे स्‍वर में बोला ।
“रोमिला सावंत का कत्‍ल हुआ तो समझो कि हद ही हो गयी । आइलैंड पर बस खूंरेजी की ही कसर थी कि रोमिला के कत्ल के साथ वो शुरुआत भी हो गयी । ये ऐसी शुरुआत थी जिसका होना महज वक्‍त की बात रह गयी थी । कत्‍ल रोमिला का न होता तो किसी और का होता । इस लानत का वक्‍त आ गया था इसलिये जैसे तैसे ये वाकया हो के रहनी थी ।”
“और आप” - महाबोले बोला - “जो वाकया होना था उसके होने का इंतजार करते रहे, पछताते रहे, आंसू बहाते रहे और अपने हिस्‍से के नोट गिनते रहे । अपनी काली करतूतों की काली कमाई बेटी को ऐश के लिये मुहैया कराते रहे और वो आपके गुण गाती रही । ‘मेरा पिता महान’ का राग अलाप कर थैंकफुल होती रही ।”

“जिसे तुमने मेरी करतूतें कहा, उनकी वजह से मेरी बेटी मेरे से नफरत करती है ।”
“लेकिन रात के दो बजे तक ऐश करने के लिये जब रोकड़े की जरूरत होती है तो नफरत प्‍यार में बदल जाती है, लाड करने लगती है, लाडली बन के मनमानी वसूली करती है ।”
“उसे नहीं मालूम था कि रोकड़ा मेरे पास कहां से आता था । मालूम पड़ा तो...तो बाप विलेन दिखाई देने लगा ।”
“अभी ये ड्रामेटिक्‍स बंद करने का ।” - एकाएक मैग्‍नारो उठ खड़ा हुआ और भड़क कर बोला - “कान पक गया साला !”
लगता था आवेश में उसको भूल गया था कि नीलेश उस पर गन ताने था ।

“मेरे भी ।” - महाबोले बोला - “बुड्ढा साला गिरगिट है, उसकी माफिक रंग बदलता है । बोले तो सठिया गया है । जो एम्‍पायर हमने इधर इतनी मेहनत से खड़ा किया है, ये अब उसमें पलीता लगाना मांगता है । अभी उसी पेड़ को काटना मांगता है जिसका इतने लम्‍बे अरसे से फल खा रहा है । मैं ये नहीं होने दूंगा । इससे पहले कि ये इमारा जमाया सिलसिला उखाड़े, मैं इसको उखाड़ फेंकूंगा ।”
“परवाह नहीं मेरे को ।” - मोकाशी बोला - “तुम लोगों का बेड़ा गर्क होता है, तुम लोगों की लंका उजड़ती है तो मेरे को जान से जाना कुबूल है ।”

“जायेगा बराबर, स्‍टूपिड ओल्‍ड मैन ! अनग्रेटफुलसन आफ ए बिच ! कोई पूछे नाशुक्रे को, अपने बूते से प्रेसीडेंट का इलैक्‍शन जीत सकता था ! वोटरों को डरा कर, धमका कर, बहला कर, बाटली टिका कर, मैं साला वोट दिलाया तो साला इलैक्‍शन जीता, प्रेसीडेंट बना ।”
“क्‍यों किया ऐसा ? मेरे पर अहसान किया कि अपना काम किया ! तुमको इधर अपने इशारों पर नाचने वाला प्रेसीडेंट मांगता था । और वो प्रेसीडेंट कौन ! अक्‍ल का अंधा बाबूराव मोकाशी । जिसको आखिर अक्‍ल आयी तो दारोगा तड़पता है, भाव खाता है, आग उगलता है !”
“मार डालूंगा ।” - महाबोले दांत पीसता बोला - “नहीं छोडूंगा ।”

“कैसे मारेगा ? फूंक से उड़ा देगा ? गन तो मेरे हाथ में हैं !”
“साहबान !” - नीलेश उच्‍च स्‍वर में बोला - “हर कोई भूल गया मालूम होता है कि मैं अभी भी यहां मौजूद हूं और आप सब लोग मेरे काबू में हैं ।”
नीलेश ने अपना गन वाला हाथ सामने ताना ताकि सबको याद आ जाता कि वो सबको कवर किये था ।
“महाबोले” - वो फिर बोला - “अपनी गन को उंगली और अंगूठे से पकड़ कर होल्‍स्‍टर से निकालो और उसे मेज से परे फर्श पर डालो ।”
महाबोले ने जैसे सुना ही नहीं ।

“मेरे को मालूम कैसी गन तेरे हाथ में है !” - वो पूर्ववत् मोकाशी से सम्‍बोधित था - “साला म्‍यूजियम पीस ! पता नहीं काम करता भी है कि नहीं ! हिम्‍मत है तो चला गोली ! वर्ना मैं करता हूं किस्‍सा खत्‍म !”
उसने होल्‍स्‍टर से गन खींचने की कोशि‍श की तो होल्‍स्‍टर भीगा होने की वजह से वो कहीं अटक गयी । आपे से बाहर हुआ वो गन को होल्‍स्‍टर से आजाद करने की कोशि‍श करता रहा । वही काम वो शांति से, इत्‍मीनान से करता तो कब का हो गया होता ।
मोकाशी अपना रिवाल्‍वर वाला हाथ सीधा करने लगा ।

साफ जान पड़ रहा था कि वो रिवाल्‍वर का मालिक ही था, बावक्‍तेजरुरत उसको हैंडल करने का उसे कोई तजुर्बा नहीं था ।
नीलेश को उसका महाबोले की चलाई गोली खा जाना निश्चित लगने लगा ।
उसने फायर किया…जान बूझ कर लो फायर किया ।
गोली महाबोले की जांघ में लगी । उसका बैलेंस बिगड़ गया और तब तक उसके हाथ में पहुंच चुकी गन से चली गोली निशाने पर लगने की जगह छत से जा कर टकराई ।
मोकाशी की चलाई गोली उसकी छाती में लगी ।
जिस कुर्सी पर से वो उठा था, उसको लिये दिेये वो फर्श पर ढेर हो गया । उसकी गन उसके हाथ से निकल कर टन्‍न की आवाज करती फर्श पर परे लुढ़क गयी ।

नीलेश को उसके होंठों की कोर से रिसती खून की पतली सी लकीर दिखाई दी ।
मोकाशी आंखे फाड़े हक्‍का बक्‍का सा अपने कारनामे का नतीजा देख रहा था ।
मैग्‍नारो का सिगार खुद ही उसके खुले मुंह से निकल कर फर्श पर जा गिरा था ।
उस तमाम कनफ्युजन के माहौल में रोनी डिसूजा का हाथ धीरे धीरे अपनी जैकेट की भीतरी जेब की ओर सरक रहा था जिसमें कि गन थी ।
इत्‍तफाक से ही नीलेश की निगाह उसकी उस हरकत पर पड़ी ।
“फ्रीज!” - अपनी गन उसकी ओर तानता वो हिंसक भाव से बोला ।
डिसूजा का हाथ रास्‍ते में ही ठिठक गया ।

“हाथ ऊपर !”
मजबुरन डिसूजा ने दोनों हाथ ऊपर उठाये ।
“साला कोई काम फुर्ती से नहीं कर सकता ।” - मैग्‍नारो तिरस्‍कारपूर्ण स्‍वर में बोला - “गन को काबू करने का हिम्‍मत किया तो स्‍लो मोशन में ।”
“मेरे को टैम्‍पटेशन फिनिश करने का ।” - नीलेश बोला - “मेरे को गन किसी के पास नहीं मांगता । ये मैं मैग्‍नारो, उसके बॉडीगार्ड और हवलदार को बोला । सुना सब लोग ।”
कोई कुछ न बोला ।
बोला तो अपनी हकबकाहट से उबर कर मोकाशी बोला ।
“कोई एसएचओ साहब की माफिक एक्‍ट करना मांगता है ? बोले तो मेरे को गन हैंडल करने का कोई खास तजुर्बा नहीं, इस वास्‍ते मेरा निशाना कमजोर है । ये महज इत्‍तफाक था कि मेरी चलाई गोली महाबोले की छाती में जाकर लगी । लेकिन ये इत्‍तफाक फिर हो सकता है, फिर के बाद फिर हो सकता है । इसलिये कोई जना महाबोले की तरफ मेरे को ढेर करना मांगता है तो मैं उसको वैलकम बोलता हूं । खत्री, अपनी बॉस को फालो करता है ?”

“मेरे को खयाल भी नहीं करने का, मोकाशी साहब ।” - हवलदार खत्री दयनीय स्‍वर में बोला - “मेरी आपसे कोई अदावत नहीं । मेरी जो मजबूरी थी” - उसने फर्श पर लुढके पड़े मुर्दा महाबोले पर निगाह डाली - “वो खत्‍म हो गयी । जो प्रेशर था, वो हट गया । अब मेरे को काहे को एसएचओ साहब की माफिक एक्‍ट करने का ! अपने बॉस को फालो करने का !”
उसने सबको दिखाकर, अंगूठे और उंगली से थाम कर अपने शोल्‍डर होल्‍स्‍टर से गन निकाली और नीलेश को सौंप दी ।
“अभी बिग बॉस क्‍या बोलता है ?” - मोकाशी मैग्‍नारो से मुखातिब हुआ ।
 
“मैं गन नहीं रखता ।” - मैग्‍नारो सहज भाव से बोला - “बॉडीगार्ड रखता है । साला निकम्‍मा, नालायक, इमरजेंसी में टोटल फेल्‍योर बॉडीगार्ड रखता है । मोकाशी, तुम साला बेहथियार, डिफेंसलैस भीङु पर गोली चलायेगा ?”
“मालूम नहीं ।”
“मालूम नहीं बोला !”
“हां । तुम्‍हारा खास जोड़ीदार मेरे को सठियाया हुआ बुड्ढा बोला । क्‍या पता मैं क्‍या करुंगा !”
“मैं तो कुछ न बोला ! मैं तो इधर साइलैंटली खडे़ला था ! तुम्‍हेरा जो डायलॉग हुआ, महाबोले के साथ हुआ । ऐज ए रिजल्‍ट महाबोले के साथ क्‍या हुआ, वो सामने है ।”
मोकाशी ने नीलेश की तरफ देखा ।

“बिग बॉस बिग बॉस है ।” - नीलेश बोला - “ये ब्‍लफ खेलता हो सकता है । मेरे को चैक करने का कि ये क्‍लीन है ।”
मोकाशी ने सहमति में सिर हिलाया ।
नीलेश ने आगे बढ़ कर पहले डिसूजा की गन अपने काबू में की और उसे हाथ नीचे गिरा लेने की इजाजत दी । फिर उसने मैग्‍नारो की तलाशी ली ।
उसके पास कोई हथियार नहीं था ।
“क्‍लीन है ।” - नीलेश बोला ।
“मेरे को कोई खुशी नहीं हुई ।” - मोकाशी बोला - “मेरे को एक्‍सक्‍युज मांगता था बिग बॉस को शूट करने का सुख पाने का । खैर ! हर सुख तो नहीं मिलता न ! डिसूजा !”

डिसूजा ने सकपका कर मोकाशी की तरफ देखा ।
“बिग बॉस का बॉडीगार्ड है । गन गया तो क्‍या है ! खाली हाथ बॉडी को गार्ड कर । झपट पड़ मेरे पर । छीन ले गन मेरे से । मैं बूढा़ है, तू जवान है, तू तो बिजली की माफिक रियेक्‍ट करेगा । कर कोशि‍श । कामयाब हो गया तो साहब शाबाशी देगा । बड़ा ईनाम देगा । कम आन ! बिग बॉस का नमकख्‍वार बन कर दिखा । मर या मार ।”
“मैं इतना मूर्ख नहीं ।” - वो होंठो में बुदबुदाया - “मैं विक्‍टर का वफादार । लूजर से वफादारी दिखाना मतलब डूबते के साथ डूबना ।”

“क्‍या कहने !”
“रोनी !” - मैग्‍नारो गुर्राया - “यू ब्‍लडी बैकबाइटिंग, अनफेथफुल सन आफ ए होर !”
“बॉस, मैंने आपकी गाली का बुरा नहीं माना । इस वक्‍त आप मजबूर हैं, गाली देने के अलावा कुछ नहीं कर सकते । आई एम सारी फार यू ।”
“यू बस्‍टर्ड ! यू कैन शोव युअर सारी अप युअर फैट ऐस !”
“ऐनीथिंग टु प्‍लीज…”
तभी विशाल द्वार से पीएसी के बेशुमार हथियारबंद जवानों का रेला भीतर दाखिल हुआ ।
उनमें सबसे आगे खुद डीसीपी नितिन पाटिल था ।
“एट लास्‍ट !” - चैन की लम्‍बी सांस के साथ स्‍वयंमेव नीलेश के मुंह से निकला ।

उपसंहार

आइलैंड पर तूफान का जोर और चौबीस घंटे अपने जलाल पर रहा ।
और दो दिन वहां मुकम्‍मल शांति स्‍थापित होने में और वहां की जिंदगी के अपने नार्मल ढ़र्रे पर लौट आने में लगे । फिर धीरे धीरे टूरिस्‍ट भी लौटने लगे और ऐसा लगने लगा जैसे वहां कुछ हुआ ही नहीं था ।
अलबत्‍ता कुछ टूरिस्‍ट साफ कहते सुने गये कि वो कैसीनो को मिस करते थे ।
मैग्‍नारो की गिरफ्तारी के साथ कैसीनो ही बंद न हुआ, उसका होटल भी बंद हो गया । ये बात भी दिलचस्‍पी से खाली नहीं थी कि उसके काले धंधों की सबसे ज्‍यादा, सबसे मुस्‍तैद पोल उसके बॉडीगार्ड ने खोली । उसी ने कोंसिका क्‍लब और मनोरंजन पार्क में मौजुद उन खुफिया ठिकानों की खबर दी जहां कि नॉरकॉटिक्‍स का स्‍टॉक रखा जाता था और यूं बडा जखीर पकड़वाया ।

बाजरिया पुलिस, जिस ट्रंक को वहां से निकालने की कोशि‍श की जा रही थी, उसको खोला गया तो उसमें से लोकल और फारेन करंसी में करोड़ों रुपया बरामद हुआ और उन लोंगो की मुकम्‍मल जानकारी बरामद हुई जो मैग्‍नारो को नॉरकॉटिक्‍स मुहैया कराते थे । नतीजतन मुम्‍बई और गोवा में बड़ी धड़पकड़ हुई ।
आर्म्‍स समगलिंग का अड्डा कोनाकोना आइलैंड न निकला । मुम्‍बई पुलिस की ये जानकारी गलत साबित हुई कि मैग्‍नारो आर्म्‍स समगलर भी था । निर्विवाद रुप से स्‍थापित हुआ कि उसका फील्‍ड नॉरकॉटिक्‍स और गेम्‍बलिंग - मटका, सट्टा, कैसीनो, कुछ भी - ही था ।
हेमराज पाण्‍डेय को बाइज्‍जत रिहा कर दिया गया ।

ये बड़ी शर्मनाक बात थी कि तूफान के पहले दिन, जबकी भाटे की मौजूदगी के अलावा पूरा थाना खाली था, जब बाद में वो भी मोकाशी पिता पुत्री के साथ वहां से कूच कर गया था, किसी को - खुद भाटे को भी नहीं, नीलेश को भी नहीं - लॉकअप में बंद पाण्‍डेय का खयाल नहीं आया था । नयी तैनाती के बाद जब उसकी तरफ आखिर किसी की तवज्‍जो गयी थी तो उसे लॉकअप में घुटनों घुटनों पानी में खड़े थर थर कांपते पाया गया था ।
जब पानी लॉकअप में घुस आया तो शोर क्‍यों न मचाया ?

थानेदार साहब के खौफ ने मुंह न खुलने दिया । शोर मचाकर वो उनका कहर नहीं जगाना चाहता था ।
ऐन टॉप से आर्डर हुई बहुत खुफिया तफ्तीश के बाद ये भी स्‍थापित हुआ था कि डीसीपी जठार का या उसके मातहत किसी सीनियर आफिसर का एसएचओ महाबोले से कोई तालमेल, कोई गंठजोड़ नहीं था, कोई उसके काले कारनामों में न शरीक था, न उनसे वाकिफ था । लिहाजा आइलैंड पर अपने पद का जो बेजा इस्‍तेमाल महाबोले करता था, वो उसका वन मैन शो था । अपने मातहतों को काबू में रखना के लिये ये उसी की स्‍थापित की हुई अफवाह थी कि उसके सिर पर डीसीपी जठार का हाथ था ।

मुरुड लौट कर डीसीपी जठार ने अपने वादे के मुताबिक मकतूला रोमिला सावंत की पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट का पुनरावलोकन किया था तो पाया था कि मकतूला के नाखूनों के संदर्भ में अटॉप्‍सी सर्जन की कोई ऑब्‍जर्वेशन उसमें दर्ज नहीं थी । फिर डीसीपी जठार ने खुद मोर्ग में तब भी उपलब्‍ध मकतूला की लाश का मुआयाना किया था तो उसने उसके दायें हाथ की तीन उंगलियों के लम्‍बे नाखूनों के नीचे चमड़ी के अवशेष मौजूद पाये थे जिनकी डीएनए स्‍क्रीनिंग से निर्विवाद रुप से स्‍थापित हुआ था कि वो महाबोले की चमड़ी के अवशेष थे । महाबोले की लाश के फिजीकल एग्‍जामीनेशन से उसकी गर्दन पर बायीं ओर कान के पीछे से लेकर हंसली की हड्डी तक अपनी कहानी खुद कहती तीन खरोंचें पायी गयी थीं जो कि वर्दी के बटन टॉप तक बंद रखे जाने की वजह से वर्दी के नीचे छुप जाती थीं ।

अपने पद के दुरुपयोग से सम्‍बंधित कई चार्ज तो महाबोले अगर जिंदा रहता तो उस पर लगते ही लगते लेकिन वो उसकी नौकरी छुड़ाने और उसे कोई छोटी मोटी सजा दिलाने के ही काबिल होते । मरणोपरांत अब वो कत्‍ल का मुजरिम भी साबित हुआ था इसलिये मर कर उम्र कैद या फांसी जैसी किसी गम्‍भीर सजा से वो बच गया था ।
तूफान का प्रकोप खत्‍म होते ही कोनाकोना आइलैंड का सारा थाना मुअत्‍तल कर दिया गया था, अलबत्‍ता सबका ये आश्‍वासन था कि इंडिविजुअल स्‍क्रीनिंग पर जिस किसी को भी निर्दोष पाया जायेगा, उसको उसकी ओरीजिनल ड्यूटी पर बहाल कर दिया जायेगा ।

सिपाही दयाराम भाटे के लिये खुद नीलेश ने बाजरिया डीसीपी पाटिल रियायत और नर्मी की सिफारिश लगवाई थी । उसने थाने के ईमानदार पुलिसियों को एकजुट करने में जो मेहनत कर दिखाई थी, वो उसके कई पाप धोने में कामयाब हुई थी । ये दीगर बात थी कि उन पुलिसियों के कुछ कर दिखा पाने से पहले ही पीएसी की टुकड़ी ने ‘इंम्‍पीरियल रिट्रीट’ को अपने घेरे और कब्‍जे में ले लिया था ।
भाटे के बयान से मकतूला रोमिला सावंत के हैण्‍डबैग की स्‍टोरी भी सामने आयी, आखिर वो बैग बरामद भी हुआ जिसमें मौजुद चौदह सौ रुपये महाबोले के हुक्‍म पर भाटे ने खुद निकाले थे-वारदात के बहुत बाद निकाले थे । उस एक बात ने महाबोले के पाण्‍डेय के खिलाफ गढ़े पूरे-फर्जी-केस को ही धराशायी कर दिया ।

उस रहस्‍योद्घाटन के बाद नीलेश को मिसेज वालसन फिर याद आयी जिसने महाबोले की धमकी में आकर क्रॉस को छू कर झूठ बोलने का महापाप किया था ।
मिसेज वालसन की जान भी महाबोले के खिलाफ गवाह बनने से ही छूटी ।
कानून से तो उसको कोई सजा न मिली लेकिन पश्‍चाताप की मारी जब वो चर्च में, कनफेशन में गयी और जा कर ‘फादर, आई हैव सिंड’ बोला तो पादरी ने उसे छ: महीने की कम्‍युनिटी सर्विस की सजा सुनाई ।
हवालदार खत्री ने दिवंगत महाबोले के खिलाफ गवाह बनना कुबूल किया था और उसके हिमायती करप्‍ट पुलिसियों की शिनाख्‍त का जरिया बन कर उनके खिलाफ भी गवाह बनना कबुल किया था इसलिये उसका दर्जा वादामाफ गवाह का बन गया था लेकिन नौकरी से बर्खास्‍तगी से वो दर्जा उसे नहीं बचा सकता था ।

नीलेश को अपनी इंस्‍पेक्‍टर की नौकरी पर बहाली का परवाना आइलैंड पर ही मिल गया । तूफान के गुजर जाने के तुरंत बाद कोस्‍ट गार्ड्स आइलैंड पर अपनी बैरकों में वापिस लौट आये थे और उनके कम्‍युनीकेशन नैटवर्क पर नीलेश की बहाली की चिट्ठी रिसीव की गयी थी और उसकी हार्ड कापी आगे नीलेश को सौंपी गयी थी ।
बाइज्‍जत बहाली !
अब नीलेश गोखले - इंस्‍पेक्‍टर, मुम्‍बई पुलिस - के दामन पर उसकी गुजश्‍ता बद्कारियों का कोई दाग नहीं था ।
अपनी किराये की आल्‍टो की सुध लेने नीलेश थाने पहुंचा तो कम्‍पाउंड में श्‍यामला उसे अपनी वैगन-आर में सवार होती दिखाई दी ।

ऑल्टो को भूल कर वो लपक कर वैगन-आर के करिब पहुंचा जिसे कि श्‍यामला तब तक स्‍टार्ट कर चुकी थी और गियर में डालने के उपक्रम में थी ।
“रुको, रुको ।” - वो हांफता सा बोला ।
श्‍यामला ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा ।
“मैं तुम से बात करना चाहता हूं ।” - नीलेश बोला ।
“करो ।”
“ऐसे नहीं ।”
श्‍यामला ने इग्‍नीशन आफ किया ।
“अब करो ।”
“मेरा मतलब है यहां नहीं ।”
“तो और कहां ?”
“यहां के अलावा कहीं भी ।”
“कहीं कहां ?”
“तुम बोलो ।”
भवें सिकोड़े उसने उस बात पर विचार किया ।

“करीब ही एक कैफे है ।” - फिर अनिश्चित भाव से बोली ।
“ठी‍क है ।”
“चलो ।”
“कैसे ? तुम्‍हारी कार के पीछे दौड़ लगाता ?”
जवाब में श्‍यामला ने खामोशी से पैसेंजर साइड का दरवाजा खोला ।
 
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