desiaks
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एक डाक्टर से अपने गाल की मरहम पट्टी कराकर राज ने उसी के क्लिनिक में अपना बाकी हुलिया सही किया।
क्लिनिक से निकलते वक्त राज का जी चाहा अपनी कार में सवार होकर अलीगढ़ से फौरन कूच कर जाए। वहां ठहरने की एक भी ठोस वजह उसके सामने नहीं थी। लेकिन दूसरों के फटे में टांग अड़ाने की आदत से मजबूर राज को उसके खुराफाती मन ने ऐसा नहीं करने दिया।
वह एस. एच.ओ. समर सिंह चौधरी के ऑफिस पहुंचा। पचासेक वर्षीय चौधरी इकहरे मजबूत जिस्म का रोबीले चेहरे वाला आदमी था।
-“तो तुम तुम हो, राज कुमार। ‘पंजाब केसरी’ के प्रेस रिपोर्टर और मशहूर- ओ मारूफ हस्ती। तशरीफ़ रखो।”
राज उसके डेस्क के संमुख एक कुर्सी पर बैठ गया।
-“थैंक्यु सर।”
-“तुम छलावा किस्म के आदमी हो।”
-“सॉरी सर। काफी भाग-दौड़ करता रहा हूं।”
-“और गिरते-पड़ते भी रहे हो? मारा-मारी भी करते रहे हो?”
राज ने जवाब नहीं दिया।
-“मैं तुम्हारे नाम वारंट इशू करने वाला था।”
-“किस आरोप में?”
-“कुछ भी हो सकता था।”
-“मसलन?”
-“पुलिस के काम में बाधा डालना, कानून को अपने हाथ में लेना, पुलिस ऑफिसर ऑन ड्यूटी के साथ हाथापाई करना वगैरा।”
-“इन्सपैक्टर चौधरी की बात कर रहे हैं?”
-“नहीं, एस. आई. सतीश पाल की बात कर रहा हूं।”
-“सतीश पाल एक गर्म मिजाज ऑफिसर है। अगर वह थोड़ी समझदारी से काम लेता और मुझ पर हावी होने की कोशिश नहीं करता तो वह लड़की भाग नहीं सकती थी।”
-“सतीश भी अब इस बात को महसूस कर रहा है। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि तुम्हें वो सब करने की इजाजत मिल जाएगी जो तुम इस शहर में करते रहे हो। अगर मैं तुम्हारी जगह होता मैंने अंधेरी गलियों से दूर रहना था। साथ ही इस बात की चेतावनी भी देना चाहता हूं कि जो हरकत तुमने सतीश के साथ की थी वैसी कोशिश और किसी पुलिस वाले के साथ मत कर बैठना। जानते हो, अभी तक आजाद क्यों घूम रहे हो?”
-“नहीं।”
-“इन्सपैक्टर चौधरी की वजह से।”
राज बुरी तरह चौका।
-“म......मैं समझा नहीं।”
-“चौधरी का कहना है, तुम्हारे काम करने के ढंग से खुश न होने के बावजूद तुमसे नाराज वह नहीं है। तुम इस मामले में उसकी मदद कर रहे हो। एयरबेस पर उस लाल मारुति की सूचना तुम्हीं ने उसे दी थी।”
मन ही मन हैरान राज समझ नहीं पा रहा था चौधरी कैसा आदमी था। एक तरफ तो उसे गिरफ्तार करने की बजाय उसकी तारीफ कर रहा था। उसे क्रेडिट दे रहा था और दूसरी ओर उसकी जान तक लेने पर आमादा हो गया था।
-“क्या सोच रहे हो?” चौधरी ने टोका- “उस मारुति से ही हमें जौनी के बारे में लीड मिली थी।”
-“बवेजा ने भी मुझे यही बताया था। जौनी पकड़ा गया?”
-“अभी नहीं। लेकिन उसकी जन्मपत्री मुझे मिल गई है। उसके गुनाहों की फेहरिस्त खासी लंबी है।” चौधरी ने अपने डेस्क पर पड़ा एक कागज उठा लिया- “छोटी मोटी चोरियां, मार पीट और तोड़ फोड़ उसने तभी शुरू कर दी थी जब स्कूल में पढ़ता था। अगले कई सालों में बार-बार कारें चुराईं, गैर कानूनी तौर पर हथियार रखने लगा। फिर चोरी, डकैती और रहजनी को पेशे के तौर पर अपना लिया। पिछले ग्यारह सालों में से सात साल उसने जेल में गुजारे हैं।”
-“वह रहने वाला कहां का है?”
-“विशालगढ़ का। लेकिन हर बार अलग-अलग शहरों से पकड़ा गया था। आखरी दफा विराटनगर में स्मगल्ड शराब का ट्रक चलाता पकड़ा गया था। जुलाई में जेल से छूटा और इधर आ गया।”
-“बैंक में डकैती उसने अकेले ही डाली थी?”
क्लिनिक से निकलते वक्त राज का जी चाहा अपनी कार में सवार होकर अलीगढ़ से फौरन कूच कर जाए। वहां ठहरने की एक भी ठोस वजह उसके सामने नहीं थी। लेकिन दूसरों के फटे में टांग अड़ाने की आदत से मजबूर राज को उसके खुराफाती मन ने ऐसा नहीं करने दिया।
वह एस. एच.ओ. समर सिंह चौधरी के ऑफिस पहुंचा। पचासेक वर्षीय चौधरी इकहरे मजबूत जिस्म का रोबीले चेहरे वाला आदमी था।
-“तो तुम तुम हो, राज कुमार। ‘पंजाब केसरी’ के प्रेस रिपोर्टर और मशहूर- ओ मारूफ हस्ती। तशरीफ़ रखो।”
राज उसके डेस्क के संमुख एक कुर्सी पर बैठ गया।
-“थैंक्यु सर।”
-“तुम छलावा किस्म के आदमी हो।”
-“सॉरी सर। काफी भाग-दौड़ करता रहा हूं।”
-“और गिरते-पड़ते भी रहे हो? मारा-मारी भी करते रहे हो?”
राज ने जवाब नहीं दिया।
-“मैं तुम्हारे नाम वारंट इशू करने वाला था।”
-“किस आरोप में?”
-“कुछ भी हो सकता था।”
-“मसलन?”
-“पुलिस के काम में बाधा डालना, कानून को अपने हाथ में लेना, पुलिस ऑफिसर ऑन ड्यूटी के साथ हाथापाई करना वगैरा।”
-“इन्सपैक्टर चौधरी की बात कर रहे हैं?”
-“नहीं, एस. आई. सतीश पाल की बात कर रहा हूं।”
-“सतीश पाल एक गर्म मिजाज ऑफिसर है। अगर वह थोड़ी समझदारी से काम लेता और मुझ पर हावी होने की कोशिश नहीं करता तो वह लड़की भाग नहीं सकती थी।”
-“सतीश भी अब इस बात को महसूस कर रहा है। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि तुम्हें वो सब करने की इजाजत मिल जाएगी जो तुम इस शहर में करते रहे हो। अगर मैं तुम्हारी जगह होता मैंने अंधेरी गलियों से दूर रहना था। साथ ही इस बात की चेतावनी भी देना चाहता हूं कि जो हरकत तुमने सतीश के साथ की थी वैसी कोशिश और किसी पुलिस वाले के साथ मत कर बैठना। जानते हो, अभी तक आजाद क्यों घूम रहे हो?”
-“नहीं।”
-“इन्सपैक्टर चौधरी की वजह से।”
राज बुरी तरह चौका।
-“म......मैं समझा नहीं।”
-“चौधरी का कहना है, तुम्हारे काम करने के ढंग से खुश न होने के बावजूद तुमसे नाराज वह नहीं है। तुम इस मामले में उसकी मदद कर रहे हो। एयरबेस पर उस लाल मारुति की सूचना तुम्हीं ने उसे दी थी।”
मन ही मन हैरान राज समझ नहीं पा रहा था चौधरी कैसा आदमी था। एक तरफ तो उसे गिरफ्तार करने की बजाय उसकी तारीफ कर रहा था। उसे क्रेडिट दे रहा था और दूसरी ओर उसकी जान तक लेने पर आमादा हो गया था।
-“क्या सोच रहे हो?” चौधरी ने टोका- “उस मारुति से ही हमें जौनी के बारे में लीड मिली थी।”
-“बवेजा ने भी मुझे यही बताया था। जौनी पकड़ा गया?”
-“अभी नहीं। लेकिन उसकी जन्मपत्री मुझे मिल गई है। उसके गुनाहों की फेहरिस्त खासी लंबी है।” चौधरी ने अपने डेस्क पर पड़ा एक कागज उठा लिया- “छोटी मोटी चोरियां, मार पीट और तोड़ फोड़ उसने तभी शुरू कर दी थी जब स्कूल में पढ़ता था। अगले कई सालों में बार-बार कारें चुराईं, गैर कानूनी तौर पर हथियार रखने लगा। फिर चोरी, डकैती और रहजनी को पेशे के तौर पर अपना लिया। पिछले ग्यारह सालों में से सात साल उसने जेल में गुजारे हैं।”
-“वह रहने वाला कहां का है?”
-“विशालगढ़ का। लेकिन हर बार अलग-अलग शहरों से पकड़ा गया था। आखरी दफा विराटनगर में स्मगल्ड शराब का ट्रक चलाता पकड़ा गया था। जुलाई में जेल से छूटा और इधर आ गया।”
-“बैंक में डकैती उसने अकेले ही डाली थी?”