Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) - Page 9 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )

फीएट सड़क की अधिकतम ऊंचाई पर थी। आगे सड़क लगातार ढलुवां होती चली गई थी। नीचे अंधेरे में डूबी घाटी में सिर्फ एक स्थान पर रोशनी नजर आ रही थी।
राज ने इंजिन बंद कर दिया। लाइटें ऑफ कर दीं। स्पीड कंट्रोल करने के लिए ब्रेक का सहारा लेता हुआ कार को नीचे ले जाने लगा।
घुमावदार ढलुवां सड़क पर फीएट अंधेरे में फिसलती रही। प्रतापगढ़ के पास पहुंचते-पहुंचते सड़क काफी चौड़ी हो गई थी।
राज ने साइड में पेड़ों के नीचे कार रोक दी।
गांव छोटा था और मकान एक दूसरे से खासे फासले पर थे। ऊपर से जो रोशनी नजर आई थी वो एक खुले दरवाजे से आयताकार रूप में बाहर आ रही थी। दरवाजा खंडहरों में बदलती गांव से बाहर किसी पुरानी इमारत का था। पास ही सड़क पर एक वैननुमा बंद ट्रक खड़ा था। दो आदमी उस रोशन दरवाजे से पेटियां उठाए बाहर निकले और पेटियां ट्रक में रखकर वापस लौट गए।
-“वे ही हैं।” लीना फुसफुसाई- “उनके और ज्यादा नजदीक में नहीं जाऊंगी।”
-“तुम्हें कहीं नहीं जाना।” राज बोला- “उनके पास कितनी गनें हैं?”
-“उन सभी के पास हैं। अकरम के पास राइफल है।”
-“अकरम कौन है?”
-“उन तीनों में बॉस है शायद।”
-“ठीक है। तुम पेड़ों के पीछे जाकर किसी चट्टान की आड़ ले लो।” राज ने कहा फिर बूढ़े से पूछा- “आपकी गन लोडेड है?”
-“हां।”
-“और निशाना कैसा है?”
-“बुरा नहीं है।”
-“फालतु गोलियां हैं न?”
-“हां।” बूढ़े ने अपनी जेबें थपथपाई।
-“गुड। मैं उन तक पहुंचता हूं। आप ठीक दस मिनट इंतजार करने के बाद फायरिंग शुरू कर देना। वे लोग भागने की कोशिश करेंगे। सिर्फ उधर ही भाग सकते हैं जिधर से हम आए हैं और या कोई और भी रास्ता है?”
-“और कोई नहीं है।”
-“अगर उनमें से कोई मुझसे बच जाता है तो कार की आड़ में रहकर उसे शूट कर डालना। मैं चलता हूं, ठीक दस मिनट बाद.....।”
-“मेरे पास घड़ी नहीं है।”
-“तो फिर धीरे-धीरे पांच सौ तक गिनना।”
-“ठीक है।”
-“बूढ़े ने कार से उतरकर सड़क पर लेटकर पोजीशन ले ली।
लीना पेड़ों के पीछे चली गई।
राज अपनी रिवाल्वर थामें चक्कर काटकर सफलतापूर्वक खंडहरों की ओर चल दिया।
वे तीनों तेज रोशनी में थे। इसलिए अंधेरे में जा रहे राज को अपने देख लिए जाने का डर नहीं था।
रोशनी के आयत से दस-बारह गज दूर पत्थरों की आड़ में उसने घुटनों और कोहनियों के बल पोजीशन ले ली।
बवेजा का ट्रक उस दरवाजे के अंदर खड़ा था। हैडलाइट्स ऑन थीं। ट्रक का पिछला हिस्सा तकरीबन खाली था। दो आदमी आखरी दो पेटियां उतारकर नीले ट्रक में अपने तीसरे साथी के पास ले जा रहे थे।
वे सिर्फ जीन्स पहने थे। उनमें से एक औसत कद का पहलवान टाइप था। दूसरा इकहरे जिस्म का लंबा सा था।
-“लौंडिया मजेदार थी।” आखरी पेटी रखकर लंबू बोला- “पता नहीं साली कहां गई....यहां होती तो रास्ते भर मजे लेते।”
-“तुम्हारा पेट कभी नहीं भरता।”
उनकी आवाजें और गतिविधियों से जाहिर था वे विस्की के प्रभाव मे थे।
पहलवान टाइप नीले ट्रक के पीछे खड़ा सिगरेट सुलगा रहा था।
राज ने उसके शरीर के ऊपरी हिस्से का निशान देखकर ट्रिगर खींच दिया।
तभी बूढ़े की बंदूक गरजी।
रात्रि की निस्तब्धता में फायरों की आवाज जोर से गूंजी। गोली पहलवान की छाती में लगी थी। वह ट्रक के अगले हिस्से की ओर दौड़ा और फिर सड़क पर ढेर हो गया।
लंबू खंडहरों की ओर भागा।
राज ने पुनः फायर किया लेकिन गोली लंबू को नहीं लग सकी। उनका तीसरा साथी अब नजर नहीं आ रहा था।
बूढ़ा दूसरा फायर कर चुका था। अब शायद बंदूक को लोड कर रहा था।
लंबू राइफल सहित खंडहरों से निकला। राज के छिपे रहने की दिशा में फायरिंग शुरू कर दी।
तभी बूढ़े ने तीसरा और चौथा फायर किया।
लंबू ने राइफल का रुख उसकी तरफ कर दिया।
राज ने लगातार दो गोलियां चलाई।
लंबू एक हाथ से पेट दबाए खांसता हुआ पीछे हटा। उसके हाथ से राइफल छूट गई।
तभी नीले ट्रक का इंजन स्टार्ट हुआ।
-“ठहरो।” लंबू चिल्लाया- “मैं आ रहा हूं.....।”
उसने राइफल उठा ली। उसी तरह पेट को दबाए भागा और झटके के साथ आगे बढ़े ट्रक के पिछले हिस्से में सवार हो गया।
राज ने बाकी गोलियां भी चला दीं।
तोप से छूटे गोले की तरह ट्रक सड़क पर पडे़ पहलवान को कुचलता हुआ चढ़ाईदार सड़क पर भाग खड़ा हुआ।
बूढ़े ने उस पर दो गोलियां और चलाई। लेकिन ट्रक नहीं रुका।
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जेब से गोलियां निकालकर रिवाल्वर लोड करते राज को जौनी खंडहरों से निकलता दिखाई दिया- टांगे चौड़ाए और बाहें फैलाए वह किसी अंधे बूढ़े की भांति चल रहा था। चेहरा खून से सना था और सूजी आंखें बंद।
-“अकरम.....बहादुर.....क्या हुआ?”
वह सड़क पर पड़े पहलवान से उलझकर उसके ऊपर गिरा उसके बेजान शरीर को हिलाया।
-“बहादुर? उठो।”
उसके हाथों ने अजीब सी स्थिति में पड़े पहलवान के कुचले शरीर को टटोला तो असलियत का पता चलते ही चीखकर उससे अलग हट गया।
राज उसकी ओर चल दिया।
कदमों की आहट सुनकर जौनी ने गरदन घुमाई। हवा में हाथ मारता हुआ चिल्लाया- “कौन है? मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा। उन हरामजादो ने मुझे अंधा कर दिया।”
राज उसकी बगल में बैठ गया।
-“अपनी आंखें दिखाओ।”
जौनी ने अपना भुर्ता बना चेहरा ऊपर उठाया।
राज ने उसकी आंखें खोली। आंखें सुर्ख जरूर थीं लेकिन कोई जख्म उनमें नहीं था।
जौनी ने तनिक खुली आंखों से उसे देखा।
-“कौन हो तुम?”
-“हम पहले भी मिल चुके हैं- दो बार।” राज ने कहा- “याद आया?”
राज को पहचानते ही जौनी गुर्राया और हाथों से उसे दबोचने की कोशिश की। लेकिन उसकी कोशिश में दम नहीं था।
-“और ज्यादा दुर्गति करना चाहते हो?”
राज ने उसके विंडचीटर का कालर पकड़कर उसे खींचकर सीधा खड़ा किया। उसकी जेबें थपथपाईं।
उसके पास हथियार कोई नहीं था। एक जेब में नोट थे और कलाई पर राज की घड़ी बंधी थी।
राज समझ गया दोनों चीजें उसी की थीं। उसने नोट और घड़ी ले लिए।
जौनी ने प्रतिरोध नहीं किया। अपने पैरों में पड़ी लाश की ओर हाथ हिलाकर बोला- “तो तुमने बहादुर को मार डाला?”
-“वह अपनी लापरवाही से मारा गया।”
-“बाकी का क्या हुआ?”
-“ट्रक लेकर भाग गए।”
-“उन्हें पकड़ना चाहते हो?”
-“नहीं। वे पकड़े ही जाएंगे। विराटनगर नहीं पहुंच सकेंगे।”
-“तुम जानते हो उन्हें?”
-“वे वही लोग हैं जिनके साथ तुम काम किया करते थे।”
-“हां, मेरी गलती थी उन कमीनों पर भरोसा कर लिया। मैं पेशेवर चोर हूं। अकेला काम करता हूं। अकरम ने पूरे ट्रक लोड विस्की का दस लाख में सौदा किया था। मैंने सोचा भी नहीं था साला मेरे साथ दगाबाजी करेगा।” जौनी कुपित स्वर में कह रहा था- “मैंने माल दिखाकर उससे पैसा मांगा तो उसने मुझ पर राइफल तान दी और अपने साथियों से मेरी यह हालत करा दी। मुझे समझ जाना चाहिए था हरामजादा मेरे साथ ऐसा ही धोखा करेगा।” उसने अपने चेहरे पर हाथ फिराया- “लेकिन मैं उसे छोडूंगा नहीं। पैसा वसूल करके ही रहूंगा।”
 
-“तुम कुछ नहीं कर पाओगे। अब तुम्हें जेल जाना पड़ेगा।”
-“हो सकता है। लेकिन तुम तो प्रेस रिपोर्टर हो। मेरे साथ सौदा करोगे?”
-“तुम्हारे पास सौदा करने के लिए बचा क्या है?”
-“बहुत कुछ है। जिंदगी में ऐसा मौका एकाध बार ही मिलता है। तुम और मैं मिलकर अलीगढ़ पर कब्जा कर लेंगे। फिर वहां हमारी हुकूमत चलेगी।”
-“अब किसकी हुकूमत है?”
-“किसी की भी नहीं। वहां पैसा बहुत है लेकिन एक्शन नहीं है। हम लोगों के लिए एक्शन का इंतजाम करेंगे।”
-“वहां की पुलिस करने देगी?”
-“वो सब मेरे ऊपर छोड़ दो। लेकिन जेल में रहकर मैं कुछ नहीं कर सकता। अगर मुझे वहां ले जाकर पुलिस के हवाले करोगे तो तुम्हारे हाथ से गोल्डन चांस निकल जाएगा।”
स्पष्ट था मक्कार जौनी इस हालत में भी खुद को तीसमारखां समझने और जाहिर करने की बेवकूफी कर रहा था।
-“कैसा गोल्डन चांस?” राज बोला- “सैनी की तरह बेवकूफ बनाए जाने का?”
जौनी चुप हो गया।
-“ठीक है, मैं मानता हूं मैंने सैनी को बेवकूफ बनाया था।” फिर बोला- “लेकिन वह भी तो मेरी लड़की को लेकर भाग रहा था। वह साली भी ऊंची सोसाइटी में रहना चाहती थी। उस हालत में मैं और क्या करता? मुझे सैनी को डबल क्रॉस करना पड़ा। मगर तुम्हारे साथ ऐसा नहीं होगा। हम बिजनेस पार्टनर रहेंगे।”
-“आगे बोलो।”
-“देखो, मैं ऐसा कुछ जानता हूं जिसे कोई और नहीं जानता। अपनी उस जानकारी को हम बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करेंगे- तुम और मैं।”
-“तुम्हारे पास ऐसी क्या खास जानकारी है?”
-“तुम्हें पार्टनरशिप मंजूर है?”
-“पूरी बात जाने बगैर में मंजूरी नहीं दे सकता। अच्छा, यह बताओ, कल रात इन्सपैक्टर चौधरी ने तुम्हें ट्रक लेकर क्यों निकल जाने दिया?”
-“मैंने तो यह नहीं कहा उसने मुझे निकल जाने दिया था।”
-“तुम किस तरफ से ट्रक लेकर आए थे?”
-“तुम बताओ तुम तो सब कुछ जानते हो?”
-“बाई पास से।”
जौनी की तनिक खुली आंखें चमकीं।
-“होशियार आदमी हो। तुम्हारे साथ मेरी पटरी खा जाएगी।”
–“तुम्हारे हाथ में इन्सपैक्टर की कोई नस है?”
-“हो सकता है।”
-“जिस जानकारी की वजह से तुम्हारे हाथ में उसकी नस आई है वो तुम्हें सैनी ने दी थी।”
-“उसने कुछ नहीं दिया। मैंने ही खुद ही नतीजा निकाला था।”
-“मीना बवेजा के बारे में?”
-“तुम फौरन समझ जाते हो। पुलिस को उसकी लाश मिल गई?”
-“अभी नहीं। लाश कहां है?”
-“इतनी जल्दबाजी मत करो, दोस्त। पहले यह बताओ, मेरे साथ सौदा करोगे?”
-“अगर वाकई सौदा करना चाहते हो तो मेरी कुछ शर्तें माननी होगी।”
-“कैसी शर्तें?”
-“मुझे वो जगह दिखाओ, जहां लाश है और मैं तुम्हें ब्रेक देने की पूरी कोशिश करूंगा। तुम जानते हो या नहीं लेकिन असलियत यह है अब तुम सीधे जेल जाने वाले हो। तुम पर हत्या का इल्जाम है.....।”
-“मैंने किसी की हत्या नहीं की।”
-“इस तरह इंकार करने से कुछ नहीं होगा। अपने पुराने रिकॉर्ड की वजह से मनोहर और सैनी की हत्याओं के मामले में तुम फंस चुके हो।”
-“क्या बात कर रहे हो? जब तक लीना ने मुझे नहीं बताया मैं तो जानता भी नहीं था, सैनी मर चुका था। और वह क्या नाम था उसका......मनोहर.......उसके तो मैं पास तक नहीं गया।”
-“यह सब एस. एच.ओ. चौधरी को बताना। वही तुम्हें बताएगा कि तुम पर यह इल्जाम क्यों लगाए गए हैं। तुम्हारे खिलाफ इतना तगड़ा केस बन चुका है अगर कुछ नहीं किया गया तो तुम फांसी के फंदे पर झूलते नजर आओगे। इसलिए अक्ल से काम लो और मेरे साथ सहयोग करो। मैं तुम्हें बचाने की पूरी कोशिश करूंगा। उस हालत में तुम्हें लंबी सजा भले ही हो जाए लेकिन फांसी से बच जाओगे।”
जौनी का दौलत और ताकत पाने का ख्वाब एक ही पल में टूट गया।
दूर कहीं टायरों की चीख उभरी फिर ‘धड़ाम-धड़ाम’ की आवाजें सुनाई दीं और फिर भयानक विस्फोट की आवाज गूंजी।
जौनी चौंका।
-“यह क्या था?”
-“तुम्हारे विराटनगर के दोस्त अल्लाह मियां को प्यारे हो गए लगते हैं।”
-“क्या? तुम ऐसा भी करते हो।”
-“जब मुझे मजबूर किया जाता है।”
-“ओह! लेकिन मुझे क्यों ब्रेक देना चाहते हो? मुझे कभी किसने ब्रेक नहीं दिया। इस बात की क्या गारंटी है, तुम दोगे?”
-“इस मामले में तुम्हें भरोसा करना ही पड़ेगा। इसके अलावा और कोई रास्ता तुम्हारे सामने नहीं है। इसी में तुम्हारी भलाई है। अगर तुम बेगुनाह हो तो मीना की लाश का पता बता दो। तभी तुम खुद को इन हत्याओं के मामले में बेगुनाह साबित कर सकते हो।”
-“कैसे?”
-“मीना के हत्यारे ने ही बाकी दोनों हत्याएं की थी।”
-“शायद तुम ठीक कहते हो।”
-“मीना का हत्यारा कौन है ?”
-“अगर मैं जानता होता तो क्या तुम्हें नहीं बताता ?”
-“उसकी लाश कहां है ?”
-“वहां मैं तुम्हें पहुंचा दूंगा। सैनी ने उसे उसी की कार में पहाड़ियों के बीच एक संकरी घाटी में छोड़ दिया था।”
राज उसे साथ लिए कार के पास पहुंचा।
अगली सीट पर लीना अकेली बैठी थी।
-“यह क्या है?” जौनी ने पूछा- “परिवार का पुनर्मिलन?” लीना ने उसकी ओर नहीं देखा। वह गुस्से में थी।
-“तुम्हारा दादा कहां है, लीना ?” राज ने पूछा।
-“ऊपर पहाड़ी पर गए हैं। थोड़ी देर पहले हमने क्रैश की आवाज सुनी थी। दादाजी का ख्याल है नीला ट्रक खाई में जा गिरा।”
-“वो आवाज मैंने भी सुनी थी।”
राज ने ड्राइविंग सीट वाला दरवाजा खोलकर जौनी को उधर से अंदर बैठाया ताकि वह उसके और लीना के बीच रहे।
लीना उससे दूर खिसक गई।
-“इसने मेरे और देवा के साथ जो चालाकी की थी उसके बावजूद मुझे इसके साथ बैठना होगा ?”
-“गुस्सा मत करो।” जौनी ने कहा- “सैनी जैसे आदमी ने ज्यादा देर तुम्हें साथ नहीं रखना था।”
-“बको मत! तुम कमीने और दगाबाज हो।”
राज ने कार घुमाकर वापस ड्राइव करनी शुरू कर दी।
बूढ़ा डेनियल अपनी बंदूक के सहारे पहाड़ी पर खड़ा हाँफ रहा था। दूर दूसरी साइड में नीचे घाटी में आग की मोटी लपटें उठ रही थीं
बूढ़ा लंगड़ाता हुआ कार के पास आया।
-“उन शैतानों का किस्सा यहीं निपट गया। लगता है, भागने की हड़बड़ी में वे सड़क पर खड़ी सफेद मारुति को नहीं देख पाए।”
-“अच्छा हुआ।” लीना गुर्राई- “वे शैतान मारे गए।”
बूढ़ा पिछली सीट पर बैठ गया।
राज सावधानीपूर्वक फीएट दौड़ाने लगा।
दुर्घटना स्थल पर सफेद मारुति उल्टी पड़ी थी। सैकड़ों फुट नीचे घाटी में उठ रही आग की लपटों और धुएँ से तेल और अल्कोहल की बू आ रही थी।
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वो स्थान मोती झील से दूर था।
जब वहां पहुंचे सूर्योदय हो चुका था।
जौनी लीना के कंधे पर सर रखे सो रहा था।
राज ने एक हाथ से झंझोड़कर उसे जगाया।
वह हड़बड़ाता हुआ सीधा बैठ गया। तनिक खुली आंखों से सामने और दाएं-बाएं देखा। जब उसे यकीन हो गया सही रास्ते पर जा रहे थे तो उस स्थान विशेष के बारे में बताने लगा।
राज उसके निर्देशानुसार कार चलाता रहा।
-“बस यहीं रोक दो।” अंत में जौनी ने कहा।
राज ने कार रोक दी।
जौनी ने उंगली से पेड़ों के झुरमुट की ओर इशारा किया।
-“वहां है?”
बूढ़े को उस पर बंदूक ताने रखने के लिए कहकर राज नीचे उतरा।
झुरमुट में पहुंचते ही कार दिखाई दे गई। कार खाली थी।
राज ने डिग्गी खोलनी चाही। वो लॉक्ड थी।
फीएट के पास लौटा। डिग्गी खोलकर एक लोहे की रॉड निकाली।
-“वहां नहीं है?” बूढ़े ने पूछा।
-“डिग्गी खोलने पर पता चलेगा।”
लोहे की रॉड से डिग्गी खोलने में दिक्कत नहीं हुई।
राज ने ढक्कन ऊपर उठाया।
घुटने मोड़े हुए लाश अंदर पड़ी थी। उसकी पोशाक के सामने वाले भाग पर सूखा खून जमा था। एक ब्राउन सैंडल की हील गायब थी। राज ने उसके चेहरे को गौर से देखा।
वह मीना बवेजा ही थी। पहाड़ी सर्दी की वजह से लाश सड़नी शुरू नहीं हुई थी।
राज ने डिग्गी को पुनः बंद कर दिया।
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पोस्टमार्टम करने वाला अधेड़ डाक्टर बी. एल. भसीन वाश बेसिन पर हाथ धो रहा था।
राज को भीतर दाखिल होता देखकर वह मुस्कराया।
-“तुम बहुत बेसब्री से इंतजार करते रहे हो। बोलो, क्या जानना चाहते हो ?”
-“गोली मिल गई?” राज ने पोस्टमार्टम टेबल पर पड़ी मीना बवेजा की नंगी लाश की ओर इशारा करके पूछा।
-“हां। दिल को फाड़ती हुई पसलियों के बीच रीढ़ की हड्डी के पास जा अड़ी थी।”
-“मैं देख सकता हूं?”
-“सॉरी। घंटे भर पहले वो मैंने जोशी को दे दी थी। वह बैलास्टिक एक्सपर्ट के पास ले गया।”
-“कितने कैलिबर की थी, डाक्टर?”
-“चौंतीस की।”
-“हत्प्राण की मौत कब हुई थी?”
-“सही जवाब तो लेबोरेटरी की रिपोर्ट के बाद ही दिया जा सकता है। अभी सिर्फ इतना कहूंगा..... करीब हफ्ता भर पहले।”
-“कम से कम छह दिन?”
-“हां।”
-“आज शनिवार है। इस तरह वह इतवार को शूट की गई थी?”
-“हां।”
-“इसके बाद नहीं?”
-“नहीं।”
-“यानी सोमवार को वह जिंदा नहीं रही हो सकती थी?”
-“नहीं। यही मैंने चौधरी को बताया था। और मेरा यह दावा वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है।”
-“इसका मतलब है, जो भी उसे सोमवार को जिंदा देखी होने का दावा करता है वह या तो झूठ बोल रहा है या फिर उसे गलत फहमी हुई है?”
-“बेशक।”
-“थैंक्यू, डाक्टर।”
राज बाहर जाने के लिए मुड़ा ही था कि दरवाजा खुला और इन्सपैक्टर चौधरी ने अंदर प्रवेश किया।
उसकी तरफ ध्यान दिए बगैर चौधरी सीधा उस मेज की ओर बढ़ गया जिस पर मीना बवेजा की लाश पड़ी थी।
-“कहां चले गए थे, इन्सपैक्टर?” डाक्टर गरदन घुमाकर बोला- “तुम्हारे इंतजार में हमें पोस्टमार्टम रोके रखना पड़ा था।”
चौधरी ने जैसे सुना ही नहीं। मेज का सिरा पकड़े खड़ा वह अपलक लाश को ताक रहा था।
-“तुम चली गई, मीना।” उसकी आवाज कहीं दूर से आती सुनाई दी- “सचमुच चली गई ।नहीं, तुम नहीं जा सकती......। ”
डाक्टर उत्सुकतापूर्वक उसे देख रहा था।
लेकिन चौधरी उनकी वहां मौजूदगी से बेखबर नजर आया। अपने ख्यालों की दुनिया में मानो मीना के साथ वह अकेला था। उसने मीना का एक हाथ अपने हाथों में थाम रखा था।
डाक्टर ने सर हिलाकर राज की ओर संकेत किया।
दोनों बाहर आ गए।
-“मैंने सुना तो था इसे अपनी साली से प्यार था।” डाक्टर बोला- लेकिन इतना ज्यादा प्यार था यह आज ही पता चला है।”

राज ने कुछ नहीं कहा। वह सर झुकाए एमरजेंसी वार्ड की ओर चल दिया।
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एस. एच.ओ. चौधरी एमरजेंसी वार्ड के बाहर थका सा खड़ा था।
राज को देखते ही उसका चेहरा तन गया।
-“तुम कहां गायब हो गए थे?”
-“दो घंटे के लिए सोने चला गया था।”
-“और मैं दो मिनट भी नहीं सो पाया। खैर, मैंने सुना है, तुम और वह बूढ़ा डेनियल पहाड़ियों में काफी तबाही मचाते रहे हो।”
-“आपने यह नहीं सुना हथियारबंद बदमाशों से मुकाबला करने के बाद जौनी के जरिए मीना बवेजा की लाश भी हमने ही बरामद कराई थी और जौनी को भी हम ही यहां लेकर आए थे।”
-“सुना था, लेकिन यह पुलिस का काम था....।” राज के चेहरे पर उपहासपूर्ण भाव लक्ष करके चौधरी ने शेष वाक्य अधूरा छोड़ दिया फिर कड़वाहट भरे लहजे में बोला- “बूढ़ा डेनियल आखिरकार झूठा साबित हो ही गया।”
-“जी नहीं। उससे एक ऐसी गलती हुई है जो उस उम्र के किसी भी आदमी से हो सकती है। उसने कभी भी औरत की पक्की शिनाख्त का दावा नहीं किया इसलिए उसे झूठा नहीं कहा जा सकता। लेकिन सबसे अहम और समझ में ना आने वाली बात है- टूटी हील वहां कैसे पहुंची जहां मुझे पड़ी मिली थी। मीना बवेजा की लाश मिलने के बाद अब इसमें तो कोई शक नहीं रहा कि वो हील उसी के सैंडल से उखड़ी थी। और डाक्टर का कहना है, इतवार के बाद मीना जिंदा नहीं थी। जबकि हील सोमवार को उखड़ी देखी गई थी।”
-“और देखने वाला डेनियल था?”
-“जी हां।”
-“जाहिर है, वो हील वहां प्लांट की गई थी। और प्लांट करने वाला वही बूढ़ा था इसलिए जानबूझकर तुम्हें वहां ले गया। इस केस में मैटिरियल बिजनेस के तौर पर मैंने उसे रोका हुआ है।”
-“और लड़की लीना ?”
-“वह पुलिस कस्टडी में जनरल वार्ड में है। उससे बाद में पूछताछ करूँगा। इस वक्त में जौनी से पूछताछ करने का इंतजार कर रहा हूं। उसके खिलाफ हमारे पास जो एवीडेंस है उसे देखते हुए जौनी को अपने जुर्म का इकबाल कर लेना चाहिए।”
-“यानी आपके विचार से केस निपट गया?”
-“हाँ।”
-“माफ कीजिए, मैं आपसे सहमत नहीं हूं।”
चौधरी ने हैरानी से उसे देखा।
-“क्या मतलब?”
-“जिस ढंग से आप केस को निपटा रहे हैं या निपट गया समझ रहे हैं। मेरी राय में वो तर्क संगत और तथ्यपूर्ण नहीं है।”
-“तुम क्या कहना चाहते हो?”
-“मान लीजिए अगर आपको पता चले आपके विभाग का कोई आदमी बदमाशों को बचा रहा था या उनसे मिला हुआ था तब आप क्या करेंगे?”
-“उसे गिरफ्तार कराके अदालत में पेश कराऊगां।”
-“चाहे वह आपका फेवरेट आफिसर ही क्यों न हो?”
-“घुमा फिराकर बात मत करो। तुम्हारा इशारा कौशल चौधरी की ओर है?”
-“जी हां। आपको जौनी के बजाय उससे पूछताछ करनी चाहिए।”
चौधरी ने कड़ी निगाहों से उसे घुरा।
-“तुम्हारी तबीयत तो ठीक है? दो दिन की भागदौड़ और मारामारी से.....।”
-“ऐसी बातों का दिमागी तौर पर कोई असर मुझ पर नहीं होता। अगर मेरी इस बात पर आपको शक है तो विराटनगर पुलिस से....।”
-“वो सब मैं कर चुका हूं। तुम्हारे दोस्त इन्सपैक्टर रविशंकर से भी बातें की थी। उसका कहना है तुम खुराफाती किस्म के ‘आ बैल मुझे मार’ वाली फितरत के आदमी हो। ऐन वक्त पर चौंकाने वाली बातें करना और दूसरों को दुश्मन बनाना तुम्हारी खास खूबियां हैं।”
-“मैं सही किस्म के दुश्मन बनाता हूं।”
-“यह तुम्हारी अपनी राय है।”
-“आपका एस. आई. जोशी बबेजा के बेसमेंट में गया था?” राज ने वार्तालाप का विषय बदलते हुए पूछा- “उसे कुछ मिला?”
-“कुछ चली हुई गोलियां मिली थी। बैलास्टिक एक्सपर्ट उनकी जांच कर रहा है। उसकी रिपोर्ट कुछ भी कहे उसे चौधरी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। बवेजा की किसी भी हरकत के लिए वह जिम्मेदार नहीं है।” चौधरी की कड़ी निगाहों के साथ स्वर में भी कड़ापन था- “तुम्हारे पास चौधरी के खिलाफ कोई सबूत है?”
-“ऐसा कोई नहीं है जिसे अदालत में पेश किया जा सके। मैं न तो उसकी गतिविधियों को चैक कर रहा हूं न ही उससे पूछताछ कर सकता हूं। लेकिन आप यह सब कर सकते हैं।”
-“तुम चाहते हो मैं तुम्हारे साथ इस बेवकूफाना मुहीम में शामिल हो जाऊं? अपनी हद में रहो तुम सोच भी नहीं सकते इस इलाके को साफ सुथरा बनाने और बनाए रखने के लिए चौधरी ने और मैंने कितनी मेहनत की है। तुम न तो चौधरी को जानते हो नहीं इस शहर के लिए की गई उसकी सेवाओं को।” चौधरी का स्वर गंभीर था- “कौशल चौधरी एक जेनुइन प्रैक्टिकल आईडिएलिस्ट है। उसके चरित्र पर जरा भी शक नहीं किया जा सकता।”
-“हालात की गर्मी किसी भी चरित्रवान के चरित्र को पिघला सकती है। चौधरी भी आसमान से उतरा कोई फरिश्ता नहीं महज एक आदमी है। उसे भी पिघलते मैं देख चुका हूं।”
चौधरी ने व्याकुलतापूर्वक उसे देखा
-“तुमने चौधरी से कुछ कहा था?”
-“कल आपके पास आने से पहले सब-कुछ कह दिया था। उसने अपनी सर्विस रिवाल्वर निकालकर मुझ पर तान दी और अगर उसकी पत्नि नहीं रोकती तो मुझे शूट ही कर डालता।”
-“तुमने उसके मुंह पर ये इल्जाम लगाए थे?”
-“हां।”
-“तब तुम्हारी जान लेने की कोशिश करने के लिए उसे दोष नहीं दिया जा सकता। वह अब कहां है?”
-“पोस्टमार्टम रूम में अपनी साली के पास।”
चौधरी पलट कर चल दिया।
लंबे गलियारे के आखिरी सिरे पर दरवाजे के संमुख वह तनिक ठिठका फिर जोर से दस्तक दी।
दरवाजा फौरन खुला।
चौधरी बाहर निकला।
चौधरी ने उससे कुछ कहा। चौधरी एक तरह से उसे अलग धकेल कर कारीडोर में राज की ओर बढ़ गया। उसकी निगाहें दूर दीवारों से परे कहीं टिकीं थीं और होठों पर हिंसक मुस्कराहट थी।
उसके पीछे चौधरी यूं सर झुकाए आ रहा था मानो अदृश्य बाधाओं को पार कर रहा था। उसके चेहरे पर आंतरिक दबाव के स्पष्ट चिन्ह थे।
चौधरी राज के पास न आकर बाहर जाने वाले रास्ते से निकल गया। उसकी कार का इंजन गरजा फिर वो आवाज दूर होती चली गई।
चौधरी राज के पास आ रूका।
-“अगर तुम चौधरी से पूछताछ कर सकते होते तो क्या पूछते?”
-“मनोहर, सैनी और मीना बवेजा को किसने शूट किया था?” राज बोला।
-“तुम कहना चाहते हो ये हत्याएं उसने की थी?”
-“मैं कह रहा हूं उसे इन हत्याओं की जानकारी थी। उस रात बवेजा का ट्रक लेकर भाग रहे जौनी को उसने जानबूझकर भाग जाने दिया था।”
-“यह जौनी कहता है?”
-“हां।”
-“उस पेशेवर बदमाश की कहीं किसी बात को चौधरी जैसे आदमी के खिलाफ इस्तेमाल तुम नहीं कर सकते।”
-“उस रात करीब एक बजे मैंने भी बाई पास पर चौधरी को देखा था। उसने रोड ब्लॉक हटा दिया था। अपने सब आदमियों को भी वहां से भेज दिया था। उस जगह वह अकेला था और यह बात.....।”
-“तुम अपनी बात को खुद ही काट रहे हो।” चौधरी हाथ उठाकर उसे रोकता हुआ बोला- चौधरी एक ही वक्त में दो अलग-अलग जगहों पर मौजूद नहीं हो सकता। अगर एक बजे वह बाई पास पर था तो मोटल में सैनी को उसने शूट नहीं किया। और क्या तुम यकीनी तौर पर जानते हो, जौनी उसी रूट से भागा था?”
-“यकीनी तौर पर मैं कुछ नहीं जानता।”
-“मुझे भी इस बात का शक था। जाहिर है, जौनी अपने लिए किसी तरह की एलीबी गढ़ने की कोशिश कर रहा है।”
-“आप के कब्जे में एक जवान पेशेवर मुजरिम है। इसलिए आप तमाम वारदातों का भारी पुलंदा बनाकर उसके गले में लटका रहे हैं। मैं जानता हूं, यह स्टैंडर्ड तरीका है। लेकिन मुझे पसंद नहीं है। दरअसल यह सीधा-सीधा प्रोफेशनल क्राइम नहीं है। बड़ा ही पेचीदा केस है जिसमें बहुत से लोग इनवाल्व है- पेशेवर भी और नौसिखिए भी।”
-“उतना पेचीदा यह नहीं है जितना कि तुम बनाने की कोशिश कर रहे हो।”
-“यह आप अभी सिर्फ इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमारे पास हर एक सवाल का जवाब नहीं है।”
-“मैं तो समझ रहा था तुम्हारे हर सवाल का जवाब चौधरी है।”
-“चौधरी खुद जवाब भले ही न हो लेकिन जवाब जानता जरूर है। जबकि जाहिर ऐसा करता है जैसे कुछ नहीं जानता। एतराज न हो तो एक बात पूछूं?”
-“क्या?”
-“आपको बुरा तो नहीं लगेगा?”
-“नहीं।”
-“आप क्यों उसकी ओर से सफाई देकर उसे बचा रहे हैं?”
-“मैं न तो उसे बचा रहा हूं न ही किसी सफाई की उसे जरूरत है।”
-“क्या खुद आपको उस पर शक नहीं है?”
-“नहीं।”
-“मीना बवेजा की मौत की उस पर हुई प्रतिक्रिया देखकर भी नहीं?”
-“नहीं। मीना उसकी साली थी और वह इमोशनल आदमी है।”
-“इमोशनल या पैशनेट?”
-“तुम कहना क्या चाहते हो?”
-“वह साली से बहुत ज्यादा कुछ थी। दोनों एक-दूसरे को प्यार करते थे। यह सच है न?”
चौधरी ने थके से अंदाज में माथे पर हाथ फिराया।
-“मैंने भी सुना है, उनका अफेयर चल रहा था। लेकिन इससे साबित कुछ नहीं होता। असलियत यह है, अगर इस नजरिए से देखा जाए तो यह संभावना और भी कम हो जाती है कि मीना की मौत से उसका कुछ लेना-देना था।”
-“लेकिन इमोशनल क्राइम की संभावना बढ़ जाती है। चौधरी ने उसे जलन या हसद की वजह से शूट किया हो सकता था।”
-“तुमने उसका गमजदा चेहरा देखा था?”
-“हत्यारों को भी दूसरों की तरह ही गम का अहसास होता है।”
-“चौधरी को किससे हसद हो सकती थी?”
-“एक तो मनोहर ही था। वह मीना का पुराना आशिक था। शनिवार रात में लेक पर भी गया था। मनोहर की मौत की वजह भी यही हो सकती है। यही सैनी के चौधरी पर दबाव और सैनी की मौत की वजह भी हो सकती है।”
-“सैनी की हत्या चौधरी ने नहीं की थी। यह तुम भी जानते हो।”
-“की नहीं तो किसी से कराई हो सकती थी। आखिरकार उसके पास मातहतो की तो कमी नहीं है।”
-“नहीं!” उसके तीव्र स्वर में पीड़ा थी- “मुझे यकीन नहीं है कौशल किसी जीवित प्राणी का अहित करेगा।”
-“आप उसी से क्यों नहीं पूछते। अगर वह ईमानदार पुलिसमैन है या उसके अंदर जरा भी ईमानदारी बाकी है तो आपको सच्चाई बता देगा। उससे पूछकर आप एक तरह से उस पर अहसान ही करेंगे। वह अपने दिलो-दिमाग पर भारी बोझ लिए घूम रहा है। इससे पहले कि अब यह बोझ उसे कुचल डाले उसे इस बोझ को हल्का करने का मौका दे दीजिए।”
-“तुम्हें उसके गुनाहगार होने पर काफी हद तक यकीन है लेकिन मुझे नहीं है।”
मगर उसके चेहरे पर छा गए हल्के पीलेपन से जाहिर था अपनी इस बात से अब वह खुद भी पूरी तरह सहमत नहीं था।
तभी एमरजेंसी रूम का दरवाजा खुला। वही डाक्टर बाहर निकला जो मनोहर को नहीं बचा पाया था।
-“आप उससे पूछताछ कर सकते हैं, मिस्टर चौधरी।”
-“थैंक्यू, डाक्टर। उसे बाहर भेज दीजिए।”
-“ओ के।”
जौनी दरवाजे से निकला। उसके हाथों में हथकड़िया लगी थी। पट्टियों से ढंके चेहरे पर सिर्फ एक आंख ही नजर आ रही थी। उसे बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ देखता पाकर उसके साथ चल रहे पुलिसमैन का हाथ अपनी रिवाल्वर की ओर चला गया।
जौनी ने फौरन उधर से नजर घुमा ली।
चौधरी उन्हें मोर्ग की ओर ले चला।
राज ने भी उनका अनुकरण किया।
*****
 
मोर्ग में एक-एक करके तीनों लाशों को बाहर निकाला गया और उनके चेहरों से कपड़ा हटा दिया गया।
-“मुझे यहां क्यों लाया गया है?” जौनी ने पूछा।
-“तुम्हारी याददाश्त याद ताजा करने के लिए।” चौधरी ने कहा- “तुम्हारा नाम?”
-“जौनी।”
-“उम्र?”
-“पच्चीस साल।”
-“पता?”
-“कोई नहीं।”
-“काम क्या करते हो?”
-“जो भी मिल जाए।”
-“किस तरह का?”
-“मेहनत मजदूरी।”
चौधरी ने सैनी की लाश की ओर इशारा किया।
-“इस आदमी को जानते थे?”
-“नहीं।”
-“इसका नाम सतीश सैनी था इससे कभी मिले थे?”
-“शायद।”
-“आखरी दफा कब मिले थे?”
-“रविवार रात में करीब बारह बजे।”
-“कहां? इसके मोटल में?”
-“नहीं। सड़क के किनारे एक रेस्टोरेंट के बाहर। नाम याद नहीं।”
-“मैं उस मीटिंग का गवाह था।” राज ने कहा और लोकेशन बता दी।
-“तुमसे बाद में बात करूंगा।” चौधरी पुनः जौनी की ओर पलटा- “उस मीटिंग में क्या हुआ था?”
-“कुछ नहीं।”
-“तुमने इसे कोई पैकेट दिया था?”
-“पता नहीं।”
-“फिर तुमने क्या किया?”
-“कुछ नहीं। मैं चला गया।”
-“कहां?”
-“किसी खास जगह नहीं। ऐसे ही घूमता रहा।”
-“तुम झूठ बोल रहे हो। तुमने उसी रात चौंतीस कैलिबर के रिवाल्वर से इसे शूट किया था।”
-“मैंने नहीं किया।”
-“तुम्हारी रिवाल्वर कहां है?”
-“मैं रिवाल्वर नहीं रखता। ऐसा करना गैर कानूनी है।”
-“और तुम कोई गैर कानूनी काम नहीं करते?”
-“नहीं।”
-“तो फिर विस्की से भरा ट्रक क्यों चुराया? करीमगंज में बैंक में उस आदमी को क्यों लूटा?”
-“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।”
-“तुम पेशेवर मुजरिम हो। तुम्हारे इंकार करने से यह हकीकत नहीं बदल सकती कि इन तीनों की हत्याएं तुमने की थीं।”
-“मैंने किसी की हत्या नहीं की।”
चौधरी ने उसे मनोहर की लाश के पास धकेला।
-“इसे गौर से देखो?”
-“मैंने पहले कभी इसे नहीं देखा।”
-“अगर तुमने इसे नहीं देखा तो इसे शूट करके इसका ट्रक कैसे चुरा लिया?”
-“मैंने इसे शूट नहीं किया। यह ट्रक में नहीं था। सही मायने में ट्रक मैंने चुराया नहीं था। ट्रक हाईवे पर खड़ा था और इंजन चालू था।”
-“इसलिए तुम उसे लेकर चले गए?”
-“जौनी ने जवाब नहीं दिया।”
पूछताछ करीब एक घंटे तक चली। जौनी का जवाब देने का यह तरीका ज्यादा देर नहीं चला। शब्दों के वार का असर तो उस पर होने लगा। लेकिन उसने कबूल कुछ नहीं किया।
फिर एस. आई. जोशी ने दस्तक देकर दरवाजा खोला और चौधरी को बाहर बुला ले गया।
राज जौनी के पास पहुंचा।
-“तुम अपने लिए मौत का सामान कर रहे हो। अगर इसी तरह इंकार करोगे या टालते रहोगे तो फांसी के फंदे पर पहुंच जाओगे। तुम्हारे लिए आखिरी मौका है। सच्चाई बता दो।”
-“मैं बेगुनाह हूं। मुझे ये लोग नहीं फंसा सकते।”
-“तुम बेगुनाह नहीं हो। हम जानते हैं, ट्रक तुम्ही ले गए थे। इस हालत में अगर तुम ने ड्राइवर को शूट नहीं भी किया था तो भी कानूनन तुम्हें उसकी हत्या के अपराध में शरीक माना जाएगा। तुम्हारे बचाव का एक ही रास्ता है सरकारी गवाह बन जाओ।”
जौनी ने इस बारे में सोचा।
-“मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो?”
-“सच्चाई। ट्रक तुम्हें कैसे मिला?”
-“तुम मुझ पर यकीन नहीं करोगे। कोई भी नहीं करेगा।”
उसने निराश भाव से सर हिलाया- “फिर सच्चाई बताने से फायदा ही क्या है?”
-“अगर सच बोलोगे तो मैं यकीन करुगा और तुम्हारी मदद भी।”
-“नहीं, तुम भी मुझे झूठा कहोगे। जो कुछ मैंने देखा था उस पर यकीन नहीं करोगे।”
-“क्या देखा था तुमने।”
-“मैं हाईवे पर ट्रक का इंतजार कर रहा था। सैनी ने बताया था करीब छह बजे ट्रक वहां से गुजरेगा। वो सही समय पर करीब साठ मील की रफ्तार से मेरे सामने से गुजरा और करीब आधा मील के फासले पर जा रुका। मैं तेजी से उधर ही दौड़ा।”
-“पैदल?”
-“हां।”
-“ट्रक रोका किसने?”
-“वहां एक सफेद एम्बेसेडर खड़ी थी। जब मैं उस स्थान पर पहुंचा एम्बेसेडर दौड़ गई। बस यही देखा था मैंने।”
-“तुमने ट्रक के पास से उसे जाते देखा था?”
-“हां। मैं हाईवे पर थोड़ी दूर ही पीछे था।”
-“कार में मनोहर था? यही आदमी?”
-“यह अगली सीट पर बैठा था।”
-“एम्बेसेडर को वही चला रहा था?”
-“नहीं। उसके साथ कोई और भी था।”
-“कौन था?”
-“तुम यकीन नहीं करोगे।”
-“क्यों।”
-“बात ही कुछ ऐसी है कि खुद मेरी अक्ल भी चकरा रही है।”
-“कोई लड़की थी?”
-“हां।”
-“कौन?”
जौनी ने मीना बवेजा की लाश की ओर इशारा किया।
-“वह। मेरे ख्याल से वही थी।”
राज ने घोर अविश्वासपूर्वक जौनी को घूरा।
-“तुमने इस लड़की को वीरवार शाम को हाईवे पर ट्रक के पास से मनोहर को सफेद एम्बेसेडर में ले जाते देखा था?”
-“मैंने तो पहले ही कहा था तुम यकीन नहीं करोगे?”
-“लेकिन यह औरत तो पिछले इतवार को ही मर चुकी थी। तुमने खुद सोमवार रात में इसकी लाश देखी थी फिर यह इस वीरवार को हाईवे पर कैसे पहुंच सकती थी?”
 
-“क्या फायदा हुआ?” जौनी ऊंची आवाज में कलपता सा बोला- “मैंने पहले ही कहा था कुछ नहीं होगा।” उसने हथकड़ियां लगे अपने हाथ हिलाए- “तुम सब एक ही जैसे हो। सभी उस इन्सपैक्टर चौधरी से मिले हुए हो। अपने आप को बचाने के लिए मुझे बलि का बकरा बना रहे हो। जाओ, मुझे फांसी पर चढ़ा दो। मैं मरने से नहीं डरता। लेकिन अब मैं इस सच्चाई को मरते दम तक चीख-चीख कर दोहराता रहूंगा। तुम सब हरामजादे हो.....।”
पास ही खड़े पुलिसमैन उसके चेहरे पर हाथ जमा दिया।
-“बकवास बंद कर।”
राज ने उनके बीच में आकर पुलिसमैन को परे धकेला।
-“इन्सपैक्टर चौधरी के बारे में क्या कहना चाहते हो जौनी?”
-“उस रात जब मैं एयरबेस से ट्रक लेकर भागा तो वह बाई पास पर मौजूद था। पुलिस कार में बुत बना बैठा था। रोड ब्लाक नहीं थी। मुझे रोकना तो दूर रहा उसने आंख उठाकर भी मेरी ओर नहीं देखा। मैं उसके सामने से गुजर गया। लेकिन अब मैं समझ सकता हूं, उसने ऐसा क्यों किया। वह मुझे कत्ल के इल्जाम में फंसाने की योजना बना रहा था। उस रात मुझे भाग जाने देना उसकी इसी योजना का एक हिस्सा था।”
-“अगर तुम सच बोल रहे हो तो कत्ल का कोई इल्जाम तुम पर नहीं लगेगा।”
-“मुझे तसल्ली मत दो। मैं सब समझता हूं। उसने तुम सब को अपने वश में किया हुआ है।”
-“मैं उसके वश में नहीं हूं।”
-“अकेले तुम्हारे न होने से क्या होता है? पूरा पुलिस विभाग तो उसकी मुट्ठी में है।”
इससे पहले कि राज कुछ कहता एस. आई. जोशी ने दरवाजा खोलकर अंदर झांका।
-“क्या हो रहा है?”
-“कुछ नहीं।” राज बोला- “चौधरी साहब कहां है?”
-“चले गए।”
राज चकराया।
-“चले गए?”
-“हां। जरूरी काम था।”
राज बाहर कारीडोर में आ गया।
-“इस वक्त इससे ज्यादा जरूरी और क्या काम हो सकता है जो यहां चल रहा था?”
-“वह बवेजा से मिलने गए हैं।”
-“कहां?”
-“अपने ऑफिस। मैंने अभी उसे गिरफ्तार करके वहां पहुंचाया है।”
-“किस जुर्म में?”
-“मर्डर। मैं पिछली रात बवेजा के घर गया था। उसकी इजाजत लेकर वहां खोजबीन की- ऐसा जाहिर करते हुए कि उसकी बेटी के बारे में कोई सुराग लगाने की कोशिश कर रहा था। उसने एतराज नहीं किया। संभवतया इसलिए कि वह जानता था पुरानी चली हुई गोलियों के बारे में कुछ नहीं किया जा सकता था। बेसमेंट में बनी उसकी शूटिंग गैलरी में शूटिंग बोर्डों में दर्जनों पुरानी गोलियां गड़ी हुई थीं। मैंने वहां से कुछ गोलियां निकाली। उनमें से ज्यादातर की हालत ठीक नहीं थी। लेकिन कुछेक सही थीं। माइक्रोस्कोपिक कम्पेरीजन के लिए मैं उन्हें बैलास्टिक एक्सपर्ट के पास ले गया। करीब दो घंटे पहले सही नतीजा सामने आया। बेसमेंट में मिली कुछ गोलियां चौंतीस कैलिबर की रिवाल्वर से चलाई गई थी। माइक्रोस्कोपिक कम्पेरीजन से पता चला उनमें से कुछेक उसी रिवाल्वर से चलाई गई थी जिससे मनोहर, सैनी और मीना बवेजा को शूट किया गया था।”
-“तुम्हें पूरा यकीन है?”
-“बेशक। अदालत में साबित भी किया जा सकता है- माइक्रोफोटोग्राफ्स के जरिए। अगर वो रिवाल्वर नहीं मिलती है तो भी साबित किया जा सकता है। बवेजा के पास चौंतीस कैलिबर की लाइसेंसशुदा रिवाल्वर है। उसका पूरा रिकॉर्ड हमारे पास है। उसे गिरफ्तार करने से पहले जब रिवाल्वर के बारे में मैंने पूछा तो उसका कहना था- पता नहीं।”
-“फिर भी कुछ तो सफाई दी होगी?”
-“वह कहता है, पिछली गर्मियों में वो रिवाल्वर अपनी बेटी को दी थी और उसने वापस नहीं लौटाई। वह साफ झूठ बोल रहा है कल तक मेरा भी यही ख्याल था और अब इतना यकीन नहीं रहा वह साफ झूठ बोल रहा है।”
-“कल तक मेरा भी यही ख्याल था।”
-“और अब?”
-“उतना यकीन नहीं रहा।”
-“वह साफ झूठ बोल रहा है। झूठ बोलने की तगड़ी वजह भी है। तीनों हत्याओं में से किसी की भी कोई एलीबी उसके पास नहीं है। मीना बवेजा को इतवार को शूट किया गया था। बकौल बवेजा उस रोज सारा दिन वह घर में अकेला रहा था। इस तरह कार में लेक पर जाकर मीना को शूट करने और वापस लौटने का पूरा मौका और वक्त उसके पास था। रविवार शाम के बारे में उसने एलीबी के तौर पर अपनी बड़ी बेटी का नाम लिया था। लेकिन उसकी बेटी शाम पांच बजे से उसके घर में थी और वह सात बजे के बाद घर पहुंचा था। खुद बवेजा भी इसे कबूल करता है उसका कहना है, ट्रांसपोर्ट कंपनी के ऑफिस से निकलने के बाद वह कार में हवाखारी के लिए चला गया था। सैनी की हत्या के समय की भी कोई एलीबी उसके पास नहीं है।”
-“और मोटिव भी नहीं है।”
-“मोटिव था। मनोहर और सैनी दोनों ही मीना के साथ गहरे ताल्लुकात रहे थे अपनी उस बेटी का खुद बवेजा भी दीवाना था।”
-“कहानी मसालेदार है।” राज बोला इन्सपैक्टर चौधरी को भी सुनाई थी तुमने?”
जोशी पहली बार परेशान सा नजर आया।
-“उनसे मुलाकात नहीं हुई। वैसे भी मैं नहीं चाहता था चौधरी साहब को अपने ससुर को गिरफ्तार करने का बदमजा काम करना पड़े। इसलिए मैंने इस बारे में चौधरी साहब को कुछ न बताकर सीधे चौधरी साहब को ही रिपोर्ट दी है।”
-“चौधरी साहब तुम्हारे इस एक्शन से सहमत और संतुष्ट है?”
-“बेशक। तुम नहीं हो?”
-“अभी नहीं। मैं कुछ और छानबीन करना चाहता हूं। बवेजा के पास कितनी कारें हैं? एक तो कांटेसा है......।”
-“एक सफेद एम्बेसेडर है और एक टाटा सीएरा है।”
-“सफेद एम्बेसेडर भी है?”
-“हां। मैं उन कारों के बारे में घटनास्थलों पर आस पास पूछताछ कराने जा रहा हूं। किसी भी वारदात के वक्त उनमें से कोई वहां देखी गई हो सकती थी।”
-“इस मामले में मैं तुम्हें परेशानी से बचा सकता हूं। कुछ और करने से पहले अंदर मौजूद जौनी से बातें कर लो। उससे पूछना रविवार शाम को मनोहर हाईवे से कौन सी कार में गया था।”
जोशी अंदर चला गया।
राज कारीडोर से निकलकर अपनी कार की ओर बढ़ गया।
****
 
दस्तक के जवाब में रंजना चौधरी ने दरवाजा खोला। अगर उसके मुंह पर कसाब और आंखों में अजीब सी चमक नहीं होती तो राज ने समझना था उसने घरेलू कार्यों में व्यस्त किसी ग्रहणी को डिस्टर्ब कर दिया था।
-“तुम्हारा पति घर में है, मिसेज चौधरी?” उसने पूछा।
-“नहीं।”
-“मैं इंतजार कर लूंगा।”
-“लेकिन वह पता नहीं कब आएगा।”
-“तब तक मैं आपसे ही बातें कर लूंगा।”
-“माफ करना, मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैं किसी से बात करना नहीं चाहती।
उसने दरवाजा बंद करने की कोशिश की। लेकिन राज ने बंद नहीं करने दिया।
-“मुझे अंदर आने दो।”
-“नहीं। अगर कौशल आ गया और तुम्हें यहां देख लिया तो नाराज होगा।” उसने बलपूर्वक अध खुले पल्ले को थामे खड़े राज से कहा- “बंद करने दो, प्लीज। यहां से चले जाओ। मैं कौशल को बता दूंगी तुम आए थे।”
-“नहीं मिसेज चौधरी।”
राज ने पल्ला जोर से धकेला।
वह पीछे हट गई।
राज अंदर आ गया।
ड्राइंग रूम के दरवाजे में सहमी खड़ी रंजना की गरदन की नसें तन गई थीं। आंखों में चमक और ज्यादा गहरी हो गई थी। साइडों में लटके हाथ मुट्ठियों की शक्ल में भिंचे थे।
राज उसकी ओर बढ़ा।
रंजना ड्राइंगरूम में पीछे हटने लगी। वह यूँ चल रही थी मानों उसके मस्तिष्क में भारी विचार संघर्ष मचा था और उसे अपने शरीर को जबरन घसीटना पड़ रहा था।
वह एक मेज के पास जाकर रुक गई।
-“मुझसे क्या चाहते हो?”
उसके सफेद पड़े चेहरे को गौर से देखते राज को एक पल के लिए लगा उसके सामने मृत मीना बवेजा खड़ी थी। कद-बुत लगभग एक जैसा होने के कारण वह मीना की जुड़वां बहन सी नजर आई। साथ ही बिजली की भांति जो नया विचार उसके दिमाग में कौंधा। उस पर एकाएक विश्वास वह नहीं कर पाया।
लेकिन वो असलियत थी। पूर्णतया तर्क संगत और तथ्यों से पूरी तरह मेल खाती हुई। अब उससे सच्चाई उगलवानी थी।
-“तुमने अपने पिता की रिवाल्वर से अपनी बहन की हत्या की थी, मिसेज चौधरी।” उसने सीधा सवाल किया- “अब इस बारे में बातें करना चाहती हो?”
रंजना ने उसकी ओर देखा।
-“मैं अपनी बहन से प्यार करती थी। मेरा कोई इरादा नहीं था....।”
-“लेकिन उसे शूट तो किया था?”
-“वो एक दुर्घटना थी। मेरे हाथ में गन थी वो चल गई। मीना मेरी ओर देख रही थी। वह कुछ नहीं बोली बस नीचे गिर गई।”
-“अगर तुम उससे प्यार करती थी तो शूट क्यों किया?”
-“इसमें मीना की ही गलती थी। मीना को उसके साथ नहीं जाना चाहिए था। मैं जानती हूं तुम सब आदमी कैसे होते हो। तुम लोग जानवरों की तरह हो। अपने आप को नहीं रोक सकते। लेकिन औरत रोक सकती है। मीना को भी उसे रोक देना चाहिए था। आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए था। मैंने इस बारे में काफी विचार किया है। जब से यह हुआ है सोचने के अलावा कुछ नहीं किया। यहां तक कि सोई भी नहीं। पूरा हफ्ता घर की सफाई करती और सोचती रही हूँ। मैंने पहले यह घर साफ किया फिर अपने पिता का और फिर इसे फिर से साफ किया। इस पूरे दौर में एक ही नतीजे पर पहुंची हूं- इसमें मीना का ही कसूर था। इसके लिए पापा कौशल को दोष नहीं दिया जा सकता। वह आदमी है।”
-“लेकिन यह हुआ कैसे? तुम्हें याद है?”
-“अच्छी तरह नहीं। मैं बहुत ही ज्यादा सोचती रही हूं। मेरा दिमाग इतनी तेजी से काम करता है कि याद करने का वक्त ही नहीं मिला।”
-“यह इतवार को हुआ था?”
-“इतवार की सुबह-सवेरे। लेक पर लॉज में। मैं वहां मीना से बात करने गई थी। मेरा इरादा बस बातें करने का ही था। वह हमेशा इतनी बेफिक्र और लापरवाह रही थी उसे एहसास ही नहीं था कि मेरे साथ क्या कर चुकी थी। उसे किसी ऐसे शख्स की जरूरत थी जो उसके दिमाग को सही कर सके। जो कुछ चल रहा था मैं उसे चलने नहीं दे सकती थी। मुझे कुछ करना ही था।”
-“तुम्हारा मतलब है, इस बारे में तुम्हें तभी पता चला था?”
-“मैं महीने से जानती थी। मैंने देखा था, कौशल उसे किस ढंग से देखता था और मीना क्या करती थी। वह अपनी कुर्सी पर बैठा होता था और मीना उसके पास यूं गुजरती थी कि उसकी शर्ट या स्कर्ट उसके घुटने से छू जाती थी। दोनों एक दूसरे को चोर निगाहों से देख कर मुस्कराते रहते थे। मेरी मौजूदगी उन्हें अखरती सी लगती थी। दोनों हर वक्त एकांत पाने के मौके की तलाश में रहते थे। फिर उन्होंने वीकएंड ट्रिप्स पर जाना शुरू कर दिया। पिछले शनिवार भी यही किया। कौशल ने कहा था, वह एक मीटिंग अटेंड करने विशालगढ़ जा रहा था। मैंने विशालगढ़ उस होटल में फोन किया तो पता चला वह वहां था ही नहीं। मीना भी यहां नहीं थीं। मैं जानती थी, दोनों साथ थे। लेकिन कहां थे, यह नहीं जानती थी। फिर शनिवार रात में आधी रात के बाद मनोहर यहां आया। मैं सोयी नहीं थी। बिस्तर पर पड़ी यही सोच रही थी। जब मनोहर ने मुझे बताया तो सब कुछ मेरी आंखों के सामने घूम गया। एक ही पल में मेरी पूरी जिंदगी मेरे हाथों से फिसल गई। वे दोनों पहाड़ों पर लॉज में एक दूसरे की बाहों में थे और मैं यहां घर में अकेली पड़ी थी।”
-“मनोहर ने तुम्हें क्या बताया था?”
-“उसने बताया कि मोती झील तक मीना का पीछा किया था। और उसे कौशल के साथ देखा था। रीछ की खाल जैसे कारपेट पर दोनों फायर प्लेस के सामने थे। आग जल रही थी और उनके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था। मीना हंस रही थी और उसे नाम से बुला रही थी। मनोहर काफी शराब पिए हुए था और कौशल से उसे नफरत थी लेकिन वह सच बोल रहा था। मैं जानती थी वह सच बोल रहा था। उसके जाने के बाद में बैठी सोचती रही क्या किया जाए। रात कब गुजर गई पता नहीं चला। फिर चर्च की घंटियां बजने लगीं। मैंने अपनी कई ईसाई सहेलियों की शादियां अटैंड की थीं। उन लोगों में शादी पर चर्च में वैडिंग बैल्स बजायी जाती हैं। उस रोज मुझे लगा मानों वो कोई संकेत था- मेरी अपनी वैडिंग बैल्स थी। मैं कार लेकर लेक की ओर रवाना हो गई। तमाम रास्ते में घंटियां बजती रहीं। जब मैं मीना से बात कर रही थी तब भी मेरे कानों में बज रही थीं। अपनी खुद की आवाज सुनने के लिए मुझे चिल्लाना पड़ा। वे तब तक बजनी बंद नहीं हुईं जब तक की गन चल नहीं गई।”
वह सिहरन सी लेकर चुप हो गई।
 
-“जब यह हुआ तुम्हारा पति कहां था?”
-“वहां नहीं था। मेरे पहुंचने से पहले जा चुका था।”
-“तुम्हें गन कहां से मिली? अपने पिता से?”
-“उसी की रिवाल्वर थी। लेकिन उसने मुझे नहीं दी। मीना ने दी थी।
-“तुम्हारी बहन ने दी थी?”
-“हां। उसी ने दी होगी। मैं जानती हूं, उसके पास थी। फिर वो मेरे हाथ में आ गई।”
-“तुमने ऐसा क्यों किया?”
-“पता नहीं। याद नहीं आ रहा।” उसका चेहरा पूर्णतया भावहीन था- “सोचने की कोशिश करती हूं तो मीना के चेहरे और घंटियों की आवाजों के अलावा कुछ याद नहीं आता। हर एक बात इतनी तेजी से गुजर जाती है कि मैं पकड़ नहीं पाती। गन चल गई और मैं आतंकित सी उसकी लाश के पास खड़ी रही। कई सेकेंड तक मैंने सोचा फर्श पर मैं मरी पड़ी थी। फिर वहां से भाग आई।”
-“लेकिन तुम दोबारा वापस गईं थीं?”
-“हां सोमवार को। मीना का अंतिम संस्कार करने गई थी। उसे जला तो नहीं सकती थी। इसलिए मैंने सोचा, अगर उसे दफना दिया जाए तो उसके वहां पड़ी होने का ख्याल हर वक्त मुझे नहीं सताएगा।”
-“क्या उस वक्त सैनी लॉज में था या जब तुम लाश के पास थी तब आ गया था?”
-“वह तभी आया था जब मैं वहां थी। मैं मीना को घसीटकर उसकी कार तक ले जाने की कोशिश कर रही थी। सैनी ने कहा वह मेरी मदद करेगा। उसका कहना था लाश को वहां नहीं छोड़ा जा सकता। क्योंकि इस तरह उस पर मीना को शूट करने का शक किया जाएगा। वह जंगलों में मुझे एक ऐसी जगह ले गया जहां मैं उसे दफना सकती थी। फिर एक बूढ़ा हम पर जासूसी करने आ पहुंचा।“ उसकी आंखों में किसी क्रोधित बच्चे जैसे भाव उत्पन्न हो गए- “यह उस बूढ़े का दोष था कि मैं अपनी बहन को दफना भी नहीं सकी। उसी कमबख्त की वजह से मैं गिर पड़ी। मेरे घुटने में चोट आ गई।”
-“और तुम्हारी सैंडल की हील भी निकल गई?”
-“हां। तुम्हें कैसे पता चला? मीना के और मेरे पैरों का साइज एक ही था। सैनी ने कहा अगर मैं उसके सैंडलों से अपने सैंडल बदल लूं तो कभी किसी को फर्क का पता नहीं चलेगा। फिर उसके सैंडल मैं उसके फ्लैट में छोड़ आई जब हम एवीडेंस खत्म करने गए थे।”
-“कैसा एवीडेंस।”
-“यह सैनी ने मुझे नहीं बताया। बस इतना कहा था मीना के अपार्टमेंट में मेरे खिलाफ एवीडेंस था।”
एवीडेंस तुम्हारे खिलाफ नहीं, खुद सैनी के खिलाफ था। तुम्हारी बहन उसे ब्लैकमेल कर रही थी।”
-“नहीं। तुम गलत कह रहे हो। मीना ऐसी नहीं थी। यह कर पाना उसके वश की बात नहीं थी। हालांकि सोच-विचार वह नहीं करती थी लेकिन जानबूझकर कोई बुरा काम करने वाली भी वह नहीं थी। वह बुरी लड़की नहीं थी।”
-“बुरा कोई नहीं होता लेकिन लालच और चाहत जैसी चीजें किसी को भी बुरा बना देती है।”
-“नहीं। तुम नहीं समझ सकते। सैनी मेरी मदद कर रहा था। उसने कहा था, मीना की गलती की सजा मुझे नहीं मिलनी चाहिए। मीना अपनी कार की डिग्गी में थी। उसने कहा, वह कार को ऐसी जगह छोड़ आएगा जहां एक लंबे अर्से तक किसी को उसका पता नहीं चलेगा।”
-“अपनी इस मदद के बदले में वह तुमसे क्या कराना चाहता था? एक और दुर्घटना?”
-“याद नहीं।”
राज को वह टालती नजर आई।
-“मैं याद दिलाता हूं।” वह बोला- “सैनी ने तुमसे वीरवार शाम को हाईवे पर रहने को कहा था। तुमने मनोहर का ट्रक रुकवाकर किसी तरह उसे नीचे उतारना था। तुम अपने पिता के घर गईं- एक तो अपने लिए एलीबी जुटाने और दूसरे उससे उसकी कार मांगने- सफेद एम्बेसेडर। तुम्हारे लिए अपने पिता की कार ले जाना ही क्यों जरूरी था?”
-“सैनी ने कहा था, मनोहर उसे दूर से देखकर भी पहचान लेगा।”
-“उसने हर एक काम पूरे सोच-विचार के साथ किया था। लेकिन क्या वह जानता था तुम्हारे पास मनोहर की हत्या करने की भी तगड़ी वजह थी?”
-“कैसी वजह? मैं समझी नहीं।”
-“अगर मनोहर पहले ही नहीं जान गया था तो तुम्हें देखकर समझ सकता था कि तुम अपनी बहन की हत्या कर चुकी थी।”
-“मेहरबानी करके ऐसा मत कहो।” वह यूं बोली मानों राज ने कोई ऐसा खौफनाक जीव कमरे में छोड़ दिया था जो उसे दबोच सकता था- “यह लफ्ज इस्तेमाल मत करो।”
-“यह एकदम सही लफ्ज है- तीनों वारदातों के लिए। तुमने मनोहर को खामोश करने के लिए उसकी हत्या की थी। उसे खाई में धकेलकर तुम कार से अपने पिता के घर लौट गईं- अपनी एलीबी को पूरा करने के लिए। इस तरह तुम्हारे खिलाफ एक ही गवाह बचा- सैनी।”
-“तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे यह सब योजना बनाकर किया गया था। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं था। जब मनोहर ट्रक से उतरकर कार में आकर बैठा तो जो भी पहली बात मेरे दिमाग में आई मैंने कह दी- कि पापा का एक्सीडेंट हो गया था। मनोहर को शूट करने का कोई इरादा मेरा नहीं था लेकिन सीट पर रखी रिवाल्वर देखकर उसे शक हो गया। उसने रिवाल्वर पर झपटने की कोशिश की मगर उससे पहले ही मैंने रिवाल्वर उठा ली। मुझे उस पर जरा भी भरोसा नहीं था। फिर उस पर रिवाल्वर ताने रहकर मैं कार नहीं चला सकती थी। वह दोबारा रिवाल्वर पर झपटा।”
 
-“और वो फिर चल गई?”
-“हां। वह सीट पर गिरकर अजीब सी सांसे लेने लगा। उसकी घरघराहट और छाती पर बहते खून को बरदाश्त मैं नहीं कर सकी। इसलिए उसे कार से गिरा दिया।”
-“रिवाल्वर एक बार फिर चली थी। तीसरी दफा सैनी के ऑफिस में। तुम्हें याद है?”
-“हां। मीना और मनोहर के साथ जो हुआ वह दुर्घटना थी- मैं जानती हूं तुम इस पर यकीन नहीं करोगे। लेकिन सैनी को मैंने जान-बूझकर मारा था। मुझे ऐसा करना पड़ा। क्योंकि उसने कौशल को मीना और मनोहर के बारे में बता दिया था।”
कौशल को जिल्लत और बदनामी से बचाने के लिए मुझे उसको खामोश करना पड़ा ताकि दूसरों को ना बता सके। कौशल ने उस रात मुझे घर में लॉक कर दिया था लेकिन उसे बाहर जाना पड़ा। मैं एक खिड़की तोड़कर बाहर निकली। मोटल पहुंची तो सैनी अपने ऑफिस में बैठा मिला। मैंने उसे शूट कर दिया। हालांकि ऐसा करना मुझे अच्छा नहीं लगा क्योंकि उसने मेरी मदद की थी। लेकिन मुझे करना पड़ा- “कौशल की खातिर।”
-“तीन हत्याएं सिर्फ तीन गोलियों से। एक बार भी नहीं चूकीं। इतना अच्छा निशाना लगाना तुमने कहां से सीखा?”
-“पापा ने सिखाया था। कौशल भी मुझे शूटिंग रेंज में ले जाया करता था।”
-“वो रिवाल्वर अब कहां है?”
-“कौशल के पास। मैंने जहां छिपाई थी वहां से उसने निकाल ली। मुझे खुशी है रिवाल्वर उसके पास है।”
-“क्यों?”
-“मैं नहीं चाहती कुछ और हो। मुझे नफरत है- खून खराबे से। हमेशा रही है। जब मैं छोटी थी तो चूहेदानी से चूहा बाहर नहीं निकाल सकती थी। जब तक रिवाल्वर मेरे पास रही मुझे चैन नहीं मिला।”
-“अब तुम्हें याद आया रिवाल्वर तुम्हारे हाथ में कैसे आई?”
-“मैंने बताया तो था, मीना ने दी थी।”
-“लेकिन क्यों? क्या उसने कुछ कहा भी था?”
-“हां, याद आया। अजीब सी बात थी।”
-“क्या कहा उसने?”
-“वह मुझ पर हंसी थी। मैंने कहा था, अगर उसने पापा को नहीं छोड़ा तो मैं अपनी जान दे दूंगी। खत्म कर लूंगी खुद को।”
-“पापा को नहीं छोड़ा? तुम्हारा मतलब है मिस्टर बवेजा.....।”
-“नहीं। कौशल। मैंने कहा था- कौशल को छोड़ दो वह हंसती हुई बेडरूम में चली गई। रिवाल्वर लेकर लौटी और मुझे देकर बोली- लो खत्म कर लो खुद को यही हम सबके लिए ठीक रहेगा। रिवाल्वर लोडेड है। शूट कर लो खुद को। लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। उसे शूट कर दिया।”
-“क्योंकि वह तुम्हें तबाह कर रही थी- तुम्हारे पति को तुमसे छीनकर?”
-“हां।”
-“लेकिन तुम्हारा पति भी तो उतना ही कसूरवार था। उसने तुम्हारे साथ धोखा किया था। बेवफाई की थी। फिर उसे क्यों छोड़ दिया तुमने? क्या वह सजा पाने का हकदार नहीं है?”
-“नहीं। मैं यह नहीं मानती। उसकी गलती तब होनी थी अगर वह मीना पर किसी तरह का दबाव डालकर उसे वो सब करने के लिए मजबूर करता। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। मीना अपनी मर्जी से अपनी खुशी के लिए वो सब कर रही थी। जबकि वह चाहती तो खुद को रोक सकती थी। औरत खुद को रोक सकती है। आदमी के वश की बात यह नहीं है।”
अजीब थ्योरी थी।
-“तुम्हारी यह मान्यता कब से है? शुरू से?”
-“नहीं। शुरु में तो मैं औरत-मर्द दोनों को बराबर का कसूरवार समझती थी।”
-“फिर यह मान्यता कब बदली?”
-“कुछेक महीने पहले।”
-“क्यों?”
-“मैंने इस पर काफी विचार किया था। सलाह भी की थी।”
-“किससे?”
-“कौशल से। एक बार रजनी से भी बातें की थीं।”
-“सैनी की पत्नि से?”
-“हां। उन दोनों का भी यही कहना था कि सजा की हकदार ऐसे हालात में औरत ही होती है।”
-“इसीलिए तुमने मीना को सजा दे दी?”
-“हां।”
-“क्या तुम अपने पति से प्यार करती हो?”
-“पता नहीं।”
-“तुम्हारा पति तुमसे प्यार करता है?”
-“पहले तो करता था।”
-“तुमने चौधरी से शादी क्यों की?”
-“पता नहीं।”
-“तुमसे शादी करने से पहले क्या चौधरी किसी और से प्यार करता था?”
-“रजनी से करता था।”
-“तुम्हें यह कब पता चला?”
-“थोड़े ही दिन हुए हैं।”
-“अगर वह रजनी से प्यार करता था तो तुमसे शादी क्यों की?”
-“पता नहीं।”
बाहर एक कार रुकने की आवाज सुनाई दी।
-“कौशल आ गया।” रंजना ने धीरे से कहा।
***********
 
राज अपनी रिवाल्वर निकाले सतर्कतापूर्वक इंतजार कर रहा था।
चौधरी प्रवेश द्वार से भीतर दाखिल हुआ- सर झुकाए थका हारा सा- वह यूनीफार्म पहने था बिना कैप और बैल्ट। कंधों पर स्टार नहीं थे। गन हौलेस्टर भी नजर नहीं आ रहा था। लेकिन पेंट की दायीं जेब जिस ढंग से उभरी हुई थी उससे जाहिर था उसमें गन मौजूद थी।
-“मैं जानता था।” वह बोला- “तुम यहीं मिलोगे?”
-“मुझे यहां देखकर तुम्हें ताज्जुब नहीं हुआ?”
-“नहीं।”
-“डर भी नहीं लग रहा?”
-“नहीं।”
राज ने पहली बार नोट किया चौधरी की आवाज में अब न तो वो रोब था और ना ही चेहरे पर अधिकारपूर्ण भाव।
-“तुम्हारी पत्नि बहुत अच्छी निशानेबाज है।”
चौधरी ने सर झुकाए खड़ी रंजना को देखा।
-“जानता हूं।” उसने कहा और हाथ ऊपर उठाकर बोला- “मेरी जेब में गन है, निकाल लो।”
राज ने वैसा ही किया। वो चौंतीस कैलीबर की पुरानी रिवाल्वर थी। क्लीन, ऑयल्ड और लोडेड।
-“यह वही रिवाल्वर है?”
-“हां।” चौधरी ने पुन पत्नि की ओर देखा- “तुमने इसे बता दिया?”
रंजना ने सर हिलाकर हामी भर दी।
-“तो तुम जान गए हो, राज?” चौधरी ने पूछा।
-“हां। तुम कहां थे?” राज ने दोनों रिवाल्वर कोट की जेबों में डालकर पूछा।
-“हाईवे पर। मैं सब-कुछ छोड़कर भाग जाना चाहता था। दूर कहीं ऐसी जगह जहां नए सिरे से शुरुआत कर सकूं। लेकिन यह बेवकूफाना चाहत ज्यादा देर मुझे नहीं बांध सकी। रंजना को इस सबका सामना करने के लिए अकेली मैं नहीं छोड़ सका। इससे ज्यादा कसूरवार मैं हूं।”
-“मैं अपने कमरे में जा रही हूं, कौशल।” रंजना कराहती सी बोली- “तुम्हें इस तरह बातें करते मैं नहीं सुन सकती।”
-“भागोगी तो नहीं?”
-“नहीं।”
-“खुद को चोट भी नहीं पहुंचाओगी?”
-“नहीं।”
-“जाओ।”
रंजना कमरे से निकल गई।
राज प्रतिवाद करने ही वाला था कि चौधरी बोल पड़ा- “वह कहीं नहीं जाएगी। वैसे भी ज्यादा वक्त उसके पास नहीं है।”
-“तुम्हें अभी भी उसकी फिक्र है?”
-“वह बच्चे की तरह है राज। और यही सारी मुसीबत है। उसे दोष मैं नहीं दे सकता। कसूर मेरा है। मैं ही जिम्मेदार हूं। रंजना ने जो भी किया अपने अंदरूनी दबाव के तहत किया था। वह नहीं जानती थी क्या कर रही थी। लेकिन मैं अच्छी तरह जानता था और शुरू से जानता था क्या कर रहा था। फिर भी करता चला गया। उसी का नतीजा यह है।” वह एक कुर्सी पर बैठ गया। कुछेक पल अपने हाथों को देखता रहा फिर बोला- “मुझे वीरवार रात को पता चला जब सैनी ने बताया रंजना क्या कर चुकी थी। मैं मोटल में उसके पास था जब उसने इस बारे में इशारतन मुझे बताया। बाद में जब उसके घर पहुंचा तो उसने सब कुछ मेरे मुंह पर दे मारा। तभी मुझे पहली बार पता चला मीना मर चुकी थी। जो मैंने किया है इस तरह उसकी कोई सफाई मैं नहीं दे रहा हूं। यह अलग बात है अगर मैं सही ढंग से सोच रहा होता तो ऐसा नहीं करना था। सैनी की बातों से इतना तगड़ा शॉक मुझे लगा जिसके लिए जरा भी तैयार मैं नहीं था। मीना से मेरी आखिरी मुलाकात लेक पर हुई थी। हम दोनों खुश थे.... बेहद खुश।” उसने माथे पर झलक आया पसीना साफ किया- “लेकिन उस रात सैनी के घर ऐसा भूचाल मेरी जिंदगी में आया कि सब कुछ तबाह हो गया। मेरी चहेती मर चुकी थी। मेरी पत्नि ने उसे मार डाला। फिर एक और हत्या उसने कर डाली। सैनी ने अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। मुझे रजामंद करने के लिए जो भी कह सकता था कह डाला। मुझे उसकी बातों पर यकीन नहीं आया। फिर मैंने रंजना से पूछा तो उसने हर एक बात कबूल कर ली- जो भी उसे याद थी। यही वजह थी कि उस रात कोई राह मुझे नहीं सूझ सकी। मैं बाई पास पर गया और जो सैनी कराना चाहता था कर दिया। तुम्हारा अंदाजा बिल्कुल सही था। मैंने अपने आदमियों को रिलीव करके ट्रक अपने इलाके से गुजर जाने दिया। इस पूरे सिलसिले में यही मेरे लिए सबसे शर्मनाक बात है।”
-“जौनी वापस तुम्हारे इलाके में आ गया है।”
-“जानता हूं। मगर इससे वो तो नहीं बदल सकता जो मैंने किया था।”
चौधरी पीड़ित स्वर में बोला- “पिछले अड़तीस घंटों में मैंने इस पूरे एरिये का चप्पा-चप्पा छान मारा। यह जाहिर करते हुए कि जौनी और उस ट्रक को ढूंढ रहा था। जबकि असल में मुझे मीना की लाश की तलाश थी। सैनी बेहद चालाक था। उसने मुझे नहीं बताया कि लाश कहां थी। यह उसका एक और होल्ड था मेरे ऊपर। मीना और मनोहर की हत्याओं के बारे में पता चलने के बाद मैं रंजना को उस रात घर छोड़ने की बजाय साइकिएटिस्ट के पास ले जाना चाहता था। लेकिन ऐसा नहीं कर सका। क्योंकि सैनी के इशारे पर नाचने को मजबूर था।”
-“तुम्हारी पत्नि वाकई साइको है?”
-“वह इमोशनली डिस्टर्ब्ड है। तुम्हें अबनॉर्मल नहीं लगती?”
राज ने जवाब नहीं दिया।
-“जब से मैं उसे जानता हूं कभी पूरी तरह नॉर्मल नहीं रही। जब बवेजा के घर में थी तो बवेजा के सनकीपन की वजह से कभी खुश नहीं रही। खुद को उपेक्षित और फालतू की चीज समझती रही.....।”
-“यह जानते हुए भी तुमने उससे शादी कर ली।?”
-“मैं खुद भी जज्बाती आदमी हूं।” संक्षिप्त मोन के पश्चात बोला- शायद इसलिए उसकी ओर खींचता चला गया। शादी के बाद सब ठीक ही चल रहा था। और अगर बच्चे पैदा हो जाते तो शायद बिल्कुल ठीक चलता रहना था। बच्चों की कमीने हमारी जिंदगी को नीरस कर दिया.....।”
-“क्या तुम रंजना को प्यार नहीं करते थे?”
-“करता था। मगर दिल से कभी नहीं कर पाया।”
-“रंजना दिमागी तौर पर एक बीमार लड़की थी। उसे प्यार भी तुम नहीं करते थे फिर भी तुमने उससे शादी की। क्यों? क्या मजबूरी थी?”
चौधरी ने सर झुका लिया।
रंजना के घर के हालात और उसकी अपनी हालत की वजह से मुझे उससे हमदर्दी थी। एक शाम बारिश से बचने के लिए मैं उसके घर गया। वह घर में अकेली थी। एकांत में न जाने कैसे मुझ पर शैतान सवार हो गया। उसने बहुत रोका। बराबर इंकार करती रही। मगर मैं खुद को नहीं रोक सका और उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला। उसमें रंजना की कोई मर्जी नहीं थी। फिर इत्तफाक से उसे हमल ठहर गया और उसने अबार्शन कराने से इंकार कर दिया.....।”
-“यानी तुमने उससे रेप किया था फिर तुम्हें एक शरीफ आदमी और ईमानदार अफसर की अपनी पोजीशन को बचाने के लिए मजबूरन शादी करनी पड़ी।”
-“ऐसा ही समझ लो।”
-“मीना तुम्हारी जिंदगी में कब और कैसे आई?”
 
-“मेरा ख्याल है मीना को जब मैंने पहली बार देखा तभी उसकी ओर आकर्षित हो गया था। लेकिन यह बात मेरे दिमाग के किसी कोने में दबी रही। जब वह हमारे साथ रह रही थी तब और बाद में भी मुद्दत तक वो बात उसी तरह दबी रही। शायद इसीलिए कि मीना कमसिन थी और मैं उसके साथ वो सब नहीं दोहराना चाहता था जो उसका बाप कर चुका था। फिर वह जवान होती गई। और एक मस्त बेफिक्र और आजाद खयाल बेइंतेहा खूबसूरत युवती बन गई। पिछले साल उसके प्रति मेरा आकर्षण एकाएक जाग उठा। तब तक हमारी विवाहित जिंदगी पूरी तरह नीरस हो चुकी थी और मैं रंजना से निराश होकर फ्रस्टेशन का शिकार हो रहा था। हालांकि मीना अलग फ्लैट में रहने लगी थी मगर हमारे पास आती रहती थी। मैं उसे प्यार करने लगा। मीना मानो तैयार बैठी थी। उसके दिल में भी मेरे लिए यही जज्बा था। हमारे ताल्लुकात कायम हुए और दिनों दिन गहरे हो गए...।”
-“रंजना की जिस बीमारी का जिक्र तुमने किया है। उसके लिए वह कभी हॉस्पिटल में रही है?”
-“एक बार शादी के कुछेक महीने बाद उसने खुदकुशी करने की कोशिश की थी। तब करीब हफ्ता भर हास्पिटल में रही थी। और डाक्टरों का कहना था इसकी वजह उसकी वो प्रेगनेंसी थी। शादी से पहले जिस बच्चे को पैदा करने की जिद करती रही थी। शादी के दो-तीन महीने बाद कहने लगी उसे इस दुनिया में नहीं लाना चाहती। क्योंकि वह शादी से पहले ही उसके पेट में आ गया था इसलिए उसकी अपनी निगाहों में वह हरामी और उसकी अपनी बदकारी का सबूत था। फिर एक रोज पूरी बीस नींद की गोलियां निगल लीं। मैं सही वक्त पर उसे हास्पिटल ले गया और वह बच गई।”
-“और बच्चे का क्या हुआ?”
-“उस हादसे के महीने भर बाद रंजना एक रोज बाथरूम में फिसल कर बाथटब पर जा गिरी। तेज ब्लीडिंग शुरू हो गई। अस्पताल पहुंचे तो डाक्टरों ने उसे रोकने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो सके। आखिरकार अबार्शन ही करना पड़ा। लेकिन उसके बाद उसकी दिमागी हालत काफी सुधर गई।”
-“क्या वह साइकिएट्रिक ट्रीटमेंट ले रही है?”
-“हां। लेकिन सही ढंग से नहीं। कई-कई रोज दवाई नहीं खाती।”
-“फिर भी उसे उसकी दिमागी हालत सही न होने के आधार पर इन तीनों हत्याओं के आरोप से बचाया जा सकता है।”
-“उस हालत में उसे मैंटल हास्पिटल में रहना होगा।”
-“क्या तुमने चौधरी को यह सब बता दिया?”
-“हां और नौकरी से इस्तीफा भी दे दिया।”
-“तुम्हारे ससुर बवेजा.....।”
-“बवेजा मर चुका है।”
राज बुरी तरह चौका।
-“कैसे?”
-“चौधरी के ऑफिस में जबरदस्त हार्ट अटैक हुआ और कुछेक मिनटों में दम तोड़ दिया।”
राज हंसा।
-“यानी एकदम लाइन क्लीयर। मानना पड़ेगा तुम किस्मत के धनी हो चौधरी।”
-“क्या मतलब?”
-“तुम्हारी पत्नी रंजना अपने बाप बवेजा की अब इकलौती वारिसा है। लेकिन उसे पागलखाने में रहना होगा। और उसके पति होने के नाते उसके बाप बवेजा के बिजनेस, जायदाद वगैरा तुम्हारे हाथ में रहेंगे। तुम्हारी तो लॉटरी खुल गई।”
-“क्या बक रहे हो, तुम?” चौधरी चिल्लाया।
-“चिल्लाओ मत। मैं असलियत बयान कर रहा हूं। बवेजा की दौलत के दम पर अब तुम अपनी पुरानी प्रेमिका और ताजा विधवा हुई रजनी के साथ बिना किसी रोक-टोक के ऐश कर सकते हो। वह आज भी तुम्हारा इंतजार कर रही है। तुम दोनों के रास्ते की तमाम रुकावटें दूर हो चुकी हैं।”
-“तुम पागल तो नहीं हो।”
-“बिल्कुल नहीं। तुमने अपनी जो कहानी सुनाई है। उसमें कितनी सच्चाई है, मैं नहीं जानता और न हीं जानना चाहता हूं। तुमसे जरा भी हमदर्दी मुझे नहीं है।” राज हिकारत भरे लहजे में कह रहा था- “तुम निहायत कमीने, मक्कार, खुदगर्ज और अय्याश आदमी हो। रंजना को अपनी हवस का शिकार बनाकर उसे पागल कर दिया। उससे दिल भर गया तो मीना की बाँहों में सरक गए। साथ ही अपनी जवानी के पहले प्यार को भी दोबारा और मुकम्मल तौर पर पाने की कोशिश करते रहे। तमाम बखेड़े की जड़ मीना के साथ ताल्लुकात कायम करने के पीछे तुम्हारा मकसद उसके साथ महज ऐश करना नहीं था। यह तुम्हारी लांग टर्म प्लानिंग का एक अहम हिस्सा था। इसलिए तुमने अपने ताल्लुकात को रंजना पर जाहिर होने दिया। रंजना के साथ इतने अर्से तक रहने की वजह से उसकी सोच और सोचने के ढंग से तुम बखूबी वाकिफ हो चुके थे। इसलिए तुमने औरत और मर्द के नाजायज ताल्लुकात के बारे में यह मान्यता, कि इस मामले में औरत ही कसूरवार और सजा की हकदार होती है, इस ढंग से और इतनी गहराई के साथ रंजना के दिमाग में बैठा दी कि उसने मीना की जान लेने का फैसला कर लिया। इसमें रंजना ने भी तुम्हारी मदद की। इत्तिफाक से ऐसे हालात पैदा हुए कि तुम्हें कुछ नहीं करना पड़ा। तुम जानते थे रंजना किस स्थिति में क्या करेगी। उसने मीना की हत्या कर दी। तुम्हारी योजना का पहला चरण पूरा हो गया। तुम रंजना से आजाद हो गए।” क्योंकि रंजना के लिए दो ही जगह रह गई- “जेल या पागलखाना। मनोहर की हत्या तो इस सिलसिले की सर्वथा अनपेक्षित घटना थी। लेकिन रजनी को आजाद कराने के लिए तुमने फिर रंजना के दिमाग में यह बात बैठा दी कि सैनी की वजह से तुम्हें जिल्लत और रुसवाई का सामना करना पड़ सकता था। उसका जिंदा रहना खतरनाक था। इसलिए तुम रंजना को यहां अकेली छोड़ गए थे। खुद को इससे अलग और अनजान जाहिर करने के लिए घर को ताला भी लगा गए। मगर तुम जानते थे रंजना के दिमाग में सैनी की जान लेने की जो बात बैठ गई थी। उसे वह पूरा करके ही दम लेगी। यही हुआ भी। रंजना खिड़की तोड़कर भाग गई। सैनी मारा गया और तुम्हारी रजनी भी आजाद हो गई। अपनी योजना के मुताबिक तुम दो रिमोट कंट्रोल मर्डर करने में कामयाब हो गए। तुम्हारी योजना पूरी तरह कामयाब हो गई। खुद को एक बार फिर शरीफ और ईमानदार साबित करने के लिए तुमने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। ताकि इसे तुम्हारी नेकनियत मानकर तुम्हारा विभाग और अदालत में जज, अपनी कहानी के दम पर जिसकी हमदर्दी हासिल करने में तुम कामयाब हो जाओगे तुम्हें बेगुनाह करार दे दे।”
-“तुम मुझ पर बेबुनियाद इल्जाम लगा रहे हो। मेरे खिलाफ तुम्हारे पास सबूत क्या है?”
राज ने उसे घूरा।
-“कोई नहीं। तुम तो खून कर चुके हो मगर कानून तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तुम रजनी के साथ रंजना के बाप की दौलत पर ऐश करोगे और बेचारी रंजना जेल में या पागलखाने में बाकी जिंदगी गुजारेगी।”
-“बिल्कुल यही होगा।” चौधरी हंसा- “रंजना की जगह पागलखाने में है।”
-“और रजनी की जगह तुम्हारी बांहों में है?”
-“हां।”
-“तुम वाकई शैतान हो। तुम्हें जिंदा रहने का कोई हक नहीं है।”
-“तुम जो चाहो कर सकते हो। मुझे कोई परवाह नहीं है। मैं जो करना चाहता था कर दिया। अब मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”
राज विवशतापूर्वक उसे देख रहा था। उसका रोम-रोम नफरत से सुलग रहा था। अचानक उसकी निगाहें चौधरी के पीछे ड्राइंग रूम के अंदर की ओर खुलने वाले दरवाजे की ओर उठ गई।
वहां रंजना बुत बनी खड़ी थी। कागज की तरह सफेद चेहरा चमकती आंखें और सीधी तनी गरदन। स्पष्ट था वह काफी कुछ सुन चुकी थी।
-“जानते हो राज।” चौधरी ने पूछा- “इसे क्या कहते हैं?”
-“नहीं।”
-“इसे परफैक्ट क्राइम कहते हैं। कहीं कोई सबूत नहीं। लूजएंड नहीं। मैंने साबित कर दिया है परफैक्ट क्राइम महज किताबी चीज नहीं है।”
तभी टेलीफोन की घंटी बजने लगी।
चौधरी मुस्कराता हुआ उठा। टेलीफोन उपकरण दूर कोने में रखा था।
-“मैं जा रहा हूं चौधरी।” राज ने कहा।
-“जाओ।”
राज तेजी से बाहर निकला। चौधरी द्वारा दी गई रिवाल्वर निकालकर उससे तीन गोलियां निकाली और रिवाल्वर को रुमाल से पोंछकर कुछेक सेकंडो मे ही पुन: अंदर चला गया।
घंटी अभी बज रही थी।
-“तुम फिर वापस आ गए?” टेलीफोन उपकरण के पास जा पहुंचे चौधरी ने पलटकर पूछा।
राज ने रुमाल से पकड़ी रिवाल्वर उसे दिखाई।
-“यह वापस करने आया हूं।”
-“रख दो।” उसने लापरवाही से कहा और रिसीवर उठा लिया- “हेलो?”
राज देख चुका था रंजना अभी भी उसी तरह खड़ी थी।
उसने रिवाल्वर सोफे पर डाल दी।
रंजना फौरन अपने स्थान से हिली। नींद में चलती हुई सी नि:शब्द आगे आई। राज पुनः तेजी से बाहर निकल गया। वह कोई खतरा उठाना नहीं चाहता था।
-“हां.....सब ठीक हो गया.....।” चौधरी माउथपीस में कह रहा। सोफे की तरफ उसकी पीठ थी- “.....तुम जब चाहो आ सकती हो.....।”
रंजना सोफे पर पड़ी रिवाल्वर उठा चुकी थी।
-“कौशल.....।”
चौधरी फौरन पलटा। अपनी ओर रिवाल्वर तनी पाकर चेहरा फक पड़ गया।
-“तुम वाकई शैतान हो।” रंजना बोली- “तुम्हें जिंदा रहने का कोई हक नहीं है।”
-“क.....क्या कर रही हो?”
-“वही, जो बहुत पहले कर देना चाहिए था....।”
ट्रिगर पर कसी रंजना की उंगली खिंची और तब तक खिंचती गई जब तक कि तीनों गोलियां चौधरी की छाती में न जा घुसीं।
पास ही कहीं पुलिस सायरन की आवाज गूंजी।
राज अंदर आ गया।
चौधरी औंधे मुंह पड़ा था। उसके हाथ में अभी भी रिसीवर थमा था। छाती से बहता खून का कारपेट पर बनता दायरा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। रंजना रिवाल्वर हाथ में थामें सोफे पर बैठ गई। सोफे की पुश्त पर गरदन का पृष्ठ भाग टिकाकर आंखें बंद कर लीं।
वह पूर्णतया शांत नजर आ रही थी।
एक कुर्सी पर बैठकर पुलिस के पहुंचने का इंतजार करते राज ने यूं चौधरी की लाश की और देखा मानों पूछ रहा था- अगर वो परफैक्ट क्राइम था तो इसे क्या कहोगे।


समाप्त।
 
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