desiaks
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- Aug 28, 2015
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फीएट सड़क की अधिकतम ऊंचाई पर थी। आगे सड़क लगातार ढलुवां होती चली गई थी। नीचे अंधेरे में डूबी घाटी में सिर्फ एक स्थान पर रोशनी नजर आ रही थी।
राज ने इंजिन बंद कर दिया। लाइटें ऑफ कर दीं। स्पीड कंट्रोल करने के लिए ब्रेक का सहारा लेता हुआ कार को नीचे ले जाने लगा।
घुमावदार ढलुवां सड़क पर फीएट अंधेरे में फिसलती रही। प्रतापगढ़ के पास पहुंचते-पहुंचते सड़क काफी चौड़ी हो गई थी।
राज ने साइड में पेड़ों के नीचे कार रोक दी।
गांव छोटा था और मकान एक दूसरे से खासे फासले पर थे। ऊपर से जो रोशनी नजर आई थी वो एक खुले दरवाजे से आयताकार रूप में बाहर आ रही थी। दरवाजा खंडहरों में बदलती गांव से बाहर किसी पुरानी इमारत का था। पास ही सड़क पर एक वैननुमा बंद ट्रक खड़ा था। दो आदमी उस रोशन दरवाजे से पेटियां उठाए बाहर निकले और पेटियां ट्रक में रखकर वापस लौट गए।
-“वे ही हैं।” लीना फुसफुसाई- “उनके और ज्यादा नजदीक में नहीं जाऊंगी।”
-“तुम्हें कहीं नहीं जाना।” राज बोला- “उनके पास कितनी गनें हैं?”
-“उन सभी के पास हैं। अकरम के पास राइफल है।”
-“अकरम कौन है?”
-“उन तीनों में बॉस है शायद।”
-“ठीक है। तुम पेड़ों के पीछे जाकर किसी चट्टान की आड़ ले लो।” राज ने कहा फिर बूढ़े से पूछा- “आपकी गन लोडेड है?”
-“हां।”
-“और निशाना कैसा है?”
-“बुरा नहीं है।”
-“फालतु गोलियां हैं न?”
-“हां।” बूढ़े ने अपनी जेबें थपथपाई।
-“गुड। मैं उन तक पहुंचता हूं। आप ठीक दस मिनट इंतजार करने के बाद फायरिंग शुरू कर देना। वे लोग भागने की कोशिश करेंगे। सिर्फ उधर ही भाग सकते हैं जिधर से हम आए हैं और या कोई और भी रास्ता है?”
-“और कोई नहीं है।”
-“अगर उनमें से कोई मुझसे बच जाता है तो कार की आड़ में रहकर उसे शूट कर डालना। मैं चलता हूं, ठीक दस मिनट बाद.....।”
-“मेरे पास घड़ी नहीं है।”
-“तो फिर धीरे-धीरे पांच सौ तक गिनना।”
-“ठीक है।”
-“बूढ़े ने कार से उतरकर सड़क पर लेटकर पोजीशन ले ली।
लीना पेड़ों के पीछे चली गई।
राज अपनी रिवाल्वर थामें चक्कर काटकर सफलतापूर्वक खंडहरों की ओर चल दिया।
वे तीनों तेज रोशनी में थे। इसलिए अंधेरे में जा रहे राज को अपने देख लिए जाने का डर नहीं था।
रोशनी के आयत से दस-बारह गज दूर पत्थरों की आड़ में उसने घुटनों और कोहनियों के बल पोजीशन ले ली।
बवेजा का ट्रक उस दरवाजे के अंदर खड़ा था। हैडलाइट्स ऑन थीं। ट्रक का पिछला हिस्सा तकरीबन खाली था। दो आदमी आखरी दो पेटियां उतारकर नीले ट्रक में अपने तीसरे साथी के पास ले जा रहे थे।
वे सिर्फ जीन्स पहने थे। उनमें से एक औसत कद का पहलवान टाइप था। दूसरा इकहरे जिस्म का लंबा सा था।
-“लौंडिया मजेदार थी।” आखरी पेटी रखकर लंबू बोला- “पता नहीं साली कहां गई....यहां होती तो रास्ते भर मजे लेते।”
-“तुम्हारा पेट कभी नहीं भरता।”
उनकी आवाजें और गतिविधियों से जाहिर था वे विस्की के प्रभाव मे थे।
पहलवान टाइप नीले ट्रक के पीछे खड़ा सिगरेट सुलगा रहा था।
राज ने उसके शरीर के ऊपरी हिस्से का निशान देखकर ट्रिगर खींच दिया।
तभी बूढ़े की बंदूक गरजी।
रात्रि की निस्तब्धता में फायरों की आवाज जोर से गूंजी। गोली पहलवान की छाती में लगी थी। वह ट्रक के अगले हिस्से की ओर दौड़ा और फिर सड़क पर ढेर हो गया।
लंबू खंडहरों की ओर भागा।
राज ने पुनः फायर किया लेकिन गोली लंबू को नहीं लग सकी। उनका तीसरा साथी अब नजर नहीं आ रहा था।
बूढ़ा दूसरा फायर कर चुका था। अब शायद बंदूक को लोड कर रहा था।
लंबू राइफल सहित खंडहरों से निकला। राज के छिपे रहने की दिशा में फायरिंग शुरू कर दी।
तभी बूढ़े ने तीसरा और चौथा फायर किया।
लंबू ने राइफल का रुख उसकी तरफ कर दिया।
राज ने लगातार दो गोलियां चलाई।
लंबू एक हाथ से पेट दबाए खांसता हुआ पीछे हटा। उसके हाथ से राइफल छूट गई।
तभी नीले ट्रक का इंजन स्टार्ट हुआ।
-“ठहरो।” लंबू चिल्लाया- “मैं आ रहा हूं.....।”
उसने राइफल उठा ली। उसी तरह पेट को दबाए भागा और झटके के साथ आगे बढ़े ट्रक के पिछले हिस्से में सवार हो गया।
राज ने बाकी गोलियां भी चला दीं।
तोप से छूटे गोले की तरह ट्रक सड़क पर पडे़ पहलवान को कुचलता हुआ चढ़ाईदार सड़क पर भाग खड़ा हुआ।
बूढ़े ने उस पर दो गोलियां और चलाई। लेकिन ट्रक नहीं रुका।
*****************
जेब से गोलियां निकालकर रिवाल्वर लोड करते राज को जौनी खंडहरों से निकलता दिखाई दिया- टांगे चौड़ाए और बाहें फैलाए वह किसी अंधे बूढ़े की भांति चल रहा था। चेहरा खून से सना था और सूजी आंखें बंद।
-“अकरम.....बहादुर.....क्या हुआ?”
वह सड़क पर पड़े पहलवान से उलझकर उसके ऊपर गिरा उसके बेजान शरीर को हिलाया।
-“बहादुर? उठो।”
उसके हाथों ने अजीब सी स्थिति में पड़े पहलवान के कुचले शरीर को टटोला तो असलियत का पता चलते ही चीखकर उससे अलग हट गया।
राज उसकी ओर चल दिया।
कदमों की आहट सुनकर जौनी ने गरदन घुमाई। हवा में हाथ मारता हुआ चिल्लाया- “कौन है? मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा। उन हरामजादो ने मुझे अंधा कर दिया।”
राज उसकी बगल में बैठ गया।
-“अपनी आंखें दिखाओ।”
जौनी ने अपना भुर्ता बना चेहरा ऊपर उठाया।
राज ने उसकी आंखें खोली। आंखें सुर्ख जरूर थीं लेकिन कोई जख्म उनमें नहीं था।
जौनी ने तनिक खुली आंखों से उसे देखा।
-“कौन हो तुम?”
-“हम पहले भी मिल चुके हैं- दो बार।” राज ने कहा- “याद आया?”
राज को पहचानते ही जौनी गुर्राया और हाथों से उसे दबोचने की कोशिश की। लेकिन उसकी कोशिश में दम नहीं था।
-“और ज्यादा दुर्गति करना चाहते हो?”
राज ने उसके विंडचीटर का कालर पकड़कर उसे खींचकर सीधा खड़ा किया। उसकी जेबें थपथपाईं।
उसके पास हथियार कोई नहीं था। एक जेब में नोट थे और कलाई पर राज की घड़ी बंधी थी।
राज समझ गया दोनों चीजें उसी की थीं। उसने नोट और घड़ी ले लिए।
जौनी ने प्रतिरोध नहीं किया। अपने पैरों में पड़ी लाश की ओर हाथ हिलाकर बोला- “तो तुमने बहादुर को मार डाला?”
-“वह अपनी लापरवाही से मारा गया।”
-“बाकी का क्या हुआ?”
-“ट्रक लेकर भाग गए।”
-“उन्हें पकड़ना चाहते हो?”
-“नहीं। वे पकड़े ही जाएंगे। विराटनगर नहीं पहुंच सकेंगे।”
-“तुम जानते हो उन्हें?”
-“वे वही लोग हैं जिनके साथ तुम काम किया करते थे।”
-“हां, मेरी गलती थी उन कमीनों पर भरोसा कर लिया। मैं पेशेवर चोर हूं। अकेला काम करता हूं। अकरम ने पूरे ट्रक लोड विस्की का दस लाख में सौदा किया था। मैंने सोचा भी नहीं था साला मेरे साथ दगाबाजी करेगा।” जौनी कुपित स्वर में कह रहा था- “मैंने माल दिखाकर उससे पैसा मांगा तो उसने मुझ पर राइफल तान दी और अपने साथियों से मेरी यह हालत करा दी। मुझे समझ जाना चाहिए था हरामजादा मेरे साथ ऐसा ही धोखा करेगा।” उसने अपने चेहरे पर हाथ फिराया- “लेकिन मैं उसे छोडूंगा नहीं। पैसा वसूल करके ही रहूंगा।”
राज ने इंजिन बंद कर दिया। लाइटें ऑफ कर दीं। स्पीड कंट्रोल करने के लिए ब्रेक का सहारा लेता हुआ कार को नीचे ले जाने लगा।
घुमावदार ढलुवां सड़क पर फीएट अंधेरे में फिसलती रही। प्रतापगढ़ के पास पहुंचते-पहुंचते सड़क काफी चौड़ी हो गई थी।
राज ने साइड में पेड़ों के नीचे कार रोक दी।
गांव छोटा था और मकान एक दूसरे से खासे फासले पर थे। ऊपर से जो रोशनी नजर आई थी वो एक खुले दरवाजे से आयताकार रूप में बाहर आ रही थी। दरवाजा खंडहरों में बदलती गांव से बाहर किसी पुरानी इमारत का था। पास ही सड़क पर एक वैननुमा बंद ट्रक खड़ा था। दो आदमी उस रोशन दरवाजे से पेटियां उठाए बाहर निकले और पेटियां ट्रक में रखकर वापस लौट गए।
-“वे ही हैं।” लीना फुसफुसाई- “उनके और ज्यादा नजदीक में नहीं जाऊंगी।”
-“तुम्हें कहीं नहीं जाना।” राज बोला- “उनके पास कितनी गनें हैं?”
-“उन सभी के पास हैं। अकरम के पास राइफल है।”
-“अकरम कौन है?”
-“उन तीनों में बॉस है शायद।”
-“ठीक है। तुम पेड़ों के पीछे जाकर किसी चट्टान की आड़ ले लो।” राज ने कहा फिर बूढ़े से पूछा- “आपकी गन लोडेड है?”
-“हां।”
-“और निशाना कैसा है?”
-“बुरा नहीं है।”
-“फालतु गोलियां हैं न?”
-“हां।” बूढ़े ने अपनी जेबें थपथपाई।
-“गुड। मैं उन तक पहुंचता हूं। आप ठीक दस मिनट इंतजार करने के बाद फायरिंग शुरू कर देना। वे लोग भागने की कोशिश करेंगे। सिर्फ उधर ही भाग सकते हैं जिधर से हम आए हैं और या कोई और भी रास्ता है?”
-“और कोई नहीं है।”
-“अगर उनमें से कोई मुझसे बच जाता है तो कार की आड़ में रहकर उसे शूट कर डालना। मैं चलता हूं, ठीक दस मिनट बाद.....।”
-“मेरे पास घड़ी नहीं है।”
-“तो फिर धीरे-धीरे पांच सौ तक गिनना।”
-“ठीक है।”
-“बूढ़े ने कार से उतरकर सड़क पर लेटकर पोजीशन ले ली।
लीना पेड़ों के पीछे चली गई।
राज अपनी रिवाल्वर थामें चक्कर काटकर सफलतापूर्वक खंडहरों की ओर चल दिया।
वे तीनों तेज रोशनी में थे। इसलिए अंधेरे में जा रहे राज को अपने देख लिए जाने का डर नहीं था।
रोशनी के आयत से दस-बारह गज दूर पत्थरों की आड़ में उसने घुटनों और कोहनियों के बल पोजीशन ले ली।
बवेजा का ट्रक उस दरवाजे के अंदर खड़ा था। हैडलाइट्स ऑन थीं। ट्रक का पिछला हिस्सा तकरीबन खाली था। दो आदमी आखरी दो पेटियां उतारकर नीले ट्रक में अपने तीसरे साथी के पास ले जा रहे थे।
वे सिर्फ जीन्स पहने थे। उनमें से एक औसत कद का पहलवान टाइप था। दूसरा इकहरे जिस्म का लंबा सा था।
-“लौंडिया मजेदार थी।” आखरी पेटी रखकर लंबू बोला- “पता नहीं साली कहां गई....यहां होती तो रास्ते भर मजे लेते।”
-“तुम्हारा पेट कभी नहीं भरता।”
उनकी आवाजें और गतिविधियों से जाहिर था वे विस्की के प्रभाव मे थे।
पहलवान टाइप नीले ट्रक के पीछे खड़ा सिगरेट सुलगा रहा था।
राज ने उसके शरीर के ऊपरी हिस्से का निशान देखकर ट्रिगर खींच दिया।
तभी बूढ़े की बंदूक गरजी।
रात्रि की निस्तब्धता में फायरों की आवाज जोर से गूंजी। गोली पहलवान की छाती में लगी थी। वह ट्रक के अगले हिस्से की ओर दौड़ा और फिर सड़क पर ढेर हो गया।
लंबू खंडहरों की ओर भागा।
राज ने पुनः फायर किया लेकिन गोली लंबू को नहीं लग सकी। उनका तीसरा साथी अब नजर नहीं आ रहा था।
बूढ़ा दूसरा फायर कर चुका था। अब शायद बंदूक को लोड कर रहा था।
लंबू राइफल सहित खंडहरों से निकला। राज के छिपे रहने की दिशा में फायरिंग शुरू कर दी।
तभी बूढ़े ने तीसरा और चौथा फायर किया।
लंबू ने राइफल का रुख उसकी तरफ कर दिया।
राज ने लगातार दो गोलियां चलाई।
लंबू एक हाथ से पेट दबाए खांसता हुआ पीछे हटा। उसके हाथ से राइफल छूट गई।
तभी नीले ट्रक का इंजन स्टार्ट हुआ।
-“ठहरो।” लंबू चिल्लाया- “मैं आ रहा हूं.....।”
उसने राइफल उठा ली। उसी तरह पेट को दबाए भागा और झटके के साथ आगे बढ़े ट्रक के पिछले हिस्से में सवार हो गया।
राज ने बाकी गोलियां भी चला दीं।
तोप से छूटे गोले की तरह ट्रक सड़क पर पडे़ पहलवान को कुचलता हुआ चढ़ाईदार सड़क पर भाग खड़ा हुआ।
बूढ़े ने उस पर दो गोलियां और चलाई। लेकिन ट्रक नहीं रुका।
*****************
जेब से गोलियां निकालकर रिवाल्वर लोड करते राज को जौनी खंडहरों से निकलता दिखाई दिया- टांगे चौड़ाए और बाहें फैलाए वह किसी अंधे बूढ़े की भांति चल रहा था। चेहरा खून से सना था और सूजी आंखें बंद।
-“अकरम.....बहादुर.....क्या हुआ?”
वह सड़क पर पड़े पहलवान से उलझकर उसके ऊपर गिरा उसके बेजान शरीर को हिलाया।
-“बहादुर? उठो।”
उसके हाथों ने अजीब सी स्थिति में पड़े पहलवान के कुचले शरीर को टटोला तो असलियत का पता चलते ही चीखकर उससे अलग हट गया।
राज उसकी ओर चल दिया।
कदमों की आहट सुनकर जौनी ने गरदन घुमाई। हवा में हाथ मारता हुआ चिल्लाया- “कौन है? मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा। उन हरामजादो ने मुझे अंधा कर दिया।”
राज उसकी बगल में बैठ गया।
-“अपनी आंखें दिखाओ।”
जौनी ने अपना भुर्ता बना चेहरा ऊपर उठाया।
राज ने उसकी आंखें खोली। आंखें सुर्ख जरूर थीं लेकिन कोई जख्म उनमें नहीं था।
जौनी ने तनिक खुली आंखों से उसे देखा।
-“कौन हो तुम?”
-“हम पहले भी मिल चुके हैं- दो बार।” राज ने कहा- “याद आया?”
राज को पहचानते ही जौनी गुर्राया और हाथों से उसे दबोचने की कोशिश की। लेकिन उसकी कोशिश में दम नहीं था।
-“और ज्यादा दुर्गति करना चाहते हो?”
राज ने उसके विंडचीटर का कालर पकड़कर उसे खींचकर सीधा खड़ा किया। उसकी जेबें थपथपाईं।
उसके पास हथियार कोई नहीं था। एक जेब में नोट थे और कलाई पर राज की घड़ी बंधी थी।
राज समझ गया दोनों चीजें उसी की थीं। उसने नोट और घड़ी ले लिए।
जौनी ने प्रतिरोध नहीं किया। अपने पैरों में पड़ी लाश की ओर हाथ हिलाकर बोला- “तो तुमने बहादुर को मार डाला?”
-“वह अपनी लापरवाही से मारा गया।”
-“बाकी का क्या हुआ?”
-“ट्रक लेकर भाग गए।”
-“उन्हें पकड़ना चाहते हो?”
-“नहीं। वे पकड़े ही जाएंगे। विराटनगर नहीं पहुंच सकेंगे।”
-“तुम जानते हो उन्हें?”
-“वे वही लोग हैं जिनके साथ तुम काम किया करते थे।”
-“हां, मेरी गलती थी उन कमीनों पर भरोसा कर लिया। मैं पेशेवर चोर हूं। अकेला काम करता हूं। अकरम ने पूरे ट्रक लोड विस्की का दस लाख में सौदा किया था। मैंने सोचा भी नहीं था साला मेरे साथ दगाबाजी करेगा।” जौनी कुपित स्वर में कह रहा था- “मैंने माल दिखाकर उससे पैसा मांगा तो उसने मुझ पर राइफल तान दी और अपने साथियों से मेरी यह हालत करा दी। मुझे समझ जाना चाहिए था हरामजादा मेरे साथ ऐसा ही धोखा करेगा।” उसने अपने चेहरे पर हाथ फिराया- “लेकिन मैं उसे छोडूंगा नहीं। पैसा वसूल करके ही रहूंगा।”