desiaks
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मनहूस सोमवार से पहले रविवार को दक्षिणपश्चिमी गर्म हवाओं के साथ एकदम साफ सुबह थी। उस विषय पर कोई बातचीत किए बगैर वान वीटरेन और मुंस्टर ने पैदल पुलिस स्टेशन जाने का तय किया।
ये महज उन सुबहों में से एक थी, और मुंस्टर अपने और वान वीटरेन दोनों के कदमों में ढिलाई और अनिच्छा महसूस कर सकता था। जैसे ही वो वीवर्स ग्रांड से बाहर निकले, उसी वक़्त दिन की पहली प्रार्थना के लिए बंजेसकर्क की घंटियां बजने लगीं। वान वीटरेन उसके काले दरवाजों को देखने के लिए पल भर को ठिठका, और अबूझ सा कुछ बुदबुदाया। मुंस्टर ने अपने सामने फैले फलक पर विचार किया। भवन के भव्य हैनसिएटिक कोने। धीरे-धीरे टपकते पानी के साथ पीतल की पौराणिक मूर्तियां। घनघनाती घंटियों के नीचे शांति से फैला, कभी-कभार फड़फड़ाकर उड़ते पत्थरों के बीच खाना चुगते एकाध कबूतरों के अलावा एकदम सुनसान पड़ा तिरछा अहाता। और बुकशॉप के पास खड़ा, सीटी से वर्डी की धुन बजाता गहरी रंगत वाला एक सफाईकर्मी।
मुंस्टर ने अपने हाथ जेबों में डाल लिए और अपने पतले से ब्रीफकेस को बांह के नीचे दबा लिया, और जब उन्होंने ऊबड़-खाबड़ पत्थरों को पार किया तो अपने आसपास के माहौल की निरर्थकता का अहसास धीरे-धीरे उसके ऊपर हावी होने लगा। स्वाभाविक और अविवादित पागलपन। रविवार की ऐसी सुबह में इस उनीदा छोटे से तटवर्ती शहर में उनका काम और गतिविधियां हास्यास्पद लग रहे थे। किसी ने कभी कहा था कि दिन की रोशनी में एक कातिल कितना निस्तेज लगता है। और ये समझ पाना कितना नामुमकिन था कि नौंवी दफा, एक बार फिर वो लोग पुलिस स्टेशन के कॉन्फ्रेंस रूम में पड़ी गंदे पीले रंग की अंडाकार मेज के चारों ओर जमा होने के लिए जा रहे थे कि वहां बैठकर अपनी शर्ट की आस्तीनें चढ़ाकर वो एक बार और बहस करें कि ये पागल कौन हो सकता है।
वो आदमी इस छोटे से खूबसूरत शहर में अपने साथी निवासियों के सिर काटता फिर रहा है।
वो आदमी जिसकी वजह से एक पूरा समाज डर से कांपता हुआ जी रहा था, और जिसके काम सब लोगों की जबान पर थे क्योंकि असल में हफ़्ते दर हफ़्ते बातचीत का इकलौता विषय बस वही बना हुआ था।
वो आदमी, वास्तव में, जिसे ढूंढ़ना और उसकी शिनाख़्त करना उसका अपना, डीसीआई वान वीटरेन का और बाकी सबका फर्ज था ताकि इस दुनिया से आखिरकार इन गतिविधियों को बाहर किया जा सके।
और कल ये लोग क्या कहेंगे भला?
हां, इसके लिए इकलौता शब्द केवल हास्यास्पद है, मुंस्टर ने आंखें सिकोड़कर पुलिस स्टेशन की तांबई छत के ऊपर चमकते सूरज को देखते हुए सोचा। या शायद अजीबोगरीब, अगर बियाटे मोएर्क के शब्द को इस्तेमाल किया जाए तो ।
और, बेशक, ये जानना सबसे ज़्यादा मुश्किल, ये समझना सबसे ज़्यादा नामुमकिन था कि उसके साथ क्या हुआ हो सकता है।
क्या वाकई ऐसा हो सकता है कि इस वफ़्त शहर में या इसके आसपास कहीं वो कटे सिर के साथ पड़ी हो? तलाशे जाने काइंतजार करती धीरे-धीरे सड़ती एक लाश। क्या इसकी कल्पना करना मुमकिन था? वो, वो औरत जिसे वो लगभग...
उसने थूक गटका और सिगरेट के एक खाली पैकेट को ठोकर मारी जो बजाहिर सफाई कर्मचारी की निगाह से छूट गया था।
और आज दोपहर वो सिन और बच्चों से फिर मिलेगा।
उसे खुद से पूछना पड़ा था कि उसने बिना जरा सी भी चेतावनी दिए यहां आने का फैसला कैसे कर लिया--सहज आवेग, उसने फोन पर कहा था--और वो भी इस वक़्त?
पिछले शुक्रवार की शाम पौने आठ बजे।
कमोबेश लगबग यही समय रहा होगा जब...
इतने लंबे अरसे में जबसे वो साथ काम कर रहे थे, दो या तीन मौकों पर वान वीटरेन ने जिंदगी के पैटर्न के बारे में उससे बात की थी। छिपे हुए सूत्र, योजनाबद्ध घटनाएं और इसी तरह की चीजें--निर्धारक, वो जो भी होते हैं; लेकिन इसने तो यकीनन ज़्यादातर को पीछे छोड़ दिया था।
वो सिहर उठा और उसने भविष्यवाणी के लिए द्वार खुला छोड़ दिया।
"हमने उसे पकड़ लिया," बॉजेन ने कहा।
"किसे पकड़ लिया?" वान वीटरेन ने उबासी लेते हुए कहा।
"पॉडवस्की को, बेशक," क्रोप्के ने कहा। "वो नीचे एक कोठरी में है। हमने आधे घंटे पहले उसे हार्बर से उठाया था।" "हार्बर से?"
"हां। कल सुबह से वो वहां मछली पकड़ रहा है - या कम से कम उसका यही कहना है। ऐसा लगता है कि उसने सॉलिनेन से एक नाव किराए पर ली थी, बजाहिर जब-तब लेता रहता है।"
वान वीटरेन एक कुर्सी पर ढेर हो गया।
"उससे पूछताछ की?" उसने पूछा।
"नहीं," बॉजेन ने कहा। "उसे कुछ पता नहीं है कि ये सब किसलिए हो रहा है।"
"अच्छा है," वान वीटरेन ने कहा। "मैं कहूंगा कि उसे कुछ देर और पकने दें।"
"मैं पूरी तरह सहमत हूं," बॉजेन ने कहा। "मैं नहीं चाहता कि इस बार हम कोई जल्दबाजी करें।"
मिस डीविट कॉफी की ट्रे लेकर आईं।
मनहूस सोमवार से पहले रविवार को दक्षिणपश्चिमी गर्म हवाओं के साथ एकदम साफ सुबह थी। उस विषय पर कोई बातचीत किए बगैर वान वीटरेन और मुंस्टर ने पैदल पुलिस स्टेशन जाने का तय किया।
ये महज उन सुबहों में से एक थी, और मुंस्टर अपने और वान वीटरेन दोनों के कदमों में ढिलाई और अनिच्छा महसूस कर सकता था। जैसे ही वो वीवर्स ग्रांड से बाहर निकले, उसी वक़्त दिन की पहली प्रार्थना के लिए बंजेसकर्क की घंटियां बजने लगीं। वान वीटरेन उसके काले दरवाजों को देखने के लिए पल भर को ठिठका, और अबूझ सा कुछ बुदबुदाया। मुंस्टर ने अपने सामने फैले फलक पर विचार किया। भवन के भव्य हैनसिएटिक कोने। धीरे-धीरे टपकते पानी के साथ पीतल की पौराणिक मूर्तियां। घनघनाती घंटियों के नीचे शांति से फैला, कभी-कभार फड़फड़ाकर उड़ते पत्थरों के बीच खाना चुगते एकाध कबूतरों के अलावा एकदम सुनसान पड़ा तिरछा अहाता। और बुकशॉप के पास खड़ा, सीटी से वर्डी की धुन बजाता गहरी रंगत वाला एक सफाईकर्मी।
मुंस्टर ने अपने हाथ जेबों में डाल लिए और अपने पतले से ब्रीफकेस को बांह के नीचे दबा लिया, और जब उन्होंने ऊबड़-खाबड़ पत्थरों को पार किया तो अपने आसपास के माहौल की निरर्थकता का अहसास धीरे-धीरे उसके ऊपर हावी होने लगा। स्वाभाविक और अविवादित पागलपन। रविवार की ऐसी सुबह में इस उनीदा छोटे से तटवर्ती शहर में उनका काम और गतिविधियां हास्यास्पद लग रहे थे। किसी ने कभी कहा था कि दिन की रोशनी में एक कातिल कितना निस्तेज लगता है। और ये समझ पाना कितना नामुमकिन था कि नौंवी दफा, एक बार फिर वो लोग पुलिस स्टेशन के कॉन्फ्रेंस रूम में पड़ी गंदे पीले रंग की अंडाकार मेज के चारों ओर जमा होने के लिए जा रहे थे कि वहां बैठकर अपनी शर्ट की आस्तीनें चढ़ाकर वो एक बार और बहस करें कि ये पागल कौन हो सकता है।
वो आदमी इस छोटे से खूबसूरत शहर में अपने साथी निवासियों के सिर काटता फिर रहा है।
वो आदमी जिसकी वजह से एक पूरा समाज डर से कांपता हुआ जी रहा था, और जिसके काम सब लोगों की जबान पर थे क्योंकि असल में हफ़्ते दर हफ़्ते बातचीत का इकलौता विषय बस वही बना हुआ था।
वो आदमी, वास्तव में, जिसे ढूंढ़ना और उसकी शिनाख़्त करना उसका अपना, डीसीआई वान वीटरेन का और बाकी सबका फर्ज था ताकि इस दुनिया से आखिरकार इन गतिविधियों को बाहर किया जा सके।
और कल ये लोग क्या कहेंगे भला?
हां, इसके लिए इकलौता शब्द केवल हास्यास्पद है, मुंस्टर ने आंखें सिकोड़कर पुलिस स्टेशन की तांबई छत के ऊपर चमकते सूरज को देखते हुए सोचा। या शायद अजीबोगरीब, अगर बियाटे मोएर्क के शब्द को इस्तेमाल किया जाए तो ।
और, बेशक, ये जानना सबसे ज़्यादा मुश्किल, ये समझना सबसे ज़्यादा नामुमकिन था कि उसके साथ क्या हुआ हो सकता है।
क्या वाकई ऐसा हो सकता है कि इस वफ़्त शहर में या इसके आसपास कहीं वो कटे सिर के साथ पड़ी हो? तलाशे जाने काइंतजार करती धीरे-धीरे सड़ती एक लाश। क्या इसकी कल्पना करना मुमकिन था? वो, वो औरत जिसे वो लगभग...
उसने थूक गटका और सिगरेट के एक खाली पैकेट को ठोकर मारी जो बजाहिर सफाई कर्मचारी की निगाह से छूट गया था।
और आज दोपहर वो सिन और बच्चों से फिर मिलेगा।
उसे खुद से पूछना पड़ा था कि उसने बिना जरा सी भी चेतावनी दिए यहां आने का फैसला कैसे कर लिया--सहज आवेग, उसने फोन पर कहा था--और वो भी इस वक़्त?
पिछले शुक्रवार की शाम पौने आठ बजे।
कमोबेश लगबग यही समय रहा होगा जब...
इतने लंबे अरसे में जबसे वो साथ काम कर रहे थे, दो या तीन मौकों पर वान वीटरेन ने जिंदगी के पैटर्न के बारे में उससे बात की थी। छिपे हुए सूत्र, योजनाबद्ध घटनाएं और इसी तरह की चीजें--निर्धारक, वो जो भी होते हैं; लेकिन इसने तो यकीनन ज़्यादातर को पीछे छोड़ दिया था।
वो सिहर उठा और उसने भविष्यवाणी के लिए द्वार खुला छोड़ दिया।
"हमने उसे पकड़ लिया," बॉजेन ने कहा।
"किसे पकड़ लिया?" वान वीटरेन ने उबासी लेते हुए कहा।
"पॉडवस्की को, बेशक," क्रोप्के ने कहा। "वो नीचे एक कोठरी में है। हमने आधे घंटे पहले उसे हार्बर से उठाया था।" "हार्बर से?"
"हां। कल सुबह से वो वहां मछली पकड़ रहा है - या कम से कम उसका यही कहना है। ऐसा लगता है कि उसने सॉलिनेन से एक नाव किराए पर ली थी, बजाहिर जब-तब लेता रहता है।"
वान वीटरेन एक कुर्सी पर ढेर हो गया।
"उससे पूछताछ की?" उसने पूछा।
"नहीं," बॉजेन ने कहा। "उसे कुछ पता नहीं है कि ये सब किसलिए हो रहा है।"
"अच्छा है," वान वीटरेन ने कहा। "मैं कहूंगा कि उसे कुछ देर और पकने दें।"
"मैं पूरी तरह सहमत हूं," बॉजेन ने कहा। "मैं नहीं चाहता कि इस बार हम कोई जल्दबाजी करें।"
मिस डीविट कॉफी की ट्रे लेकर आईं।