desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
एक साथ !
बिल्कुल एक साथ सबकी गर्दनें उस भयानक आवाज की दिशा में घूमी ।
और !
अगले पल एक और एटम बम फट गया ।
बल्कि एटम-बम से भी खतरनाक कोई बम !
उन सबके सामने बल्ले खड़ा था ।
काला भुजंग बल्ले !
वो बल्ले!
जिसके हाथ में इस समय रिवॉल्वर थी और होठों पर बेहद कातिलाना मुस्कान मटरगश्ती कर रही थी ।
“व...वडी तुम !” बल्ले को वहाँ देखकर सेट दीवानचन्द के नेत्र अचम्भे से फैल गये- “तुम अंदर किधर से आये ?”
“उसी गुप्त रास्ते से आया ।” बल्ले एक ही रिवॉल्वर से उन सबको कवर करता हुआ बोला- जिस रास्ते का इस्तेमाल सेठ दीवानचन्द या तो कभी-कभार सिर्फ तुम करते हो या फिर तुम्हारे अलावा मेरे चाचा चीना पहलवान भी कभी-कभी उस गुप्त रास्ते का इस्तेमाल किया करते थे । जबकि तुम्हारे यह दोनों प्यादे दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे उस रास्ते के बारे में कुछ नहीं जानते ।”
पाटिल और पाण्डे- उन दोनों के नेत्र अचम्भे से फैल गये ।
वाकई इस रहस्य से तो वह भी वाकिफ नहीं थे कि वहाँ कोई और गुप्त रास्ता भी है ।
खुद सेठ दीवानचन्द भी सन्न-सा बैठा था- उसे अपने हाथ-पैर बर्फ होते महसूस दिये ।
“वडी इसका मतलब दुर्लभ ताज चुराने की जो मास्टर पीस योजना हमें मिली- वह हरकत भी तुम्हारी थी ?”
“नहीं ।” काले भुजंग बल्ले ने बड़ी ईमानदारी के साथ इंकार में गर्दन हिलाई- “वह काली हरकत नहीं थी । दरअसल जबसे मैंने छुपकर तुम लोगों की बातचीत सुनी है- तबसे खुद मेरे दिमाग में भी रह-रहकर यही एक सवाल कौंध रहा है कि तुम लोगों के पास वह योजना भेजी तो किसने भेजी ।”
सब आवाक् रह गये ।
यूं हतप्रभ और भौंचक्के- मानों किसी दुर्घटना के श्राप से पत्थर की शिला में बदल गये हों ।
“व...वडी यह योजना वाकई तुमने नहीं भेजी ?”
“नहीं ।”
सबकी हैरानी बढ़ती जा रही थी ।
“बहरहाल अब तुम लोगों को यह सोच-सोचकर परेशान होने की जरूरत नहीं है कि तुम्हें वह योजना भेजी तो किसने भेजी ।
“क्यों ?” डॉन मास्त्रोनी बोला- “परेशान होने की जरूरत क्यों नहीं है ।”
“क्योंकि जो दुर्लभ ताज तुम लोगों की बर्बादी का कारण बन सकता है- उस ताज को मैं अपने साथ लिये जा रहा हूँ ।”
“नहीं ।” दुष्यंत पाण्डे एकाएक हलक फाड़कर चीखता हुआ कुर्सी से खड़ा हो गया- “तुम इस दुर्लभ ताज को यहाँ से नहीं ले जा सकते ।”
“मैं इसे ले जाऊंगा बिरादर !” बल्ले के चेहरे पर हिंसक भाव उभर आये- “और इस दुर्लभ ताज को आज मुझे ले जाने से कोई नहीं रोक सकता । तुम शायद नहीं जानते- मैं पिछले कई दिन से इसी समय का इंतजार कर रहा था । मैंने अपने चाचा की मौत पर सौगन्ध खाई थी कि अगर मैंने एक सप्ताह के अंदर-अंदर राज का खून न कर दिया- तो मैं अपने बाप से पैदा नहीं । और सौगन्ध वाले दिन से आज तक मुझे ऐसे कई मौके मिले- जब मैं बड़ी आसानी से राज का खून कर सकता था । लेकिन जानते हो- मैंने अभी तक इसका खून क्यों नहीं किया ?”
“क...क्यों नहीं किया ?”
“क्योंकि मुझे मालूम हो गया था कि यह तुम लोगों के साथ मिलकर दुर्लभ ताज चुराने के चक्कर में लगा हुआ है- उसी क्षण मैंने फैसला कर लिया कि मैं एक तीर से दो शिकार करूंगा । सबसे पहले इस दुर्लभ ताज को हड़पूंगा- जिसे चुराने के लिये तुम सब मरे जा रहे थे और इस हरामजादे का खून भी करूंगा । मैं तुम सबकी एक-एक हरकत पर नजर रखने लगा । और देखो !” बल्ले खिलखिलाकर हंसा- “देखो- आज सारे पासे किस तरह पलटे हुए हैं बिरादर! दुर्लभ ताज को चुराने के लिये सारी मेहनत तुम लोगों ने की- रात दिन जागकर प्रयास किये और अब उसी दुर्लभ ताज को तुम लोगों के सामने से मैं उठाकर ले जाऊंगा । तुम मुझे रोक भी नहीं सकते- क्योंकि अगर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश की तो इस रिवॉल्वर से तुम सबके दिमाग की धज्जियां उड़ जानी है ।”
सब सन्न बैठे थे- बिल्कल सन्न !
जबकि राज के शरीर में चींटियां-सी रेंग रही थीं ।
उधर- मुस्कराते हुए आगे बढ़ा बल्ले! फिर उसने बे-हिचक आयताकार मेज पर रखा दुर्लभ ताज उठा लिया ।
फिर वो ताज उठाकर राज की तरफ घूमा ।
“अब तुम मरने के लिये तैयार हो जाओ राज !” बल्ले का चेहरा एकाएक खून से लिथड़ा हुआ नजर आने लगा था- उसने रिवॉल्वर राज की तरफ तान दी- तुम इस दुर्लभ ताज की बदौलत कई दिन फालतू जी चुके हो लेकिन अब तुम्हारा मरना तय है ।”
उसी क्षण मानो गजब हो गया ।
एकाएक राज ने वो किया- जिसकी कोई उस जैसा आदमी से कल्पना भी नहीं कर सकता था ।
बल्ले की रिवॉल्वर गोली उगल पाती- उससे पहले ही राज का पौने छः फुट लम्बा जिस्म रबड़ के किसी खिलौने की भांति हवा में उछला ।
उसने कलाबाजी खायी और फिर धड़ाधड़ उसकी दोनों लातें बड़ी तूफानी गति से बल्ले के सीने पर पड़ीं ।
चीख उठा बल्ले !
उसके हाथ से रिवॉल्वर छूटकर दूर जा गिरी ।
धायं!
तभी किसी ने गोली चलायी- फौरन बल्ले की खोपड़ी तरबूज की तरह फट गयी ।
बल्ले हलकाये कुत्ते की तरह डकराता हुआ नीचे गिरा और नीचे गिरते ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गये ।
उसका चेहरा मरने से पहले बेहद वीभत्स हो गया था ।
राज भौंचक्की अवस्था में उस तरफ पलटा- जिधर से गोली चलायी गयी थी ।
गोली डॉन मास्त्रोनी ने चलायी थी- और इस समय वो रिवॉल्विंग चेयर की पुश्तगाह से पीठ टिकाये बैठा बड़े इत्मीनान से अपने रिवॉल्वर की नाल में फूंक मार रहा था ।
अभी वह सब बल्ले की अकस्मात् मौत से उभर भी न पाये थे कि तभी घटनाक्रम में एक और नया मोड़ आया ।
उन सभी ने अड्डे के ऊपर तेज शोर-शराबे की आवाज सुनी ।
उन्हें ऐसा लगा- जैसे ज्वैलरी शॉप में ढेर सारे लोग आ जा रहे हैं ।
“वडी !” सबसे पहले सेठ दीवानचन्द के कान खड़े हुए- “वडी यह ऊपर क्या हो रहा है- यह ऊपर कैसी हलचल-सी मची है ।”
डॉन मास्त्रोनी के चेहरे पर भी पसीने की बूंदें चुहचुहा आयीं ।
“जरूर कुछ गड़बड़ है ।” डॉन मास्त्रोनी बोला- “जरूर कुछ घपला है ।”
“मैं ऊपर जाकर देखता हूँ कि क्या चक्कर है ।” दशरथ पाटिल झटके से कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया ।
फिर वो तेजी से उन सीढ़ियों का तरफ दौड़ा- जो ऊपर ज्वैलरी शॉप की तरफ जाती थीं ।
उस ज्वैलरी शॉप में इस समय सिर्फ एक सेल्समैन बैठा था- जो संगठन का ही मेम्बर था ।
☐☐☐
दशरथ पाटिल सीढ़ियां चढ़कर जितनी तेजी से ऊपर गया- उतनी ही तेजी से वो वापस लौटा ।
लेकिन उन चंद सेकेंड में ही उसकी दहशत से बुरी हालत हो चुकी थी- वह यूँ पत्ते की भांति थर-थर कांप रहा था, मानो उसने साक्षात मौत के दर्शन कर लिये हों ।
“व...वडी क्या हुआ ?” उसे यूं घबराया देखकर दीवानचन्द के दिल में भी हौल उठी- “वडी तू इस तरह थर-थर क्यों कांप रहा है ?”
“ब...बॉस-बॉस !” दशरथ पाटिल शुष्क स्वर में बोला- “पुलिस ने हमारे अड्डे को चारों तरफ से घेर लिया है- लगता है कि किसी ने पुलिस को हमारे संगठन के बारे में इन्फॉर्मेशन दे दी है ।”
“क...क्या ?” सब उछल पड़े- “प...पुलिस-पुलिस आ गयी ।”
सब ‘पीले’ पड़ गये ।
“साईं !” दीवानचन्द झटके से कुर्सी छोड़कर खड़ा होता हुआ बोला- “हमें, फौरन अड्डे से भाग निकलना चाहिये- जल्दी करो- जल्दी ।”
“ल...लेकिन किधर से भागे बॉस !” दशरथ पाटिल के जिस्म का एक-एक रोआं खड़ा था- “ऊपर ज्वैलरी शॉप में पुलिस है- जरूर पीछे वाले मकान में भी अब तक पुलिस पहुँच गयी होगी ।”
“वडी तुम सब मेरे पीछे-पीछे आओ ।” सेठ दीवानचन्द बौखलाया-सा बोला- हम उस गुप्त रास्ते से भागते हैं- जिसका इस्तेमाल आज तक सिर्फ मैं करता रहा हूँ या फिर कभी-कभी चीना पहलवान भी किया करता था । वडी रास्ता पीछे वाली गली में ही बनी एक बहुत खूबसूरत कोठी में खुलता है ।
सब बड़ी सस्पेंसफुल स्थिति में दीवानचन्द के पीछे-पीछे लपके ।
वह कॉफ्रेंस हॉल से निकलकर एक दूसरे कमरे में पहुंचे ।
वहाँ भी दीवार पर एक अर्द्धनग्न लड़की की काफी बड़ी पेंटिंग लगी हुई थी- जो बड़ी मोटी-मोटी कीलों से दीवार पर फिक्स नजर आ रही थी ।
लेकिन सेठ दीवानचन्द ने उस पेंटिंग को दीवार से कैलेंडर की तरह उतारकर एक तरफ रख दिया ।
तब मालूम हुआ कि पेंटिंग में जो मोटी-मोटी कालें लगी हुई आ रही थीं- वह दिखावटी थीं ।
पेंटिंग के उतरते ही उसके पीछे स्टेयरिंग व्हील जैसा एक नजर आने लगा ।
दीवानचन्द ने उस चक्के को घुमाया- तो उसके पीछे का हिस्सा स्लाइडिंग डोर की तरह एक तरफ सरक गया ।
फौरन वहाँ काफी लम्बी सुरंग नजर आने लगी ।
☐☐☐
तुरन्त फिर एक ऐसी घटना घटी- जो अब तक घटी तमाम घटनाओं में सबसे ज्यादा हंगामाखेज थी और उस घटना के बाद सबका खेल खत्म हो गया ।
स्लाइडिंग डोर के हटने के बाद जैसे-जैसे ही सुरंग का दहाना नजर आया- तो राज तुरन्त दौड़कर सबसे पहले उस सुरंग में घुस गया ।
सुरंग में घुसते ही वो फिरकनी की तरह उन सबकी तरफ घूमा- इस बीच उसके हाथ में 38 कैलिबर की एक पुलिस स्पेशल रिवॉल्वर भी आ गयी थी ।
“डोंट मूव !” राज गला फाड़कर चिल्लाया- “अगर कोई एक कदम भी आगे बढ़ा- तो मैं उसे शूट कर दूंगा ।”
“व...वडी यह क्या मजाक है ?” दीवानचन्द भी चिल्लाया- यह क्या बकवास है राज !”
“राज नहीं ।” राज ने सख्ती से दांत किटकिटाये- “बल्कि मुझे राज प्रताप सिन्हा बोलो दीवानचन्द- मैं दिल्ली पुलिस की स्पेशल क्राइम ब्रांच का इंस्पेक्टर हूँ !”
“स...स्पेशल क्राइम ब्रांच का इंस्पेक्टर ।”
सबके दिल-दिमाग पर भीषण बिजली-सी गड़गड़ाकर गिरी ।
सब भौंचक्के रह गये ।
“साईं !” दीवानचन्द बोला- “साई- तू जरूर मजाक कर रहा है ।”
मैं तुम सब के साथ मजाक ही रह रहा था । राज गरजता हुआ बोला- लेकिन आज नहीं बल्कि आज से पहले तक मैंने मजाक किया था । तीन जुलाई दिन बुधवार की रात से आज तक जितनी भी घटनायें घटीं- वह सब मेरे दिमाग की उपज हैं- मेरे दिमाग की उपज! और यह पूरा तिलिस्म इसलिये बिछाया गया- ताकि तुम सब लोगों को रंगे हाथों गिरफ्तार किया जा सके ।”
“इ...इसका मतलब यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है ?” डॉन मास्त्रोनी की आंखें भी फटीं ।
“हाँ- यह सब मेरी वजह से हुआ है ।”
“यू चीट- फुलिश ।” डॉन मास्त्रोनी चिल्ला उठा- “यू कान्ट गैट अवे लाइक दिस- यू डोन्ट डिज़र्ट फॉरगिवनेस ।”
“व्हाई आर यू लूजिंग टेम्पर ?” राज भी अंग्रेजी में ही चिल्लाया- “तुम आपे से बाहर क्यों हो रहे हो मूर्ख आदमी- तुम्हें शायद मालूम नहीं है कि तुम्हारा सारा खेल खत्म हो चुका है और अब तुम हिन्दुस्तानी पुलिस के मेहमान हो ।”
यही वो क्षण था- जब इंस्पेक्टर योगी अपनी पूरी पुलिस पलटन के साथ ज्वैलरी शॉप वाला दरवाजा तोड़कर वहाँ आ घुसा । इतना ही नहीं- ढेर सारे पुलिसकर्मी पिछले मकान वाले रास्ते से भी वहाँ आ गये थे ।
देखते-ही-देखते अड्डे में चारों तरफ पुलिस फैल गयी ।
इतनी पुलिस को देखकर डॉन मास्त्रोनी और उसके साथियों के रहे-सहे कस-बल भी ढीले पड़ गये ।
इंस्पेक्टर योगी ने आते ही राज को जोरदार सैल्यूट मारा- फिर आदर से गर्दन झुकाकर बोला- “मुझे आपकी पोस्ट के बारे में मालूम हो चुका है सर !”
राज सिर्फ आहिस्ता से मुस्करा दिया ।
जबकि अन्य पुलिसकर्मियों ने डॉली को छोड़कर बाकी सबके हाथों में हथकड़ियां पहना दी थी ।
डॉली!
जो उस जबरदस्त रहस्योद्घाटन से खुद बहुत हैरान थी ।
☐☐☐
बिल्कुल एक साथ सबकी गर्दनें उस भयानक आवाज की दिशा में घूमी ।
और !
अगले पल एक और एटम बम फट गया ।
बल्कि एटम-बम से भी खतरनाक कोई बम !
उन सबके सामने बल्ले खड़ा था ।
काला भुजंग बल्ले !
वो बल्ले!
जिसके हाथ में इस समय रिवॉल्वर थी और होठों पर बेहद कातिलाना मुस्कान मटरगश्ती कर रही थी ।
“व...वडी तुम !” बल्ले को वहाँ देखकर सेट दीवानचन्द के नेत्र अचम्भे से फैल गये- “तुम अंदर किधर से आये ?”
“उसी गुप्त रास्ते से आया ।” बल्ले एक ही रिवॉल्वर से उन सबको कवर करता हुआ बोला- जिस रास्ते का इस्तेमाल सेठ दीवानचन्द या तो कभी-कभार सिर्फ तुम करते हो या फिर तुम्हारे अलावा मेरे चाचा चीना पहलवान भी कभी-कभी उस गुप्त रास्ते का इस्तेमाल किया करते थे । जबकि तुम्हारे यह दोनों प्यादे दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे उस रास्ते के बारे में कुछ नहीं जानते ।”
पाटिल और पाण्डे- उन दोनों के नेत्र अचम्भे से फैल गये ।
वाकई इस रहस्य से तो वह भी वाकिफ नहीं थे कि वहाँ कोई और गुप्त रास्ता भी है ।
खुद सेठ दीवानचन्द भी सन्न-सा बैठा था- उसे अपने हाथ-पैर बर्फ होते महसूस दिये ।
“वडी इसका मतलब दुर्लभ ताज चुराने की जो मास्टर पीस योजना हमें मिली- वह हरकत भी तुम्हारी थी ?”
“नहीं ।” काले भुजंग बल्ले ने बड़ी ईमानदारी के साथ इंकार में गर्दन हिलाई- “वह काली हरकत नहीं थी । दरअसल जबसे मैंने छुपकर तुम लोगों की बातचीत सुनी है- तबसे खुद मेरे दिमाग में भी रह-रहकर यही एक सवाल कौंध रहा है कि तुम लोगों के पास वह योजना भेजी तो किसने भेजी ।”
सब आवाक् रह गये ।
यूं हतप्रभ और भौंचक्के- मानों किसी दुर्घटना के श्राप से पत्थर की शिला में बदल गये हों ।
“व...वडी यह योजना वाकई तुमने नहीं भेजी ?”
“नहीं ।”
सबकी हैरानी बढ़ती जा रही थी ।
“बहरहाल अब तुम लोगों को यह सोच-सोचकर परेशान होने की जरूरत नहीं है कि तुम्हें वह योजना भेजी तो किसने भेजी ।
“क्यों ?” डॉन मास्त्रोनी बोला- “परेशान होने की जरूरत क्यों नहीं है ।”
“क्योंकि जो दुर्लभ ताज तुम लोगों की बर्बादी का कारण बन सकता है- उस ताज को मैं अपने साथ लिये जा रहा हूँ ।”
“नहीं ।” दुष्यंत पाण्डे एकाएक हलक फाड़कर चीखता हुआ कुर्सी से खड़ा हो गया- “तुम इस दुर्लभ ताज को यहाँ से नहीं ले जा सकते ।”
“मैं इसे ले जाऊंगा बिरादर !” बल्ले के चेहरे पर हिंसक भाव उभर आये- “और इस दुर्लभ ताज को आज मुझे ले जाने से कोई नहीं रोक सकता । तुम शायद नहीं जानते- मैं पिछले कई दिन से इसी समय का इंतजार कर रहा था । मैंने अपने चाचा की मौत पर सौगन्ध खाई थी कि अगर मैंने एक सप्ताह के अंदर-अंदर राज का खून न कर दिया- तो मैं अपने बाप से पैदा नहीं । और सौगन्ध वाले दिन से आज तक मुझे ऐसे कई मौके मिले- जब मैं बड़ी आसानी से राज का खून कर सकता था । लेकिन जानते हो- मैंने अभी तक इसका खून क्यों नहीं किया ?”
“क...क्यों नहीं किया ?”
“क्योंकि मुझे मालूम हो गया था कि यह तुम लोगों के साथ मिलकर दुर्लभ ताज चुराने के चक्कर में लगा हुआ है- उसी क्षण मैंने फैसला कर लिया कि मैं एक तीर से दो शिकार करूंगा । सबसे पहले इस दुर्लभ ताज को हड़पूंगा- जिसे चुराने के लिये तुम सब मरे जा रहे थे और इस हरामजादे का खून भी करूंगा । मैं तुम सबकी एक-एक हरकत पर नजर रखने लगा । और देखो !” बल्ले खिलखिलाकर हंसा- “देखो- आज सारे पासे किस तरह पलटे हुए हैं बिरादर! दुर्लभ ताज को चुराने के लिये सारी मेहनत तुम लोगों ने की- रात दिन जागकर प्रयास किये और अब उसी दुर्लभ ताज को तुम लोगों के सामने से मैं उठाकर ले जाऊंगा । तुम मुझे रोक भी नहीं सकते- क्योंकि अगर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश की तो इस रिवॉल्वर से तुम सबके दिमाग की धज्जियां उड़ जानी है ।”
सब सन्न बैठे थे- बिल्कल सन्न !
जबकि राज के शरीर में चींटियां-सी रेंग रही थीं ।
उधर- मुस्कराते हुए आगे बढ़ा बल्ले! फिर उसने बे-हिचक आयताकार मेज पर रखा दुर्लभ ताज उठा लिया ।
फिर वो ताज उठाकर राज की तरफ घूमा ।
“अब तुम मरने के लिये तैयार हो जाओ राज !” बल्ले का चेहरा एकाएक खून से लिथड़ा हुआ नजर आने लगा था- उसने रिवॉल्वर राज की तरफ तान दी- तुम इस दुर्लभ ताज की बदौलत कई दिन फालतू जी चुके हो लेकिन अब तुम्हारा मरना तय है ।”
उसी क्षण मानो गजब हो गया ।
एकाएक राज ने वो किया- जिसकी कोई उस जैसा आदमी से कल्पना भी नहीं कर सकता था ।
बल्ले की रिवॉल्वर गोली उगल पाती- उससे पहले ही राज का पौने छः फुट लम्बा जिस्म रबड़ के किसी खिलौने की भांति हवा में उछला ।
उसने कलाबाजी खायी और फिर धड़ाधड़ उसकी दोनों लातें बड़ी तूफानी गति से बल्ले के सीने पर पड़ीं ।
चीख उठा बल्ले !
उसके हाथ से रिवॉल्वर छूटकर दूर जा गिरी ।
धायं!
तभी किसी ने गोली चलायी- फौरन बल्ले की खोपड़ी तरबूज की तरह फट गयी ।
बल्ले हलकाये कुत्ते की तरह डकराता हुआ नीचे गिरा और नीचे गिरते ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गये ।
उसका चेहरा मरने से पहले बेहद वीभत्स हो गया था ।
राज भौंचक्की अवस्था में उस तरफ पलटा- जिधर से गोली चलायी गयी थी ।
गोली डॉन मास्त्रोनी ने चलायी थी- और इस समय वो रिवॉल्विंग चेयर की पुश्तगाह से पीठ टिकाये बैठा बड़े इत्मीनान से अपने रिवॉल्वर की नाल में फूंक मार रहा था ।
अभी वह सब बल्ले की अकस्मात् मौत से उभर भी न पाये थे कि तभी घटनाक्रम में एक और नया मोड़ आया ।
उन सभी ने अड्डे के ऊपर तेज शोर-शराबे की आवाज सुनी ।
उन्हें ऐसा लगा- जैसे ज्वैलरी शॉप में ढेर सारे लोग आ जा रहे हैं ।
“वडी !” सबसे पहले सेठ दीवानचन्द के कान खड़े हुए- “वडी यह ऊपर क्या हो रहा है- यह ऊपर कैसी हलचल-सी मची है ।”
डॉन मास्त्रोनी के चेहरे पर भी पसीने की बूंदें चुहचुहा आयीं ।
“जरूर कुछ गड़बड़ है ।” डॉन मास्त्रोनी बोला- “जरूर कुछ घपला है ।”
“मैं ऊपर जाकर देखता हूँ कि क्या चक्कर है ।” दशरथ पाटिल झटके से कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया ।
फिर वो तेजी से उन सीढ़ियों का तरफ दौड़ा- जो ऊपर ज्वैलरी शॉप की तरफ जाती थीं ।
उस ज्वैलरी शॉप में इस समय सिर्फ एक सेल्समैन बैठा था- जो संगठन का ही मेम्बर था ।
☐☐☐
दशरथ पाटिल सीढ़ियां चढ़कर जितनी तेजी से ऊपर गया- उतनी ही तेजी से वो वापस लौटा ।
लेकिन उन चंद सेकेंड में ही उसकी दहशत से बुरी हालत हो चुकी थी- वह यूँ पत्ते की भांति थर-थर कांप रहा था, मानो उसने साक्षात मौत के दर्शन कर लिये हों ।
“व...वडी क्या हुआ ?” उसे यूं घबराया देखकर दीवानचन्द के दिल में भी हौल उठी- “वडी तू इस तरह थर-थर क्यों कांप रहा है ?”
“ब...बॉस-बॉस !” दशरथ पाटिल शुष्क स्वर में बोला- “पुलिस ने हमारे अड्डे को चारों तरफ से घेर लिया है- लगता है कि किसी ने पुलिस को हमारे संगठन के बारे में इन्फॉर्मेशन दे दी है ।”
“क...क्या ?” सब उछल पड़े- “प...पुलिस-पुलिस आ गयी ।”
सब ‘पीले’ पड़ गये ।
“साईं !” दीवानचन्द झटके से कुर्सी छोड़कर खड़ा होता हुआ बोला- “हमें, फौरन अड्डे से भाग निकलना चाहिये- जल्दी करो- जल्दी ।”
“ल...लेकिन किधर से भागे बॉस !” दशरथ पाटिल के जिस्म का एक-एक रोआं खड़ा था- “ऊपर ज्वैलरी शॉप में पुलिस है- जरूर पीछे वाले मकान में भी अब तक पुलिस पहुँच गयी होगी ।”
“वडी तुम सब मेरे पीछे-पीछे आओ ।” सेठ दीवानचन्द बौखलाया-सा बोला- हम उस गुप्त रास्ते से भागते हैं- जिसका इस्तेमाल आज तक सिर्फ मैं करता रहा हूँ या फिर कभी-कभी चीना पहलवान भी किया करता था । वडी रास्ता पीछे वाली गली में ही बनी एक बहुत खूबसूरत कोठी में खुलता है ।
सब बड़ी सस्पेंसफुल स्थिति में दीवानचन्द के पीछे-पीछे लपके ।
वह कॉफ्रेंस हॉल से निकलकर एक दूसरे कमरे में पहुंचे ।
वहाँ भी दीवार पर एक अर्द्धनग्न लड़की की काफी बड़ी पेंटिंग लगी हुई थी- जो बड़ी मोटी-मोटी कीलों से दीवार पर फिक्स नजर आ रही थी ।
लेकिन सेठ दीवानचन्द ने उस पेंटिंग को दीवार से कैलेंडर की तरह उतारकर एक तरफ रख दिया ।
तब मालूम हुआ कि पेंटिंग में जो मोटी-मोटी कालें लगी हुई आ रही थीं- वह दिखावटी थीं ।
पेंटिंग के उतरते ही उसके पीछे स्टेयरिंग व्हील जैसा एक नजर आने लगा ।
दीवानचन्द ने उस चक्के को घुमाया- तो उसके पीछे का हिस्सा स्लाइडिंग डोर की तरह एक तरफ सरक गया ।
फौरन वहाँ काफी लम्बी सुरंग नजर आने लगी ।
☐☐☐
तुरन्त फिर एक ऐसी घटना घटी- जो अब तक घटी तमाम घटनाओं में सबसे ज्यादा हंगामाखेज थी और उस घटना के बाद सबका खेल खत्म हो गया ।
स्लाइडिंग डोर के हटने के बाद जैसे-जैसे ही सुरंग का दहाना नजर आया- तो राज तुरन्त दौड़कर सबसे पहले उस सुरंग में घुस गया ।
सुरंग में घुसते ही वो फिरकनी की तरह उन सबकी तरफ घूमा- इस बीच उसके हाथ में 38 कैलिबर की एक पुलिस स्पेशल रिवॉल्वर भी आ गयी थी ।
“डोंट मूव !” राज गला फाड़कर चिल्लाया- “अगर कोई एक कदम भी आगे बढ़ा- तो मैं उसे शूट कर दूंगा ।”
“व...वडी यह क्या मजाक है ?” दीवानचन्द भी चिल्लाया- यह क्या बकवास है राज !”
“राज नहीं ।” राज ने सख्ती से दांत किटकिटाये- “बल्कि मुझे राज प्रताप सिन्हा बोलो दीवानचन्द- मैं दिल्ली पुलिस की स्पेशल क्राइम ब्रांच का इंस्पेक्टर हूँ !”
“स...स्पेशल क्राइम ब्रांच का इंस्पेक्टर ।”
सबके दिल-दिमाग पर भीषण बिजली-सी गड़गड़ाकर गिरी ।
सब भौंचक्के रह गये ।
“साईं !” दीवानचन्द बोला- “साई- तू जरूर मजाक कर रहा है ।”
मैं तुम सब के साथ मजाक ही रह रहा था । राज गरजता हुआ बोला- लेकिन आज नहीं बल्कि आज से पहले तक मैंने मजाक किया था । तीन जुलाई दिन बुधवार की रात से आज तक जितनी भी घटनायें घटीं- वह सब मेरे दिमाग की उपज हैं- मेरे दिमाग की उपज! और यह पूरा तिलिस्म इसलिये बिछाया गया- ताकि तुम सब लोगों को रंगे हाथों गिरफ्तार किया जा सके ।”
“इ...इसका मतलब यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है ?” डॉन मास्त्रोनी की आंखें भी फटीं ।
“हाँ- यह सब मेरी वजह से हुआ है ।”
“यू चीट- फुलिश ।” डॉन मास्त्रोनी चिल्ला उठा- “यू कान्ट गैट अवे लाइक दिस- यू डोन्ट डिज़र्ट फॉरगिवनेस ।”
“व्हाई आर यू लूजिंग टेम्पर ?” राज भी अंग्रेजी में ही चिल्लाया- “तुम आपे से बाहर क्यों हो रहे हो मूर्ख आदमी- तुम्हें शायद मालूम नहीं है कि तुम्हारा सारा खेल खत्म हो चुका है और अब तुम हिन्दुस्तानी पुलिस के मेहमान हो ।”
यही वो क्षण था- जब इंस्पेक्टर योगी अपनी पूरी पुलिस पलटन के साथ ज्वैलरी शॉप वाला दरवाजा तोड़कर वहाँ आ घुसा । इतना ही नहीं- ढेर सारे पुलिसकर्मी पिछले मकान वाले रास्ते से भी वहाँ आ गये थे ।
देखते-ही-देखते अड्डे में चारों तरफ पुलिस फैल गयी ।
इतनी पुलिस को देखकर डॉन मास्त्रोनी और उसके साथियों के रहे-सहे कस-बल भी ढीले पड़ गये ।
इंस्पेक्टर योगी ने आते ही राज को जोरदार सैल्यूट मारा- फिर आदर से गर्दन झुकाकर बोला- “मुझे आपकी पोस्ट के बारे में मालूम हो चुका है सर !”
राज सिर्फ आहिस्ता से मुस्करा दिया ।
जबकि अन्य पुलिसकर्मियों ने डॉली को छोड़कर बाकी सबके हाथों में हथकड़ियां पहना दी थी ।
डॉली!
जो उस जबरदस्त रहस्योद्घाटन से खुद बहुत हैरान थी ।
☐☐☐